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महर्षि दयानन्द वैकल्पिक चिककत्सा


शोध, प्रशशक्षण एवं उििार संस्थान

कपिांत रें की साधना 1st डिग्री

डॉ.जे पी वर्मा (स्वमर्ी जगतेश्वर आनंद जी)


(स्वतंत्र लेखक एवर् समर्मजजक कमर्ाकतमा)

(Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki Grand Master, NDDY & Md Spiritual Healing)

Kalpant Sawashram, Plot No.35 United Paradise


Behind Krishna Sagar Hotel, Near – Sant Nirankari Ashram
Muradnagar Gang Nahar NH.58, Meerut Road Ghaziabad
Pin 201206, Mob- 9958 502 499, 9899 410 128

िेतावनी -: भारतीय एक्ट के अधीन इस िुस्तक के सवािचधकार लेखक के िास सुरक्षक्षत


है । अत: कोई भी सज्जन इस िस्
ु तक का नाम, अन्दर का मेंटर, डिजाईन, चित्र, व
ककसी भी अंस का, ककसी भी भाषा में नक़ल या तोड़ मरोड़ कर छािने का प्रयास ना करे
अंन्यथा क़ानूनी तोर िर हजे, खिे, व मानहानन की ल्जम्मेदारी अिनी होंगी। समस्त वाद
र्ववाद का न्याय क्षेत्र केवल गाल्जयाबाद होगा।
इस िुस्तक का उदे श्य आिको र्वषय संबंचधत जानकारी दे ना हैं। ककसी भी किया को
करने से िूवि र्वशेषज्ञ की सलाह अवस्य ले अन्यथा होने वाली ककसी भी हानन के शलये
लेखक ककसी भी रूि में उत्तरदायी नहीं होगा।

मप
ू य मात्र = 100/-
2

कलपमंत रें की समधनम

रें की पररचर्
रें की (Reiki) एक जािानी शब्द हैं।, ल्जसका अथि हैं। सविव्यािी
जीवनी शल्क्त (Universal Life Energy), इसको ब्रहमांिीय ऊजाि
(Cosmic Energy) भी कहा जाता हैं। प्रत्येक मनुष्य इस जीवनी
शल्क्त के साथ उत्िन्न होता हैं। और िूरे जीवन इसका जाने
अनजाने प्रयोग करता रहता हैं। लगभग 1800 ईसा के अंनतम
वषों में िााँ शमकाओ उशुई ने रैंकी को खोजा ओर उन्हे इसका
संस्थािक माना गया हैं। िरं तु हमारे ऋर्ष मुननयों ने, संत
महात्माओं ने जीवन के आरं भ में ही इस र्वचध को जान शलया
था। और वह प्राथिना के द्वारा इसका प्रयोग करते थें। हमारे
प्रािीन ऋर्षयों की संिदा को ही िॉक्टर शमकाओ उशुई ने खोजा
और जािानीज शसंबल व जािानी मंत्र ददए, िरन्तु कपिांत रें की
साधना में हम भारतीय शसंबल व मंत्र के द्वारा रें की हीशलंग
सीखें गे और यह रें की या ऊजाि जािानीज रें की से हजारों गुना तेजी
से काम करें गी और इसको जानना व सीखना भी आसान होगा।
आि ने सुना होगा कक हमारे िूवज
ि , गुरु, संत,
महात्मा, शल्क्तिात ककया करते थें, और वह इससे ििों को
जागत
ृ ककया करते थें। िि जागत
ृ करने के दो ही रास्ते हैं। एक
ध्यान व दस
ू रा शल्क्तिात, तो शल्क्तिात की इस किया को ही
रें की कहा जाता हैं। िरं तु िााँ शमकाओ उशई
ु ने इसे ध्यान के
द्वारा प्राप्त ककया था। और एक खास बात की रें की कंु िशलनी
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शल्क्त का प्रयोग ही हैं। रें की मैं ऊजाि ब्रहमांि से लेकर आगे


सामने वाले िर प्रवादहत की जाती हैं, और उसका िैनल या यूं
कहें कक माध्यम हम होते हैं बस यही रें की हैं।
सददयों से मनुष्य ने बहमांि में व्याप्त इस िेतना
शल्क्त को जानने की कोशशश की हैं। यही शल्क्त हमारे शरीर का
ननमािण करती हैं। और िूरे जीवन का संिालन करती हैं। हमारे
महान ऋर्षयों ने बहुत िहले बता ददया था। कक यह िेतन शल्क्त
सभी वस्तुओं में ननवास करती हैं। और यही शल्क्त हमारे हाथों से
रें की उििार के समय प्रवादहत होती हैं।
प्राचिन समय से िली आ रही आशीवािद, प्राथिनाये,
शल्क्तिात, िि जाग्रत करना, संकपिों के द्वारा रोंगों को ठीक
करना, भक्तों के द्वारा ककए जाने वाले कायि आदद िरं िराएं रें की
का ही रूि हैं। और इस बात से शसद्ध होता हैं। कक िॉक्टर
शमकाओ उशई
ु से िहले भी भारत में इसका प्रयोग संत महात्मा
करते थें

