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गु व कायालय ारा तुत मािसक ई-प का अग त 2010

NON PROFIT PUBLICATION


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FREE य आ मय
E CIRCULAR बंधु/ ब हन
गु व योितष प का
जय गु दे व
संपादक हमारे मु य लोग http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/

िचंतन जोशी के हमारे सभी आ मय बंध/


ु ब हन एवं िनयिमत पाठको के आ मय अनुरोध
से े रत होकर हमारे कायालय ारा अग त मास से िनयिमत मािसक ई
संपक
प का गु व योितष को आपको अपने जीवन म गितशील होने का सुगम
गु व योितष वभाग माग ा हो एवं आपको अपने जीवन म सम त कार के भौितक सुखो क

गु व कायालय ाि होकर आपके भीतर आ या मक वकास एवं ाचीन भारतीय व ान से


संबंिधत ान क िनरं तर वृ हो इस उ े य से हम गु व कायालय प रवार
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ु आपके स ेम नेहभाव हे तु हम आपके सभी आभार ह।
91+9238328785, आप हमारा मागदशन करते रह। आपके सुझाव एवं ित या हमे िनयिमत
ईमेल िमलते रहे ।

gurutva.karyalay@gmail.com, इ से अित र हमने अपने वष के अनुभवो के आधार पर आप


gurutva_karyalay@yahoo.in, अपने काय-उ े य एवं अनुकूलता हे तु यं , ह र एवं उपर और दलभ
ु मं श
से पूण ाण- ित त िचज व तु का हमशा योग करे जो १००% फलदायक हो।
वेब
ईसी िलये हमारा उ े य यह ं हे क शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो
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http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ ारा िस ाण- ित त पूण चैत य यु सभी कार के य - कवच एवं शुभ
फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
प का तुित

िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी सूय क करणे उस घर म वेश करापाती है ।

फोटो ाफ स जीस घर के खड़क दरवाजे खुले ह ।


िचंतन जोशी, व तक आट
िचंतन जोशी
हमारे मु य सहयोगी

व तक.ऎन.जोशी
( व तक सो टे क इ डया िल)

NON PROFIT PUBLICATION


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वशेष लेख
ावण मास के थम सोमवार त के लाभ 31
द र ता से मु 44

अनु म
गु ाथना 3 कम फल ह केवलं 34
गुव कम ् 4 गु आ ा पालक िश य उपम यु 35
िशव मह व 5 िशव कामदे व कथा 36
िशव उपासना का मह व 6 िशव और सती का ेम 37
महामृ युंजय मं 7 िशव पावती का ववाह 40
महामृ युंजय मं जाप कस समय कर? 8 गु सेवा 43
सव रोगनाशक यं /कवच 9 द र ता से मु 44
िशव कृ पा हे तु उ म ावण मास 11 दोष त का मह व 48
भौितकक दरू होते ह ावणमास के सोमवार तसे 12 सव काय िस कवच 51
सोमवार त कथा 13 वेदसार िशव तव 53
सा ात ह िशविलंग 14 महाकाल तवन 54
आपक रािश और िशव पूजा 15 ािभषेक तो 55
ादश योितिलग तो म ् 16 िशव मानस पूजा 56
िशवरा त से लाभ 17 िशवा कम 57
गंगा का वग से पृथवी पर आगमन केसे हवा
ु ? 18 ी ा कम 58
िशव पूजन से कामना िस 20 िलंगा कम 59
ा- वषणु-महे श म े कोन? 21 िशवम ह न तो म ् 60
िशविलंग पूजा का मह व या ह? 22 ा कृ त िशव तो 63
चातुमास त का मह व 23 िशव आरती 64
य िशव को य ह बेल प ? 25 िशव तांडव तो 65
सोलह सोमवार तकथा 27 िशव तुित (राम च रतमानस) 66
िशविलंग के विभ न कार व लाभ 31 मािसक रािश फल 67
िशवप चा र तो म ् 32 मािसक पंचांग 68
िशव के क याणकार मं 32 मािसक त-पव- यौहार 69
ावण सोमवार त कैसे कर? 33 वशेष योग 71

लघु कथाएं
शैतान 13 अपन क चोट 26
जीवन म ान क कमाई 19 वधाता क े कृ ित 30
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गु ाथना
 िचंतन जोशी

गु ा ु व णुः गु दवो महे रः ।


गु ः सा ात ् परं त मै ी गुरवे नमः ॥

भावाथ: गु ा ह, गु व णु ह, गु ह शंकर ह; गु ह सा ात ् पर ह; एसे स ु को नमन ।

यानमूलं गु मू ितः पूजामूलम गु र पदम।्

मं मूलं गु रवा यं मो मूलं गु र कृ पा।।

भावाथ: गु क मूित यान का मूल कारण है , गु के चरण पूजा का मूल कारण ह, वाणी जगत के
सम त मं का और गु क कृ पा मो ाि का मूल कारण ह।

अख डम डलाकारं या ं येन चराचरम।्

त पदं दिशतं येन त मै ीगुरवे नमः।।

वमेव माता च पता वमेव वमेव बंधु सखा वमेव।

वमेव व ा वणं वमेव वमेव सव मम दे व दे व।।

ानंदं परमसुखदं केवलं ानमूित


ं ातीतं गगनस शं त वम या दल यम ् ।
एकं िन यं वमलमचलं सवधीसा भुतं
भावातीतं गुणर हतं स ु ं तं नमािम ॥

भावाथ: ा के आनंद प परम ् सुख प, ानमूित, ं से परे , आकाश जैसे िनलप, और सू म "त वमिस"
इस ईशत व क अनुभूित ह जसका ल य है ; अ तीय, िन य वमल, अचल, भावातीत, और गुणर हत -
ऐसे स ु को म णाम करता हँू ।
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गुव कम्
शर रं सु पं तथा वा कल ,ं अर ये न वा व य गेहे न काय, (५) जन महानुभाव के चरण कमल
यश ा िच ं धनं मे तु यम।् न दे हे मनो वतते मे वन य। भूम डल के राजा-महाराजाओं से िन य
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े मन ेन ल नं गुरोरि प ,े पू जत रहते ह , कंतु उनका मन य द गु
ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्१॥ ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्८॥ के ीचरण के ित आस न हो तो इस
कल ं धनं पु पौ ा दसव, गुरोर कं यः पठे पुरायदे ह , सदभा य से या लाभ?

गृ हो बा धवाः सवमेत जातम।् यितभूपित चार च गेह । (६) दानवृ के ताप से जनक क ित
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े चारो दशा म या हो, अित उदार गु क
लमे ा छताथं पदं सं ,ं
ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्२॥ सहज कृ पा से ज ह संसार के सारे
गुरो वा ये मनो य य ल नम॥्९॥
षड़ं गा दवेदो मुखे शा व ा, सुख-ए य ह तगत ह , कंतु उनका मन
॥इित ीमद आ शंकराचाय वरिचतम ्
क व वा द ग ं सुप ं करोित। गुव कम ् संपूण म॥
् य द गु के ीचरण म आस भाव न

मन ेन ल नं गुरोरि प ,े भावाथ: (१) य द शर र पवान हो, प ी रखता हो तो इन सारे एशवय से या लाभ?

ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्३॥ भी पसी हो और स क ित चार दशाओं म


(७) जनका मन भोग, योग, अ , रा य,
व त रत हो, सुमे पवत के तु य अपार
वदे शेषु मा यः वदे शेषु ध यः, ी-सुख और धन भोग से कभी वचिलत
धन हो, कंतु गु के ीचरण म य द मन
सदाचारवृ ेषु म ो न चा यः। न होता हो, फर भी गु के ीचरण के ित
आस न हो तो इन सार उपल धय से
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े या लाभ? आस न बन पाया हो तो मन क इस

ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्४॥ (२) य द प ी, धन, पु -पौ , कुटु ं ब, गृ ह अटलता से या लाभ?

माम डले भूपभूपलबृ दै ः, एवं वजन, आ द ार ध से सव सुलभ हो


(८) जनका मन वन या अपने वशाल
कंतु गु के ीचरण म य द मन आस न
सदा से वतं य य पादार व दम।् भवन म, अपने काय या शर र म तथा
हो तो इस ार ध-सुख से या लाभ?
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े अमू य भ डार म आस न हो, पर गु के
(३) य द वेद एवं ६ वेदांगा द शा ज ह
ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्५॥ ीचरण म भी वह मन आस न हो पाये
कंठ थ ह , जनम सु दर का य िनमाण क
यशो मे गतं द ु दान तापात ्, ितभा हो, कंतु उनका मन य द गु के तो इन सार अनास य का या लाभ?

जग तु सव करे य सादात।् ीचरण के ित आस न हो तो इन


(९) जो यित, राजा, चार एवं गृ ह थ इस
सदगुण से या लाभ?
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े गु अ क का पठन-पाठन करता है और
(४) ज ह वदे श म समान आदर िमलता
ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्६॥ जसका मन गु के वचन म आस है , वह
हो, अपने दे श म जनका िन य जय-
न भोगे न योगे न वा वा जराजौ, पु यशाली शर रधार अपने इ छताथ एवं
जयकार से वागत कया जाता हो और
न क तामुखे नैव व ेषु िच म।् जसके समान दसरा
ू कोई सदाचार भ पद इन दोन को सं ा कर लेता है यह

मन ेन ल नं गुरोरि प ,े नह ं, य द उनका भी मन गु के ीचरण के िन त है ।


ित आस न हो तो सदगुण से या लाभ?
ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्७॥
***
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िशव मह व
 िचंतन जोशी
धम शा ो म भगवान िशव को जगत पता बताया गया ह।
यो क भगवान िशव सव यापी एवं पूण ह। हं द ू सं कृ ित
म िशव को मनु य के क याण का तीक माना जाता ह।
िशव श द के उ चारण या यान मा से ह मनु य
को परम आनंद दान करता ह। भगवान िशव
भारतीय सं कृ ित को दशन ान के ारा संजीवनी
दान करने वाले दे व ह। इसी कारण अना द
काल से भारतीय धम साधना म िनराकार प म
होते हवे
ु भी िशविलंग के प म साकार मूित
क पूजा होती ह। दे श- वदे श म भगवान
िशव के मं दर हर छोटे -बडे शहर एवं
क बो म मोजुद ह, जो भगवान महादे व
क यापकता को एवं उनके भ ो क
आ था को कट करते ह।

भगवान िशव एक मा एसे दे व ह जसे


भोले भंडार कहा जाता ह, भगवान िशव
थोङ सी पूजा-अचना से ह वह स न हो
जाते ह। मानव जाित क उ प भी भगवान
िशव से मानी जाती ह। अतः भगवान िशव के
व प को जानना येक िशव भ के िलए परम
आव यक ह। भगवान भोले नाथ ने समु मंथन
से िनकले हए
ु सम वष को अपने कंठ म धारण
कर वह नीलकंठ कहलाये।

योितष संबंिधत वशेष परामश


योित व ान, अंक योितष, वा तु एवं आ या मक ान स संबंिधत वषय म हमारे 28 वष से अिधक वष के अनुभव के
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f’ko mikluk dk egRo


 िचंतन जोशी
भगवान िशव का सतो गुण, रजो गुण, तमो गुण तीन पर एक समान
अिधकार ह। िशवने अपने म तक पर चं मा को धारण कर शिश शेखर
कहलाये ह। चं मा से िशव को वशेष नेह होने के कारण चं
सोमवार का अिधपित ह इस िलये िशव का य वार सोमवार ह।
िशव क पूजा-अचना के िलये सोमवार के दन करने का
वशेष मह व ह, इस दन त रखने से या िशव िलंग पर
अिभषेक करने से िशवक वशेष कृ पा ा होती ह।
सभी सोमवार िशव को य ह, परं तु पूरे ावण
मास के सभी सोमवार को कये गये त-पूजा अचना
अिभषेक पूरे वष कये गये त के समान फल दान करने
वाली होती ह।
िशव को ावण मास इस िलये अिधक य ह यो क
ावण मास म वातावरण म जल त व क अिधकता होती ह एवं चं जलत व का अिधपती ह ह। जो िशव के
म तक पर सुशोिभत ह।
िशव उपासना के विभ न प वेद म व णत ह। िशव मं उपासना म पंचा र "नम: िशवाय" या "ॐ नम:
िशवाय" और महामृ युंजय इ या द मं के जप का भी ावण मास म वशेष मह व ह, ावण मास म कय गये मं
जाप कई गुना अिधक भाव शाली िस होते दे खे गये ह। जहा िशव पंचा र मं मनु य को सम त भौितक सुख
साधनो क ाि हे तु वशेष लाभकार ह, वह ं महामृ युंजय मं के जप से मनु य के सभी कार के मृ यु भय-रोग-
क -द र ता दरू होकर उसे द घायु क ाि होती ह। महामृ युज
ं य मं , ािभषेक आ द का सामु हक अनु ान करने से
अितवृ , अनावृ एवं महामार आ द से र ा होती ह एवं अ य सभी कार के उप व क शांित होती ह।

भा य ल मी द बी
सुख-शा त-समृ क ाि के िलये भा य ल मी द बी :- ज से धन ि , ववाह योग, यापार वृ ,
वशीकरण, कोट कचेर के काय, भूत ेत बाधा, मारण, स मोहन, ता क बाधा, श ु भय, चोर भय जेसी
अनेक परे शािनयो से र ा होित है और घर मे सुख समृ क ाि होित है , भा य ल मी द बी मे लघु
ी फ़ल, ह तजोड (हाथा जोड ), िसयार िस गी, ब ल नाल, शंख, काली-सफ़ेद-लाल गुंजा, इ जाल,
माय जाल, पाताल तुमड जेसी अनेक दल
ु भ साम ी होती है ।
मू य:- 910 से 8200 तक उ ल
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महामृ यु जय मं

 िचंतन जोशी
महामृ युंजय मं के विध वधान के साथ म जाप करने से अकाल मृ यु तो टलती ह ह, रोग,
शोक, भय इ या द का नाश होकर य को व थ आरो यता क ाि होती ह।

यद नान करते समय शर र पर पानी डालते समय महामृ यु जय मं का


जप करने से वचा स ब धत सम याए दरू होकर वा य लाभ होता ह।

य द कसी भी कार के अ र क आशंका हो, तो उसके िनवारण एवं


शा त के िलये शा म स पूण विध- वधान से महामृ युंजय मं के जप करने का
उ लेख कया गया ह। ज से य मृ यु पर वजय ाि का वरदान दे ने वाले
दे वो के दे व महादे व स न होकर अपने भ के सम त रोगो का हरण कर य
को रोगमु कर उसे द घायु दान करते ह।
मृ यु पर वजय ा करने के कारण ह इस मं को मृ युंजय कहा जाता है । महामृ यंजय मं
क म हमा का वणन िशव पुराण, काशीखंड और महापुराण म कया गया ह। आयुवद के ंथ म भी
मृ युंजय मं का उ लेख है । मृ यु को जीत लेने के कारण ह इस मं को मृ युंजय कहा जाता है ।
मह व: मृ यु विन जतो य मात ् त मा मृ युंजय: मृ त: या मृ युंजयित इित मृ युंजय,

