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खाई के परे
मोती लाल
भूिमका
ितज क ओर अ सर होते ह ।
मोती लाल
अनु म
शीषक पृ शीषक पृ
ब ती 04 म खोया नह ं रहंू गा 76
मंगलसू 06 चुनौती 78
िचंताएं 12 वह ं होगा ेम 82
ववशता 25 आ खर या करता 93
दे हर के पीछे 27 दरअसल 95
बची हई
ु पृ वी 52 श द का होना 117
बचाए रखने क मजबूर 55 सू का रह य 120
फासले 57 स य क कल 123
फर कभी नह ं 63 हम नह ं थे 129
यव था 71 अ त व
137
ब ती
चमड़े को छूने से
और मन बहकता है
गम सांस क महक से
उनक आंख म
उनके दे खने भर से
और तन फैल जाता है
पसरते डै न को दे खकर
तब बंध जाती है
उनक नाक म कह ं
और आंच ख म होती है
पेट के आंच म ह कह ं
उनके हर सपन म
इन दरवाजे वह न घर म
और दे खता
झड़ते तन से
हमारे घर म ब च को ।
मंगलसू
जब बक गई थी
तु हार हाथ क
सार चू ड़यां
कान के झुमके
नाक क नथनी
पांव के पाजेब
मन का शीशा
पता नह ं तब
ू था या नह ं
टटा
जब बक गये थे
तु हार रसोई के
सारे बतन
चू हे क राख के साथ-साथ
रजनीगंधा का गमला भी
पता नह ं य
तु हारे ह ठ ने पी िलया
आंसुओं को
या सूख गया
बेजान आंख म ह कह ं
जब बक गये थे
तु हारे घर के
सारे कपड़े
और नह ं बची थी
कोई एक प क ट भी
पता नह ं य
नल का पानी
या पहंु च गई तुम
इन सबसे परे
संवेदना वह न ितज पर
अब जब बची है
िसफ एक मंगलसू
और वह
पता नह ं य
जसे होना चा हए
तु हारे भीतर
वह नजर नह ं आता है
और लाल-ितरछ रे खाएँ
उसका या तु हारा
तुम ितज पर
सुबह क सूरज सी हो
तुम हो िच ड़य जैसी
फुदकती रहती हो
अपने आंगन म
और फूल सी मु कान भी
तुम हो सकती हो
गंगा
यमुना
सर वती
या फर
ल मी
पावती
म रयम
पर तुम नह ं हो सकती
इनम से कोई एक आ था
जब भी
कमल सा नयन है
चाल हरणी सी है
पर नह ं दे खा गया
और झ क दया गया तु ह
रसोई क आंच पर
बताया गया
इन सबसे परे
तु ह बताना चा हए
क तुम इ दरा हो
मदर टे रेसा हो
मेधा पाटकर हो
या फर तुम
महादे वी हो
अमृता हो
तु ह नह ं बनना है
चू हे क आंच
या दहे ज क जांच
बनानी है एक रे खा
जो तु हार दे हर से
ितज क ओर जाती हो
और पहंु चती हो
मेर िचंता है क
और सुला सकूं ब च को
उनक िचंता है क
कैसे छठ मं जल शीश का हो
और ाइं ग म म हो
हसै
ु न क सव म कलाकृ ित
तु हार िचंता है क
कैसे इस बार भी
और खुल जाए
वदे शी बक म एक खाता
िचंताएं अनंत है
कसी के िलए
ेम एक िचंता है
तो दहे ज दसर
ू िचंता
नौकर एक िचंता है
तो टे टस दसर
ू िचंता
पर िचंताओं के इस बक म
एक अ छ िचंता भी है
जैसे पयावरण
एक अ छ सी रचना
शांित वाता
उठती है आकाश क ओर
और नह ं िमलता है उसे
तवे पर रोट
और जलाती है
सभी िचंताओं को
सूखी टहनी पर
जो चील बैठा है
मुग के ब च को
और उड़ाना चाहता है
उन मासूम ब च को
िचंताओं क पं
यह ं नह ं ख म हो जाती
एक ितरछ रे खा
रसोई से उठकर
मंगल तक पहंु चती है
जो हो
सम त िचंताओं के बीच
एक असली िचंता
हमेशा से हािशये पर
चली जाती है
आम आदमी क िचंता
कुछ नह ं होता
एक सा कभी कुछ नह ं होता
न ज म, न मृ यु
दो लाल गुलाब
सुख खून सा
मने दे खा
वे एक सा नह ं ह
आज क रात
गुजरा हआ
ु दन
आज के दन सा भी नह ं है
मने यह भी दे खा
एक सा नह ं है
डरते-डरते ह मने
चढ़ायी थी आंच पर
और दे खा था
भाप बनते हए
ु पानी को
दध
ू तो कब का
उतर चुका था
सेठ क ितजोर म
चमगादड़ के ची कार से
घटाटोप अंधेरे म
एकदम से नह ं सुझा
इस दिनया
ु के चमकते रोशनी म
जब पहली बार
आंख खुली थी
तभी जाना था
रोशनी क दिनया
ु को
और आंख च िधया गई थी
और उन रोशिनय को भी
इस दिनया
ु क चमकती रोशनी म
एक सा कभी नह ं होती ।
उजाला
मुझे अ छा लगता है
भरा-पूरा चांद
मुझे अ छा लगता है
शांत नद क बजाए
संगीत छे ड़ती नद
मुझे अ छा लगता है
सद से जूझते फूल
मुझे अ छा लगता है
क वता बुनना
मुझे अ छा लगता है
सुबह म मं दर क घंट
म जद का अजान
िच ड़य का कलरव
सूय का उगना
मुझे अ छा लगता है
हरा रं ग
जैसे हं सता हआ
ु पेड़
लाल रं ग
जैसे िसमट हई
ु गोधूिल क बेला
पव आदमी
िन छल सेवा
मुझे अ छा लगता है
सम त जीव
सम त संभावनाएं
जो दे सके
मानव को उनका अथ
और जल सके वे द प
टे ढ़े समय म
म चाहता हंू
चाहे िच ड़य का संगीत हो