स्त्री िुरूष का शमलन केवल इल्न्िय सुख तक ही शसशमत नही हैं।


वह इससे बहुत ज्यादा आगें आल्त्मक सुख आन्नद की िराकाष्ठा
तक जाने का रास्ता है ।

संभोग से आनंद की ओर िुस्तक से (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)


मप
ू य = 250/-
4

रें की जमगरण कम एहसमस


जब िॉक्टर शमकाओ उशई
ु ने 21 ददन तक ध्यान ककया तो 21
वे ददन उन्हें आज्ञा िि में तीव्र सफेद रोशनी आती हुई ददखाई
दी और धीरे -धीरे वह रोशनी इतनी बड़ी कक उनके िारों ओर फैल
गई और हजारों तरं गे इंिधनुष के रं गों के समान उन्हें ददखने
लगी, सूक्ष्म शारीर के ििों में ऊजाि का प्रसार हुआ ओर काफी
दे र तक उन्होंने यह ऊजाि अिने अंदर महसूस की, लेककन वो इस
ऊजाि को बदािश्त नहीं कर िाए और मूनछि त हो गए, ओर जब वो
जागे तो उन्हें िता िला कक कोई शल्क्त उनके अंदर आ गयी हैं।
उन्होंने उस शल्क्त का प्रयोग ककया ओर उसे रें की नाम ददया।
रें की की 1st डिग्री में हम यही अहसास कराने की
कोशशश करते हैं। जो 21 ददन में िॉक्टर शमकाओ उशुई को
अनुभव हुआ था। वह हमारी कपिांत रें की हीशलंग में िहलें ददन
ही हो जाता हैं। ओर िेतना अवस्था में होता हैं। जब हम इसको
जान लेते हैं। तब इसका प्रयोग करना आसान हो जाता हैं। और
हम प्रथम ददन से ही अिना उििार शुरु कर दे ते हैं। ओर आि
जब 21 से 40 ददन तक लगातार इसका अभ्यास करते हैं। तो
यह ऊजाि इतनी बढ़ जाती हैं। कक आि अब इसका प्रयोग दस
ू रों
के शलए भी करने को तैयार हो सकते हैं और तब कफर 2nd डिग्री
लेने कक इजाजत दी जाती हैं। ल्जससें आि अिनी सुरक्षा कर सकें
और दस
ू रे को रोगमुक्त कर सकें, रें की बॉक्स के द्वारा
ररलेशनशशि को सध
ु ारना अिनी इच्छाओं की िनू ति करना आदद
बताया जाता हैं।
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र्नुष्र् की आवश्र्कतमऐ
1.मनष्ु य की िहली जरूरत है िैसा, अच्छा खाना, अच्छा िहनना
और मनष्ु य इसके शलए संघषि करता हैं। कभी-कभी वह संघषि
करके भी यह सब नहीं िाता है । उस समय आिको ककसी ऐसी
िावर की जरूरत होती है ल्जससे यह जरूरते आिकी ओर
आकृर्षित होने लगे। रें की में यह सब संभव हो जाता है । आि
संबंधों को सुधार सकते हैं। अिनी इच्छाओं को िूरा कर सकते हैं।
आि अिनी व िररवार की सुरक्षा कर सकते हैं।

2.प्रेम -: प्रेम मनोर्वज्ञाननक व आध्यातशमक दो प्रकार का होता


है । और यह प्रेम ही हमें एक दस
ू रे से बांधकर रखता है । और यही
रिनात्मक शल्क्त है । स्वयं से व अिने संसार से प्रेम करें , ल्जससे
आि जुड़े हैं। क्योंकक प्रेम में ऊजाि अचधक कियाशील होती है ।
इसके र्विरीत घण
ृ ा र्वध्वंशक शल्क्त है , जो ऊजाि का नाश करती
है । बच्िों में व ल्स्त्रयों में दोनों शल्क्तयां प्रबल होती हैं। िरं तु 16
साल के बाद िुरुष में रिनात्मक शल्क्त कम होती जाती है और
उसका प्रेम लोभ व लालि बस रहता है ।
प्रेम उिहार दे ना, सब कुछ स्वीकार कर लेना, एक दस
ू रे
में दोषारोिण करना, मुख्य बातों को, जन्मददन या िुण्यनतचथयो
को ध्यान रखना, या अिने उियोग के शलए दस
ू रे का प्रयोग
करना नहीं है ।
प्रेम दस
ू रों की गलनतयों को सध
ु ारना, दस
ू रे की महत्ता
को महसस
ू करना, सकारात्मक ऊजािओ का आदान प्रदान करना,
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समस्याओं का शमलकर समाधान करना, हर िल सामने वाले का


