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आपकी घोषणा के दस
ू रे हिस्से में आपने कहा कि अनुसूचित जनजाति के लोगो के खिलाफ किये
गए गौण आपराधिक मामले भी वापिस लिए जाएंगे। यह बहुत सराहनीय कदम है । इसी सन्दर्भ
में हम अपने समुदायों से जुड़ी कुछ चिंता और तथ्य आपके समक्ष रखना चाहते हैं। यह दे खा
गया है कि आबकारी सम्बंधित अपराधों में या दस
ू रे गौण अपराधों में पलि
ु स हमारे समुदायों को
निशाना बनाती है । एक शोध यह दिखाती है कि 2018-2020 के बीच आबकारी अधिनियम के
तहत की गई गिरफ्तारियों में से 56% गिरफ़्तारियां आदिवासी, दलित, अन्य पिछड़े वर्ग और
विमुक्त समुदाय के लोगो की हुई। खास करके विमुक्त समुदाय की अभ्युक्तो की संख्या उनकी
सामान्य जनसंख्या से भी अधिक है । और ज़्यादातर मामलो में इन्हे अपने घरो और निजी
स्थानों से बहुत छोटी मात्रा में शराब रखने के अपराध में गिरफ्तार किया जाता है ।
इस शोध में यह भी पाया गया कि गिरफ़्तारी के सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अर्नेश
कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) के मामले में दिए गए निर्देश का पालन नहीं किया जा रहा।
इस मामले में माननीय न्यायलय ने गिरफ़्तारी के लिए कुछ शर्ते चिह्नित की हैं जिन्हे परू ा
करना अनिवार्य है । इन चिह्नित शर्तों में से एक शर्त यह है कि जिन मामलों में 7 साल या
उससे कम अवधि के कारावास का प्रावधान है , उन मामलों में गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं होगी।
उपरोक्त शोध में यह भी पाया गया की ज़्यादातर मामले धारा 34(1) तहत दर्ज किये गए हैं
जिसमें कारावास की अवधि 7 साल से कम है , और इन मामलों में अनावश्यक गिरफ्तारी से
काफी हद तक बचा जा सकता है । इसलिए हम आप से यह मांग करते हैं कि विमक्
ु त समद
ु ायों
के खिलाफ भी ऐसे गौण मामले वापिस लिए जाएं।
अतः हम आपकी सरकार से आशा करते है कि लम्बे समय से चली आ रही हमारे समुदाय की
इन निम्नलिखित मांगो को स्वीकार कर ठोस कदम उठाएगी:
1. नई आबकारी नीति में विमुक्त समुदायों को भी महुए की शराब बनाने व बेचने की छूट
मिलेगी।
2. विमुक्त समुदायों के खिलाफ आबकारी अधिनियम के तहत दर्ज किये गए गौण
आपराधिक मामले वापिस लेगी।
3. आबकारी अधिनियम में किये गए संशोधन से फांसी की सज़ा हटाई जाएगी।
भवदीय,