या न दय का
या फर पता क संवेदना
इस टे ढ़े समय म
य न भूलने वाल म
जो बरबस खंचता है मन को
और आईने म दख जाता है
गम सांस क धड़कन
जो बहते ह
नद क तरह
महकते ह
फूल क तरह
चमकते ह
सूरज क तरह
बहत
ु मु कल होता है
म चाहता हंू
समय के धाग से
ब टया के िलए फ स
या फर माँ के िलए अदद साड़
समय के गुणा-भाग म
ब कुल नह ं बचता है
गये दो दशक से
मेरे फटे च पल ने
कोई अ छा समय
और मने आजतक
फूल क ख़ुशबुओं से
य भूलने क तार ख़
और उन धुंओं के बीच
कमरे का छ पर
ब कुल नह ं दखता
ना ह नजर आता
मु ने के िलए खलौना
भूलने का समय
अभी नह ं आया है
नह ं सूखी है
अभी याह
और बची है आंच
उनसे ेम
एक दन मेरा ेम
घु प अंधेरे से िनकलकर
और दे र तक सकता रहा
धूप क करण
जस दन
और तु हारा हाथ
गोबर से सना था
तु हार ववशता को दे ख
उस दन
एक उ माद वर
सागर सा वार
और एकदम उगा था
एक न हा सा पौधा
मेरे दय म ह कह ं
नह ं ठ क-ठ क
यह याद नह ं
म कहां था उस व
जब लहरायी थी
तु हार फा गुनी दप
ु टा
और अंगड़ाई के ार पर
उड़ रह थी उन हवाओं म ह कह ं
महआ
ु क तेज गंध
एक पल को लगा
घड़े का ठं डा पानी
तुम उं डे ले बैठ हो
हचकोले खा रहा हो
बहत
ु संभव था फसल जाना
तु हार पु बांह म कह ं
क म िलपट पड़ा था
ठ क लताओं क तरह ।
ववशता
बंद कमरे म
कह ं कोई छे द नह ं है
जो उतरता हो
ू मन म
मेरे टटे
एक िच ड़या
जो च च मारती है
शीश क खड़क पर
तब वािचका के मु कान को
वो न ह ं िच ड़या नह ं दे ख पाती
य द दे ख पाती तो
तब नह ं बैठ जाती
मुंडेर पे ह कह ं
और गुंथती उस मु कान क लड़
ठ क उसी समय
कुछ मेघ
उतर आते ह
नह ं खबर सुनने नह ं
ू मन म
मेरे टटे
फूल क खु बूएं
उड़ जाती ह
उतर आते ह
इस छोटे से कमरे म
घर क खड़क के पीछे से
बस, कार, ेन
और आदिमय क दौड़
आंधी क तरह
डोलते दखते ह
तब मन ब कुल नह ं चाहता
भागने को
उनके पीछे
और हर रोज
ठ क इसी समय
प ी ट फन पकड़ा दे ती है
और बेट क फ स
मुझे बस म ठे ल दे ती है ।
दे हर के पीछे
वह क वताएं नह ं िलखती
मुझे लगता है क वह
मेर आंख म
वह बुनती है
बांस से टोकर
प से दोना
और बांटती है र सी
वह बनती है
चावल से कंकड़
जंगल से लक ड़यां
और फंचती है कपड़े
वह जाती है खेत
और वह अंधेरे म
वह होने को हो सकती है
एक मुक मल कताब
पर उनके अ र को
नार से मोम
जो पघल जाता है
घर क रसोई म ह कह ं
वह भी चाहती है
दे ख चांदनी रात म
फसल को झूमते हए
ु
गाते हए
ु िच ड़य को सुने
जो वह गाती थी
अ हड़ बचपन म
म चाहता हंू
जो कभी भी नह ं चमका है
उसक दे हर म कह ं ।
मेर नींद
मुझे नींद क ज रत थी
और वह कह ं दख नह ं रह थी
पछली बार वह
म था उस फुटपाथ पर
अपने ब चे को िचमट
बेखबर सो रह थी फट गुदड़ म
और उधर वह लंगड़ा
म छर के िभनिभनाहट पर भी
और म अकेला जग रहा था
ठ क रे लवे टे शन क तरह
मने दे खा आकाश को
दे खा कुछ तारे लु थे
जो पहले पहर म
नींद को खोजने
इसिलए वो भी लु हो गये ह
मेर नजर से ।
गांधी के दे श म खौफ
अभी म या कर रह थी
दस
ू रे ह पल भूल जाती है
क म या कर रह थी
नह ं, टटा
ू नह ं है
जब म बैठ थी
एक काली ह शी ब ली
चूहे को झपटते हए
ु
जब ओस से भीगे घास म
रात क बा रश ने
लू क मार से सभी
घर म दबक
ु े बैठे थे
पहले छत हली थी
फर द वार
कुछ समझूं
तभी धमाका हआ
ु
शाम को
म नह ं दे ख पायी लािलमा
बजली गुल थी
डबर के म म रोशनी म
मने सुना
बड़ बेदद से
पहले गभ को चीर डाला
फर लहू से लथपथ
ूण को िनकाला गया
ह शी काली ब ली
और काली चील
मंडराते रहे थे
सुबह चू हे म
म लकड़ ठू ं स रह थी
तभी चुभा था
और म भूल गई
क अभी म या कर रह थी ।
अंतह न
अंतह न के अंत म
पर कोई नह ं है
न इस पार
न उस पार
बीच म
जो नद बह रह है
धाग के समु म
नह ं िमलती है
और नह ं सी पाती है
दर जन िच ड़या
समय के अंतराल से
पृ वी के ितज पर
एक दहकता फूल
जब ब चा बोलना सीखा ह था
माँ के आंचल म ह कह ं
पेड़ क फुनगी पर
तब भी नह ं दखा
दहकता सा सूरज
और ओस से भीगा पांव
लौट आया था
अपने ह दहलीज पर
जब ठ क होगा समय
कुहरे छं ट जाएंगे
जब ठ क होगा समय
हम ठ क रहगे
और रहे गी हमार आ थाएं
िम ट के संग
हम बांच पायगे
सबक संवेदनाएं
एक दसरे
ू के संग