साथ दे ना, व हर िल मुस्कराते रहना, व मुस्कराहट बाटने का
नाम प्रेम है ।
प्रेम से क्या शमलता है ? -:बहुत कुछ / प्रेम और स्वास्थ के
बीि बहुत गहरा संबंध है । यह तनाव को कम करके प्रनतरक्षा
प्रणाली को मजबूत करता है । हमारी आयु बढ़ाने में सहायक है ।
प्रेममय स्िसि से ऑक्सीटॉल्क्सन नामक हामोन का स्तर बढ़
जाता है , जो अवसाद (डिप्रेशन) व मनोर्वकार का उििार होता है।
यह हमारी प्रनतरोध क्षमता को भी बढ़ाता हैं। इसशलए एक दस
ू रे
का आशलंगन, शलिटना, सटकर या चििटकर लेटना, उठना बैठना,
सहलाना आदद कियाएं आिके स्वास््य व दय दय के शलए अच्छी
होती हैं। एक मााँ ल्जन बच्िों को ज्यादा प्यार दल
ु ार करती है वह
बच्िा हमेशा ज्यादा हष्ट िुष्ट होता हैं। और जो िनत ित्नी
ज्यादा प्रेम से रहते हैं उनका स्वास््य अन्य की अिेक्षा ज्यादा
ठीक िाया जाता है । एवं उनका जीवन ज्यादा आनंददत होता हैं।
प्रेम आिस का वो संबंध है जो हमारे आस-िास
बना हुआ है िाहे वो शमत्र हो, ररश्तेदार हो, या कोई िड़ोसी,सभी
के साथ (ल्जससे भी आि जड़ ु .े है ) आि प्रेम करते हैं या वो आिसे
प्रेम करता है तभी हम जिड़ते हैं। और रें की के द्वारा हम सभी
संबंधों को सध
ु ार सकते हैं, िाहे कोई भी ककसी का संबंध क्यों ना
हो
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3.जब मनुष्य की बेशसक जरूरतें िूरी हो जाती हैं। तो कफर वह


सब सुरक्षा िहाता है। वह अंदर से भावनात्मक व आध्याल्त्मक
सुरक्षा को िाना िाहता है । जो मल्स्तष्क को शल्क्त प्रदान करती
हैं। िर िाहे वह समाज का हो या भीतरी (जैसे अंधेरा, भूत-प्रेत,
दश्ु मन का िर, िोरी आदद का िर, रोंगो का िर आदद) रें की
आिके इन िरो से मुल्क्त ददलाती है । कुछ लोग िर को स्वीकार
ही नहीं करते, िर अंदर से सब िरे हुए हैं। ओर उसी िर को दरू
करने के शलए सब मल्न्दर मे, गुरूओ के िास, तांत्रत्रकों के िास,
ज्योनतषो के िास, िॉक्टर के िास आदद जगह दौड़ते रहतें हैं।
िरं तु िर जीवन भर साथ नहीं छोड़ता। हम रें की के द्वारा इस िर
को दरू कर सकते हैं।

4.अब जब हमारी शारीरीक जरुरते िूरी हो गई, सुरक्षा भी हो


गई। तब आिको जरुरत होती है आत्मर्वश्वास की, जहााँ िर हमें
संतल्ु ष्ट प्राप्त होती है । हमारी रिनात्मक बनने की इच्छा होने
लगती है । प्रशसद्चध िाना िाहते हैं , लोग मझ
ु े िहिाने, जाने,
समाज में इज्जत हो इसका प्रयास करते हैं। और जब यह भी
इच्छा िरू ी हो जाती है अच्छे बरु े रास्ते िर िलकर, तो आगे की
आवश्यकता होती है कक अब मैं अिनी नजर में अच्छा बन जाऊं,
सब मझ ु े अच्छा कहते हैं तो क्या वाकई मे में अच्छा हूाँ, इसे
ढूंढने लगते हैं, और इस इच्छा के िूरे होने िर आिको शांनत
आनंद की प्राल्प्त होती है । रें की आिको यह सब दे ती है और
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आनंद के उस मुकाम तक ले जाती है जहां िर आि िूणि संतुष्ट


व आनंदमय जीवन जीने लगते हैं।

5.कफर अंनतम इच्छा होती है कक मैं दनु नया को बदलू, दनु नया में
कुछ ऐसा करू जो मुझे भी आनंद दें और सामने वाले को भी। मैं
सेवा करुं , िरमात्मा की मस्ती में मस्त रहूाँ या और भी ऐसी
अंनतम इच्छाऐं जो मनुष्य का लक्ष्य होती है । वो रें की से िा
सकते सकते हैं।