अथात : जो मृ यु को जीत ले, उसे ह मृ युंजय कहा जाता ह।


मानव शर र म जो भी रोग उ प न होते ह उसके बारे म शा ो म जो उ लेख ह वह इस कार ह।
"शर रं यािधमं दरम ्" ांड के पंच त व से उ प न शर र म समय के अंतराल पर नाना कार क आिध- यिघ उपािधयां
उ प न होती रहती ह। इस िलए हम अपने शर र को व य रखने के िलए आहार- वहार, खान-पान और िनयिमत दनचया
िन त समय पर करना पडता ह। य द इन सब को िन त समय अविध पर करते रहने के बाद भी य द कोई रोग या
यािध हो जाए एवं वह रोग इलाज कराने के बाद भी य द ठ क नह ं हो एवं सभी जगा से िनराशा हाथ लगरह हो तो एसे
अ र क िनवृ या शांित के िलए महामृ यु य मं जप का योग अव य कर।
शा म मृ यु भयको वप या संकट माना गया ह, एवं शा ो के अनुशार वप या मृ य के िनवारण के दे वता
िशव ह। एवं योितषशा के अनुशार दख
ु , वप या मृ य के दाता एवं िनवारण के दे वता शिनदे व ह, यो क शिन
य के कम के अनु प य को फल दान करते ह। शा ो के अनुशार माक डे य ऋ ष का जीवन अ य प था, परं तु
महामृ युंजय मं जप से िशव कृ पा ा कर उ ह िचरं जीवी होने का वरदान ा हवा।

महामृ युंजय का वेदो मं िन निल खत है-
ॐ य बकं यजामहे सुग धं पु वधनम।्
उवा किमव ब धना मृ योमु ीय माऽमृ तात्॥
मं उ चारण वचार :इस मं म आए येक श द का उ चारण प करना अ यंत आव यक है , य क प श द
उ चारण मे ह मं क सम श समा हत होती ह। इस मं म उ ले खत येक श द अपने आप म एक संपूण
बीज मं का अथ िलए हए
ु है ।
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महामृ युंजय मं जाप कस समय कर?


 िचंतन जोशी
कब महामृ युंजय मं का जाप नान इ या द से िनवृ त होकर ित दन भी कर सकते ह इ से व मान
समय के क तो दरू होते ह ह साथ म आने वाले क काभी वतः ह िनवारण हो जाता ह। महामृ युंजय मं के
िनयिमत यथासंभव जाप करने से बहत
ु बाधाएँ दरू होती एसा हमने हमारे अनुभवो से जाना ह। परं तु य द वशेष
थितय म महामृ युज
ं य मं के जाप क आव य ा हो तो भी करयाजा सकता ह।

 य द घरका कोइ सद य रोग से पी ड़त ह । या उसक सेहत बार बार खराब हो रह ह ।

 भयंकर महामार से लोग मर रहे ह , तो जाप कर अपिन और अपने प रवार क सुर ा हे तु।

 य द सामु हक य ारा जाप कया जाये तो अ यािधक लोगो को लाभ होता ह।

 राजभय अथा त सरकार से संबंिधत कोइ पीडा या क ह।

 साधक का मन धािमक काय नह ं लग रहा ह ।

 श ु से संबंिधत परे शािन एवं लेश ह ।

य द सामु हक य ारा जाप कया जाये तो सम व , दे श, रा य, शहर आ द के हताथ उ े य से भी


जप कये जासकते ह। इ से अ यािधक लोगो को लाभ होता ह। योितष मारक हो ारा ितकूल (अशुभ) फल ा
हो रह ह ।

 य द ज म, मास, गोचर और दशा, अंतदशा, थूलदशा आ द म हपीड़ा होने क आशंका ह ।

 कुंडाली मेलापक म य द नाड़ दोष, षडा क आ द दोष ह ।

 एक से अिधक अशुभ ह रोग एवं श ु थान(ष म भाव) म ह ।

तो महामृ युंजय मं का जप करना परम फलदायी है । महामृ युंजय मं के जप व उपासना के तर के आव यकता के अनु प होते
ह। का य उपासना के प म भी इस मं का जप कया जाता है । जप के िलए अलग-अलग मं का योग होता है । यहाँ हमने
आपक सु वधा के िलए सं कृ त म जप विध, विभ न यं -मं , जप म सावधािनयाँ, तो आ द उपल ध कराए ह। इस कार
आप यहाँ इस अ भुत जप के बारे म व तृ त जानकार ा कर सकते ह।

महामृ युंजय जप विध - (मूल सं कृ त म)

कृ तिन य यो जपकता वासने पांगमुख उदहमुखो वा उप व य धृ त ा भ म पु ः । आच य । ाणानाया य।


दे शकालौ संक य मम वा य मान य अमुक कामनािस यथ ीमहामृ युंजय मं य अमुक सं याप रिमतं जपमहं क र ये वा
कारिय ये।

॥ इित ा य हकसंक पः॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ गुरवे नमः। ॐ गणपतये नमः। ॐ इ दे वतायै नमः।


इित न वा यथो विधना भूतशु ं ाण ित ां च कुयात।्
i Xkq:Ro T;ksfr”k 9 vxLr 2010

सव रोगनाशक यं /कवच
मनु य अपने जीवन के विभ न समय पर कसी ना कसी सा य या असा य रोग से त होता ह।

उिचत उपचार से यादातर सा य रोगो से तो मु िमल जाती ह, ले कन कभी-कभी सा य रोग होकर भी असा या
होजाते ह, या कोइ असा य रोग से िसत होजाते ह। हजारो लाखो पये खच करने पर भी अिधक लाभ ा नह ं हो
पाता। डॉ टर ारा दजाने वाली दवाईया अ प समय के िलये कारगर सा बत होती ह, एिस थती म लाभा ाि के
िलये य एक डॉ टर से दसरे
ू डॉ टर के च कर लगाने को बा य हो जाता ह।

भारतीय ऋषीयोने अपने योग साधना के ताप से रोग शांित हे तु विभ न आयुवर औषधो के अित र यं ,
मं एवं तं उ लेख अपने ंथो म कर मानव जीवन को लाभ दान करने का साथक यास हजारो वष पूव कया था।
बु जीवो के मत से जो य जीवनभर अपनी दनचया पर िनयम, संयम रख कर आहार हण करता ह, एसे य
को विभ न रोग से िसत होने क संभावना कम होती ह। ले कन आज के बदलते युग म एसे य भी भयंकर रोग
से त होते दख जाते ह। यो क सम संसार काल के अधीन ह। एवं मृ यु िन त ह जसे वधाता के अलावा
और कोई टाल नह ं सकता, ले कन रोग होने क थती म य रोग दरू करने का यास तो अव य कर सकता ह।
इस िलये यं मं एवं तं के कुशल जानकार से यो य मागदशन लेकर य रोगो से मु पाने का या उसके भावो
को कम करने का यास भी अव य कर सकता ह।

योितष व ा के कुशल जानकर भी काल पु षक गणना कर अनेक रोगो के अनेको रह य को उजागर कर


सकते ह। योितष शा के मा यम से रोग के मूलको पकडने मे सहयोग िमलता ह, जहा आधुिनक िच क सा शा
अ म होजाता ह वहा योितष शा ारा रोग के मूल(जड़) को पकड कर उसका िनदान करना लाभदायक एवं
उपायोगी िस होता ह।
हर य म लाल रं गक कोिशकाए पाइ जाती ह, जसका िनयमीत वकास म ब तर के से होता रहता ह।
जब इन कोिशकाओ के म म प रवतन होता है या वखं डन होता ह तब य के शर र म वा य संबंधी वकारो
उ प न होते ह। एवं इन कोिशकाओ का संबंध नव हो के साथ होता ह। ज से रोगो के होने के कारणा य के
ज मांग से दशा-महादशा एवं हो क गोचर म थती से ा होता ह।

सव रोग िनवारण कवच एवं महामृ युंजय यं के मा यम से य के ज मांग म थत कमजोर एवं पी डत


हो के अशुभ भाव को कम करने का काय सरलता पूव क कया जासकता ह। जेसे हर य को ांड क उजा एवं
पृ वी का गु वाकषण बल भावीत कता ह ठक उसी कार कवच एवं यं के मा यम से ांड क उजा के
सकारा मक भाव से य को सकारा मक उजा ा होती ह ज से रोग के भाव को कम कर रोग मु करने हे तु
सहायता िमलती ह।
रोग िनवारण हे तु महामृ युंजय मं एवं यं का बडा मह व ह। ज से ह द ू सं कृ ित का ायः हर य
महामृ युंजय मं से प रिचत ह।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 10 vxLr 2010

कवच के लाभ :
 एसा शा ो वचन ह जस घर म महामृ युंजय यं था पत होता
ह वहा िनवास कता हो नाना कार क आिध- यािध-उपािध
से र ा होती ह।
 पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग
िनवारण कवच कसी भी उ एवं जाित धम के
लोग चाहे ी हो या पु ष धारण कर सकते ह।
 ज मांगम अनेक कारके खराब योगो और खराब
हो क ितकूलता से रोग उतप न होते ह।
 कुछ रोग सं मण से होते ह एवं कुछ रोग खान-
पान क अिनयिमतता और अशु तासे उ प न होते
ह। कवच एवं यं ारा एसे अनेक कार के खराब
योगो को न कर, वा य लाभ और शार रक र ण
ा करने हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं सव उपयोगी
होता ह।
 आज के भौितकता वाद आधुिनक युगमे अनेक एसे रोग होते ह, जसका उपचार ओपरे शन और दवासे भी
क ठन हो जाता ह। कुछ रोग एसे होते ह जसे बताने म लोग हच कचाते ह शरम अनुभव करते ह एसे रोगो
को रोकने हे तु एवं उसके उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं लाभादािय िस होता ह।
 येक य क जेसे-जेसे आयु बढती ह वैसे-वसै उसके शर र क ऊजा होती जाती ह। जसके साथ अनेक
कार के वकार पैदा होने लगते ह एसी थती म भी उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं फल द होता
ह।
 जस घर म पता-पु , माता-पु , माता-पु ी, या दो भाई एक ह न मे ज म लेते ह, तब उसक माता के िलये
अिधक क दायक थती होती ह। उपचार हे तु महामृ युंजय यं फल द होता ह।
 जस य का ज म प रिध योगमे होता ह उ हे होने वाले मृ यु तु य क एवं होने वाले रोग, िचंता म
उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं शुभ फल द होता ह।

नोट:- पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच एवं यं के बारे म अिधक जानकार हे तु हम
से संपक कर।

GURUTVA KARYALAY
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िशव कृ पा हे तु उ म ावण मास


 िचंतन जोशी
भारत वष म अना दकाल से विभ न पव मनाये जाते ह, एवं भगवान िशव से संबंधी अनेक त- यौहात
मनाए जाते रहे ह। इन उतसवो म ावण मास का अपना वशेष मह व ह। पौरा णक मा यताओं के अनुशार ावण
मास म चार सोमवार (कभी-कभी पांच सोमवार होते ह) , एक दोष त तथा एक िशवरा शािमल होत ह इन सबका
संयोग एकसाथ ावण मह ने म होता ह, इसिलए ावण का मह ना िशव कृ पा हे तु शी शुभ फल दे ने वाला मानागया
ह।
िशवपुराण के अनुशार ावण माह म ादश
योितिलग के दशन करने से सम त तीथ के दशन का पू य
एक साथ ह ा हो जाता ह।
प पुराण के अनुशार ावण माह म ादश
योितिलग के दशन करने से मनु य क सम त शुभ कामनाएं
पूण होती ह एवं उसे संसार के सम त सुख क ाि होकर
उसे िशव कृ पा से मो क ाि हो जाती ह।

 थम सोमवार को- क चे चावल एक मु ठ िशव िलंग


पर चढाया जाता ह।
 दसरे
ू सोमवार को- सफेद ित ली एक मु ठ िशव िलंग
पर चढाया जाता ह।
 तीसरे सोमवार को- ख़ड़े मूँग एक मु ठ िशव िलंग पर
चढाया जाता ह।
 चौथे सोमवार को- जौ एक मु ठ िशव िलंग पर चढाया जाता ह।
 य द पाँचवाँ सोमवार आए तो एक मु ठ क चा स ू चढाया जाता ह।
िशव क पूजा म ब वप अिधक मह व रखता है । िशव ारा वषपान करने के कारण िशव के म तक पर
जल क धारा से जलािभषेक िशव भ ारा कया जाता है । िशव भोलेनाथ ने गंगा को िशरोधाय कया है ।
ावण मास म िशवपुराण, िशवलीलामृ त, िशव कवच, िशव चालीसा, िशव पंचा र मं , िशव पंचा र तो ,
महामृ युंजय मं का पाठ एवं जाप करना वशेष लाभ द होता ह।

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gRFkk tksM+h&: 370 fcYyh dh uky&: 370 eksrh ‘ka[k &: 550 ek;k tky&: 251
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i Xkq:Ro T;ksfr”k 12 vxLr 2010

भौितक क दरू होते ह ावण मास के सोमवार त से

 िचंतन जोशी
ावण मास इस साल 27 जुलाई से 24 अग त के बीच रहे गा। इस दौरान 2 अग त , 9 अग त , 16 अग त , 23 अग त को
चार सोमवार ावण मास म पड़ रहे ह। क हं दे शो म 27 जुलाई से ावण मास ारं भ होने से 5 सोमवार होरहे ह। ावण मास के
सम त सोमवार के दन त करने से पूरे साल भर के सोमवार के त समान पु य फल िमलता ह। सोमवार के त
के दन ातःकाल ह नान इ या द से िनवृ होकर, िशव मं दर, दे वालय घरम जाकर िशव िलंग पर जल, दध
ू , दह ,
शहद, घी, चीनी, ेत चंदन, रोली(कुमकुम), ब व प (बेल प ), भांग, धतूरा आ द स अिभषेक कया जाता ह।

