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राग-संवेदन

[महेदभटनागर]

किवताएँ

1 राग-संवेदन/1
2 ममतव
3 यथाथर
4 लमहा
5 िनरनतरता
6 नही
7 अपेका
8 िचर-वंिचत
9 जीवनत
10 अितचार
11 पूवाभास
12 अवधूत
13 सार-तततव
14 िनषकषर
15 तुलना
16 अनुभूित
17 आहाद
18 आसिकत
19 मंत-मुगध
20 हवा
21 िजजीिवषु
22 राग-संवेदन/2
23 वरदान
24 समृित
25 बहाना
26 दरू वती से
27 बोध
28 शेयस
29 संवेदना
30 दो धुव
31 िवपित-गसत
32 िवजयोतसव
33 हैरानी
34 समता-सवप
35 अपहता
36 दृिष
37 पिरवतरन
38 युगानतर
39 पाथरना
40 पबोध
41 सुखद
42 बदलो
43 बचाव
44 पहल
45 अदुत
46 सवप
47 यथाथरता
48 िखलाड़ी
49 िसफ़त
50 बोध-पािपत
 

(1) राग-संवेदन/1
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सब भूल जाते है ...


केवल
याद रहते है
आतमीयता से िसकत
कुछ कण राग के,
संवेदना अनुभूत
िरशतो की दहकती आग के!
.
आदमी के आदमी से
पीित के समबनध
जीती-भोगती सह-राह के
अनुबनध!
केवल याद आते है!
सदा।
.
जब-तब
बरस जाते
वयथा-बोिझल
िनशा के
जागते एकानत कण मे,
डू बते िनससंग भारी
कलानत मन मे!
अशु बन
पावन!

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(2) ममतव
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न दुलरभ है
न है अनमोल
िमलते ही नही
इहलोक मे, परलोक मे
आँसू .... अनूठे पयार के,
आतमा के
अपार-अगाध अित-िवसतार के!
.
हृदय के घन-गहनतम तीथर से
इनकी उमड़ती है घटा,
और िफर ....
िजस कण
उभरती चेहरे पर
सततव भावो की छटा —
हो उठते सजल
दोनो नयन के कोर,
पोछ लेता अंचरा का छोर!

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(3) यथाथर
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राह का
नही है अंत
चलते रहेगे हम!
.
दरू तक फैला
अँधेरा
नही होगा ज़रा भी कम!
.
िटमिटमाते दीप-से
अहिनरश
जलते रहेगे हम!
.
सासे िमली है
मात िगनती की
अचानक एक िदन
धड़कन हृदय की जायगी थम!
.
समझते-बूझते सब
मृतयु को छलते रहेगे हम!
.
हर चरण पर
मंिज़ले होती कहा है?
िज़नदगी मे
कंकड़ो के ढेर है
मोती कहा है?

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(4) लमहा
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एक लमहा
िसफ़र एक लमहा
एकाएक छीन लेता है
िज़नदगी!
हा, फ़क़त एक लमहा।
.
हर लमहा
अपना गूढ़ अथर रखता है,
अपना एक मुकिममल इितहास
िसरजता है,
बार - बार बजता है।
.
इसिलए ज़ररी है —
हर लमहे को भरपूर िजयो,
जब-तक
कर दे न तुमहारी सता को
चूर - चूर वह।
.
हर लमहा
ख़ामोश िफसलता है
एक-सी नपी रफ़्तार से
अनिगनत हादसो को
अंिकत करता हुआ,
अपने महततव को घोिषत करता हुआ!

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(5) िनरनतरता
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हो िवरत ...
एकानत मे,
जब शानत मन से
भुकत जीवन का
सहज करने िवचारण —
.
झाकता हँू
आतमगत
अपने िवलुपत अतीत मे —
.
िचतावली धुँधली
उभरती है िवशृंखल ... भंग-कम
संगत-असंगत
तारतमय-िवहीन!
.
औचक िफर
सवतः मुड़
लौट आता हँू
उपिसथत काल मे!
जीवन जगत जंजाल मे!

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(6) नही
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लाखो लोगो के बीच


अपिरिचत अजनबी
भला,
कोई कैसे रहे!
.
उमड़ती भीड़ मे
अकेलेपन का दंश
भला,
कोई कैसे सहे!
.
असंखय आवाज़ो के
शोर मे
िकसी से अपनी बात
भला,
कोई कैसे कहे!

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(7) अपेका
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कोई तो हमे चाहे


गाहे-ब-गाहे!
.
िनपट सूनी
अकेली िज़नदगी मे,
गहरे कूप मे बरबस
ढकेली िज़नदगी मे,
िनषुर घात-वार-पहार
झेली िज़नदगी मे,
.
कोई तो हमे चाहे,
सराहे!
.
िकसी की तो िमले
शुभकामना
सदावना!
.
अिभशाप झुलसे लोक मे
सवरत छाये शोक मे
हमददर हो
कोई
कभी तो!
.
तीवर िवदुनमय
दिमत वातावरण मे
बेतहाशा गूँजती जब
ममरवेधी
चीख-आह-कराह,
अितदाह मे जलती
िवधवंिसत िज़नदगी
आबद कारागाह!
.
ऐसे तबाही के कणो मे
चाह जगती है िक
कोई तो हमे चाहे
भले,
गाहे-ब-गाहे!

