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FREE य आ मय
E CIRCULAR बंधु/ ब हन
गु व योितष प का
जय गु दे व
संपादक हमारे मु य लोग http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/
व तक.ऎन.जोशी
( व तक सो टे क इ डया िल)
वशेष लेख
ावण मास के थम सोमवार त के लाभ 31
द र ता से मु 44
अनु म
गु ाथना 3 कम फल ह केवलं 34
गुव कम ् 4 गु आ ा पालक िश य उपम यु 35
िशव मह व 5 िशव कामदे व कथा 36
िशव उपासना का मह व 6 िशव और सती का ेम 37
महामृ युंजय मं 7 िशव पावती का ववाह 40
महामृ युंजय मं जाप कस समय कर? 8 गु सेवा 43
सव रोगनाशक यं /कवच 9 द र ता से मु 44
िशव कृ पा हे तु उ म ावण मास 11 दोष त का मह व 48
भौितकक दरू होते ह ावणमास के सोमवार तसे 12 सव काय िस कवच 51
सोमवार त कथा 13 वेदसार िशव तव 53
सा ात ह िशविलंग 14 महाकाल तवन 54
आपक रािश और िशव पूजा 15 ािभषेक तो 55
ादश योितिलग तो म ् 16 िशव मानस पूजा 56
िशवरा त से लाभ 17 िशवा कम 57
गंगा का वग से पृथवी पर आगमन केसे हवा
ु ? 18 ी ा कम 58
िशव पूजन से कामना िस 20 िलंगा कम 59
ा- वषणु-महे श म े कोन? 21 िशवम ह न तो म ् 60
िशविलंग पूजा का मह व या ह? 22 ा कृ त िशव तो 63
चातुमास त का मह व 23 िशव आरती 64
य िशव को य ह बेल प ? 25 िशव तांडव तो 65
सोलह सोमवार तकथा 27 िशव तुित (राम च रतमानस) 66
िशविलंग के विभ न कार व लाभ 31 मािसक रािश फल 67
िशवप चा र तो म ् 32 मािसक पंचांग 68
िशव के क याणकार मं 32 मािसक त-पव- यौहार 69
ावण सोमवार त कैसे कर? 33 वशेष योग 71
लघु कथाएं
शैतान 13 अपन क चोट 26
जीवन म ान क कमाई 19 वधाता क े कृ ित 30
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गु ाथना
िचंतन जोशी
भावाथ: गु क मूित यान का मूल कारण है , गु के चरण पूजा का मूल कारण ह, वाणी जगत के
सम त मं का और गु क कृ पा मो ाि का मूल कारण ह।
भावाथ: ा के आनंद प परम ् सुख प, ानमूित, ं से परे , आकाश जैसे िनलप, और सू म "त वमिस"
इस ईशत व क अनुभूित ह जसका ल य है ; अ तीय, िन य वमल, अचल, भावातीत, और गुणर हत -
ऐसे स ु को म णाम करता हँू ।
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गुव कम्
शर रं सु पं तथा वा कल ,ं अर ये न वा व य गेहे न काय, (५) जन महानुभाव के चरण कमल
यश ा िच ं धनं मे तु यम।् न दे हे मनो वतते मे वन य। भूम डल के राजा-महाराजाओं से िन य
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े मन ेन ल नं गुरोरि प ,े पू जत रहते ह , कंतु उनका मन य द गु
ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्१॥ ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्८॥ के ीचरण के ित आस न हो तो इस
कल ं धनं पु पौ ा दसव, गुरोर कं यः पठे पुरायदे ह , सदभा य से या लाभ?
गृ हो बा धवाः सवमेत जातम।् यितभूपित चार च गेह । (६) दानवृ के ताप से जनक क ित
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े चारो दशा म या हो, अित उदार गु क
लमे ा छताथं पदं सं ,ं
ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्२॥ सहज कृ पा से ज ह संसार के सारे
गुरो वा ये मनो य य ल नम॥्९॥
षड़ं गा दवेदो मुखे शा व ा, सुख-ए य ह तगत ह , कंतु उनका मन
॥इित ीमद आ शंकराचाय वरिचतम ्
क व वा द ग ं सुप ं करोित। गुव कम ् संपूण म॥
् य द गु के ीचरण म आस भाव न
ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्४॥ (२) य द प ी, धन, पु -पौ , कुटु ं ब, गृ ह अटलता से या लाभ?
िशव मह व
िचंतन जोशी
धम शा ो म भगवान िशव को जगत पता बताया गया ह।
यो क भगवान िशव सव यापी एवं पूण ह। हं द ू सं कृ ित
म िशव को मनु य के क याण का तीक माना जाता ह।
िशव श द के उ चारण या यान मा से ह मनु य
को परम आनंद दान करता ह। भगवान िशव
भारतीय सं कृ ित को दशन ान के ारा संजीवनी
दान करने वाले दे व ह। इसी कारण अना द
काल से भारतीय धम साधना म िनराकार प म
होते हवे
ु भी िशविलंग के प म साकार मूित
क पूजा होती ह। दे श- वदे श म भगवान
िशव के मं दर हर छोटे -बडे शहर एवं
क बो म मोजुद ह, जो भगवान महादे व
क यापकता को एवं उनके भ ो क
आ था को कट करते ह।
भा य ल मी द बी
सुख-शा त-समृ क ाि के िलये भा य ल मी द बी :- ज से धन ि , ववाह योग, यापार वृ ,
वशीकरण, कोट कचेर के काय, भूत ेत बाधा, मारण, स मोहन, ता क बाधा, श ु भय, चोर भय जेसी
अनेक परे शािनयो से र ा होित है और घर मे सुख समृ क ाि होित है , भा य ल मी द बी मे लघु
ी फ़ल, ह तजोड (हाथा जोड ), िसयार िस गी, ब ल नाल, शंख, काली-सफ़ेद-लाल गुंजा, इ जाल,
माय जाल, पाताल तुमड जेसी अनेक दल
ु भ साम ी होती है ।
मू य:- 910 से 8200 तक उ ल
गु व कायालय संपक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785
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महामृ यु जय मं
िचंतन जोशी
महामृ युंजय मं के विध वधान के साथ म जाप करने से अकाल मृ यु तो टलती ह ह, रोग,
शोक, भय इ या द का नाश होकर य को व थ आरो यता क ाि होती ह।
भयंकर महामार से लोग मर रहे ह , तो जाप कर अपिन और अपने प रवार क सुर ा हे तु।
तो महामृ युंजय मं का जप करना परम फलदायी है । महामृ युंजय मं के जप व उपासना के तर के आव यकता के अनु प होते
ह। का य उपासना के प म भी इस मं का जप कया जाता है । जप के िलए अलग-अलग मं का योग होता है । यहाँ हमने
आपक सु वधा के िलए सं कृ त म जप विध, विभ न यं -मं , जप म सावधािनयाँ, तो आ द उपल ध कराए ह। इस कार
आप यहाँ इस अ भुत जप के बारे म व तृ त जानकार ा कर सकते ह।
सव रोगनाशक यं /कवच
मनु य अपने जीवन के विभ न समय पर कसी ना कसी सा य या असा य रोग से त होता ह।
उिचत उपचार से यादातर सा य रोगो से तो मु िमल जाती ह, ले कन कभी-कभी सा य रोग होकर भी असा या
होजाते ह, या कोइ असा य रोग से िसत होजाते ह। हजारो लाखो पये खच करने पर भी अिधक लाभ ा नह ं हो
पाता। डॉ टर ारा दजाने वाली दवाईया अ प समय के िलये कारगर सा बत होती ह, एिस थती म लाभा ाि के
िलये य एक डॉ टर से दसरे
ू डॉ टर के च कर लगाने को बा य हो जाता ह।
भारतीय ऋषीयोने अपने योग साधना के ताप से रोग शांित हे तु विभ न आयुवर औषधो के अित र यं ,
मं एवं तं उ लेख अपने ंथो म कर मानव जीवन को लाभ दान करने का साथक यास हजारो वष पूव कया था।
बु जीवो के मत से जो य जीवनभर अपनी दनचया पर िनयम, संयम रख कर आहार हण करता ह, एसे य
को विभ न रोग से िसत होने क संभावना कम होती ह। ले कन आज के बदलते युग म एसे य भी भयंकर रोग
से त होते दख जाते ह। यो क सम संसार काल के अधीन ह। एवं मृ यु िन त ह जसे वधाता के अलावा
और कोई टाल नह ं सकता, ले कन रोग होने क थती म य रोग दरू करने का यास तो अव य कर सकता ह।
इस िलये यं मं एवं तं के कुशल जानकार से यो य मागदशन लेकर य रोगो से मु पाने का या उसके भावो
को कम करने का यास भी अव य कर सकता ह।
कवच के लाभ :
एसा शा ो वचन ह जस घर म महामृ युंजय यं था पत होता
ह वहा िनवास कता हो नाना कार क आिध- यािध-उपािध
से र ा होती ह।
पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग
िनवारण कवच कसी भी उ एवं जाित धम के
लोग चाहे ी हो या पु ष धारण कर सकते ह।
ज मांगम अनेक कारके खराब योगो और खराब
हो क ितकूलता से रोग उतप न होते ह।
कुछ रोग सं मण से होते ह एवं कुछ रोग खान-
पान क अिनयिमतता और अशु तासे उ प न होते
ह। कवच एवं यं ारा एसे अनेक कार के खराब
योगो को न कर, वा य लाभ और शार रक र ण
ा करने हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं सव उपयोगी
होता ह।
आज के भौितकता वाद आधुिनक युगमे अनेक एसे रोग होते ह, जसका उपचार ओपरे शन और दवासे भी
क ठन हो जाता ह। कुछ रोग एसे होते ह जसे बताने म लोग हच कचाते ह शरम अनुभव करते ह एसे रोगो
को रोकने हे तु एवं उसके उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं लाभादािय िस होता ह।
येक य क जेसे-जेसे आयु बढती ह वैसे-वसै उसके शर र क ऊजा होती जाती ह। जसके साथ अनेक
कार के वकार पैदा होने लगते ह एसी थती म भी उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं फल द होता
ह।
जस घर म पता-पु , माता-पु , माता-पु ी, या दो भाई एक ह न मे ज म लेते ह, तब उसक माता के िलये
अिधक क दायक थती होती ह। उपचार हे तु महामृ युंजय यं फल द होता ह।
जस य का ज म प रिध योगमे होता ह उ हे होने वाले मृ यु तु य क एवं होने वाले रोग, िचंता म
उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं शुभ फल द होता ह।
नोट:- पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच एवं यं के बारे म अिधक जानकार हे तु हम
से संपक कर।
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us - 9338213418, 9238328785
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Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
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िचंतन जोशी
ावण मास इस साल 27 जुलाई से 24 अग त के बीच रहे गा। इस दौरान 2 अग त , 9 अग त , 16 अग त , 23 अग त को
चार सोमवार ावण मास म पड़ रहे ह। क हं दे शो म 27 जुलाई से ावण मास ारं भ होने से 5 सोमवार होरहे ह। ावण मास के
सम त सोमवार के दन त करने से पूरे साल भर के सोमवार के त समान पु य फल िमलता ह। सोमवार के त
के दन ातःकाल ह नान इ या द से िनवृ होकर, िशव मं दर, दे वालय घरम जाकर िशव िलंग पर जल, दध
ू , दह ,
शहद, घी, चीनी, ेत चंदन, रोली(कुमकुम), ब व प (बेल प ), भांग, धतूरा आ द स अिभषेक कया जाता ह।
पित क लंबी आयु क कामना हे तु सुहागन य को सोमवार के दन त रखने से िशव कृ पा से अखंड सौभा य
क ाि होती ह।
ब चो को सोमवार का त कर िशव मं दर म जलािभषेक करने से व ा और बु क ाि होती ह।
रोजगार ाि हे तु दध
ू एवं जल चढाने से रोजगार ाि क संभावना बढ जाती ह।
यापार एवं नौकर करने वाले य यद ावण मास के सोमवार का त करने से धन-धा य और ल मी क
वृ होती ह।
त के दन गंगाजल से नान कर अथवा जल म थोडा गंगा जल िमला कर नान करने के प यात िशव िलंग पर
जल चढ़ाया जाता ह। आज भी उ र एवं पूव भारत म कांवड़ पर परा का वशेष मह व ह। ालु गंगाजल अथवा
पव न द स कावड़ म जल भरकर तीथ थल तक कांवड़ लेकर जाते ह। इसका उ े य िशवजीक कृ पा ा करना ह।
आज के भौितकतावा द युग म य अिधक से अिधक भौितक सुख साधनो को जुटाते हए
ु कभी-कभी
य नैितकता का दामन छोड कर अनैितकता का दामन थाम लेता ह जस के फल व प अपने ितकूल कम के
कारण य को भ व य म अनेक सम याओं से िसत होते दे खा गया ह।
य ारा कये गये ितकूल कम के बंधन से मु कराने क समथता भगवान भोले भंडार िशव क
कृ पा ाि से य के ारा संिचत पाप न हो जाते ह।
मं िस यं
गु व कायालय ारा विभ न कार के यं कोपर(ता प ), िसलवर (चांद ) ओर गो ड (सोने) मे विभ न कार क
सम या के अनुसार बनवा के मं िस पूण ाण ित त एवं चैत य यु कये जाते है. जसे साधारण (जो पूजा-पाठ नह
जानते या नह कसकते) य बना कसी पूजा अचना- विध वधान वशेष लाभ ा कर सकते है. जस मे िचन यं ो स हत
हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाए गये यं भी समा हत है . इसके अलवा आपक आव यकता अनुशार यं बनवाए जाते है.
