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गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका ददसम्फय- 2012

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गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ई- जन्भ ऩत्रिका
ददसम्फय 2012

अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया


सॊऩादक
सचॊतन जोशी
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग उत्कृ द्श बत्रवष्मवाणी के साथ
गुरुत्व कामाारम
92/3. BANK COLONY,
BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018,
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सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हभाये भुख्म सहमोगी GURUTVA KARYALAY
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स्जस प्रकाय शयीय आत्भा के सरए औय तेर दीऩक के सरए हं , उसी प्रकाय मन्ि इद्शदे वी-दे वता की प्रसन्नता हे तु
होते हं । सयर बाषा भं सभझे तो मॊि शब्दद का अथा दकसी औजाय मा साधन से दकमा जाता हं । मॊि प्रमोग
का भुख्म उद्दे श्म होता हं भनुष्म को दिमाशीर, उद्यभी मा प्रमत्नशीर कयने की प्रेयणा दे ते …4

…4
श्रीमॊि को सयर शब्ददं भं रक्ष्भी मॊि कहा जाता हं , क्मोदक श्रीमॊि को धन के आगभन हे तु
सवाश्रद्ष
े मॊि भाना गमा हं । त्रवद्रानं का कथन हं की श्रीमॊि अरौदकक शत्रिमं व चभत्कायी
शत्रिमं से ऩरयऩूणा गुद्ऱ शत्रिमं का प्रभुख केन्र त्रफन्दु है । …6
मॊि त्रवशेष भं ऩढे ़
 त्रवशेष भं   दीऩावरी त्रवशेष 
सवा कामा ससत्रद्ध मन्िं के प्रभुख प्रकाय 7 काभनाऩूसता हे तु दर
ु ब
ा साधना (बाग:1) 27
मन्िं भं ऩॊच तत्त्ववं का भहत्त्वव 9 हरयरा गणऩसत मन्ि साधना 27
कवच … 45 अॊक मन्िं की त्रवसशद्शता एवॊ राब 11 त्रवजम गणऩसत मन्ि साधना 28
श्रीमॊि की भदहभा कल्माणकायी गणऩसत मन्ि साधना
13 29

त्रवद्या प्रासद्ऱ हे तु सयस्वती कवच औय मॊि 25


मन्ि का चमन कयने भं यखं सावधासनमाॊ। 26  हभाये उत्ऩाद 
त्रवसबन्न मॊि के राब बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी
गणेश रक्ष्भी मॊि. 30 8
नवदग
ु ाा मन्ि 41 भॊिससद्ध स्पदटक श्री मॊि 15
मॊि द्राया वास्तु दोष सनवायण 43 भॊि ससद्ध दर
ु ब
ा साभग्री 39
जन्भ रग्न से योग सनवायण हे तु उऩमुि मॊि 46 भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश 43
मॊि साधना हे तु उऩमुि भारा चमन 49 सवा कामा ससत्रद्ध कवच 45
त्रवसबन्न भारा से काभना ऩूसता 50 हभाये त्रवशेष मॊि 55
नवयत्न जदित श्रीमॊि..63
भारा के 108 भनकं का यहस्म 51 सवाससत्रद्धदामक भुदरका 58
भारा से सॊफॊसधत शास्त्रोि भत 53 द्रादश भहा मॊि 60
त्रवसबन्न रक्ष्भी धन प्रासद्ऱ हे तु उत्तभ परदामी हं स्पदटक श्रीमॊि 56 ऩुरुषाकाय शसन मॊि एवॊ शसन तैसतसा मॊि 62
मॊि … श्री हनुभान मॊि 64
त्रवसबन्न दे वता एवॊ काभना ऩूसता मॊि सूसच 65

 स्थामी औय अन्म रेख  त्रवसबन्न दे वी एवॊ रक्ष्भी मॊि सूसच 66
सॊऩादकीम 4 भॊि ससद्ध रूराऺ 68
भाससक यासश पर 74 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि / कवच 69
यासश यत्न…67 ददसम्फय 2102 भाससक ऩॊचाॊग 78 याभ यऺा मॊि 70
ददसम्फय-2012 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 80 जैन धभाके त्रवसशद्श मॊि 71
ददसम्फय 2102 -त्रवशेष मोग 85 घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि 72
दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 85 अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कवच 73
ददन-यात के चौघदडमे 86 याशी यत्न एवॊ उऩयत्न 73
भॊि ससद्ध रूराऺ …68
ददन-यात दक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक 87 सवा योगनाशक मॊि/ 89
ग्रह चरन ददसम्फय -2012 भॊि ससद्ध कवच
अभोद्य भहाभृत्मुज
ॊ म 88 91
सूचना 96 YANTRA LIST 92
कवच … 73 हभाया उद्दे श्म 98 GEM STONE 94
त्रप्रम आस्त्भम

फॊध/ु फदहन

जम गुरुदे व
मॊि शब्दद "मभ" धातु का घोतक हं । (मभ धातु से फना हं )

मन्िसभत्माहुयेतस्स्भन ् दे व्प्रीणासत ऩूस्जत्।


शयीयसभव जीवस्म दीऩस्म स्नेहवत ् त्रप्रमे॥
अथाात ्: स्जस प्रकाय शयीय आत्भा के सरए औय तेर दीऩक के सरए हं , उसी प्रकाय मन्ि इद्शदे वी-दे वता की प्रसन्नता हे तु
होते हं ।
सयर बाषा भं सभझे तो मॊि शब्दद का अथा दकसी औजाय मा साधन से दकमा जाता हं ।
मॊि प्रमोग का भुख्म उद्दे श्म होता हं भनुष्म को दिमाशीर, उद्यभी मा प्रमत्नशीर कयने की प्रेयणा दे ते हं औय उसके
द्ु ख, दब
ु ााग्म, असपरता को दयू कयने हे तु सहामक होते हं । मॊि प्रत्मऺ रूऩ से भनुष्म की कामाऺभता की नकायात्भक
उजाा को दयू कय सकायात्भक उजाा भं ऩरयवसतात कय दे ते हं ।
आज के आधुसनक मुग भं त्रवद्रानं ने अऩने शोध एवॊ अनुसॊधान से मह मह ऩामा है दक आध्मास्त्भक स्थर,
ऩूजा-ऩाठ इत्मादद स्थर, भानव शयीय भं स्स्थत कुॊडसरनी के चि, ऩत्रवि सॊकेत सचन्ह, कुछ त्रवसशद्श आकृ सतमाॊ आदद भं
एक त्रवशेष प्रकाय की सूक्ष्भ ऊजाा सनयॊ तय प्रवादहत होती यहती हं , स्जस का ऺेि त्रवशार औय सकायात्भक होता है । मह
उजाा उसी प्रकाय से कामा कयती हं स्जस प्रकाय दकसी वस्तु ऩय त्रवद्युत चुम्फकीम ऺेि का प्रबाव होता हं ।
आजके आधुसनक मुग भं वैऻासनक ऻान प्राद्ऱ भनुष्म, अॊतय भन से दरयर मा अनुसचत भागादशान से त्रवसबन्न
प्रकाय के मॊि-भॊि-तॊि टोने-टोटके मा उऩामो को कयके हाय चुका व्मत्रि मह सोचता हं , की.... बाग्म भं जो सरखा हं
वहीॊ होगा!...., नसीफ भं जो होगा वहीॊ सभरेगा हं !...., बगवान दक इच्छा के आगे दकस दक चरती हं !...., बगवान ने
द्ु ख सरखा हं तो क्मा कये !...., हभाये तो अभुख ग्रह दह खयफ चर यहे हं ...., हभाया तो नसीफ ही खयाफ हं ..............
इत्मादी से हभ सफ अच्छी तयह वाकीफ़ हं ।
कुछ रोग धभाशास्त्र, बगवान इत्मादद ऩय त्रवद्वास नहीॊ होता, मा कुछ रोग ऩहरे त्रवद्वास कयते थे रेदकन
अनुसचत भागादशान मा प्रमोग भं यहजाने वारी दकसी तृदट के कायण उनकी इच्छा ऩूसता का अऩूणा यह जाना इन त्रवषमो
ऩय अत्रवद्वास को जन्भ दे ता हं ।
एसी स्स्थसत भं अनेक रोगं का धभाशास्त्र, बगवान इत्मादद ऩय अत्रवद्वास हो जाना स्वाबात्रवक हं ? ईद्वय नं
सबी भनुष्मं को एक सभान फनामा हं , इस सरए इस सॊसाय भं व्माद्ऱ सबी प्रकाय के सुख बोगने का सबी भनुष्मं को
फयाफय का असधकाय ददमा हं । क्मोदक सबी जीव ईद्वय के अॊश हं , इस सरए ईद्वय सफ को एक ही बाव से दे खता हं ।
व्मत्रि आज दरयर हं , सनधान हं तो वह उसके सनजी कभो का पर भाि हं ।
उसकी दरयरता दकसी ग्रह के कायण नहीॊ ग्रह तो केवर व्मत्रि के कभो का पर प्रदान कयने हे तु त्रवधाताके
सहमोगी हं । दरयर व्मत्रि अऩनी गरतीमाॊ अऩने नसीफ औय बगवान ऩय राद दे ते हं । व्मत्रि को आवश्मिा हं , उसचत
भागादशान दक मदद व्मत्रि को उसचत भागादशान प्राद्ऱ हो जामे तो इस सॊसाय का दरयर से दरयर कॊगार से कॊगार व्मत्रि
बी धनवान फन सकता हं । व्मत्रि उसचत भागादशान, भॊि-मॊि-तॊि, एवॊ दर
ु ब
ा वस्तुओॊ के त्रवसध-वत प्रमोगं के भाध्मभ से
अऩनी इच्छाओॊ को ऩूणा कयने भं सभथा फन सकता हं , इसभं जया बी सॊदेह नहीॊ हं ।
धन प्रासद्ऱ हे तु दकमे गमे भॊि-मॊि-तॊि की साधना एवॊ त्रवसबन्न साभग्रीमं के प्रमोग का परदामी नहीॊ होना, मह
दकसी साधना मा भॊि-मॊि-तॊि की उऩासना का कोई दोष नहीॊ फरदक व्मत्रि के श्राद्धाहीन अॊतय भन का ही दोष होता
हं ।
क्मोदक हभाये त्रवद्रान कषी-भुनी ने हजायो वषा ऩूवा अऩने तऩोफर से मह ऻात कय सरमा था की भनुष्म दक
शत्रिमाॊ अऩाय औय अनॊत हं । जीसे आज का आधुसनक त्रवऻान बी भान चुका हं की एक व्मत्रि अऩनी वास्तवीक शत्रि
का भाि ३(तीन) प्रसतशत दहस्सा ही इस्तेभार कयता हं । दठक इसी प्रकाय आऩके बीतय बी ऩयभात्भा की अऩाय शत्रिमाॊ
भौजुद हं फस उन शत्रिओॊ को उजागय कयने की जरुयत भाि हं , आऩ अऩने अॊदय उठनेवारी इन तयॊ गो के कायण
आऩके आस-ऩास का वातावतण सकायात्भक उजाा से बय जामेगा एवॊ मह उजाा आऩके अॊतय भन दक गहयाई तक प्रवेश
कय गई तो इन शत्रिमो से आऩको आत्भ फर की प्रासद्ऱ होगी स्जससे आऩके धनवान फनने औय इस ददशा भं अग्रस्त
होने का भागा स्वत् दह खूरने रगेगा। दपय आऩकी भॊस्झर आऩसे दयू नहीॊ यह जामेगी। व्मत्रि मदद एक फाय चाहरे तो
वह अऩनी स्स्थती भं ऩरयवतान रासकता हं फस जरुयत हं एक रढ सॊकल्ऩ दक।
इस सरए तो शास्तं भं कहाॊ गमा हं की
उद्यभे नास्स्त दारयरमभ ् ।
अथाात:उद्यभ कयने से दरयरता की नहीॊ यह जाती ।
इसी सरए सैकडो़ त्रवद्रान ऋषी-भुसनमं ने भनुष्म को उद्यभी फनाने के सरए दिमाशीर फनाने के सरए अऩने मोग
फर एवॊ ऩरयश्रभ से मॊि के गूढ़ यहस्म को जार सरमा था औय उन्हं ने हभाये भागादशान हे तु मॊि के प्रबावं का सूक्ष्भ
अध्ममन कय उसके प्रबावं से हभं अवगत कयाने हे तु त्रवसबन्न ग्रॊथो एवॊ शास्त्रं की यचना की हं ।
मॊि का सॊसाय असत त्रवशार हं , क्मोकी सभग्र त्रवद्व भं सैकिं धभा, सॊप्रदाम, सभ्मता एवॊ सॊस्कृ सतमा हं हय एक
धभा मा सॊप्रदाम भं प्रत्मऺ मा अप्रत्मऺ रुऩ से मॊिं का उऩमोग प्रासचन कार से होता आमा हं । अबी तक हजायं राखं
तयह के मॊि अरग-अरग बाषा एवॊ सॊस्कृ सतमं भं सनसभात दकमे गमे हं , स्जसके प्रभाण त्रवसबन्न ग्रॊथ-शास्त्र आदद भं
उऩरब्दध हं । रेदकन सभग्र सभ्मता एवॊ सॊस्कृ सत भं मॊि के सनभााण का भुख्म उद्दे श्म भनुष्म भाि का कल्माण ही है ।

इस अॊक भं प्रकासशत त्रवसबन्न उऩाम, मॊि-भॊि-तॊि, साधना व ऩूजा ऩद्धसत के त्रवषम भं साधक एवॊ
त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं , मदद दशाामे गए मॊि, भॊि, स्तोि इत्मादी के सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं,
दडजाईन भं, टाईऩीॊग भं, त्रप्रॊदटॊ ग भं, प्रकाशन भं कोई िुदट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा दकसी मोग्म
गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे । क्मोदक त्रवद्रान गुरुजनो एवॊ साधको के सनजी अनुबव त्रवसबन्न अनुद्षा
भं बेद होने ऩय मॊि की ऩूजन त्रवसध एवॊ जऩ त्रवसध भं, प्रबावं के अध्ममन भं सबन्नता सॊबव हं ।

आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो भाॊ रक्ष्भी की कृ ऩा आऩके ऩरयवाय ऩय


फनी यहे । भाॊ भहारक्ष्भी से मही प्राथना हं …

सचॊतन जोशी
6 ददसम्फय 2012

***** मॊि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत त्रवशेष सूचना *****


 ऩत्रिका भं प्रकासशत मॊि सम्फस्न्धत सबी जानकायीमाॊ गुरुत्व कामाारम के असधकायं के साथ ही आयस्ऺत हं ।
 ऩौयास्णक ग्रॊथो ऩय अत्रवद्वास यखने वारे व्मत्रि इस अॊक भं उऩरब्दध सबी त्रवषम को भाि ऩठन साभग्री
सभझ सकते हं ।
 धासभाक त्रवषम आस्था एवॊ त्रवद्वास ऩय आधारयत होने के कायण इस अॊकभं वस्णात सबी जानकायीमा
बायसतम ग्रॊथो से प्रेरयत होकय सरखी गई हं ।
 धभा से सॊफॊसधत त्रवषमो दक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय दकसी बी प्रकाय दक स्जन्भेदायी कामाारम मा
सॊऩादक दक नहीॊ हं ।
 इस अॊक भं वस्णात सॊफॊसधत सबी रेख भं वस्णात भॊि, मॊि व प्रमोग दक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव दक
स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक दक नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव दक स्जन्भेदायी के फाये भं
जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक दकसी बी प्रकाय से फाध्म हं ।
 धभा से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हं । दकसी बी व्मत्रि त्रवशेष का दकसी बी
प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम उनका स्वमॊ का होगा।
 शास्त्रोि त्रवषमं से सॊफॊसधत जानकायी ऩय ऩाठक द्राया दकसी बी प्रकाय दक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।
 धभा से सॊफॊसधत रेख प्राभास्णक ग्रॊथो, हभाये वषो के अनुबव एव अनुशध
ॊ ान के आधाय ऩय ददमे गमे हं ।
 हभ दकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया धभा से सॊफॊसधत त्रवषमं ऩय त्रवद्वास दकए जाने ऩय उसके राब मा नुक्शान की
स्जन्भेदायी नदहॊ रेते हं । मह स्जन्भेदायी धासभाक त्रवषमो ऩय त्रवद्वास कयने वारे मा उसका प्रमोग कयने वारे
व्मत्रि दक स्वमॊ दक होगी।
 क्मोदक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊ डं, साभास्जक, कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रि मदद नीजी स्वाथा
ऩूसता हे तु महाॊ वस्णात जानकायी के आधाय ऩय प्रमोग कताा हं अथवा धासभाक त्रवषमो के उऩमोग कयने भे
िुदट यखता हं मा उससे िुदट होती हं तो इस कायण से प्रसतकूर अथवा त्रवऩरयत ऩरयणाभ सभरने बी सॊबव हं ।
 धासभाक त्रवषमो से सॊफॊसधत जानकायी को भानकय उससे प्राद्ऱ होने वारे राब, हानी दक स्जन्भेदायी कामाारम मा
सॊऩादक दक नहीॊ हं ।
 हभाये द्राया ऩोस्ट दकमे गमे धासभाक त्रवषमो ऩय आधारयत रेखं भं वस्णात जानकायी को हभने कई फाय स्वमॊ
ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधग
ु ण ने बी अऩने नीजी जीवन भं अनुबव दकमा हं । स्जस्से हभ कई फाय धासभाक
इनसे त्रवशेष राब की प्रासद्ऱ हुई हं । असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं ।
(सबी त्रववादो केसरमे केवर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।
7 ददसम्फय 2012

मन्िं के प्रभुख प्रकाय


 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
मॊि कई रुऩं भं सनसभात दकम जाते हं । प्राचीन भेरुप्रस्ताय मन्ि:
ग्रॊथं भं त्रवसबन्न प्रकाय के मन्िं का उल्रेख सभरते हं । भेरुप्रस्ताय मन्ि, भेरुऩृद्ष मन्ि के सभान होता हं ,
महाॊ हभ ऩाठकं के भागादशान हे तु मन्िं की प्रभुख रेदकन भेरुऩृद्ष मन्ि भं ये खाॊकन की दिमा को उबायकय
श्रेणीमं का वणान कय यहे हं । मा उत्कीणा कयके ऩूणा की जाती हं , वहीॊ भेरुप्रस्ताय मन्ि
भं ये खाॊकन मन्िाकाय होता हं । इस तयह के मन्ि को
बूऩद्ष
ृ मन्ि: दे खने ऩय रगता हं की सॊऩूणा मन्ि को टु किं भं काटकय
सभतर आकाय वारे मन्ि अथाात वह मन्ि एक-दस
ू ये ऩय आसश्रत दकमा गमा है ।
स्जनका आधाय सभरत मा धयातर ऩय हो उसे बूऩद्ष

मन्ि कहाॊ जाता हं । मन्ि ि इसी सभतर आधाय ऩय कूभाऩद्ष
ृ मन्ि:
मन्ि की ये खामे, वगा, त्रफन्द,ु त्रिबुज, चतुबज
ुा , कभर दर, कूभाऩद्ष
ृ मन्ि भं भेरुऩृद्ष मन्ि के सभान सशखय
अॊक, फीज भॊि आदद को उत्कीणा दकमा जाता हं । कहने नहीॊ होता। मह नीचे से चौकोय औय उऩय से गोराई सरमे
का भतरफ हं की सभतर आधाय वारे मन्ि को बूऩद्ष
ृ होता हं । रेदकन इसभं भेरुऩृद्ष मन्ि के सभान सशखय नहीॊ
मन्ि कहाॊ जाता हं । होता। दे खने भं मह कछुएॊ की ऊची ऩीठ के सभान
नझय आता हं । इस प्रकाय के मन्ि को कूभाऩद्ष
ृ मन्ि
भेरुऩृद्ष मन्ि: कहते हं ।
भेरुऩृद्ष आगाय वारे मन्ि की आकृ सत भेरु की
तयह उऩय की ओय िभश् उठी हुई होती हं जो दे खने भं
मन्िं का वगॉकयण
ऩवाताकाय ददखती हं । मॊि का अॊसतभ बाग अथाात सशखय 1. ये खात्भक मॊि, 2. आकृ सतभूरक मन्ि
उऩय से नुकीरा होता हं , व नीचे का दहस्सा चौिा अथाात
पैरा हुवा होता हं , इस प्रकाय के मॊिं भं नीचे से उऩय 1.ये खात्भक मॊि
का दहस्सा िभश् छोटा होता जाता हं औय आस्खय भं ये खात्भक मॊि भं केवर ये खाओॊ का प्रमोग दकमा जाता हं ,
सशखय वारा दहस्सा नुकीरा होता हं । इस तयह के मन्िं जो भुख्मत् त्रिकोण, चतुबज
ुा , वि, कभराकाय, आमुध,
भं ये खाएॊ उबयी हुई मा उत्कीणा मा खुदी हुई होती हं । वरम आदद को मथाथाऩूणा दशाामा जाता हं ।

ऩातार मन्ि: 2. आकृ सतभूरक मन्ि


ऩातार मन्ि को भेरुऩृद्ष मन्ि से त्रवऩयीत सनसभात आकृ सतभूरक मन्ि भं ये खाओॊ को ज्मासभसतक आकाय भं
दकमा जाता हं जहाॊ भेरुऩृद्ष मन्ि भं मन्ि का सशखय होता प्रमोग नहीॊ कयके स्ऩद्श रुऩ से सचिाॊकन दकमा जाता हं ।
हं वहीॊ ऩातार मन्ि भं मन्ि का भध्म दहस्सा कटोयी के मन्ि के सनभााण भं कामा उद्दे श्म के अनुशाय त्रवसबन्न
साभान अॊदय की औय से िभश् गहया होता जाता हं हं । प्रकाय के दे व-दे वी, भानव, ऩशु-ऩस्ऺ, वृऺ आदद के स्वरुऩ
का सचिाॊकन दकमा जाता हं ।
8 ददसम्फय 2012

ये खात्भक मॊि के सनम्न चाय वगा होते हं । अॊकगसबात मॊि:


अॊकगसबात मॊि भं अॊकात्भक दे वताओॊ का सनवास
1. फीजभॊिमुि मॊि ।
होता हं । दहन्द ू धभा भं एसा भाना जाता हं की प्रत्मेक
2. भॊिवणामुि मॊि ।
अॊक दकसी-न-दकसी दे वता का प्रसतक होता हं । इस सरए
3. अॊकगसबात मॊि ।
अॊकं को दे वता के प्रसतसनसध के रुऩ भं त्रवसबन्न उद्दे श्म
4. सभश्र मॊि ।
से मन्िं के सनभााण के सरए अॊकं का प्रमोग दकमा जाता
हं । इस प्रकाय के मन्िं को अॊकगसबात मॊि कहते हं ।
फीजभॊिमुि मॊि:
फीजभॊिमुि मॊि को दकसी दे वी-दे वता के सॊस्ऺद्ऱ
सभश्र मॊि:
रुऩ के भन्ि का प्रमोग दकमा जाता हं । अथाात दे वी-
सभश्र मॊि भं उऩय दशाामे गमे तीनं श्रेणीमं का
दे वताओॊ के शत्रिशारी फीज भॊिं का प्रमोग दकमा जाता
प्रमोग एक साथ (अथाात फीजभॊिमुि मॊि, भॊिवणामुि
हं । जो सॊफॊसधत दे वी-दे वताओॊ का सस्ऺद्ऱ रुऩ होता हं
मॊि, अॊकगसबात मॊि) हुवा हो मा एक के साथ दस
ू यी श्रेणी
अथाात स्जसभं उस दे वी-दे वता की गुद्ऱ शत्रिमाॊ सनदहत
का प्रमोग होने ऩय उसे सभश्र मॊि कहते हं ।
होती हं । स्जससे उस फीज भन्ि के स्भयण मा उच्चायण
से ही साधक की सभग्र काभनाएॊ ऩूणा होने रगती हं ।
फीजभॊिमुि मॊि को सवाासधक शत्रिशारी मन्ि भाना
शास्त्रं भं मॊि के भुख्म सात प्रकाय फतामे गम
जाता हं । हं ।
शास्त्रं भं मन्िं का वगॉकयण उसकी उऩमोसगता के

भॊिवणामि
ु मॊि: आधाय ऩय दकमा गमा हं । स्जसके अनुशाय उसके िभ इस
प्रकाय हं ..
भॊिवणामुि मॊि भं त्रवशेद्श वणं को िभ भं
1. शयीय मन्ि 2. धायण मन्ि
सजाकय भन्ि को दशाामा जाता हं । भॊिवणामुि मॊि भं
3. आसन मन्ि 4. भण्डर मन्ि
प्रमुि वणं द्राय ही भन्िं का सनभााण दकमा गमा होता हं
5. ऩूजा मन्ि 6. छि मन्ि
इस सरए भॊिवणामुि मॊि भं भन्ि शत्रि त्रवशेष रुऩ से
7. दशान मन्ि
सभादहत होती हं ।

बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी


सुख-शास्न्त-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ के सरमे बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी :- स्जस्से धन प्रसद्ऱ, त्रववाह मोग,
व्माऩाय वृत्रद्ध, वशीकयण, कोटा कचेयी के कामा, बूतप्रेत फाधा, भायण, सम्भोहन, तास्न्िक
फाधा, शिु बम, चोय बम जेसी अनेक ऩये शासनमो से यऺा होसत है औय घय भे सुख सभृत्रद्ध
दक प्रासद्ऱ होसत है , बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी भे रघु श्री फ़र, हस्तजोडी (हाथा जोडी), ससमाय
ससन्गी, त्रफस्ल्र नार, शॊख, कारी-सफ़ेद-रार गुॊजा, इन्र जार, भाम जार, ऩातार तुभडी
जेसी अनेक दर
ु ब
ा साभग्री होती है ।
भूल्म:- Rs. 1250, 1900, 2800, 5500, 7300, 10900 भं उप्रब्दद्ध
गुरुत्व कामाारम सॊऩका : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785
c
9 ददसम्फय 2012

मन्िं भं ऩॊच तत्त्ववं का भहत्त्वव


 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, श्रेमा.ऐस.जोशी

स्जस प्रकाय हभाया शयीय ऩाॉच तत्त्ववं से फना हं । मन्िं भं सनदहत ऩाॉच तत्त्ववं के प्रबाव
उसी प्रकाय कुछ मन्िं भं बी ऩाॉच तत्त्वव बी सनदहत होते
कुछ जानकायं ने ऩाॉच तत्त्वव का प्रबाव भनुष्मं ऩय इस
हं । मॊि भं सनदहत ऩाॉच तत्त्वव भानव शयीय के तत्त्ववं के
प्रकाय भाना हं ।
सभान ही हं ।
1. ऩृथ्वी तत्त्वव:
1. ऩृथ्वी तत्त्वव, 2. जर तत्त्वव,
ऩृथ्वी तत्त्वव के प्रबाव से भनुष्म को स्स्थयता, धैमा,
3. अस्ग्न तत्त्वव, 4. वामु तत्त्वव औय
उत्साह, उत्तभ त्रवचायधाया, शास्न्त, बौसतक सुख तथा
5. आकाश तत्त्वव।
सपरता की प्रासद्ऱ होती हं ।
त्रवद्रानं ने अऩने अनुबवं से ऻात दकमा हं की
2. जर तत्त्वव:
मॊिं के ऩाॉच तत्त्ववं की उऩस्स्थती ही भुख्म रुऩ से साधक
जर तत्त्वव के प्रबाव से भनुष्म को भान, सम्भान,
को वाॊस्च्छत ससत्रद्ध प्रासद्ऱ हे तु सहामक होती हं । इस सरए
प्रेभ, भाधुम,ा सन्तोष, ऻान औय चॊचरता को सनमॊत्रित
मन्िं के ऩाॉच तत्त्वव की भहत्वता को जानना अत्मॊत
कयने हे तु सहामता प्राद्ऱ होती हं ।
आवश्मक हं । क्मोदक महीॊ ऩाॉच तत्त्वव ब्रह्माण्ड की
यहस्मभम शत्रिमं एवॊ साधक के सबतय सछऩी हुई शत्रिमं 3. अस्ग्न तत्त्वव:
की जाग्रत औय सनमस्न्ित कयने हे तु सहामक हं । अस्ग्न तत्त्वव के प्रबाव से भनुष्म को िोध,

ये खामुि मन्ि औय अॊकात्भक मन्िं भं ऩृथ्वी उत्तेजना, तीव्रता, क्रेश, त्रवध्न, त्रवनाश, अशाॊसत, हासन,

तत्त्वव, जर तत्त्वव, अस्ग्न तत्त्वव, वामु तत्त्वव औय आकाश कद्श-श्रभसाध्मता, उग्रकभा आदद को सनमॊत्रित कयने हे तु

तत्त्वव का सभावेश दकमा जाता हं । स्जस प्रकाय ऩृथ्वी सहामता प्राद्ऱ होती हं ।

तत्त्वव, जर तत्त्वव, अस्ग्न तत्त्वव की ये खामं तो सयरता से


ऻात की जा सकती हं , ऩृथ्वी तत्त्वव का आकाय चौकोय 4. वामु तत्त्वव:
अथाात चतुष्कोण होता हं , जर तत्त्वव का आकाय वामु तत्त्वव का प्रबाव भनुष्म ऩय उसचत भाि भं हो
भण्डराकाय अथाात गोर वृत्ताकाय होता हं , अस्ग्न तत्त्वव का तो उत्तभ हं अन्मथा मह त्रवऩयीत ऩरयणाभ प्रदान कयता
आकाय त्रिकोण स्वरुऩ होता हं । मदद त्रिकोण का आकाय हं । वामु तत्त्वव के प्रबाव से भनुष्म को फुत्रद्ध, त्रवस्ऺद्ऱता,
मन्ि भं उध्वाभुखी औय अधोभुखी दशाामा गमा हो तो वह अत्रववेकी आचयण, भान-सम्भान की हासन, अऩमश, द्ु ख,
सशव औय शत्रि का प्रसतक भाना जाता हं । अऻानता, आदद को सनमॊत्रित कयने हे तु सहामता प्राद्ऱ
होती हं ।
शास्त्रं भं ऩॊचदशी मन्ि भं तत्वं का वणान कयते
5. आकाश तत्त्वव:
हुवे उल्रेख सभरता हं , की इन मन्िं भं तत्त्ववं के आकाय
आकाश तत्त्वव के प्रबाव ऩय ही भनुष्म को
नहीॊ होते है , रेदकन अॊकं की मोजना ही उसभं तत्वं का
आध्मात्भ प्रेभ, त्रवयि बाव, गहनसचन्तन, भनन,
प्रसतनीसधत्त्वव दशााती हं ।
10 ददसम्फय 2012

अध्ममन औय एकान्त को सनमॊत्रित कयने हे तु सहामक हं । मन्ि के अॊक एवॊ दे वता


मदद आकाश तत्त्वव के सुपर भं न्मूनासधकता हो जाती हं महाॊ हभ एक से नौ तक की सॊख्माओॊ की दे वाता एवॊ
औय कभा रत्रद्श से इसका उऩमोग दकमा जाता हं । उनकी सॊफॊसधत ददशाओॊ को दशाायहे हं ।

स्जस मन्ि भं इन तत्वं की आकृ सतमं का सनदे श अॊक दे वता ददशा


हो उसभं बी सम्फस्न्धत तत्वं के अऺय वारे फीजाऺय हो १. सूमा ऩूवा

तो मन्ि शीघ्र ससद्ध हो जाता हं । २. बुवनेद्वयी नैऋत्म


३. गणऩसत उत्तय
ऩाठकं के ऻानवधान के उद्दे श्म से स्वय औय
४. हनुभान वामव्म
व्मॊजनं को ऩाॉच तत्त्ववं की श्रेणी भं दशाामा गमा हं ।
५. त्रवष्णु ऩस्द्ळभ
1. ऩृथ्वी तत्त्वव के सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् उ, ऊ, ओ, ६. कातावीमा आग्नेम
ग, ज, ि, द, फ, र । ७. कारी दस्ऺण
2. जर तत्त्वव के सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् औ, घ, झ, ८. बैयव ईशान
द, ध, ब, व, स । ९. बैयवी ऩस्द्ळभ
3. अस्ग्न तत्त्वव के सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् इ, ई, ऐ,
नोट: उि वणान को केवर ऩाठकं के भागादशान हे तु
ख, छ, ठ, थ, प, य ।
प्रदान दकमा गमा हं । कोई बी व्मत्रि जो मन्ि द्राया राब
4. वामु तत्त्वव के सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् अ, आ, ए,
प्राद्ऱ कयना चाहते हो उन्हं शास्त्र सम्भत सनमभं एवॊ
क, च, ट, त, ऩ, म, ष ।
त्रवसध-त्रवधान का ऩारन कयते हुवे गुरु आऻा प्राद्ऱ कय के
5. आकाश तत्त्वव के सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् अ्, अॊ,
ही मन्ि साधना कयनी चादहए।
ड, न्म, ण, न, भ, श, ह ।

भॊि ससद्ध भूॊगा गणेश


भूॊगा गणेश को त्रवध्नेद्वय औय ससत्रद्ध त्रवनामक के रूऩ भं जाना जाता हं । इस के ऩूजन से जीवन भं सुख
सौबाग्म भं वृत्रद्ध होती हं ।यि सॊचाय को सॊतुसरत कयता हं । भस्स्तष्क को तीव्रता प्रदान कय व्मत्रि को चतुय
फनाता हं । फाय-फाय होने वारे गबाऩात से फचाव होता हं । भूॊगा गणेश से फुखाय, नऩुॊसकता , सस्न्नऩात औय चेचक
जेसे योग भं राब प्राद्ऱ होता हं । भूल्म Rs: 550 से Rs: 8200 तक

भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि


भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब दे ता हं , इस के असतरयि व्मत्रि को
ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं । त्रववाह आदद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए
भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि के ऩूजन से बाग्मोदम, शयीय भं खून की
कभी, गबाऩात से फचाव, फुखाय, चेचक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम, तॊि भॊि के दद्श
ु प्रबा, बूत-प्रेत
बम, वाहन दघ
ु ट
ा नाओॊ, हभरा, चोयी इत्मादी से फचाव होता हं । भूल्म भाि Rs- 730
11 ददसम्फय 2012

अॊक मन्िं की त्रवसशद्शता एवॊ राब


 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, ददऩक.ऐस.जोशी

10) छत्तीसा मन्ि (36) को आसथाक राब हे तु प्रमोग


अॊक मन्ि अऩने आऩभं त्रवशेष यहस्म सभामे होते दकमा जाता हं ।
हं । मन्ि के जानकायं का अनुबव हं की त्रवशेष अॊकं के 11) चारीसा मन्ि (40) को भान-सम्भान की वृत्रद्ध, शिु
भाध्म से कदठन कामं को बी सयरता से ससद्ध दकमे जा को नतभस्तक कयने एवॊ ससयददा दयू कयने हे तु
सकते हं । अफ तक अॊक मन्िं भं प्राम् ऩन्रह से रेकय प्रमोग दकमा जाता हं ।
दस राख तक की सॊख्माओॊ वारं अॊकं का प्रमोग होते 12) ऩच्चासवाॊ मन्ि (40) को छोटे फारकं का योना
दे खा गमा हं । ऩौयास्णक गॊथं भं त्रवसबन्न कामं की ससत्रद्ध फन्द कयाने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
के सरए अॊकं का भहत्व त्रवशेष रुऩ से दशाामा गमा हं । 13) छप्ऩनवा मन्ि (56) को भोहन आदद कामो के सरए
प्रमोग दकमा जाता हं ।
1) ऩॊदयीमा (15) मन्ि सबी प्रकाय की ससत्रद्धमं को 14) फासदठमाॊ मन्ि (62) को फॊध्मा स्त्री को गबा
प्रदान कयने वारा भाना गमा हं । ठहयवाने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
2) सोडष मन्ि (16) अथाात सोरह अॊक वारे मन्ि को 15) चौसदठमाॊ मन्ि (62) को सवा प्रकाय के बमं के
चोय आदद फाधाओॊ को दयू कयने हे तु प्रमोग दकमा सनवायण के सरए त्रवशेष रुऩ से प्रमोग दकमा जाता
जाता हं । हं । चौसदठमाॊ मन्ि का प्रमोग बूत-प्रेत, शादकनी-
3) उन्नीसाॊ मन्ि (19) खेत एवॊ धान को कीिं से डादकनी आदद ऩीडाओॊ से यऺा हे तु दकमा जाता हं ।
फचाने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । 16) सत्तयीमाॊ मन्ि (70) के प्रमोग से भान-सम्भान की
4) फीसा मन्ि (20) को सोरह कोद्शक भं सरखकय ऩास वृत्रद्ध होती हं ।
भं यखने से सबी तयह के बम का नाश होता हं । 17) फहत्तयीमाॊ मन्ि (72) को बूत-प्रेत आदद बमं को
5) चौफीसा मन्ि (24) सवा प्रकाय से ऋत्रद्ध-ससत्रद्ध नद्श कयने औय जॊग भं त्रवजम प्रासद्ऱ हे तु प्रमोग
प्रदाता हं । दकमा जाता हं ।
6) अठाईसा मन्ि (28) से योग अबम नद्श होता हं । 18) अठोत्तयीमाॊ मन्ि (78) को सवा प्रकायके कद्श से
7) तीस मन्ि (30) से शादकनी बम का नाश होता हं । भुत्रि हे तु हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
8) फत्तीसा मन्ि (32) को गसबाणी को सुकऩूवक
ा प्रसव 19) अस्सीमाॊ मन्ि (80) को अऩने द्राया दकमे गमे कभा
हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । (फत्तीसा मन्ि के अनेक परं की प्रासद्ऱ हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
प्रमोग एवॊ राब त्रवसबन्न ग्रॊथंभं दे खनेको सभरते हं । 20) त्रऩच्चाससमाॊ मन्ि (85) को भागा अथाात मािा बम
9) चौतीसा मन्ि (34) को भुख्म रुऩ से दे व ध्वजा ऩय के सनवायण हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
सरखने से शुब पर प्राद्ऱ होते हं । चौतीसा मन्ि 21) नब्दफेमाॊ मन्ि (90) को चोय से यऺा हे तु प्रमोग
ऩयकभा अथाात दकसी के द्राया बम की प्रासद्ऱ होने से दकमा जाता हं ।
ऩूवा उसे दयू कयता हं । बवन की भुख्म दीवाय ऩय 22) सौवाॊ मन्ि (100) को सवा कामा ससत्रद्ध हे तु प्रमोग
इसे रेखने ऩय ऩयाबाव नहीॊ होता, शिुद्राया दकमे दकमा जाता हं ।
गमे काभण-टु भण आदद का प्रबाव नद्श हो जाता हं ।
12 ददसम्फय 2012

23) एक सौ फीस मन्ि (120) को गसबाणी की प्रसव 33) सात सौ का मन्ि (700) को वाद-त्रववाद भं त्रवजऩ
ऩीडा़-कद्श को कभ कयने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । प्रासद्ऱ के सरए प्रमोग दकमा जाता हं ।
24) एक सौ छब्दफीसाॊ मन्ि (126) को फॊधे हुवे गबा को 34) नौ सौ का मन्ि (900) को भागा बम एवॊ मािा
खोने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । बम से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
25) एक सौ फावनमाॊ मन्ि (152) को बाई-फहन भे 35) एक हजाय का मन्ि (1000) को त्रवजम प्रासद्ऱ हे तु
आऩसी प्रेभ की वृत्रद्ध हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । प्रमोग दकमा जाता हं ।
26) एक सौ सत्तयीमाॊ मन्ि (170) ऻान वृत्रद्ध हे तु त्रवशेष 36) ग्मायह सौ का मन्ि (1100) को दद्श
ु ात्भाओॊ, बम
प्रबावकायी भाना गमा हं । एवॊ क्रेश से से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
27) एक सौ फहत्तयीमाॊ मन्ि (172) को सॊतान राब एवॊ 37) फायह सं का मन्ि (1200) को फॊधन भुत्रि हे तु
बम सनवायण हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । प्रमोग दकमा जाता हं ।
28) दौ सौ का मन्ि (200) को व्मवसाम वृत्रद्ध हे तु 38) ऩचास हजाय का मन्ि (50000) को याज सम्भान
प्रमोग दकमा जाता हं । की प्रासद्ऱ एवॊ सबी प्रकाय के कद्शं से भुत्रि हे तु
29) तीन सौ का मन्ि (300) को ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रमोग दकमा जाता हं ।
स्नेह फढा़ने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । 39) दस राख दस हजाय का मन्ि (1010000) को भागा
30) चाय सौ का मन्ि (400) को बवन भं सरखने से भं चोय बम से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
बम से यऺा हे तु एवॊ खेतं भं सरखने से धान्म की इस प्रकाय से दकसी बी मन्ि का प्रमोग कयने से ऩूवा
उऩज अस्च्छ हो इस सरए दकमा जाता हं । उसके ऩूणा प्रबावं को जान रेना असत आवश्मक हं उऩय
31) ऩाॊच सौ का मन्ि (500) स्त्री को गबा धायण हे तु दशाामे गमे अॊक मन्िं की सूसच महाॊ भाि भागादशान के
एवॊ ऩुरुष को उत्तभ सॊतान की प्रासद्ऱ हे तु प्रमोग उद्दे श्म से दी गई हं । त्रवद्रजनं एवॊ साधको के अनुबवं भं
दकमा जाता हं । अॊतय होने से उऩय भं जो पर दशाामे गमे हं उसभं अॊतय
32) छ् सौ का मन्ि (600) को सुख-सम्ऩत्रत्त की प्रासद्ऱ सॊबव हं , अत् इस त्रवषम भं दकसी मोग्म गुरु मा साधक
के सरए प्रमोग दकमा जाता हं । से ऩयाभशा कय रेना असत आवश्मक हं ।

नवयत्न जदित श्री मॊि


शास्त्र वचन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के चायं औय मदद नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न
जदित श्री मॊि कहराता हं । सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉकेट के रूऩ भं धायण कयने से
व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ
हं । नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता
हं । गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय
को रगते हं , वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं । इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं । जैसे
अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं
एसा शास्त्रोि वचन हं । इस प्रकाय के नवयत्न जदित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत
कयके फनावाए जाते हं । Rs: 2350, 2800, 3250, 3700, 4600, 5500 से 10,900 से असधक
13 ददसम्फय 2012

श्रीमॊि की भदहभा
 सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी

दहन्द ु धभा भं श्रीमॊि सवाासधक रोकत्रप्रम एवॊ ऩूछे गमे प्रद्ल ऩय बगवान बोरेनाथ ने स्वमॊ शॊकयाचामा
प्राचीन मॊि है , श्रीमॊि की आयाध्मा दे वी स्वमॊ श्रीत्रवद्या को साऺात रक्ष्भी स्वरूऩ श्री मॊि की त्रवस्तृत भदहभा
अथाात त्रिऩुय सुन्दयी दे वी हं , श्रीमॊि को दे वीके ही रूऩ भं फताई औय कहा मह श्री मॊि भनुष्मं का सबी प्रकाय से
भान्मता ददगई है । कल्माण कये गा।
श्रीमॊि को अत्मासधक शत्रिशारी व रसरतादे वी का श्री मॊि ऩयभ ब्रह्म स्वरूऩी आदद दे वी बगवती
ऩूजन चि भाना जाता है , श्रीमॊि को िैरोक्म भोहन भहात्रिऩुय सुदॊयी की उऩासना का सवाश्रद्ष
े मॊि है क्मंदक
अथाात तीनं रोकं का भोहन कयने वारा मन्ि बी कहाॊ श्री चि ही दे वीका सनवास स्थर है । श्री मॊि भं दे वी स्वमॊ
जाता है । त्रवयाजभान होती हं इसीसरए श्री मॊि त्रवद्व का कल्माण
श्रीमॊि भं सवा यऺाकायी, सवाकद्शनाशक, सवाव्मासध- कयने वारा है ।
सनवायक त्रवशेष गुण होने के कायण श्रीमॊि को सवा आज के आधुसनक मुग भं भनुष्म त्रवसबन्न प्रकाय
ससत्रद्धप्रद एवॊ सवा सौबाग्म दामक भाना जाता है । की सभस्माओॊ से ग्रस्त है , एसी स्स्थसत भं मदद भनुष्म
श्रीमॊि को सयर शब्ददं भं रक्ष्भी मॊि कहा ऩूणा श्रद्धाबाव औय त्रवद्वास से श्रीमॊि की स्थाऩना कयं तो

