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साथथक मोहंती

BIRLA INSTITUTE OF TECHNOLOGY & SCIENCE


PILANI – RAJASTHAN , INDIA - 333031

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25. 04. 2009

saMdoSa
मुझे बहुत ख़ुशी है कक हहन्दी प्रेस क्लब ऄपने वार्षषक हिहदी संस्करण, वाणी-09 का प्रकाशन कर रही है | हबट्स
के छात्र-छात्राओं एवं हशक्षकं की हलहखत कला को व्यक्त करने के हलए वाणी एक महत्वपूणथ मंच है और साथ
ही साथ हबट्स मं होने वाली सभी महत्त्वपूणथ घटनाओं को लोगं तक पहुंचाने के काम को वाणी ने बखूबी
हनभाया है | अशा करता हूँ कक आस बार भी यह कायम रहेगा |
वाणी सम्पादक मंडल की मेहनत ईल्लेखनीय है |
अशा करता हूँ की अप सभी की छु ट्टियां ऄच्छी रहंगी और ऄगले सेमेस्टर के हलए अप नए जोश के साथ
लौटंगे |
आस वषथ हबट्स से स्नातक लेने वाले सभी छात्र-छात्राओं से ऄनुरोध है की हमारे संपकथ मं रहं और "यात्रा,
श्रेष्ठता की" मं हमारा हहस्सा बनं |
सभी हबहट्सयन्स को मेरा नमस्कार |
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sampadkIya

वाणी, अवाज़ हमारी, अवाज़ अपकी और अवाज़ हबट्स की | वाणी का


यह संस्करण कु छ ऄलग है | हज़न्दगी थमती नहं है | हर कदन कु छ बदलता
है और यही आस वाणी की अवाज़ भी है जो कक हर कोने मं सुनाइ देगी |
एक बदलाव की, एक सकारात्मक बदलाव की |
हर वो काम जो बदलाव लाता है, आस पद्धहत मं, जो कक ककसी भी बदलाव
के बहाव को रोकने की कोहशश करती है, को मुहककलं तो झेलनी ही पड़ती
है | पर कहते हं, हज़न्दगी आसी का नाम है |
यह वाणी भी ईस हज़न्दगी का नाम है हजसमं हमज़ाथ गाहलब के सटीक,
व्यंग्यात्मक और शोचनीय दोहे हं, हजसमं अज के कु छ महत्वपूणथ पहलुओं पर कु छ हवचार हं, हजसमं कलाकारं की सोच
रेखाओं मं ईभरी है और हजसमं कहव की सोच शब्ददं मं |
आस वाणी के हलए हम ईन सभी लोगं का धन्यवाद करना चाहते हं हजनके ऄथक प्रयास और समपथण के बगैर यह संभव
नहं था | हबट्स मं और हबट्स से बाहर हजन लोगं ने वाणी मंडल का मागथदशथन ककया है, ईनके हम बहुत अभारी हं |
ईन सभी लोगं का वाणी मंडल की तरफ से तहे कदल से शुकिया हजन्हंने प्रत्यक्ष-परोक्ष, वाणी-09 मं बहुमूल्य योगदान
कदया है |

प्रतीक माहे श्वरी


पुष्प सौरभ
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10 महीने हो गए हं, कै म्पस छोड़े हुए, पर यादं अज भी एक सेमेस्टर पहले तक तो कफर भी काफी दोस्त थे पर
ताजा हं | ऐसा लगता है मानो कल ही की बात तो थी | आस सेम काफी कम ही हं | और जो बचे हं, या तो जॉब
हॉस्टल की लाआफ, दोस्तं का साथ, ANC मैगी, रात-रात लगवाने मं व्यस्त हं या बोर हो कर घर जा चुके हं |
भर CS और AOE और भी ना जाने क्या-क्या.. ककतना
याद रख सकता है आं सान.. बस जी सकता है | पर ऄब ऄब वह हज़न्दगी दूर-दूर तक नज़र नहं अती जो हमने
वक़्त बदल गया है | ककसी ने सच ही कहा है - हपछले 2 सालं मं हबताइ थी | लोग कहते हं कक
"वक़्त ककसी के हलए नहं रुकता |" संटी-सेम मस्ती के हलए होता है पर मेरे ख्याल मं जो
मस्ती पहले साल के एच-हिवग मं होती थी वो कभी

कै म्पस पर मंने ऄपने दोस्तं के मुकाबले एक सेमेस्टर कम वापस नहं अ सकती है क्यंकक आस सेम मं सब आधर-

हबताया है | आस बात का ऄफ़सोस तो हमेशा ही ईधर हबखर चुके होते हं और सबको ऄपनी-ऄपनी

मन मं रहेगा, पर आं सान को अगे बढ़ने के हज़न्दगी मं व्यस्त देखा जा सकता है |


मेरे ख्याल मं जो मस्ती पहले
हलए कल को तो छोड़ना ही होगा | पर पहले साल मं सब हमेशा साथ रहने
साल के एच-हिवग मं होती थी वो
हबट्स की हज़न्दगी को भूलना आतना वाले दोस्त, के वल लंच पर ही साथ
कभी वापस नहं अ सकती है
असान नहं है और शायद यही कारण है रहते हं क्यंकक नाकता तो शायद ही

कक PS-2 के दौरान हर हबहट्सयन एक बार तो कभी हो पाता है [ऄब नाकते से 2 घंटे पहले

कै म्पस ज़रूर अता है | ईसके मन मं यही हवचार रहता ही तो सोते हं] | रात का खाना C'not मं होता है और

होगा कक ईन कु छ दोस्तं से हमल हलया जाए हजसके साथ बाकी कदनभर आधर ईधर बाहर ही घूमते हं |

ईसने 3-4 साल हबताए हं और हजनसे ऄब न जाने कब


मुलाक़ात हो.. 4-5 साल या 10-15... कु छ भी नहं पता | आसहलए ईम्मीद करता हूँ कक पहले और दूसरे साल मं
छात्र पूरी मस्ती मं हबता रहे हंगे, तृतीय वषथ ऄपने
CDC को सही से हनभा रहे हंगे और संटी-सेमाइट
जब मंने हबट्स छोड़ा था तो लग रहा था कक हपलानी कहाँ
ऄपने 4-5 साल के यादं को घूम-घूम कर आकठ्ठा कर रहे
कदल्ली से दूर है ? जब मन करे बस मं बैठो और हपलानी
हंगे और मेरे जैसे ऄलुम्नी काम के बीच वक़्त हनकाल
पहुँच जाओ || पर मं गलत साहबत होता जा रहा हूँ |
कर दोस्तं से संपकथ मं रह रहे हंगे |
3 बार हपलानी अने के बाद ऄब मेरे भी हवचार बदल रहे ऄगर ऐसा नहं है तो बस एक बात कहूँगा - "यारं
हं | ऄब बहुत कम ही दोस्त कै म्पस पर रह गए हं | हपलानी कदल्ली से बहुत दूर है |“

ऄहभषेक राठी

ऄपनी गली मं मुझको न कर दफ़न बाद-ए-क़त्ल


मेरे पते से खल्क़ को क्यूँ तेरा घर हमले

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Aama ihndustanaI
ककचन मं खड़ा सोचता हूँ, हज़न्दगी यूँ ही
"पानी मं दूध" से ईफन कर, खुले-हबगड़े नल की तरह
शीत हुइ मलाइ की "नैनो" लेयर, नाली मं बह जाती है |
क्या करहाती सड़कं की मरम्मत से,
मोटी होगी ? सोचता हूँ,
ये हववशता क्या है ?
पानी मं दूध और सड़कं की मरम्मत ये कै सी ईलझन है ?
के ऄजीब संयोग के गहणत मं हहन्दोस्तां अहखर क्या है ?
मेरी क्या भूल ? क्या मं हहन्दोस्तां हूँ ? मं ?
देखो - मुझसे सवाल मत पूछो शायद !
मुझे चैन से जीने दो | शायद आसहलए ? ...
आतना कह देता हूँ,
ट्टरश्वत की मकदरा ज़रूर हपलाता हूँ, सोना, सोना तब होता है
पर खुद नहं पीता | जब ईसका हर ऄणु सोना होता है |
सहनशील सज्जनता का
साक्षात ऄवतार हूँ मं,
अज नहं सोया मं,
चाहे ककतना भी ऄन्याय हो
अने वाले कल के हसीन ख्यालं मं |
बड़ं के मुंह नहं लगता |
जब -
सड़कं पर रंगती हज़न्दगी
सोचता हूँ, हवा से बातं करेगी
मं अहखर क्या करता हूँ ? सुबह दोपहर को नहं होगी
रात होते ही चैन की नंद सोता हूँ .. शाम दफ्तर मं जब दस्तक देगी
पर सुबह होते ही हहन्दोस्तां की सूरत संवर रही होगी |
हिहदुस्तान की हिचता करता हूँ |
भीड़ मं खोया, कतार मं फं सा,
हाँ, मं हहन्दोस्तां हूँ |
दफ्तर मुहककल से पहुँचता हूँ | सहनशील-सज्जनता नहं
सरकार को 200 गाहलयाँ चढ़ाकर हववेकशील हवद्रोह हूँ मं |
प्रसाद ऄब कल को अना होगा
कदन, दोपहर से शुरू करता हूँ | - अज ही |
कदन ऄभी चढ़ा ना था, हनशा तुझे रुकना होगा
संध्या की स्याही आस नयी सुबह के सूयाथस्त तक |
हखड़ककयं से चली अती है,
ऊहषके श वैद्य
दफ्तर मं कदनभर ईलझनं
सुलझन से बहतयाती हं | सहायक प्रोफ़े सर
2
ibaKro pnnao

1 जाने वाले पुरस्कारं पर भी कइ गंभीर सवाल ईठाए |

शायद ही कोइ कदन हो जब मन को झकझोरने वाली कोइ चचाथ मं गमी तो तब अइ जब छात्रं की टोली दो दलं

घटना न घटे | हपछले साल कु छ छात्रं के साथ प्रदेश के मं बँट गइ | एक ने भारत मं बनने वाली कफल्मं को

एक गाँव घूमने का मौका हमला | रास्ते मं बातं ही बातं भारतीय समाज का नकारात्मक हचत्रण माना तो दूसरे

मं मंने ईनसे पूछ डाला - "तुम लोग कहाँ के रहने वाले हो | ने आसे वास्तहवकता ईजागर करने वाला बताया | यही

गाँव के या शहर के ?" ककसी ने गाँव की बात नहं की | लगा कक काश | आन्हं समाज को थोड़ा और करीब से

क्यंकक ऄहधकांश का जन्म व लालन-पालन शहर मं ही देखने का मौका हमला होता | संभव है, ये समाज को

हुअ था | हाँ, ईनके दादा-दादी गाँव मं ही रहते थे या और बारीकी से समझ सकते | पर अशा की ककरण

रहते हं | परन्तु ईनको बचपन मं एक-दो कदखती गइ जब ईनके मन मं कु छ करने


लोगं ने मोरल पॉहलहिसग के नाम
बार को छोड़ गाँव जाने की बात याद की, जो समाज एवं देश के हलए
पर राम सेना तथा श्री मुथाहलक जी
नहं अती | समय कहाँ ? न ही माँ-बाप सकारात्मक हो, बड़ी ही सशक्त
को जी भर कर कोसा |
को समय है और न ही ईनको पढ़ाइ से ऄहभलाषा जगती कदखी |

छु िी | ऄब तो और समय हमलना मुहककल 2

क्यंकक अइ.अइ.टी. की तैयारी कोटा मं सातवं कक्षा से मंगलोर की पब वाली घटना पर बड़ी ही हाय तौबा

ही शुरू होने वाली है | मची | लोगं ने मोरल पॉहलहिसग के नाम पर राम सेना

वापस अ रहा था | गाड़ी की ऄगली सीट पर मं बैठा था तथा श्री मुथाहलक जी को जी भर कर कोसा ही नहं

और मेरे पीछे वही सब छात्र | बात हॉलीवुड से चलकर बहल्क ऄभद्र भाषा के व्यवहार मं प्रहतयोहगता अरंभ कर

बॉलीवुड तक पहुँची और कफर रामायण और महाभारत के दी | मुझे भी राम सेना तथा श्री मुथाहलक के व्यव्हार

पात्रं तक जा रूकी | मं चुपचाप सुनता रहा | अश्चयथ तो ऄच्छा नहं लगे | मीहडया ने भी, खासकर ऄंग्रेजी

तब हुअ जब ईन्हंने रामायण और महाभारत के साधारण मीहडया ने आन्हं कहं का नहं छोडा | अश्चयथ तो तब

से पात्रं पर भी लंबी पट्टरचचाथ अरंभ कर दी | ककस्सा यहाँ हुअ जब तथाकहथत प्रगहतवादी लोगं ने 'हिपक चड्डी'

कहाँ ख़त्म हुअ | ईन्हंने बॉलीवुड मं बन रहे कफल्मं की अन्दोलन अरम्भ कर कदया | ऄंग्रेजी मीहडया ने हर घंटे

ऄंतराथष्ट्रीय पहचान तथा हवहभन्न संस्थाओं द्वारा कदए 'हिपक चड्डी' भेजने वालं की संख्या मं बढ़ोतरी का सीधा

रगं मं दौड़ते कफरने के हम नहं कायल


जब अँख ही से न टपका तो कफर लहू क्या है

3
अरम्भ कर कदया | एक तरफ लोग मोरल पॉहलहिसग का ऄपने बच्चों के हलए जीते हं, ईसी समाज मं अज वषथ मं

जम कर हवरोध कर रहे थे और दूसरी तरफ़ वही लोग मात्र एक कदन बच्चों को माँ-बाप के हलए एक काडथ पर

'हिपक चड्डी' भेज कर एक नए मोरल पॉहलहिसग की शुरुअत 'हैप्पी मदसथ/फादर डे' हलखते और भेजते देख हैरानी हो

कर रहे थे | लगा, जैसे लोग हवरोधाभास की हज़न्दगी जीने रही है | लेककन आसमं हैरानी ककस बात की ? समाज की

मं अनंद ले रहे हं | राज्य सरकारं के बीच भी कहं ईदासीनता तथा व्यहक्तवादी समाज के हवकास का यही

मतैक्य(सामंजस्य) नहं | महहलाओं मं हवरोध झलक रहा तो लक्ष्य था | समाजवादी व्यहक्त से व्यहक्तवादी समाज

था | महहला अयोग की सदस्या बखाथस्त हो गयी क्यंकक मं पट्टरवतथन कु छ न कु छ ऄसर कदखायेगा ज़रूर |

आन्हंने मंत्रीजी के हवचारं से ऄलग हवचार व्यक्त कर 4

कदए | ऄगर सहमहत होती तो कोइ राजनीहत नहं होती | भारतीय राजनीहत के बदलते तेवर भी कभी कभी हंसा

हवरोध ककया तो राजनीहत करने का अरोप लगा | संतोष देते हं | तटस्थता के नाम पर लोग ऄपनी पृष्टभूहम एवं

आसी बात से है कक बॉयफ्रेंड के हसगरेट पीने से मना करने पहचान को ही भूलने लगे हं | हपछले साल सोमनाथ

पर गलथफ्रेंड द्वारा अत्महत्या की घटना पर कोइ अन्दोलन बाबू ने कर्त्थव्य परायणता के नाम पर तथा तटस्थता को

नहं हुअ ऄन्यथा बात का बतंगड़ तो आस पर भी हो बहाना बना कर ऄपनी पाटी को ही ठं गा कदखा कदया |

सकता था | हज़न्दगी भर समस्यावाद का फं डा ढोने वाले दादा ने पद

3 के कारण ऄपनी पाटी के संहवधान तथा लाखं वोटरं,

अजकल गुस्सा तो मुझे भी अता है जब लोग मदसथ डे, हजन्हंने ईन्हं समस्यावादी समझा था, को दरककनार कर

फादसथ डे, वैलंटाआं स अकद की बधाइ देना शुरू कर देते हं | कदया |

गुस्सा आसहलए नहं की बधाइ देते हं, बहल्क आसहलए की पांच साल तक सरकार मं रहने वाली पार्टटयां तथा आनके

बधाइ देने से पहले कु छ सोचते क्यं नहं ? एक छात्र को कोटे के मंत्री अज ऄपने ही कायं का हवरोध करते हुए

ऄपने हशक्षक को 'हैप्पी वैलंटाआं स डे' कहते सुना तो गुस्सा चुनाव लड़ रहे हं | सब ईपलहब्दधयं का सेहरा बांधे,

नहं, हंसी अ गयी | हंसी ही मेरे हलए गुस्से की ऄहभव्यहक्त नादाहनयं का ढंकरा दूसरे के सर फोड़ना चाहते हं |

बन गयी है क्यंकक अजकल स्वतंत्रता जो है | कहं मोरल

पॉहलहिसग का ऄहभयोग न चल जाये, चुप रहने मं ही


ऄगले पन्ने पर जारी ...
भलाइ लगने लगी है | हजस समाज मं माँ-बाप हर पल

ईनके देखे से जो अ जाती है मुंह पर रौनक


वो समझते हं की बीमार का हाल ऄच्छा है

4
मेरे प्रहत ईसके ह्रदय मं ऄपनापन जागा |
कौन है वह दूसरा | ज़रा अम अदमी भी तो जाने ? वह मुझे दुःख भरी दास्ताँ सुनाने लगी |
ककसको मूखथ बनाना चाहते हं नेतागण आस सूचना के युग
मं ? हवरोधी पाटी सर्त्ा पक्ष की नाकाहमयं की चचाथ तो मं गरीब और ऄके ली बहन थी ,
खूब कर रही है पर नयी राह की तलाश मं बैठे मतदाताओं शादी हुइ एक धनवान आं सान से ,
को के वल लम्बे चौड़े गहतरोधक ही कदख रहे हं |सूचना एवं वह मुझे ऄपनाने लगा ,
संचार के युग मं लोगं को यन्त्र भले ही हमल गया हो ,पर ऄपने ह्रदय मं प्यार काफी जगाने लगा ,
सही सूचना की जगह ऄस्पष्ट भरोसं के सब्दज बाग़ ही हम दोनं एक दूसरे के प्यार मं खो गए \
कदखाए जा रहे हं | लीड आं हडया का सन्देश के वल समाचार परन्तु एक कदन ऐसी हवषैली हवा चली ,
पत्र का हवज्ञापन बन कर न रह जाये ,आसी ऄंदेशे के साथ
वाणी के नए ऄंक की प्रतीक्षा रहेगी |

संजीव कु मार चौधरी


भाषा हवभाग

vaao smarNaIya dRXya ka ek xaNa

वो मुझे छोड़कर न जाने ककस जहाँ मं खो गया,


एक महहला ,
मं ऄपनी बच्चोी के साथ हपर्त् की भूख हमटाने को
सड़क के ककनारे ,
अपके सामने बैठकर हाथ फै लाए मांग रही,
कड़कडाती ठण्ड एवं कु हरे मं ,
एक जीवन भर की ख़ुशी |
गोद मं हलपटाए बच्चोी को लेकर ,
बैठी थी मौन एवं शांत |
मं सुनकर कहाहनयं बहुत द्रहवत हो गया ,

फटी पुरानी साड़ी के हलबास मं , इश्वर से प्राथथना कर ईसके जीवन दुःख को ,


दुःख ददथ से पीहड़त लग रही थी | दूर करने की चाह मं खोता चला गया ,
मेरी अशा मेरी नजर ईस पर पड़ी और वो मुझे देखती रह गइ |

बैदह
े ी शंकर लाल

तेरी सूरत से ककसी की नहं हमलती सूरत


हम जहां मं तेरी तस्वीर हलए कफरते हं

5
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ऄक्सर खाने की मेज़ पर अधा पौन घंटा तो चला ही


