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प्रेरणा जो मन सी चंचल है

प्रेरणा जो चाँदनी सी शीतल है


प्रेरणा जो आत्मसम्मान सी कठोर है
प्रेरणा जो उज्जवल सी ज्योति है
वो यहीं है यहीं कहीं है
Thanks to all my friends and Family, Without their help and
support it was really impossible to finish this task.

Speacial Thanks goes to my editor and reviewer group which


involves Atul, Lokesh, Sandesh, Shikha and Upendra.
Still there are many names who really hate limelight and refused
to publish their name here, credit goes to them as well.

At last thanks to them who supported me with or without their


knowledge.
सूची
Hello World किसने कहा मैं जीता हूँ

कुछ यूँ मिली हो तुम मुझे इश्क में ये होता है

प्यार इश्क और मोहब्बत करता हूँ उसमें, कुछ तो बात होगी


मुझे कुछ समझ लेना निभाओ तो मोहब्बत है
े ़ार
तेरा फै सला और मेरा इंतज ये तुझसे कहना है
कुछ दिल ने कहा इश्क के मायने
मैं कहता खुद को इंसान हूँ जब प्यार किसी से होता है
क्या ख्याल, कै से सवाल ये इत्तेफाक नहीं
तन्हा रास्ते फ़रियाद खुदा से
गहरे रं ग इश्क के तुम ही तुम हो
े ें होली
आज खेलग अब उन्हें भी पता लगा
तेरा प्यार चाहिए आज कुछ अलग लिखते हैं
कशमकश : दूर हूँ या पास अब जाने कहाँ
कोई गुजारिश नहीं इश्क हु आ लगता है
कहते उसे हैं ज़िंदगी मोहब्बत कम लगे
फलसफ़ा-ए-ज़िंदगी तुझमें खुदा पाया
आपका साथ आपकी यादें रास्ते और मिल जायेग ें
चलो अब ना ही सही जब वो ठं डी हवा का झोंका आया
हद ही कर दी उसकी तनहा रात, क्या यूँ ही चलेगी
सच्चा दिलासा किस पर लिखूँ
यादों के फू ल चलो मिल जाएँ इसी बहाने
ये खामोशी और दूरियां कितनी भी करो मोहब्बत कम लगे
क्यूँ इतनी मोहब्बत है निःशब्द हूँ मैं
ये कहानी अधूरी छोड़े जा रहा हूँ तेरा शुक्रिया कर रहा होता
उन्होंने गलत समझा कोई बात नहीं जी चाहता है
यूँ मोहब्बत हो गयी दिल तेरी चाहत कर रहा है
उल्फ़त की उलझन खुशी की बात करते हैं
अब प्यार है तो है जब इश्क मजबूर नज़र आता हो
ज़ज्बा ऐ इश्क देश परदेश - अपने पराये
यूँ किसको मोहब्बत करते हो मंज़र-ऐ-जिंदगी
जीना यूँ इश्क में तुझसे मोहब्बत है
यूँ वो मेरा दोस्त बना कॉलेज का ज़माना
अंतर्मन द् वंद : एक पंथी, एक प् रेमी और एक मित्र तेरे ख्यालों में
ऐ ज़िन्दगी तू क्या चाहती है अनकहे लफ्ज़
मैं कहूँ, कभी तो वो सुन े हर क्षण द् वैतता का रण
तुमसे है गुज़ारिश तेरा मेरा कल, तेरा मेरा आज
ये खता है या वफ़ा एक दीवानी
एक सज़ा है देना ही है अगर
Hello World

Hello World, ये क्या मजाक है, यही सोच रहे होंगें ना आप | Well मझु से conventional style का preface expect
कर रहे थे क्या ? फिर तो यार माफ करना, conventional तो मैं कभी रहा ही नहीं, अब कै से हो सकता हू|ँ नहीं नहीं ऐसी कोई
बात नहीं है, अब एक computer Programmer से आप क्या expect कर सकते हो| सबसे पहले ही यही सिखाया जाता है कि
कुछ भी शरू ु करो, बोलो Hello World. तो मैं भी शरू ु हो गया |
जितना मैंने पढ़ा है जो मझु े समझ में आया, उसके according, इस page पर author अपने readers से जड़ु ने की शरुु आत
करता है| मैं तो आप सब से यही कहूगँ ा कि वो ही करो वो जो दिल कहे| खदु के ख्वाब खदु ही ना तोड़ो दोस्तों जियो जैसे दिल
करे | दरअसल हम अकसर सही और गलत की लड़ाई में पड़ जाते हैं, पर यहाँ ना कुछ सही है ना ही गलत, जो लोगों के लिए
गलत है वो आपके लिए सही हो सकता है और आपके लिए गलत वो उनके लिए सही|
सही और गलत की लड़ाई है नहीं, वो तो सब हमने ही बना कर रखी है| सब कुछ context based होता है, Result ori-
ented होता है| किसी काम का अजं ाम अच्छा हो तो काम अच्छा, वरना बरु ा| शायद दनि ु या ऐसे ही चलती है| मैं कोई expert
नहीं, आपकी तरह से ही एक आम आदमी हू,ँ मेरे पास अगर कुछ है तो है एक नजरिया| जिससे मैंने दनि ु या देखने की कोशिश की
है| मेरे कुछ खास दोस्तों को हमेशा मेरे नज़रिये से problem रही, और उन्होंने समय समय पर मेरी निंदा या criticism भी किया
है| पर मैं कबीर के दोहे मैं विश्वास रखने वाला इसं ान हूँ :
“निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय।
बिन पानी साबुन बिना, निरमल करै सभ ु ाय।।“
और इसी विश्वास के कारण मैंने उन सब निन्दाओ ं या criticisms को हमेशा एक सधु ार के रूप में लिया और सधु रते सधु रते
यहाँ तक आ पहुचं ा (वैसे शायद अभी भी बहुत कसर बाकी हो कौन जाने )
मझु े आज भी ठीक से याद नहीं पहली बार मैंने कब अपने एहसासों को कागज पे उके रने की कोशिश की थी | सबसे पहले मैंने
जब लिखना शरू ु किया, तो कभी अपनी notebooks के पीछे , कभी books के पीछे , कभी कहाँ तो कभी कहाँ| पर वो कहते हैं
ना शायरी में वज़न बिना दिल पे चोट लगे नहीं आता, बस वैसा कुछ हुआ | लिखते लिखते “कब आठ दस महीने गजु र गए
पता नहीं चला”, ऐसा बोलना ठीक ना होगा, मझु को हर एक गजु रते पल का पता है और बहुत अच्छे से पता है| फुरकत के पल
इतने आसाँ नहीं होते हा हा हा | |लेकिन छोड़िये ये बात, हां तो मैं कह रहा था लिखते हुए काफी वक्त गजु र गया, अपने सभी
कविताएं या शायरियां या फिर जो भी कहिये सिर्फ मझु तक थी और शायद किसी और के दिल तक जो जाने अनजाने मझु से जड़ु ा
तो था |
एक बार ऐसे ही बातों में से बात निकली और मेरे engineering के senior, सन्देश दीक्षित साहब, ने कहा कि यार तमु
blog क्ूँय नहीं लिखते | जब लिख ही रहे हो तो लोगों को पढ़ने दो| उसमें बरु ा क्या है| मेरे पास defend करने को कुछ था ही नहीं
इसलिए Somewhere in Feb 2010 मैंने अपना blog लिखना शरू ु किया| जो उस वक्त तक लिखा था उसको संवारा और
आगे लिखता गया | एक दिन लोके श ने कहा भाई ऐसे कब तक लिखेगा book छपवा, मैं हसं दिया| Book, OMG I never
thought that much far, But I appreciate the fact that there are so many progressive people around me,
Lokesh Purohit is one of them and inceptor of this idea जिसको आप पढ़ रहे हैं| Paper back edition नहीं तो
क्या PDF edition ही सही
“दूर बहुत है मुझसे वो चाँद ये जानता हूँ मैं ,
बस उसकी चाँदनी से जिस्त रोशन करता हूँ मैं”
जिस तरह इस भरी शब में इस ज़मीं को रोशन करने के लिए वो चाँद ही काफी है, बस कुछ वैसे ही इस दिल को धड़काने के
लिए किसी का ख्याल ही काफी है| बस ये दिल धड़कता रहे, साँसों का कारवाँ चलता रहे और एक इसं ान इससे ज़ियादा क्या
चाह सकता है|
मैंने अपने blog पर जो भी लिखा है, लिखता हूँ और लिखगँू ा| वो बस मेरे दिल आइना है, मझु े नहीं पता कि अच्छा है
या बरु ा, सही है या गलत है, पर जो भी है वो दिल का एहसास है| दिल से पढ़िए और अच्छा लगे तो तारीफ कीजिये ना लगे तो
बरु ा कहिये, जिन लोगों ने मेरी बरु ाइयों को दिखाया है उनको बहुत बहुत धन्यवाद| बस ऐसे ही अपने आप को filter करते करते
यहाँ तक आया हूँ और आगे भी जाऊँगा|
आशा करता हूँ 2010 का ये सग्रं ह आपको पसंद आयेगा|
धन्यवाद

आपका दोस्त
आलोक “नरू ”
4th अप्रैल 2011
About Author
What Lokesh says
Long before I heard of Google I knew Alok Choudhary and that was enough. There was
not a single thing in Computer world that you ask him and will not get a answer. Well time
changed, level and type of requirements changed, but my preferent Search Engine remained
same.

An engineer by profession, जाट by built (and birth ), biker by soul, poet by heart,
creative in work, passionate in nature, loves technology, computer wizard by mind, Alok and
his mood is different each day.

How he landed up writing these poems and now a Book? When his blog got updated with a
new poem or shayari each day I was one of those who were least surprised. People close to
him knows when he sticks to one thing will to the end of the world till he discovers there is
another world to be discovered.
Be it Animation, biking, programming, dancing, reading, exercise and now writing
he does it to extreme. So here is the book with first edition (yes there could be many untill he
finds a new world)

We disagree on atleast 80% of the issues we discuss. A part of rest 20% we


never discuss are the instances of his life that has inspired his 80% of creations in the book.
Enough of percentages . Point is, my thoughts doesn’t matter on his creations (Poems and
Shayaris some call it )

About this book, I don’t recommend any of his creations to readers, because these are all
special and close to his heart. All were created not for this book, not for specific audience,
not for money, not for love or hatered to someone or something, not to prove something
but in his words “all of it just occurred to him by some daily inspirations”.

Only purpose of reading this book should be to just read and feel because there is a lot of
scenary in all his creations. One time you are travelling an empty road along side a river,
then you are at a sea shore walking bare foot, one time you are seeing a sunset in a far
desert on a beautiful evening, then you are a prisoner of freedom fighting squad, one time
your love of life is in front of you another chapter takes you on a ride with friends, One
moment you are a college student another moment you are a person working in another
country and missing his homeland very much. I can now enjoy all this sitting comfortably

About Author
at home sipping tea in one hand and scorlling down this e-book.

And before I forget to warn you, there will be atleast one creation in this book which after
reading you will say “Thats the story of my life !” Well thats the story of each and every
one because we all are characters of same big story and a huge star cast.

Happy reading.
Lokesh Purohit
26th Mar 2011

What Atul says


I have been with Alok since the childhood and have seen him growing up. The transformation
from a little naughty kid to a sensible, emotional and intelligent human being has been so
subtle that I was left surprised when he started publishing his creations on his blog and
facebook.
He has kept this talent so close to his heart that he always looked a rugged and strong
person from the outside. Who knew that a person who looks so tough from his appearance was
hiding a a soft and delicate heart inside which wept at everything wrong in this world and
wanted to correct that. Since like every other ordinary citizens, like most of us are not capable
of changing all the wrong things around us. He started putting all the pain and suffering of all
the wrongdoings, in his poetry and shayari.
He has been more close to the romantic stuff due to some of the incidents in his life but what
I am in awe of is, his capability and stronghold at various other topics. He is not limited to
only romantic genre. He has also been creating items about the Current Affairs, Folklore and
he has also been writing about the social causes.
I am very grateful to him to allow me to write about him for his first book and I am sure there
are going to be many many books by him and we will see a lot of his talent in future. I hope
you will enjoy his work of art in the forthcoming pages.

Atul
14th Mar 2011

About Author
सन्देश का ये कहना है :
आलोक चौधरी ‘नरू ’ , एक ऐसा चरित्र जिसने जीवन के कम समय में ही,जगत की हर विधा को पहचाना है! विधा
से मेरा अर्थ किसी कला से नहीं अपितु उन सब एहसासों से है जिन्हें हम जीवन परियन्त महससू करते है ! ‘आलोक’
जो उसके परिजनों द्वारा दिया गया नाम है, वसतु तः प्रकाश को संबोधित करता है, हिदं ी में इस शब्द का प्रयोग बाहरी
प्रकाश के लिए या फिर नेत्रों के लिए किया जाता है ! अगर विश्ले षण किया जाये तो नेत्र ही एक मात्र ऐसी इन्द्री है
जो कला को निरुपित करती है,चाहे वो पेंटिंग हो, लेखन हो या फिर फोटोग्राफी ! मैं अलोक की इस कला यात्रा में
काफी दूर तक हमसफ़र रहा हूँ इसलिए कह सकता हूँ कि जीवन को देखने और समझने का विश्ले षणात्मक जो गणु
अलोक में है काफी दर्ल
ु भ है ! जगत को देख कर लिखना इतना मशु ्किल नहीं जितना की उसको समझकर लिखना
..ये ही फर्क आप आलोक की इस यात्रा में महससू करें गे ! इस अतं र का कारण भी बहुत ही विचित्र है ..जो अलोक
के “तक्खलसु ” में छुपा है ! “नरू ” का शाब्दिक अर्थ तो “अलोक” जैसा ही है लेकिन इसका प्रयोग आतंरिक इन्दिर्यो
के लिए किया जाता है! ये वो आँखें है जो मन के अदं र देखती है, और जिसने मन को देख लिया, हृदय को देख लिया
उसके लिए किसी भी कला को अपनी परखास्था तक पहुचँ ाना बहुत मशु ्किल नहीं होता !