गु व कायालय ारा उपल ध कराये गये सभी यं अखं डत एवं २२ गेज शु कोपर(ता प )- 99.99 टच शु िसलवर (चांद )
एवं 22 केरे ट गो ड (सोने) मे बनवाए जाते है. यं के वषय मे अिधक जानकार के िलये हे तु स पक करे
गु व कायालय:
Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA
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सोमवार त कथा
व तक.ऎन.जोशी
कैलाश के उ र म िनषध पवत के िशखर पर वयं भा नामक एक वशाल पुर थी जसम धन वाहन नामक एक
गण वराज रहते थे। समय अनुसार उ हे आठ पु और अंत म एक क या उ प न हई
ु जसका नाम गंधव सेना था। वह अ य त
पवती थी और उसे अपने प का बहत
ु अिभमान था। वह कहा करती थी क संसार म कोई गंधव या दे वी मेरे प के करोड़वे अंश
के समान भी नह ं है । एक दन एक आकाशचर गण नायक ने उसक बात सुनी तो उसे शाप दे दया 'तुम प के अिभमान' म गंधव
और दे वताओं का अपमान करती हो अत: तु हारे शर र म कोढ़ हो जायेगा। शाप सुन कर क या भयभीत हो गयी और दया क भीख
मांगने लगी। उसक बनती सुन कर गणनायक को दया आ गयी और उ ह ने कहा हमालय के वन म गो ृ ं ग नाम के े मुनी
रहते है । वे तु हारा उपकार करे गे। ऐसा कह कर गणनायक चला गया। गंधव सेना व छोड़ कर अपने पता के पास आई और अपने
कु होने के कारण तथा उससे मु का उपाय बताया। माता पता उसे त ण लेकर हमालय पवत पर गए और गो ृ ं ग का दशन
करके तुित करने लगे। मुिन के पूछने पर उ ह ने कहा क मेरे बेट को कोढ़ हो गया है कृ पया इसक शांित का कोई उपाय बताएं।
मुिन ने कहा क समु के समीप भगवान सोमनाथ वराजमान है । वहां जाकर सोमवार त ारा भगवान
शंकर क आराधना करो। ऐसा करने से पु ी का रोग दरू हो जायेगा। मुिन के वचन सुन कर धनवाहन अपनी पु ी के
साथ भास े म जाकर सोमनाथ के दशन कए और पूरे विध वधान के साथ सोमवार ज करते हए
ु भगवान
शंकर क आराधना कए उनक भ से स न होकर शंकर भगवान ने उस क या के रोग को दरू कया और उ हे
अपनी भ भी दान म दया। आज भी लोग िशव जी को स न करने के िलए इस त को पूर िन ा एवं भ के
साथ करते है और िशव क कृ पा को ा करते है ।
शैतान
जब एक शैतान का मन अपने आप से ऊब गया, तो उसने सं यास लेने का
िन य कया। तब उसने अपने गुलाम को एक-एक कर बेचना शु कर दया। 'बुराई',
'झूठ', 'ई या', 'िन साह, ' 'दप'-सब पं बांधकर उसके सामने खड़े हो गये। शैतान के भ
आते गए और उ ह पहचान कर एक-एक को खर दते गये। पर अंत म एक बहत
ु ह भ ड़ा
और कु प गुलाम खड़ा था, जसे कोई पहचान नह ं पा रहा था। आ य क बात तो यह
थी क शैतान ने उसका मू य दसरे
ू सभी गुलाम से बढ़कर था। अ त म साहस करके
एक खर ददार ने शैतान से पूछा यह महाशय कौन ह?
"ओह, यह!" शैतान मु कराया, "यह मेरा सबसे य और वफादार गुलाम है । बहत
ु थोड़े
ह लोग जानते ह क यह मेरा दा हना हाथ ह। म इसके सहारे बड़ आसानी से लोग को
अपने िशकंजे म कस लेता हंू ; उ ह एक-दसरे
ू के खून का यास बना दे ता हंू । य , नह ं
पहचाना अभी भी?" शैतान अ टहास कर उठा, फर बोला, "यह फूट है , फूट!" व तक
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सा ात ह िशविलंग
िचंतन जोशी
िशवपुराणम िशविलंग म हमा इस कार क गई है-
दसरा
ू भावाथ: यह ा णय का परम कारण और िनवास-
थान ह।
ादश योितिलग तो म ्
सौरा दे शे वशदे ऽितर ये योितमयं च कलावतंसम।्
भ दानाय कृ पावतीण तं सोमनाथं शरणं प े॥१॥
िशवरा त से लाभ
महा िशवरा भगवान शंकर का सबसे प व दन माना जाता ह। िशवरा पर अपनी आ मा को िनमल
करने का महा त माना जाता ह। महािशव रा त से मनु य के सभी पाप का नाश हो जाता ह। उ क हं सक वृ
बदल जाती ह। सम त जीव के ित उसके िभतर दया, क णा इ या द स भावो का आगमन होता है ।
योितष शा
चतुदशी ितिथ के वामी िशवजी ह। योितष शा म चतुदशी ितिथ को परम शुभ फलदायी मना गया ह।
वैसे तो िशवरा हर मह ने चतुदशी ितिथ को होती ह। परं तु फा गुन कृ ण प क चतुदशी को महािशवरा कहा
गया ह। योितषी शा के अनुसार व को उजा दान करने वाले सूय इस समय तक उ रायण म आ होते ह, और
ऋतु प रवतन का यह समय अ यंत शुभ कहा माना जाता ह। िशव का अथ ह है क याण करना, एवं िशवजी सबका
चं का सीधा संबंध मनु य के मन से बताया गया ह। योितष िस त से जब चं कमजोर होतो मन थोडा कमजोर
हो जाता ह, ज से भौितक संताप ाणी को घेर लेते ह, और वषाद, मा सक चंच ता-अ थरता एवं असंतुलन से
मनु य को विभ न कार के क का सामना करना पड़ता ह।
"अंशुमान ने य का अ लाकर सगर का अ मेघ य पूण करा दया। य पूण होने पर राजा सगर
अंशुमान को रा य स प कर गंगा को वग से पृ वी पर लाने के उ े य से तप या करने के िलये उ राखंड चले गये
इस कार तप या करते-करते उनका वगवास हो गया। अंशुमान के पु का नाम दलीप था। दलीप के बड़े होने पर
अंशुमान भी दलीप को रा य स प कर गंगा को वग से पृ वी पर लाने के उ े य से तप या करने के िलये उ राखंड
चले गये क तु वे भी गंगा को वग से पृ वी पर लाने म सफल नह ं हो सके। दलीप के पु का नाम भगीरथ था।
भगीरथ के बड़े होने पर दलीप ने भी अपने पूव ज का अनुगमन कया क तु गंगा को लाने म उ ह भी असफलता ह
हाथ आई।
"अ ततः भगीरथ क तप या से गंगा स न हु और उनसे वरदान माँगने के िलया कहा। भगीरथ ने हाथ
जोड़कर कहा क माता! मेरे साठ हजार पुरख के उ ार हे तु आप पृ वी पर अवत रत होने क कृ पा कर। इस पर गंगा
ने कहा व स! म तु हार बात मानकर पृ वी पर अव य आउँ गी, क तु मेरे वेग को शंकर भगवान के अित र और
कोई सहन नह ं कर सकता। इसिलये तुम पहले शंकर भगवान को स न करो। यह सुन कर भगीरथ ने शंकर भगवान
क घोर तप या क और उनक तप या से स न होकर िशव जी हमालय के िशखर पर गंगा के वेग को रोकने के
िलये खड़े हो गये। गंगा जी वग से सीधे िशव जी क जटाओं पर जा िगर ं। इसके बाद भगीरथ गंगा जी को अपने
पीछे -पीछे अपने पूव ज के अ थय तक ले आये जससे उनका उ ार हो गया। भगीरथ के पूव ज का उ ार करके गंगा
जी सागर म जा िगर ं और अग य मुिन ारा सोखे हये
ु समु म फर से जल भर गया।"
जीवन म ान क कमाई
एक संत महा मा थे। उनका एक युवा िश य था। उस िश य को अपने ान और व ता पर बड़ा घमंड था।
महा मा उसके इस घमंड को दरू करना चाहते थे। इसिलए एक दन सवेरे ह वह उसे साथ लेकर या ा पर
िनकले। धूप चढ़ते दे ख दोन एक खेत म पहंु चे। वहां एक कसान या रयां बना कर सींच रहा था। गु -िश य
काफ दे र तक वहां खड़े रहे , क तु कसान ने आंख उठाकर उनक ओर दे खा तक नह ं। वह लगन से अपने काम
म म नता से अपने काम म लगा रहा। सं या होते होते गु -िश य एक नगर म पहंु चे। वहां उ ह ने दे खा क एक
लुहार लोहा पीट रहा ह। पसीने से उसक सार दे ह तर-बतर हो रह थी। गु -िश य काफ दे र वहां खड़े रहे ,
ले कन लुहार को गदन ऊपर उठाने क भी फुरसत नह ं थी।
गु -िश य फर और आगे बढ़े और सं या से रा ी होने के समय वे एक सराय म पहंु चे। वे थकान से चूर हो
गये। वहां तीन मुसा फर और बैठे थे। वे भी पूर तरह थके हए
ु दखाई पड़ते थे। गु ने िश य से कहा, "तुमने
दे खा, कुछ पाने के िलए कतना दे ना पडता ह। कसान अपना तन-मन लुटाता ह, तब कह ं खेत म अ न फलता
ह। लुहार शर र क उजा दे ता ह तब धातु िस होती ह। या ी अपने को चुकाकर मं जल पाता ह। तुमने ान के
पोथे-पर-पोथे रट डाले, ले कन कतना ान पा िलया? ान तो कमाई ह। कमाकर उसे पाया जाता ह। कम से
ान क या रय को सींचो। जीवन क आंच म ान क धातु िस करो। माग म अपने को चुकाकर ान क
मं जल पाओ। ान कसी का सगा नह ं ह। ान को जो कमाता ह, ान उसी के पास जाता ह।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 20 vxLr 2010
िचंतन जोशी
िशविलंग पर गंगा जल से अिभषेक करने से भौितक सुख ा होता ह एवं मनु य को मो क ाि होती ह।
िशव पुराण के अनुशार िशविलंग पर अ न, फूल एवं विभ न व तुओं से जलािभषेक कर मनु य के सम त कार के
क ोका िनवारण कया जासकता ह।
िन न साधना िशव ितमा(मूित) के सम करने से शी लाभ ा होते ह।
ल मी ाि हे तु भगवान िशव को ब वप , कमल, शतप एवं शंखपु प अपण करने से लाभ ा होता ह।
पु ाि हे तु भगवान िशव को धतुरे के फूल अपण करने से शुभ फल क ाि होती ह।
भौितक सुख एवं मो ाि हे तु वेत आक, अपमाग एवं सफेद कमल के फूल भगवान िशव को चढाने से लाभ
ा होता ह।
वाहन सुख क ाि हे तु चमेली के फूल भगवान िशव को चढाने से शी उ म वाहन ाि के योग बनते ह।
ववाह सुख म आने वाली बाधाओं को दरू करने हे तु बेला के फूल भगवान िशव को चढाने से उ म प ी क
ाि होती होती ह एवं क या के फूल चढाने से उ म पित क ाि होती ह।
जूह के फूल भगवान िशव को चढाने से य को अ न का अभाव नह ं होता ह।
सुख स प क ाि हे तु भगवान िशव को हार िसंगार के फूल चढाने से लाभ ा होता ह।
वण मास म कये गये पूजन एवं अिभषेक से भगवान िशव क कृ पा ाि के साथ-साथ माता पवती, गणेश और मां
ल मी क भी कृ पा ा होती ह।
या आप कसी सम या से त ह?
