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Hello World, ये क्या मजाक है, यही सोच रहे होंगें ना आप | Well मझु से conventional style का preface expect
कर रहे थे क्या ? फिर तो यार माफ करना, conventional तो मैं कभी रहा ही नहीं, अब कै से हो सकता हू|ँ नहीं नहीं ऐसी कोई
बात नहीं है, अब एक computer Programmer से आप क्या expect कर सकते हो| सबसे पहले ही यही सिखाया जाता है कि
कुछ भी शरू ु करो, बोलो Hello World. तो मैं भी शरू ु हो गया |
जितना मैंने पढ़ा है जो मझु े समझ में आया, उसके according, इस page पर author अपने readers से जड़ु ने की शरुु आत
करता है| मैं तो आप सब से यही कहूगँ ा कि वो ही करो वो जो दिल कहे| खदु के ख्वाब खदु ही ना तोड़ो दोस्तों जियो जैसे दिल
करे | दरअसल हम अकसर सही और गलत की लड़ाई में पड़ जाते हैं, पर यहाँ ना कुछ सही है ना ही गलत, जो लोगों के लिए
गलत है वो आपके लिए सही हो सकता है और आपके लिए गलत वो उनके लिए सही|
सही और गलत की लड़ाई है नहीं, वो तो सब हमने ही बना कर रखी है| सब कुछ context based होता है, Result ori-
ented होता है| किसी काम का अजं ाम अच्छा हो तो काम अच्छा, वरना बरु ा| शायद दनि ु या ऐसे ही चलती है| मैं कोई expert
नहीं, आपकी तरह से ही एक आम आदमी हू,ँ मेरे पास अगर कुछ है तो है एक नजरिया| जिससे मैंने दनि ु या देखने की कोशिश की
है| मेरे कुछ खास दोस्तों को हमेशा मेरे नज़रिये से problem रही, और उन्होंने समय समय पर मेरी निंदा या criticism भी किया
है| पर मैं कबीर के दोहे मैं विश्वास रखने वाला इसं ान हूँ :
“निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय।
बिन पानी साबुन बिना, निरमल करै सभ ु ाय।।“
और इसी विश्वास के कारण मैंने उन सब निन्दाओ ं या criticisms को हमेशा एक सधु ार के रूप में लिया और सधु रते सधु रते
यहाँ तक आ पहुचं ा (वैसे शायद अभी भी बहुत कसर बाकी हो कौन जाने )
मझु े आज भी ठीक से याद नहीं पहली बार मैंने कब अपने एहसासों को कागज पे उके रने की कोशिश की थी | सबसे पहले मैंने
जब लिखना शरू ु किया, तो कभी अपनी notebooks के पीछे , कभी books के पीछे , कभी कहाँ तो कभी कहाँ| पर वो कहते हैं
ना शायरी में वज़न बिना दिल पे चोट लगे नहीं आता, बस वैसा कुछ हुआ | लिखते लिखते “कब आठ दस महीने गजु र गए
पता नहीं चला”, ऐसा बोलना ठीक ना होगा, मझु को हर एक गजु रते पल का पता है और बहुत अच्छे से पता है| फुरकत के पल
इतने आसाँ नहीं होते हा हा हा | |लेकिन छोड़िये ये बात, हां तो मैं कह रहा था लिखते हुए काफी वक्त गजु र गया, अपने सभी
कविताएं या शायरियां या फिर जो भी कहिये सिर्फ मझु तक थी और शायद किसी और के दिल तक जो जाने अनजाने मझु से जड़ु ा
तो था |
एक बार ऐसे ही बातों में से बात निकली और मेरे engineering के senior, सन्देश दीक्षित साहब, ने कहा कि यार तमु
blog क्ूँय नहीं लिखते | जब लिख ही रहे हो तो लोगों को पढ़ने दो| उसमें बरु ा क्या है| मेरे पास defend करने को कुछ था ही नहीं
इसलिए Somewhere in Feb 2010 मैंने अपना blog लिखना शरू ु किया| जो उस वक्त तक लिखा था उसको संवारा और
आगे लिखता गया | एक दिन लोके श ने कहा भाई ऐसे कब तक लिखेगा book छपवा, मैं हसं दिया| Book, OMG I never
thought that much far, But I appreciate the fact that there are so many progressive people around me,
Lokesh Purohit is one of them and inceptor of this idea जिसको आप पढ़ रहे हैं| Paper back edition नहीं तो
क्या PDF edition ही सही
“दूर बहुत है मुझसे वो चाँद ये जानता हूँ मैं ,
बस उसकी चाँदनी से जिस्त रोशन करता हूँ मैं”
जिस तरह इस भरी शब में इस ज़मीं को रोशन करने के लिए वो चाँद ही काफी है, बस कुछ वैसे ही इस दिल को धड़काने के
लिए किसी का ख्याल ही काफी है| बस ये दिल धड़कता रहे, साँसों का कारवाँ चलता रहे और एक इसं ान इससे ज़ियादा क्या
चाह सकता है|
मैंने अपने blog पर जो भी लिखा है, लिखता हूँ और लिखगँू ा| वो बस मेरे दिल आइना है, मझु े नहीं पता कि अच्छा है
या बरु ा, सही है या गलत है, पर जो भी है वो दिल का एहसास है| दिल से पढ़िए और अच्छा लगे तो तारीफ कीजिये ना लगे तो
बरु ा कहिये, जिन लोगों ने मेरी बरु ाइयों को दिखाया है उनको बहुत बहुत धन्यवाद| बस ऐसे ही अपने आप को filter करते करते
यहाँ तक आया हूँ और आगे भी जाऊँगा|