स्टील हसटी प्लस जाता है - कभी देश दुहनया की बातं चलती हं, तो कभी
पुहलस ने युवक को पकड़ा, नक्सलवादी होने का अरोप | पड़ोहसयं के ककस्से | मगर अज छत पर लगे पंखे की
ऄप्रैल 9, 2002 : स्टील हसटी के सेक्टर चार थाना प्रभारी चरथ -चरथ के अलावा ककसी ने बोलने की तकलीफ नहं
ऄंजनी कु मार हिसह ने एक हवशेष ऑपरे शन के तहत हसटी ईठाइ | ताज्जुब की बात है , पापा ने अज ऄपने दोस्त
बाज़ार मं एक पच्चोीस वषीय युवक रामगोहिवद को कल रात ऄंजनी ऄंकल का हज़ि भी नहं ककया | अम तौर पर
धर दबोचा | कहा जा रहा है कक रामगोहिवद हजले के ईन ऄगर पापा के ककसी दोस्त का नाम ऄगर ऄख़बार मं
पढ़े हलखे नौजवानं मं से एक है हजनका काम ग्रामीण छपा तो ऄगले एकाध कदन तक डाआहिनग टेबल पर हसफथ
आलाकं मं नक्सल हवचारधारा का प्रचार करना ईसी की हज़न्दगी से जुड़े प्रसंगं कक चचाथ होती है |
है | युवक ऄपने अप को एक स्कू ल हशक्षक बताता है जो और ये रामगोहिवद...| नाम कहं सुना था ? संतोष को
हवष्णुगढ़ तहसील के हचकहसया गाँव मं काम करता है | चीज़ं भूलने पर बड़ी झुंझलाहट होती थी | लोग भी कै से
कइ बार पूछने पर भी ईसने ऄपने शहर अने के मकसद कै से नाम रख लेते हं, नाम तो ऐसे रखने चाहहयं कक
का खुलासा नहं ककया है | कदमाग मं ईभर कर सामने अयं - ककसी पुराण कथा से,
चौदह साल का संतोष ऄभी ही ऄपने स्कू ल से अया था ककसी कफल्म से, कोइ सा भी नाम जो कदमाग मं एक
और हपताजी के कं धे के पीछे से झाँक कर ऄख़बार पढ़ रहा तस्वीर खंच डाले | 'रामगोहवन्द'! ऄजी ककसी ने भी यह
था | नाम सुना होगा - गल्ला बाज़ार मं रामगोहिवद स्टोर,
"ऄरे पापा | यह तो वही वाले ऄंजनी ऄंकल हं न जो मोहल्ले के चौक पर रामगोहिवद नाइ, कभी टैक्सी के
आलेक्शन ड्यूटी के बाद हपछले महीने खाने पर घर अये पीछे, कभी ट्टरक्शा खंचते हुए - नाम से ही भीड़ के एक
थे | " गुमनाम चेहरे की छहव अती है | शा... यद , कु छ कदनं
"हाँ! हाँ! " हपताजी ने एक हशकन भरे चेहरे से पीछे मुड़कर पहले ईसने भी ऐसे ही, बे-कदलचस्प, मामूली आन्सान को
देखा ,"ये तुम क्या अदत डाल हलए हो? पेपर लेना था तो देखा हो | जेहन मं एक शख्स अता है - दुबला पतला,
हमको बोल देते |" काला कलूटा, घुंघराले बालं वाला एक नौजवान चंद
ऐसा कहकर जगजीवन बाबू ने झट ही ऄख़बार से ' स्पोट्सथ सप्ताह पहले ऄक्सर यहाँ अया जाया करता था |
पेज' हनकाल कर संतोष को थमा कदए | लड़के ने स्कोर ऄरे भाइ, वही होगा रामगोहिवद , संतोष ने ऄपनी
देखा, पन्ने ईल्टे पलटे, कफर ऄख़बार को वहं हबस्तर पर रूठती हुइ याददाकत को समझाया | शहर का ये आलाका
रखकर बाहर अ गया | शायद ककसी का भी आधर ख्याल ऄँधेरे मं डू बा हुअ था | छत के खुलेपन मं मरती हुइ हवा
ही नहं गया | पापा ने अज खाते वक़्त कोइ बात नहं की, मं एक चटाइ के कोने पर कोइ नौजवान, हजसे ऄब हम
ऐसा लगा मानो कोइ ज़रूरी काम छोड़कर अये हं | रामगोहिवद मान रहे हं, बैठा था |

खुसरौ दरया प्रेम का, ईलटी वा की धार,


जो ईतरा सो डू ब गया, जो डू बा सो पार.

6
"बाबू, अप कहाँ पढ़ते हं?' सहसा ईसने संतोष के बड़े भाइ है, कफर पैसा जमा करेगा |'
अकाश को टोका | "वो तो तुमको बंक लोन वगैरह हमल जायेगा |"
"ऄभी हम आं टर पास ककये हं | मेहडकल की तैयारी कर रहे "कहाँ से हमलेगा? न जमीन न जथार, सब जमीन जो था
हं |" वो ठे केदार लोग सहायक स्टील यूहनट खोलने के हलए
“जब अप डॉक्टर बहनएगा न तो हमारे गाँव ज़रूर खरीद हलया | कदया पचास हज़ार रुपया, अज ईसका
अआयेगा| हमारे यहाँ डॉक्टर को बहुत आज्ज़त देते हं |" कीमत दस लाख से कम नहं होगा | घर के पीछे जो
"लेककन तुम..तुम तो 'नक्सल एट्टरया' मं रहते हो | वहां कौन बचा है ईसी मं मुगी बतख पालंगे |"
जायेगा ? कल ही एक बस को ईड़ा कदया पुरुहलया मं | "वो पैसा तो बबाथद कर कदए होगे तुम लोग? "
पेपर मं बस ईस सब आलाके से मडर की ही न्यूज़ अती है |" "नहं बाबू | अपके जैसे बंक मं तो नहं रखा, पर भाइ
"अप पेपर मं हलखी हर बात मं हवश्वास करते हं क्या ?" दोनं को कदल्ली भेजा, पैसा देकर | हपछले सावन डंगू से
'कदलचस्प आं सान है, हवद्रोही ककस्म के लोग ऐसी जगहं पर मर गया, दूसरे का कोइ पता नहं है | घर मं बूढ़ा-बूढ़ी

मुट्टियं मं हमलते हं जहाँ सरकार देशद्रोहहयं से लड़ रही है, छोड़ के ककधर जायेगा | "
"तो कहाँ से पैसा जुटाओगे?"
होती है |' अकाश ने सोचा |
मेरा बाबू मर गया तो
"ऄरे, कु छ लोग को यहाँ जानता है |
"तुम घर क्यं नहं गए अज?" संतोष ने जमीन हड़पने के हलए माँ
देखते हं , बीस पच्चोीस भी हमल गया तो
तनी हुइ खामोशी को तोड़ने की कोहशश को डायन बोलके जला देगा
खंच लेगा |"
की |
"कारोबार छोड़ो, तुम भी कदल्ली बम्बइ
"अज लेट हो गया | हवष्णुगढ़ 100 ककलोमीटर दूर है | ट्रेन
जाकर नौकरी कर लो | "
लेना पड़ता है चास रोड के हलए और वहां से ट्रेकर | कफर
"वहां क्या कोइ सोना बरसता है? कल कोइ पुहलस ईठा
पैदल 15 ककलोमीटर | रात के समय चोर ईचक्का घूमता
लेगा किहमनल समझ के | मेरा बाबू मर गया तो जमीन
है |"
"तुम तो हशक्षक हो न, कफर क्यं पढ़ रहे हो?" हड़पने के हलए माँ को डायन बोलके जला देगा |"

"हाँ माहलक, बी.ए. पास तो हम भी हं पर अपके तरह बड़े


"मुगी पाल के घर चला लोगे ?"
स्कू ल नहं गया | अजकल गाँव के स्कू ल मं पढ़कर पोसाइ
थोड़े ही पड़ता है | माँ बाप के पास पैसा ही नहं है तो बच्चोा "हौसला है, बाबू | चार और लड़का को हसखाकर ऄच्छा
लोग का फीस कौन देगा ?" कारोबार जमा लेगा | अपके जैसा सब कु छ नहं है ऄपने
"अगे क्या प्लान है?" पास, बस सब माथे का हलखा है | दूसरे का छीनने से
"अपके यहाँ IGNOU का सेन्टर है | मुगी पालन मं ऄच्छा है, ऄपना बनाना | ककसी को हमसे ज्यादा हमला,
हडप्लोमा का फामथ भरा है | ऄभी ऄगले आतवार को परीक्षा समाज मं बराबरी नहं है , सरकार ऄमीर का पच्छ

बुरा जो देखन मं चला, बुरा ना हमल्या कोय |


जो मुंह खोजा अपना, तो मुझसे बुरा ना कोय ||

7
लेता है, सब भाग का खेल है | हम ईसके हलए बन्दूक काहे नासूर बन गए | 'छीनना' और 'बनाना' ये सब तो झांसे
ईठाएगा ?" देने के हलए बनाये गए शब्दद हं | मतलब तो नतीजे से था
तभी हबजली अ गयी | - कामयाबी से, वैभव से | ककसी के तरीके को समाज की
"चलो | बेस्ट ऑफ़ लक |" कह के अकाश नीचे चला गया | ऄनुमहत हमली, तो ईसे 'हनमाथण' कहा , 'हमडल क्लास

ऄगले कु छ हफ्तं तक रामगोहवन्द आसी तरह शाम को घर आन्नोवेशन' कहा | जो ज़रा भी लीक से हटे, वो सारे

अता रहा | कभी फामथ भरने, कभी परीक्षा देने, तो कभी छीनने वाले माने गए | अहखर पेपर मं पूरा सच थोड़े ही

कारोबार के हलए पैसे आकिे करने | छत पर ही खाता और छपता है ?

उपर ही टीन वाली कोठरी मं सो जाता |


शैलश
े झा
समाज के ऄहधक जानकार लोगं की ज़बानं चलने लगं |
एक सत्य घटना पर अधाट्टरत
"ऄरे साहब ! ककसको घर मं रख रहे हं? क्या जाने लड़का
क्या हनकले ? पुहलस ऐसे हुहलए वाले लड़के को खोज रही
है, फालतू काहे झंझट मं पहड़एगा ?"
फाआनल परीक्षा के कदन, शाम को जब वो आधर अया तो

चाय पीकर ईठा और कहा, "बाबूजी, अज फोर मं एक

पट्टरहचत के यहाँ जाना है, शादी है वहां |"

संतोष ने कभी ये जानने की कोहशश नहं की कक रामगोहिवद

नक्सली था या नहं | हजस अदमी को वह जानता था,

ईसके हलए छीनना और बनाना परस्पर हवरोधी कियाएं

थं | ऄपनी गरीबी की कड़वाहट को भाग्य की घुिी

समझकर पीने वाले ईस लड़के को भरोसा था की

प्रगहतशील 'शाइहिनग आं हडया' हजसके बारे मं ईसने ऄख़बारं

मं पढ़ रखा था , मं कोइ एक दरवाज़ा ईसके हलए खुला

होगा |

समाज मं पहचान बनाने की ललक थी ईसमं, पर हिहदुस्तान


मं आं सान की पहचान का ऄथथ हसफथ ये नहं होता कक वो
प्रेम शंकर
कौन है, बहल्क वो क्या है ? कहाँ से है ? शायद ईसकी
छाती पर लटके ये बदनाम मैडल ईसकी कामयाबी के हलए

धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कु छ होय |


माली संचे सौ घड़ा, ऊतू अए फल होय ||

8
baadla
va@t

जाने वो कै से बादल थ

ाथ घुमड़-घुमड़ जो अये
कक वक़्त के स
लोग कहते हं लेककन बरस नहं पाए
ाता है | थे
हर घाव भर ज
ं को
सच त ो य ह है कक, ईन घाव
पर प्यासी धरती राह हन
ा है | हारे
वक़्त ही लात
कब बूंदा बांदी होगी
खेतं मं लहराएगी फ
ककया है सलं
हमने महसूस कफर से खुशहाली अए
लाता है | गी
वक़्त बदलाव हर नज़र एक अशा स
वक़्त के साथ े देखे
सच ही है कक ऄबकी बरसेगा पानी
ै|
बदल जाता ह
हर (सब) कुछ लेककन बरस नहं पाय
ा पानी

न्दर का
आंसान ऄपने ऄ
ाह ौल नहं समझ पाता है | क्षणभंगुर सी थी जो
खुशहाली

यह बदलाव वापस लायी अखं म
पर लोगं को ं पानी
कदलाता है | बादल तो न बरसा
ऄनोखे ऄनुभव
पर बरस गए हर अख
ं से पानी

ो प र
ु ान ी य ाद ं से हमलाता ह बंजर धरती तपती रह
गयी
ये वक़्त ही त
हं क ो स ाथ ले अता है | अश की डोर टूटती रह
व ज गयी
रोने के ऄनेक
द ु
ः ख क ो ख़ श
ु ी बनाता है जाने वो कै से बादल थ
र े
कफर क्षण से ह
म झ
ु े स म झ नहं अता है | घुमड़-घुमड़ जो अये
खेल
वक़्त का यह लेककन बरस नहं पाए
थे

ऄहनरबन पा

श्रीमती रहकम हिसह

9
ahIM
maOM imalaUÐgaI v

श के स ाय े म ं हखलहखलाते maoro AiQakar



चपन को, बाट्ट
देखना कभी ब
हुए,
ए|
म ं क ाग़ ज़ की नाव बहाते हु
ं, पानी
मं हमलूँगी वह
ो, शाम की खामोशी,
ता हुअ ज स
ै े कोइ जहाज़ ह
हरं मं तैर समन्दर का ककनारा,
दरू समुद्र की ल ग हर ाइ को हनहारते हु
ए|
थ ाह
ं, सागर की ऄ लहरं का चिव्यूह,
मं हमलूँगी वह
और चिव्यूह सी हज़न्दगी |
ारं की
ं अ काश की ओर, देखना त
ज़र
कभी ईठे जो न को ,
हझलहमलाहट रते
थके हुए पंखं संग सारा अका
श,
ाम ड
ं ल म ं , हनवाथत से बातं क
ं, ईस तार जाने कहाँ गए वो सारे एहसा
मं हमलूँगी वह स,
हुए | लहरं से अती सप्तपदी की अ
वा ज़
तस्वीरं से तैरते वो रस्मो-ट्टरवा
ीच ज़|
राह ट को, ई न्हं पर्त्ं के ब
ृक्षं की सरस
सुनना कभी व ं भ ी कक सी नये ऄथथ को
ा म
ं, ईस शून्यत ऄरण्य की चाह मं दरख्त खोता
मं हमलूँगी वह गय ा...
तलाशते हुए | समेटने की चाह मं फासले बन
ते गए..
पर प्राणदीप और ये वक़्त
एक
ाए ज ो क द म , देख लेना बस ला खड़ा करता है
भी थक ज
मरूभूहम मं क
बार , मुझे ईम्र के ईस मोड़ पर
ही साय े से ब हतयाते हुए |
ं, ऄपने जहां हसफथ मं हूँ
मं हमलूँगी वह
और मेरे ऄहधकार |

ल ी ज ाओ , ब स अँखं बंद क
े भले ही दरू च
आस दहु नया स
लेना
ए| हनहाट्टरका हिसह
म्
ु हारी य ाद ं मं मुस्कुराते हु
ंत
मं हमलूँगी वह सीहनयर ट्टरसचथ फे ल्लो

हहना जन

10
saMGaYa-
"कर्त्ऄ जाइ के ऐछ बौअ?" सन्नाटे को चीरती हुइ एक कं पकपाती अवाज़ मेरे बाजू से हनकली और मं ककसी

सपने की गुदगुदाहट से बाहर अकर वास्तहवकता की धरातल पर अ हगरा | पूस की बफीली रात, चारं तरफ

सन्नाटा, गहरा धुंध और भयंकर ऄँधेरा | कहं बहुत दूर स्टेशन मास्टर के कमरे के बाहर लालटेन की छोटी सी

लौ, यूं मानो ईस ऄन्धकार के दैत्य से ऄपने ऄहस्तत्व की रक्षा करता हुअ नन्हा बालक |

सदी की छु ट्टियां शुरू हो चुकी थी | दोस्तं से हवदा लेते-लेते कब शाम के सात बज गए, पता ही नहं चला |

मुजफ्फरपुर के हलए अहखरी ट्रेन 6:30 बजे हनकल चुकी थी | तब तक मेरे पास ऄपने सपनं की दुहनया मं खो

जाने के ऄलावा कोइ हवकल्प नहं था |

आस वीराने मं एक वृद्ध व्यहक्त को मेरे पास बैठे देख मं हवहस्मत हो गया |"कहाँ जाना है बेटे ", ईसने कफर पूछा

| लम्बी ईबास लेते हुए मंने ईसे ऄनदेखा करने का प्रयास ककया | "मुजफ्फरपुर" िोध और झुन्झुलाहट के साथ

मंने ईसके तीसरे और एक प्रश्न का ईर्त्र कदया |

"मुझे भी ऄपनी बेटी ऄंजू से हमलने ढ़ोली जाना है, ऄगली ट्रेन कब है?" ईसने पूछा | "साढ़े नौ बजे" एक बार

कफर मेरा वैसा ही रवैया था | ईस वृद्ध व्यहक्त का चेहरा कु छ यूं ईतर गया जैसे कोइ बल्लेबाज ऄपने शतक के

नज़दीक पहुँच कर अईट हो गया हो | शायद यही सोचकर मंने ऄपना हवचार बदला और ईत्साहहत होकर

(मात्र एक प्रयास) पूछा ,"क्यं जा रहे हो ऄपनी बेटी से हमलने ,कोइ ख़ास वजह ?"