 पित क लंबी आयु क कामना हे तु सुहागन य को सोमवार के दन त रखने से िशव कृ पा से अखंड सौभा य
क ाि होती ह।
 ब चो को सोमवार का त कर िशव मं दर म जलािभषेक करने से व ा और बु क ाि होती ह।
 रोजगार ाि हे तु दध
ू एवं जल चढाने से रोजगार ाि क संभावना बढ जाती ह।
 यापार एवं नौकर करने वाले य यद ावण मास के सोमवार का त करने से धन-धा य और ल मी क
वृ होती ह।
त के दन गंगाजल से नान कर अथवा जल म थोडा गंगा जल िमला कर नान करने के प यात िशव िलंग पर
जल चढ़ाया जाता ह। आज भी उ र एवं पूव भारत म कांवड़ पर परा का वशेष मह व ह। ालु गंगाजल अथवा
पव न द स कावड़ म जल भरकर तीथ थल तक कांवड़ लेकर जाते ह। इसका उ े य िशवजीक कृ पा ा करना ह।
आज के भौितकतावा द युग म य अिधक से अिधक भौितक सुख साधनो को जुटाते हए
ु कभी-कभी
य नैितकता का दामन छोड कर अनैितकता का दामन थाम लेता ह जस के फल व प अपने ितकूल कम के
कारण य को भ व य म अनेक सम याओं से िसत होते दे खा गया ह।
य ारा कये गये ितकूल कम के बंधन से मु कराने क समथता भगवान भोले भंडार िशव क
कृ पा ाि से य के ारा संिचत पाप न हो जाते ह।

मं िस यं
गु व कायालय ारा विभ न कार के यं कोपर(ता प ), िसलवर (चांद ) ओर गो ड (सोने) मे विभ न कार क
सम या के अनुसार बनवा के मं िस पूण ाण ित त एवं चैत य यु कये जाते है. जसे साधारण (जो पूजा-पाठ नह
जानते या नह कसकते) य बना कसी पूजा अचना- विध वधान वशेष लाभ ा कर सकते है. जस मे िचन यं ो स हत
हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाए गये यं भी समा हत है . इसके अलवा आपक आव यकता अनुशार यं बनवाए जाते है.
गु व कायालय ारा उपल ध कराये गये सभी यं अखं डत एवं २२ गेज शु कोपर(ता प )- 99.99 टच शु िसलवर (चांद )
एवं 22 केरे ट गो ड (सोने) मे बनवाए जाते है. यं के वषय मे अिधक जानकार के िलये हे तु स पक करे

गु व कायालय:
Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA
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सोमवार त कथा

 व तक.ऎन.जोशी

कैलाश के उ र म िनषध पवत के िशखर पर वयं भा नामक एक वशाल पुर थी जसम धन वाहन नामक एक
गण वराज रहते थे। समय अनुसार उ हे आठ पु और अंत म एक क या उ प न हई
ु जसका नाम गंधव सेना था। वह अ य त
पवती थी और उसे अपने प का बहत
ु अिभमान था। वह कहा करती थी क संसार म कोई गंधव या दे वी मेरे प के करोड़वे अंश
के समान भी नह ं है । एक दन एक आकाशचर गण नायक ने उसक बात सुनी तो उसे शाप दे दया 'तुम प के अिभमान' म गंधव
और दे वताओं का अपमान करती हो अत: तु हारे शर र म कोढ़ हो जायेगा। शाप सुन कर क या भयभीत हो गयी और दया क भीख
मांगने लगी। उसक बनती सुन कर गणनायक को दया आ गयी और उ ह ने कहा हमालय के वन म गो ृ ं ग नाम के े मुनी
रहते है । वे तु हारा उपकार करे गे। ऐसा कह कर गणनायक चला गया। गंधव सेना व छोड़ कर अपने पता के पास आई और अपने
कु होने के कारण तथा उससे मु का उपाय बताया। माता पता उसे त ण लेकर हमालय पवत पर गए और गो ृ ं ग का दशन
करके तुित करने लगे। मुिन के पूछने पर उ ह ने कहा क मेरे बेट को कोढ़ हो गया है कृ पया इसक शांित का कोई उपाय बताएं।
मुिन ने कहा क समु के समीप भगवान सोमनाथ वराजमान है । वहां जाकर सोमवार त ारा भगवान
शंकर क आराधना करो। ऐसा करने से पु ी का रोग दरू हो जायेगा। मुिन के वचन सुन कर धनवाहन अपनी पु ी के
साथ भास े म जाकर सोमनाथ के दशन कए और पूरे विध वधान के साथ सोमवार ज करते हए
ु भगवान
शंकर क आराधना कए उनक भ से स न होकर शंकर भगवान ने उस क या के रोग को दरू कया और उ हे
अपनी भ भी दान म दया। आज भी लोग िशव जी को स न करने के िलए इस त को पूर िन ा एवं भ के
साथ करते है और िशव क कृ पा को ा करते है ।

शैतान
जब एक शैतान का मन अपने आप से ऊब गया, तो उसने सं यास लेने का
िन य कया। तब उसने अपने गुलाम को एक-एक कर बेचना शु कर दया। 'बुराई',
'झूठ', 'ई या', 'िन साह, ' 'दप'-सब पं बांधकर उसके सामने खड़े हो गये। शैतान के भ
आते गए और उ ह पहचान कर एक-एक को खर दते गये। पर अंत म एक बहत
ु ह भ ड़ा
और कु प गुलाम खड़ा था, जसे कोई पहचान नह ं पा रहा था। आ य क बात तो यह
थी क शैतान ने उसका मू य दसरे
ू सभी गुलाम से बढ़कर था। अ त म साहस करके
एक खर ददार ने शैतान से पूछा यह महाशय कौन ह?
"ओह, यह!" शैतान मु कराया, "यह मेरा सबसे य और वफादार गुलाम है । बहत
ु थोड़े
ह लोग जानते ह क यह मेरा दा हना हाथ ह। म इसके सहारे बड़ आसानी से लोग को
अपने िशकंजे म कस लेता हंू ; उ ह एक-दसरे
ू के खून का यास बना दे ता हंू । य , नह ं
पहचाना अभी भी?" शैतान अ टहास कर उठा, फर बोला, "यह फूट है , फूट!"  व तक
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सा ात ह िशविलंग
 िचंतन जोशी
िशवपुराणम िशविलंग म हमा इस कार क गई है-

िल गमथ ह पु षंिशवंगमयती यद:।

िशव-श यो िच यमेलनंिल गमु यते॥

भावाथ: िशव-श के िच का स मिलत व प ह िशविलंग ह।


इस कार िलंग म सृ के जनक क अचना होती है ।

िलंग परमपु ष सदा िशवका बोधक ह। इस कार यह


व दत होता है क िलंग का थम अथ कट करने वाला हआ
ु ,
य क इसी से सृ क उ प हई
ु ह।

दसरा
ू भावाथ: यह ा णय का परम कारण और िनवास-
थान ह।

तीसरा भावाथ: िशव- श का िलंग योिन भाव और


अ नार र भाव मूलत:एक ह व प ह। सृ के बीज को दे ने
वाले परम िलंग प भगवान िशव जब अपनी कृित पा श से
आधार-आधेय क भाँित संयु होते ह, तभी सृ क उ प होती
है , अ यथा नह ं।

िलंगपुराण िशविलंग म हमा इस कार क गई है-


मूले ा तथा म ये व णु भुवने र:।
ोप रमहादे व: णवा य:सदािशव:॥
िल गवेद महादे वी िल गसा ा महे र:।
िशविलंगक पूजा-अचना अना दकालसे व यापक रह ह। संसार के
तयो:स पूजना न यंदेवी दे व पू जतो॥
सबसे ाचीन थ ऋ वेद म िलंग उपासना का उ लेख िमलता ह।
भावाथ: िशव िलंगके मूल म ा, म य म व णु तथा शीष म
सवदे वा मको : सव दे वा: िशवा मका:।
शंकर ह। णव (ॐ) व प होने से सदािशवमहादे व कहलाते ह।
भावाथ: भगवान िशव और सव दे व म वराजमान होने से िशविलंग णव का प होने से सा ात ् ह है। िलंग महे र और
के ह पयायवाची श द ह। ाय: सभी सभी शा एवं पु राण म उसक वेद महादे वी होने से िलगांचनके ारा िशव-िश दोन क
िशविलंग के पूजन का उ लेख िमलता ह। ह दू शा म जहां भी पूजा वत:स प न हो जाती है। िलंगपुराण म िशव को
िशव उपासनाका वणन कया गया ह, वहां िशविलंग क म हमा का दे वमयऔर िशव-श का संयु व प होने का उ लेख कया
गुण-गान अव य िमलता ह। गया ह।
क दपुराणम िशविलंग म हमा इस कार क गई है- भगवान िशव ारा िशविलंग म हमा इस कार क गई है-
आकाशं िल गिम याहु:पृ वी त यपी ठका। लोकं िल गा मकं ा वािल गेयोऽचयते ह माम ् ।
आलय: सवदे वानांलयना ल गमु यते॥ न मेत मा यतर: योवा व ते विचत ् ॥
भावाथ: आकाश िलंग है और पृ वी उसक पी ठका ह। इस िलंग म भावाथ: जो भ संसार के मूल कारण महाचैत यिलंग क अचना
सम त दे वताओं का वास ह। स पूण सृ का इसम लय ह, करता ह और लोक को िलंगा मकजानकर िलंग-पूजा म त पर रहता
इसीिलए इसे िलंग कहते ह। ह, मुझे उससे अिधक य अ य कोई मनु य नह ं ह।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 15 vxLr 2010

आपक रािश और िशव पूजा


 िचंतन जोशी
िशव पुराण म उ लेख ह क महािशवरा के दन िशविलंग
क उ प हई
ु थी, िशववरा के दन िशव पूजन, त और उपवास से U तुला : गंगा जल या दह के साथ म श कर(िम ी),
य को अनंत फल क ाि होती ह। अ त(चांवल), सफेद ितल, सफेद चंदन, ेत आक फूल, सुगंिधत इ
योितष शा के अनुसार य अपनी रािश के अनुसा सब िमला कर या कसी भी एक व तु को जल या दह के साथ
भगवान िशव क आराधना और पूजन कर वशेष लाभ ा कर सकते ह । िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।
जसे अपनी ज म रािश या नाम रािश पता हो वह य
िन न साम ी से िशविलंग पर अिभषेक कर तो वशेष लाभ
होते दे खा गया ह।

V वृ क : जल या दध
ू के साथ म घी, गुड़, शहद (मधु, महु,
मध) लाल चंदन, लाल रं ग के फूल सब िमला कर या कसी भी एक
व तु को जल/ दध
ू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष
O मेष : जल या दध
ू के साथ म गुड़, शहद (मधु, महु, मध) लाभ िमलता ह।
लाल चंदन, लाल कनेर के फूल सब िमला कर या कसी भी एक व तु
को जल/ दध
िमलता ह।
ू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ
W धनु : जल या दध
ू के साथ म ह द , केसर, चावल, घी,
शहद, पीले फुल, पीली सरस , नागकेसर सब िमला कर या कसी भी
एक व तु को जल/ दध
ू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष
P वृ षभ : जल या दह के साथ म श कर(िम ी), लाभ ा होता ह।
अ त(चांवल), सफेद ितल, सफेद चंदन, ेत आक फूल सब िमला
कर या कसी भी एक व तु को जल या दह के साथ िमला कर
अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।
X मकर : गंगा जल या दह के साथ म काले ितल, सफेद
चंदन, श कर(िम ी), अ त(चांवल),सब िमला कर या कसी भी
एक व तु को अिभषेक गंगा जल या दह के साथ िमला कर
Q िमथुन: गंगा जल या दध
ू के साथ म दब
ू , जौ, बेल प सब अिभषेक करने से वशेष लाभ ा होता ह।
िमला कर या कसी भी एक व तु को गंगा जल या दध
ू के साथ
िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।
Y कुंभ : गंगा जल या दह के साथ म काले ितल, सफेद चंदन,
श कर(िम ी), अ त(चांवल),सब िमला कर या कसी भी एक व तु
R कक : दध
ू या जल के साथ म शु घी, सफेद ितल, सफेद को अिभषेक गंगा जल या दह के साथ िमला कर अिभषेक करने से
चंदन, सफेद आक सब िमला कर या कसी भी एक व तु को दध
ू वशेष लाभ ा होता ह।
या जल के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ ा
होता ह।
Z मीन : जल या दध
ू के साथ म ह द , केसर, चावल, घी,
शहद, पीले फुल, पीली सरस , नागकेसर सब िमला कर या कसी भी
S िसंह: जल या दध
ू के साथ म शु घी, गुड़, शहद (मधु, महु, एक व तु को जल/ दध
ू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष
मध) लाल चंदन सब िमला कर या कसी भी एक व तु को जल या लाभ ा होता ह।
दध
ू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ ा होता ह।
महािशव रा एवं ावण मास मे सोमवार के दन कोइ
T क या : गंगा जल या दध
ू के साथ म दब
ू , जौ, बेल प भी य जसे अपनी रािश पता नह ं ह वह य
सब िमला कर या कसी भी एक व तु को गंगा जल या दध
ू के चाहे तो पंचामृ त से िशविलंग का अिभषेक कर सकते ह
साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।
। 
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ादश योितिलग तो म ्
सौरा दे शे वशदे ऽितर ये योितमयं च कलावतंसम।्
भ दानाय कृ पावतीण तं सोमनाथं शरणं प े॥१॥

ीशैलशृ ंगे वबुधाितसंगे तुला तुंगेऽ प मुदा वस तम।्


तमजु नं म लकपूव मेकं नमािम संसारसमु सेतुम॥्२॥

अव तकायां व हतावतारं मु दानाय च स जनानाम।्


अकालमृ यो: प रर णाथ व दे महाकालमहासुरेशम॥्३॥

कावे रकानमदयो: प व े समागमे स जनतारणाय।


सदै व मा धातृ पुरे वस तम कारमीशं िशवमेकमीडे ॥४॥

पूव रे विलकािनधाने सदा वस तं िग रजासमेतम।्


सुरासुरारािधतपादप ं ीवै नाथं तमहं नमािम॥५॥

या ये सदं गे नगरे ितऽर ये वभू षतांगम ् व वधै भोगै:।


स मु दमीशमेकं ीनागनाथं शरणं प े॥६॥

महा पा च तटे रम तं स पू यमानं सततं मुनी ै ः।


सुरासुरैय महोरगा :ै केदारमीशं िशवमेकमीडे ॥७॥

स ा शीष वमले वस तं गोदावर तीरप व दे शे।


य शनात् पातकमाशु नाशं याित तं य बकमीशमीडे ॥८॥

सुता पण जलरािशयोगे िनब य सेतुं विशखैरसं यै:।


ीरामच े ण सम पतं तं रामे रा यं िनयतं नमािम॥९॥

यं डा कनीशा किनकासमाजे िनषे यमाणं पिशताशनै ।


सदै व भीमा दपद िस ं तं शंकरं भ हतं नमािम॥१०॥

सान दमान दवने वस तमान दक दं हतपापवृ दम।्


वाराणसीनाथमनाथनाथं ी व नाथं शरणं प े॥११॥

इलापुरे र य वशालकेऽ मन ् समु लस तं च जग रे यम।्


व दे महोदारतरं वभावं घृ णे रा यं शरणं प े॥१२॥

योितमय ादशिलंगकानां िशवा मनां ो िमदं मेण।


तो ं प ठ वा मनुजोऽितभ या फलं तदालो य िनजं भजे च॥

जो य ा पूव क इस ादश योितिलग तो का पाठ करता ह,


उसे सा ात ादश योितिलग के दशन करने के समान ह लाभ ा होता ह।
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िशवरा त से लाभ
महा िशवरा भगवान शंकर का सबसे प व दन माना जाता ह। िशवरा पर अपनी आ मा को िनमल