हम ढो पायगे
दःख
ु का पहाड़ भी
हर मु कान के संग
और ले जाएंगे कदम
वन क ओर
मयूर के संग
जब होगा ठ क समय
और रे त का कला
द वार घड़ सा
आंगन से होता हआ
ु
अंतमन म
तब हिथयार का धार
और जला हआ
ु खिलहान
धानी रं ग सा
जुगनुओं क चमक
ग
ं ृ ार नह ं बन पाती है
और उमंग के अफलातून म
धूप भी नह ं छं टती है
उन समय के बीच
और नह ं िमल पाता है
ब चे को रोट
ठ क होने का
ठ क समय
अभी नह ं उतरा है
हमारे शहर म
जंगल क हवा ने
जकड़ रखा है
हार
मृित-शेष के सीलन पर
हम चूर-चूर हो जाएंगे
और चांद-तार के पार
अंत र म हम
सफेद हं स सी आंख
िन तेज नह ं होगी
और ई के बोर सा
और बचा लगे
अपने ह से का सूरज
क धती चीख
जब कभी भी
महाशू य के तलुए
ितज क ओट म
उ का पर ण कर
जब हम थके-मांदे
इितहास के प ने खोलते ह
हजार ब ब क सी आंख
मो क साधना म हम
प थर बनने से रहे
अंतमन को बुहार कर हम
खो जाने क बार
हम छोड़ चुके ह छठ सद म ह
अभी क णा क जमीन
पुखता हो रह है
और गम कर रहे ह हथेली
ता क जब कभी बछड़ा
और नेप य क घंट
जब उ ह सुनाई नह ं दे गा
तब हमार गम हथेली
धूमकेतु सा चमकेगी
और जला डालेगी
उन हाथ को
चू हे म सुलगती लक ड़यां
और हाथ सकने का उप म
कसी भी थित के व
जब असंसद य हो जाता है
एक क ड़ा रग जाता है
ता क सतक तं को
जाँच कमीशन
जो फबती तो हो
कालर के रं ग के संग
फुटपाथ पर
और घुल गया है
खौफ का धुआं
हवा बदनाम हो गई है
और चीख क आवाज
बता दे ती है
क वारदात तो हई
ु है
िलफाफे क तरह
बंद नह ं हो जाएंगे
सोमािलया या कालाहांड़
खुलेगी वे वारदात भी
पो टकाड क तरह
और उनका सपना
बह जाएगा नाली म
जब नह ं बन पाएगा
यह दे श एक सोमािलया
वारदात
िसफ वह ं ह
और सपने यहाँ ह
नीले समु
हरे जंगल
नीले आकाश
जहाँ बसी है
हमार अपनी िम ट
इतनी ज द
नह ं बदलेगी
कसी भी वारदात म ।
करवट लेना है
मान लो ण भर म ह
और सुकोमल क पनाएं
गुलाबी पंखुर सा
केसर से झड़कर
रं गे हए
ु अथह न म
त द ल होने से रह
और नागफनी क गोद म
बेदाग त नाई
बरसात के दपहर
ु सा
अभी नश का बादल
मदभर अंगड़ाई नह ं ली है
और मु पथ पर
याग का स मान
घोर कजराई म
तब भी नह ं बदलेगी
और कोई बव डर
नह ं उड़ा लेगा छत को
महज य व के िनखार पर
बंदक
ू क गोली
य द छूटती है तो
और या माँ टे रेसा को
अभी भी समय है
दे हर के पार झांकने का
और बुनने का सपना
जसे तुमने
चू हे क आंच म झ क द हो ।
हम ह उसम
उमड़ती लहर म कह ं
नौकाएं आगे बढ़ जा रह है
कतार म आते ब चे
और लंबे पेड़ के वन म
रात चुपके से उतर गयी है
मन को उ े िलत कर रह है
और िगरजाघर क मीनार से
वे कह ं से भी
और तेज बा रश क तरह
उसी न कारखाने म
और जल रह है आग
जंगल के उस कोने से
हमार रसोई तक
और जसक आंच से
और फटने को है वालामुखी
बदलने क या म है
और हर य क सीमा
अमरबेल क तरह
कल जो हवा
हम सुकून से भर दे ती थी
आज वह हवा
हम वचिलत कर जाती है
वा तव म
ज द क रै जीमट ने
हमार कोिशश है
और मौजूद रहे
यह तु ह वीकार नह ं
और कै टस के कांट म
िच ह बनकर
चाहे अ त व बगाड़ दे
या चांदनी चटका दे
तु हारे वीकार के अ त व म
य नह ं सुबह जग पाता है
चू हे क आंच पर
और ओस क बूंद पर
सारे ह
और पसीने के रस से
तु हारा सूरज
ज म बंद है
और उजाले क धार
खड़क से ओझल
कब वीकार के प ने
प ी के पर क तरह
करण झाड़कर
एक धधकता आंचल
मू य के भाव म
और धर रह जाती है
चू हे क आंच म ह कह ं ।
बची हई
ु पृ वी
वतमान क अंकुवाई हई
ु रोट ह तो है
आ खर पायदान समझे हम
पहंु च चुके ह सद क आग म
क यूटर कृ त युग म
वंिचत के िलए
सोते ह हम अंत र म
और बनाते ह रं ग के सपने
य के भीतर म कह ं
क जागा हआ
ु आदमी
वंिचत क ब ती म
कोई प ा न खड़का दे
और बुन न ले प थर म मानवीय र ता
व बाजार
क वताएं अब नह ं बची है
पढने क चीज
सोख ली है क वताओं क
हमार क वताओं म अब
िसरे से गायब ह
और परमाणु, क यूटर
भर जा रह है
और बन गयी ह क वताएं
अंत र का मीर
रोट के य के भीतर
पेड़ नह ं लहलहाता है
और िच ड़य का संगीत
या आपने कह ं सुना है
और भावना मक आ मीयता
कह ं आपने दे खा है
मेरे सं हालय से
ये चीज गायब हो गई है
मुझे लगता है
हो सके तो मुझे
उस मानव से िमलाना
रोबट के इस युग म