"हाँ, मेरा नाती हुअ है | ईसके हलए ये सब ले जा रहा हूँ और बेटी, पाहुन के हलए ये" दो पोटली खोलते हुए

ईसने कहा | ईस पोटली के ऄन्दर हमटटी की गुहड़या और हखलौने थे | कु छ हमस्री भी थी | दूसरी पोटली मं

पीली रंग की एक साड़ी और एक लंबा कोट | "पाहुन का दावा का दूकान है, ये ईनके हलए है |" ईसके स्वर

मं गवथ और सम्मान की गमाथहट थी जैसे ईसने कारहगल युद्ध स्वयं ऄपने बल पर जीत हलया हो |

"आसमं तो बहुत पूँजी लगी होगी?" ऄपनेपन की सीढ़ी बढ़ाते हुए मंने पूछा |" दस हज़ार, सेठ से ईधार हलया है
दस टेक के हहसाब से | ऄगली बार जब फसल होगी तो पाइ-पाइ चुकता कर दूंगा |" गंभीर होकर ईसने कहा |

"क्यं? ईधार क्यं हलया वो भी आतने उंचे ब्दयाज पर?" मेरा पूछना स्वाभाहवक था |

"क्या बताउँ बेटा, आस बार की बाढ़ ने बचा-कु चा खेत भी तबाह कर कदया | ऄब रीहत ट्टरवाज़ तो हनभाना ही

पड़ता है, भले वो बेटी की शादी हो या पत्नी की मौत | ऄब बेटं को बाहर पढ़ने के हलए भेजा था तो ईसका

कजाथ भी चुकाना पड़ेगा |" कु छ ईदासी ईसकी अवाज़ मं थी पर पश्चाताप या दुःख का कोइ भाव नहं था |

बड़ा हुअ तो क्या हुअ, जैसे पेड़ खजूर |


पंथी को छाया नहं, फल लागे ऄहत दूर ||

11
"अपके बेटे कहाँ हं ? क्या वे नहं अ रहे हं ?" सहानुभूहत के मरहम से ईसके दुःख को ढकने का मंने एक छोटा

प्रयास ककया | "नहं, परदेस मं पढ़कर तीनं परदेसी हो गए | कदल्ली, बम्बइ मं रहते हं | छोटा कभी-कभी

अता है, जानने के हलए कक मं हिज़दा हूँ या मर गया ताकक जो मकान और कु छ ज़मीन है ईसको बेचकर चला

जाए |" वृद्ध ने कहा |

"अपकी ईम्र क्या होगी ?" मेरे आस पट्टरहस्थहत की तारतम्यता को भंग ककया | "क्या ?" हकबकाते हुए ईसने

पूछा | "ईम्र" मं गंभीर था | "63 की बाढ़ मं मं गोद मं था | ऐसा मेरी माँ कहती है |" ईसने कहा | तकरीबन

40 साल, मंने ऄनुमान लगाया | पर ईसकी हालत देखने से लग रही थी मानो वह कब्र मं पैर डाल कर बैठा

हो | अँखं गहरे कुँ ए की तरह, सर पर कु छ ईजले बाल, दोनं हाथं के पंजे तवे की तरह काले और सख्त, गले

और हाथं मं नसं बाहर झलक रहं थी | एक फटी हुइ धोती और कु ताथ | यूं मानो जैसे हसपाहहयं ने हनशाने पर

गोलाबारी की हो और ईसके उपर काली फटी चादर कु छ आस तरह से बाहर हनकली थी जैसे एक भूखा शेर

हिपजरे की सलाखं मं ऄपनी हगरफ्त को हशकस्त दे रहा हो | यूं कहा जाए तो वह एक नरकं काल लग रहा था

हजसे यकद ककसी खेत मं रख दं तो कोइ पक्षी 100 मील की दूरी से ही भाग खड़ा हो | ईसकी जीणथ-शीणथ

हस्थहत देखकर मंने ऄनुमान लगा हलया की वह जीवन के ककन-ककन कट्टठन पट्टरहस्थहतयं से गुज़र चूका है |

"आन सब चीज़ं के बावजूद अप ऄपना गुज़ारा कै से करते हं?" शायद ऄब मंने ईससे सही प्रश्न पुछा |

"अजकल सेठ के यहाँ हल्दी की बोट्टरयां भरता हूँ | वहं दो वक़्त का खाना नसीब हो जाता है | एक बार

सरकार की 'ग्रामीण ककसान योजना' की रकम पहुँच जाए, कफर हर कदन होली और रात कदवाली होगी |"

ईसने गंभीरता के गहरी रंग को हंसी के फव्वारे से हल्का करने का प्रयास ककया | और कफर ईसने ऄपने जीवन

के संघषथ का बड़ी सरलता से हववरण कदया | ईसकी बातं मं मंने ईसकी कट्टठनाआयं का ऄनुभव ककया | भूखे

पेट सोने का ददथ, ऄपमाहनत होने की अह और ऄके लेपन का सन्नाटा |

कु छ आस तरह हमारा छोटा सा सफ़र साथ गुज़रा | घर पहुंचकर मं ईसके बारे मं ही सोचता रहा | कइयं ने

मेरा हाल-चाल पूछा और मेरे हाव भाव से हवहभन्न तरह के ऄनुमान लगाए | पर मं तो हसफथ ईस व्यहक्त के बारे

मं ही सोचता रह गया | हालांकक ईसने ककतनी ही कट्टठनाआयाँ ऄभी झेल ली हं और ना जाने ककतनी ही ऄभी

बाकी हं, पर ईसके अँखं की चमक साफ़-साफ़ कहती है कक ककतने भी बुरे हालात अ जाएँ, वह कभी हार

नहं मानेगा और जब तक पट्टरहस्थहतयं को ना बदल दे वो करता रहेगा ..."संघषथ"

हवकास रं जन

तेरी तारीफ़ मं सुखन[शब्दद] कम पड़ गए,


वरना हम भी गाहलब से कु छ कम ना थे...

12
एक मुलाकात... कुलपतत से

हमने पहले ईन्हं ककतनी ही दफा सुना है - कभी


ओएहसस के ईदघाटन पर , कभी ककसी क्लब के
वकथ शॉप के ऄवसर पर| आन मौकं पर अपके
सन्देश औपचाट्टरक से ही होते हं , बातं अपकी
सोच की सतह को तो छू ती हं , मगर कभी समय
या ऄवसर की सीमा का ध्यान रखते हुए गहराइ
मं ईतरने का मौका नहं हमलता | प्रो. एल के
माहेश्वरी और श्री लक्ष्मीकांत माहेश्वरी के बीच
ककतने ही पहलू हछपे हुए हं - कइ ऐसे ककरदार
सन 67 मं मंने पी .एच. डी. के हलए दाहखला
हजनकी चचाथ ऄब एक कु लपहत के जीवन के
हलया और 71 मं सेहमकं डक्टर आलेक्ट्राहनक्स के
कोलाहल मं दब सी गयी है |
क्षेत्र मं सफलतापूवथक पूरा ककया | आसी कारण
कइ भूहमकाओं मं अपने हबट्स को ऄपना सवथस्व
मुझे अर. इ. सी. हत्रची मं प्राध्यापक के पद का
कदया है - एक छात्र , एक वैज्ञाहनक , हशक्षाहवद् ,
प्रस्ताव भी अया |
ऄध्यापक , समाज सुधारक .... आस फे हट्टरस्त का
हशक्षा मं कट्टरयर :
कोइ ऄंत नहं है | 'वाणी' की ओर से यह प्रयास
पहले मं एक हशक्षक बनने के हलए ऄहधक प्रेट्टरत
है ईन ऄनदेखे मगर ईतने ही महत्त्वपूणथ ककरदारं
नहं था | यह हनश्चय नहं ककया था कक अगे क्या
को जानने का जो प्रो.माहेश्वरी ने हपछले 35
करना है | कफर जब पी .एच. डी. के दौरान
वषं मं हनभाए हं |
हवद्यार्षथयं को कभी कभार पढ़ाना शुरू ककया तो
छात्र जीवन :
कु छ रूहच जगी | खासकर युवा हवद्यार्षथयं से
मं हपलानी सन 1965 मं आलेक्ट्राहनक्स मं
हमलना और बातं करना पसंद अने लगा |
एम.एस.सी.(टेक) की हडग्री लेने अया था | हम
आलेक्ट्राहनक्स मं शोध के नए अयाम :
तब ऄशोक भवन मं रहते थे | यहाँ का माहौल
आलेक्ट्राहनक्स तेज़ गहत से हवकहसत हो रहा है |
खुली और नयी सोच तथा कड़ी मेहनत की ओर
मूलभूत हसद्धांत कफर भी सनातन रहंगे , तो
के हन्द्रत था | हमं सप्ताह मं 35 घंटे कक्षाएं लगानी
आसीहलए मं छात्रं को आन्हं मज़बूत रखने के हलए
पड़ती थं | कइ हमत्र बने , हजनसे अज भी संपकथ
कहता हूँ | नानो-हवज्ञान जल्द ही शोध का नया
मं हूँ | ईन कदनं मं अइ .अइ. टी. कानपुर मं
कं द्र बनेगा और बायोकम्प्यूटिटग और
एनालॉग कं प्यूटिटग से सम्बंहधत एक पट्टरयोजना
बायोआं जीहनयटिरग जैसी हवधाओं का जन्म
लेकर गया था हजसकी काफी तारीफ हुइ थी |
होगा | हम सभी को समय के साथ आन रुझानं
राणा प्रताप -ऄशोक मेस का खाना तब लाजवाब
को समझना और सीखते रहना चाहहए |
माना जाता था |

13
आं जीहनयटिरग के हवद्यार्षथयं का एम .बी. ए. के ऄच्छी प्रथाओं का ऄनुपालन करवाना पड़ेगा
प्रहत झुकाव : और आन छोटे संस्थानं पर नज़र आस ढांचे से
मेरा मानना है कक युवा आं जीहनयरं को एक दो बेहतर तरीके से रखी जा सकती है |
वषथ ककसी तकनीकी कं पनी मं कायथ ऄनुभव लेकर अज ए.अइ.सी.टी.इ जैसी सरकारी संस्थाएं
ही मैनेजमंट की ओर जाना चाहहए | कु छ लोगं मात्र हनरीक्षण का कायथ कर रही हं जहाँ हथेली
मं प्रबंधन की प्रहतभा कम ईम्र से ही होती , ऐसे गरम करने का ट्टरवाज़ भीतर तक पनप गया है |
लोग ही शायद सीधे कॉलेज से एम. बी.ए. हवकं द्रीकृ त ढांचे मं एक नैहतक और कानूनी
दाहखला लेकर अगे बढ़ सकते हं | अज हवश्व के हज़म्मेदारी भी रहेगी |
शीषथ मैनेजमंट संस्थान मं प्रवेश पाने के हलए दूरवती हशक्षा कायथिमं के हवषय मं हवचार :
काम का तजुबाथ होना ऄहनवायथ है | अज दूरवती पाठ्यिम मात्र करे स्पंडंस कोसथ की
बढ़ते हुए हवश्वहवद्यालय और गुणवर्त्ा की पट्टरभाषा से अगे बढ़ चुके हं | हबट्स एवं ऄन्य
कमी : कइ संस्थानं ने अधुहनकीकरण और तकनीकी
देश मं हशक्षा का फै लाव तो हो रहा है लेककन बदलाव लाकर पाठ्यिम को और भी संपूणथ
गुणवर्त्ा आस गहत से तालमेल नहं बैठा पा रही | बनाया है |
आस ढांचे को पूरी तरह से बदल डालना ज़रूरी जीवन मं हशक्षकं का प्रभाव :
है | डॉक्टर एम चौधरी हमारे समय मं E.E.E के
अप देश मं 200 हवश्वहवद्यालयं को चुहनए और हवभागाध्यक्ष हुअ करते थे | ऄपने हवषय मं ही
आन्हं शीषथ संस्थान बनाआये | छोटे और नए नहं ऄहपतु छात्रं से मधुर रूप से पेश अने मं वे
संस्थानं को आनकी हनगरानी मं रखकर आन दक्ष थे |
हवश्वहवद्यालयं की खूहबयं को ऄपनाने और ऄहभरुहचयाँ :
मापदंड स्थाहपत करने को कहहये | आसे मं नेटवकथ ऄध्यात्म मं मेरी पुरानी कदलचस्पी रही है | न
मॉडल कहता हूँ | हसफथ रीहत ट्टरवाजं मं , बहल्क जीवन के ऄथथ की
जब देश मं हशक्षा के ज़रूरतमंदं की तादाद खोज मं भी | लोग आसे कइ प्रकार से करते
कदन-ब-कदन बढ़ रही है, तो हम हाथ पर हाथ धरे हं - धमथग्रन्थ पढ़कर, मंत्रोच्चोार से या समाज सेवा
नहं बैठ सकते | से |
तकनीकी साधनं का सही आस्तेमाल करं , मुझे युवाओं को प्रेट्टरत करना भी ऄच्छा लगता
प्रसाट्टरत लेक्चर हं, छोटी कायथशालाएं हं | अज है | मेरा मानना है कक ऄध्यात्म से संसगथ से अप
तकनीक आतनी प्रगहत कर चुकी है कक मं जैसे
ऄपने ऄन्दर की कमजोट्टरयां घटा सकते हं |
अपसे सामने संवाद कर रहा हूँ , वैसे ही मीलं
दूर ककसी छात्र से कर सकता हूँ| मगर ये शीषथ "जो कहो वही करो , और जो करो वही कहो"
संस्थान दया दान पर नहं चल सकते, आसहलए ये मेरे जीवन का अदशथ वाक्य है |
सरकार को आस मुहहम की ऄगवाइ करनी होगी,
पैसे ईपलब्दध कराने हंगे |

14
ij,andgaI……ij,andgaI @yaa kmaI rh gayaI ??

“संजीव, चलो दो हमनट तुमसे कु छ बात करनी का अइ.डी. काडथ ईसी समय ले हलया और
है”, ये बोल कर मेरा मैनेजेर मुझे एच.अर. के कहा - "आस्तीफा दो वरना हमं हनकालना
कक्ष मं ले गया | मुझे लगा कक कु छ तो समस्या पड़ेगा |" मंने आस्तीफा देना सही समझा | ईसके
है | वहां ऄन्दर जाने के बाद मेरे मैनेजेर ने कहा, बाद ऄपना सारा सामान ऄपने कक्ष से ईठाया
“तुम्हं तो पता ही है कक हमारे सीइओ ने कहा और ऄपने कमरे पर वापस अ गया | जाते-जाते
है - 10% जॉब कट होना है, ईसके कारण तुम्हं ऄपने एक सहकमी (हजसके साथ ज्यादा समय
जॉब से हनकाला जा रहा है |" रहता था) को बोला, “भाइ, हजस चीज़ का हमं
डर था, वो हो गया | मुझे जॉब से हनकाल कदया
ये सुनते ही लगा कक पैरं तले ज़मीन हनकल
गया |"
गयी | मेरा कदमाग सुन्न हो गया | कु छ समझ
हिडग-डंग ....... “ऄबे तू वापस घर अ गया ? ”
नहं अया कक ये क्या हो रहा है ! कफर एच.अर
मेरे रूममेट ने बोला .
ने कहा, “ये हमारे हलए बहुत दुभाथग्य की
“भाइ, हजस चीज़ की अशंका थी, वो हो
बात है, पर हमं ऐसा करना पड़
गया | मंने तेरे को परसं ही बोला था
10% जॉब कट होना है,
रहा है | अदेश उपर से अता है कक मेरे को जॉब से हनकाल दंगे ये
ईसके कारण तुम्हे जॉब से
और हमं ईसका पालन करना लोग” | मंने कहा | मुझे दो कदन पहले
हनकाला जा रहा है
पड़ता है |" ही अभास हो चुका था कक मेरे साथ

मंने ऄपने मैनेजर से पूछा, “सर, क्या मेरा ऐसा होगा और मंने ऄपने रूममेट को ऑकफस

परफॉमंस ख़राब था ? क्यंकक सीइओ ने कहा जाने से पहले बोला था, “यार, ऄगर आन लोगं
ने मुझे हनकाला तो मं कफर ये कॉरपोरेट क्षेत्र मं
था कक परफॉमंस-लेवेल मं नीचे से 10% लोगं
वापस नहं अउंगा |"
की छटनी होगी |” एच.अर. ने कहा, “ऐसा नहं
कभी-कभी मेरे साथ ऐसा हुअ है कक जब भी
है, कं पनी मं कु छ ‘व्यापार पुनगथठन’ हो रहा है
कोइ बड़ी घटना मेरे हिजदगी मं घटने वाली
और ईसके कारण तुम पर ऄसर हुअ है |" मेरे
होती है, ईसका अभास मुझे हो जाता है | चाहे
मेनेजर ने कहा, “तुम्हारा परफॉमंस हमेशा ही
वो मेरे हपताजी का देहांत हो या 12वं मं बोडथ
ऄच्छा रहा है | तुम्हारे पी.एस. के परफॉमंस पर
मं ऄव्वल अना या ऄब ऄपनी जॉब खोना |
हमने तुम्हं जॉब कदया था | तुम एक ऄच्छे
ईसके बाद मंने रोने की बहुत कोहशश की पर
संस्थान से भी हो | ऄच्छी शैहक्षक पृष्ठभूहम है |
रो भी नहं पाया | ककस चीज़ के हलए रोता ?
तुम्हं जरुर ऄच्छी जॉब हमल जायेगी |”
मेरी कोइ गलती ही नहं थी | मेरा परफॉमंस
मेरे पास और न कोइ प्रश्न था और न कोइ ख़राब था ही नहं ना ही मं हनहष्िय बैठा हुअ
जवाब सुनने की शहक्त | ईन्हंने मुझसे कं पनी था | कफर ककस अधार पर मुझे जॉब से

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हनकाला गया ? शायद मेरे मैनेजेर की मुझसे ईतनी जाना, हजम अने वाले लोगं से दोस्ती, शुिवार
ऄच्छी पहचान नहं थी ? या कु छ और ? मेरे से तक वेट कम करना और सोमवार को कफर से
ख़राब प्रदशथन करने वाले और सुस्त रहने वाले लोगं बढ़ाना | कं पनी की हसनेमा मं मस्ती करना,
के साथ कु छ नहं हुअ ? कं पनी के परफॉमंस मापने पाटी मं पीकर जम के नाचना, मेरे रूममेट का
वाले ककसी स्के ल मं मं हनम्न 10% मं नहं होता | मुझसे ज्यादा आं तज़ार करना अईटिटग के हलए |
कफर मेरे साथ ऐसा क्यं हुअ ? मेरे कदमाग के सागर मुझे लग रहा था कक दुहनया हस्थर हो गयी |
मं ये सवाल गोता मार रहे थे | पर जवाब न हमलने भूतकाल मं घटी हर घटना मेरे अँखं के सामने
के कारण वो और भी व्याकु ल हो रहे थे | चल रही थी |
घर वालं को बताने की हहम्मत नहं हो रही
शाम मं जब पता चला कक मेरी टीम मं एक और
थी | मुझसे ज्यादा वे लोग घबरा जाते | मंने
बन्दे के साथ ऐसा हुअ है तो मन और व्याकु ल हो
सोचा कक 10-15 कदन बाद बता दूग
ं ा | तब तक
गया | वो मेरे से ज्यादा ऄनुभवी, मुझसे ज्यादा
ये बात कहता रहूँगा कक कं पनी की हालत बहुत
समर्षपत और प्रहतभाशाली था | मंने सोचा जब
बुरी है और कभी भी जॉब जा सकती है |
ईसके साथ ऐसा हो सकता है तो मं ककस खेत की
एक सप्ताह बाद ककसी तरह मं खुद को संभाल
मूली हूँ ?
पाया | काफी नॉमथल हो चूका था मं | मंने
ऄगले 3-4 कदन मंने कै से काटे ये शायद और कोइ ट्टरज्यूमे बनाया और सब जगह भेजा | ऄपने
नहं जान सकता है | ऄपने दोस्तं से बात करता, सारे संपकथ वाले लोगं को देकर बोला ऄपने
सामान्य रहने की कोहशश करता पर हो नहं पाता | कं पनी मं फॉरवडथ कर दो | भारत के सारे
चाहे कफल्मं देखने जाउँ या बैडहमन्टन खेलने, हर ऄधथचालक कं पहनयं मं वेबसाआट्स के सहारे
पल कदमाग मं वही चलता रहता | मेरी कं पनी की हनवेदन भेजा, जॉब पोटथल्स पर ऄपलोड ककया
यादं | ककस तरह मंने पी.एस. ककया यहाँ, साहथयं और कु छ कं सल्टंट्स को कदया | पर ऄभी तक
के साथ मस्ती की, पी.एस. के ऄंत मं मंने कै से जॉब कोइ ख़ास ऄपडेट नहं है | एक कं पनी मं टेस्ट
लगाइ , कै म्पस के नौकट्टरयं की परवाह ककये बगैर हलखा पर सफल नहं हुअ | दूसरी कं पनी मं
वापस आसी कं पनी मं अया, काफी लोगं से संपकथ आं टरव्यू के बाद पता चला कक वो फ्रेीज़ पर चले
बनाये, कु छ ऄच्छे दोस्त बने, कु छ लोगं से नफरत गए हं | एक मं टेहलफ़ोन पर आं टरव्यू कदया पर
बढ़ी | कभी काम ऄच्छा लगता, कभी बुरा, चीन की अगे कोइ जवाब नहं | बाकी कं पनी से मेल
यादं, वहां की मस्ती, काम करने का मज़ा, चीन के अते हं, प्रोफाआल मैच होता है, ट्टरज्यूमे ले लेते
लोग और ईनकी टूटी-फू टी ऄंग्रेजी से काम चलाना, हं, ईसके बाद कु छ प्रहतकिया नहं देते | कु छ
टीटी खेलना ऄच्छे से सीखना | कं टीन के खाने को लोग बोल रहे हं कक ऄभी कं पहनयां आं तज़ार कर
गाली देते हुए खाना, रोज़ चाय पीते समय ऄपनी रही है माके ट के हस्थर होने का | ईसके बाद
कुं ठा हनकालना, मैनेजमंट को गाहलयाँ देना, हजम लोगं को जॉब दंगे | पता नहं क्या होता है |

