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ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुश्तानाम वाचं मुखं पदं स्तम्भय

् ं विनाशाय ह्लीं ॐ स्वाहा


जिव्हां किलय बु दधि
सर्वशक्ति सम्पन्न  बगलामु खी साधना

यह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है , वहीं कोर्ट, कचहरी में , वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में
सक्षम है । इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है । उसके मु ख का ते ज इतना हो
जाता है कि उससे आँ खें मिलाने में भी व्यक्ति घबराता है । आँ खों में ते ज बढ़े गा, आपकी ओर कोई निगाह
नहीं मिला पाएगा एवं आपके सभी उचित कार्य सहज होते जाएँ गे। सामने वाले विरोधियों को शांत करने में
इस विद्या का अने क राजने ता अपने ढं ग से इस्ते माल करते हैं । यदि इस विद्या का सदुपयोग किया जाए तो
हित होगा। हम यहाँ पर सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली, कोर्ट में
विजय दिलाने वाली, अपने विरोधियों का मुँ ह बं द करने वाली भगवती बगलामु खी की आराधना साधना  दे
रहे हैं ।

गु रु दिक्षा ले कर मं तर् का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो वह मं तर् निश्चित रूप से सफलता दिलाने
में सक्षम होता है ।

इस साधना में विशे ष सावधानियाँ रखने की आवश्यकता होती है । इस साधना को करने वाला साधक पूर्ण
रूप से शु द्ध होकर (तन, मन, वचन) रात्री काल में पीले वस्त्र पहनकर व पीला आसन बिछाकर, पीले
पु ष्पों का प्रयोग कर, पीली (हल्दी या हकीक ) की 108 दानों की माला द्वारा मं तर् ों का सही उच्चारण करते
हुए कम से कम 11 माला का नित्य जाप 21 दिनों तक या कार्यसिद्ध होने तक करे या फिर नित्य 108 बार
मं तर् जाप करने से भी आपको अभीष्ट सिद्ध की प्राप्ति होगी।खाने में पीला खाना व सोने के बिछौने को
भी पीला रखना साधना काल में आवश्यक होता है वहीं नियम-सं यम रखकर ब्रह्मचारीय होना भी
आवश्यक है ।

सं क्षिप्त साधना विधि, छत्तीस अक्षर के मं तर् का विनियोग ऋयादिन्यास, करन्यास, हृदयाविन्यास व
मं तर् इस प्रकार है --

विनियोग
ऊँ अस्य श्री बगलामु खी मं तर् स्य नारद ऋषिः
त्रिष्टु प छं दः श्री बगलामु खी दे वता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः प्रणवः कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयार्थे जपे
विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास-नारद ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टु य छं द से नमः मु खे, बगलामु ख्यै नमः, ह्मदि, ह्मीं बीजाय
नमः गु हये , स्वाहा शक्तये नमः पादयो, प्रणवः कीलकम नमः सर्वां गे।

हृदयादि न्यास
ऊँ ह्मीं हृदयाय नमः बगलामु खी शिरसे स्वाहा, सर्वदुष्टानां शिरवायै वषट् , वाचं मु खं वदं स्तम्भ्य कवचाय
् ं विनाशय ह्मीं ऊँ स्वाःआआ फट् ।
हु, जिह्वां भीलय ने तर् त्रयास वै षट् बु दधि

ध्यान
मध्ये सु धाब्धि मणि मं डप रत्नवे घां
सिं हासनो परिगतां परिपीत वर्णाम्।
पीताम्बरा भरणमाल्य विभूषितां गी
दे वीं भजामि घृ त मु दग्र वै रिजिह्माम ।।

मं तर् इस प्रकार है --
ऊँ ह्लीं बगलामुखी सर्व दु ष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय
् ं विनाशय ह्लीं ऊँ फट स्वाहा।
बु दधि
मं तर् जाप लक्ष्य बनाकर किया जाए तो उसका दशां श होम करना चाहिए। जिसमें चने की दाल, तिल एवं
शु द्ध घी का प्रयोग करें एवं समिधा में आम की सूखी लकड़ी या पीपल की लकड़ी का भी प्रयोग कर सकते
हैं । मं तर् जाप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मु ख कर करना चाहिए।