अलोक की इस कला यात्रा के पड़ाव पर ढेरों शभु कामनायें !!

दिल-ऐ-हालात को जो कागज पर उके र जाते हो ऐ “नूर”


इनके उजालो में आशिकों की सदियाँ गुजर जायेगी

सन्देश
22 मार्च 2011

About Author
कुछ यूँ मिली हो तुम मुझे
कुछ यँू मिली हो तमु मझु ,े
बरसों से मांगी दआ
ु परू ी हुई हो जैसे |

गिरी हो प्यासी धरती पर ,


बारिश की पहली बँदू हो जैसे |

पतझड़ गजु र जाने के बाद ,


बहार की पहली फिज़ा हो जैसे |

कुछ यँू मिली हो तमु मझु े ,


बरसों से मांगी दआ
ु सच हुई हो जैसे |

मौसम हसीं है ज़िन्दगी का अब ,


बारिश के बाद , चली हवा हो जैसे

खशु बू इस कदर है फिज़ा में ,


गल
ु ाबों का इत्र छिड़का हो जैसे |

कुछ यँू मिली हो तमु मझु े ,


बरसों से मांगी दआ
ु सच हुई हो जैसे |

राहें भी हैं अब इतनी हसीन,


हर मोड़ राहे मजिं ल दिखा रहा हो जैसे |

इस कदर खश ु है ज़िन्दगी अब ,
ज़िंदगी से मलु ाक़ात हुई हो जैसे |

कुछ यँू मिली हो तमु मझु े ,


बरसों से मांगी दआ
ु सच हुई हो जैसे |

कुछ यँ ू मिली हो तुम मुझे दिल का सफर 1


प्यार इश्क और मोहब्बत करता हूँ
आगाज़े फुरकत1 है या फिर अजं ामे इश्क,
हर जानलेवा उस ख़याल से लड़ता हूँ |

चेहरे पर कोई शिकन2 नहीं हमारे ,


तू परे शाँ है, बस इसलिए परे शाँ दिखता हूँ |

तेरे दर्द ओ गम को महससू करता हू,ँ


बस तेरी सलामती की फ़रियाद करता हूँ |

चाहे तेरी ख़ुशी में शरीक3 ना कर मझु ,े


मैं तो गम बांटने की गजु ारिश करता हूँ |

क्यों भल ू जाऊं, दिल से जदाु कर दू,ं


तनू े ना सही, पर मैं तो मोहब्बत करता हूँ |

क्या हुआ ऐसा क्यों हम दूर हो गए


यही सवाल खदु ी से हर पल पछू ा करता हूँ |

चाहें रहे वो हमसे लाखों दूर,


ख़ुशी के करीब हों, ये दआ
ु करता हूँ |

इश्क किया है अब क्या सोचे खदु का,


तेरे हर फै सले को मज़ं रू करता हूँ |

इक तेरे साथ ना होने का दर्द है मझु े


पर इस दर्द से भी मैं मोहब्बत करता हूँ |

ये दर्द बहुत छोटा वाकिफ़ होता है,


जब जब तेरी ख़ुशी से तोला करता हूँ |

खदा
ु का बंदा ज़रूर हू,ँ कोई फ़रिश्ता नहीं,
ना उनके जैसा नसीब ले के घमू ा करता हूँ |

ले ले के ख़त्म कर रहा हूँ सांसें,


कभी कभी तो इनका भी हिसाब करता हूँ |

प्यार इश्क और मोहब्बत करता हू ँ दिल का सफर 2


ना जवाब आया ना ही वो खदु आये
अब गोर4 पे आने कि इल्तजा करता हूँ |

हम तो खो गये तू खश ु रहे, है तू जहाँ भी,


मैं बस तझु े प्यार इश्क और मोहब्बत करता हूँ |

-----------
1. आगाज़े फुरकत = जदा
ु ई की शरुु आत
2. शिकन = सलवटें
3. शरीक = शामिल
4. गोर = कब्र

प्यार इश्क और मोहब्बत करता हू ँ दिल का सफर 3


मुझे कुछ समझ लेना
चले गये तमु हमारी ज़िंदगी से यँू ही,
माना नहीं हमें तमु ने कुछ अपना,
अब जिसे अपना कुछ माना ही ना हो
उसके लिए क्या खश ु होना, क्या गम लेना |

तमु रहो आने वाले कल में खश ु ,


मेरी तो हमेशा यही दआ ु है रब से,
मैं कौन, मेरी हस्ती क्या थी,
खदु को इस सवाल से दरकिनार1 कर लेना

जब जी रही हो तमु कल में,


मझु े अपना बीता कल समझ लेना,
सनू ी सनू ी थी जब तेरी गलियाँ,
आई थी जो उनमें, वो बहार समझ लेना |

तमु ्हारी हर खशु ी के लिए खश


ु हू,ँ
तमु ्हारे हर गम के लिए गमगीन,
तमु को माना था अपना हमने इसलिए,
वरना हमें यँू ही गमगीन ना समझ लेना |

दिलकश सी कोई याद, बिछड़ा कोई दोस्त


अधरू ी सी कोई ख्वाहिश2, अनछुआ सा मक ु ाम3
इन्हें पाओ और बस मेरा निशाँ ना हो कहीं,
जिंदा हूँ तेरी याद में दूर कहीं इतना समझ लेना |

1. दरकिनार = अलग
2. ख्वाहिश = इच्छा
3. मक
ु ाम = मजि
ं ल

मुझे कुछ समझ लेना दिल का सफर 4


तेरा फै सला और मेरा इतं ेज़ार
फ़ै सले पर तेरे शायद तझु को नाज़1 होगा,
पर मेरी तरह तेरा दिल भी बेकरार होगा |

ना बहते होंगें आँसू हर पल हर घड़ी,


पर तेरा दिल थोड़ा तो मायसू सा होगा |

एक दोस्ती की दक्ररार थी हमें जानशीं


पर किसने सोचा तू मझु से ऐसे जदा
ु होगा |

सपनों की तो बिसात ही क्या है,


ऐसा शायद हमने जागते भी ना सोचा होगा

नहीं तकती होंगीं तेरी आँखें रास्ता मेरा,


तेरे दिल को किसी और का इतं ेज़ार होगा |

तमु चलो मजि ं ल की जानिब2 बेधड़क,


तेरे सहारे को, हर मोड़ मेरा साया खड़ा होगा |

इसलिए करता रहूगँ ा मैं कहीं चपु चाप इतं ेज़ार,


तेरी मज़ि
ं ल के बाद, मेरी ज़िन्दगी का सफ़र तय होगा |

आँखों से बरसते सावन को, उसकी हर इक बँदू को,


तेरी तरसती आँखों को, उसके आने का इतं ेज़ार होगा |

कोई समझे इसे कुछ भी, पागलपन, इश्क़ या कुछ और


पर ये तो तेरा अपनी मोहब्बत को एक नज़राना3 होगा |

मेरी तो दआ
ु है हर घड़ी, मज़ि
ं ल मिले तझु े तेरी,
कबल ू होगी जब ये दआ
ु , तब ही तझु को मझु पे यकीन होगा |

तू आज चाहे जो समझे, इस बेक़रार दिल को,


मझु े तेरा नहीं, हमेशा तेरी खश
ु ी का इतं ेज़ार होगा |

1. नाज़ = गर्व
2. जानिब = In the direction
3. नज़राना - अर्पण की हुई वस्तु

तेरा फै सला और मेरा इंतेज़ार दिल का सफर 5


कुछ दिल ने कहा
तेरी आँखें इस दिल को धड़का देतीं है,
तेरी तरफ आई हवा, समाँ महका देतीं है |

बिताए हमने सिर्फ कुछ पल ही साथ थे,


लेकिन वो बातें चेहरे पर हसं ी ला देतीं हैं |

आज तू साथ नहीं, तो क्या हुआ,


जानशीं तेरी ये यादें तो मेरा साथ देतीं हैं |

क्या हम कहें ज़माने से, कौन हो तमु ,


मेरी साँसें, तमु को ज़िंदगी का नाम देतीं हैं |

सारी महफिलें तो बेरंग ही होतीं हैं यहाँ,


तेरे होने के ख़्याल, उनमें रौनकें ला देतीं है |

ये मेरा इन्तेज़ार जाने क्या रंग लाएगा


पर दिलकश यादें, हमें हँसना सीखा देतीं है |

जीते हैं लोग जन्नत की तमन्ना लेकर,


तेरी तम्मानायें मझु े जीना सीखा देतीं है |

कुछ दिल ने कहा दिल का सफर 6


मैं कहता खुद को इस
ं ान हूँ
मैं कहता खदु को इसं ान हू,ँ
खदु दश्म
ु न हूँ इसं ानियत का
पर कहता खदु को इसं ान हू,ँ

छीनता हूँ कितनों के सहु ाग,


उजाड़ता हूँ कितनों की कोख,
पर कहता खदु को इसं ान हूँ |

खदा
ु -भगवान का नाम नहीं,
किसी के दर्द ओ गम से काम नहीं,
पर कहता खदु को इसं ान हूँ |

हर जालिम और बेरहम मैं


हूँ बेईमानी और झठू की दक
ु ान
पर कहता खदु को इसं ान हू.ँ

है खदा
ु भी परे शान जन्नत से,
वो होता है तो होए परे शान,
मैं कहता खदु को इसं ान हूँ |

मैं कहता खुद को इंसान हू ँ दिल का सफर 7


क्या ख्याल, कै से सवाल
दिल में आज ये ख्याल आया,
ना जाने कै से ये अजब सवाल आया |

भरोसा है हमें तमु ्हारी मोहब्बत पे,


पर ना जाने कै सा डर, उभर आया |

क्या होगा अगर, ना लौटे वो,


उन्हें कोई और नज़ारा नज़र आया |

मेरी मोहब्बत फीकी लगी शायद उनको,


जाने कोई और उनको इतना पसदं आया |

ना करो फिकर, ना करो ज़िक्र हमारा,


सोचना हमारे बारे , वक़्त था जो बिताया |

पर क्यों उनके ना होने के ख्याल से,


मैंने खदु ही अपना इश्क बेअसर पाया |

जीते जीते क्यों मझु ,े अपने पास,


यँू फरिश्तों का साया नज़र आया |

अभी हुई थी सहर1, छुआ था रौशनी ने,


क्यों दिन, शाम का सा नकाब2 पहन आया |

मझु में तलाशो शायद इश्क़ मिल जाये,


हो यही चेहरा जिसे तेरा दिल, ढूंढता आया |

आ भी जाओ अब ,ख़त्म करो ये इतं ेज़ार,


तमु से ज्यादा किसी को अपना नहीं पाया |

खड़े है उसी राह पर, करते तमु ्हारा इतं ेज़ार,


ये दूर कौन रहगजु र पे, आता नज़र आया |

तेरे आने का सरू


ु र नहीं तो और क्या है ये,
सहरा सी जिस्त में तेरे आते ही सावन आया |

क्या ख्याल, कैसे सवाल दिल का सफर 8


तन्हा रास्ते
रफ़्ता रफ़्ता1 वक़्त गजु रता जा रहा है,
वो तन्हा इन रास्तों पर चला जा रहा है |

दिल में कुछ यादें और यादों के मज़ं र2 ,


उनमें रहता बस उन्हीं को जीता जा रहा है |

वो जानशीं ही थी उसको सबसे अज़ीज़3,


उसी का खवाबों में दीदार किया जा रहा है |

जब पछ
ू ता है उससे कोई सबब-ऐ-बेखदु ी4,
बस उसका नाम सबको बताता जा रहा है |

हसं ते हैं लोग, जब वो गजु रता गलियों से,


कहते हैं देखो एक और दीवाना जा रहा है |

हमने भी जब देखा उसे, दिल में सोचा,


ये बिन बोले दीवानों की हालत बता रहा है |

जीने के लिए हर साँस ले रहा है वो,


जाने क्यों हर बार बेज़ान होता जा रहा है |

धीरे धीरे बीत रहे हैं ये गिनती के लम्हे,


जी रहा है या फिर मौत के करीब जा रहा है |

जानते है कि गम ही मिलते हैं इश्क़ में,


फिर भी ज़माना, क्यों दीवाना होता जा रहा है |

1. रफ़्ता रफ़्ता = धीरे धीरे


2. मज़ं र = पल,लम्हे, Moments
3. अज़ीज़ = बहुत प्यारा
4. सबब-ऐ-बेखदु ी = बेखदु ी की वज़ह

तन्हा रास्ते दिल का सफर 9


गहरे रंग इश्क के
उदास था मैं, नीरस, थोड़ा उखड़ा उखड़ा था,
जिंदगी को जैसे श्वेत श्याम यगु ने जकड़ा था |

