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िल्पना िरें , इस लोि सभा चुनाव में भाजपा िो दौ सौ सीटें कमलतीीं, और िुल पररणाम ऐसे होते
कि यूपीए या किसी मोचे िी सरिार बनती – तो अभी क्या कवश्लेषण हो रहा होता? पूरे कवश्वास
से कलखा जाता कि किन-किन िारणोीं से भाजपा ने अपना जनादे श गँवा कदया, कि ये तो होना ही
था, आकद आकद। उसिे कलए उदाहरणोीं, घटनाओीं और तिों िी िोई िमी न होती। यह कवश्लेषण
वही लोग िरते जो अभी भाजपा िी जीत िा िर रहे हैं । किसी िो समय, टीम और सींसाधन
लगािर दे शव्यापी शोध िर ठोस िारणोीं, तथ्ोीं िी खोज िरने िी किक्र न होती, जै से अभी नहीीं
हो रही है । सभी बैठे-बैठे ही तमाम तथ् तिक दे रहे हैं ।
गजक यह कि पररणाम दे ख िर इन्सटैं ट कवश्लेषण िी िोई उपयोकगता नहीीं। कवकभन्न लोग कवकवध
िारणोीं से किसी िो वोट दे ते या नहीीं दे ते हैं । इसिे अकतररक्त, िई चीजें किसी पाटी िो लाभ या
हाकन पहँ चाती हैं । अतः जब ति बडे पैमाने पर प्रमाकणि तथ् न इिट्ठा किए जाएीं , तब ति
पररणामोीं िा िारण बताना िेवल अनु मान है।
इसकलए, अपने -अपने अनु मान से इसे मोदी िी, आर.एस.एस. सींगठन िी, धन बल और अींधाधुींध
प्रचार िी, माइक्रो-बूथ-प्रबींधन िी, गरीबोीं िे कलए िाम, बालािोट सींयोग, कविल्पहीनता, कहन्दु त्व, अथवा
इन सब में िई तत्वोीं िे सामू कहि प्रभाव िी जीत िहा जा सिता है । िोई कनष्कषक पूरी तरह
गलत न होगा। किन्तु िौन सा कनणाक यि तत्व था? यह रामजी ही जानते हैं ! क्योींकि वास्तकवि
सामाकजि अध्ययन और शोध हमारे दे श में बहत पहले बींद हो गया। उस िे नाम पर अकधिाीं श
अपने -अपने पसींद िा मतवादी प्रचार या खानापूरी होती है ।
कपछले पाँ च वषों में भी धमक -सींस्कृकत शत्रु ओ/ीं कवरोकधयोीं िा ही शै कक्षि, िानूनी, बौस्मिि दबदबा रहा।
इस बीच भाजपा सत्ता ने जो भी िाम किए उसे िोई अन्य पाटी भी िर सिती थी। उन िामोीं
में िोई बुकनयादी रूप से कभन्न सैिाीं कति बात नहीीं थी। व्यापार, जन-सुकवधा, रोजमरे िे िामोीं से
कहन्दू सभ्यता-सींस्कृकत िे पुनजीवन िा सींबींध नहीीं है। उन िामोीं में भी अपराध कनयींत्रण और
पुकलस-दक्षता में सुधार जै से बुकनयादी क्षे त्र िो नहीीं कलया गया। िलतः समाज में सज्जन व दु जकन
लोगोीं िी स्मथथकतयोीं में पहले से िोई कवशे ष अींतर नहीीं आया है । किर भी, गैस, शौचालय, राजमागक,
आकद योजनाओीं से लाखोीं गरीबोीं िो लाभ हआ, यह प्रसन्नता िी बात है । पर वे हमारी सभ्यता-
सींस्कृकत िो पहँ चाए गए घाव िो भरने से जुडे िाम नहीीं थे । इसिी सिाई में दी जाती दलीलें
सच भी होीं (जो वे नहीीं है ), तब भी कनष्कषक हआ कि मू ल कववादी प्रश्ोीं पर कहन्दू -कवरोधी मतवादोीं
िी ही सत्ता यथावत् रही। यहाँ ति कि उनिे िई अनु ष्ठान भाजपा सत्ता ने भी बेवजह और िई
बार दु हराए!
