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भाव सरिता
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Ebook158 pages41 minutes

भाव सरिता

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About this ebook

जिस तरह आकाश में भिन्न-भिन्न प्रजाति के पक्षी उड़ते हैं, जिस तरह बाग - बगीचों में विविध रंग, रूप और सुगंध के पुष्प खिलते हैं, उसी तरह हमारे मन में भी विभिन्न भावों का संचार होता है, यही भाव जब सतत् किसी सदानीरा नदी की तरह प्रवाहमान होने लगते हैं इन भावों से जो कविता बनती है, वही कहलाती है भाव सरिता।

 

इस पुस्तक में बहुत अधिक विविधता लिए, बहुरंगे भावों का, हृदयस्पर्शी प्रवाह है।जो पाठक को यथार्थ व कल्पना लोक के नये- नये आयामों का स्पर्श कराता है।

Languageहिन्दी
Release dateAug 1, 2021
ISBN9789391470104
भाव सरिता

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    भाव सरिता - Indu Parashar

    समर्पण

    परम पूज्य बाबूजी एवं भौजी,

    (स्वर्गीय जुगल किशोर जी पाराशर एवं स्वर्गीय राधा देवी)

    के चरणों में सादर-सम्मान सहित समर्पित

    परिचय

    श्रीमती इन्दु पाराशर का जन्म 27 अक्टूबर 1954 को पिपरिया मध्य प्रदेश में हुआ। सन् 1977 में सागर विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। लगभग 20 साल इन्दौर में अध्यापन कार्य किया। इसी दौरान, विज्ञान विषय को सरल, सुरुचिपूर्ण और मनोरंजक ढंग से कविताओं में रचकर एक अभिनव प्रयोग किया, जिसमें विज्ञान विषय बच्चों के लिए सुगम और ग्राह्य बनाया गया। यह प्रयोग मध्यप्रदेश काउंसिल ऑफ साइंस एंड टैक्नोलॉजी भोपाल के सहयोग से सफलतापूर्वक लगभग तीस हज़ार (30,000) बच्चों तक पहुँचाया गया जिसके लिए आपको सन् 2001 में राज्य स्तर पर श्रेष्ठ नवाचार के लिए पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुआ। आई.आई.एम.अहमदाबाद में सन् 2015 एवं 2019 में ‘‘अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ऑन क्रिएटिविटी एवं इनोवेशन एट ग्रास रूट’’ में सहभागिता के लिए आमंत्रित किया गया।

    फिल्म एवं प्रकाशन-

    2008 में पिंकू कुन्नी नानी के घर जाएँगे नाम से एक एनिमेशन फिल्म का निर्माण किया।

    पुस्तकें-

    1) कविता में विज्ञान भाग-1.

    2) भाव गीता

    3) काव्य मंजूषा

    4) अंतर ज्वालाएँ

    5) बच्चों देश तुम्हारा

    6) हरिवंश राय बच्चन एक अपराजित योद्धा

    7) विचार वृक्ष

    8) भाव सरिता

    9)कविता में विज्ञान-2 पर्यावरण ज्ञान

    पुरस्कार व सम्मान-

    विभिन्न राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय साहित्य संस्थानों से काव्य कौस्तुभ 2016, विद्यावाचस्पति 2016, काव्य कलानिधि 2017, ज्ञान रत्न 2018, शब्द प्रवाह साहित्य अभ्युदय 2018, आदि कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से संबद्ध पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी व कविताएँ प्रकाशित।

    संपर्क सूत्र-

    ई-2406 सुदामा नगर

    इंदौर (म. प्र.) 452009

    फोन नंबर 0731-2484643

    मो.नं. 94250 62658

    ईमेल-induparashar10@gmail.com

    भूमिका

    जीवन की चेतना का प्रतिनिधि काव्य संग्रह

    श्रीमती इंदु पाराशर जी को मैं अनेक वर्षों से एक श्रेष्ठ बाल साहित्यकार के नाते जानता था। पहली बार उनकी बड़ों के लिए लिखी गई कविताएँ जब पढ़ीं तो उनके इस आयाम से भी प्रभावित हुए बगैर नहीं रह पाया। वे अपनी भूमिका में स्वयं लिखती हैं कि ये कविताएँ अनायास ही भावोद्रेक में प्रकट हुई हैं किंतु मुझे लगता है कि साहित्य में यह एक सहज मान्यता बनी है कि कविता दर्द से ही प्रकट हो पाती है। भाव तो ईश्वर ने सब को दिए हैं किंतु शब्द ब्रह्म की साधना कुछ बिरले व्यक्ति ही कर पाते हैं।

    इस संग्रह में इंदु पाराशर जी ने अनेक विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है। इनमें आध्यात्मिक चेतना, राष्ट्रीय चेतना, भाषाई चेतना, पर्यावरण चेतना, साहित्य चेतना और इसके साथ ही सामाजिक सरोकार से जुड़े हुए ऐसे अनेक मुद्दों पर उन्होंने कलम चलाई है जो मनुष्य जीवन का एक अनिवार्य भाग होते हैं। उनकी कल-कल होती नदिया सी लेखनी कभी जीवन के सुख-दुख के क्षणों को शब्दों में बाँधती प्रतीत होती है तो कभी उन्मुक्त गगन में उड़ता मन पंछी कलम की स्याही से निबद्ध होकर पुनि-पुनि कविता जहाज पर लौटता दिखाई देता है। कभी कविता में उनका स्वाभिमान यह कहते हुए प्रकट होता है कि ‘‘है नहीं स्वीकार मुझको’’ तो कभी सहज ही कवि की लेखनी जीवन के संघर्षों में रास्ता बनाती ‘‘सीख’’ और जीवन मूल्यों को महत्व देती दिखाई देती हैं। कविताओं के इतने विविध स्वरूप एक ही संग्रह में समाहित करना सचमुच अनूठा काम है। यह कार्य अत्यंत सहजता से इंदुजी ने अपने इस काव्य संग्रह में संपन्न कर दिया है। मुझे तो आश्चर्य लगता है कि वे कभी ‘‘दान की महिमा’’ बताते-बताते सहज ही जीवन के पर्व उत्सवों को अपनी लेखनी का विषय बनाने लगती हैं। कभी ‘‘गुड़ी’’ बनाने लगती हैं तो कभी ‘‘नववर्ष’’ के उल्लास में खो जाती हैं। ऐसा ही नहीं, इस उल्लास में वह जीवन और मृत्यु के मध्य के संघर्ष को भी उकेर लेती है और साथ ही समाज के पिछड़े और अंतिम समूह के मजदूर वर्ग की भावनाओं को भी अपने शब्दों में प्रकट करने से स्वयं को रोक नहीं

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