अब एक सवाल मनुष्य की इतनी सारी इच्छाऐ हैं, शारीरीक


जरुरतों से लेकर अंनतम आनंद िाने तक की। बहुत से छोटे छोटे
व बड़े बड़े लक्ष्य है और इन सभी लक्ष्यो का लक्ष्य क्या है। क्या
मनुष्य उस लक्ष्य को िा सकता है । मनुष्य की सुबह से लेकर
शाम तक की जाने वाली दौड़ और इसी प्रकार जन्म से मत्ृ यु तक
के सफर में की जाने वाली दौड़ केवल और केवल िर से मल्ु क्त व
खश
ु ी को िाना है (Fear, phobia to joy Fulnees,
Happiness) तो िरू े जीवन की यात्रा हम िर सें खशु शयां िाने
तक की करते हैं। रें की हमें इस यात्रा को हर क्षण िण
ू ि करती
रहती है। हर िल हमें खशु शयां शमलने लगती हैं हमारी सारी
इच्छाऐं िरू ी होने लगती हैं।
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रें की के ससदधमंत
1 र्वस्वास -: र्वस्वास अथाित मैं कर सकता हूाँ, संदेंह कायि में
िवित के समान है ओर र्वश्वास िार करा दे ता हैं।
2 इच्छा शल्क्त -: रिनात्मक करने की शल्क्त -: मैं ठीक कर
सकता हूाँ, मैं अिनी इच्छा िूरी कर सकता हूाँ, अतः
इच्छा शल्क्त का त्याग कभी ना करें । प्रबल इच्छा ही
सफलता की कंु जी हैं।
3 स्वास्थ -: में िूणि स्वस्थ हूाँ, और दस
ू रों को स्वस्थ कर सकता
हूाँ, हमेशा याद रखें।
4 ज्ञान -: मैं अिने िूणि ज्ञान का प्रयोग करूंगा, और इसे ननत्य
बढ़ाता जाऊंगा।
5 बुद्चधमानी -: हमें हर कायि को करने से िहले अच्छे से
समझना है और तब ननणिय करना है कक क्या कब क्यों
कैसे करें गे।
6 ननिुणता -: अिनी ननिुणता िर मुझे िूरा भरोसा है ।
7 उत्सव -: मेरा जीवन हर िल उत्सव हैं। यह उत्साह हमें शा
बनाए रखग
ूं ा।
8 र्ववेक -: र्ववेक व साहस के साथ में हर कायि को िूरा करुं गा
9 िम -: मैं सफल होने के शलए हर-िल सभी संभव कोशशश
करुं गा।
10 दृढ़ता -: अिनी सोि में दृढ़ता व धैयि बनाए रखग
ूं ा।
11 आभार -: दे ने वाले का आभार हमेशा प्रकट करूगां।
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12 धन्यवाद -: हमेशा सकारात्मक सोिाँग


ू ा। ईश्वर, िररवार,
प्राकृनत का धन्यवाद करूंगा।
13 अिने शत्रु -: में हमेशा अिने शत्रु अकमिण्यता, लािरवाही,
अहं कार, चिंता, िोध, ईष्याि, घण
ृ ा, जपदबाजी, भय,
लालि मोह, नकारात्मकता, तकि आदद से दरू रहूाँगा।
14 वतिमान -: सदा वतिमान में ल्जयूंगा, अतीत की गलनतयों को
याद नहीं करुं गा।
15 स्वीकार -: अिने को जैसा भी हूाँ वेसा स्वीकार करुं गा। और
दस
ू रे से तुलना नहीं करुं गा तथा अिनी कपिना शल्क्त
से सभी मनवांनछत इच्छाएं िूरी करुं गा।

