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Kahani Sangrah Premchand: Mansarover Se Chuni Kathaon Ka Laghu Sankalan
Kahani Sangrah Premchand: Mansarover Se Chuni Kathaon Ka Laghu Sankalan
Kahani Sangrah Premchand: Mansarover Se Chuni Kathaon Ka Laghu Sankalan
Ebook252 pages1 hour

Kahani Sangrah Premchand: Mansarover Se Chuni Kathaon Ka Laghu Sankalan

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About this ebook

Premachand kee sampoorn kahaaniyaan maanasarovar naamak sheershak mein sangraheet hai, jo aath khandon mein prakaashit hai. un kahaaniyon mein se vishisht 5 chunee huee prasiddh kahaaniyon ko is pustak mein prakaashit kiya gaya hai. ye kahaaniyaan ek shailee aur drshtikon se prastut kee gayee hain.
pratyek kahaanee ke poorv premachand kee rachana kee vishesh baaten tatha ant mein unake sandesh evan unase milane vaalee shiksha ko diya gaya hai, jo is kahaanee sangrah ko anootha banaate hanai.
5 kahaaniyon ka yah sankalan visheshatah bachchon ko dhyaan mein rakhate hue prakaashit kiya gaya hai. pratyek prshth par diye gaye kathin shabdon ke arth is kahaanee-sangrah ko bachchon ke lie aur bhee anukool aur upayogee banaate hanai.
chhaatr-chhaatraon, paathashaalaon va pustakaalayon ke lie atyant sangrahaneey. pratyek parivaar ke bachchon, boodhon, yuvaon evan mahilaon ke lie yah ek aadarsh evan sangrahaneey pustak hai.( The book named ‘Mansarovar’ written by Premchand is in eight parts. Out of those, five stories are picked up in this book. His writings embody social purpose and social criticism rather than mere entertainment. At the end of his stories, readers get the message he wants to give in order to transform their thinking for the good of the society. The meaning of the difficult words occurring on every page is given at the bottom so that even children can understand the meaning of each story. ) #v&spublishers
Languageहिन्दी
Release dateMar 10, 2016
ISBN9789350576816
Kahani Sangrah Premchand: Mansarover Se Chuni Kathaon Ka Laghu Sankalan

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    Kahani Sangrah Premchand - Dr. SachidanandShukl

    प्रकाशक

    F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002

    Ph. No. 23240026, 23240027• फैक्स: 011-23240028

    E-mail: info@vspublishers.com Website: https://vspublishers.com

    Online Brandstore: https://amazon.in/vspublishers

    क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद

    5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया लेन के पास)

    बैंक स्ट्रीट, कोटी, हैदराबाद-500 095

    Ph. No 040-24737290

    E-mail: vspublishershyd@gmail.com

    शाखा: मुम्बई

    जयवंत इंडस्ट्रिअल इस्टेट, 1st फ्लोर-222

    तारदेव रोड अपोजिट सोबो सेन्ट्रल, मुम्बई - 400 034

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    © कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स

    ISBN 978-93-505768-1-6

    संस्करण :2020

    DISCLAIMER

    इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गयी पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या सम्पूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।

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    इस पुस्तक में उल्लिखित विशेषज्ञ के राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।

    पुस्तक में दिये गये विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जायेगा।

    उचित मार्गदर्शन के लिए पुस्तक को माता-पिता एवं अभिभावक की निगरानी में पढ़ने की सलाह दी जाती है। इस पुस्तक के खरीददार स्वयं इसमें दिये गये सामग्रियों और जानकारी के उपयोग के लिए सम्पूर्ण जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं।

    इस पुस्तक की सम्पूर्ण सामग्री का कॉपीराइट लेखक/प्रकाशक के पास रहेगा। कवर डिजाइन, टेक्स्ट या चित्रों का किसी भी प्रकार का उल्लंघन किसी इकाई द्वारा किसी भी रूप में कानूनी कार्रवाई को आमंत्रित करेगा और इसके परिणामों के लिए जिम्मेदार समझा जायेगा।

    प्रकाशकीय

    वैसे तो प्रेमचन्द की कहानियों पर आधारित अनेक पुस्तकें उनकी चुनी हुई कहानियों के रूप में उपलब्ध हैं, किन्तु इस कहानी-संग्रह को बच्चों/ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें विशेष प्रसन्नता हो रही है, क्योंकि प्रेमचन्द की 5 चुनी हुई कहानियों को हमने एक विशेष शैली और दृष्टिकोण से प्रकाशित किया है।

