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सचॊतन जोशी, 100+ Pages
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
पोटो ग्रादपक्स
दहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/-
सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हभाये भुख्म सहमोगी GURUTVA KARYALAY
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक
BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
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स्जस प्रकाय शयीय आत्भा के सरए औय तेर दीऩक के सरए हं , उसी प्रकाय मन्ि इद्शदे वी-दे वता की प्रसन्नता हे तु
होते हं । सयर बाषा भं सभझे तो मॊि शब्दद का अथा दकसी औजाय मा साधन से दकमा जाता हं । मॊि प्रमोग
का भुख्म उद्दे श्म होता हं भनुष्म को दिमाशीर, उद्यभी मा प्रमत्नशीर कयने की प्रेयणा दे ते …4
…4
श्रीमॊि को सयर शब्ददं भं रक्ष्भी मॊि कहा जाता हं , क्मोदक श्रीमॊि को धन के आगभन हे तु
सवाश्रद्ष
े मॊि भाना गमा हं । त्रवद्रानं का कथन हं की श्रीमॊि अरौदकक शत्रिमं व चभत्कायी
शत्रिमं से ऩरयऩूणा गुद्ऱ शत्रिमं का प्रभुख केन्र त्रफन्दु है । …6
मॊि त्रवशेष भं ऩढे ़
त्रवशेष भं दीऩावरी त्रवशेष
सवा कामा ससत्रद्ध मन्िं के प्रभुख प्रकाय 7 काभनाऩूसता हे तु दर
ु ब
ा साधना (बाग:1) 27
मन्िं भं ऩॊच तत्त्ववं का भहत्त्वव 9 हरयरा गणऩसत मन्ि साधना 27
कवच … 45 अॊक मन्िं की त्रवसशद्शता एवॊ राब 11 त्रवजम गणऩसत मन्ि साधना 28
श्रीमॊि की भदहभा कल्माणकायी गणऩसत मन्ि साधना
13 29
स्थामी औय अन्म रेख त्रवसबन्न दे वी एवॊ रक्ष्भी मॊि सूसच 66
सॊऩादकीम 4 भॊि ससद्ध रूराऺ 68
भाससक यासश पर 74 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि / कवच 69
यासश यत्न…67 ददसम्फय 2102 भाससक ऩॊचाॊग 78 याभ यऺा मॊि 70
ददसम्फय-2012 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 80 जैन धभाके त्रवसशद्श मॊि 71
ददसम्फय 2102 -त्रवशेष मोग 85 घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि 72
दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 85 अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कवच 73
ददन-यात के चौघदडमे 86 याशी यत्न एवॊ उऩयत्न 73
भॊि ससद्ध रूराऺ …68
ददन-यात दक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक 87 सवा योगनाशक मॊि/ 89
ग्रह चरन ददसम्फय -2012 भॊि ससद्ध कवच
अभोद्य भहाभृत्मुज
ॊ म 88 91
सूचना 96 YANTRA LIST 92
कवच … 73 हभाया उद्दे श्म 98 GEM STONE 94
त्रप्रम आस्त्भम
फॊध/ु फदहन
जम गुरुदे व
मॊि शब्दद "मभ" धातु का घोतक हं । (मभ धातु से फना हं )
इस अॊक भं प्रकासशत त्रवसबन्न उऩाम, मॊि-भॊि-तॊि, साधना व ऩूजा ऩद्धसत के त्रवषम भं साधक एवॊ
त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं , मदद दशाामे गए मॊि, भॊि, स्तोि इत्मादी के सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं,
दडजाईन भं, टाईऩीॊग भं, त्रप्रॊदटॊ ग भं, प्रकाशन भं कोई िुदट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा दकसी मोग्म
गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे । क्मोदक त्रवद्रान गुरुजनो एवॊ साधको के सनजी अनुबव त्रवसबन्न अनुद्षा
भं बेद होने ऩय मॊि की ऩूजन त्रवसध एवॊ जऩ त्रवसध भं, प्रबावं के अध्ममन भं सबन्नता सॊबव हं ।
सचॊतन जोशी
6 ददसम्फय 2012
भॊिवणामि
ु मॊि: आधाय ऩय दकमा गमा हं । स्जसके अनुशाय उसके िभ इस
प्रकाय हं ..
भॊिवणामुि मॊि भं त्रवशेद्श वणं को िभ भं
1. शयीय मन्ि 2. धायण मन्ि
सजाकय भन्ि को दशाामा जाता हं । भॊिवणामुि मॊि भं
3. आसन मन्ि 4. भण्डर मन्ि
प्रमुि वणं द्राय ही भन्िं का सनभााण दकमा गमा होता हं
5. ऩूजा मन्ि 6. छि मन्ि
इस सरए भॊिवणामुि मॊि भं भन्ि शत्रि त्रवशेष रुऩ से
7. दशान मन्ि
सभादहत होती हं ।
स्जस प्रकाय हभाया शयीय ऩाॉच तत्त्ववं से फना हं । मन्िं भं सनदहत ऩाॉच तत्त्ववं के प्रबाव
उसी प्रकाय कुछ मन्िं भं बी ऩाॉच तत्त्वव बी सनदहत होते
कुछ जानकायं ने ऩाॉच तत्त्वव का प्रबाव भनुष्मं ऩय इस
हं । मॊि भं सनदहत ऩाॉच तत्त्वव भानव शयीय के तत्त्ववं के
प्रकाय भाना हं ।
सभान ही हं ।
1. ऩृथ्वी तत्त्वव:
1. ऩृथ्वी तत्त्वव, 2. जर तत्त्वव,
ऩृथ्वी तत्त्वव के प्रबाव से भनुष्म को स्स्थयता, धैमा,
3. अस्ग्न तत्त्वव, 4. वामु तत्त्वव औय
उत्साह, उत्तभ त्रवचायधाया, शास्न्त, बौसतक सुख तथा
5. आकाश तत्त्वव।
सपरता की प्रासद्ऱ होती हं ।
त्रवद्रानं ने अऩने अनुबवं से ऻात दकमा हं की
2. जर तत्त्वव:
मॊिं के ऩाॉच तत्त्ववं की उऩस्स्थती ही भुख्म रुऩ से साधक
जर तत्त्वव के प्रबाव से भनुष्म को भान, सम्भान,
को वाॊस्च्छत ससत्रद्ध प्रासद्ऱ हे तु सहामक होती हं । इस सरए
प्रेभ, भाधुम,ा सन्तोष, ऻान औय चॊचरता को सनमॊत्रित
मन्िं के ऩाॉच तत्त्वव की भहत्वता को जानना अत्मॊत
कयने हे तु सहामता प्राद्ऱ होती हं ।
आवश्मक हं । क्मोदक महीॊ ऩाॉच तत्त्वव ब्रह्माण्ड की
यहस्मभम शत्रिमं एवॊ साधक के सबतय सछऩी हुई शत्रिमं 3. अस्ग्न तत्त्वव:
की जाग्रत औय सनमस्न्ित कयने हे तु सहामक हं । अस्ग्न तत्त्वव के प्रबाव से भनुष्म को िोध,
ये खामुि मन्ि औय अॊकात्भक मन्िं भं ऩृथ्वी उत्तेजना, तीव्रता, क्रेश, त्रवध्न, त्रवनाश, अशाॊसत, हासन,
तत्त्वव, जर तत्त्वव, अस्ग्न तत्त्वव, वामु तत्त्वव औय आकाश कद्श-श्रभसाध्मता, उग्रकभा आदद को सनमॊत्रित कयने हे तु
तत्त्वव का सभावेश दकमा जाता हं । स्जस प्रकाय ऩृथ्वी सहामता प्राद्ऱ होती हं ।
23) एक सौ फीस मन्ि (120) को गसबाणी की प्रसव 33) सात सौ का मन्ि (700) को वाद-त्रववाद भं त्रवजऩ
ऩीडा़-कद्श को कभ कयने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । प्रासद्ऱ के सरए प्रमोग दकमा जाता हं ।
24) एक सौ छब्दफीसाॊ मन्ि (126) को फॊधे हुवे गबा को 34) नौ सौ का मन्ि (900) को भागा बम एवॊ मािा
खोने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । बम से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
25) एक सौ फावनमाॊ मन्ि (152) को बाई-फहन भे 35) एक हजाय का मन्ि (1000) को त्रवजम प्रासद्ऱ हे तु
आऩसी प्रेभ की वृत्रद्ध हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । प्रमोग दकमा जाता हं ।
26) एक सौ सत्तयीमाॊ मन्ि (170) ऻान वृत्रद्ध हे तु त्रवशेष 36) ग्मायह सौ का मन्ि (1100) को दद्श
ु ात्भाओॊ, बम
प्रबावकायी भाना गमा हं । एवॊ क्रेश से से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
27) एक सौ फहत्तयीमाॊ मन्ि (172) को सॊतान राब एवॊ 37) फायह सं का मन्ि (1200) को फॊधन भुत्रि हे तु
बम सनवायण हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । प्रमोग दकमा जाता हं ।
28) दौ सौ का मन्ि (200) को व्मवसाम वृत्रद्ध हे तु 38) ऩचास हजाय का मन्ि (50000) को याज सम्भान
प्रमोग दकमा जाता हं । की प्रासद्ऱ एवॊ सबी प्रकाय के कद्शं से भुत्रि हे तु
29) तीन सौ का मन्ि (300) को ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रमोग दकमा जाता हं ।
स्नेह फढा़ने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । 39) दस राख दस हजाय का मन्ि (1010000) को भागा
30) चाय सौ का मन्ि (400) को बवन भं सरखने से भं चोय बम से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
बम से यऺा हे तु एवॊ खेतं भं सरखने से धान्म की इस प्रकाय से दकसी बी मन्ि का प्रमोग कयने से ऩूवा
उऩज अस्च्छ हो इस सरए दकमा जाता हं । उसके ऩूणा प्रबावं को जान रेना असत आवश्मक हं उऩय
31) ऩाॊच सौ का मन्ि (500) स्त्री को गबा धायण हे तु दशाामे गमे अॊक मन्िं की सूसच महाॊ भाि भागादशान के
एवॊ ऩुरुष को उत्तभ सॊतान की प्रासद्ऱ हे तु प्रमोग उद्दे श्म से दी गई हं । त्रवद्रजनं एवॊ साधको के अनुबवं भं
दकमा जाता हं । अॊतय होने से उऩय भं जो पर दशाामे गमे हं उसभं अॊतय
32) छ् सौ का मन्ि (600) को सुख-सम्ऩत्रत्त की प्रासद्ऱ सॊबव हं , अत् इस त्रवषम भं दकसी मोग्म गुरु मा साधक
के सरए प्रमोग दकमा जाता हं । से ऩयाभशा कय रेना असत आवश्मक हं ।
श्रीमॊि की भदहभा
सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
दहन्द ु धभा भं श्रीमॊि सवाासधक रोकत्रप्रम एवॊ ऩूछे गमे प्रद्ल ऩय बगवान बोरेनाथ ने स्वमॊ शॊकयाचामा
प्राचीन मॊि है , श्रीमॊि की आयाध्मा दे वी स्वमॊ श्रीत्रवद्या को साऺात रक्ष्भी स्वरूऩ श्री मॊि की त्रवस्तृत भदहभा
अथाात त्रिऩुय सुन्दयी दे वी हं , श्रीमॊि को दे वीके ही रूऩ भं फताई औय कहा मह श्री मॊि भनुष्मं का सबी प्रकाय से
भान्मता ददगई है । कल्माण कये गा।
श्रीमॊि को अत्मासधक शत्रिशारी व रसरतादे वी का श्री मॊि ऩयभ ब्रह्म स्वरूऩी आदद दे वी बगवती
ऩूजन चि भाना जाता है , श्रीमॊि को िैरोक्म भोहन भहात्रिऩुय सुदॊयी की उऩासना का सवाश्रद्ष
े मॊि है क्मंदक
अथाात तीनं रोकं का भोहन कयने वारा मन्ि बी कहाॊ श्री चि ही दे वीका सनवास स्थर है । श्री मॊि भं दे वी स्वमॊ
जाता है । त्रवयाजभान होती हं इसीसरए श्री मॊि त्रवद्व का कल्माण
श्रीमॊि भं सवा यऺाकायी, सवाकद्शनाशक, सवाव्मासध- कयने वारा है ।
सनवायक त्रवशेष गुण होने के कायण श्रीमॊि को सवा आज के आधुसनक मुग भं भनुष्म त्रवसबन्न प्रकाय
ससत्रद्धप्रद एवॊ सवा सौबाग्म दामक भाना जाता है । की सभस्माओॊ से ग्रस्त है , एसी स्स्थसत भं मदद भनुष्म
श्रीमॊि को सयर शब्ददं भं रक्ष्भी मॊि कहा ऩूणा श्रद्धाबाव औय त्रवद्वास से श्रीमॊि की स्थाऩना कयं तो
जाता हं , क्मोदक श्रीमॊि को धन के आगभन हे तु मह मॊि उसके सरए चभत्कायी ससद्र हो सकता है ।
भॊि ससद्ध एवॊ प्राण-प्रसतत्रद्षत श्री मॊि को कोई बी
सवाश्रद्ष
े मॊि भाना गमा हं ।
भनुष्म चाहे वह धनवान हो मा सनधान वहॉ अऩने घय,
त्रवद्रानं का कथन हं की श्रीमॊि अरौदकक शत्रिमं
दक
ु ान, ऑदपस इत्मादद व्मवसामीक स्थानं ऩय स्थात्रऩत
व चभत्कायी शत्रिमं से ऩरयऩूणा गुद्ऱ शत्रिमं का प्रभुख
कय सकता हं । त्रवद्रानो का अनुबव हं की श्रीमॊि का
केन्र त्रफन्द ु है ।
प्रसतदन ऩूजन कयने से दे वी रक्ष्भी प्रसन्न होती है औय
श्रीमॊि को सबी दे वी-दे वताओॊ के मॊिं भं सवाश्रद्ष
े
भनुष्म का सबी प्रकाय से भॊगर कयती हं । भाॊ भहारक्ष्भी
मॊि कहा गमा है । महीॊ कायण हं , दक श्रीमॊि को मॊियाज,
की कृ ऩा से भनुष्म ददन प्रसतददन सुख-सभृत्रद्ध एवॊ ऐद्वमा
मॊि सशयोभस्ण बी कहा जाता है ।
को प्राद्ऱ कय आनॊदभम जीवन व्मतीत कयता हं ।
ऩौयास्णक धभाग्रॊथं भं वस्णात हं की श्री मॊि
श्रीमॊि से जुडी़ ऩौयास्णक कथा
आददकारीन त्रवद्या का द्योतक हं , बायतवषा भं प्राचीनकार
धभाग्रॊथं भं श्री मॊि के सॊदबा भं एक प्रचसरत भं बी वास्तुकरा अत्मन्त सभृद्र थी। औय आज के
कथा का वणान सभरता है । आधुसनक मुग भं प्राम् हय भनुष्म वास्तु के भाध्मभ से
कथाके अनुसाय एक फाय आददगुरु शॊकयाचामाजी ने कैराश बी प्रकाय के सुख प्राद्ऱ कयना चाहता है । उनके सरए
ऩय बगवान सशवजी को कदठन तऩस्मा द्राया प्रसन्न कय श्रीमॊि की स्थाऩना अत्मॊत भहत्वऩूणा है ।
सरमा। क्मोदक जानकायं का भानना हं की श्री मॊि भं
बगवान बोरेनाथ ने प्रसन्न होकय शॊकयाचामाजी से वय ब्रह्माण्ड की उत्ऩत्रत्त औय त्रवकास का यहस्म सछऩा हं ।
भाॊगने के सरए कहा। आददगुरु शॊकयाचामाजी ने सशवजी से त्रवद्रानो के भतानुशाय श्रीमॊि भं श्री शब्दद की
त्रवद्व कल्माण का उऩाम ऩूछा। व्माख्मा इस प्रकाय से की गई हं "श्रमत मा सा श्री"
14 ददसम्फय 2012
अथाात जो श्रवण की जामे, वह श्री हं । सनत्म ऩयब्रह्मा से श्रीमॊि का त्रवषम अत्मन्त गहन हं , रेदकन महाॉ हभ
आश्रमण प्राद्ऱ कयती हो, वह श्री हं । ऩाठकं के भागादशान हे तु इसका सॊस्ऺद्ऱ त्रववयण दे ने का
श्रीमॊि का अन्म अथा हं श्री का मॊि। मॊि शब्दद प्रमास कय यहे हं ।
"मभ" धातु का घोतक हं । (मभ धातु से फना हं )
मन्ि शब्दद गृह शब्दद को प्रकट कयता हं । स्जस त्रवसबन्न ताॊत्रिक ग्रॊथं भं श्री मॊि के त्रवषम भं
प्रकाय गृह भं सफ वस्तुओॊ का सनमॊिण होता हं उसी स्जतना वणान सभरता हं उतना औय दकसी त्रवषम
प्रकाय श्रीमॊि को प्राद्ऱ कयने मा सनमॊत्रित कयने के सरए
ऩय नहीॊ सभरता!
श्रीमॊि सवाश्रद्ष
े भाध्म हं ।
प्राम् सबी रोगोने अऩने दै सनक जीवन भं अनेक
श्रीमॊि भं स्स्थत नौ चिं का वणान रुरमाभर तॊि भं
फाय दे खा होगा की दकसी श्रेद्ष एवॊ ऩूज्म भनुष्मं के नाभ
वस्णात हं
के आगे रोग "श्री" शब्दद का प्रमोग कयते हं । भनुष्म की
त्रफन्दत्रु िकोणवसुकोणदशायमुग्भ
श्रेद्षता के अनुिभ के अनुशाय उनकी नाभके आगे 3, 4,
भन्वस्न्नागदरसॊमुतषोडशायभ ्।
5, 8 फाय तक "श्री" शब्दद प्रमोग का शास्त्रं भं उल्रेख
वृत्तिमॊ च धयणीसदनिमॊ च
सभरा हं । प्रधान ऩीठासधद्वय/ऩीठासधऩसत अथवा दकसी
श्रीचिभे त ददु दतॊ ऩयदे वतामा्॥
सॊप्रदाम त्रवशेष के प्रधानाचामं के नाभ के आगे मा ऩीछे
अथाात: श्रीमॊि के नौ चि िभ भं १. त्रफन्द,ु २. त्रिकोण,
1008 फाय तक "श्री" का प्रमोग दकमा जाता हं । क्मोदक
३. आठ त्रिकोणं का सभूह, ४. दस त्रिकोणं का सभूह,
"श्री" शब्दद का सयर अथा "रक्ष्भी" होता हं ।
५. दस त्रिकोणं का सभूह, ६. चौदह त्रिकोणं का सभूह,
रेदकन त्रवसबन्न धभाग्रॊथं भं "श्री" शब्दद का अथा
७. आठ दरं वारा कभर, ८. सोरह दरं वारा कभर,
भहात्रिऩुयसुन्दयी होने का उल्रेख सभरता हं । **कुछ
९. बूऩुय ।
धभाशास्त्रं एवॊ ग्रॊथं भं वस्णात हं की "श्री भहारक्ष्भी" ने
भहात्रिऩुयसुन्दयी की सचयकार आयाधना कयके उसने अनेक
इन चिं को सबन्न-सबन्न यॊ गं से दशााने का
वयदान प्राद्ऱ दकमे हं । रक्ष्भीजी को प्राद्ऱ इन्हीॊ वयदानं से
त्रवधान हं , कभर के सबतय दशाामे गम िभश् २,३,४,५,६
एक वयदान "श्री" शब्दद से ख्मासत प्राद्ऱ कयने का बी प्राद्ऱ
के कुर सभराकय जो ४३ त्रिकोण (इन ४३ त्रिकोण की
हुवा। तबी से श्री शब्दद का अथा रक्ष्भी सभझा जाने रगा!