ज र है उस मानव से िमलना ।
बचाए रखने क मजबूर
हम उस समय म ह
जब हिथयार हमार ज रत ह
और सामा जक बंधन
ू
टटने के कगार पे ह
सारे जीवन का भा य
वाद-सं कृ ित म ख म हो रह है
अपने आप पर हँ स रहा है
कुछ व ोह होते ह
समय क खड़ पहाड़ पर
और बचा पाते ह
संवेदनाएं
आपसी र ते
और जीवन का भा य
अ यवहा रक मानकर
ब च को नह ं स पा जा सकता
और िस ा त के हिथयार को
शह द नह ं कया जा सकता
बौ क अवधारणाओं के प म
पर खूं टय म लटके
बदलाव क आंधी को
तालमेल क राजनीित
भला िस ा त को या खलायेगा
और या बना पायेगा
लोहे को गम
जहां सहानुभूित क आग
हमार ब ती म वराजती ह ।
फासले
मह वपूण है उस या से गुजरना
जहाँ स दय के खलाफ
चल रहे षडयं म
ितब ता क चुनौती
कलम से फूटकर
बड़ िश त से
सवाल को पाट दे ता है
साफ श द म
संपूण असहमितयां
सुंदरता बन जाती है क णा
तमाम आ ोश
भ व य के उजाले को
आ त करती है
आ खर सुंदरता को
कहां ले जाएगा
और यथाथ क असहमितय म
समय क संवद
े नशीलता को
अनुभूितय के परे
समय का मुकाबला
छं द क शु ता नह ं है
और सभी उ र का मुंह
उस उजाले म खुलते ह
ड को म त द ल हो गई ह ।
दासता
हम नह ं चा हए कोई द य भवन
उ ह ं दो प ल के बीच
पर उस काले प न को
यह जो है रा त के बीच बीच
यान से दे खो
छुपी है प थर म आग
और कोई भी पगडं ड़
अभी नह ं बदली है
क णा क ऊंची चोट पर
जहाँ हम संवेदनाओं को
कोई द य-भवन के न शे
पर क णा क जमीन
जो चीज उतरती ह
और दे जाती है फूित
उ ह ं से भय है तु ह
और धूप क गम म
यह ं से शु आत है
समय क नई द वार पर
ता क चैन क नींद
तु हार तरह
हम न आए
हम भी कोई द य-भवन ।
अपने कमरे म
ऐसा है क
अपने आईने के सम
ऐसा है क
नींद म कंपकंपाते हए
ु
ज ब करते हए
ु वचार को
बाल और परछाई से
नह ं दे खा जाता व ाम के पल को
म नह ं चाहता
ोध और व मरण के साथ
कह ं शम और भय से
उन मुहान से होकर
ऐसा है क
इस जजर कमरे म
पर कताब क दिनया
ु है
जब नह ं िमलती है उ ह शांित
मौजूद है वे आ माएं
समु ोत से
चुन लेते ह फ टक
मुसीबतजदा भूिम को
उ मु सी टय के बीच
ब कुल त हा पाता है
जस ह से म
जल ोत क धार
और जस प म
कोई नाव
वहां होने क हर ज रत
जहां न चुंबन क क ध है
न ह दोहराया जाता है
हवा के तंग रा ते तक
और अ य भंडार म
कई छे द हो गये
उन आ खर कदम म
जो दे गया उ ह
एक धारदार चाकू
और जहर ले िमथेल को
षडयं
समय तब भी बरसता था
जब हमारे पास
न चू हे म लकड़ थी
न चौखट म सूरज
क सभी हदशा
ऊंची रसोई म ह पकते थे
और जमीन म लोटती
समय के उपर
कभी भी नह ं उड़ पाये
वह भला या जानेगा
क मृ यु के भय से
अ ांश पर जा टं गी है
और हम बादल के गरजने से
फसल भी
योगशालाओं म जा पहंु ची है
और यव था क खेती
उनके पेटट म
बंद होकर रह गई है
अभी भी ह
हमारे सम
अपने प रवार क
ज ह हम हल तो बना लगे
और जोत दगे बैल क जगह
या उनक हदशा को
सुधार पायगे
और या उगा पायगे
समय के इस रे त से
एक मु ठ भर अनाज
उन चमकती हवाओं म
उन दमकते ऑ फस म
जहाँ से तय होते ह
हमारे मू य का
वह भयानक मू यांकन
हमारे चू हे का जलना ।
तलाश
ललचते हए
ु चमेली क सुगंध
परखते हए
ु पश म पुराना िमलन
लरजते हए
ु हँ सी क चमक
और खोते हए
ु सृ का शू य
बैठने क इ छा तो है
उन बरगद क छांह म
उन नद क तीर पर भी
मछिलयाँ आ जाती ह
और प रिचत दे ह क गंध से
चमेली क सुगंध
कपूर बन जाती है
मेरे सामने जो है
अ वकल, अख डत
सृ के शू य म
श द फूटगे
झोपड़ से
ू हए
टटे ु इं सान से
मासूम के यातनाओं से
कूड़ के ड ब से
और लुट आब के आंचल से
फूटगे श द
जब काला-कलूटा अंधेरा
खोप ड़य से चीखेगा
जब सद से ठठु रता हर रे शा
काले बाजार म
इं सािनयत को सड़ाकर
तब श द ज र फूटगे
श द को फूटना ह चा हए
चू हे म आंच
तन म कपड़े
मांग म िसंदरू
क वताओं म आग
और जंगल म फूल
एक दन इतने श द फूटगे
और उनके तमाम बल
तुम सोचते हो
नीची छत के प र य के उपर
वह तीखा सूरज
पु छल तारे क तरह
आसमान फोड़कर
य नह ं चम कृ त कर
सामने आ पाता है
तुम सोचते हो
अघो षत यव था क ज रत
इतना ासंिगक हो
क ताजादम ब तय से होकर
राख का सीधा र ता
उन पेड़ से झंडे
यादा क ठन िचंता है क
उन तार के पार
बहत
ु भीतर अनुप थत रहकर भी
यह ं रहते ह