    इन कहानियों में निहित भावों, उनके सन्देश और उनसे मिलने वाली शिक्षा को भी हमने प्रत्येक कहानी के अन्त में प्रस्तुत किया है, जिससे बच्चे व सामान्य पाठक भी कुछ ग्रहण कर सकें। साथ ही प्रत्येक कहानी के पूर्व प्रेमचन्द के जीवन से सम्बन्धित कुछ विशेषताओं और सूचनाओं को भी दिया है, जिससे पाठक, प्रेमचन्द के जीवन के बारे में कई महत्त्वपूर्ण बातें जान सके।

    इस कहानी-संग्रह की एक अन्य विशेषता प्रत्येक कहानी के अन्तर्गत आये हुए कुछ कठिन शब्दों के अर्थ/ भावार्थ भी उसी पृष्ठ के नीचे अर्थ-सन्दर्भ (फुटनोट) के रूप में दिया गया है, जिससे बच्चों व सामान्य पाठकों को कहानी का भावार्थ समझने में सुगमता हो।

    इसी दृष्टिकोण के चलते यह कहानी संग्रह अन्य प्रकाशित कहानियों के संग्रह से थोड़ा अलग बन गया है। इन कहानियों का सम्पादन करने वाले विद्वान् सम्पादक ने प्रेमचन्द के जीवनवृत्त का संक्षिप्त विवरण देकर प्रेमचन्द की मुख्य विशेषताओं को रेखांकित किया है।

    आशा है, यह कहानी-संग्रह बच्चों उनके अभिभावकों एवं अन्य पाठकों को रुचिकर लगेगा। बच्चे, इस पुस्तक को पढ़कर इससे अपने जीवन कुछ प्रेरणा ले सकेंगे।

    -प्रकाशक

    विषय-सूची

    कवर

    मुखपृष्ठ

    प्रकाशक

    प्रकाशकीय

    विषय-सूची

    बड़े घर की बेटी

    दो भाई

    शतरंज के खिलाड़ी

    नादान दोस्त

    सुजान भगत

    प्रेमचन्द का जीवनवृत्त

    हिन्दी साहित्य में लोकप्रियता की दृष्टि से तुलसीदास के बाद मुंशी प्रेमचन्द का अपना विशिष्ट स्थान है। भारत ही नही विदेशों- विशेषतः रूस में भी वे लोकप्रिय हैं। सामान्यतः वह उपन्यास सम्राट् के रूप में प्रसिद्ध हैं, किन्तु वह अपने समय में भारतीय जनता के भी हृदय सम्राट् बने।

    प्रेमचन्द आधुनिक कथा-साहित्य में नवयुग के प्रवर्तक थे। कुछ लोग उन्हें भारत का ‘गोर्की' कहते हैं, तो कुछ लोग उन्हें 'होर्डी' के रूप में देखते हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी रचनाओं में अधिकांशतः ग्रामीण वातावरण का चित्रण किया।

    प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 ( संवत् 1937, शनिवार) को वाराणसी - आजमगढ़ रोड पर, वाराणसी नगर से चार मील दूर स्थित लमही नामक गाँव में एक निम्नवर्गीय कायस्थ परिवार में हुआ था। पिता का नाम अजायब राय और माता का नाम आनन्दी देवी था। बचपन में इनका नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, जो बाद में हिन्दी साहित्य जगत में 'प्रेमचन्द' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 'प्रेमचन्द' नामकरण मुंशी दयानारायण निगम ने किया था, जो प्रेमचन्द के अभिन्न मित्र थे और उस समय के प्रसिद्ध अखबार 'जमाना' के सम्पादक थे। उर्दू में 'मुंशी' का अर्थ होता है - लिखने वाला या लेखक। इसीलिए प्रेमचन्द के नाम के पूर्व 'मुंशी' शब्द भी जुड़ गया और वे 'मुंशी प्रेमचन्द' भी कहलाने लगे। वैसे प्रेमचन्द का घरेलू नाम 'नवाब' भी था।

    प्रेमचन्द की आरम्भिक शिक्षा गाँव के ही एक मदरसे में हुई। उस समय शिक्षा में फ़ारसी और उर्दू की खास अहमियत थी। इसका प्रभाव प्रेमचन्द के लेखन पर खूब पड़ा। उसके बाद वाराणसी के क्वींस

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