जाता हं , क्मोदक श्रीमॊि को धन के आगभन हे तु मह मॊि उसके सरए चभत्कायी ससद्र हो सकता है ।
भॊि ससद्ध एवॊ प्राण-प्रसतत्रद्षत श्री मॊि को कोई बी
सवाश्रद्ष
े मॊि भाना गमा हं ।
भनुष्म चाहे वह धनवान हो मा सनधान वहॉ अऩने घय,
त्रवद्रानं का कथन हं की श्रीमॊि अरौदकक शत्रिमं
दक
ु ान, ऑदपस इत्मादद व्मवसामीक स्थानं ऩय स्थात्रऩत
व चभत्कायी शत्रिमं से ऩरयऩूणा गुद्ऱ शत्रिमं का प्रभुख
कय सकता हं । त्रवद्रानो का अनुबव हं की श्रीमॊि का
केन्र त्रफन्द ु है ।
प्रसतदन ऩूजन कयने से दे वी रक्ष्भी प्रसन्न होती है औय
श्रीमॊि को सबी दे वी-दे वताओॊ के मॊिं भं सवाश्रद्ष

भनुष्म का सबी प्रकाय से भॊगर कयती हं । भाॊ भहारक्ष्भी
मॊि कहा गमा है । महीॊ कायण हं , दक श्रीमॊि को मॊियाज,
की कृ ऩा से भनुष्म ददन प्रसतददन सुख-सभृत्रद्ध एवॊ ऐद्वमा
मॊि सशयोभस्ण बी कहा जाता है ।
को प्राद्ऱ कय आनॊदभम जीवन व्मतीत कयता हं ।
ऩौयास्णक धभाग्रॊथं भं वस्णात हं की श्री मॊि
श्रीमॊि से जुडी़ ऩौयास्णक कथा
आददकारीन त्रवद्या का द्योतक हं , बायतवषा भं प्राचीनकार
धभाग्रॊथं भं श्री मॊि के सॊदबा भं एक प्रचसरत भं बी वास्तुकरा अत्मन्त सभृद्र थी। औय आज के
कथा का वणान सभरता है । आधुसनक मुग भं प्राम् हय भनुष्म वास्तु के भाध्मभ से
कथाके अनुसाय एक फाय आददगुरु शॊकयाचामाजी ने कैराश बी प्रकाय के सुख प्राद्ऱ कयना चाहता है । उनके सरए
ऩय बगवान सशवजी को कदठन तऩस्मा द्राया प्रसन्न कय श्रीमॊि की स्थाऩना अत्मॊत भहत्वऩूणा है ।
सरमा। क्मोदक जानकायं का भानना हं की श्री मॊि भं
बगवान बोरेनाथ ने प्रसन्न होकय शॊकयाचामाजी से वय ब्रह्माण्ड की उत्ऩत्रत्त औय त्रवकास का यहस्म सछऩा हं ।
भाॊगने के सरए कहा। आददगुरु शॊकयाचामाजी ने सशवजी से त्रवद्रानो के भतानुशाय श्रीमॊि भं श्री शब्दद की
त्रवद्व कल्माण का उऩाम ऩूछा। व्माख्मा इस प्रकाय से की गई हं "श्रमत मा सा श्री"
14 ददसम्फय 2012

अथाात जो श्रवण की जामे, वह श्री हं । सनत्म ऩयब्रह्मा से श्रीमॊि का त्रवषम अत्मन्त गहन हं , रेदकन महाॉ हभ
आश्रमण प्राद्ऱ कयती हो, वह श्री हं । ऩाठकं के भागादशान हे तु इसका सॊस्ऺद्ऱ त्रववयण दे ने का
श्रीमॊि का अन्म अथा हं श्री का मॊि। मॊि शब्दद प्रमास कय यहे हं ।
"मभ" धातु का घोतक हं । (मभ धातु से फना हं )
मन्ि शब्दद गृह शब्दद को प्रकट कयता हं । स्जस त्रवसबन्न ताॊत्रिक ग्रॊथं भं श्री मॊि के त्रवषम भं
प्रकाय गृह भं सफ वस्तुओॊ का सनमॊिण होता हं उसी स्जतना वणान सभरता हं उतना औय दकसी त्रवषम
प्रकाय श्रीमॊि को प्राद्ऱ कयने मा सनमॊत्रित कयने के सरए
ऩय नहीॊ सभरता!
श्रीमॊि सवाश्रद्ष
े भाध्म हं ।
प्राम् सबी रोगोने अऩने दै सनक जीवन भं अनेक
श्रीमॊि भं स्स्थत नौ चिं का वणान रुरमाभर तॊि भं
फाय दे खा होगा की दकसी श्रेद्ष एवॊ ऩूज्म भनुष्मं के नाभ
वस्णात हं
के आगे रोग "श्री" शब्दद का प्रमोग कयते हं । भनुष्म की
त्रफन्दत्रु िकोणवसुकोणदशायमुग्भ
श्रेद्षता के अनुिभ के अनुशाय उनकी नाभके आगे 3, 4,
भन्वस्न्नागदरसॊमुतषोडशायभ ्।
5, 8 फाय तक "श्री" शब्दद प्रमोग का शास्त्रं भं उल्रेख
वृत्तिमॊ च धयणीसदनिमॊ च
सभरा हं । प्रधान ऩीठासधद्वय/ऩीठासधऩसत अथवा दकसी
श्रीचिभे त ददु दतॊ ऩयदे वतामा्॥
सॊप्रदाम त्रवशेष के प्रधानाचामं के नाभ के आगे मा ऩीछे
अथाात: श्रीमॊि के नौ चि िभ भं १. त्रफन्द,ु २. त्रिकोण,
1008 फाय तक "श्री" का प्रमोग दकमा जाता हं । क्मोदक
३. आठ त्रिकोणं का सभूह, ४. दस त्रिकोणं का सभूह,
"श्री" शब्दद का सयर अथा "रक्ष्भी" होता हं ।
५. दस त्रिकोणं का सभूह, ६. चौदह त्रिकोणं का सभूह,
रेदकन त्रवसबन्न धभाग्रॊथं भं "श्री" शब्दद का अथा
७. आठ दरं वारा कभर, ८. सोरह दरं वारा कभर,
भहात्रिऩुयसुन्दयी होने का उल्रेख सभरता हं । **कुछ
९. बूऩुय ।
धभाशास्त्रं एवॊ ग्रॊथं भं वस्णात हं की "श्री भहारक्ष्भी" ने
भहात्रिऩुयसुन्दयी की सचयकार आयाधना कयके उसने अनेक
इन चिं को सबन्न-सबन्न यॊ गं से दशााने का
वयदान प्राद्ऱ दकमे हं । रक्ष्भीजी को प्राद्ऱ इन्हीॊ वयदानं से
त्रवधान हं , कभर के सबतय दशाामे गम िभश् २,३,४,५,६
एक वयदान "श्री" शब्दद से ख्मासत प्राद्ऱ कयने का बी प्राद्ऱ
के कुर सभराकय जो ४३ त्रिकोण (इन ४३ त्रिकोण की
हुवा। तबी से श्री शब्दद का अथा रक्ष्भी सभझा जाने रगा!
सहामता से अन्म त्रिकोण कुर सभराकय १०८ फनते हं ।)
** धभाशास्त्रं एवॊ ग्रॊथं का सॊदबा हरयतमनसॊदहता, दशाामे गमे हं उसके त्रवषम भं आनन्द सौदमा रहयी का
ब्रह्माण्डऩुयाणोत्तयखण्ड इत्मादद। उल्रेख उऩय दशाामा गमा हं ।
इन चिं भं मदद त्रिकोण उध्वाभुखी हो तो वह
श्रीचि से सॊफॊसधत भत शॊकयाचामाा कृ त आनन्द चि सशवप्रधान कहराता हं एवॊ मदद फीच का त्रिकोण

सौदमा रहयी भं वस्णात हं अधोभुखी मा स्वासबभुस्ख हो तो वह शत्रि प्रधान मॊि

चतुसबा् श्रीकण्ठै ् सशव्मुवसतसब् ऩञ्चसबयत्रऩ. कहा जाता हं । श्रीमॊि से सॊफॊसधत त्रवषम अत्मॊत व्माऩक

प्रसबन्नासब् शम्बोनावसबयत्रऩ भूरप्रकृ सतसब् । हं मही कायण हं की श्रीमॊि का ऩूजन दस्ऺण-भागा एवॊ

िश्रमद्ळत्वारयॊ शदसुदरकरात्रिवरम-. फाभ-भागा दोनं त्रवसध मा प्रमोग से दकमा जाता हं ,

त्रिये खासब् साधं तव कोणा् ऩरयणता् । स्जसका त्रवस्तृत वणान त्रिऩुयतात्रऩनी उऩसनषद एवॊ त्रिऩुया
उऩसनषद भं सभान रुऩ से वस्णात हं ।
15 ददसम्फय 2012

श्रीमॊि भं नौ चिं के नाभ एवॊ उसके सबन्न- श्री मन्ि के नौ चिं का त्रवस्तृत वणान
सबन्न यॊ गं िभ िभश् इस प्रकाय है ..
सवाानन्दभम चि:
(१) सवाानन्दभम (केन्रस्थ यि त्रफन्द)ु
सवाानन्दभम चि की असधद्षािी दे वी रसरता अथवा
(२) सवा ससत्रद्धप्रद (ऩीरे यॊ ग का त्रिकोण) त्रिऩुयसुन्दयी हं , जो अऩने आवयण भं दे वताओॊ के बेद से
कहीॊ ऩय षोडश दे वीमं भं भुख्म भानी गमी हं औय कहीॊ
(३) सवायऺाकाय (हयं यॊ ग के आठ त्रिकोणं का सभूह)
ऩय अद्श भातृकाओॊ भं सवाश्रद्ष
े भानी गमी हं , कहीॊ ऩय अद्श
(४) सवा योग हय (कारे यॊ ग के दस त्रिकोणं का सभूह) वसशनी दे वताओॊ की असधनासमका भानी गमी हं । मह बेद
प्रस्ताय अरग-अरग बेद से हुए हं औय मथा िभ से इन
(५) सवााथा साधक (रार यॊ ग के दस त्रिकोणं का सभूह)
तीनं प्रस्तायं के नाभ भेरु, कैरास तथा बू् प्रस्ताय हं ।
(६) सवा सौबाग्मदामक(नीरे यॊ ग के चौदह त्रिकोणं का सभूह) मही श्रीमॊि की उऩासना के प्रभुख प्रकाय भाने जाते हं ।

(७) सवा सॊऺोबऺ(गुराफी यॊ ग के आठ दरं वारा कभर) सवा ससत्रद्धप्रद चि:


(८) सवााशाऩरयऩूयक(ऩीरे यॊ ग के सोरह दरं वारा कभर) सवा ससत्रद्धप्रद चि जो एक त्रिकोण हं , इस त्रिकोण के
तीनं कोण को काभरुऩ, ऩूणाासगरय तथा जारन्धय ऩीठ
(९) िैरोक्म भोहन(हये यॊ ग का फाहयी स्थर अथाात बूऩुय)
कहाॊ गमा हं । इनके भध्म भं औड्माणऩीठ हं , प्रथभ तीनं
ऩीठं की असधद्षािी दे वी काभेद्वयी, ब्रजेद्वयी तथा

भॊि ससद्ध स्पदटक श्री मॊि


"श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शत्रिशारी मॊि है । "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोदक मह अत्मन्त शुब फ़रदमी
मॊि है । जो न केवर दस
ू ये मन्िो से असधक से असधक राब दे ने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय व्मत्रि के सरए पामदे भॊद
सात्रफत होता है । ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा चैतन्म मुि "श्री मॊि" स्जस व्मत्रि के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि"
अत्मन्त फ़रदामी ससद्ध होता है उसके दशान भाि से अन-सगनत राब एवॊ सुख की प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि" भे सभाई
अदद्रतीम एवॊ अरश्म शत्रि भनुष्म की सभस्त शुब इच्छाओॊ को ऩूया कयने भे सभथा होसत है । स्जस्से उसका जीवन से
हताशा औय सनयाशा दयू होकय वह भनुष्म असफ़रता से सफ़रता दक औय सनयन्तय गसत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे
सभस्त बौसतक सुखो दक प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि" भनुष्म जीवन भं उत्ऩन्न होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक
उजाा को दयू कय सकायत्भक उजाा का सनभााण कयने भे सभथा है । "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय
स्थात्रऩत कयने से वास्तु दोष म वास्तु से सम्फस्न्धत ऩये शासन भे न्मुनता आसत है व सुख-सभृत्रद्ध, शाॊसत एवॊ ऐद्वमा दक प्रसद्ऱ

होती है । गुरुत्व कामाारम भे "श्रीमॊि" 12 ग्राभ से 75 ग्राभ तक दक साइज भे उप्रब्दध है

भूल्म:- प्रसत ग्राभ Rs. 10.50 से Rs.28.00


GURUTVA KARYALAY
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16 ददसम्फय 2012

बगभासरनी हं जो प्रकृ सत, भहत ् तथा असबभान हं । सवाभन्िभमी, सवाद्रन्द्रऺमॊकयी हं । मह दे वीमाॊ भुख्म
नादिमं की स्वाभीनी हं , जो िभश् अरम्फुसा, कुहु,
सवायऺाकाय चि: त्रवद्वोदयी, वायणा, हस्स्तस्जह्वा, मशोवती, ऩमस्स्वनी

सवायऺाकाय चि जो आठ त्रिकोणं का सभूह हं , इस गान्धायी, ऩूषा, सॊस्खनी, सयस्वती, इिा, त्रऩॊगरा तथा

त्रिकोणं की असधद्षािी दे वीमाॉ वाससनी, काभेद्वयी, भोदहनी, सुषुम्णा हं ।

त्रवभरा, आरुणा, जसमनी, सवैद्वयी थथा कौसरनी हं जो


िभश् शीत्, उष्ण, सुख, द्ु ख, इच्छा, सत्त्वव, यज तथा सवा सॊऺोबऺ चि:
तभ की स्वासभनी हं । इस चि का साधक गुणं ऩय सवा सॊऺोबऺ चि जो आठ दरं वारा कभर हं , इस
असधकाय कयने औय द्रन्द्र कयने भं सभथा होता हं । अद्शदर की असधद्षािी दे वीमाॉ अनॊकुसुभा, अनॊगभेखरा,
अनॊगभदना, अनॊगभदनातुया, अनॊगये खा, अनॊगवेसगनी,
सवा योग हय चि: अनॊगभदनाॊकुशा तथा अनॊगभासरनी हं , जो िभश् वचन,

सवा योग हय चि जो दस त्रिकोणं का सभूह हं , इस आदान, गभन, त्रवसगा, आनन्द हीन, उऩादान तथा उऩेऺा

त्रिकोणं की असधद्षािी दे वीमाॉ सवाऻा, सवाशत्रिप्रदा, फुत्रद्ध की स्वासभनी हं ।

सवेद्वमाप्रदा, सवाऻानभमी, सवाव्मासधनासशनी, सवााधाया,


सवाऩाऩहया, सवाानन्दभमी, सवायऺा तथा सवेस्प्सतपरप्रदा सवााशाऩरयऩूयक चि:
हं , जो िभश् ये चक, ऩाचक, शोषक, दाहक, प्रावक, सवााशाऩरयऩूयक चि जो सोरह दरं वारा कभर हं , इस
ऺायक, उद्धायक, ऺोबक, जम्बक तथा भोहक वदिकराओॊ अद्शदर की असधद्षािी दे वीमाॉ काभाकत्रषाणी, फुद्धध्माकत्रषाणी,
की स्वासभनी हं । शब्ददाकत्रषाणी, स्ऩशााकत्रषाणी, रुऩाकत्रषाणी, यसाकत्रषण
ा ी,
गन्धाकत्रषण
ा ी, सचत्ताकत्रषाणी, धैमााकत्रषण
ा ी, स्भृत्माकत्रषाणी,
सवााथा साधक चि: नाभाकत्रषण
ा ी, फीजाकत्रषाणी, आत्भाकत्रषाणी, अभृताकत्रषाणी

सवााथा साधक चि जो दस त्रिकोणं का सभूह हं , इस तथा शयीयाकत्रषाणी हं , जो िभश् भन, फुत्रद्ध, अहॊ काय,

त्रिकोणं की असधद्षािी दे वीमाॉ दस प्राणं की स्वासभनी हं , शब्दद, स्ऩशा, रुऩ, यस, गन्ध, सचत्त, धैमा स्भृसत, नाभ,

जो िभश् सवाससत्रद्धप्रदा, सवासम्ऩत्प्रदा, सवात्रप्रमॊकयी, वाधाक्म, सूक्ष्भ शयीय, जीवन तथा स्थूर शयीय की

सवाभॊगरकारयणी, सवाकाभप्रदा, सवाद्ु ख त्रवभोचनी, स्वासभनी हं ।

सवाभत्ृ मुप्रशभनी, सवा त्रवध्नसनवारयणी, सवांगसुन्दयी तथा


सवा सौबाग्मदासमनी हं । िैरोक्म भोहन चि:
िैरोक्म भोहन चि जो फाहयी स्थर हं , स्जसके चाय
सवा सौबाग्मदामक चि: त्रवबाग हं (क) षोडशदर कभर के फाहयी चायं वृत्तं के
सवा सौबाग्मदामक चि जो चौदह त्रिकोणं का सभूह हं , ऩये गिाग सदृश स्थर। (ख) इस स्थर से रगी हुई
इस त्रिकोणं की असधद्षािी दे वीमाॉ सवासॊऺोसबणी, ऩतरी फाहयी ये खा (ग) दस
ू यी फाहयी ये खा औय (घ) सफसे
सवात्रवरात्रवणी, सवााकत्रषण
ा ी, सवााह्लाददनी, सवासम्भोदहनी, फाहय फारी यखा। इन चायं त्रवबागं भं िभश् दस
सवास्तस्म्बनी, सवाअस्म्बनी, सवावशॊकयी, सवंयाजनी, भुराशत्रिमाॉ, दस ददकऩार, आठ भातृकाएॉ तथा दश
सवोन्भाददनी, सवााथस
ा ाधनी, सवासम्ऩत्रत्तऩूयणी, ससत्रद्धमाॉ स्स्तत हं ।
17 ददसम्फय 2012

दस भुराशत्रिमं के नाभ िभश् सवासॊऺोसबणी, ब्राह्मण द्राया कयवाकय उसकी प्राण-प्रसतद्षा कयवा रं।
सवात्रवरात्रवणी, सवााकत्रषण
ा ी, सवाावेशकरयणी, सवोन्भाददनी, अऩने ऩूजन स्थान ऩय रार वस्त्र त्रफछाकय, उस ऩय
भहाॊकुशा, खेचयी, फीजभुरा, भहामोसन तथा त्रिखस्ण्डका हं , केसय मा हल्दी यॊ गे हुवे अऺत से अद्शदर फनाकय उस
स्जसका आधाय दस आधायं से हं , इन आधायं का के उऩय मॊि स्थात्रऩत कयना चादहए। मॊि का ऩूजन
त्रवस्तृत वणान महाॊ कयना सॊबाव नहीॊ हं । रेदकन इतना अथवा प्राण-प्रसतद्षा ऩूणा हो जाने ऩय अगरे ददन श्री
अवश्म है की इन आधायं के रुऩ भं ही श्रीमॊि तथा मॊि को शुब भुहूता भं अऩने घय, दक
ु ान, ऑदपस
षट्चिं का तादात्भम ससद्ध होता हं । इत्मादद व्मवसामीक स्थानं ऩय मा सतजोयी, कैशफोक्स
दस ददकऩार के नाभ िभश: इॊ र, अस्ग्न, मभ, इत्मादद धन यखने वारे स्थानं ऩय ऩीरा वस्त्र
नऋसत, वरुण, वामु, कुफेय, ईद्व, अनॊत औय ब्रह्मा। त्रफछाकय स्थात्रऩत कयं ।
आठ भातृकाओॊ के नाभ िभश् ब्राह्मी, भाहे द्वयी,  प्रसतददन श्रीमॊि का ऩॊचोऩचाय ऩूजन औय श्रीसूि का
कौभायी, वैष्णवी, वायाही, ऐन्री, चाभुण्डा तथा भहारक्ष्भी सनमसभत ऩाठ कयने से मह अत्मासधक परदामी ससद्ध
हं । इन भातृकाओॊ का ऩूजन का रक्ष्म काभ, िोध, रोब, होता हं ।
भोह, भद, भात्समा, ऩाऩ तथा ऩुण्म ऩय त्रवजम प्राद्ऱ कयने  मदद प्रसतददन ऩॊचोऩचाय ऩूजन मा श्रीसूि का ऩाठ
हे तु दकमा जाता हं । सॊबव न हो तो ऩूणा श्रद्धा बाव से केवर धूऩ-ददऩ से
ऩूजन एवॊ दशान कय रक्ष्भी भॊि का जाऩ कयना बी
श्रीमॊि का सनभााण औय ऩूजन
राबप्रद होता हं ।
जानकायं का कथन हं की श्रीमॊि के सनभााण हे तु सवोत्तभ
 रक्ष्भी भॊि के उच्चायण के सरए स्पदटक मा
ददन ऩौष भास की सॊिाॊसत के ददन यत्रववाय हो तो असत
कभरगट्टे की भारा श्रेद्ष भानी जाती हं । (कभर
उत्तभ सॊमोग भाना जाता हं । रेदकन एसे मोग अत्मॊत
गट्टा दे वी रक्ष्भी को अत्मॊत त्रप्रम हं , दे वी रक्ष्भी का
दर
ु ब
ा होते हं , इस सरए मदद एसा मोग नहीॊ फन यहा हो
सनवास कभर के ऩुष्ऩं ऩय होता हं ।)
तो दकसी बी भास की सॊिाॊसत के ददन यत्रववाय हो तो बी
शुबकायी भाना जाता हं अथवा दकसी बी भास की शुक्र श्रीमॊि ध्मान भॊि
ऩऺ की अद्शभी के ददन यत्रववाय हो, मा धनतेयस,
ददव्मा ऩयाॊ सुघवरारुण चिामाताॊ
दीऩावरी, नवयािी, यत्रवऩुष्म मोग, गुरुऩुष्म मोग इत्मादद
भूराददत्रफन्दु ऩरयऩूणा करात्भकामाभ ्।
होने ऩय बी मॊि का सनभााण दकमा जा सकता हं । मदद
स्स्थत्मास्त्भका शयघनु् सुस्णऩासहस्ता।
उि सबी भुहूता का सॊमोग न हो तो दकसी बी शुब भुहूता
श्रीचिताॊ ऩरयस्णता सततॊनभासभ ।
भं मॊि का सनभााण शुद्धधातु भं कयवारं।
उत्तभ तो महीॊ होगा दक श्रीमॊि को दकसी जानकाय व्मत्रि श्रीमॊि प्राथाना भॊि
के द्राया ताम्रऩि, यजत मा सुवणा ऩय उत्कीणा कयवारं। ध्मान के ऩद्ळमात श्रीमॊि की प्राथना कयं ।
ऩूजन धनॊ धान्मॊ धयाॊ हम्मा कीसताभाामुमश
ा ् सश्रमभ ्।
तुयगान ् दस्न्तन् ऩुिान ् भहारक्ष्भी प्रमच्छ भं॥
 मॊि प्राद्ऱ हो जामे तो ब्रह्मभुहूता भं स्नानादद से सनवृत्त
त्रवसबन्न धभाग्रॊथं एवॊ शास्त्रं के अनुशाय भॊि ससद्ध, प्राण-
हो कय, शाॊत सचत्त से ऩूवाासबभुख हो कय फैठा जामे।
प्रसतत्रद्षत, ऩूणा चैतन्ममुि श्रीमॊि के साभने रक्ष्भी फीज
 श्रीमॊि का धूऩ-दीऩ, गॊध ऩुष्ऩ आदद अत्रऩत
ा कय
भॊि की भारा जऩ कयना अत्मासधक राबप्रद ससद्ध होता हं ।
उसका षोडषोऩचाय ऩूजन कये मा त्रवद्रान कभाकाण्डी
18 ददसम्फय 2012

रक्ष्भी फीज भॊि भं काटकय अऩने साथ रे गमा तफ से भॊददय श्रीमॊि से


त्रवदहन भाना जाता हं ।

ॐ श्रीॊ ह्रीॊ श्रीॊ कभरे कभरारमे प्रसीद प्रसीद श्रीॊ ह्रीॊ श्रीॊ गुजयात के सूयत शहय भं भेरुरक्ष्भी भॊददय मा

ॐ भहारक्ष्भै नभ्। श्रीमॊि भॊददय स्स्थत हं इस भॊददय का सनभााण ऩूणा रुऩ से


श्रीमॊि के आकाय भं बव्म एवॊ त्रवशार रुऩ भं दकमा गमा

श्रीमॊि के सम्भुख बोग रगाकय उसे स्वमॊ औय ऩरयजनं हं । सॊऩूणा भॊददय को श्रीमॊि की आकृ सत के अनुरुऩ सनसभात

को बी प्रसाद के रुऩभं फाॊट दं । दकमा गमा हं , भॊददय के भध्म भं श्रीमॊि स्थात्रऩत हं ।


एक प्रचसरत कथा के अनुशाय दकसी याज्म भं
बानुप्रताभ नाभ का असत धभाबीरु आध्मास्त्भक त्रवचायं
श्रीमॊि से जुिी योचक फाते।
वारे याजा का याज था। वह फरीनाथ का उऩासक था।
श्रीमॊि का त्रवरक्ष्ण प्रबाव हभाये त्रवद्रान ऋत्रष-
उसके ऩाय श्रीमॊि था, कहाॊ जाता हं की श्रीमॊि की ससत्रद्धअ
भुसनमं ने हजायं वषा ऩूवा ही ऻात कय सरमा था!
याजा के ऩास थी। याजा इसी श्रीमॊि के भाध्मभ से
दे वबाष्म जानता था। श्रीमॊि के कायण ही उसे आकाशवाणी
आददगुरु शॊकयाचामााजी ने श्रीमॊि के गूढ़ यहस्मं
हुई दक वह अऩना याजऩाड त्मागकय अऩनी कन्मा का
को ऻात कय सरमा था। शॊकयाचामााजी श्रीमॊि अ्द्भुत

ब्दमाह भारवा के याजा कनकऩार से कयके दहभारम के
प्रबावं से ऩरयसचत थे इस सरए उनकी श्रीमॊि ऩय गहयी
प्रससद्ध फरीधाभ भं आकय दे व-दशान का राब प्राद्ऱ कयं ।
आस्था एवॊ त्रवद्वास के कायण ही श्री मॊि को उन्हो ने
याजा कनकऩार ने अऩने गुरु के सनदे श ऩय श्रीमॊि को
अऩने सबी भठं भं प्रसतद्षा एवॊ दै सनक ऩूजन कयने का
नौटी नाभक स्थान के चौयाहे भं त्रवसधवत ऩूजन कय
सुझाव ददमा था, मही कायण हं की आज उनके प्रत्मेक
बूसभगत स्थात्रऩत दकमा, जो स्थान काराॊतय भं नन्दा
भठ भं श्रीमॊि का त्रवसधवत ऩूजन-अचान दकमा जाता हं ।
दे वी श्रीऩीठ के रुऩ भं प्रससद्ध हुवा।
त्रवद्रानं का भानना हं की दस्ऺण बायत के सुप्रससद्ध
बायत के साथ-साथ श्रीमॊि के प्रबावं की
सतरुऩसत फाराजी के भॊददय की नीॊव भं श्रीमॊि स्थात्रऩत हं ।
जानकायी अन्म दे शं भं सनवास कयने वारे बायतीम एवॊ
इतनाही नहीॊ वहाॊ भुख्म त्रवग्रह के ऩीठ भं श्रीमॊि उत्कीणा
वहाॊ के स्थासनम रोगो को बी अवश्म यहती होगी! क्मोदक
हं । स्जसका सनमसभत त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन दकमा जाता हं !
बायतवासी जहाॊ बी गमे वहाॊ श्रीमॊि को अऩने साथ रेकय
आफू के प्रससद्ध ददरवािा (दे रवाडा़) के भॊददय के
गमे औय सनयॊ तय उसके प्रबावं का त्रवस्ताय कयते यहं ।
खम्बं ऩय श्रीमॊि अॊदकत हं ।
नेऩार के ऩशुऩसतनाथ भॊददय के भुख्म द्राय ऩय श्रीमॊि
ऩौयास्णक रोक भान्मताओॊ के अनुशाय सोभनाथ कं त्रवद्व
सनसभात हं ।
प्रससद्ध भहादे व भॊददय के बूगबा भं सुवणा सशरा ऩय श्रीमॊि
का उत्कीणा दकमा गमा था। स्जसका ऩूजन गुद्ऱ रुऩ से
 स्जस श्रीमॊि भं सबी चि एवॊ फीज भॊि अॊदकत हो
त्रवद्रान ब्राह्मणं द्राया दकमा जाता था। इसी कायण से
वह सॊऩूणा श्रीमॊि कहाॊ जाता हं औय जो मॊि केवर
ऩुयातन कार से वहाॊ अतुर सम्ऩत्रत्त की सनत्म वषाा होती
चिं से फना हो फीज, शत्रि भॊिं इत्मादद से यदहत हो
थी। मही कायण हं की वहाॊ अनभोर अयफं-खयफो के हीये -
वह श्रीचि मॊि कहाॊ जाता हं ।
जवाहयात फहुभूल्म यत्न इत्मादद उसके स्थम्बं ऩय ही
 आज कर श्रीमॊि की अऩेऺा श्रीचि मॊि ही असधक
जदित थे। स्जसकी ख्मासत सुन कय भोहम्भद गजनफी ने
दे खने भं आते हं । रेदकन कुछ जानकायं का भानना
इसे रूट सरमा औय सोने की रारच भं श्रीमॊि को टू किं
19 ददसम्फय 2012

हं की फीजाऺय की शत्रि ही भॊि मॊि की आत्भा एवॊ कुॊडाकाय मऻस्थर ऩय आहुसत दे ने ऩय भनुष्म सफ प्रकाय
प्राण भाने जाते हं । की स्स्त्रमं को वशीबूत कय रेता हं । वतारा आकृ सत वारे
 माभर ग्रॊथ भं वस्णात हं की श्री मॊि के दशान भाि से कुण्ड ऩय आहुसत दे ने ऩय भनुष्म अतुल्म याजरक्ष्भी को
ही त्रवशेष राब की प्रासद्ऱ हो जाती हं । प्राद्ऱ कयता हं । चतुष्कोण आकृ सत वारे कुण्ड ऩय आहुसत
 मथा-साधा त्रिकोदटतोथेषु स्नात्वा मत्परभश्नुते रबते दे ने ऩय भनुष्म वषाा को उत्ऩन्न कयता हं । त्रिकोण
तत्परभ ् बक्ता, कृ त्वा श्री चिदशानभ ्। आकृ सत वारे कुण्ड ऩय आहुसत दे ने ऩय भनुष्म शिुओॊ को
 त्रवद्रानो ने अऩने अनुबवं भं ऩामा हं दक श्री मॊि भायता हं । गसत को स्तस्म्बत कयता हं । ऩुष्ऩं की आहुसत
अत्मॊत प्रबावशारी मॊि हं , दक दै सनक श्रद्धाऩूवन
ा दे ने ऩय त्रवभर मश एवॊ त्रवजम को प्राद्ऱ कयता हं ।
श्रीमॊि के दशानभाि से शीघ्र ही भनुष्म की भहायस (अथाात त्रफल्व पर) की हत्रव दे कय ऩयभानॊदत्व
भनोकाभनाए ऩूणा होने रगती हं । को प्राद्ऱ हो जाता हं ।

त्रिऩुयतात्रऩनी उऩसनषद भं उल्रेख हं : श्रीत्रवद्या का भहत्व:


श्रीत्रवद्या सास्त्त्ववक उऩासनाओॊ भं सवोऩरय एवॊ सवा
श्री चिॊ मो धेत्रत्त स सदा वेसत। स श्रेद्ष साधना हं । स्जस प्रकाय त्रवसबन्न दे वी-दे वताओॊ की
सकराॊल्रोकानाकषामसत। सवा स्तम्बमसत नीरीमुिॊ चिॊ आयाधना से धन, धान्म, ऩशु सॊऩदा आदद रौदकक
शिुन्भरयमसत। गसतॊ स्तम्बमसत। राऺामुिॊ कृ त्वा ससत्रद्धमाॊ प्राद्ऱ हो जाती हं । रेदकन श्रीत्रवद्या की आयाधना
सकररोकॊ वशीकयोसत। नवरऺजऩॊ कृ त्वा रुरत्वॊ से धन, धान्म इत्मादद बौसतक सुख साधन तो प्राद्ऱ होते
प्राप्नोसत। भृसनकमा वेत्रद्शत कृ त्वा त्रवजमी बवसत। वतुर
ा े ही हं उसके साथ-साथ आत्भ ऻान व ऩयभतत्त्वव की प्रासद्ऱ
हुत्वा सश्रमभतुराॊ प्राप्नोसत। चतुयस्त्रे हुत्वा वृत्रद्शबावसत। बी होती हं ।
त्रिकोणे हुत्वा शिून्भायमसत। गसत स्तम्बमसत् ऩुश्ज्ऩास्ण
हुत्वा त्रवजमी बवसत। भहायसहुावाा ऩयभानन्दसनबायो बवसत। इस त्रवषम भं शास्त्रं भं उल्रेख हं ।

अथाात: जो श्री मॊि के यहस्म को जानता हं वह सकर मिास्स्त बोगो न च ति भोऺो,मिास्स्त भोऺो न च ति बोग्
ब्रह्माण्ड के बूत, बत्रवष्म, वताभान को जानता हं । वह श्रीसुन्दयीसेवतत्ऩयाणाॊ, बोगश्च भोऺश्च कयस्थ एव।
सकर ब्रह्माण्ड को आकत्रषात कयता हं , सवा रोकं को
स्तस्म्बत कयता हं , नीरे थोथे से इस चि का प्रमोग अथाात: जहाॉ बोग है वहाॉ भोऺ नहीॊ, जहाॉ ऩय भोऺ हं
कयने ऩय शिुओॊ को भायता हं , गसतभान ऩदाथं को योकने वहाॉ बोग नहीॊ हो सकता। रेदकन श्री भहारक्ष्भी की सेवा
भं सभथा फनता हं । राऺायस के साथ इसका प्रमोग कयने से बोग व भोऺ दोनं ही सहज भं प्राद्ऱ हो जाते हं ।
से भनुष्म सकर रोकं के प्रास्णमं का वशीकयण कयने भं मदद कायण हं की हजायं वषो से श्री भहारक्ष्भी
सपर होता हं । श्रीमॊि के फीज भॊि का नवराख जऩ की उऩासना का प्रफर भाध्मभ श्री मन्ि ही यहा हं ।
कयने से भनुष्म रुरत्व (सशवत्व अथाात सशव के सभान त्रिऩुयोऩसनषद भं कादद-हादद त्रवद्याओॊ के नाभ से श्रीत्रवद्या
शाऩ दे ने, सॊहाय कयने का साभथ्मा) को प्राद्ऱ कयता हं । का स्ऩद्श उल्रेख सभरता हं । श्रीशॊकयाचामा कृ त सौन्दमा
सभट्टी से वेत्रद्शत (अथाात बुजा भं धायण कयना) कयने ऩय रहयी एवॊ प्रऩॊचसाय आदद ग्रॊथ श्री मॊि के शुद्ध एवॊ
त्रवजमश्री को प्राद्ऱ कयता हं । बग(मोसन) की आकृ सत वारे सास्त्त्ववकता के सवोत्तभ प्रभाण हं ।
20 ददसम्फय 2012

कुछ जानकाय त्रवद्रानं का कथन हं की श्रीत्रवद्या  चाॊदी ऩय सनसभात श्रीमॊि की अऩेऺा सुवणा ऩय सनसभात
गुरुगम्म हं । इस सरए गुरुकृ ऩा के त्रफना प्राण-प्रसतत्रद्षत मा श्रीमॊि का पर कयोिो गुना होता हं ।
असबभॊत्रित श्री मॊि उत्तभ पर नहीॊ दे ते। श्रीआदद गुरु  यत्नसागय ग्रॊथ भं यत्नं ऩय सनसभात सबन्न-सबन्न श्रीमॊि
शॊकयाचामा जी को श्रीत्रवद्या की दीऺा मोगेन्र श्री के परं का वणान सभरता हं ।
गोत्रवन्दऩादाचामा से प्राद्ऱ हुई थी। मोगेन्र श्री  स्जसभं स्पदटक ऩय फने श्रीमॊि को सवाश्रद्ष
े फतामा
गोत्रवन्दऩादाचामा जी को श्रीत्रवद्या की दीऺा श्री गमा हं ।
गौिऩादाचामा के गुरु बगवान दत्तािेम ने स्वमॊ दी थी। त्रवद्रानं का भत हं :
इस प्रकाय श्रीत्रवद्या के अत्मॊत प्राचीन गुय-सशष्म ऩयॊ ऩयामं  बोजऩि ऩय सनसभात मॊि 6 वषा तक प्रबावी यहता है ।
सवाि प्रससद्ध हं ।  ताॊफे भं सनसभात श्रीमॊि 12 वषा तक प्रबावी यहता है ।
सुन्दयीताऩनीम भं उल्रेख हं की स्जस प्रकाय घट, करश  चाॊदी भं सनसभात श्रीमॊि 20 वषा तक प्रबावी यहता है ।
औय कुॊब तीनं शब्दद का एक ही अथा हं उसी प्रकाय मॊि,  औय सुवणा भं सनसभात श्रीमॊि आजीवन प्रबावी यहता है ।
दे वता औय गुरु मह तीनं शब्दद का एक ही हं । कुछ त्रवद्रानो का भत हं
कुछ त्रवद्रानो का भत हं की बोजऩि ऩय सनसभात  बोजऩि ऩय सनसभात मॊि 1 वषा तक प्रबावी यहता है ।
श्रीमॊि त्रवशेष प्रबावी होती हं । क्मोदक शास्त्रं भं वस्णात हं  ताॊफे भं सनसभात श्रीमॊि 2 वषा तक प्रबावी यहता है ।
की "म् बूजद
ा ऩैमज
ा ासत स सवाान्रबते"  चाॊदी भं सनसभात श्रीमॊि 12 वषा तक प्रबावी यहता है ।

श्रीमॊि के तीन प्रभुख प्रकाय हं । औय सुवणा भं सनसभात श्रीमॊि आजीवन प्रबावी यहता है ।

1. भेरुऩृद्ष, 2. कूभाऩद्ष
ृ , 3. बूऩुद्ष। त्रवशेष नोट: हभाये अनुबवं के अनुशाय मन्ि मदद शुद्ध

कुछ त्रवद्रजनं का कथन हं की श्रीमॊि को प्राण- धातु भं सनसभात हो, तेजस्वी भॊिं द्राया असबभॊत्रित हो तो

प्रसतत्रद्षत कयने का असधकायी केवर वही भनुष्म को होता वह आजीवन प्रबावी यहता है , चाहे वह सोने, चाॊदी मा

हं स्जसने श्रीत्रवद्या की मोग्म गुरु से ददऺा सर हो। मोग्म ताॊफे भं ही सनसभात क्मं न हो। एक शुद्ध धातु भं सनसभात

गुरु से ददऺा प्राद्ऱ दकम त्रफना फडे ़ से फडे ़ त्रवद्रान ब्राह्मण एवॊ ऩूणा त्रवसध त्रवधान से भॊिससद्ध एवॊ प्राण-प्रसतत्रद्षत

को बी चाहे वह चायं वेद का ऻाता हो मा ऩूजा-ऩाठ भं दकमा गमा मॊि जफ तक व्मत्रि के ऩूजन स्थान भं

प्रखॊड त्रवद्रान हो उसे बी श्री मॊि को असबभॊत्रित मा प्राण- स्थात्रऩत यहता हं तफ तक वह प्रबावशारी यहते दे खा

प्रसतत्रद्षत कयने का असधकाय नहीॊ हं । मही कायण हं की गमा हं । इसभं जया बी सॊदेह नहीॊ हं । केवर कुछ त्रवशेष

अऻानता वश दकमे गमे इस प्रकायके ऩूजनं के कायण मॊि ऐसे होते हं जो साधना त्रवशेष मा कामा उद्दे श्म की

आज फडे ़ से फडे ़ त्रवद्रान ब्राह्मण के ऩास ऻान तो खुफ सभासद्ऱ के ऩद्ळमात जर भं त्रवसस्जात कयने होते हं । मॊि

होता हं रेदकन भाॊ रक्ष्भी की त्रवशेष कृ ऩा उसके ऩय नहीॊ मदद दकसी कायण से खॊदडत हो जामे , उस ऩय अॊदकत

होती! ये खा, अॊकन, फीज भॊि आदद धूध


ॊ रे हो जामे मा सयरता

 त्रवद्रानं का कथन हं की धासभाक भान्मता के अनुशाय से ददखाई नहीॊ दे ते हो तफ, अथवा दकसी कायण से मॊि

बोजऩि की अऩेऺा ताॊफे ऩय सनसभात श्रीमॊि का पर अशुद्ध हो जामे हाथ से सगय जामे तफ उसे जर भं

सौ गुना होता हं । त्रवसस्जात कयके दस


ू या स्थात्रऩत कयरेना चादहए। मॊि के

 ताॊफे ऩय सनसभात श्रीमॊि की अऩेऺा चाॊदी ऩय सनसभात अशुद्ध, खॊदडत होने मा हाथं से सगयजाने ऩय उसके शुब