एक च कत करने वाली यव था
यहां होने से रह
तुम सोचते हो
बांध लोगे
हमार य के ल बे बाल को
अपने आंगन म
संपूण िनभयता
अ डग खड़ा है
कम कहां रह गया है ।
आकां ा
यह दे खना
क कुएं के तल म
आवाज क ित विन
आ खर कस कार
काली परछा को चीरती है
अ सर पृ वी पर कोई लु जाित
कसी एक समय म
गोल म त द ल नह ं हो जाती
समय के दे शा तर म
और बंद कर जाते ह
उन दरवाज को
यह सुकून तो दे डालती है
इतनी ज द ऑ ंच से नह ं पघलगे
और असं य समापन क ओर
आ खर िलखने के म म
क वता क जगह
न क वता क रे तघड़
फर य द म वयं से कहा
क यह दे खना
उनको दे खने सा य नह ं है
स नाटे म ज र ख म होती है ।
म खोया नह ं रहंू गा
एक दन यहां
द पक क रोशनी म
िम ट से दो ती करे गा सपना
और अंगुली के इशारे पर
म खोदं ग
ू ा
उन सपन के िम टय को
एक दन यहां
व का लहू
न न वृ म बदल दगे
और कोरे कागज पर भी
उतर आयेगा
गहराई तक क सार िम ट
जनसे सपने
यहां एक दन
सारे व जत रा त पर
क वताएं चीखगी
और श द के तीर से
यु म भी बजेगा
वसंतो सव के गीत
िम ट क बात बताएगा
जब वह कहे गा
और झोपड़ से अंत र तक
एक रा ता बनने ह वाला है
म सोचूंगा
द पक क रोशनी म
सचलाइट सी आंख
अंत र म उड़ाने को त पर हो ।
चुनौती
अभी नुक ली च च म
कुछ उ मीद के पल
आशीष से प ल वत पु प सा
श दह न कायवाह म त द ल होने को है
सबसे पहले
अनुपयु श दकोश से
कसी या ा म बदलूग
ं ा
दगंत तक सुनायी न दे
ज र है
एक पक हई
ु रोट
एक धधकती हई
ु िचता
क सारे बयान के म य
तु ह नह ं पता होगा
मछिलय क तरह
एक छटपटाहट
दा खल होने के िलए
तु ह नह ं पता होगा
चीज क तरह
एक बेबसी
द ु दन के कह ं कोने म
तु ह नह ं पता होगा
एक यास
तु ह नह ं पता होगा
अ र क तरह
कोई ेम
त द ल होने के िलए
तु ह पता हो शायद
कोई पसीना
और कोई रोशनी
चू हे म नह ं समाती
ना ह कोई बाजा
क बांसुर क तान
और आकाश क लािलमा म
कोई र ता बैठता है या नह ं
मुझे बताना
इस र ते म म कहां हंू
मुझे पता है
क तु ह यह नह ं पता होगा ।
वह ं होगा ेम
जब कुछ नह ं रहे गा
तब गले से िनकली
सांस क िगनती
और ज र सवाल के कांटे
तब भी यह ं कह ं टं गे ह गे
सूजी हई
ु आंख म धारणा
बहत
ु कुछ कहता रहे गा
और यह ं कह ं ह गे
उ सव के वे गीत
जहां महए
ु के संग
पांव िथरकते ह गे
और सांस क िगनती
जस फूल म महकेगी
वे जंगल क कु टया म
जब कुछ
अंतस का हक
ू
आधे चांद क सा ी म
तब यह ं कह ं वे सभी पल
जंगल से िनकलकर
और कसी प क लौ म
एक न ह सी रोशनी
ी के जीवन म होती है
इतनी आंच
ी क आंच म होती है
इतना जीवन
ी क खुशी म होती है
इतनी खुशी
क फूल ठ क से खल नह ं पाता है
ी के ेम म होता है
इतना ेम
ी के दख
ु म होता है
इतना दख
ु
ी क मधुरता म होती है
इतनी मधुरता
ी क हं सी म होती है
इतनी हं सी
ी के डर म होता है
इतना डर
क घर का कोना कम पड़ जाता है
ी क लाई म होती है
इतनी लाई
ी के जीवन म होता है
इतना जीवन
क सृ तृ होकर रह जाती है ।
अंत र म ब तयाँ
जमीन से छूटकर
या अिच हत रा त म
या फर तमाम रह य के बीच
धुंओं क लक र से
बहत
ु कुछ बताती ह
जैसे आम का पकना
और चादर का फटना
अभी बाक है
शू य के बीच से गुजरकर
जहां आ द श क तेज
और दरवाजे के खुलने क ती ा म
ना ह उलट िगनती के अ र
कोई तालमेल ह बठा पाया है
और वार का उ च र चाप
और ताक रहा है
उन न हे ह क ओर
एक फूल बनकर
गुजरने क सीमा
अभी तय होनी है
और संवेदनाओं के जहर
अभी मूल प म
य क य तैयार है
जो बस जाएगी
अंत र म ब तयाँ
तय होने क सार तैयार
अ छा है
ठं डे ब ते म ह बंद रहे
तब हम दे ख पाएंगे
धरती क ह रयाली
और वषा का आगमन
कैसे मयूर को
पैर दे दे ते ह
तभी तो वे
जब कभी भी
सूय क लािलमा
और पलाश के फूल
कसी धधकते ग
ं ृ ार सा
चू हे म आ समायेगी
तब दे खना
और कमरे के भीतर
कुछ चीज
रोशन हए
ु बगैर
आभा बखेरती है
या फर कोई श द
पर परा के िनवाह म
फसल क ताजगी
अभी रा ता बनाने म
ता जंदगी जुट है
नद और पहाड़
एक दस
ू रे को ध कयाते
ना लािलमा को
न ह पलाश को
सह कोण से दे ख पा रहे ह ।
मेरे पास
मं -मु ध कर दे ने क कला
और सो सकूं िचंता मु
पसीन के कांटे ह
तभी तो उ के ाय प म
सभी नैितकता
और बादल क ओट म
उन सभी आ थाओं म