ध्यान क्या है । ध्यान एक ऐसी कला है जो िूणत


ि ाः -:र्वज्ञाननक है। इसमे र्वस्वास नहीं
करना है, न ही र्वस्वास करने की जरुरत है । उसे केवल ओर केवल करने की जरूरत है ।
बस तुम उसे करों ओर उसे केवल करके ही जाना जा सकता है । एक ऐसा िरम आनंद
जो आिको आनंद की सीमाओ से िार ले जाये, एक ऐसी शाल्न्त जो अन्नत गहरी हो,
जहााँ सब कुछ शान्त हो जाता हो, जहााँ कफर कोई भी िाहत बाकी नहीं रहती, ओर जहााँ
िहुाँिकर कफर सभी दौड़ िूरी हो जाती हैं। वह अवस्था ध्यान की अवस्था हैं।ध्यान हमें उस
िरम आनंद तक ले जाता है ल्जसकी हम केवल कपिना करते है । ओर जब उस आनंद
को हम प्रकट कर लेते है तो उसकी व्याख्या शब्दों मे नही कर सकते, इसशलये ध्यान का
अनुभव िढ़कर नही केवल करके ही िाया जा सकता है ।ध्यान को करने से तुम्हारे भीतर
अदभुत प्रेम सौन्दयि फुटने लगता है । तुम नािने उठोगें , गाने लगोगें , तुम एक ऐसे प्रेमी
बन जाओगे कक सारी सल्ृ ष्ट ही प्रेममय ददखाई दे ने लगेगी, ओर यह सब करके ही प्रकट
होगा। बस यही ध्यान है ।

कपिांत ध्यान साधना िुस्तक से (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)

मूपय = 250/-
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रें की कौन सीख सकतम हैं।


रें की कोई भी सीख सकता है । इसके शलए िढ़ा-शलखा होना या
स्वस्थ होना जरूरी नहीं है । केवल सीखने की इच्छा शल्क्त और
ऊजाि िर िूणि र्वश्वास अगर आिके िास है तो आि एक अच्छे
रें की हीलर बन सकते हैं। रें की शारीररक, मानशसक, आल्त्मक रोगों
के साथ आिकी भौनतक आवश्यकताओ की िूनति, संबंधों को
सुधारने, त्रबगड़े काम को बनाने, िरीक्षा में सफलता,
आत्मसाक्षात्कार, बुरी आदतों को छुड़ाने, िरमानंद को िाने, सभी
इच्छाओं की िूनति, सभी जीव, जंत,ु िेड़, िौधे, जीर्वत व मत

प्राणी आदद िर सफलता िूवक
ि कायि करती हैं।

सभ्यता के उदय काल में नारी को सम्मान जनक शब्दो से िुकारा


जाता था। उसे दे वी, कपयाणी, नारायणी, आदद नामो से सम्बोचधत
ककया गया। वहााँ नारी व िुरूष को िूणत
ि या समान आचधकार थें।
नारी िूणत
ि या स्वतंत्र जीवन यािन करती थी वह स्वेच्छा से िुरूष
का ियन कर जीवन व्यतीत करती थी तथा ियन के बाद भी
उसके शासन मे रहने को बाध्य नही थी। उसे िुरूष का िररत्याग
करने का भी अचधकार था। व्यल्क्तगत संबंध केवल प्रेम िूणि
व्यवहार िर ही आधाररत थे अन्यथा नही।

संभोग से आनंद की ओर िुस्तक से (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)


मूपय = 250/-
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रें की के चरण
प्रथम िरण (रें की 1st डिग्री) -: यह रें की का बेशसक कोसि हैं।
रें की मास्टर द्वारा ब्रहमांिीय ऊजाि को शल्क्तिात के द्वारा शरीर
में संिाररत ककया जाता हैं। रें की क्या हैं। इनतहास, रें की के
स्थान, मन को ल्स्थर करने की र्वचध, रें की शसद्धांत, शरीर के
सभी 26 त्रबंदओ
ु ं िर ऊजाि को लेने का तरीका बताया जाता हैं।
भौनतक शरीर की रुकावट को खोल कर ऊजाि का संिरण
ककया जाता हैं। और कफर 21 ददन तक आिको अभ्यास करना
होता हैं। इस अभ्यास के दौरान आने वाली बाधाओं का समाधान
ककया जाता हैं। तथा आिके अनुभव के आधार िर जब यह िता
लग जाता हैं। कक अब आि ब्रहमांिीय ऊजाि को अवशोर्षत कर िा
रहे हैं और इसे हाथों के द्वारा आगे दे िा रहे हैं। तब द्र्वतीय
डिग्री लेने की इजाजत दी जाती हैं।

द्र्वतीय िरण (रें की 2nd डिग्री) -: रहस्यमय मंत्र एवं शसंबल ददए
जाते हैं। ल्जनके द्वारा हम दरू बैठे व्यल्क्तयों को भी रें की भेज
सकते हैं। और सभी ििो िर र्वशेष शल्क्तिात ककया जाता हैं।
ििों का संतुलन करना शसखाया जाता हैं। रें की बॉक्स बनाना
एवम सुदशिन िि के ननमािण की किया दी जाती हैं। इससे आि
अिनी इच्छाएं िूरी करने लगते हैं। दस
ू रों को स्वस्थ करने लगते
हैं। सभी ििों का के बारे में बताया जाता हैं। ककस ककस िि से
क्या क्या लाभ होंगे और प्रत्येक िि को त्रबना स्िसि ककए कैसे
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ऊजाि दे ते हैं शसखाया जाता हैं। इसमें आिको तीन शसंबल ददए
जाते हैं एक िावर बढ़ाने के शलए, दस
ू रा रक्षा के शलए, तीसरा
दरु स्त दहशलंग के शलए, इसमें ऊजाि िहले से 4 गुना हो जाती हैं।
कंिनी भी बढ़ जाता हैं।