श्रीमॊि का पर राख गुना होता हं । प्रबाव भं कभी आने रगती हं ।


21 ददसम्फय 2012

श्रीत्रवद्या के अद्भुत
ु चभत्कायं भं से एक का वणान "शॊकय गमे। दस
ू ये ददन प्रात्कार ब्राह्मण ऩरयवाय ने दे खा, उनके
ददस्ग्वजम" भं सभरता हं जो इस प्रकाय हं । घय भं सवाि सोने के आॊवरे त्रफखये ऩडे ़ हं । इस प्रकाय
जफ आचामा शॊकय अऩने गुरु के महाॊ यहते थे, तफ आचामा शॊकय नं श्रीत्रवद्या की उऩासना से ब्राह्मण ऩरयवाय
गुरुगृह के सनमभ अनुशाय आचामा शॊकय एक ददन दकसी को धनवान फना ददमा।
ब्राह्मण के द्राय ऩय सबऺा के सरए गए। वह ब्राह्मण फहुत
सनधान था, सबऺा भं दे ने के सरए उसके घय भं भुट्ठी बय असधकतय रोगं ने श्रीमॊि को सचत्रित ही दे खा
चावर बी नहीॊ थे। सनधान ब्राह्मण की ऩत्नी ने आचामा होगा, स्जससे मॊि के सनभााण की वास्तत्रवक त्रवसध
शॊकय को एक आवॊरा दे कय योते हुए अऩनी अवस्था सभझना कदठन हं । सचत्रित मॊिं भं हभं केवर उसकी
फतराई। ब्राह्मण ऩत्नी की द्ु खद करुण सनधानता की रम्फाई औय चौिाई ही नज़य आती हं , उचाई नहीॊ होती।
व्मथा सुनकय आचामा शॊकय का रृदम रत्रवत हो गमा। रेदकन वास्तत्रवक रुऩ से मॊि की उॊ चाई बी होती हं जो
आचामा शॊकय ने वहीॊ खडे ़ होकय, करुण त्रवगसरत सचत्त से भुख्मरुऩ से घातु औय ऩत्थयं से फने मॊिं भं ददखाई
श्रीत्रवद्या की असधद्षािी दे वी भाॉ भहारक्ष्भी की स्तुसत ददती हं । इस तयह के मॊि को ऩत्थय ऩय काटकय,
प्रायम्ब की औय आचामा शॊकय की वाणी से अनामास स्पदटक, भयगच, प्रवार, ऩद्मयागभस्ण, इन्रनीरभस्ण,
करुणाऩूवक
ा कोभर कान्त वाक्मं से आकृ द्श हो कय भाॉ नीरकान्तभस्ण इत्मादद यत्नं ऩय दे खने को सभरते हं ।
भहारक्ष्भी आचामा शॊकय के साभने अऩने त्रिबुवन भनोहय इसके अरावा शासरग्राभसशरा, ताम्रऩि, यजत ऩि ओय
रुऩ भं प्रकट हो गई औय कोभर शब्ददं भं कहा, ऩुि सुवणा भं बी मॊि फनामे जाते हं । श्रीमॊि के सनभााण भं बू
"भैने तुम्हाया असबप्राम जान सरमा हं , ऩयन्तु इस सनधान अथवा भेरु दोनं ऩद्धसतमं का उऩमोग होता हं ।
ऩरयवाय ने ऩूवा जन्भं भं ऐसा कोई बी सुकृत, ऩुण्म कामा
नहीॊ दकमा हं स्जससे भं इन्हं धन दे सकूॉ।" श्रीमॊि की त्रवशेषता एवॊ उऩमोसगता
ऩौयास्णक कार से ही दहन्द ू सॊस्कृ सत भं श्रीत्रवद्या
भाॉ भहारक्ष्भीजी के इन वचनं ऩय आचामा शॊकय की उऩासना अत्मासधक प्रचसरत यही हं । मही कायण हं
ने फडे ़ ही त्रवनीत शब्ददं भं भाॉ भहारक्ष्भीजी से सनवेदन की दहन्द ू सॊस्कृ सत भं तफ से रेकय आजतक फडे ़-फडे ़
दकमा की "ऩूवा जन्भ भं इस ब्राह्मण ने ऐसा कोई कामा त्रवद्रान आचामा श्रीत्रवद्या के उऩासक यहे हं ।
सुकृत कामा नहीॊ दकमा हं स्जसके परस्वरुऩ उसे धन-
सम्ऩत्रत्त दी जा सके इससे क्मा हुआ। भेये जैसे सबऺुक
श्रीमॊि भं स्स्थत नौ चिं के सबन्न-सबन्न प्रमोग
को आॊवरे का दान दे कय इसने तो भहान ् ऩुण्म यासश
से राब:
अस्जात कय सरमा हं , इस कायण मह ऩरयवाय अतुर धन
(१) सवाानन्दभम अथाात ् सफ प्रकाय का आनन्द दे ने वारा
सम्ऩत्रत्त का असधकायी हो गमा हं , अत् मदद आऩ प्रसन्न
हं ।
हुई हं तो इस ऩरयवाय को दारयरम से भुकत कय दीस्जमे"
(२) सवा ससत्रद्धप्रद अथाात ् सबी प्रकाय की ससत्रद्धमं को
आचामा शॊकय के इस सनवेदन का भाॉ भहारक्ष्भी खण्डन
प्रदान कयने वारा हं ।
न कय सकीॊ औय प्रसन्न होकय दे वी ने कहा "मही होगा
(३) सवायऺाकाय अथाात ् सबी से यऺा कयने वारा हं ।
आचामा, भं उन्हं प्रचुय सोने के आॊवरे दॊ ग
ू ी।" दे वी के
(४) सवा योगहय अथाात ् सबी योगं का हयण कयने वारा
भुख से इतना सुनने ऩय आचामा शॊकय नं ब्राह्मण ऩरयवाय
हं ।
को शीघ्र धनवान होने का आशीवााद दे कय गुरुगृह रौट
22 ददसम्फय 2012

(५) सवााथा साधक अथाात ् सबी कामं की ससत्रद्ध कयने भध्म भं त्रफन्द ु दपय िभश् उऩय दशाामे गमे आठ
वारा हं । चिं को फनाना चादहए।
(६) सवा सौबाग्मदामक अथाात ् सबी सौबाग्म को प्रदान  श्रीिभ भं सशवजी का कथन हं दक जो भनुष्म सभ
कयने वारा हं । ये खा न सरख कय, सभान भुख न फनाकय श्रीमॊि का
(७) सवा सॊऺोबऺ अथाात ् सॊऺोबण कयने वारा हं । सनभााण कयता हं , उसका सवास्व भं हय रेता हूॉ।
(८) सवााशाऩरयऩूयक अथाात ् सबी आशाओॊ को ऩूयण कयने  त्रवद्रानं का भत हं की स्जस स्थर ऩय स्जस दे वता का
वारा हं । स्थान सनददा द्श दकमा गमा हो, उस स्थान ऩय दे वता
(९) िैरोक्म भोहन अथाात ् तीनोरोक का भोहन कयने का ऩूजन नहीॊ कयने ऩय साधक के भाॊस औय यि
वारा हं । द्राया उस दे वता की ऩायणा होती हं ।
 श्री मॊि के सनभााण के सभम दकसी ऩशु मा
मॊि सनभााण त्रवधान बावावरम्फी जीव की दृत्रद्श नहीॊ ऩिनी चादहए, इस

 मदद श्री मॊि का सनभााण बोजऩि ऩय कयना हो, तो सरए सयका हो कय मॊि का सनभााण कयना चादहए।

तुरसी, अनाय मा भोयऩॊख की करभ से यि चॊदन से मदद कोई व्मत्रि ऩशु के आगे श्री मॊि को सरखता हं ,

मॊि का सनभााण कयना चादहए। ऩीरे यॊ ग हे तु शुद्ध तो वह भन्द-फुत्रद्ध, साधक अॊगऺम से होने वारे ऩाऩ

केसय का प्रमोग कयना चादहए। का बागी होता हं ।

 अद्शगॊध, ससन्दयू मा कुॊकुभ से बी मॊि सरखे जा सकते  बूत बैयव भं उल्रेख हं दक मदद श्री मॊि को फनाते

हं । इसके अरावा मॊि को सुवणा, यजत, ताॊम्र, स्पदटक सभम ऩद्म भं केशय न फनामे। मदद कोई व्मदक

आदद भूल्मवान धातु मा यत्नं ऩय उत्कीणा कयाकय मॊि सनभााण के सभम ऩद्म के केशय के कल्ऩना कयता हं ,

का सनभााण दकमा जा सकता हं । तो बैयव गण मोसगसनमं की सहामता से उसका नाश

 मन्ि के सनभााण हे तु सवा प्रथन त्रिकोण फनाकय उसके कय दे ते हं ।

ऩसत-ऩत्नी भं करह सनवायण हे तु


मदद ऩरयवायं भं सुख-सुत्रवधा के सभस्त साधान होते हुए बी छोटी-छोटी फातो भं ऩसत-ऩत्नी के त्रफच भे करह
होता यहता हं , तो घय के स्जतने सदस्म हो उन सफके नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान
से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा चैतन्म मुि वशीकयण कवच एवॊ गृह करह नाशक दडब्दफी फनवारे एवॊ
उसे अऩने घय भं त्रफना दकसी ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मदद आऩ भॊि
ससद्ध ऩसत वशीकयण मा ऩत्नी वशीकयण एवॊ गृह करह नाशक दडब्दफी फनवाना चाहते हं , तो सॊऩका आऩ
कय सकते हं ।

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23 ददसम्फय 2012

 श्री मॊि को यात्रिकार भं नहीॊ सरखना चादहए। यात्रि- मश की प्रासद्ऱ होती हं ।


कार भं मॊि का सनभााण कयने से दे वी तत्कार साधक  ताम्र के मॊि का ऩूजन कयने से िाॊसत प्राद्ऱ होती हं ।
को असबशाऩ दे ती हं ।  सुवणा के मॊि का ऩूजन कयने से शिु नाश होता हं ।
 अऩयास्जता, कय, वीय औय जवा ऩुष्ऩ भं दे वी सनवास  यजत के मॊि का ऩूजन कयने से साधक का कल्माण
कयती हं । इस सरए इन ऩुष्ऩ से दे वी का ऩूजन दकमा होता हं ।
जा सकता हं ।  स्पदटक के मॊि का ऩूजन कयने से साधक को सबी
 स्वच्छन्द बैयव भं उल्रेख हं दक स्थस्ण्डर के उऩय असबद्श कामं भं सपरता प्राद्ऱ होती हं ।
एक हाथ के फयाफय मॊि का सनभााण कयना चादहए।
मॊि के त्रवनद्श होने ऩय उसका प्रामस्द्ळत
यत्नादद के मॊि फनाने हो तो इच्छानुसाय एक, दो, तीन
 मदद मॊि दग्ध स्पुदटत मा चोय के द्राया अऩरृत हो
अथवा चाय तोरे के यत्न रेकय मन्ि फनवामा जा
जामे, तो साध को एक ददन उऩवास कयके दे वता के
सकता हं । इससे असधक ऩरयभाण के यत्न द्राया मॊि का
भॊि का एक राख जऩ एवॊ जऩ सॊख्मा का दशाॊश
सनभााण कयने से साधक प्रामस्द्ळत का बागी होता हं ।
हवन तथा हवन का दशाॊश तऩाण कयना चादहए। दपय
 त्रिधातु का मॊि फनाना हो तो, सुवणा, ताॊम्र औय यजन
बत्रिबाव से अऩने गुरुदे व की आऻा से ब्राह्मण बोजन
इन त्रिनं धातुओॊ का प्रमोग दकमा जाता हं । स्जसभं
कयामे। कुछ जानकाय एक राख जऩ को एक अमुत
दस बाग सोना (26.315 %), फायह बाग ताॊफा
अथाात दश सहस्त्र कहते हं ।
(31.580%), औय सोरह बाग यजत (42.105%),को
 मदद मॊि के रुद्ऱ-सचि, स्पुदटत मा खॊदडत होने ऩय
एकि कयके मॊि का सनभााण कयना चादहए। त्रिधातु से
उस मॊि को गॊगा आदद ऩत्रवि नददमं के जर भं ,
फने मॊि का ऩूजन कयने से साधक सौबाग्मशारी
तीथा मा सागय भं त्रवसस्जात कयदे ना चादहए। शास्त्रं भं
होता हं औय शीघ्र ही अद्श ससत्रद्धमाॊ प्राद्ऱ होती हं ।
उल्रेख हं की मॊि को त्रवसस्जात न कयके उसे ऩास
 स्पदटक, भयगच, प्रवार, ऩद्मयागभस्ण, इन्रनीरभस्ण,
यखने से साधक की भृत्मु मा त्रवत्रवध द्ु ख होते हं ।
नीरकान्तभस्ण इत्मादद यत्नं से फने श्री मॊि का ऩूजन
कयने से धन-सम्ऩत्रत्त, स्त्री-सॊतान, भान-सम्भान औय

क्मा आऩ दकसी सभस्मा से ग्रस्त हं ?


आऩके ऩास अऩनी सभस्माओॊ से छुटकाया ऩाने हे तु ऩूजा-अचाना, साधना, भॊि जाऩ इत्मादद कयने का सभम नहीॊ
हं ? अफ आऩ अऩनी सभस्माओॊ से फीना दकसी त्रवशेष ऩूजा-अचाना, त्रवसध-त्रवधान के आऩको अऩने कामा भं
सपरता प्राद्ऱ कय सके एवॊ आऩको अऩने जीवन के सभस्त सुखो को प्राद्ऱ कयने का भागा प्राद्ऱ हो सके इस सरमे
गुरुत्व कामाारत द्राया हभाया उद्दे श्म शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा चैतन्म
मुि त्रवसबन्न प्रकाय के मन्ि- कवच एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोचाने का है ।
गुरुत्व कामाारम:
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24 ददसम्फय 2012

श्रीचि ऩादोदक का भाहात्म्म: त्रवसबन्न रव्मं एवॊ धातुओॊ से सनसभात श्री मॊि का
ब्रह्माण्ड भं स्स्थत स्जतने तीथा स्थर हं उन सफके पर।
स्नान से सहस्त्र कोदट गुना असधक पर श्रीचि ऩादोदक स्पदटक श्रीमॊि
के सेवन से सभरता हं । (गॊगा, मभुना, नभादा, गोदावयी, स्पदटक यत्न ऩय उत्कीणा दकमा हुआ श्री मॊि दर
ु ाब भाना
गोभती, ऩुष्कय, प्रमाग, हरयद्राय, वायाणसी, ऋत्रषकेश, जाता हं औय मह सबी रव्मं से असतशीघ्र पर प्रदान
ससन्धु, ये वा, सयस्वती आदद तीथा स्थर कहे जाते हं ।) कयने वारा यत्न है । स्पदटक श्रीमॊि भनुष्म की सबी

श्रीचि के दशान का पर: बौसतक एवॊ आध्मास्त्भक इच्छाओॊ को ऩूणा कयने भं


सभथा हं । मदद दकसी साधक को सौबाग्म से स्पदटक श्री
एक प्राण-प्रसतत्रद्षत चैतन्ममुि दकमे गमे "श्री मॊि"
मॊि प्राद्ऱ हो जाए तो दकसी त्रवद्रान से उसको असबभॊत्रित
के त्रवषम भं त्रवद्रानं का कथन हं दक, त्रवसध-त्रवधान से
कयवारे। स्पदटक श्री मॊि यॊ क को बी वह याजा फनाने भं
सौ मऻ कयने से जो पर प्राद्ऱ होता हं वहीॊ पर श्रीचि
सभथा हं । स्पदटक श्री मॊि का ऩूजन कयने से भनुष्म को
का एक फाय दशान कयने से सभरता हं । सोरह भहादानं
धन की कबी कभी नहीॊ यहती।
के कयने से जो ऩुण्म पर प्राद्ऱ होता हं वहीॊ पर श्रीचि
ऩायद श्रीमॊि
का एक फाय दशान कयने से सभरता हं । साढे ़ तीन
शास्त्रं भं ऩायद धातु को बगवान सशव का वीमा कहा गमा
कोदट(अथाात साढ़े तीन कयोि) तीथं भं स्नान कयने से
है । शुद्ध ऩायद से सनसभात श्री मॊि असत दर
ु ब
ा तथा
जो पर प्राद्ऱ होता हं , वहीॊ पर श्रीचि का एक फाय
प्रबावशारी होते है । धन प्रासद्ऱ हे तु उत्तभ भाना जाता हं ।
दशान कयने से सभरता हं । मदद भनुष्म वास्तव भं सुखी
स्वणा श्रीमॊि
औय सृभद्र होना चाहता है तो उसे श्रीमॊि स्थाऩना अवश्म
कयनी चादहमे। स्वणा धातु भं सनसभात श्रीमॊि सॊऩूणा सुख एवॊ ऐद्वमा को
प्रदान कयने वारा हं । एसे श्री मॊि को हभंशा सतजोयी भं
असबभॊत्रित श्रीमॊि
ऐसे यखना चादहए दक ऩरयवाय के अरावा दकसी अन्म
आज फाजाय भं यत्नं के फने श्री मॊि सयरता से प्राद्ऱ हो
व्मत्रि का स्ऩशा न हो।
जाते हं रेदकन मह सफ वे ससद्ध, प्राण-प्रसतत्रद्षत मा
यजत श्रीमॊि
चैतन्ममुि नहीॊ होते। जफ श्री मॊि को ऩूणा शास्त्रंि
चाॊदी भं सनसभात श्रीमॊि भुख्मत् व्मावसासमक प्रसतद्षानं भं
त्रवसध-त्रवधान से तेजस्वी भॊिं द्राया असबभॊत्रित मा प्राण-
स्थात्रऩत कयने से त्रवशेष राब की प्रासद्ऱ होती हं ।
प्रसतत्रद्षत दकमा जाता हं तबी वह ऩूणा रुऩ से प्रबावशारे
ताम्र श्रीमॊि
एवॊ सुख-सभृत्रद्ध दे ने वारा होता है । मह आवश्मक नहीॊ
ताॊफे भं सनसभात श्रीमॊि त्रवशेष् घय, दक
ु ान, ओदपस
दक श्री मॊि दर
ु ब
ा रव्मं मा यत्नं का फना हो। मदद श्रीमॊि
इत्मादद व्मवसामीक स्थर ऩय ऩूजा स्थान ऩय त्रवशेष रुऩ
शुद्ध धातु भं सनसभात एवॊ अखॊदडत हं औय मॊि शास्त्रंि
से दकमा जाता हं । ताॊफे भं सनसभात श्रीमॊि का प्रसतददन
त्रवसध-त्रवधान से असबभॊत्रित मा प्राण-प्रसतत्रद्षत हं तो वह
ऩूजन कयने से आसथाक स्स्थती भं सुधाय होता हं ।
श्री मॊि ताॊफे ऩय ही क्मो न फना हो वह सनस्द्ळत ऩूणा रुऩ
कामास्थर ऩय ग्राहक की रत्रद्श भं आमे ऐसे स्थात्रऩत कयने
से प्रबावशारी ही यहता हं । जफ तक मॊि भॊिं द्राया ससद्ध
से कायंफाय भं वृत्रद्ध होती हं । केवर शास्त्रंभं वस्णात
नहीॊ होता तफ तक वह श्री प्रदाता अथाात धन-सभृत्रद्ध
ऩदाथं ऩय ही मॊि का सनभााण कयना श्रेद्ष हं , रकडी,
प्रदान कयने वारा नहीॊ फनता!
कऩिे मा ऩत्थय भूल्महीन रव्म आदद ऩय श्री मॊि का
सनभााण नहीॊ कयना चदहए।
25 ददसम्फय 2012

त्रवद्या प्रासद्ऱ हे तु सयस्वती कवच औय मॊि


आज के आधुसनक मुग भं सशऺा प्रासद्ऱ जीवन की भहत्वऩूणा
आवश्मकताओॊ भं से एक है । दहन्द ू धभा भं त्रवद्या की असधद्षािी दे वी
सयस्वती को भाना जाता हं । इस सरए दे वी सयस्वती की ऩूजा-अचाना
से कृ ऩा प्राद्ऱ कयने से फुत्रद्ध कुशाग्र एवॊ तीव्र होती है ।
आज के सुत्रवकससत सभाज भं चायं ओय फदरते ऩरयवेश एवॊ
आधुसनकता की दौड भं नमे-नमे खोज एवॊ सॊशोधन के आधायो ऩय
फच्चो के फौसधक स्तय ऩय अच्छे त्रवकास हे तु त्रवसबन्न ऩयीऺा,
प्रसतमोसगता एवॊ प्रसतस्ऩधााएॊ होती यहती हं , स्जस भं फच्चे का
फुत्रद्धभान होना असत आवश्मक हो जाता हं । अन्मथा फच्चा
ऩयीऺा, प्रसतमोसगता एवॊ प्रसतस्ऩधाा भं ऩीछड जाता हं , स्जससे
आजके ऩढे सरखे आधुसनक फुत्रद्ध से सुसॊऩन्न रोग फच्चे को भूखा
अथवा फुत्रद्धहीन मा अल्ऩफुत्रद्ध सभझते हं । एसे फच्चो को हीन
बावना से दे खने रोगो को हभने दे खा हं , आऩने बी कई सैकडो
फाय अवश्म दे खा होगा?
ऐसे फच्चो की फुत्रद्ध को कुशाग्र एवॊ तीव्र हो, फच्चो की
फौत्रद्धक ऺभता औय स्भयण शत्रि का त्रवकास हो इस सरए
सयस्वती कवच अत्मॊत राबदामक हो सकता हं ।
सयस्वती कवच को दे वी सयस्वती के ऩयॊ भ दर
ू ब
ा तेजस्वी
भॊिो द्राया ऩूणा भॊिससद्ध औय ऩूणा चैतन्ममुि दकमा जाता हं । स्जस्से
जो फच्चे भॊि जऩ अथवा ऩूजा-अचाना नहीॊ कय सकते वह त्रवशेष राब
प्राद्ऱ कय सके औय जो फच्चे ऩूजा-अचाना कयते हं , उन्हं दे वी सयस्वती
की कृ ऩा शीघ्र प्राद्ऱ हो इस सरमे सयस्वती कवच अत्मॊत राबदामक होता हं ।
सयस्वती कवच औय मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।

सयस्वती कवच : भूल्म: 550 औय 460 सयस्वती मॊि :भूल्म : 370 से 1450 तक
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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26 ददसम्फय 2012

मन्ि का चमन कयने भं यखं सावधासनमाॊ।


 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी

 मॊि एक ब्दरेड की तयह होते हं , स्जस प्रकाय एक नमे ब्दरेड के इस्तेभार भं असावधानी मा चूक होने ऩय हभाये शयीय
का कोई बी दहस्सा कट मा काटा जा सकता हं , मदद दत्रू षत मा जॊग रगा ब्दरेड हो तो उस्से कटने ऩय शयीय त्रवषाि
मा सेस्प्टक हो सकता हं , उसी प्रकाय मॊि के चमन भं असावधानी मा अशुत्रद्ध के कायण भनुष्म सॊकटो से ग्रस्त हो सकता हं ।
 अशुद्ध धातु भं सनसभात मन्ि मा आधा-अधुया अशुद्ध अॊकन मा उत्तकीणा दकमा हुवा मन्ि स्जसकी ये खाएॊ, त्रफन्द ु अऺय
इत्मादद स्ऩस्ट ददखा नहीॊ दे ते हो एसे मन्ि अशुद्ध कहाॊ जाता हं । दकसी साधना मा काभनाऩूसता हे तु इस प्रकाय के
मन्िं का प्रमोग सवादा हासनकायक होता हं , स्जसके कायण साधक को अऩने उद्दे श्म भं असपरता, कद्श, सॊकट आदद
त्रवऩदा से सम्भुस्खन होना ऩि सकता हं ।
 मन्ि भं बरे ही दकसी दे वी दे वता की भूसता मा सचि नहं रेदकन, उसभं सॊफॊसधत दे वी-दे वता के फीज भॊिं अऺयं एवॊ
अॊको का अॊकन होता हं । दे वी-दे वता के फीज भन्ि एवॊ अॊको को अॊकन कयने का बी त्रवसध-त्रवधान होता हं ।
 त्रवद्रानं का भत हं की प्रासचन कार से ही मन्िं को सोने -चाॊदी-ताॊफा आदद धातुओॊ ऩय अथवा बोजऩि ही अॊदकत
दकमा जाता हं । क्मोदक सोने-चाॊदी-ताॊफं ऩय सनसभात मॊि ही ऩूणा प्रबावशारी होते हं । कागज ऩय सरखे मा छऩे हुवे
मन्िं का प्रबाव नहीॊ के फयाफय होता हं । धातु की प्रेट ऩय स्माही इत्मादद से अॊदकत दकमे गमे मन्िं का प्रबाव
बी नहीॊ के फयाफय होता हं ।
 कुछ त्रवद्रानं ने अऩने अनुबवं भं ऩामा हं की प्रास्स्टक, शीशा, कागज, कऩडे ़ ऩय छऩे हुवे मा स्माही से फनाए हुवे
मन्िं का प्रबाव अल्ऩ सभम अथाात कुछ ददनं तक ही यहता हं । उसके फाद उनका प्रबाव ऺीण होने रगता हं !
 मन्ि को बूसभ, टाईल्स इत्मादद ऩय अॊदकत कयना स्वमॊ के सरए गड्ढा़ खोदने के सभान कद्शकायी होता हं ।
 मदद कोई व्मत्रि ताॊफं भं बी मन्ि फनवाने भं असभथा हो तो उसे स्वमॊ मा दकसी त्रवद्रान से शुब भुहूता भं बोजऩि
ऩय आवश्मक मन्ि को अद्शगॊध आदद सॊफॊसधत रव्मं से शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से अॊदकत कयवाना चादहए। मन्ि को
अॊदकत कयवाने के ऩद्ळमात उसे शुब भुहूता भं ऩूणा त्रवसध-त्रवधान से प्राण-प्रसतत्रद्षत कयना असत आवश्मक हं , अन्मथा
मन्ि जाग्रत नहीॊ होते हं ।
 मन्ि का चमन कयते सभम मन्ि का शुब भुहूता भं शुद्ध धातु भं सनसभात होना, उसऩय अॊदकत ये खा, सचि, फीजाऺय
एवॊ अॊकं का स्ऩद्श रुऩ से ददखना असत आवश्मक हं , उसी के साथ भं मन्ि को शुब भुहूता भं ऩूणा त्रवसध-त्रवधान से
प्राण-प्रसतत्रद्षत कयना बी असत आवश्मक हं । इस सरए इन सबी फातं का ध्मान यखते हुवे मन्ि का चमन दकमा
जामे तो मन्ि ऩूणा रुऩ से परदामी ससद्ध होते हं , स्जस भं जया बी सॊदेह नहीॊ हं ।

यत्न एवॊ उऩयत्न


हभाये महाॊ सबी प्रकाय के यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्दध हं । ज्मोसतष कामा से जुडे़ फधु/फहन व यत्न

व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न व अन्म साभग्रीमा व अन्म सुत्रवधाएॊ उऩरब्दध हं ।

गुरुत्व कामाारम सॊऩका : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785.


27 ददसम्फय 2012

काभनाऩूसता हे तु दर
ु ब
ा साधना (बाग:1)
 ऩॊ.श्री बगवानदास त्रिवेदी जी,
हरयरा गणऩसत मन्ि साधना
साधना हे तु साभग्री:- श्री हरयरा गणेश मन्ि (हरयरा गणऩसत मन्ि), एवॊ श्री
गणेश जी की प्रसतभा(हल्दी की सभरजामे तो असत उत्तभ), हल्दी, घी का दीऩ,
धूऩफत्ती, अऺत
भारा: भूॊगे मा हल्दी की
सभम: प्रात्कार
ददशा: ऩूवा
आसन: रार
वस्त्र: ऩीरा
ददन: कृ ष्ण ऩऺ की चतुथॉ से शुक्र ऩऺ की चतुथॉ तक
जऩ सॊख्मा: चाय राख
प्रदाद : गुि
भॊि:–
ॐ हुॊ गॊ ग्रं हरयरागणऩत्मे वयद सवाजन रृदम स्तॊबम स्तॊबम स्वाहा ||
Om Hum Gan Gloun Haridraganapatye Varad Sarvajan Hruday Stambhay
Stambhay Swaha
त्रवसध: प्रात्कार स्नानइत्मादद से सनवृत्त होकय स्वच्छ वस्त्र धायण कय रार आसन ऩय
फैठ जामे। श्री हरयरा गणेश मन्ि एवॊ गणेशजी के त्रवग्रह को एक रकिी की चौकी ऩय ऩीरा वस्त्र त्रफछा कय स्थात्रऩत
कयदे । गणेशजी को हल्दी, रार मा ऩीरे पूर गणेशजी को अत्रऩत
ा कयं । प्रसाद भं गुि चढा़ए। धूऩ-दीऩ इत्मादद से
त्रवसधवत ऩूजन कयं , साधन कार भं धूऩ-दीऩ चारु यखं। भन्ि जऩ प्रायॊ ब कयने से ऩूवा जऩ का त्रवसनमोग अवश्म कयरं।
जऩ की सभासद्ऱ ऩय हल्दी सभसश्रत अऺत से दशाॊश हवन कयके ब्राह्मण बोजन कयामे।
भन्ि जऩ से ऩूवा गणेशजी का इस भॊि से ध्मान कयं ।
ध्मान भन्ि :
ऩाशाॊक शौभोदकभेक दन्तॊ कयै दाधानॊ कनकासनस्थभ ् हारयराखन्ड प्रसतभॊ त्रिनेिॊ ऩीताॊशुकॊयात्रि गणेश भीडे ॥
Paashank Shoumodakamek Dantam Karairdadhanam Kanakasanastham Haridrakhand Pratimam Trinetram
Peetanshukanratri Ganesha Meede.
शुक्र ऩऺ की चतुथॉ को हल्दी का रेऩ शयीय ऩय रगाकय स्नान कयं । गणेशजी का ऩूजन कये औय ८००० भन्ि
से तऩाण कयके, घी से १०१ फाय हवन कये । कुॊवायी कन्मा को बोजन कयामे औय मथाशत्रि दस्ऺणा दे कय प्रसन्न कयं ।
मन्ि एवॊ प्रसतभा को अऩने ऩूजा स्थान भं स्थात्रऩत कयदे ।
प्रभुख प्रमोजन: १. शिु भुख फॊध कयने हे तु। २. जर, अस्ग्न, चोय एवॊ दहॊ सक जीवं से यऺा हे तु। ३. वॊध्मा स्त्री को
सॊतान प्रासद्ऱ हे तु।
28 ददसम्फय 2012

त्रवजम गणऩसत मन्ि साधना


साधना हे तु साभग्री:- श्री गणेश मन्ि (सॊऩूणा फीज भॊि सदहत), एवॊ स्पदटक की गणेश की प्रसतभा, रार चॊदन,
केसय घी का दीऩ, धूऩफत्ती, अऺत, जर ऩाि, कनेय के पूर
भारा: भूॊगे मा यि चॊदन की
सभम: ददन भं दकसी बी सभम (प्रात्कार उत्तभ होता हं )
ददशा: ऩूवा
आसन: रार
वस्त्र: रार
ददन: ऩाॊच ददन भं (दकसी बी फुधवाय से साधना प्रायॊ ब कयं )
जऩ सॊख्मा: सवा राख
प्रदाद : गुि
भॊि:–
ॐ वय वयदाम त्रवजम गणऩतमे नभ्।
Om Var Varaday Vijay Ganapatye Namah |

त्रवसध:–
प्रात्कार स्नानइत्मादद से सनवृत्त होकय स्वच्छ वस्त्र धायण कय रार आसन
ऩय फैठ जामे।
श्री गणेश मन्ि एवॊ गणेशजी के त्रवग्रह को एक रकिी की चौकी ऩय
रार वस्त्र त्रफछा कय स्थात्रऩत कयदे । गणेशजी को केसय व यि चॊदन का
सतरक कये , प्रसाद भं गुि चढा़ए। धूऩ-दीऩ इत्मादद से त्रवसधवत ऩूजन कयं ,
साधन कार भं धूऩ-दीऩ चारु यखं। २१ कनेय के पूर(कनेय अप्राद्ऱ हो तो रार गुराफ मा कोइ बी रार पूर) गणेशजी
को अत्रऩत
ा कयं । गणेश जी को हय ऩुष्ऩ अत्रऩत
ा कयते सभम स्जस कामा भं त्रवजम प्राद्ऱ कयनी हो उस कामा की ऩूसता हे तु
गणेश जी से श्रद्धा बाव से प्राथना कयं ।
दपय भन्ि जऩ प्रायॊ ब कयं । ऩाॊच ददन भं सवा राख जऩ ऩूणा हो जाने ऩय, छठ्ठे ददन ऩाॊच कुवारयकाओॊ को
बोजन कयामे औय मथाशत्रि दस्ऺणा दे कय प्रसन्न कयं । एसा कयने से साधक की काभनाएॊ ऩूणा होती हं । मन्ि एवॊ भूसता
को अऩने ऩूजा स्थान भं स्थात्रऩत कयदं , स्जस कामा उद्दे श्म के सरमे प्रमोग दकमा हो उस कामा हे तु जफ आवश्मक हो तो
मन्ि को सॊफॊसधत कामा के सभम साथ रेकय जामे। कामा उद्दे श्म भं त्रवजमश्री की प्रासद्ऱ के ऩद्ळमात मन्ि को फहते ऩानी
भं त्रवसस्जात कयदे । गणेश प्रसतभा का सनमसभत ऩूजन कय सकते हं ।

प्रभुख प्रमोजन:
१. कोटा -केश आदद त्रववादं भं सपरता हे तु।
२. शिु का प्रबाव फढ़ गमा हो तो उस ऩय त्रवजम प्राद्ऱ कयने हे तु।
३. मदद दकसी कामा उद्दे श्म भं सपरता प्राद्ऱ कयने हे तु ।
29 ददसम्फय 2012

कल्माणकायी गणऩसत मन्ि साधना


साधना हे तु साभग्री:- श्री गणेश ससद्ध मन्ि एवॊ स्पदटक की गणेश की प्रसतभा, रार चॊदन, केसय घी का दीऩ,
धूऩफत्ती, अऺत, कनेय के पूर
भारा: भूॊगे मा यि चॊदन की
सभम: ददन भं दकसी बी सभम (प्रात्कार उत्तभ होता हं )
ददशा: ऩूवा
आसन: रार
वस्त्र: रार
ददन: ऩाॊच ददन, ग्मायाददन मा इस्क्कस ददन भं (दकसी बी फुधवाय से साधना
प्रायॊ ब कयं )
जऩ सॊख्मा: सवा राख
प्रदाद : गुि
भॊि:–
गॊ गणऩतमे नभ्।
Gan Ganapatye Namah |

त्रवसध:–
दकसी बी फुधवाय को प्रात्कार स्नानइत्मादद से सनवृत्त होकय स्वच्छ वस्त्र
धायण कय रार आसन ऩय फैठ जामे।
श्री गणेश ससद्ध मन्ि एवॊ गणेशजी के त्रवग्रह को एक रकिी की चौकी ऩय रार
वस्त्र त्रफछा कय स्थात्रऩत कयदे । गणेशजी को केसय व यि चॊदन का सतरक कये ,
प्रसाद भं गुि चढा़ए। धूऩ-दीऩ इत्मादद से त्रवसधवत ऩूजन कयं , साधन कार भं
धूऩ-दीऩ चारु यखं। सॊबव हो तो गणेशजी को ऩुष्ऩ अत्रऩत
ा कयं ।
स्जतने ददनं भं साधना सॊऩन्न कयनी हो उसी के अनुरुऩ सॊकल्ऩ कयके भन्ि जऩ प्रायॊ ब कयं । सनमसभत उसी सभम भं
भन्ि जऩ कये ।
साधना सम्ऩन्न होने ऩय दकसी ब्राह्मण मा कुभारयका कं बोजन कयामे औय मथाशत्रि दस्ऺणा वस्त्र आदद दे कय प्रसन्न
कयं ।
मन्ि औय गणेश प्रसतभा को अऩने ऩूजा स्थान भं स्थात्रऩत कयदं , औय सनमसभत उि भन्ि की एक भारा जऩ कयं । उि
साधना से साधक का बत्रवष्म भं ससद्ध होने वारे कामा त्रफना दकसी ऩये शानी से सनत्रवाध्न सॊऩन्न हो जामे गा।

प्रभुख प्रमोजन:
१. सबी कामा सनत्रवाघ्न सॊऩन्न कयने हे तु।
२. भहत्वऩूणा कामं भं आने वारी फाधा एवॊ त्रवध्नं के नाश हे तु।
३. ऩरयवाय की सुख-सभृत्रद्ध हे तु।
30 ददसम्फय 2012

त्रवसबन्न मॊि के राब


 सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
श्रीदग
ु ाा मॊि बी प्रकाय के सॊकट मा फाधा की आशॊका होने ऩय इस

श्रीदग
ु ाा मॊि शत्रि एवॊ बत्रि के साथ सभस्त मॊि का सनमसभत ऩूजन कयने से व्मत्रि को सबी प्रकाय

साॊसारयक सुखं को प्रदान कयने वारा सवाासधक रोकत्रप्रम की फाधा से भुत्रि सभरती हं औय धन-धान्म की प्रासद्ऱ

मॊि हं । अशुब शत्रिमं के दष्ु प्रबाव से फचने के सरए भाॊ होती हं ।

दग
ु ाा की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता है । श्रीदग
ु ाा श्रीदग
ु ाा मॊि की ऩूजा एवॊ स्थाऩना के सरए आस्द्वन

मॊि का ऩूजन व्मत्रि को धभा, अथा, काभ औय भोऺ इन एवॊ चैि नवयािी त्रवशेष राब प्रद हं । क्मोदक नवयाि को

चाय की प्रासद्ऱ भं बी सहामक ससद्ध होता हं । आद्य् शत्रि की उऩासना का भहाऩवा भाना गमा हं ।

शास्त्रोि वणान हं की दे वी दग
ु ाा के श्रीदग
ु ाा मॊि के गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म: भहान शत्रि दग
ु ाा मॊि

ऩूजन औय दशान कयने भाि से दे वी प्रसन्न होकय अऩने (अॊफाजी मॊि) | आद्य शत्रि दग
ु ाा फीसा मॊि (अॊफाजी फीसा

बिं की असबद्श इच्छाएॊ ऩूणा होती हं । भाॉ दग


ु ाा के बिो मॊि) | नव दग
ु ाा मॊि | चाभुॊडा फीसा मॊि (नवग्रह मुि)

की भाॉ स्वमॊ यऺा कय उन ऩय अऩनी कृ ऩा रद्शी वषााती हं बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं

औय बिं को उन्नती के सशखय ऩय जाने का भागा असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय

प्रसस्त कयती हं । भाॉ दग


ु ाा के बिो को दे वी की शीघ्र सकते हं । Visit us on www.gurutvakaryalay.com

कृ ऩा प्रासद्ऱ हे तु श्रीदग
ु ाा मॊि को अऩने घय, दक
ु ान, ओदपस नवाणा मॊि (चाभुॊडा मॊि)
इत्मादद भं ऩूजा स्थन भं स्थात्रऩत कयना चादहमे। मदद कोई व्मत्रि द:ु ख, दरयरता औय बम से
त्रवद्रानो का भत हं की श्रीदग
ु ाा मॊि के ऩूजन से अत्मासधक ऩये शान हो, औय चाहकय बी मा ऩयीश्रभ के
भनुष्म को वाक् ससत्रद्ध, सॊतान प्रासद्ऱ, शिु ऩय त्रवजम, उऩयाॊत बी उसी वाॊस्च्छत सपरता प्राद्ऱ नहीॊ हो यही हं
ऋण-योग आदद ऩीडा़ से भुत्रि प्राद्ऱ होती हं औय व्मत्रि तो उसे नवाणा मॊि औय भॊि का प्रमोग कयना चादहए।
को जीवन भं सॊऩूणा सुखं की प्रासद्ऱ हो इस के सरमे मह दकसी बी प्रकाय के जाद-ू टोना, योग, बम, बूत, त्रऩशाच्च,
श्रीदग
ु ाा मॊि अचूक एवॊ ससत्रद्धदामक भाना गमा हं । दकसी डादकनी, शादकनी आदद से भुत्रि दक प्रासद्ऱ के सरमे भाॊ

शादी सॊफॊसधत सभस्मा


क्मा आऩके रडके-रडकी दक आऩकी शादी भं अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हं मा उनके वैवादहक
जीवन भं खुसशमाॊ कभ होती जायही हं औय सभस्मा असधक फढती जायही हं । एसी स्स्थती होने ऩय
अऩने रडके-रडकी दक कॊु डरी का अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनके वैवादहक सुख को कभ कयने
वारे दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयं ।
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31 ददसम्फय 2012

दग
ु ाा के नवाणा मॊि का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन-अचान  बगवान सशव एक भाि एसे दे व हं स्जसे बोरे बॊडायी
सवादा परदामक होता है । कहा जाता हं , क्मोदक बगवान सशव थोङी सी ऩूजा-
दग
ु ाा दख
ु ं का नाश कयने वारी हं । इससरए अचाना से ही अऩने बिं ऩय प्रसन्न हो जाते हं ।
नवयात्रि के ददनो भं जफ उनकी ऩूजा ऩूणा श्रद्धा औय भानव जासत की उत्ऩत्रत्त बी बगवान सशव से भानी
त्रवद्वास से दक जाती हं , तो भाॊ दग
ु ाा दक प्रभुख नौ जाती हं ।
शत्रिमाॉ जाग्रत हो जाती हं , स्जससे नवं ग्रहं को  अत् बगवान सशव की कृ ऩा प्राद्ऱ कयना प्रत्मेक सशव
सनमॊत्रित कयती हं , स्जससे नौग्रहं से प्राद्ऱ होने वारे बि के सरए ऩयभ आवश्मक हं । सशवजी की कृ ऩा
असनद्श प्रबाव से यऺा होकय ग्रह जनीत ऩीडाएॊ बी शाॊत प्रासद्ऱ हे तु सशव मॊि का ऩूजन एवॊ दशान अत्मॊत सयर
हो जाती हं । भाध्मभ हं ।
नवाणा भॊि: ऐॊ ह्रीॊ क्रीॊ चाभुॊडामै त्रवच्चे  बगवान सशव का सतो गुण, यजो गुण, तभो गुण
नव अऺयं वारे इस अद्भुत
ु नवाणा भॊि के हय तीनं ऩय एक सभान असधकाय हं । सबी सोभवाय सशव
अऺय भं दे वी दग
ु ाा दक एक-एक शत्रि सभामी हुई हं , को त्रप्रम हं , इस सरए सशव मॊि को स्थाऩना एवॊ
स्जस का सॊफॊध एक-एक ग्रहं से हं । ऩूजा-अचाना के सरए सोभवाय का त्रवशेष भहत्व हं ,
मदद कोई भनुष्म अत्मासधक कद्श मा सॊकटं से इस ददन व्रत यखने से मा सशव मॊि का ऩूजन कयने
ग्रस्त हो तो उसे प्रसतददन स्नान इत्माददसे शुद्ध होकय से सशवजी की त्रवशेष कृ ऩा प्राद्ऱ होती हं ।
नवाणा मॊि के सम्भुख नवाणा भॊि का जाऩ 108 दाने दक गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म :भहाभृत्मुज
ॊ म मुि सशव

भारा से कभ से कभ तीन भारा जाऩ अवश्म कयना खप्ऩय भाहा सशव मॊि । सशव ऩॊचाऺयी मॊि । सशव मॊि ।
अदद्रतीम सवाकाम्म ससत्रद्ध सशव मॊि । श्री द्रादशाऺयी रुर ऩूजन
चादहए।
मॊि बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं
गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म: नवाणा फीसा मॊि बी
असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय
उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं असधक
सकते हं । Visit us on www.gurutvakaryalay.com
जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय सकते हं ।
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सशव मॊि भहाभृत्मुन्जम मॊि
दहॊ द ू सॊस्कृ सत भं सशव को भनुष्म के कल्माण का भहाभृत्मुॊजम मॊि का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन कयने
प्रतीक भाना जाता हं । भान्मता हं की सशव शब्दद के भनुष्म के सकर योग, शोक, बम इत्मादद का नाश होकय
उच्चायण मा दशान भाि से ही भनुष्म को ऩयभ आनॊद की भनुष्म को स्वास्थ्म एवॊ आयोग्मता की प्रासद्ऱ होती हं ।
प्रासद्ऱ होती हं ।  कुछ त्रवद्रानं का अनुबव यहा हं की जो भनुष्म
 स्जस प्रकाय से बगवान सशव बायतीम सॊस्कृ सत को सनमसभत भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन कयता हं , उस
दशान ऻान के द्राया सॊजीवनी प्रदान कयने वारे दे व हं , व्मत्रि को अकार भृत्मु का बम नहीॊ यहता हं ।
सशव मॊि को बी उसी प्रकाय से ऩूजन एवॊ दशान भाि  भहाभृत्मुॊजम भॊि का जऩ कयते हुवे भहाभृत्मुॊजम मॊि
से ऩयभ कल्माण कायी भाना जाता हं । ऩय जर की घाय सगयाकय उस जर को योग सनवृत्रत्त
 बगवान सशव का ऩूजन अनादद कार से दहन्द ू हे तु शयीय के योग वारे दहस्से ऩय सछडकने मा सेवन
सॊस्कृ सत भं सशवसरॊग भं साकाय भूसता के रुऩ एवॊ मॊि कयने से शीघ्र स्वास्थ्म राब होता हं । त्रवशेष
का ऩूजन कयने का त्रवधान धभा-शास्त्रं भं वस्णात हं । ऩरयस्स्थतीमं भं भॊि ससद्ध भहाभृत्मुॊजम मॊि ऩय
32 ददसम्फय 2012