जहाँ द पक क रोशनी
और मटमैली चांदनी म भी
लौ क दपदपाहट
तब नैितकता के सारे
एक िसरे से खा रज होने को ह
िसरे से गायब ह
आ खर या करता
कभी सोचा भी नह ं था
क वकास का मतलब
खर दे जाने का बल होगा
क श द के धूप से
उ भर लड़े गी क वता
कभी सोचा भी न था
समकालीनता का मतलब
बंदक
ू क गोली तय करे गी
और गांधी के दशन म
श द क छाया खोजना
आ खर करता भी तो या
खु बू को नह ं लाया जा सकता
समकालीनता का वैभव
जहां से क णा रसती है
वह एक समय
क ल क तरह
वह एक समय
जहां से नद फूटती है
वह भी एक समय
दरअसल
क णा
वसंत क हो
या फर नद क
खाली घर को
या फर
बहत
ु आ ह ता-आ ह ता
सभी मोच पर
आ खर कब तक
अकेली लड़ पायेगी
इस वकट समय म
दरअसल
वसंत
नद क हो
या फर क णा क
जब मृित से
द तक दे ने से वंिचत रहे
और अपनी ह लहर से त नद
जब थके हए
ु वर के आवेग से
कांपती लौ क तरह
तब सचमुच
उलझ जाते ह
और खो गई नद के बारे म
बहत
ु मु कल से खोल पाते ह
इस धुंध और धूल म
हर मनु य के व
मानव के भीतर तक
िम टय और च टान से
और े म से बाहर खड़ा वह
बंजर जमीन पर
ठ क है हर प रिध के बाहर
हर कसी युग म
उ लािसत होने से रह
तब ज र है
उ मीद के क चे सूत से भी
ब च क खल खलाहट क तरह
नीरस संयोजन म भी
हम बांध ले असीम पल को
जो सपन को द तक दे सके
और दिनया
ु के शोरगुल से
बेखबर मु हाथ से
हर ज रत के दराज पर
ज र है
आंच क गरमी
और कांपती लौ म
ज र है
क सवाल के मुख पर
च टान खड़े न हो
और भागती भीड़ म भी
ऐसी तो नह ं थी
और सु वधा का अंधकार
क कोई वृत
एक दसर
ू सूची बनाने म
ऐसी तो नह ं थी
वे सार जगह
और रात का संताप
क कोई य
मेरे मन से बाहर
एक दसरा
ू दल बनाने म
नह ं ऐसी नह ं थी
और चीज के अथ
क कोई समय
आंगन म फुदफुदाय
िशिथल पड़े नस म
अ त होने को है सूय
और थका-हारा शर र
घर लौटने को है
तब गद म त द ल होने क कला
चाहे सूची म हो
या मन म
या कसी समय म ह
साथकता का अंधकार
और संताप का सूय
क चीज नह ं है वैसी
जैसी हम नह ं रखते ह
पहली बार
जब पहली बार
अब कसी से या छुपाना
क आवाज के आसपास
डू ब चुके थे
समु के अंतस म
और चौखट के बाहर-भीतर
बज रह थी
अजब सी झनझनाहट
कांप रहे थे
और हं सी लु हो गयी थी
सूखे प के ढे र म
जब पहली बार
सवाल के उलझन म
हम झांक रहे थे
अपने आईने म
तब अ सर हम सूंघते थे
घने वन का सा रोमांच
इस शहर के चौराहे म
जहां गा ड़य के का फले
पृ वी क आंख क तरह
हम नह ं पूछ सकते थे
िम ट क स धी महक से
और नह ं जान सकते थे
चू हे क आंच से
यह तो हम थे
िस के क एक ओर
और दसर
ू ओर
आगत-अनागत स यताएं
र दा करते थे
इितहास के प न को
उस समय
चौखट का लांघना
ू
जीवन से टटने का डर था
और चौखट के पार
नद क आंख
व मय से आज भी
सांस के गुणा-भाग म
मन और दे ह का स क
आ खर कतने आयाम म
काश को दे ख पाएंगे
अंतस क आवाज
अभी जहां पर म है
और करण
आंगन म मचलती ह
वहां न न दय का कलरव है
ना ह वसंत क महक
बस समय के मुंह पर
एक उ लास से र
ची टय का रे ला है
और धुआं छोड़ती
कारखान क िचमिनयां है
अभी सभी वरोध के बीच
नामालूम सी ज दगी है
और वसंत क अकुलाहट
और िगनती के तमाम अ र
अभी ह ठ पर आया ह नह ं है
और सुलगते सवाल
दे हर के भीतर ह बंद ह
घास-प म सरसरा रह है
और बौ कता के कांटे
अभी-अभी तो
सांप रगा है
मेरे आंगन म
और अभी-अभी तो
बो झलता से लबालब
सारे ह वा य
कताब से झड़े ह
मेरे कमरे म
अभी समय क उ से
कोई पतंग नह ं उड़ है
और साथकता क तलाश म
कसी द वार पर
कई समय
काल के भंडार म
कई लय
माट क महक म
कई गीत
हांड क कोख म
कई बीज
जीवन क डगर म
कई भ व य
सद के आंचल म
पल के असीम पल म
ज र है वचार करना
सारे व के प र े य म
जीवन के सभी े म ।
तय होगा समय
उस दन तय होगा समय
एक दन ठठक कर
वािभमान के नाम पर
उस दन तय होगा समय
अ मता के नाम पर
वन और नगर के उहापोह म
उस दन तय होगा समय
जब शांत शीतल नद
एक दन ठठक कर
अनुभूित के नाम पर
उस दन तय होगा समय
जब सभी मू य का आटा
एक दन ठठक कर
भूख के नाम पर
पेट और आ मा के उहापोह म
उस दन तय होगा समय
जब सभी मू यांकन
एक दन ठठक कर
सं ांत बनने के नाम पर
अभी और तभी के क ल म
हाँ, उस दन तय होगा
हमारा समय ।
यह या है ?