तेरे बिन जिंदगी, जैसे कटी पतंग थी,


ना दिल में उम्मीद, ना ही कोई तरंग थी |

आई जब होली, तो जहाँ को रंगीन,


पर जाने क्ूँय खदु को मैंने बेरंग पाया है |

आते जाते सबने लगाये काया पर रंग,


हसं ी ठिठोली से मन रंगना चाहा है |

न चढ़ पाया कोई रंग इस दिल पर,


दिल उल्फत में कुछ ऐसे रंग के आया है |

ना दिखने वाले इश्क के रंग इतने गहरे होंगें,


तेरी मोहब्बत ने ये आज मझु े समझाया है |

वक्त की बारिश भी धो नहीं पाती, जिनको


पक्के रंगों में मैंने इश्क सबसे ऊपर पाया है |

गहरे रं ग इश्क के दिल का सफर 10


आज खेलेगें होली !!!
ना सोचो अब सोचा तमु ने बहुत,
बस आज हमारे साथ खेलो होली,

मिलो कुछ नये परु ानों दोस्तों से,


साथ ज़रा मिल बैठो करो ठिठोली |

सारे रंजो गम भल
ु ा दो आज,
इन रंगों को बना लो हमजोली |

हम तैयार हैं, रंगे इश्क लेकर


प्यार से पिचकारी है भर ली |

तमु अब चाहे मानो या मानो,


हम आज तो तमु से खेलेगें होली |

आज खेलेगें होली दिल का सफर 11


तेरा प्यार चाहिए
जीते हम सब यहाँ इक ही जिदं गी,
सबको यहाँ एक जानशीं का साथ चाहिए |

माना अके ले आये थे, अके ले जायेगें हम


पर बीच के वक्त, हमें एक हमदम चाहिए |

सनु ो हर सहारे को भी एक सहारा चाहिए,


बहता दरिया हूँ मैं, मझु े भी किनारा चाहिए |

वो कहते है, वो रह लेगें अके ले तन्हा यहाँ


उनके अके लेपन को, मज़ि ं ल का पता चाहिए |

माना उन्हें नहीं है किसी सहारे की ज़रूरत,


उनकी ज़िंदगी को किसी यादों का सहारा चाहिए |

मैं हूँ यहाँ कब से तन्हा, गमु समु अके ला,


मझु े कुछ अनसल ु झे सवालों का सिला चाहिए |

अब कै से पछू ू ँ उनसे, जब वो सनु े ही ना,


उन्हें ना मेरी आवाज़, ना मेरा नज़ारा चाहिए |

बहुत टूटा था, उनकी मोहब्बत ने जान डाली,


मिली जिस्त वापस, उनका एहसान मानना चाहिए |

वो कहें हैं हमसे, क्या आज तक जीते नहीं आए,


क्ूँय तमु ्हे सिर्फ साँस लेने का इक बहाना चाहिए

अब तो आजा ओ जानशीं, मेरी ज़िंदगी में वापस,


और कुछ नहीं तेरी आँखों में, अपना नज़ारा चाहिए |

तेरा प्यार चाहिए दिल का सफर 12


कशमकश1 : दूर हूँ या पास
तेरी दोस्ती से ही, ज़िंदगी में एक सरू
ु र छाया है,
स्याह2 शब3 जैसी जिस्त में, कै सा ये नरू 5 आया है |

अब जाकर मिली है तमु ्हारी दोस्ती की छाँव,


बेरहम वक़्त तो हमेशा से आग बरसता आया है|

डर है कहीं तमु खो ना जाओ जहाँ की भीड़ में


जो एक बार खोया फिर उसको कौन ढूँढ पाया है |

बहुत कुछ बदला, तमु ्हारी मेरी जिदं गी में


वक्त ही नाज़क
ु था, देखो कै से मोड़ पर लाया है |

गर अब कहना ही है, अलविदा तो ये ही सही,


जो होना है, किसने टाला उसे कौन रोक पाया है |

कभी समझा नहीं पाए, जिस आग में जलते हैं,


तमु हो जब परे शाँ, हमने खदु को परे शाँ पाया है |

क्ूँय लगीं है मेरे दिल पर चोट इस क़दर,


बहुत सोचा, दिल आज तक समझ नहीं पाया है |

वो कभी ना था, और ना ही है तमु ्हारा,


शब भर के चाँद को कोई कै से अपना पाया है |

वजह बेवजह बस जिदा ं रहने की कोशिश ही है,


की दिल ने तेरी सिर्फ तेरी राहों को अपनाया है |

तमु ्हारी मजि


ं ल तक साथ चलने का वादा है,
वादे वजहे जिस्त हैं ये शख्स निभाता आया है |

जब पहुचँ ो तमु मजि


ं ल खशि ु याँ तमु को मिले,
दिले नादाँ का क्या, ये तन्हा ही चलता आया है |

1. कशमकश = उलझन
2. स्याह = काली 3. शब = रात
4. नरू = रोशनी, प्रकाश

कशमकश : दूर हू ँ या पास दिल का सफर 13


कोई गुजारिश नहीं
इश्क जिसको दिल जान से करता हूँ
या मौला मिला दे फ़रियाद1 करता हूँ

दर्द उसके महससू होते हैं अपने से,


इसलिए हर पल उसको याद करता हूँ |

आज तक हटा नहीं पाया यादों से,


दिल से जदा
ु करने की कोशिश करता हूँ |

गलत है यँू समझाना सायों के जैसे,


माना कि बस तझु में एतिकाद करता हूँ |

दर्द हैं मेरे भी बस कुछ तेरे जैसे,


नहीं फरिश्ता इसं ानों सा दिल रखता हूँ

इतना प्यार नहीं मझु े मेरे प्यार से ,


जितना प्यार मैं तेरी खशु ी से करता हूँ |

तमु जैसा साथी मिलता है नसीबों से,


कै से मैं तेरे साथ की उम्मीद करता हूँ |

अब तो कम हो चली साँसे हैं जो मेरे हिस्से,


मैं तो बस तेरे जवाब का इन्तेज़ार करता हूँ |

तू खश ु रहे हमेशा दआ
ु है खदा
ु से,
तेरे दामन निकले दम, कहाँ दआु करता हूँ |

1. एतिकाद = भरोसा, विश्वास

कोई गुजारिश नहीं दिल का सफर 14


कहते उसे हैं ज़िंदगी
जिया जिसके साथ चार पल,
लगा जिसके साथ मेरा दिल
कहते उसे हैं ज़िंदगी |

जाने मिल पायें या ना मिल पायें,


ना हो फिर मल ु ाक़ात जिससे,
कहते उसे हैं जिंदगी |

जिया चार पल था, तो क्या हुआ,


कम वक्त ही बिताया मैंने पर,
कहते उसे हैं ज़िंदगी |

जो उसके चहरे पर खेल रही है,


जो मेरी बातों में झलक रही है,
कहते उसे हैं ज़िंदगी |

जो फ़िक्र उसकी बातें में है,


जो मोहब्बत मेरी साँसों में है,
कहते उसे हैं ज़िंदगी |

जो ना रहती है मदं िर-मस्जिद में,


जो धड़कती है जानशीं के दिल में,
कहते उसे हैं ज़िंदगी.

आख ं ें देखी हैं उसकी कभी तमु ने


जो झिलमिलाती है उनमें,
कहते उसे हैं ज़िंदगी |

कहते उसे हैं ज़िंदगी दिल का सफर 15


फलसफ़ा-ए-ज़िंदगी
ये ज़िंदगी है एक बहती नदी,
यही बात है कही कभी अनकही,

मिल जाना है एक दिन,


इस बहती नदी को सागर में कहीं |

सच्चे लगाने वाले ये रिश्ते नाते,


एक पल में झठू े हो जाएगें कभी |

सब कुछ समेटे लेना चाहते हैं बाहों में


जानते हैं एक दिन टूटे के बिखरना यहीं |

फलसफ़ा-ए-ज़िंदगी दिल का सफर 16


आपका साथ आपकी यादें
गजु रते वक़्त के साथ, चले जा रहे लम्हों के साथ,
रहगजु र1 ऐ जिंदगी पे हम चल रहे हैं पास पास |

जीने के क्ूँय बन गए हैं बहाने आप,


अभी अभी की बात कुछ वक्त तो हुआ था साथ |

तेरी खश
ु ी का इन्तेज़ार इस कदर क्ूँ,य
बस ज़रा सी मोहब्बत है, नहीं हम दीवाने खास |

हैं थोड़े पास, शायद हैं थोड़े करीब हम,


उस तलक, जब उसके हाथों में हो आपका हाथ |

हम तब भी ना होंगें अके ले, ना फ़िक्र करे आप,


आपके साथ गज़ु रा वक़्त, रहेगा हमेशा मेरे साथ |

ना कीजिएगा गम कभी, ना ही होइएगा उदास,


उदासी और आपका चेहरा का ना हो कभी साथ |

दआ
ु सजी होगी होंठों पर, वो नाम होंगे आप,
जितना भी निभाया आपने, दिल से निभाया साथ |

1. रहगजु र = रास्ता

आपका साथ आपकी यादें दिल का सफर 17


चलो अब ना ही सही
जिस राह हम चल पड़े, ना गलत, वो ना ही सही,
अब उस रहगजु र पर कोई मोड़ नहीं, ना ही सही |

तमु वो भोली राधा और मैं बैरी श्याम सही,


प्यार था बहुत, पर मिल ना सके , अब ना ही सही |

सौ फरियादें मांगी तो थीं हमने सावन की,


एक बँदू ना पड़ी, बारिश की, चलो ना ही सही |

कोशिश तो बहुत की, तमु को यकीन दिला सकें ,


पर ना आया तमु को एतबार, चलो ना ही सही |

इतं ेज़ार बरसों किया, ज़िंदा रखा तेरी मोहब्बत ने,


मौत ने मझु े ना कुछ पल बक्शा चलो ना ही सही

तनू े रखा ख्याल मेरा इतना, दोस्त समझा मझु ,े


कोई शिकवा नहीं, गर तमु मेरे ना हुए ना ही सही |

जाने क्यों नहीं मड़ु े मेरे रास्ते तेरी ओर पहले,


अब किसी राह की मजि ं ल तमु नहीं अब ना ही सही

खोने के बाद तेरा प्यार, अब क्या बचा मेरे पास


ना भल
ू पायेगा दिल तमु ्हे, ना भल
ू े तो ना ही सही

ना जाने कै सी गज़ु रे गी अब ज़िंदगानी मेरी,


तेरे बिन जिस्ते-मकसद1 नहीं कोई, तो ना ही सही

1. जिस्ते-मकसद = ज़िंदगी का मकसद

चलो अब ना ही सही दिल का सफर 18


हद ही कर दी
माँगा खदा
ु से साथ तेरा, उसने कौनसी मेहरबानी कर दी,
तेरी मोहब्बत दी ही कहाँ, पर जदा
ु ई मेरे नसीब कर दी |

तू एक नेक इसां था, तनू े अपनी ज़िंदगी उसके नाम कर दी,


कौन बेवफा निकला, किसने बेवफ़ाई से तेरी ये हालत कर दी |

मैं भी ना जाने कहाँ था, खदाु ने ये तो नाइसं ाफी कर दी,


भेजना था तेरी ज़िंदगी में पहले, पर उसने भी देर कर दी |

मिलाया तो उसने, देर आए, दरुु स्त आए वाली बात कर दी,


अब मिल के भी ना मिल पाये हम, हमने भी हद कर दी

इश्क किया इसलिए हर घड़ी हमने तमु ्हारे नाम कर दी


तमु करो ना करो, मैंने तो मेरी ज़िंदगी तेरे नाम कर दी |

जल्दी नहीं तेरे आने की, आखिरी साँस तक है इन्तेज़ार


बस मेरी मौत के बाद ना आना, लगेगा बहुत देर कर दी |

लो अब आये हो तमु , अटकी अटकी सांसें भी छूट गयी,


मौत ने आखिर जीती बाज़ी और शिक़स्त मेरे नाम कर दी |

रह जातीं कमबख्त साँसे कुछ देर और, क्या फ़र्क पड़ता,


देख लेते तेरा चेहरा, इस बेवफा ज़िंदगी ने भी हद कर दी |

हद ही कर दी दिल का सफर 19
सच्चा दिलासा
माना की ज़िंदगी में गमों का साया है,
हर घड़ी हर वक़्त नया तूफान आया है,
पर हर तूफान के बाद,
मैने खदु को निखरा पाया है |

ऐसा नहीं है की दर्द नहीं हुआ मझु ,े


हर कदम मशु ्किलों ने बहुत रगड़ा मझु ,े
पर हर मशु ्किल के बाद,
मैने खदु को बेहतर इसं ान पाया है |

जब भी पड़ती थी वक़्त की मार,


दिल में मैने यही दोहराया है,
वो पत्थर क्या संदु र मरू त बन पाया,
जो हथोड़े और छै नी की मार से घबराया है |

सच्चा दिलासा दिल का सफर 20


यादों के फूल
आज मैं फिर परु ाने पलों से मिला,
किताब में रखा वो गल ु ाब फिर से खिला |

हमने तो सिर्फ बातें बंद की थीं,


जदा
ु ई का जाने कै से बना ये सिलसिला |

हमें तो अब भी उतनी ही मोहब्बत है,


किसने कहा इश्क अपने अजं ाम से मिला |

ज़िन्दगी का वो परु ाना हसीं पन्ना खल


ु ा|
मरु झाए इस फू ल को देख दिल ये खिला

बरबस मसु ्कान आ गयी चहरे पर हमारे ,


याद आया कै से था इश्क हुस्न से मिला |

जी तो बहुत चाह की जी लें इन यादों को,


पर इस वक़्त से कब किसको वक़्त मिला |

यादों के फूल दिल का सफर 21


ये खामोशी और दूरियां
ना रहो चपु तमु , यँू ही चपु रहना अपनों का, कहर होता है,
दश्म
ु नों की साज़िश और दोस्तों की चपु ्पी में ज़हर होता है |

साथ नहीं हो तो क्या ‘नरू ’, तमु ्हारा नज़ारा तो नज़र होता है,
सदायें नहीं आती, पर उनकी दआ ु ओ ं में वो ही असर होता है |

