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बच्चे सोचते हैं (काव्य संग्रह)
बच्चे सोचते हैं (काव्य संग्रह)
बच्चे सोचते हैं (काव्य संग्रह)
Ebook78 pages19 minutes

बच्चे सोचते हैं (काव्य संग्रह)

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About this ebook

बच्चे सोचते हैं

बच्चे सोचते हैं-
माँ कभी बीमार नहीं होती
उसके घुटनों में दर्द नहीं होता
हाथ नहीं दुखते
शरीर थकता नहीं,
वह घंटों जो कहती है
बच्चे सोचते हैं

बच्चे सोचते हैं-
माँ कभी बीमार नहीं होती
उसके घुटनों में दर्द नहीं होता
हाथ नहीं दुखते
शरीर थकता नहीं,
वह घंटों जो कहती है
बच्चे सोचते हैं

बच्चे सोचते हैं-
माँ कभी बीमार नहीं होती
उसके घुटनों में दर्द नहीं होता
हाथ नहीं दुखते
शरीर थकता नहीं,
वह घंटों जो कहती है
बच्चे सोचते हैं

बच्चे सोचते हैं-
माँ कभी बीमार नहीं होती
उसके घुटनों में दर्द नहीं होता
हाथ नहीं दुखते
शरीर थकता नहीं,
वह घंटों जो कहती है
बच्चे सोचते हैं

बच्चे सोचते हैं-
माँ कभी बीमार नहीं होती
उसके घुटनों में दर्द नहीं होता
हाथ नहीं दुखते
शरीर थकता नहीं,
वह घंटों जो कहती है

Languageहिन्दी
Release dateMay 6, 2018
ISBN9780463287941
बच्चे सोचते हैं (काव्य संग्रह)
Author

वर्जिन साहित्यपीठ

सम्पादक के पद पर कार्यरत

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    बच्चे सोचते हैं (काव्य संग्रह) - वर्जिन साहित्यपीठ

    प्रकाशक

    वर्जिन साहित्यपीठ

    78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,

    नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043

    सर्वाधिकार सुरक्षित

    प्रथम संस्करण - मई 2018

    ISBN

    कॉपीराइट © 2018

    वर्जिन साहित्यपीठ

    कॉपीराइट

    इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक वर्जिन साहित्यपीठ द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता।

    बच्चे सोचते हैं

    (काव्य संग्रह)

    कवि

    महेश रौतेला

    महेश रौतेला

    फोन: 9426614203

    जन्म-स्थान: खजुरानी (अल्मोड़ा)

    जन्म-तिथि: 25 जुलाई, 1955

    शिक्षा: एमएससी (रसायन विज्ञान), कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल

    सम्प्रति: लेखन कार्य

    प्रकाशन: क्षणभर, वर्षों बाद, हे कृष्ण, कभी सोचा न था, ओ वसंत, हमीं यात्रा हैं, नानी तुमने कभी किसी से प्यार किया था। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।

    सम्पर्क: 19, मारूतिनन्दन चाँदखेड़ा, अहमदाबाद - 382424

    बच्चे सोचते हैं

    बच्चे सोचते हैं-

    माँ कभी बीमार नहीं होती

    उसके घुटनों में दर्द नहीं होता

    हाथ नहीं दुखते

    शरीर थकता नहीं,

    वह घंटों जो कहती है

    वह व्याख्यान होता है।

    माँ कहती है-

    सज अपने घर में आती है

    माना वह पहला प्यार हो।

    बच्चे सोचते हैं-

    पिता के पैसे कभी खत्म नहीं होते

    उसके कंधे कभी नहीं झुकते।

    मैं चमकता सूरज नहीं

    मैं चमकता सूरज नहीं

    पर चमक लिये तो हूँ,

    मैं चमकता चंद्र नहीं

    पर स्पष्ट दिखता तो हूँ,

    मैं बहती नदी सा नहीं

    पर बहाव तो हूँ,

    मैं पहाड़ सा नहीं

    पर अडिग तो हूँ,

    मैं वृक्ष सा नहीं

    पर फलदार तो हूँ,

    मैं फूल सा नहीं

    पर खुशबूदार तो हूँ।

    मर चुके हैं

    हमारे विद्यार्थी मर चुके हैं

    हाँ, मर चुके हैं

    या सरकार उन्हें मार रही है।

    हमारे शोधार्थी मर चुके हैं

    हाँ, मर चुके हैं

    या सरकार उन्हें मार रही

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