आजकल
मेरे गाँव म
सकुचाती हई
ु सुबह पसरती है
िच ड़य क चहचहाहट म
गाय का रं भाना
अब बीते कल क बात हो गई
आजकल
मेरे गाँव म
गोिलयां-कंचे नह ं खेलते
वह ं ब चयां
कत कत भी नह ं खेलती
फसल से िच ड़य को
आजकल
मेरे गाँव म
पनघट म बहओं
ु ने
चौपाल म बुजुग
आंगन म माँ
दआ
ु क टोकर िलए
जब क खेत म पता
घर क िचंता क िम ट को
आजकल
मेरे गाँव म
पर उ लास खो जाता है
मेरे गाँव म
युवाओं क बैठक
और पौ फटने से पहले तक
खैिनय के बीच
आजकल
मेरे गाँव म
यह या हो रहा है ?
उसक िनयित
कैसा अजीब है
वह य
ज म से मृ यु तक
सांस क हर िगनती
चू हे से बछावन तक क वड बना म
कैसा अजीब है
वह य
जहां सर से पाँव तक
दे हर से आंगन तक
हर चाल क आहट
क ार खुलने से पहले
दे हर से तुलसी तक क दरू म
कैसा अजीब है
वह य
जहां जड़ से फुनगी तक
अंधेरे से उजाले तक
घर का जीवन
कैसे बछ जाना है
कैसा अजीब है
वह य
जहां सर से पाँव तक
धरा से गगन तक
जंदगी के प न को खोलकर
शायद कह ं
या आपने कह ं दे खा है
जो आई थी
आफ इसी शहर म
मजदरू करने
जसने बीते स ाह ह
दो रोट िभजवायी थी गांव म
हाँ
उसने बतायी थी
जहां ढोती थी वह
गारा और ट
और उठाती थी
आफ घर को
अपने माथे पर
तब भी
नह ं बना पायी थी वह
अपने िलए एक घर
आफ इसी शहर म
और गांव म भला
ितनके के छ पर को
कह ं घर कहा जाता है
उनका नाम
कसी नाम के र सी से
उसे तो हम
महए
ु के गंध से ह
शायद आपने
कह ं दे खी हो
ऐसे ह िच
जो खो गया है
आफ इसी शहर म ह कह ं ।
श द का होना
श द जहां
वाणी का सागर है
वहां लाप भी
श द जहां
फूल क मु कान है
वहां पतझड़ भी
श द जहां
न दय क धारा है
वहां बंधन भी
श द जहां
नार का गहना है
वहां दन भी
श द जहां
ब च का खलौना है
वहां ठना भी
श द जहां
मानवता क पुकार है
वहां संताप भी
श द जहां
काश क तरं ग है
वहां गोधूिल भी
श द जहां
आकाश क ग रमा है
वहां भेदन भी
श द जहां
ेम का वसंत है
वहां मौन भी
श द जहां
संवेदना क अकुलाहट है
वहां संधान भी
श द जहां
क वता क वाणी है
वहां मृ यु भी
श द जहां
समय का रथ है
वहां झंकृित भी
श द जहां
ांित का बगुल है
वहां मातम भी
श द जहां
दे श क गित है
वहां गुलामी भी
श द जहां
श द का अथ है
वहां अनथ भी
श द जहां
अथ का होना है
वहां रोना भी ।
सू का रह य
इस तरह भी दे ख
क उललािसत मन
समय से पहले
त ा म त लीन
जो कुछ खोजती है
दे श के ाइं ग म म
वह कुछ
अकुलाता रहता है
उनके हल म
और व से जूझते
कसी ब ली क तरह
उग आते ह
िचंगा रय का ढे र
जो संसद क सड़क पर
बछ जाते ह
दे खे इस तरह भी
क क वता के भीतर
हर घटना के बाद
जब चल पड़ता है
अमूत य क सतह पर
तब बुरास का जंगल
हवा के थर होने क हद तक
संसद क ओर झांकता है
एक मु क मल क वता
और एक िच ठ िलखा दे
जो भेजा जा सके
खेत के हल को
क वे आये
और जोत ले
संसद क गिलयार म
अपनी मु क मल फसल
इस तरह दे खने क बार
अब वह ं से दख
त ा म लीन
ढंू ढती है
उन रह य को
जनका सू
जीवन का अंतह न जल
जब छलक उठा हो
तु हार आंख म
तब सभी काल म
पानी का ताप
दे ह म भर जाती है
झुक हई
ु सांझ म
करण बन जाती है
हम दे ख पाते ह
जल के साये म
अनुभव मा से
कालांत तक
सांझ के अंधेरे म
टम टमाता है ाण बन
के भीतर
और उभरता है
तु हारे ह ठ पर
लगता है
एक चंचल पश
स य क क ल बन गई है
इस स य के दय म
क कोई आस
धाग के साथ
चला आता है
जीवन के अंतमन म
और क ध उठता है
द पक क वह बाती
तु हारे अ र क बेला म
तब हम आ त हो जाते है
क पानी का ताप
कसी पृ से नह ं खसकेगा
और गूंजेगी
वाह का संगीत
उस ितज तक
जहाँ स य क क ल ठु क हई
ु है ।