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(8) िचर-वंिचत
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जीवन - भर
रहा अकेला,
अनदेखा —
सतत उपेिकत
घोर ितरसकृत!
.
जीवन - भर
अपने बलबूते
झंझावातो का रेला
झेला !
जीवन - भर
जस-का-तस
ठहरा रहा झमेला !
.
जीवन - भर
असह दुख - ददर सहा,
नही िकसी से
भूल
शबद एक कहा!
अिभशापो तापो
दहा - दहा!
.
िरसते घावो को
सहलाने वाला
कोई नही िमला —
पल - भर
नही थमी
सर -सर
वृिष - िशला!
.
एकाकी
फाकी धूल
अभावो मे —
घर मे :
नगरो-गावो मे!
यहा - वहा
जाने कहा - कहा!

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(9) जीवनत
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ददर समेटे बैठा हँू!


रे, िकतना-िकतना
दुःख समेटे बैठा हूँ!
बरसो-बरसो का दुख-ददर
समेटे बैठा हूँ!
.
रातो-रातो जागा,
िदन-िदन भर जागा,
सारे जीवन जागा!
तन पर भूरी-भूरी गदर
लपेटे बैठा हूँ!
.
दलदल-दलदल
पाव धँसे है,
गदरन पर, टख़नो पर
नाग कसे है,
काले-काले ज़हरीले
नाग कसे है!
.
शैया पर
आग िबछाए बैठा हँू!
धायँ -धायँ !
दहकाए बैठा हूँ!

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(10) अितचार
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अथरहीन हो जाता है
सहसा
िचर-संबध ं ो का िवशास —
नही, जनम-जनमानतर का िवशास!
अरे, कण-भर मे
िमट जाता है
वषों-वषों का होता घनीभूत
अपनेपन का अहसास!
.
ताश के पतो जैसा
बाध टू टता है जब
मयादा का,
सविनिमरत सीमाओं को
आवेिषत करते िवदुत-पवाह-युकत तार
तब बन जाते है
िनजीव अचानक!
लुपत हो जाती है सीमाएँ ,
छलाग भर-भर फाद जाते है
िसथर पैर,
डगमगाते कापते हुए
िसथर पैर!
भंग हो जाती है
शुद उपासना
किठन िसद साधना!
धमर-िविहत कमर
खोखले हो जाते है,
तथाकिथत सतय पितजाएँ
झुठलाती है।
बेमानी हो जाते है
वचन-वायदे!
और —
पयार बन जाता है
िनपट सवाथर का समानाथरक!
अिभपाय बदल लेती है
वयाखयाएँ
पाप-पुणय की,
छल —
आतमाओं के िमलाप का
नगन सतय मे / यथाथर रप मे
उतर आता है!
संयम के लौह-सतमभ
टू ट ढह जाते है,
िववेक के शहतीर सथान-चयुत हो
ितनके की तरह
डू ब बह जाते है।
.
जब भूकमप वासना का
‘तीवरानुराग’ का
आमूल थरथरा देता है शरीर को,
िहल जाती है मन की
हर पुख़्ता-पुख़्ता चूल!
आदमी
अपने अतीत को, वतरमान को, भिवषय को
जाता है भूल!

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(11) पूवाभास
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बहुत पीछे
छोड़ आये है
पेम-संबधं ो
शतुताओं के
अधजले शव!
.
खामोश है
बरसो, बरसो से
तड़पता / चीखता
दम तोड़ता रव!
.
इस समय तक —
सूख कर अवशेष
खो चुके होगे
हवा मे!
बह चुके होगे
अनिगनत
बािरशो मे!
.
जब से छोड़ आया
लौटा नही;
िफर, आज यह कयो
पेत छाया
सामने मेरे?
.
शायद,
हश अब होना
यही है —
मेरे समूचे
अिसततव का!
.
हर जवालामुखी को
एक िदन
सुपत होना है!
सदा को
लुपत होना है!

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(12) अवधूत
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लोग है —
ऐसी हताशा मे
वयग हो
कर बैठते है
आतम-हतया!
या
खो बैठते है संतुलन
तन का / मन का!
व हो िविकपत
रोते है — अकारण!
हँसते है — अकारण!
.
िकनतु तुम हो
िसथर / सव-सीिमत / मौन / जीिवत / संतुिलत
अभी तक!
.
वसतुतः
िजसने जी िलया संनयास
मरना और जीना
एक है उसके िलए!
िवष हो या अमृत
पीना
एक है उसके िलए!

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(13) सार-तततव
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सकते मे कयो हो,


अरे!
नही आ सकते
जब काम
िकसी के तुम —
कोई कयो आये
पास तुमहारे?
चुप रहो,
सब सहो!
पड़े रहो
मन मारे,
यहा-वहा!
.
कोई सुने
तुमहारे अनुभव,
कोई सुने
तुमहारी गाथा,
नही समय है
पास िकसी के!
िनषफल —
ऐसा करना
आस िकसी से!
.
अचछा हो
सूने कमरे की दीवारो पर
शबदािकत कर दो,
नाना रंगो से
िचतािकत कर दो
अपना मन!
शायद, कोई कभी
पढ़े / गुने !
या
िकसी िरकॉिडरगं -डेक मे
भर दो
अपनी करण कहानी
बख़ुद ज़बानी!
शायद, कोई कभी
सुने !
.
लेिकन
िनिशनत रहो —
कही न फैले दुगरनध
इसिलए तुरनत
लोग तुमहे
गडढ़े मे गाड़ / दफ़न
या
कर समपन दहन
िविधवत्
कर देगे ख़ाक / भसम
ज़रर!
िविधवत्
पूरी कर देगे
आिख़री रसम
ज़रर!