असबभॊत्रित दकमे गमे जर का घय भं सछिकाव कयने भहाभृत्मुॊजम मॊि की त्रवशेष भॊिं से ऩूजा मा साधना
से सॊऩूणा ऩरयवाय के सदस्मं को स्वास्थ्म राब होता कयने की आवश्मिा हो तो उसे दकमा जा सकता हं ।
हं ।  मदद घयका कोइ सदस्म योग से ऩीदित हं। मा उसकी
 मदद दकसी बी प्रकाय के अरयद्श की आशॊका हो, तो सेहत फाय फाय खयाफ हो यही हं, तो स्वास्थ्म राब के
उसके सनवायण एवॊ शास्न्त के सरमे शास्त्रं भं सम्ऩूणा सरए भहाभृत्मुॊजम से श्रेद्ष अन्म कोई उऩाम नहीॊ हं ।
त्रवसध-त्रवधान से भहाभृत्मुॊजम भॊि के जऩ कयने का  बमॊकय भहाभायी से रोग भय यहे हं, तो मॊि प्रमोग
उल्रेख दकमा गमा हं । औय भॊि का जऩ अऩने ऩरयवाय की सुयऺा हे तु कयना
 स्जस्से व्मत्रि भृत्मु ऩय त्रवजम प्रासद्ऱ का वयदान दे ने चादहए।
वारे दे वो के दे व भहादे व प्रसन्न होकय अऩने बि के  आकस्स्भक दघ
ु ट
ा ना की आशॊका होने ऩय भहाभृत्मुॊजम
सभस्त योगो का हयण कय व्मत्रि को योगभुि कय मॊि का प्रमोग अवश्म कयना चादहए।
उसे दीघाामु प्रदान कयते हं ।  याजबम अथाान्त सयकाय से सॊफॊसधत कोइ ऩीडा मा
 मदद दकसी कायण वश व्मत्रि भहाभृत्मुॊजम के जऩ कद्श हं, तो भहाभृत्मुॊजम मॊि का प्रमोग दकमा जा
कयने भं असभथा हो तो उसे भहाभृत्मुॊजम मॊि का सकता हं ।
ऩूजन अवश्म कयना चादहए।  साधक का भन धासभाक कामं नहीॊ रग यहा हं, तफ
 त्रवद्रानं का अनुबव यहा हं की भहाभृत्मुॊजम मॊि, भहाभृत्मुॊजम मॊि राबकायी ससद्ध होता हं ।
भहाभृत्मुॊजम भॊि के सभान ही परदामक हं ।  शिु से सॊफॊसधत ऩये शासन एवॊ क्रेश हं यहे हो तो
 मदद मॊि एवॊ भॊि दोनं का प्रमोग एक साथ दकमा भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन अवश्म दकमा जा सकता
जाम तो भनुष्म को चभत्कायी ऩरयणाभ प्राद्ऱ हो हं ।
सकते हं इसभं जया बी सॊदेह नही हं ।  मदद ज्मोसतष के अनुशाय भायक ग्रहो द्राया प्रसतकूर
 शास्त्रं भं भृत्मु बमको त्रवऩत्रत्त मा सॊकट भाना गमा (अशुब) पर प्राद्ऱ हो यहं हं तो भहाभृत्मुॊजम मॊि का
हं , एवॊ शास्रो के अनुशाय त्रवऩत्रत्त मा भृत्म के सनवायण ऩूजन कयना चादहए।
के दे वता सशव हं ।  मदद जन्भ, भास, गोचय औय दशा, अॊतदा शा,
 इस सरए भहाभृत्मुॊजम मॊि के ऩूजन से व्मत्रि को स्थूरदशा आदद भं ग्रहऩीिा होने की आशॊका हं, तफ
त्रवऩत्रत्त मा अकार भृत्म के बम से भुत्रि सभरती हं । भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन कयना चादहए।
 कुॊडारी भेराऩक भं मदद नािीदोष, षडाद्शक आदद दोष
भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन मा प्रमोग कफ कयना हं, तो भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन सवाश्रद्ष
े उऩाम हं ।
चादहए…  एक से असधक अशुब ग्रह योग एवॊ शिु स्थान(षद्शभ
भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन स्नान इत्मादद से सनवृत बाव) भं हं, तफ भहाभृत्मुॊजम मॊि का ऩूजन कयना
होकय प्रसतददन बी कय सकते हं । भहाभृत्मुॊजम मॊि के चादहए।
ऩूजन से भनुष्म के वताभान सभम के कद्श तो दयू होते ही  दीघाामु की काभना के सरमे हय ऩरयवाय भं
हं साथ भं बत्रवष्म भं आने वारे कद्शंका बी स्वत् ही भहाभृत्मुॊजम मॊि की स्थाऩना अत्मॊत राबप्रद होती
सनवायण हो जाता हं । भहाभृत्मुॊजम मॊि का सनमसभत हं । भहाभृत्मुॊजम मॊि के ऩूजन व उऩासना के तयीके
ऩूजन कयने से फहुतसी फाधाएॉ दयू होती ऐसा हभने हभाये आवश्मकता के अनुरूऩ हो सकते हं ।
अनुबवो से जाना हं । ऩयॊ तु मदद त्रवशेष स्स्थसतमं भं
33 ददसम्फय 2012

गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म :भहाभृत्मुज


ॊ म मुि सशव नकायात्भक उजाा एवॊ त्रवचायं को दयू कयने औय
खप्ऩय भाहा सशव मॊि । भहाभृत्मुज
ॊ म कवच मॊि । सकायात्भक ऊजाा एवॊ त्रवचायं की वृत्रद्ध कृ ष्ण मॊि
ॊ म ऩूजन मॊि बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी
भहाभृत्मुज राबप्रद हं ।
मॊिं के त्रवषम भं असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट  श्री कृ ष्ण मॊि की उऩासना से व्मत्रि दक सभस्त
ऩय प्राद्ऱ कय सकते हं । Visit us on भनोकाभनाएॉ ऩूणा होती हं । श्री कृ ष्ण की कृ ऩा प्रासद्ऱ
से व्मत्रि के जीवन भं दकसी बी प्रकाय के सॊकट नहीॊ
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आते।
कृ ष्ण मॊि
गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : सॊतान गोऩार मॊि ।
बगवान त्रवष्णु के अवताय श्रीकृ ष्ण का आशीवााद श्री कृ ष्ण अद्शाऺयी भॊि ऩूजन मॊि । कृ ष्ण फीसा मॊि बी
औय कृ ऩा प्राद्ऱ कयने के सरए कृ ष्ण मॊि का ऩूज सवाश्रद्ष
े उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं असधक
उऩामं भं से एक हं । मह बगवान कृ ष्ण का मॊि हं । जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय सकते हं ।
 कृ ष्ण मॊि का सनमसभत ऩूजन कयने से व्मत्रि को Visit us on www.gurutvakaryalay.com
जीवन भं सबी फाधाओॊ एवॊ कद्शं से भुत्रि सभरती हं
एवॊ धन-वैबव, बौसतक सुख-साधनं की प्रासद्ऱ होती धनदा मॊि
हं ।  व्मवसामीक स्थान ऩय धनदा मॊि को शुब भुहूता भं
 कृ ष्ण मॊि के ऩूजन एवॊ साधना से व्मत्रि को जीवन स्थात्रऩत कयने से व्मत्रि को दकसी बी प्रकाय से
भं सफकुछ प्राद्ऱ हो जाता हं , उसे धीये -धीये सबी आसथाक सॊकट, कद्श नहीॊ यहता।
ससत्रद्धमाॊ प्राद्ऱ होने रगती हं । व्मत्रि का अत्भत्रवद्वास  मदद ऩहरे से सॊकट चरी आयही हं तो उससे शीघ्र
फढ़ने रगता हं उसके व्मत्रित्व भं सनखाय आने रगता भुत्रि सभरती हं ।
है । व्मत्रि की फोरने की करा भं सनखाय आता हं ,  त्रवद्रानं का अनुबव हं की धनदा मॊि को व्मवसामीक
उसकी वाणी भं भधुयता एवॊ दस
ू यं को आकत्रषात कयने स्थान की चौखट ऩय स्थात्रऩत कयने से ग्राहक खीॊचे
वारी सम्भोहन शत्रिमं का त्रवकास होने रगता हं । चरे आते हं ।
 कृ ष्ण मॊि के सनमसभत ऩूजन से व्मत्रि सबी कामं भं  धनदा मॊि को सतजोयी गल्रा इत्मादद धन यखने के
सपरता प्राद्ऱ कयता है । श्री कृ ष्ण मॊि त्रवजम प्रासद्ऱ स्थान ऩय यखने से धन की कबी कभी नहीॊ यहती।
हे तु बी उत्तभ ससद्ध हो सकता हं ।  मदद दकसी व्मत्रि को दरयरता ऩीछा नहीॊ छोि यही
 जीवन की त्रवऩयीत ऩरयस्स्थसतमं भं उसचत भागा का हो, सनयॊ तय आसथाक स्स्थती कभजोय फनी यहती हो, तो
चमन कयने हे तु श्री कृ ष्ण मॊि अत्मॊत राबप्रद है । धनदा मॊि को एक रार कऩडे ़ भं श्रीपर के साथ भं

धन वृत्रद्ध दडब्दफी
धन वृत्रद्ध दडब्दफी को अऩनी अरभायी, कैश फोक्स, ऩूजा स्थान भं यखने से धन वृत्रद्ध होती हं स्जसभं कारी हल्दी,
रार- ऩीरा-सपेद रक्ष्भी कायक हकीक (अकीक), रक्ष्भी कायक स्पदटक यत्न, 3 ऩीरी कौडी, 3 सपेद कौडी, गोभती
चि, सपेद गुॊजा, यि गुॊजा, कारी गुॊजा, इॊ र जार, भामा जार, इत्मादी दर
ु ब
ा वस्तुओॊ को शुब भहुता भं तेजस्वी

भॊि द्राया असबभॊत्रित दकम जाता हं । भूल्म भाि Rs-730


34 ददसम्फय 2012

फाॊधकय फहते ऩानी भं फहा ददमा जामे तो उसकी गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : बाग्म वधाक मॊि ।
दरयरता मा सॊकट बी उसी के साथ भं चरे जाते हं । सवा कामा फीसा मॊि । कामा ससत्रद्ध मॊि । सुख सभृत्रद्ध मॊि ।
गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : व्माऩाय वृत्रद्ध कायक सवा रयत्रद्ध ससत्रद्ध प्रद मॊि । सवा सुख दामक ऩंसदठमा मॊि ।

मॊि । व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि । व्माऩाय वधाक मॊि । व्माऩायो- ऋत्रद्ध ससत्रद्ध दाता मॊि । सवा ससत्रद्ध मॊि । सुख शाॊसत दामक

न्नसत कायी ससद्ध मॊि बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊि बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं

मॊिं के त्रवषम भं असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय

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श्रीभहाकारी मॊि
कल्ऩवृऺ मॊि त्रवसबन्न तॊि प्रमोग एवॊ शभशान साधना भं कारी
कल्ऩवृऺ मॊि के त्रवषम भं त्रवद्रानं का कथन हं , मदद मॊि उऩासना का अत्मासधक भहत्व हं । कारी शब्दद का श्रवण
शुद्ध धातु भं सनसभात हं, त्रवद्रान ब्राह्मणं द्राया ऩूणा त्रवसध- मा स्भयण होते ही दे वी भहाकारी का शिु सॊहायक स्वरुऩ
त्रवधान भं शुब भुहूता भं प्राण-प्रसतत्रद्षत दकमा गमा हो तो का स्भयण हो जाता हं । मही कायण हं की भाॉ भहाकारी
मह असॊबव हं दक कल्ऩवृऺ मॊि के प्रबाव से दकसी के मॊि का प्रमोग भुख्म रुऩ से शिु नाश, भोहन, भायण,
व्मत्रि की कोई भनोकाभनाएॊ अऩूणा यह जामे। उच्चाटन इत्मादद कामं भं दकमा जाता है ।
 ऩौयास्णक भान्मताओॊ के अनुशाय इस धया ऩय एक  जफ शिुओॊ का प्रकोऩ असधक हो गमा हं, औय अन्म
कल्ऩवृऺ नाभ एसा वृऺ हं , स्जससे जो बी भाॊगा सबी उऩाम, मॊि भॊि टोटके आदद असफ़र हो यहे हो,
जामे, मा भनोकाभना की जामे तो वह अवश्म ऩूणा तफ श्रीभहाकारी मन्ि का प्रमोग अवश्म कयना
होती हं । चादहए। क्मोदक शिु सॊहाय मा भुत्रि हे तु भाॉ भहाकारी
 कल्ऩवृऺ के इसी गुणं को सॊकसरत कय कल्ऩवृऺ की त्रवसध-वत उऩासना अभोघ है ।
मॊि के रुऩ भं सनसभात दकमा गमा हं । जो भनुष्म की  श्रीभहाकारी मन्ि के दै सनक ऩूजन एवॊ दशान से
सभस्त भनोकाभनाओॊ को शीघ्र ऩूणा कयने भं सभथा साधक के सबी अरयद्श, त्रवध्न, फाधाओॊ का स्वत :ही
हं । नाश होने रगता हं ।
 कल्ऩवृऺ मॊि का त्रवस्तृत वणान जैन धभा-गॊथं भं  फडे ़ से फडे ़ शिु का प्रकोऩ बी शाॊत होने रगता हं ।
दकमा गमा हं । दे वी भहाकारी के उऩासकं के सरमे श्रीभहाकारी मन्ि

भॊि ससद्ध दर
ु ब
ा साभग्री
हत्था जोडी- Rs- 370 घोडे की नार- Rs.351 भामा जार- Rs- 251
ससमाय ससॊगी- Rs- 370 दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550 इन्र जार- Rs- 251
त्रफल्री नार- Rs- 370 भोसत शॊख- Rs- 550 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251
GURUTVA KARYALAY
Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785,
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35 ददसम्फय 2012

त्रवशेष फ़रदामी ससद्ध होता है ।  स्जन रोगो को व्मवसाम-नौकयी भं त्रवऩयीत ऩरयणाभ


 दकसी बी भाह की अद्शभी इस श्रीभहाकारी मन्ि की प्राद्ऱ हो यहे हं, ऩारयवारयक तनाव, आसथाक तॊगी, योगं
स्थाऩन औय साधना उत्तभ भानी जाती है । से ऩीिा हो यही हो एवॊ व्मत्रि को अथक भेहनत कयने
गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : श्भशान कारी ऩूजन के उऩयाॊत बी नाकाभमाफी, द:ु ख, सनयाशा प्राद्ऱ हो यही
मॊि । दस्ऺण कारी ऩूजन मॊि । सॊकट भोसचनी कासरका ससत्रद्ध हो, तो एसे व्मत्रिमो की सभस्मा के सनवायण हे तु
मॊि बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं चतुथॉ के ददन मा फुधवाय के ददन श्री गणेशजी की
असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय त्रवशेष ऩूजा-अचाना कयने का त्रवधान शास्त्रं भं फतामा
सकते हं । Visit us on www.gurutvakaryalay.com हं ।
 स्जसके पर से व्मत्रि की दकस्भत फदर जाती हं
श्री गणेश मॊि औय उसे जीवन भं सुख, सभृत्रद्ध एवॊ ऐद्वमा की प्रासद्ऱ
गणेश मॊि सवा प्रकाय की ऋत्रद्ध-ससत्रद्ध प्रदाता एवॊ सबी होती हं । स्जस प्रकाय श्री गणेश जी का ऩूजन अरग-
प्रकाय की उऩरस्ब्दधमं दे ने भं सभथा है , क्मोकी श्री गणेश अरग उद्दे श्म एवॊ काभनाऩूसता हे तु दकमा जाता हं , उसी
मॊि के ऩूजन का पर बी बगवान गणऩसत के ऩूजन के प्रकाय श्री गणेश मॊि का ऩूजन बी अरग-अरग
सभान भाना जाता हं । हय भनुष्म को को जीवन भं सुख- उद्दे श्म एवॊ काभनाऩूसता हे तु अरग-अरग दकमा जाता
सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ एवॊ सनमसभत जीवन भं प्राद्ऱ होने वारे सकता हं ।
त्रवसबन्न कद्श, फाधा-त्रवघ्नं को नास के सरए श्री गणेश  श्री गणेश मॊि के सनमसभत ऩूजन से भनुष्म को
मॊि को अऩने ऩूजा स्थान भं अवश्म स्थात्रऩत कयना जीवन भं सबी प्रकाय की ऋत्रद्ध-ससत्रद्ध व धन-सम्ऩत्रत्त
चादहए। श्रीगणऩत्मथवाशीषा भं वस्णात हं ॐकाय का ही की प्रासद्ऱ हे तु श्री गणेश मॊि अत्मॊत राबदामक हं ।
व्मि स्वरूऩ श्री गणेश हं । इसी सरए सबी प्रकाय के शुब श्री गणेश मॊि के ऩूजन से व्मत्रि की साभास्जक ऩद-
भाॊगसरक कामं औय दे वता-प्रसतद्षाऩनाओॊ भं बगवान प्रसतद्षा औय कीसता चायं औय पैरने रगती हं ।
गणऩसत का प्रथभ ऩूजन दकमा जाता हं । स्जस प्रकाय से त्रवद्रानं का अनुबव हं की दकसी बी शुब कामा को
प्रत्मेक भॊि दक शत्रि को फढाने के सरमे भॊि के आगं ॐ प्रायॊ ऩ कयने से ऩूवा मा शुबकामा हे तु घय से फाहय जाने
(ओभ ्) आवश्म रगा होता हं । उसी प्रकाय प्रत्मेक शुब से ऩूवा गणऩसत मॊि का ऩूजन एवॊ दशान कयना शुब
भाॊगसरक कामं के सरमे बगवान ् गणऩसत की ऩूजा एवॊ परदामक यहता हं । जीवन से सभस्त त्रवघ्न दयू
स्भयण असनवामा भाना गमा हं । इस ऩौयास्णक भत को होकय धन, आध्मास्त्भक चेतना के त्रवकास एवॊ
सबी शास्त्र एवॊ वैददक धभा, सम्प्रदामं ने गणेश जी के आत्भफर की प्रासद्ऱ के सरए भनुष्म को गणेश मॊि का
ऩूजन हे तु इस प्राचीन ऩयम्ऩया को एक भत से स्वीकाय ऩूजन कयना चादहए।
दकमा हं ।  गणऩसत मॊि को दकसी बी भाह की गणेश चतुथॉ मा
 श्री गणेश मॊि के ऩूजन से व्मत्रि को फुत्रद्ध, त्रवद्या, फुधवाय को प्रात: कार अऩने घय, ओदपस,
त्रववेक का त्रवकास होता हं औय योग, व्मासध एवॊ व्मवसामीक स्थर ऩय ऩूजा स्थर ऩय स्थात्रऩत कयना
सभस्त त्रवध्न-फाधाओॊ का स्वत् नाश होता है । श्री शुब यहता हं ।
गणेशजी की कृ ऩा प्राद्ऱ होने से व्मत्रि के भुस्श्कर से गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : रक्ष्भी गणेश मॊि |
भुस्श्कर कामा बी आसान हो जाते हं । गणेश मॊि | गणेश मॊि (सॊऩूणा फीज भॊि सदहत) |
गणेश ससद्ध मॊि | एकाऺय गणऩसत मॊि | हरयरा
36 ददसम्फय 2012

गणेश मॊि बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय
त्रवषम भं असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ साइट ऩय सकते हं । Visit us on www.gurutvakaryalay.com
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रक्ष्भीकुफेय धन आकषाण मॊि
श्री भहारक्ष्भी मॊि  श्रीमॊि को सभस्त प्रकाय के श्रीमॊिं भं सवाश्रद्ष
े भाना
 धन दक दे वी रक्ष्भी हं जो भनुष्म को धन, सभृत्रद्ध गमा है औय कुफेय मॊि को दे वताओॊ भं धन के दे वता
एवॊ ऐद्वमा प्रदान कयती हं । अथा(धन) के त्रफना भनुष्म कुफेय जी का सफसे प्रबावशारी मॊि भाना जाता हं
जीवन द्ु ख, दरयरता, योग, अबावं से ऩीदडत होता हं , इस मॊि के ऩूजन से अऺम धन कोष की प्रासद्ऱ होती
औय अथा(धन) से मुि भनुष्म जीवन भं सभस्त हं औय भनुष्म के सरए नवीन आम के स्रोत फनते हं ।
सुख-सुत्रवधाएॊ बोगता हं । प्रसतददन रक्ष्भीकुफेय धन आकषाण मॊि का ऩूजन एवॊ
 श्री भहारक्ष्भी मॊि के ऩूजन से भनुष्म की जन्भं दशान कयने से व्मत्रि को जीवन भं धन औय ऐद्वमा
जन्भ की दरयरता का नाश होकय, धन प्रासद्ऱ के प्रफर की कबी बी कभी नहीॊ होती है ।
मोग फनने रगते हं , उसे धन-धान्म औय रक्ष्भी की  त्रवद्रानं ने अऩने अनुबवं भं ऩामा हं की जो भनुष्म
वृत्रद्ध होती हं । अऩने गृहस्थ जीवन भं धन, वैबव, ऐद्वमा, सुख-
 श्री भहारक्ष्भी मॊि के सनमसभत ऩूजन एवॊ दशान से सभृत्रद्ध, व्माऩाय भं सपरता, त्रवदे श राब, याजनीसत भं
धन की प्रासद्ऱ होती है औय मॊि जी सनमसभत उऩासना सपरता, नौकयी भं ऩदौस्न्न्त आदद की काभना यखता
से दे वी रक्ष्भी का स्थाई सनवास होता है । हं तो उसके सरए श्री रक्ष्भीकुफेय धन आकषाण मॊि
 श्री भहारक्ष्भी मॊि भनुष्म दक सबी बौसतक काभनाओॊ सवाश्रष
े मॊि हं । भनुष्म को रक्ष्भीकुफेय धन आकषाण
को ऩूणा कय धन ऐद्वमा प्रदान कयने भं सभथा हं । मॊि के ऩूजन से जीवन के सबी ऺेि भं सुख-सभृत्रद्ध
अऺम तृतीमा, धनतेयस, दीवावरी, गुरु ऩुष्माभृत मोग एवॊ सौबाग्म की प्राद्ऱ होने रगती है ।
यत्रवऩुष्म इत्मादद शुब भुहूता भं मॊि की स्थाऩना एवॊ  मदद दकसी व्मत्रि को व्माऩाय भं मदद व्माऩाय भं ऩूणा
ऩूजन का त्रवशेष भहत्व हं । ऩरयश्रभ एवॊ रगने से कामा कयने ऩय बी असधक राब
की प्रासद्ऱ नहीॊ हो यही हो, व्माऩाय भॊदा चर यहा हो
गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) मा फाय-फाय राब के स्थान ऩय हासन हो यही हो तो
। श्री मॊि (भॊि यदहत) । श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सदहत) । उसे रक्ष्भीकुफेय धन आकषाण मॊि को अवश्म अऩने
श्री मॊि (फीसा मॊि) । श्री मॊि श्री सूि मॊि । श्री मॊि व्मवसामीक स्थान ऩय स्थात्रऩत कयना चादहए। स्जससे
(कुभा ऩृद्षीम) । रक्ष्भी फीसा मॊि । श्री श्री मॊि (श्रीश्री व्माऩाय भं फाय-फाय होने वारे घाटे मा नुकसान से
रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि) । शीघ्र ही राब प्राद्ऱ होने के मोग फनने रगते हं ।
अॊकात्भक फीसा मॊि । भहारक्ष्भमै फीज मॊि । भहारक्ष्भी
फीसा मॊि । रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि । रक्ष्भी दाता गणेश रक्ष्भी मॊि
फीसा मॊि । रक्ष्भी गणेश मॊि । रक्ष्भी कुफेय धनाकषाण  प्राण-प्रसतत्रद्षत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-दक
ु ान-
मॊि। ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि । कनक धाया मॊि । ओदपस-पैक्टयी भं ऩूजन स्थान, गल्रा मा अरभायी
वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी भं स्थात्रऩत कयने व्माऩाय भं त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता
मॊि)। बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं हं । मॊि के प्रबाव से बाग्म भं उन्नसत, भान-प्रसतद्षा
37 ददसम्फय 2012

एवॊ व्माऩय भं वृत्रद्ध होती हं एवॊ आसथाक स्स्थभं सुधाय  इस कनकधाया मॊि दक ऩूजा अचाना कयने से ऋण
होता हं । औय दरयरता से शीघ्र भुत्रि सभरती हं । व्माऩाय भं
 गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थात्रऩत कयने से बगवान उन्नसत होती हं , फेयोजगाय को योजगाय प्रासद्ऱ होती हं ।
गणेश औय दे वी रक्ष्भी का सॊमुि आशीवााद प्राद्ऱ होता  जैसे श्री आदद शॊकयाचामा द्राया कनकधाया स्तोि दक
हं । श्री गणेश रक्ष्भी मॊि के सनमसभत ऩूजन एवॊ यचना कुछ इस प्रकाय की गई हं , दक स्जसके श्रवण
दशान से व्मत्रि के सकर त्रवध्नं एवॊ द्ु ख दरयरताका एवॊ ऩठन कयने से आस-ऩास के वामुभॊडर भं त्रवशेष
नाश होता हं । अरौदकक ददव्म उजाा उत्ऩन्न होती हं । दठक उसी
 स्जस प्रकाय बगवान गणेश के नाभ स्भयण औय प्रकाय से कनकधाया मॊि अत्मॊत दर
ु ब
ा मॊिो भं से एक
दशान भाि से व्मत्रि के सकर त्रवघ्नं, सॊकट, आदद मॊि हं स्जसे भाॊ रक्ष्भी दक प्रासद्ऱ हे तु अचूक प्रबावा
फाधाओॊ का स्वत् ही नाश होता हं , उसी प्रकाय दे वी शारी भाना गमा हं ।
रक्ष्भी के स्भयण औय दशान भाि से व्मत्रि का  कनकधाया मॊि को त्रवद्रानो ने स्वमॊससद्ध तथा सबी
दब
ु ााग्म सौबाग्म भं फदर जाता हं उसके सभस्त दख
ु ् प्रकाय के ऐद्वमा प्रदान कयने भं सभथा भाना हं ।
दरयरता का स्वत् ही नाश होता हं । जगद्गरु
ु शॊकयाचामा ने दरयर ब्राह्मण के घय कनकधाया
 गणेश रक्ष्भी मॊि के ऩूजन से ऩरयवाय भं सुख-शाॊसत स्तोि के ऩाठ से स्वणा वषाा कयाने का उल्रेख ग्रॊथ
एवॊ सभृत्रद्ध का आगभन होने रगता हं मदह कायण हं शॊकय ददस्ग्वजम भं सभरता हं ।
गणेश रक्ष्भी मॊि की भदहभा अऩयॊ ऩाय हं । कनकधाया भॊि:- ॐ वॊ श्रीॊ वॊ ऐॊ ह्रीॊ-श्रीॊ क्रीॊ कनक धायमै
स्वाहा'
कनकधाया मॊि
 आज के बौसतक मुग भं हय व्मत्रि असतशीघ्र सभृद्ध कुफेय मॊि
फनना चाहता हं । कनकधाया मॊि दक ऩूजा अचाना  आज के दौय भं हय व्मत्रि की चाहता दक उसके ऩास
कयने से व्मत्रि के जन्भं जन्भ के ऋण औय दरयरता अऩाय धन-सॊऩत्रत्त हो। उसके ऩाय दसु नमा का हय ऐशो-
से शीघ्र भुत्रि सभरती हं । मॊि के प्रबाव से व्माऩाय भं आयाभ भौजुद हो, उसे कबी दकसी चीज की कभी न
उन्नसत होती हं , फेयोजगाय को योजगाय प्रासद्ऱ होती हं । हो। एसे रोगो के सरमे कुफेय मॊि एक प्रकाय से
 कनकधाया मॊि अत्मॊत दर
ु ब
ा मॊिो भं से एक मॊि हं चभत्कायी मॊि है कुफेय मॊि।
स्जसे भाॊ रक्ष्भी दक प्रासद्ऱ हे तु अचूक प्रबावा शारी  कुफेय मॊि के ऩूजन से स्वणा राब, यत्न राब, ऩैतक

भाना गमा हं । कनकधाया मॊि को त्रवद्रानो ने सम्ऩत्ती एवॊ गिे हुए धन से राब प्रासद्ऱ दक काभना
स्वमॊससद्ध तथा सबी प्रकाय के ऐद्वमा प्रदान कयने भं कयने वारे व्मत्रि के सरमे कुफेय मॊि अत्मन्त
सभथा भाना हं । सपरता दामक होता हं । एसा शास्त्रोि वचन हं । कुफेय
 आज के मुग भं हय व्मत्रि असतशीघ्र सभृद्ध फनना मॊि के ऩूजन से एकासधक स्त्रोि से धन का प्राद्ऱ
चाहता हं । धन प्रासद्ऱ हे तु प्राण-प्रसतत्रद्षत कनकधाया होकय धन सॊचम होता हं ।
मॊि के साभने फैठकय कनकधाया स्तोि का ऩाठ कयने  कुफेय मॊि धन असधऩसत धनेश कुफेय का मॊि है , इस
से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । सरमे कुफेय मॊि के प्रबाव से मऺयाज कुफेय प्रसन्न
होकय अतुर सम्ऩत्रत्त का वयदान दे ते हं ।
38 ददसम्फय 2012

 धभा शास्त्रं भं वस्णात हं रॊकासधऩसत यावण ने बगवान फगराभुखी मॊि


भहादे व से कुफेय मॊि प्राद्ऱ कय उसका त्रवसध-त्रवधान से दहन्द ू धभा भं दे वी फगराभुखी दसभहात्रवद्या भं आठवीॊ
ऩूजन दकमा था, मही कायण हं की यावण नं भहात्रवद्या हं । फगराभुखी दे वी स्तम्बन की दे वी हं । शास्त्रं
दे वासधयाज कुफेय को प्रशन्न कय सरमा था स्जसके भं वस्णात हं की सभग्र ब्रह्माण्ड की शत्रि एक होकय बी
कायण ही उसका याज्म ऩूणा रुऩ से सभृद्ध औय भाॊ फगराभुखी का भुकाफरा कयने भं असभथा हं ।
वैबवशारी था। कुफेय मॊि के प्रताऩ से ही यावणने ऩूयी फगराभुखी की उऩासना से शिुओॊ का नाश, वाद-त्रववाद
रॊका सोने की फनाई थी। इस सरए धन-सॊऩत्रत्तकी भं त्रवजम, वाकससत्रद्ध की प्रासद्ऱ हे तु त्रवशेष रुऩ से की
काभना कयने वारे भनुष्म को कुफेय मॊि का ऩूजन जाती हं ।
अवश्म कयना चादहए।  फगराभुखी मॊि के ऩूजन से ऻात-अऻात सबी प्रकाय
 रक्ष्भी प्रासद्ऱ हे तु उयोि मॊि के अरावा अन्म मॊि बी के शिुओॊ से साधक की यऺा होती हं । दे वी
त्रवशेष प्रबावशारी होते हं । स्जस मॊिं का महाॊ फगाराभुखी फडे ़-फडे ़ शिुओॊ को बी नद्श कयने भं सभथा
सभावेश नहीॊ दकमा गमा हं अत् उसकी भहत्वता का हं ।
कभ होना मा वह कभ प्रबावी हं एसा त्रफल्कुर नहीॊ  फगराभुखी मॊि ऩय त्रवशेष साधना द्राया शिु की फुत्रद्ध
हं , केवर महाॊ सभम के अबाव भं एवॊ ऩाठको के को स्तस्म्बत कयके उसे ऩयास्जत दकमा जा सकता हं ।
शीघ्र भागादशान हे तु केवर अनुबूत मॊिं का सभावेश  फगराभुखी मॊि से शिुओॊ ऩय त्रवजम प्रासद्ऱ एवॊ
दकमा गमा हं । इस्च्छत सपरता प्राद्ऱ की जा सकती हं ।

भॊि ससद्ध मॊि


गुरुत्व कामाारम द्राया त्रवसबन्न प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय (चाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे
त्रवसबन्न प्रकाय की सभस्मा के अनुसाय फनवा के भॊि ससद्ध ऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ चैतन्म मुि दकमे
जाते है . स्जसे साधायण (जो ऩूजा-ऩाठ नही जानते मा नही कसकते) व्मत्रि त्रफना दकसी ऩूजा अचाना-
त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते है . स्जस भे प्रसचन मॊिो सदहत हभाये वषो के अनुसॊधान द्राया
फनाए गमे मॊि बी सभादहत है . इसके अरवा आऩकी आवश्मकता अनुशाय मॊि फनवाए जाते है . गुरुत्व
कामाारम द्राया उऩरब्दध कयामे गमे सबी मॊि अखॊदडत एवॊ २२ गेज शुद्ध कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 टच
शुद्ध ससरवय (चाॊदी) एवॊ 22 केये ट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है . मॊि के त्रवषम भे असधक जानकायी के
सरमे हे तु सम्ऩका कये
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39 ददसम्फय 2012

 फगराभुखी मॊि शिु एवॊ दद्श


ु शत्रिमं से यऺा हे तु उऩासना भं भॊि के जाऩ से ऩूवा फगराभुखी कवच का
त्रवशेष रुऩ से राबकायी मॊि हं । ऩाठ कयना चादहए।
  फगराभुखी दे वी के ऩूजन भं ऩीरे वस्त्र, ऩीरे ऩुष्ऩ,
 कुछ त्रवद्रानं का अनुबव हं की भॊि ससद्ध फगराभुखी ऩीरी हल्दी की भारा एवॊ केशय आदद का उऩमोग
मॊि भानहानी, अकार भृत्मु, रिाई-झगडे ़, आकस्स्भक सवाश्रद्ष
े है । त्रवद्रानं का अनुबव हं की मदद फगराभुखी
दघ
ु ट
ा ना आदद से यऺा कयता हं औए शिु की स्जह्वा मॊि त्रऩत्तर भं सनसभात कय असबभॊत्रित कयने से वह
वाणी को स्तम्बन कयने के सरए फगराभुखी मॊि को अत्मॊत प्रबावशारी होता हं । गुरुत्व कामाारम द्राया
सवाश्रद्ष
े भाना है । आऩ त्रऩत्तर एवॊ ताम्र दोनं भं सनसभात फगराभुखी मॊि
 कुछ जानकायं का भानना हं की फगराभुखी मॊि के प्राद्ऱ कय सकते हं ।
त्रवशेष प्रमोग से बूत-प्रेत, त्रऩशाच आदद फाधाओॊ का त्रवशेष नोट: भाॊ फगराभुखी के ऩूजन मा साधना से ऩूवा
बी नाश होता है । अऩने कामा उद्दे श्म भं वाॊस्च्छत दकसी मोग्म गुरु मा जानकाय से सराह-त्रवभशा कयरं।
सपरता के सरए कोई बी व्मत्रि फगराभुखी मॊि का क्मोदक ऩूजन मा साधना भं कोई बी बूर-चूक आदद होने
ऩूजन कय सकता हं । ऩय असतशीघ्र त्रवऩरयत ऩरयणाभं की प्राद्ऱ होने के उदाहयण
 दकसी साधायण कामा की ससत्रद्ध के सरए फगराभुखी हभायं सभऺ आते यहते हं ।
भॊि के 10,000 जऩ एवॊ तथा असाध्म कामा की
ससत्रद्ध के सरए 1,00,000 भॊि का जाऩ कयना चादहए। गामिी मॊि
दकसी कामा दक ससत्रद्ध हे तु मा फगराभुखी दे वी की दहन्द ू धभाग्रॊथं भं उल्रेख हं की दे वी गामिी सबी प्रकाय
के ऻान औय त्रवऻान की जननी है । इससरए तो स्जन
भॊि ससद्ध दर
ु ब
ा साभग्री वेदं को सभस्त त्रवद्याओॊ का खजाना भाना जाता हं , चायं
हत्था जोडी- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 वेदं को दे वी गामिी के ऩुि भाने जाते हं । मदह कायण हं ,

ससमाय ससॊगी- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 के दे वी गामिी को वेदं की भाता अथाात "वेदभाता" कहा
गमा हं । साभान्मत् दे वी के गामिी भॊि की भदहभा एवॊ
त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450
प्रबाव से प्राम् हय दहन्द ु धभा को भानने वारे रोग
कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450,
ऩरयसचत हं ।
दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900  गामिी भॊि को "गुरु भॊि" के रुऩ भे जाना जाता है ।
भोसत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900 स्जस प्रकाय दहन्द ु धभा भं गामिी भन्ि सबी भॊिं भं

भामा जार- Rs- 251, 551, 751 सवोच्च है औय सफसे प्रफर शत्रिशारी भॊि हं , उसी
प्रकाय गामिी मॊि बी प्रफर शत्रिशारी मॊि हं ।
इन्र जार- Rs- 251, 551, 751
 गामिी मॊि के सनमसभत ऩूजन एवॊ दशान से भनुष्म
धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ Rs-550)
को सबी ससत्रद्ध प्राद्ऱ होने रगती हं ।
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751  गामिी की मॊि भदहभा का वणान शब्ददं भं कयना
GURUTVA KARYALAY असॊबव हं । गामिी मॊि के ऩूजन से आत्भ ऻान की
Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785,
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, प्रासद्ऱ व सूक्ष्भ फुत्रद्ध का त्रवकास होता हं । व्मत्रि के
gurutva.karyalay@gmail.com
40 ददसम्फय 2012

सकर ऩाऩं का नाश होता हं , उसके बौसतक अबाव जीवन भं सबी प्रकाय के सुख प्राद्ऱ कय सकता हं ।
दयू होने रगते हं । हनुभान जी अऩने बिं के सबी सॊकटं को दयू कयने
 गामिी मॊि को स्थात्रऩत कयने से बूत-प्रेत, तॊि फाधा, भं सभथा हं इस सरए उन्हं सॊकटभोचन कहाॊ जाता
चोट, भायण, भोहन, उच्चाटन, वशीकयण, स्तॊबन, हं ।
काभण-टू भण, इत्मादद उऩरवं का नाश होकय सवा गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : हनुभान मॊि ।
सुखं की प्रासद्ऱ होती हं । योग आदद के सनवायण हे तु हनुभान ऩूजन मॊि । भारुसत बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं
बी गामिी मॊि त्रवशेष राबकायी हं । सबी मॊिं के त्रवषम भं असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ
गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : गामिी मॊि । श्री साइट ऩय प्राद्ऱ कय सकते हं । Visit us on
गामिी मॊि सॊऩूट । गामिी फीसा मॊि । गामिी मॊि www.gurutvakaryalay.com

(नवग्रह मुि) । सॊकट सनवायण गामिी मॊि बी उऩरब्दध


श्री हनुभान मॊि
हं । नोट: हभायं सबी मॊिं के त्रवषम भं असधक जानकायी  श्री हनुभान मॊि शास्त्रं भं उल्रेख हं की श्री हनुभान
आऩ हभायी वेफ साइट ऩय प्राद्ऱ कय सकते हं । Visit us on जी को बगवान सूमद
ा े व ने ब्रह्मा जी के आदे श ऩय
www.gurutvakaryalay.com हनुभान जी को अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते
हुए आशीवााद प्रदान दकमा था, दक भं हनुभान को
सॊकट भोचन मॊि सबी शास्त्र का ऩूणा ऻान दॉ ग
ू ा। स्जससे मह तीनोरोक
 इस करमुग भं सवाासधक दे वता के रुऩ भं श्री याभबि भं सवा श्रेद्ष विा हंगे तथा शास्त्र त्रवद्या भं इन्हं
हनुभानजी की ही ऩूजा की जाती हं क्मंदक हनुभानजी भहायत हाससर होगी औय इनके सभन फरशारी औय
को करमुग का जीवॊत अथाात साऺात दे वता भाना कोई नहीॊ होगा।
गमा हं । कसरमुग भं शीघ्र प्रसन्न होने वारे एवॊ  जानकायो ने भतानुशाय हनुभान मॊि की आयाधना से
प्रबावशारी एवॊ प्रत्मऺ दे व के रुऩ भं हनुभान जी ऩुरुषं की त्रवसबन्न फीभारयमं दयू होती हं , इस मॊि भं
अऩना त्रवशेष स्थान यखते है । जो थोडे से ऩूजन- अद्भुत
ु शत्रि सभादहत होने के कायण व्मत्रि की स्वप्न
अचान से अऩने बि ऩय प्रसन्न हो जाते हं औय दोष, धातु योग, यि दोष, वीमा दोष, भूछाा, नऩुॊसकता
अऩने बि के सबी प्रकाय के द्ु ख, कद्श, सॊकटो इत्मादद अनेक प्रकाय के दोषो को दयू कयने भं
इत्मादी का नाश कय उसकी यऺा कयते हं । अत्मन्त राबकायी हं । अथाात मह मॊि ऩौरुष को ऩुद्श
 हनुभान मॊि के ऩूजन से भनुष्म फर, फुत्रद्ध कभा, कयता हं ।
सभऩाण, बत्रि, सनद्षा, कताव्म शीर जैसे आदशा गुणो से  श्री हनुभान मॊि व्मत्रि को सॊकट, वाद-त्रववाद, बूत-
मुि हो जाता हं । अत् श्री हनुभानजी के ऩूजन से प्रेत, द्यूत दिमा, त्रवषबम, चोय बम, याज्म बम,
व्मत्रि भं बत्रि, धभा, गुण, शुद्ध त्रवचाय, भमाादा, फर, भायण, सम्भोहन स्तॊबन इत्मादद से सॊकटो से यऺा
फुत्रद्ध, साहस इत्मादी गुणो का बी त्रवकास हो जाता कयता हं औय ससत्रद्ध प्रदान कयने भं सऺभ हं ।
हं । गुरुत्व कामाारम भं उऩरब्दध अन्म : सॊकट भोचन मॊि ।
 त्रवद्रानो के भतानुशाय हनुभानजी के प्रसत द्दढ आस्था हनुभान ऩूजन मॊि । भारुसत बी उऩरब्दध हं । नोट: हभायं
औय अटू ट त्रवद्वास के साथ ऩूणा बत्रि एवॊ सभऩाण सबी मॊिं के त्रवषम भं असधक जानकायी आऩ हभायी वेफ
की बावना से हनुभान मन्ि का ऩूजन-अचान औय साइट ऩय प्राद्ऱ कय सकते हं । Visit us on
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दशान कय व्मत्रि अऩनी सभस्माओॊ से भुि होकय
41 ददसम्फय 2012

नवदग
ु ाा मन्ि
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी

शैरऩुिी अधाचन्र शोसबत यहता हं । इस सरमे भाॊ को चन्रघण्टा

भाॊ के शैरऩुिी को ऩवातयाज (शैरयाज) दहभारम के महाॊ दे वी कहा जाता हं । इनके घण्टे सी बमानक प्रचॊड ध्वसन

ऩावाती रुऩ भं जन्भ रेने से बगवती को शैरऩुिी कहा से अत्माचायी दै त्म, दानव, याऺस व दै व बमसबत यहते

जाता हं । भाॊ शैरऩुिी को शास्रं भं तीनो रोक के सभस्त हं । चन्रघण्टा के भॊि-ध्मान-कवच का त्रवसध-त्रवधान से

वन्म जीव-जॊतुओॊ का यऺक भाना गमा हं । इसी कायण से ऩूजन कयने से व्मत्रि का भस्णऩुय चि जाग्रत हो जाता

वन्म जीवन जीने वारी सभ्मताओॊ भं सफसे ऩहरे हं । दे वी की उऩासना से व्मत्रि को सबी ऩाऩं से भुत्रि

शैरऩुिी के भॊददय की स्थाऩना की जाती हं स्जस सं सभरती हं उसे सभस्त साॊसारयक आसध-व्मासध से भुत्रि

उनका सनवास स्थान एवॊ उनके आस-ऩास के स्थान सभरती हं । इसके उऩयाॊत व्मत्रि को सचयामु, आयोग्म,

सुयस्ऺत यहे । भाॊ शैरऩुिी का भॊि-ध्मान-कवच का त्रवसध- सुखी औय सॊऩन्न होनता प्राद्ऱ होती हं । व्मत्रि के साहस

त्रवधान से ऩूजन कयने वारे व्मत्रि को हभेशा धन-धान्म एव त्रवयता भं वृत्रद्ध होती हं । व्मत्रि स्वय भं सभठास आती

से सॊऩन्न यहता हं । अथाात उसे स्जवन भं धन एवॊ अन्म हं उसके आकषाण भं बी वृत्रद्ध होती हं । चन्रघण्टा को

सुख-साधनो को कभी भहसूस नहीॊ होतीॊ। ऻान की दे वी बी भाना गमा है ।

ब्रह्मचारयणी कूष्भाण्डा
भाॊ ब्रह्मचारयणी को त्रवद्रानं ने तऩ का आचयण कयने कूष्भाण्डा दे वी ने अऩनी भॊद हॊ सी द्राया ब्रह्माण्ड को