आपके पास अपनी सम याओं से छुटकारा पाने हे तु पूजा-अचना, साधना, मं जाप इ या द करने का समय नह ं
ह? अब आप अपनी सम याओं से बीना कसी वशेष पूजा-अचना, विध- वधान के आपको अपने काय म सफलता
ा कर सके एवं आपको अपने जीवन के सम त सुखो को ा करने का माग ा हो सके इस िलये गु व
कायालत ारा हमारा उ े य शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस ाण- ित त पूण चैत य यु
विभ न कार के य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
गु व कायालय:
Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA, Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785,
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ा- वषणु-महे श म े कोन?
राकेश पंडा
वेद शा के अनुशार मह ष भृ गु ाजी के मानस पु थे। उनक प ी का नाम याित था जो द क पु ी थी। मह ष भृ गु स
ऋ षमंडल के एक ऋ ष ह। सावन और भा पद म वे भगवान सूय के रथ पर सवार रहते ह। एक बार क बात ह, सर वती नद के
तट पर सभी ऋ ष-मुिन एक त होकर इस वषय पर चचा कर रहे थे क ा- वषणु-महे श म सबसे बड़े और े कौन है ? इसका
कोई िन कष न िनकलता दे ख ऋ ष-मुिनय ने तीनो दे व क पर ा लेने का िनणय कया और ाजी के मानस पु मह ष भृ गु को
इस काय के िलए िनयु कया गया। मह ष भृ गु सव थम अपने पता ाजी के पास गए, मह ष भृ गु ने न तो णाम कया और न
ह उनक तुित क । यह दे ख ाजी ोिधत हो गए। ोध क अिधकता से उनका मुख लाल हो गया। आँख म अंगारे दहकने
लगे। ले कन फर यह सोचकर क ये उनके पु ह, ाजी ने दय म उठे ोध के आवेग को अपनी ववेक-बु से दबा दया।
वहाँ से मह ष भृ गु कैलाश पवत पर गए। दे वािधदे व भगवान महादे व ने दे खा क भृ गु आ रहे ह तो वे स न होकर अपने
आसन से उठे और उनका आिलंगन करने के िलए भुजाएँ फैला द ।ं कंतु उनक पर ा लेने के िलए भृ गु मुिन उनका आिलंगन
अ वीकार करते हए
ु बोले-“महादे व! आप सदा वेद और धम क मयादा का उ लंघन करते ह। द ु और पा पय को आप जो वरदान
दे ते ह, उनसे सृ पर भयंकर संकट आ जाता है । इसिलए म आपका आिलंगन कदा प नह ं क ँ गा।”
उनक बात सुनकर भगवान िशव ोध से ितलिमला उठे । उ ह ने जैसे ह शूल उठा कर उ ह मारना चाहा, वैसे ह भगवती सती ने
बहत
ु अनुरोध- वनय कर कसी कार से उनका ोध शांत कया।
इसके बाद भृ गु मुिन वैकु ठ लोक गए। उस समय भगवान ी व णु दे वी ल मी क गोद म िसर रखकर लेटे थे।
भृ गु ने जाते ह उनके व पर एक तेज लात मार । भ -व सल भगवान व णु शी ह अपने आसन से उठ खड़े हए
ु और उ ह
णाम करके उनके चरण सहलाते हए
ु बोले-“भगवन! आपके पैर पर चोट तो नह ं लगी? कृ पया इस आसन पर व ाम क जए।
भगवन! मुझे आपके शुभ आगमन का ान न था। इसिलए म आपका वागत नह ं कर सका। आपके चरण का पश तीथ को
प व करने वाला ह। आपके चरण के पश से आज म ध य हो गया।” भगवान व णु का यह स ेम- यवहार दे खकर मह ष भृ गु
क आँख से आँसू बहने लगे। उसके बाद वे ऋ ष-मुिनय के पास लौट आए और ा, वषणु और महे श के यहाँ के सभी अनुभव
व तार से कह बताया। उनके अनुभव सुनकर सभी ऋ ष-मुिन बड़े है रान हए
ु और उनके सभी संदेह दरू हो गए। तभी से वे भगवान
व णु को सव े मानकर उनक पूजा-अचना करने लगे। ऋ ष-मुिनय ने मनु य के भीतर उठने वाले संदेह को िमटाने के िलए
ऐसी लीला हजारो वष पूव ह रची थी।
िशविलंग पूजा का मह व या ह?
िचंतन जोशी
िशवमहा पुराण के सृ खंड अ याय १२ ोक ८२ से ८६ म ा जी के पु संतकुमार जी वेद यास जी को उपदे श दे ते हए
ु कहते ह,
हर गृ ह थ मनु य को अपने स गु से विधवत द ा लेकर पंचदे व (गणेश, सूय, व णु, दगा
ु , िशव) क ितमाओं का िन य
पूजन करना चा हए। य क िशव ह सबके मूल ह, इस िलये मूल (िशव) को सींचने से सभी दे वता तृ प हो जाते ह पर तु सभी
दे वताओं को स न करने पर भी िशव स न नह ं होते। यह रह य केवल और केवल स गु क शरण म रहने वाले य ह जान
सकते ह।
सृ के पालनकता भगवान व णु ने एक बार सृ के रचियता ा के साथ िनगु ण, िनराकार िशव से ाथना क , भु आप
कैसे स न होते ह। भगवान िशव बोले मुझे स न करने के िलए िशविलंग का पूजन करो। जब कसी कार का संकट या द:ु ख
हो तो िशविलंग का पूजन करने से सम त द:ु ख का नाश हो जाता है ।(िशवमहापुराण सृ खंड )
जब दे व ष नारद ने भगवान ी व णु को शाप दया और बाद म प ाताप कया तब व णु ने नारदजी को प ाताप के िलए
िशविलंग का पूजन, िशवभ का स कार, िन य िशवशत नाम का जाप आ द उपाय सुझाये।(िशवमहापुराण सृ खंड )
एक बार सृ रचियता ाजी सभी दे वताओं को लेकर ीर सागर म ी व णु के पास परम त व जानने के िलए पहोच गये।
ी व णु ने सभी को िशविलंग क पूजा करने का सुझाव दया और व कमा को बुलाकर दे वताओं के अनुसार अलग-अलग
य पदाथ के िशविलंग बनाकर दे ने का आदे श दे कर सभी को विधवत पूजा से अवगत करवाया। (िशवमहापुराण सृ खंड )
ा जी ने दे व ष नारद को िशविलंग क पूजा क म हमा का उपदे श दे ते हवे
ु कहा। इसी उपदे श से जो ंथ क रचना हई
ु वो िशव
महापुराण ह। माता पावती के अ य त आ ह से, जनक याण के िलए िनगु ण, िनराकार िशव ने सौ करोड़ ोक म
िशवमहापुराण क रचना क। जो चार वेद और अ य सभी पुराण िशवमहापुराण क तुलना म नह ं आ सकते। भगवान िशव
क आ ा पाकर व णु के अवतार वेद यास जी ने िशवमहापुराण को २४६७२ ोक म सं कया ह।
जब पा ड़व वनवास म थे , तब कपट से दय
ु धन पा ड़व को दवासा
ु ऋ ष को भेजकर तथा मूक नामक
रा स को भेजकर क दे ता था। तब पा ड़व ने ी कृ ण से दय
ु धन के द ु यवहार से अवगत कराया
और उससे छुटकारा पाने का माग पूछा। तब ी कृ ण ने पा ड़व को भगवान िशव क पूजा करने के
िलए सलाह द और कहा मने वयंने अपने सभी मनोरथ को ा करने के िलए भगवान िशव क
पूजा क ह और आज भी कर रहा हंु । आप लोग भी करो। वेद यासजी ने भी पा ड़व को भगवान िशव क
पूजा का उपदे श दया। हमालय से लेकर पा ड़व व के हर कोने म जहां भी गये उन सभी थानो
पर िशविलंग क थापना कर पूजा अचना करने का वणन शा म िमलता ह।
िशव महापुराण
चातुमास त का मह व
िचंतन जोशी
ह द ू धम ंथ के अनुसार, आषाढ मास म शु लप क
एकादशी क रा से भगवान व णु इस दन से लेकर अगले
चार मास के िलए योगिन ा म लीन हो जाते ह, एवं काितक
मास म शु लप क एकादशी के दन योगिन ा से जगते ह।
इसिलये चार इन मह न को चातुमास कहाजाता ह। चातुमास का
ह द ू धम म वशेष आ या मक मह व माना जाता ह।
अषाढ मास म शु ल प क ादशी अथवा पू णमा
अथवा जब सूय का िमथुन रािश से कक रािश म वेश होता ह
तब से चातुमास के त का आरं भ होता ह। चातुमास के त क
समाि काितक मास म शु ल प क ादशी को होती ह। साधु सं यासी अषाढ मास क पू णमा से चातुमास मानते ह।
सनातन धम के अनुयायी के मत से भगवान व णु सव यापी ह. एवं स पूण ांडा भगवान व णु क
श से ह संचािलत होता ह। इस िलये सनातन धम के लोग अपने सभी मांगिलक काय का शुभारं भ भगवान व णु
को सा ी मानकर करते ह।
शा ो म िलखा गया है क वषाऋतु के चार मास म ल मी जी भगवान व णु क सेवा करती ह। इस
अविध म य द कुछ िनयम का पालन करते हवे
ु अपनी मनोकामना पूित हे तु त करने से वशेष लाभ ा होता ह।
चातुमास म त करने वाले साधक को ित दन सूय दय के समय नान इ या द से िनवृ होकर भगवान
व णु क आराधना करनी चा हये।
चातुमास का सद उपयोग आ म उ नित के िलए कया जाता ह। चातुमास के िनयम मनु य के िभतर
याग और संयम क भावना उ प न करने के िलए बने ह।
य िशव को य ह बेल प ?
िचंतन जोशी
या ह बेल प अथवा ब व-प ?
ब व-प एक पेड़ क प यां ह, जस के हर प े लगभग तीन-तीन के समूह म िमलते ह। कुछ प यां चार या पांच
के समूह क भी होती ह। क तु चार या पांच के समूह वाली प यां बड़ दलभ
ु होती ह। बेल के पेड को ब व भी कहते ह। ब व के
पेड़ का वशेष धािमक मह व ह। शा ो मा यता ह क बेल के पेड़ को पानी या गंगाजल से सींचने से सम त तीथ का फल ा
होता ह एवं भ को िशवलोक क ाि होती ह। बेल क प य म औषिध गुण भी होते ह। जसके उिचत औषधीय योग से कई
रोग दरू हो जाते ह। भारितय सं कृ ित म बेल के वृ का धािमक मह व ह, यो क ब व का वृ भगवान िशव का ह प है ।
धािमक ऐसी मा यता ह क ब व-वृ के मूल अथात उसक जड़ म िशव िलंग व पी भगवान िशव का वास होता ह। इसी कारण
से ब व के मूल म भगवान िशव का पूजन कया जाता ह। पूजन म इसक मूल यानी जड़ को सींचा जाता ह।
भावाथ : ब व के मूल म िलंग पी अ वनाशी महादे व का पूजन जो पु या मा य करता है , उसका क याण होता है । जो य
िशवजी के ऊपर ब वमूल म जल चढ़ाता है उसे सब तीथ म नान का फल िमल जाता है ।
ब व प तोड़ने का मं
ब व-प को सोच-समझ कर ह तोड़ना चा हए। बेल के प े तोड़ने से पहले िन न मं का उ चरण करना चा हए-
अमृ तो व ीवृ महादे व यःसदा।
गृ ािम तव प ा ण िशवपूजाथमादरात॥् -(आचारे द)ु
भावाथ :अमृ त से उ प न स दय व ऐ यपूण वृ महादे व को हमेशा य है । भगवान िशव क पूजा के िलए हे वृ म तु हारे प
तोड़ता हंू ।
कब न तोड़ ब व क प यां?