सहामता से अन्म त्रिकोण कुर सभराकय १०८ फनते हं ।)
** धभाशास्त्रं एवॊ ग्रॊथं का सॊदबा हरयतमनसॊदहता, दशाामे गमे हं उसके त्रवषम भं आनन्द सौदमा रहयी का
ब्रह्माण्डऩुयाणोत्तयखण्ड इत्मादद। उल्रेख उऩय दशाामा गमा हं ।
इन चिं भं मदद त्रिकोण उध्वाभुखी हो तो वह
श्रीचि से सॊफॊसधत भत शॊकयाचामाा कृ त आनन्द चि सशवप्रधान कहराता हं एवॊ मदद फीच का त्रिकोण
चतुसबा् श्रीकण्ठै ् सशव्मुवसतसब् ऩञ्चसबयत्रऩ. कहा जाता हं । श्रीमॊि से सॊफॊसधत त्रवषम अत्मॊत व्माऩक
प्रसबन्नासब् शम्बोनावसबयत्रऩ भूरप्रकृ सतसब् । हं मही कायण हं की श्रीमॊि का ऩूजन दस्ऺण-भागा एवॊ
त्रिये खासब् साधं तव कोणा् ऩरयणता् । स्जसका त्रवस्तृत वणान त्रिऩुयतात्रऩनी उऩसनषद एवॊ त्रिऩुया
उऩसनषद भं सभान रुऩ से वस्णात हं ।
15 ददसम्फय 2012
श्रीमॊि भं नौ चिं के नाभ एवॊ उसके सबन्न- श्री मन्ि के नौ चिं का त्रवस्तृत वणान
सबन्न यॊ गं िभ िभश् इस प्रकाय है ..
सवाानन्दभम चि:
(१) सवाानन्दभम (केन्रस्थ यि त्रफन्द)ु
सवाानन्दभम चि की असधद्षािी दे वी रसरता अथवा
(२) सवा ससत्रद्धप्रद (ऩीरे यॊ ग का त्रिकोण) त्रिऩुयसुन्दयी हं , जो अऩने आवयण भं दे वताओॊ के बेद से
कहीॊ ऩय षोडश दे वीमं भं भुख्म भानी गमी हं औय कहीॊ
(३) सवायऺाकाय (हयं यॊ ग के आठ त्रिकोणं का सभूह)
ऩय अद्श भातृकाओॊ भं सवाश्रद्ष
े भानी गमी हं , कहीॊ ऩय अद्श
(४) सवा योग हय (कारे यॊ ग के दस त्रिकोणं का सभूह) वसशनी दे वताओॊ की असधनासमका भानी गमी हं । मह बेद
प्रस्ताय अरग-अरग बेद से हुए हं औय मथा िभ से इन
(५) सवााथा साधक (रार यॊ ग के दस त्रिकोणं का सभूह)
तीनं प्रस्तायं के नाभ भेरु, कैरास तथा बू् प्रस्ताय हं ।
(६) सवा सौबाग्मदामक(नीरे यॊ ग के चौदह त्रिकोणं का सभूह) मही श्रीमॊि की उऩासना के प्रभुख प्रकाय भाने जाते हं ।
बगभासरनी हं जो प्रकृ सत, भहत ् तथा असबभान हं । सवाभन्िभमी, सवाद्रन्द्रऺमॊकयी हं । मह दे वीमाॊ भुख्म
नादिमं की स्वाभीनी हं , जो िभश् अरम्फुसा, कुहु,
सवायऺाकाय चि: त्रवद्वोदयी, वायणा, हस्स्तस्जह्वा, मशोवती, ऩमस्स्वनी
सवायऺाकाय चि जो आठ त्रिकोणं का सभूह हं , इस गान्धायी, ऩूषा, सॊस्खनी, सयस्वती, इिा, त्रऩॊगरा तथा
सवा योग हय चि जो दस त्रिकोणं का सभूह हं , इस आदान, गभन, त्रवसगा, आनन्द हीन, उऩादान तथा उऩेऺा
सवााथा साधक चि जो दस त्रिकोणं का सभूह हं , इस तथा शयीयाकत्रषाणी हं , जो िभश् भन, फुत्रद्ध, अहॊ काय,
त्रिकोणं की असधद्षािी दे वीमाॉ दस प्राणं की स्वासभनी हं , शब्दद, स्ऩशा, रुऩ, यस, गन्ध, सचत्त, धैमा स्भृसत, नाभ,
जो िभश् सवाससत्रद्धप्रदा, सवासम्ऩत्प्रदा, सवात्रप्रमॊकयी, वाधाक्म, सूक्ष्भ शयीय, जीवन तथा स्थूर शयीय की
दस भुराशत्रिमं के नाभ िभश् सवासॊऺोसबणी, ब्राह्मण द्राया कयवाकय उसकी प्राण-प्रसतद्षा कयवा रं।
सवात्रवरात्रवणी, सवााकत्रषण
ा ी, सवाावेशकरयणी, सवोन्भाददनी, अऩने ऩूजन स्थान ऩय रार वस्त्र त्रफछाकय, उस ऩय
भहाॊकुशा, खेचयी, फीजभुरा, भहामोसन तथा त्रिखस्ण्डका हं , केसय मा हल्दी यॊ गे हुवे अऺत से अद्शदर फनाकय उस
स्जसका आधाय दस आधायं से हं , इन आधायं का के उऩय मॊि स्थात्रऩत कयना चादहए। मॊि का ऩूजन
त्रवस्तृत वणान महाॊ कयना सॊबाव नहीॊ हं । रेदकन इतना अथवा प्राण-प्रसतद्षा ऩूणा हो जाने ऩय अगरे ददन श्री
अवश्म है की इन आधायं के रुऩ भं ही श्रीमॊि तथा मॊि को शुब भुहूता भं अऩने घय, दक
ु ान, ऑदपस
षट्चिं का तादात्भम ससद्ध होता हं । इत्मादद व्मवसामीक स्थानं ऩय मा सतजोयी, कैशफोक्स
दस ददकऩार के नाभ िभश: इॊ र, अस्ग्न, मभ, इत्मादद धन यखने वारे स्थानं ऩय ऩीरा वस्त्र
नऋसत, वरुण, वामु, कुफेय, ईद्व, अनॊत औय ब्रह्मा। त्रफछाकय स्थात्रऩत कयं ।
आठ भातृकाओॊ के नाभ िभश् ब्राह्मी, भाहे द्वयी, प्रसतददन श्रीमॊि का ऩॊचोऩचाय ऩूजन औय श्रीसूि का
कौभायी, वैष्णवी, वायाही, ऐन्री, चाभुण्डा तथा भहारक्ष्भी सनमसभत ऩाठ कयने से मह अत्मासधक परदामी ससद्ध
हं । इन भातृकाओॊ का ऩूजन का रक्ष्म काभ, िोध, रोब, होता हं ।
भोह, भद, भात्समा, ऩाऩ तथा ऩुण्म ऩय त्रवजम प्राद्ऱ कयने मदद प्रसतददन ऩॊचोऩचाय ऩूजन मा श्रीसूि का ऩाठ
हे तु दकमा जाता हं । सॊबव न हो तो ऩूणा श्रद्धा बाव से केवर धूऩ-ददऩ से
ऩूजन एवॊ दशान कय रक्ष्भी भॊि का जाऩ कयना बी
श्रीमॊि का सनभााण औय ऩूजन
राबप्रद होता हं ।
जानकायं का कथन हं की श्रीमॊि के सनभााण हे तु सवोत्तभ
रक्ष्भी भॊि के उच्चायण के सरए स्पदटक मा
ददन ऩौष भास की सॊिाॊसत के ददन यत्रववाय हो तो असत
कभरगट्टे की भारा श्रेद्ष भानी जाती हं । (कभर
उत्तभ सॊमोग भाना जाता हं । रेदकन एसे मोग अत्मॊत
गट्टा दे वी रक्ष्भी को अत्मॊत त्रप्रम हं , दे वी रक्ष्भी का
दर
ु ब
ा होते हं , इस सरए मदद एसा मोग नहीॊ फन यहा हो
सनवास कभर के ऩुष्ऩं ऩय होता हं ।)
तो दकसी बी भास की सॊिाॊसत के ददन यत्रववाय हो तो बी
शुबकायी भाना जाता हं अथवा दकसी बी भास की शुक्र श्रीमॊि ध्मान भॊि
ऩऺ की अद्शभी के ददन यत्रववाय हो, मा धनतेयस,
ददव्मा ऩयाॊ सुघवरारुण चिामाताॊ
दीऩावरी, नवयािी, यत्रवऩुष्म मोग, गुरुऩुष्म मोग इत्मादद
भूराददत्रफन्दु ऩरयऩूणा करात्भकामाभ ्।
होने ऩय बी मॊि का सनभााण दकमा जा सकता हं । मदद
स्स्थत्मास्त्भका शयघनु् सुस्णऩासहस्ता।
उि सबी भुहूता का सॊमोग न हो तो दकसी बी शुब भुहूता
श्रीचिताॊ ऩरयस्णता सततॊनभासभ ।
भं मॊि का सनभााण शुद्धधातु भं कयवारं।
उत्तभ तो महीॊ होगा दक श्रीमॊि को दकसी जानकाय व्मत्रि श्रीमॊि प्राथाना भॊि
के द्राया ताम्रऩि, यजत मा सुवणा ऩय उत्कीणा कयवारं। ध्मान के ऩद्ळमात श्रीमॊि की प्राथना कयं ।
ऩूजन धनॊ धान्मॊ धयाॊ हम्मा कीसताभाामुमश
ा ् सश्रमभ ्।
तुयगान ् दस्न्तन् ऩुिान ् भहारक्ष्भी प्रमच्छ भं॥
मॊि प्राद्ऱ हो जामे तो ब्रह्मभुहूता भं स्नानादद से सनवृत्त
त्रवसबन्न धभाग्रॊथं एवॊ शास्त्रं के अनुशाय भॊि ससद्ध, प्राण-
हो कय, शाॊत सचत्त से ऩूवाासबभुख हो कय फैठा जामे।
प्रसतत्रद्षत, ऩूणा चैतन्ममुि श्रीमॊि के साभने रक्ष्भी फीज
श्रीमॊि का धूऩ-दीऩ, गॊध ऩुष्ऩ आदद अत्रऩत
ा कय
भॊि की भारा जऩ कयना अत्मासधक राबप्रद ससद्ध होता हं ।
उसका षोडषोऩचाय ऩूजन कये मा त्रवद्रान कभाकाण्डी
18 ददसम्फय 2012
ॐ श्रीॊ ह्रीॊ श्रीॊ कभरे कभरारमे प्रसीद प्रसीद श्रीॊ ह्रीॊ श्रीॊ गुजयात के सूयत शहय भं भेरुरक्ष्भी भॊददय मा
श्रीमॊि के सम्भुख बोग रगाकय उसे स्वमॊ औय ऩरयजनं हं । सॊऩूणा भॊददय को श्रीमॊि की आकृ सत के अनुरुऩ सनसभात
हं की फीजाऺय की शत्रि ही भॊि मॊि की आत्भा एवॊ कुॊडाकाय मऻस्थर ऩय आहुसत दे ने ऩय भनुष्म सफ प्रकाय
प्राण भाने जाते हं । की स्स्त्रमं को वशीबूत कय रेता हं । वतारा आकृ सत वारे
माभर ग्रॊथ भं वस्णात हं की श्री मॊि के दशान भाि से कुण्ड ऩय आहुसत दे ने ऩय भनुष्म अतुल्म याजरक्ष्भी को
ही त्रवशेष राब की प्रासद्ऱ हो जाती हं । प्राद्ऱ कयता हं । चतुष्कोण आकृ सत वारे कुण्ड ऩय आहुसत
मथा-साधा त्रिकोदटतोथेषु स्नात्वा मत्परभश्नुते रबते दे ने ऩय भनुष्म वषाा को उत्ऩन्न कयता हं । त्रिकोण
तत्परभ ् बक्ता, कृ त्वा श्री चिदशानभ ्। आकृ सत वारे कुण्ड ऩय आहुसत दे ने ऩय भनुष्म शिुओॊ को
त्रवद्रानो ने अऩने अनुबवं भं ऩामा हं दक श्री मॊि भायता हं । गसत को स्तस्म्बत कयता हं । ऩुष्ऩं की आहुसत
अत्मॊत प्रबावशारी मॊि हं , दक दै सनक श्रद्धाऩूवन
ा दे ने ऩय त्रवभर मश एवॊ त्रवजम को प्राद्ऱ कयता हं ।
श्रीमॊि के दशानभाि से शीघ्र ही भनुष्म की भहायस (अथाात त्रफल्व पर) की हत्रव दे कय ऩयभानॊदत्व
भनोकाभनाए ऩूणा होने रगती हं । को प्राद्ऱ हो जाता हं ।
अथाात: जो श्री मॊि के यहस्म को जानता हं वह सकर मिास्स्त बोगो न च ति भोऺो,मिास्स्त भोऺो न च ति बोग्
ब्रह्माण्ड के बूत, बत्रवष्म, वताभान को जानता हं । वह श्रीसुन्दयीसेवतत्ऩयाणाॊ, बोगश्च भोऺश्च कयस्थ एव।
सकर ब्रह्माण्ड को आकत्रषात कयता हं , सवा रोकं को
स्तस्म्बत कयता हं , नीरे थोथे से इस चि का प्रमोग अथाात: जहाॉ बोग है वहाॉ भोऺ नहीॊ, जहाॉ ऩय भोऺ हं
कयने ऩय शिुओॊ को भायता हं , गसतभान ऩदाथं को योकने वहाॉ बोग नहीॊ हो सकता। रेदकन श्री भहारक्ष्भी की सेवा
भं सभथा फनता हं । राऺायस के साथ इसका प्रमोग कयने से बोग व भोऺ दोनं ही सहज भं प्राद्ऱ हो जाते हं ।
से भनुष्म सकर रोकं के प्रास्णमं का वशीकयण कयने भं मदद कायण हं की हजायं वषो से श्री भहारक्ष्भी
सपर होता हं । श्रीमॊि के फीज भॊि का नवराख जऩ की उऩासना का प्रफर भाध्मभ श्री मन्ि ही यहा हं ।
कयने से भनुष्म रुरत्व (सशवत्व अथाात सशव के सभान त्रिऩुयोऩसनषद भं कादद-हादद त्रवद्याओॊ के नाभ से श्रीत्रवद्या
शाऩ दे ने, सॊहाय कयने का साभथ्मा) को प्राद्ऱ कयता हं । का स्ऩद्श उल्रेख सभरता हं । श्रीशॊकयाचामा कृ त सौन्दमा
सभट्टी से वेत्रद्शत (अथाात बुजा भं धायण कयना) कयने ऩय रहयी एवॊ प्रऩॊचसाय आदद ग्रॊथ श्री मॊि के शुद्ध एवॊ
त्रवजमश्री को प्राद्ऱ कयता हं । बग(मोसन) की आकृ सत वारे सास्त्त्ववकता के सवोत्तभ प्रभाण हं ।
20 ददसम्फय 2012
कुछ जानकाय त्रवद्रानं का कथन हं की श्रीत्रवद्या चाॊदी ऩय सनसभात श्रीमॊि की अऩेऺा सुवणा ऩय सनसभात
गुरुगम्म हं । इस सरए गुरुकृ ऩा के त्रफना प्राण-प्रसतत्रद्षत मा श्रीमॊि का पर कयोिो गुना होता हं ।
असबभॊत्रित श्री मॊि उत्तभ पर नहीॊ दे ते। श्रीआदद गुरु यत्नसागय ग्रॊथ भं यत्नं ऩय सनसभात सबन्न-सबन्न श्रीमॊि
शॊकयाचामा जी को श्रीत्रवद्या की दीऺा मोगेन्र श्री के परं का वणान सभरता हं ।
गोत्रवन्दऩादाचामा से प्राद्ऱ हुई थी। मोगेन्र श्री स्जसभं स्पदटक ऩय फने श्रीमॊि को सवाश्रद्ष
े फतामा
गोत्रवन्दऩादाचामा जी को श्रीत्रवद्या की दीऺा श्री गमा हं ।
गौिऩादाचामा के गुरु बगवान दत्तािेम ने स्वमॊ दी थी। त्रवद्रानं का भत हं :
इस प्रकाय श्रीत्रवद्या के अत्मॊत प्राचीन गुय-सशष्म ऩयॊ ऩयामं बोजऩि ऩय सनसभात मॊि 6 वषा तक प्रबावी यहता है ।
सवाि प्रससद्ध हं । ताॊफे भं सनसभात श्रीमॊि 12 वषा तक प्रबावी यहता है ।
सुन्दयीताऩनीम भं उल्रेख हं की स्जस प्रकाय घट, करश चाॊदी भं सनसभात श्रीमॊि 20 वषा तक प्रबावी यहता है ।
औय कुॊब तीनं शब्दद का एक ही अथा हं उसी प्रकाय मॊि, औय सुवणा भं सनसभात श्रीमॊि आजीवन प्रबावी यहता है ।
दे वता औय गुरु मह तीनं शब्दद का एक ही हं । कुछ त्रवद्रानो का भत हं
कुछ त्रवद्रानो का भत हं की बोजऩि ऩय सनसभात बोजऩि ऩय सनसभात मॊि 1 वषा तक प्रबावी यहता है ।
श्रीमॊि त्रवशेष प्रबावी होती हं । क्मोदक शास्त्रं भं वस्णात हं ताॊफे भं सनसभात श्रीमॊि 2 वषा तक प्रबावी यहता है ।
की "म् बूजद
ा ऩैमज
ा ासत स सवाान्रबते" चाॊदी भं सनसभात श्रीमॊि 12 वषा तक प्रबावी यहता है ।
श्रीमॊि के तीन प्रभुख प्रकाय हं । औय सुवणा भं सनसभात श्रीमॊि आजीवन प्रबावी यहता है ।
1. भेरुऩृद्ष, 2. कूभाऩद्ष
ृ , 3. बूऩुद्ष। त्रवशेष नोट: हभाये अनुबवं के अनुशाय मन्ि मदद शुद्ध
कुछ त्रवद्रजनं का कथन हं की श्रीमॊि को प्राण- धातु भं सनसभात हो, तेजस्वी भॊिं द्राया असबभॊत्रित हो तो
प्रसतत्रद्षत कयने का असधकायी केवर वही भनुष्म को होता वह आजीवन प्रबावी यहता है , चाहे वह सोने, चाॊदी मा
हं स्जसने श्रीत्रवद्या की मोग्म गुरु से ददऺा सर हो। मोग्म ताॊफे भं ही सनसभात क्मं न हो। एक शुद्ध धातु भं सनसभात
गुरु से ददऺा प्राद्ऱ दकम त्रफना फडे ़ से फडे ़ त्रवद्रान ब्राह्मण एवॊ ऩूणा त्रवसध त्रवधान से भॊिससद्ध एवॊ प्राण-प्रसतत्रद्षत
को बी चाहे वह चायं वेद का ऻाता हो मा ऩूजा-ऩाठ भं दकमा गमा मॊि जफ तक व्मत्रि के ऩूजन स्थान भं