वारी बगवती हं होने के कायण उन्हं ब्रह्मचारयणी कहा हं । उत्ऩन्न दकमा था इसीके कायण इनका नाभ कूष्भाण्डा

क्मोदक ब्रह्म का अथा हं तऩ। शास्त्रो भं भाॊ ब्रह्मचारयणी को दे वी यखा गमा। शास्त्रोि उल्रेख हं , दक जफ सृत्रद्श का

सभस्त त्रवद्याओॊ की ऻाता भाना गमा हं । धासभाक अस्स्तत्व नहीॊ था, तो चायं तयप ससपा अॊधकाय दह था।

भान्मताके अनुसाय दे वी ने बगवान सशव को प्राद्ऱ कयने उस सभम कूष्भाण्डा दे वी ने अऩने भॊद से हास्म से

के सरए 1000 सार तक ससपा पर खाकय तऩस्मा यत ब्रह्माॊड दक उत्ऩत्रत्त दक। कूष्भाण्डा दे वी को जीवन दक

यहीॊ औय 3000 सार तक सशव दक तऩस्मा ससपा ऩेिं से शत्रि प्रदान कयता भाना गमा हं । कूष्भाण्डा दे वी के भॊि-

सगयी ऩत्रत्तमाॊ खाकय दक, उनकी इसी कदठन तऩस्मा के ध्मान-कवच का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन कयने वारे व्मत्रि

कायण उन्हं ब्रह्मचारयणी नाभ से जाना गमा। ब्रह्मचारयणी का अनाहत चि जाग्रत हो हं । भाॊ कूष्भाण्डाका के ऩूजन

के भॊि-ध्मान-कवच का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन कयने वारे से सबी प्रकाय के योग, शोक औय क्रेश से भुत्रि सभरती

व्मत्रि को अनॊत पर दक प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि भं तऩ, हं , उसे आमुष्म, मश, फर औय फुत्रद्ध प्राद्ऱ होती हं ।

त्माग, सदाचाय, सॊमभ जैसे सद् गुणं दक वृत्रद्ध होती हं ।


स्कॊदभाता
चन्रघण्टा स्कॊदभाता कुभाय अथाात ् कासताकेम की भाता होने के

चन्रघण्टा का स्वरूऩ शाॊसतदामक औय ऩयभ कल्माणकायी कायण, उन्हं स्कन्दभाता के नाभ से जाना जाता हं ।

हं । चन्रघण्टा के भस्तक ऩय घण्टे के आकाय का स्कॊदभाता का स्वरुऩ ऩयभ कल्माणकायी भनागमा हं ।


42 ददसम्फय 2012

दे वी का ध्मान-कवच का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन कयने भहागौयी


वारे व्मत्रि का त्रवशुद्ध चि जाग्रत होता हं । व्मत्रि दक भहागौयी स्वरूऩ उज्जवर, कोभर, द्वेतवणाा तथा द्वेत
सभस्त इच्छाओॊ की ऩूसता होती हं एवॊ जीवन भं ऩयभ वस्त्रधायी हं । भहागौयी गामन एवॊ सॊगीत से प्रसन्न होने
सुख एवॊ शाॊसत प्राद्ऱ होती हं । वारी 'भहागौयी' भाना जाता हं । भहागौयी के भॊि-ध्मान-
कवच का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन कयने वारे व्मत्रि का
कात्मामनी सोभचि जाग्रत होता हं । भहागौयी के ऩूजन से व्मत्रि के
भहत्रषा कात्मामन की ऩुिी होने के कायण उन्हं कात्मामनी सभस्त ऩाऩ धुर जाते हं । भहागौयी के ऩूजन कयने वारे
के नाभसे जाना जाता हं । भाॊ के भॊि-ध्मान-कवच का साधन के सरमे भाॊ अन्नऩूणाा के सभान, धन, वैबव औय
त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन कयने वारे व्मत्रि का आऻा चि सुख-शाॊसत प्रदान कयने वारी एवॊ सॊकट से भुत्रिददरा ने
जाग्रत होता हं । दे वी कात्मामनी के ऩूजन से योग, शोक, वारी दे वी भहागौयी हं ।
बम से भुत्रि सभरती हं । कात्मामनी दे वी को वैददक मुग
भं मे ऋत्रष-भुसनमं को कद्श दे ने वारे यऺ-दानव, ऩाऩी ससत्रद्धदािी
जीव को अऩने तेज से ही नद्श कय दे ने वारी भाना गमा दे वी ससत्रद्धदािी का स्वरूऩ कभर आसन ऩय त्रवयास्जत,
हं । कात्मामनी मन्ि के ऩूजन से शीघ्र त्रववाह के मोग चाय बुजा वारा, दादहनी तयप के नीचे वारे हाथ भं चि,
फनने रगते हं एवॊ त्रववाह भं आने वारी फाधामे दयू होती ऊऩय वारे हाथ भं गदा, फाई तयप से नीचे वारे हाथ भं
हं । शॊख औय ऊऩय वारे हाथ भं कभर ऩुष्ऩ सुशोसबत यहते
हं । दे वी ससत्रद्धदािी के भॊि-ध्मान-कवच का त्रवसध-त्रवधान
कारयात्रि से ऩूजन कयने वारे व्मत्रि का सनवााण चि जाग्रत होता
भाॊ कारयात्रि दे वी के शयीय का यॊ ग घने अॊधकाय दक तयह हं । ससत्रद्धदािी के ऩूजन से व्मत्रि दक सभस्त काभनाओॊ
एकदभ कारा हं , ससय के फार पैराकय यखने वारी हं । दक ऩूसता होकय उसे ऋत्रद्ध, ससत्रद्ध दक प्रासद्ऱ होती हं । ऩूजन
भाॊ कारयात्रि के भॊि-ध्मान-कवच का त्रवसध-त्रवधान से से मश, फर औय धन दक प्रासद्ऱ कामो भं चरे आ यहे
ऩूजन कयने वारे व्मत्रि का बानु चि जाग्रत होता हं । फाधा-त्रवध्न सभाद्ऱ हो जाते हं । व्मत्रि को मश, फर औय
कारयात्रि के ऩूजन से अस्ग्न बम, आकाश बम, बूत धन दक प्रासद्ऱ होकय उसे भाॊ दक कृ ऩा से धभा, अथा, काभ
त्रऩशाच इत्मादी शत्रिमाॊ कारयात्रि दे वी के स्भयण भाि से औय भोऺ दक बी प्रासद्ऱ स्वत् हो जाती हं ।
ही बाग जाते हं , कारयात्रि का स्वरूऩ दे खने भं अत्मॊत
बमानक होते हुवे बी सदै व शुब पर दे ने वारा होता हं , त्रवद्रानं के भातानुशाय भाॊ दग
ु ाा के इन नौ-रुऩं की कृ ऩा
इस सरमे कारयात्रि को शुबॊकयी के नाभसे बी जाना जाता प्राद्ऱ कयने का सयर उऩाम नवदग
ु ाा मन्ि की स्थाऩना एवॊ
हं । कारयात्रि शिु एवॊ दद्श
ु ं का सॊहाय कय ने वारी दे वी हं । ऩूजन एवॊ दशान से त्रवशेष परं की प्रासद्ऱ होती हं ।

सवाजन वशीकयण कवच सवायोग सनवायण कवच


भूल्म भाि: Rs.1450 भूल्म भाि: Rs. 730
43 ददसम्फय 2012

मॊि द्राया वास्तु दोष सनवायण


 सचॊतन जोशी

श्रीमॊि, कनक धाया मॊि औय दस्ऺणावतॉ स्पदटक गणेश


हय बवन के सनभााण से उसभं शुब एवॊ अशुब
जी (दादहनी सूॊढ) को स्थात्रऩत कयने से उस बवन के द्राय
दोनं प्रकाय के तत्त्वव व्माद्ऱ होते हं । केवर शुब तत्त्वव हो
दोष औय वास्तु दोष दयू होते हं ।
मा केवर अशुब तत्त्वव हो मह सॊबव
बवन के भुख्म द्राय के उऩय
नहीॊ हं । दोनं तत्त्ववं का सभश्रीत प्रबाव
भध्म बाग भं श्रीगणेश की प्रसतभा
उस बवन ऩय होता हं । उसभं पका
ऩयशु औय अॊकुश सरए फुत्रद्धभत्ता औय
इतना ही होता हं की कहीॊ शुब तत्त्वव
सभृत्रद्ध के दाता के रुऩ भं शुबदाम है ।
की असधक होती हं तो कहीॊ अशुब
भुख्म द्राय ऩय फैठे हुए गणेशजी की
तत्त्वव की असधकता यहती हं । इस सरए
प्रसतभा द्राय के उऩय शुब भानी जाती
कोई बी बवन नातो ऩूणा रुऩ से शुब
है । बगवान गणेश हभाये जीवन की
तत्त्वव से मुि हो ता हं नाहीॊ अशुब
सपरता के प्रतीक है । गणेश जी का
तत्त्वव से मुि होता हं । शुब तत्त्वव की भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश
त्रवशार उदय भं ऩूया ब्रह्माॊड त्रवद्यभान है ।
असधकता से उसे शुब सॊकेत सभझा
बगवान श्री गणेश फुत्रद्ध औय सशऺा के गणेशजी की सूॊड त्रवघ्नं को दयू कयने
जाता हं एवॊ अशुब तत्त्वव की असधकता
कायक ग्रह फुध के असधऩसत दे वता के सरए भुिी हुई यहती है । हभायी
को दोष के रुऩ भं जाना जाता हं ।
हं । ऩन्ना गणेश फुध के सकायात्भक
सॊस्कृ सत भं दकसी बी शुब कामं को
अशुब तत्त्वव की असधकता से ही वास्तु प्रबाव को फठाता हं एवॊ नकायात्भक
प्रायॊ ब कयने से ऩहरे इनका प्रथभ
दोष उत्ऩन्न होता हं । प्रबाव को कभ कयता हं ।. ऩन्न
स्भयण कयने का त्रवधान हं ।
इस सरए वास्तु मन्ि एवॊ अन्म गणेश के प्रबाव से व्माऩाय औय धन
उऩामं का सहामता से बवन के शुब भं वृत्रद्ध भं वृत्रद्ध होती हं । फच्चो दक श्रीमॊि
तत्त्ववं की वृत्रद्ध एवॊ अशुब तत्त्ववं अथांत ऩढाई हे तु बी त्रवशेष पर प्रद हं बवन के सबी प्रकाय के दोष
दोषं को कभ दकमा जा सकता हं । ऩन्ना गणेश इस के प्रबाव से फच्चे दयू कयने के सरए भॊि ससद्ध प्राण-
वास्तु दोष दयू कयने के उऩाम दक फुत्रद्ध कूशाग्र होकय उसके प्रसतत्रद्षत स्ऩपदटक श्रीमॊि की स्थाऩना
आत्भत्रवद्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्ध होती कयने से एवॊ उसका प्रसतददन ऩूजन-
मदद बवन भं सॊफॊसधत ददशा भं वास्तु
हं । भानससक अशाॊसत को कभ कयने भं
दोष हो तो उस ददशा भं वास्तु मॊि अचान कयनी चादहए।
भदद कयता हं , व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत
रगाना चादहए। भाॊगसरक सचि
हयी त्रवदकयण शाॊती प्रदान कयती हं ,
घय भं वास्तु दोषनाशक मॊि को बवन के भुख्मद्राय ऩय ॐ,
व्मत्रि के शायीय के तॊि को सनमॊत्रित
त्रवसध-त्रवधान से स्थात्रऩत कयना कयती हं । स्जगय, पेपिे , जीब, स्वस्स्तक शुब-राब, ऋत्रद्ध-ससत्रद्ध आदद
चादहए। भस्स्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्मादद योग भॊगरदामक प्रसतक सचि रगाने चादहए।
गणेश प्रसतभा भं सहामक होते हं । कीभती ऩत्थय बवन के भुख्मद्राय ऩय प्रसतददन
भुख्म द्राय के उऩयी दहस्से भं भयगज के फने होते हं । गॊगाजर का सछिकाव घय भं कयना
अॊदय-फाहय भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत Rs.550 से Rs.8200 तक चादहए।
44 ददसम्फय 2012

नवग्रह शाॊसत मॊि  मदद बवन के दस्ऺण बाग भं दोष हो तो प्राम् सभम

नवग्रह ग्रहं के मॊिं को उनकी सॊफॊसधत ददशाओॊ उस बवन भं सनवासकताा सचॊता-तनाव आदद से ग्रस्त

भं इस प्रकाय से रगाने चादहए जहाॊ मे आसानी से यहते हं । भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत त्रिकोण भॊगर मॊि

ददखाई दे ते हो। नवग्रह शाॊसत मॊि को स्थात्रऩत कयना चादहए।

के ऩूजन एवॊ स्थाऩना से बी  मदद बवन के वामव्म कोण

वास्तुदोषं का शभन होता है । उत्तय, भं दोष हो तो प्राम् सनवास कताा

ऩूव,ा दस्ऺण, ऩस्द्ळभ, ईशान, को कामा ऺेि भं सभस्माओॊ का

आग्नेम, नैऋत्म, वामव्म मा ब्रह्म साभना कयना ऩिता हं । भॊि ससद्ध

स्थान भं जहाॊ बी वास्तु दोष हो प्राण-प्रसतत्रद्षत केतु मॊि को

उस ददशा भं सॊफॊसधत दे व का मॊि स्थात्रऩत कयना चादहए।

स्थत्रऩत कये मा उसे ऩूजा स्थान भं  मदद बवन के ऩस्द्ळभ बाग

स्थत्रऩत कये । भं दोष हो तो भॊि ससद्ध प्राण-

 बवन के उत्तय भं फृहस्ऩसत, प्रसतत्रद्षत शसन मॊि को स्थात्रऩत

कुफेय मा वरुण मॊि रगाना चादहए। कयना चादहए। बवन के भुख्म द्राय

 घय के आग्नेम कोण भं वास्तु दोष हो तो आग्नेम ऩय घोिे की नार को U आकाय भं रगाना चादहए।

कोण भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत चॊर मॊि को स्थात्रऩत उल्टा रगाने से त्रवऩरयत ऩरयणाभं से सम्भुस्खन होना

कयना चादहए। ऩिता हं ।

 मदद बवन भं सनवास कयने वारे सदस्मं को भन  मदद बवन ऩूवा बाग भं दोष हो तो भॊि ससद्ध प्राण-

नहीॊ रगने, इन्ऩपेक्शन, अॊतदिमं की सभस्मा, बम, प्रसतत्रद्षत सूमा मॊि को स्थात्रऩत कयना चादहए।

आसथाक हासन आदद सभस्मा मे यहती हो तो बवन का  बवन के ईशान कोण भं दोष हो तो वास्तुदोषं को

नैकत्म कोण भं दोष होता हं । एसी स्स्थती भं बवन दयू कयने हे तु भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत फृहस्ऩसत मॊि

के नैकत्म कोण भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत याहु मॊि को स्थात्रऩत कयना चादहए।

औय भृत्मॊजम मॊि को स्थात्रऩत कयना चादहए। नैकत्म  इससे इन दोनं ददशाओॊ जसनत वास्तुदोष दयू होते हं ।

कोण भं 7 इॊ च का गड्ढा खोदकय उसभं सवा 5 से 7


यत्ती का असबभॊत्रित गोभेद दफा दे ना चादहए।
***
सशऺा से सॊफॊसधत सभस्मा
क्मा आऩके रडके-रडकी की ऩढाई भं अनावश्मक रूऩ से फाधा-त्रवघ्न मा रुकावटे हो यही हं ? फच्चो को अऩने ऩूणा ऩरयश्रभ
एवॊ भेहनत का उसचत पर नहीॊ सभर यहा? अऩने रडके-रडकी की कुॊडरी का त्रवस्तृत अध्ममन अवश्म कयवारे औय
उनके त्रवद्या अध्ममन भं आनेवारी रुकावट एवॊ दोषो के कायण एवॊ उन दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से
जनकायी प्राद्ऱ कयं ।
GURUTVA KARYALAY
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45 ददसम्फय 2012

सवा कामा ससत्रद्ध कवच


स्जस व्मत्रि को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फादबी उसे भनोवाॊसछत सपरतामे एवॊ
दकमे गमे कामा भं ससत्रद्ध (राब) प्राद्ऱ नहीॊ होती, उस व्मत्रि को सवा कामा ससत्रद्ध कवच अवश्म
धायण कयना चादहमे।
कवच के प्रभुख राब: सवा कामा ससत्रद्ध कवच के द्राया सुख सभृत्रद्ध औय नव ग्रहं के
नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय धायण कयता व्मत्रि के जीवन से सवा प्रकाय के द:ु ख-दारयर का
नाश हो कय सुख-सौबाग्म एवॊ उन्नसत प्रासद्ऱ होकय जीवन भे ससब प्रकाय के शुब कामा ससद्ध होते
हं । स्जसे धायण कयने से व्मत्रि मदद व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे वृत्रद्ध होसत हं औय मदद
नौकयी कयता होतो उसभे उन्नसत होती हं ।

 सवा कामा ससत्रद्ध कवच के साथ भं सवाजन वशीकयण कवच के सभरे होने की वजह से धायण
कताा की फात का दस
ू ये व्मत्रिओ ऩय प्रबाव फना यहता हं ।
 सवा कामा ससत्रद्ध कवच के साथ भं अद्श रक्ष्भी कवच के सभरे होने की वजह से व्मत्रि ऩय सदा
भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं । स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-
आदद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-
त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राद्ऱ होता हं ।

 सवा कामा ससत्रद्ध कवच के साथ भं तॊि यऺा कवच के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दयू
होती हं , साथ ही नकायात्भक शत्रिमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्रि ऩय नहीॊ होता। इस
कवच के प्रबाव से इषाा-द्रे ष यखने वारे व्मत्रिओ द्राया होने वारे दद्श
ु प्रबावो से यऺा होती हं ।
 सवा कामा ससत्रद्ध कवच के साथ भं शिु त्रवजम कवच के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊसधत
सभस्त ऩये शासनओ से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हं । कवच के प्रबाव से शिु धायण कताा
व्मत्रि का चाहकय कुछ नही त्रफगाि सकते।
अन्म कवच के फाये भे असधक जानकायी के सरमे कामाारम भं सॊऩका कये :
दकसी व्मत्रि त्रवशेष को सवा कामा ससत्रद्ध कवच दे ने नही दे ना का अॊसतभ सनणाम हभाये ऩास सुयस्ऺत हं ।

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(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)


46 ददसम्फय 2012

जन्भ रग्न से योग सनवायण हे तु उऩमुि मॊि


 सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
भेष रग्न: भेष रग्न भं जन्भ रेने वारे जातक दक कुॊडरी इत्मादी ऩय अऩना स्वाभीत्व यखता हं । इस सरमे इन
भं रग्नेश भॊगर रग्न बाव औय अद्शभ बाव का स्वाभी सफके प्रसत व्मत्रि का असधक झुकाव
होता हं । कुॊडरी भं चतुथा बाव भं भॊगर नीच का होने ऩय चरयि से कभजोय कय दे ता हं , स्जस्से वह गरत कामं भं
ज्मादातय व्मत्रि को छोटी-भोटी चोट रगती याहती हं , उसे सरग्न हो सकता हं ।
शल्म सचदकत्सा(ऑऩये शने) बी कयवानी ऩड सकती हं ।
ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: शुि ग्रह दक शाॊसत
व्मत्रि को रृदम भं ददा , उच्च यिचाऩ (हाई फी.ऩी), जरीम
हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत शुि
स्थान से बम, जहयीरे जीवजॊतु के काटने औय जहयीरे
मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन
ऩदाथा से से कद्श हो सकता हं । भातृ ऩऺ से ऩये शानी,
कयना राबप्रद होता हं ।
बूसभ-बवन इत्मादी सॊऩती से हासन हो सकती हं ।
ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: भॊगर
सभथुन रग्न: सभथुन रग्न भं जन्भ रेने
ग्रह दक शाॊसत हे तु घय भं ऩूजा स्थान
भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत भॊगर वारे जातक दक कुॊडरी भं रग्नेश फुध

मॊि की स्थाऩना कय उसका रग्न बाव औय चतुथा बाव का स्वाभी


सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन कयना होता हं । कुॊडरी भं दशभ भं फुध नीच
राबप्रद होता हं । का होने, ऩय व्मत्रि साॊस की नरी,
आॊतदिमाॉ, दभा, कप जनीत योग, गुह्य
वृषब रग्न:वृषब रग्न भं जन्भ
योग, गैस, साॊस पूरना, उदय योग,
रेने वारे जातक दक कुॊडरी भं
वातयोग, कृ द्ष योग, भॊदास्ग्न, शूर, पेपिे
रग्नेश शुि रग्न बाव औय षद्षभ बाव
इत्मादी के योग से ऩीदित हो सकता हं । व्मत्रि
का स्वाभी होता हं । कुॊडरी भं ऩॊचभ बाव भं
को व्माऩाय, नौकयी, साझेदायी से बी ऩये शानी उठानी ऩि
शुि नीच का होने, ऩय शास्त्रंि भत से शुि व्मत्रि को
सकती हं । व्मत्रि को खासकय अऩने त्रऩता से सॊफॊधो भं
जि फुत्रद्ध अथाात भूखा फनाता हं । एसे व्मत्रि का ददभाग
कदठनाईमा आसकती हं ।
गरत कामं दक औय ज्मादा अग्रस्त यहता हं , स्जस्से
ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: फुध ग्रह दक शाॊसत
व्मत्रि असधक से असधक राब प्राद्ऱ कयना चाहता हं , औय हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत फुध
सपरता बी प्राद्ऱ कयता हं । उसकी सभिता सनम्न-स्तय के मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन
रोगं के साथ होती हं । व्मत्रि नीच स्त्री-ऩुरुष से सॊऩका कयना राबप्रद होता हं ।
यखने वारा हो सकता हं । व्मत्रि को स्त्री वगा के कायण
कायावास दक सजा हो सकती हं । शुि संदमा, बोग- कका रग्न: कका रग्न भं जन्भ रेने वारे जातक दक

त्रवरास, ऎद्वमा, अरॊकाय, यसत सुख, ऎशो-आयाभ, स्त्री वगा कुॊडरी भं रग्नेश चॊर ऩॊचभ बाव भं स्स्थत हं ने ऩय
चॊरभा नीचका होता हं । कुॊडरी भं ऩॊचभ भं चॊर नीच का
47 ददसम्फय 2012

होने, ऩय व्मत्रि को ज्मादातय गैस, यिचाऩ (ब्दरड प्रेशय), तुरा रग्नतुरा रग्न वारं का स्वाभी शुि अद्शभेश होकय
ऩेट के योग, भानससक अशाॊसत, दे हीक संदमा, कप, वात द्रादश बाव भं होगा, जो नीच का होगा। ऐसे जातक
प्रकृ सत, असनॊरा, ऩाॊडुयोग, स्त्री सॊफॊसधत योग इत्मादी से कद्श दव्ु मसानं भं खचा कयने वारे हंगे एवॊ इन्हं अनैसतक कामं
हो सकता हं । चॊर ऩय अशुब ग्रहं का प्रबाव होने ऩय भं जेर बी जाना ऩि सकता है । ऐसा व्मत्रि नशीरे
व्मत्रि को ऩय ऩागरऩन बी हो सकता हं । ऩदाथं का सेवन कयने वारा, अनेक स्स्त्रमं से सॊऩका
ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: चॊर ग्रह दक शाॊसत यखने वारा व तस्कय बी हो सकता है ।
हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत चॊर ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: शुि ग्रह दक शाॊसत
मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत शुि
कयना राबप्रद होता हं । मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन
कयना राबप्रद होता हं ।
ससॊह रग्न : ससॊह रग्न वारे जातकं का सूमा तृतीम भं
होगा तो नीच का होगा मा नेि, रृदम एवॊ हड्डी से वृस्द्ळक रग्न :वृस्द्ळक रग्न वारे जातकं को षद्षेश होकय
सॊफॊसधत फीभायी अवश्म होगी। ऐसा जातक कुॊदठत होगा। नवभ बाग्म बाव भं नीच का भॊगर होगा। ऐसे जातकं
ऩयािभहीन होगा व फुये कामा भं फर ददखाने वारा होगा। को बाग्मोन्नसत भं फाधा आती है । धभा के प्रसत राऩयवाह
ऐसा जातक व्मथा की फातं को रेकय झगिे भं ऩिने होते हं । इन्हं अनेक फाय सगयने से चोट रगती है एवॊ
वारा होगा। इनके छोटे बाई-फहन नहीॊ हंगे। मदद दकसी ऑऩये शन बी कयना ऩि सकता है । ब्दरडप्रेशय के सशकाय
कायणवश हुए बी तो उनसे रिता-झगिता यहे गा, रेदकन बी हो सकते हं । इनको बाइमं से उत्तभ सहमोग सभरता
मे स्वमॊ बाग्मशारी हंगे क्मंदक बाग्म ऩय उच्च दृत्रद्श है । वहीॊ मे ऩयािभी बी होते हं । भाता से शिुता यखने
ऩिे गी। वारे बी हो सकते हं ।
ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: सूमा ग्रह दक शाॊसत ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: भॊगर ग्रह दक शाॊसत
हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत सूमा हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत भॊगर
मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन
कयना राबप्रद होता हं । कयना राबप्रद होता हं ।

धनु रग्न: धनु रग्न वारे जातकं को चतुथश


े होकय
कन्मा रग्न :कन्मा रग्न वारे जातकं का फुध दशभेश
दद्रतीम बाव भं नीच का गुरु होगा। ऐसे जातकं को
होकय सद्ऱभ बाव भं नीच का होने से दै सनक व्माऩाय-
आॉखं की फीभायी, भोसतमात्रफन्द बी होगा व्मत्रि कोगचश्भा
व्मवसाम भं हासन, ऩाटा नय से धोखा, फेवपा ऩत्नी मा ऩसत
बी रग सकता है । इनकी वाणी कबी-कबी दस
ू ये रोगो
सभरता है । ऐसा जातक शायीरयक दृत्रद्श से प्रबावी होता है ,
को थोडी अव्मवहायऩूणा रग सकती हं । इन्हं ऩरयवाय से
रेदकन नौकयी भं सदै व ऩये शासनमं से गुजयने वारा तथा
हासन तथा असहमोग सभरता यहता है । ऐसा जातक शीघ्र
शासन से अऩमश ही सभरता है ।
नशे के आसध हो सकते हं ।
ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: फुध ग्रह दक शाॊसत
ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: गुरु(फृहस्ऩसत) ग्रह
हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत फुध
दक शाॊसत हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-
मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन
कयना राबप्रद होता हं ।
48 ददसम्फय 2012

प्रसतत्रद्षत गुरु(फृहस्ऩसत) मॊि की स्थाऩना कय उसका ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: शसन ग्रह दक शाॊसत
सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन कयना राबप्रद होता हं । हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत शसन
मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन
भकय रग्न: भकय रग्न वारे जातकं को दद्रतीमेश होकय कयना राबप्रद होता हं ।
चतुथा बाव भं नीच का शसन होने से जातक का स्वबाव
अत्मॊत कठोय हो जाता हं । घुटनं भं ददा व छाती भं ददा भीन रग्न: भीन रग्न वारे जातकं को दशभेश होकय
की सशकामत हो सकती है । व्मत्रि की अऩनी भाता से एकादश बाव भं नीच का गुरु होगा। ऎसा व्मत्रि थोडे
नहीॊ फनेगी मा फचऩन से ही भाता का साथ छूट जाएगा। व्मसनी, घभॊडी, कटु वचन फोरने वारा हो सकता है ।
भकान, बूसभ, सॊऩत्रत्त व वाहन से सॊफॊसधत कामो मा सनवेश जातक के फिे बाई-फहन का सुख ऩूणा नहीॊ सभरता। ऐसे
से हासन ऩाएगा अथवा रम्फे सभम तक जभीन-जामदाद जातक को ऩीसरमा, ददर भं छे द, स्जगय की फीभायी होती
के भुकदभं भं पॉसा यह सकता है । याजनैसतक कामो से है । रोहे की वस्तु से हासन बी हो सकती है । ऩत्नी व
ऩये शान यहे गी। सॊतान से ऩूणा सुख भं कभी यहती है । सशऺा उत्तभ होती
ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: शसन ग्रह दक शाॊसत है ।
हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत शसन ग्रह शाॊसत हे तु उऩमुि मन्ि सुझाव: गुरु(फृहस्ऩसत) ग्रह
मॊि की स्थाऩना कय उसका सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन दक शाॊसत हे तु घय भं ऩूजा स्थान भं भॊि ससद्ध प्राण-
कयना राबप्रद होता हं । प्रसतत्रद्षत गुरु(फृहस्ऩसत) मॊि की स्थाऩना कय उसका
सनमसभत धूऩ-दीऩ से ऩूजन कयना राबप्रद होता हं ।
कुॊब रग्न: कुॊब रग्न वारे जातकं को द्रादशेश होकय
तृतीम बाव भं नीच का शसन होगा। ऐसे जातकं को छोटे उऩयोि रग्न वारे जातकं को असनद्श प्रबाव हो
बाई-फहनं का सुख कभ सभरता हं मा नहीॊ सभरता। वहीॊ
तो उनके फचाव हे तु साथ भं ददए गए अनुबत

सॊतान से सम्फस्न्धत कद्श बी फना यहता हं । त्रवद्या भं
मॊि का उऩाम कयने से कद्शं भं अवश्म कभी
कभजोय यहता है । हाथ भं चोटे रग सकती हं । स्वबाव
बी कटु ता बया होता है ।जोिंभं ददा , यीढ़की हड्डी फढ़ने का आएगी। रेदकन व्मत्रि को अऩने दकमे गए कभो
खतया यहता है । नाक, कान, गरे की फीभायी हो सकती है । का परतो बोगना ही ऩडता हं ।

त्रवशेष मॊि
हभायं महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोने-चाॊदद-ताम्फे भं आऩकी आवश्मिा के अनुशाय दकसी बी बाषा/धभा
के मॊिो को आऩकी आवश्मक दडजाईन के अनुशाय २२ गेज शुद्ध ताम्फे भं अखॊदडत फनाने की त्रवशेष
सुत्रवधाएॊ उऩरब्दध हं । असधक जानकायी के सरए कामाारम भं सॊऩका कयं ।
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49 ददसम्फय 2012

मॊि साधना हे तु उऩमुि भारा चमन


 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
मॊि साधना भे भॊि जऩ के सरमे भारा का त्रवशेष अकीक - (हकीक) दक भारा का प्रमोग उसके यॊ गो के
भहत्व होता है । त्रवसबन्न प्रकाय के मॊि एवॊ कामा की ससत्रद्ध अनुरुऩ दकमा जाता हं ।
हे तु भारा का चमन सनधाारयत मॊि एवॊ कामा उद्दे श्म के रुराऺ एवॊ स्पदटक की भारा सबी दे वी- दे ता की ऩूजा
अनुशाय कयने से साधक को अऩने कामा की ससत्रद्ध जल्द उऩासना भं प्रमोग दकमाजा सकता हं ।
प्राद्ऱ होती हं , क्मोकी भारा का चमन स्जस इद्श की त्रवद्रानो ने भतानुशाय रुराऺ की भारा सवाश्रद्ष
े होती हं ।
साधना कयनी हो, उस दे वता से सॊफॊसधत मॊि को सॊफॊसधत रुराऺ की भारा से भन्ि जाऩ कयने से नवग्रहं के प्रबाव
ऩदाथा से सनसभात भारा का प्रमोग अत्मासधक प्रबाव शारी बी स्वत् शाॊत होने रगते हं औय भनुष्म के अनॊत कोटी
भाना गमा हं । ऩातको का शभन होता हं ।

दे वी- दे वता के मॊि त्रवशेष को को ससद्ध कयने के सरए


ग्रह शास्न्त हे तु भारा चमन:
उऩमुि भारा का चमन कयना चादहए-
1) सूमा मॊि के सरए भास्णक्म की भारा, गायनेट, भारा
रार चॊदन- (यि चॊदन भारा) गणेश मॊि, दग
ू ाा मॊि, भॊगर
रुराऺ, त्रफल्व की रकिी से फनी की भारा का प्रमोग
मॊि, ऩुत्रद्श कभा, के सरए उत्तभ है ।
कयना राबप्रद होता हं ।
द्वेत चॊदन- (सपेद चॊदन भारा) - रक्ष्भी मॊि एवॊ शुि
2) चन्र मॊि के सरए भोती, शॊख, सीऩ की भारा का प्रमोग
मॊि के सरए उत्तभ है ।
कयना राबप्रद होता हं ।
तुरसी- त्रवष्णु मॊि, याभ मॊि व कृ ष्ण मॊि दक ऩूजा अचाना
के सरए उत्तभ है । 3) भॊगर मॊि के सरए भूॊगे मा रार चॊदन की भारा का
भूॊग- रक्ष्भी मॊि, गणेश मॊि, हनुभान मॊि, भॊगर मॊि के सरए प्रमोग कयना राबप्रद होता हं ।
उत्तभ है । 4) फुध मॊि के सरए ऩन्ना मा कुशाभूर की भारा का प्रमोग
भोती- रक्ष्भी मॊि, चॊर मॊि के सरए उत्तभ है । कयना राबप्रद होता हं ।
कभर गटटा- र रक्ष्भी मॊि के सरए उत्तभ है ।
5) फृहस्ऩसत मॊि के सरए हल्दी की भारा का प्रमोग कयना
हल्दी - फगराभुखी मॊि एवॊ फृहस्ऩसत (गुरु) मॊि के सरए
राबप्रद होता हं ।
उत्तभ है ।
6) शुि मॊि के सरए स्पदटक की भारा का प्रमोग कयना
कारी हल्दी- दब
ु ााग्म नाशक मॊि, भाॊ कारी मॊि के सरए
राबप्रद होता हं ।
उत्तभ है ।
7) शसन मॊि के सरए कारे हकीक मा वैजमन्ती की भारा
स्पदटक – रक्ष्भी मॊि, सयस्वती मॊि, बैयवी की आयाधना के
का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं ।
सरए श्रेद्ष होती है ।
8) याहु मॊि के सरए गोभेद मा चन्द की भारा का प्रमोग
चाॉदी - रक्ष्भी मॊि, चॊर मॊि के सरए श्रेद्ष होती है ।
कयना राबप्रद होता हं ।
रुराऺ – सशव मॊि, हनुभान मॊि के सरए श्रेद्ष होती है ।
नवयत्न - नवग्रह मॊि हे तु। 9) केतु मॊि के सरए हसुसनमा मा राजवता की भारा का
सुवणा- रक्ष्भी दक प्रसन्नता हे तु। प्रमोग कयना राबप्रद होता हं ।
50 ददसम्फय 2012

त्रवसबन्न भारा से काभना ऩूसता


 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
 भारा से भन्ि जऩ कयने का भूर उद्दे श्म होता हं , दक भारा हाथ भं यहने से ध्मान कभ बटकता हं औय भन की एकाग्रता
फढ़ती हं ।
 काभना की ऩूसता के सरए चाॊदी की भारा से भॊि जाऩ कयना चादहए।
 धन, ऎद्वमा प्रासद्ऱ, ऩयीवाय सुख सभृत्रद्ध एवॊ शाॊती प्रासद्ऱ के सरए स्पदटक की
भारा से भॊि जाऩ कयना चादहए।
 सभस्त बोगं की प्रासद्ऱ के सरए यि (रार) चन्दन की भारा से भॊि जाऩ
कयना चादहए।
भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश
 याजससक प्रमोजन तथा आऩदा से भुत्रि के सरए चाॉदी की भारा से भॊि जाऩ
बगवान श्री गणेश फुत्रद्ध औय सशऺा के
कयना चादहए।
कायक ग्रह फुध के असधऩसत दे वता
 वशीकयण के सरए भोती की भारा से भॊि जाऩ कयना चादहए। हं । ऩन्ना गणेश फुध के सकायात्भक
 आकषाण के सरए त्रवधुत भारा से भॊि जाऩ कयना चादहए। प्रबाव को फठाता हं एवॊ नकायात्भक
प्रबाव को कभ कयता हं ।. ऩन्न
 सॊतान प्रासद्ऱ के सरए ऩुि जीवा की से भॊि जाऩ कयना चादहए।
गणेश के प्रबाव से व्माऩाय औय धन
 असबचाय कभा के सरए कभर गट्टे की भारा से भॊि जाऩ कयना चादहए। भं वृत्रद्ध भं वृत्रद्ध होती हं । फच्चो दक
 ऩाऩ-नाश व दोष-भुत्रि के सरए कुश-भूर की भारा से भॊि जाऩ कयना ऩढाई हे तु बी त्रवशेष पर प्रद हं
ऩन्ना गणेश इस के प्रबाव से फच्चे
चादहए।
दक फुत्रद्ध कूशाग्र होकय उसके
 त्रवघ्नहयण के सरए हल्दी की भारा से भॊि जाऩ कयना चादहए।
आत्भत्रवद्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्ध होती
 शिु त्रवनाश के सरए कभर गट्टे की भारा धायण कयने से राब होता हं । हं । भानससक अशाॊसत को कभ कयने भं
 वहीॊ नजय हयण हे तु हरयर की भारा, नजय होने से फचाव के सरए व्माघ्र नख की भदद कयता हं , व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत
हयी त्रवदकयण शाॊती प्रदान कयती हं ,
भारा एवॊ शिु त्रवनाश के सरए कभर गट्टे की भारा धायण दकमा जाता है । इस
व्मत्रि के शायीय के तॊि को सनमॊत्रित
तयह हय भारा अऩना अरग-अरग प्रबाव होता है ।
कयती हं । स्जगय, पेपिे , जीब,
 ऩद्म ऩुयाण भं उल्रेख है , दक तुरसी दक भारा गरे भं धायण कयके बोजन भस्स्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्मादद योग
कयने से अद्वभेघ मऻ के सभान पर सभरता हं । भं सहामक होते हं । कीभती ऩत्थय
भयगज के फने होते हं ।
 तुरसी दक भारा गरे भं धायण कयके स्नान कयने से सभस्त तीथो के स्नान
का पर सभरता हं । Rs.550 से Rs.8200 तक
 तुरसी दक भारा गरे भं हो तो साधक को भोऺ की प्रासद्ऱ होती हं ।
 तुरसी की भारा से जऩ कयने से भन एकाग्रसचत्त होता हं औय योगं से बी सुयऺा होती है ।
 स्पदटक की भारा शास्न्त कभा औय ऻान प्रासद्ऱ; भाॉ सयस्वती व बैयवी की आयाधना के सरए श्रेद्ष होती है ।
51 ददसम्फय 2012

भारा के 108 भनकं का यहस्म


 सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
साधायणत् भनुष्म के बीतय एसे प्रद्ल उठते यहते  इसी प्रकाय दहन्द ु सॊस्कृ ती भं बी नौ का त्रवशेष भहत्व
हं की भारा भं 108 भनके ही क्मं होते हं ? इसका सयर हं । भारा के 108 भनको का जोि बी 9 होता हं । (1
उदाहयण आऩके भागादशान हे तु महाॊ प्रस्तुत दकए गए हं । + 0 + 8 = 9)
 ज्मोसतष के अनुसाय ग्रहं की सॊख्मानौ हं औय उससे जुडी
 दहॊ द ू धभा भं 108की सॊख्मा को फहुत ऩत्रवि औय यहस्मभम यासशमं को प्राद्ऱ वणााऺयं की सॊख्मा बी नौ हं ।
भाना जाता हं । इस सरए दहॊ द ू धभा भं भारा भे 108  यत्नो की सॊख्मा बी नौ हं , दे वी दग
ु ाा के नौ रुऩं की
भनके (दाने) का अत्मासधक भहत्व हं । उऩासना का त्रवधान हं । नवयािी बी नौ ददनोतक
 108 भनके (दाने) का अध्मात्भ की रत्रद्श से त्रवचाय भनाई जाती हं । यस की सॊख्मा बी नौ भानी गई हं
दकमा जामे तो एक जाऩ भारा भे 108 मा 54 मा इस सरए नौ यस कहाॊ जाता हं । प्रभुख आसनो की
27 भनके (दाने) होते हं , ज्मादातय भाराए 108 सॊख्माबी नौ हं इस सरए उसे नौ आसन कहाॊ जाता
भनके की फनती हं एवॊ फाजाय भे मही ज्मदा उऩरब्दध हं ।
होती हं । उसभे सुभेरु अरग से होता हं ।  दहॊ द ू सॊस्कृ ती भं प्रभुख एवॊ त्रवद्रान साधु-सॊतं के नाभ से
 108 भनके (दाने) को दहन्द ु धभाके उऩसनषदं की ऩूवा बी श्री श्री 108 मा श्री श्री 1008 की सॊख्मा का मोग
सॊख्मा से जोडा जामे तो प्रभुख उऩसनषद की सॊख्मा रगामा जाता हं स्जसका बी कुर जोड नौ होता हं ।
बी 108 हं । इस सरए नौ अॊक अऩने आऩ भं गूढ यहस्म सरए हुए हं ।
 दहन्द ु धभा भं ब्रह्म को 9 अॊक से जोडा़ गमा हं । इस  9 अॊक को भॊगर ग्रह का प्रसतक मा कायक भाना
सरए ब्रह्म के 9 अॊक एवॊ आददत्म के 12 अॊक का जाता हं । ज्मोसतष भं भॊगर शत्रि एवॊ साहस का
गुणन (9X12 =108) 108 होता हं । प्रसतक हं इस सरए 9 अॊक शत्रि, साहस औय बाग्म का
 ज्मोसतष त्रवऻान की रत्रद्श से त्रवचाय दकमा जामे तो 9 बी द्योतक भाना जाता हं । ऋग्वेद भं ऋचाओॊ की सॊख्मा
ग्रह एवॊ 12 यासशमो (9X12 =108) से जोडा जाता हं । 10 हजाय 800 है । 2 शून्म हटाने ऩय 108 होती है ।
क्मोदक एसी ज्मोसतषी भान्मता हं की 9 ग्रह एवॊ 12  शाॊदडल्म त्रवद्यानुसाय मऻ वेदी भं 10 हजाय 800 ईंटं
यासशमाॊ भनुष्म ऩय 108 प्रकाय के प्रबाव डारते हं । की आवश्मकता भानी गई है । 2 शून्म कभ ऩय 108
 दस
ू यी रत्रद्श से त्रवचाय दकमा जामे तो 27 नऺिं एवॊ सॊख्मा शेष यहती है ।
हय नऺि के 4 ऩाद मा चयण होते हं (27X 4 =108)  व्मत्रि एक सभनट भे अॊदाज से 15 साॊसे रेता हं । एक
से जोडा जाता हं । घॊटे भे 60 सभसनट। एवॊ एक ददन भे 24 घॊटे।
 अॊकशास्त्र भं बी एक से नौ तक के साये अॊक भहत्वऩूणा 15 x 60 x 24 का कुर जोड = 21,600 = 21,600
होते हं । रेदकन अॊक नौ खास त्रवशेषता यखता हं , / 200 = 108
क्मोदक नौ का अॊक ही ऐसा अॊक हं , स्जसे दकसी बी अॊक से
गुणा कयने ऩय उसका भूराॊक नौ ही प्राद्ऱ होता हं । आमुवद
े के जानकाय भानते हं की भानव शयीय वात,
त्रऩत्त औय कप तीनो के सॊमोग से फना हं ।
52 ददसम्फय 2012

मदद भानव शयीय भं मे तीनं एक सॊतुरीत रुऩ भं सॊचाय होने रगता हं एवॊ साधक का चेहया काॊसतभम
त्रवध्वभान हो, तो भानव शयीय स्वस्थ भाना जाता हं । मदद फनने रगता हं ।
इन तीनं भं से दकसी एक का सॊतुरन त्रफगि जाए तो भारा पेयने से स्वास्थ्म राब:
शयीय भं योग उत्ऩन्न होता हं । हभाये त्रवद्रान ऋषी-भुसनमं भारा पेयते सभम उॊ गरी के भाध्मभ से त्रवद्युत तयॊ ग
नी हजायो वषा ऩूवा महॊ ऻात कय सरमा था की, भान उत्ऩन्न होती है , जो धभसनमं से रृदम भं ऩहुॊचकय भन
शयीय भं उत्ऩन्न होने वारे प्राम् सबी योग उसके भन के भस्स्तष्क को स्स्थयता प्रदान कयती हं ।
दोषं से उत्ऩन्न होते हं , स्जसे आजके आधुसनक मुग भं भारा पेयते सभम भध्मभा उॊ गरी ऩय ऩडऩे वारे दफाव से
ससद्ध हो चुकी हं की भनुष्म अऩने भनोफर ऩय सदै व रृदम को योग होने की सॊबावना को कभ यहती हं ।
स्वस्थ यह सकता हं , मदद छोटी-भोटी फीभायीमं को अऩने भारा पेयने से उॊ गरी औय अॊगूठे के अग्र बाग ऩय दफाव ऩिता
भनोफर से दयू कयने भं सभथा हं । है औय मही दफाव भन को एकाग्र कयने भं हभायी भदद कयता
भारा पेयने से उॊ गरी औय अॊगूठेके अग्र बाग ऩय दफाव है ।
ऩडता हं । मह दफाव हभाये भन को एकाग्र कयने भं हभायी इससरए ऋषी-भुसनमं ने उस कार भं ही खोज
सहामता कयता हं औय हभाये सबतय आध्मास्त्भकता का सनकारा था की भन से ही प्राम् त्रवसबना शायीरयक दोषं ऩय
त्रवकास होता हं । असधक भारा पेयने से िोध एवॊ सनमॊिण यखा जा सकता हं , इससरए भारा के 108 गुटकं मा
वासनाएॊ शाॊत होने रगती हं । शयीय भं नई उजाा का दानं का नाभ बी भनका यखा गमा होगा?

अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कवच


अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवच व उल्रेस्खत अन्म साभग्रीमं को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान
ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुज
ॊ म भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात कवच अत्मॊत
प्रबावशारी होता हं ।

अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवच


अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम
कवच फनवाने हे तु:
अऩना नाभ, त्रऩता-भाता का नाभ, कवच
गोि, एक नमा पोटो बेजे दस्ऺणा भाि: 10900

कवच के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कयं ।


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53 ददसम्फय 2012

भारा से सॊफॊसधत शास्त्रोि भत


 सचॊतन जोशी
कारी तॊि भं उल्रेख हं , हे यण्ड तॊि के अनुसाय स्तम्बन, वशीकयन आदद
शॊख की भार से भन्ि जऩ कयने से सौगुना पर कामं भं अॊगूठे के अग्रबाव से भारा का जऩ कयना
सभरता हं । प्रवार(भूॊग)े की भारा से सहस्त्र गुना, स्पदटक चादहए। आकषाण के सरए अॊगूठा व तजानी का प्रमोग
की भारा से दस सहस्त्र गुना, भुिक से राख गुना, कभर कयना चादहए, भायण के सरए अॊगूठा औय कसनद्षा का
गट्टे की भारा से दशराख गुना, कुशभूर की भारा से सौ प्रमोग कयना चादहए।
कयोि गुना तथा रुराऺ की भारा से अनन्त कोदट पर भन्ि जऩ हे तु ददशा चमन
की प्रासद्ऱ होती हं ।  वशीकयण कामो के सरए ऩूवा ददशा की ओय भुॊह कयके जऩ
कयना चादहए।
अन्म भत के अनुशाय:  भायण कामं के सरए दस्ऺण ददशा की ओय भुॊह कयके जऩ

स्पादटकी भौस्क्तकी वात्रऩ प्रोतव्मा ससतिकै्। कयना चादहए।


 धन प्रासद्ऱ के सरए ऩस्द्ळभ ददशा की ओय भुॊह कयके जऩ
सवाकभासभृद्धमथं जऩे रुराऺभारमा्॥
कयना चादहए।
स्पादटकैरऺसाहस्त्रॊ भैस्क्तकैराऺभेव च।
 सभस्त शुबकामं एवॊ शाॊसत कभा भं उत्तय ददशा की ओय
दशारऺॊ याजताऺै् सौवणे् कोदटरुच्मते॥ भुॊह कयके जऩ कयना चादहए।
अथाात् स्पदटक औय भोसतमं की भारा धागे भं त्रऩयोकय  आकषाण कामो के सरए अस्ग्न कोण की ओय भुॊह कयके
धायण की जा सकती हं रेदकन रुराऺ को चाॊदद के ताय जऩ कयना चादहए।
भं त्रऩयोकय भारा रुऩ भं धायण कयने ऩय तथा जऩ कयने  शिु नाश के सरए वामव्म कोण की ओय भुॊह कयके जऩ
से कई कामा सपर होते हं । स्पदटक भारा का हजायो कयना चादहए।
राखो गुना पर सभरता हं भोसतमं की भारा राख गुना  इद्श दशान के सरए नैकत्म कोण की ओय भुॊह कयके जऩ
पर दे ती हं , औय चाॊदद की भारा राख गुना व सुवणा की कयना चादहए।
भारा कयोिो गुना पर दे ती हं ।  ऻान की प्रासद्ऱ के सरए ईशान कोण की ओय भुॊह कयके
कारी तॊि के अनुसाय श्भसान भं स्स्थत धतूये की जऩ कयना चादहए।
भारा श्रेद्ष होती हं । शिुनाश के सरए कभरगट्टे की
जऩ के सनमभ
भारा, ऩाऩनाश के सरए कुशभूर की भारा, सॊतान प्रासद्ऱ
त्रवशेष भन्ि साधना भं जऩ का त्रवशेष भहत्व होता हं ।
हे तु ऩुिजीवा के फीज की भारा, ऎद्वमा की प्रासद्ऱ के सरए
जऩ के भहत्व को फतात हुए स्वमॊ बगवान ने
भूॊगे की भारा का प्रमोग कयना चादहए।
कहाॊ हं :-
गौतभीम तॊि भं उल्रेख हं , की अथा प्रासद्ऱ के सरए
मऻाना जऩ मऻो स्स्भ
तीस भनकं की भारा, सवा काभना ससत्रद्ध के सरए सत्ताईस
ऩाठको के भागादशान के उद्दे श्म से महाॊ कुछ त्रवशेष
भनकं की भारा, भायण कामा के सरए ऩन्रह भनकं की
सनमभ ददए जा यहे हं । क्मोदक भन्ि जऩ के सरए कुछ
भारा का प्रमोग कयना चादहए।
त्रवशेष सनमभो का ध्मान यखना आवश्मक भाना गमा हं ।
54 ददसम्फय 2012

 जऩ कयने से ऩूवा ब्राह्मण को सशखा फन्धन अवश्म के धासभाक कामा, त्रफना जर के दान एवॊ त्रफना गणना के
कयना चादहए। क्मोदक त्रफना सशखा भं गाॊठ ददमे जो जऩ सनष्पर होते हं ।
भन्त जऩ दकमा जाता हं , वह सनष्पर होता हं ।
त्रफना दभबंद्ळ मत्कृ त्मॊ मच्चदानॊ त्रवनोदकभ ्।
असॊख्ममा तु मज्जप्तॊ त्तसवा सनष्परॊ बवत ्॥
इस सरए शास्त्रं भं उल्रेख हं की...
सदो ऩवीसतना बाव्मॊ सदा फद्ध सशखेन च। जऩ का पर:-
त्रवसशखो व्मुऩवीततश्च ् मत ् कयोसत न तत कृ तभ ्॥ गृहे चैकगुण् प्रोि् गोद्षे शतगुण् स्भृत् ।
ऩुण्मायण्मे तथा तीथे सहस्त्रगुणभुच्मते ॥
ब्रह्माण्ड ऩुयाण के अनुशाय: अमुत् ऩवाते ऩुण्मॊ नद्याॊ रऺगुणो जऩ् ।
 भन्ि जऩ कयते सभम आसन त्रफछा होना चादहए। कोदटदे वरमे प्राद्ऱे अनन्तॊ सशवसॊसनधौ ॥
आसन मदद पटा हो, टू टा-कटा हो, जीणा मा सछर
 घय भं फैठ कय भन्ि जऩ कयने से एक गुना पर
होगए हो तो उसका त्माग कयना चादहए।
सभरता हं ।
 त्रफना आसन के केवर बूसभ ऩय फैठकय जऩ कयने से
 गौशारा भं भन्ि जऩ कयने से सौगुना पर प्राद्ऱ हं ।
दख
ु की प्रासद्ऱ होती हं ।  ऩुण्म स्थान वन-वादटका मा तीथा स्थान ऩय भन्ि जऩ
 फाॊस के आसन ऩय फैठकय भन्ि जऩ कयने से दरयरता
कयने से हजाय गुना पर प्राद्ऱ हं ।
आती हं ।
 ऩवात ऩय भन्ि जऩ कयने से दस हजाय गुना पर
 ऩत्थय के आसन ऩय फैठकय भन्ि जऩ कयने से योग
प्राद्ऱ हं ।
होते हं ।
 नदी तट ऩय भन्ि जऩ कयने से राख गुना पर प्राद्ऱ
 काद्ष अथाात रकडी के आसन ऩय फैठकय भन्ि जऩ
हं ।
कयने से दब
ु ााग्म की प्रासद्ऱ होती हं ।  दे वारम भं भन्ि जऩ कयने से कयोि गुना पर प्राद्ऱ
 तृणासन के आसन ऩय फैठकय भन्ि जऩ कयने से
हं ।
मश-कीसता नद्श होती हं ।
 सशवसरङ्गके सनकट भन्ि जऩ कयने से अनॊत कोदट
 ऩत्तं के आसन ऩय फैठकय भन्ि जऩ कयने से सचत्त
पर की प्रासद्ऱ होती हं ।
की उदद्रग्नता फढ़ती हं ।
त्रवशेष नोट:
 भन्ि जऩ भं प्रमोग की जाने वारी मा धायण दक
शास्त्रं भं उल्रेख हं :- गई भारा को कबी खूट
ॊ ी आदद ऩय रटकाना नहीॊ
चादहए।
काम्माथा कम्फरॊ चैव श्रेद्षॊ च यक्त कम्फरभ ्।  धायण दक हुई भार जफ उताये तो उसे दे वस्थान

कुशासने भन्िससत्रद्धनााि कामा त्रवचायणा। ऩय यखना चादहए।


 भारा को यजस्वरा स्त्री का स्ऩशा मा ऩयछाई से

त्रफना सॊख्मा अथाात सगनती के जऩ कयने से पर का दयू यखनी चादहए।

नाश होता हं , अॊसगया स्भृसत भं उल्रेख हं की- त्रफना दॊ ब  श्भशान जात सभम मा भृतक को छुते सभम
भारा को सनकार दे ना चादहए।
55 ददसम्फय 2012

हभाये त्रवशेष मॊि


व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि: हभाये अनुबवं के अनुशाय मह मॊि व्माऩाय वृत्रद्ध एवॊ ऩरयवाय भं सुख सभृत्रद्ध हे तु त्रवशेष प्रबावशारी हं ।
बूसभराब मॊि: बूसभ, बवन, खेती से सॊफॊसधत व्मवसाम से जुिे रोगं के सरए बूसभराब मॊि त्रवशेष राबकायी ससद्ध
हुवा हं ।
तॊि यऺा मॊि: दकसी शिु द्राया दकमे गमे भॊि-तॊि आदद के प्रबाव को दयू कयने एवॊ बूत, प्रेत नज़य आदद फुयी शत्रिमं
से यऺा हे तु त्रवशेष प्रबावशारी हं ।
आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि: अऩने नाभ के अनुशाय ही भनुष्म को आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ हे तु परप्रद हं इस मॊि के
ऩूजन से साधक को अप्रत्मासशत धन राब प्राद्ऱ होता हं । चाहे वह धन राब व्मवसाम से हो, नौकयी से हो, धन-सॊऩत्रत्त
इत्मादद दकसी बी भाध्मभ से मह राब प्राद्ऱ हो सकता हं । हभाये वषं के अनुसॊधान एवॊ अनुबवं से हभने आकस्स्भक
धन प्रासद्ऱ मॊि से शेमय रेडे दडॊ ग, सोने-चाॊदी के व्माऩाय इत्मादद सॊफॊसधत ऺेि से जुडे रोगो को त्रवशेष रुऩ से आकस्स्भक
धन राब प्राद्ऱ होते दे खा हं । आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि से त्रवसबन्न स्रोत से धनराब बी सभर सकता हं ।
ऩदौन्नसत मॊि: ऩदौन्नसत मॊि नौकयी ऩैसा रोगो के सरए राबप्रद हं । स्जन रोगं को अत्मासधक ऩरयश्रभ एवॊ श्रेद्ष कामा
कयने ऩय बी नौकयी भं उन्नसत अथाात प्रभोशन नहीॊ सभर यहा हो उनके सरए मह त्रवशेष राबप्रद हो सकता हं ।
यत्नेद्वयी मॊि: यत्नेद्वयी मॊि हीये -जवाहयात, यत्न ऩत्थय, सोना-चाॊदी, ज्वैरयी से सॊफॊसधत व्मवसाम से जुडे रोगं के सरए
असधक प्रबावी हं । शेय फाजाय भं सोने-चाॊदी जैसी फहुभूल्म धातुओॊ भं सनवेश कयने वारे रोगं के सरए बी त्रवशेष
राबदाम हं ।
बूसभ प्रासद्ऱ मॊि: जो रोग खेती, व्मवसाम मा सनवास स्थान हे तु उत्तभ बूसभ आदद प्राद्ऱ कयना चाहते हं , रेदकन उस
कामा भं कोई ना कोई अिचन मा फाधा-त्रवघ्न आते यहते हो स्जस कायण कामा ऩूणा नहीॊ हो यहा हो, तो उनके सरए
बूसभ प्रासद्ऱ मॊि उत्तभ परप्रद हो सकता हं ।
गृह प्रासद्ऱ मॊि: जो रोग स्वमॊ का घय, दक
ु ान, ओदपस, पैक्टयी आदद के सरए बवन प्राद्ऱ कयना चाहते हं । मथाथा
प्रमासो के उऩयाॊत बी उनकी असबराषा ऩूणा नहीॊ हो ऩायही हो उनके सरए गृह प्रासद्ऱ मॊि त्रवशेष उऩमोगी ससद्ध हो सकता हं ।
कैरास धन यऺा मॊि: कैरास धन यऺा मॊि धन वृत्रद्ध एवॊ सुख सभृत्रद्ध हे तु त्रवशेष परदाम हं ।
आसथाक राब एवॊ सुख सभृत्रद्ध हे तु 19 दर
ु ब
ा रक्ष्भी मॊि

त्रवसबन्न रक्ष्भी मॊि


श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि कनक धाया मॊि
श्री मॊि (भॊि यदहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि)

श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सदहत) रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि श्री श्री मॊि (रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री

भहामॊि)

श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि अॊकात्भक फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी फीसा मॊि ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩृद्षीम) रक्ष्भी गणेश मॊि धनदा मॊि

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56 ददसम्फय 2012

धन प्रासद्ऱ हे तु उत्तभ परदामी हं स्पदटक श्रीमॊि


 सचॊतन जोशी

आज के बौसतक मुग भं अथा (धन (जीवन दक भुख्म आवश्मिाओॊ भं से एक है । धनाढ्म व्मत्रिओॊ जीवनशैरी को
दे खकय प्रबात्रवत होते हुवे साधायण व्मदक दक बी काभना होती हं , दक उसके ऩास बी इतना धन हो दक वह अऩने जीवन
भं सभस्त बौसतक सुखो को बोग ने भं सभथा हं। एसी स्स्थभं भेहनत, ऩरयश्रभ से कभाई कयके धन अस्जात कयने के
फजाम कुछ रोग अल्ऩ सभम भं ज्मादा कभाने दक भानससकता के कायण कबी-कबी गरत तयीकं अऩनाते हं ।
स्जसके पर स्वरुऩ एसे रोग धन का वास्तत्रवक सुख बोगने से वॊसचत यह जाते
हं औय योग, तनाव, भानससक अशाॊसत जेसी अन्म सभस्माओॊ से ग्रस्त हो जाते हं ।
जहाॊ गरत तयीकं से कभामे हुवे धन के कायण सभाज एसे रोगो को हीन बाव
से दे खते हं । जफदक भेहनत, ऩरयश्रभ से काभामे हुवे धन से स्वमॊ का आत्भत्रवद्वास
फढता हं एवॊ सभाज भं प्रसतद्षा औय भान सम्भान बी सयरता से प्राद्ऱ हो जाता हं ।
जो व्मत्रि धासभाक त्रवचाय धायाओॊ से जुडे हो वह इद्वय भं त्रवद्वाय यखते हुवे स्वमॊ दक
भेहनत, ऩरयश्रभ के फर ऩय कभामे हुवे धन को दह सच्चा सुख भानते हं । धभा भं आस्था
एवॊ त्रवद्वास यखने वारे व्मत्रि के सरमे भेहनत, ऩरयश्रभ कयने के उऩयाॊत अऩनी आसथाक
स्स्थभं उन्नसत एवॊ रक्ष्भी को स्स्थय कयने हे तु, श्री मॊि के ऩूजन का उऩाम अऩनाकय
जीवन भं दकसी बी सुख से वॊसचत नहीॊ यह सकते, उन्हं अऩने जीवन भं कबी धन का
अबाव नहीॊ यहता। उनके सभस्त कामा सुचारु रुऩ से चरते हं । रक्ष्भी कृ ऩा प्रासद्ऱ के
सरए श्रीमॊि का सयर ऩूजन त्रवधान स्जसे अऩना कय साधायण व्मत्रि त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । इस भं जया बी सॊशम नहीॊ हं ।

श्रीमॊि का ऩूजन यॊ क से याजा फनाने वारा एवॊ व्मत्रि दक दरयरता को दयू कयने वारा हं ।
 अऩने ऩूजा स्थान भं प्राण-प्रसतत्रद्षत श्रीमॊि को ऩूजन के सरमे स्थात्रऩत कयं । )प्राण-प्रसतत्रद्षत श्रीमॊि दकसी बी
मोग्म त्रवद्रान ब्राह्मण मा मोग्म जानकाय से ससद्ध कयवारे
 श्री मॊि को प्रत्मेक शुिवाय को दध
ु , दही, शहद, घी औय शक्कय (गुि) अथाात ऩॊचाभृत फनाकय स्नान कयामे।
 स्नान के ऩद्ळमात उसे रार कऩडे से ऩोछ दं ।
 श्री मॊि को दकसी चाॊदी मा ताॊफे दक प्रेट भं स्थाऩीत कयं ।
 श्री मॊि के नीचे 5 रुऩमे मा 10 रुऩमे का नोट यखदं । (5,10 रुऩमे का ससक्का नहीॊ)
 श्री मॊि स्थात्रऩत कयने वारी प्रेट भं श्रीमॊि ऩय स्पदटक दक भारा को चायं ओय घुभाते हुवे स्थात्रऩत कयं ।
 श्री मॊि के उऩय भौरी का टु कडा 3-5 फाय घुभाते हुवे अत्रऩत
ा कयं ।
 श्री मॊि के उऩय सुखा अद्श गॊध सछडकं।
 मदद सॊबव हो तो रार ऩुष्ऩ अत्रऩत
ा कयं । (कभर, भॊदाय(जासूद) मा गुराफ हो तो उत्तभ)
 धूऩ-दीऩ इत्मादी से त्रवसधवत ऩूजन कयं ।
 उऩयोि त्रवधन प्रसत शुिवाय कयं एवॊ अन्म ददन केवर धूऩ-दीऩ कयं ।
 दकसी एक रक्ष्भी भॊि का एक भारा भॊि जऩ कयं । श्रीसूि, अद्श रक्ष्भी स्तोि इत्मादी का ऩाठ कयं मदद ऩाठ कयने भं आऩ
असभथा होतो फाजाय भं श्रीसूि, अद्श रक्ष्भी इत्मादी स्तोि दक केसेट सीडी सभरती हं उसका श्रवण कयं ।
57 ददसम्फय 2012

 ऩूजा भं जाने-अनजाने हुई गरती के सरए रक्ष्भीजी का स्भयण कयते हुवे ऺभा भाॊगकय सुख, सौबाग्म औय सभृत्रद्ध
दक काभना कयं ।
 प्रसत शुिवाय उऩयोि ऩूजन कयने से जीवन भं दकसी बी प्रकाय का आसथाक सॊकट नहीॊ आता।
 मदी आसथाक सॊकट से ऩये शान हं तो श्री मॊि के ऩूजन से सभस्त प्रकाय के आसथाक सॊकट धीये -धीये दयू हो जाते हं ।
नोट: श्री मॊि के के नीचे यखा हुवा नोट प्रसत एक-दो भास भं एक फाय दकसी दे वी भॊदीय भं बेट कय दं । (राब प्राद्ऱ होने ऩय फदरे)
 प्रथन फाय यखा हुवा नोट श्री मॊि के ऩूजन से राब होने के फाद ही फदरे। राब प्राद्ऱ होना शुरु होने तक नोट को यखे यहं ।
 राब प्राद्ऱ होना शुरु होने के ऩद्ळमात प्रसत भाह भं एक फाये प्रसतऩदा(एकभ) को ऩुयाना नोट फदर कय नमे नोट यखं।
 जेसे-जेसे राब प्राद्ऱ होने रगे आऩ के अनुकूर कामा हो ने रगे तो नोट दक यकभ फढाते यहं । असधक राब प्राद्ऱ होता हं ।

उदाहण: मदद ऩहरे 5 रुऩमे का नोट यखा हं तो उस्से राब होने के ऩद्ळमात नोट फदरते हुवे 10 रुऩमे का नोट यखे। 10 रुऩमे का
नोट यखने से राब होने के ऩद्ळमात नोट फदरते हुवे 20 रुऩमे का नोट यखे। इसी प्रकाय नोट को फदते यहं इस्से असधक राब प्राद्ऱ
होता हं ।
असधक राब प्रासद्ऱ हे तु साभान्म सनमभ:
ऩूजन के ददन ब्रह्मचमा का ऩारन कयं ।
ऩूजन के ददन सुगॊसधत तेर, ऩयफ्मूभ, इि का प्रमोग कयने से फचे।
त्रफना प्माज-रहसून का शाकाहायी बोजन ग्रहण कयं । शुिवाय सपेद सभद्षान बोजन भं ग्रहण कयं ।

भॊि ससद्ध स्पदटक श्री मॊि


"श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शत्रिशारी मॊि है । "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोदक मह अत्मन्त शुब फ़रदमी मॊि है ।
जो न केवर दस
ू ये मन्िो से असधक से असधक राब दे ने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय व्मत्रि के सरए पामदे भॊद सात्रफत होता है । ऩूणा
प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा चैतन्म मुि "श्री मॊि" स्जस व्मत्रि के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मन्त फ़रदामी ससद्ध होता है
उसके दशान भाि से अन-सगनत राब एवॊ सुख की प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि" भे सभाई अदद्रतीम एवॊ अरश्म शत्रि भनुष्म की
सभस्त शुब इच्छाओॊ को ऩूया कयने भे सभथा होसत है । स्जस्से उसका जीवन से हताशा औय सनयाशा दयू होकय वह भनुष्म
असफ़रता से सफ़रता दक औय सनयन्तय गसत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे सभस्त बौसतक सुखो दक प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि"
भनुष्म जीवन भं उत्ऩन्न होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दयू कय सकायत्भक उजाा का सनभााण कयने भे सभथा
है । "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थात्रऩत कयने से वास्तु दोष म वास्तु से सम्फस्न्धत ऩये शासन भे न्मुनता
आसत है व सुख-सभृत्रद्ध, शाॊसत एवॊ ऐद्वमा दक प्रसद्ऱ होती है ।
गुरुत्व कामाारम भे "श्री मॊि" 12 ग्राभ से 2250 Gram (2.25Kg) तक दक साइज भे उप्रब्दध है
.

भूल्म:- प्रसत ग्राभ Rs. 10.50 से Rs.28.00


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58 ददसम्फय 2012

सवाससत्रद्धदामक भुदरका
इस भुदरका भं भूॊगे को शुब भुहूता भं त्रिधातु (सुवणा+यजत+ताॊफ)ं भं जिवा कय उसे शास्त्रोि त्रवसध-
त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया सवाससत्रद्धदामक फनाने हे तु प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा चैतन्म मुि दकमा
जाता हं । इस भुदरका को दकसी बी वगा के व्मत्रि हाथ की दकसी बी उॊ गरी भं धायण कय सकते हं ।
महॊ भुदरका कबी दकसी बी स्स्थती भं अऩत्रवि नहीॊ होती। इस सरए कबी भुदरका को उतायने की
आवश्मिा नहीॊ हं । इसे धायण कयने से व्मत्रि की सभस्माओॊ का सभाधान होने रगता हं । धायणकताा
को जीवन भं सपरता प्रासद्ऱ एवॊ उन्नसत के नमे भागा प्रसस्त होते यहते हं औय जीवन भं सबी प्रकाय
की ससत्रद्धमाॊ बी शीध्र प्राद्ऱ होती हं । भूल्म भाि- 6400/-
(नोट: इस भुदरका को धायण कयने से भॊगर ग्रह का कोई फुया प्रबाव साधक ऩय नहीॊ होता हं ।)
सवाससत्रद्धदामक भुदरका के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कयं ।

ऩसत-ऩत्नी भं करह सनवायण हे तु


मदद ऩरयवायं भं सुख-सुत्रवधा के सभस्त साधान होते हुए बी छोटी-छोटी फातो भं ऩसत-ऩत्नी के त्रफच भे करह होता यहता हं ,
तो घय के स्जतने सदस्म हो उन सफके नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत
ऩूणा चैतन्म मुि वशीकयण कवच एवॊ गृह करह नाशक दडब्दफी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं त्रफना दकसी ऩूजा, त्रवसध-
त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मदद आऩ भॊि ससद्ध ऩसत वशीकयण मा ऩत्नी वशीकयण एवॊ गृह करह
नाशक दडब्दफी फनवाना चाहते हं , तो सॊऩका आऩ कय सकते हं ।

100 से असधक जैन मॊि


हभाये महाॊ जैन धभा के सबी प्रभुख, दर
ु ब
ा एवॊ शीघ्र प्रबावशारी मॊि ताम्र ऩि,
ससरवय (चाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे उऩरब्दध हं ।
हभाये महाॊ सबी प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय (चाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है । इसके
अरावा आऩकी आवश्मकता अनुशाय आऩके द्राया प्राद्ऱ (सचि, मॊि, दिज़ाईन) के अनुरुऩ मॊि बी फनवाए
जाते है . गुरुत्व कामाारम द्राया उऩरब्दध कयामे गमे सबी मॊि अखॊदडत एवॊ 22 गेज शुद्ध कोऩय(ताम्र
ऩि)- 99.99 टच शुद्ध ससरवय (चाॊदी) एवॊ 22 केये ट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है । मॊि के त्रवषम भे
असधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कयं ।
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59 ददसम्फय 2012

द्रादश भहा मॊि


मॊि को असत प्रासचन एवॊ दर
ु ब
ा मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान
द्राया फनामा गमा हं ।
 ऩयभ दर
ु ब
ा वशीकयण मॊि,  सहस्त्राऺी रक्ष्भी आफद्ध मॊि
 बाग्मोदम मॊि  आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि
 भनोवाॊसछत कामा ससत्रद्ध मॊि  ऩूणा ऩौरुष प्रासद्ऱ काभदे व मॊि
 याज्म फाधा सनवृत्रत्त मॊि  योग सनवृत्रत्त मॊि
 गृहस्थ सुख मॊि  साधना ससत्रद्ध मॊि
 शीघ्र त्रववाह सॊऩन्न गौयी अनॊग मॊि  शिु दभन मॊि

उऩयोि सबी मॊिो को द्रादश भहा मॊि के रुऩ भं शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध ऩूणा
प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ चैतन्म मुि दकमे जाते हं । स्जसे स्थाऩीत कय त्रफना दकसी ऩूजा अचाना-
त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं ।

 क्मा आऩके फच्चे कुसॊगती के सशकाय हं ?

 क्मा आऩके फच्चे आऩका कहना नहीॊ भान यहे हं ?

 क्मा आऩके फच्चे घय भं अशाॊसत ऩैदा कय यहे हं ?

घय ऩरयवाय भं शाॊसत एवॊ फच्चे को कुसॊगती से छुडाने हे तु फच्चे के नाभ से गुरुत्व कामाारत
द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा चैतन्म मुि वशीकयण कवच एवॊ
एस.एन.दडब्दफी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ
त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मदद आऩ तो आऩ भॊि ससद्ध वशीकयण कवच एवॊ एस.एन.दडब्दफी
फनवाना चाहते हं , तो सॊऩका इस कय सकते हं ।

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BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
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60 ददसम्फय 2012

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61 ददसम्फय 2012

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62 ददसम्फय 2012

सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत 22 गेज शुद्ध स्टीर भं सनसभात अखॊदडत

ऩुरुषाकाय शसन मॊि


ऩुरुषाकाय शसन मॊि (स्टीर भं) को तीव्र प्रबावशारी फनाने हे तु शसन की कायक धातु शुद्ध स्टीर(रोहे )
भं फनामा गमा हं । स्जस के प्रबाव से साधक को तत्कार राब प्राद्ऱ होता हं । मदद जन्भ कॊु डरी भं
शसन प्रसतकूर होने ऩय व्मत्रि को अनेक कामं भं असपरता प्राद्ऱ होती है , कबी व्मवसाम भं घटा,
नौकयी भं ऩये शानी, वाहन दघ
ु ट
ा ना, गृह क्रेश आदद ऩये शानीमाॊ फढ़ती जाती है ऐसी स्स्थसतमं भं
प्राणप्रसतत्रद्षत ग्रह ऩीिा सनवायक शसन मॊि की अऩने को व्मऩाय स्थान मा घय भं स्थाऩना कयने से
अनेक राब सभरते हं । मदद शसन की ढै ़मा मा साढ़े साती का सभम हो तो इसे अवश्म ऩूजना चादहए।
शसनमॊि के ऩूजन भाि से व्मत्रि को भृत्मु, कजा, कोटा केश, जोडो का ददा , फात योग तथा रम्फे सभम
के सबी प्रकाय के योग से ऩये शान व्मत्रि के सरमे शसन मॊि असधक राबकायी होगा। नौकयी ऩेशा आदद
के रोगं को ऩदौन्नसत बी शसन द्राया ही सभरती है अत् मह मॊि असत उऩमोगी मॊि है स्जसके द्राया
शीघ्र ही राब ऩामा जा सकता है । भूल्म: 1050 से 8200

सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत
22 गेज शुद्ध स्टीर भं सनसभात अखॊदडत

शसन तैसतसा मॊि


शसनग्रह से सॊफॊसधत ऩीडा के सनवायण हे तु त्रवशेष राबकायी मॊि।
भूल्म: 550 से 8200

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63 ददसम्फय 2012

नवयत्न जदित श्री मॊि


शास्त्र वचन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत
भं सनसभात श्री मॊि के चायं औय मदद नवयत्न
जिवा ने ऩय मह नवयत्न जदित श्री मॊि
कहराता हं । सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत
स्थान ऩय जि कय रॉकेट के रूऩ भं धायण
कयने से व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी
की प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि को एसा आबास
होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं ।
नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं
की अशुब दशा का धायणकयने वारे व्मत्रि
ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं ।

गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो
जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हं , वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं । इस सरमे इसे सफसे
तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं । जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी
प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि वचन हं । इस प्रकाय के
नवयत्न जदित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते
हं । Rs: 2350, 2800, 3250, 3700, 4600, 5500 से 10,900 तक
असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।

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64 ददसम्फय 2012

भॊि ससद्ध वाहन दघ


ु ट
ा ना नाशक भारुसत मॊि
ऩौयास्णक ग्रॊथो भं उल्रेख हं की भहाबायत के मुद्ध के सभम अजुन
ा के यथ के अग्रबाग ऩय भारुसत ध्वज एवॊ
भारुसत मन्ि रगा हुआ था। इसी मॊि के प्रबाव के कायण सॊऩूणा मुद्ध के दौयान हज़ायं-राखं प्रकाय के आग्नेम अस्त्र-
शस्त्रं का प्रहाय होने के फाद बी अजुन
ा का यथ जया बी ऺसतग्रस्त नहीॊ हुआ। बगवान श्री कृ ष्ण भारुसत मॊि के इस
अद्भुत
ु यहस्म को जानते थे दक स्जस यथ मा वाहन की यऺा स्वमॊ श्री भारुसत नॊदन कयते हं, वह दघ
ु ट
ा नाग्रस्त कैसे हो
सकता हं । वह यथ मा वाहन तो वामुवेग से, सनफाासधत रुऩ से अऩने रक्ष्म ऩय त्रवजम ऩतका रहयाता हुआ ऩहुॊचेगा।
इसी सरमे श्री कृ ष्ण नं अजुन
ा के यथ ऩय श्री भारुसत मॊि को अॊदकत कयवामा था।
स्जन रोगं के स्कूटय, काय, फस, रेडक इत्मादद वाहन फाय-फाय दघ
ु ट
ा ना ग्रस्त हो यहे हो!, अनावश्मक वाहन को
नुऺान हो यहा हं! उन्हं हानी एवॊ दघ
ु ट
ा ना से यऺा के उद्दे श्म से अऩने वाहन ऩय भॊि ससद्ध श्री भारुसत मॊि अवश्म
रगाना चादहए। जो रोग रेडान्स्ऩोदटं ग (ऩरयवहन) के व्मवसाम से जुडे हं उनको श्रीभारुसत मॊि को अऩने वाहन भं अवश्म
स्थात्रऩत कयना चादहए, क्मोदक, इसी व्मवसाम से जुडे सैकडं रोगं का अनुबव यहा हं की श्री भारुसत मॊि को स्थात्रऩत
कयने से उनके वाहन असधक ददन तक अनावश्मक खचो से एवॊ दघ
ु ट
ा नाओॊ से सुयस्ऺत यहे हं । हभाया स्वमॊका एवॊ अन्म
त्रवद्रानो का अनुबव यहा हं , की स्जन रोगं ने श्री भारुसत मॊि अऩने वाहन ऩय रगामा हं , उन रोगं के वाहन फडी से
फडी दघ
ु ट
ा नाओॊ से सुयस्ऺत यहते हं । उनके वाहनो को कोई त्रवशेष नुक्शान इत्मादद नहीॊ होता हं औय नाहीॊ अनावश्मक
रुऩ से उसभं खयाफी आसत हं ।
वास्तु प्रमोग भं भारुसत मॊि: मह भारुसत नॊदन श्री हनुभान जी का मॊि है । मदद कोई जभीन त्रफक नहीॊ यही हो, मा उस
ऩय कोई वाद-त्रववाद हो, तो इच्छा के अनुरूऩ वहॉ जभीन उसचत भूल्म ऩय त्रफक जामे इस सरमे इस भारुसत मॊि का
प्रमोग दकमा जा सकता हं । इस भारुसत मॊि के प्रमोग से जभीन शीघ्र त्रफक जाएगी मा त्रववादभुि हो जाएगी। इस सरमे
मह मॊि दोहयी शत्रि से मुि है ।
भारुसत मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कयं । भूल्म Rs- 255 से 10900 तक

श्री हनुभान मॊि शास्त्रं भं उल्रेख हं की श्री हनुभान जी को बगवान सूमद


ा े व ने ब्रह्मा जी के आदे श ऩय हनुभान
जी को अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान दकमा था, दक भं हनुभान को सबी शास्त्र का ऩूणा
ऻान दॉ ग
ू ा। स्जससे मह तीनोरोक भं सवा श्रेद्ष विा हंगे तथा शास्त्र त्रवद्या भं इन्हं भहायत हाससर होगी औय इनके
सभन फरशारी औय कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुशाय हनुभान मॊि की आयाधना से ऩुरुषं की त्रवसबन्न फीभारयमं
दयू होती हं , इस मॊि भं अद्भुत
ु शत्रि सभादहत होने के कायण व्मत्रि की स्वप्न दोष, धातु योग, यि दोष, वीमा दोष, भूछाा,
नऩुॊसकता इत्मादद अनेक प्रकाय के दोषो को दयू कयने भं अत्मन्त राबकायी हं । अथाात मह मॊि ऩौरुष को ऩुद्श कयता
हं । श्री हनुभान मॊि व्मत्रि को सॊकट, वाद-त्रववाद, बूत-प्रेत, द्यूत दिमा, त्रवषबम, चोय बम, याज्म बम, भायण, सम्भोहन
स्तॊबन इत्मादद से सॊकटो से यऺा कयता हं औय ससत्रद्ध प्रदान कयने भं सऺभ हं ।
श्री हनुभान मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कयं । भूल्म Rs- 730 से 10900 तक

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65 ददसम्फय 2012

त्रवसबन्न दे वताओॊ के मॊि


गणेश मॊि भहाभृत्मुज
ॊ म मॊि याभ यऺा मॊि याज
गणेश मॊि (सॊऩण
ू ा फीज भॊि सदहत) भहाभृत्मुज
ॊ म कवच मॊि याभ मॊि
गणेश ससद्ध मॊि भहाभृत्मुज
ॊ म ऩूजन मॊि द्रादशाऺय त्रवष्णु भॊि ऩूजन मॊि
एकाऺय गणऩसत मॊि भहाभृत्मुॊजम मुि सशव खप्ऩय भाहा सशव मॊि त्रवष्णु फीसा मॊि
हरयरा गणेश मॊि सशव ऩॊचाऺयी मॊि गरुड ऩूजन मॊि
कुफेय मॊि सशव मॊि सचॊताभणी मॊि याज
श्री द्रादशाऺयी रुर ऩूजन मॊि अदद्रतीम सवाकाम्म ससत्रद्ध सशव मॊि सचॊताभणी मॊि
दत्तािम मॊि नृससॊह ऩूजन मॊि स्वणााकषाणा बैयव मॊि
दत्त मॊि ऩॊचदे व मॊि हनुभान ऩूजन मॊि
आऩदद्ध
ु ायण फटु क बैयव मॊि सॊतान गोऩार मॊि हनुभान मॊि
फटु क मॊि श्री कृ ष्ण अद्शाऺयी भॊि ऩूजन मॊि सॊकट भोचन मॊि
व्मॊकटे श मॊि कृ ष्ण फीसा मॊि वीय साधन ऩूजन मॊि
कातावीमााजन
ुा ऩूजन मॊि सवा काभ प्रद बैयव मॊि दस्ऺणाभूसता ध्मानभ ् मॊि

भनोकाभना ऩूसता एवॊ कद्श सनवायण हे तु त्रवशेष मॊि


व्माऩाय वृत्रद्ध कायक मॊि अभृत तत्व सॊजीवनी कामा कल्ऩ मॊि िम ताऩंसे भुत्रि दाता फीसा मॊि
व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि त्रवजमयाज ऩॊचदशी मॊि भधुभेह सनवायक मॊि
व्माऩाय वधाक मॊि त्रवद्यामश त्रवबूसत याज सम्भान प्रद ससद्ध फीसा मॊि ज्वय सनवायण मॊि
व्माऩायोन्नसत कायी ससद्ध मॊि सम्भान दामक मॊि योग कद्श दरयरता नाशक मॊि
बाग्म वधाक मॊि सुख शाॊसत दामक मॊि योग सनवायक मॊि
स्वस्स्तक मॊि फारा मॊि तनाव भुि फीसा मॊि
सवा कामा फीसा मॊि फारा यऺा मॊि त्रवद्युत भानस मॊि
कामा ससत्रद्ध मॊि गबा स्तम्बन मॊि गृह करह नाशक मॊि
सुख सभृत्रद्ध मॊि ऩुि प्रासद्ऱ मॊि करेश हयण फत्रत्तसा मॊि
सवा रयत्रद्ध ससत्रद्ध प्रद मॊि प्रसूता बम नाशक मॊि वशीकयण मॊि
सवा सुख दामक ऩंसदठमा मॊि प्रसव-कद्शनाशक ऩॊचदशी मॊि भोदहसन वशीकयण मॊि
ऋत्रद्ध ससत्रद्ध दाता मॊि शाॊसत गोऩार मॊि कणा त्रऩशाचनी वशीकयण मॊि
सवा ससत्रद्ध मॊि त्रिशूर फीशा मॊि वाताारी स्तम्बन मॊि
साफय ससत्रद्ध मॊि ऩॊचदशी मॊि (फीसा मॊि मुि चायं प्रकायके) वास्तु मॊि
शाफयी मॊि फेकायी सनवायण मॊि श्री भत्स्म मॊि
ससद्धाश्रभ मॊि षोडशी मॊि वाहन दघ
ु ट
ा ना नाशक मॊि
ज्मोसतष तॊि ऻान त्रवऻान प्रद ससद्ध फीसा मॊि अडसदठमा मॊि प्रेत-फाधा नाशक मॊि
ब्रह्माण्ड साफय ससत्रद्ध मॊि अस्सीमा मॊि बूतादी व्मासधहयण मॊि
कुण्डसरनी ससत्रद्ध मॊि ऋत्रद्ध कायक मॊि कद्श सनवायक ससत्रद्ध फीसा मॊि
िास्न्त औय श्रीवधाक चंतीसा मॊि भन वाॊसछत कन्मा प्रासद्ऱ मॊि बम नाशक मॊि
श्री ऺेभ कल्माणी ससत्रद्ध भहा मॊि त्रववाहकय मॊि स्वप्न बम सनवायक मॊि
66 ददसम्फय 2012

ऻान दाता भहा मॊि रग्न त्रवघ्न सनवायक मॊि कुदृत्रद्श नाशक मॊि
कामा कल्ऩ मॊि रग्न मोग मॊि श्री शिु ऩयाबव मॊि
दीधाामु अभृत तत्व सॊजीवनी मॊि दरयरता त्रवनाशक मॊि शिु दभनाणाव ऩूजन मॊि

भॊि ससद्ध त्रवशेष दै वी मॊि सूसच


आद्य शत्रि दग
ु ाा फीसा मॊि (अॊफाजी फीसा मॊि) सयस्वती मॊि
भहान शत्रि दग
ु ाा मॊि (अॊफाजी मॊि) सद्ऱसती भहामॊि(सॊऩण
ू ा फीज भॊि सदहत)
नव दग
ु ाा मॊि कारी मॊि
नवाणा मॊि (चाभुड
ॊ ा मॊि) श्भशान कारी ऩूजन मॊि
नवाणा फीसा मॊि दस्ऺण कारी ऩूजन मॊि
चाभुड
ॊ ा फीसा मॊि ( नवग्रह मुि) सॊकट भोसचनी कासरका ससत्रद्ध मॊि
त्रिशूर फीसा मॊि खोदडमाय मॊि
फगरा भुखी मॊि खोदडमाय फीसा मॊि
फगरा भुखी ऩूजन मॊि अन्नऩूणाा ऩूजा मॊि
याज याजेद्वयी वाॊछा कल्ऩरता मॊि एकाॊऺी श्रीपर मॊि

भॊि ससद्ध त्रवशेष रक्ष्भी मॊि सूसच


श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि
श्री मॊि (भॊि यदहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि
श्री मॊि (सॊऩण
ू ा भॊि सदहत) रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि
श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी गणेश मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩृद्षीम) ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
रक्ष्भी फीसा मॊि कनक धाया मॊि
श्री श्री मॊि (श्रीश्री रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि) वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि)
अॊकात्भक फीसा मॊि
ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस ताम्र ऩि ऩय
(Gold Plated) (Silver Plated) (Copper)
साईज भूल्म साईज भूल्म साईज भूल्म
1” X 1” 460 1” X 1” 370 1” X 1” 255
2” X 2” 820 2” X 2” 640 2” X 2” 460
3” X 3” 1650 3” X 3” 1090 3” X 3” 730
4” X 4” 2350 4” X 4” 1650 4” X 4” 1090
6” X 6” 3600 6” X 6” 2800 6” X 6” 1900
9” X 9” 6400 9” X 9” 5100 9” X 9” 3250
12” X12” 10800 12” X12” 8200 12” X12” 6400
मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।
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67 ददसम्फय 2012

यासश यत्न
भेष यासश: वृषब यासश: सभथुन यासश: कका यासश: ससॊह यासश: कन्मा यासश:
भूग
ॊ ा हीया ऩन्ना भोती भाणेक ऩन्ना

Red Coral Diamond Green Emerald Naturel Pearl Ruby Green Emerald
(Special) (Special) (Old Berma)
(Special) (Special) (Special) (Special)
5.25" Rs. 1050 10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 9100 5.25" Rs. 910 2.25" Rs. 12500 5.25" Rs. 9100
6.25" Rs. 1250 20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 12500 6.25" Rs. 1250 3.25" Rs. 15500 6.25" Rs. 12500
7.25" Rs. 1450 30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 7.25" Rs. 1450 4.25" Rs. 28000 7.25" Rs. 14500
8.25" Rs. 1800 40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 19000 8.25" Rs. 1900 5.25" Rs. 46000 8.25" Rs. 19000
9.25" Rs. 2100 50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 23000 9.25" Rs. 2300 6.25" Rs. 82000 9.25" Rs. 23000
10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000 10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000
All Diamond are Full
** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati
White Colour.

