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(Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki Grand Master, NDDY & Md Spiritual Healing)
मप
ू य मात्र = 100/-
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रें की पररचर्
रें की (Reiki) एक जािानी शब्द हैं।, ल्जसका अथि हैं। सविव्यािी
जीवनी शल्क्त (Universal Life Energy), इसको ब्रहमांिीय ऊजाि
(Cosmic Energy) भी कहा जाता हैं। प्रत्येक मनुष्य इस जीवनी
शल्क्त के साथ उत्िन्न होता हैं। और िूरे जीवन इसका जाने
अनजाने प्रयोग करता रहता हैं। लगभग 1800 ईसा के अंनतम
वषों में िााँ शमकाओ उशुई ने रैंकी को खोजा ओर उन्हे इसका
संस्थािक माना गया हैं। िरं तु हमारे ऋर्ष मुननयों ने, संत
महात्माओं ने जीवन के आरं भ में ही इस र्वचध को जान शलया
था। और वह प्राथिना के द्वारा इसका प्रयोग करते थें। हमारे
प्रािीन ऋर्षयों की संिदा को ही िॉक्टर शमकाओ उशुई ने खोजा
और जािानीज शसंबल व जािानी मंत्र ददए, िरन्तु कपिांत रें की
साधना में हम भारतीय शसंबल व मंत्र के द्वारा रें की हीशलंग
सीखें गे और यह रें की या ऊजाि जािानीज रें की से हजारों गुना तेजी
से काम करें गी और इसको जानना व सीखना भी आसान होगा।
आि ने सुना होगा कक हमारे िूवज
ि , गुरु, संत,
महात्मा, शल्क्तिात ककया करते थें, और वह इससे ििों को
जागत
ृ ककया करते थें। िि जागत
ृ करने के दो ही रास्ते हैं। एक
ध्यान व दस
ू रा शल्क्तिात, तो शल्क्तिात की इस किया को ही
रें की कहा जाता हैं। िरं तु िााँ शमकाओ उशई
ु ने इसे ध्यान के
द्वारा प्राप्त ककया था। और एक खास बात की रें की कंु िशलनी
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र्नुष्र् की आवश्र्कतमऐ
1.मनष्ु य की िहली जरूरत है िैसा, अच्छा खाना, अच्छा िहनना
और मनष्ु य इसके शलए संघषि करता हैं। कभी-कभी वह संघषि
करके भी यह सब नहीं िाता है । उस समय आिको ककसी ऐसी
िावर की जरूरत होती है ल्जससे यह जरूरते आिकी ओर
आकृर्षित होने लगे। रें की में यह सब संभव हो जाता है । आि
संबंधों को सुधार सकते हैं। अिनी इच्छाओं को िूरा कर सकते हैं।
आि अिनी व िररवार की सुरक्षा कर सकते हैं।
5.कफर अंनतम इच्छा होती है कक मैं दनु नया को बदलू, दनु नया में
कुछ ऐसा करू जो मुझे भी आनंद दें और सामने वाले को भी। मैं
सेवा करुं , िरमात्मा की मस्ती में मस्त रहूाँ या और भी ऐसी
अंनतम इच्छाऐं जो मनुष्य का लक्ष्य होती है । वो रें की से िा
सकते सकते हैं।
रें की के ससदधमंत
1 र्वस्वास -: र्वस्वास अथाित मैं कर सकता हूाँ, संदेंह कायि में
िवित के समान है ओर र्वश्वास िार करा दे ता हैं।
2 इच्छा शल्क्त -: रिनात्मक करने की शल्क्त -: मैं ठीक कर
सकता हूाँ, मैं अिनी इच्छा िूरी कर सकता हूाँ, अतः
इच्छा शल्क्त का त्याग कभी ना करें । प्रबल इच्छा ही
सफलता की कंु जी हैं।
3 स्वास्थ -: में िूणि स्वस्थ हूाँ, और दस