करने का महा त माना जाता ह। महािशव रा त से मनु य के सभी पाप का नाश हो जाता ह। उ क हं सक वृ
बदल जाती ह। सम त जीव के ित उसके िभतर दया, क णा इ या द स भावो का आगमन होता है ।

ईशान सं हता म िशवरा के बारे मे उ लेख इस कार कया गया है -

िशवरा तम ् नाम सवपाम ् णाशनम।्

आचा डाल मनु याणम ् भु मु दायकं॥

भावाथ:- िशव रा नाम वाला त सम त पाप का शमन करने वाला ह। इस दन त कर ने से द ु मनु य को भी भ


मु ा होती ह।

योितष शा

चतुदशी ितिथ के वामी िशवजी ह। योितष शा म चतुदशी ितिथ को परम शुभ फलदायी मना गया ह।

वैसे तो िशवरा हर मह ने चतुदशी ितिथ को होती ह। परं तु फा गुन कृ ण प क चतुदशी को महािशवरा कहा

गया ह। योितषी शा के अनुसार व को उजा दान करने वाले सूय इस समय तक उ रायण म आ होते ह, और

ऋतु प रवतन का यह समय अ यंत शुभ कहा माना जाता ह। िशव का अथ ह है क याण करना, एवं िशवजी सबका

क याण करने वाले दे वो के भी दे व महादे व ह। अत: महा िशवरा के दन िशव कृ पा ा कर य को सरलता से

इ छत सुख क ाि होती ह। योितषीय िस ं त के अनुसार चतुदशी ितिथ तक चं मा अपनी ीण थ अव था म


पहंु च जा ा ह। अपनी ीण अव था के कारण बलह न होकर चं मा सृ को ऊजा( काश) दे ने म असमथ हो जाते ह।

चं का सीधा संबंध मनु य के मन से बताया गया ह। योितष िस त से जब चं कमजोर होतो मन थोडा कमजोर

हो जाता ह, ज से भौितक संताप ाणी को घेर लेते ह, और वषाद, मा सक चंच ता-अ थरता एवं असंतुलन से
मनु य को विभ न कार के क का सामना करना पड़ता ह।

धम ंथोमे चं मा को िशव के म तक पर सुशोिभत बताय गया ह। ज से भगवान िशव क कृ पा ा

होने से चं दे व क कृ पा वतः ा हो जाती ह। महािशवरा को िशव क अ यंत य ितिथ बताई गई ह। यादातर


योितषी िशवरा के दन िशव आराधना कर सम त क से मु पाने क सलाह दे ते ह।

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O;fDr esa ldkjkRed fopkj /kkjk vkrh gSA मू य:- 910 से 8200 तक उ ल
i Xkq:Ro T;ksfr”k 18 vxLr 2010

गंगा का वग से पृ थवी पर आगमन केसे हवा


ु ?
 िचंतन जोशी
युिध र ने लोमश ऋ ष से पूछा, "हे मुिनवर! राजा भगीरथ गंगा को कस कार पृ वी
पर ले आये? कृ पया इस संग को भी सुनाय।" लोमश ऋ ष ने कहा, "धमराज!
इ वाकु वंश म सगर नामक एक बहत
ु ह तापी राजा हवे
ु । उनके वैदभ और
शै या नामक दो रािनयाँ थीं। राजा सगर ने कैलाश पवत पर दोन रािनय के
साथ जाकर शंकर भगवान क घोर तप या क । उनक तप या से स न
होकर भगवान शंकर ने उनसे कहा क हे राजन ्! तुमने पु ाि क कामना
से मेर आराधना क है । अतएव म वरदान दे ता हँू क तु हार एक रानी के
साठ हजार पु ह गे क तु दसर
ू रानी से तु हारा वंश चलाने वाला एक ह
संतान होगी। इतना कहकर शंकर भगवान पूनः अ त यान हो गये।
"समय बीतने पर शै या ने असमंज नामक एक अ य त पवान
पु को ज म दया और वैदभ के गभ से एक तु बी उ प न हई
ु जसे फोड़ने
पर साठ हजार पु िनकले। कालच बीतता गया और असमंज का अंशुमान
नामक पु उ प न हआ।
ु असमंज अ य त द ु कृ ित का था इसिलये राजा सगर
ने उसे अपने दे श से बाहर कर दया। फर एक बार राजा सगर ने अ मेघ य
करने क द ा ली। अ मेघ य का यामकण घोड़ा छोड़ दया गया और उसके पीछे -
पीछे राजा सगर के साठ हजार पु अपनी वशाल सेना के
साथ चलने लगे। सगर के इस अ मेघ य से भयभीत होकर दे वराज इ ने अवसर पाकर उस घोड़े को चुरा िलया
और उसे ले जाकर क पल मुिन के आ म म बाँध दया। उस समय क पल मुिन यान म लीन थे अतः उ ह इस
बात का पता नह ं चला क इ ने घोड़े बाँध दया ह। इधर सगर के साठ हजार पु ने घोड़े को पृ वी के हरे क थान
पर ढँू ढा क तु उसका पता नह ं लग पाया। वे घोड़े को खोजते हये
ु पृ वी को खोद कर पाताल लोक तक पहँु च गये
जहाँ अपने आ म म क पल मुिन तप या कर रहे थे और वह ं पर वह घोड़ा बँधा हआ
ु था। सगर के पु ने यह समझ

कर क घोड़े को क पल मुिन ह चुरा लाये ह, क पल मुिन को कटवचन सुनाना आर भ कर दया। अपने िनरादर से
कु पत होकर क पल मुिन ने राजा सगर के साठ हजार पु को अपने ोधा न से भ म कर दया।
जब सगर को नारद मुिन के ारा अपने साठ हजार पु के भ म हो जाने का समाचार िमला तो वे अपने
पौ अंशुमान को बुलाकर बोले क बेटा! तु हारे साठ हजार दादाओं को मेरे कारण क पल मुिन क ोधा न म भ म
हो जाना पड़ा। अब तुम क पल मुिन के आ म म जाकर उनसे मा ाथना करके उस घोड़े को ले आओ। अंशुमान
अपने दादाओं के बनाये हये
ु रा ते से चलकर क पल मुिन के आ म म जा पहँु चे। वहाँ पहँु च कर उ ह ने अपनी ाथना
एवं मृ दु यवहार से क पल मुिन को स न कर िलया। क पल मुिन ने स न होकर उ ह वर माँगने के िलये कहा।
अंशुमान बोले क मुने! कृ पा कर के हमारा अ लौटा द और हमारे दादाओं के उ ारका कोई उपाय बताय। क पल मुिन
ने घोड़ा लौटाते हये
ु कहा क व स! जब तु हारे दादाओंका उ ार केवल गंगा के जल से तपण करने पर ह हसकता है ।
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"अंशुमान ने य का अ लाकर सगर का अ मेघ य पूण करा दया। य पूण होने पर राजा सगर
अंशुमान को रा य स प कर गंगा को वग से पृ वी पर लाने के उ े य से तप या करने के िलये उ राखंड चले गये
इस कार तप या करते-करते उनका वगवास हो गया। अंशुमान के पु का नाम दलीप था। दलीप के बड़े होने पर
अंशुमान भी दलीप को रा य स प कर गंगा को वग से पृ वी पर लाने के उ े य से तप या करने के िलये उ राखंड
चले गये क तु वे भी गंगा को वग से पृ वी पर लाने म सफल नह ं हो सके। दलीप के पु का नाम भगीरथ था।
भगीरथ के बड़े होने पर दलीप ने भी अपने पूव ज का अनुगमन कया क तु गंगा को लाने म उ ह भी असफलता ह
हाथ आई।
"अ ततः भगीरथ क तप या से गंगा स न हु और उनसे वरदान माँगने के िलया कहा। भगीरथ ने हाथ
जोड़कर कहा क माता! मेरे साठ हजार पुरख के उ ार हे तु आप पृ वी पर अवत रत होने क कृ पा कर। इस पर गंगा
ने कहा व स! म तु हार बात मानकर पृ वी पर अव य आउँ गी, क तु मेरे वेग को शंकर भगवान के अित र और
कोई सहन नह ं कर सकता। इसिलये तुम पहले शंकर भगवान को स न करो। यह सुन कर भगीरथ ने शंकर भगवान
क घोर तप या क और उनक तप या से स न होकर िशव जी हमालय के िशखर पर गंगा के वेग को रोकने के
िलये खड़े हो गये। गंगा जी वग से सीधे िशव जी क जटाओं पर जा िगर ं। इसके बाद भगीरथ गंगा जी को अपने
पीछे -पीछे अपने पूव ज के अ थय तक ले आये जससे उनका उ ार हो गया। भगीरथ के पूव ज का उ ार करके गंगा
जी सागर म जा िगर ं और अग य मुिन ारा सोखे हये
ु समु म फर से जल भर गया।"

जीवन म ान क कमाई
एक संत महा मा थे। उनका एक युवा िश य था। उस िश य को अपने ान और व ता पर बड़ा घमंड था।
महा मा उसके इस घमंड को दरू करना चाहते थे। इसिलए एक दन सवेरे ह वह उसे साथ लेकर या ा पर
िनकले। धूप चढ़ते दे ख दोन एक खेत म पहंु चे। वहां एक कसान या रयां बना कर सींच रहा था। गु -िश य
काफ दे र तक वहां खड़े रहे , क तु कसान ने आंख उठाकर उनक ओर दे खा तक नह ं। वह लगन से अपने काम
म म नता से अपने काम म लगा रहा। सं या होते होते गु -िश य एक नगर म पहंु चे। वहां उ ह ने दे खा क एक
लुहार लोहा पीट रहा ह। पसीने से उसक सार दे ह तर-बतर हो रह थी। गु -िश य काफ दे र वहां खड़े रहे ,
ले कन लुहार को गदन ऊपर उठाने क भी फुरसत नह ं थी।
गु -िश य फर और आगे बढ़े और सं या से रा ी होने के समय वे एक सराय म पहंु चे। वे थकान से चूर हो
गये। वहां तीन मुसा फर और बैठे थे। वे भी पूर तरह थके हए
ु दखाई पड़ते थे। गु ने िश य से कहा, "तुमने
दे खा, कुछ पाने के िलए कतना दे ना पडता ह। कसान अपना तन-मन लुटाता ह, तब कह ं खेत म अ न फलता
ह। लुहार शर र क उजा दे ता ह तब धातु िस होती ह। या ी अपने को चुकाकर मं जल पाता ह। तुमने ान के
पोथे-पर-पोथे रट डाले, ले कन कतना ान पा िलया? ान तो कमाई ह। कमाकर उसे पाया जाता ह। कम से
ान क या रय को सींचो। जीवन क आंच म ान क धातु िस करो। माग म अपने को चुकाकर ान क
मं जल पाओ। ान कसी का सगा नह ं ह। ान को जो कमाता ह, ान उसी के पास जाता ह।
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िशव पूजन से कामना िस

 िचंतन जोशी
िशविलंग पर गंगा जल से अिभषेक करने से भौितक सुख ा होता ह एवं मनु य को मो क ाि होती ह।
िशव पुराण के अनुशार िशविलंग पर अ न, फूल एवं विभ न व तुओं से जलािभषेक कर मनु य के सम त कार के
क ोका िनवारण कया जासकता ह।
 िन न साधना िशव ितमा(मूित) के सम करने से शी लाभ ा होते ह।
 ल मी ाि हे तु भगवान िशव को ब वप , कमल, शतप एवं शंखपु प अपण करने से लाभ ा होता ह।
 पु ाि हे तु भगवान िशव को धतुरे के फूल अपण करने से शुभ फल क ाि होती ह।
 भौितक सुख एवं मो ाि हे तु वेत आक, अपमाग एवं सफेद कमल के फूल भगवान िशव को चढाने से लाभ
ा होता ह।
 वाहन सुख क ाि हे तु चमेली के फूल भगवान िशव को चढाने से शी उ म वाहन ाि के योग बनते ह।
 ववाह सुख म आने वाली बाधाओं को दरू करने हे तु बेला के फूल भगवान िशव को चढाने से उ म प ी क
ाि होती होती ह एवं क या के फूल चढाने से उ म पित क ाि होती ह।
जूह के फूल भगवान िशव को चढाने से य को अ न का अभाव नह ं होता ह।
 सुख स प क ाि हे तु भगवान िशव को हार िसंगार के फूल चढाने से लाभ ा होता ह।

िशविलंग पर अिभषेक हे तु योग


 वंश वृ हे तु िशविलंग पर घी का अिभषेक शुभ फलदायी होता ह।
 भौितक सुख साधनो म वृ हे तु िशविलंग पर सुगंिधत य से अिभषेक करने से शी उनम बढोतर होती ह।
 रोग िनवृ हे तु महामृ युंजय मं जप करते हवे
ु शहद (मधु) से अिभषेक करने से रोग का नाश होता ह।
 रोजगार वृ हे तु गंगाजल एवं शहद (मधु) से अिभषेक करने से लाभ ा होता ह।

वण मास म कये गये पूजन एवं अिभषेक से भगवान िशव क कृ पा ाि के साथ-साथ माता पवती, गणेश और मां
ल मी क भी कृ पा ा होती ह।

या आप कसी सम या से त ह?
आपके पास अपनी सम याओं से छुटकारा पाने हे तु पूजा-अचना, साधना, मं जाप इ या द करने का समय नह ं
ह? अब आप अपनी सम याओं से बीना कसी वशेष पूजा-अचना, विध- वधान के आपको अपने काय म सफलता
ा कर सके एवं आपको अपने जीवन के सम त सुखो को ा करने का माग ा हो सके इस िलये गु व
कायालत ारा हमारा उ े य शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस ाण- ित त पूण चैत य यु
विभ न कार के य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
गु व कायालय:
Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA, Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785,
E-mail Us:- gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
i Xkq:Ro T;ksfr”k 21 vxLr 2010