कब कहा मिल जाओ, पल-पल तेरी ख़ुशी का इतं ज़ार होता है,
रहते हैं बेचनै से जहान में बस इक तेरे नाम से बसर होता है |

कौन कहता है दूर हो, ख्यालों में तेरा अक्सर आना होता है,
दूर रहकर भी निभाता है वो किसका ऐसा हमसफ़र होता है |

ये खामोशी और दूरियां दिल का सफर 22


क्यूँ इतनी मोहब्बत है
आँसओ ू ं से धल
ु ते काजल से,
अब तो तकिये भी हो चले काले से |
तेरी याद में जीती हूँ हर पल,
लोगो क्ूँय समझे हम हैं परे शाँ से |

गमगीन है वो पागल मेरे गम में,


दर्द मझु ,े आँसू निकले उसकी आँखों से |
बोल ना पाई, एहसास के दो बोल उससे,
तेरी मोहब्बत में डूब गयी हूँ ऐसे |

मेरा इतं ेज़ार तो ख़त्म हो जाएगा,


बरसों से किया जो सब्र रंग लाएगा |
जीता था वो मेरी खश ु ी की खातिर,
वो ज़िंदा रहेगा, मैं खश ु हूँ इस बहाने से

करूँ दआ
ु उसकी खश ु ी के लिए,
शायद तमु को अब ये कबल ू ना हो |
लोग होते हैं इस जहाँ में ऐसे भी,
हमेशा दिल में रहेगें ये अहसास से

मानता था वो मझु को अपना सब कुछ,


उसकी ज़िंदगी में सरू ज डूब जाएगा |
उसकी दआ ु मेरे लिए, कबल ू हो गयी,
शब हुई, आये उसके नसीब अँधरे े से

क्यूँ इतनी मोहब्बत है दिल का सफर 23


ये कहानी अधूरी छोड़े जा रहा हूँ
आस उम्मीद का दामन छोड़े जा रहा हूँ
संभाला था जिसे वो दिल तोड़े जा रहा हूँ

दोस्ती और वफ़ा पे भरोसा बहुत था,


अब खदु का वो ही भरम तोड़े जा रहा हूँ |

रहीम ने कहा था रिश्ते कच्चे धागे हैं


खिचं े हुए से धागे, ढीले छोड़े जा रहा हूँ |

अब कहीं टूट ना जाएँ वो यही डर है,


जैसे भी हैं उसी हाल पर छोड़े जा रहा हूँ |

तेरी ही थी गजु ारिश तन्हा रहने की,


मैं चपु चाप बस तेरे साथ चला जा रहा हूँ |

परू ी नहीं कर सकता ये कहानी मैं अके ले ,


आखिरी हिस्सा तेरे भरोसे छोड़े जा रहा हूँ

तमु आकर लिख दो उन पर नाम अपना,


बचे जिस्ते लम्हों को बेनाम छोड़े जा रहा हूँ

पक
ु ार लेना एक बार वापिस तमु मझु ,े
तेरे मन में बस अपना नाम छोड़े जा रहा हूँ |

ये कहानी अधरू ी छोड़े जा रहा हू ँ दिल का सफर 24


समझा ना समझा कोई बात नहीं
उन्होंने अपना समझा ना समझा कोई बात नहीं
सही ना समझ मझु े गलत समझा कोई बात नहीं

मैं उनके लिए हर खदु ी को भल


ु ाए बैठा हूँ
उन्होंने हर बात का हिसाब रखा कोई बात नहीं

किसी ने कहा करो तो बेइन्तेहाँ मोहब्बत करो


अब उन्होंने इसे खदु गर्ज़ी समझा कोई बात नहीं

प्यार तो सिर्फ देने का नाम है सनु ा था मैंने,


उन्होंने प्यार को भी सौदा समझा कोई बात नहीं

वो हमारे रूहे जिस्म हुए तो क्या हुआ ‘नरू ’


उन्होंने तो ज़र्रा-ऐ-ज़मीन1 समझा कोई बात नहीं

1. ज़र्रा-ऐ-ज़मीन = ज़मीन का बहुत ही छोटा टुकड़ा, कण

समझा ना समझा कोई बात नहीं दिल का सफर 25


यूँ मोहब्बत हो गयी
जमु ्मा जमु ्मा चार दिन की दोस्ती गहरी हो गयी
वो हमसे कहते हैं की, हमें उनकी आदत हो गयी

जाने कै से वो जाएज़ा1 लेते हैं मोहब्बत का वक़्त से


ना जाने, वक़्त और मोहब्बत में कब से यारी हो गयी

इश्क़ में बसता है खदा


ु , कै से हो जाएगा वो गनु ाह
ये समझाते हुए हमको, सबु ह से शाम तलक हो गयी

हमने तो सनु ा था की मोहब्बत है खेल दिलों का


पता नहीं कब से ये उमर-दराज़ों2 की यारी हो गयी

है उन्हें इतं ेज़ार किसी का, मझु े उनकी खश


ु ी का है
इश्क है उनसे, पागलपन की कौनसी बात हो गयी

मानतें है वो हमें बहुत, पर क्या नहीं ये इतं ेहाँ3 है


जीना उनकी ख़ुशी के लिए, कौनसी दीवानगी हो गयी

कै से बताएं उनको, गम ही खाए गम ही पिये हैं


हसं ी-खशु ी के नज़ारे लिए, तो यहाँ सदियाँ हो गयी

हमें बस उनके सक ु ू न, और ख़ुशी की फ़िक्र है


मेरी ज़िन्दगी से खशि
ु याँ बहुत पहले ही काफू र4 हो गयी

देख लें हम उनके चाँद से चेहरे पर खश


ु ी का नरू
मेरी इतनी सी ही गज़ा
ु रिश उनको नाजायज़6 हो गयी
5

ना जाने क्यों ये बहार बहुत ही नागवार7 गज़ु री


खिली थी जो कुछ कलियाँ, वो खदु में सिमट गयी

अरमान8 मेरे सारे हैं निसार9 तेरी खशिु यों पर


ज़न्नत नसीब मझु ,े ग़र तेरे दिल में जगह हो गयी

1. जाएज़ा = Measurement 4. काफू र = Disappeared 7. नागवार = Without good effect


2. उमर-दराज़ों = बढ़ू े लोग 5. गज़ा
ु रिश = Request 8. अरमान = Emotions
3. इतं ेहा = हद 6. नाजायज़ = Unjustified 9. निसार = Sacrifice

यँ ू मोहब्बत हो गयी दिल का सफर 26


उल्फ़त की उलझन
किस से लड़ रहा हू,ँ जब रणभूमि है सनु सान
कुछ भी नहीं वहाँ, बस है एक खाली मैदान

कोई नहीं है, कोई जो दे शाह या मात


फिर क्यों लगे है, यद्ध
ु यहाँ चढ़ा है परवान

पछ
ू ू ं किस से, मेरे दिल में कुछ सवाल हैं,
जिन्होंने ला दिया है, मेरे तसव्वुर1 में तूफान

कौन जाने कौन है साथ, कौन छोड़ देगा साथ


उन लोगों के जाने का डर है, चाहे मान ना मान

कभी यँू ही अके ला हूँ अपनों के ही बीच


मिलाजल ु ा हूँ भीड़ में, पर सब चेहरे हैं अनजान

हसं ती खिलखिलाती दनि


ु या है चहुँ ओर कभी
कभी वीराना है सब तरफ, हर ओर है सनु सान

कुछ वक़्त पहले आये हो ज़िन्दगी में तमु


अपने से लगते हो, जाने कब की है पहचान

पता है के हिज़्र सिर्फ मेरे को ही नहीं सताता,


सल
ु गता है तेरा दिल, जलते होंगें तेरे भी अरमान

वाकिफ़ हूँ तझु से और तेरी पाक फितरत से,


इसलिए तो लगता तेरा दर्द मझु े मेरे दर्द समान

तमु पर भी बीती कुछ हम जैसी, ये है एहसास,


मेरे जैसे, जालिमों ने तोड़े तेरे भी दिल के मकान

वो ग़मगीन लम्हे ना लौटे तमु तक कभी दबु ारा,


हो मेरी हर दआ
ु यँू कबल
ू , खदाु तेरा हो निगेबान2 |

दिल तो तेरी ख़ुशी चाहेगा, दआु देगा तझु ,े


दोस्त चाहे तू ना समझे, चाहे दे दश्म
ु न का नाम |

उल्फ़त की उलझन दिल का सफर 27


यँू हसं ती खिलखिलाती रहो, दआ ु करता है ‘नरू ’,
मेरी ख़ुशी भी बसी है वही ँ, नहीं ढूँढना परू ा जहान |

1.तसव्वुर = Imagination 2. निगेबान = protector

उल्फ़त की उलझन दिल का सफर 28


अब प्यार है तो है
वो नहीं मेरा, मगर उससे मोहब्बत है, तो है,
ये अगर रस्मों रिवाजों से बगावत है, तो है |

सच को मैंने सच कहा,जब कह दिया तो कह दिया,


अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है, तो है |

दोस्त बनकर दश्म


ु नों सा,वो सताता है मझु ,े
फिर भी उस जालिम पे मरना अपनी फितरत है, तो है |

कब कहा मैंने कि वो मिल जायें मझु ,े


उसकी बाहों में दम निकले, पर इतनी हसरत है, तो है |

वो जानशीं साथ है तो जिंदा हू,ँ


मेरी सांसों को उसकी ज़रूरत है, तो है !

पलकें बिछाए बैठा हूँ राहों में,


दिल को उसके आने का यकीं है, तो है !

अब प्यार है तो है दिल का सफर 29


ज़ज्बा ऐ इश्क
यँू तो मिली सौ बेचनि
ै याँ , सौ राहतें ,
एक बस तू ही नहीं जिसकी हैं चाहतें |

हो दिल के करीब इतने तमु ,


फिर भी क्यों लगते दरमियां फासलें |

तेरी जदा
ु ई में ये लम्हे , दिन बने,
बनते बनते दिन, महीने, साल हैं बनते |

की बेमतलब मोहब्बत हमने दिल से,


क्ूँय ये कहर हम क्यों तन्हा हैं रहतें |

एक तेरे साथ का यकीं है यँू दिल को,


रहगजु र ऐ ज़िन्दगी पे अके ले हैं चलते |

एक दिन तो तमु लौट आओगे,


इस बात के सहारे , पल पल गजु ारा हैं करते |

ज़ज्बा ऐ इश्क दिल का सफर 30


यूँ किसको मोहब्बत करते हो
खदाु मान उसको यँू सजदा करते हो,
सनू ी ज़िन्दगी में उसे ढूँढा करते हो |

बस यादों के साए हैं जहाँ पर,


क्ूँय सिर्फ तमु उनमें घमू ा करते हो |

कोई राज़ नहीं छुपा है आँखों में,


फिर क्या तमु उनमें देखा करते हो |

न कोई ख्याल, ना आरज़ू है दिल में,


तमु इस दिल में क्या टटोला करते हो |

कोई सदा नहीं, यहाँ कोई आवाज़ नहीं,


ये तमु किस की आहटें सनु ा करते हो |

कोई खश्बू
ु नहीं फै ली है फ़िज़ा में,
साँसों को क्ूँय महका महससू करते हो |

छू कर गयी होगी आवारा हवा,


उसने छुआ, क्यों ऐसा सोचा करते हो |

नहीं हैं अब इन आँखों में आँस,ू


तमु क्या पोंछने की कोशिश करते हो |

जा चकु ा है वो ज़िंदगी से बहुत पहले,


तमु यँू ही उसकी राहें ताका करते हो |

ना आएगा वो हमसफ़र अब कभी वापस,


तमु जिसकी रहगजु र पर चला करते हो |

‘नरू ’ खश
ु है वो, रहता सक
ु ू न से कहीं पर ,
मोहब्बत? इस पे ज़िन्दगी गजु ारा करते हो ?