ू रों को स्वस्थ कर सकता
हूाँ, हमेशा याद रखें।
4 ज्ञान -: मैं अिने िूणि ज्ञान का प्रयोग करूंगा, और इसे ननत्य
बढ़ाता जाऊंगा।
5 बुद्चधमानी -: हमें हर कायि को करने से िहले अच्छे से
समझना है और तब ननणिय करना है कक क्या कब क्यों
कैसे करें गे।
6 ननिुणता -: अिनी ननिुणता िर मुझे िूरा भरोसा है ।
7 उत्सव -: मेरा जीवन हर िल उत्सव हैं। यह उत्साह हमें शा
बनाए रखग
ूं ा।
8 र्ववेक -: र्ववेक व साहस के साथ में हर कायि को िूरा करुं गा
9 िम -: मैं सफल होने के शलए हर-िल सभी संभव कोशशश
करुं गा।
10 दृढ़ता -: अिनी सोि में दृढ़ता व धैयि बनाए रखग
ूं ा।
11 आभार -: दे ने वाले का आभार हमेशा प्रकट करूगां।
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मूपय = 250/-
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रें की के चरण
प्रथम िरण (रें की 1st डिग्री) -: यह रें की का बेशसक कोसि हैं।
रें की मास्टर द्वारा ब्रहमांिीय ऊजाि को शल्क्तिात के द्वारा शरीर
में संिाररत ककया जाता हैं। रें की क्या हैं। इनतहास, रें की के
स्थान, मन को ल्स्थर करने की र्वचध, रें की शसद्धांत, शरीर के
सभी 26 त्रबंदओ
ु ं िर ऊजाि को लेने का तरीका बताया जाता हैं।
भौनतक शरीर की रुकावट को खोल कर ऊजाि का संिरण
ककया जाता हैं। और कफर 21 ददन तक आिको अभ्यास करना
होता हैं। इस अभ्यास के दौरान आने वाली बाधाओं का समाधान
ककया जाता हैं। तथा आिके अनुभव के आधार िर जब यह िता
लग जाता हैं। कक अब आि ब्रहमांिीय ऊजाि को अवशोर्षत कर िा
रहे हैं और इसे हाथों के द्वारा आगे दे िा रहे हैं। तब द्र्वतीय
डिग्री लेने की इजाजत दी जाती हैं।
द्र्वतीय िरण (रें की 2nd डिग्री) -: रहस्यमय मंत्र एवं शसंबल ददए
जाते हैं। ल्जनके द्वारा हम दरू बैठे व्यल्क्तयों को भी रें की भेज
सकते हैं। और सभी ििो िर र्वशेष शल्क्तिात ककया जाता हैं।
ििों का संतुलन करना शसखाया जाता हैं। रें की बॉक्स बनाना
एवम सुदशिन िि के ननमािण की किया दी जाती हैं। इससे आि
अिनी इच्छाएं िूरी करने लगते हैं। दस
ू रों को स्वस्थ करने लगते
हैं। सभी ििों का के बारे में बताया जाता हैं। ककस ककस िि से
क्या क्या लाभ होंगे और प्रत्येक िि को त्रबना स्िसि ककए कैसे
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ऊजाि दे ते हैं शसखाया जाता हैं। इसमें आिको तीन शसंबल ददए
जाते हैं एक िावर बढ़ाने के शलए, दस
ू रा रक्षा के शलए, तीसरा
दरु स्त दहशलंग के शलए, इसमें ऊजाि िहले से 4 गुना हो जाती हैं।
कंिनी भी बढ़ जाता हैं।
तत
ृ ीय िरण (रें की 3rd डिग्री) -: अत्यंत शल्क्तशाली शसंबल ददया
जाता हैं। आि सामने वाले की सभी इच्छाएं िरू ी कर सकते हैं।
साइककक दहशलंग उििार, एवम कुछ मंत्र व एक शसंबल ददया
जाता हैं। ल्जससे ऊजाि बहुत तेजी से ली एवम दी जा सकती हैं।
आि हर प्रकार के मरीज का इलाज करने में सक्षम हो जाते हैं।