प्रखॊड त्रवद्रान हो उसे बी श्री मॊि को असबभॊत्रित मा प्राण- स्थात्रऩत यहता हं तफ तक वह प्रबावशारी यहते दे खा
प्रसतत्रद्षत कयने का असधकाय नहीॊ हं । मही कायण हं की गमा हं । इसभं जया बी सॊदेह नहीॊ हं । केवर कुछ त्रवशेष
अऻानता वश दकमे गमे इस प्रकायके ऩूजनं के कायण मॊि ऐसे होते हं जो साधना त्रवशेष मा कामा उद्दे श्म की
आज फडे ़ से फडे ़ त्रवद्रान ब्राह्मण के ऩास ऻान तो खुफ सभासद्ऱ के ऩद्ळमात जर भं त्रवसस्जात कयने होते हं । मॊि
होता हं रेदकन भाॊ रक्ष्भी की त्रवशेष कृ ऩा उसके ऩय नहीॊ मदद दकसी कायण से खॊदडत हो जामे , उस ऩय अॊदकत
त्रवद्रानं का कथन हं की धासभाक भान्मता के अनुशाय से ददखाई नहीॊ दे ते हो तफ, अथवा दकसी कायण से मॊि
बोजऩि की अऩेऺा ताॊफे ऩय सनसभात श्रीमॊि का पर अशुद्ध हो जामे हाथ से सगय जामे तफ उसे जर भं
ताॊफे ऩय सनसभात श्रीमॊि की अऩेऺा चाॊदी ऩय सनसभात अशुद्ध, खॊदडत होने मा हाथं से सगयजाने ऩय उसके शुब
श्रीत्रवद्या के अद्भुत
ु चभत्कायं भं से एक का वणान "शॊकय गमे। दस
ू ये ददन प्रात्कार ब्राह्मण ऩरयवाय ने दे खा, उनके
ददस्ग्वजम" भं सभरता हं जो इस प्रकाय हं । घय भं सवाि सोने के आॊवरे त्रफखये ऩडे ़ हं । इस प्रकाय
जफ आचामा शॊकय अऩने गुरु के महाॊ यहते थे, तफ आचामा शॊकय नं श्रीत्रवद्या की उऩासना से ब्राह्मण ऩरयवाय
गुरुगृह के सनमभ अनुशाय आचामा शॊकय एक ददन दकसी को धनवान फना ददमा।
ब्राह्मण के द्राय ऩय सबऺा के सरए गए। वह ब्राह्मण फहुत
सनधान था, सबऺा भं दे ने के सरए उसके घय भं भुट्ठी बय असधकतय रोगं ने श्रीमॊि को सचत्रित ही दे खा
चावर बी नहीॊ थे। सनधान ब्राह्मण की ऩत्नी ने आचामा होगा, स्जससे मॊि के सनभााण की वास्तत्रवक त्रवसध
शॊकय को एक आवॊरा दे कय योते हुए अऩनी अवस्था सभझना कदठन हं । सचत्रित मॊिं भं हभं केवर उसकी
फतराई। ब्राह्मण ऩत्नी की द्ु खद करुण सनधानता की रम्फाई औय चौिाई ही नज़य आती हं , उचाई नहीॊ होती।
व्मथा सुनकय आचामा शॊकय का रृदम रत्रवत हो गमा। रेदकन वास्तत्रवक रुऩ से मॊि की उॊ चाई बी होती हं जो
आचामा शॊकय ने वहीॊ खडे ़ होकय, करुण त्रवगसरत सचत्त से भुख्मरुऩ से घातु औय ऩत्थयं से फने मॊिं भं ददखाई
श्रीत्रवद्या की असधद्षािी दे वी भाॉ भहारक्ष्भी की स्तुसत ददती हं । इस तयह के मॊि को ऩत्थय ऩय काटकय,
प्रायम्ब की औय आचामा शॊकय की वाणी से अनामास स्पदटक, भयगच, प्रवार, ऩद्मयागभस्ण, इन्रनीरभस्ण,
करुणाऩूवक
ा कोभर कान्त वाक्मं से आकृ द्श हो कय भाॉ नीरकान्तभस्ण इत्मादद यत्नं ऩय दे खने को सभरते हं ।
भहारक्ष्भी आचामा शॊकय के साभने अऩने त्रिबुवन भनोहय इसके अरावा शासरग्राभसशरा, ताम्रऩि, यजत ऩि ओय
रुऩ भं प्रकट हो गई औय कोभर शब्ददं भं कहा, ऩुि सुवणा भं बी मॊि फनामे जाते हं । श्रीमॊि के सनभााण भं बू
"भैने तुम्हाया असबप्राम जान सरमा हं , ऩयन्तु इस सनधान अथवा भेरु दोनं ऩद्धसतमं का उऩमोग होता हं ।
ऩरयवाय ने ऩूवा जन्भं भं ऐसा कोई बी सुकृत, ऩुण्म कामा
नहीॊ दकमा हं स्जससे भं इन्हं धन दे सकूॉ।" श्रीमॊि की त्रवशेषता एवॊ उऩमोसगता
ऩौयास्णक कार से ही दहन्द ू सॊस्कृ सत भं श्रीत्रवद्या
भाॉ भहारक्ष्भीजी के इन वचनं ऩय आचामा शॊकय की उऩासना अत्मासधक प्रचसरत यही हं । मही कायण हं
ने फडे ़ ही त्रवनीत शब्ददं भं भाॉ भहारक्ष्भीजी से सनवेदन की दहन्द ू सॊस्कृ सत भं तफ से रेकय आजतक फडे ़-फडे ़
दकमा की "ऩूवा जन्भ भं इस ब्राह्मण ने ऐसा कोई कामा त्रवद्रान आचामा श्रीत्रवद्या के उऩासक यहे हं ।
सुकृत कामा नहीॊ दकमा हं स्जसके परस्वरुऩ उसे धन-
सम्ऩत्रत्त दी जा सके इससे क्मा हुआ। भेये जैसे सबऺुक
श्रीमॊि भं स्स्थत नौ चिं के सबन्न-सबन्न प्रमोग
को आॊवरे का दान दे कय इसने तो भहान ् ऩुण्म यासश
से राब:
अस्जात कय सरमा हं , इस कायण मह ऩरयवाय अतुर धन
(१) सवाानन्दभम अथाात ् सफ प्रकाय का आनन्द दे ने वारा
सम्ऩत्रत्त का असधकायी हो गमा हं , अत् मदद आऩ प्रसन्न
हं ।
हुई हं तो इस ऩरयवाय को दारयरम से भुकत कय दीस्जमे"
(२) सवा ससत्रद्धप्रद अथाात ् सबी प्रकाय की ससत्रद्धमं को
आचामा शॊकय के इस सनवेदन का भाॉ भहारक्ष्भी खण्डन
प्रदान कयने वारा हं ।
न कय सकीॊ औय प्रसन्न होकय दे वी ने कहा "मही होगा
(३) सवायऺाकाय अथाात ् सबी से यऺा कयने वारा हं ।
आचामा, भं उन्हं प्रचुय सोने के आॊवरे दॊ ग
ू ी।" दे वी के
(४) सवा योगहय अथाात ् सबी योगं का हयण कयने वारा
भुख से इतना सुनने ऩय आचामा शॊकय नं ब्राह्मण ऩरयवाय
हं ।
को शीघ्र धनवान होने का आशीवााद दे कय गुरुगृह रौट
22 ददसम्फय 2012
(५) सवााथा साधक अथाात ् सबी कामं की ससत्रद्ध कयने भध्म भं त्रफन्द ु दपय िभश् उऩय दशाामे गमे आठ
वारा हं । चिं को फनाना चादहए।
(६) सवा सौबाग्मदामक अथाात ् सबी सौबाग्म को प्रदान श्रीिभ भं सशवजी का कथन हं दक जो भनुष्म सभ
कयने वारा हं । ये खा न सरख कय, सभान भुख न फनाकय श्रीमॊि का
(७) सवा सॊऺोबऺ अथाात ् सॊऺोबण कयने वारा हं । सनभााण कयता हं , उसका सवास्व भं हय रेता हूॉ।
(८) सवााशाऩरयऩूयक अथाात ् सबी आशाओॊ को ऩूयण कयने त्रवद्रानं का भत हं की स्जस स्थर ऩय स्जस दे वता का
वारा हं । स्थान सनददा द्श दकमा गमा हो, उस स्थान ऩय दे वता
(९) िैरोक्म भोहन अथाात ् तीनोरोक का भोहन कयने का ऩूजन नहीॊ कयने ऩय साधक के भाॊस औय यि
वारा हं । द्राया उस दे वता की ऩायणा होती हं ।
श्री मॊि के सनभााण के सभम दकसी ऩशु मा
मॊि सनभााण त्रवधान बावावरम्फी जीव की दृत्रद्श नहीॊ ऩिनी चादहए, इस
मदद श्री मॊि का सनभााण बोजऩि ऩय कयना हो, तो सरए सयका हो कय मॊि का सनभााण कयना चादहए।
तुरसी, अनाय मा भोयऩॊख की करभ से यि चॊदन से मदद कोई व्मत्रि ऩशु के आगे श्री मॊि को सरखता हं ,
मॊि का सनभााण कयना चादहए। ऩीरे यॊ ग हे तु शुद्ध तो वह भन्द-फुत्रद्ध, साधक अॊगऺम से होने वारे ऩाऩ
अद्शगॊध, ससन्दयू मा कुॊकुभ से बी मॊि सरखे जा सकते बूत बैयव भं उल्रेख हं दक मदद श्री मॊि को फनाते
हं । इसके अरावा मॊि को सुवणा, यजत, ताॊम्र, स्पदटक सभम ऩद्म भं केशय न फनामे। मदद कोई व्मदक
आदद भूल्मवान धातु मा यत्नं ऩय उत्कीणा कयाकय मॊि सनभााण के सभम ऩद्म के केशय के कल्ऩना कयता हं ,
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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23 ददसम्फय 2012
श्रीचि ऩादोदक का भाहात्म्म: त्रवसबन्न रव्मं एवॊ धातुओॊ से सनसभात श्री मॊि का
ब्रह्माण्ड भं स्स्थत स्जतने तीथा स्थर हं उन सफके पर।
स्नान से सहस्त्र कोदट गुना असधक पर श्रीचि ऩादोदक स्पदटक श्रीमॊि
के सेवन से सभरता हं । (गॊगा, मभुना, नभादा, गोदावयी, स्पदटक यत्न ऩय उत्कीणा दकमा हुआ श्री मॊि दर
ु ाब भाना
गोभती, ऩुष्कय, प्रमाग, हरयद्राय, वायाणसी, ऋत्रषकेश, जाता हं औय मह सबी रव्मं से असतशीघ्र पर प्रदान
ससन्धु, ये वा, सयस्वती आदद तीथा स्थर कहे जाते हं ।) कयने वारा यत्न है । स्पदटक श्रीमॊि भनुष्म की सबी
सयस्वती कवच : भूल्म: 550 औय 460 सयस्वती मॊि :भूल्म : 370 से 1450 तक
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26 ददसम्फय 2012
मॊि एक ब्दरेड की तयह होते हं , स्जस प्रकाय एक नमे ब्दरेड के इस्तेभार भं असावधानी मा चूक होने ऩय हभाये शयीय
का कोई बी दहस्सा कट मा काटा जा सकता हं , मदद दत्रू षत मा जॊग रगा ब्दरेड हो तो उस्से कटने ऩय शयीय त्रवषाि
मा सेस्प्टक हो सकता हं , उसी प्रकाय मॊि के चमन भं असावधानी मा अशुत्रद्ध के कायण भनुष्म सॊकटो से ग्रस्त हो सकता हं ।
अशुद्ध धातु भं सनसभात मन्ि मा आधा-अधुया अशुद्ध अॊकन मा उत्तकीणा दकमा हुवा मन्ि स्जसकी ये खाएॊ, त्रफन्द ु अऺय
इत्मादद स्ऩस्ट ददखा नहीॊ दे ते हो एसे मन्ि अशुद्ध कहाॊ जाता हं । दकसी साधना मा काभनाऩूसता हे तु इस प्रकाय के
मन्िं का प्रमोग सवादा हासनकायक होता हं , स्जसके कायण साधक को अऩने उद्दे श्म भं असपरता, कद्श, सॊकट आदद
त्रवऩदा से सम्भुस्खन होना ऩि सकता हं ।
मन्ि भं बरे ही दकसी दे वी दे वता की भूसता मा सचि नहं रेदकन, उसभं सॊफॊसधत दे वी-दे वता के फीज भॊिं अऺयं एवॊ
अॊको का अॊकन होता हं । दे वी-दे वता के फीज भन्ि एवॊ अॊको को अॊकन कयने का बी त्रवसध-त्रवधान होता हं ।
त्रवद्रानं का भत हं की प्रासचन कार से ही मन्िं को सोने -चाॊदी-ताॊफा आदद धातुओॊ ऩय अथवा बोजऩि ही अॊदकत
दकमा जाता हं । क्मोदक सोने-चाॊदी-ताॊफं ऩय सनसभात मॊि ही ऩूणा प्रबावशारी होते हं । कागज ऩय सरखे मा छऩे हुवे
मन्िं का प्रबाव नहीॊ के फयाफय होता हं । धातु की प्रेट ऩय स्माही इत्मादद से अॊदकत दकमे गमे मन्िं का प्रबाव
बी नहीॊ के फयाफय होता हं ।
कुछ त्रवद्रानं ने अऩने अनुबवं भं ऩामा हं की प्रास्स्टक, शीशा, कागज, कऩडे ़ ऩय छऩे हुवे मा स्माही से फनाए हुवे
मन्िं का प्रबाव अल्ऩ सभम अथाात कुछ ददनं तक ही यहता हं । उसके फाद उनका प्रबाव ऺीण होने रगता हं !
मन्ि को बूसभ, टाईल्स इत्मादद ऩय अॊदकत कयना स्वमॊ के सरए गड्ढा़ खोदने के सभान कद्शकायी होता हं ।
मदद कोई व्मत्रि ताॊफं भं बी मन्ि फनवाने भं असभथा हो तो उसे स्वमॊ मा दकसी त्रवद्रान से शुब भुहूता भं बोजऩि
ऩय आवश्मक मन्ि को अद्शगॊध आदद सॊफॊसधत रव्मं से शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से अॊदकत कयवाना चादहए। मन्ि को
अॊदकत कयवाने के ऩद्ळमात उसे शुब भुहूता भं ऩूणा त्रवसध-त्रवधान से प्राण-प्रसतत्रद्षत कयना असत आवश्मक हं , अन्मथा
मन्ि जाग्रत नहीॊ होते हं ।
मन्ि का चमन कयते सभम मन्ि का शुब भुहूता भं शुद्ध धातु भं सनसभात होना, उसऩय अॊदकत ये खा, सचि, फीजाऺय
एवॊ अॊकं का स्ऩद्श रुऩ से ददखना असत आवश्मक हं , उसी के साथ भं मन्ि को शुब भुहूता भं ऩूणा त्रवसध-त्रवधान से
प्राण-प्रसतत्रद्षत कयना बी असत आवश्मक हं । इस सरए इन सबी फातं का ध्मान यखते हुवे मन्ि का चमन दकमा
जामे तो मन्ि ऩूणा रुऩ से परदामी ससद्ध होते हं , स्जस भं जया बी सॊदेह नहीॊ हं ।
व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न व अन्म साभग्रीमा व अन्म सुत्रवधाएॊ उऩरब्दध हं ।
काभनाऩूसता हे तु दर
ु ब
ा साधना (बाग:1)
ऩॊ.श्री बगवानदास त्रिवेदी जी,
हरयरा गणऩसत मन्ि साधना
साधना हे तु साभग्री:- श्री हरयरा गणेश मन्ि (हरयरा गणऩसत मन्ि), एवॊ श्री
गणेश जी की प्रसतभा(हल्दी की सभरजामे तो असत उत्तभ), हल्दी, घी का दीऩ,
धूऩफत्ती, अऺत
भारा: भूॊगे मा हल्दी की
सभम: प्रात्कार
ददशा: ऩूवा
आसन: रार
वस्त्र: ऩीरा
ददन: कृ ष्ण ऩऺ की चतुथॉ से शुक्र ऩऺ की चतुथॉ तक
जऩ सॊख्मा: चाय राख
प्रदाद : गुि
भॊि:–
ॐ हुॊ गॊ ग्रं हरयरागणऩत्मे वयद सवाजन रृदम स्तॊबम स्तॊबम स्वाहा ||
Om Hum Gan Gloun Haridraganapatye Varad Sarvajan Hruday Stambhay
Stambhay Swaha
त्रवसध: प्रात्कार स्नानइत्मादद से सनवृत्त होकय स्वच्छ वस्त्र धायण कय रार आसन ऩय
फैठ जामे। श्री हरयरा गणेश मन्ि एवॊ गणेशजी के त्रवग्रह को एक रकिी की चौकी ऩय ऩीरा वस्त्र त्रफछा कय स्थात्रऩत
कयदे । गणेशजी को हल्दी, रार मा ऩीरे पूर गणेशजी को अत्रऩत
ा कयं । प्रसाद भं गुि चढा़ए। धूऩ-दीऩ इत्मादद से
त्रवसधवत ऩूजन कयं , साधन कार भं धूऩ-दीऩ चारु यखं। भन्ि जऩ प्रायॊ ब कयने से ऩूवा जऩ का त्रवसनमोग अवश्म कयरं।
जऩ की सभासद्ऱ ऩय हल्दी सभसश्रत अऺत से दशाॊश हवन कयके ब्राह्मण बोजन कयामे।
भन्ि जऩ से ऩूवा गणेशजी का इस भॊि से ध्मान कयं ।
ध्मान भन्ि :
ऩाशाॊक शौभोदकभेक दन्तॊ कयै दाधानॊ कनकासनस्थभ ् हारयराखन्ड प्रसतभॊ त्रिनेिॊ ऩीताॊशुकॊयात्रि गणेश भीडे ॥
Paashank Shoumodakamek Dantam Karairdadhanam Kanakasanastham Haridrakhand Pratimam Trinetram
Peetanshukanratri Ganesha Meede.