अतः चुनावोीं में सींघ-भाजपा िा बढा दबदबा सतही है । उस ने िहीीं भी कहन्दू -कवरोधी थथापनाओीं
िो सारतः कवथथाकपत नहीीं किया है । कशक्षा िा राजनीकतिरण खत्म िरने िी पहल नहीीं िी।
ओपेड पन्नोीं से ले िर कवश्वकवद्यालयोीं, अिादकमयोीं में िोई कवषय-पररवतकन न कदखा, जो पूरे मामले िी
एि िसौटी है । अकधिाीं श बगीचोीं में िेवल माली बदले , जबकि हर िहीीं िँटीले झाड-झींखाड और
कवषै ली बेलें वैसी ही लगी रहीीं। उन्हें हटािर पौकिि सुींदर िल-िूलोीं िे पेड-पौधे लगाने िी इच्छा
न कदखी।
इसीकलए, भाजपा िी लोि सभा सीटें बढना िेवल एि सींभावना जगाती है। यह वास्तकविता बने गी
या नहीीं, इस िा उत्तर कववेि से ढू ँ ढें। कहन्दू -कवरोधी मतवादोीं और उनिी थथाकपत दु नीकतयोीं िो
बदलने िा िाम आमूल बािी है । उस कदशा में न िोई िदम उठा, न वैसा सींिेत है । चुनाव
पररणाम िे बाद भी सारी बातें पाटी-िेंकित और अगले चुनाव िे दृकिगत हैं । शे ष उपदे शात्मि,
कजन से िोई नीकत-कदशा या िमक -योजना िी झलि नहीीं कमलती।
िेवल सही नीयत िी कदलासा दी गई है । एजें डा अभी भी रहस्य है । अतः पहले जै से बेतरतीब,
आिस्मिि, और प्रचारात्मि िाम होते रह सिते हैं । लोग उन्हें पुनः स्वीिार भी िर लें तो यह
सब िोई सभ्यतागत पुनजीवन वाली कदशा नहीीं है । यकद िुछ है , तो िोई भारी िमी ही। कजसे
सकदच्छा और कविल्पहीनता में अनदे खा भले िरें , उस से कनणाक यि पररवतकन हो जाने िी आशा
दम-कदलासा ही है ।
कनस्सींदेह, सींघ-भाजपा िी सत्ता प्रायः हर वगक, समु दाय िे कलए बेहतर स्मथथकत है । लोग भारतीय भाषा,
कशक्षा, सींस्कृकत क्षेत्र में समु कचत िाम िर सिें, इस िे कलए यह अनु िूल स्मथथकत िही जा सिती है ।
पर क्या सींघ-भाजपा इस िे कलए समाज िो प्रोत्साहन दे ने िो तैयार हैं ? इस िा उत्तर आसान
नहीीं। क्योींकि िम्युकनस्ोीं िी तरह सींघ-पररवार में भी एिाकधिारी प्रवृकत्त है , जो स्वतींत्र सामाकजि
िामोीं और िताक ओीं िो उपेक्षा या सींदेह से दे खती है । उसे किसी न किसी तरह अपने कनयींत्रण में
चलाना चाहती है । यद्यकप यह कहन्दू धमक -सींस्कृकत िी कशक्षा िे कवरुि है। कहन्दू परीं परा में ज्ञाकनयोीं
से राजा मागकदशकन ले ता था, न कि उलटा। कहन्दू व्यवथथा में धमक आकथक ि गकतकवकधयोीं से ऊपर और
स्वतींत्र है । अतः शौचालय िो दे वालय िी तुलना में , वह भी ऊँचा, रखना वामपींथी मानकसिता है ।
इसीकलए, चाहे भारतीय मतदाताओीं िे एि वगक ने सींघ-भाजपा िो कहन्दु त्व िे कलए मत कदया हो,
किन्तु यह अपने आप में धमक -समाज िी सुरक्षा िी गारीं टी नहीीं। सींघ-भाजपा िी बढती सींख्या
िेवल उतना ही दशाक ती है: उन िी सींख्या। उस सींख्या-वृस्मि िो धमक -वृस्मि समझना भू ल होगी।
सो यह चुनाव हमारी सभ्यता-सींस्कृकत िे पुनजीवन िे कलए िोई मोड है या नहीीं, यह दे खना अभी
शे ष है ।
स्रोत: www.nayaindia.com