आशा करता हूँ 2010 का ये सग्रं ह आपको पसंद आयेगा|
धन्यवाद
आपका दोस्त
आलोक “नरू ”
4th अप्रैल 2011
About Author
What Lokesh says
Long before I heard of Google I knew Alok Choudhary and that was enough. There was
not a single thing in Computer world that you ask him and will not get a answer. Well time
changed, level and type of requirements changed, but my preferent Search Engine remained
same.
An engineer by profession, जाट by built (and birth ), biker by soul, poet by heart,
creative in work, passionate in nature, loves technology, computer wizard by mind, Alok and
his mood is different each day.
How he landed up writing these poems and now a Book? When his blog got updated with a
new poem or shayari each day I was one of those who were least surprised. People close to
him knows when he sticks to one thing will to the end of the world till he discovers there is
another world to be discovered.
Be it Animation, biking, programming, dancing, reading, exercise and now writing
he does it to extreme. So here is the book with first edition (yes there could be many untill he
finds a new world)
About this book, I don’t recommend any of his creations to readers, because these are all
special and close to his heart. All were created not for this book, not for specific audience,
not for money, not for love or hatered to someone or something, not to prove something
but in his words “all of it just occurred to him by some daily inspirations”.
Only purpose of reading this book should be to just read and feel because there is a lot of
scenary in all his creations. One time you are travelling an empty road along side a river,
then you are at a sea shore walking bare foot, one time you are seeing a sunset in a far
desert on a beautiful evening, then you are a prisoner of freedom fighting squad, one time
your love of life is in front of you another chapter takes you on a ride with friends, One
moment you are a college student another moment you are a person working in another
country and missing his homeland very much. I can now enjoy all this sitting comfortably
About Author
at home sipping tea in one hand and scorlling down this e-book.
And before I forget to warn you, there will be atleast one creation in this book which after
reading you will say “Thats the story of my life !” Well thats the story of each and every
one because we all are characters of same big story and a huge star cast.
Happy reading.
Lokesh Purohit
26th Mar 2011
Atul
14th Mar 2011
About Author
सन्देश का ये कहना है :
आलोक चौधरी ‘नरू ’ , एक ऐसा चरित्र जिसने जीवन के कम समय में ही,जगत की हर विधा को पहचाना है! विधा
से मेरा अर्थ किसी कला से नहीं अपितु उन सब एहसासों से है जिन्हें हम जीवन परियन्त महससू करते है ! ‘आलोक’
जो उसके परिजनों द्वारा दिया गया नाम है, वसतु तः प्रकाश को संबोधित करता है, हिदं ी में इस शब्द का प्रयोग बाहरी
प्रकाश के लिए या फिर नेत्रों के लिए किया जाता है ! अगर विश्ले षण किया जाये तो नेत्र ही एक मात्र ऐसी इन्द्री है
जो कला को निरुपित करती है,चाहे वो पेंटिंग हो, लेखन हो या फिर फोटोग्राफी ! मैं अलोक की इस कला यात्रा में
काफी दूर तक हमसफ़र रहा हूँ इसलिए कह सकता हूँ कि जीवन को देखने और समझने का विश्ले षणात्मक जो गणु
अलोक में है काफी दर्ल
ु भ है ! जगत को देख कर लिखना इतना मशु ्किल नहीं जितना की उसको समझकर लिखना
..ये ही फर्क आप आलोक की इस यात्रा में महससू करें गे ! इस अतं र का कारण भी बहुत ही विचित्र है ..जो अलोक
के “तक्खलसु ” में छुपा है ! “नरू ” का शाब्दिक अर्थ तो “अलोक” जैसा ही है लेकिन इसका प्रयोग आतंरिक इन्दिर्यो
के लिए किया जाता है! ये वो आँखें है जो मन के अदं र देखती है, और जिसने मन को देख लिया, हृदय को देख लिया
उसके लिए किसी भी कला को अपनी परखास्था तक पहुचँ ाना बहुत मशु ्किल नहीं होता !