मास्टर बन जाते हैं। लोगों को रें की 1st डिग्री एवं रें की 2nd डिग्री
शसखा सकते हैं। आज्ञा िि के द्वारा ब्रहमांि में प्रवेश कराया
जाता हैं।
करुणा साधना को बताया जाता हैं। इसमें आि सभी
िेड़ िौधों से ऊजाि लेने लगते हैं। सभी के प्रनत प्रेम को बढ़ावा
शमलता हैं। सामने वाला आिसे प्रेम करने लगता हैं। और आि
उससे प्रेम करने लगते हैं। आिका हृदय करुणा से भरने लगता
हैं। आि सब िर दया करने लगते हैं।
तत
ृ ीय िरण (रें की 3rd डिग्री) में आिको कुछ अन्य
शसंबल भी ददए जाते हैं। ल्जससे आि और बहुत सी जरूरतें अिनी
व दसू रों की िूरी कर िाते हैं।
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मनुष्य आनंद िहाता हैं ओर वह उसे िाने के शलये लालानयत होता है । जीवन
मे संभोग आनंद की िराकाष्ठा है क्योंकक उस समय उसके अन्दर कोई भी
र्विार नही होता है वह ननर्वििार शसफि वतिमान मे कियाशील हो रहा होता है
ओर त्रबन्द ु का आनंद रूिी अमत
ृ नीिे की ओर आकर आनंद की तल्ृ प्त दे ता
है । इस प्रकार काम का उियोग सीमा मे कर उसे आनंद का साधन बनाना
केवल संयम के अधीन ही संभव हैं।
रें की की ववशेषतमएं
1 हमारा सक्ष्
ू म शरीर िेतना आकाश तत्व (ब्रमांि) में र्विरण
करता हैं। और स्थल
ू शरीर ि्
ृ वी िर और इन दोनों के शमलन से
ही जीवन की प्राल्प्त होती हैं। जब इन का संतुलन बना रहता हैं।
तो हम ननरोगी रहते हैं। जब ककसी एक का संतुलन त्रबगड़ता हैं।
तो दस
ू रा भी त्रबगड़ने लगता हैं। और हम रोगी हो जाते हैं।
जेसे हमारे मन में चिंता, ओर तनाव बढ़ गया, हम
डिप्रेसन में आ गये तो स्थल
ू शरीर त्रबगड़ने लगेगा। सूक्ष्म शरीर
हमारी भावना ओर र्विारो िर ननभिर करता हैं। स्थल
ू शरीर हमारे
खान िान वे ददनियाि िर ननभिर करता हैं। अत: हमें अिने भाव
और र्विारों के साथ साथ अिनी ददनियाि में खानिान िर भी
ध्यान दे ना होगा। हमारे र्विार और भौनतक शरीर ल्जतना ज्यादा
स्वस्थ होगा ब्रहमांिीय ऊजाि उतनी ज्यादा हम ले या दे िाएंगे।
इसशलए हमें खानिान, ददनियाि व अिने र्विारों िर ध्यान दे ना
होगा, ल्जससे अचधक ऊजाि को आि अवशोर्षत कर, प्रयोग कर
सकें।
2 रोगी मानशसक हो या शारीररक वह हमारे प्रभामंिल में
नकारात्मक ऊजाि की वद्
ृ चध कर दे ता हैं। और रें की इस
नकारात्मक ऊजाि को सकारात्मकता में बदल दे ती हैं। ल्जससे रोगी
का रोग ठीक हो जाता हैं।
3 रें की हाथों के द्वारा हमारे आभामंिल को, सूक्ष्म शरीर को व
भौनतक शरीर को ऊजािवान बना दे ती हैं। और हम िण
ू ि स्वास््य
को प्राप्त करते हैं।
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मझ
ु से संिकि करें
https://www.facebook.com/jagatverma.gzb
http://h.bhealthy.mobi/yogaathome
https://www.youtube.com/watch?v=hb19IapJ5Zk
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1. कलपमंत कलप व सा
ष समधनम (र्ूलर् र्मत्र – 250/)