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अगे | ऄपने चाहने से कु छ नहं हो सकता | बस मं ऄपने दोस्तं का बहुत अभारी हूँ हजन्हंने
ऄब ‘वेट एन वॉच ’ ही क़र सकते हं और भगवान आस संकट की घड़ी मं मुझे सहारा कदया |
के उपर सब छोड़ देते हं |
अपकी दुअ की कामना करने वाला..
वैसे भी मं ज्यादा हिचता नहं कर रहा हूँ आस बारे
पूवथ हबहट्सयन
मं | क्यंकक मंने सोच हलया है कक अगे भहवष्य मं
मुझे सरकारी नौकरी मं जाना है | कु छ जगह पर संजीव कु मार (2003A3PS022),
अवेदन भी कर कदया है आस बार | तैयारी भी कर
रहा हूँ | ककस्मत हुइ तो कहं ऄच्छी जगह हो ही
जायेगा | ऄब मुझे पता चला की मेरे घरवाले
jaInao ka Aanand
(खासतौर से मेरी माँ) हमेशा सरकारी नौकरी मं
जाने के हलए क्यं जोर देते थे | वहां कम से कम
जॉब हसक्यूट्टरटी तो होगी, काम का टंशन नहं |
कल को सोच कर
सुकून की हिजदगी | पसथनल और सामाहजक लाआफ
सहम जाते हं
ऄच्छी होगी | छठं वेतन अयोग के बाद वेतन भी अज के भी लम्हे
ऄच्छी-खासी हमलने वाली है | हनकल जाते हं |
परवाह ना कर कल की
ऄगर अपने हपछले वषथ की वाणी पढ़ी होगी तो
मन भर कर जी लो
अपको याद होगा कक मंने ईसमे हलखा था मुझे
अज ही
ऄपनी आस हज़न्दगी से संतोष नहं है | आस
मस्त हज़न्दगी का ऄंदाज़
कारपोरेट सेक्टर की जीवन बहुत तीव्र है | अप
नकारो न तुम कभी भी
हज़न्दगी मं हजतनी तेजी से उपर जाओगे ईतनी ही
क्यं न दुहनया बदल दो
तेजी से नीचे भी अओगे | अज खूब पैसे कमाओगे
कल; नहं अज ही
कल को खाने के लाले पड़ जायंगे | मं ऄब ऐसी
सब कु छ न्योछावर कर दो|
हज़न्दगी नहं जी सकता | समय अ गया है ऄपने
अज ही ऄभी |
जीवन का महत्वपूणथ हनणथय लेने का | ऐसी कै ट्टरयर
की तरफ जाने का, जहाँ मुझे ‘संतोष’ हमले | संगीता शमाथ
अहखर मेरी हज़न्दगी मं ककस चीज़ की कमी है ? भाषा हवभाग
आतनी मशक्कत करने के बाद जीवन के आस मुकाम
तक पहुंचा हूँ | और थोड़ा संघषथ करना पड़ेगा …
“ काल करे सो अज कर, अज करे सो ऄब,
बस … आतनी ऄच्छी माँ और बहने हं, जो हर
पल मं परलय होएगी, बहुट्टर करे गा कब ? “
कदम पर मेरा साथ देने को तैयार रहती हं | कु छ
ऄच्छे दोस्त हं जो हमेशा मेरा ख्याल रखते हं |

17
पतन के हजस भयावह गतथ की ओर जा रहा है
vat-maana samaya maoM saargaiBa-t iSaxaa
ईससे बचा जा सकता है | आस सुधार का
ka ABaava
समथथन स्कू लं मं ही नहं हमं ऄपने घरं मं भी
करने की जरुरत है | तभी हम एक स्वस्थ
काफी समय से हशक्षा के सन्दभथ मं ये बात कही जा
व्यहक्त, पट्टरवार, समाज, देश और हवश्व का
रही है कक हशक्षा के वतथमान ढ़ाचे मं बदलाव की
हनमाथण कर सकते हं |
जरुरत है | तेजी से बदलते समय मं हशक्षा को और
भावेश नीखरा
बेहतर तरीके से संवारने की जरुरत है | अज हजस
गहत से नैहतक मूल्यं का पतन हो रहा है ईसे रोकने हशक्षण सहायक सी.एस.अइ.एस. ग्रुप
का एकमात्र सशक्त ईपाय हशक्षा ही है |

बालक मन बड़ा सुलभ कच्चोी हमिी की तरह होता है,


maoro maIt
हजस पर छोटी-छोटी बातं ऄपनी ऄहमट छाप छोड़
जाती हं | यकद बहुत छोटी ईम्र से ही बालकं को
ओ मेरे मीत, सुन हप्रय मीत
ईहचत और सारगर्षभत हशक्षा दी जाए तो अगे
चलकर पट्टरवार, देश ,हवश्व कल्याण मं अज के ये कर ले मेरी हवनती स्वीकृ त
नौहनहाल बड़ी महत्वपूणथ भूहमका हनभा सकते हं | मेरे ऄंतर-मन ग्लाहन मं चूर
सब मेरे पास, मं सबसे दूर|
खेद यह है कक वतथमान पट्टरदृकय मं हमारी हशक्षण तुमसे जो बोली हर वो बात,
व्यवस्था आन सब जरूरतं से कोइ सरोकार नहं थी मेरे हृदय को भी अघात
रख रही है | बहुत बड़े बदलावं की एकदम
िोहधत मन की. बचपन की,वाणी
हसफाट्टरश कर पाना थोड़ा मुहककल है, आसहलए जो
थी मेरी भूल, है मुझे ग्लाहन|
व्यवस्था हमने बना रखी है यकद ईसी मं थोड़ा-थोड़ा
जैसे मरुस्थल मं राह गीर
सुधार ककया जाए तो काफी कु छ बदला जा सकता
है | यहाँ पर हशक्षकं का योगदान बहुत महत्वपूणथ अतुर, मांगे एक बूँद नीर
है | ईदाहरण के हलए स्कू लं मं नैहतक मूल्य और हबन तेरी हमत्रता मं ईदास
शारीट्टरक हशक्षा हवषय पाठ्यिम मं होते तो हं एक तेरी माफ़ी है मेरी अस
परन्तु ज्यादातर हशक्षक आन हवषयं मं कोइ रूहच
मेरी ऄंतराहि, मुझमं व्याप्त
नहं लेते हं | और चूँकक परीक्षाफल मं भी आन
आस को क्षमा से कर दो समाप्त |
हवषयं का कोइ योगदान नहं रहता है आसहलए
हशक्षक मनमाने ढंग से हवद्यार्षथयं को ऄंक अवंट्टटत शाश्वत माहेश्वरी
कर देते हं | यकद आस पर ध्यान कदया जाये और
स्कू लं मं छोटे-2 बच्चों को नैहतकता का पाठ हलहखत कहवता मंने ऄपने एक हमत्र के साथ हुए हववाद
पर अधाट्टरत की है | आस रचना को मं ऄपनी गलती की
हजम्मेदारी से पढ़ाया जाए तो अज हवश्व चाट्टरहत्रक
क्षमा याचना के रूप मं देखता हूँ |

18
ibaT\sa maoM KolaaoM ka mahakumBa 10-14 isatmbar 2008
08
20
कहते हं कक हज़न्दगी अगे चलने का नाम है और आसी
बात को अगे बढ़ाते हुए हबहट्सयन्स ने बॉस्म-08 का
अगाज़ हपछले साल के मुकाबले ज्यादा प्रहतभागी और
प्रचुर जोश के साथ ककया |

श्र ी ए े री
ल.के.माहश्व आहिशन हपछ
ईद्घाट न क ु ल प हत ले साल की
तरह आस बा
य ा | आ स क े हव हशष्ट ऄहतहथ गेहिमग फ्रेीक्स
को हनराश
र भी सभी
ने कक कर गया औ
र .स ी. ड ी ड ीन श्र ी अर.के.हमर्त्ल जब एक्सट्री
म गेहिमग औ र वो भी
ए.अ र आ.ए. स्प
प्रायोजक थे ोट्सथ आसके
थे | |

ं ह प छ ल े ब ॉस्म मं मुख्य अकषथण दस



कुल 40 टी ू रे कदन हुए
0 0 प्र ह त भ ाहगयं पट्टरचचाथ का रहा
अईं और 9 जो खल े ं मं
ो ज न क ो और भी सुहवधाओं और आ
ने आस अय समं कट्टरयर
ा | ऄ च्छ ी बात के हवषय मं एक
बड़ा बनाय मंथन था |
कक आ स मं 150 आसमं माननीय
यह रही ऄहतहथ श्री
ी ज ो कक हपछले अर.अर.हपल्लइ
लडककयां थ ने भी भाग
म ु
क ा ब ल े काफी हलया |
सालं क े

ज्यादा थी | हर बार की त
रह आस बार भ
ी बॉस्म के दौर
होने वाली क्ल ान
ासं के बारे मं
बात हुइ पर ऄ
हखलाहड़यं को ंततः
आस मामले मं
हनराश ही रह
पड़ा | ना

http://www.bits-bosm.com
19
हल्ला बोल, मस्ती मं डोल
20 - 24 ऄक्टू बर 2008
हर वषथ की भांहत आस वषथ भी ओएहसस ऄपनी सभी ऄपेक्षाओं पर खरा ईतरा | आस वषथ ओएहसस के 38वं
संस्करण के शुभारंभ के ऄवसर पर मुख्य ऄहतहथ "श्री संजीव साही" थे जो कक हिहदुस्तान ऐरोनॉट्टटक्स हलहमटेड के
हनदेशक हं | ईन्हंने ऄपने छोटे से भाषण के दौरान बताया कक हबट्स की हशक्षण-प्रणाली हवश्व के कइ बड़े
हवश्वहवद्यालयं से भी बेहतर है | यह हशक्षण-प्रणाली की ही देन है कक यहाँ के छात्र-छात्राएँ देश मं या देश के
बाहर जाकर सफलता पा रहे हं |

मुख्य अकषथण :
20/10 - एकौहस्टक एहजटेशन ( ऄलुम्नी बंड)
21/10 - के . के ., तरंग, फ्यूजन
22/10 - यूफोट्टरया, लंज हपरान्हा
23/10 - सुरेन्द्र शमाथ, ओएहसस किज, धरोहर
24/10 - फै शन परेड, वैल डी

आस बार ओएहसस मं मुख्य अकषथण झंकार द्वारा अयोहजत मशहूर गायक “के .के .”
का शो रहा | ओएहसस मं लंज हपरान्हा एवं यूफोट्टरया भी अकषथण का कं द्र रहे |

हपलानी मं मौजूद कहवता प्रेहमयं के


हलए भी यह ओएहसस यादगार बन
गयी जब ईन्हंने भारत के सवथश्रेष्ठ
हास्य कहव श्री सुरेन्द्र शमाथ को
ऑहडटोट्टरयम मं साक्षात् देखा एवं
ईनकी कहवताओं का अनंद हलया|

एक ऄन्य कायथिम, जो सबसे ज्यादा दशथकं को अकर्षषत करने मं कामयाब रहा, वह था "बाआक स्टंट" | आं दौर से
अये आन चालकं ने ऄपने कारनामं से हनहश्चत रूप से छात्रं का कदल जीत हलया |

करीब 5 कदनं तक चले ओएहसस मं कइ कायथिम देखने को हमले | आस वषथ ओएहसस के


समापन सामारोह के ऄवसर पर मुख्य ऄहतहथ हबट्स के छात्र यूहनयन संघ के पहले
ऄध्यक्ष श्री हनमथल माथुर थे | हपछले पच्चोीस वषं से श्री माथुर हिजदल स्टील से जुड़े हुए हं
और स्टील फनेस ऐसोहसएशन ऑफ़ आं हडया के ऄध्यक्ष भी हं |

http://www.bits-oasis.org/ 20
तकनीक पुनःपट्टरभाहषत
23 - 27 माचथ 2009
वषथ 2008-09 हबट्स के आहतहास मं ऄहवस्मरणीय रहेगा | एवं आसका श्रेय जाता है
हमारे 27वं तकनीकी महोत्सव, ऄपोजी 2009 को हजसने सफलता के नए सोपानं
को छु अ एवं ऄपने भव्य एवं वृहद् स्वरुप से सभी को मंत्रमुग्ध कर कदया |

ऄपोजी का ISO द्वारा प्रोजेक्ट्स के स्तर मं भी वही बात देखने को हमली

प्रमाहणत होना संपूणथ हबट्स के | हर अयोजन, हर प्रहतयोहगता मानो सफलता

हलए गवथ की बात थी | 1000 की एक कहानी थी | प्रमुख अकषथणं मं आस

से भी ऄहधक बाहर से अये ऄपोजी मं एयर स्ट्राआक, बैटल ऑफ़ वाटरलू,

मेहमान, 100 से भी ऄहधक सृहष्ट, पट्टरशोध, हसहद्ध, कोडर, हवज्ञान किज़

कॉलेज एवं 10 के लगभग आत्याकद थे | साथ ही ऄपोजी के पहले एवं दौरान

अमंहत्रत व्याख्यान | क्या कोइ अयोहजत कइ कायथशालाएं भी काफी

कसर बाकी रही थी ? शायद सफल रही | आनमं से कइ तो देश भर की

नहं .. प्रमुख संस्थाओं द्वारा अयोहजत थं |


टेक्नोकफहलया, लैब व्यू, फोरंहसक, एस्ट्रो,
आत्याकद प्रमुख थी |

सबसे महत्वपूणथ ईपलहब्दध थी, आतनी महान हहस्तयं का हमारे बीच शाहमल
होना | नामं की फे रहहस्त ही काफी है | ऄपोजी के स्तर को समझने के हलए -
हजमी वेल्स (संस्थापक - हवककपीहडया), कदलीप छाबहड़या (ऑटोमोबाआल
हडजाइन गुरु), माआकल िे मो (फॉरहबडेन अकीओलॉजी के लेखक),
एम.सी.मेहता (पयाथवरण ऄहधवक्ता), जॉन सी.माथेर (नॉबेल पुरस्कार -
भौहतकी 2006), एस.पी.कोठारी (पूवथ डीन - एम.अइ.टी.) एवं और भी | सारे
हसतारे जब ज़मीन पर एक साथ ही ईतर अएं तो शायद ऐसा ही लगता होगा |

हनहश्चत रूप से आस ऄपोजी ने सफलता के जो कीर्षतमान स्थाहपत ककये हं वह अगे अने वाले वषं मं हमारे हलए
प्रेरणास्रोत का काम करते रहंगे और साथ ही साथ एक चुनौती भी |

http://www.bits-apogee.org 21
प्रबंधन का बंधन
6 - 8 माचथ , 2009
मैनेजमंट क्लब, हबट्स हपलानी के ऄथक प्रयासं के कारण
आस अर्षथक मंदी के दौर मं भी हबट्स हपलानी का ३२वाँ
वार्षषक मैनेजमंट सम्मलेन “आं टरफे स” नइ ईं चाइयं को छू ने
मं कामयाब रहा | आस सम्मलेन का मूल ईद्देकय छात्रं की
प्रहतभा और हवचारं को जीवंत कर आस तेज़ी से बढ़ते ईद्योगं
के कारोबार मं लगाना है |

आं टरफे स 2K9 "पट्टरवतथन : एक देवदूत सदृश बदलाव"


हवषयवस्तु पर अधाट्टरत था | 6 से 8 माचथ तक चली आस
प्रहतयोहगता मं अइ.अइ.टी.मुंबइ, अइ.अइ.एफ.टी.कदल्ली,
एफ.एम्.एस.कदल्ली, एन.अइ.अइ.एम.एस. अकद प्रहतहष्ठत

अज की गहतशील कारोबारी दुहनया के मैनेजर मं स्वयं


तथा संगठन मं समयानुसार बदलाव लाने की काबीहलयत
होनी चाहहए | यही नहं ईसमं पट्टरवतथनं की दूरदर्षशता
को अंकने की क्षमता भी होनी चाहहए | आसी मूल भाव आस वषथ आं टरफे स के प्रमुख अकषथणं मं
को छात्रं के समक्ष व्यक्त कर आं टरफे स अगे बढ़ता रहा है |
वाइ,एम.ओ.एम, हबज़-किज, हबहिडग तथा फ़ोरेक्स
रहे | सेहपएन्ट के हनदेशक, कफहलप्स के पूवथ हनदेशक
और बैन, मेकंजी और एस.ए.अइ.सी. जैसी बड़ी
कम्पहनयं के मुख्य ऄफसरं को हनणाथयक मंडल
ऄतः मुख्य ऄहतहथ के रूप मं देखकर छात्र काफी
ईत्साहहत थे |

आसके ऄहतट्टरक्त अपकी जानकारी के हलए आं टरफे स के


शानदार ऄतीत मं मनमोहन हिसह, राजेश पायलट, डेरेक
ओ ब्रायन, वी.वी.रमन जैसी हहस्तयं ने ऄपनी मौजूदगी
दजथ कराकर छात्रं का पथ प्रदशथन ककया है |

http://bits-mba.org/interface 22
28
"saa ivaVa yaa ivamau>yao"
"सा हवद्या या हवमुक्तये" (परम ज्ञान जो मुहक्त कदलाती है), एक वैकदक पौराहणक व्याख्यान है, मुख्य रूप से
हवष्णु पुराण मं से जो कक हशक्षा के ऄनुसरण मं एक बड़ा महत्व रखता है .ईपहनषद् जो कक वैकदक पौराहणक

साहहत्य का सारांश है, ज्ञान (व्यावहाट्टरक) और परम ज्ञान (परमार्षथक) के बीच मं ऄनुभेदन करता है | ज्ञान कु छ

ऐसे तथ्ययं से बना हुअ है जो संशोधन, सुधार और ऄक्सर बदलने की प्रकिया मं रहता है | परम ज्ञान, दूसरी

तरफ, ज्ञान का मूतथ रूप है जो शाश्वत है | आस प्रकार, हवस्तृत रूप से ज्ञान के दो क्षेत्र हं - हवद्या (परा हवद्या) और

ऄहवद्या (ऄपरा हवद्या)| जहाँ हवद्या, 'स्व' और 'आश्वर' (अत्म ज्ञान और ब्रह्म ज्ञान) के ऄहवनाशी ज्ञान के ऄंतगथत

अती है, वहं ऄहवद्या के ऄंतगथत ज्ञान के बाकी हवषय अते हं |

अकद शंकराचायथ, जो कक िांहतकारी दाशथहनक और भारतीय संस्कृ हत के सवोच्चो नायक हं, के ऄनुसार 'स्व' और

अत्म चेतन की प्रकृ हत है और स्व के ऄलावा बाकी - ऄज्ञानता की प्रकृ हत है | दोनं एक दूसरे का हवरोध कर रहे

हं ठीक ईसी तरह जैसे - प्रकाश और ऄन्धकार | जहाँ प्रकाश अत्मज्ञान का बोध करवाता है, वहं ऄन्धकार

मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चि मं फँ साए रखता है | ईनके दृहष्टकोण से हशक्षा का मुख्य ईद्देकय सभी को हवद्या

प्रदान करना है | ऄहवद्या मं हसफ़थ वही ज्ञान है जो "स्व-हवद्या" से परे है - जैसे ज्ञान जो कक भौहतक सुख प्राहप्त

करने मं सहायक होता है | आसका ऄध्ययन हशक्षा के हर शास्त्र मं प्रमुख है | जैसे ही हवद्या का ईदय होता है वैसे