यँ ू किसको मोहब्बत करते हो दिल का सफर 31


जीना यूँ इश्क में
कोई है जो मेरा वहां इतं ज़ार करता है
मेरे नाम को साँसों में पिरोया करता है |

फासला ये जो तेरे मेरे बीच का है,


यही है जो मोहब्बत में रंग भरा करता है |

लगी होती है जब, आतिश-ऐ-इश्क1,


बस यही जिस्त को रोशन किया करता है |

दिल होने चाहिए, करीब तमु ्हारे ‘नरू ’,


कब इश्क सिर्फ पास रहने से बढ़ा करता है |

1. आतिश-ऐ-इश्क = इश्क की आग

जीना यँ ू इश्क में दिल का सफर 32


यूँ वो मेरा दोस्त बना
यँू वो मेरा दोस्त बना |
चलते चलते यँू हमसफ़र बना,
यँू वो मेरा दोस्त बना |

कभी मेरा राज़दार हुआ न हुआ |


ज़िन्दगी भर को, हमराज़ बना,
यँू वो मेरा दोस्त बना |

मेरी गलतियों पे वो नाराज़ हुआ |


अँधरे ी राहों में, इक चिराग बना,
यँू वो मेरा दोस्त बना |

खदु को जलाया उसने बहुत |


मेरी खातिर, वो खदु राख बना,
यँू वो मेरा दोस्त बना |

जाने अनजाने उसे दर्द बहुत दिए|


मेरी नासमझियों को बहुत सहा,
यँू वो मेरा दोस्त बना |

मैंने तेरी दोस्ती को सलाम किया,


दोस्तों में अव्वल तू खदु बना,
यँू वो मेरा दोस्त बना |

यँ ू वो मेरा दोस्त बना दिल का सफर 33


अंतर्मन द्वंद : एक पंथी, एक प्रेमी और एक मित्र
कर्म रथ है चलता रहता,
कर्म पथ है बदलता रहता,
ऐ पंथी तू काहे घबराता |

समय चक्र यँू चलता रहता,


सखु दःु ख आता जाता रहता,
ऐ पंथी तू काहे घबराता |

जैसे जाने का वक़्त निकट है ,


क्षण मिलन का भी तो पास है आता |
ऐ प्रेमी तू काहे घबराता |

विरह1 अगर नहीं प्रेम में,


तो बोलो प्रेम में क्या रह जाता |
ऐ प्रेमी तू काहे घबराता |

हर पल जब तू उसको साथ है पाता,


हर सखु दःु ख वो तेरे साथ बांटता,
ऐ मित्र तू काहे घबराता |

उससे दूर जाने या बात न कर पाने का,


ऐ मित्र, बोल तझु े कौनसा डर सताता |
ऐ मित्र तू काहे घबराता |

1. विरह = जदा
ु ई

अंतर्म न द्वंद : एक पंथी, एक प्रेमी और एक मित्र दिल का सफर 34


ऐ ज़िन्दगी तू क्या चाहती है
माना ऐ ज़िन्दगी तू जीने देती है,
पर जाने क्ूँय इतनी बेरहम होती है |

देती है खशि
ु याँ मानता हूँ मैं,
मगर उससे ज्यादा दर्द क्ूँय देती है |

एक कदम चल भी नहीं पाते,


क्ूँय चलने के सहारे छीन लेती है |

दिया तो तनू े कभी कुछ भी नहीं,


पर हाँ, हसं ने के बहाने लटू लेती है |

क्या बस चले तझु पे ज़िन्दगी, मेरा,


दिल देती है, और दिल तोड़ भी देती है |

ऐ ज़िन्दगी तू क्या चाहती है दिल का सफर 35


मैं कहू,ँ कभी तो वो सनु े
कहता रहा, कभी तो वो मझु े भी सनु े,
जब कहूँ उससे कुछ लफ्ज़, कभी तो वो हँसे |

यँू अलग थलग सी जी रहे हैं जिंदगी,


साथ दें एक दूसरे का, कभी तो मिल कर जियें |

टुकड़े टुकड़े बहुत हुआ दोनों का दिल,


टुकडों को जोड़, दिले हालात पर गफु ्तग1ू करें

चल रहे हैं जिंदगी की डगर,


तनहा तनहा है, कभी तो साथ मिल कर चलें |

यँू मेरी खामोशी ही बोलती रही है हमेशा,


कभी तो तेरे वो लफ्ज़ मेरे दिल पे मरहम रखें |

मझु े तेरी और तझु े उसकी आरज़ू बहुत है,


आरज़ू को छोड़, कभी तो खदु की सनु ा करें |

हसं ी जो सजी है होठों पे, ऐ ‘नरू ’, झठू ी है,


कभी तो आँसंू निकले और ये तमु से बयाँ करें |

1. गफु ्तगू = Discussion

मैं कहू ँ, कभी तो वो सुने दिल का सफर 36


तुमसे है गुज़ारिश
चाहे सिलसिला ये चाहतों का ना सही,
कम से कम तेरी मेरी तकरार का तो हो |

हम दोनों के बीच प्यार की बातें ना सही,


दोस्ती का एक नाम, एक निशान तो हो |

कौन कहता है निभती है, मोहब्बत पास रहने से,


हमने तो सीखा, कै से भी बस प्यार निभाते रहो |

एक कहे, दूजा सनु े, हमेशा ये ठीक नहीं,


कभी तो खामोशी बोले, और हम खामोश हों |

तमु तो ऐसे अच्छे लगे इस दिल को,


नहीं फ़िक्र अब चाहे तमु पास या फिर दूर रहो |

हमसे ना किया तमु ने इज़हार, कोई बात नहीं,


किसी खश ु नसीब से करके प्यार, इज़हार तो करो |

हमे नहीं तमु से कोई शिक़वा या शिकायत,


तमु ने ही तो कहा था बस अपनी राहें चलते रहो |

अब जब हमने चनु ी है राह तमु ्हारी वाली,


क्यों कहा कि राह नहीं है सही, इससे दूर रहो |

हमने तो प्यार किया तमु से, देगें साथ तमु ्हारा,


हम भी चलेगें उसी राह जिस राह तमु चलो |

इतना कहना है, गम ना करना किसी बात का,


हमने तो हमेशा से चाहा कि बस तमु हँसती रहो |

तुमसे है गुज़ारिश दिल का सफर 37


ये खता है या वफ़ा ?
चलने के वादे थे, हम साथ चलते गए,
ये कै से हुआ, हम तेरे क्ूँय हो गए |

रास्ते बहुत सीधे थे इस मजि ं ल के ,


फिर रास्तों में ही हम क्ूँय खो गए |

तझु े अपना मान बैठे, क्या खता की


किसी की अमानत हो, कै से भल ू गए |

फानसू ही थे, शमा की हिफाज़त को,


उस शमा के कै से हम, परवाने बन गए |

रिश्ता तो दोस्ती भर का भी ना था.


यँू ही जाने कै से, जन्मों के नाते बन गए |

ना जाने, दिल ने ये खता की, या वफ़ा,


इस दिल के ज़ख़्म भी तझु े दआ
ु दे गए |

वादा था की, ज़ज्बाती नहीं होंगे हम,


पर न जाने कै से आँखों से आसं ंू बह गए |

तमु ्हारा शिकवा, शायद जायज़ हो हमसे,


हम क्या करें , जब हमारे रास्ते जड़ु गए |

क्या अब चलें मजि


ं ल की जानिब ?
कारवां तो निकल गया, हम पीछे रह गए |

ये खता है या वफ़ा ? दिल का सफर 38


एक सज़ा है ...
मान लंू तमु को अपना, गर तेरी रज़ा1 है,
तेरे जैसे हमसफ़र के बिन जीना, एक सज़ा है |

यँू तो ये तिशनगी2 नहीं है बड़ी,


प्यासे रहना दरिया के किनारे , एक सज़ा है

नाराजगी की वजह से नावाकिफ हू,ँ


और तेरा यँू गमु समु सा रहना, एक सज़ा है |

चाह कर भी अब इज़हार नहीं कर पाते,


किसी को चाहना, कह नहीं पाना, एक सज़ा है |

जी रहे है फासलों पर, यही अच्छा है ना,


यँू ज़िन्दगी भर को दूर हो जाना, एक सज़ा है |

मेरी खता3 क्या थी ये तो था मझु े बताना,


बिन बोले, यँू तेरा रुख मोड़ लेना, एक सज़ा है |

1.रज़ा = मर्ज़ी
2. तिशनगी= प्यास
3. खता = गलती

एक सज़ा है दिल का सफर 39


उसकी तन्हा रात, क्या यूँ ही चलेगी
कब तक अशआर1 की ये कहानी चलेगी,
कब तक पलकों में वो आसं ंू रोकती रहेगी,
उसकी तन्हा रात, क्या यँू ही चलेगी ?

उसके सीने में गम, कब तक पलेगें यँू ही,


रोती होगी खदु में, जग को हसं ाती रहेगी |
उसकी तन्हा रात, क्या यँू ही चलेगी ?

उसकी मसु ्कान पे मेरी जान फ़िदा होती है,


मैं रहूँ या ना रहू,ँ उससे आशिकी तो रहेगी,
उसकी तन्हा रात, क्या यँू ही चलेगी ?

हसं ी लम्हों की बारिश कर दे, अब तो,


जिंदगी उसको कब तक तरसाती रहेगी |
उसकी तन्हा रात, क्या यँू ही चलेगी ?

सोये वो चैन से आगोश-ऐ-मोहब्बत में,


राहों पे वो, फिर ना कभी अके ली चलेगी |
रातें तन्हा नहीं तब, होंठों पे हसं ी पलेगी |

1: अशआर = शेर का बहुवचन

उसकी तनहा रात, क्या यँ ू ही चलेगी दिल का सफर 40


किसने कहा मैं जीता हूँ
किसने कहा मैं जीता हू,ँ
साँसों को इस जिस्म से सीता हू,ँ
किसने कहा मैं जीता हूँ |

यादों के जंगले में खोता हू,ँ


अरमानों और खवाबों सहारे चलता हू,ँ
किसने कहा मैं जीता हूँ |

ठोकरें बहुत लगी हैं, ज़ख़्मी हैं,


यँू मरहम की तलाश में फिरता हू,ँ
किसने कहा मैं जीता हूँ |

मजबरू यँ,ू तझु े मांग भी नहीं सकता,


तेरे बिन जदा
ु ई का हर घटँू पीता हू,ँ
किसने कहा मैं जीता हूँ |

आसँओ ू को पलकों पर रोकता हू,ँ


पर दिल ही दिल में रोता हू,ँ
किसने कहा मैं जीता हूँ |

वो बोले क्या जिए नहीं अभी तक,


साँसे नहीं आती थी तमु ्हे अब तलक,
उसने ने कहा मैं जीता हूँ |

अब जबसे हैं वो जिंदगी में,


अब खदु में खदु को पाता हू,ँ
उससे मिलने के बाद, अब मैं जीता हूँ |

किसने कहा मैं जीता हू ँ दिल का सफर 41


इश्क में ये होता है
बेचनै सी जिदं गी यँू ही चल रही
बेखदु ी बेबसी से हुआ नाता लगता है

बरस रहे हैं बेशमु ार1 वक़्त के अगं ारे ,


जल रहा दिल, जाने कहाँ शीतलता है |

रोता है दिल ही दिल में ही,


यारों के संग सिर्फ चेहरा ही हँसता है |

दिल छलनी है, ज़ख़्मी है इसका ,


इसको शब्दों का हर शर लगता है

बस उसी से है जान पहचान,


खदु से तो ये अन्जाना सा रहता है |

दर्द इसको कहाँ होते हैं अपने,


उसका गम इसको ग़मगीन करता है |

कहा था ‘नरू ’ ना करना ये इश्क कभी,


दूसरों का दःु ख-दर्द इसमें अपना होता है |

1.बेशमु ार = Countless

इश्क में ये होता है दिल का सफर 42


उसमें, कुछ तो बात होगी
वो मझु े यँू याद आती है,
उसमें, कुछ तो बात होगी |
कभी सोचा ना था मैंने,
उस पे ज़िन्दगी यँू फ़िदा होगी |

चाहे इनकार, इकरार का माहौल नहीं,


पर उसमें, कुछ तो बात होगी |
बिन बोले मेरे दर्द समझती है वो,
क्या हाले दिल है, वो खबू वाकिफ़ होगी |

तारीफ़ उसको अपनी पसंद नहीं,


पर उसमें, कुछ तो बात होगी |
हर किसी की ख़ुशी में खश
ु वो,
उसके किरदार की कोई तो कहानी होगी |

उस पर मेरी जान यँू निसार,


उसमें, कुछ तो बात होगी |
मांगी है दआ
ु उसके लिए हर पल,
दआ
ु ये मेरी ज़रूर कबल ू होगी |

इस क़दर प्यार है उससे,


उसमें, कुछ तो बात होगी |
ले लंू तेरे सारे आसं ंू मेरी पलकों पर,
ऐ खदा
ु , इल्तजा-ऐ-नरू , कब मक ु म्मल1 होगी |

1. मक
ु म्मल = Complete

उसमें, कुछ तो बात होगी दिल का सफर 43


निभाओ तो मोहब्बत है
पल पल गजु रते बीतते वक्त के साथ,
चल रहे हैं राह-ऐ-जिस्त पर हम साथ साथ,

क्ूँय जीने के बहाने बन गए हैं आप,


अभी अभी आये कुछ वक्त ही हुआ है हमें साथ |

कहते हैं वो कोई नहीं मरता किसी के लिए,


कोई सिर्फ साँसे लेता है, कै से जीता यादों के साथ |

चाहे हैं दूर या हैं पास, कौन जाने किस वक्त तक,
वक्त भी आएगा जब आपको मिलेगा उसका साथ |

दआ
ु है ये खदा
ु से वो दिन जल्दी आये,
मिल जाए आपके सनू े सनू े हाथ को उसका हाथ |

क्ूँय आपको है इतनी चितं ा, क्ूँय है फिकर,


आपकी यादों ने हमेशा से ही दिया हमारा साथ |

क्ूँय अब गम करती हो पगली, क्ूँय हो उदास,


नहीं है अच्छी उदासी, ना हो कभी वो तेरे साथ |

लंबा इन्तेज़ार था, और लो हिज्र खत्म हुआ,


जिसको जिसका होना था, उसे मिला उसका साथ |

फकत सिला-ऐ-इश्क ‘नरू ’, तू कहाँ नाकाम हुआ,


निभाना ही मोहब्बत थी, और तनू े निभाया साथ |

निभाओ तो मोहब्बत है दिल का सफर 44


ये तुझसे कहना है
दिल्लगी मेरी फितरत नहीं,
दिल को यँू फें कना मेरी आदत नहीं |

तझु से इश्क है बस मझु ,े


यँू बातें बनाना मेरा शौक नहीं |

तेरे सारे गम मैं कर लंू अपने,


तेरे अलावा मेरा हमदम और नहीं |

गजु रा ज़िन्दगी के रास्तों से तनहा,


और चलँू तनहा, इसकी हसरत नहीं |

दिल-ऐ-नादाँ का सच कहा है तमु ्हें,


तेरे अलावा मेरी आरज़ू और नहीं |

‘नरू ’ और क्या बयां करे तेरे बारे में,


इस जहाँ में तझु सा कोई अपना नहीं |

ये तुझसे कहना है दिल का सफर 45


इश्क के मायने
कभी ग़ालिब ने बोला,कभी कहा मीर ने,
ऐसे आसाँ नहीं होते हैं रास्ते इस इश्क केे |