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(14) िनषकषर
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ऊहापोह
(िजतना भी)
ज़ररी है।
िवचार-िवमशर
हो पिरपकव िजतने भी समय मे।
.
तततव-िनणरय के िलए
अिनवायर
मीमासा-समीका / तकर / िवशद िववेचना
पतयेक वािछत कोण से।
.
कयोिक जीवन मे
हुआ जो भी घिटत —
वह िसथर सदा को,
एक भी अवसर नही उपलबध
भूल-सुधार को।
.
समभव नही
िकंिचत बदलना
कृत-िकया को।
.
सतय —
कता और िनणायक
तुमही हो,
पर िनयामक तुम नही।
िनिलरपत हो
पिरणाम या फल से।
(िववशता)
.
िसद है —
जीवन : परीका है किठन
पल-पल परीका है किठन।
.
वीका करो
हर सास िगन-िगन,
जो समक
उसे करो सवीकार
अंगीकार!

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(15) तुलना
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जीवन
कोई पुसतक तो नही
िक िजसे
सोच-समझ कर
योजनाबद ढंग से
िलखा जाए / रचा जाए!
.
उसकी िवषयवसतु को —
.
किमक अधयायो मे
सावधानी से बाटा जाए,
ममरसपशी पसंगो को छाटा जाए!
.
सव-अनुभव से, अभयास से
सुनदर व कलातमक आकार मे
ढाला जाए,
शैिथलय और बोिझलता से बचा कर
चमतकार की चमक मे उजाला जाए!
.
जीवन की कथा
सवतः बनती-िबगड़ती है
ं नही गढ़ती है!
पूवापर संबध
.
कब कया घिटत हो जाए
कब कया बन-सँवर जाए,
कब एक झटके मे
सब िबगड़ जाए!
.
जीवन के कथा-पवाह मे
कुछ भी पूवर-िनिशत नही,
अपेिकत-अनपेिकत नही,
कोई पूवाभास नही,
आयास-पयास नही!
ख़ूब सोची-समझी
शतरंज की चाले
दिू षत संगणक की तरह
चलने लगती है,
िनयंतक को ही
छलने लगती है
जीती बाज़ी
हार मे बदलने लगती है!
.
या अचानक
अदृशय हुआ वतरमान
पुनः उसी तरतीब से
उतर आता है
भूकमप के पिरणाम की तरह!
अपने पूवरवत् रप-नाम की तरह!

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(16) अनुभूित
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जीवन-भर
अजीबोगरीब मूखरताएँ
करने के िसवा,
समाज का
थोपा हुआ कज़र
भरने के िसवा,
कया िकया?
.
ग़लितया की
ख़ूब ग़लितया की,
चूके
बार-बार चूके!
.
यो कहे —
िजये;
लेिकन जीने का ढंग
कहा आया?
(ढोग कहा आया!)
और अब सब-कुछ
भंग-रंग
हो जाने के बाद —
दंग हँू,
बेहद दंग हूँ!
िववेक अपंग हूँ!
.
िवशास िकया
लोगो पर,
अंध-िवशास िकया
अपनो पर!
.
और धूतर
साफ़ कर गये सब
घर-बार,
बरबाद कर गये
जीवन का
रप-रंग िसँगार!
.
छद थे, मुखौटे थे,
सतय के िलबास मे
झूठे थे,
अजब ग़ज़ब के थे!
.
िज़नदगी गुज़र जाने के बाद,
नाटक की
फल-पािपत / समािपत के क़रीब,
सलीब पर लटके हुए
सचाई से र-ब-र हुए जब —
अनुभूत हुए
असंखय िवदुत-झटके
तीवर अिगन-कण!
ऐंठते
ददर से आहत
तन-मन!
.
हैरतअंगेज़ है, सब!
सब, अदुत है!
अिसततव कहा है मेरा,
मेरा बुत है!
अब,
पछतावे का कड़वा रस
पीने के िसवा
बचा कया?
.
ज़माने को
न थी, न है
रती-भर
शमर-हया!

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(17) आहाद
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बदली छायी
बदली छायी!
.
िदशा-िदशा मे
िबजली कौधी,
िमटी महकी
सोधी-सोधी!
.
युग-युग
िवरह-िवरस मे
डू बी,
एकाकी
घबरायी
ऊबी,
अपने
िपय जलधर से
िमल कर,
हा, हुई सुहािगन
धनय धरा,
मेघो के रव से
शूनय भरा!
.
वषा आयी
वषा आयी!
उमड़ी
शुभ
घनघोर घटा,
छायी
शयामल दीपत छटा!
.
दुलिहन झूमी
घर-घर घूमी
मनहर सवर मे
कजली गायी!
.
बदली छायी
वषा आयी!

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(18) आसिकत
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भोर होते —
दार वातायन झरोखो से
उचकती-झाकती उड़ती
मधुर चहकार करती
सीधी सरल िचिड़या
जगाती है,
उठाती है मुझे!
.
रात होते
िनकट के पोखरो से
आ-आ
कभी झीगुर; कभी ददर ु र
गा - गा
सुलाते है,
नव-नव सवप-लोको मे
घुमाते है मुझे!
.
िदन भर —
रँग-िबरंगे दृशय-िचतो से
मोह रखता है
अनंग-अनंत नीलाकाश!
.
रात भर —
नभ-पयरक ं पर
रपहले-सविणरम िसतारो की छपी
चादर िबछाए
सोती जयोतसना
िकतना लुभाती है!
अंक मे सोने बुलाती है!
.
ऐसे पयार से
मुँह मोड़ लूँ कैस?