शुक्र ऩऺ की चतुथॉ को हल्दी का रेऩ शयीय ऩय रगाकय स्नान कयं । गणेशजी का ऩूजन कये औय ८००० भन्ि
से तऩाण कयके, घी से १०१ फाय हवन कये । कुॊवायी कन्मा को बोजन कयामे औय मथाशत्रि दस्ऺणा दे कय प्रसन्न कयं ।
मन्ि एवॊ प्रसतभा को अऩने ऩूजा स्थान भं स्थात्रऩत कयदे ।
प्रभुख प्रमोजन: १. शिु भुख फॊध कयने हे तु। २. जर, अस्ग्न, चोय एवॊ दहॊ सक जीवं से यऺा हे तु। ३. वॊध्मा स्त्री को
सॊतान प्रासद्ऱ हे तु।
28 ददसम्फय 2012
त्रवसध:–
प्रात्कार स्नानइत्मादद से सनवृत्त होकय स्वच्छ वस्त्र धायण कय रार आसन
ऩय फैठ जामे।
श्री गणेश मन्ि एवॊ गणेशजी के त्रवग्रह को एक रकिी की चौकी ऩय
रार वस्त्र त्रफछा कय स्थात्रऩत कयदे । गणेशजी को केसय व यि चॊदन का
सतरक कये , प्रसाद भं गुि चढा़ए। धूऩ-दीऩ इत्मादद से त्रवसधवत ऩूजन कयं ,
साधन कार भं धूऩ-दीऩ चारु यखं। २१ कनेय के पूर(कनेय अप्राद्ऱ हो तो रार गुराफ मा कोइ बी रार पूर) गणेशजी
को अत्रऩत
ा कयं । गणेश जी को हय ऩुष्ऩ अत्रऩत
ा कयते सभम स्जस कामा भं त्रवजम प्राद्ऱ कयनी हो उस कामा की ऩूसता हे तु
गणेश जी से श्रद्धा बाव से प्राथना कयं ।
दपय भन्ि जऩ प्रायॊ ब कयं । ऩाॊच ददन भं सवा राख जऩ ऩूणा हो जाने ऩय, छठ्ठे ददन ऩाॊच कुवारयकाओॊ को
बोजन कयामे औय मथाशत्रि दस्ऺणा दे कय प्रसन्न कयं । एसा कयने से साधक की काभनाएॊ ऩूणा होती हं । मन्ि एवॊ भूसता
को अऩने ऩूजा स्थान भं स्थात्रऩत कयदं , स्जस कामा उद्दे श्म के सरमे प्रमोग दकमा हो उस कामा हे तु जफ आवश्मक हो तो
मन्ि को सॊफॊसधत कामा के सभम साथ रेकय जामे। कामा उद्दे श्म भं त्रवजमश्री की प्रासद्ऱ के ऩद्ळमात मन्ि को फहते ऩानी
भं त्रवसस्जात कयदे । गणेश प्रसतभा का सनमसभत ऩूजन कय सकते हं ।
प्रभुख प्रमोजन:
१. कोटा -केश आदद त्रववादं भं सपरता हे तु।
२. शिु का प्रबाव फढ़ गमा हो तो उस ऩय त्रवजम प्राद्ऱ कयने हे तु।
३. मदद दकसी कामा उद्दे श्म भं सपरता प्राद्ऱ कयने हे तु ।
29 ददसम्फय 2012
त्रवसध:–
दकसी बी फुधवाय को प्रात्कार स्नानइत्मादद से सनवृत्त होकय स्वच्छ वस्त्र
धायण कय रार आसन ऩय फैठ जामे।
श्री गणेश ससद्ध मन्ि एवॊ गणेशजी के त्रवग्रह को एक रकिी की चौकी ऩय रार
वस्त्र त्रफछा कय स्थात्रऩत कयदे । गणेशजी को केसय व यि चॊदन का सतरक कये ,
प्रसाद भं गुि चढा़ए। धूऩ-दीऩ इत्मादद से त्रवसधवत ऩूजन कयं , साधन कार भं
धूऩ-दीऩ चारु यखं। सॊबव हो तो गणेशजी को ऩुष्ऩ अत्रऩत
ा कयं ।
स्जतने ददनं भं साधना सॊऩन्न कयनी हो उसी के अनुरुऩ सॊकल्ऩ कयके भन्ि जऩ प्रायॊ ब कयं । सनमसभत उसी सभम भं
भन्ि जऩ कये ।
साधना सम्ऩन्न होने ऩय दकसी ब्राह्मण मा कुभारयका कं बोजन कयामे औय मथाशत्रि दस्ऺणा वस्त्र आदद दे कय प्रसन्न
कयं ।
मन्ि औय गणेश प्रसतभा को अऩने ऩूजा स्थान भं स्थात्रऩत कयदं , औय सनमसभत उि भन्ि की एक भारा जऩ कयं । उि
साधना से साधक का बत्रवष्म भं ससद्ध होने वारे कामा त्रफना दकसी ऩये शानी से सनत्रवाध्न सॊऩन्न हो जामे गा।
प्रभुख प्रमोजन:
१. सबी कामा सनत्रवाघ्न सॊऩन्न कयने हे तु।
२. भहत्वऩूणा कामं भं आने वारी फाधा एवॊ त्रवध्नं के नाश हे तु।
३. ऩरयवाय की सुख-सभृत्रद्ध हे तु।
30 ददसम्फय 2012
श्रीदग
ु ाा मॊि शत्रि एवॊ बत्रि के साथ सभस्त मॊि का सनमसभत ऩूजन कयने से व्मत्रि को सबी प्रकाय
साॊसारयक सुखं को प्रदान कयने वारा सवाासधक रोकत्रप्रम की फाधा से भुत्रि सभरती हं औय धन-धान्म की प्रासद्ऱ
दग
ु ाा की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता है । श्रीदग
ु ाा श्रीदग
ु ाा मॊि की ऩूजा एवॊ स्थाऩना के सरए आस्द्वन
मॊि का ऩूजन व्मत्रि को धभा, अथा, काभ औय भोऺ इन एवॊ चैि नवयािी त्रवशेष राब प्रद हं । क्मोदक नवयाि को
चाय की प्रासद्ऱ भं बी सहामक ससद्ध होता हं । आद्य् शत्रि की उऩासना का भहाऩवा भाना गमा हं ।
शास्त्रोि वणान हं की दे वी दग
ु ाा के श्रीदग
ु ाा मॊि के गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म: भहान शत्रि दग
ु ाा मॊि
ऩूजन औय दशान कयने भाि से दे वी प्रसन्न होकय अऩने (अॊफाजी मॊि) | आद्य शत्रि दग
ु ाा फीसा मॊि (अॊफाजी फीसा
की भाॉ स्वमॊ यऺा कय उन ऩय अऩनी कृ ऩा रद्शी वषााती हं बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं
औय बिं को उन्नती के सशखय ऩय जाने का भागा असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय
कृ ऩा प्रासद्ऱ हे तु श्रीदग
ु ाा मॊि को अऩने घय, दक
ु ान, ओदपस नवाणा मॊि (चाभुॊडा मॊि)
इत्मादद भं ऩूजा स्थन भं स्थात्रऩत कयना चादहमे। मदद कोई व्मत्रि द:ु ख, दरयरता औय बम से
त्रवद्रानो का भत हं की श्रीदग
ु ाा मॊि के ऩूजन से अत्मासधक ऩये शान हो, औय चाहकय बी मा ऩयीश्रभ के
भनुष्म को वाक् ससत्रद्ध, सॊतान प्रासद्ऱ, शिु ऩय त्रवजम, उऩयाॊत बी उसी वाॊस्च्छत सपरता प्राद्ऱ नहीॊ हो यही हं
ऋण-योग आदद ऩीडा़ से भुत्रि प्राद्ऱ होती हं औय व्मत्रि तो उसे नवाणा मॊि औय भॊि का प्रमोग कयना चादहए।
को जीवन भं सॊऩूणा सुखं की प्रासद्ऱ हो इस के सरमे मह दकसी बी प्रकाय के जाद-ू टोना, योग, बम, बूत, त्रऩशाच्च,
श्रीदग
ु ाा मॊि अचूक एवॊ ससत्रद्धदामक भाना गमा हं । दकसी डादकनी, शादकनी आदद से भुत्रि दक प्रासद्ऱ के सरमे भाॊ
दग
ु ाा के नवाणा मॊि का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन-अचान बगवान सशव एक भाि एसे दे व हं स्जसे बोरे बॊडायी
सवादा परदामक होता है । कहा जाता हं , क्मोदक बगवान सशव थोङी सी ऩूजा-
दग
ु ाा दख
ु ं का नाश कयने वारी हं । इससरए अचाना से ही अऩने बिं ऩय प्रसन्न हो जाते हं ।
नवयात्रि के ददनो भं जफ उनकी ऩूजा ऩूणा श्रद्धा औय भानव जासत की उत्ऩत्रत्त बी बगवान सशव से भानी
त्रवद्वास से दक जाती हं , तो भाॊ दग
ु ाा दक प्रभुख नौ जाती हं ।
शत्रिमाॉ जाग्रत हो जाती हं , स्जससे नवं ग्रहं को अत् बगवान सशव की कृ ऩा प्राद्ऱ कयना प्रत्मेक सशव
सनमॊत्रित कयती हं , स्जससे नौग्रहं से प्राद्ऱ होने वारे बि के सरए ऩयभ आवश्मक हं । सशवजी की कृ ऩा
असनद्श प्रबाव से यऺा होकय ग्रह जनीत ऩीडाएॊ बी शाॊत प्रासद्ऱ हे तु सशव मॊि का ऩूजन एवॊ दशान अत्मॊत सयर
हो जाती हं । भाध्मभ हं ।
नवाणा भॊि: ऐॊ ह्रीॊ क्रीॊ चाभुॊडामै त्रवच्चे बगवान सशव का सतो गुण, यजो गुण, तभो गुण
नव अऺयं वारे इस अद्भुत
ु नवाणा भॊि के हय तीनं ऩय एक सभान असधकाय हं । सबी सोभवाय सशव
अऺय भं दे वी दग
ु ाा दक एक-एक शत्रि सभामी हुई हं , को त्रप्रम हं , इस सरए सशव मॊि को स्थाऩना एवॊ
स्जस का सॊफॊध एक-एक ग्रहं से हं । ऩूजा-अचाना के सरए सोभवाय का त्रवशेष भहत्व हं ,
मदद कोई भनुष्म अत्मासधक कद्श मा सॊकटं से इस ददन व्रत यखने से मा सशव मॊि का ऩूजन कयने
ग्रस्त हो तो उसे प्रसतददन स्नान इत्माददसे शुद्ध होकय से सशवजी की त्रवशेष कृ ऩा प्राद्ऱ होती हं ।
नवाणा मॊि के सम्भुख नवाणा भॊि का जाऩ 108 दाने दक गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म :भहाभृत्मुज
ॊ म मुि सशव
भारा से कभ से कभ तीन भारा जाऩ अवश्म कयना खप्ऩय भाहा सशव मॊि । सशव ऩॊचाऺयी मॊि । सशव मॊि ।
अदद्रतीम सवाकाम्म ससत्रद्ध सशव मॊि । श्री द्रादशाऺयी रुर ऩूजन
चादहए।
मॊि बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं
गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म: नवाणा फीसा मॊि बी
असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय
उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं असधक
सकते हं । Visit us on www.gurutvakaryalay.com
जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय सकते हं ।
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सशव मॊि भहाभृत्मुन्जम मॊि
दहॊ द ू सॊस्कृ सत भं सशव को भनुष्म के कल्माण का भहाभृत्मुॊजम मॊि का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन कयने
प्रतीक भाना जाता हं । भान्मता हं की सशव शब्दद के भनुष्म के सकर योग, शोक, बम इत्मादद का नाश होकय
उच्चायण मा दशान भाि से ही भनुष्म को ऩयभ आनॊद की भनुष्म को स्वास्थ्म एवॊ आयोग्मता की प्रासद्ऱ होती हं ।
प्रासद्ऱ होती हं । कुछ त्रवद्रानं का अनुबव यहा हं की जो भनुष्म
स्जस प्रकाय से बगवान सशव बायतीम सॊस्कृ सत को सनमसभत भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन कयता हं , उस
दशान ऻान के द्राया सॊजीवनी प्रदान कयने वारे दे व हं , व्मत्रि को अकार भृत्मु का बम नहीॊ यहता हं ।
सशव मॊि को बी उसी प्रकाय से ऩूजन एवॊ दशान भाि भहाभृत्मुॊजम भॊि का जऩ कयते हुवे भहाभृत्मुॊजम मॊि
से ऩयभ कल्माण कायी भाना जाता हं । ऩय जर की घाय सगयाकय उस जर को योग सनवृत्रत्त
बगवान सशव का ऩूजन अनादद कार से दहन्द ू हे तु शयीय के योग वारे दहस्से ऩय सछडकने मा सेवन
सॊस्कृ सत भं सशवसरॊग भं साकाय भूसता के रुऩ एवॊ मॊि कयने से शीघ्र स्वास्थ्म राब होता हं । त्रवशेष
का ऩूजन कयने का त्रवधान धभा-शास्त्रं भं वस्णात हं । ऩरयस्स्थतीमं भं भॊि ससद्ध भहाभृत्मुॊजम मॊि ऩय
32 ददसम्फय 2012
असबभॊत्रित दकमे गमे जर का घय भं सछिकाव कयने भहाभृत्मुॊजम मॊि की त्रवशेष भॊिं से ऩूजा मा साधना
से सॊऩूणा ऩरयवाय के सदस्मं को स्वास्थ्म राब होता कयने की आवश्मिा हो तो उसे दकमा जा सकता हं ।
हं । मदद घयका कोइ सदस्म योग से ऩीदित हं। मा उसकी
मदद दकसी बी प्रकाय के अरयद्श की आशॊका हो, तो सेहत फाय फाय खयाफ हो यही हं, तो स्वास्थ्म राब के
उसके सनवायण एवॊ शास्न्त के सरमे शास्त्रं भं सम्ऩूणा सरए भहाभृत्मुॊजम से श्रेद्ष अन्म कोई उऩाम नहीॊ हं ।
त्रवसध-त्रवधान से भहाभृत्मुॊजम भॊि के जऩ कयने का बमॊकय भहाभायी से रोग भय यहे हं, तो मॊि प्रमोग
उल्रेख दकमा गमा हं । औय भॊि का जऩ अऩने ऩरयवाय की सुयऺा हे तु कयना
स्जस्से व्मत्रि भृत्मु ऩय त्रवजम प्रासद्ऱ का वयदान दे ने चादहए।
वारे दे वो के दे व भहादे व प्रसन्न होकय अऩने बि के आकस्स्भक दघ
ु ट
ा ना की आशॊका होने ऩय भहाभृत्मुॊजम
सभस्त योगो का हयण कय व्मत्रि को योगभुि कय मॊि का प्रमोग अवश्म कयना चादहए।
उसे दीघाामु प्रदान कयते हं । याजबम अथाान्त सयकाय से सॊफॊसधत कोइ ऩीडा मा
मदद दकसी कायण वश व्मत्रि भहाभृत्मुॊजम के जऩ कद्श हं, तो भहाभृत्मुॊजम मॊि का प्रमोग दकमा जा
कयने भं असभथा हो तो उसे भहाभृत्मुॊजम मॊि का सकता हं ।
ऩूजन अवश्म कयना चादहए। साधक का भन धासभाक कामं नहीॊ रग यहा हं, तफ
त्रवद्रानं का अनुबव यहा हं की भहाभृत्मुॊजम मॊि, भहाभृत्मुॊजम मॊि राबकायी ससद्ध होता हं ।
भहाभृत्मुॊजम भॊि के सभान ही परदामक हं । शिु से सॊफॊसधत ऩये शासन एवॊ क्रेश हं यहे हो तो
मदद मॊि एवॊ भॊि दोनं का प्रमोग एक साथ दकमा भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन अवश्म दकमा जा सकता
जाम तो भनुष्म को चभत्कायी ऩरयणाभ प्राद्ऱ हो हं ।
सकते हं इसभं जया बी सॊदेह नही हं । मदद ज्मोसतष के अनुशाय भायक ग्रहो द्राया प्रसतकूर
शास्त्रं भं भृत्मु बमको त्रवऩत्रत्त मा सॊकट भाना गमा (अशुब) पर प्राद्ऱ हो यहं हं तो भहाभृत्मुॊजम मॊि का
हं , एवॊ शास्रो के अनुशाय त्रवऩत्रत्त मा भृत्म के सनवायण ऩूजन कयना चादहए।
के दे वता सशव हं । मदद जन्भ, भास, गोचय औय दशा, अॊतदा शा,
इस सरए भहाभृत्मुॊजम मॊि के ऩूजन से व्मत्रि को स्थूरदशा आदद भं ग्रहऩीिा होने की आशॊका हं, तफ
त्रवऩत्रत्त मा अकार भृत्म के बम से भुत्रि सभरती हं । भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन कयना चादहए।
कुॊडारी भेराऩक भं मदद नािीदोष, षडाद्शक आदद दोष
भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन मा प्रमोग कफ कयना हं, तो भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन सवाश्रद्ष
े उऩाम हं ।
चादहए… एक से असधक अशुब ग्रह योग एवॊ शिु स्थान(षद्शभ
भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन स्नान इत्मादद से सनवृत बाव) भं हं, तफ भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन कयना
होकय प्रसतददन बी कय सकते हं । भहाभृत्मुॊजम मॊि के चादहए।
ऩूजन से भनुष्म के वताभान सभम के कद्श तो दयू होते ही दीघाामु की काभना के सरमे हय ऩरयवाय भं
हं साथ भं बत्रवष्म भं आने वारे कद्शंका बी स्वत् ही भहाभृत्मुॊजम मॊि की स्थाऩना अत्मॊत राबप्रद होती
सनवायण हो जाता हं । भहाभृत्मुॊजम मॊि का सनमसभत हं । भहाभृत्मुॊजम मॊि के ऩूजन व उऩासना के तयीके
ऩूजन कयने से फहुतसी फाधाएॉ दयू होती ऐसा हभने हभाये आवश्मकता के अनुरूऩ हो सकते हं ।
अनुबवो से जाना हं । ऩयॊ तु मदद त्रवशेष स्स्थसतमं भं
33 ददसम्फय 2012
आते।
कृ ष्ण मॊि
गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : सॊतान गोऩार मॊि ।
बगवान त्रवष्णु के अवताय श्रीकृ ष्ण का आशीवााद श्री कृ ष्ण अद्शाऺयी भॊि ऩूजन मॊि । कृ ष्ण फीसा मॊि बी
औय कृ ऩा प्राद्ऱ कयने के सरए कृ ष्ण मॊि का ऩूज सवाश्रद्ष
े उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं असधक
उऩामं भं से एक हं । मह बगवान कृ ष्ण का मॊि हं । जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय सकते हं ।
कृ ष्ण मॊि का सनमसभत ऩूजन कयने से व्मत्रि को Visit us on www.gurutvakaryalay.com
जीवन भं सबी फाधाओॊ एवॊ कद्शं से भुत्रि सभरती हं
एवॊ धन-वैबव, बौसतक सुख-साधनं की प्रासद्ऱ होती धनदा मॊि
हं । व्मवसामीक स्थान ऩय धनदा मॊि को शुब भुहूता भं
कृ ष्ण मॊि के ऩूजन एवॊ साधना से व्मत्रि को जीवन स्थात्रऩत कयने से व्मत्रि को दकसी बी प्रकाय से
भं सफकुछ प्राद्ऱ हो जाता हं , उसे धीये -धीये सबी आसथाक सॊकट, कद्श नहीॊ यहता।
ससत्रद्धमाॊ प्राद्ऱ होने रगती हं । व्मत्रि का अत्भत्रवद्वास मदद ऩहरे से सॊकट चरी आयही हं तो उससे शीघ्र
फढ़ने रगता हं उसके व्मत्रित्व भं सनखाय आने रगता भुत्रि सभरती हं ।
है । व्मत्रि की फोरने की करा भं सनखाय आता हं , त्रवद्रानं का अनुबव हं की धनदा मॊि को व्मवसामीक