वशेष दन या वशेष पव के अवसर पर ब व के पेड़ से प यां तोड़ना िनषेध ह।
शा के अनुसार बेल क प यां इन दन म नह ं तोड़ना चा हए-
बेल क प यां सोमवार के दन नह ं तोड़ना चा हए।
बेल क प यां चतुथ , अ मी, नवमी, चतुदशी और अमाव या क ितिथय को नह ं तोड़ना चा हए।
बेल क प यां सं ांित के दन नह ं तोड़ना चा हए।
भावाथ: अगर भगवान िशव को अ पत करने के िलए नूतन ब व-प न हो तो चढ़ाए गए प को बार-बार धोकर चढ़ा सकते ह।
बेल प चढाने का मं
भगवान शंकर को व वप अ पत करने से मनु य क सवकाय व मनोकामना िस होती ह। ावण म व व प अ पत करने का
वशेष मह व शा ो म बताया गया ह।
भावाथ: तीन गुण, तीन ने , शूल धारण करने वाले और तीन ज म के पाप को संहार करने वाले हे िशवजी आपको दल ब व
प अ पत करता हंू ।
अपन क चोट
एक सुनार था। उसक दकान
ु से लगकर एक लुहार क दकान
ु थी। सुनार जब काम करता, उसक दकान
ु से
बहत
ु ह धीमी आवाज होती, पर जब लुहार काम करतातो उसक दकान
ु से कानो के पद फाड़ दे ने वाली
आवाज सुनाई पड़ती। एक दन सोने का एक कण िछटक कर लुहार क दकान
ु म आ िगरा। वहां उसक भट
लोहे के एक कण के साथ हई।
ु सोने के कण ने लोहे के कण से कहा, "भाई, हम दोन का द:ु ख एक समान
ह। हम दोन को एक ह तरह आग म तपाया जाता ह और समान प से हथौड़े क चोट सहनी पड़ती ह।
म यह सब यातना चुपचाप सहन करता हंू, पर तुम इतना िच ला य रह हो? तु हारा कहना एक दम सह
ह, ले कन तुम पर चोट करने वाला लोहे का हथौड़ा तु हारा सगा भाई नह ं ह, पर वह मेरा सगा भाई ह।"
लोहे के कण ने द:ु ख भरे वर म उ र दया। फर कुछ ककर बोला, पराये क अपे ा अपन के ारा
दगई चोट क पीड़ा अिधक अस हो जाती ह।
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मृ यु लोक म ववाह करने क इ छा करके एक बार ी भगवान िशवजी माता पावती के साथ पधारे वहाँ वे
मण करते-करते वदभ दे शांतगत अमरावती नाम क अतीव रमणीक नगर म पहँु चे । अमरावती नगर अमरपुर के
स श सब कार के सुख से प रपूण थी । उसम वहां के महाराज का बनाया हआ
ु अित रमणीक िशवजी का म दर
बना था । उसम भगवान शंकर भगवती पावती के साथ िनवास करने लगे ।
एक समय माता पावती ाणपित को स न दे ख के मनो वनोद करने क
इ छा से बोली – हे माहाराज, आज तो हम आप दोन चौसर खेल । िशवजी
ने ाण या क बात को मान िलया और चौसर खेलने लगे । उसी समय इस
थान पर म दर के पुजार ा ण म दर मे पूजा करने को आया । माताजी
ने ाहमण से कया क पुजार जी बताओ क इस बाजी म दोन म
कसक जीत होगी । ाहमण बना वचारे ह शी बोल उठा क महादे वजी
क जीत होगी । थोड़ दे र म बाजी समा हो गई और पावती जी क वजय
हई
ु । अब तो पावती जी ा ण को झूठ बोलने के अपराध के कारण ाप दे ने
को उघत हई
ु । तब महादे व जी ने पावती जी को बहत
ु समझाया पर तु
उ ह ने ा ण को कोढ़ होने का ाप दे दया । कुछ समय बाद पावती जी
के ापवश पुजार के शर र म कोढ़ पैदा हो गया । इस कार पुजार अनेक
कार से दखी
ु रहने लगा । इस तरह के क भोगते हए
ु जब बहत
ु दन हो
गये तो दे वलोक क अ सराएं िशवजी क पूजा करने उसी म दर मे पधार और पुजार के क को दे खकर बड़े दया
भाव से उससे रोगी होने का कारण पूछने लगी – पुजार ने िनःसंकोच सब बाते उनसे कह द । वे अ सराय बोली – हे
पुजार । अब तुम अिधक दखी
ु मत होना । भगवान िशवजी तु हारे क को दरू कर दगे । तुम सब बात म े षोडश
सोमवार का तभ भाव से करो । तब पुजार अ सराओं से हाथ जोड़कर वन भाव से षोडश सोमवार त क विध
पूछने लगा । अ सराय बोली क जस दन सोमवार हो उस दन भ के साथ त कर । व छ व पहन आधा सेर
गेहूँ का आटा ले । उसके तीन अंगा बनाये और घी, गुड़, द प, नैवेघ, पुंगीफल, बेलप , जनेऊ का जोड़ा, च दन, अ त,
पु पा द के ारा दोष काल म भगवान शंकर का विध से पूजन करे त प ात अंगाऔ ं म से एक िशवजी को अपण
कर बाक दो को िशवजी का साद समझकर उप थत जन म बांट द । और आप भी साद पाव । इस विध से
सोलह सोमवार त कर । त प ात ् स हव सोमवार के दन पाव सेर प व गेहूं के आटे क बाट बनाय । तद अनुसार
घी और गुड़ िमलाकर चूरमा बनाव । और िशवजी का भोग लगाकर उप थत भ म बांटे पीछे आप सकुटंु ब साद ल
तो भगवान िशवजी क कृ पा से उसके मनोरथ पूण हो जाते है । ऐसा कहकर अ सराय वग को चली गयी । ाहमण
ने यथा विध षोड़श सोमवार त कया तथा भगवान िशवजी क कृ पा से रोग मु होकर आन द से रहने लगा । कुछ
दन बाद जब फर िशवजी और पावती उस म दर म पधारे , तब ाहमण को िनरोग दे खकर पावती ने ाहमण से
रोग-मु होने का कारण पूछा तो ाहमण ने सोलह सोमवार त कथा कह सुनाई । तब तो पावती जी अित स न
होकर ाहमण से त क विध पूछकर त करने को तैयार हई
ु ।
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जब पु समझदार हआ
ु तो एक दन अपने माता से कया क मां तूने कौन-सा तप कया है जो मेरे जैसा
पु तेरे गभ से उ प न हआ
ु । माता ने पु का बल मनोरथ जान के अपने कये हए
ु सोलह सोमवार त को विध
स हत पु के स मुख कट कया । पु ने ऐसे सरल त को सब तरह के मनोरथ पूण करने वाला सुना तो वह भी
इस त को रा यािधकार पाने क इ छा से हर सोमवार को यथा विध त करने लगा । उसी समय एक दे श के वृ
राजा के दत
ू ने आकर उसको एक राजक या के िलये वरण कया । राजा ने अपनी पु ी का ववाह ऐसे सवगुण
स प न ाहमण युवक के साथ करके बड़ा सुख ा कया ।
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वृ राजा के दवंगत हो जाने पर यह ाहमण बालक ग पर बठाया गया, य क दवंगत भूप के कोई पु
नह ं था । रा य का अिधकार होकर भी वह ाहमण पु अपने सोलह सोमवार के त को कराता रहा । जब स हवां
सोमवार आया तो व पु ने अपनी यतमा से सब पूजन साम ी लेकर िशवालय म चलने के िलये कहा । पर तु
यतमा ने उसक आ ा क परवाह नह ं क । दास-दािसय ारा सब सामि यं िशवालय पहँु चवा द और वयं नह ं
गई । जब राजा ने िशवजी का पूजन कया, तब एक आकाशवाणी राजा के ित हई
ु । राजा ने सुना क हे राजा ।
अपनी इस रानी को महल से िनकाल दे नह ं तो तेरा सवनाश कर दे गी । वाणी को सुनकर राजा के आ य का ठकाना
नह ं रहा और त काल ह मं णागृ ह म आकर अपने सभासद को बुलाकर पूछने लगा क हे मं य । मुझे आज
िशवजी क वाणी हई
ु है क राजा तू अपनी इस रानी को िनकाल दे नह ं तो तेरा सवनाश कर दे गी । मं ी आ द सब
बड़े व मय और दःख
ु म डू ब गये य क जस क या के साथ रा य िमला है । राजा उसी को िनकालने का जाल
रचता है , यह कैसे हो सकेगा । अंत म राजा ने उसे अपने यहां से िनकाल दया । रानी दःखी
ु दय भा य को कोसती
हई
ु नगर के बाहर चली गई । बना पद ाण, फटे व पहने, भूख से दखी
ु धीरे -धीरे चलकर एक नगर म पहँु ची । वहाँ
एक बु ढ़या सूत कातकर बेचने को जाती थी । रानी क क ण दशा दे ख बोली चल तू मेरा सूत बकवा दे । म वृ हँू,
भाव नह ं जानती हँू । ऐसी बात बु ढ़या क सुत रानी ने बु ढ़या के सर से सूत क गठर उतार अपने सर पर रखी ।
थोड़ दे र बाद आंधी आई और बु ढ़या का सूत पोटली के स हत उड़ गया । बेचार बु ढ़या पछताती रह गई और रानी
को अपने साथ से दरू रहने को कह दया । अब रानी एक तेली के घर गई, तो तेली के सब मटके िशवजी के कोप के
कारण चटक गये । ऐसी दशा दे ख तेली ने रानी को अपने घर से िनकाल दया । इस कार रानी अ यंत दख
ु पाती
हई
ु स रता के तट पर गई तो स रता का सम त जल सूख गया । त प ात ् रानी एक वन म गई, वहां जाकर सरोवर
म सीढ़ से उतर पानी पीने को गई । उसके हाथ से जल पश होते ह सरोवर का नीलकमल के स य जल असं य
क ड़ोमय गंदा हो गया ।
रानी ने भा य पर दोषारोपण करते हए
ु उस जल को पान करके पेड़ क शीतल छाया म व ाम करना चाहा ।
वह रानी जस पेड़ के नीचे जाती उस पेड़ के प े त काल ह िगरते चले गये । वन, सरोवर के जल क ऐसी दशा
दे खकर गऊ चराते वाल ने अपने गुंसाई जी से जो उस जंगल म थत मं दर म पुजार थे कह । गुंसाई जी के
आदे शानुसार वाले रानी को पकड़कर गुंसाई के पास ले गये । रानी क मुख कांित और शर र शोभा दे ख गुंसाई जान
गए । यह अव य ह कोई विध क गित क मार कोई कुलीन अबला है । ऐसा सोच पुजार जी ने रानी के ित कहा
क पु ी म तुमको पु ी के समान रखूंगा । तुम मरे आ म म ह रहो । म तुम को कसी कार का क नह ं होने
दं ग
ू ा। गुंसाई के ऐसे वचन सुन रानी को धीरज हआ
ु और आ म म रहने लगी ।
आ म म रानी जो भोजन बनाती उसम क ड़े पड़ जाते, जल भरकर लाती उसम क ड़े पड़ जाते । अब तो गुंसाई
जी भी दःखी
ु हए
ु और रानी से बोले क हे बेट । तेरे पर कौन से दे वता का कोप है , जससे तेर ऐसी दशा है । पुजार
क बात सुन रानी ने शवजी क पूजा करने न जाने क कथा सुनाई तो पुजार िशवजी महाराज क अनेक कार से
तुित करते हए
ु रानी के ित बोले क पु ी तुम सब मनोरथ के पूण करने वाले सोलह सोमवार त को करो । उसके
भाव से अपने क से मु हो सकोगी । गुंसाई क बात सुनकर रानी ने सोलह सोमवार त को विधपूव क स प न
कया और स हव सोमवार को पूजन के भाव से राजा के दय म वचार उ प न हआ
ु क रानी को गए बहत
ु समय
यतीत हो गया । न जाने कहां-कहां भटकती होगी, ढंू ढना चा हये ।
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वधाता क े कृ ित
जब क पृ वी पर मनु य का ज म नह ं हआ
ु था, उस समय क बात ह। आ खर वधाता ने च मा क मु कान,
गुलाब क सुग ध और अमृ त क माधुर को एक साथ िमलाया और िम ट के घरौद म भर दया। सब घर दे लगे
चहकने और महकने। दे वदत