धरा — इतनी मनोहर
छोड़ दँू कैस? े

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(19) मंत-मुगध
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गहन पहेली,
ओ लता — चमेली!
.
अपने
फूलो मे / अंगो मे
इतनी मोहक सुगनध
अरे,
कहा से भर लायी!
.
ओ शेता!
ओ शुभा!
कोमल सुकुमार सहेली!
इतना आकषरक मनहर सौनदयर
कहा से हर लायी!
धर लायी!
.
सुवास यह
बाहर की, अनतर की
तन की, आतमा की
जब-जब
करता हूँ अनुभूत —
भूल जाता हँू
सासािरकता,
अपना अता-पता!
.
कुछ कण को इस दुिनया मे
खो जाता हूँ,
तुमको एकिनष
अिपरत हो जाता हँू!
.
ओ सुवािसका!
ओ अलबेली!
ओ री, लता — चमेली!

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(20) हवा
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ओ िपय
सुख-गंध भरी
मदमत हवा!
मेरी ओर बहो —
हलके-हलके!
.
बरसाओ
मेरे
तन पर, मन पर
शीतल छीटे जल के!
.
ओ पयारी
लहर-लहर लहराती
उनमत हवा!
िनःसंकोच करो
बढ़ कर उषण सपशर
मेरे तन का!
.
ओ, सर-सर सवर भरती
मधुरभािषणी
मुखर हवा!
चुपके-चुपके
मेरे कानो मे
अब तक अनबोला
कोई राज़ कहो
मन का!
.
आओ!
मुझ पर छाओ!
खोल लाज-बंध
आज
आवेिषत हो जाओ,
आजीवन
अनुबिनधत हो जाओ!

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(21) िजजीिवषु
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अचानक
आज जब देखा तुमहे —
कुछ और जीना चाहता हूँ!
.
गुज़र कर
बहुत लमबी किठन सुनसान
जीवन-राह से,
पितपल झुलस कर
िज़नदगी के सतय से
उसके दहकते दाह से,
अचानक
आज जब देखा तुमहे —
कड़वाहट भरी इस िज़नदगी मे
िवष और पीना चाहता हूँ!
कुछ और जीना चाहता हूँ!
.
अभी तक
पेय!
कहा थी तुम?
नील-कुसुम!

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(22) राग-संवेदन / 2
----------------------

तुम —
बजाओ साज़
िदल का,
िज़नदगी का गीत
मै —
गाऊँ!
.
उम यो
ढलती रहे,
उर मे
धड़कती सास यह
चलती रहे!
दोनो हृदय मे
सनेह की बाती लहर
बलती रहे!
जीवनत पाणो मे
परसपर
भावना - संवेदना
पलती रहे!
.
तुम —
सुनाओ
इक कहानी पयार की
मोहक,
सुन िजसे
मै —
चैन से
कुछ कण
िक सो जाऊँ!
ददर सारा भूल कर
मधु-सवप मे
बेिफ़क खो जाऊँ!
.
तुम —
बहाओ पयार-जल की
छलछलाती धार,
चरणो पर तुमहारे
सवगर - वैभव
मै —
झुका लाऊँ!

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(23) वरदान
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याद आता है
तुमहारा पयार!
.
तुमने ही िदया था
एक िदन
मुझको
रपहले रप का संसार!
.
सज गये थे
दार-दार सुदशर
बनदनवार!
.
याद आता है
तुमहारा पयार!
पाणपद उपहार!

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(24) समृित
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याद आते है
तुमहारे सातवना के बोल!
.
आया
टू ट कर
दुभागय के घातक पहारो से
तुमहारे अंक मे
पाने शरण!
.
समवेदना अनुभूित से भर
ओ, मधु बाल!
भाव-िवभोर हो
ततकण
तुमही ने पयार से
मुझको
सहषर िकया वरण!
.
दी िवष भरे आहत हृदय मे
शािनत मधुजा घोल!
खड़ी
अब पास मे मेरे,
िनरखती
दार िहय का खोल!
याद आते है
िपया!
मोहन तुमहारे
सातवना के बोल!

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(25) बहाना
----------------------

याद आता है
तुमहारा रठना!
.
मनुहार-सुख
अनुभूत करने के िलए,
एकरसता-भार से
ऊबे कणो मे
रंग जीवन का
नवीन अपूवर
भरने के िलए!
याद आता है
तुमहारा रठना!
.
जनम-जनमानतर पुरानी
पीित को
िफर-िफर िनखरने के िलए,
इस बहाने
मन-िमलन शुभ दीप
आँगन-दार
धरने के िलए!
याद आता है
तुमहारा रठना!
अपार-अपार भाता है
तुमहारा रागमय
बीते िदनो का रठना!

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(26) दरू वती से
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शेष जीवन
जी सकूँ सुख से
तुमहारी याद
काफ़ी है!
.
कभी
कम हो नही
एहसास जीवन मे
तुमहारा
यह िबछोह-िवषाद
काफ़ी है!
.
तुमहारी भावनाओं की
धरोहर को
सहेजा आज-तक
मन मे,
अमरता के िलए
केवल उनही का
सरस गीतो मे
सहज अनुवाद
काफ़ी है!

----------------------
(27) बोध
----------------------

भूल जाओ —
िमले थे हम
कभी!
िचत जो अंिकत हुए
सपने थे
सभी!
.
भूल जाओ —
रंगो को
बहारो को,
देह से : मन से
गुज़रती
कामना-अनुभूत धारो को!
.
भूल जाओ —
हर वयतीत-अतीत को,
गाये-सुनाये
गीत को: संगीत को!