भगवती बगलामु खी का 36 अक्षरों वाला मन्त्र निम्नानु सार है -


'ॐ ह्रलीं बगलामु खि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तं भय जिह्वां कियल बु दधि
् ं विनाशय ह्र्लीं ॐ स्वाह्।"
विनियोग :- "अस्य श्री बगलामु खी मन्त्रस्य नारद ॠषि बृ हती छन्दः बगलामु खी दे वता स्त्रूर्णा
स्तम्भनार्थे ( वा-मयाभीष्ट सिद्धये ) जपे विनियोगः।
विधान :- इस मन्त्र का विधान निम्नानु सार है -
अचमन तथा प्राणायाम करने के पश्चात दे श-काल का विचार करते हुए बगलामु खी-मन्त्र की सिद्धि हे तु
जप-सं ख्या के निर्दे श तद्दशां श से क् रमशः हवन, तर्पण, मार्जन एवं ब्राह्मण भोजन रुप पु र्श्चरण करने का
सं कलप करें । फिर निम्नलिखित मन्त्रों से न्यास करें ।
ॠष्यादि-न्यास :- "ॐ नारद ॠषये नमः शिरसि। बृ हतीच्छन्द से नमः मु खे । बगला दे वतायै नमः ह्रदि।
ह्रलीं बीजाय नमः गु हये । स्वाहा शक्तये नमः पादयों। विनियोगाय नमः सर्वागे ।"
न्यास के पश्चात भगवती बगला का निम्नानु सार ध्यान करें
ध्यान:- सौवर्णासन सं स्थिता त्रिनयनां पीतां शु कोल्लासिनीं
हे माभाङरुचिं शशांकमु कुटां सच्चम्यक प्रग्यु ताम्।
हस्तौर्मुदगरपाश वज्ररसना सं बिभ्रतींभष ू णे
व्र्याप्ताङी बगला मु खींत्रिजगतां सं स्तं भिनीचिन्तये त॥