ू ने वधाता क इस नई अनोखी रचना को दे खा तो आ य से च कत रह गये। उ ह ने
ा से पूछा, "यह या ह?" वधाता ने बताया, "इसका नाम ह जीवन। यह मेर सव े कृ ित ह।" वधाता क बात
पूर भी नह ं हो पाई थी क एक दे वदत
ू बीच ह म बोला पड़ा, " मा क जये भु! ले कन यह समझ म नह ं आया
क आने इसे िम ट का तन य दया? िम ट तो तु छ-से-तु छ ह, जड़ से भी जड़ ह। िम ट न लेकर आपने
कोई धातु य नह ं ली? सोना नह ं तो लोहा ह ले लेते।" वधाता के होठ पर एक मोहक मु कान खेल उठ । बोले,
"व स! यह तो जीवन का रह य ह। िम ट के शर र म मने संसार का सारा सुख-स दय, सारा वैभव, उड़े ल दया
ह। जड़ म आन द का चैत य फूंक दया ह। इसका जैसा चाहो, उपयोग कर लो। शर र को मह ा दे ने वाला िम ट
क जड़ता भोगेगा; जो इससे ऊपर उठे गा, उसे आन द के परत-परत-परत िमलगे। ले कन ये सब िम ट के घर दे
क तरह णक ह। इसिलए जीवन का येक ण मू यवान ् ह। जो जतना सोयेगा, उतना ह खोयेगा। तुम
िम ट के ह अवगुण को दे खते हो, गुण को नह ं। िम ट म ह अकुंर फूटते ह। मने शर र का कम े बनाया ह,
उसम कम के अंकुर जमगे। इस भांित मने मनु य को खेती उसके अपने ह हाथ म दे द ह। वह जैसा बीज
बोयेगा, वैसा ह फल काटे गा।"
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"ग धिलंग" दो भाग क तुर , चार भाग च दन और तीन भाग कुंकम से बनाया जाता ह।
िम ी(िचनी) से बने िशव िलंग क पूजा से रोगो का नाश होकर सभी कार से सुख द होती ह।
स ढ, िमच, पीपल के चूण म नमक िमलाकर बने िशविलंग क पूजा से वशीकरण और अिभचार कम के िलये कया जाता ह।
फूल से बने िशव िलंग क पूजा से भूिम-भवन क ाि होती ह।
ज , गेहुं , चावल तीनो का एक समान भाग म िम ण कर आटे के बने िशविलंग क पूजा से प रवार म सुख समृ
एवं संतान का लाभ होकर रोग से र ा होती ह।
कसी भी फल को िशविलंग के समान रखकर उसक पूजा करने से फलवा टका म अिधक उ म फल होता ह।
य क भ म से बने िशव िलंग क पूजा से अभी िस यां ा होती ह।
य द बाँस के अंकुर को िशविलंग के समान काटकर पूजा करने से वंश वृ होती है ।
दह को कपडे म बांधकर िनचोड़ दे ने के प ात उससे जो िशविलंग बनता ह उसका पूजन करने से सम त सुख एवं धन क
ाि होती ह।
गुड़ से बने िशविलंग म अ न िचपकाकर िशविलंग बनाकर पूजा करने से कृ ष उ पादन म वृ होती ह।
आंवले से बने िशविलंग का ािभषेक करने से मु ा होती ह।
कपूर से बने िशविलंग का पूजन करने से आ या मक उ नती दत एवं मु दत होता ह।
य द दवा
ु को िशविलंग के आकार म गूंथकर उसक पूजा करने से अकाल-मृ यु का भय दरू हो जाता ह।
फ टक के िशविलंग का पूजन करने से य क सभी अभी कामनाओं को पूण करने म समथ ह।
मोती के बने िशविलंग का पूजन ी के सौभा य म वृ करता ह।
वण िनिमत िशविलंग का पूजन करने से सम त सुख-समृ क वृ होती ह।
चांद के बने िशविलंग का पूजन करने से धन-धा य बढ़ाता ह।
पीपल क लकड से बना िशविलंग द र ता का िनवारण करता ह।
लहसुिनया से बना िशविलंग श ुओं का नाश कर वजय दत होता ह।
िशवप चा र तो म ्
नागे हाराय लोचनाय भ मा गरागाय महे राय। िन याय शु ाय दग बराय त मै न काराय नम: िशवाय॥१॥
िशवाय गौर वदना जवृ द सूयाय द ा वरनाशकाय। ीनीलक ठाय वृ ष वजाय त मै िश काराय नम: िशवाय ॥३॥
विस कु भो वगौतमाय मुनी दे वािचतशेखराय। च ाकवै ानरलोचनाय त मै व काराय नम: िशवाय ॥४॥
य व पाय जटाधराय पनाकह ताय सनातनाय। द याय दे वाय दग बराय त मै य काराय नम: िशवाय॥५॥
अथ :- जनके क ठ म साँप का हार है , जनके तीन ने ह, भ म ह जनका अ गराज (अनुलेपन) है , दशाएँ ह जनका व ह
(अथात ् जो न न ह) उन शु अ वनाशी महे र न कार व प िशव को नम कार है ॥1॥ ग गाजल और च दन से जनक अचना हई
ु
है , म दार-पु प तथा अ या य कुसुम से जनक सु दर पूजा हई
ु है , उन न द के अिधपित मथगण के वामी महे र म
कार व प िशव को नम कार है ॥2॥ जो क याण व प ह, पावती जी के मुखकमल को वकिसत ( स न) करने के िलए जो सूय
व प ह, जो द के य का नाश करने वाले ह, जनक वजा म बैल का िच है , उन शोभाशाली नीलक ठ िश कार व प िशव को
नम कार है ॥3॥ विस , अग य और गौतम आ द े मुिनय ने तथा इ आ द दे वताओं ने जनके म तक क पूजा क है ,
च मा, सूय और अ न जनके ने ह, उन व कार व प िशव को नम कार है ॥4॥ ज ह ने य प धारण कया है , जो जटाधार ह,
जनके हाथ म पनाक है , जो द य सनातन पु ष ह, उन दग बर दे व य कार व प िशव को नम कार है ॥5॥ जो िशव के समीप इस
प व प चा र का पाठ करता है , वह िशवलोक को ा करता और वहां िशवजी के साथ आन दत होता है ॥6॥
िशव के क याणकार मं
भगवान िशव क शी कृ पा ाि एवं ती कामना िस हे तु तेज वी मं के अनुभूत योग। इस मं ो के
मा यम से य अपनी सम त मनोकामनाओं क पूित कर य दन- ित दन सफलता क और अ त होकर
अपने जीवन म सुख समृ एवं शांित सरलता से ा कर सकते ह।
भगवान िशव के मं ो के जाप हे तु ा क माला उ म होती ह। जाप हे तु पूव या उ र दशा का चुनाव कर,
एवं उ र-पूव म मुख कर जाप करने से शी िस ा होती ह।
1. नमः िशवाय।
2. ॐ नमः िशवाय।
3. ं ठः।
4. ऊ व भू फ ।
5. इं ं मं औ ं अं।
6. नमो नीलक ठाय।
7. ॐ ं नमः िशवाय।
8. ॐ नमो भगवते द णामू ये म ं मेधा य छ वाहा।
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वजय ठाकुर
ावण सोमवार के दव त करने वाले य को सूय दय के समय से त ारं भ कर लेना चा हये एवं दन म एक
बार सा वक भोजन करना चा हए। त के दन िशव पावित क पूजा अचना के उपरांत त क समाि से पूव
सोमवार त क कथा सुनने का वधान ह।
यान के प ात 'ॐ नमः िशवाय' मं से िशवजी का तथा 'ॐ नमः िशवायै' मं से पावतीजी का षोडशो उपचार से
पूजन करना चा हये।
पूजन के प ात ावण सोमवार त कथा सुन।
त प ात आरती कर साद बाटदे ।
इसक प यात ह भोजन या फलाहार हण करना चा हये ।
ावण सोमवार त का फल
सोमवार त उपरो विध से करने पर भगवान िशव तथा माता पावती क कृ पा बनी रहती ह।
य का जीवन सुख समृ एवं ए य यु होकर य के सम त संकटो नाश हो जाते ह।
कम फल ह केवलं
व तक.ऎन.जोशी
गु आ ा पालक िश य उपम यु
व तक.ऎन.जोशी
मह ष अपने िश य को अ यंत े एवं सुयो य बनाना चाहते थे, इस िलए उनके ित कठोर यवहार रखते थे।
उपम यु बोला- गु दे व म िभ ा मांगकर अपना काम चलाता हंू । मह ष ने कहा व स चार को इस कार िभ ा ार
ा अ न नह ं खाना चा हए। िभ ा म तुमह जो कुछ िमले, वह गु को दे ना चा हए। उसम से य द गु कुछ द तो उसे हण करना
चा हए। उपम यु ने मह ष क बात मानकर िभ ा का अ न गु दे व को दे ना शु कर दया। ले कन मह ष उसम से कुछ भी
उपम यु को न दे ते। तब उसने अपनी भूख शांत करने के िलए दबारा
ु िभ ा मांगनी आरं भ कर द । गु दे व ने इस पर भी आप
जताई इससे गृ ह थ पर अिधक भार पड़े गा और दसरे
ू िभ ा मांगने वाल को भी संकोच होगा। थोड़े दन बाद मह ष ने फर पूछा,
तो उपम यु ने बताया क म गाय का दध
ू पी लेता हंू । तब मह ष ने तक दया क गाय तो मेर ह और मुझसे बना पूछे वह दध
ू
तुमह नह ं पीना चा हए। तब उपम यु ने बछड़ के मुख से िगरने वाले फेन से अपनी भूख िमटाना शु कया कंतु मह ष ने वह भी
बंद करवा दया। तब उपम यु उपवास करने लगा। एक दन भूख के अस होने पर उसने आक के प े खा िलए, जसके वष से
वह अंधा होकर जल र हत कुंए म िगर गया।
या आप जानते ह?
महाभारत क रचना इसी गु पू णमा के दन पूण हई
ु थी।
व के सु िस आष ंथ सू का लेखन काय गु पू णमा के आरं भ कया गया था।
दे वलोक म दे वताओं ने वेद यासजी का पूजन गु पू णमा के दन कया था। इस िलये इस दन वेद यास का
पूजन कया जाता ह एवं इस पू णमा को यासपू णमा भी कहा जाता ह।
राजे ताप
सतीजी के दे ह याग के प ात जब िशव जी तप या म लीन हो गये थे उस समय तारक नाम का एक असुर हआ।
ु जसने
अपने भुजबल, ताप और तेज से सम त लोक और लोकपाल पर वजय ा कर िलया जसके फल व प सभी दे वता सुख और
स प से वंिचत हो गये। सभी कार से िनराश दे वतागण ा जी के पास सहायता के िलये पहँु चे। ा जी ने उस सभी दे वता को
बताया, इस दै य क मृ यु केवल िशव जी के वीय से उ प न पु के हाथ ह हो सकती ह। ले कन सती के दे ह याग के बाद िशव
जी वर हो कर तप या म लीन हो गये ह। सती जी ने हमाचल के घर पावती जी के प म पुनः ज म ले िलया ह। अतः िशव जी
का पावती से ववाह करने के िलये उनक तप या को भंग करना आव यक ह। आप लोग कामदे व को िशव जी के पास भेज कर
उनक तप या भंग करवाओ फर उसके बाद हम उ ह पावती जी से ववाह के िलये राजी करवा लगे।
ा जी के आदे श अनुसार दे वताओं ने कामदे व से िशव जी क तप या भंग करने का अनुरोध कया। इस पर कामदे व ने
कहा, िशव जी क तप या भंग कर के मेरा कुशल नह ं होगा तथा प म आप लोग का काय िस क ँ गा।
इतना कहकर कामदे व पु प के धनुष से सुस जत होकर वस ता द अपने सहयोगी को अपने साथ लेकर िशवजी के तप या
करने वाले थान पर पहँु च गये। वहाँ पर पहँु च कर कामदे व ने अपना ऐसा भाव दखाया क वेद क सार मयादा धर क धर
रह गई। कामदे व के इस भाव से भयभीत होकर चय, संयम, िनयम, धीरज, धम, ान, व ान, वैरा य आ द जो ववेक के
गुण कहलाते ह, भाग कर िछप गये। स पूण जगत ् म ी-पु ष एवं कृ ित का सम ाणी समुह सब अपनी-अपनी मयादा
छोड़कर काम के वश म हो गये। आकाश, जल और पृ वी पर वचरण करने वाले सम त पशु-प ी सब कुछ भुला कर केवल काम
के वश हो गये। हजारो साल से तप या कर िस , वर , महामुिन और महायोगी बनी व ान भी काम के वश म होकर योग
संयम को याग ी सुख पाने म म न हो गये। तो मनु य क बात ह या हो सकती ह?