उसकी वाणी भं भधुयता एवॊ दस
ू यं को आकत्रषात कयने स्थान की चौखट ऩय स्थात्रऩत कयने से ग्राहक खीॊचे
वारी सम्भोहन शत्रिमं का त्रवकास होने रगता हं । चरे आते हं ।
कृ ष्ण मॊि के सनमसभत ऩूजन से व्मत्रि सबी कामं भं धनदा मॊि को सतजोयी गल्रा इत्मादद धन यखने के
सपरता प्राद्ऱ कयता है । श्री कृ ष्ण मॊि त्रवजम प्रासद्ऱ स्थान ऩय यखने से धन की कबी कभी नहीॊ यहती।
हे तु बी उत्तभ ससद्ध हो सकता हं । मदद दकसी व्मत्रि को दरयरता ऩीछा नहीॊ छोि यही
जीवन की त्रवऩयीत ऩरयस्स्थसतमं भं उसचत भागा का हो, सनयॊ तय आसथाक स्स्थती कभजोय फनी यहती हो, तो
चमन कयने हे तु श्री कृ ष्ण मॊि अत्मॊत राबप्रद है । धनदा मॊि को एक रार कऩडे ़ भं श्रीपर के साथ भं
धन वृत्रद्ध दडब्दफी
धन वृत्रद्ध दडब्दफी को अऩनी अरभायी, कैश फोक्स, ऩूजा स्थान भं यखने से धन वृत्रद्ध होती हं स्जसभं कारी हल्दी,
रार- ऩीरा-सपेद रक्ष्भी कायक हकीक (अकीक), रक्ष्भी कायक स्पदटक यत्न, 3 ऩीरी कौडी, 3 सपेद कौडी, गोभती
चि, सपेद गुॊजा, यि गुॊजा, कारी गुॊजा, इॊ र जार, भामा जार, इत्मादी दर
ु ब
ा वस्तुओॊ को शुब भहुता भं तेजस्वी
फाॊधकय फहते ऩानी भं फहा ददमा जामे तो उसकी गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : बाग्म वधाक मॊि ।
दरयरता मा सॊकट बी उसी के साथ भं चरे जाते हं । सवा कामा फीसा मॊि । कामा ससत्रद्ध मॊि । सुख सभृत्रद्ध मॊि ।
गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : व्माऩाय वृत्रद्ध कायक सवा रयत्रद्ध ससत्रद्ध प्रद मॊि । सवा सुख दामक ऩंसदठमा मॊि ।
मॊि । व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि । व्माऩाय वधाक मॊि । व्माऩायो- ऋत्रद्ध ससत्रद्ध दाता मॊि । सवा ससत्रद्ध मॊि । सुख शाॊसत दामक
न्नसत कायी ससद्ध मॊि बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊि बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं
मॊिं के त्रवषम भं असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय
श्रीभहाकारी मॊि
कल्ऩवृऺ मॊि त्रवसबन्न तॊि प्रमोग एवॊ शभशान साधना भं कारी
कल्ऩवृऺ मॊि के त्रवषम भं त्रवद्रानं का कथन हं , मदद मॊि उऩासना का अत्मासधक भहत्व हं । कारी शब्दद का श्रवण
शुद्ध धातु भं सनसभात हं, त्रवद्रान ब्राह्मणं द्राया ऩूणा त्रवसध- मा स्भयण होते ही दे वी भहाकारी का शिु सॊहायक स्वरुऩ
त्रवधान भं शुब भुहूता भं प्राण-प्रसतत्रद्षत दकमा गमा हो तो का स्भयण हो जाता हं । मही कायण हं की भाॉ भहाकारी
मह असॊबव हं दक कल्ऩवृऺ मॊि के प्रबाव से दकसी के मॊि का प्रमोग भुख्म रुऩ से शिु नाश, भोहन, भायण,
व्मत्रि की कोई भनोकाभनाएॊ अऩूणा यह जामे। उच्चाटन इत्मादद कामं भं दकमा जाता है ।
ऩौयास्णक भान्मताओॊ के अनुशाय इस धया ऩय एक जफ शिुओॊ का प्रकोऩ असधक हो गमा हं, औय अन्म
कल्ऩवृऺ नाभ एसा वृऺ हं , स्जससे जो बी भाॊगा सबी उऩाम, मॊि भॊि टोटके आदद असफ़र हो यहे हो,
जामे, मा भनोकाभना की जामे तो वह अवश्म ऩूणा तफ श्रीभहाकारी मन्ि का प्रमोग अवश्म कयना
होती हं । चादहए। क्मोदक शिु सॊहाय मा भुत्रि हे तु भाॉ भहाकारी
कल्ऩवृऺ के इसी गुणं को सॊकसरत कय कल्ऩवृऺ की त्रवसध-वत उऩासना अभोघ है ।
मॊि के रुऩ भं सनसभात दकमा गमा हं । जो भनुष्म की श्रीभहाकारी मन्ि के दै सनक ऩूजन एवॊ दशान से
सभस्त भनोकाभनाओॊ को शीघ्र ऩूणा कयने भं सभथा साधक के सबी अरयद्श, त्रवध्न, फाधाओॊ का स्वत :ही
हं । नाश होने रगता हं ।
कल्ऩवृऺ मॊि का त्रवस्तृत वणान जैन धभा-गॊथं भं फडे ़ से फडे ़ शिु का प्रकोऩ बी शाॊत होने रगता हं ।
दकमा गमा हं । दे वी भहाकारी के उऩासकं के सरमे श्रीभहाकारी मन्ि
भॊि ससद्ध दर
ु ब
ा साभग्री
हत्था जोडी- Rs- 370 घोडे की नार- Rs.351 भामा जार- Rs- 251
ससमाय ससॊगी- Rs- 370 दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550 इन्र जार- Rs- 251
त्रफल्री नार- Rs- 370 भोसत शॊख- Rs- 550 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251
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35 ददसम्फय 2012
गणेश मॊि बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय
त्रवषम भं असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय सकते हं । Visit us on www.gurutvakaryalay.com
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रक्ष्भीकुफेय धन आकषाण मॊि
श्री भहारक्ष्भी मॊि श्रीमॊि को सभस्त प्रकाय के श्रीमॊिं भं सवाश्रद्ष
े भाना
धन दक दे वी रक्ष्भी हं जो भनुष्म को धन, सभृत्रद्ध गमा है औय कुफेय मॊि को दे वताओॊ भं धन के दे वता
एवॊ ऐद्वमा प्रदान कयती हं । अथा(धन) के त्रफना भनुष्म कुफेय जी का सफसे प्रबावशारी मॊि भाना जाता हं
जीवन द्ु ख, दरयरता, योग, अबावं से ऩीदडत होता हं , इस मॊि के ऩूजन से अऺम धन कोष की प्रासद्ऱ होती
औय अथा(धन) से मुि भनुष्म जीवन भं सभस्त हं औय भनुष्म के सरए नवीन आम के स्रोत फनते हं ।
सुख-सुत्रवधाएॊ बोगता हं । प्रसतददन रक्ष्भीकुफेय धन आकषाण मॊि का ऩूजन एवॊ
श्री भहारक्ष्भी मॊि के ऩूजन से भनुष्म की जन्भं दशान कयने से व्मत्रि को जीवन भं धन औय ऐद्वमा
जन्भ की दरयरता का नाश होकय, धन प्रासद्ऱ के प्रफर की कबी बी कभी नहीॊ होती है ।
मोग फनने रगते हं , उसे धन-धान्म औय रक्ष्भी की त्रवद्रानं ने अऩने अनुबवं भं ऩामा हं की जो भनुष्म
वृत्रद्ध होती हं । अऩने गृहस्थ जीवन भं धन, वैबव, ऐद्वमा, सुख-
श्री भहारक्ष्भी मॊि के सनमसभत ऩूजन एवॊ दशान से सभृत्रद्ध, व्माऩाय भं सपरता, त्रवदे श राब, याजनीसत भं
धन की प्रासद्ऱ होती है औय मॊि जी सनमसभत उऩासना सपरता, नौकयी भं ऩदौस्न्न्त आदद की काभना यखता
से दे वी रक्ष्भी का स्थाई सनवास होता है । हं तो उसके सरए श्री रक्ष्भीकुफेय धन आकषाण मॊि
श्री भहारक्ष्भी मॊि भनुष्म दक सबी बौसतक काभनाओॊ सवाश्रष
े मॊि हं । भनुष्म को रक्ष्भीकुफेय धन आकषाण
को ऩूणा कय धन ऐद्वमा प्रदान कयने भं सभथा हं । मॊि के ऩूजन से जीवन के सबी ऺेि भं सुख-सभृत्रद्ध
अऺम तृतीमा, धनतेयस, दीवावरी, गुरु ऩुष्माभृत मोग एवॊ सौबाग्म की प्राद्ऱ होने रगती है ।
यत्रवऩुष्म इत्मादद शुब भुहूता भं मॊि की स्थाऩना एवॊ मदद दकसी व्मत्रि को व्माऩाय भं मदद व्माऩाय भं ऩूणा
ऩूजन का त्रवशेष भहत्व हं । ऩरयश्रभ एवॊ रगने से कामा कयने ऩय बी असधक राब
की प्रासद्ऱ नहीॊ हो यही हो, व्माऩाय भॊदा चर यहा हो
गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) मा फाय-फाय राब के स्थान ऩय हासन हो यही हो तो
। श्री मॊि (भॊि यदहत) । श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सदहत) । उसे रक्ष्भीकुफेय धन आकषाण मॊि को अवश्म अऩने
श्री मॊि (फीसा मॊि) । श्री मॊि श्री सूि मॊि । श्री मॊि व्मवसामीक स्थान ऩय स्थात्रऩत कयना चादहए। स्जससे
(कुभा ऩृद्षीम) । रक्ष्भी फीसा मॊि । श्री श्री मॊि (श्रीश्री व्माऩाय भं फाय-फाय होने वारे घाटे मा नुकसान से
रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि) । शीघ्र ही राब प्राद्ऱ होने के मोग फनने रगते हं ।
अॊकात्भक फीसा मॊि । भहारक्ष्भमै फीज मॊि । भहारक्ष्भी
फीसा मॊि । रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि । रक्ष्भी दाता गणेश रक्ष्भी मॊि
फीसा मॊि । रक्ष्भी गणेश मॊि । रक्ष्भी कुफेय धनाकषाण प्राण-प्रसतत्रद्षत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-दक
ु ान-
मॊि। ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि । कनक धाया मॊि । ओदपस-पैक्टयी भं ऩूजन स्थान, गल्रा मा अरभायी
वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी भं स्थात्रऩत कयने व्माऩाय भं त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता
मॊि)। बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं हं । मॊि के प्रबाव से बाग्म भं उन्नसत, भान-प्रसतद्षा
37 ददसम्फय 2012
एवॊ व्माऩय भं वृत्रद्ध होती हं एवॊ आसथाक स्स्थभं सुधाय इस कनकधाया मॊि दक ऩूजा अचाना कयने से ऋण
होता हं । औय दरयरता से शीघ्र भुत्रि सभरती हं । व्माऩाय भं
गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थात्रऩत कयने से बगवान उन्नसत होती हं , फेयोजगाय को योजगाय प्रासद्ऱ होती हं ।
गणेश औय दे वी रक्ष्भी का सॊमुि आशीवााद प्राद्ऱ होता जैसे श्री आदद शॊकयाचामा द्राया कनकधाया स्तोि दक
हं । श्री गणेश रक्ष्भी मॊि के सनमसभत ऩूजन एवॊ यचना कुछ इस प्रकाय की गई हं , दक स्जसके श्रवण
दशान से व्मत्रि के सकर त्रवध्नं एवॊ द्ु ख दरयरताका एवॊ ऩठन कयने से आस-ऩास के वामुभॊडर भं त्रवशेष
नाश होता हं । अरौदकक ददव्म उजाा उत्ऩन्न होती हं । दठक उसी
स्जस प्रकाय बगवान गणेश के नाभ स्भयण औय प्रकाय से कनकधाया मॊि अत्मॊत दर
ु ब
ा मॊिो भं से एक
दशान भाि से व्मत्रि के सकर त्रवघ्नं, सॊकट, आदद मॊि हं स्जसे भाॊ रक्ष्भी दक प्रासद्ऱ हे तु अचूक प्रबावा
फाधाओॊ का स्वत् ही नाश होता हं , उसी प्रकाय दे वी शारी भाना गमा हं ।
रक्ष्भी के स्भयण औय दशान भाि से व्मत्रि का कनकधाया मॊि को त्रवद्रानो ने स्वमॊससद्ध तथा सबी
दब
ु ााग्म सौबाग्म भं फदर जाता हं उसके सभस्त दख
ु ् प्रकाय के ऐद्वमा प्रदान कयने भं सभथा भाना हं ।
दरयरता का स्वत् ही नाश होता हं । जगद्गरु
ु शॊकयाचामा ने दरयर ब्राह्मण के घय कनकधाया
गणेश रक्ष्भी मॊि के ऩूजन से ऩरयवाय भं सुख-शाॊसत स्तोि के ऩाठ से स्वणा वषाा कयाने का उल्रेख ग्रॊथ
एवॊ सभृत्रद्ध का आगभन होने रगता हं मदह कायण हं शॊकय ददस्ग्वजम भं सभरता हं ।
गणेश रक्ष्भी मॊि की भदहभा अऩयॊ ऩाय हं । कनकधाया भॊि:- ॐ वॊ श्रीॊ वॊ ऐॊ ह्रीॊ-श्रीॊ क्रीॊ कनक धायमै
स्वाहा'
कनकधाया मॊि
आज के बौसतक मुग भं हय व्मत्रि असतशीघ्र सभृद्ध कुफेय मॊि
फनना चाहता हं । कनकधाया मॊि दक ऩूजा अचाना आज के दौय भं हय व्मत्रि की चाहता दक उसके ऩास
कयने से व्मत्रि के जन्भं जन्भ के ऋण औय दरयरता अऩाय धन-सॊऩत्रत्त हो। उसके ऩाय दसु नमा का हय ऐशो-
से शीघ्र भुत्रि सभरती हं । मॊि के प्रबाव से व्माऩाय भं आयाभ भौजुद हो, उसे कबी दकसी चीज की कभी न
उन्नसत होती हं , फेयोजगाय को योजगाय प्रासद्ऱ होती हं । हो। एसे रोगो के सरमे कुफेय मॊि एक प्रकाय से
कनकधाया मॊि अत्मॊत दर
ु ब
ा मॊिो भं से एक मॊि हं चभत्कायी मॊि है कुफेय मॊि।
स्जसे भाॊ रक्ष्भी दक प्रासद्ऱ हे तु अचूक प्रबावा शारी कुफेय मॊि के ऩूजन से स्वणा राब, यत्न राब, ऩैतक
ृ
भाना गमा हं । कनकधाया मॊि को त्रवद्रानो ने सम्ऩत्ती एवॊ गिे हुए धन से राब प्रासद्ऱ दक काभना
स्वमॊससद्ध तथा सबी प्रकाय के ऐद्वमा प्रदान कयने भं कयने वारे व्मत्रि के सरमे कुफेय मॊि अत्मन्त
सभथा भाना हं । सपरता दामक होता हं । एसा शास्त्रोि वचन हं । कुफेय
आज के मुग भं हय व्मत्रि असतशीघ्र सभृद्ध फनना मॊि के ऩूजन से एकासधक स्त्रोि से धन का प्राद्ऱ
चाहता हं । धन प्रासद्ऱ हे तु प्राण-प्रसतत्रद्षत कनकधाया होकय धन सॊचम होता हं ।
मॊि के साभने फैठकय कनकधाया स्तोि का ऩाठ कयने कुफेय मॊि धन असधऩसत धनेश कुफेय का मॊि है , इस
से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । सरमे कुफेय मॊि के प्रबाव से मऺयाज कुफेय प्रसन्न
होकय अतुर सम्ऩत्रत्त का वयदान दे ते हं ।
38 ददसम्फय 2012
ससमाय ससॊगी- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 के दे वी गामिी को वेदं की भाता अथाात "वेदभाता" कहा
गमा हं । साभान्मत् दे वी के गामिी भॊि की भदहभा एवॊ
त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450
प्रबाव से प्राम् हय दहन्द ु धभा को भानने वारे रोग
कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450,
ऩरयसचत हं ।
दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900 गामिी भॊि को "गुरु भॊि" के रुऩ भे जाना जाता है ।
भोसत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900 स्जस प्रकाय दहन्द ु धभा भं गामिी भन्ि सबी भॊिं भं
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 सवोच्च है औय सफसे प्रफर शत्रिशारी भॊि हं , उसी
प्रकाय गामिी मॊि बी प्रफर शत्रिशारी मॊि हं ।
इन्र जार- Rs- 251, 551, 751
गामिी मॊि के सनमसभत ऩूजन एवॊ दशान से भनुष्म
धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ Rs-550)
को सबी ससत्रद्ध प्राद्ऱ होने रगती हं ।
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 गामिी की मॊि भदहभा का वणान शब्ददं भं कयना
GURUTVA KARYALAY असॊबव हं । गामिी मॊि के ऩूजन से आत्भ ऻान की
Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785,
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, प्रासद्ऱ व सूक्ष्भ फुत्रद्ध का त्रवकास होता हं । व्मत्रि के
gurutva.karyalay@gmail.com
40 ददसम्फय 2012
सकर ऩाऩं का नाश होता हं , उसके बौसतक अबाव जीवन भं सबी प्रकाय के सुख प्राद्ऱ कय सकता हं ।
दयू होने रगते हं । हनुभान जी अऩने बिं के सबी सॊकटं को दयू कयने
गामिी मॊि को स्थात्रऩत कयने से बूत-प्रेत, तॊि फाधा, भं सभथा हं इस सरए उन्हं सॊकटभोचन कहाॊ जाता
चोट, भायण, भोहन, उच्चाटन, वशीकयण, स्तॊबन, हं ।
काभण-टू भण, इत्मादद उऩरवं का नाश होकय सवा गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : हनुभान मॊि ।
सुखं की प्रासद्ऱ होती हं । योग आदद के सनवायण हे तु हनुभान ऩूजन मॊि । भारुसत बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं
बी गामिी मॊि त्रवशेष राबकायी हं । सबी मॊिं के त्रवषम भं असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ
गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : गामिी मॊि । श्री साइट ऩय प्राद्ऱ कय सकते हं । Visit us on
गामिी मॊि सॊऩूट । गामिी फीसा मॊि । गामिी मॊि www.gurutvakaryalay.com