तत
ृ ीय िरण (रें की 3rd डिग्री) -: अत्यंत शल्क्तशाली शसंबल ददया
जाता हैं। आि सामने वाले की सभी इच्छाएं िरू ी कर सकते हैं।
साइककक दहशलंग उििार, एवम कुछ मंत्र व एक शसंबल ददया
जाता हैं। ल्जससे ऊजाि बहुत तेजी से ली एवम दी जा सकती हैं।
आि हर प्रकार के मरीज का इलाज करने में सक्षम हो जाते हैं।
मास्टर बन जाते हैं। लोगों को रें की 1st डिग्री एवं रें की 2nd डिग्री
शसखा सकते हैं। आज्ञा िि के द्वारा ब्रहमांि में प्रवेश कराया
जाता हैं।
करुणा साधना को बताया जाता हैं। इसमें आि सभी
िेड़ िौधों से ऊजाि लेने लगते हैं। सभी के प्रनत प्रेम को बढ़ावा
शमलता हैं। सामने वाला आिसे प्रेम करने लगता हैं। और आि
उससे प्रेम करने लगते हैं। आिका हृदय करुणा से भरने लगता
हैं। आि सब िर दया करने लगते हैं।
तत
ृ ीय िरण (रें की 3rd डिग्री) में आिको कुछ अन्य
शसंबल भी ददए जाते हैं। ल्जससे आि और बहुत सी जरूरतें अिनी
व दसू रों की िूरी कर िाते हैं।
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ग्रैंि मास्टर -: इसमें मास्टर कैसे बनाते हैं। िरमानंद के त्रबंद ु को


बताया जाता हैं। जहां आिको कफर कुछ िाना बाकी नहीं बिता
हैं। आि िूणि संतुष्ट हो जाते हैं। आि समाचध का आनंद लेते हैं।
और संसार की सत्यता से रूबरू होने लगते हैं। प्रकृनत की मोह
माया से मुल्क्त शमल जाती हैं। प्रकृनत की व्यवस्था को समझने
लगते हैं आिके सामने सारे रहस्य खल
ु ने लगते हैं।

ग्रन्थो मे भी जीवन के लक्ष्यों की प्राल्प्त के शलए धमि , अथि, काम, ओर मोक्ष


का वणिन ककया हैं। अथाित सभी एक दस
ू रे से जड़
ु े हुए हैं। धमि के साथ अथि ,
अथि के साथ काम, ओर काम के साथ मोक्ष जुड़ा हुआ है । ओर इसी काम को
दशािने के शलए कामदे व (िुरुष) व रनत (स्त्री) दे वता के प्रतीक भी बनाये गये
हैं। काम व रनत के अभाव मैं मनुष्य का हदृय कंु ठाओ से भर जाता हैं ओर
मनत भष्ट हो जाती हैं।

मनुष्य आनंद िहाता हैं ओर वह उसे िाने के शलये लालानयत होता है । जीवन
मे संभोग आनंद की िराकाष्ठा है क्योंकक उस समय उसके अन्दर कोई भी
र्विार नही होता है वह ननर्वििार शसफि वतिमान मे कियाशील हो रहा होता है
ओर त्रबन्द ु का आनंद रूिी अमत
ृ नीिे की ओर आकर आनंद की तल्ृ प्त दे ता
है । इस प्रकार काम का उियोग सीमा मे कर उसे आनंद का साधन बनाना
केवल संयम के अधीन ही संभव हैं।

