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दिल से ग़ज़ल तक
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Ebook148 pages1 hour

दिल से ग़ज़ल तक

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‘ग़ज़ल मेरे अन्तर्मन की खामोश सरगोशी है

देवी नागरानी

कविता एक तजुर्बा है, एक ख़्वाब है, एक भाव है. जब मानव के अंतर्मन में मनोभावों का तहलका मचता है, मन डांवाडोल होता है या हलचल मचाती उफनती लहरें अपने बांध को उलांघ जाती है तब कविता बन जाती है। कविता अन्दर से बाहर की ओर बहने वाला निर्झर झरना है। सच ही तो है, दिल की कोई भी बात हो, कलम की धार से शीरीं ज़ुबान में नज़्म, दोहा, रुबाई, व ग़ज़ल बनकर सामने आती है।

ग़ज़ल क्या है? इस सिलसिले में अनेक स्वरों में, स्वरूपों में ग़ज़ल को पेश करते हुए परिभाषित किया गया है....इसपर और बहुत कुछ लिखा जा रहा है और कई संभावनाएँ और भी हैं ....। सच में ग़ज़ल एक प्यास है, जो अपने विस्तार में जाने कहाँ कहाँ खोजती है उस सुराब को, जो प्यास बुझाने का बायज बन जाए। वह तो फूल की पांखुरी में विकसित होती हुई कस्तूरी है जो हवाओं में घुलमिल कर विचरण करते हुए अपना परिचय आप देती है।

अनबुझी प्यास रूह की है ग़ज़ल
खुश्क होंठों की तिशनगी है ग़ज़ल

डॉ. कुँवर बेचैन के शब्दों में-“अनुभव की पगडंडी और विचारों के चौरास्तों पर की गई शब्द की पदयात्रा है। “ग़ज़ल की एक विशेषता यह भी है कि यह सिर्फ़ काव्य रचना अथवा काव्य शैली ही नहीं, बल्कि एक तहज़ीब भी है जो हिंदुस्तान और ईरान के लय से जन्मी है-आज के जमाने में गंगो-जामुनी तहज़ीब बन गई है।

इसी एहसास को साथ लिए मेरे प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह-‘चरागे-दिल’, ‘दिल से दिल तक’, ‘लौ दर्दे-दिल की’ और अब ‘सहन-ए-दिल’ अपने शब्दों की पदयात्रा करते हुए समय के साथ-साथ यात्रा तय कर रही है।

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateMar 22, 2018
ISBN9781370122370
दिल से ग़ज़ल तक

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    दिल से ग़ज़ल तक - Devi Nangrani

    देवी नागरानी

    www.smashwords.com

    Copyright

    दिल से ग़ज़ल तक

    देवी नागरानी

    Copyright@ 2018 देवी नागरानी

    Smashwords Edition

    All rights reserved

    दिल से ग़ज़ल तक

    Copyright

    समर्पण

    मेरी ओर से

    सुभाशीष

    भावों की सरिता में बहना आपसे कोई सीखे जी

    ग़ज़ल की शान में

    ग़ज़ल के आईने में

    ग़ज़ल के पिंगलाचार्य की जुबानी

    देवी नागरानी जी के आशयार पर

    एक संवेदनशील कवयित्री

    एक अनोखा अंदाज़े-बयां

    अहसासों का तेज़ाब

    'चराग़े-दिल' की रौशनी में

    ‘चराग़े-दिल सदा जलता रहेगा

    अद्भुत पकड़

    रजनीगंधा और गुलाब

    लौ, जो रौशनी बन गयी

    लौ दर्दे-दिल की

    अँधेरे मिटाएगी

    जीवन-दर्शन की सहजता

    ऎसी इबादत

    साधना है, आराधना है

    समर्पण

    मेरी ग़ज़ल की बुनियाद जिस नींव पर रखी हुई है, उस इमारत को इबादतगाह मानते हुए आज भी सजदे में सर झुक जाता है.

    समर्पण

    श्री आर.पी.शर्मा को

    जिन्होंने मेरे दिल में ग़ज़ल

    की लौ को रौशन करके

    उस ‘चराग़े‍-दिल' को जगाया

    जो ‘दिल से दिल तक’ को जोड़कर

    उसके आस-पास ‘लौ दर्दे-दिल की’ और

    ‘सहन-ए-दिल’ में सबा बनकर छा गया है!

    कुछ शेर’-

    मस्जिद मंदिर, सहन-ए-दिल में नूर नज़र इक आता है

    साधक कोई बैठा जिसमें, बिन सुर साज के गाता है

    सुकूँ पा सकेगा जहाँ दर्द ‘देवी’

    वहीं मुसकराएगी लौ दर्दे-दिल की

    दिल से दिल तक जुड़ी हुई है ग़ज़ल

    ऐसी मीठी सी रागिनी है ग़ज़ल

    उसे क्या बुझाएंगी आंधियाँ

    ये चराग़े-दिल है दिया नहीं!