ही ऄज्ञान का ऄन्धकार छंट जाता है |

"हवद्या" जो कक गोपनीय और गुह्य हवद्या के तौर पर भी जानी जाती है, "मं" या "अत्म" का ज्ञान बोध करवाती
है | यहाँ "मं", "ऄंहकार" से संपूणथतः हभन्न है और सभी ज्ञान और परम ज्ञान का के न्द्र है | हबना आस 'मं' की जड़
के , कोइ ज्ञान या परम ज्ञान की प्राहप्त कभी संभव नहं हो सकती है | ऄतः "मं" की ऄनंत प्रकृ हत को जानना
ऄहनवायथ है | यह "मं", ईपहनषद् और भगवद गीता के ऄनुसार ऄजन्मा और शाश्वत है; ऄतः ऄमर भी है | अत्मा
हर मनुष्य मं मौजूद है | वह शरीर, हजसमं अत्मा ऄवहस्थत है, जन्म लेता है और समय के साथ नष्ट हो जाता
है | यह वक्तव्य भगवद गीता के हद्वतीय ऄध्याय मं बहुत ही सुंदर शब्ददं मं वणथन ककया गया है : "ऄजो हनत्य
शाश्वतोयं पुराणो- न हन्यते हन्यमाने शरीरे" | यह प्रारंहभक चेतना या जागरूकता की प्रकृ हत है (जो कक ऐतरेय
ईपहनषद् के ऄनुसार 'प्रज्ञानं ब्रह्म' कहलाता है) हजसके हबना कोइ भी ज्ञान सम्भव नहं है |

आसी हवषय को छान्दोग्य ईपहनषद् मं भी हचहत्रत ककया गया है | आसके ऄनुसार हशक्षा, पराहवद्या के साथ ही

सम्पूणथ हो सकती है | पराहवद्या मनुष्य को संसार-सागर के दुःखं से उपर ईठने की क्षमता देती है और हपछले

जन्मं की प्रहतकियाओं (प्रारब्दध) से भी मुक्त करवाती है |

23
छान्दोग्य ईपहनषद् मं हपता ईद्दालक और पुत्र श्वेतके तु के वाताथलाप से यह स्पष्ट है | आसके ऄनुसार एक

ईद्दालक नामक एक हवद्वान् हुअ करते थे जो अरुहण के पुत्र थे | ईद्दालक के एक ही बेटा था, श्वेतके तु | ईन्हंने

ऄपने पुत्र को १२ साल की ईम्र मं गुरुकु ल मं हशक्षा ग्रहण करने हेतु भेजा | जब वो वापस लौटा तो ईसकी ईम्र

२४ साल हो चुकी थी | ईसने सभी वेद, शास्त्र और धमथग्रन्थ पढ़े थे और मनन ककया था | शायद ही ऐसा कु छ

धार्षमक रह गया था जो ईसने न पढ़ा हो | ऄतः ईसमं ऄहम् की भावना जागृत हो गयी थी कक ईसके समक्ष

हवद्वान् कोइ नहं है क्यंकक वह सब कु छ जानता है और लगभग सवथज्ञ है | जब ईसके हपता ने ईसका यह

व्यवहार ऄनुक्षण ककया तो ऄंत मं ईससे पूछा , "क्या तुम्हं वो वस्तु ज्ञात है हजसे जानने से सब कु छ जाना जा

सकता है ? क्या तुम्हं वो वस्तु ज्ञात है हजससे ना सुनाइ देने वाली वस्तुएं भी सुनाइ देने लगे ? क्या तुम्हं वो

वस्तु ज्ञात है हजससे हर न सोचे जाने वाली सोच सोची जा सकती है ?" पुत्र यह प्रश्न सुनकर अश्चयथचककत रह

गया | ईसने कभी भी ऐसी बातं नहं सुनी थी - कै से एक ना सुना जाने वाला शब्दद सुनाइ दे सकती है? कै से ना

सोची जाने वाली सोच सोची जा सकती है ? कै से ना समझी जाने वाली बात समझी जा सकता है ? ईसने

पूछा, "यह क्या वस्तु है ? मुझे आस हवषय मं कोइ ज्ञान नहं है | मुझे कभी भी ऐसी बातं नहं हसखाइ गइ है |"

वह हवनम्रता के साथ ऄपने हपता से यह रहस्य समझाने को कहता है | तब ईसके हपता ने समझाया : "हम सब

वृक्षं की तरह मानव शरीर धारण ककये हं - हजसके मूल 'चैतन्य' रुपी जीवन के उपर अधाट्टरत हं | हजस मुहूतथ

पर यह चैतन्य शरीर से बहहगथत हो जाता है, ऄथाथत हमारी प्राण वायु शरीर से पृथक हो जाती है, हम मृत्यु मुख

मं पहतत हो जाते हं | चैतन्य और अत्मन के बीच कोइ ऄंतर नहं है | आस संसार मं हर वस्तु और हर रचना मं

चैतन्य है | आस संसार मं एक से ऄहधक चैतन्य नहं है | यद्यहप संसार मं ऄनहगनत शरीर हं, रूप ऄनेक हं, ऄनेक

व्यहक्त हं पर चैतन्य के वल एक ही है | यह दृकयमान जगत का प्रत्येक ऄहस्तत्व चैतन्य-अत्म के उपर अधाट्टरत है

एवं प्रत्येक वस्तु की सृहष्ट, हस्थहत और संहार चैतन्य-अत्म ही साधन करता है |

"वो चैतन्य-अत्म तुम हो, श्वेतके तु - 'तत् त्वं ऄहस', श्वेतके तु" - हपता ने कहा |

आस प्रकार यह स्पष्ट है कक छात्र श्वेतके तु ने यह स्वीकार ककया कक ईसने हशक्षा की सभी शाखाओं का ऄध्ययन

ककया है ककन्तु सभी ज्ञान का सारांश या सभी ज्ञान की जड़-ऄहवनाशी अत्म-चैतन्य के ममथ भेद करने मं हसद्ध

मनोरथ नहं हो पाया था - हजसे प्राप्त करने पर जो सुना नहं गया है, वह सुनाइ देने लगता है | हजसे सोचा नहं

गया है, वह सोचा जाने लगता है | और हजसे समझा नहं गया है, वो समझा जाने लगता है | ऐसे अत्म-चैतन्य

के ज्ञान को परम ज्ञान कहते हं जो एक महाशहक्त है और मनुष्य को परमानंद प्रदान करने के साथ-साथ सवथज्ञ

और सवथव्याप्तामय बना देता है | यह हवषय एक साधारण सैद्धांहतक तत्त्व बोध नहं है; यह अत्मनुभूहत और

अत्मदशथन के हवषय का साक्षात्कार है | यह साक्षात्कार हो जाने पर ज्ञान सूयथ ईकदत होता है एवं ऄहवद्या और

ऄज्ञान ऄन्धकार का लय हो जाता है |

24
के वल ऄहवद्या का ज्ञान, जो कक भौहतक ज्ञान (जैसे कक हवज्ञान या आं जीहनयटिरग की हशक्षा) के हवषय का क्षेत्र है,

महाशहक्त नहं कहलाता है; क्यंकक यह मानव सभ्यता के हवनाश का कारण भी बन सकता है यकद ईपहनषद्

जैसे अध्याहत्मक हवज्ञान के ऄनमोल मूल्यं द्वारा पट्टरचाहलत ना हो | हबट्स का प्रतीक हचन्ह (एम्बलेम) [ऄणु

संरचना और रॉके ट हवज्ञान और आं जीहनयटिरग / प्रौद्योहगकी के हलए] सटीक तरीके से पदाथथ ज्ञान के हवषय को

हचहत्रत करता है | यह ऄध्याहत्मक हवज्ञान को भी पद्म-पुष्प [मानहवकी और सामाहजक हवज्ञान] द्वारा दशाथता है |

ऄहत सुन्दर तरीके से हवज्ञान, आं जीहनयटिरग और अध्याहत्मक हवज्ञान का सामंजस्य यह एम्बलेम मं दशाथया गया

है | एम्बलेम के मध्य मं पद्म-पुष्प की ईपहस्तहथ यह संकेत करती है कक आसकी ईभय कदशाओं मं ऄवहस्थत

हवज्ञान और आं जीहनयटिरग की हशक्षा मानवीय मूल्यं और अध्याहत्मक ज्ञान के उपर अधाट्टरत होनी चाहहए |

ईपहनषद् जैसे अध्याहत्मक शास्त्रं के ऄनुसार प्रत्येक हशक्षा की शाखा का लक्ष्य सम्पूणथ ज्ञान है | हशक्षा का

पूणथता अध्याहत्मक ज्ञान की प्राहप्त के उपर हनभथर करती है | ऄतः हशक्षा का प्रमुख ईद्देकय ईपहनषद् ग्रंथं का

ऄध्ययन कर ऄध्याहत्मक हवज्ञान के रहस्यं पर से परदा ईठाना और ऄहवद्या के ऄन्धकार को हवद्या के प्रकाश से

दूर करना है | ऄतः यह मनुष्य जीवन का लक्ष्य के वल भौहतक ज्ञान को प्राप्त करना या ऄनुसंधान करना नहं है |

हशक्षा यहं पर समूणथ नहं होती है | हशक्षा तभी पूणथ होती है जब अत्म-हवद्या पर प्रभुत्व प्राप्त ककया जाता है |

वह हवद्या, वह परम ज्ञान, जो मनुष्य को आस संसार के पुनः-पुनः जन्म मृत्यु से भरे माया जाल से मुक्त करवाती

है - "सा हवद्या या हवमुक्तये" |

पर यहाँ तक की गयी चचाथ से यह नहं समझना चाहहए कक यह हमं भौहतक ज्ञान का ऄध्ययन करने के हलए
हनरुत्साहहत कर रहा है | भौहतक ज्ञान भी संसार और जीवन से संबंहधत हवहभन्न जानकारी प्रदान करने मं ऄपनी
भूहमका हनभा रहा है | कफ़र भी वेद व्यास और अकद शंकराचायथ जैसे महान संतं ने दृढ़ता से यह कहा है कक हमं
आसमं पूरी तरह से नहं खोना चाहहए क्यंकक यह हमारा 'ऄहन्तम लक्ष्य' नहं है; आसकी सहायता से हमं के वल
ऄपना जीवन का भरण पोषण करना है ओर ऄपने 'ऄहन्तम लक्ष्य' की और बढ़ते रहना है |

डॉ. सूयथकांत महाराणा


सहायक प्रोफ़े सर
Humanistic Studies Group

आस सादगी पे कौन न मर जाए ए खुदा |


लड़ते हं और हाथ मं तलवार भी नहं ||

25
Aadt kao Aadt banaanao kI Aadt saI hao gayaI hO

हर भूल को छु पाने की अदत सी हो गयी है ढह न जाए वो ककला जो हसफथ सूराखं से रौशन है


खुद के हर ज़रे से वाककफ हूँ कफर भी देख पाउँ ऄक्स ईसका ऐसा तो ज़रूर मौसम है
खुद ही से हखलाफत करना भी बगावत सी हो गयी है खुद से ही नज़रं हमलाने मं शरमाहट सी हो गयी है
क्यूंकक अदत को अदत बनाने की अदत सी हो गयी है क्यूंकक अदत को अदत बनाने की अदत सी हो गयी है

पेड़ के मुरझाये फू ल सवाल ईठाते हं खुद से ही हार गया हूँ मं बाज़ी


खुद को देखने से घबराते हं वक़्त है मुकम्मल कफर भी नहं हूँ राज़ी
माली हूँ कफर भी ईन्हं ही सुनना आबादत सी हो गयी है ईम्र न अइ कफर भी मौत की गुजाट्टरश सी हो गयी है
क्यूंकक अदत को अदत बनाने की अदत सी हो गयी है क्यूंकक अदत को अदत बनाने की अदत सी हो गयी है

मृणाल मनुज

अंसू

ये जो नयनं से बहते हं वेदनाओं को साथ लेकर


हनबाथध गहत से, हमददी के पात्र बनते हं |
हलए हुए ककतने ही
संवेदना साथ मं | दुःख मं साथ दं न दं
वो तो साथ हनभाते हं,
ऄपनी गाथा को गाते हं ककसी कोने से अँखं के
ह्रदय की कहानी कहते हं, चुपचाप वह हनकलते हं |
ऄन्तःस्थल से वह करुण
दुःख का सागर बन बहते हं | हाँ, ये अंसू ही तो हं

अँखं मं नमी बन जो खुद को नष्ट करने के हलए ही


ईनका सहारा बनते हं, खुद को ईजागर करते हं,
खुद तो खामोश रहकर भी ह्रदय की टीस को खुद मं दबाकर
सब कु छ जैसे कह जाते हं | धरती मं हमल जाते हं |

वे हनमथल मोती जैसे ऄहनरबन पाल


झर-झर नयनं से हगरते हं,

26
jaagato rhao
भारत माता हम सब की जननी एक के हवस्फोटकं की अवाज़ आतनी

है | ईसने मुझे, अपको, हम सभी को जन्म कदया तीव्र होती है कक ईसकी धमाके की अवाज़ सभी
कदशाओं मं गूंज ईठती है, तो दूसरे वगथ (नेताओं) के
है | हम ईसी की गोद मं खेले हं | वह भारत माँ की
हवस्फोटक ध्वहनरहहत होते हं हजससे ककसी को
अँचल ही थी हजसने कड़ी धूप मं भी हम पर
शाट्टरट्टरक अघात भले हं न पहुचं लेककन मानहसक
शीतल छाया ककया | हम बड़े हुए | हममं से कु छ
अघात की गहराइ शायद ही कभी भर पाएं |
देश का नेतृत्व करने वाले नेता बने तो कु छ ने हमारे नेताओं की अरक्षण जैसी नीहतयाँ ककसी
वैज्ञाहनक बनकर भारत को गौरवाहन्वत ककया | हवष्फोट से कम नहं हं | जो पता नहं ककतने
कु छ सैहनक बने और भारत की ओर ईठने वाली हर नवयुवकं के भहवष्य के साथ हखलवाड़ कर रही है

उँची अवाज़ को भारत माँ के कानं तक पहुँचने तथा पद के श्रेष्ठाहधकारी होने के बावजूद ईन्हं ईस
ऄवसर से वंहचत कर देती है | सवथप्रथम अरक्षण
नहं कदया, तो वही ँ कु छ देश को लूटने वाले
की बात राष्ट्र-हपता महात्मा गांधी ने ईठाइ
बने और कु छ ने तो भारत माँ को सारे जहाँ मं
थी | यह बात अज से लगभग साठ वषथ
अतंकवाद की ऄहि मं ही झुलसा एक ही, बेचारा
पूवथ की है | आस बीच लोगं मं और ईनकी
भारत हमारा
कदया | ऐसे मं भारत माँ क्या करं ! ऄपने पट्टरहस्थहतयं मं कइ पट्टरवतथन हुए | देश
ऐसे पुत्रं के होने पर स्वयं को धन्य मानं, जो हमेशा बदल रहा है तो कफर हमारी ये नीहतयाँ क्यं नहं
कामना करते हं कक वे आस माँ के चरणं मं फू ल बदलती हं ? सामान्य वगथ भले गरीबी रेखा से

बनकर हगर जाएँ या कफर ऐसे पुत्रं के अचरणं ककतना भी नीचे हो, ईनके हलए सरकार के पास
कोइ नीहत नहं है | अज एक भी नेता ऐसे नहं हं,
तथा व्यवहारं के प्रहत शोक मनाये हजनके कृ त्यं से
जो आस भारत माँ के बारे मं गलती से सोच लं |
ईनका ह्रदय प्रहतकदन छलनी-छलनी हो जाता है |
सारी पार्टटयं के पास एक दूसरे की पोल खोलने के
यकद ऄनुभव कर देखं तो हनहश्चत ही हमं भारत माँ
ऄलावा और कोइ काम नहं है | सभी को सर्त्ा
ककसी कोने मं बैठी हससकती कदखाइ दंगी | चाहहए और आसके हलए तो ऄगर ईन्हं ऄपना
भ्रष्टाचारी नेता और अतंकवादी...दोनं ही एक ही जमीर भी बेचना पड़े तो ईन्हं सौदा सस्ता ही
डाल के पंछी हं | ऄंतर के वल आतना है, एक के पास लगता है |
देश को लूटने का कानूनी ऄहधकार है जो ईन्हं हम हम भारतवासी हमेशा से यह गीत गुनगुनाते हं
जैसे मूखथ देशवाहसयं ने कदया है | वहं दूसरे वगथ "सारे जहाँ से ऄच्छा हहन्दोस्तां हमारा.. हम
(अतंकवादी) ने ऄपने ऄहधकार स्वयं हं बनाये हं | बुलबुले हं आसके , ये गुलहसतां हमारा |"

दुःख मं हसमरन सब करे, सुख मं करे ना कोय |


जो सुख मं हसमरन करे, ताउ दुःख काहे को होए ||

27
क्या ऄब भी भारत वास्तव मं गुलहसतां है ? पक्षपात करती है | हमारे देश मं हजतनी
हबलकु ल नहं | ऄब तो हमं यह गीत गुनगुनाना हनहतयाँ गैरहिहदूवगथ के हलए हं ईतनी तो
चाहहए हहन्दुओं के हलए भी नहं हं | आसके बावजूद भी
"सारे जहाँ मं एक ही, बेचारा भारत हमारा.. लोगं को पता नहं कौन सी ऄसुरक्षा का
हजसके गुलहसतां को आसके ऄपने बुलबुलं ने ही लूट ऄनुभव होता रहता है | हमं दुःख ईतना ही
डाला |" अतंकवाद की अग जो पूरे भारत को जल होता है जब महस्जद मं धमाके होते हं या कफर
रही है वह ककसी से भी हछपी नहं है | भारत हमेशा ईड़ीसा के इसाइ धमथ के ऄनुयाहययं के साथ
से शांहतहप्रय देश रहा है | हमने न ककसी का हक दुव्यथवहार होता है | क्यंकक दोनं ही
हलया है और न ही तानाशाह बनकर ककसी देश को पट्टरहस्थहतयं मं खून हमारे ऄपनं का ही बह
तबाह ककया है | तो कफर हमारे रहा है | तो कफर लोग आतने
साथ ऐसा क्यं ? हमारा देश ही हनदथयी कै से हो सकते हं ? हम
एक ऐसा देश है जहाँ यकद एक साथ रक्त की नकदयाँ बहा
दीपावली कक रौशनी से मंकदर दं | हम सब आतने कठोर कै से
जगमगाता है, हहन्दू मुसलामानं हो सकते हं ?
के महस्जदं को भी कभी ऄंधेरे मं मेरे आस दीघथलेख का ईद्देकय
छोड़ना पसंद नहं करते | जो लोगं की मरी हुइ भावनाओं
शीश हम मंकदर के सामने गुजरते
को जगाना है | हमारे पढ़ हलखकर हशहक्षत होने
हुए झुकाते हं, वही शीश महस्जद और गुरूद्वारे से
का सार तभी है जब हम ऄपने अस पास हो रहे
गुजरते समय भी झुक ही जाता है | हममं वह
ऄन्याय को ऄनुभव करने के साथ साथ ईसके
किरता नहं है | लेककन हमारे देश के लोग ही एक
दूसरे के रक्त के प्यासे बने हुए हं | वह भी धमथ को हवरुद्ध अवाज़ भी ईठायं | सबसे बड़ी बात यह