मिली है लोगों को मजिं ल भी यहाँ,


पर जले हैं यहाँ, दिल भी बहुत के |

जब तक नहीं की थी, मोहब्बत हमने,


पता नहीं था होंगें इतने रंग प्यार के |

तमु से मिलने के बाद जाना मैंने,


कुछ अलग भी होतें हैं, रूप खदा ु के |

तझु े देखता हू,ँ तो समझ आता है,


ऐसे होते हैं चेहरे उम्मीद के आस के

मझु से दूर है क्ूँ,य ये क्या पता मझु ,े


बताता हमें, कहाँ कोशिश की उस ने |

रातें सनु सान, दिन बेजान से हैं निकलते,


छीने हों जैसे किसी ने चाँद-सरू ज इन के |

क्ूँय जीना हैं ऐसे, ये क्या जिंदगी है,


जब साँसों के धागे, अलग हैं तेरी साँस से

कौन जाने, तेरे दिल का हाल क्या होगा,


ज़ख्म भर जाएँ, गम तेरे आके लगें मझु से

इश्क के मायने दिल का सफर 46


जब प्यार किसी से होता है
तेरे होने के अहसास से दिल में,
यँू कुछ कुछ होता है,
इस क़दर चाहत है क्ूँ,य
तेरे बिन दिल छुप छुप के रोता है |

आज वक्त साथ है, कल नहीं,


जिंदगी पर किसको भरोसा होता है |
मेरा इश्क, चाहे मेरी अमानत सही,
रब जाने तझु पे, कब इसका असर होता है |

बीते वक्त की यादें साथ हैं,


इसलिए मैं इस जहाँ में जिंदा हूँ |
वरना कहते हैं, ऐसे भी हैं कि,
दिल से मरा, ऐसे कौन जिंदा होता है |

यँू ही नहीं सांसें, जान डालती जिस्म में,


ये इत्तेफाक तो सिर्फ इश्क में होता है |
लड़ जाते हैं अके ले ही सारे ज़माने से,
ऐसा होंसला तो सिर्फ हम दीवानों में होता है |

मजि
ं ल पा लेना इश्क में,
इश्क में जीत जैसा कहाँ होता है ?
उसके इन्तेज़ार में जी कर देखो,
जान जाओगे मोहब्बत में क्या सरू ु र होता है |

मेरी बातें कहानियाँ सी लगती है तमु को,


करो इश्क, फिर देखो कै से यकीन होता है |
कई बार जो सिर्फ लगती कहानियाँ हैं,
असल में ज़िंदगी का सच, बस वो ही होता है |

जब प्यार किसी से होता है दिल का सफर 47


ये इत्तेफाक नहीं
माना कि हाथों में हाथ नहीं,
मतलब उसका ये नहीं कि साथ नहीं |

मोहब्बत पर आया है वक्त ऐसा ही,


पर ऐसा नहीं कि उपरवाला साथ नहीं |

कभी है वक्त, कभी साथ नहीं,


वो कहते हैं, जिंदगी कोई मजाक नहीं |

लड़ता आया हू,ँ हर उलट हवा से,


यँू मान लेना हार, मेरी आदत नहीं |

हर लफ्ज़ जोड़ जोड़, बनायी है दआु ,


कबलू हो हर दआ
ु , ये ज़रूरी नहीं |

करता हूँ मोहब्बत तझु से बेपनाह,


करे तू भी मझु से, ऐसा कोई दस्तूर नहीं |

तेरे साथ की लाख तम्मना है हमें,


होगा कै से, जब तमु ्हे हो ये मज़ं रू नहीं |

तझु े खामोशी की ख्वाहिश है ठीक है,


तमु को भलू ने की ये बात, हमें गवारा नहीं |

तेरी खश
ु ी के लिए है ये सारी कोशिश,
आँखों में तेरी आसं ंू हों, मझु े मज़ं रू नहीं |

आज तू अलग है मझु से, तू जदा


ु सही,
शायद जिदं गी के किसी मोड़ पर, मिलें कभी |

किये होंगे उपरवाले ने कुछ न कुछ फै सले,


सारी बातें, ऐसे ही होने वाले इत्तेफाक नहीं |

आज मिल कर, कल बिछुड़ जाएँ हम,


कम से कम इस वास्ते, थे हम मिले नहीं |

ये इत्तेफाक नहीं दिल का सफर 48


फ़रियाद खुदा से ...
बहुत रोये हैं, कोई तो हँसने की तरकीब दे दे,
खदा
ु कोई जीने की नहीं तो, मरने की वजह दे दे |

उनके गम का सबब तो बता दिया तनू े,


अब उसको मिटाने का कोई तो इल्म1 दे दे |

वो कहते हैं हमसे कि, मत करो मेरा इन्तेज़ार,


कै से कहें उससे की वो, उन्हें भल
ू ने की वजह दे दे |

अके ले जीते थे खदा


ु , तनू े कोई खश
ु ी नहीं दी,
वो खशि
ु यों से मिल जाएँ , ऐसी कोई रहगज़ु र दे दे |

उनका यार खफ़ा है उनसे, वो माना लें उसे,


ऐ खदा
ु , उनको इश्क में डूबा कोई ‘नरू ’ दे दे

सच है बहुत जला, हिज्र2 की आग मे अब तक,


उसे वसले-यार3, मझु े कुछ कतरा-ऐ-शबनम दे दे |

1. इल्म = ज्ञान
2. हिज्र = जदा
ु ई
3. वसले-यार = प्रेमी से मिलन

फ़रियाद खुदा से दिल का सफर 49


तुम ही तुम हो
नरू ानी की है जिसने फिज़ा, वो गनु गनु ाती धपू तमु ही हो,
हवा महकी भीनी सी, गल ु ाबों की वो खश ु बू तमु ही हो |

चाहे तमु आओ या ना आओ जिंदगी में मेरी,


कोई गिला नहीं तमु से, मेरी बहार-ऐ-जिंदगी तमु ही हो |

क्या शिकायत होगी मझु दीवाने को हिज्र के मौसम से,


तेरा इश्क है मझु में, इस दिल की धड़कन तमु ही हो |

वो जो सोचते हैं कि तमु दूर हो मझु से,


कै से समझ पायेगें कि तसव्वुर में हमेशा तमु ही हो |

दिल के गलु शन में आई नहीं खिज़ा तमु ्हारे बाद,


दिल में हमेशा बसने वाली जान-ऐ-बहार तमु ही हो |

क्या हुआ जो साथ नहीं, और हाथों में हाथ नहीं,


मैं दिल हूँ तमु ्हारा, मेरे इस जिस्म की जान तमु ही हो |

मिलाएगा खदा ु दिलों को, तू इतनी फिकरमदं क्ूँय है,


तेरी सांसें बहुत कीमती हैं, किसी की दिलो-जान तमु ही हो |

तुम ही तुम हो दिल का सफर 50


अब उन्हें भी पता लगा
जिदं गी ये साज़ सी सजने लगी,
सांसें ये सरगम सी बनने लगी |
लो, अब उन्हें भी पता लगा,
हमें उनसे मोहब्बत होने लगी |

पहली दफ़ा घर से उनके कूचे की,


ये सारी दूरियां कम लगने लगी |
लो, अब उन्हें भी पता लगा,
हमें उनसे मोहब्बत होने लगी |

देख उनका मासमू सा हसीं चेहरा,


क्ूँय मेरी हस्ती खोने लगी |
लो, अब उन्हें भी पता लगा,
हमें उनसे मोहब्बत होने लगी |

वो करतें हैं, शहद सी मीठी बातें,


मेरे कानों में यँू मिश्री घल
ु ने लगे |
लो, अब उन्हें भी पता लगा,
हमें उनसे मोहब्बत होने लगी |

किरदार ही उनका कुछ ऐसा है,


उनमें रूह-ऐ-नरू यँू खोने लगी |
लो, अब उन्हें भी पता लगा,
हमें उनसे मोहब्बत होने लगी |

अब उन्हें भी पता लगा दिल का सफर 51


आज कुछ अलग लिखते हैं
आज कुछ अलग लिखते हैं,
छूटे हुए देश और घर के बारे में लिखते हैं |

थोड़ा पानी हुए विवाद पर,


या फिर पानी जैसे बहे खनू पर लिखते हैं |

अज़ीज़ खनू के रिश्तों पर,


और जान से प्यारे दोस्तों पर लिखते हैं |

दिल और उसके हालात पर या,


फिर ज़ज्बातों और अरमानों पर लिखते हैं |

लिखें क्या दिल से खेलने वालों पर,


सब कुछ दिल में रहने वालों पर लिखते है |

सतत जीवन की खशि ु यों पर,


छिन्न भिन्न मन की बेबसी पर लिखते हैं |

उसको किये गए इकरार पर,


उसकी ख़ामोशी के अदा
ं ज़ पर लिखते है |

हमारी उस हसं ी मल
ु ाक़ात पर,
जिंदगी के सबसे खबू सरू त मज़ं र पर लिखते हैं |

नरू के किसी अदा


ं ज़-ऐ-इश्क पर,
या उस जानशीं की नज़ाकत पर लिखते हैं |

तोड़ते हैं जंजीरें , करते हैं आज़ाद ख़याल,


चलते हुए नयी डगर, आज कुछ नया लिखते हैं |

आज कुछ अलग लिखते हैं दिल का सफर 52


अब जाने कहाँ
चाहे कद बहुत ऊँचे हो गए हों हमारे ,
पर बाबा, तमु ्हारे कन्धों की ऊँचाई अब जाने कहाँ |

चाहे एसी कूलर के झोंकों में रहते हों,


पर माँ, तेरे आँचल की शीतलता अब जाने कहाँ |

सोते हैं चाहे हम नरम-नरम बिस्तरों पे,


पर माँ, तेरी गोद में आने वाली नींद अब जाने कहाँ |

लड़ते हैं, अपने अस्तित्व की ख़ातिर दनि


ु या से,
पर भाई, तेरी वो प्यार वाली लड़ाई अब जाने कहाँ |

रूठ जाती है दनि


ु या मझु से, काम ना आने पर,
पर बहना, रूठने में तेरे जैसी निस्वार्थता अब जाने कहाँ |

खो गया है वक्त की गलियों में बचपन कहीं,


बचपन के स्वछंद और उन्मुक्त सपने, अब जाने कहाँ |

अब जाने कहाँ दिल का सफर 53


इश्क हुआ लगता है
तू है मेरा तो, ये जहाँ अपना लगता है |
कहते अशआर1, तेरा साया पास लगता है |

देखता हूँ जब बादलों में छिपे चाँद को,


वो घघंू ट में छिपा तेरा मख
ु ड़ा लगता है |

देखा है मैंने जब भी तमु को हमदम,


तू हमेशा मेरे दिल का टुकड़ा लगता है |

जब कभी मैं सनु ता हूँ तेरी हसं ी,


जीवन अपना खश ु ी से सराबोर लगता है |

अब समझा हू,ँ मैं इश्क का मतलब,


दिल तेरी मोहब्बत में, दीवाना लगता है |

जाने क्यों कभी तमु से कह नहीं पाया


पर अब नज़रों से, इकरार हुआ लगता है |

सामना ही ना हो पाया तमु से, क्या करता,


आसं ंू पोंछने का वादा, बस वादा लगता है |

तिरी खामोशी, ‘नरू ’ कभी समझा नहीं ,


बस इस इश्क में , ये गनु ाह हुआ लगता है |

1. अशआर = शेर का बहुवचन

इश्क हु आ लगता है दिल का सफर 54


मोहब्बत कम लगे
यँू तझु से मेरा दिल अब जड़ु ा जड़ु ा सा लगे,
तेरे ख्वाब के आगे जहाँ का हर ख्वाब छोटा लगे |

डरता था हमेशा इश्क करने से, कतराता था मैं,


जिंदगी के इस मोड़ पर, तझु से इश्क होता लगे |

पल में जाने आलम कै से बदल गया सारा,


देखो अब इस फिज़ा में भी प्यार घल
ु ता लगे |

क्या फरक है, तझु े से दूर हूँ या पास हूँ मैं,


मझु े तो तू यार, दिल और जान के जैसा लगे |

जिसकी चाहत है इस रूह को हमेशा,


तेरा चेहरा ही, वो हमराज़ वो हमदम सा लगे |

तू भी तो था इस अनजानी भीड़ में इक चेहरा,


तझु े देख दिल पछू ा, ये मझु े क्यों अपना लगे |

तू इस तरह से अब मेरी जिंदगी में शामिल है,


सारी ख्वाहिशें, तेरा हर इक सपना अपना लगे |

इतनी मोहब्बत तो तू करती है मझु से,


फिर भी इस दिल को तेरा प्यार कम सा लगे |

कुछ इस तरह छुपा लंू तमु को अपनी आँखों में,


मेरी दोस्त,तमु को इस जहाँ की नज़र ना लगे |

मोहब्बत कम लगे दिल का सफर 55


तुझमें खुदा पाया
लोग अब पछू ते हैं उससे, तनू े मोहब्बत में क्या पाया,
इश्क है ये, नहीं कोई सौदेबाज़ी, मत पछू क्या पाया |

याद नहीं पड़ता मझु ,े कभी वो जिया अपने ख़ातिर,


जीते हुए दूसरों के लिए, उस शक्स ने कभी क्या पाया |

खदा
ु जाने, क्यों अश्क निकल पड़ते हैं मेरी आँखों से,
नहीं दर्द मिले, हुआ ये जब उसका ख्याल क्या आया |