तन्त्रान्तर मे ध्यान का अन्य स्वरूप इस प्रकार बताया गया है -
मध्ये सु धाब्धि मणिमण्डप रत्नवे दी सिं हासनोपरिगताण परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरणमाल्य विभूषियाताङी, दे वींनमामि धृ तमु दगर वै रिजिहवाम्॥
जिहवा-गमादाय करे ण दे वी वामे नशत्रुं परिपिड्य्न्तीम्।
गदाभिधाते न च दक्षिणे न पीताम्बराह्मां द्विभु जां नमामि ॥
पीठ पूजा :- उक्त विधि से ध्यान कर, पूर्वोक्त मन्त्र का एक लाख की सं ख्या में जप करे तथा चम्पा के
फू लों से 11 हजार आहुतियां दें । फिर 'बगला मन्त्र' की आवरण-पूजा कर धूप-दीप आदि उपचारों से
विधिवत दे वी का पूजन कर यथाशक्ति जप करना चाहिए।
पु रश्चरण :- इसका पु रश्चरण एक लाख जप तथा दस हजार चम्पा के फू लों से दशां श होम, उसका दशां श
तर्पण, उसका दशां श मार्जन तथा उसका दशां श ब्राह्मण-भोजन है । ऐसा करने पर मन्त्र सिद्ध हो जाता है ।
मन्त्र के सिद्ध हो जाने पर प्रयोगों की साधना करनी चाहिए । तन्त्रान्तर के अनु सार-पीताम्बर अर्थात
पीले वस्त्र धारण कर, पूर्व दिशा की ओर मु ह करके पृ थ्वी पर बै ठकर, हल्दी की गांठों की माला द्वारा
ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए पीतवर्ण वाली दे वी के ध्यान में तत्पर रहते हुए तथाअ प्रिय भाषण करते
हुए। लाख की सं ख्या में मन्त्र जप करना चाहिए तथा पीले रं ग के पु ष्पों से ही हवन करना चाहिए।
मन्त्र प्रयोग के समय पु नः दस हजार मन्त्रों का जप करना चाहिए ।
काम्य- प्रयोग विधि:- 1. मधु . शर्क रा यु क्त तिलों से होम करने पर मनु ष्य वश में होते है ।
2. मधु . घृ त तथा शर्क रा यु क्त लवण से होम करने पर आकर्षण होता है ।
3. ते ल यु क्त नीम के पत्तों से होम करने पर विद्वे षण होता है ।
4. हरिताल, नमक तथा हल्दी से होम करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है ।
5. रत्रि के समय श्मशान की अग्नि मे कोयला, घर का धु आँ, राई तथा भैं सा गूगल से होम करने पर शत्रु
का शीघ्र नाश होता है ।
6. गिद्ध तथा कौए के पं ख, सरसों का ते ल, बहे ङा तथा घर का धु आं इनका चिता की अग्नि मे होम करने पर
साधक शत्रु का उच्चाटन कर दे ता है ।
ू , गिलोय तथा लावा को शहद घृ त तथा शक्कर के साथ मिलाकर होम करने पर सभी रोग शान्त  हो
7. दर्वा
जाते है ।
8. समस्त कामनाओं की सिद्धि के लिए पर्वत पर, वन में , नदी के तट पर अथवा शिवालय मे बै ठकर एक
लाख मन्त्र-जाप करे तथा मधु एवं शर्क रा मिश्रित एक रग वाली गाय के दश ू को तीन सौ मन्त्रों से
अभिमं त्रित करके पीने से सब प्रकार के विषो का प्रभाव नष्ट हो जाता है ।
9. श्वे तपलाश की लकङी से निर्मित उत्तम खङाऊँ को आलता से रं ग कर, उसे इस मन्त्र द्वारा एक लाख
बार अभिमं त्रित कर पां व में पहन कर चलने से क्षण भर मे ही सौ योजन की दरू ी तय हो जाती है ।
10. पारा, मै नसिल तथा शहद के साथ पीस कर उक्त मन्त्र द्वारा एक लाख बार अभिमं त्रित कर, अपने
शरीर पर ले प करने वाला मनु ष्य अदृश्य हो जाता है तथा इस दृश्य को दे खने वाले सब लोग आश्चर्य
चकित रह जाते है ।
11. हरताल तथा हल्दी के चूर्ण को धतूरे के रस में मिलाकर उस षट् कोण मे 'ह्रीं' बीज के साथ 'अमु कं
स्तम्भय' लिखें । फिर मन्त्र के शे ष अक्षरो से उसे वे ष्टत कर, भूपर का निर्माण करे । तदुपरान्त कुम्हार के
चाक की मिट् टी लाकर उसके द्वारा एक सु न्दर बै ल की मूर्ति तै यार करे । उस मूर्ति के भीतर मन्त्र को रख दें
। फिर उस बै ल पर हरि ताल का ले प करके प्रतिदिन उसकी पूजा करे । इससे साधक शत्रुओं की वाणी
तथा उनके सभी क्रियाकलापों को स्तं भित कर दे ता है ।
12. श्मशान भूमि मे बांये हाथ से खप्पर ले कर उस पर चिता के कोयले से यन्त्र को अभिमं त्रित करके
शत्रु की भूमि मे ग़ाढ दें तो उसकी गति स्तं भित हो जाती है ।
13. इसी यन्त्र को शव के वस्त्र के ऊपर चिता कोयले से लिखकर, में ढक के मुं ह में रखें । फिर उसे पीले
वस्त्र मे लपे ट कर पीले पु ष्पों से इसकी पु जा करे तो शत्रुओ की वाणी, स्तं भित हो जाती है ।
14. जिस स्थान पर दिव्य (आलोकिक) घटनां ए घटित होती रहती हों । वहां इस यन्त्र को लिख कर अङसे
के पत्तों द्वारा उसका मार्जन करने से उन घटनाओं का स्तं भन हो जाता है ।
15. इन्द्र वारुण की जङ को सत बार अभिमं त्रित करके पानी में डाल दे ने से वरुण आदि दे वों द्वाराकी गई
जलवर्षा आदि का स्तं भन हो जाता है ।
अधिक क्या कहा जाय, इस्मन्त्र की यदि भली भां ति साधना की जाए तो यह शत्रुओं की हर प्रकार की
गति तथा बु दधि ् को स्तं भित कर दे ता है ।इसमे कोई सन्दे ह नही है ।

बगलामु खी यन्त्र
`बगला`दस महाविह्नाओं मे एक है । इसकी उपसना से शत्रु का नाश होता है । शत्रु की जिह्म, वाणी व
वचनों का स्तम्भन करने हे तु इससे बढकर कोई यन्त्र नही है । इस यन्त्र के मध्य बिं दु पर बगलामु खी दे वी
का आह्मन व ध्यान करना पडता है । इसे पीताम्बरी विद्या भी कहते है क्योंकि इसकी उपासना मे पीले
वस्त्र, पीले पु ष्प, पीली हल्दी की माला एवं केसर की खीर का भोग लगता है ।
इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, शट् कोण, वृ त, अष्ट् दल वृ त, षोड्शदल एं व भूपुर की रचना की गई है ।
नु कसान पहुंचान्र वाले दुष्त शत्रु की जिह्म हाथ से खीचती हुई बगला दे वी का ध्यान करते हुए शत्रु के
सर्वनाश की कल्पना की जाती है । इस यन्त्र के विशे ष प्रयोग से प्रेतबाधा व यक्षिणीबाधा का भी नाश
होता है ।

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