नवदग
ु ाा मन्ि
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
भाॊ के शैरऩुिी को ऩवातयाज (शैरयाज) दहभारम के महाॊ दे वी कहा जाता हं । इनके घण्टे सी बमानक प्रचॊड ध्वसन
ऩावाती रुऩ भं जन्भ रेने से बगवती को शैरऩुिी कहा से अत्माचायी दै त्म, दानव, याऺस व दै व बमसबत यहते
जाता हं । भाॊ शैरऩुिी को शास्रं भं तीनो रोक के सभस्त हं । चन्रघण्टा के भॊि-ध्मान-कवच का त्रवसध-त्रवधान से
वन्म जीव-जॊतुओॊ का यऺक भाना गमा हं । इसी कायण से ऩूजन कयने से व्मत्रि का भस्णऩुय चि जाग्रत हो जाता
वन्म जीवन जीने वारी सभ्मताओॊ भं सफसे ऩहरे हं । दे वी की उऩासना से व्मत्रि को सबी ऩाऩं से भुत्रि
शैरऩुिी के भॊददय की स्थाऩना की जाती हं स्जस सं सभरती हं उसे सभस्त साॊसारयक आसध-व्मासध से भुत्रि
उनका सनवास स्थान एवॊ उनके आस-ऩास के स्थान सभरती हं । इसके उऩयाॊत व्मत्रि को सचयामु, आयोग्म,
सुयस्ऺत यहे । भाॊ शैरऩुिी का भॊि-ध्मान-कवच का त्रवसध- सुखी औय सॊऩन्न होनता प्राद्ऱ होती हं । व्मत्रि के साहस
त्रवधान से ऩूजन कयने वारे व्मत्रि को हभेशा धन-धान्म एव त्रवयता भं वृत्रद्ध होती हं । व्मत्रि स्वय भं सभठास आती
से सॊऩन्न यहता हं । अथाात उसे स्जवन भं धन एवॊ अन्म हं उसके आकषाण भं बी वृत्रद्ध होती हं । चन्रघण्टा को
ब्रह्मचारयणी कूष्भाण्डा
भाॊ ब्रह्मचारयणी को त्रवद्रानं ने तऩ का आचयण कयने कूष्भाण्डा दे वी ने अऩनी भॊद हॊ सी द्राया ब्रह्माण्ड को
वारी बगवती हं होने के कायण उन्हं ब्रह्मचारयणी कहा हं । उत्ऩन्न दकमा था इसीके कायण इनका नाभ कूष्भाण्डा
क्मोदक ब्रह्म का अथा हं तऩ। शास्त्रो भं भाॊ ब्रह्मचारयणी को दे वी यखा गमा। शास्त्रोि उल्रेख हं , दक जफ सृत्रद्श का
सभस्त त्रवद्याओॊ की ऻाता भाना गमा हं । धासभाक अस्स्तत्व नहीॊ था, तो चायं तयप ससपा अॊधकाय दह था।
भान्मताके अनुसाय दे वी ने बगवान सशव को प्राद्ऱ कयने उस सभम कूष्भाण्डा दे वी ने अऩने भॊद से हास्म से
के सरए 1000 सार तक ससपा पर खाकय तऩस्मा यत ब्रह्माॊड दक उत्ऩत्रत्त दक। कूष्भाण्डा दे वी को जीवन दक
यहीॊ औय 3000 सार तक सशव दक तऩस्मा ससपा ऩेिं से शत्रि प्रदान कयता भाना गमा हं । कूष्भाण्डा दे वी के भॊि-
सगयी ऩत्रत्तमाॊ खाकय दक, उनकी इसी कदठन तऩस्मा के ध्मान-कवच का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन कयने वारे व्मत्रि
कायण उन्हं ब्रह्मचारयणी नाभ से जाना गमा। ब्रह्मचारयणी का अनाहत चि जाग्रत हो हं । भाॊ कूष्भाण्डाका के ऩूजन
के भॊि-ध्मान-कवच का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन कयने वारे से सबी प्रकाय के योग, शोक औय क्रेश से भुत्रि सभरती
व्मत्रि को अनॊत पर दक प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि भं तऩ, हं , उसे आमुष्म, मश, फर औय फुत्रद्ध प्राद्ऱ होती हं ।
चन्रघण्टा का स्वरूऩ शाॊसतदामक औय ऩयभ कल्माणकायी कायण, उन्हं स्कन्दभाता के नाभ से जाना जाता हं ।
नवग्रह शाॊसत मॊि मदद बवन के दस्ऺण बाग भं दोष हो तो प्राम् सभम
नवग्रह ग्रहं के मॊिं को उनकी सॊफॊसधत ददशाओॊ उस बवन भं सनवासकताा सचॊता-तनाव आदद से ग्रस्त
भं इस प्रकाय से रगाने चादहए जहाॊ मे आसानी से यहते हं । भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत त्रिकोण भॊगर मॊि
कुफेय मा वरुण मॊि रगाना चादहए। कयना चादहए। बवन के भुख्म द्राय
घय के आग्नेम कोण भं वास्तु दोष हो तो आग्नेम ऩय घोिे की नार को U आकाय भं रगाना चादहए।
कोण भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत चॊर मॊि को स्थात्रऩत उल्टा रगाने से त्रवऩरयत ऩरयणाभं से सम्भुस्खन होना
मदद बवन भं सनवास कयने वारे सदस्मं को भन मदद बवन ऩूवा बाग भं दोष हो तो भॊि ससद्ध प्राण-
नहीॊ रगने, इन्ऩपेक्शन, अॊतदिमं की सभस्मा, बम, प्रसतत्रद्षत सूमा मॊि को स्थात्रऩत कयना चादहए।
आसथाक हासन आदद सभस्मा मे यहती हो तो बवन का बवन के ईशान कोण भं दोष हो तो वास्तुदोषं को
नैकत्म कोण भं दोष होता हं । एसी स्स्थती भं बवन दयू कयने हे तु भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत फृहस्ऩसत मॊि
के नैकत्म कोण भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत याहु मॊि को स्थात्रऩत कयना चादहए।
औय भृत्मॊजम मॊि को स्थात्रऩत कयना चादहए। नैकत्म इससे इन दोनं ददशाओॊ जसनत वास्तुदोष दयू होते हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवच के साथ भं सवाजन वशीकयण कवच के सभरे होने की वजह से धायण
कताा की फात का दस
ू ये व्मत्रिओ ऩय प्रबाव फना यहता हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवच के साथ भं अद्श रक्ष्भी कवच के सभरे होने की वजह से व्मत्रि ऩय सदा
भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं । स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-
आदद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-
त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राद्ऱ होता हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवच के साथ भं तॊि यऺा कवच के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दयू
होती हं , साथ ही नकायात्भक शत्रिमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्रि ऩय नहीॊ होता। इस
कवच के प्रबाव से इषाा-द्रे ष यखने वारे व्मत्रिओ द्राया होने वारे दद्श
ु प्रबावो से यऺा होती हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवच के साथ भं शिु त्रवजम कवच के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊसधत
सभस्त ऩये शासनओ से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हं । कवच के प्रबाव से शिु धायण कताा
व्मत्रि का चाहकय कुछ नही त्रफगाि सकते।
अन्म कवच के फाये भे असधक जानकायी के सरमे कामाारम भं सॊऩका कये :
दकसी व्मत्रि त्रवशेष को सवा कामा ससत्रद्ध कवच दे ने नही दे ना का अॊसतभ सनणाम हभाये ऩास सुयस्ऺत हं ।
GURUTVA KARYALAY
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त्रवरास, ऎद्वमा, अरॊकाय, यसत सुख, ऎशो-आयाभ, स्त्री वगा कुॊडरी भं रग्नेश चॊर ऩॊचभ बाव भं स्स्थत हं ने ऩय
चॊरभा नीचका होता हं । कुॊडरी भं ऩॊचभ भं चॊर नीच का
47 ददसम्फय 2012
होने, ऩय व्मत्रि को ज्मादातय गैस, यिचाऩ (ब्दरड प्रेशय), तुरा रग्नतुरा रग्न वारं का स्वाभी शुि अद्शभेश होकय
ऩेट के योग, भानससक अशाॊसत, दे हीक संदमा, कप, वात द्रादश बाव भं होगा, जो नीच का होगा। ऐसे जातक
प्रकृ सत, असनॊरा, ऩाॊडुयोग, स्त्री सॊफॊसधत योग इत्मादी से कद्श दव्ु मसानं भं खचा कयने वारे हंगे एवॊ इन्हं अनैसतक कामं
हो सकता हं । चॊर ऩय अशुब ग्रहं का प्रबाव होने ऩय भं जेर बी जाना ऩि सकता है । ऐसा व्मत्रि नशीरे
व्मत्रि को ऩय ऩागरऩन बी हो सकता हं । ऩदाथं का सेवन कयने वारा, अनेक स्स्त्रमं से सॊऩका
ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: चॊर ग्रह दक शाॊसत यखने वारा व तस्कय बी हो सकता है ।
हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत चॊर ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: शुि ग्रह दक शाॊसत
मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत शुि
कयना राबप्रद होता हं । मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन
कयना राबप्रद होता हं ।
ससॊह रग्न : ससॊह रग्न वारे जातकं का सूमा तृतीम भं
होगा तो नीच का होगा मा नेि, रृदम एवॊ हड्डी से वृस्द्ळक रग्न :वृस्द्ळक रग्न वारे जातकं को षद्षेश होकय
सॊफॊसधत फीभायी अवश्म होगी। ऐसा जातक कुॊदठत होगा। नवभ बाग्म बाव भं नीच का भॊगर होगा। ऐसे जातकं
ऩयािभहीन होगा व फुये कामा भं फर ददखाने वारा होगा। को बाग्मोन्नसत भं फाधा आती है । धभा के प्रसत राऩयवाह
ऐसा जातक व्मथा की फातं को रेकय झगिे भं ऩिने होते हं । इन्हं अनेक फाय सगयने से चोट रगती है एवॊ
वारा होगा। इनके छोटे बाई-फहन नहीॊ हंगे। मदद दकसी ऑऩये शन बी कयना ऩि सकता है । ब्दरडप्रेशय के सशकाय
कायणवश हुए बी तो उनसे रिता-झगिता यहे गा, रेदकन बी हो सकते हं । इनको बाइमं से उत्तभ सहमोग सभरता
मे स्वमॊ बाग्मशारी हंगे क्मंदक बाग्म ऩय उच्च दृत्रद्श है । वहीॊ मे ऩयािभी बी होते हं । भाता से शिुता यखने
ऩिे गी। वारे बी हो सकते हं ।
ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: सूमा ग्रह दक शाॊसत ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: भॊगर ग्रह दक शाॊसत
हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत सूमा हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत भॊगर
मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन
कयना राबप्रद होता हं । कयना राबप्रद होता हं ।
प्रसतत्रद्षत गुरु(फृहस्ऩसत) मॊि की स्थाऩना कय उसका ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: शसन ग्रह दक शाॊसत
सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन कयना राबप्रद होता हं । हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत शसन
मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन
भकय रग्न: भकय रग्न वारे जातकं को दद्रतीमेश होकय कयना राबप्रद होता हं ।
चतुथा बाव भं नीच का शसन होने से जातक का स्वबाव
अत्मॊत कठोय हो जाता हं । घुटनं भं ददा व छाती भं ददा भीन रग्न: भीन रग्न वारे जातकं को दशभेश होकय
की सशकामत हो सकती है । व्मत्रि की अऩनी भाता से एकादश बाव भं नीच का गुरु होगा। ऎसा व्मत्रि थोडे
नहीॊ फनेगी मा फचऩन से ही भाता का साथ छूट जाएगा। व्मसनी, घभॊडी, कटु वचन फोरने वारा हो सकता है ।
भकान, बूसभ, सॊऩत्रत्त व वाहन से सॊफॊसधत कामो मा सनवेश जातक के फिे बाई-फहन का सुख ऩूणा नहीॊ सभरता। ऐसे
से हासन ऩाएगा अथवा रम्फे सभम तक जभीन-जामदाद जातक को ऩीसरमा, ददर भं छे द, स्जगय की फीभायी होती
के भुकदभं भं पॉसा यह सकता है । याजनैसतक कामो से है । रोहे की वस्तु से हासन बी हो सकती है । ऩत्नी व
ऩये शान यहे गी। सॊतान से ऩूणा सुख भं कभी यहती है । सशऺा उत्तभ होती
ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: शसन ग्रह दक शाॊसत है ।
हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत शसन ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: गुरु(फृहस्ऩसत) ग्रह
मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन दक शाॊसत हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-
कयना राबप्रद होता हं । प्रसतत्रद्षत गुरु(फृहस्ऩसत) मॊि की स्थाऩना कय उसका
सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन कयना राबप्रद होता हं ।
कुॊब रग्न: कुॊब रग्न वारे जातकं को द्रादशेश होकय
तृतीम बाव भं नीच का शसन होगा। ऐसे जातकं को छोटे उऩयोि रग्न वारे जातकं को असनद्श प्रबाव हो
बाई-फहनं का सुख कभ सभरता हं मा नहीॊ सभरता। वहीॊ
तो उनके फचाव हे तु साथ भं ददए गए अनुबत
ू
सॊतान से सम्फस्न्धत कद्श बी फना यहता हं । त्रवद्या भं
मॊि का उऩाम कयने से कद्शं भं अवश्म कभी
कभजोय यहता है । हाथ भं चोटे रग सकती हं । स्वबाव
बी कटु ता बया होता है ।जोिंभं ददा , यीढ़की हड्डी फढ़ने का आएगी। रेदकन व्मत्रि को अऩने दकमे गए कभो
खतया यहता है । नाक, कान, गरे की फीभायी हो सकती है । का परतो बोगना ही ऩडता हं ।
त्रवशेष मॊि
हभायं महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोने-चाॊदद-ताम्फे भं आऩकी आवश्मिा के अनुशाय दकसी बी बाषा/धभा
के मॊिो को आऩकी आवश्मक दडजाईन के अनुशाय २२ गेज शुद्ध ताम्फे भं अखॊदडत फनाने की त्रवशेष
सुत्रवधाएॊ उऩरब्दध हं । असधक जानकायी के सरए कामाारम भं सॊऩका कयं ।
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49 ददसम्फय 2012
मदद भानव शयीय भं मे तीनं एक सॊतुरीत रुऩ भं सॊचाय होने रगता हं एवॊ साधक का चेहया काॊसतभम
त्रवध्वभान हो, तो भानव शयीय स्वस्थ भाना जाता हं । मदद फनने रगता हं ।
इन तीनं भं से दकसी एक का सॊतुरन त्रफगि जाए तो भारा पेयने से स्वास्थ्म राब:
शयीय भं योग उत्ऩन्न होता हं । हभाये त्रवद्रान ऋषी-भुसनमं भारा पेयते सभम उॊ गरी के भाध्मभ से त्रवद्युत तयॊ ग
नी हजायो वषा ऩूवा महॊ ऻात कय सरमा था की, भान उत्ऩन्न होती है , जो धभसनमं से रृदम भं ऩहुॊचकय भन
शयीय भं उत्ऩन्न होने वारे प्राम् सबी योग उसके भन के भस्स्तष्क को स्स्थयता प्रदान कयती हं ।
दोषं से उत्ऩन्न होते हं , स्जसे आजके आधुसनक मुग भं भारा पेयते सभम भध्मभा उॊ गरी ऩय ऩडऩे वारे दफाव से
ससद्ध हो चुकी हं की भनुष्म अऩने भनोफर ऩय सदै व रृदम को योग होने की सॊबावना को कभ यहती हं ।
स्वस्थ यह सकता हं , मदद छोटी-भोटी फीभायीमं को अऩने भारा पेयने से उॊ गरी औय अॊगूठे के अग्र बाग ऩय दफाव ऩिता
भनोफर से दयू कयने भं सभथा हं । है औय मही दफाव भन को एकाग्र कयने भं हभायी भदद कयता
भारा पेयने से उॊ गरी औय अॊगूठेके अग्र बाग ऩय दफाव है ।
ऩडता हं । मह दफाव हभाये भन को एकाग्र कयने भं हभायी इससरए ऋषी-भुसनमं ने उस कार भं ही खोज
सहामता कयता हं औय हभाये सबतय आध्मास्त्भकता का सनकारा था की भन से ही प्राम् त्रवसबना शायीरयक दोषं ऩय
त्रवकास होता हं । असधक भारा पेयने से िोध एवॊ सनमॊिण यखा जा सकता हं , इससरए भारा के 108 गुटकं मा
वासनाएॊ शाॊत होने रगती हं । शयीय भं नई उजाा का दानं का नाभ बी भनका यखा गमा होगा?
जऩ कयने से ऩूवा ब्राह्मण को सशखा फन्धन अवश्म के धासभाक कामा, त्रफना जर के दान एवॊ त्रफना गणना के
कयना चादहए। क्मोदक त्रफना सशखा भं गाॊठ ददमे जो जऩ सनष्पर होते हं ।
भन्त जऩ दकमा जाता हं , वह सनष्पर होता हं ।
त्रफना दभबंद्ळ मत्कृ त्मॊ मच्चदानॊ त्रवनोदकभ ्।
असॊख्ममा तु मज्जप्तॊ त्तसवा सनष्परॊ बवत ्॥
इस सरए शास्त्रं भं उल्रेख हं की...