तुरा यासश: वृस्द्ळक यासश: धनु यासश: भकय यासश: कॊु ब यासश: भीन यासश:
हीया भूग
ॊ ा ऩुखयाज नीरभ नीरभ ऩुखयाज

Diamond Red Coral Y.Sapphire B.Sapphire B.Sapphire Y.Sapphire


(Special)
(Special) (Special) (Special) (Special) (Special)
10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 1050 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000
20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 1250 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000
30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 1450 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000
40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 1800 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000
50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 2100 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000
10.25" Rs. 2800 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000
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** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati
White Colour.

* उऩमोि वजन औय भूल्म से असधक औय कभ वजन औय भूल्म के यत्न एवॊ उऩयत्न बी हभाये महा व्माऩायी भूल्म ऩय उप्रब्दध
हं ।

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भॊि ससद्ध रूराऺ


Rate In Rate In
Rudraksh List Rudraksh List
Indian Rupee Indian Rupee
एकभुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 2800, 5500 आठ भुखी रूराऺ (नेऩार) 820,1250
एकभुखी रूराऺ (नेऩार) 750,1050, 1250, आठ भुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 1900
दो भुखी रूराऺ (हरयराय, याभेद्वय) 30,50,75 नौ भुखी रूराऺ (नेऩार) 910,1250
दो भुखी रूराऺ (नेऩार) 50,100, नौ भुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 2050
दो भुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 450,1250 दस भुखी रूराऺ (नेऩार) 1050,1250
तीन भुखी रूराऺ (हरयराय, याभेद्वय) 30,50,75, दस भुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 2100
तीन भुखी रूराऺ (नेऩार) 50,100, ग्मायह भुखी रूराऺ (नेऩार) 1450,
तीन भुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 450,1250, ग्मायह भुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 2750,
चाय भुखी रूराऺ (हरयराय, याभेद्वय) 25,55,75, फायह भुखी रूराऺ (नेऩार) 2350,
चाय भुखी रूराऺ (नेऩार) 50,100, फायह भुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 2750,
ऩॊच भुखी रूराऺ (नेऩार) 25,55, तेयह भुखी रूराऺ (नेऩार) 4500,5500
ऩॊच भुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 225, 550, तेयह भुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 6400,
छह भुखी रूराऺ (हरयराय, याभेद्वय) 25,55,75, चौदह भुखी रूराऺ (नेऩार) 10500, 12500
छह भुखी रूराऺ (नेऩार) 50,100, चौदह भुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 14500
सात भुखी रूराऺ (हरयराय, याभेद्वय) 75, 155, गौयीशॊकय रूराऺ 1900
सात भुखी रूराऺ (नेऩार) 225, 450, गणेश रुराऺ (नेऩार) 730
सात भुखी रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 1250 गणेश रूराऺ (इन्डोनेसशमा) 820
रुराऺ के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।
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भॊि ससद्ध दर
ु ब
ा साभग्री
हत्था जोडी- Rs- 370 घोडे की नार- Rs.351 भामा जार- Rs- 251
ससमाय ससॊगी- Rs- 370 दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550 इन्र जार- Rs- 251
त्रफल्री नार- Rs- 370 भोसत शॊख- Rs- 550 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251
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69 ददसम्फय 2012

श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि


दकसी बी व्मत्रि का जीवन तफ आसान फन जाता हं जफ उसके चायं औय का भाहोर उसके अनुरुऩ उसके वश
भं हं। जफ कोई व्मत्रि का आकषाण दस
ु यो के उऩय एक चुम्फकीम प्रबाव डारता हं , तफ रोग उसकी सहामता एवॊ
सेवा हे तु तत्ऩय होते है औय उसके प्राम् सबी कामा त्रफना असधक कद्श व ऩये शानी से सॊऩन्न हो जाते हं । आज के
बौसतकता वादद मुग भं हय व्मत्रि के सरमे दस
ू यो को अऩनी औय खीचने हे तु एक प्रबावशासर चुफ
ॊ कत्व को कामभ
यखना असत आवश्मक हो जाता हं । आऩका आकषाण औय व्मत्रित्व आऩके चायो ओय से रोगं को आकत्रषात कये इस
सरमे सयर उऩाम हं , श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि। क्मोदक बगवान श्री कृ ष्ण एक अरौदकव एवॊ ददवम चुॊफकीम व्मत्रित्व के
धनी थे। इसी कायण से श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन एवॊ दशान से आकषाक व्मत्रित्व प्राद्ऱ होता हं ।
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के साथ व्मत्रिको दृढ़ इच्छा शत्रि एवॊ उजाा प्राद्ऱ
होती हं , स्जस्से व्मत्रि हभेशा एक बीड भं हभेशा आकषाण का कंर यहता हं ।
श्रीकृ ष्ण फीसा कवच
मदद दकसी व्मत्रि को अऩनी प्रसतबा व आत्भत्रवद्वास के स्तय भं वृत्रद्ध,
अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफच भं रयश्तो भं सुधाय कयने की ईच्छा होती श्रीकृ ष्ण फीसा कवच को केवर

हं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ त्रवशेष शुब भुहुता भं सनभााण दकमा

सात्रफत हो सकता हं । जाता हं । कवच को त्रवद्रान कभाकाॊडी

श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊदकत शत्रिशारी त्रवशेष ये खाएॊ, फीज भॊि एवॊ ब्राहभणं द्राया शुब भुहुता भं शास्त्रोि

अॊको से व्मत्रि को अ्द्भुत त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो


ु आॊतरयक शत्रिमाॊ प्राद्ऱ होती हं जो व्मत्रि को
सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भं अग्रस्णम फनाने भं सहामक ससद्ध होती हं । द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा चैतन्म

श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान मुि कयके सनभााण दकमा जाता हं ।

श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भं स्वमॊ का अदद्रतीम स्थान स्थात्रऩत कयं । स्जस के पर स्वरुऩ धायण कयता

श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौदकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊचाय कयता हं , जो व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता

एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय सद्दबावना, सभृत्रद्ध, सपरता, उत्तभ हं । कवच को गरे भं धायण कयने

स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हं ! से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता

 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभास्जक भान-सम्भान व हं । गरे भं धायण कयने से कवच

ऩद-प्रसतद्षा भं वृत्रद्ध होती हं । हभेशा रृदम के ऩास यहता हं स्जस्से

 त्रवद्रानो के भतानुशाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र

कंदरत कयने से व्मत्रि दक चेतना शत्रि जाग्रत होकय शीघ्र उच्च स्तय एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हं ।

को प्राद्ऱहोती हं । भूरम भाि: 1900

 जो ऩुरुषं औय भदहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना चाहते हं औय उन्हं अऩनी औय आकत्रषात कयना
चाहते हं । उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्ध हो सकता हं ।
 ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रभ की वृत्रद्ध औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हं ।
भूल्म:- Rs. 730 से Rs. 10900 तक उप्रब्दद्ध
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70 ददसम्फय 2012

याभ यऺा मॊि


याभ यऺा मॊि सबी बम, फाधाओॊ से भुत्रि व कामो भं सपरता प्रासद्ऱ हे तु उत्तभ मॊि हं । स्जसके प्रमोग

से धन राब होता हं व व्मत्रि का सवांगी त्रवकाय होकय उसे सुख-सभृत्रद्ध, भानसम्भान की प्रासद्ऱ होती

हं । याभ यऺा मॊि सबी प्रकाय के अशुब प्रबाव को दयू कय व्मत्रि को जीवन की सबी प्रकाय की

कदठनाइमं से यऺा कयता हं । त्रवद्रानो के भत से जो व्मत्रि बगवान याभ के बि हं मा श्री

हनुभानजी के बि हं उन्हं अऩने सनवास स्थान, व्मवसामीक स्थान ऩय याभ यऺा मॊि को अवश्म

स्थाऩीत कयना चादहमे स्जससे आने वारे सॊकटो से यऺा हो उनका जीवन सुखभम व्मतीत हो सके

एवॊ उनकी सभस्त आदद बौसतक व आध्मास्त्भक भनोकाभनाएॊ ऩूणा हो सके।

ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस ताम्र ऩि ऩय


(Gold Plated) (Silver Plated) (Copper)

साईज भूल्म साईज भूल्म साईज भूल्म


1” X 1” 460 1” X 1” 370 1” X 1” 255
2” X 2” 820 2” X 2” 640 2” X 2” 460
3” X 3” 1650 3” X 3” 1090 3” X 3” 730
4” X 4” 2350 4” X 4” 1650 4” X 4” 1090
6” X 6” 3600 6” X 6” 2800 6” X 6” 1900
9” X 9” 6400 9” X 9” 5100 9” X 9” 3250
12” X12” 10800 12” X12” 8200 12” X12” 6400
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71 ददसम्फय 2012

जैन धभाके त्रवसशद्श मॊिो की सूची


श्री चौफीस तीथंकयका भहान प्रबात्रवत चभत्कायी मॊि श्री एकाऺी नारयमेय मॊि
श्री चोफीस तीथंकय मॊि सवातो बर मॊि
कल्ऩवृऺ मॊि सवा सॊऩत्रत्तकय मॊि
सचॊताभणी ऩाद्वानाथ मॊि सवाकामा-सवा भनोकाभना ससत्रद्धअ मॊि (१३० सवातोबर मॊि)
सचॊताभणी मॊि (ऩंसदठमा मॊि) ऋत्रष भॊडर मॊि
सचॊताभणी चि मॊि जगदवल्रब कय मॊि
श्री चिेद्वयी मॊि ऋत्रद्ध ससत्रद्ध भनोकाभना भान सम्भान प्रासद्ऱ मॊि
श्री घॊटाकणा भहावीय मॊि ऋत्रद्ध ससत्रद्ध सभृत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि
श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि त्रवषभ त्रवष सनग्रह कय मॊि
(अनुबव ससद्ध सॊऩण
ू ा श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि)
श्री ऩद्मावती मॊि ऺुरो ऩरव सननााशन मॊि
श्री ऩद्मावती फीसा मॊि फृहच्चि मॊि
श्री ऩाद्वाऩद्मावती ह्रंकाय मॊि वॊध्मा शब्ददाऩह मॊि
ऩद्मावती व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि भृतवत्सा दोष सनवायण मॊि
श्री धयणेन्र ऩद्मावती मॊि काॊक वॊध्मादोष सनवायण मॊि
श्री ऩाद्वानाथ ध्मान मॊि फारग्रह ऩीडा सनवायण मॊि
श्री ऩाद्वानाथ प्रबुका मॊि रधुदेव कुर मॊि
बिाभय मॊि (गाथा नॊफय १ से ४४ तक) नवगाथात्भक उवसग्गहयॊ स्तोिका त्रवसशद्श मॊि
भस्णबर मॊि उवसग्गहयॊ मॊि
श्री मॊि श्री ऩॊच भॊगर भहाश्रृत स्कॊध मॊि
श्री रक्ष्भी प्रासद्ऱ औय व्माऩाय वधाक मॊि ह्रीॊकाय भम फीज भॊि
श्री रक्ष्भीकय मॊि वधाभान त्रवद्या ऩट्ट मॊि
रक्ष्भी प्रासद्ऱ मॊि त्रवद्या मॊि
भहात्रवजम मॊि सौबाग्मकय मॊि
त्रवजमयाज मॊि डादकनी, शादकनी, बम सनवायक मॊि
त्रवजम ऩतका मॊि बूतादद सनग्रह कय मॊि
त्रवजम मॊि ज्वय सनग्रह कय मॊि
ससद्धचि भहामॊि शादकनी सनग्रह कय मॊि
दस्ऺण भुखाम शॊख मॊि आऩत्रत्त सनवायण मॊि
दस्ऺण भुखाम मॊि शिुभख
ु स्तॊबन मॊि
मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।
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72 ददसम्फय 2012

घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि को स्थाऩीत


कयने से साधक की सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं । सवा
प्रकाय के योग बूत-प्रेत आदद उऩरव से यऺण होता हं ।
जहयीरे औय दहॊ सक प्राणीॊ से सॊफसॊ धत बम दयू होते हं ।
अस्ग्न बम, चोयबम आदद दयू होते हं ।
दद्श
ु व असुयी शत्रिमं से उत्ऩन्न होने वारे बम
से मॊि के प्रबाव से दयू हो जाते हं ।
मॊि के ऩूजन से साधक को धन, सुख, सभृत्रद्ध,
ऎद्वमा, सॊतत्रत्त-सॊऩत्रत्त आदद की प्रासद्ऱ होती हं । साधक की
सबी प्रकाय की सास्त्वक इच्छाओॊ की ऩूसता होती हं ।
मदद दकसी ऩरयवाय मा ऩरयवाय के सदस्मो ऩय
वशीकयण, भायण, उच्चाटन इत्मादद जाद-ू टोने वारे
प्रमोग दकमे गमं होतो इस मॊि के प्रबाव से स्वत् नद्श
हो जाते हं औय बत्रवष्म भं मदद कोई प्रमोग कयता हं तो
यऺण होता हं ।
कुछ जानकायो के श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका
मॊि से जुडे अ्द्भुत
ु अनुबव यहे हं । मदद घय भं श्री
घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि स्थात्रऩत दकमा हं औय मदद
कोई इषाा, रोब, भोह मा शिुतावश मदद अनुसचत कभा
कयके दकसी बी उद्दे श्म से साधक को ऩये शान कयने का प्रमास कयता हं तो मॊि के प्रबाव से सॊऩण
ू ा
ऩरयवाय का यऺण तो होता ही हं , कबी-कबी शिु के द्राया दकमा गमा अनुसचत कभा शिु ऩय ही उऩय
उरट वाय होते दे खा हं । भूल्म:- Rs. 1650 से Rs. 10900 तक उप्रब्दद्ध
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73 ददसम्फय 2012

अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कवच


अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवच व उल्रेस्खत अन्म साभग्रीमं को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान
ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुज
ॊ म भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात कवच अत्मॊत
प्रबावशारी होता हं ।

अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवच


अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम
कवच फनवाने हे तु:
अऩना नाभ, त्रऩता-भाता का नाभ, कवच
गोि, एक नमा पोटो बेजे दस्ऺणा भाि: 10900

याशी यत्न एवॊ उऩयत्न

त्रवशेष मॊि

हभायं महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोने-चाॊदद-


ताम्फे भं आऩकी आवश्मिा के अनुशाय
दकसी बी बाषा/धभा के मॊिो को आऩकी
आवश्मक दडजाईन के अनुशाय २२ गेज
शुद्ध ताम्फे भं अखॊदडत फनाने की त्रवशेष
सबी साईज एवॊ भूल्म व क्वासरदट के
सुत्रवधाएॊ उऩरब्दध हं ।
असरी नवयत्न एवॊ उऩयत्न बी उऩरब्दध हं ।
हभाये महाॊ सबी प्रकाय के यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्दध हं । ज्मोसतष कामा से जुडे़
फधु/फहन व यत्न व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न व अन्म साभग्रीमा व अन्म
सुत्रवधाएॊ उऩरब्दध हं ।
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74 ददसम्फय 2012

भाससक यासश पर

 सचॊतन जोशी
भेष: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : ऩूॊस्ज सनवेश द्राया आकस्स्भक धन हासन के मोग फन यहे है इस सरए ऩूॊस्ज सनवेष से
जुडे भहत्वऩूणा सनणाम रेने से फचं। स्जस कायण आसथाक ऩऺ कभजोय हो सकता हं ।
इद्श सभि एवॊ ऩरयवाय के सदस्मो से सहमोग रेना ऩि सकता हं । आऩकी भानससक
सचन्ताओॊ भं वृत्रद्ध हो सकती हं । अऩनी असधक खचा कयने दक प्रवृत्रत्त ऩय सनमॊिण कयने
का प्रमास कयं ।
16 से 31 ददसम्फय 2012 : आऩके भहत्व ऩूणा कामो भं असतरयि सावधानी यखनी
चादहमे अन्मथा कुछ कामो भं नुक्शान हो सकता है । व्मवसासमक सभस्माओॊ के कायण
धन का अबाव यह सकता हं । सभि एवॊ ऩरयवाय के सहमोग से धन राब होगा।
आवश्मकता से असधक सॊघषा कयना ऩड सकता है । भानससक सचन्ताओॊ भं कभी
आमेगी। अत्रववाह है तो त्रववाह होने के मोग फन यहे हं ।

वृषब: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : आकस्स्भक धन प्राद्ऱ होने के मोग हं । साभास्जक भान-सम्भान औय ऩद-प्रसतद्षा भं
वृत्रद्ध होगी। बूसभ-बवन से सॊफॊसधत कामं भे सपरता प्राद्ऱ होगी। कामा दक व्मस्तता, अत्मासधक बागदौि के कायण
आऩको थकावट हो सकती। उत्तभ वाहन सुख के मोग फन यहे हं । दयू स्थानो की व्मवास्मीक मािाएॊ राबप्रद यहे गी। प्रेभ
सॊफॊधो भं सपरता प्राद्ऱ होगी। अत्रववादहत हं तो त्रववाह सॊबव हं ।

16 से 31 ददसम्फय 2012 : मदद आऩ नौकयी भं हं तो ऩदौन्नसत सॊबव हं । ऩरयवाय के रोग एवॊ सभि वगा का ऩूणा
सहमोग प्राद्ऱ होगा। आऩका साभास्जक जीवन उच्च स्तय का हो सकता हं । ऩरयवाय भं सभाचाय प्राद्ऱ हो सकते है ।
अऩनी असधक खचा कयने दक प्रवृत्रत्त ऩय सनमॊिण कयने का प्रमास कयं । खाने- ऩीने का त्रवशेष ध्मान यखे भौसभ के
फदराव से स्वास्थ्म नयभ यह सकता हं ।

सभथुन: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : नई नौकयी-व्मवसाम के सरए सभम उत्तभ सात्रफत


हो सकता हं । रुके हुए कामो से धन प्रासद्ऱ के मोग अच्छे हं । ऩुयाने ऋण को चुकाने भं
आऩ ऩूणरु
ा ऩ से सभथा हंगे। इस अवसध भं आऩको कुछ अनजान सभस्माओॊ का साभना
कयना ऩड सकता हं । सॊतान से सॊफॊसधत भाभरो भं थोडी सचॊता हो सकती हं । ऩुयाने योग
से कद्श हो सकता हं ।

16 से 31 ददसम्फय 2012 : इद्श सभिं एवॊ ऩरयजनो से आसथाक भदद प्राद्ऱ हो सकती है ।
भौसभ के फदराव से आऩका स्वास्थ्म प्रसतकूर यह सकता हं । दयू स्थ स्थानो की मािाएॊ
कद्श प्रद हो सकती हं । अत् मािा भं असतरयि सावधानी फयते। जीवन साथी के ऩूणा सहमोग से दाॊऩत्म जीवन भं
भधुयता आएगी। सभि एवॊ ऩरयवाय के रोगो का सहमोग प्राद्ऱ होगा।
75 ददसम्फय 2012

कका: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : आऩके सरए मह सभम असत उत्तभ ससद्ध होगा। आऩको चायं औय से सपरता प्राद्ऱ
होने के मोग फन यहे हं । नौकयी-व्मवसाम भं आऩको दकसी भहत्वऩूणा ऩद की प्रासद्ऱ हो
सकती हं । अऩने खान-ऩान का त्रवशेष ध्मान यखं अन्मथा स्वास्थ्म नयभ हो सकता हं ।
आऩके सरए इस दौयान इद्श आयाधना त्रवशेष परप्रद यहे गी।

16 से 31 ददसम्फय 2012 : आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ के मोग फन यहे हं । नौकयी-व्मवसाम


भं प्राम् आऩके सबी कामा ऩूणा होने के मोग हं । आऩके बौसतक सुख -साधनो भं वृत्रद्ध
होगी। आऩकी साभस्जक प्रसतद्षाबी इस अवसध भं फढे गी। अऩनी सेहत का त्रवशेष रुऩ से
खमार यखं, राऩयवाही कद्शदामक हो सकती हं । अऩने ऩरयजनो का ऩूणा प्रेभ व सहमोग
आऩको प्राद्ऱ होगा।

ससॊह: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : इद्श सभिं के सहमोग से नमे सभि फन सकते हं । त्रवऩयीत सरॊग के प्रसत आऩका
त्रवशेष झुकाव यहे गा। अऩको सुझ-फुझ से प्रेभ सॊफॊधं भं सपरता प्राद्ऱ हो सकती हं ।
दकमे गमे ऩूॊस्ज सनवेश द्राया आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ के मोग फन यहे है । कोटा -कचहयी के
कामा भं सपरता प्राद्ऱ हो सकती हं । घयभं भाॊगसरक कामा सॊऩन्न होने के मोग हं ।
खान-ऩान का त्रवशेष ध्मान यखं।

16 से 31 ददसम्फय 2012: नौकयी-व्मवसाम से जुडे कामा त्रवशेष धनराब प्रदान कयने


वारे हंगे। जीवनसाथी का स्वास्थ्म थोडा नयभ यह सकता हं । आऩके त्रवयोधी एवॊ शिु
ऩऺ ऩयास्त हंगे। इद्श सभिं से व्मवसामीक साझेदायी का सनणाम कय यहे हं । तो उस ऩय
ऩुन् त्रवचाय कयरं स्जससे आऩके रयश्ते खयाफ नहं। जीवन साथी से सहमोग प्राद्ऱ होगा।

कन्मा: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : मदद आऩ नौकयी भं हं तो अऩने कामा का अच्छा


प्रदशान कयने भं सभथा हंगे। दकमे गमे ऩूॊस्ज सनवेश द्राया आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ के
मोग फन यहे है । आऩको बूसभ- बवन-वाहन से सॊफॊसधत भाभरो से बी धन राब प्राद्ऱ
हो सकता हं । भौसभ के फदराव से ऩरयवाय के दकसी सदस्म का स्वास्थ्म प्राबात्रवत हो
सकता हं । आऩका आध्मास्त्भक जीवन उच्च स्तय का हो सकता हं ।

16 से 31 ददसम्फय 2012 : नौकयी-व्मवसाम भं दकमे गमे प्रमासो से ऩूणा सपरता


प्राद्ऱ होगी। ऩरयवाय औय रयश्तेदायं से राब प्राद्ऱ हो सकते हं । असधक खचा कयने के
प्रवृत्रत्त ऩय सनमॊिण कयने का प्रमास कयं हं । आऩकी रुसच इद्श आयाधना भं असधक हो सकती हं । अत्रववाह है तो त्रववाह
होने के मोग फन यहे हं । प्रकृ सत भं फदराव से आऩका स्वास्थ्म नयभ यह सकता है ।
76 ददसम्फय 2012

तुरा: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : नमा व्मवसाम मा नौकयी प्राद्ऱ हो सकती हं मा आऩके कामा ऺेि भं नमे फदराव हो
सकते हं । उच्चासधकारयमं से राब प्राद्ऱ होगा। नौकयी, व्माऩाय, ऩूॊजी सनवेश इत्मादद से
आकस्स्भक रुऩ से धन प्रासद्ऱ हो सकती हं । शिुओॊ ऩय आऩका प्रबाव यहे गा। भौसभ के
फदराव से अऩने खाने-ऩीने का त्रवशेष ध्मान यखे अन्मथा आऩका का स्वास्थ्म नयभ हो
सकता है । जीवनसाथी का ऩूणस
ा हमोग प्राद्ऱ होगा।

16 से 31 ददसम्फय 2012 : आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ के मोग फनेगं स्जस्से आसथाक स्स्थती


भं सुधाय होगा। बूसभ-बवन-वाहन से सॊफॊसधत कामो भं राब प्राद्ऱ होगा। नौकयी
व्मवसाम भं उच्च असधकायी एवॊ सहकभॉ के कामा ऩये शानीमं सॊबव हं । सावधान यहं ।
अऩनी वाणी एवॊ िोध ऩय सनमॊिण यखे अन्मथा आऩके फने फनामे कामा त्रफगड सकते हं । ऩायीवारयक जीवन सुखभम
यहे गा। स्वास्थ्म सॊफॊसधत सभस्माएॊ सॊबव हं ।

वृस्द्ळक: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : भानससक अस्स्थताय कामो भं भहत्वऩूणा सनणाम


रेने भं त्रवरॊफ कय सकती हं । अऩने रुके हुए कामो को कुशरता से ऩूया कयने का प्रमास
कये । अर-अचर सॊऩत्रत्त भं ऩूॊस्ज सनवेश धन बत्रवष्म के सरए राबदामक ससद्ध होगा।
ऩरयवाय भं खुसशमो का भाहोर यहे गा। प्रेभ सॊफॊसधत भाभरो भं असतरयि सावधानी फयते
अन्मथा त्रववाद हो सकते है ।

16 से 31 ददसम्फय 2012 : नौकयी-व्मवसाम भं अत्मासधक ऩरयश्रभ एवॊ भेहनत के


उऩयाॊत फहुत भुस्श्कर से धन राब प्राद्ऱ कय सकते हं । आऩको भानससक अस्स्थयता का
अनुबव हो सकता हं । आऩको शुब सभाचाय प्राद्ऱ हो सकमे है । त्रवयोधी एवॊ शिु ऩऺ से ऩये शानी हो सकती हं । भौसभ के
फदराव से स्वास्थ्म सचॊता का त्रवषम हो सकता हं । जीवन साथी के साथ भं त्रवचायं भं भतबेद सॊबव हं ।

धनु: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : नौकयी से सॊफॊसधत कामा भं नमे फदराव हो सकते हं , व्मवसाम भं हं तो उन्नती के
नए भागा प्राद्ऱ हंगे। बूसभ-बवन से सॊफॊसधअ भाभरं भं त्रवरॊफ सॊबव हं । आऩके बौसतक
सुख साधनो भं वृत्रद्ध होगी। स्वास्थ्म सुख भं वृत्रद्ध होगी दपय बी खाने - ऩीने का त्रवशेष
ध्मान यखना दहतकायी यहे गा। जीवन साथी से ऩूणस
ा हमोग प्राद्ऱ होगा।

16 से 31 ददसम्फय 2012 : नौकयी-व्मवसाम भं उन्नसत व आमके नए स्त्रोत सभरने के


मोग हं । आऩकी आसथाक भं सुधाय होगा। व्मवसामीक मािाएॊ सपर होगी। कोटा -कचहयी
के कामो भं सपरता प्राद्ऱ हो सकती हं । ऩरयवाय के रोग एवॊ सभि वगा का ऩूणा सहमोग
प्राद्ऱ होगा। आऩका साभास्जक जीवन उच्च स्तय का हो सकता हं । ऩरयवाय के दकसी
सदस्म का स्वस्थ्म कभजोय हो सकता हं ।
77 ददसम्फय 2012

भकय: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : एकासधक स्त्रोत से धन प्रासद्ऱ के मोग फन यहे हं । मदद आऩ नौकयी भं हं तो
ऩदौन्नसत हो सकती हं मा नई नौकयी प्राद्ऱ हो सकती हं , व्मवसाम भं हं तो उन्नती दक भागा प्रसस्त हंगे। वाहन
सावधानी से चरामे। सभि एवॊ ऩरयवाय के रोगो का सहमोग प्राद्ऱ होगा। स्वास्थ्म के
प्रसत सचेत यहे राऩयवाही नुक्शान दे सहकती हं । जीवन साथी का ऩूणा सहमोग प्राद्ऱ
होगा।

16 से 31 ददसम्फय 2012 : आऩको रॊफे सभम से रुका हुवा बुगतान प्राद्ऱ हो सकता हं ।
इस अवसध भं चर-अचर सॊऩत्रत्त भं ऩूॊस्ज सनवेश कयना आऩके सरए त्रवशेष रुऩ से
पामदे भॊद हो सकता हं । शिु एवॊ त्रवयोधी ऩऺ आऩका नाभ औय प्रसतद्षा को दत्रू षत कयने
का प्रमास कय सकते हं । अऩने खाने- ऩीने का ध्मान यखे अन्मथा आऩका का स्वास्थ्म
नयभ हो सकता है । जीवनसाथी से सॊफॊधो भं भधुयता आएगी।

कॊु ब: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : सभम आऩके सरए उत्तभ सात्रफत हो सकता हं ।


व्मवसामीक कामो भं ऩूणा सपरता प्राद्ऱ हो सकती हं । ऩरयवाय के दकसी सदस्म का
स्वास्थ्म प्राबात्रवत हो सकता हं । दयू स्थानो की व्मवसामीक मािाएॊ आऩके सरए
राबदामक हो सकती हं । ऩरयवाय भं सुख-शाॊसत फनाए यखने का प्रमास कयं । मदद आऩ
अत्रववादहत हं तो त्रववाह के उत्तभ मोग फन यहे हं । अऩने खाने-ऩीने का त्रवशेष ध्मान
यखे।

16 से 31 ददसम्फय 2012 : बूसभ-बवन इत्मादद कामो भं त्रवशेष राब प्रासद्ऱ हो सकती


हं । आऩके बौसतक सुख साधनो भं वृत्रद्ध होगी। ऩरयवाय के दकसी सदस्म का स्वास्थ्म आऩकी सचॊता का त्रवषम हो सकता
हं । इद्श सभिो एवॊ त्रप्रमजनो से आसथाक राब प्राद्ऱ हो सकता हं । कोटा -कचहयी के कामो भं त्रवजम प्राद्ऱ हो सकती हं ।
खाने- ऩीने का ध्मान यखे नहीॊ तो स्वास्थ्म नयभ हो सकता है । जीवन साथी से ऩूणस
ा हमोग प्राद्ऱ होगा।

भीन: 1 से 15 ददसम्फय 2012 : दकमे गमे ऩूॊस्ज सनवेश द्राया आकस्स्भक धन हानी के मोग हं अत् बायी भािा भं
ऩूॊस्ज सनवेश कयने से फचे। व्मवसासमक सभस्माओॊ के कायण धन का अबाव यह सकता
हं । आवश्मकता से असधक सॊघषा कयना ऩड सकता है । भानससक सचन्ताओॊ भं कभी
आमेगी। इद्श सभि एवॊ ऩरयवाय के सदस्मो से सहमोग रेना ऩि सकता हं । प्रेभ सॊफॊसधत
भाभरो भं सपरता प्राद्ऱ होगी।

16 से 31 ददसम्फय 2012 : आऩके भहत्व ऩूणा कामो भं असतरयि सावधानी यखनी


चादहमे अन्मथा कुछ कामो भं नुक्शान हो सकता है । ऩूॊस्ज सनवेष से जुडे भहत्वऩूणा
सनणाम रेने से फचं। स्जस कायण आसथाक ऩऺ कभजोय हो सकता हं । सभि एवॊ ऩरयवाय
के सहमोग से धन राब होगा। अऩनी असधक खचा कयने दक प्रवृत्रत्त ऩय सनमॊिण कयने
का प्रमास कयं । अऩने खाने- ऩीने का ध्मान यखे।
78 ददसम्फय 2012

ददसम्फय 2012 भाससक ऩॊचाॊग


चॊर
दद वाय भाह ऩऺ सतसथ सभासद्ऱ नऺि सभासद्ऱ मोग सभासद्ऱ कयण सभासद्ऱ सभासद्ऱ
यासश

1 शसन भागाशीषा कृ ष्ण तृतीमा 27:54:41


आरा 23:41:34
शुब 25:05:00
वस्णज 14:46:15
सभथुन -

2 यत्रव भागाशीषा कृ ष्ण चतुथॉ 29:57:19


ऩुनवासु 26:16:04
शुक्र 25:34:49
फव 16:59:12
सभथुन 19:40:00

3 सोभ भागाशीषा कृ ष्ण ऩॊचभी 31:34:39


ऩुष्म 28:25:16
ब्रह्म 25:45:54
कौरव 18:49:39
कका -

4 भॊगर भागाशीषा कृ ष्ण ऩॊचभी 07:34:27


आद्ऴेषा 30:05:24
इन्र 25:33:31
तैसतर 07:34:27
कका 30:05:00

5 फुध भागाशीषा कृ ष्ण षद्षी 08:38:01


भघा 31:08:01
वैधसृ त 24:53:01
वस्णज 08:38:01
ससॊह -

6 गुरु भागाशीषा कृ ष्ण सद्ऱभी 09:05:00


भघा 07:08:45
त्रवषकुॊब 23:40:37
फव 09:05:00
ससॊह -

7 शुि भागाशीषा कृ ष्ण अद्शभी 08:48:51


ऩूवाापाल्गुनी 07:31:02
प्रीसत 21:55:24
कौरव 08:48:51
ससॊह 13:30:00

8 शसन भागाशीषा कृ ष्ण नवभी 07:49:33


उत्तयापाल्गुनी 07:12:03
आमुष्भान 19:36:26 गय 07:49:33
कन्मा -

9 यत्रव भागाशीषा कृ ष्ण एकादशी 27:46:31


सचिा 28:30:34
सौबाग्म 16:43:42
फव 17:01:31
कन्मा 17:26:00

10 सोभ भागाशीषा कृ ष्ण द्रादशी 24:52:50


स्वाती 26:20:01
शोबन 13:22:50
कौरव 14:23:46
तुरा -

11 भॊगर भागाशीषा कृ ष्ण िमोदशी 21:32:53


त्रवशाखा 23:41:19
असतगॊड 09:36:38
गय 11:15:04
तुरा 18:23:00

12 फुध भागाशीषा कृ ष्ण चतुदाशी 17:56:03


अनुयाधा 20:47:37
धृसत 25:16:41
त्रवत्रद्श 07:45:44
वृस्द्ळक -

13 गुरु भागाशीषा कृ ष्ण अभावस्मा 14:11:42 जेद्षा 17:48:16


शूर 20:58:35
नाग 14:11:42
वृस्द्ळक 17:49:00

14 शुि भागाशीषा शुक्र प्रसतऩदा 10:31:05


भूर 14:54:32
गॊड 16:45:09
फव 10:31:05
धनु -

15 शसन भागाशीषा शुक्र तृतीमा 27:59:50


ऩूवााषाढ़ 12:14:50
वृत्रद्ध 12:45:47
तैसतर 17:27:58
धनु 17:39:00

16 यत्रव भागाशीषा शुक्र चतुथॉ 25:29:30


उत्तयाषाढ़ 10:02:19
ध्रुव 09:08:53
वस्णज 14:39:49
भकय -

17 सोभ भागाशीषा शुक्र ऩॊचभी 23:42:17


श्रवण 08:26:21
हषाण 27:27:17
फव 12:30:06
भकय 19:54:00

18 भॊगर भागाशीषा शुक्र षद्षी 22:42:51


धसनद्षा 07:33:29
वज्र 25:31:36
कौरव 11:05:21
कुॊब -

19 फुध भागाशीषा शुक्र सद्ऱभी 22:34:02


शतसबषा 07:29:21
ससत्रद्ध 24:17:10
गय 10:32:10
कुॊब 25:59:00

20 गुरु भागाशीषा शुक्र अद्शभी 23:16:46


ऩूवााबारऩद 08:15:49
व्मसतऩात 23:42:04 त्रवत्रद्श 10:49:34
भीन -

21 शुि भागाशीषा शुक्र नवभी 24:45:24


उत्तयाबारऩद 09:48:13
वरयमान 23:38:50
फारव 11:54:46
भीन -
79 ददसम्फय 2012

22 शसन भागाशीषा शुक्र दशभी 26:49:39


ये वसत 12:01:50
ऩरयग्रह 24:05:35
तैसतर 13:44:01
भीन 12:02:00

23 यत्रव भागाशीषा शुक्र एकादशी 29:20:07


अस्द्वनी 14:45:26
सशव 24:51:03
वस्णज 16:02:18
भेष -

24 सोभ भागाशीषा शुक्र द्रादशी 32:03:42


बयणी 17:48:42
ससद्ध 25:48:42
फव 18:40:16
भेष 24:35:00

25 भॊगर भागाशीषा शुक्र द्रादशी 08:03:11


कृ सतका 20:58:30
साध्म 26:49:08
फारव 08:03:11
वृष -

26 फुध भागाशीषा शुक्र िमोदशी 10:48:36


योदहस्ण 24:05:28
शुब 27:46:43
तैसतर 10:48:36
वृष -

27 गुरु भागाशीषा शुक्र चतुदाशी 13:26:29


भृगसशया 27:03:03
शुक्र 28:33:59
वस्णज 13:26:29
वृष 13:35:00

28 शुि भागाशीषा शुक्र ऩूस्णाभा 15:51:13


आरा 29:44:40
ब्रह्म 29:09:58
फव 15:51:13
सभथुन -

29 शसन भागाशीषा कृ ष्ण प्रसतऩदा 17:57:11


ऩुनवासु 32:06:34
इन्र 29:31:53
कौरव 17:57:11
सभथुन 25:33:00

30 यत्रव ऩौष कृ ष्ण दद्रतीमा 19:42:30


ऩुनवासु 08:06:53
वैधसृ त 29:35:57
गय 19:42:30
कका -

31 सोभ ऩौष कृ ष्ण तृतीमा 21:04:22


ऩुष्म 10:08:07
त्रवषकुॊब 29:22:10
वस्णज 08:25:55
कका -

शसन ऩीिा सनवायक


सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत 22 गेज शुद्ध स्टीर भं सनसभात अखॊदडत ऩौरुषाकाय शसन मॊि
ऩुरुषाकाय शसन मॊि (स्टीर भं) को तीव्र प्रबावशारी फनाने हे तु शसन की कायक धातु शुद्ध स्टीर(रोहे ) भं
फनामा गमा हं । स्जस के प्रबाव से साधक को तत्कार राब प्राद्ऱ होता हं । मदद जन्भ कुॊडरी भं शसन प्रसतकूर
होने ऩय व्मत्रि को अनेक कामं भं असपरता प्राद्ऱ होती है , कबी व्मवसाम भं घटा, नौकयी भं ऩये शानी, वाहन
दघ
ु ट
ा ना, गृह क्रेश आदद ऩये शानीमाॊ फढ़ती जाती है ऐसी स्स्थसतमं भं प्राणप्रसतत्रद्षत ग्रह ऩीिा सनवायक शसन
मॊि की अऩने को व्मऩाय स्थान मा घय भं स्थाऩना कयने से अनेक राब सभरते हं । मदद शसन की ढै ़मा मा
साढ़े साती का सभम हो तो इसे अवश्म ऩूजना चादहए। शसनमॊि के ऩूजन भाि से व्मत्रि को भृत्मु, कजा,
कोटा केश, जोडो का ददा , फात योग तथा रम्फे सभम के सबी प्रकाय के योग से ऩये शान व्मत्रि के सरमे शसन
मॊि असधक राबकायी होगा। नौकयी ऩेशा आदद के रोगं को ऩदौन्नसत बी शसन द्राया ही सभरती है अत् मह
मॊि असत उऩमोगी मॊि है स्जसके द्राया शीघ्र ही राब ऩामा जा सकता है ।
भूल्म: 1050 से 8200
GURUTVA KARYALAY
BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785
Our Website : www.gurutvakaryalay.com
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
80 ददसम्फय 2012

ददसम्फय-2012 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय


दद वाय भाह ऩऺ सतसथ सभासद्ऱ प्रभुख व्रत-त्मोहाय

1 शसन भागाशीषा कृ ष्ण तृतीमा 27:54:41 सौबाग्मसुद


ॊ यी व्रत,

2 यत्रव भागाशीषा कृ ष्ण चतुथॉ 29:57:19 सॊकद्शी श्रीगणेश चतुथॉ व्रत, (चॊ.उ.या.8:36)

वीड ऩॊचभी (श्रीभनसादे वी), अन्नऩूणााभाता व्रत प्रायॊ ब (काशी), डा. याजंर
3 सोभ भागाशीषा कृ ष्ण ऩॊचभी 31:34:39
प्रसाद जमॊती,

4 भॊगर भागाशीषा कृ ष्ण ऩॊचभी 07:34:27 स्वाभी ब्रह्मानॊद रोधी जमॊती, नौसेना ददवस,

5 फुध भागाशीषा कृ ष्ण षद्षी 08:38:01 मोगी अयत्रवन्द स्भृसत ददवस,

श्रीकार बैयवाद्शभी व्रत (काराद्शभी), कारबैयव दशान-ऩूजन, बैयवनाथ


6 गुरु भागाशीषा कृ ष्ण सद्ऱभी 09:05:00
जमॊती भहोत्सव, डा. अम्फेडकय स्भृसत ददवस

7 शुि भागाशीषा कृ ष्ण अद्शभी 08:48:51 प्रथभाद्शभी (ओिीसा), सशस्त्र सेना ददवस, झण्डा ददवस,

8 शसन भागाशीषा कृ ष्ण नवभी 07:49:33 अनरा नवभी (ओिीसा), श्रीभहावीय स्वाभी दीऺा कल्माणक (जैन)

9 यत्रव भागाशीषा कृ ष्ण एकादशी 27:46:31 उत्ऩत्रत्त एकादशी व्रत (स्भाता), वैतयणी एकादशी, याजगोऩाराचामा जमॊती,

10 सोभ भागाशीषा कृ ष्ण द्रादशी 24:52:50 एकादशी व्रत (वैष्णव), भानवासधकाय ददवस,

बौभ-प्रदोष व्रत (ऋणभोचन हे तु उत्तभ), भाससक सशवयात्रि व्रत, सॊत


11 भॊगर भागाशीषा कृ ष्ण िमोदशी 21:32:53
ऻानेद्वय सभासध ददवस, ओशो जन्भोत्सव,

12 फुध भागाशीषा कृ ष्ण चतुदाशी 17:56:03 स्वदे शी ददवस, भेरा ऩुयभण्डर एवॊ दे त्रवका स्नान (जम्भू)

स्नान-दान हे तु उत्तभ श्राद्ध की भागाशीषॉ अभावस्मा, गोयी तऩो व्रत,


13 गुरु भागाशीषा कृ ष्ण अभावस्मा 14:11:42
रुरव्रत,

14 शुि भागाशीषा शुक्र प्रसतऩदा 10:31:05 नवीन चॊर दशान, भाताण्ड बैयव षड्राि प्रायम्ब, धन्मव्रत, ऊजाा फचत ददवस

धनु सॊिास्न्त यात्रि 8:14 फजे, सॊिास्न्त भं स्नान-दान हे तु ऩुण्मकार


15 शसन भागाशीषा शुक्र तृतीमा 27:59:50 भध्माि से सूमाास्त तक, खय भास प्रायॊ ब, शुब कामं भं वस्जात धनु भास
प्रायॊ ब, सयदाय वल्रबबाई ऩटे र स्भृसत ददवस

16 यत्रव भागाशीषा शुक्र चतुथॉ 25:29:30 वयदत्रवनामक चतुथॉ व्रत (च.उ.या 08: 37)

17 सोभ भागाशीषा शुक्र ऩॊचभी 23:42:17 त्रववाहऩॊचभी, श्रीसीता एवॊ श्रीयाभ त्रववाहोत्सव, त्रवहायऩॊचभी, श्रीफाॊकेत्रफहायी
81 ददसम्फय 2012

का प्राकट्मोत्सव (वृद
ॊ ावन), नागऩॊचभी (द.बा)

चम्ऩा षद्षी, भात्ताण्डबैय का उत्थाऩन, भूरकरूत्रऩणी षद्षी (ऩ.फॊ), सुब्रह्मण्मभ


18 भॊगर भागाशीषा शुक्र षद्षी 22:42:51
षद्षी (द.बा.), स्कन्द कुभाय षद्षी व्रत, श्रीअन्नऩूणाा भाता का शृग
ॊ ाय,