ा- वषणु-महे श म े कोन?
 राकेश पंडा
वेद शा के अनुशार मह ष भृ गु ाजी के मानस पु थे। उनक प ी का नाम याित था जो द क पु ी थी। मह ष भृ गु स
ऋ षमंडल के एक ऋ ष ह। सावन और भा पद म वे भगवान सूय के रथ पर सवार रहते ह। एक बार क बात ह, सर वती नद के
तट पर सभी ऋ ष-मुिन एक त होकर इस वषय पर चचा कर रहे थे क ा- वषणु-महे श म सबसे बड़े और े कौन है ? इसका
कोई िन कष न िनकलता दे ख ऋ ष-मुिनय ने तीनो दे व क पर ा लेने का िनणय कया और ाजी के मानस पु मह ष भृ गु को
इस काय के िलए िनयु कया गया। मह ष भृ गु सव थम अपने पता ाजी के पास गए, मह ष भृ गु ने न तो णाम कया और न
ह उनक तुित क । यह दे ख ाजी ोिधत हो गए। ोध क अिधकता से उनका मुख लाल हो गया। आँख म अंगारे दहकने
लगे। ले कन फर यह सोचकर क ये उनके पु ह, ाजी ने दय म उठे ोध के आवेग को अपनी ववेक-बु से दबा दया।

वहाँ से मह ष भृ गु कैलाश पवत पर गए। दे वािधदे व भगवान महादे व ने दे खा क भृ गु आ रहे ह तो वे स न होकर अपने
आसन से उठे और उनका आिलंगन करने के िलए भुजाएँ फैला द ।ं कंतु उनक पर ा लेने के िलए भृ गु मुिन उनका आिलंगन
अ वीकार करते हए
ु बोले-“महादे व! आप सदा वेद और धम क मयादा का उ लंघन करते ह। द ु और पा पय को आप जो वरदान
दे ते ह, उनसे सृ पर भयंकर संकट आ जाता है । इसिलए म आपका आिलंगन कदा प नह ं क ँ गा।”
उनक बात सुनकर भगवान िशव ोध से ितलिमला उठे । उ ह ने जैसे ह शूल उठा कर उ ह मारना चाहा, वैसे ह भगवती सती ने
बहत
ु अनुरोध- वनय कर कसी कार से उनका ोध शांत कया।

इसके बाद भृ गु मुिन वैकु ठ लोक गए। उस समय भगवान ी व णु दे वी ल मी क गोद म िसर रखकर लेटे थे।
भृ गु ने जाते ह उनके व पर एक तेज लात मार । भ -व सल भगवान व णु शी ह अपने आसन से उठ खड़े हए
ु और उ ह
णाम करके उनके चरण सहलाते हए
ु बोले-“भगवन! आपके पैर पर चोट तो नह ं लगी? कृ पया इस आसन पर व ाम क जए।
भगवन! मुझे आपके शुभ आगमन का ान न था। इसिलए म आपका वागत नह ं कर सका। आपके चरण का पश तीथ को
प व करने वाला ह। आपके चरण के पश से आज म ध य हो गया।” भगवान व णु का यह स ेम- यवहार दे खकर मह ष भृ गु
क आँख से आँसू बहने लगे। उसके बाद वे ऋ ष-मुिनय के पास लौट आए और ा, वषणु और महे श के यहाँ के सभी अनुभव
व तार से कह बताया। उनके अनुभव सुनकर सभी ऋ ष-मुिन बड़े है रान हए
ु और उनके सभी संदेह दरू हो गए। तभी से वे भगवान
व णु को सव े मानकर उनक पूजा-अचना करने लगे। ऋ ष-मुिनय ने मनु य के भीतर उठने वाले संदेह को िमटाने के िलए
ऐसी लीला हजारो वष पूव ह रची थी।

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िशविलंग पूजा का मह व या ह?
 िचंतन जोशी
िशवमहा पुराण के सृ खंड अ याय १२ ोक ८२ से ८६ म ा जी के पु संतकुमार जी वेद यास जी को उपदे श दे ते हए
ु कहते ह,
हर गृ ह थ मनु य को अपने स गु से विधवत द ा लेकर पंचदे व (गणेश, सूय, व णु, दगा
ु , िशव) क ितमाओं का िन य
पूजन करना चा हए। य क िशव ह सबके मूल ह, इस िलये मूल (िशव) को सींचने से सभी दे वता तृ प हो जाते ह पर तु सभी
दे वताओं को स न करने पर भी िशव स न नह ं होते। यह रह य केवल और केवल स गु क शरण म रहने वाले य ह जान
सकते ह।
 सृ के पालनकता भगवान व णु ने एक बार सृ के रचियता ा के साथ िनगु ण, िनराकार िशव से ाथना क , भु आप
कैसे स न होते ह। भगवान िशव बोले मुझे स न करने के िलए िशविलंग का पूजन करो। जब कसी कार का संकट या द:ु ख
हो तो िशविलंग का पूजन करने से सम त द:ु ख का नाश हो जाता है ।(िशवमहापुराण सृ खंड )
 जब दे व ष नारद ने भगवान ी व णु को शाप दया और बाद म प ाताप कया तब व णु ने नारदजी को प ाताप के िलए
िशविलंग का पूजन, िशवभ का स कार, िन य िशवशत नाम का जाप आ द उपाय सुझाये।(िशवमहापुराण सृ खंड )
 एक बार सृ रचियता ाजी सभी दे वताओं को लेकर ीर सागर म ी व णु के पास परम त व जानने के िलए पहोच गये।
ी व णु ने सभी को िशविलंग क पूजा करने का सुझाव दया और व कमा को बुलाकर दे वताओं के अनुसार अलग-अलग
य पदाथ के िशविलंग बनाकर दे ने का आदे श दे कर सभी को विधवत पूजा से अवगत करवाया। (िशवमहापुराण सृ खंड )
 ा जी ने दे व ष नारद को िशविलंग क पूजा क म हमा का उपदे श दे ते हवे
ु कहा। इसी उपदे श से जो ंथ क रचना हई
ु वो िशव
महापुराण ह। माता पावती के अ य त आ ह से, जनक याण के िलए िनगु ण, िनराकार िशव ने सौ करोड़ ोक म
िशवमहापुराण क रचना क। जो चार वेद और अ य सभी पुराण िशवमहापुराण क तुलना म नह ं आ सकते। भगवान िशव
क आ ा पाकर व णु के अवतार वेद यास जी ने िशवमहापुराण को २४६७२ ोक म सं कया ह।
 जब पा ड़व वनवास म थे , तब कपट से दय
ु धन पा ड़व को दवासा
ु ऋ ष को भेजकर तथा मूक नामक
रा स को भेजकर क दे ता था। तब पा ड़व ने ी कृ ण से दय
ु धन के द ु यवहार से अवगत कराया
और उससे छुटकारा पाने का माग पूछा। तब ी कृ ण ने पा ड़व को भगवान िशव क पूजा करने के
िलए सलाह द और कहा मने वयंने अपने सभी मनोरथ को ा करने के िलए भगवान िशव क
पूजा क ह और आज भी कर रहा हंु । आप लोग भी करो। वेद यासजी ने भी पा ड़व को भगवान िशव क
पूजा का उपदे श दया। हमालय से लेकर पा ड़व व के हर कोने म जहां भी गये उन सभी थानो
पर िशविलंग क थापना कर पूजा अचना करने का वणन शा म िमलता ह।
िशव महापुराण

सृ खंड अ याय ११ ोक १२ से १५ म िशव पूजा से ा होने वाले सुख का वणन इस कार ह:


द र ता, रोग क , श ु पीड़ा एवं चार कार के पाप तभी तक क दे ता है , जब तक भगवान
िशव क पूजा नह ं क जाती। महादे व का पूजन कर लेने पर सभी कार के द:ु खोका शमन हो जाता ह।
सभी कार के सुख ा हो जाते ह एवं इससे सभी मनोकामनाएं िस हो जाती ह।(िशवमहापुराण सृ खंड
अ याय- ११ ोक१२ से १५
i Xkq:Ro T;ksfr”k 23 vxLr 2010

चातुमास त का मह व
 िचंतन जोशी
ह द ू धम ंथ के अनुसार, आषाढ मास म शु लप क
एकादशी क रा से भगवान व णु इस दन से लेकर अगले
चार मास के िलए योगिन ा म लीन हो जाते ह, एवं काितक
मास म शु लप क एकादशी के दन योगिन ा से जगते ह।
इसिलये चार इन मह न को चातुमास कहाजाता ह। चातुमास का
ह द ू धम म वशेष आ या मक मह व माना जाता ह।
अषाढ मास म शु ल प क ादशी अथवा पू णमा
अथवा जब सूय का िमथुन रािश से कक रािश म वेश होता ह
तब से चातुमास के त का आरं भ होता ह। चातुमास के त क
समाि काितक मास म शु ल प क ादशी को होती ह। साधु सं यासी अषाढ मास क पू णमा से चातुमास मानते ह।
सनातन धम के अनुयायी के मत से भगवान व णु सव यापी ह. एवं स पूण ांडा भगवान व णु क
श से ह संचािलत होता ह। इस िलये सनातन धम के लोग अपने सभी मांगिलक काय का शुभारं भ भगवान व णु
को सा ी मानकर करते ह।
शा ो म िलखा गया है क वषाऋतु के चार मास म ल मी जी भगवान व णु क सेवा करती ह। इस
अविध म य द कुछ िनयम का पालन करते हवे
ु अपनी मनोकामना पूित हे तु त करने से वशेष लाभ ा होता ह।
चातुमास म त करने वाले साधक को ित दन सूय दय के समय नान इ या द से िनवृ होकर भगवान
व णु क आराधना करनी चा हये।

चातुमास के त का ारं भ करने से पूव िन न संक प करना चा हये।


"हे भु, मने यह त का संक प आपको सा मानकर उप थित म िलया ह। आप मेरे उपर कृ पा रख
कर मेरे त को िन व न समा करने का साम य मुजे दान कर। य द त को हण करने के उपरांत बीच म मेर
मृ यु हो जाये तो आपक कृ पा यह पूण प से समा हो जाये।

त के दौरन भगवान व णु क वंदना इस कार कर।


शांताकारं भुजगशयनंप नाभंसुरेशं।
व ाधारं गगनस शंमेघवणशुभा गम॥

ल मीका तंकमलनयनंयोिगिभ यानग यं।
व दे व णुंभवभयहरं सवलोकैकनाथम॥्
भावाथ:- जनक आकृ ित अितशय शांत ह, जो शेषनाग क श यापर शयन कर रहे ह, जनक नािभ म कमल है, जो सब
दे वताओं ारा पू य ह, जो संपूण व के आधार ह, जो आकाश के स य सव या ह, नीले मेघ के समान जनका
वण ह, जनके सभी अंग अ यंत सुंदर ह, जो योिगय ारा यान करके ा कये जाते ह, जो सब लोक के वामी ह,
जो ज म-मरण प भय को दरू करने वाले ह, ऐसे ल मीपित,कमलनयन,भगवान व णु को म णाम करता हंू ।
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कंदपुराण के अनुशार चातुमास का विध- वधान और माहा य इस कार व तार से


व णत ह।

चातुमास म शा ीय विभ न िनयम का पालन कर त करने से अ यािधक


पु य लाभ ा होते ह।
 जो य चातुमास म केवल शाकाहार भोजन हण करता ह, वह धन धा य से
स प न होता ह।
 जो य चातुमास म ित दन रा ी चं उदय के बाद दन म मा एकबार
भोजन करता ह, उसे सुख समृ एवं ए य क ाि होती ह।
 जो य भगवान व णु के शयनकाल म बना मांगे अ न का सेवन करता ह,
उसे भाई-बंधुओं का पूण सुख ा होता ह।
 वा थय लाभ एवं िनरोगी रे हने के िलये चातुमास म व णुसू के मं को वाहा
करके िन य हवन म चावल और ितल क आहितयां
ु दे ने से लाभ ा होता ह।
 चातुमास के चार मह न म धम ं थ के िनयिमत वा याय से पु य फल िमलता
ह।
 चातुमास के चार मह न म य जस व तु को यागता ह वह व तु उसे अ य प
म पुनः ा हो जाती ह।

चातुमास का सद उपयोग आ म उ नित के िलए कया जाता ह। चातुमास के िनयम मनु य के िभतर
याग और संयम क भावना उ प न करने के िलए बने ह।

चातुमास म कस पदाथ का याग कर

त करने वाले य को...


 ावण मास म हर स जी का याग करना चा हये।
 भा पद मास म दह का याग करना चा हये।
 आ न मास म दध
ू का याग करना चा हये।
 काितक मास म दाल का का याग करना चा हये।
त कता को शै या शयन, मांस, मधु आ द का सेवन याग करना चा हये।

याग कये गय पदाथ का फल िन न कार ह।


 जो य गुड़ का याग करता ह, उसक वाणी म मधुरता आित ह।
 जो य तेल का याग करता ह, उसके सम त श ुओं का नाश होता ह।
 जो य घी का याग करता ह, उसके सौ दय म वृ होती ह।
 जो य हर स जी का याग करता ह, उसक बु बल होती ह एवं पु लाभ ा होता ह।
 जो य दध
ू एवं दह का याग करता ह, उसके वंश म वृ होकर उसे मृ यु उपरांत गौलोक म थान ा होता ह।
 जो य नमक का याग करता ह, उसक सम त मनोकामना पूण होकर उसके सभी काय म िन त सफलता ा होती ह।
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य िशव को य ह बेल प ?
 िचंतन जोशी
या ह बेल प अथवा ब व-प ?
ब व-प एक पेड़ क प यां ह, जस के हर प े लगभग तीन-तीन के समूह म िमलते ह। कुछ प यां चार या पांच
के समूह क भी होती ह। क तु चार या पांच के समूह वाली प यां बड़ दलभ
ु होती ह। बेल के पेड को ब व भी कहते ह। ब व के
पेड़ का वशेष धािमक मह व ह। शा ो मा यता ह क बेल के पेड़ को पानी या गंगाजल से सींचने से सम त तीथ का फल ा
होता ह एवं भ को िशवलोक क ाि होती ह। बेल क प य म औषिध गुण भी होते ह। जसके उिचत औषधीय योग से कई
रोग दरू हो जाते ह। भारितय सं कृ ित म बेल के वृ का धािमक मह व ह, यो क ब व का वृ भगवान िशव का ह प है ।
धािमक ऐसी मा यता ह क ब व-वृ के मूल अथात उसक जड़ म िशव िलंग व पी भगवान िशव का वास होता ह। इसी कारण
से ब व के मूल म भगवान िशव का पूजन कया जाता ह। पूजन म इसक मूल यानी जड़ को सींचा जाता ह।

