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काश मझे पंख होते ु

उडती थी आसमान में

तततऱी क जैसे गहरे रं ग होते े जैसे फऱो की खुशबू में घर होते ु

खुबसरत होते ददन ु

बेह्जाती थी प्यार में

और खशनसीब होती शाम ु ना होता और कोई काम

खुऱा था जहां सारा

ममऱती थी हर उस जगह

दतनया का हर पऱ तनराऱा ु जहां होती थी फऱों की माऱा ु

पंख होते छोटे

काश मझे पंख होते ु

ख्वाब होते बडे, बस इसमऱये तततऱी जैसे गहरे रं ग होते -ऱीना दहाड

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