सन्देश
22 मार्च 2011
About Author
कुछ यूँ मिली हो तुम मुझे
कुछ यँू मिली हो तमु मझु ,े
बरसों से मांगी दआ
ु परू ी हुई हो जैसे |
इस कदर खश ु है ज़िन्दगी अब ,
ज़िंदगी से मलु ाक़ात हुई हो जैसे |
खदा
ु का बंदा ज़रूर हू,ँ कोई फ़रिश्ता नहीं,
ना उनके जैसा नसीब ले के घमू ा करता हूँ |
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1. आगाज़े फुरकत = जदा
ु ई की शरुु आत
2. शिकन = सलवटें
3. शरीक = शामिल
4. गोर = कब्र
1. दरकिनार = अलग
2. ख्वाहिश = इच्छा
3. मक
ु ाम = मजि
ं ल
मेरी तो दआ
ु है हर घड़ी, मज़ि
ं ल मिले तझु े तेरी,
कबल ू होगी जब ये दआ
ु , तब ही तझु को मझु पे यकीन होगा |
1. नाज़ = गर्व
2. जानिब = In the direction
3. नज़राना - अर्पण की हुई वस्तु
खदा
ु -भगवान का नाम नहीं,
किसी के दर्द ओ गम से काम नहीं,
पर कहता खदु को इसं ान हूँ |
है खदा
ु भी परे शान जन्नत से,
वो होता है तो होए परे शान,
मैं कहता खदु को इसं ान हूँ |
जब पछ
ू ता है उससे कोई सबब-ऐ-बेखदु ी4,
बस उसका नाम सबको बताता जा रहा है |
सारे रंजो गम भल
ु ा दो आज,
इन रंगों को बना लो हमजोली |
1. कशमकश = उलझन
2. स्याह = काली 3. शब = रात
4. नरू = रोशनी, प्रकाश
तू खश ु रहे हमेशा दआ
ु है खदा
ु से,
तेरे दामन निकले दम, कहाँ दआु करता हूँ |
तेरी खश
ु ी का इन्तेज़ार इस कदर क्ूँ,य
बस ज़रा सी मोहब्बत है, नहीं हम दीवाने खास |
दआ
ु सजी होगी होंठों पर, वो नाम होंगे आप,
जितना भी निभाया आपने, दिल से निभाया साथ |
1. रहगजु र = रास्ता
हद ही कर दी दिल का सफर 19
सच्चा दिलासा
माना की ज़िंदगी में गमों का साया है,
हर घड़ी हर वक़्त नया तूफान आया है,
पर हर तूफान के बाद,
मैने खदु को निखरा पाया है |
साथ नहीं हो तो क्या ‘नरू ’, तमु ्हारा नज़ारा तो नज़र होता है,
सदायें नहीं आती, पर उनकी दआ ु ओ ं में वो ही असर होता है |
कब कहा मिल जाओ, पल-पल तेरी ख़ुशी का इतं ज़ार होता है,
रहते हैं बेचनै से जहान में बस इक तेरे नाम से बसर होता है |
कौन कहता है दूर हो, ख्यालों में तेरा अक्सर आना होता है,
दूर रहकर भी निभाता है वो किसका ऐसा हमसफ़र होता है |
करूँ दआ
ु उसकी खश ु ी के लिए,
शायद तमु को अब ये कबल ू ना हो |
लोग होते हैं इस जहाँ में ऐसे भी,
हमेशा दिल में रहेगें ये अहसास से
पक
ु ार लेना एक बार वापिस तमु मझु ,े
तेरे मन में बस अपना नाम छोड़े जा रहा हूँ |
पछ
ू ू ं किस से, मेरे दिल में कुछ सवाल हैं,
जिन्होंने ला दिया है, मेरे तसव्वुर1 में तूफान
तेरी जदा
ु ई में ये लम्हे , दिन बने,
बनते बनते दिन, महीने, साल हैं बनते |
कोई खश्बू
ु नहीं फै ली है फ़िज़ा में,
साँसों को क्ूँय महका महससू करते हो |
‘नरू ’ खश
ु है वो, रहता सक
ु ू न से कहीं पर ,
मोहब्बत? इस पे ज़िन्दगी गजु ारा करते हो ?