संभोग से आनंद की ओर िस्


ु तक से (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)
मूपय = 250/-
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रें की की ववशेषतमएं
1 हमारा सक्ष्
ू म शरीर िेतना आकाश तत्व (ब्रमांि) में र्विरण
करता हैं। और स्थल
ू शरीर ि्
ृ वी िर और इन दोनों के शमलन से
ही जीवन की प्राल्प्त होती हैं। जब इन का संतुलन बना रहता हैं।
तो हम ननरोगी रहते हैं। जब ककसी एक का संतुलन त्रबगड़ता हैं।
तो दस
ू रा भी त्रबगड़ने लगता हैं। और हम रोगी हो जाते हैं।
जेसे हमारे मन में चिंता, ओर तनाव बढ़ गया, हम
डिप्रेसन में आ गये तो स्थल
ू शरीर त्रबगड़ने लगेगा। सूक्ष्म शरीर
हमारी भावना ओर र्विारो िर ननभिर करता हैं। स्थल
ू शरीर हमारे
खान िान वे ददनियाि िर ननभिर करता हैं। अत: हमें अिने भाव
और र्विारों के साथ साथ अिनी ददनियाि में खानिान िर भी
ध्यान दे ना होगा। हमारे र्विार और भौनतक शरीर ल्जतना ज्यादा
स्वस्थ होगा ब्रहमांिीय ऊजाि उतनी ज्यादा हम ले या दे िाएंगे।
इसशलए हमें खानिान, ददनियाि व अिने र्विारों िर ध्यान दे ना
होगा, ल्जससे अचधक ऊजाि को आि अवशोर्षत कर, प्रयोग कर
सकें।
2 रोगी मानशसक हो या शारीररक वह हमारे प्रभामंिल में
नकारात्मक ऊजाि की वद्
ृ चध कर दे ता हैं। और रें की इस
नकारात्मक ऊजाि को सकारात्मकता में बदल दे ती हैं। ल्जससे रोगी
का रोग ठीक हो जाता हैं।
3 रें की हाथों के द्वारा हमारे आभामंिल को, सूक्ष्म शरीर को व
भौनतक शरीर को ऊजािवान बना दे ती हैं। और हम िण
ू ि स्वास््य
को प्राप्त करते हैं।
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4 र्वज्ञान के अनुसार समस्त सल्ृ ष्ट सूक्ष्मतर तरं गों का ही स्थल



रूि हैं। और जब इस सल्ृ ष्ट के ककसी भी िव्य का र्वघटन होता
हैं। तो वह िव, िव से वायु, वायु से सूक्ष्मतर कणों में र्वभाल्जत
होते होते तरं गों में बदल जाता हैं। योग र्वज्ञान के अनुसार स्थल

शरीर ददखाई दे ता हैं। इससे लगा सूक्ष्म शरीर हैं। और सूक्ष्म से
सूक्ष्मतर कारण शरीर हैं। रें की के द्वारा सूक्ष्मतर कारण शरीर को
ऊजाि दी जाती हैं, ओर धीरे -धीरे सूक्ष्म शरीर से होती हुई स्थल

शरीर में िहुंिकर िूणि स्वास््य प्रदान करती हैं।

इसी प्रकार हमारी प्रत्येक जरूरत, इच्छा, संबंध, भाव,


(िर आदद) भी एक सूक्ष्मतर तरं गों के रूि में इस ब्रम्हांि में
र्वद्यमान होते हैं रें की आिकी सभी जरूरतों को और इच्छाओं के
अनुरूि तरं गों को आिकी ओर आकर्षित करती हैं। ल्जससे हमें
मनवांनछत फल शमल जाता हैं।

5 रें की धमि, जानत, वणि, िंत आदद के त्रबना भेदभाव के सभी


संजीव, ननजीव, भौनतक, िराभोनतक, िेड़-िौधे, जंत,ु जानवर, व
ल्जर्वत व मत
ृ आदद को समान रुि से लाभ िहुंिाती हैं।

6 रें की कभी भी ककसी भी िररल्स्थनत में ले सकते हैं क्योंकक


रें की एक ऊजाि हैं। और प्रत्येक को हर क्षण ऊजाि की जरूरत होती
ही हैं।

7 रें की लेने या दे ने वाले के शलए कोई समय का, खाने-िीने का


आदद बंधन नहीं हैं। कक आिको यह करना हैं। यह नहीं करना हैं।
17

8 रें की ककसी भी समय (ददन-रात) 24 घंटे आिको प्रत्येक स्थान


िर सरल सुलभ होती हैं। और इसकी कोई समय सीमा भी नहीं
होती हैं। रोगी के अनुरूि 15 से 60 शमनट तक रें की दे सकते हैं।
हमारी कपिांत रें की प्रत्येक त्रबंद ु िर 10 से 15 सेकेंि ही दे नी
होती हैं। िरं तु ज्यादा दे ने से भी कोई साइि इफेक्ट नहीं होता

9 रें की केवल आिकी आस्था और र्वश्वास से कायि करती हैं। लेने


वाले में और दे ने वाले में ल्जतना अचधक र्वश्वास होगा रें की से
उतना ही ज्यादा लाभ हो िाएगा

10 यह आि की अंतदृिल्ष्ट और ज्ञान को बढ़ाकर आि का ब्रमांि


से संबंध स्थार्ित करती हैं। और क्योंकक इसे प्रेम करुणा से
प्राथिना कर के लाभ के शलए आमंत्रत्रत ककया जाता हैं। इसशलए
ककसी को त्रबना नुकसान िहुंिाए यह काम करती हैं। और आिके
अंदर दया, प्रेम, करुणा, क्षमा, आनंद, का संिार करती हैं।