एसी थती होने के प यात भी कामदे व के इस कौतुक का िशव जी पर कुछ भी भाव नह ं पड़ा। इससे कामदे व भी
भयभीत हो गये क तु अपने काय को पूण कये बना वापस लौटने म उ ह संकोच हो रहा था । इसिलये उ ह ने त काल अपने
सहायक ऋतुराज वस त को कट कर कया। वृ पु प से सुशोिभत हो गये, वन-उपवन, बावली-तालाब आ द हरे भेरे होकर
परम सुहाने हो गये, शीतल एवं मंद-मंद सुग धत पवन चलने लगा, सरोवर कमल पु प से प रपू रत हो गये, पु प पर मर
बीन-बीना ने लगे । राजहं स, कोयल और तोते रसीली बोली बोलने लगे, अ सराएँ नृ य एवं गान करने लगीं।
इस पर भी जब तप यारत िशव जी का कुछ भी भाव न पड़ा तो ोिधत कामदे व ने आ वृ क डाल पर चढ़कर अपने पाँच
ू गई जससे उ ह अ य त
ती ण पु प बाण को छोड़ दया जो क िशव जी के दय म जाकर लगे। उनक समािध टट ोभ हआ।
ु
आ वृ क डाल पर कामदे व को दे ख कर िशवजी ोिधत हो कर उ ह ने अपना तीसरा ने खोल दया और दे खते ह दे खते
कामदे व भ म हो गये।
िशव और सती का े म।
व तक ऎन जोशी
द जापित क कई पु यां थी। सभी पु यां गुणवती थीं। फर भी द के मन म संतोष नह ं था। वे चाहते
थे उनके घर म एक ऐसी पु ी का ज म हो, जो सव श -संप न हो एवं सव वजियनी हो। जसके कारण द एक
ऐसी ह पु ी के िलए तप करने लगे। तप करते-करते अिधक दन बीत गए, तो भगवती आ ा ने कट होकर कहा, 'म
तु हारे तप से स न हंू । तुम कस कारण वश तप कर रहे ह ? द न तप करने का कारण बताय तो मां बोली म
वय पु ी प म तु हारे यहां ज म धारण क ं गी। मेरा नाम होगा सती। म सती के प म ज म लेकर अपनी
लीलाओं का व तार क ं गी। फलतः भगवती आ ा ने सती प म द के यहां ज म िलया। सती द क सभी पु य
म सबसे अलौ कक थीं। सतीने बा य अव था म ह कई ऐसे अलौ कक आ य चिलत करने वाले काय कर दखाए थे,
ज ह दे खकर वयं द को भी व मयता होती रहती थी। जब सती ववाह यो य होगई, तो द को उनके िलए वर
क िचंता होने लगी। उ ह ने ा जी से इस वषय म परामश कया। ा जी ने कहा, सती आ ा का अवतार ह।
आ ाआद श और िशव आ द पु ष ह। अतः सती के ववाह के िलए िशव ह यो य और उिचत वर ह। द ने ा
जी क बात मानकर सती का ववाह भगवान िशव के साथ कर दया। सती कैलाश म जाकर भगवान िशव के साथ
रहने लगीं। भगवान िशव के द के दामाद थे, कंतु एक ऐसी घटना घट त होगई जसके कारण द के दय म
भगवान िशव के ित बैर और वरोध भाव पैदा हो गया।
एक बार दे वलोक म ा ने धम के िन पण के िलए एक सभा का आयोजन कया था। सभी बड़े -बड़े दे वता
सभा म एक होगये थे। भगवान िशव भी इस सभा म बैठे थे। सभा म डल म द का आगमन हआ।
ु द के
आगमन पर सभी दे वता उठकर खड़े हो गए, पर भगवान िशव खड़े
नह ं हए।
ु उ ह ने द को णाम भी नह ं कया। फलतः द
ने अपमान का अनुभव कया। केवल यह नह ं, उनके
दय म भगवान िशव के ित ई या क आग जल
उठ । वे उनसे बदला लेने के िलए समय और अवसर
क ती ा करने लगे।
इस पर सती ने दसरा
ू कया या मेरे पता ने आपको य म स मिलत होने के िलए नह ं बुलाया?
भगवान शंकर ने उ र दया, आपके पता मुझसे बैर रखते है, फर वे मुझे य बुलाने लगे?
सती मन ह मन सोचने लगीं फर बोलीं य के इस अवसर पर अव य मेर सभी बहन आएंगी। उनसे िमले हए
ु बहत
ु
दन हो गए। य द आपक अनुमित हो, तो म भी अपने पता के घर जाना चाहती हंू । य म स मिलत हो लूंगी और
बहन से भी िमलने का सुअवसर िमलेगा। भगवान िशव ने उ र दया, इस समय वहां जाना उिचत नह ं होगा। आपके
पता मुझसे जलते ह हो सकता ह वे आपका भी अपमान कर। बना बुलाए कसी के घर जाना उिचत नह ं होता ह।
इस पर सती ने कया एसा यु?
ं भगवान िशव ने उ र दया ववा हता लड़क को बना बुलाए पता के घर नह
ू जाता ह।
जाना चा हए, य क ववाह हो जाने पर लड़क अपने पित क हो जाती ह। पता के घर से उसका संबंध टट
ले कन सती पीहर जाने के िलए हठ करती रह ं। अपनी बात बार-बात दोहराती रह ं। उनक इ छा दे खकर भगवान िशव
ने पीहर जाने क अनुमित दे द । उनके साथ अपना एक गण भी साथ म भेज दया उस गण का नाम वीरभ था।
सती वीरभ के साथ अपने पता के घर ग ।
घर म सतीसे कसी ने भी ेमपूव क वातालाप नह ं कया। द ने उ ह दे खकर कहा तुम या यहां मेरा अपमान
पता के कटु और अपमानजनक श द सुनकर भी सती मौन रह ं। वे उस य मंडल म ग जहां सभी दे वता और
ॠ ष-मुिन बैठे थे तथा य कु ड म धू-धू करती जलती हई
ु अ न म आहितयां
ु डाली जा रह थीं। सती ने य मंडप म
सभी दे वताओं के तो भाग दे ख,े कंतु भगवान िशव का भाग नह ं दे खा। वे भगवान िशव का भाग न दे खकर अपने पता
से बोलीं पतृ े ! य म तो सबके भाग दखाई पड़ रहे ह कंतु कैलाशपित का भाग नह ं ह। आपने उनका भाग य
नह ं रखा? द ने गव से उ र दया म तु हारे पित िशव को दे वता नह ं समझता। वह तो भूत का वामी, न न रहने
वाला और ह डय क माला धारण करने वाला ह। वह दे वताओं क पं म बैठने यो य नह ं ह। उसे कौन भाग दे गा?
सती के ने लाल हो उठे । उनक भ हे कु टल हो ग । उनका मुखमंडल लय के सूय क भांित तेजो हो उठा।
उ ह ने पीड़ा से ितलिमलाते हए
ु कहा ओह! म इन श द को कैसे सुन रह ं हंू मुझे िध कार ह। दे वताओ तु ह भी
िध कार ह! तुम भी उन कैलाशपित के िलए इन श द को कैसे सुन रहे हो जो मंगल के तीक ह और जो ण मा
म संपूण सृ को न करने क श रखते ह। वे मेरे वामी ह। नार के िलए उसका पित ह वग होता ह। जो नार
अपने पित के िलए अपमान जनक श द को सुनती ह उसे नरक म जाना पड़ता ह। पृ वी सुनो, आकाश सुनो और
दे वताओं, तुम भी सुनो! मेरे पता ने मेरे वामी का अपमान कया ह। म अब एक ण भी जी वत रहना नह ं चाहती।
सती अपने कथन को समा करती हई
ु य के कु ड म कूद पड़ । जलती हई
ु आहितय
ु के साथ उनका शर र भी जलने
लगा। य मंडप म खलबली पैदा हो गई, हाहाकार मच गया। दे वता उठकर खड़े हो गए। वीरभ ोध से कांप उटे । वे
उ ल-उछलकर य का व वंस करने लगे। य मंडप म भगदड़ मच गई। दे वता और ॠ ष-मुिन भाग खड़े हए।
ु वीरभ
ने दे खते ह दे खते द का म तक काटकर फक दया। समाचार भगवान िशव के कान म भी पड़ा। वे चंड आंधी क
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GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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दे वराज इं भी कई आभूषण पहन अपने ऐरावत गज पर बैठ वहाँ पहँु चे थे। सभी मुख ऋ ष भी वहाँ आ गए थे। तु बु ,
नारद, हाहा और हह
ू ूआद े गंधव तथा क नर भी िशवजी क बारात क शोभा बढ़ाने के िलए वहाँ पहँु च गए थे। इनके साथ ह
सभी जग माताएँ, दे वक याएँ, दे वयाँ तथा प व दे वांगनाएँ भी वहाँ आ गई थीं। इन सभी के वहाँ िमलने के बाद भगवान शंकरजी
अपने फु टक जैसे उ वल, सुंदर वृ षभ पर सवार हए।
ु द ू हे के वेश म िशवजी क शोभा िनराली ह छटक रह थी। इस द य और
विच बारात के थान के समय डम ओं क डम-डम, शंख के गंभीर नाद, ऋ षय -मह षय के मं ो चार, य , क नर ,
ग धव के सरस गायन और दे वांगनाओं के मनमोहक नृ य और मंगल गीत क गूँज से तीन लोक प र या हो उठे ।
उधर हमालय ने ववाह के िलए बड़ धूम-धाम से तैया रयाँ क ं और शुभ ल न म िशवजी क बारात हमालय के ार पर आ
लगी। पहले तो िशवजी का वकट प तथा उनक भूत- ेत क सेना को दे खकर मैना बहत
ु डर ग और उ ह अपनी क या का
पा ण हण कराने म आनाकानी करने लगीं। पीछे से जब उ ह ने शंकरजी का करोड़ कामदे व को लजाने वाला सोलह वष क
अव था का परम लाव यमय प दे खा तो वे दे ह गेह क सुिध भूल ग और शंकर पर अपनी क या के साथ ह साथ अपनी आ मा
को भी योछावर कर दया। िशव गौर का ववाह आनंद पूव क संप न हआ।
ु हमाचल ने क यादान दया। व णु भगवान तथा
अ या य दे व और दे व-रम णय ने नाना कार के उपहार भट कए। ाजी ने वेदो र ित से ववाह करवाया। सब लोग अिमत
उ साह से भरे अपने-अपने थान को लौट गए।
ी यं
" ी यं " सबसे मह वपूण एवं श शाली यं है । " ी यं " को यं राज कहा जाता है यो क यह
अ य त शुभ फ़लदयी यं है । जो न केवल दसरे
ू य ो से अिधक से अिधक लाभ दे ने मे समथ है
एवं संसार के हर य के िलए फायदे मंद सा बत होता है । पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य यु
" ी यं " जस य के घर मे होता है उसके िलये " ी यं " अ य त फ़लदायी िस होता है उसके
दशन मा से अन-िगनत लाभ एवं सुख क ाि होित है । " ी यं " मे समाई अ ितय एवं अ य
श मनु य क सम त शुभ इ छाओं को पूरा करने मे समथ होित है । ज से उसका जीवन से
हताशा और िनराशा दरू होकर वह मनु य असफ़लता से सफ़लता क और िनर तर गित करने
लगता है एवं उसे जीवन मे सम त भौितक सुखो क ाि होित है । " ी यं " मनु य जीवन म
उ प न होने वाली सम या-बाधा एवं नकारा मक उजा को दरू कर सकार मक उजा का िनमाण
करने मे समथ है । " ी यं " क थापन से घर या यापार के थान पर था पत करने से वा तु दोष
य वा तु से स ब धत परे शािन मे युनता आित है व सुख-समृ , शांित एवं ऐ य क ि होती
है । गु व कायालय मे " ी यं " १२ ाम से ७५ ाम तक क साइज मे उ ल ध है
गु सेवा
व तक ऎन जोशी
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द र ता से मु
िचंतन जोशी
अहो दःखमहो
ु दःखमहो
ु दःखं
ु द र ता (द र ता य का सब से बडा दःख
ु ह)
इन श दो से तो एसा ितत होता ह मानो य इन श दो का योग करके अपने द र होने का गौरव य कर रहा ह !