सजक
म चाहता हंू
इस टे ढ़े समय म
समय के धाग से
उ दत होने को त पर ह
अभी कोई भी नद
भ व य के ितज पर
अभी आकाश भी
नार म उछलकर
हर कंठ का वर बने
धूप के वागत म
म चाहता हंू
और गम सांस क धड़कन
और सूखी याह
बफ बनने क मु हम न बने
खोल दे ार दय के
तब दे खना
इस टे ढ़े समय म भी
अपने सपन को
ता क दिनयावी
ु सलाख के बीच
और टांग लो
अपने सवाल को
आकाशगंगा से भी ऊपर
जहाँ उगने दो उ मु
ढे र सारे नागफनी
अपनी चीज
अपने चूज को
उ माद और ववेक
सपन के साथ
एक भुज बन सके
कर लो अपने को
इतना हं
क कठोरता और कायरता
बेबस हो जाए
हाँ उदार क णा
शायद बन पाये
हमार पृ वी क तरह
क दप और यं णा म
पूर हो हमार श ल
तभी हम दे ख सकते ह
उ ात सपने
एक लाश टं गी थी
आईने के क ल म
भूिम क ओर
और य क खामोशी
हम सब म ठु ं सी थी
कहने को अभी
नोटबुक के फूल
चुभे थे आंख म
और अनुभव क सं या
मटमैले थे जीवन म
भूना हआ
ु लोहा/दमक रहा था
तभी तो
भूिम के भीतर
और कुआं
खुदा था हर घर म
यह ं हम
यह नह ं कह सकते
क कब हमसे
ू गया
आईना टट
और बखर गयी
दे खना
दरअसल एक है
इनके भीतर
चीज का आकार
का व तार पाता है
और होना
दरअसल एक आकां ा है
इनके भीतर भी
इ छाओं का तपण
आकार हण कर पाता है
दे खना और होना
और आइने के प र े य म
कई बार दे खना
होना नह ं हो पाता है
हो सकता है
म क खोज म
स य से टकरा कर
अपनी साथकता
भूला बैठता हो
और म के आयाम म
मन का कोना
कह ं काश से भर उठता हो
जब अंधेर के गत म
जीवन के झंझावात म
तब दे खना
गुम हो जाता है
होने के आईने म ।
म नह ं था भीड़ म
म उस भीड़ म नह ं था
नह ं था भीड़ का चेहरा भी
जहाँ अभी-अभी
आवेग के आवेश म
हांफने को मजबूर था
हर चेहरे क रे खा
उस अ ांश पर खींची थी
जहां यव था का मौसम
और दे शांतर क हर रे खा
ठ क ऐन कुस के नीचे
दबोच ले दे श के दय को
सभी याह पल म
जहां हम आ त हो सकते ह
क रे खाओं के ग णत
क अ मता क रे खा
और दावानल क तरह
उतर जाए मेरे चेहरे पर
म नह ं था उस भीड़ म ।
सुरंग
जीवन के आयाम
नह ं है
अंधेर क सुरंग
चलते रहने क जद
हम कई कोण से
उन आयाम म झांकते ह
और सुर त भ व य क खोज म
हम ठे ल दे ता है सुरंग म
हम नह ं दे ख पाते
और छे ड़ते ह यु
मेड़ से संसद तक
हम याओं के िस के तो ह नह ं
क रे तीले िससकन म
और लील ल
सभी वसंत को
पतझड़ क राह म
ता क जीवन के आयाम
त द ल न ह सुरंग म ।
अ त व
जहां से आरं भ है
अंत भी वह ं है
जहाँ अंत है
आरं भ भी वह ं से
अंत व आरं भ को
अलग-अलग करना
न हमारे वश म है
ना ह य के वश म
क इनके बंदओ
ु ं को खोजना
अ त व से सा ा कार करना है
नह ं यह ठ क नह ं होगा
क हम आरं भ से चले
सम प से
पूरा होना
होना नह ं हो सकता
य क यह ं दखगे हम
आरं भ के बंद ु
और या ा फर शु होगी
या ा का पड़ाव
अंत म नह ं
आरं भ म हो
तभी हम पा सकते ह
वराट शू य के वे शू य
जहां हम
नह ं रहते ह हम
और न आ मा
आ मा ह रह पाता है
वराट अ त व से
और हम होते ह पूण
खाई के परे
जो खड़ा है
भीतर
पांव नह ं ह
जमीं पर
और आंख
ट क गई है
आकाश पर
जो खड़ा है
भीतर
उतर है सीढ़
अनंत पर
और सांस
थर है
कसी शू य पर
जो है
भीतर खड़ा
अनंत शू य के
िशखर पर
और संवेदना
जी उठ है
अंतस पर
भीतर के
दबाव पर
वचिलत नह ं होती
हमार तरं गे
उठती है
हर िच कार के परे
वार सा
कह ं भीतर
और हम
उछल पड़ते ह
समय के
अंतराल से परे ।
2. ज म-ितिथ - 08.12.1962
104, झारखंड
4. िश ा - बी. ए.
प -प काओं
इ या द ।
क वताएं संकिलत
मनोहरपुर-833104
77003
ई-बुक तुित : रचनाकार http://rachanakar.blogspot.com/ ारा