लेकर | भगवान ककसने देखा है, न हहन्दू ने ऄपने है की न के वल हम आन हवषयं पर सोचं बहल्क
राम को देखा है, न मुसलमान ने रहीम को | यकद ईन पर ऄमल भी करं | यह बात ऄलग है कक
राम और रहीम दो ऄलग देवता हं और ये दोनं अतंकवाकदयं को ऄपनी बात समझाना अकाश
िमशः हहन्दुओं और मुसलामानं के अराध्य हं तो
पर फू ल हखलाने जैसा है लेककन हम ऄपने देश
क्या ईन्हंने अकर ये हसखाया है कक हम आस हवशेष
के नेताओं पर ऄंकुश तो लगा ही सकते हं | देश
धमथ मं अते हं और ककसी धमथ को मानने वाले आं सान
हमारा है, तो सोचना भी हमं ही होगा | अहखर
नहं हं और ईन्हं जीने का कोइ ऄहधकार नहं है ?
यकद ऐसा है तो न राम मेरे अराध्य हं और न रहीम हमारी भारत माँ को भी तो हमसे कु छ ईम्मीदं

मेरे वंदना के लायक हं | और ऐसा नहं है कक भारत हं |


सरकार हहन्दू वगथ के ऄलावा ऄन्य वगं के साथ सुमन हतवारी

जब तू अया जगत मं, लोग हँसे तू रोय |


ऐसे करनी ना करी, पाछे हँसे सब कोय ||

28
ऄब मं हवा के संग संग होके
iKD,kI po
हाथ पकड़ के हनकल पड़ा हूँ
हखड़की पे बाहं ट्टटकाये
ओर गगन की देख रहा था कु नाल गुप्ता

आक क्षण यहं आक क्षण नहं


वो मन को व्याकु ल कर रहा था jaIvana kI AiBalaaYaa

झाँक कर चादर से ऄपनी


ईम्मीदं की राहं पे
ज्यं वो मुझको हचढ़ा रहा था
यूँ चल पड़ा हूँ मं

मंने पूछा क्यूँ नहं रुकते ऄके ला ऄनजानं मं|

क्षण दो क्षण मं लूं हनहार


कभी न रुक पाउँ मं
बाहर हनकलो दीवारं से ऐसे हो रफ्तार मेरी
सुनो हवाओं का प्रहार
हर मंहजल पर राही हो
यही दरकार मेरी
मेरा क्या, ऄब हूँ तब ना हूँ
सखी है मेरी, मेरा सार
हर ऄन्धकार का दीपक हूँ
हर रात का हूँ कदन
ना मं तुमसे हमल सकता हूँ कफर भी क्यं हूँ मरता हूँ, हतल-हतल??
ना तुम मुझको छू सकते हो

खोज रहा हूँ जाने ककसको


आक-कं ठ हवा से होकर देखो
मुझसे बातं कर सकते हो ऄब तक न समझ पाया हजसको
मेरे ऄंतमथन मं था वो,
बांह फै लाकर अँख मूँद कर प्रभु जीवन तुझे ऄपथण हो |
जग से हमलने जा सकते हो

ऄहभषेक अनंद

हिचता ऐसी डाककनी, काट कलेजा खाए |


वैद हबचारा क्या करे, कहाँ तक दवा लगाये ||

29
AatMikt @yaaoM Æ
हमं नफ़रत है ईन लोगं से , धारदार हहथयारं से जब,
जो नोच-नोच कर खाते हं, वो गोला बरसाएगा |
सुबह को महन्दर, शाम को महस्जद,
लाशं का ढेर लगाते हं | ताने पे ताना मारोगे,
पर आससे कु छ ना कर पाओगे,
यह कौन सी तालीम है ज़नाब, वो नशे का अकद है,
जो दोस्त को दुकमन बनाती है, तुम कै से ईसे मनाओगे ?
घर पड़ोस मं रहता है,
डर अतंक फै लाता है | क्या हम मानव वो मानव हं ,
जो धरती को स्वगथ बनाएँगे ?
सच्चोाइ क्या है हबना जाने, या प्यारी धरती को कलयुग मं,
कोइ क्यं कौम पे प्रश्न ईठाता है, हजन्दा ही खा जाएँगे ?
क्या हमारी ये गलती है,
वो आस गली से जाता है | जब कल्पना से भय खाते हो,
तो कु छ काम अओ हं कर लेते,
तो सुनो मेरी यह बात नहं, हखलौनं की जगह बच्चों से,
पुरखं की कही जुबानी है, बैठ चार बातं ही कर लेते |
हम भूल गए कतथव्यं को,
बच्चों को राह कदखानी है | यह जरुरी नहं
बापू-नेहरू की गाथा ही सुनानी है,
माना सब व्यस्त हो कल की दूहनया मं, जरा सोच समझकर कायथ करो,
धन कमाने से फु सथत कहाँ ? बच्चों मं ऄलख जगानी है |
पर ककसके हलए हो जोड़ रहे,
अज साथ है कल कहाँ ? एक छोटा सा सपना हम सबको,
अओ अज कदखलाते हं,
माताओं-बहनं से मेरी प्यार से सब कायथ करो,
आतनी सी गुजाट्टरश है, सारे काम बन जाते हं |
पड़ोहसयं से तुलना कर,
तुम्हं क्या हमल जाएगा ? ले अओ अज संकल्प सभी,
घर-घर दीप जलाएंगे,
हाँ! एक बात तो साफ़ है, बच्चोो बूढ़ं मं बैठ कर,
बेटा ऄपना ही घर जलाएगा, शाहन्त को ऄपनाएंगे |

रोको- रुको हचल्लाते रहोगे, प्रेम शंकर


वो लहू से खेलता जाएगा,
30
torI AaÐKaoM ko samandr maoM yaadoM

तेरी अँखं के समंदर मं है आक ककती ना जाने मुझे ये क्या हो गया है,


हजसमं बसी मेरी दुहनया , मेरी हस्ती, ये मं कहाँ अ गया हूँ
मं सवार हूँ ईस ककती का ,ईस समंदर का ऄब तो ये जानी पहचानी जगह नइ सी लगने लगी है
ना जाने मुझे ये क्या हो गया है..

हर तेज़ चलती हुइ साआककल मं कार्षतका ढू ँढता हूँ ,


हर आन्कहिमग कॉल मं "कॉहिलग सहज" ढू ंढता हूँ ,
हर बार स्काइ मं आहन्वहन्सबल्स ढू ँढता हूँ ,
ना जाने मुझे ये क्या हो गया है....
ये मं कहाँ अ गया हूँ..

हर डी.एम. लैब मं बुक्कू ढू ंढता हूँ ,


हर लाआब्रेरी हवहज़ट मं हमनी ढू ंढता हूँ,
हर बथथडे मं हगनी ढू ंढता हूँ ,
ना जाने मुझे ये क्या हो गया है....
हजससे नाता ना कोइ आस धरती का | ये मं कहाँ अ गया हूँ..
न जाने क्यं पड़ा मं आस ईलझन मं
हर सदथ कॉम्प्री की रात मं जयंत ढू ँढता हूँ,
मुझे ज़मीन पर जाने दे,
हर कोड रैश मं मनीष ढू ँढता हूँ,
वहाँ जाकर भी तू मुझे
हर बार 1101 मं पोपट ढू ँढता हूँ,
दो अँसू बहाने दे |
ना जाने मुझे ये क्या हो गया है....
पहुंचा ऄगर ज़मीन पर कभी
ये मं कहाँ अ गया हूँ..
तो भी तुझे भुला न पाउँगा,
लेककन कह देता हूँ आतना मगर हर बजती हुइ ऄलामथ मं हवनोद ढू ँढता हूँ,
तेरे सामने कफर कभी ना अउंगा | हर हास्य कहव सम्मलेन मं ऄमन ढू ँढता हूँ
हर कनॉट हवहज़ट मं वाइ.फाइ. ढू ंढता हूँ,
ना जाने मुझे ये क्या हो गया है....
तूने ठु कराया मेरे प्यार को
ये मं कहाँ अ गया हूँ..
लेककन मेरे हलए तू मेरी है,
ऄब यहाँ सब कु छ नया सा लगता है
पर आतना बता दूँ तुझे ओह बदककस्मत
ना जाने मुझे ये क्या हो गया है....
आसमं जीत मेरी और हार तेरी है |
ये मं कहाँ अ गया हूँ..

तेरी अँखं के समंदर मं है आक ककती सौरभ ऄग्रवाल


हजसमं बसी मेरी दुहनया मेरी हस्ती

सौरव लबाना
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ek baat AaiKr @yaaoM

और दृगं मं कु छ सपनं चला न था कभी दुगथम राह पर क्या कभी


की अशाओं का वास भी | भला अज कफर क्यूँ मेरे पैर कांप रहे हं
मन के हवचहलत होने का राहं ना ही कभी असां थं और ना ही मंहजलं
यूँ ऄनजाना एहसास भी था | दुष्कर
साँसे चलती थं ऄरमानं की टोली लेकर

तभी ममत्व के अँगन मं रोम रोम भरा रहता था ईत्साह से कभी

ककलकारी की अस जगी अज राहं भी वही हं पर मंहजलं नइ हं

कोमल काया कै सी होगी ? कताथ भी वही है पर एक नयापन है

ये कल्पना भी साथ जगी स्वयं को खोजता हुअ चला जा रहा हूँ आस


बीहड़ मं
ऄनहभज्ञ होकर अशंककत हवजय के नाद मं
तभी ममत्व के अँगन मं
अज भला क्यूँ मं खुद को औरं से कमतर
वीराने की हवा चली
अंकता हूँ
कु लदीपक की मांग हुइ
क्यूँ मं क्षण क्षण हनज को मायूस सा पाता हूँ
और मेरे सीने मं ख्वाब जले
था न तो कल भी कोइ साथ मेरे
हूँ अज भी मं हबलकु ल ऄके ले
ढली ईमंगं के अँगन मं
पर क्यूँ मं ऄब खुद को ऄधूरा पाता हूँ
रही-सही "एक बात" बची
सुन ईपदेश कु शल बहुतेरे सुनहरे ऄतीत की यादं
कु छ सीने मं प्रश्न ईठे
संजोये
कु छ ऄहधकारं की मांग हुइ..
हर वक्त जहाँ खुद को सफलतम पाता था
अज वहं पल पल खुद से ठगा जाता हूँ
तन से स्त्री कृ ष्ण की गीता भी खोखली ज्ञात होती है
मन से स्त्री जानता नहं क्या है यह समय का फे रा
कफर स्त्री जनने का या कफर हसफथ मेरे हनरुत्साह का बटेरा
ऄहधकार नहं ? हर अशा हनराशा होती जाती है
और मेरी यात्रा ऄधूरी ही धरी रह जाती है
हनहाट्टरका हिसह
सीहनयर ट्टरसचथ फे ल्लो सुनील कु मार शमाथ

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पूरा नाम : दबीर-ईल-मुल्क, नज्म-ईद्-दौलाह हमज़ाथ

ऄसद-ईल्लाह बैग ख़ां

जन्म : 27 कदसम्बर 1796

हनधन : 15 फरवरी 1869

जन्मस्थान : कला महल, अगरा

तखल्लुस : ऄसद, गाहलब

दबीर-ईल-मुल्क, नज्म-ईद्-दौलाह हमज़ाथ ऄसद- अज भी ईदूथ कहवयं मं सबसे ज्यादा माने और


ईल्लाह बैग ख़ां, गाऺहलब (गाऺहलब ऄथाथत प्रभावी) और ईक्त ककयेजाते हं |
ऄसद (ऄसद ऄथाथत शेर) (27 कदसम्बर 1796 - 15
फरवरी 1869) भारत के एक प्रहतहष्ठत ईदूथ और प्रारंहभक जीवन
पारसी कहव थे | गाऺहलब को भारतीय ईप- गाऺहलब का जन्म तुकी कु लीनतंत्रीय हपतरावली के
महाद्वीप का सबसे लोक-हप्रय और प्रभावशाली ईदूथ घर मं अगरा के कला महल मं हुअ था | गाऺहलब ने
कहव माना जाता है | ऄपने हपता और ऄपने चाचा को छोटी सी ईम्र मं
अश्चयथ की बात यह है कक ईन्हंने कभी भी ऄपनी ही खो कदया हजसके बाद वो कदल्ली अ गए |
अजीहवका के हलए काम नहं ककया | ईन्हंने ईनकी प्राथहमक पढ़ाइ के बारे मं कु छ भी साफ़
राजकीय सहायता, ऊण या दोस्तं की दट्टरयाकदली नहं है हालांकक यह कहा जाता है कक ईस समय के
पर ही जीवन व्यतीत ककया | ईनको लोकहप्रयता कु छ सबसे तेज़ कदमाग ईनके दोस्त हुअ करते थे |
तो हमली पर मरणोपरांत और ख़ास बात कक
ईनका मानना था कक ईनके ईम्र ने ईनकी कला को
काव्य सफ़र
नहं पहचाना है पर अने वाली पीकढ़याँ ईनके काम
गाऺहलब ईदूथ और पारसी, दोनं मं ही हलखते थे |
को ज़रूर सराहंगी और यह ईन्हंने ऄपनी
वैसे ईनकी सबसे ज्यादा पढ़ी और सराही जाने
ज़बरदस्त लेखनी से सच कर कदखाया | यह तो
वाली गज़लं ईन्हंने 19 साल से पहले-पहले ही
आहतहास मं दजथ ही है | और यह भी सच है कक वो
हलखी थी |

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गाऺहलब से पहले ग़ज़लं को हसफथ प्यार-ए--आज़हार पर यह बस एक कहानी ही है शायद | शोधकताथ
के हलए ही गाया और हलखा जाता था पर गाऺहलब मानते हं कक गाऺहलब दोनं ही तखल्लुस का
ने ग़ज़लं मं दशथन, कष्ट और हज़न्दगी की रहस्यं को आस्तेमाल करते थे और ककसी भी एक नाम को
भी बखूबी ईके रा | हालांकक ईनकी गज़लं काफी तरजीह नहं देते थे |
सराही गयी हं पर ईनकी लेखन की शैली को
समझने के हलए अम अदमी को थोड़ी मशक्कत हनजी हज़न्दगी
ज़रूर करनी पड़ती है | 1810 के अस-पास 13 साल की ईम्र मं ईमराव
पुरानी ग़ज़ल परंपरा को कायम रखते हुए ईनकी बेगम के पट्टरवार मं, लोहारू के नवाब, आलाही
काफी ग़ज़लं मं हप्रयतम की पहचान और हिलग को बख्श खान की बेटी से ईनका हनकाह हुअ |
ऄहनहश्चत ही रखा गया है | हप्रयतम एक खूबसूरत ईनके सात बच्चोे हुए पर कोइ भी हहफाज़त न रह
नारी, एक नौजवान युवक या भगवान भी हो सकते सके हजसका गम गाऺहलब कक ग़ज़लं मं गूंजता है |
हं | गाऺहलब के ऄंतदथशथनात्मक और दाशथहनक छंद गाऺहलब का आन्तकाल 15 फरवरी, 1869 मं हुअ |
भी काफी ईत्कृ ष्ट हं | गली काहसम जान, बल्लीमारान, चांदनी चौक,
पुरानी कदल्ली, जहाँ गाऺहलब रहते थे, को ऄब
तखल्लुस (वो नाम हजसके ऄंतगथत कहव ऄपनी गाऺहलब की प्रदशथनी मं बदल कदया गया है |
कहवता हलखते हं)
लौककक दंतकथा कहते हं की एक बार जब ईन्हंने गाहलब पर बनी कफल्म और टीवी सीट्टरयल
ककसी दूसरे कहव द्वारा एक शेर सुना हजसमं ईस भारतीय हसनेमा ने गाऺहलब को श्रद्धांजहल देते हुए
कहव ने 'ऄसद' तखल्लुस का आस्तेमाल ककया था, 1954 मं एक कफल्म बनाइ थी हजसका नाम
ईसके बाद ही ईन्हंने ऄपना तखल्लुस 'गाऺहलब' कर "हमज़ाथ गाऺहलब" था | आसमं भारत भूषण ने गाऺहलब
हलया | का रोल ऄदा ककया था और सुरैय्या ने प्रेहमका
"ऄसद ईस जफा पर बुतं से वफ़ा की वेकया , “चौदहवं“ का रोल हनभाया था |
हमरे शेर शाबाश रहमत खुदा की"
कहते हं कक आस दोहे को सुनने के बाद गाऺहलब ने पाककस्तानी हसनेमा ने भी "हमज़ाथ गाऺहलब" नाम से
ऄफ़सोस जताते हुए कहा, "हजस ककसी ने भी यह 1961 मं एक कफल्म बनाइ थी | आसमं पाककस्तानी
दोहा हलखा है ईसे खुदा के रहमत की वाकइ मं सुपरस्टार सुधीर ने गाऺहलब और मैडम नूर जेहान ने
ज़रूरत है (ऐसी दुखद ईदूथ दोहे को हलखने के हलए) चौदहवं का रोल हनभाया था |
ऄगर मं 'ऄसद' तखल्लुस का आस्तेमाल करता हूँ तो गुलज़ार ने डी.डी-1 पर “हमज़ाथ गाऺहलब” नाम से
कफर लोगं को लगेगा की यह भी मंने ही हलखा 1988 मं टीवी सीट्टरयल बनाया था हजसमं
है..ओहो लानत होगी मुझपे |" नसीरुद्दीन शाह ने गाऺहलब का रोल हनभाया था |
और आसी कारण ईन्हंने ऄपना तखल्लुस "गाऺहलब" आसमं जगजीत और हचत्रा हिसह द्वारा गाइ गयी
रख हलया | ग़ज़लं पेश की गयी थं|

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ihndI blaa^ga jagat maoM Bait-yaaÐ
Recruitment
भारतीय हचिा सेवा (हहन्दी हवभाग) के हलए हवहभन्न पदं पर ट्टरहक्तयां हनकाली गइ हं। पदनाम, कायथक्षेत्र, योग्यता, ऄनुभव
और वेतन श्रृंखला की जानकारी संबंहधत पद के साथ दी गइ है। ऄभ्यथी एक से ज्यादा पदं के हलए भी अवेदन कर सकते हं।
महहलाओं व हवशेष श्रेणी के हचिाकारं को हनयमानुसार अरक्षण का लाभ कदया जाएगा।

1. ट्टटप्पणी ऄहधकारी (Comment Officer )


कायथक्षेत्र- सभी हहन्दी हचिं पर ट्टटप्पहणयां पढ़ना, तकथ संगत ट्टटप्पहणयां करना ( एक कदन मं कम से कम 100 ऄपेहक्षत)
अयुसीमा- कोइ सीमा नहं (वट्टरष्ठ नागट्टरकं के हलए ईपयुक्त)
ऄनुभव- कम से कम पांच हचिं की शीषथ ट्टटप्पणीकार सूची मं शाहमल होना ऄहनवायथ, हचिाकारी मं लंबा ऄनुभव वांछनीय
वेतन- हचिाईद्योग मं सवाथहधक

2. पहेली सहायक (Riddle Assistant )


कायथक्षेत्र- हहन्दी हचिं पर चल रही हवहभन्न पहेहलयं के जवाब देना, पहेली के एक नए ब्दलॉग हनमाथण मं सहयोग
अयुसीमा- कोइ सीमा नहं (युवा व उजाथवान ऄपेहक्षत)
ऄनुभव- आं टरनेट पर शोध का लंबा ऄनुभव, पहेली संचालन के ऄनुभवी को प्राथहमकता, पहेली हवजेताओं को वरीयता
वेतन- हचिाईद्योग मं सवाथहधक

3. प्रहवहष्ठ सलाहकार (Post Advisor )


कायथक्षेत्र- नइ प्रहवहष्ठ के हवषय सुझाना (दूसरे हचिं को देखकर प्रेट्टरत होने की छू ट)
अयुसीमा- कोइ सीमा नहं
ऄनुभव- हचिा लेखन का ऄनुभव, कॉपी-पेस्ट मं महारहथयं को प्राथहमकता
वेतन- हचिाईद्योग मं सवाथहधक

4. हचिा भ्रमणकताथ (Blog Visitor )