मानो जेसे द र ता उसके िलये कसी जंग म जीते हवे
ु मेडल जेसी ह ! एसे ह म पैदा करने वाली धारणाओं के चलते य का
आज यह हाल ह। एवं इसी कारण वह धन उ से दन ित दन दरू होता चलाजाता ह। इस िलये कुछ लोगो के पास म जीवन के
सभी सुख साधन उ ल ध होते ह तो कोइ भीख मांग रहा होता ह।
दर य अपनी गलतीयां अपने नसीब और भगवान पर लाद दे ते ह। एसा य अपनी गलतीयां सुधार कर अपने कम
के बल से धनवान नह ं बनना चाहता। इस कारण य वयं ह अपने भा य को कोस रहा ह।
य अपने जीवन म द र ता को पीछे छोड आगे बढने के उपाय खोजने बजाय एसे श दो का योग कर अपने आस-पास
म नकारा मक उजा (ओरा) िनिमत करलेता ह। जसके फल व प नकार मक उजा उसे जीवन म अथक पर म करने के बावजूद
भी उसे उिचत सफलता दलाने हे तु असमथ रहती है । य द य के मन म ह द र ता का नकारा मक भाव घर कर गया ह तो
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उसके जीवनम धन-समृ केसे आयेगी? केसे वह य जीवन के सम त भौितक सुख समृ एवं ऎ य को ा करने म
सफल हो पायेग? हाल क हर य धन ाि हे तु मेहनत करने क इ छा नह ं रखता, ले कन उसक खूब गती हो, वह जीवन म
खूब आगे बढे , ढे र सारा धन कमाये एसे दवा व न वह खूब दे खता ह, उसे व न लोक म वचरण करना तो रास आता ह, ले कन
य अपने उन सपनो को पूण करने का साथक यास नह ं करता।
उ प ते वलीय ते द र ाणां मनोरथाः । (अथात:द र मानव क इ छाएँ मन म उठती ह और मनम ह वलीन हो जाती ह
अथवा पूर नह ं हो पाती)
सामा य य जब अपने धनवान होने के व न दे खता ह तो उसे लगता ह वह गलत च कर म पड जायेगा, इस िलये
यादातर मामलो म य अपने धनवान होने का वचार यह ं पर रोक दे ता ह। य ह सबसे बड भूल हो जाती ह, धनवान होने क
वचार को य को रोकना नह ं चा हये। उन वचार को अपने अंतर मन म वेश करने द, उन वचार को समय के साथ साथ ढ
बनाए। वतमान क ितकूल पर थती को यानम रखने के साथ ह भ व य म समृ ा करने के वचार भी अपने अंदर
तरं गीत करते रह।
हमारे ॠषी-मुनी ने हजारो वष पूव अपने तपोबल से ात कर िलया था क मनु य क श यां अपार और अनंत ह। जीसे
आज का आधुिनक व ान भी मान चुका ह क एक य अपनी वा तवीक श का मा ३(तीन) ितशत इ तेमाल करता ह।
िथक इसी कार आपके भीतर भी परमा मा क अपार श यां मौजुद ह बस उन श ओं को उजागर करने क ज रत मा ह, आप
अपने अंदर उठनेवाली इन तरं गो के कारण आपके आस-पास का वातावतण सकारा मक उजा से भर जायेगा एवं यह उजा आपके
अंतर मन क गहराई तक वेश कर गई तो इन श यो से आपको आ म बल क ाि होगी जो आपको इस और अ त होने का
माग वतः ह खूलने लगेगा। फर आपक मं झल आपसे दरू नह ं रह जायेगी। य य द एक बार चाहले तो वह अपनी थती म
प रवतन लासकता ह बस ज रत ह एक ढ संक प क।
यो क आप यहा अपनी िनधनता का कारणा भी ढंू ढ लेता ह, इस िलये आप िनधन ह। अभी तक मेने समृ पाने के
सभी यास कये जो िन फल रहे , और आप मेरे से दरू ह रह ह। इस िलये मुझे व ास नह ं ह, और मेने तुजे पाने के इ छाभी
यागद ह। यो क तुझे पानेका जतना चाहे यास करलूं पत आप िमलोगे उसक मुझे आशा नह ं ह।
जस य के भीतर एसे वचार आते हो वह केसे धनवान हो सकता ह! ल मी ाि हे तु मं जाप साधना इ या द करले
पर मनम य द अल मी के वचार घर कर जाये फर य द र रह जाये इसम कोन सी नयी बात ह।
द र ता-गर बी-द नता ह नता एक अिभशाप ह। गर ब या िनधन य को सब लोग ओिछ नजरोसे दे खते ह, उसका सब
ितर कार करते ह, अपमािनत करते ह एवं िनधन य हमेशा समाज क अवहे लना का िशकार होता ह।
य मेहनत मेहनत करता ह, मजदरू करता ह। उसक मेहनत का उसे पूरा मू य भी नह ं िमलता!, वह मांग भी नह ं
सकता। उसका चार और से शोषण होता ह, लोग उसक मजबूर का फायदा उठाते ह।
सामा य सामान उठाने वाले मजदरू जो फटे कपडोम होते ह उसे उसक मजदरू का 15-20 पये दे ने के िलये आनाकानी कर उसे 5-
10 पये दे नेवाले लोग हमने बहोत दे खे ह वह ं लोग बड होटल म सूट-बूटा टाई बांधे वेटरको उसके बीना मंगे अपना तबा और
अपने धनवान होने का दखा करने के िलये उसे 50-100 पये ट प म दे ने से नह ं हच कचात एसे लोग भी बहोत दे खे ह हमने और
आपने।
यहा गहराई से सोचने वाली एक बात ह यहा य वह ं ह िसफ उसके आस-पासका माहोल बदल जाता ह, और इस माहोल
के बदलने से उसके वतन म बदलाव आजाता ह। इसाका कारण ह मजदरू का वयं का धन नह ं ा करने क अपनी अ मता,
द र ता का वचार करना एवं उसका द र दखना इन दोनो कारणो से धनवान मजदरू को दबाता ह।
यह कहावत हो आपने सुिनह होगी "जो दखता ह वह ं बकता ह" इसी कारण से वेटर अपनी उ म सेवा एवं रौबदार कपडो
के दम के साथ उसक आसपासका महौल जो क आिलशान एवं शानदार होता ह। इस कारण से उ ह टप के तौरपर बना मांगे
पये िमलजाते ह।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 47 vxLr 2010
अथात: कुपा को दान दे ने से द र बनता है । दा र य दोष से पाप होता है । पाप के भाव से नरक म जाता है ; फर से द र और
फर से पाप होता है ।
हमने बहोत सारे एसे लोग भी दे खे ह जो हर म हने हजारो लाखो पये कमाते ह फर भी अ य लोगो के
सामने रोते फरते ह, मेरे पास धन नह ं ह, घर म खाने के पैसे नह ं ह, मेर तो हालत बहोत खरब चल रह ं
ह............ इ या द ढे रो वा य सुने ह।
इस िलये आप चाह जस कसी भी कारण से िनधन हो, तो आप िनराश मत होईये आल य एवं नकारा म वचार को
यागकर अपने यासो को सफल बनाने हे तु यास रत हो जाए। य द आपको अपने काय म सफल होने का मग ा नह ं हो रहा
ह। तो आप आ या मक मा यम से सहायता ा करने का यास कर।
>> आने वाले अ टू बर/नव बर अंक म म द र ता िनवारण हे तु अनेको जानकार एवं उपाय उपल ध कराने हे तु हम यास रत ह।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 48 vxLr 2010
दोष त का मह व
िचंतन जोशी
रखना, लोहा, ितल, काली उड़द, शकरकंद, मूली, कंबल,
जूता और कोयला आ द दान करने से शिन का कोप
भी शांत हो जाता ह, ज से य के रोग, यािध,
द र ता, घर क अशांित, नौकर या यापार म परे शानी
आ द का वतः िनवारण हो जाएगा।
भौम दोष त एवं शिन दोष त के दन
िशवजी, हनुमानजी, भैरव क पूजा-अचना करना भी
लाभ द होता ह। गु वार के दन पडने वाला दोष त
वशेष कर पु कामना हे तु या संतान के शुभ हे तु रखना
उ म होता ह। संतानह न दं प य के िलए इस त पर
घरम िम ान या फल इ या द गाय को खलाने से शी
शुभ फलक ाि होित ह। संतान क कामना हे तु 16
दोष त करने का वधान ह, एवं संतान बाधा म शिन
दोष त सबसे उ म मनागया ह।
दोष त के दन पित-प ी दोनो ातः
नान इ या द िन य कम से िनवृ त होकर िशव, पावती
दोष त हर मह ने म दो बार शु ल प और और गणेशजी क एक साथम आराधना कर कसी भी
कृ ण प क ादशी के दन होता ह। य द इन ितिथय को िशव मं दर म जाकर िशविलंग पर जल िभषेक, पीपल
सोमवार होतो उसे सोम दोष त कहते ह, य द मंगल के मूल म जल चढ़ाकर सारे दन िनजल रहने का
वार होतो उसे भौम दोष त कहते ह और शिनवार होतो वधान ह।
उसे शिन दोष त त कहते ह। वशेष कर सोमवार, संतानह नता या संतान के ज म के बाद भी
मंगलवार एवं शिनवार के दोष त अ यािधक य द नाना कार के क व न बाधाएं, रोजगार के साथ
भावकार माने गये ह। साधारण तौर पर हमारे यहा पर सांसा रक जीवन से परे शािनया ख म नह ं हो रह ह, तो
ा शी एवं योदशी क ितिथ को दोष ितिथ कहते ह। इस उस य के िलए ित माह म पड़ने वाले दोष त
दन त रखने का वधान ह। पर जप, दान, त इ या द पू य काय करना शुभ
दोष त का मह व कुछ इस कार का फल द होता ह।
बताया गया ह क य द य को सभी तरह के जप, योितष क से जो य चं मा के
तप और िनयम संयम के बाद भी य द उसके गृ ह थ कारण पी डत हो उसे वष भर दोष त पर चहे वह
जीवन म दःख
ु , संकट, लेश आिथक परे शािन, कसी भी वार को पडता हो उसे दोष त अव य
पा रवा रक कलह, करना चा हये। दोष त पर उपवास
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GURUTVA KARYALAY
NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
*** Super fine & Special Quality Not Available Easily. We can try only after getting order
fortunately one or two pieces may be available if possible you can tack corres pondence about
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मं िस कवच
मं िस कवच को वशेष योजन म उपयोग के िलए और शी भाव शाली बनाने के िलए तेज वी मं ो ारा
शुभ महतू म शुभ दन को तैयार कये जाते है अलग अलग कवच तैयार करने केिलए अलग अलग तरह के
. - -
य चुने मं िस कवच?