----------------------
(28) शेयस्
----------------------

सृिष मे वरेणय
एक-मात
सनेह-पयार भावना!
मनुषय की
मनुषय-लोक मधय,
सवर जन-समिष मधय
राग-पीित भावना!
.
समसत जीव-जनतु मधय
अशेष हो
मनुषय की दयालुता!
यही
महान शेषतम उपासना!
.
िवश मे
हरेक वयिकत
रात-िदन / सतत
यही करे
पिवत पकषर साधना!
.
वयिकत-वयिकत मे जगे
यही
सरल-तरल अबोध िनषकपट
एकिनष चाहना!

----------------------
(29) संवेदना
----------------------

काश, आँसुओं से मुँह धोया होता,


बीज पेम का मन मे बोया होता,
दुभागयगसत मानवता के िहत मे
अपना सुख, अपना धन खोया होता!

----------------------
(30) दो धुव
----------------------

सपष िवभािजत है
जन-समुदाय —
समथर / असहाय।
है एक ओर —
भष राजनीितक दल
उनके अनुयायी खल,
सुख-सुिवधा-साधन-समपन
पसन।
धन-सवणर से लबालब
आरामतलब / साहब और मुसाहब!
बँगले है / चकले है,
तलघर है / बंकर है,
भोग रहे है
जीवन की तरह-तरह की नेमत,
हैरत है, हैरत!
.
दसू री तरफ़ —
जन है
भूखे-पयासे दुबरल, अभावगसत ... तसत,
अनपढ़,
दिलत असंगिठत,
खेतो - गावो / बाज़ारो - नगरो मे
शमरत,
शोिषत / वंिचत / शंिकत!

----------------------
(31) िवपित-गसत
----------------------

बािरश
थमने का नाम नही लेती,
जल मे डू बे
गावो-क़सबो को
थोड़ा भी
आराम नही देती!
.
सचमुच,
इस बरस तो क़हर ही
टू ट पड़ा है,
देवा, भौचक खामोश
खड़ा है!
.
ढह गया घरौधा
छपपर-टपपर,
बस, असबाब पड़ा है
औंधा!
.
आटा-दाल गया सब बह,
देवा, भूखा रह!
.
इंधन गीला
नही जलेगा चूला,
तैर रहा है चौका
रहा-सहा!
.
घन-घन करते
नभ मे वायुयान
मँडराते
िगदो जैस!े
शायद,
नेता / मंती आये
करने चेहलक़दमी,
उतर-दिकण
पूरब-पिशम
छायी
ग़मी-ग़मी!
.
अफ़सोस
िक बािरश नही थमी!

----------------------
(32) िवजयोतसव
----------------------

एरोडोम पर
िवशेष वायुयान मे
पाटी का
लड़ैता नेता आया है,
.
‘शताबदी’ से
सटेशन पर
कागेस का
चहेता नेता आया है,
.
‘ए-सी एमबेसेडर’ से
सड़क-सड़क,
दल का
जेता नेता आया है,
.
भरने जयकारा,
पुरज़ोर बजाने
िसंगा, डंका, िडंिडम,
पहुँचा
हुरा-हुरा करता
सैकड़ो का हुजूम!
.
पालतू-फालतू बकिरयो का,
शॉल लपेटे सीधी मूखा भेड़ो का,
.
संडमुसंड जंगली वराहो का,
बुज़िदल भयभीत िसयारो का!
.
मे-मे करता
गुरा-गुरा हंुकृित करता
करता हुआँ-हुआँ!
.
िचललाता —
लूट-लूट,
पितपकी को ....
शूट-शूट!
जय का जश मनाता
‘गबबर’ नेता का!

----------------------
(33) हैरानी
----------------------

िकतना ख़ुदग़रज़
हो गया इंसान!
बड़ा ख़ुश है
पाकर तिनक-सा लाभ —
बेच कर ईमान!
.
चंद िसको के िलए
कर आया
शैतान को मतदान,
नही मालूम
‘ख़ुददार’ का मतलब
गट-गट पी रहा अपमान!
.
िरझाने मंितयो को
उनके सामने
कठपुतली बना िनषपाण,
अजनबी-सा दीखता —
आदमी की
खो चुका पहचान!

----------------------
(34) समता-सवप
----------------------

िवश का इितहास
साकी है —
.
अभावो की
धधकती आग मे
जीवन
हवन िजनने िकया,
अनयाय से लड़ते
वयवसथा को बदलते
पीिढ़यो
यौवन
दहन िजनने िकया,
.
वे ही
छले जाते रहे
पतयेक युग मे,
कूर शोषण-चक मे
.
अिवरत
दले जाते रहे
पतयेक युग मे!
.
िवषमता
और ...
बढ़ती गयी,
बढ़ता गया
िवसतार अनतर का!
हुआ धनवान
और साधनभूत,
िनधरन -
और िनधरन,
अथर गौरव हीन,
हतपभ दीन!
.
लेिकन;
िवश का इितहास
साकी है —
.
परसपर
सामयवाही भावना इंसान की
िनिषकय नही होगी,
न मानेगी पराभव!
.
लकय तक पहुँचे िबना
होगी नही िवचिलत,
न भटकेगा / हटेगा
एक कण
अवरद हो लाचार
समता-राह से मानव!

----------------------
(35) अपहता
----------------------

धूतर —
सरल दुबरल को
ठगने
धेखा देने
बैठे है तैयार!
.
धूतर —
लगाये घात,
िछपे
इदर-िगदर
करने गहरे वार!
.
धूतर —
फ़रेबी कपटी
चैकने
करने छीना-झपटी,
लूट-मार
हाथ-सफ़ाई
चतुराई
या
सीधे मुिष-पहार!
.
धूतर —
हड़पने धन-दौलत
पुरखो की वैध िवरासत
हिथयाने माल-टाल
कर दिू षत बुिद-पयोग!
.
धृष,
दुःसाहसी,
िनडर!
बना रहे
छद लेख-पलेख!
चमतकार!
िविचत चमतकार!