    -देवी नागरानी

    ग़ज़ल के चार संग्रहों पर समीक्षात्मक पहलू

    सहन-ए –दिल-2017 / लौ दर्द-ए-दिल –2010

    दिल से दिल तक-2008 / चराग-ए-दिल -2007

    मेरी ओर से

    ‘ग़ज़ल मेरे अन्तर्मन की खामोश सरगोशी है

    देवी नागरानी

    कविता एक तजुर्बा है, एक ख़्वाब है, एक भाव है. जब मानव के अंतर्मन में मनोभावों का तहलका मचता है, मन डांवाडोल होता है या हलचल मचाती उफनती लहरें अपने बांध को उलांघ जाती है तब कविता बन जाती है। कविता अन्दर से बाहर की ओर बहने वाला निर्झर झरना है। सच ही तो है, दिल की कोई भी बात हो, कलम की धार से शीरीं ज़ुबान में नज़्म, दोहा, रुबाई, व ग़ज़ल बनकर सामने आती है।

    ग़ज़ल क्या है? इस सिलसिले में अनेक स्वरों में, स्वरूपों में ग़ज़ल को पेश करते हुए परिभाषित किया गया है....इसपर और बहुत कुछ लिखा जा रहा है और कई संभावनाएँ और भी हैं ....। सच में ग़ज़ल एक प्यास है, जो अपने विस्तार में जाने कहाँ कहाँ खोजती है उस सुराब को, जो प्यास बुझाने का बायज बन जाए। वह तो फूल की पांखुरी में विकसित होती हुई कस्तूरी है जो हवाओं में घुलमिल कर विचरण करते हुए अपना परिचय आप देती है।

    अनबुझी प्यास रूह की है ग़ज़ल

    खुश्क होंठों की तिशनगी है ग़ज़ल

    डॉ. कुँवर बेचैन के शब्दों में-अनुभव की पगडंडी और विचारों के चौरास्तों पर की गई शब्द की पदयात्रा है। ग़ज़ल की एक विशेषता यह भी है कि यह सिर्फ़ काव्य रचना अथवा काव्य शैली ही नहीं, बल्कि एक तहज़ीब भी है जो हिंदुस्तान और ईरान के लय से जन्मी है-आज के जमाने में गंगो-जामुनी तहज़ीब बन गई है।

    इसी एहसास को साथ लिए मेरे प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह-‘चरागे-दिल’, ‘दिल से दिल तक’, ‘लौ दर्दे-दिल की’ और अब ‘सहन-ए-दिल’ अपने शब्दों की पदयात्रा करते हुए समय के साथ-साथ यात्रा तय कर रही है।

    ‘सहन-ए-दिल’ मेरे मन का वह गुलशन है जहां मेरे जीवन के मुरझाए से, महकते से सप्तरंगी सुमन यादों में सितारों की तरह टंके हुए है और जुगनुओं की मानिंद रोशनी देकर मेरी अंधेरी राहों को रौशन किए जाते हैं। इन्हीं की बदौलत आज मैं अपनी धड़कनों में एक टहलती हुई ख़ूशबू महसूस करती हूँ, जिसके साथ सफ़र करते-करते मैं उम्र की इस पगडंडी पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक का फ़ासला तय करने के लिए आमादा हूँ। चलने की शर्त यही है-जब तक मैं चलूँ साँसों में लोबान सी खुशबू साथ-साथ चले ! कलम तो मात्र इक ज़रिया है, अपने अँदर की भावनाओं को मन की गहराइयों से सतह पर लाने का। इसे मैं रब की देन मानती हूँ शायद इसलिये जब हमारे पास कोई नहीं होता है लेखन एक सहारा, एक साथी, एक रहनुमा बन जाता है.

    पिंगलाचार्य उपाधि से सुसज्जित मेरे गुरु आदरणीय आर. पी. शर्मा ‘महरिष’ इस ग़ज़ल-विधा के हस्ताक्षर हैं, उनकी चौखट से जो सीखा, जो पाया, वही यह देन है-मेरी शायरी। शुक्रगुजार हूँ ग़ज़ल गो शायर माँ. ना. नरहरि जी की, जो हमेशा की तरह इन ग़ज़लों को नज़र से निकलते हुए अपने फन की माहिरता से सँवारने की नवाजिश की। प्राण शर्मा हिंदी के लोकप्रिय कवि और लेखक हैं. उन्होंने देश-विदेश के कई शायरों की ग़ज़लों को निखार कर उनका मार्गदर्शन किया है। प्रवास में रहते हुए इस संग्रह की अनेक ग़ज़लें वक्त-दर-वक़्त उनकी नज़र से निकलकर निखार पाती रही हैं। उनकी तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ, और श्री राकेश खंडेलवाल, व तिलक राज कपूर, शाद भगलकोटी जी, जो खुद भी नामी ग़ज़ल गू शायर है, अपने मत से मुझे प्रबलता प्रदान बख़्शी है। उनका बहुत बहू धन्यवाद।

    और अंत में बोधि प्रकाशन के श्री भूपाल सूद जी की आभारी हूँ जिनके अथक प्रयास से ‘सहन-ए-दिल’ आज आप के हाथों में है। अब यह आपकी है और मैं भी

    आपकी अपनी

    देवी नागरानी

    25-अप्रैल 2017

    dnangrani@gmail.com

    सुभाशीष

    आर. पी. शर्मा ‘महर्षि’

    देवी नागरानी एक ऐसी विदेशी प्रवासिनी ग़ज़लकारा है जिनकी ग़ज़लें अंकुरित न्यू जर्सी में होती हैं, तो पल्लवित एवं पुष्पित भारत की उर्वरा धरती पर, जिसकी माटी से आती सोंधी सोंधी सुगंध मन को अति भाती एवं सुहाती है। भारत अपना प्यारा वतन, जग से न्यारा वतन और उसकी वह भीनी भीनी सुवास इसमें ऐसी चुंबकीय कशिश है जो बरबस ही उन्हें बार-बार यहां खींच कर लाती है। यह वह देश है जिसमें सभी धर्मों के लोग मिलकर साथ-साथ रहते हैं और एकता एवं भाईचारे

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