कायथक्षेत्र- सभी हहन्दी हचिं पर दैहनक भ्रमण, हर नए तथ्यय को प्रबंधन तक पहुंचाना
अयुसीमा- कोइ सीमा नहं (छह गुणा छह अंखं वाले ऄभ्यर्षथयं को प्राथहमकता)
ऄनुभव- हनबाथध ब्दलॉग पठन का लंबा ऄनुभव ऄहनवायथ, हहन्दी संकलकं की समझ वांछनीय
वेतन- हचिाईद्योग मं सवाथहधक

5. हववाद ऄन्वेषक (Controversy Explorer )


कायथक्षेत्र- हचिा संसार मं चलने वाले हर हववाद की पड़ताल और तदनुरूप ककसी भी हाल मं ईसमं पड़ने की संभावना का पता
लगाना
अयुसीमा- कोइ सीमा नहं (महहलाओं को प्राथहमकता)
ऄनुभव- हंगामा और हववाद मचाने का ऄनुभव वांछनीय, हचिा संसार मं लोकहप्रयता ऄहनवायथ
वेतन- हचिाईद्योग मं सवाथहधक
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6. अशुकहव (Spontaneous Poet )
कायथक्षेत्र- ककसी प्रहवहष्ठ के हलए या ट्टटप्पणी पर अशुकहवता की रचना, लेखन का ऄन्य हवषय नहं हमलने पर तुरंत कहवता
हाहजर करने का दाहयत्व
अयुसीमा- कोइ सीमा नहं
ऄनुभव- तुकबंदी मं माहहर और हचिं पर कहवताएं पढ़ने का लंबा ऄनुभव
वेतन- हचिाईद्योग मं सवाथहधक

7. हचिासंपकथ ऄहधकारी (Blog Relations Officer )


कायथक्षेत्र- हचिा लेखकं और पाठकं के साथ सौहाद्रथपूणथ और सुमधुर संबंधं का हनमाथण
अयुसीमा- कोइ सीमा नहं (महहलाओं को प्राथहमकता)
ऄनुभव- आस पद के हलए वह हचिाकार सवाथहधक ईपयुक्त है, हजसके ब्दलॉग पर सबसे ज्यादा ट्टटप्पहणयां अती हं।
वेतन- हचिाईद्योग मं सवाथहधक

8. हचिा गोठ/कायथिम प्रबंधक (Meet/Event Manager)


कायथक्षेत्र- हचिा गोष्ठी (ब्दलॉगर मीट) का अयोजन और प्रबंधन, ज्यादा से ज्यादा सदस्यं को जुटाने का दाहयत्व
अयुसीमा- कोइ सीमा नहं
ऄनुभव- हचिा गोठ करा चुके ऄभ्यथी को प्राथहमकता, सामूहहक हचिं के लेखकं को वरीयता
वेतन- हचिाईद्योग मं सवाथहधक

9. लेखा प्रबंधक (Accounts Manager )


कायथक्षेत्र- ठाले बैठने का काम, भहवष्य मं (4-5 साल बाद) कमाइ हुइ तो हवर्त् देखने की हजम्मेदारी, कफलहाल प्रहवहष्ठयं और
ट्टटप्पहणयं का हहसाब ककताब और ईनकी दूसरे हचिं के साथ तुलना
अयुसीमा- कोइ सीमा नहं (युवक-युवहतयं को प्राथहमकता)
ऄनुभव- नए हचिाकारं के हलए ईपयुक्त
वेतन- हचिाईद्योग मं सवाथहधक

10. हचिा मुखहबर (खबट्टरया) (Blog Intelligence Officer )


कायथक्षेत्र- नामचीन हचिाकारं के पल-पल की खबर जुटाना, कहां ट्टटप्पणी कर रहे हं, ककसके साथ फोन पर बात कर रहे हं,
भहवष्य मं कौनसी पोस्ट कर रहे हं, परदे के पीछे क्या चल रहा है अकद
अयुसीमा- कोइ सीमा नहं
ऄनुभव- हहन्दी ब्दलॉग जगत मं लंबा ऄनुभव, हचिाकारं के बीच ऄच्छी पैठ, स्पष्ट छहव।
वेतन- योग्यतानुसार
अवेदन करने की कोइ ऄंहतम हतहथ हनधाथट्टरत नहं की गइ है।

अशीष खण्डेलवाल
हहन्दी ब्दलॉग ट्टटप्स : http://tips-hindi.blogspot.com/

36
“haya” ¹ khtI sauK kao baaya

पहले मनवा सोच ले, आतनी बुरी है हाय ||


कफ़र मुख से कछु बोल | हाय से भारी पत्थर फू टे,
हनज पर डाट्टर के देहख ले, हाय से हमलती पीर |
मन के तराजू तोल || सुख से दुःख की ओर तू जाता,
पलटाए तकदीर ||
जो बात कहे औरन के हलए,
ये बात क्या तुझको भाय ? दुकमन से तू भाग सके है,
कफ़र तू क्यूँ बोले, पर दुःख तोले, 'हाय' से कै से भागे ?
लेता है क्यं हाय ? अत्म-सरीखी सूक्ष्म है 'हाय',
चलती है तेरे अगे ||
जो बात ककसी के मन को दुखे,
और अंत-अंत जल जाय | सुने भागवत, रामकथा और
दुःख भरे मन से जलती अंत से, कदया न थोड़ा ध्यान |
हरदम हनकले हाय || कमथ मं न अया-मन ना समाया,
रह गया कोरा ज्ञान ||
बुरी बात कदल ऐसे लागे,
जैसे अग कोइ जल जाय | हनगमागम सब शास्त्र बताए,
जलते हं जैसे भानु-कृ शानु, कहते वेद पुराण |
दावानल लग जाय || कहे भागवत तुलसी रामायण,
गीता और कु रान ||
बुरी बात से मन औ असमां,
क्षत-हवक्षत हो जाय | सबने यही एक बात बताइ,
तन को डॉक्टर जोड़ सके पर एक बताया सार |
मन कोइ जोड़ ना पाय || सुख देकर के दुःख को ले लो,
दुःख से दुःख का भार ||
कहके ना सोचो, सोच के बोलो,
मत लो ककसी की हाय | शोभा सारड़ा
बाय-बाय कर सुख को भगाता, www.shobhapoem.blogspot.com
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baIbaI saaqa maoM ifr kOsaa
अज शाम भर सोचता रहा कक ककस रस मं रचना हलखूँ.
हवचार कइ ईठे और खाट्टरज होते गये. ऄहधकतर क्या
लगभग सभी का कारण था कक बीबी साथ मं है.

देहखये, सोचा हवरह गीत हलखूँ मगर कै से-बीबी साथ मं है


कफर कै सा हवरह और ककसका हवरह. ऄतः खाट्टरज.

कफर हवचार बना कक वीर रस-मगर कफर वही, बीबी साथ


मं है तो काहे के वीर. बीबी के सामने तो ऄच्छे ऄच्छे पीर
चाँद गर रुसवा हो जाये तो कफर क्या होगा
तक वीर नहं हो पाये तो हम क्या हंगे. ऄतः खाट्टरज.
रात थक कर सो जाये तो कफर क्या होगा|

ऄब सोचा, प्रेम गीत-मगर बीबी साथ मं है. हमयां बीबी मे


यूँ मं लबं पर, मुस्कान हलए कफरता हूँ
प्रेम तो एक ऄनुभुहत है, एक कदव्य ऄहसास है, एक साझा
अँख ही मेरी रो जाये तो कफर क्या होगा|
है-प्रेम तो आसका एक ऄंग है और एक ऄंग पर क्या
हलखना. हलखो तो संपूणथ हलखो वरना खाट्टरज. ऄतः
खाट्टरज. यं तो हमल कर रहता हूँ सबके साथ मं
नफरत ऄगर कोइ बो जाये तो कफर क्या होगा|

कफर रहा श्रृंगार रस तो बीबी साथ मं है और वो चमेली


का तेल लगाती नहं कफर कै से होगा पूणथ श्रृंगार. ऄपूणथ पर कहने मं हनकला हूँ हाल ए कदल ऄपना

क्या रचूँ. ऄतः यह भी खाट्टरज. ऄल्फाज़ कहं खो जाये तो कफर क्या होगा|

बच रहा हास्य रस- तो बीबी साथ हो या न हो. मगर यहाँ ककस्मत की लकीरं हं हाथं मं जो ऄपने

ब्दलॉग पर हंसना मना है. यह हा हा ठी ठी ठीक नहं वो अंसू ईन्हं धो जाये तो कफर क्या होगा|

भी जब बीबी साथ मं हो तो गंभीर रहने की सलाह है.


ऄतः खाट्टरज. बहुत ऄरमां से बनाया था अहशयां ऄपना
बंट टुकड़े मं दो जाये तो कफर क्या होगा|

ऄब क्या करुँ . कइ हवचारं के बाद नये रस ’टंशन रस’ की


रचना बन पाइ याहन ककसी भी चीज से बेवजह परेशान. ये ईड़ के चला तो है घर जाने को ’समीर’
ऐसा होगा तो कफर क्या होगा. वैसा होगा तो कफर क्या हवा ये पहश्चम को जाये तो कफर क्या होगा|
होगा. आस तरह की फोकट टंशन मं जीने वाले बहुत से हं.
आस तरह जीना भी एक कला ही कहलाइ और जो हजये, समीर लाल
वो कलाकार. तो ऐसे सभी कलकारं को प्रणाम करते हुए http://udantashtari.blogspot.com
सादर समर्षपत:
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ij,andgaI @yaa jaMga sao kma hO ¹ laGaukqaa

ईसकी मां अइ.सी.यू मं भती थी। वह और अतंक अतंक की बात करते हं तो पर यह घर का अतंक
ईसका चाचा बाहर टहल रहे थे। ईसने चाचा से पूछा- कौन खत्म करेगा? गरीब और कमजोर अदमी का आज्जत
‘चाचाजी, अपको क्या लगता है कक पाककस्तान से से जीना मुहककल हो गया है और बात करते हं कक बाहर से
भारत की जंग होगी।’ अतंक अ रहा है।
चाचा ने कहा-‘पता नहं! ऄभी तो हम दोनं यह जंग वह दवायं लेकर वापस लौटा। ईसने ऄपनी दवायं नसथ को
लड़ ही रहे हं।' दी। वह ऄंदर चली गयी तो ईसने ऄपने चाचा को बताया
आतने मं नसथ बाहर अयी और बोली-‘तीन नंबर के कक एक हजार की दवायं अयं हं। ईसने चाचा से कहा-
मरीज को देखने वाले अप ही लोग हं न! जाकर यह ‘चाचाजी, यहां अते अते पंद्रह सौ रुपये खचथ हो गये हं।
दवायं ले अइये।’ ऄगर कु छ पैसे जरूरत पड़ी तो अप दे दंगे न! बाद मं मं
युवक ने पूछा-‘‘अप ने ऄंदर कोइ दवाइ दी है क्या?’ अपको दे दूंगा।’
नसथ ने कहा-‘ नहं! ऄभी तो चेकऄप कर रहे हं। ईनके चाचा ने हंसकर कहा-‘ऄगर मुझे मूंह फे रना होता तो यहां
कु छ और चेकऄप होने हं जो अप जाकर बाहर करायं। खड़ा ही क्यं रहता? तुम चाहो तो ऄभी पैसे ले लो। बाद
हमारी मशीनं खराब पड़ं हं। ऄभी यह दवायं अप ले मं देना। तुम्हारी मां ने मुझे देवर नहं बेटे की तरह पाला
अयं। है। ईसकी मेरे उपर भी ईतनी ही हजम्मेदारी है हजतनी
तुम्हारी।’
लड़का दवा लेने चला गया। रास्ते मं एक फलं का ठे ला आतने मं वही नसथ वहां अयी और एक पचाथ ईसके हाथ मं
देखा और ऄपनी मां के हलये पपीता खरीदने के हलये थमाते हुए बोली-‘डाक्टर साहब बोल रहे हं यह आं जेक्शन
वहां रुक गया। ईसी समय दो लड़के वहां अये और ईस जल्दी ले अओ।’
ठे ले से कु छ सेव ईठाकर चलते बने। युवक वह आं जेक्शन ले अया और कफर चाचा से बोला-
ठे ले वाला हचल्लाया-‘ऄरे, पैसे तो देते जाओ।’ ‘मेडीकल वाले मं बताया कक यह आं जेक्शन तो ऄक्सर
ईन लड़कं मं एक लड़के ने कहा-‘ऄबे ओए, तू हमं मरीजं को लगता है। वह यह भी बता रहा था कक आन
जानता नहं। ऄभी हाल जाकर ढेर सारे दोस्त ले अयंगे ऄस्पताल वालं को ऐसे ही आं जेक्शन हमलते हं पर यह
तो पूरा ठे ला लूट लंगे।’ कभी मरीज को नहं लगाते बहल्क बाजार मं बेचकर पैसा
ठे ले वाले ने कहा-‘ढंग से बात करो। मं भी पढ़ा हलखा बचाते हं।'
हूं। आधर अकर पैसे दो।’ चाचा ने कहा-‘हां, यह तो अम बात है। सावथजहनक
ईनमं एक लड़का अया और ईसके गाल पर थप्पड़ जड़ ऄस्पताल तो ऄब नाम को रह गये हं। वह दवाइयां क्या
कदया। वह ठे ले वाला सकते मं अया और लड़के वहां से डाक्टर ही देखने वाला हमल जाये वही बहुत है।’
चलते बने।’ वह कम से कम तीन बार दवाइयां ले अया। धीरे धीरे
ठे ले वाला गाहलयां देता रहा। कफर पपीता तौलकर ईस ईसकी मां ठीक होती गयी। एक कदन ईसे ऄस्पताल से छु िी
युवक से बोला-‘साहब, क्या लड़ेगा यह देश ककसी से। हमल गयी। बाद मं वह युवक बाजार मं ऄपने सड़क पर

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सामान बेचने के ट्टठकाने पर पहुंचा। ईसने ऄभी ऄपना
सामान लगाया ही था कक हफ्ता लेने वाला अ गया। युवक
iganatI ij,andgaI kI
ने ईससे कहा-‘यार, मां की तहबयत खराब थी। कल ही
ईनको अइ.सी.यू. से वापस ले अया। तुम कल अकर
ऄपना पैसा ले जाना।’ बच्चोे थे तो टॉकफयाँ हगना करते थे,
हफ्ता वसूलने वाले ने कहा-‘ओए, हमारा तेरी समस्या से थोड़े बड़े हुए तो दोस्त हगना करते थे,
कोइ मतलब नहं है। हम कोइ ईधार नहं वसूल नहं कर
रहे। हमारी वजह से तो तू यहां यह ऄपनी गुमटी लगा स्कू ल पहुंचे तो हाथं पर छहड़याँ हगना करते थे,
पाता है।’ कॉलेज अए तो माक्सथ हगना करते थे,
युवक ने हंसकर कहा-‘भाइ, जमीन तो सरकारी है।’
हफ् ््ता वसूलने वाले ने कहा-‘कफर कदखाउं कक कै से यह थोड़े और बड़े हुए तो गलथ-फ्रेंड्स हगना करते थे,
जमीन सरकारी है।’ नौकरी लगी तो तरकक्कयां हगना करते थे,
युवक ने कहा-‘ऄच्छा बाद मं ले जाना। कम से कम आतना
तो हलहाज करो कक मंने ऄपनी मां की सेवा की और आस शादी हुइ तो बच्चोे हगना करते थे,
कारण यहां मेरी कमाइ चली गयी।’ फै क्ट्री लगाइ तो रूपए हगना करते थे,
हफ्ता वसूली करने वाले ने कहा-‘आससे हमं क्या? हमं तो
बस ऄपने पैसे से काम है? ठीक है मं कल अउंगा। याद दादा बने तो पोते हगना करते थे,
रखना हमं पैसे से मतलब हं तेरी समस्या से नहं। ’ अज जा रहे हं आस दुहनया से

वह हफ्तावसूली वाला मुड़ा तो ईसी समय एक जूलूस अ और साँसे हगनने की घड़ी अ गइ है..
रहा था। जुलूस मं लोग देश भहक्त जाग्रत करने के हलये सोच रहा है क्या हसफ़थ हगनते हगनते ही हज़न्दगी हनकाल दी ?
अतंक हवरोधी तहख्तयां हलये हुए थे। ईसमं ईसे वह दो काश कभी आन ईँ गहलयं पर ईसका नाम भी हगना होता
लड़के भी कदखाइ कदये हजन्हंने फल वाले के सेव लूटकर हजसने यह हगनती बनाइ है,
ईसको थप्पड़ भी मारी थी। ईन्हंने हफ्ता वसूल करने वाले
को देखा तो बाहर हनकल अये और ईससे हाथ हमलाया।’ ऄब क्या फायदा ?
ईसके हनकलने पर युवक के पास गुमटी लगाने वाले दूसरे क्या फायदा ऄब सोचने से ?
युवक ने कहा-‘यार, तेरे को क्या लगता है जंग होगी?’ साँसं का दामन तो छू ट रहा है ....
पहले युवक ने असमान की तरफ देखा और कहा-‘ऄभी और साथ-साथ दो अंसुओं की कीमत भी हगन रहा है...

हम लोगं के हलये यह हिजदगी क्या जंग से कम है?’