----------------------
(36) दृिष
----------------------
जीवन के किठन संघषर मे
हारो हुओ!
हर क़दम
दुभागय के मारो हुओ!
असहाय बन
रोओ नही,
गहरा अँधेरा है,
चेतना खोओ नही!
.
पराजय को
िवजय की सूिचका समझो,
अँधेरे को
सूरज के उदय की भूिमका समझो!
.
िवशास का यह बाध
फूटे नही!
नये युग का सपन यह
टू टे नही!
भावना की डोर यह
छू टे नही!

----------------------
(37) पिरवतरन
----------------------

मौसम
िकतना बदल गया!
सब ओर िक िदखता
नया-नया!
.
सपना —
जो देखा था
साकार हुआ,
अपने जीवन पर
अपनी िक़समत पर
अपना अिधकार हुआ!
.
समता का
बोया था जो बीज-मंत
पनपा, छतनार हुआ!
सामािजक-आिथरक
नयी वयवसथा का आधार बना!
.
शोिषत-पीिड़त जन-जन जागा,
नवयुग का छिवकार बना!
सामय-भाव के नारो से
नभ-मंडल दहल गया!
मौसम
िकतना बदल गया!

----------------------
(38) युगानतर
----------------------

अब तो
धरती अपनी,
अपना आकाश है!
.
सूयर उगा
लो
फैला सवरत
पकाश है!
.
सवाधीन रहेगे
सदा-सदा
पूरा िवशास है!
.
मानव-िवकास का चक
न पीछे मुड़ता
साकी इितहास है!
.
यह
पयोग-िसद
ततव-जान
हमारे पास है!

----------------------
(39) पाथरना
----------------------

सूरज,
ओ, दहकते लाल सूरज!
.
बुझे
मेरे हृदय मे
िज़नदगी की आग
भर दो!
.
थके िनिषकय
तन को
सफूितर दे
गितमान कर दो!
.
सुनहरी धूप से,
आलोक से —
पिरवयापत
िहम / तम तोम
हर लो!
.
सूरज,
ओ लहकते लाल सूरज!

----------------------
(40) पबोध
----------------------

नही िनराश / न ही हताश!


.
सतय है —
गये पयत वयथर सब
नही हुआ सफल,
िकनतु हँू नही
तिनक िवकल!
.
बार-बार
हार के पहार
शिकत-सोत हो,
कमर मे पवृत मन
ओज से भरे
सदैव ओत-पोत हो!
.
हो हृदय उमंगमय,
सव-लकय की
रके नही तलाश!
भूल कर
रके नही कभी
अभीष वसतु की तलाश!
हो गये िनराश
तय िवनाश!
हो गये हताश
सवरनाश!

----------------------
(41) सुखद
----------------------

सहधमी / सहकमी
खोज िनकाले है
दरू - दरू से
आस - पास से
और जुड़ गया है
अंग - अंग
सहज
िकनतु / रहसयपूणर ढंग से
अटू ट तारो से,
चारो छोरो से
पके डोरो से!
.
अब कहा अकेला हूँ ?
िकतना िवसतृत हो गया अचानक
पिरवार आज मेरा यह!
जाते - जाते
कैसे बरस पड़ा झर - झर
िवशुद पयार घनेरा यह!
नहलाता आतमा को
गहरे - गहरे!
लहराता मन का
िरकत सरोवर
ओर - छोर
भरे - भरे!

----------------------
(42) बदलो!
----------------------

सड़ती लाशो की
दुगरनध िलए
छू ने
गावो-नगरो के
ओर-छोर
जो हवा चली —
उसका रख़ बदलो!
.
ज़हरीली गैसो से
अलकोहल से
लदी-लदी
गावो-नगरो के
नभ-मंडल पर
जो हवा चली
उससे सँभलो!
उसका रख़ बदलो!

----------------------
(43) बचाव
----------------------

कैसी चली हवा!


.
हर कोई
केवल
िहत अपना
सोचे,
औरो का िहससा
हड़पे,
कोई चाहे िकतना
तड़पे!
घर भरने अपना
औरो की
बोटी-बोटी काटे
नोचे!
.
इस
संकामक सामािजक
बीमारी की
कया कोई नही दवा?
कैसी चली हवा!

----------------------
(44) पहल
----------------------

घबराए
डरे-सताए
मोहललो मे / नगरो मे / देशो मे
यिद —
सब और सुकून की
बहती
सौमय-धारा चािहए,
आदमी-आदमी के बीच पनपता
यिद —
पेम-बंध गहरा भाईचारा चािहए,
.
तो —
िववेकशूनय अंध-िवशासो की
कनदराओं मे
अटके-भटके
आदमी को
इंसान नया बनना होगा।
युगानुरप
नया समाज-शासत
िवरचना होगा!
.
तमाम
खोखले अपासंिगक
मज़हबी उसूलो को,
आडमबरो को
तयाग कर
वैजािनक िवचार-भूिम पर
नयी उनत मानव-संसकृित को
गढ़ना होगा।
अिभनव आलोक मे
पूणर िनषा से
नयी िदशा मे
बढ़ना होगा!
.
इंसानी िरशतो को
सवोचच मान कर
सहज सवाभािवक रप मे
ढलना होगा,
सथायी शािनत-राह पर
आशसत भाव से
अिवराम अथक
चलना होगा!
.
किलपत िदवय शिकत के सथान पर
‘मनुजता अमर सतय’
कहना होगा!
समपूणर िवश को
पिरवार एक
जान कर , मान कर
परसपर मेल-िमलाप से
रहना होगा!
.
वतरमान की चुनौितयो से
जूझते हुए
जीवन वासतव को
चुनना होगा!
हर मनुषय की
राग-भावना, िवचारणा को
गुनना-सुनना होगा!