उपयोग म आसान कोई ितब ध नह ं
कोई वशेष िनित-िनयम नह ं
कोई बुरा भाव नह ं
कवच के बारे म अिधक जानकार हे तु
कवच सूिच
सव काय िस कवच - 3700-/ ऋण मु कवच – 730/- वरोध नाशक कवचा- 550-/
सवजन वशीकरण कवच - 1050-/* नव ह शांित कवच – 730/- वशीकरण कवच – 460/-* )2-3 य के िलए(
अ ल मी कवच – 1050/- तं र ा कवच – 730/- प ी वशीकरण कवच – 460/-*
आक मक धन ाि कवच – 910/- श ु वजय कवच – 640/-* नज़र र ा कवच – 460/-
भूिम लाभ कवच – 910/- पद उ नित कवच – 640/- यापर वृ कवच- 370-/
संतान ाि कवच – 910/- धन ाि कवच – 640/- पित वशीकरण कवच – 370/-*
काय िस कवच – 910/- ववाह बाधा िनवारण कवच – 640/- दभा
ु य नाशक कवच – 370/-
काम दे व कवच – 820/- म त क पृ वधक कवच – 640/- सर वती कवक – 370/-) क ा+ 10 के िलए(
जगत मोहन कवच -730/-* कामना पूित कवच – 550/- सर वती कवक -280/-) क ा 10 तक के िलए(
पे - यापर वृ कवच – 730/- व न बाधा िनवारण कवच – 550/- वशीकरण कवच – 280/-* ) 1 य के िलए(
सव काय िस कवच
जस य को लाख य और प र म करने के बादभी उसे मनोवांिछत सफलताये एवं कये गये काय
म िस (लाभ) ा नह ं होती, उस य को सव काय िस कवच अव य धारण करना चा हये।
कवच के मुख लाभ: सव काय िस कवच के ारा सुख समृ और नव ह के नकारा मक भाव को
शांत कर धारण करता य के जीवन से सव कार के द:ु ख-दा र का नाश हो कर सुख-सौभा य एवं
उ नित ाि होकर जीवन मे सिभ कार के शुभ काय िस होते ह। जसे धारण करने से य यद
यवसाय करता होतो कारोबार मे वृ होित ह और य द नौकर करता होतो उसमे उ नित होती ह।
सव काय िस कवच के साथ म सवजन वशीकरण कवच के िमले होने क वजह से धारण करता
क बात का दसरे
ू य ओ पर भाव बना रहता ह।
सव काय िस कवच के साथ म तं र ा कवच के िमले होने क वजह से तां क बाधाए दरू
होती ह, साथ ह नकार मन श यो का कोइ कु भाव धारण कता य पर नह ं होता। इस
कवच के भाव से इषा- े ष रखने वाले य ओ ारा होने वाले द ु भावो से र ाहोती ह।
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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i Xkq:Ro T;ksfr”k 53 vxLr 2010
महाकाल तवन
ािभषेक तो
ॐ सवदे वता यो नम :
महादे वाय भीमाय य बकाय च शा तये । ईशानाय मख नाय नमोऽ व धकघाितने ॥२॥
कुमारगुरवे तु यम ् नील ीवाय वेधसे । पना कने हव याय स याय वभवे सदा ॥३॥
व ाय सवाय शंकराय िशवाय च । नमोऽ तु वाच पतये जानां पतये नम: ॥८॥
एवं तु वा महादे वं वासुदेव: सहाजुन: । सादयामास भवं तदा ोपल धये ॥११॥
िशवा कम
ी ा कम
ा किमदं ो ं व ेण हरतोषये।
ये पठ त नरा भ या तेषां श भु: सीदित॥९॥
॥इित ी ा कम संपूण॥
i Xkq:Ro T;ksfr”k 59 vxLr 2010
िलंगा कम
मुरा रसुरािचत िलगं िनमलभा षतशोिभत िलंग।
ज मजदःख
ु वनाशक िलंग त णमािम सदािशव िलंगं॥१॥
िशवम ह न तो म ्
तवै य य जगददयर
ु ा लयकृ त यी व तु य तं ितसृ षु गुणिभ नासु तनुषु ।
अभ यानाम मन ् वरद रमणीयामरमणीं वहं तुं यो ोशीं वदधत इहै के जडिधयः ॥४॥
किमहः कंकायः स खलु कमुपाय भुवनं कमाधारो धाता सृ जित कमुपादान इित च ।
अतकय य व यनवसरदःु थो हतिधयः कुतक डयंकां मुखरयित मोहाय जगतः ॥५॥
व
ु ंक सव सकलमपर व ुविमदं परो ो या ो ये जगित गदित य त वषये ।
सम तेड येत म पुरमथन तै व मत इव तुवं ज े िम वां न खलु ननु धृ ा मुखरता ॥९॥
तवै य य ा दप
ु र व रं िचह ररधः प र छे तुं याता वनलमनल कंधवपुषः ।
ततो भ ा भरगु गृ ण यां िग रश यत ् वयं त थे ता यां तव कमनुव ृ ने फलित ॥१०॥
अिस ाथा नैव कविचद प सदे वासुरनरे िनवत ते िन यं जगित जियनो य य विशखाः ।
स प य नीश वािमतरस रसाधारणमभूत ् मरः मत या मा न ह विशषु प यः प रभवः ॥१५॥
***************
ा कृ त िशव तो
नम ते भगवान भा करािमत तेजसे।
नमो भवाय दे वाय रसाया बुमया मन॥१॥
***************
i Xkq:Ro T;ksfr”k 64 vxLr 2010
िशव आरती
जय िशव ओंकारा, ॐ जय िशव ओंकारा।
ा, व णु, सदािशव, अ ागी धारा॥ ॐ जय िशव ओंकारा………
कर के म य कमंडलु च शूलधार ।
सुखकार दखहार
ु जगपालन कार ॥ ॐ जय िशव ओंकारा………
ल मी व सा व ी पावती संगा।
पावती अ ागी, िशवलहर गंगा॥ ॐ जय िशव ओंकारा………
िशव तांडव तो
जटाटवीग ल जल वाहपा वत थले गलेऽवल यल बतां भुजंगतुंगमािलकाम।्
डम डम डम डम ननादव डमवयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः िशवः िशवम ॥१॥
जय वद व म म जं
ु गम फुर- ग ग िनगम कराल भाल ह यवा -
िधिम िम िम न मृ दंगतुंगमंगल- विन म वितत च ड ता डवः िशवः ॥११॥
*******
मािसक रािश फल
िचंतन जोशी
मेष:समय थोडा ितकूल ह अतः एहितयात वत एवं संयम तुला : अपने िनजी अनुभव से काय कर। प रवार िम ो से
बनाये रखने म समझदार ह। धन हानी के योग बन रह संबंध म सुधार होगा एवं लाभ ा होगा। थोडे से प र म
ह। आपको अपनी इ छा से व काय करने पड सकते से अिधक लाभ ा कर सकते ह। अनैितक काय से दरू
ह। श ु सरकार से परे शानी संभव ह। रह। िनवेश करने से नु शान होगा।
कक : समय के साथ चलने म व ास रख, अिधक प र म मकर : मानिसक परे शानी बनी रहे गी। काय म य तता
के बाद थोडा लाभ ा होगा। कोई भी नये काम म रहे गी। अिधक या ा संभव ह। अिधकार वग से लाभ ा
ज दबाजी अिधक नु शान दान करे गी। अपने आप कर होगा। धन संबंिधत मामलो म सामा य लाभ ा होने के
काबू रखे अ यथा पा रवा रक लेष बढने क संभावना ह। योग ह। पा रवा रक सम याए बनी रहे गी।
िसंह : धन लाभ होगा, यापर, नौकर से उ नित एवं लाभ कुंभ : थती सामा य रहे गी। यवसाय और नौकर म
के बल योग ह। ले कन अपने खच पर िनयं ण रखने वशेष लाभ ा होगा। काय े म गती होगी। धन के
क अिधक आव यकता रहे गी। यथ म दसरो
ू से उलझने मामले मे समय सामा य ह वा य भी पूव क अपे ा
से बचे। वा य उ म रहे गा खान-पान पर संयम बत। उ म रहे गा। बकाया धन ा होने के योग ह।
4 ावण कृ ण नवमी 22:49:37 कृ ितका 29:42:07 वृ 26:37:26 तैितल 10:53:22 मेष 11:23:00
6 ावण कृ ण एकादशी 20:35:45 मृगिशरा 28:29:11 याघात 22:35:45 बव 09:25:26 वृष 17:04:00
10 ावण कृ ण अमाव या 08:38:56 आ ेषा 19:04:15 यितपात 08:26:45 नाग 08:38:56 कक 19:04:00
12 ावण शु ल तृतीया 21:31:36 पूवाफा गुनी 13:15:40 िशव 20:00:40 तैितल 11:16:36 िसंह 18:35:00
ावण शु ल ादशी 15:40:13 पूवाषाढ़ 12:29:54 आयु मान 29:31:46 बालव 15:40:13 धनु 19:08:00
ावण शु ल योदशी 17:48:14 उ राषाढ़ 15:11:40 सौभा य 30:21:03 तैितल 17:48:14 मकर
ावण शु ल पू णमा 22:35:13 धिन ा 21:03:20 सोभन 07:16:28 व ी 09:21:09 मकर 07:33:00
भा पद कृ ण तीया 27:24:04 पूवाभा पद 26:58:45 सुकमा 09:12:49 तैितल 14:13:45 कुंभ 20:15:00
भा पद कृ ण पंचमी 07:34:02 रे वित 08:17:09 गंड 11:19:58 बालव 07:34:02 मीन 08:17:00
1 ावण कृ ण ष ी 20:36:41
10 ावण कृ ण अमाव या 08:38:56 मंगला गौर पूजन त, नानदान, ह रयाली अमाव या,
i Xkq:Ro T;ksfr”k 70 vxLr 2010
23 ावण शु ल चतुदशी 20:08:27 ावण सोमवार, ओणम (के), सौर शर ऋतु ारं भ
31 भा पद कृ ण स मी 10:18:10
i Xkq:Ro T;ksfr”k 71 vxLr 2010
योग फल :
काय िस योग मे कये गये शुभ काय मे िन त सफलता ा होती ह, एसा शा ो वचन ह।
अमृ त योग म कये गये काय म शुभ फल क ाि होती ह। एसा शा ो
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ तीन गुना होता ह। एसा शा ो वचन ह।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 72 vxLr 2010
सूचना
प का म कािशत सभी लेख प का के अिधकार के साथ ह आर त ह।
प का म कािशत कसी भी नाम, थान या घटना का उ लेख यहां कसी भी य वशेष या कसी भी थान या
घटना से कोई संबंध नह ं है .
अ य लेखको ारा दान कये गये लेख/ योग क ामा णकता एवं भाव क ज मेदार कायालय या संपादक
क नह ं ह। और नाह ं लेखका के पते ठकाने के बारे म जानकार दे ने हे तु कायालय या संपादक कसी भी
कार से बा य नह ं ह।
हमारे ारा पो ट कये गये सभी लेख हमारे वष के अनुभव एवं अनुशंधान के आधार पर िलखे होते ह। हम कसी भी य
वशेष ारा योग कये जाने वाले मं - यं या अ य योग या उपायोक ज मेदार न हं लेते ह।
यह ज मेदार मं -यं या अ य योग या उपायोको करने वाले य क वयं क होगी। यो क इन वषयो म नैितक
मानदं ड , सामा जक , कानूनी िनयम के खलाफ कोई य य द नीजी वाथ पूित हे तु योग कता ह अथवा
योग के करने मे ु ट होने पर ितकूल प रणाम संभव ह।
हमारे ारा पो ट कये गये सभी मं -यं या उपाय हमने सैकडोबार वयं पर एवं अ य हमारे बंधुगण पर योग कये ह
ज से हमे हर योग या मं -यं या उपायो ारा िन त सफलता ा हई
ु ह।
पाठक क मांग पर एक ह लेखका पूनः काशन करने का अिधकार रखता ह। पाठक को एक लेख के पूनः
काशन से लाभ ा हो सकता ह।
िचंतन जोशी
संपक
गु व योितष वभाग
गु व कायालय
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INDIA
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July
2010