1. आतिश-ऐ-इश्क = इश्क की आग
1. विरह = जदा
ु ई
देती है खशि
ु याँ मानता हूँ मैं,
मगर उससे ज्यादा दर्द क्ूँय देती है |
1.रज़ा = मर्ज़ी
2. तिशनगी= प्यास
3. खता = गलती
1.बेशमु ार = Countless
1. मक
ु म्मल = Complete
चाहे हैं दूर या हैं पास, कौन जाने किस वक्त तक,
वक्त भी आएगा जब आपको मिलेगा उसका साथ |
दआ
ु है ये खदा
ु से वो दिन जल्दी आये,
मिल जाए आपके सनू े सनू े हाथ को उसका हाथ |
मजि
ं ल पा लेना इश्क में,
इश्क में जीत जैसा कहाँ होता है ?
उसके इन्तेज़ार में जी कर देखो,
जान जाओगे मोहब्बत में क्या सरू ु र होता है |
तेरी खश
ु ी के लिए है ये सारी कोशिश,
आँखों में तेरी आसं ंू हों, मझु े मज़ं रू नहीं |
1. इल्म = ज्ञान
2. हिज्र = जदा
ु ई
3. वसले-यार = प्रेमी से मिलन
हमारी उस हसं ी मल
ु ाक़ात पर,
जिंदगी के सबसे खबू सरू त मज़ं र पर लिखते हैं |
खदा
ु जाने, क्यों अश्क निकल पड़ते हैं मेरी आँखों से,
नहीं दर्द मिले, हुआ ये जब उसका ख्याल क्या आया |
पक
ु ारता हूँ तेरा नाम, मैं यँू सरे आम,
मेरी आजादी, या तझु पर लगे बंधनों पर लिखँू |
गल
ु शन था तो तड़पता था, सहरा में मिली तेरी छांव,
याद नहीं,करे होंगें किसी जनम हमने अच्छे कारनामे |
ना मेल ना मल
ु ाक़ात, दिल के कै से बंधन बंध गए तमु से,
खदु बेखबर, क्या बताऊँ तझु ,े खदा
ु के खेल वो ही जाने |
दआ
ु ओ ं से अब तो घर भर चला खदा ु का,
पर मेरे को दआ
ु ओ ं की तादाद अब भी कम लगे |
तेरी खशि
ु यों की फिकर है इतनी,
कि तेरे हर गम से खफा हूँ मैं,
ना तकलीफ दे तझु े कभी ये ज़माना,
तेरे ख़ातिर ज़माने से लड़ जाने को जी चाहता है |
1. दोज़ख = Hell
कौशिक बॉस ने बहुत उड़ाया था, चील कौव्वे और कबतू र बना कर,
अब ट्रिपल एस की क्लास में किसी को कुत्ता बिल्ली तो बनाना था |
बैठना वो कैं टीन में, कोल्ड ड्रिंक दारु जैसे चड़ाते हुए हम सब का,
आलू का कहना हमें तो ले आया, लोके श को भी बंक कराना था
सारा दिन कैं टीन में रहना बैठे, बस टांग खींचना गप्पे हांकना,
शाम होते कहना अबे साला भल ू गए, संजय शर्मा की क्लास जाना था
मिड सैम के आधे घटं े पहले पढ़ना, भागते हुए माथरु को ढूंढना
क्ूँय पढ़ रहे थे अग्रें जी में, माथरु से पहले ट्रांसलेट करवाना था |
वक्त कहाँ रुका था, कभी किसी के लिए, जो हमारे लिए रुकता,
हो गयी मद्दु त उसको बीते हुए, जो कहलाता कॉलेज का ज़माना था |
ये गम,ये जदा
ु ई कुछ भी नहीं जाने जाँ,
इक तेरी खामोशी जो चैन चरु ाए यँू मझु से
कभी तो हो खदा
ु हम पर मेहरबान इतना,
खश
ु हों हम, जदा
ु ई के लम्हे दूर यँू हम से
1. अब्र: Cloud
दश्म
ु नी ही आनी जो मेरे हिस्से ठीक है
पर दोस्तों से खजं र के वार ना खिला
जल जल के ज़ज्बात कोयला बन चक ु े,
कोयले को यँू सल
ु गा कर राख ना बना
This book also featured on my blog. Can be reached through following link:
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