सदो ऩवीसतना बाव्मॊ सदा फद्ध सशखेन च। जऩ का पर:-
त्रवसशखो व्मुऩवीततश्च ् मत ् कयोसत न तत कृ तभ ्॥ गृहे चैकगुण् प्रोि् गोद्षे शतगुण् स्भृत् ।
ऩुण्मायण्मे तथा तीथे सहस्त्रगुणभुच्मते ॥
ब्रह्माण्ड ऩुयाण के अनुशाय: अमुत् ऩवाते ऩुण्मॊ नद्याॊ रऺगुणो जऩ् ।
भन्ि जऩ कयते सभम आसन त्रफछा होना चादहए। कोदटदे वरमे प्राद्ऱे अनन्तॊ सशवसॊसनधौ ॥
आसन मदद पटा हो, टू टा-कटा हो, जीणा मा सछर
घय भं फैठ कय भन्ि जऩ कयने से एक गुना पर
होगए हो तो उसका त्माग कयना चादहए।
सभरता हं ।
त्रफना आसन के केवर बूसभ ऩय फैठकय जऩ कयने से
गौशारा भं भन्ि जऩ कयने से सौगुना पर प्राद्ऱ हं ।
दख
ु की प्रासद्ऱ होती हं । ऩुण्म स्थान वन-वादटका मा तीथा स्थान ऩय भन्ि जऩ
फाॊस के आसन ऩय फैठकय भन्ि जऩ कयने से दरयरता
कयने से हजाय गुना पर प्राद्ऱ हं ।
आती हं ।
ऩवात ऩय भन्ि जऩ कयने से दस हजाय गुना पर
ऩत्थय के आसन ऩय फैठकय भन्ि जऩ कयने से योग
प्राद्ऱ हं ।
होते हं ।
नदी तट ऩय भन्ि जऩ कयने से राख गुना पर प्राद्ऱ
काद्ष अथाात रकडी के आसन ऩय फैठकय भन्ि जऩ
हं ।
कयने से दब
ु ााग्म की प्रासद्ऱ होती हं । दे वारम भं भन्ि जऩ कयने से कयोि गुना पर प्राद्ऱ
तृणासन के आसन ऩय फैठकय भन्ि जऩ कयने से
हं ।
मश-कीसता नद्श होती हं ।
सशवसरङ्गके सनकट भन्ि जऩ कयने से अनॊत कोदट
ऩत्तं के आसन ऩय फैठकय भन्ि जऩ कयने से सचत्त
पर की प्रासद्ऱ होती हं ।
की उदद्रग्नता फढ़ती हं ।
त्रवशेष नोट:
भन्ि जऩ भं प्रमोग की जाने वारी मा धायण दक
शास्त्रं भं उल्रेख हं :- गई भारा को कबी खूट
ॊ ी आदद ऩय रटकाना नहीॊ
चादहए।
काम्माथा कम्फरॊ चैव श्रेद्षॊ च यक्त कम्फरभ ्। धायण दक हुई भार जफ उताये तो उसे दे वस्थान
नाश होता हं , अॊसगया स्भृसत भं उल्रेख हं की- त्रफना दॊ ब श्भशान जात सभम मा भृतक को छुते सभम
भारा को सनकार दे ना चादहए।
55 ददसम्फय 2012
श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सदहत) रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि श्री श्री मॊि (रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री
भहामॊि)
श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि अॊकात्भक फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी फीसा मॊि ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩृद्षीम) रक्ष्भी गणेश मॊि धनदा मॊि
आज के बौसतक मुग भं अथा (धन (जीवन दक भुख्म आवश्मिाओॊ भं से एक है । धनाढ्म व्मत्रिओॊ जीवनशैरी को
दे खकय प्रबात्रवत होते हुवे साधायण व्मदक दक बी काभना होती हं , दक उसके ऩास बी इतना धन हो दक वह अऩने जीवन
भं सभस्त बौसतक सुखो को बोग ने भं सभथा हं। एसी स्स्थभं भेहनत, ऩरयश्रभ से कभाई कयके धन अस्जात कयने के
फजाम कुछ रोग अल्ऩ सभम भं ज्मादा कभाने दक भानससकता के कायण कबी-कबी गरत तयीकं अऩनाते हं ।
स्जसके पर स्वरुऩ एसे रोग धन का वास्तत्रवक सुख बोगने से वॊसचत यह जाते
हं औय योग, तनाव, भानससक अशाॊसत जेसी अन्म सभस्माओॊ से ग्रस्त हो जाते हं ।
जहाॊ गरत तयीकं से कभामे हुवे धन के कायण सभाज एसे रोगो को हीन बाव
से दे खते हं । जफदक भेहनत, ऩरयश्रभ से काभामे हुवे धन से स्वमॊ का आत्भत्रवद्वास
फढता हं एवॊ सभाज भं प्रसतद्षा औय भान सम्भान बी सयरता से प्राद्ऱ हो जाता हं ।
जो व्मत्रि धासभाक त्रवचाय धायाओॊ से जुडे हो वह इद्वय भं त्रवद्वाय यखते हुवे स्वमॊ दक
भेहनत, ऩरयश्रभ के फर ऩय कभामे हुवे धन को दह सच्चा सुख भानते हं । धभा भं आस्था
एवॊ त्रवद्वास यखने वारे व्मत्रि के सरमे भेहनत, ऩरयश्रभ कयने के उऩयाॊत अऩनी आसथाक
स्स्थभं उन्नसत एवॊ रक्ष्भी को स्स्थय कयने हे तु, श्री मॊि के ऩूजन का उऩाम अऩनाकय
जीवन भं दकसी बी सुख से वॊसचत नहीॊ यह सकते, उन्हं अऩने जीवन भं कबी धन का
अबाव नहीॊ यहता। उनके सभस्त कामा सुचारु रुऩ से चरते हं । रक्ष्भी कृ ऩा प्रासद्ऱ के
सरए श्रीमॊि का सयर ऩूजन त्रवधान स्जसे अऩना कय साधायण व्मत्रि त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । इस भं जया बी सॊशम नहीॊ हं ।
श्रीमॊि का ऩूजन यॊ क से याजा फनाने वारा एवॊ व्मत्रि दक दरयरता को दयू कयने वारा हं ।
अऩने ऩूजा स्थान भं प्राण-प्रसतत्रद्षत श्रीमॊि को ऩूजन के सरमे स्थात्रऩत कयं । )प्राण-प्रसतत्रद्षत श्रीमॊि दकसी बी
मोग्म त्रवद्रान ब्राह्मण मा मोग्म जानकाय से ससद्ध कयवारे
श्री मॊि को प्रत्मेक शुिवाय को दध
ु , दही, शहद, घी औय शक्कय (गुि) अथाात ऩॊचाभृत फनाकय स्नान कयामे।
स्नान के ऩद्ळमात उसे रार कऩडे से ऩोछ दं ।
श्री मॊि को दकसी चाॊदी मा ताॊफे दक प्रेट भं स्थाऩीत कयं ।
श्री मॊि के नीचे 5 रुऩमे मा 10 रुऩमे का नोट यखदं । (5,10 रुऩमे का ससक्का नहीॊ)
श्री मॊि स्थात्रऩत कयने वारी प्रेट भं श्रीमॊि ऩय स्पदटक दक भारा को चायं ओय घुभाते हुवे स्थात्रऩत कयं ।
श्री मॊि के उऩय भौरी का टु कडा 3-5 फाय घुभाते हुवे अत्रऩत
ा कयं ।
श्री मॊि के उऩय सुखा अद्श गॊध सछडकं।
मदद सॊबव हो तो रार ऩुष्ऩ अत्रऩत
ा कयं । (कभर, भॊदाय(जासूद) मा गुराफ हो तो उत्तभ)
धूऩ-दीऩ इत्मादी से त्रवसधवत ऩूजन कयं ।
उऩयोि त्रवधन प्रसत शुिवाय कयं एवॊ अन्म ददन केवर धूऩ-दीऩ कयं ।
दकसी एक रक्ष्भी भॊि का एक भारा भॊि जऩ कयं । श्रीसूि, अद्श रक्ष्भी स्तोि इत्मादी का ऩाठ कयं मदद ऩाठ कयने भं आऩ
असभथा होतो फाजाय भं श्रीसूि, अद्श रक्ष्भी इत्मादी स्तोि दक केसेट सीडी सभरती हं उसका श्रवण कयं ।
57 ददसम्फय 2012
ऩूजा भं जाने-अनजाने हुई गरती के सरए रक्ष्भीजी का स्भयण कयते हुवे ऺभा भाॊगकय सुख, सौबाग्म औय सभृत्रद्ध
दक काभना कयं ।
प्रसत शुिवाय उऩयोि ऩूजन कयने से जीवन भं दकसी बी प्रकाय का आसथाक सॊकट नहीॊ आता।
मदी आसथाक सॊकट से ऩये शान हं तो श्री मॊि के ऩूजन से सभस्त प्रकाय के आसथाक सॊकट धीये -धीये दयू हो जाते हं ।
नोट: श्री मॊि के के नीचे यखा हुवा नोट प्रसत एक-दो भास भं एक फाय दकसी दे वी भॊदीय भं बेट कय दं । (राब प्राद्ऱ होने ऩय फदरे)
प्रथन फाय यखा हुवा नोट श्री मॊि के ऩूजन से राब होने के फाद ही फदरे। राब प्राद्ऱ होना शुरु होने तक नोट को यखे यहं ।
राब प्राद्ऱ होना शुरु होने के ऩद्ळमात प्रसत भाह भं एक फाये प्रसतऩदा(एकभ) को ऩुयाना नोट फदर कय नमे नोट यखं।
जेसे-जेसे राब प्राद्ऱ होने रगे आऩ के अनुकूर कामा हो ने रगे तो नोट दक यकभ फढाते यहं । असधक राब प्राद्ऱ होता हं ।
उदाहण: मदद ऩहरे 5 रुऩमे का नोट यखा हं तो उस्से राब होने के ऩद्ळमात नोट फदरते हुवे 10 रुऩमे का नोट यखे। 10 रुऩमे का
नोट यखने से राब होने के ऩद्ळमात नोट फदरते हुवे 20 रुऩमे का नोट यखे। इसी प्रकाय नोट को फदते यहं इस्से असधक राब प्राद्ऱ
होता हं ।
असधक राब प्रासद्ऱ हे तु साभान्म सनमभ:
ऩूजन के ददन ब्रह्मचमा का ऩारन कयं ।
ऩूजन के ददन सुगॊसधत तेर, ऩयफ्मूभ, इि का प्रमोग कयने से फचे।
त्रफना प्माज-रहसून का शाकाहायी बोजन ग्रहण कयं । शुिवाय सपेद सभद्षान बोजन भं ग्रहण कयं ।
सवाससत्रद्धदामक भुदरका
इस भुदरका भं भूॊगे को शुब भुहूता भं त्रिधातु (सुवणा+यजत+ताॊफ)ं भं जिवा कय उसे शास्त्रोि त्रवसध-
त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया सवाससत्रद्धदामक फनाने हे तु प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा चैतन्म मुि दकमा
जाता हं । इस भुदरका को दकसी बी वगा के व्मत्रि हाथ की दकसी बी उॊ गरी भं धायण कय सकते हं ।
महॊ भुदरका कबी दकसी बी स्स्थती भं अऩत्रवि नहीॊ होती। इस सरए कबी भुदरका को उतायने की
आवश्मिा नहीॊ हं । इसे धायण कयने से व्मत्रि की सभस्माओॊ का सभाधान होने रगता हं । धायणकताा
को जीवन भं सपरता प्रासद्ऱ एवॊ उन्नसत के नमे भागा प्रसस्त होते यहते हं औय जीवन भं सबी प्रकाय
की ससत्रद्धमाॊ बी शीध्र प्राद्ऱ होती हं । भूल्म भाि- 6400/-
(नोट: इस भुदरका को धायण कयने से भॊगर ग्रह का कोई फुया प्रबाव साधक ऩय नहीॊ होता हं ।)
सवाससत्रद्धदामक भुदरका के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कयं ।
उऩयोि सबी मॊिो को द्रादश भहा मॊि के रुऩ भं शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध ऩूणा
प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ चैतन्म मुि दकमे जाते हं । स्जसे स्थाऩीत कय त्रफना दकसी ऩूजा अचाना-
त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं ।
घय ऩरयवाय भं शाॊसत एवॊ फच्चे को कुसॊगती से छुडाने हे तु फच्चे के नाभ से गुरुत्व कामाारत
द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा चैतन्म मुि वशीकयण कवच एवॊ
एस.एन.दडब्दफी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ
त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मदद आऩ तो आऩ भॊि ससद्ध वशीकयण कवच एवॊ एस.एन.दडब्दफी
फनवाना चाहते हं , तो सॊऩका इस कय सकते हं ।
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60 ददसम्फय 2012
सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत
22 गेज शुद्ध स्टीर भं सनसभात अखॊदडत
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63 ददसम्फय 2012
गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो
जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हं , वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं । इस सरमे इसे सफसे
तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं । जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी
प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि वचन हं । इस प्रकाय के
नवयत्न जदित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते
हं । Rs: 2350, 2800, 3250, 3700, 4600, 5500 से 10,900 तक
असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।
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64 ददसम्फय 2012
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65 ददसम्फय 2012
ऻान दाता भहा मॊि रग्न त्रवघ्न सनवायक मॊि कुदृत्रद्श नाशक मॊि
कामा कल्ऩ मॊि रग्न मोग मॊि श्री शिु ऩयाबव मॊि
दीधाामु अभृत तत्व सॊजीवनी मॊि दरयरता त्रवनाशक मॊि शिु दभनाणाव ऩूजन मॊि
यासश यत्न
भेष यासश: वृषब यासश: सभथुन यासश: कका यासश: ससॊह यासश: कन्मा यासश:
भूग
ॊ ा हीया ऩन्ना भोती भाणेक ऩन्ना
Red Coral Diamond Green Emerald Naturel Pearl Ruby Green Emerald
(Special) (Special) (Old Berma)
(Special) (Special) (Special) (Special)
5.25" Rs. 1050 10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 9100 5.25" Rs. 910 2.25" Rs. 12500 5.25" Rs. 9100
6.25" Rs. 1250 20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 12500 6.25" Rs. 1250 3.25" Rs. 15500 6.25" Rs. 12500
7.25" Rs. 1450 30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 7.25" Rs. 1450 4.25" Rs. 28000 7.25" Rs. 14500
8.25" Rs. 1800 40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 19000 8.25" Rs. 1900 5.25" Rs. 46000 8.25" Rs. 19000
9.25" Rs. 2100 50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 23000 9.25" Rs. 2300 6.25" Rs. 82000 9.25" Rs. 23000
10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000 10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000
All Diamond are Full
** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati
White Colour.
तुरा यासश: वृस्द्ळक यासश: धनु यासश: भकय यासश: कॊु ब यासश: भीन यासश:
हीया भूग
ॊ ा ऩुखयाज नीरभ नीरभ ऩुखयाज
* उऩमोि वजन औय भूल्म से असधक औय कभ वजन औय भूल्म के यत्न एवॊ उऩयत्न बी हभाये महा व्माऩायी भूल्म ऩय उप्रब्दध
हं ।
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68 ददसम्फय 2012
भॊि ससद्ध दर
ु ब
ा साभग्री
हत्था जोडी- Rs- 370 घोडे की नार- Rs.351 भामा जार- Rs- 251
ससमाय ससॊगी- Rs- 370 दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550 इन्र जार- Rs- 251
त्रफल्री नार- Rs- 370 भोसत शॊख- Rs- 550 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251
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69 ददसम्फय 2012
हं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ त्रवशेष शुब भुहुता भं सनभााण दकमा
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊदकत शत्रिशारी त्रवशेष ये खाएॊ, फीज भॊि एवॊ ब्राहभणं द्राया शुब भुहुता भं शास्त्रोि
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान मुि कयके सनभााण दकमा जाता हं ।
श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भं स्वमॊ का अदद्रतीम स्थान स्थात्रऩत कयं । स्जस के पर स्वरुऩ धायण कयता
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौदकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊचाय कयता हं , जो व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता
एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय सद्दबावना, सभृत्रद्ध, सपरता, उत्तभ हं । कवच को गरे भं धायण कयने
स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हं ! से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभास्जक भान-सम्भान व हं । गरे भं धायण कयने से कवच
त्रवद्रानो के भतानुशाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र
कंदरत कयने से व्मत्रि दक चेतना शत्रि जाग्रत होकय शीघ्र उच्च स्तय एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हं ।
जो ऩुरुषं औय भदहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना चाहते हं औय उन्हं अऩनी औय आकत्रषात कयना
चाहते हं । उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्ध हो सकता हं ।
ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रभ की वृत्रद्ध औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हं ।
भूल्म:- Rs. 730 से Rs. 10900 तक उप्रब्दद्ध
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70 ददसम्फय 2012
से धन राब होता हं व व्मत्रि का सवांगी त्रवकाय होकय उसे सुख-सभृत्रद्ध, भानसम्भान की प्रासद्ऱ होती
हं । याभ यऺा मॊि सबी प्रकाय के अशुब प्रबाव को दयू कय व्मत्रि को जीवन की सबी प्रकाय की
हनुभानजी के बि हं उन्हं अऩने सनवास स्थान, व्मवसामीक स्थान ऩय याभ यऺा मॊि को अवश्म
स्थाऩीत कयना चादहमे स्जससे आने वारे सॊकटो से यऺा हो उनका जीवन सुखभम व्मतीत हो सके
त्रवशेष मॊि
भाससक यासश पर
सचॊतन जोशी
भेष: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : ऩूॊस्ज सनवेश द्राया आकस्स्भक धन हासन के मोग फन यहे है इस सरए ऩूॊस्ज सनवेष से
जुडे भहत्वऩूणा सनणाम रेने से फचं। स्जस कायण आसथाक ऩऺ कभजोय हो सकता हं ।
इद्श सभि एवॊ ऩरयवाय के सदस्मो से सहमोग रेना ऩि सकता हं । आऩकी भानससक
सचन्ताओॊ भं वृत्रद्ध हो सकती हं । अऩनी असधक खचा कयने दक प्रवृत्रत्त ऩय सनमॊिण कयने
का प्रमास कयं ।
16 से 31 ददसम्फय 2012 : आऩके भहत्व ऩूणा कामो भं असतरयि सावधानी यखनी
चादहमे अन्मथा कुछ कामो भं नुक्शान हो सकता है । व्मवसासमक सभस्माओॊ के कायण
धन का अबाव यह सकता हं । सभि एवॊ ऩरयवाय के सहमोग से धन राब होगा।
आवश्मकता से असधक सॊघषा कयना ऩड सकता है । भानससक सचन्ताओॊ भं कभी
आमेगी। अत्रववाह है तो त्रववाह होने के मोग फन यहे हं ।
वृषब: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : आकस्स्भक धन प्राद्ऱ होने के मोग हं । साभास्जक भान-सम्भान औय ऩद-प्रसतद्षा भं
वृत्रद्ध होगी। बूसभ-बवन से सॊफॊसधत कामं भे सपरता प्राद्ऱ होगी। कामा दक व्मस्तता, अत्मासधक बागदौि के कायण
आऩको थकावट हो सकती। उत्तभ वाहन सुख के मोग फन यहे हं । दयू स्थानो की व्मवास्मीक मािाएॊ राबप्रद यहे गी। प्रेभ
सॊफॊधो भं सपरता प्राद्ऱ होगी। अत्रववादहत हं तो त्रववाह सॊबव हं ।
16 से 31 ददसम्फय 2012 : मदद आऩ नौकयी भं हं तो ऩदौन्नसत सॊबव हं । ऩरयवाय के रोग एवॊ सभि वगा का ऩूणा
सहमोग प्राद्ऱ होगा। आऩका साभास्जक जीवन उच्च स्तय का हो सकता हं । ऩरयवाय भं सभाचाय प्राद्ऱ हो सकते है ।
अऩनी असधक खचा कयने दक प्रवृत्रत्त ऩय सनमॊिण कयने का प्रमास कयं । खाने- ऩीने का त्रवशेष ध्मान यखे भौसभ के
फदराव से स्वास्थ्म नयभ यह सकता हं ।
16 से 31 ददसम्फय 2012 : इद्श सभिं एवॊ ऩरयजनो से आसथाक भदद प्राद्ऱ हो सकती है ।
भौसभ के फदराव से आऩका स्वास्थ्म प्रसतकूर यह सकता हं । दयू स्थ स्थानो की मािाएॊ
कद्श प्रद हो सकती हं । अत् मािा भं असतरयि सावधानी फयते। जीवन साथी के ऩूणा सहमोग से दाॊऩत्म जीवन भं
भधुयता आएगी। सभि एवॊ ऩरयवाय के रोगो का सहमोग प्राद्ऱ होगा।
75 ददसम्फय 2012
कका: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : आऩके सरए मह सभम असत उत्तभ ससद्ध होगा। आऩको चायं औय से सपरता प्राद्ऱ
होने के मोग फन यहे हं । नौकयी-व्मवसाम भं आऩको दकसी भहत्वऩूणा ऩद की प्रासद्ऱ हो
सकती हं । अऩने खान-ऩान का त्रवशेष ध्मान यखं अन्मथा स्वास्थ्म नयभ हो सकता हं ।
आऩके सरए इस दौयान इद्श आयाधना त्रवशेष परप्रद यहे गी।
ससॊह: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : इद्श सभिं के सहमोग से नमे सभि फन सकते हं । त्रवऩयीत सरॊग के प्रसत आऩका
त्रवशेष झुकाव यहे गा। अऩको सुझ-फुझ से प्रेभ सॊफॊधं भं सपरता प्राद्ऱ हो सकती हं ।
दकमे गमे ऩूॊस्ज सनवेश द्राया आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ के मोग फन यहे है । कोटा -कचहयी के
कामा भं सपरता प्राद्ऱ हो सकती हं । घयभं भाॊगसरक कामा सॊऩन्न होने के मोग हं ।
खान-ऩान का त्रवशेष ध्मान यखं।
तुरा: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : नमा व्मवसाम मा नौकयी प्राद्ऱ हो सकती हं मा आऩके कामा ऺेि भं नमे फदराव हो
सकते हं । उच्चासधकारयमं से राब प्राद्ऱ होगा। नौकयी, व्माऩाय, ऩूॊजी सनवेश इत्मादद से
आकस्स्भक रुऩ से धन प्रासद्ऱ हो सकती हं । शिुओॊ ऩय आऩका प्रबाव यहे गा। भौसभ के
फदराव से अऩने खाने-ऩीने का त्रवशेष ध्मान यखे अन्मथा आऩका का स्वास्थ्म नयभ हो
सकता है । जीवनसाथी का ऩूणस
ा हमोग प्राद्ऱ होगा।
धनु: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : नौकयी से सॊफॊसधत कामा भं नमे फदराव हो सकते हं , व्मवसाम भं हं तो उन्नती के
नए भागा प्राद्ऱ हंगे। बूसभ-बवन से सॊफॊसधअ भाभरं भं त्रवरॊफ सॊबव हं । आऩके बौसतक
सुख साधनो भं वृत्रद्ध होगी। स्वास्थ्म सुख भं वृत्रद्ध होगी दपय बी खाने - ऩीने का त्रवशेष
ध्मान यखना दहतकायी यहे गा। जीवन साथी से ऩूणस
ा हमोग प्राद्ऱ होगा।
भकय: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : एकासधक स्त्रोत से धन प्रासद्ऱ के मोग फन यहे हं । मदद आऩ नौकयी भं हं तो
ऩदौन्नसत हो सकती हं मा नई नौकयी प्राद्ऱ हो सकती हं , व्मवसाम भं हं तो उन्नती दक भागा प्रसस्त हंगे। वाहन
सावधानी से चरामे। सभि एवॊ ऩरयवाय के रोगो का सहमोग प्राद्ऱ होगा। स्वास्थ्म के
प्रसत सचेत यहे राऩयवाही नुक्शान दे सहकती हं । जीवन साथी का ऩूणा सहमोग प्राद्ऱ
होगा।
16 से 31 ददसम्फय 2012 : आऩको रॊफे सभम से रुका हुवा बुगतान प्राद्ऱ हो सकता हं ।
इस अवसध भं चर-अचर सॊऩत्रत्त भं ऩूॊस्ज सनवेश कयना आऩके सरए त्रवशेष रुऩ से
पामदे भॊद हो सकता हं । शिु एवॊ त्रवयोधी ऩऺ आऩका नाभ औय प्रसतद्षा को दत्रू षत कयने
का प्रमास कय सकते हं । अऩने खाने- ऩीने का ध्मान यखे अन्मथा आऩका का स्वास्थ्म
नयभ हो सकता है । जीवनसाथी से सॊफॊधो भं भधुयता आएगी।
भीन: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : दकमे गमे ऩूॊस्ज सनवेश द्राया आकस्स्भक धन हानी के मोग हं अत् बायी भािा भं
ऩूॊस्ज सनवेश कयने से फचे। व्मवसासमक सभस्माओॊ के कायण धन का अबाव यह सकता