धम ंथ म भी इसका उ लेख िमलता ह-


ब वमूले महादे वं िलंग पणम ययम।् य: पूजयित पु या मा स िशवं ा नुया ॥
ब वमूले जलैय तु मूधानमिभ ष चित। स सवतीथ नात : या स एव भु व पावन:॥ (िशवपुराण(

भावाथ : ब व के मूल म िलंग पी अ वनाशी महादे व का पूजन जो पु या मा य करता है , उसका क याण होता है । जो य
िशवजी के ऊपर ब वमूल म जल चढ़ाता है उसे सब तीथ म नान का फल िमल जाता है ।

ब व प तोड़ने का मं
ब व-प को सोच-समझ कर ह तोड़ना चा हए। बेल के प े तोड़ने से पहले िन न मं का उ चरण करना चा हए-
अमृ तो व ीवृ महादे व यःसदा।
गृ ािम तव प ा ण िशवपूजाथमादरात॥् -(आचारे द)ु

भावाथ :अमृ त से उ प न स दय व ऐ यपूण वृ महादे व को हमेशा य है । भगवान िशव क पूजा के िलए हे वृ म तु हारे प
तोड़ता हंू ।

कब न तोड़ ब व क प यां?
 वशेष दन या वशेष पव के अवसर पर ब व के पेड़ से प यां तोड़ना िनषेध ह।
 शा के अनुसार बेल क प यां इन दन म नह ं तोड़ना चा हए-
 बेल क प यां सोमवार के दन नह ं तोड़ना चा हए।
 बेल क प यां चतुथ , अ मी, नवमी, चतुदशी और अमाव या क ितिथय को नह ं तोड़ना चा हए।
 बेल क प यां सं ांित के दन नह ं तोड़ना चा हए।

अमा र ासु सं ा याम यािम दवासरे


ु ।
ब वप ं न च िछ ा छ ा चे नरकं जेत ॥) िलंगपुराण
भावाथ: अमाव या, सं ा त के समय, चतुथ , अ मी, नवमी और चतुदशी ितिथय तथा सोमवार के दन ब व-प तोड़ना
व जत है ।
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चढ़ाया गया प भी पूनः चढ़ा सकते ह?


शा म वशेष दन पर ब व-प तोडकर चढ़ाने से मना कया गया ह तो यह भी कहा गया है क इन दन म चढ़ाया गया
ब व-प धोकर पुन :चढ़ा सकते ह।

अ पता य प ब वािन ा या प पुन :पुन:।


शंकरायापणीयािन न नवािन य द िचत॥्) क दपुराण( और (आचारे द)ु

भावाथ: अगर भगवान िशव को अ पत करने के िलए नूतन ब व-प न हो तो चढ़ाए गए प को बार-बार धोकर चढ़ा सकते ह।

बेल प चढाने का मं
भगवान शंकर को व वप अ पत करने से मनु य क सवकाय व मनोकामना िस होती ह। ावण म व व प अ पत करने का
वशेष मह व शा ो म बताया गया ह।

व व प अ पत करते समय इस मं का उ चारण करना चा हए:

दलं गुणाकारं ने ं च धायुतम।्


ज मपापसंहार, व वप िशवापणम ्

भावाथ: तीन गुण, तीन ने , शूल धारण करने वाले और तीन ज म के पाप को संहार करने वाले हे िशवजी आपको दल ब व
प अ पत करता हंू ।

िशव को ब व-प चढ़ाने से ल मी क ाि होती है ।

अपन क चोट
एक सुनार था। उसक दकान
ु से लगकर एक लुहार क दकान
ु थी। सुनार जब काम करता, उसक दकान
ु से
बहत
ु ह धीमी आवाज होती, पर जब लुहार काम करतातो उसक दकान
ु से कानो के पद फाड़ दे ने वाली
आवाज सुनाई पड़ती। एक दन सोने का एक कण िछटक कर लुहार क दकान
ु म आ िगरा। वहां उसक भट
लोहे के एक कण के साथ हई।
ु सोने के कण ने लोहे के कण से कहा, "भाई, हम दोन का द:ु ख एक समान
ह। हम दोन को एक ह तरह आग म तपाया जाता ह और समान प से हथौड़े क चोट सहनी पड़ती ह।
म यह सब यातना चुपचाप सहन करता हंू, पर तुम इतना िच ला य रह हो? तु हारा कहना एक दम सह
ह, ले कन तुम पर चोट करने वाला लोहे का हथौड़ा तु हारा सगा भाई नह ं ह, पर वह मेरा सगा भाई ह।"
लोहे के कण ने द:ु ख भरे वर म उ र दया। फर कुछ ककर बोला, पराये क अपे ा अपन के ारा
दगई चोट क पीड़ा अिधक अस हो जाती ह।
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सोलह सोमवार तकथा


 व तक.ऎन.जोशी

मृ यु लोक म ववाह करने क इ छा करके एक बार ी भगवान िशवजी माता पावती के साथ पधारे वहाँ वे
मण करते-करते वदभ दे शांतगत अमरावती नाम क अतीव रमणीक नगर म पहँु चे । अमरावती नगर अमरपुर के
स श सब कार के सुख से प रपूण थी । उसम वहां के महाराज का बनाया हआ
ु अित रमणीक िशवजी का म दर
बना था । उसम भगवान शंकर भगवती पावती के साथ िनवास करने लगे ।
एक समय माता पावती ाणपित को स न दे ख के मनो वनोद करने क
इ छा से बोली – हे माहाराज, आज तो हम आप दोन चौसर खेल । िशवजी
ने ाण या क बात को मान िलया और चौसर खेलने लगे । उसी समय इस
थान पर म दर के पुजार ा ण म दर मे पूजा करने को आया । माताजी
ने ाहमण से कया क पुजार जी बताओ क इस बाजी म दोन म
कसक जीत होगी । ाहमण बना वचारे ह शी बोल उठा क महादे वजी
क जीत होगी । थोड़ दे र म बाजी समा हो गई और पावती जी क वजय
हई
ु । अब तो पावती जी ा ण को झूठ बोलने के अपराध के कारण ाप दे ने
को उघत हई
ु । तब महादे व जी ने पावती जी को बहत
ु समझाया पर तु
उ ह ने ा ण को कोढ़ होने का ाप दे दया । कुछ समय बाद पावती जी
के ापवश पुजार के शर र म कोढ़ पैदा हो गया । इस कार पुजार अनेक
कार से दखी
ु रहने लगा । इस तरह के क भोगते हए
ु जब बहत
ु दन हो
गये तो दे वलोक क अ सराएं िशवजी क पूजा करने उसी म दर मे पधार और पुजार के क को दे खकर बड़े दया
भाव से उससे रोगी होने का कारण पूछने लगी – पुजार ने िनःसंकोच सब बाते उनसे कह द । वे अ सराय बोली – हे
पुजार । अब तुम अिधक दखी
ु मत होना । भगवान िशवजी तु हारे क को दरू कर दगे । तुम सब बात म े षोडश
सोमवार का तभ भाव से करो । तब पुजार अ सराओं से हाथ जोड़कर वन भाव से षोडश सोमवार त क विध
पूछने लगा । अ सराय बोली क जस दन सोमवार हो उस दन भ के साथ त कर । व छ व पहन आधा सेर
गेहूँ का आटा ले । उसके तीन अंगा बनाये और घी, गुड़, द प, नैवेघ, पुंगीफल, बेलप , जनेऊ का जोड़ा, च दन, अ त,
पु पा द के ारा दोष काल म भगवान शंकर का विध से पूजन करे त प ात अंगाऔ ं म से एक िशवजी को अपण
कर बाक दो को िशवजी का साद समझकर उप थत जन म बांट द । और आप भी साद पाव । इस विध से
सोलह सोमवार त कर । त प ात ् स हव सोमवार के दन पाव सेर प व गेहूं के आटे क बाट बनाय । तद अनुसार
घी और गुड़ िमलाकर चूरमा बनाव । और िशवजी का भोग लगाकर उप थत भ म बांटे पीछे आप सकुटंु ब साद ल
तो भगवान िशवजी क कृ पा से उसके मनोरथ पूण हो जाते है । ऐसा कहकर अ सराय वग को चली गयी । ाहमण
ने यथा विध षोड़श सोमवार त कया तथा भगवान िशवजी क कृ पा से रोग मु होकर आन द से रहने लगा । कुछ
दन बाद जब फर िशवजी और पावती उस म दर म पधारे , तब ाहमण को िनरोग दे खकर पावती ने ाहमण से
रोग-मु होने का कारण पूछा तो ाहमण ने सोलह सोमवार त कथा कह सुनाई । तब तो पावती जी अित स न
होकर ाहमण से त क विध पूछकर त करने को तैयार हई
ु ।
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त करने के बाद उनक मनोकामना पूण हई


ु तथा उनके ठे
हये
ु पु वामी काितकेय वयं माता के आ ाकार पु हए
ु पर तु
काितकेय जी को अपने वचार प रवतन का रह य जानने क
इ छा हई
ु और माता से बोले – हे माताजी आपने ऐसा कौन
सा उपाय कया जससे मेरा मन आपक ओर आक षत हआ

। तब पावती जी ने वह षोड़श सोमवार त कथा उनको
सुनाई ।
वामी काितकजी बोले क इस त को म भी
क ं गा य क मेरा यिम ाहमण दखी
ु दल से परदे श चला
गया है । हम उससे िमलने क बहत
ु इ छा है । काितकेयजी ने
भी इस त को कया और उनका य िम िमल गया । िम ने
इस आक मक िमलन का भेद काितकेयजी से पूछा तो वे बोले – हे िम
। हमने तु हारे िमलने क इ छा करके सोलह सोमवार का त कया था । अब तो ाहमण िम को भी अपने ववाह
क बड़ इ छा हई
ु । काितकेयजी से त क विध पूछ और यथा विध त कया । त के भाव से जब वह कसी
कायवश वदे श गया तो वहाँ के राजा क लड़क का वयंवर था । राजा ने ण कया था क जस राजकुमार के गले
म सब कार ऋंडा रत हिथनी माला डालेगी म उसी के साथ यार पु ी का ववाह कर दं ग
ू ा । िशवजी क कृ पा से
ाहमण भी वयंवर दे खने क इ छा से राजसभा म एक ओर बैठ गया । िनयत समय पर हिथनी आई और उसने
जयमाला उस ाहमण के गले म डाल द । राजा क ित ा के अनुसार बड़ धूमधाम से क या का ववाह उस
ाहमण के साथ कर दया और ाहमण को बहत
ु -सा धन और स मान दे कर संतु कया । ाहमण सु दर राजक या
पाकर सुख से जीवन यतीत करने लगा । एक दन राजक या ने अपने पित से कया । हे ाणनाथ आपने ऐसा
कौन-सा भार पु य कया जसके भाव से हिथनी ने सब राजकुमार को छोड़कर आपको वरण कया । ाहमण बोला
– हे ाण ये । मने अपने िम काितकेयजी के कथनानुसार सोलह सोमवार का त कया था जसके भाव से मुझे
तुम जैसी व पवान ल मी क ाि हई
ु । त क म हमा को सुनकर राजक या को बड़ा आ य हआ
ु और वह भी पु
क कामना करके त करने लगी । िशवजी क दया से उसके गभ से एक अित सु दर सुशील धमा मा व ान पु
उ प न हआ
ु । माता- पता दोन उस दे व पु को पाकर अित स न हए
ु । और उनका लालन-पालन भली कार से
करने लगे ।

जब पु समझदार हआ
ु तो एक दन अपने माता से कया क मां तूने कौन-सा तप कया है जो मेरे जैसा
पु तेरे गभ से उ प न हआ
ु । माता ने पु का बल मनोरथ जान के अपने कये हए
ु सोलह सोमवार त को विध
स हत पु के स मुख कट कया । पु ने ऐसे सरल त को सब तरह के मनोरथ पूण करने वाला सुना तो वह भी
इस त को रा यािधकार पाने क इ छा से हर सोमवार को यथा विध त करने लगा । उसी समय एक दे श के वृ
राजा के दत
ू ने आकर उसको एक राजक या के िलये वरण कया । राजा ने अपनी पु ी का ववाह ऐसे सवगुण
स प न ाहमण युवक के साथ करके बड़ा सुख ा कया ।
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वृ राजा के दवंगत हो जाने पर यह ाहमण बालक ग पर बठाया गया, य क दवंगत भूप के कोई पु
नह ं था । रा य का अिधकार होकर भी वह ाहमण पु अपने सोलह सोमवार के त को कराता रहा । जब स हवां
सोमवार आया तो व पु ने अपनी यतमा से सब पूजन साम ी लेकर िशवालय म चलने के िलये कहा । पर तु
यतमा ने उसक आ ा क परवाह नह ं क । दास-दािसय ारा सब सामि यं िशवालय पहँु चवा द और वयं नह ं
गई । जब राजा ने िशवजी का पूजन कया, तब एक आकाशवाणी राजा के ित हई
ु । राजा ने सुना क हे राजा ।
अपनी इस रानी को महल से िनकाल दे नह ं तो तेरा सवनाश कर दे गी । वाणी को सुनकर राजा के आ य का ठकाना
नह ं रहा और त काल ह मं णागृ ह म आकर अपने सभासद को बुलाकर पूछने लगा क हे मं य । मुझे आज
िशवजी क वाणी हई
ु है क राजा तू अपनी इस रानी को िनकाल दे नह ं तो तेरा सवनाश कर दे गी । मं ी आ द सब
बड़े व मय और दःख
ु म डू ब गये य क जस क या के साथ रा य िमला है । राजा उसी को िनकालने का जाल
रचता है , यह कैसे हो सकेगा । अंत म राजा ने उसे अपने यहां से िनकाल दया । रानी दःखी
ु दय भा य को कोसती
हई
ु नगर के बाहर चली गई । बना पद ाण, फटे व पहने, भूख से दखी
ु धीरे -धीरे चलकर एक नगर म पहँु ची । वहाँ
एक बु ढ़या सूत कातकर बेचने को जाती थी । रानी क क ण दशा दे ख बोली चल तू मेरा सूत बकवा दे । म वृ हँू,
भाव नह ं जानती हँू । ऐसी बात बु ढ़या क सुत रानी ने बु ढ़या के सर से सूत क गठर उतार अपने सर पर रखी ।
थोड़ दे र बाद आंधी आई और बु ढ़या का सूत पोटली के स हत उड़ गया । बेचार बु ढ़या पछताती रह गई और रानी
को अपने साथ से दरू रहने को कह दया । अब रानी एक तेली के घर गई, तो तेली के सब मटके िशवजी के कोप के
कारण चटक गये । ऐसी दशा दे ख तेली ने रानी को अपने घर से िनकाल दया । इस कार रानी अ यंत दख
ु पाती
हई
ु स रता के तट पर गई तो स रता का सम त जल सूख गया । त प ात ् रानी एक वन म गई, वहां जाकर सरोवर
म सीढ़ से उतर पानी पीने को गई । उसके हाथ से जल पश होते ह सरोवर का नीलकमल के स य जल असं य
क ड़ोमय गंदा हो गया ।
रानी ने भा य पर दोषारोपण करते हए
ु उस जल को पान करके पेड़ क शीतल छाया म व ाम करना चाहा ।
वह रानी जस पेड़ के नीचे जाती उस पेड़ के प े त काल ह िगरते चले गये । वन, सरोवर के जल क ऐसी दशा
दे खकर गऊ चराते वाल ने अपने गुंसाई जी से जो उस जंगल म थत मं दर म पुजार थे कह । गुंसाई जी के
आदे शानुसार वाले रानी को पकड़कर गुंसाई के पास ले गये । रानी क मुख कांित और शर र शोभा दे ख गुंसाई जान
गए । यह अव य ह कोई विध क गित क मार कोई कुलीन अबला है । ऐसा सोच पुजार जी ने रानी के ित कहा
क पु ी म तुमको पु ी के समान रखूंगा । तुम मरे आ म म ह रहो । म तुम को कसी कार का क नह ं होने
दं ग
ू ा। गुंसाई के ऐसे वचन सुन रानी को धीरज हआ
ु और आ म म रहने लगी ।
आ म म रानी जो भोजन बनाती उसम क ड़े पड़ जाते, जल भरकर लाती उसम क ड़े पड़ जाते । अब तो गुंसाई
जी भी दःखी
ु हए
ु और रानी से बोले क हे बेट । तेरे पर कौन से दे वता का कोप है , जससे तेर ऐसी दशा है । पुजार
क बात सुन रानी ने शवजी क पूजा करने न जाने क कथा सुनाई तो पुजार िशवजी महाराज क अनेक कार से
तुित करते हए
ु रानी के ित बोले क पु ी तुम सब मनोरथ के पूण करने वाले सोलह सोमवार त को करो । उसके
भाव से अपने क से मु हो सकोगी । गुंसाई क बात सुनकर रानी ने सोलह सोमवार त को विधपूव क स प न
कया और स हव सोमवार को पूजन के भाव से राजा के दय म वचार उ प न हआ
ु क रानी को गए बहत
ु समय
यतीत हो गया । न जाने कहां-कहां भटकती होगी, ढंू ढना चा हये ।
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यह सोच रानी को तलाश करने चार दशाओं म दत