त्रवष्णु-नन्दा-बरा सद्ऱभी, सभि सद्ऱभी (ऩ.फॊ), सनम्फ सद्ऱभी, कात्मामनी


19 फुध भागाशीषा शुक्र सद्ऱभी 22:34:02
सद्ऱभी (भहाऩूजा), नयससॊह भेहता जमॊती, सॊत तायण तयण जमॊती

20 गुरु भागाशीषा शुक्र अद्शभी 23:16:46 श्रीदग


ु ााद्शभी व्रत, कात्मामनी अद्शभी (भहाऩूजा),

नॊददनी नवभी, कात्मामनी नवभी (भहाऩूजा), सूमा सामन भकय यासश भं


21 शुि भागाशीषा शुक्र नवभी 24:45:24
सामॊ 4:42 फजे, सौय-सशसशय ऋतु प्रायॊ ब

22 शसन भागाशीषा शुक्र दशभी 26:49:39 दशाददत्म व्रत

भोऺदा एकादशी व्रत, गीता जमॊती, वैकुण्ठ एकादशी (द.बा.), भौनी


23 यत्रव भागाशीषा शुक्र एकादशी 29:20:07
ग्मायस (जैन), दकसान ददवस, श्रद्धानन्द फसरदान ददवस

एकादशी व्रत (सनम्फाका वैष्णव), अखण्ड द्रादशी, केशव द्रादशी, भस्त्म


24 सोभ भागाशीषा शुक्र द्रादशी 32:03:42 द्रादशी, व्मॊजन द्रादशी, धन द्रादशी (ओिीसा), ऩऺवत्रद्धा नी भहाद्रादशी,
श्माभफाफा द्रादशी, धयणी व्रत, उऩबोिा ददवस

बौभ-प्रदोष (ऋणभोचन हे तु उत्तभ), अनॊगिमोदशी (द.बा.), कृ त्रत्तका दीऩभ


25 भॊगर भागाशीषा शुक्र द्रादशी 08:03:11
(द.बा.), ईसा भसीह जमॊती-फिा ददन (Christmas)

26 फुध भागाशीषा शुक्र िमोदशी 10:48:36 योदहणी व्रत (जैन),

त्रऩशाच-भोचन चतुदाशी, कऩदॊद्वय दशान-ऩूजन (काशी), ऩूस्णाभा व्रत,


27 गुरु भागाशीषा शुक्र चतुदाशी 13:26:29 श्रीसत्मनायामण व्रत-कथा, दत्तािेम जमॊती (प्रदोषव्मात्रऩनी ऩूस्णाभा), फत्तीसी
ऩूस्णाभा चॊरऩूजा, रवणदान,

स्नान-दान हे तु उत्तभ भागाशीषॉ (आग्रहामणी) ऩूस्णाभा, त्रिऩुया भहात्रवद्या


28 शुि भागाशीषा शुक्र ऩूस्णाभा 15:51:13 जमॊती, अन्नऩूणाा जमॊती, छप्ऩनबोग (फरदे वजी-भथुया), फहुचयाजी भं
भेरा, अरुर-दशान (द.बा.), कात्मामनी भाससक ऩूजा ऩूणा

29 शसन भागाशीषा कृ ष्ण प्रसतऩदा 17:57:11 -

30 यत्रव ऩौष कृ ष्ण दद्रतीमा 19:42:30 गौना उत्सव (अमोध्मा)

सौबाग्मसुद
ॊ यी व्रत, प्राचीन भतानुसाय सॊकद्शी चतुथॉ व्रत, फसरनाथ फैयवा
31 सोभ ऩौष कृ ष्ण तृतीमा 21:04:22
जमॊती (भ.प्र.छत्तीसगढ़), ईसाई नववषा की ऩूवस
ा ध्
ॊ मा
82 ददसम्फय 2012

गणेश रक्ष्भी मॊि


प्राण-प्रसतत्रद्षत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-दक
ु ान-ओदपस-पैक्टयी भं ऩूजन स्थान, गल्रा मा अरभायी भं स्थात्रऩत
कयने व्माऩाय भं त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । मॊि के प्रबाव से बाग्म भं उन्नसत, भान-प्रसतद्षा एवॊ व्माऩय भं वृत्रद्ध होती
हं एवॊ आसथाक स्स्थभं सुधाय होता हं । गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थात्रऩत कयने से बगवान गणेश औय दे वी रक्ष्भी का
सॊमुि आशीवााद प्राद्ऱ होता हं । Rs.730 से Rs.10900 तक

भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि


भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब दे ता हं , इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण
भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं । त्रववाह आदद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए भॊगर
मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि के ऩूजन से बाग्मोदम, शयीय भं खून की
कभी, गबाऩात से फचाव, फुखाय, चेचक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम, तॊि भॊि के दद्श
ु प्रबा,
बूत-प्रेत बम, वाहन दघ
ु ट
ा नाओॊ, हभरा, चोयी इत्मादी से फचाव होता हं । भूल्म भाि Rs- 730

कुफेय मॊि
कुफेय मॊि के ऩूजन से स्वणा राब, यत्न राब, ऩैतक
ृ सम्ऩत्ती एवॊ गिे हुए धन से राब प्रासद्ऱ दक काभना कयने वारे
व्मत्रि के सरमे कुफेय मॊि अत्मन्त सपरता दामक होता हं । एसा शास्त्रोि वचन हं । कुफेय मॊि के ऩूजन से एकासधक
स्त्रोि से धन का प्राद्ऱ होकय धन सॊचम होता हं ।

ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस ताम्र ऩि ऩय


(Gold Plated) (Silver Plated) (Copper)
साईज भूल्म साईज भूल्म साईज भूल्म
1” X 1” 460 1” X 1” 370 1” X 1” 255
2” X 2” 820 2” X 2” 640 2” X 2” 460
3” X 3” 1650 3” X 3” 1090 3” X 3” 730
4” X 4” 2350 4” X 4” 1650 4” X 4” 1090
6” X 6” 3600 6” X 6” 2800 6” X 6” 1900
9” X 9” 6400 9” X 9” 5100 9” X 9” 3250
12” X12” 10800 12” X12” 8200 12” X12” 6400

GURUTVA KARYALAY
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83 ददसम्फय 2012

नवयत्न जदित श्री मॊि


शास्त्र वचन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के चायं औय मदद नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न
जदित श्री मॊि कहराता हं । सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉकेट के रूऩ भं धायण कयने से व्मत्रि को
अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं । नवग्रह को
श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं । गरे भं होने के
कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हं , वह गॊगा
जर के सभान ऩत्रवि होता हं । इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं । जैसे अभृत से उत्तभ कोई
औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि वचन हं । इस
प्रकाय के नवयत्न जदित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हं ।

अद्श रक्ष्भी कवच


अद्श रक्ष्भी कवच को धायण कयने से व्मत्रि ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना
यहता हं । स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आदद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी, (४)-
गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी
रुऩो का स्वत् अशीवााद प्राद्ऱ होता हं । भूल्म भाि: Rs-1250

भॊि ससद्ध व्माऩाय वृत्रद्ध कवच


व्माऩाय वृत्रद्ध कवच व्माऩाय के शीघ्र उन्नसत के सरए उत्तभ हं । चाहं कोई बी व्माऩाय हो अगय उसभं राब के स्थान ऩय
फाय-फाय हासन हो यही हं । दकसी प्रकाय से व्माऩाय भं फाय-फाय फाॊधा उत्ऩन्न हो यही हो! तो सॊऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत भॊि
ससद्ध ऩूणा चैतन्म मुि व्माऩात वृत्रद्ध मॊि को व्मऩाय स्थान मा घय भं स्थात्रऩत कयने से शीघ्र ही व्माऩाय वृत्रद्ध एवॊ
सनतन्तय राब प्राद्ऱ होता हं । भूल्म भाि: Rs.730 & 1050

भॊगर मॊि
(त्रिकोण) भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब दे ता हं , इस के असतरयि व्मत्रि को
ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं । त्रववाह आदद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए
भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । भूल्म भाि Rs- 730

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84 ददसम्फय 2012

त्रववाह सॊफॊसधत सभस्मा


क्मा आऩके रडके-रडकी दक आऩकी शादी भं अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हं मा उनके वैवादहक जीवन भं खुसशमाॊ कभ
होती जायही हं औय सभस्मा असधक फढती जायही हं । एसी स्स्थती होने ऩय अऩने रडके-रडकी दक कुॊडरी का अध्ममन
अवश्म कयवारे औय उनके वैवादहक सुख को कभ कयने वारे दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ
कयं ।

सशऺा से सॊफॊसधत सभस्मा


क्मा आऩके रडके-रडकी की ऩढाई भं अनावश्मक रूऩ से फाधा-त्रवघ्न मा रुकावटे हो यही हं ? फच्चो को अऩने ऩूणा ऩरयश्रभ
एवॊ भेहनत का उसचत पर नहीॊ सभर यहा? अऩने रडके-रडकी की कुॊडरी का त्रवस्तृत अध्ममन अवश्म कयवारे औय
उनके त्रवद्या अध्ममन भं आनेवारी रुकावट एवॊ दोषो के कायण एवॊ उन दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से
जनकायी प्राद्ऱ कयं ।

क्मा आऩ दकसी सभस्मा से ग्रस्त हं ?


आऩके ऩास अऩनी सभस्माओॊ से छुटकाया ऩाने हे तु ऩूजा-अचाना, साधना, भॊि जाऩ इत्मादद कयने का सभम नहीॊ हं ?
अफ आऩ अऩनी सभस्माओॊ से फीना दकसी त्रवशेष ऩूजा-अचाना, त्रवसध-त्रवधान के आऩको अऩने कामा भं सपरता प्राद्ऱ
कय सके एवॊ आऩको अऩने जीवन के सभस्त सुखो को प्राद्ऱ कयने का भागा प्राद्ऱ हो सके इस सरमे गुरुत्व कामाारत
द्राया हभाया उद्दे श्म शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा चैतन्म मुि त्रवसबन्न प्रकाय के
मन्ि- कवच एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोचाने का हं ।

ज्मोसतष सॊफॊसधत त्रवशेष ऩयाभशा


ज्मोसत त्रवऻान, अॊक ज्मोसतष, वास्तु एवॊ आध्मास्त्भक ऻान सं सॊफॊसधत त्रवषमं भं हभाये 30 वषो से असधक वषा के
अनुबवं के साथ ज्मोसतस से जुडे नमे-नमे सॊशोधन के आधाय ऩय आऩ अऩनी हय सभस्मा के सयर सभाधान प्राद्ऱ कय
सकते हं ।
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ओनेक्स
जो व्मत्रि ऩन्ना धायण कयने भे असभथा हो उन्हं फुध ग्रह के उऩयत्न ओनेक्स को धायण कयना चादहए।
उच्च सशऺा प्रासद्ऱ हे तु औय स्भयण शत्रि के त्रवकास हे तु ओनेक्स यत्न की अॊगूठी को दामं हाथ की सफसे छोटी
उॊ गरी मा रॉकेट फनवा कय गरे भं धायण कयं । ओनेक्स यत्न धायण कयने से त्रवद्या-फुत्रद्ध की प्रासद्ऱ हो होकय स्भयण
शत्रि का त्रवकास होता हं ।
85 ददसम्फय 2012

ददसम्फय 2012 -त्रवशेष मोग


कामा ससत्रद्ध मोग
2/3 यात्रि 2.15 से 4 ददसॊफय को प्रात: 4.25 तक 21 प्रात: 9.47 से ददन-यात
4 सूमोदम से 5 ददसॊफय को प्रात: 6.05 तक 23 सूमोदम से ददन 2.44 तक
12 सूमोदम से यात्रि 8.47 तक 25 सूमोदम से यात्रि 8.57 तक
16 सूमोदम से प्रात: 10.03 तक 26 सम्ऩूणा ददन-यात
17 सूमोदम से प्रात: 8.25 तक 30 प्रात: 8.05 से 31 ददसॊफय को प्रात: 10.07 तक
अभृत मोग
12 सूमोदम से यात्रि 8.47 तक 21 प्रात: 9.47 से ददन-यात

त्रिऩुष्कय मोग (तीन गुना) मोग दद्रऩुष्कय (दोगुना पर) मोग


25 सूमोदम से प्रात: 8.02 तक 09/10 यात्रि 3.45 से शेषयात्रि 4.30 तक
29 सामॊ 5.56 से 30 ददसॊफय को प्रात: 8.05 तक
त्रवघ्नकायक बरा
1 ददन 2.43 से यात 3.54 तक 19 यात्रि 10.33 से 20 ददसॊफय को प्रात: 10.55 तक
5 प्रात: 8.37 से यात्रि 8.50 तक 23 सामॊ 4.04 से 24 ददसॊफय को प्रात: 5.19 तक
8 सामॊ 6.57 से 9 ददसॊफय को प्रात: 6.06 तक 27 ददन 1.26 से दे ययात 2.38 तक
11 यात्रि 9.32 से 12 ददसॊफय को प्रात: 7.44 तक 31 प्रात: 8.22 से यात्रि 9.03 तक
16 ददन 2.43 से दे य यात 1.28 तक

मोग पर :
 कामा ससत्रद्ध मोग भे दकमे गमे शुब कामा भे सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ होती हं , एसा शास्त्रोि वचन हं ।
 त्रिऩुष्कय मोग भं दकमे गमे शुब कामो का राब तीन गुना होता हं । एसा शास्त्रोि वचन हं ।
 दद्रऩुष्कय मोग भं दकमे गमे शुब कामो का राब दोगुना होता हं । एसा शास्त्रोि वचन हं ।
 शास्त्रोि भत से त्रवघ्नकायक बरा मा बरा मोग भं शुब कामा कयना वस्जात हं ।

दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका


गुसरक कार (शुब) मभ कार (अशुब) याहु कार (अशुब)
वाय सभम अवसध सभम अवसध सभम अवसध
यत्रववाय 03:00 से 04:30 12:00 से 01:30 04:30 से 06:00
सोभवाय 01:30 से 03:00 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00
भॊगरवाय 12:00 से 01:30 09:00 से 10:30 03:00 से 04:30
फुधवाय 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00 12:00 से 01:30
गुरुवाय 09:00 से 10:30 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00
शुिवाय 07:30 से 09:00 03:00 से 04:30 10:30 से 12:00
शसनवाय 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00 09:00 से 10:30
86 ददसम्फय 2012

ददन के चौघदडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुिवाय शसनवाय

06:00 से 07:30 उद्रे ग अभृत योग राब शुब चर कार


07:30 से 09:00 चर कार उद्रे ग अभृत योग राब शुब
09:00 से 10:30 राब शुब चर कार उद्रे ग अभृत योग
10:30 से 12:00 अभृत योग राब शुब चर कार उद्रे ग
12:00 से 01:30 कार उद्रे ग अभृत योग राब शुब चर
01:30 से 03:00 शुब चर कार उद्रे ग अभृत योग राब
03:00 से 04:30 योग राब शुब चर कार उद्रे ग अभृत
04:30 से 06:00 उद्रे ग अभृत योग राब शुब चर कार

यात के चौघदडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुिवाय शसनवाय

06:00 से 07:30 शुब चर कार उद्रे ग अभृत योग राब


07:30 से 09:00 अभृत योग राब शुब चर कार उद्रे ग
09:00 से 10:30 चर कार उद्रे ग अभृत योग राब शुब
10:30 से 12:00 योग राब शुब चर कार उद्रे ग अभृत
12:00 से 01:30 कार उद्रे ग अभृत योग राब शुब चर
01:30 से 03:00 राब शुब चर कार उद्रे ग अभृत योग
03:00 से 04:30 उद्रे ग अभृत योग राब शुब चर कार
04:30 से 06:00 शुब चर कार उद्रे ग अभृत योग राब
शास्त्रोि भत के अनुशाय मदद दकसी बी कामा का प्रायॊ ब शुब भुहूता मा शुब सभम ऩय दकमा जामे तो कामा भं सपरता
प्राद्ऱ होने दक सॊबावना ज्मादा प्रफर हो जाती हं । इस सरमे दै सनक शुब सभम चौघदिमा दे खकय प्राद्ऱ दकमा जा सकता हं ।
नोट: प्राम् ददन औय यात्रि के चौघदिमे दक सगनती िभश् सूमोदम औय सूमाास्त से दक जाती हं । प्रत्मेक चौघदिमे दक अवसध 1
घॊटा 30 सभसनट अथाात डे ढ़ घॊटा होती हं । सभम के अनुसाय चौघदिमे को शुबाशुब तीन बागं भं फाॊटा जाता हं , जो िभश् शुब,
भध्मभ औय अशुब हं ।

चौघदडमे के स्वाभी ग्रह * हय कामा के सरमे शुब/अभृत/राब का


शुब चौघदडमा भध्मभ चौघदडमा अशुब चौघदिमा चौघदिमा उत्तभ भाना जाता हं ।
चौघदडमा स्वाभी ग्रह चौघदडमा स्वाभी ग्रह चौघदडमा स्वाभी ग्रह
शुब गुरु चय शुि उद्बे ग सूमा * हय कामा के सरमे चर/कार/योग/उद्रे ग
अभृत चॊरभा कार शसन का चौघदिमा उसचत नहीॊ भाना जाता।
राब फुध योग भॊगर
87 ददसम्फय 2012

ददन दक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक


वाय 1.घॊ 2.घॊ 3.घॊ 4.घॊ 5.घॊ 6.घॊ 7.घॊ 8.घॊ 9.घॊ 10.घॊ 11.घॊ 12.घॊ

यत्रववाय सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन
सोभवाय चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा
भॊगरवाय भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर
फुधवाय फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर
गुरुवाय गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध
शुिवाय शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु
शसनवाय शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि

यात दक होया – सूमाास्त से सूमोदम तक


यत्रववाय गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध
सोभवाय शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु
भॊगरवाय शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि
फुधवाय सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन
गुरुवाय चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा
शुिवाय भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर
शसनवाय फुध चॊर शसन गुरु भॊगर सूमा शुि फुध चॊर शसन गुरु भॊगर
होया भुहूता को कामा ससत्रद्ध के सरए ऩूणा परदामक एवॊ अचूक भाना जाता हं , ददन-यात के २४ घॊटं भं शुब-अशुब सभम
को सभम से ऩूवा ऻात कय अऩने कामा ससत्रद्ध के सरए प्रमोग कयना चादहमे।

त्रवद्रानो के भत से इस्च्छत कामा ससत्रद्ध के सरए ग्रह से सॊफॊसधत होया का चुनाव कयने से त्रवशेष राब
प्राद्ऱ होता हं ।
 सूमा दक होया सयकायी कामो के सरमे उत्तभ होती हं ।
 चॊरभा दक होया सबी कामं के सरमे उत्तभ होती हं ।
 भॊगर दक होया कोटा -कचेयी के कामं के सरमे उत्तभ होती हं ।
 फुध दक होया त्रवद्या-फुत्रद्ध अथाात ऩढाई के सरमे उत्तभ होती हं ।
 गुरु दक होया धासभाक कामा एवॊ त्रववाह के सरमे उत्तभ होती हं ।
 शुि दक होया मािा के सरमे उत्तभ होती हं ।
 शसन दक होया धन-रव्म सॊफॊसधत कामा के सरमे उत्तभ होती हं ।
88 ददसम्फय 2012

ग्रह चरन ददसम्फय -2012


Day Sun Mon Ma Me Jup Ven Sat Rah Ket Ua Nep Plu
1 07:15:09 02:10:57 08:16:32 06:25:27 01:17:32 06:17:02 06:12:34 07:02:00 01:02:00 11:10:38 10:06:25 08:14:13

2 07:16:10 02:22:53 08:17:18 06:26:08 01:17:24 06:18:16 06:12:41 07:01:58 01:01:58 11:10:37 10:06:26 08:14:14

3 07:17:10 03:04:58 08:18:04 06:26:55 01:17:15 06:19:31 06:12:47 07:01:56 01:01:56 11:10:37 10:06:27 08:14:16

4 07:18:11 03:17:13 08:18:50 06:27:49 01:17:07 06:20:45 06:12:53 07:01:54 01:01:54 11:10:36 10:06:27 08:14:18

5 07:19:12 03:29:41 08:19:36 06:28:47 01:16:59 06:22:00 06:13:00 07:01:52 01:01:52 11:10:36 10:06:28 08:14:20

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10 07:24:17 06:07:15 08:23:28 07:04:34 01:16:19 06:28:13 06:13:31 07:01:54 01:01:54 11:10:34 10:06:33 08:14:30

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89 ददसम्फय 2012

सवा योगनाशक मॊि/कवच


भनुष्म अऩने जीवन के त्रवसबन्न सभम ऩय दकसी ना दकसी साध्म मा असाध्म योग से ग्रस्त होता हं ।
उसचत उऩचाय से ज्मादातय साध्म योगो से तो भुत्रि सभर जाती हं , रेदकन कबी-कबी साध्म योग होकय बी
असाध्म होजाते हं , मा कोइ असाध्म योग से ग्रससत होजाते हं । हजायो राखो रुऩमे खचा कयने ऩय बी असधक
राब प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता। डॉक्टय द्राया ददजाने वारी दवाईमा अल्ऩ सभम के सरमे कायगय सात्रफत होती हं , एसी
स्स्थती भं राब प्रासद्ऱ के सरमे व्मत्रि एक डॉक्टय से दस
ू ये डॉक्टय के चक्कय रगाने को फाध्म हो जाता हं ।
बायतीम ऋषीमोने अऩने मोग साधना के प्रताऩ से योग शाॊसत हे तु त्रवसबन्न आमुवये औषधो के असतरयि
मॊि, भॊि एवॊ तॊि का उल्रेख अऩने ग्रॊथो भं कय भानव जीवन को राब प्रदान कयने का साथाक प्रमास हजायो
वषा ऩूवा दकमा था। फुत्रद्धजीवो के भत से जो व्मत्रि जीवनबय अऩनी ददनचमाा ऩय सनमभ, सॊमभ यख कय आहाय
ग्रहण कयता हं , एसे व्मत्रि को त्रवसबन्न योग से ग्रससत होने की सॊबावना कभ होती हं । रेदकन आज के
फदरते मुग भं एसे व्मत्रि बी बमॊकय योग से ग्रस्त होते ददख जाते हं । क्मोदक सभग्र सॊसाय कार के अधीन
हं । एवॊ भृत्मु सनस्द्ळत हं स्जसे त्रवधाता के अरावा औय कोई टार नहीॊ सकता, रेदकन योग होने दक स्स्थती भं
व्मत्रि योग दयू कयने का प्रमास तो अवश्म कय सकता हं । इस सरमे मॊि भॊि एवॊ तॊि के कुशर जानकाय से
मोग्म भागादशान रेकय व्मत्रि योगो से भुत्रि ऩाने का मा उसके प्रबावो को कभ कयने का प्रमास बी अवश्म
कय सकता हं ।
ज्मोसतष त्रवद्या के कुशर जानकय बी कार ऩुरुषकी गणना कय अनेक योगो के अनेको यहस्म को
उजागय कय सकते हं । ज्मोसतष शास्त्र के भाध्मभ से योग के भूरको ऩकडने भे सहमोग सभरता हं , जहा
आधुसनक सचदकत्सा शास्त्र अऺभ होजाता हं वहा ज्मोसतष शास्त्र द्राया योग के भूर(जि) को ऩकड कय उसका
सनदान कयना राबदामक एवॊ उऩामोगी ससद्ध होता हं ।
हय व्मत्रि भं रार यॊ गकी कोसशकाए ऩाइ जाती हं , स्जसका सनमभीत त्रवकास िभ फद्ध तयीके से होता
यहता हं । जफ इन कोसशकाओ के िभ भं ऩरयवतान होता है मा त्रवखॊदडन होता हं तफ व्मत्रि के शयीय भं
स्वास्थ्म सॊफॊधी त्रवकायो उत्ऩन्न होते हं । एवॊ इन कोसशकाओ का सॊफॊध नव ग्रहो के साथ होता हं । स्जस्से योगो
के होने के कायण व्मत्रि के जन्भाॊग से दशा-भहादशा एवॊ ग्रहो दक गोचय स्स्थती से प्राद्ऱ होता हं ।
सवा योग सनवायण कवच एवॊ भहाभृत्मुॊजम मॊि के भाध्मभ से व्मत्रि के जन्भाॊग भं स्स्थत कभजोय एवॊ
ऩीदडत ग्रहो के अशुब प्रबाव को कभ कयने का कामा सयरता ऩूवक
ा दकमा जासकता हं । जेसे हय व्मत्रि को
ब्रह्माॊड दक उजाा एवॊ ऩृथ्वी का गुरुत्वाकषाण फर प्रबावीत कताा हं दठक उसी प्रकाय कवच एवॊ मॊि के भाध्मभ
से ब्रह्माॊड दक उजाा के सकायात्भक प्रबाव से व्मत्रि को सकायात्भक उजाा प्राद्ऱ होती हं स्जस्से योग के प्रबाव
को कभ कय योग भुि कयने हे तु सहामता सभरती हं ।
योग सनवायण हे तु भहाभृत्मुॊजम भॊि एवॊ मॊि का फडा भहत्व हं । स्जस्से दहन्द ू सॊस्कृ सत का प्राम् हय
व्मत्रि भहाभृत्मुॊजम भॊि से ऩरयसचत हं ।
90 ददसम्फय 2012

कवच के राब :
 एसा शास्त्रोि वचन हं स्जस घय भं भहाभृत्मुॊजम मॊि स्थात्रऩत होता हं वहा सनवास कताा हो नाना प्रकाय
दक आसध-व्मासध-उऩासध से यऺा होती हं ।
 ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा चैतन्म मुि सवा योग सनवायण कवच दकसी बी उम्र एवॊ जासत धभा के रोग
चाहे स्त्री हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हं ।
 जन्भाॊगभं अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो दक प्रसतकूरता से योग उतऩन्न होते हं ।
 कुछ योग सॊिभण से होते हं एवॊ कुछ योग खान-ऩान दक असनमसभतता औय अशुद्धतासे उत्ऩन्न होते हं ।
कवच एवॊ मॊि द्राया एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नद्श कय, स्वास्थ्म राब औय शायीरयक यऺण प्राद्ऱ
कयने हे तु सवा योगनाशक कवच एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हं ।
 आज के बौसतकता वादी आधुसनक मुगभे अनेक एसे योग होते हं , स्जसका उऩचाय ओऩये शन औय दवासे बी
कदठन हो जाता हं । कुछ योग एसे होते हं स्जसे फताने भं रोग दहचदकचाते हं शयभ अनुबव कयते हं एसे
योगो को योकने हे तु एवॊ उसके उऩचाय हे तु सवा योगनाशक कवच एवॊ मॊि राबादासम ससद्ध होता हं ।
 प्रत्मेक व्मत्रि दक जेसे-जेसे आमु फढती हं वैसे-वसै उसके शयीय दक ऊजाा कभ होती जाती हं । स्जसके साथ
अनेक प्रकाय के त्रवकाय ऩैदा होने रगते हं एसी स्स्थती भं उऩचाय हे तु सवायोगनाशक कवच एवॊ मॊि परप्रद
होता हं ।
 स्जस घय भं त्रऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक दह नऺिभे जन्भ रेते हं , तफ उसकी भाता
के सरमे असधक कद्शदामक स्स्थती होती हं । उऩचाय हे तु भहाभृत्मुॊजम मॊि परप्रद होता हं ।
 स्जस व्मत्रि का जन्भ ऩरयसध मोगभे होता हं उन्हे होने वारे भृत्मु तुल्म कद्श एवॊ होने वारे योग, सचॊता भं
उऩचाय हे तु सवा योगनाशक कवच एवॊ मॊि शुब परप्रद होता हं ।

नोट:- ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा चैतन्म मुि सवा योग सनवायण कवच एवॊ मॊि के फाये भं असधक
जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।

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91 ददसम्फय 2012

भॊि ससद्ध कवच


भॊि ससद्ध कवच को त्रवशेष प्रमोजन भं उऩमोग के सरए औय शीघ्र प्रबाव शारी फनाने के सरए तेजस्वी भॊिो द्राया
शुब भहूता भं शुब ददन को तैमाय दकमे जाते हं . अरग-अरग कवच तैमाय कयने केसरए अरग-अरग तयह के
भॊिो का प्रमोग दकमा जाता हं .

 क्मं चुने भॊि ससद्ध कवच?


 उऩमोग भं आसान कोई प्रसतफन्ध नहीॊ
 कोई त्रवशेष सनसत-सनमभ नहीॊ
 कोई फुया प्रबाव नहीॊ
 कवच के फाये भं असधक जानकायी हे तु

भॊि ससद्ध कवच सूसच


सवा कामा ससत्रद्ध 4600/- ऋण भुत्रि 910/- त्रवघ्न फाधा सनवायण 550/-
सवा जन वशीकयण 1450/- धन प्रासद्ऱ 820/- नज़य यऺा 550/-
अद्श रक्ष्भी 1250/- तॊि यऺा 730/- दब
ु ााग्म नाशक 460/-
सॊतान प्रासद्ऱ 1250/- शिु त्रवजम 730/- * वशीकयण (२-३ व्मत्रिके सरए) 1050/-
स्ऩे- व्माऩय वृत्रद्ध 1050/- त्रववाह फाधा सनवायण 730/- * ऩत्नी वशीकयण 640/-
कामा ससत्रद्ध 1050/- व्माऩय वृत्रद्ध 730/-- * ऩसत वशीकयण 640/-
आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ 1050/- सवा योग सनवायण 730/- सयस्वती (कऺा +10 के सरए) 550/-
नवग्रह शाॊसत 910/- भस्स्तष्क ऩृत्रद्श वधाक 640/- सयस्वती (कऺा 10 तकके सरए) 460/-
बूसभ राब 910/- काभना ऩूसता 640/- * वशीकयण ( 1 व्मत्रि के सरए) 640/-
काभ दे व 910/- त्रवयोध नाशक 640/- योजगाय प्रासद्ऱ 550/-
ऩदं उन्नसत 910/- योजगाय वृत्रद्ध 730/-
*कवच भाि शुब कामा मा उद्दे श्म के सरमे

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(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)

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92 ददसम्फय 2012

GURUTVA KARYALAY
YANTRA LIST EFFECTS
Our Splecial Yantra
1 12 – YANTRA SET For all Family Troubles
2 VYAPAR VRUDDHI YANTRA For Business Development
3 BHOOMI LABHA YANTRA For Farming Benefits
4 TANTRA RAKSHA YANTRA For Protection Evil Sprite
5 AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA For Unexpected Wealth Benefits
6 PADOUNNATI YANTRA For Getting Promotion
7 RATNE SHWARI YANTRA For Benefits of Gems & Jewellery
8 BHUMI PRAPTI YANTRA For Land Obtained
9 GRUH PRAPTI YANTRA For Ready Made House
10 KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA -

Shastrokt Yantra

11 AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA Blessing of Durga


12 BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) Win over Enemies
13 BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) Blessing of Bagala Mukhi
14 BHAGYA VARDHAK YANTRA For Good Luck
15 BHAY NASHAK YANTRA For Fear Ending
16 CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) Blessing of Chamunda & Navgraha
17 CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA Blessing of Chhinnamasta
18 DARIDRA VINASHAK YANTRA For Poverty Ending
19 DHANDA POOJAN YANTRA For Good Wealth
20 DHANDA YAKSHANI YANTRA For Good Wealth
21 GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) Blessing of Lord Ganesh
22 GARBHA STAMBHAN YANTRA For Pregnancy Protection
23 GAYATRI BISHA YANTRA Blessing of Gayatri
24 HANUMAN YANTRA Blessing of Lord Hanuman
25 JWAR NIVARAN YANTRA For Fewer Ending
JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA
26 YANTRA
For Astrology & Spritual Knowlage
27 KALI YANTRA Blessing of Kali
28 KALPVRUKSHA YANTRA For Fullfill your all Ambition
29 KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga
30 KANAK DHARA YANTRA Blessing of Maha Lakshami
31 KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA -
32 KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in work
33  SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in all work
34 KRISHNA BISHA YANTRA Blessing of Lord Krishna
35 KUBER YANTRA Blessing of Kuber (Good wealth)
36 LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA For Obstaele Of marriage
37 LAKSHAMI GANESH YANTRA Blessing of Lakshami & Ganesh
38 MAHA MRUTYUNJAY YANTRA For Good Health
39 MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA Blessing of Shiva
40 MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) For Fullfill your all Ambition
41 MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA For Marriage with choice able Girl
42 NAVDURGA YANTRA Blessing of Durga
93 ददसम्फय 2012

YANTRA LIST EFFECTS

43 NAVGRAHA SHANTI YANTRA For good effect of 9 Planets


44 NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA For good effect of 9 Planets
45  SURYA YANTRA Good effect of Sun
46  CHANDRA YANTRA Good effect of Moon
47  MANGAL YANTRA Good effect of Mars
48  BUDHA YANTRA Good effect of Mercury
49  GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA) Good effect of Jyupiter
50  SUKRA YANTRA Good effect of Venus
51  SHANI YANTRA (COPER & STEEL) Good effect of Saturn
52  RAHU YANTRA Good effect of Rahu
53  KETU YANTRA Good effect of Ketu
54 PITRU DOSH NIVARAN YANTRA For Ancestor Fault Ending
55 PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA For Pregnancy Pain Ending
56 RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA For Benefits of State & Central Gov
57 RAM YANTRA Blessing of Ram
58 RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA Blessing of Riddhi-Siddhi
59 ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA For Disease- Pain- Poverty Ending
60 SANKAT MOCHAN YANTRA For Trouble Ending
61 SANTAN GOPAL YANTRA Blessing Lorg Krishana For child acquisition
62 SANTAN PRAPTI YANTRA For child acquisition
63 SARASWATI YANTRA Blessing of Sawaswati (For Study & Education)
64 SHIV YANTRA Blessing of Shiv
Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth &
65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA) Peace
66 SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth
67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA For Bad Dreams Ending
68 VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA For Vehicle Accident Ending
VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All
69 MAHALAKSHAMI YANTRA) Successes
70 VASTU YANTRA For Bulding Defect Ending
71 VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA For Education- Fame- state Award Winning
72 VISHNU BISHA YANTRA Blessing of Lord Vishnu (Narayan)
73 VASI KARAN YANTRA Attraction For office Purpose
74  MOHINI VASI KARAN YANTRA Attraction For Female
75  PATI VASI KARAN YANTRA Attraction For Husband
76  PATNI VASI KARAN YANTRA Attraction For Wife
77  VIVAH VASHI KARAN YANTRA Attraction For Marriage Purpose
Yantra Available @:- Rs- 255, 370, 460, 550, 640, 730, 820, 910, 1250, 1850, 2300, 2800 and Above…..

GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)

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Our Website:- www.gurutvakaryalay.com and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
Email Us:- chintan_n_joshi@yahoo.co.in, gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
94 ददसम्फय 2012

GURUTVA KARYALAY
NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL
Emerald (ऩन्ना) 200.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above
Yellow Sapphire (ऩुखयाज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Blue Sapphire (नीरभ) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
White Sapphire (सफ़ेद ऩुखयाज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Bangkok Black Blue(फंकोक नीरभ) 100.00 150.00 200.00 500.00 1000.00 & above
Ruby (भास्णक) 100.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above
Ruby Berma (फभाा भास्णक) 5500.00 6400.00 8200.00 10000.00 21000.00 & above
Speenal (नयभ भास्णक/रारडी) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above
Pearl (भोसत) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above
Red Coral (4 यसत तक) (रार भूॊगा) 75.00 90.00 12.00 180.00 280.00 & above
Red Coral (4 यसत से उऩय)( रार भूॊगा) 120.00 150.00 190.00 280.00 550.00 & above
White Coral (सफ़ेद भूॊगा) 20.00 28.00 42.00 51.00 90.00 & above
Cat’s Eye (रहसुसनमा) 25.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Cat’s Eye Orissa (उदडसा रहसुसनमा) 460.00 640.00 1050.00 2800.00 5500.00 & above
Gomed (गोभेद) 15.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Gomed CLN (ससरोनी गोभेद) 300.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Zarakan (जयकन) 350.00 450.00 550.00 640.00 910.00 & above
Aquamarine (फेरुज) 210.00 320.00 410.00 550.00 730.00 & above
Lolite (नीरी) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above
Turquoise (दफ़योजा) 15.00 30.00 45.00 60.00 90.00 & above
Golden Topaz (सुनहरा) 15.00 30.00 45.00 60.00 90.00 & above
Real Topaz (उदडसा ऩुखयाज/टोऩज) 60.00 120.00 280.00 460.00 640.00 & above
Blue Topaz (नीरा टोऩज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
White Topaz (सफ़ेद टोऩज) 60.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above
Amethyst (कटे रा) 20.00 30.00 45.00 60.00 120.00 & above
Opal (उऩर) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Garnet (गायनेट) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Tourmaline (तुभर ा ीन) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above
Star Ruby (सुमक
ा ान्त भस्ण) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above
Black Star (कारा स्टाय) 15.00 30.00 45.00 60.00 100.00 & above
Green Onyx (ओनेक्स) 09.00 12.00 15.00 19.00 25.00 & above
Real Onyx (ओनेक्स) 60.00 90.00 120.00 190.00 280.00 & above
Lapis (राजवात) 15.00 25.00 30.00 45.00 55.00 & above
Moon Stone (चन्रकान्त भस्ण) 12.00 21.00 30.00 45.00 100.00 & above
Rock Crystal (स्फ़दटक) 09.00 12.00 15.00 30.00 45.00 & above
Kidney Stone (दाना दफ़यॊ गी) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above
Tiger Eye (टाइगय स्टोन) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above
Jade (भयगच) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Sun Stone (सन ससताया) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
50.00 100.00 200.00 370.00 460.00 & above
Diamond (हीया) (Per Cent ) (Per Cent ) (PerCent ) (Per Cent) (Per Cent )
(.05 to .20 Cent )
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
95 ददसम्फय 2012

BOOK PHONE/ CHAT CONSULTATION


We are mostly engaged in spreading the ancient knowledge of Astrology, Numerology, Vastu and Spiritual
Science in the modern context, across the world.
Our research and experiments on the basic principals of various ancient sciences for the use of common man.
exhaustive guide lines exhibited in the original Sanskrit texts

BOOK APPOINTMENT PHONE/ CHAT CONSULTATION


Please book an appointment with Our expert Astrologers for an internet chart . We would require your birth
details and basic area of questions so that our expert can be ready and give you rapid replied. You can indicate the
area of question in the special comments box. In case you want more than one person reading, then please mention
in the special comment box . We shall confirm before we set the appointment. Please choose from :

PHONE/ CHAT CONSULTATION


Consultation 30 Min.: RS. 1250/-*
Consultation 45 Min.: RS. 1900/-*
Consultation 60 Min.: RS. 2500/-*
*While booking the appointment in Addvance

How Does it work Phone/Chat Consultation


This is a unique service of GURUATVA KARYALAY where we offer you the option of having a personalized
discussion with our expert astrologers. There is no limit on the number of question although time is of
consideration.
Once you request for the consultation, with a suggestion as to your convenient time we get back with a
confirmation whether the time is available for consultation or not.
 We send you a Phone Number at the designated time of the appointment
 We send you a Chat URL / ID to visit at the designated time of the appointment
 You would need to refer your Booking number before the chat is initiated
 Please remember it takes about 1-2 minutes before the chat process is initiated.
 Once the chat is initiated you can commence asking your questions and clarifications
 We recommend 25 minutes when you need to consult for one persona Only and usually the time is
sufficient for 3-5 questions depending on the timing questions that are put.
 For more than these questions or one birth charts we would recommend 60/45 minutes Phone/chat
is recommended
 Our expert is assisted by our technician and so chatting & typing is not a bottle neck

In special cases we don't have the time available about your Specific Questions We will taken some time for
properly Analysis your birth chart and we get back with an alternate or ask you for an alternate.
All the time mentioned is Indian Standard Time which is + 5.30 hr ahead of G.M.T.
Many clients prefer the chat so that many questions that come up during a personal discussion can be
answered right away.
BOOKING FOR PHONE/ CHAT CONSULTATION PLEASE CONTECT

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96 ददसम्फय 2012

सूचना
 ऩत्रिका भं प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के असधकायं के साथ ही आयस्ऺत हं ।

 रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ दक कामाारम मा सॊऩादक बी इन त्रवचायो से सहभत हं।

 नास्स्तक/ अत्रवद्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं ।

 ऩत्रिका भं प्रकासशत दकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ दकसी बी व्मत्रि त्रवशेष मा दकसी बी स्थान मा
घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हं ।

 प्रकासशत रेख ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण
मदद दकसी के रेख, दकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का दकसी के वास्तत्रवक जीवन से भेर होता हं तो मह भाि
एक सॊमोग हं ।

 प्रकासशत सबी रेख बायसतम आध्मास्त्भक शास्त्रं से प्रेरयत होकय सरमे जाते हं । इस कायण इन त्रवषमो दक
सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय दकसी बी प्रकाय दक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक दक नहीॊ हं ।

 अन्म रेखको द्राया प्रदान दकमे गमे रेख/प्रमोग दक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव दक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक
दक नहीॊ हं । औय नाहीॊ रेखक के ऩते दठकाने के फाये भं जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक दकसी बी
प्रकाय से फाध्म हं ।

 ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भं ऩाठक का अऩना
त्रवद्वास होना आवश्मक हं । दकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को दकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने
का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा।

 ऩाठक द्राया दकसी बी प्रकाय दक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।

 हभाये द्राया ऩोस्ट दकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय सरखे होते हं । हभ दकसी बी व्मत्रि
त्रवशेष द्राया प्रमोग दकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी स्जन्भेदायी नदहॊ रेते हं ।

 मह स्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि दक स्वमॊ दक होगी। क्मोदक इन त्रवषमो भं नैसतक
भानदॊ डं, साभास्जक, कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रि मदद नीजी स्वाथा ऩूसता हे तु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग
के कयने भे िुदट होने ऩय प्रसतकूर ऩरयणाभ सॊबव हं ।

 हभाये द्राया ऩोस्ट दकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधग
ु ण ऩय प्रमोग दकमे हं
स्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ हुई हं ।

 ऩाठकं दक भाॊग ऩय एक दह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का असधकाय यखता हं । ऩाठकं को एक रेख के ऩून्
प्रकाशन से राब प्राद्ऱ हो सकता हं ।

 असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं ।

(सबी त्रववादो केसरमे केवर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)


97 ददसम्फय 2012

FREE
E CIRCULAR
गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ददसम्फय -2012
सॊऩादक

सचॊतन जोशी
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग

गुरुत्व कामाारम
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पोन

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98 ददसम्फय 2012

हभाया उद्दे श्म


त्रप्रम आस्त्भम

फॊध/ु फदहन

जम गुरुदे व

जहाॉ आधुसनक त्रवऻान सभाद्ऱ हो जाता हं । वहाॊ आध्मास्त्भक ऻान प्रायॊ ब हो जाता हं , बौसतकता का आवयण ओढे व्मत्रि
जीवन भं हताशा औय सनयाशा भं फॊध जाता हं , औय उसे अऩने जीवन भं गसतशीर होने के सरए भागा प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता क्मोदक
बावनाए दह बवसागय हं , स्जसभे भनुष्म की सपरता औय असपरता सनदहत हं । उसे ऩाने औय सभजने का साथाक प्रमास ही श्रेद्षकय
सपरता हं । सपरता को प्राद्ऱ कयना आऩ का बाग्म ही नहीॊ असधकाय हं । ईसी सरमे हभायी शुब काभना सदै व आऩ के साथ हं । आऩ
अऩने कामा-उद्दे श्म एवॊ अनुकूरता हे तु मॊि, ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न औय दर
ु ब
ा भॊि शत्रि से ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत सचज वस्तु का हभंशा
प्रमोग कये जो १००% परदामक हो। ईसी सरमे हभाया उद्दे श्म महीॊ हे की शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध
प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा चैतन्म मुि सबी प्रकाय के मन्ि- कवच एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोचाने का हं ।

सूमा की दकयणे उस घय भं प्रवेश कयाऩाती हं ।


जीस घय के स्खिकी दयवाजे खुरे हं।

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(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)

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99 ददसम्फय 2012

DEC
2012

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