मेरी मजबरू ी कभी जानी होती, सनु ा होता कभी मझु ,े


अज़ीज़ है त,ू तू ही मोहब्बत का मतलब सिखा पाया |

यकीं मानो मेरा कभी तो, सच कहता हूँ मैं,


जब जिया हूँ तेरे इश्क में, तझु में खदु ी और खदा
ु पाया |

तुझमें खुदा पाया दिल का सफर 56


रास्ते और मिल जायेगें
वो कहते हैं हमसे कि, क्यों दीवाने हो,
राहें ज़िन्दगी की और चलो, लोग और मिल जायेगें |

माना यँू तो मिलेगें लोग जिंदगी में और बहुत ,


पर कै से कहें आप जैसे हमें यँू कहाँ से मिल जायेगें |

गर जाना होगा तमु को, आसं ंू कै से रोके गें रास्ता,


मसु ्कु राहटों से तझु े वापस आने के बहाने मिल जायेगें |

किसी के दिल का रास्ता यँू ही हसींन नहीं होता,


ढूंढोगी तो प्यार करने के भी सौ बहाने मिल जायेगें |

रूठे हो तमु ये गम है,और गम नहीं किसी का,


खशु ी के तो मझु ,े तेरी हसं ी में सौ बहाने मिल जायेगें |

माना जानशीं हसीन हो तमु , ज़माना तमु ्हारा है,


इक ‘नरू ’ क्या, तझु े तो तेरे लाखों दीवाने मिल जायेगें |

रास्ते और मिल जायेगें दिल का सफर 57


जब वो ठंडी हवा का झोंका आया
कल शाम मैं जब उठा था रो कर,
बोझिल अपने ख्यालों से थका हार कर,
अचानक ज़ेहन में तेरा हसं ीं चेहरा आया |
जब वो ठंडी हवा का झोंका आया |

ले गया वो अपने साथ मझु ,े


और फिर तेरी यादों से मिलवाया |
मेरे चेहरे पे रौनक लौटा लाया,
जब वो ठंडी हवा का झोंका आया |

देर तक की मैंने तेरी यादों से बातें,


दर्द और गम को कोसों दूर पाया |
वो इश्क के बीते दिनों में घमु ा लाया,
जब वो ठंडी हवा का झोंका आया |

याद होगा, तमु ्हारा वो चपु के से आना,


हाथ रख आँखों पे और पछू ना ‘पहचाना ‘?
आँखों पे वो नरम स्पर्श फिर लौटा लाया,
जब वो ठंडी हवा का झोंका आया |

इतनी सजीव थी यादें वो तेरी,


अपने हाथों में मैंने तेरा हाथ पाया |
हसं ी लम्हों की सौगात ले आया,
जब वो ठंडी हवा का झोंका आया |

उन घड़ियों में, उन लम्हों में,


मैंने बस प्यार को यँू गंथु ा पाया |
रोम रोम में मैंने तेरा प्यार बसाया,
जब वो ठंडी हवा का झोंका आया |

जब वो ठं डी हवा का झोंका आया दिल का सफर 58


किस पर लिखूँ ?
आज सोचता रहा तेरी किन अदाओ ं पर लिख,ँू
उन अदाओ ं से बार बार हुई मोहब्बत पर लिखँू |

अपने पहले पहल हुए मिलन की उत्सुकता पर,


या तेरे कूचे से वापसी की बोझिल साँसों पर लिखँू |

उस दिन तेरे मेरे बीच की बातों मल


ु ाकातों पर,
या उन बातों की मीठी मीठी यादों पर लिखँू |

प्यार हुआ तेरे से यँू पहली नज़र में,


मेरे इकरार पर, या तेरे मीठे इनकारों पर लिखँू |

पक
ु ारता हूँ तेरा नाम, मैं यँू सरे आम,
मेरी आजादी, या तझु पर लगे बंधनों पर लिखँू |

कुछ तो इस ज़ालिम ज़माने के दस्तूर पर,


या इश्क पर लगी खदु गर्ज़ पाबंदियों पर लिखँू |

ये जो उपर वाले ने दिया है पाक तोहफा मझु ,े


इस पे ज़माने की लगायी बेमानी तोहमतों पर लिखँू |

लो ‘नरू ’ दिल ही बागी हुआ तमु ्हारा इश्क में,


क्या अब दिल की बगावतों के किस्सों पर लिखँू |

किस पर लिखँ ू ? दिल का सफर 59


चलो मिल जाएँ इसी बहाने
आया है मौसम, आने वाली है फिर बरसात जाने,
रहे अब तलक दूर हम, चलो मिल जाएँ इसी बहाने |

सब रिश्ते चले जाते हैं, नहीं जाती ये दोस्ती,


क्ूँय याद रहती है, चाहे जाए कोई इसे लाख भल ु ाने |

गल
ु शन था तो तड़पता था, सहरा में मिली तेरी छांव,
याद नहीं,करे होंगें किसी जनम हमने अच्छे कारनामे |

खिलाड़ी है उपरवाला, यँू ही तो नहीं मिलाया हमें,


तमु कहाँ, मैं कहाँ था, ये रास्ते कितने थे अनजाने |

अब यकीं करो या ना करो चाहे, पर सच है ये बातें,


वो कहते हैं तमु को शमा, जलने आये थे हम परवाने |

ना मेल ना मल
ु ाक़ात, दिल के कै से बंधन बंध गए तमु से,
खदु बेखबर, क्या बताऊँ तझु ,े खदा
ु के खेल वो ही जाने |

आज तलक हैं सांसें, ये वक्त है, कल क्या भरोसा इनका,


करके भरोसा इस वफ़ा पर, चलो मिल जाएँ इसी बहाने |

चलो मिल जाएँ इसी बहाने दिल का सफर 60


कितनी भी करो मोहब्बत कम लगे
यँू तो अब शायद शहद भी मीठा न लगे,
मझु े महक गल
ु ाबों की, अब खश
ु बू न लगे |

जीयो तमु मेरी जानेमन जी भर के ,


एक जिंदगी कम होगी, तझु े मेरी भी उमर लगे |

रख भरोसा हसरतें परू ी होंगीं सारी तेरी,


चाहे तझु े अभी अपनी, खशि ु याँ थोड़ी कम लगे |

दआ
ु ओ ं से अब तो घर भर चला खदा ु का,
पर मेरे को दआ
ु ओ ं की तादाद अब भी कम लगे |

तझु से दिल जडु ने के बाद ये आलम है,


तेरे खश
ु ी आगे मझु े जहाँ की हर खश
ु ी छोटी लगे |

डरता था हमेशा इश्क करने से, कतराता था मैं,


जिंदगी के इस मोड़ पर, तझु से इश्क होता लगे |

जाने कै से आलम बदल गया सारा यँू पल में,


अब इस फिज़ा में भी प्यार घल
ु ता हुआ लगे |

क्या फरक है, तझु े से दूर या पास हूँ मैं,


मझु े तो दिल में धड़कती धड़कन तू लगे |

जिसकी चाहत है इस दिल को हमेशा,


तेरा चेहरा ही, वो हमराज़ वो हमदम लगे |

तू भी तो था इस अनजानी भीड़ में एक चेहरा,


तेरे को देख दिल पछू ा, ये मझु े क्यों अपना लगे |

लगते थे मझु े अपने गम बहुत ज़ियादा,


तेरे देखे तो मझु े अपने गम और दर्द कम लगे |

तू इस तरह से अब मेरी जिंदगी में शामिल है,


तेरी सारी उम्मीदें, तेरे सारे सपने अपने लगे |

कितनी भी करो मोहब्बत कम लगे दिल का सफर 61


इतनी मोहब्बत तो तू करती है मझु से,
फिर भी इस दीवाने दिल को तेरी चाहत कम लगे |

कुछ इस तरह छुपा लंू मैं तमु को अपनी आँखों में,


मेरी दोस्त,तमु को किसी की नज़र ना लगे |

कितनी भी करो मोहब्बत कम लगे दिल का सफर 62


तेरा शुक्रिया कर रहा होता
ऐ दोस्त अगर तेरी दोस्ती का सहारा ना होता,
गम की ना जाने किन गलियों में भटक रहा होता |

क्ूँय वक्त ने बना दिए हैं फासले हमारे बीच,


अगर होता बस में मेरे, फासले कम कर रहा होता |

टूटा टूटा, बिखरा बिखरा था यहीं कहीं,


तनू े समेटा प्यार से, वरना मैं बिखरा ही रहा होता |

आज हूँ यहाँ मैं, जी रहा हूँ तेरी यादों के सहारे ,


वरना जाने दःु ख के किन दायरों में घमू रहा होता |

देख क्या वक्त आया, अल्फाज़ नहीं है मेरे पास,


लफ्ज़ होते गर तेरी दोस्ती का शक्रि
ु या कर रहा होता |

तेरा शुक्रिया कर रहा होतां दिल का सफर 63


निःशब्द हूँ मैं
क्ूँय स्तब्ध हूँ मैं,
परिस्थितिवश या प्रेमवश,
निःशब्द हूँ मैं |

जीवन से प्यारे रिश्तों को,


यहीं छोड़ जाना है, यही सोच,
निःशब्द हूँ मैं |

कर्त्तव्य निभाने को अब मैंने,


परदेस है जाना, यही सोच,
निःशब्द हूँ मैं |

विरह में उसको राधा सा जलाना,


क्ूँय ऐसा कृ ष्ण हू,ँ यही सोच,
निःशब्द हूँ मैं |

विरह की अग्नि में खदु भी जलना,


अपनी पीड़ा को आँखों में छिपाये,
निःशब्द हूँ मैं |

तमु से प्रेम है और क्या कहू,ं


तेरे प्रेम को सीने में समाये,
निःशब्द हूँ मैं, बस निःशब्द हूँ मैं |

निःशब्द हू ँ मैं दिल का सफर 64


जी चाहता है
सादगी पर तेरी, मर जाने को जी चाहता है,
बातों से तेरी जी, जाने को जी चाहता है,
मोहब्बत ऐसी ही राज़दार होती है, दोस्तों,
हर किसी का ये, राज़ जानने को जी चाहता है |

तेरे आसं ंू मैं ले लंू अपनी पलकों पर,


सिर्फ हसं ी छोड़ दूँ, तेरे दामन में,
किसी की मोहब्बत होना, है खश ु नसीबी,
तू खशु रहे, तझु े खश ु देखने का जी चाहता है |

तेरी खशि
ु यों की फिकर है इतनी,
कि तेरे हर गम से खफा हूँ मैं,
ना तकलीफ दे तझु े कभी ये ज़माना,
तेरे ख़ातिर ज़माने से लड़ जाने को जी चाहता है |

मेरी बातें तमु को लगती हैं सपना,


हाल मेरा तझु जैसा ही, ना मिला कोई अपना,
जब मिला है तेरे चहरे में जीने का सबब,
तेरी खातिर ये जिंदगी जीने को जी चाहता है |

साथ रहें हम, हों हाथों में हाथ,


बाँट ले गम अपने, रहे खशि ु यों के साथ,
ऐसे हैं कुछ नायाब खवाब आँखों में मेरी,
कभी हों सच ये खवाब भी, ऐसा मेरा जी चाहता है |

जी चाहता है दिल का सफर 65


दिल तेरी चाहत कर रहा है
गजु रते हुए वक्त भी, खदु बदल रहा है,
मझु े में तेरा प्यार कुछ और संवर रहा है |

ये जानते हो तमु भी, ना चाहा था मैंने


पर ख़ामोश कब से ये दिल जल रहा है |

रहा तू सदा बेखबर क्ूँय मझु से, पछू ता


तेरे ख़ातिर दिल क्या ख़याल बनु रहा है |

वस्ले वक्त अब सामने, खत्म है इन्तेज़ार,


दिल अब मिलन का इतं ज़ार कर रहा है |

हिज्र में गजु रा वक्त, इबादत का था


अब तझु में खदा ु का अक्स दिख रहा है |

जो लफ्ज़ तनू े कभी बोले थे मझु से,


उनसे ये दिल आज तक भी पिघल रहा है |

तेरे साथ हूँ तो हर अजं ाम हसीं होगा,


ये दिल तेरे साथ की, चाहत कर रहा है |

‘नरू ’ उसकी मोहब्बत का ही असर तो है,


अँधरे ी राहों को अब ये इश्क रोशन कर रहा है |

दिल तेरी चाहत कर रहा है दिल का सफर 66


खुशी की बात करते हैं
चल आज उन बीते लम्हों को याद करते हैं,
क्ूँय रोये हम, कुछ खश
ु ी की बात करते हैं |

तेरे चेहरे के नरू का असर इस क़दर,


वो मेरे चेहरे पर खश ु ी का आगाज़ करते हैं |

इतनी बार बोला तमु ने हमसे, कि प्यार है,


लो आज हम भी इज़हार-ऐ-मोहब्बत करते हैं |

आसं ंू के साथ, ये लफ्ज़ मसु ्कराहट लायेगें,


वो हमें दिलो जान से इतना इश्क जो करते हैं |

वक्त चला गया तेरे जोबन का तो क्या हुआ,


हम आज भी तमु को उतनी ही मोहब्बत करते हैं |

खुशी की बात करते हैं दिल का सफर 67


जब इश्क मजबूर नज़र आता हो
तनू े मझु े अपना माना हो या ना माना हो,
दिल के करीब चाहे मेरी कोई जगह ना हो |