ू भेजे । वे तलाश करते हए
ु पुजार के आ म म रानी को
पाकर पुजार से रानी को मांगने लगे, पर तु पुजार ने उनसे मना कर दया तो दत
ू चुपचाप लौटे और आकर महाराज
के स मुख रानी का पता बतलाने लगे । रानी का पता पाकर राजा वयं पुजार के आ म म गये और पुजार से
ाथना करने लगे क महाराज । जो दे वी आपके आ म म रहती है वह मेर प ी ह । िशवजी के कोप से मने इसको
याग दया था । अब इस पर से िशवजी का कोप शांत हो गया है । इसिलये म इसे िलवाने आया हँू । आप इसेमेरे
साथ चलने क आ ा दे द जये ।
गुंसाई जी ने राजा के वचन को स य समझकर रानी को राजा के साथ जाने क आ ा दे द । गुंसाई क
आ ा पाकर रानी स न होकर राजा के महल म आई । नगर म अनेक कार के बाजे बजने लगे । नगर िनवािसय
ने नगर के दरवाजे पर तोरण ब दनवार से व वध- विध से नगर सजाया । घर-घर म मंगल गान होने लगे । पं ड़त
ने व वध वेद मं का उ चारण करके अपनी राजरानी का आवाहन कया । इस कार रानी ने पुनः अपनी राजधानी
म वेश कया । महाराज ने अनेक कार से ाहमण को दाना द दे कर संतु कया ।
याचक को धन-धा य दया । नगर म थान- थान पर सदा त खुलवाये । जहाँ भूख को खाने को िमलता था
। इस कार से राजा िशवजी क कृ पा का पा हो राजधानी म रानी के साथ अनेक तरह के सुख का भोग भोग करते
सोमवार त करने लगे । विधवत ् िशव पूजन करते हए
ु , लोक के अनेकानेक सुख को भोगने के प ात िशवपुर को
पधारे ऐसे ह जो मनु य मनसा वाचा कमणा ारा भ स हत सोमवार का त पूजन इ या द विधवत ् करता है वह
इस लोक म सम त सुख क को भोगकर अ त म िशवपुर को ा होता है । यह त सब मनोरथ को पूण करने वाला
है ।

वधाता क े कृ ित
जब क पृ वी पर मनु य का ज म नह ं हआ
ु था, उस समय क बात ह। आ खर वधाता ने च मा क मु कान,
गुलाब क सुग ध और अमृ त क माधुर को एक साथ िमलाया और िम ट के घरौद म भर दया। सब घर दे लगे
चहकने और महकने। दे वदत
ू ने वधाता क इस नई अनोखी रचना को दे खा तो आ य से च कत रह गये। उ ह ने
ा से पूछा, "यह या ह?" वधाता ने बताया, "इसका नाम ह जीवन। यह मेर सव े कृ ित ह।" वधाता क बात
पूर भी नह ं हो पाई थी क एक दे वदत
ू बीच ह म बोला पड़ा, " मा क जये भु! ले कन यह समझ म नह ं आया
क आने इसे िम ट का तन य दया? िम ट तो तु छ-से-तु छ ह, जड़ से भी जड़ ह। िम ट न लेकर आपने
कोई धातु य नह ं ली? सोना नह ं तो लोहा ह ले लेते।" वधाता के होठ पर एक मोहक मु कान खेल उठ । बोले,
"व स! यह तो जीवन का रह य ह। िम ट के शर र म मने संसार का सारा सुख-स दय, सारा वैभव, उड़े ल दया
ह। जड़ म आन द का चैत य फूंक दया ह। इसका जैसा चाहो, उपयोग कर लो। शर र को मह ा दे ने वाला िम ट
क जड़ता भोगेगा; जो इससे ऊपर उठे गा, उसे आन द के परत-परत-परत िमलगे। ले कन ये सब िम ट के घर दे
क तरह णक ह। इसिलए जीवन का येक ण मू यवान ् ह। जो जतना सोयेगा, उतना ह खोयेगा। तुम
िम ट के ह अवगुण को दे खते हो, गुण को नह ं। िम ट म ह अकुंर फूटते ह। मने शर र का कम े बनाया ह,
उसम कम के अंकुर जमगे। इस भांित मने मनु य को खेती उसके अपने ह हाथ म दे द ह। वह जैसा बीज
बोयेगा, वैसा ह फल काटे गा।"
i Xkq:Ro T;ksfr”k 31 vxLr 2010

िशविलंग के विभ न कार व लाभ


 व तक.ऎन.जोशी

"ग धिलंग" दो भाग क तुर , चार भाग च दन और तीन भाग कुंकम से बनाया जाता ह।
िम ी(िचनी) से बने िशव िलंग क पूजा से रोगो का नाश होकर सभी कार से सुख द होती ह।
स ढ, िमच, पीपल के चूण म नमक िमलाकर बने िशविलंग क पूजा से वशीकरण और अिभचार कम के िलये कया जाता ह।
फूल से बने िशव िलंग क पूजा से भूिम-भवन क ाि होती ह।
ज , गेहुं , चावल तीनो का एक समान भाग म िम ण कर आटे के बने िशविलंग क पूजा से प रवार म सुख समृ
एवं संतान का लाभ होकर रोग से र ा होती ह।
कसी भी फल को िशविलंग के समान रखकर उसक पूजा करने से फलवा टका म अिधक उ म फल होता ह।
य क भ म से बने िशव िलंग क पूजा से अभी िस यां ा होती ह।
य द बाँस के अंकुर को िशविलंग के समान काटकर पूजा करने से वंश वृ होती है ।
दह को कपडे म बांधकर िनचोड़ दे ने के प ात उससे जो िशविलंग बनता ह उसका पूजन करने से सम त सुख एवं धन क
ाि होती ह।
गुड़ से बने िशविलंग म अ न िचपकाकर िशविलंग बनाकर पूजा करने से कृ ष उ पादन म वृ होती ह।
आंवले से बने िशविलंग का ािभषेक करने से मु ा होती ह।
कपूर से बने िशविलंग का पूजन करने से आ या मक उ नती दत एवं मु दत होता ह।
य द दवा
ु को िशविलंग के आकार म गूंथकर उसक पूजा करने से अकाल-मृ यु का भय दरू हो जाता ह।
फ टक के िशविलंग का पूजन करने से य क सभी अभी कामनाओं को पूण करने म समथ ह।
मोती के बने िशविलंग का पूजन ी के सौभा य म वृ करता ह।
वण िनिमत िशविलंग का पूजन करने से सम त सुख-समृ क वृ होती ह।
चांद के बने िशविलंग का पूजन करने से धन-धा य बढ़ाता ह।
पीपल क लकड से बना िशविलंग द र ता का िनवारण करता ह।
लहसुिनया से बना िशविलंग श ुओं का नाश कर वजय दत होता ह।

ावण मास के थम सोमवार त के लाभ


इस वष ावण मास के थन सोमवार को काय िस योग बनरहा ह, जस कारण इस दन त करने से ावण
सोमवार त के फल म न ो के भाव से वशेष वृ होती ह। अतः इस ावण के थन सोमवार को त करने
से मनु य को अपने काय म सफलता ा करने हे तु एवं अपनी विभ न सम याओं से छुटकारा ा करने हे तु त
करने से उ म फल क ाि होती ह।

थन सोमवार को त करने से होने वाले लाभ: य को थर ल मी क ाि होती ह।, काय यवसाय म वृ


होती ह।, नई नौकर ाि क संभावनाए बढजाती ह एवं पदौ नती ( मोशन) क संभावनाए बढती ह।, कज
(ऋण)मु हे तु त करने से भी लाभ ा होता ह। भूिम-भवन-वाहन सुख क ाि होती ह, या वृ होती ह।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 32 vxLr 2010

िशवप चा र तो म ्
नागे हाराय लोचनाय भ मा गरागाय महे राय। िन याय शु ाय दग बराय त मै न काराय नम: िशवाय॥१॥

म दा कनीसिललच दनचिचताय न द र मथनाथ महे राय। म दारपु पबहपु


ु पसुपू जताय। त मै म काराय नम: िशवाय॥२॥

िशवाय गौर वदना जवृ द सूयाय द ा वरनाशकाय। ीनीलक ठाय वृ ष वजाय त मै िश काराय नम: िशवाय ॥३॥

विस कु भो वगौतमाय मुनी दे वािचतशेखराय। च ाकवै ानरलोचनाय त मै व काराय नम: िशवाय ॥४॥

य व पाय जटाधराय पनाकह ताय सनातनाय। द याय दे वाय दग बराय त मै य काराय नम: िशवाय॥५॥

प चा रिमदं पु यं य: पठे छवस नधौ। िशवलोकमवा नोित िशवेन सह मोदते॥६॥

अथ :- जनके क ठ म साँप का हार है , जनके तीन ने ह, भ म ह जनका अ गराज (अनुलेपन) है , दशाएँ ह जनका व ह
(अथात ् जो न न ह) उन शु अ वनाशी महे र न कार व प िशव को नम कार है ॥1॥ ग गाजल और च दन से जनक अचना हई

है , म दार-पु प तथा अ या य कुसुम से जनक सु दर पूजा हई
ु है , उन न द के अिधपित मथगण के वामी महे र म
कार व प िशव को नम कार है ॥2॥ जो क याण व प ह, पावती जी के मुखकमल को वकिसत ( स न) करने के िलए जो सूय
व प ह, जो द के य का नाश करने वाले ह, जनक वजा म बैल का िच है , उन शोभाशाली नीलक ठ िश कार व प िशव को
नम कार है ॥3॥ विस , अग य और गौतम आ द े मुिनय ने तथा इ आ द दे वताओं ने जनके म तक क पूजा क है ,
च मा, सूय और अ न जनके ने ह, उन व कार व प िशव को नम कार है ॥4॥ ज ह ने य प धारण कया है , जो जटाधार ह,
जनके हाथ म पनाक है , जो द य सनातन पु ष ह, उन दग बर दे व य कार व प िशव को नम कार है ॥5॥ जो िशव के समीप इस
प व प चा र का पाठ करता है , वह िशवलोक को ा करता और वहां िशवजी के साथ आन दत होता है ॥6॥

िशव के क याणकार मं
भगवान िशव क शी कृ पा ाि एवं ती कामना िस हे तु तेज वी मं के अनुभूत योग। इस मं ो के
मा यम से य अपनी सम त मनोकामनाओं क पूित कर य दन- ित दन सफलता क और अ त होकर
अपने जीवन म सुख समृ एवं शांित सरलता से ा कर सकते ह।

भगवान िशव के मं ो के जाप हे तु ा क माला उ म होती ह। जाप हे तु पूव या उ र दशा का चुनाव कर,
एवं उ र-पूव म मुख कर जाप करने से शी िस ा होती ह।

1. नमः िशवाय।
2. ॐ नमः िशवाय।
3. ं ठः।
4. ऊ व भू फ ।
5. इं ं मं औ ं अं।
6. नमो नीलक ठाय।
7. ॐ ं नमः िशवाय।
8. ॐ नमो भगवते द णामू ये म ं मेधा य छ वाहा।
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ावण सोमवार त कैसे कर?