प्रतीक माहेश्वरी
दीपक राज कु करे जा 'भारतदीप' www.bitspratik.blogspot.com
दीपक भारतदीप की इ-पहत्रका-
http://dpkraj.wordpress.com/

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GaasaIrama maassaaba kI ij,andgaI ka ek idna

अज नल अने का कदन है....घासीराम मास्साब की कसरत माँ.... हे शारदे माँ" हैड मास्टर ने पुनः घूरा कक गला जरा
का कदन | पूरी टंकी भरने के हलए डेढ़ सौ बाल्टी भरकर कम फाड़ो | मास्साब ने टप्प से मुंह बंद कर हलया | हसफथ
उपर दूसरी मंहजल पर लाना कोइ हजम जाने से कम है हंठ हहलते रहे | प्राथथना ख़तम हुइ....बच्चोे लाआन बनाकर
क्या ? हाँ...ये ऄलग बात है की आस कसरत से घासीराम कक्षाओं की ओर चल पड़े | दस कदम तक लाआन चली कफर
मास्साब के दाहहने हाथ की मसल तो सौहलड बन गयी पर हचल्ल पं करते झुंड ही झुंड नजर अने लगे | ऄब ककसी
बायाँ हाथ बेचारा मरहघल्ला सा ही है | सो ऄब मास्साब मास्टर के बाप के बस की नहं है की आन होनहारं की
फु ल बांह की बुशटथ ही पहनते हं | पांच बजे से बाल्टी लाआन दुबारा बनवा दे |
चढ़ानी शुरू की...ऄब जाके साढ़े छै बजे टंकी अहा..क्या सुहाना दृकय है कक्षा का |
भरी | आस नल के चक्कर मं मास्साब घासीराम मास्साब कु सी पर हबराज
...ककताब खोलते हं कफर बंद कर देते
मंजन कु ल्ला भी न कर पाए....उपर चुके हं | छात्र-छात्राएं भी अकर
हं.... आर्त्ा अलस अ रहा है की मन
से मास्टरनी की चं चं...मास्साब को टाट पट्टियं पर ऄपना स्थान
ही नहं कर रहा पढाने का ! जम्हाइ
ककतने कदन हो गए पानी भरते -भरते पे जम्हाइ...ऄंत मं मास्साब अगे बैठे ग्रहण कर चुके हं | मास्साब ने
पर अज तक सीकढयं पर पानी हगराए बच्चोे से कहते हं.... जम्हाइ लेते हुए बच्चों को पंद्रह
हबना बाल्टी उपर चढ़ाना न सीख पाए | हमहनट का समय कदया है ताकक सब
मास्टरनी को भोर की बेला मं भड़कने मं महारत हाहसल ऄपनी ऄपनी जगह पर बैठ जाएँ | "गोपाल...." मास्साब ने
है | सूरज की ककरणं, ओस की बूँदं, हततली, वगैरह-वगैरह अवाज लगायी | गोपाल कक्षा का मॉहनटर है... अवाज़
.. सुबह को अनंददायक बनाने वाले सारे अआटम हमलकर सुनते ही हाहजरी का रहजस्टर लेकर खड़ा हो गया और
भी मास्टरनी की सुबह को कभी सुहानी न बना पाए | मास्साब की तरफ से हाहजरी लेने लग गया | हाहजरी लेने
मास्टरनी के हचड़हचड़े स्वभाव से खुहशयं को धराशायी भर से गोपाल ऄपने अप को अधा मास्टर समझता है....
होते दो पल नहं लगते | खैर..मास्साब को सात बजे स्कू ल और घासीराम मास्साब का अधा काम कम हो जाता है |
जाना है सो मास्टरनी की चं चं पं पं को दर ककनार करते दोनं प्राणी खुश.. हाहजरी के बाद मास्साब ने घड़ी देखी |
हुए जल्दी जल्दी मंजन करा और चाय गटक कर हनकल साला ऄभी भी अधा घंटा बाकी है | मास्साब बार-बार
पड़े स्कू ल की और|स्कू ल पहुँचते ही मास्साब जल्दी जल्दी सहायक वाचन की ककताब खोलते हं कफर बंद कर देते
लपके मैदान की ओर जहां प्राथथना प्रारंभ हो चुकी है... हं.... आर्त्ा अलस अ रहा है कक मन ही नहं कर रहा
मास्साब ने ऄपने गंजे सर के अजू बाजू के बाल संवारे और पढ़ाने का | जम्हाइ पे जम्हाइ... ऄंत मं मास्साब अगे बैठे
हैड मास्टर के बगल मं खड़े हो गए.... हैड मास्टर ने घूरा बच्चोे से कहते हं...."चलो पढ़ना शुरू करो जोर-जोर से और
की लेट काहे अये हो ? मास्साब ने समझ कर दीन हीन सा जैसे ही दस लाआनं पढ़ लो ऄपने पीछे वाले को दे देना...
मुंह बनाया और हाथ से बाल्टी पकड़ने का आशारा ककया| मुझे कहना न पड़े |" लो जी.... मास्साब ने ऑटो मोड मं
हैड मास्टर ने मुंह हबचका कदया कक ठीक है | घासीराम डाल कदया कक्षा को | ऄब झंझट ख़तम... अधे घंटे तक
मास्साब पूरे वॉल्यूम मं प्राथथना गा रहे हं.... "हे शारदे बच्चोे ही बक बक करते रहंगे | मास्साब ने चकमा पहन

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हलया... एक अध झपकी अ भी गयी तो ऄब सारा करके रख हलए हं | जगन पढ़ रहा है...." चुरकी ने

आं तजाम हो चुका है | मुरकी से कहा....."ऄबे, ऄभी तक ख़तम नहं हुइ तेरी

अगे बैठे खुशीराम ने पढ़ना शुरू ककया "एक थी चुरकी मुरकी |" हो गयी...मास्साब तीसरी बार चल

चुरकी... एक थी मुरकी....|” ख़ुशी राम पढ़ रहा है | रही है | जगन खी-खी कर कदया | मास्साब की चौक

ईसके पीछे बैठा गोपाल ऄपनी बारी के आं तज़ार मं ठु ड्डी तैयार थी..... हनशाना साधकर फं की जगन पर.... जगन

पर हाथ धरे बैठा है | बाकी क्लास क्या करे....? कमला ने सर दायं तरफ झुका हलया | चौक जाकर पड़ी ईषा

सट्टरता की चोटी खोलकर कफर से गूँथ रही है | कलुअ की नाक पर | ईषा हतलहमला गयी.... यूं भी सबसे

बोर हो रहा है सो सबसे पीछे बैठे-बैठे टाट पिी को ही लड़ाकू लड़की ठहरी क्लास की | भं भं करके रोना शुरू

चीथे जा रहा है | कलुअ ने बोर हो हो के टाट पिी कर कदया | ऄब मास्साब घबराए | हसटहपटाते हुए

अधी कर दी है क्लास के पीछे कोने मं टाट पिी की हबट्टटया हबट्टटया करते पहुंचे ईषा के पास |" मं अपकी

सुतहलयं का ढेर लगा है | ढेर भी बड़े काम की हशकायत ऄपने पापा से करुँ गी.... देख लेना | मेरे को

चीज़ है.... ईस पर मजे से बैठा स्कू ल ककर्त्ी लग गयी |" ईषा को बड़े कदनं

का पालतू कु र्त्ा कचरू चुरकी हनशाना साधकर फं की जगन बाद मौका हमला था मास्टर से
पर...जगन ने सर दायं तरफ झुका ईलझने का | वैसे भी क्लास के बच्चों
मुरकी की कहानी सुन रहा है...
हलया ! चौक जाकर पड़ी ईषा की के साथ लड़ लड़के ईकता गयी थी |
संभवतः वही एकमात्र श्रोता है जो
नाक पर ! ईषा हतलहमला गयी मास्साब पूरे जतन से ईषा को मनाने
पढ़ने वाले की मेहनत को सफल बना
रहा है | मं जुट गए हं... ऄभी ईषा के हपताजी

प्रताप बुद्धू सरीखा मास्साब को एकटक देखे अयंगे | पूरा स्कू ल सर पर ईठा लंगे | ईषा का लड़ाकू

जा रहा है....जाने पी.एच.डी. ही कर मारेगा क्या ? स्वभाव ईसके हपता से ही ईसमं ट्रांसफर हुअ है |

ईसकी अँख मास्साब पर से नहं हटती है | ऄचानक वो मास्साब को पसीना अ गया ईषा को मनाते मनाते पर

बगल वाले बजरंग से कहता है... "देखना ऄब सर ईषा सुबक-सुबक के ढेर करे दे रही है | मास्साब ईषा के

लुढ़के गा मास्साब का |" बजरंग जैसे ही मास्साब को अंसू पोछते हं... वहाँ तक तो ठीक है पर ऄब नाक भी

देखता है... दन्न से मास्साब का सर कं धे पर लुढ़क जाता पंछनी पड़ रही है | ईषा भी रो-रो के ऄब बोर हुइ |

है | सारी कक्षा जोर से हंसती है | मास्साब चंक कर अंसुओं की अहखरी खेप जैसे ही पूरी हुइ...ईषा के मुंह

जाग गए हं और गुस्से मं हं..."ए प्रताप तू ज्यादा पुटुर से हनकला "एक तो ऄगले हफ्ते हतमाही परीक्षा है ..

पुटुर मत ककया कर | पढ़ने हलखने मं नानी मरती है ईसकी तैयारी भी नहं कर पायी थी उपर से अपने

तेरी....चल खड़ा हो जा " प्रताप हबना देर ककये खड़ा मेरी नाक मं दे दी | ऄब मं क्या करुँ गी ?" मास्साब

हो गया है | बजरंग ईसके पैर मं हचकोटी काटता है | हबना एक भी क्षण की देरी ककये बोले "ऄरे... हबट्टटया तू

मास्साब ऄभी जगे हुए हं और िोहधत भी हं.....एक क्यं हिचता करती है परीक्षाओं की | मं सब देख लूग
ँ ा तू

चौक का टुकड़ा ईठाकर मारते हं बजरंग के सर पर | तो मजे से रह |" ईषा रानी ऄन्दर से भारी प्रसन्न हुईं

बजरंग के सर पर चौक पि से पड़ी | ऄब मास्साब पर प्रत्यक्ष मं ऐसा मुंह बनाया मानो मास्साब पे

ऄपनी सारी चौक ख़तम करंगे....ईन्हंने कइ टुकड़े एहसान पेल रही हं पढ़ाइ न करके | चलो ऄंततः ईषा
प्रकरण समाप्त होता है |

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मास्साब कफर से कु सी पर बैठकर घड़ी देखने संतोषप्रद नंबर हमल जाते हं | ऄच्छे नंबरं के हलए
लग गए हं | ऄब वो प्रतीहक्षत क्षण अ गया है हजसका ककताबं मं सर खपाने की कोइ ज़रुरत नहं पड़ती |
बच्चों और मास्साब दोनं को आं तज़ार था | अहखर घंटी शाम के वक्त मास्टरनी भजन मण्डली के
बज गयी....एक पीट्टरयड ख़तम हुअ | बच्चोे एक दूसरे सकिय सदस्या के रूप मं मंकदर जाती हं...जहां
के उपर चौक और कागज़ वगेरह फं क फं क कर उधम सकियता से ऄच्छे स्वास्थ्यय हेतु हिनदा रस का सेवन
करने मं लग गए हं | मास्साब दूसरा पीट्टरयड लेने के ककया जाता है | आस खाली समय का ईपयोग मास्साब
पहले ऄध्यापक कक्ष मं जाकर थोड़ा सुस्ता रहे हं | अराम फरमाने मं करते हं | अज मास्साब रात की
पढ़ा पढ़ाकर मास्साब का हसर दुःख गया है | आसी नंद भी ऄच्छी प्रकार से लंगे क्यंकक कल नल नहं
प्रकार मास्साब ने कड़ी मेहनत से पढ़ाकर और सुस्ता अएगा | मास्साब के चार बच्चोे हं...हजनमं सबसे छोटा
कर कदन हनकाल कदया है | हिपटू चार साल का है और पूरे समय मास्साब की गोद
चलो... एक कदन की तनखा पक गयी....कहते मं लटका रहता है | बाकी बड़े बड़े हं...मास्साब की
हुए छु िी के बाद मास्साब घर पहुँच गए हं | घर पर ईन्हं कोइ ज़रुरत नहं है | आसी एक घंटे मं मास्साब
सब्दजी का थैला बेताबी से मास्साब का आं तज़ार कर टी.वी. पर समाचार देख लेते हं | मास्टरनी के अने के
रहा है | मास्साब को घर पर गुस्सा होने या खीजने की बाद सीट्टरयलं का ऄंतहीन हसलहसला शुरू हो जाता
सुहवधा प्राप्त नहं है | लगभग ट्टरट्टरयाते हुए मास्टरनी है | खैर मास्साब की हिजदगी का कोइ भी कदन ईठाएंगे
से बोले "ऄरे...जरा सांस तो ले लेने दो | थोड़ा फ्रेेश तो तो हबना ककसी पट्टरवतथन के सेम टू सेम यही कदनचयाथ
हो लूं |" मास्टरनी गुराथइ "सब्दजी लाने मं तुम्हारी सांस देखने को हमलेगी | फकथ के वल आतना है की हजस कदन
रुक जायेगी क्या? और..ये फ्रेेश व्रेश तुम स्कू ल से ही नल नहं अएगा मास्साब को सुबह मं एक घंटा और
होकर क्यं नहं अते हो ? ऄब देर न करो और सोने को हमलेगा |
जाओ...." मास्साब अदेश के पालन मं चल पड़े सब्दजी नोट- ये कहानी पूरी तरह वास्तहवक घटनाओं
लाने | सब्दजी लाकर रखी | मास्टरनी द्वारा बताये गए पर अधाट्टरत है | कु छ जीहवत व्यहक्तओं से आसका
ऄन्य घरेलू कायं को भी कु शलता से पूणथ करने के गहरा सम्बन्ध है | वास्तहवक पात्र भी पढ़कर पूरा
बाद स्कू ल के बच्चोे ट्यूशन पढ़ने अ गए | यही एक घंटा अनंद ले सकं , आस प्रयोजन से पात्रं के नाम पट्टरवर्षतत
ऐसा था जब मास्साब को घर के कामं से मुहक्त कर कदए गए हं |
हमलती थी...ऄरे आसहलए नहं कक मास्साब पढ़ाने मं
व्यस्त हो जाते थे | बहल्क चंद,ू प्रकाश, मनोहर, दीन
दयाल अकद बच्चोे मास्साब के हहस्से का कायथ ख़ुशी
ख़ुशी कर देते थे | ईन्हं कौन सा पढ़ने मं भारी रस
अता था | घर की छत धोकर, मास्साब की लड़ककयं
के हलए बाज़ार से मैहिचग की हिबदी चूड़ी लाकर,
मास्टरनी का धहनया साफ़ करके ही ईन्हं परीक्षा मं पल्लवी हत्रवेदी
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10 pa^[nTr pukar

कल रात मेरे एक दोस्त से मुलाकात हुइ, व्योम भी गरजता है, परमाणु के हिसहनाद से ..
मुलाकात तो बाद मं पहले अँखं 2-4 हुइ, भीरु बच सका है क्या कभी ऄंतनाथद से !
ऄन्दर की ओर धंसी हुइ अँखं मं ऄँधेरा नज़र अ रहा था,
हहड्डयं का ढांचा बदन को चीर के बाहर अ रहा था, हिचगाट्टरयां ईठती हं जब नसं मं हो रक्त सी ..
मंने पूछा, ऐ दोस्त कहाँ गुम हो गए हं तेरे होश, तीन लोक काँपते हं थम जाता है वक्त सा ..
तू तो हबट्स का 10 पॉआं टर हुअ करता था,
प्रोफ्स बाद मं पूछते थे, पहले तू बतलाता था, कदशायं रहम की हभक्षुक बन मागथ बदलने लगती हं ..
L.T.C. मं तेरी प्रश्नं की गूँज गूंजती थी, जब हवजय का स्वप्न हलए कहं दो ऄहक्ष जगती हं ..
बैच की सभी लड़ककयां तेरे अगे-पीछे घूमती थी,
कफर अज तेरा चेहरा क्यं महलन नज़र अ रहा है, कायरं के हलए नहं है धरा का ये रण हवज्ञान ...
सूयथ जहाँ ईदय होता था अज वहां ऄस्त हो रहा है, लोरी नहं बजती यहाँ चीत्कार लेती है प्राण ...
मेरे आन प्रश्नं को सुन वह थोड़ा व्याकु ल हुअ,
पर बड़ी हहम्मत बटोरकर वह कु छ बोलने के काहबल हुअ, आसमं है कू दना तो पहले तहनक थम कर सोच लो ...
वह बोला ...... डर का चील बैठा कहं तो ईतर ईसको नोच लो ...
दोस्त आस दस पॉआं टर के घमंड ने ही मुझे,
आस ऄवस्था मं ला कदया है, भावनाओं की मधुर कली, है नहं हखलती यहाँ ...
मुझे एक हीरो से जीरो बना कदया है, न क्षमा कर पाओगे , न क्षमा हमलती यहाँ ...
10 पॉआं टर के आस घमंड ने, मुझे मेरे दोस्तं से,
दूर ककया है, कफ़र ऄगर गये हं प्राण रण मं तो कोइ हिचता नही ..
हज़न्दगी के आस सफ़र मं तनहा कर कदया है, वीर हो तुम वीर से शौयथ कभी हिचता नहं ...
समय के साथ मेरा घमंड बढ़ता गया,
मुझे ऄपनं से दूर करता गया, तू ही वो वीर है जो ये कमथ युद्ध जीतेगा ..
पर मेरे बुरे समय मं, मं ऄके ला पड़ गया, तेरा एक एक पल सहस्त्रं वसंत सा बीतेगा ...
दस पॉआं टर के आस घमंड ने मुझे बबाथद कर कदया,
मेरा ये सन्देश तुम जूहनयर को पहुंचा देना, वैभव ट्टरखाड़ी
आस घमंड को ईन को ना ऄपनाने देना,
हज़न्दगी मं सफलता पाना कोइ बुरी बात नहं,
कमथण्येवाहधकारास्ते मा फलेषु कदाचन |
पर ईस सफलता के घमंड मं खुद को डु बा लेना नहं .....
मा कमथफलहेतभ
ु म
ूथ ाथ ते संगोस्त्वकमथहण ||
कु णाल सूरज

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ऄब लड़ना होगा

अज कफ़र भारत की संप्रुभता पर अंच है अयी , वो महात्मा


आस बार संसद नहं मुंबइ से धमाकं की अवाज है अयी ।

राज तामस का छाया था,


हम हवश्व शाहन्त के समथथक हं , काली घनेरी रात थी |
क्यूंकक हम गाँधी-नेहरू के वंशज हं । लोथड़ं की तलाश मं,
हमने अिमण करना नहं सीखा है , भूखे हसयारं की टोली थी |
सबको गले लगाकर अगे बढ़ना हमारी परम्परा है । ऐसे हबयाबान मं, अहट, पदचाप,
किकतु क्या हर वक्त ऄहिहसा का राग ऄलापना एक कायरता नहं टेढ़ी भौहं, सीना गर्षवल,
है ? घोर जटाएं, कद लम्बा,
मं कहता हूँ ऄब प्रश्न तो अत्मरक्षा का है , एक छहव ईभरी, कु छ धूहमल |
तो कफ़र क्यूँ सेना के हाथं को बाँध रखा है ? हनभथय हो कमशान मं जा,
एक बार अरपार का युद्ध करना जरूरी है, लगा बैठा वो ऄपना असन,
रोज-रोज मासूमं का मरना क्या ईनकी मजबूरी है ? हबजली कड़की, बादल गरजे,
ना हहला वो ऄपने स्थान से |
जो शासन ऄपने जनता की रक्षा भी न कर सकता है , भूत प्रेत सब दास थे ईसके ,
हर घटना के वक्त के वल दो अंसू बहा सकता है , सर झुका हुकु म बजाते थे,
ईसे शासन मं बने रहने का कोइ ऄहधकार नहं है , चारं तरफ ईसके एक ईजाला,
क्यंकक यह शाहन्त समथथन नहं, के वल दरबारी कायरता है । सीना चीर काली रात का, फै ला था |
ऐसा ही एक ऄघोरी
एक बार कदल्ली ऄब हहम्मत बांधे, कभी कदन मं चलता था,
सीमापार पड़ोसी को चुनौती पकड़ा दे । छू त-ऄछू त सब भाइ थे ईसके ,
ईसे सारे षडयंत्र ऄब बंद करने हंगे, मानो सब से खून का नाता था |
नहं तो घनघोर युद्ध के पट्टरणाम भुगतने हंगे । ईसकी एक पुकार, एक हचत्कार,
अश्वासनं और कागजी योजनाओं से अत्मरक्षा नहं होती , ईथल-पुथल का एक अगार,
आसके हलए कभी-कभी जंगं भी हं लड़नी पड़ती । अज़ादी का घोर हननाद,
ऄब यह शाहन्त का राग ऄलापना बंद करना होगा , हहला गया हर मानस को |
जब तक ईग्रवाद का काम तमाम नहं होगा ,
तब तक ऄब संघषथ हवराम नहं होगा ।
जयंत कु मार

ऄंककत हिसघाहनया

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सार्वक मोहं ती प्रेम शंकर

अपूर्व बापट

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प्रेम शंकर

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हहना जैन, अलोक सोनी, सुमन हतवारी, प्रतीक माहेश्वरी, हनहाट्टरका हिसह, पुष्प सौरभ, सौरभ ककयप
ऊहषके श वैद्य, हनरुपम अनंद, शैलश
े झा, जयंत कु मार, हववेक हद्ववेदी, लोके श राज
ऊहत्वक राज, प्रेम शंकर, हनत्य कु मार शमाथ, राज शेखर, ईज्जवल के जरीवाल

tknaIkI sahyaaoga - ivaSaala ivavaok


AaBaar :
P`aao0 laxmaIkaMt maahoSvarIÊ P`aao0 jaI rGauramaaÊ Da^0 saMgaIta Samaa-Ê saMjaIva kumaar caaOQarIÊ EaI ena vaI maurlaIQar ra^vaÊ
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]dGaaoYaNaa :
vaaNaI ek pirsar pi~ka hOÊ jaao kovala ibaP`aivaaisayaaoM ko ilae P`akaiSat kI jaatI hO. [saka iksaI BaI P`akar sao
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