हैं चाहे मेरी हर आहट अब भी पराई,


मेरी हर कोशिश में मतलब दिखता हो |

ना जाने कै से समझा पायेगें हम उसको,


जब वो हर बात से कुछ अन्जाना सा हो |

तमु से इतना इश्क है,कै से भल


ू ें तमु को,
जब तमु को भल ू ना जिदं गी भल ू ने जैसा हो |

कोशिश है बस इतनी,मेरा प्यार,ये इश्क,


तेरे दिल के ज़ख्मों पर मरहम जैसा हो |

ना गिराना कभी इन आँखों से आसं ,ंू


बहुत दर्द देते हैं, जैसे कोई नश्तर सा हो |

तेरी सलामती की दआु करता है ‘नरू ’ हमेशा,


क्या फरक,चाहे खदु का जीवन दोज़ख1 जैसा हो |

1. दोज़ख = Hell

जब इश्क मजबरू नज़र आता हो दिल का सफर 68


देश परदेश - अपने पराये
परदेस में बैठ कर, मेरा देश और अपना लगता है,
कभी सपनों को परू ा करना भी, एक सपना लगता है |

आये इतनी दूर यहाँ, कागज के टुकड़ों के खातिर,


खदु का जीवन, अब शाख से टूटा एक पत्ता लगता है |

खदु की आस, खदु की प्यास ना जाने कहाँ खो गयी,


चदं सिक्कों की भख
ू का असर दिल पे छाया लगता है |

कभी जिनके बिना ये जिंदगी अधरू ी सी लगती थी,


उन रिश्तों का वो अपनापन, जाने क्ूँय पराया लगता है |

बंध गया हूँ खदु में यँ,ू चक्रव्यूह है चहुँ ओर मेरे,


निकल पाना जैसे यहाँ से, अब जीवन का अतं लगता है |

अपनी ही क़ै द में था अब तलक, आज़ादी सपना था,


आया है जो यहाँ निज़ात दिलाने, वो तेरा साया लगता है |

देश परदेश - अपने पराये दिल का सफर 69


मंज़र-ऐ-जिंदगी
मेरे इर्द गिर्द, ये मेरे आस पास
यँू अचानक क्ूँय उड़ने लगी ख़ाक ख़ाक |

ये समां तो है सावन का फिर भी,


दिल क्ूँय जलने लगा, होने लगा राख राख |

मैंने तो बस इश्क किया, नहीं जर्मु कोई


फिर हर गली क्ूँय होने लगी मेरी बात बात |

ये इश्क की बेचनै ी है या फिर और है कुछ


नींद नहीं है आँखों में, जागता हूँ मैं रात रात |

कोई बात नहीं हमदम तमु जो पास नहीं,


हूँ तेरी आस में, तेरी याद रहती आस पास |

मंज़र-ऐ-जिंदगी दिल का सफर 70


तुझसे मोहब्बत है
यँू तो क्या था मैं, सिर्फ ज़र्रा ऐ ज़मीन,
खदु से पहचान, तेरे प्यार में खोकर किया हूँ |

सावन कितने आये जिंदगी में, रहा सहरा में,


तेरी मोहब्बत के सहारे , खदु को तर किया हूँ |

यँू ठुकराया मझु को इस जहान ने, गम नहीं,


एक तेरे आगोशे मोहब्बत में, बसर किया हूँ |

हर दःु ख तकलीफ,गम से तू दूर रहे,


माँगते हुए ये दआ
ु शब से सहर किया हूँ |

तेरे चेहरे पर हसं ी खेलती रहे हमेशा,


खदु को फना, तेरी हसं ी के दीदार पर किया हूँ |

यादों को जेहन से भलु ाने मैखाने भी गया,


हर इक ज़ाम में, तेरा ही नज़ारा नज़र किया हूँ |

मैं जीता हूँ यहाँ टुकड़ों में,तू वहाँ आधी अधरू ी,


आ जाओ सनम,हर पल तेरा इन्तेज़ार किया हूँ |

तुझसे मोहब्बत है दिल का सफर 71


कॉलेज का ज़माना
वो भी क्या मस्ती का टाइम साला, क्या गफलत भरा ज़माना था
लेक्चरर को तंग कंरना तो बस, मस्ती का एक बहाना था

लड्डू बॉस,मिलिट्री ग्राउंड, रै गिग का शैशन, था इक मौका,


वही ँ से बस एक जय-वीरू टाइप की दोस्ती को शरू ु होना था |

कौशिक बॉस ने बहुत उड़ाया था, चील कौव्वे और कबतू र बना कर,
अब ट्रिपल एस की क्लास में किसी को कुत्ता बिल्ली तो बनाना था |

भाई लेकिन यहाँ जान की परवाह तो सबको ही थी अपनी,


सो नो रिस्क,गोदारा की क्लास में सबको चपु बैठ जाना था

बैठना वो कैं टीन में, कोल्ड ड्रिंक दारु जैसे चड़ाते हुए हम सब का,
आलू का कहना हमें तो ले आया, लोके श को भी बंक कराना था

सारा दिन कैं टीन में रहना बैठे, बस टांग खींचना गप्पे हांकना,
शाम होते कहना अबे साला भल ू गए, संजय शर्मा की क्लास जाना था

मिड सैम के आधे घटं े पहले पढ़ना, भागते हुए माथरु को ढूंढना
क्ूँय पढ़ रहे थे अग्रें जी में, माथरु से पहले ट्रांसलेट करवाना था |

लटके हुए थोबड़े लेकर बाहर निकालना, दूसरों का खश ु ी मनाना,


वो शिकायतें करना उनसे,साले इम्पोर्टेंट पता थे तो पहले बताना था

फिर नंबर भी क्या करते,आते भी तो कहाँ से, लिखा कहाँ था


रोनी सरू त बना के , घटिया नंबर लेकर वापस घर ही आना था |

फिर दूसरे ही हफ्ते, नाचना गाना और फुल टाइम मस्ती,


क्या करते फंक्शन ही होते थे इतने, गम का कब तक ठिकाना था |

फिर रात को आना कॉलेज से वापस, अपनी फटफटीयों पर,


मस्ती कहाँ हुई थी अभी तक परू ी, अभी तो मायरी गाना गाना था |

वक्त कहाँ रुका था, कभी किसी के लिए, जो हमारे लिए रुकता,
हो गयी मद्दु त उसको बीते हुए, जो कहलाता कॉलेज का ज़माना था |

कॉलेज का ज़माना दिल का सफर 72


तेरे ख्यालों में
समदं र की ताज तमु लहरें , कै से तमु ्हारा नसीब ना होगा
तैरोगी सरहदे समदं र, साहिल पे आके तमु को टूटना होगा |

मझु े दर्द ओ गम है, डर है तमु से जदा


ु ई का
डरता ना हो, ऐसा इस जहान में कोई इसं ान ना होगा |

यँू तो दिखलाता है बखबू ी, कि तू पत्थर दिल है,


माने गर तेरी बात, सीने में धड़कन जैसा कुछ ना होगा |

पर उसमें भी है धड़कन, जो दिल तेरे सीने में हैं,


अब ज़ज्बात भरे हों जिसमें बेंतेहाँ, वो पत्थर ना होगा |

यँू करवटें बदलता ही रहेगा वो रात भर बेचनै ी में,


नींद ना होगी तो उसकी आँखों में सनु हरा ख्वाब ना होगा |

तमु हो फ़रिश्ते जैसे पाक, क्या कसरू ‘नरू ’ का,


हम तो संभल जाएँ पर कै से ज़माना तेरा आशिक ना होगा |

तेरे ख्यालों में दिल का सफर 73


अनकहे लफ्ज़
कभी कुछ तो कह पाऊँ खामोश हूँ कब से,
चरु ा ले जाती हो क्यों मेरी नींद यँू मझु से

प्यार है बेइन्तेहाँ ये माना है मैंने,


हिम्मत ना जटु ा पाया कि कह दूँ तमु से

कोई ना जाने, हाले दिल जानँू बस मैं,


चपु हूँ जब से प्यार का एहसास यँू तझु से

ये गम,ये जदा
ु ई कुछ भी नहीं जाने जाँ,
इक तेरी खामोशी जो चैन चरु ाए यँू मझु से

काश ऐसा हो कभी तू खदु आये मेरे करीब,


कहे इश्क-ओ-मोहब्बत के लफ्ज़ यँू मझु से

कभी तो हो खदा
ु हम पर मेहरबान इतना,
खश
ु हों हम, जदा
ु ई के लम्हे दूर यँू हम से

अनकहे लफ्ज़ दिल का सफर 74


हर क्षण द्वैतता का रण
क्षत-विक्षत शरशैया पे लेटा भीष्म सा मन में,
और मैं ही लड़ता अजर अमर हरि सा रण में

ये मैं हूँ या कौन जो प्रेमपंख पर बैठा है,


कोई और है या मैं हूँ इस क्रोध भीषण में

व्यथित हो मैंने दूढं ा उसे यहाँ वहाँ जाने कहाँ,


दःु ख व्यर्थ, वो तो है समाया मेरे हर कण में

चलती हैं जब शवासें उसके ह्रदय स्पंदन से


कै से होगी ह्रदय की उद्वेलना किसी कारण में

दःु ख की काली छाया जब मन पर छा जाती


पाता तमु को मैं उज्व्वल करने वाली किरण में

विरह ताप से पावन होता है अनश्वर होता है


विरह ही प्रेम है, नहीं है ये प्रेमी की शरण में

हर पल छलने को छलावे हैं यहाँ बहुत सारे


राम नहीं पर मारा मारीच हर स्वर्ण हिरण में

काया को पाषाण सा ना जानो नशवर हूँ मैं


मन-कुरुक्षेत्र का अतं अब काया के ही मरण में

वो अद्वैत है एक ही है रूप उसका दूजा नहीं


पर उसके ही अनेकों रूप मिलते ग्रन्थ परु ाण में

खदु को दो रूपों में देख अतं र्मन विचलित है


खोजता द्वैत में अद्वैत को हर पल हर क्षण में

मैं क्षत विक्षत शरशैया पर भीष्म सा मन में,


और मैं ही लड़ता अजर अमर हरि सा रण में

हर क्षण द्वैतता का रण दिल का सफर 75


तेरा मेरा कल, तेरा मेरा आज
तझु से अलग मैं, मझु से तू थोड़ा दूर ज़रा था
खता ना तेरी ना मेरी, वक्त ही अलग सा था

था इश्क तेरे दिल में, और मेरे दिल में भी,


छाया था जो हम पर वो अब्र1 बदगमु ानी का था

कड़कती बिजलियाँ, कहीं थी तेज आधि ं याँ,


तेजाबी बारिश में कहीं कहीं दिल भी जला था

जलता भी ना तो और क्या करता ये दिल,


उसने कितनी आसानी से हमें बेवफ़ा कहा था

अब आये हो हाल पछू ने मेरा, तब कहाँ थे,


ज़माने ने दिल को दिल नहीं खेल समझा था

जो होना था, वक्त के साथ होते हो ही गया,


टूटे दिल के साथ आये करीब एक तो होना था

यकीन नहीं है हम पे उसमें तेरा क्या कसरू ,


तदबीरे खदा
ु , वक्त रहते तेरे पास ना भेजा था

कोशिश करते हुए अरसा हुआ, असर हो जाए,


जल जाए चिरागे इश्क, जो सालों से बझु ा था

1. अब्र: Cloud

तेरा मेरा कल, तेरा मेरा आज दिल का सफर 76


एक दीवानी
कै सी है जिस्त क्या क्या इम्तिहान ले जाती है
वो दूर हों या पास मझु को यादें बहुत सताती हैं

खदाु जाने तमु को ये एहसास है भी या नहीं


कै से तमु ्हारी खामोशी, मेरी जान ले डालती है

तमु से अलग हो के भी मैं कहाँ अके ली हू,ँ


तमु ्हारी बातें यादें मझु े कभी तनहा कहाँ छोड़ती है

जला जला के मारा तमु ्हारी बेरुखी ने,देखो कहाँ,


क्या बचा मझु में, अरमानों की राख रह जाती है

बहुत सयाना शायर था सही कह गया वो ग़ालिब,


आग का दरिया है,जलता है सब, ख़ाक बचती है

सब बचपन की सहेलियां पछू तीं हैं, क्ूँय दीवानी


आज-कल तेरा ठिकाना क्या है, कहाँ तू रहती है

आधी ख्वाहिशें दर्दे इश्क बयाँ करूँ पर वो नासमझ


उन्हें मोहब्बत ये उल्फत, फू लों की सेज लगती है

तमु ने इख्तियार किया ‘नरू ’ जिंदगी का रास्ता दूजा,


परु ानी राह खड़ी दीवानी आज भी तेरी राह तकती है

एक दीवानी दिल का सफर 77


देना ही है अगर
मेरे सामने हमेशा रास्ता-ऐ-उल्फत रहा
शलू काँटें मेरी आहें अब और ना सता

गर जिल्लत ही देनी है मौला तो दे दे


रहम कर इज्जत के अलफ़ाज़ ना सनु ा

मौत ही बक्शी है जो तनू े दर्दनाक तो


बहारे जिंदगी की झठू ी राहें ना दिखा

दश्म
ु नी ही आनी जो मेरे हिस्से ठीक है
पर दोस्तों से खजं र के वार ना खिला

जल जल के ज़ज्बात कोयला बन चक ु े,
कोयले को यँू सल
ु गा कर राख ना बना

नहीं उसको इश्क मझु से कोई बात नहीं,


इस हिज्र को उल्फत का सिला ना बता

महरूम रखना है यार से तो बेशक रख,


मेरा कह उसे यँू गैर-दामन में ना गिरा

मौसमे गम में अभी रातें और काली होंगीं,


गाहे बगाहे ऐ खदा
ु तू इसे गहरा ना बना

देख कब से चल रही हूँ स्याह राहों पे,


ग़मों के अँधरे ें हैं मिले बस वो ‘नरू ’ ना मिला

देना ही है अगर दिल का सफर 78


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Alok ‘Noor’
4th April 2011

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