हं । आवश्मकता से असधक सॊघषा कयना ऩड सकता है । भानससक सचन्ताओॊ भं कभी
आमेगी। इद्श सभि एवॊ ऩरयवाय के सदस्मो से सहमोग रेना ऩि सकता हं । प्रेभ सॊफॊसधत
भाभरो भं सपरता प्राद्ऱ होगी।
2 यत्रव भागाशीषा कृ ष्ण चतुथॉ 29:57:19 सॊकद्शी श्रीगणेश चतुथॉ व्रत, (चॊ.उ.या.8:36)
वीड ऩॊचभी (श्रीभनसादे वी), अन्नऩूणााभाता व्रत प्रायॊ ब (काशी), डा. याजंर
3 सोभ भागाशीषा कृ ष्ण ऩॊचभी 31:34:39
प्रसाद जमॊती,
4 भॊगर भागाशीषा कृ ष्ण ऩॊचभी 07:34:27 स्वाभी ब्रह्मानॊद रोधी जमॊती, नौसेना ददवस,
7 शुि भागाशीषा कृ ष्ण अद्शभी 08:48:51 प्रथभाद्शभी (ओिीसा), सशस्त्र सेना ददवस, झण्डा ददवस,
8 शसन भागाशीषा कृ ष्ण नवभी 07:49:33 अनरा नवभी (ओिीसा), श्रीभहावीय स्वाभी दीऺा कल्माणक (जैन)
9 यत्रव भागाशीषा कृ ष्ण एकादशी 27:46:31 उत्ऩत्रत्त एकादशी व्रत (स्भाता), वैतयणी एकादशी, याजगोऩाराचामा जमॊती,
10 सोभ भागाशीषा कृ ष्ण द्रादशी 24:52:50 एकादशी व्रत (वैष्णव), भानवासधकाय ददवस,
12 फुध भागाशीषा कृ ष्ण चतुदाशी 17:56:03 स्वदे शी ददवस, भेरा ऩुयभण्डर एवॊ दे त्रवका स्नान (जम्भू)
14 शुि भागाशीषा शुक्र प्रसतऩदा 10:31:05 नवीन चॊर दशान, भाताण्ड बैयव षड्राि प्रायम्ब, धन्मव्रत, ऊजाा फचत ददवस
16 यत्रव भागाशीषा शुक्र चतुथॉ 25:29:30 वयदत्रवनामक चतुथॉ व्रत (च.उ.या 08: 37)
17 सोभ भागाशीषा शुक्र ऩॊचभी 23:42:17 त्रववाहऩॊचभी, श्रीसीता एवॊ श्रीयाभ त्रववाहोत्सव, त्रवहायऩॊचभी, श्रीफाॊकेत्रफहायी
81 ददसम्फय 2012
का प्राकट्मोत्सव (वृद
ॊ ावन), नागऩॊचभी (द.बा)
सौबाग्मसुद
ॊ यी व्रत, प्राचीन भतानुसाय सॊकद्शी चतुथॉ व्रत, फसरनाथ फैयवा
31 सोभ ऩौष कृ ष्ण तृतीमा 21:04:22
जमॊती (भ.प्र.छत्तीसगढ़), ईसाई नववषा की ऩूवस
ा ध्
ॊ मा
82 ददसम्फय 2012
कुफेय मॊि
कुफेय मॊि के ऩूजन से स्वणा राब, यत्न राब, ऩैतक
ृ सम्ऩत्ती एवॊ गिे हुए धन से राब प्रासद्ऱ दक काभना कयने वारे
व्मत्रि के सरमे कुफेय मॊि अत्मन्त सपरता दामक होता हं । एसा शास्त्रोि वचन हं । कुफेय मॊि के ऩूजन से एकासधक
स्त्रोि से धन का प्राद्ऱ होकय धन सॊचम होता हं ।
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83 ददसम्फय 2012
भॊगर मॊि
(त्रिकोण) भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब दे ता हं , इस के असतरयि व्मत्रि को
ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं । त्रववाह आदद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए
भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । भूल्म भाि Rs- 730
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84 ददसम्फय 2012
ओनेक्स
जो व्मत्रि ऩन्ना धायण कयने भे असभथा हो उन्हं फुध ग्रह के उऩयत्न ओनेक्स को धायण कयना चादहए।
उच्च सशऺा प्रासद्ऱ हे तु औय स्भयण शत्रि के त्रवकास हे तु ओनेक्स यत्न की अॊगूठी को दामं हाथ की सफसे छोटी
उॊ गरी मा रॉकेट फनवा कय गरे भं धायण कयं । ओनेक्स यत्न धायण कयने से त्रवद्या-फुत्रद्ध की प्रासद्ऱ हो होकय स्भयण
शत्रि का त्रवकास होता हं ।
85 ददसम्फय 2012
मोग पर :
कामा ससत्रद्ध मोग भे दकमे गमे शुब कामा भे सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ होती हं , एसा शास्त्रोि वचन हं ।
त्रिऩुष्कय मोग भं दकमे गमे शुब कामो का राब तीन गुना होता हं । एसा शास्त्रोि वचन हं ।
दद्रऩुष्कय मोग भं दकमे गमे शुब कामो का राब दोगुना होता हं । एसा शास्त्रोि वचन हं ।
शास्त्रोि भत से त्रवघ्नकायक बरा मा बरा मोग भं शुब कामा कयना वस्जात हं ।
ददन के चौघदडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुिवाय शसनवाय
यात के चौघदडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुिवाय शसनवाय
यत्रववाय सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन
सोभवाय चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा
भॊगरवाय भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर
फुधवाय फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर
गुरुवाय गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध
शुिवाय शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु
शसनवाय शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि
त्रवद्रानो के भत से इस्च्छत कामा ससत्रद्ध के सरए ग्रह से सॊफॊसधत होया का चुनाव कयने से त्रवशेष राब
प्राद्ऱ होता हं ।
सूमा दक होया सयकायी कामो के सरमे उत्तभ होती हं ।
चॊरभा दक होया सबी कामं के सरमे उत्तभ होती हं ।
भॊगर दक होया कोटा -कचेयी के कामं के सरमे उत्तभ होती हं ।
फुध दक होया त्रवद्या-फुत्रद्ध अथाात ऩढाई के सरमे उत्तभ होती हं ।
गुरु दक होया धासभाक कामा एवॊ त्रववाह के सरमे उत्तभ होती हं ।
शुि दक होया मािा के सरमे उत्तभ होती हं ।
शसन दक होया धन-रव्म सॊफॊसधत कामा के सरमे उत्तभ होती हं ।
88 ददसम्फय 2012
2 07:16:10 02:22:53 08:17:18 06:26:08 01:17:24 06:18:16 06:12:41 07:01:58 01:01:58 11:10:37 10:06:26 08:14:14
3 07:17:10 03:04:58 08:18:04 06:26:55 01:17:15 06:19:31 06:12:47 07:01:56 01:01:56 11:10:37 10:06:27 08:14:16
4 07:18:11 03:17:13 08:18:50 06:27:49 01:17:07 06:20:45 06:12:53 07:01:54 01:01:54 11:10:36 10:06:27 08:14:18
5 07:19:12 03:29:41 08:19:36 06:28:47 01:16:59 06:22:00 06:13:00 07:01:52 01:01:52 11:10:36 10:06:28 08:14:20
6 07:20:13 04:12:27 08:20:22 06:29:50 01:16:51 06:23:15 06:13:06 07:01:51 01:01:51 11:10:35 10:06:29 08:14:22
7 07:21:14 04:25:33 08:21:09 07:00:56 01:16:43 06:24:29 06:13:12 07:01:51 01:01:51 11:10:35 10:06:30 08:14:24
8 07:22:15 05:09:02 08:21:55 07:02:06 01:16:35 06:25:44 06:13:18 07:01:51 01:01:51 11:10:35 10:06:31 08:14:26
9 07:23:16 05:22:56 08:22:41 07:03:19 01:16:27 06:26:59 06:13:25 07:01:53 01:01:53 11:10:34 10:06:32 08:14:28
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17 08:01:24 09:21:36 08:28:54 07:14:08 01:15:24 07:06:57 06:14:12 07:01:40 01:01:40 11:10:34 10:06:40 08:14:45
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19 08:03:26 10:18:54 09:00:27 07:17:02 01:15:09 07:09:27 06:14:23 07:01:34 01:01:34 11:10:35 10:06:43 08:14:49
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22 08:06:30 11:26:42 09:02:48 07:21:26 01:14:47 07:13:12 06:14:39 07:01:34 01:01:34 11:10:36 10:06:46 08:14:55
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25 08:09:33 01:02:24 09:05:08 07:25:55 01:14:27 07:16:57 06:14:55 07:01:38 01:01:38 11:10:37 10:06:51 08:15:01
26 08:10:34 01:14:11 09:05:55 07:27:26 01:14:20 07:18:12 06:15:00 07:01:37 01:01:37 11:10:38 10:06:52 08:15:04
27 08:11:35 01:26:00 09:06:42 07:28:56 01:14:14 07:19:27 06:15:05 07:01:34 01:01:34 11:10:38 10:06:54 08:15:06
28 08:12:36 02:07:53 09:07:29 08:00:28 01:14:07 07:20:42 06:15:10 07:01:29 01:01:29 11:10:39 10:06:55 08:15:08
29 08:13:37 02:19:53 09:08:16 08:01:59 01:14:01 07:21:57 06:15:15 07:01:23 01:01:23 11:10:40 10:06:57 08:15:10
30 08:14:38 03:02:00 09:09:04 08:03:31 01:13:55 07:23:12 06:15:20 07:01:14 01:01:14 11:10:41 10:06:58 08:15:12
31 08:15:40 03:14:16 09:09:51 08:05:03 01:13:49 07:24:28 06:15:25 07:01:06 01:01:06 11:10:42 10:07:00 08:15:14
89 ददसम्फय 2012
कवच के राब :
एसा शास्त्रोि वचन हं स्जस घय भं भहाभृत्मुॊजम मॊि स्थात्रऩत होता हं वहा सनवास कताा हो नाना प्रकाय
दक आसध-व्मासध-उऩासध से यऺा होती हं ।
ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा चैतन्म मुि सवा योग सनवायण कवच दकसी बी उम्र एवॊ जासत धभा के रोग
चाहे स्त्री हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हं ।
जन्भाॊगभं अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो दक प्रसतकूरता से योग उतऩन्न होते हं ।
कुछ योग सॊिभण से होते हं एवॊ कुछ योग खान-ऩान दक असनमसभतता औय अशुद्धतासे उत्ऩन्न होते हं ।
कवच एवॊ मॊि द्राया एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नद्श कय, स्वास्थ्म राब औय शायीरयक यऺण प्राद्ऱ
कयने हे तु सवा योगनाशक कवच एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हं ।
आज के बौसतकता वादी आधुसनक मुगभे अनेक एसे योग होते हं , स्जसका उऩचाय ओऩये शन औय दवासे बी
कदठन हो जाता हं । कुछ योग एसे होते हं स्जसे फताने भं रोग दहचदकचाते हं शयभ अनुबव कयते हं एसे
योगो को योकने हे तु एवॊ उसके उऩचाय हे तु सवा योगनाशक कवच एवॊ मॊि राबादासम ससद्ध होता हं ।
प्रत्मेक व्मत्रि दक जेसे-जेसे आमु फढती हं वैसे-वसै उसके शयीय दक ऊजाा कभ होती जाती हं । स्जसके साथ
अनेक प्रकाय के त्रवकाय ऩैदा होने रगते हं एसी स्स्थती भं उऩचाय हे तु सवायोगनाशक कवच एवॊ मॊि परप्रद
होता हं ।
स्जस घय भं त्रऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक दह नऺिभे जन्भ रेते हं , तफ उसकी भाता
के सरमे असधक कद्शदामक स्स्थती होती हं । उऩचाय हे तु भहाभृत्मुॊजम मॊि परप्रद होता हं ।
स्जस व्मत्रि का जन्भ ऩरयसध मोगभे होता हं उन्हे होने वारे भृत्मु तुल्म कद्श एवॊ होने वारे योग, सचॊता भं
उऩचाय हे तु सवा योगनाशक कवच एवॊ मॊि शुब परप्रद होता हं ।
नोट:- ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा चैतन्म मुि सवा योग सनवायण कवच एवॊ मॊि के फाये भं असधक
जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।
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natural and spiritual world.
Our skill lies in communicating clearly and honestly with each client.
Our all kawach, yantra and any other article are prepared on the Principle of Positiv energy, our Article dose
not produce any bad energy.
Our Goal
Here Our goal has The classical Method-Legislation with Proved by specific with fiery chants prestigious full
consciousness (Puarn Praan Pratisthit) Give miraculous powers & Good effect All types of Yantra, Kavach,
Rudraksh, preciouse and semi preciouse Gems stone deliver on your door step.
91 ददसम्फय 2012
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YANTRA LIST EFFECTS
Our Splecial Yantra
1 12 – YANTRA SET For all Family Troubles
2 VYAPAR VRUDDHI YANTRA For Business Development
3 BHOOMI LABHA YANTRA For Farming Benefits
4 TANTRA RAKSHA YANTRA For Protection Evil Sprite
5 AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA For Unexpected Wealth Benefits
6 PADOUNNATI YANTRA For Getting Promotion
7 RATNE SHWARI YANTRA For Benefits of Gems & Jewellery
8 BHUMI PRAPTI YANTRA For Land Obtained
9 GRUH PRAPTI YANTRA For Ready Made House
10 KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA -
Shastrokt Yantra
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NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL
Emerald (ऩन्ना) 200.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above
Yellow Sapphire (ऩुखयाज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Blue Sapphire (नीरभ) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
White Sapphire (सफ़ेद ऩुखयाज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Bangkok Black Blue(फंकोक नीरभ) 100.00 150.00 200.00 500.00 1000.00 & above
Ruby (भास्णक) 100.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above
Ruby Berma (फभाा भास्णक) 5500.00 6400.00 8200.00 10000.00 21000.00 & above
Speenal (नयभ भास्णक/रारडी) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above
Pearl (भोसत) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above
Red Coral (4 यसत तक) (रार भूॊगा) 75.00 90.00 12.00 180.00 280.00 & above
Red Coral (4 यसत से उऩय)( रार भूॊगा) 120.00 150.00 190.00 280.00 550.00 & above
White Coral (सफ़ेद भूॊगा) 20.00 28.00 42.00 51.00 90.00 & above
Cat’s Eye (रहसुसनमा) 25.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Cat’s Eye Orissa (उदडसा रहसुसनमा) 460.00 640.00 1050.00 2800.00 5500.00 & above
Gomed (गोभेद) 15.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Gomed CLN (ससरोनी गोभेद) 300.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Zarakan (जयकन) 350.00 450.00 550.00 640.00 910.00 & above
Aquamarine (फेरुज) 210.00 320.00 410.00 550.00 730.00 & above
Lolite (नीरी) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above
Turquoise (दफ़योजा) 15.00 30.00 45.00 60.00 90.00 & above
Golden Topaz (सुनहरा) 15.00 30.00 45.00 60.00 90.00 & above
Real Topaz (उदडसा ऩुखयाज/टोऩज) 60.00 120.00 280.00 460.00 640.00 & above
Blue Topaz (नीरा टोऩज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
White Topaz (सफ़ेद टोऩज) 60.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above
Amethyst (कटे रा) 20.00 30.00 45.00 60.00 120.00 & above
Opal (उऩर) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Garnet (गायनेट) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Tourmaline (तुभर ा ीन) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above
Star Ruby (सुमक
ा ान्त भस्ण) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above
Black Star (कारा स्टाय) 15.00 30.00 45.00 60.00 100.00 & above
Green Onyx (ओनेक्स) 09.00 12.00 15.00 19.00 25.00 & above
Real Onyx (ओनेक्स) 60.00 90.00 120.00 190.00 280.00 & above
Lapis (राजवात) 15.00 25.00 30.00 45.00 55.00 & above
Moon Stone (चन्रकान्त भस्ण) 12.00 21.00 30.00 45.00 100.00 & above
Rock Crystal (स्फ़दटक) 09.00 12.00 15.00 30.00 45.00 & above
Kidney Stone (दाना दफ़यॊ गी) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above
Tiger Eye (टाइगय स्टोन) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above
Jade (भयगच) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Sun Stone (सन ससताया) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
50.00 100.00 200.00 370.00 460.00 & above
Diamond (हीया) (Per Cent ) (Per Cent ) (PerCent ) (Per Cent) (Per Cent )
(.05 to .20 Cent )
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
95 ददसम्फय 2012
In special cases we don't have the time available about your Specific Questions We will taken some time for
properly Analysis your birth chart and we get back with an alternate or ask you for an alternate.
All the time mentioned is Indian Standard Time which is + 5.30 hr ahead of G.M.T.
Many clients prefer the chat so that many questions that come up during a personal discussion can be
answered right away.
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96 ददसम्फय 2012
सूचना
ऩत्रिका भं प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के असधकायं के साथ ही आयस्ऺत हं ।
रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ दक कामाारम मा सॊऩादक बी इन त्रवचायो से सहभत हं।
ऩत्रिका भं प्रकासशत दकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ दकसी बी व्मत्रि त्रवशेष मा दकसी बी स्थान मा
घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हं ।
प्रकासशत रेख ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण
मदद दकसी के रेख, दकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का दकसी के वास्तत्रवक जीवन से भेर होता हं तो मह भाि
एक सॊमोग हं ।
प्रकासशत सबी रेख बायसतम आध्मास्त्भक शास्त्रं से प्रेरयत होकय सरमे जाते हं । इस कायण इन त्रवषमो दक
सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय दकसी बी प्रकाय दक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक दक नहीॊ हं ।
अन्म रेखको द्राया प्रदान दकमे गमे रेख/प्रमोग दक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव दक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक
दक नहीॊ हं । औय नाहीॊ रेखक के ऩते दठकाने के फाये भं जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक दकसी बी
प्रकाय से फाध्म हं ।
ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भं ऩाठक का अऩना
त्रवद्वास होना आवश्मक हं । दकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को दकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने
का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा।
हभाये द्राया ऩोस्ट दकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय सरखे होते हं । हभ दकसी बी व्मत्रि
त्रवशेष द्राया प्रमोग दकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी स्जन्भेदायी नदहॊ रेते हं ।
मह स्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि दक स्वमॊ दक होगी। क्मोदक इन त्रवषमो भं नैसतक
भानदॊ डं, साभास्जक, कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रि मदद नीजी स्वाथा ऩूसता हे तु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग
के कयने भे िुदट होने ऩय प्रसतकूर ऩरयणाभ सॊबव हं ।
हभाये द्राया ऩोस्ट दकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधग
ु ण ऩय प्रमोग दकमे हं
स्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ हुई हं ।
ऩाठकं दक भाॊग ऩय एक दह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का असधकाय यखता हं । ऩाठकं को एक रेख के ऩून्
प्रकाशन से राब प्राद्ऱ हो सकता हं ।
FREE
E CIRCULAR
गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ददसम्फय -2012
सॊऩादक
सचॊतन जोशी
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग
गुरुत्व कामाारम
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98 ददसम्फय 2012
फॊध/ु फदहन
जम गुरुदे व
जहाॉ आधुसनक त्रवऻान सभाद्ऱ हो जाता हं । वहाॊ आध्मास्त्भक ऻान प्रायॊ ब हो जाता हं , बौसतकता का आवयण ओढे व्मत्रि
जीवन भं हताशा औय सनयाशा भं फॊध जाता हं , औय उसे अऩने जीवन भं गसतशीर होने के सरए भागा प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता क्मोदक
बावनाए दह बवसागय हं , स्जसभे भनुष्म की सपरता औय असपरता सनदहत हं । उसे ऩाने औय सभजने का साथाक प्रमास ही श्रेद्षकय
सपरता हं । सपरता को प्राद्ऱ कयना आऩ का बाग्म ही नहीॊ असधकाय हं । ईसी सरमे हभायी शुब काभना सदै व आऩ के साथ हं । आऩ
अऩने कामा-उद्दे श्म एवॊ अनुकूरता हे तु मॊि, ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न औय दर
ु ब
ा भॊि शत्रि से ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत सचज वस्तु का हभंशा
प्रमोग कये जो १००% परदामक हो। ईसी सरमे हभाया उद्दे श्म महीॊ हे की शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध
प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा चैतन्म मुि सबी प्रकाय के मन्ि- कवच एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोचाने का हं ।
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DEC
2012