मझ
ु से संिकि करें

https://www.facebook.com/jagatverma.gzb

http://h.bhealthy.mobi/yogaathome

https://www.youtube.com/watch?v=hb19IapJ5Zk
18

प्रथर् चरण (रें की 1st डडग्री) की प्रमथानम


मैं अमकु (अिना नाम) प्राथिना करता हूाँ या करती हूाँ कक हें
(िरमात्मा या इष्ट का नाम) मैं आिका आवाहन कर रहा हूाँ या
कर रही हूाँ आि ऊजाि के रूि में मेरे िास आएं और ऊजाि के
द्वारा मेरा कपयाण करें , मुझे स्वाश््य प्रदान करें , मेरे सभी रोंगों
को आि अिनी ऊजाि से ठीक कर दें और मुझे शांनत और आनंद
प्रदान करें ।
प्राथिना प्रेम से करें र्वश्वास से करें क्योंकक जब आि
प्रेम से र्वश्वास से कुछ मांगते हो तो िरमात्मा मना नहीं कर
सकता हैं। जब ऊजाि आने लगे तो सभी 26 त्रबंदओ
ु ं िर उििार
करें ।
धन्यवाद प्राथिना -: उििार के बाद आि एक बार कफर
ईश्वर से प्राथिना करें कक मैं अमुक (अिना नाम) आिका, आिकी
शल्क्त का, आिने रें की गुरु का, समस्त ऋर्षयों का धन्यवाद
करता हूाँ या करती हूाँ मैं ननत्यप्रनत इस ऊजाि को ग्रहण करता रहूाँ
या करती रहूाँ और उियोग करता रहूाँ या करती रहूाँ, मझ ु से कोई
भी ऐसी गलती ना हो ल्जससे ककसी को दख ु या तकलीफ िहुंिे
आि सदा सबका भला करते रहें , आि को कोदट-कोदट नमन,
ओम शांनत शांनत शांनत बोलते हुए सर को झुकाएं जैसे वह शल्क्त
आिके सामने खड़ी हुई हैं। और वह आिको आशीवािद दे रही हैं।
(तथास्तु ऐसा ही हो)
19

स्वर्ं उपचमर र्ें हथेसलर्ों की जस्थतत (सभी 26 ब दं )ु


20
21
22
23

अब आि कपिांत रें की साधना


की 1st डिग्री प्राप्त कर िक
ु े हैं/
इसका लगातार अभ्यास करें /
ओर 21ददन बाद हुई उन्ननत को
बताये ल्जससे आिको अगले
िरण में प्रवेश की अनुमनत शमल
सकें
ॐ िरमात्मा आिको सफलता दे /
इसी शुभ आसीष के साथ स्वमर्ी
जगतेश्वर आनंद जी
24

स्वमर्ी जगतेश्वर आनंद जी दवमरम रचचत अन्र् पस्


ु तके

1. कलपमंत कलप व सा
ष समधनम (र्ूलर् र्मत्र – 250/)

2. संभोग से आनंद की ओर (र्ूलर् र्मत्र – 250/)

3. कलपमंत रें की समधनम 1st डडग्री (र्ूलर् र्मत्र – 100/)

4. कलपमंत रें की समधनम 2nd डडग्री (र्ूलर् र्मत्र – 100/)

5. कलपमंत रें की समधनम 3rd डडग्री (र्ूलर् र्मत्र – 500/)

6. कलपमंत चक्र व दे वी दे वतम समधनम (र्ल


ू र् र्मत्र – 500/)

7. कलपमंत त्रमटक समधनम (र्ूलर् र्मत्र – 250/)

8. कलपमंत रोग तनवमरण शमरीररक तंत्र समधनम (र्ल


ू र् र्मत्र – 250/)

9. कलपमंत ब्रहर्मंड दशान समधनम (र्ूलर् र्मत्र – 100/)

10. कलपमंत अंतर्ोंन समधनम (र्ूलर् र्मत्र – 100/)

अगर ककसी को कुछ समझ न आया हो , कोई शंका हो, तो


िसिनल फोन करके िूछ ले, या मेरे िसिनल नम्बर 9958 502
499 िर Whatsapp मैसेज करके िूछ ले।
ओर ल्जसको कोई अनुभव हो ओर वो आगे बढना िाहता है । तो
वो भी िसिनल मे Whatsapp िर मैसेज करें , ल्जससे उसका
सही मागिदशिन कर सकू, ओर वो अिने लश्य को िा सके

ॐ िरमात्मा आिको सफलता दे । ओर जो भी सोिकर जो किया


को करै वो उसे प्राप्त हो, इसी शभ
ु आशीष के साथ

स्वमर्ी जगतेश्वर आनंद जी

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