----------------------
(45) अदुत
----------------------

आदमी —
अपने से पृथक धमर वाले
आदमी को
पेम-भाव से — लगाव से
कयो नही देखता?
उसे ग़ैर मानता है,
अक़्सर उससे वैर ठानता है!
अवसर िमलते ही
अरे, ज़रा भी नही िझझकता
देने कष,
चाहता है देखना उसे
जड-मूल-नष!
.
देख कर उसे
तनाव मे
आ जाता है,
सवरत
दुभाव पभाव
घना छा जाता है!
.
ऐसा कयो होता है?
कयो होता है ऐसा?
.
कैसा है यह आदमी?
गज़ब का
आदमी अरे, कैसा है यह?
ख़ूब अजीबोगरीब मज़हब का
कैसा है यह?
सचमुच,
डरावना बीभतस काल जैसा!
.
जो — अपने से पृथक धमर वाले को
मानता-समझता
केवल ऐसा-वैसा!

----------------------
(46) सवप
----------------------

पागल िसरिफरे
िकसी भटनागर ने
माननीय पधन-मंती ......... की
हतया कर दी,
भून िदया गोली से!!
.
ख़बर फैलते ही
लोगो ने घेर िलया मुझको —
‘भटनागर है,
मारो ... मारो ... साले को!
हतयारा है ... हतयारा है!’
.
मैने उनहे बहुत समझाया
चीख-चीख कर समझाया —
भाई, मै वैसा ‘भटनागर’ नही!
अरे, यह तो फ़कत नाम है मेरा,
उपनाम (सरनेम) नही!
.
मै
‘महेदभटनागर हूँ,
या ‘महेद’ हूँ
भटनागर-वटनागर नही,
भई, कदािप नही!
ज़रा, सोचो-समझो।
.
लेिकन भीड़ सोचती कब है?
तकर सचाई सुनती कब है?
सब टू ट पड़े मुझ पर
और राख कर िदया मेरा घर!!
.
इितहास गवाही दे —
िकन-िकन ने / कब-कब / कहा-कहा
झेली यह िवभीिषका,
यह ज़ुलम सहा?
कब-कब / कहा-कहा
दिरनदगी की ऐसी रौ मे
मानव समाज
हो पथ-भष बहा?
.
वंश हमारा
धमर हमारा
जोड़ा जाता है कयो
नामो से, उपनामो से?
कोई सहज बता दे —
ईसाई हँू या मुिसलम
या िफर िहनद ू हूँ
(कायरसथ एक,
शूद कही का!),स
कहा करे िक
‘नाम है मेरा — महेदभटनागर,
िजसमे न िछपा है वंश, न धमर!’
(न और कोई ममर!)
.
अतः कहना सही नही —
‘कया धरा है नाम मे!’
अथवा
‘जात न पूछो साधु की!’
हे कबीर!
कया कोई मानेगा बात तुमहारी?
आिख़र,
कब मानेगा बात तुमहारी?
.
‘िशिकत’ समाज मे,
‘सभय सुसंसकृत’ समाज मे
आदमी - सुरिकत है िकतना?
आदमी - अरिकत है िकतना?
हे सवरज इलाही,
दे, सतय गवाही!

----------------------
(47) यथाथरता
----------------------

जीवन जीना
दभू र - दुवरह
भारी है!
मानो
दो नावो की
िवकट सवारी है!
.
पैरो के नीचे
िवष - दगध दुधारी आरी है,
कंठ - सटी
अित तीकण कटारी है!
.
गल - फासी है,
हर वक़्त
बदहवासी है!
.
भगदड़ मारामारी है,
ग़ायब
पूरनमासी,
पसरी िसफ़र
घनी अँिधयारी है!
.
जीवन जीना
लाचारी है!
बेहद भारी है!

----------------------
(48) िखलाड़ी
----------------------

दौड़ रहा हँू


िबना रके / अिवशात
िनरनतर दौड़ रहा हूँ!
िदन - रात
रात - िदन
हाफ़ता हुआ
बद-हवास,
जब -तब
िगर -िगर पड़ता
उठता;
धड़-धड़ दौड़ िनकलता!
लगता है —
जीवन - भर
अिवराम दौड़ते रहना
मात िनयित है मेरी!
समयानतर की सीमाओं को
तोड़ता हुआ
अिवरल दौड़ रहा हूँ!
.
िबना िकये होड़ िकसी से
िनपट अकेला,
देखो —
िकस क़दर तेज़ — और तेज़
दौड़ रहा हूँ!
.
तैर रहा हूँ
अिवरत तैर रहा हूँ
िदन - रात
रात - िदन
इधर-उधर
झटकता - पटकता
हाथ - पैर
हारे बग़ैर,
बार - बार
िफचकुरे उगलता
तैर रहा हूँ!
यह ओलिमपक का
ठंडे पानी का तालाब नही,
खलबल खौलते
गरम पानी का
भाप छोड़ता
तालाब है!
िक िजसकी छाती पर
उलटा -पुलटा
िवरद - कम
देखो,
कैसा तैर रहा हँू!
अगल - बगल
और - और
तैराक़ नही है
केवल मै हूँ
मतसय सरीखा
लहराता तैर रहा हँू!
लगता है —
अब, ख़ैर नही
कब पैर जकड़ जाएँ
कब हाथ अकड़ जाएँ।
लेिकन, िफर भी तय है —
तैरता रहंग
ू ा, तैरता रहंग
ू ा!
कयोिक
ख़ूब देखा है मैने
लहरो पर लाशो को
उतराते ... बहते!
.
कूद - कूद कर
लगा रहा हूँ छलाग
ऊँची - लमबी
तमाम छलाग-पर-छलाग!
िदन - रात
रात - िदन
कु ंदक की तरह
उछलता हूँ
बार - बार
घनचकर-सा लौट -लौट
िफर - िफर कूद उछलता हूँ!
.
तोड़ िदये है पूवािभलेख
लगता है —
पैमाने छोटे पड़ जाएंगे!
उठा रहा हूँ बोझ
एक-के-बाद-एक
भारी — और अिधक भारी
और ढो रहा हूँ
यहा - वहा
दरू - दरू तक —
इस कमरे से उस कमरे तक
इस मकान से उस मकान तक
इस गाव-नगर से उस गाव-नगर तक
तपते मरथल से शीतल िहम पर
समतल से पवरत पर!
.
लेिकन
मेरी हुँकृित से
थराता है आकाश - लोक,
मेरी आकृित से
भय खाता है मृतयु-लोक!
तय है
हारेगा हर हृदयाघात,
लुंज पकाघात
अमर आतमा के सममुख!
जीवनत रहूंगा
शमजीवी मै,
जीवन-युकत रहूंगा
उनमुकत रहूंगा!

----------------------
(49) िसफ़त
----------------------

यह
आदमी है —
हर मुसीबत
झेल लेता है!
िवरोधी आँिधयो के
दृढ़ पहारो से,
िवकट िवपरीत धारो से
िनडर बन
खेल लेता है!
.
उसका वेगवान् अित
गितशील जीवन-रथ
कभी रकता नही,
चाहे कही धँस जाय या फँस जाय;
अपने
बुिद-बल से / बाहु -बल से
वह िबना हारे-थके
अिवलमब पार धकेल लेता है!
.
यह
आदमी है / संयमी है
आफ़ते सब झेल लेता है!

----------------------
(50) बोध-पािपत
----------------------

पिरपकव
कड़वे अनुभवो ने ही
बनाया है मुझे!
.
आदमी की कुदताओं ने
सही जीना
िसखाया है मुझे!
िवशासघातो ने
मोह से कर मुकत
भेद जीवन का
बताया है मुझे!
.
ज़माने ने सताया जब
बेइिं तहा,
कावय मे पीड़ा
तभी तो गा सका,
.
ममाहत हुआ
अपने -परायो से
तभी तो ममर
जीवन का / जगत् का
पा सका!

.

रररर-ररर : ररर‌ 2002-2004

ररररररर-रररर : ररर‍ 2005

ररररररर : रररररर ररररररररर रररररररररररररररर, रररररर —


110 06

रररररररर रररररर : 'ररररररररररररर रर ररररर-रररर' [ररर : 3],


‘ररररररररररररर-ररररर’ [ररर : 3] ररर।

रररररर:
(1) रर. ररररररररररररर-रररररर ‘ररर-रररररर’: रररररर
[ररररररररर]
रर. रररररररर रररररर रररररर (ररररररर),
रर. रररररररररर रररररररर (रररररर) ,
रर. रररररररर ररररर (रररर-ररररररररर, रररररर),
रररर. रररररर ररररररर रररररररर)
(2) ‘ररर-रररररर’: रर. ररररररररररररर-रररररर रररररर ररररररर /
रररररररर रररर (रररर)
(3) ‘ररर-रररररर’: रररररररररर रर ररररररररर-ररर रर ररररररर / रर.
रररररररर ररररररररर (रररररर-ररररररररररर)
(4) ररररर रर ररररररर रर ररर ररर ररर — ‘ररर-रररररर’ / रर. रररररररर
ररर ररररर ‘रररररर’ (रररररऱ़रररर )
(5) ‘ररर-रररररर’: रररर-ररररर रर रररर ररररररर / रर. रररररररररर
रररररर (रररर)
(6) ‘ररर-रररररर’ रर रररर-ररर / रर. ररररररररर ररररर (रररररर)
(7) रर-ररररररररररररर रर रर. ररररररररररररर रर ‘ररर-रररररर’ / रर.
रररररर रररररररररर ( ररररर)
(8) ‘ररर-रररररर’: रररररर रर ररररररररर रर रररररररर रर ररररर ररररर
रर रररर / रर. ररररररर ररररर (रररर-ररररररररर, रररररर)

(9) A Critical Explication of Mahendra Bhatnagar's 'Passion and


Compassion'
Dr. Anita myles, Gorakhpur (U.P.)
(10) Mahendra Bhatnagar's 'Passion and Compassion' : 'A Pilgrimage of the
Heart'
Dr. O. P. Mathur, Varanasi (U.P.)
(11) 'Passion and Compassion' : Poetry Blended with Super Sense and
Perception
Mrs. Purnima Ray, Burdwan (W.B.)
(12) Mahendra Bhatnagar's Compassionate Passion in 'Passion and
Compassion'
Dr. Shaleen Kumar Singh, Budaun (U.P.)
(13) 'Passion and Compassion' : A Review
Dr. B. C. Dwivedy, Dhenkanal (Orissa)
(14) Poems That Ever Haunt : ['Passion and Compassion']
Dr. Narendra Sharma 'Kusum', Jaipur (Raj.)

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