 वजय ठाकुर

ावण सोमवार के त म भगवान िशव और माता पावती क पूजा-अचना करने का वधान ह।


व ानो के अनुसार ावण सोमवार का त-पूजन- विध इस कार ह।

ावण सोमवार के दव त करने वाले य को सूय दय के समय से त ारं भ कर लेना चा हये एवं दन म एक
बार सा वक भोजन करना चा हए। त के दन िशव पावित क पूजा अचना के उपरांत त क समाि से पूव
सोमवार त क कथा सुनने का वधान ह।

ावण सोमवार को मुहू त म उठ कर।


पूरे घर क साफ-सफाई कर नान इ या द से िनवृ हो कर।
पूरे घर म गंगा जल िछड़क।
घर म पूजा थान पर भगवान िशव क मूित या िच था पत कर।

पूजन क सार तैयार होने के बाद िन न मं से संक प ल-

'मम ेम थैय वजयारो यै यािभवृ यथ सोम तं क र ये'

इसके प ात िन न मं से यान कर-


' याये न यंमहे शं रजतिग रिनभं चा चं ावतंसं र ाक पो वलांग परशुम ृ गवराभीितह तं स नम।्
प ासीनं समंता तुतममरगणै या कृ ं वसानं व ा ं व वं ं िन खलभयहरं पंचव ं ने म॥्

यान के प ात 'ॐ नमः िशवाय' मं से िशवजी का तथा 'ॐ नमः िशवायै' मं से पावतीजी का षोडशो उपचार से
पूजन करना चा हये।
पूजन के प ात ावण सोमवार त कथा सुन।
त प ात आरती कर साद बाटदे ।
इसक प यात ह भोजन या फलाहार हण करना चा हये ।

ावण सोमवार त का फल
सोमवार त उपरो विध से करने पर भगवान िशव तथा माता पावती क कृ पा बनी रहती ह।
य का जीवन सुख समृ एवं ए य यु होकर य के सम त संकटो नाश हो जाते ह।

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मू य:- 910 से 8200 तक उ ल
i Xkq:Ro T;ksfr”k 34 vxLr 2010

कम फल ह केवलं
 व तक.ऎन.जोशी

एक पं डत व चोर ित दन िशव मं दर जाते। एक दन चोर को मं दर के ार पर सोने क अश फयां िमलीं और पं डत


के पैर म लोहे क क ल चुभ गई। तभी भगवान िशव कट हए
ु और दोन को उनके कम का मह व बताते हए

समझाया।
िशव मं दर म िन य एक व ान पं डत और एक चोर आते थे। पं डत अ यंत भ भाव से िशविलंग पर फल-फूल और
दध
ू चढ़ाकर पूजा-अचना करता था। वह ं बैठकर िशव मं एवं िशव तो का पाठ करता और घंट ा से िशव का
यान कर िशव भ म डू बा रहता।
उसी िशव मं दर म एक चोर भी ित दन आता था। चोर िशव मं दर म आते ह िशविलंग पर डं डे मारना शु कर
दे ताथा और अपने भा य को कोसता हआ
ु भगवान िशव को अपश द कहताथा। चोर अपने दरू भा य का सारा दोष वह
भगवान िशव पर मढ़ता और उ ह अ यायी एवं प पाती ठहराताथा।
एक दन मं दर म पं डत और चोर एक साथ-साथ ह आए और अपनी ित दन क या दोहराई। मं दर म उनके
ारा कया जाने वाला काम भी दोन का एक साथ ह ख म हआ
ु और दोन का एक साथ ह बाहर आना हआ।
ु उसे
ण चोर को ार के बाहर िनकते ह सोने क अश फय से भर थैली िमली और ार के बाहर िनकते ह पं डत के पैर
म लोहे क क ल से गहरा घाव हो गया। अश फयां िमलने से चोरको तो अ यंत स नता हई
ु ले कन पैर म गहरा
घाव होने के कारण पं डत बड़ा दखी
ु हआ
ु और रोने लगा।
उस व भगवान िशव वहां कट हए
ु और पं डत से बोले पं डतजी! आपके भा य म आज के दन आपको फांसी लगनी
िलखी थी कंतु मेर पूजा करके अपने स कम से फांसी को आपने केवल एक गहरे घाव म बदल दया ह। क तुं इस
चोर भा य म आज के दन राजा बनकर राजिसंहासन पर बैठना िलखा था ले कन इसके कम ने इसे आज केवल
वणमु ा का ह अिधकार बनाया। आप जाओ और अपना कम करो।
अथात: य अपने भा य का िनमाण वयं ह करता ह। य द य अ छे कम करता ह तो शुभ फल के मा यम से
उ म भा य को ा करता ह। य द द ु कम करता ह तो अशुभ फल के मा यम से दभा
ु य को ा करता ह।

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गु आ ा पालक िश य उपम यु

 व तक.ऎन.जोशी

मह ष आयोदधौ य िस दरू-दरू तक अपनी व ा, ान, तप या और उदारता के गुणो के कारण फेिल हई


ु थी।
मह ष का यवहार उपर से अपने िश य के ित अ यंत कठोर था, ले कन अंदर से अपने िश य के िलये असीम नेह रखते थे।

मह ष अपने िश य को अ यंत े एवं सुयो य बनाना चाहते थे, इस िलए उनके ित कठोर यवहार रखते थे।

मह ष के े िश य म से एक था उपम यु। गु दे व ने उसे गाये चराने का काय सोप रखा था।

एक दन गु दे व ने पूछा बेटा उपम यु तुम आजकल भोजन या करते हो?

उपम यु बोला- गु दे व म िभ ा मांगकर अपना काम चलाता हंू । मह ष ने कहा व स चार को इस कार िभ ा ार
ा अ न नह ं खाना चा हए। िभ ा म तुमह जो कुछ िमले, वह गु को दे ना चा हए। उसम से य द गु कुछ द तो उसे हण करना
चा हए। उपम यु ने मह ष क बात मानकर िभ ा का अ न गु दे व को दे ना शु कर दया। ले कन मह ष उसम से कुछ भी
उपम यु को न दे ते। तब उसने अपनी भूख शांत करने के िलए दबारा
ु िभ ा मांगनी आरं भ कर द । गु दे व ने इस पर भी आप
जताई इससे गृ ह थ पर अिधक भार पड़े गा और दसरे
ू िभ ा मांगने वाल को भी संकोच होगा। थोड़े दन बाद मह ष ने फर पूछा,
तो उपम यु ने बताया क म गाय का दध
ू पी लेता हंू । तब मह ष ने तक दया क गाय तो मेर ह और मुझसे बना पूछे वह दध

तुमह नह ं पीना चा हए। तब उपम यु ने बछड़ के मुख से िगरने वाले फेन से अपनी भूख िमटाना शु कया कंतु मह ष ने वह भी
बंद करवा दया। तब उपम यु उपवास करने लगा। एक दन भूख के अस होने पर उसने आक के प े खा िलए, जसके वष से
वह अंधा होकर जल र हत कुंए म िगर गया।

मह ष ने उपम यु को जब ऐसी अव था म पाया, तो ऋ वेद के मं से अ नी कुमार क तुित करने को कहा। उपम यु


ारा ापूव क मरण करने पर वे कट हए
ु और उसक ने योित लौटाते हए
ु उसे एक पूआ खाने को दया, जसे गु क आ ा
के बना खाना उपम यु ने वीकार नह ं कया। इस गु भ से स न होकर अ नीकुमार ने उपम यु को सम त व ाएं बना
पढ़े आ जाने का आशीष दया।

गु क आ ाओं का यथावत ् पालन करने वाले िश य को सम त कार के ान एवं व ा गु के आशीवाद से ह


ा होजाती ह।

या आप जानते ह?
महाभारत क रचना इसी गु पू णमा के दन पूण हई
ु थी।
व के सु िस आष ंथ सू का लेखन काय गु पू णमा के आरं भ कया गया था।

दे वलोक म दे वताओं ने वेद यासजी का पूजन गु पू णमा के दन कया था। इस िलये इस दन वेद यास का
पूजन कया जाता ह एवं इस पू णमा को यासपू णमा भी कहा जाता ह।

व ानो के मत मे गु पू णमा के दन गु का पूजन कर नेसे वषभर के पव मनाने के समान फल ा होता ह।


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िशव कामदे व कथा

 राजे ताप

सतीजी के दे ह याग के प ात जब िशव जी तप या म लीन हो गये थे उस समय तारक नाम का एक असुर हआ।
ु जसने
अपने भुजबल, ताप और तेज से सम त लोक और लोकपाल पर वजय ा कर िलया जसके फल व प सभी दे वता सुख और
स प से वंिचत हो गये। सभी कार से िनराश दे वतागण ा जी के पास सहायता के िलये पहँु चे। ा जी ने उस सभी दे वता को
बताया, इस दै य क मृ यु केवल िशव जी के वीय से उ प न पु के हाथ ह हो सकती ह। ले कन सती के दे ह याग के बाद िशव
जी वर हो कर तप या म लीन हो गये ह। सती जी ने हमाचल के घर पावती जी के प म पुनः ज म ले िलया ह। अतः िशव जी
का पावती से ववाह करने के िलये उनक तप या को भंग करना आव यक ह। आप लोग कामदे व को िशव जी के पास भेज कर
उनक तप या भंग करवाओ फर उसके बाद हम उ ह पावती जी से ववाह के िलये राजी करवा लगे।

ा जी के आदे श अनुसार दे वताओं ने कामदे व से िशव जी क तप या भंग करने का अनुरोध कया। इस पर कामदे व ने
कहा, िशव जी क तप या भंग कर के मेरा कुशल नह ं होगा तथा प म आप लोग का काय िस क ँ गा।
इतना कहकर कामदे व पु प के धनुष से सुस जत होकर वस ता द अपने सहयोगी को अपने साथ लेकर िशवजी के तप या
करने वाले थान पर पहँु च गये। वहाँ पर पहँु च कर कामदे व ने अपना ऐसा भाव दखाया क वेद क सार मयादा धर क धर
रह गई। कामदे व के इस भाव से भयभीत होकर चय, संयम, िनयम, धीरज, धम, ान, व ान, वैरा य आ द जो ववेक के
गुण कहलाते ह, भाग कर िछप गये। स पूण जगत ् म ी-पु ष एवं कृ ित का सम ाणी समुह सब अपनी-अपनी मयादा
छोड़कर काम के वश म हो गये। आकाश, जल और पृ वी पर वचरण करने वाले सम त पशु-प ी सब कुछ भुला कर केवल काम
के वश हो गये। हजारो साल से तप या कर िस , वर , महामुिन और महायोगी बनी व ान भी काम के वश म होकर योग
संयम को याग ी सुख पाने म म न हो गये। तो मनु य क बात ह या हो सकती ह?

एसी थती होने के प यात भी कामदे व के इस कौतुक का िशव जी पर कुछ भी भाव नह ं पड़ा। इससे कामदे व भी
भयभीत हो गये क तु अपने काय को पूण कये बना वापस लौटने म उ ह संकोच हो रहा था । इसिलये उ ह ने त काल अपने
सहायक ऋतुराज वस त को कट कर कया। वृ पु प से सुशोिभत हो गये, वन-उपवन, बावली-तालाब आ द हरे भेरे होकर
परम सुहाने हो गये, शीतल एवं मंद-मंद सुग धत पवन चलने लगा, सरोवर कमल पु प से प रपू रत हो गये, पु प पर मर
बीन-बीना ने लगे । राजहं स, कोयल और तोते रसीली बोली बोलने लगे, अ सराएँ नृ य एवं गान करने लगीं।
इस पर भी जब तप यारत िशव जी का कुछ भी भाव न पड़ा तो ोिधत कामदे व ने आ वृ क डाल पर चढ़कर अपने पाँच
ू गई जससे उ ह अ य त
ती ण पु प बाण को छोड़ दया जो क िशव जी के दय म जाकर लगे। उनक समािध टट ोभ हआ।

आ वृ क डाल पर कामदे व को दे ख कर िशवजी ोिधत हो कर उ ह ने अपना तीसरा ने खोल दया और दे खते ह दे खते
कामदे व भ म हो गये।

कामदे व क प ी रित अपने पित क ऎसी दशा सुनते ह दन करते हए


ु िशवजी के पास पहंु च गई। उसके पित वलाप से
िशवजी ोध याग कर बोले, हे रित! वलाप मत कर जब पृ वी के भार को उतारने के िलये यदवं
ु श म ी कृ ण अवतार होगा
तब तेरा पित उनके पु ( ु न) के प म उ प न होगा और तुझे पुनः ा होगा। तब तक वह बना शर र के ह इस संसार म
सव या होता रहे गा। अंगह न हो जाने के कारण कामदे व को अनंग कहते ह। इसके बाद ा जी स हत सम त दे वताओं ने
िशव जी के पास आकर उनसे पावती जी से ववाह कर लेने के िलये ाथना क जसे उ ह ने वीकार कर िलया।
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िशव और सती का े म।

 व तक ऎन जोशी

द जापित क कई पु यां थी। सभी पु यां गुणवती थीं। फर भी द के मन म संतोष नह ं था। वे चाहते
थे उनके घर म एक ऐसी पु ी का ज म हो, जो सव श -संप न हो एवं सव वजियनी हो। जसके कारण द एक
ऐसी ह पु ी के िलए तप करने लगे। तप करते-करते अिधक दन बीत गए, तो भगवती आ ा ने कट होकर कहा, 'म
तु हारे तप से स न हंू । तुम कस कारण वश तप कर रहे ह ? द न तप करने का कारण बताय तो मां बोली म
वय पु ी प म तु हारे यहां ज म धारण क ं गी। मेरा नाम होगा सती। म सती के प म ज म लेकर अपनी
लीलाओं का व तार क ं गी। फलतः भगवती आ ा ने सती प म द के यहां ज म िलया। सती द क सभी पु य
म सबसे अलौ कक थीं। सतीने बा य अव था म ह कई ऐसे अलौ कक आ य चिलत करने वाले काय कर दखाए थे,
ज ह दे खकर वयं द को भी व मयता होती रहती थी। जब सती ववाह यो य होगई, तो द को उनके िलए वर
क िचंता होने लगी। उ ह ने ा जी से इस वषय म परामश कया। ा जी ने कहा, सती आ ा का अवतार ह।
आ ाआद श और िशव आ द पु ष ह। अतः सती के ववाह के िलए िशव ह यो य और उिचत वर ह। द ने ा
जी क बात मानकर सती का ववाह भगवान िशव के साथ कर दया। सती कैलाश म जाकर भगवान िशव के साथ
रहने लगीं। भगवान िशव के द के दामाद थे, कंतु एक ऐसी घटना घट त होगई जसके कारण द के दय म
भगवान िशव के ित बैर और वरोध भाव पैदा हो गया।

संपूण घटना इस कार ह

एक बार दे वलोक म ा ने धम के िन पण के िलए एक सभा का आयोजन कया था। सभी बड़े -बड़े दे वता
सभा म एक होगये थे। भगवान िशव भी इस सभा म बैठे थे। सभा म डल म द का आगमन हआ।
ु द के
आगमन पर सभी दे वता उठकर खड़े हो गए, पर भगवान िशव खड़े
नह ं हए।
ु उ ह ने द को णाम भी नह ं कया। फलतः द
ने अपमान का अनुभव कया। केवल यह नह ं, उनके
दय म भगवान िशव के ित ई या क आग जल
उठ । वे उनसे बदला लेने के िलए समय और अवसर
क ती ा करने लगे।

एक बार सती और िशव कैलाश पवत पर बैठे हए



पर पर वातालाप कर रहे थे। उसी समय आकाश माग
से कई वमान कनखल क ओर जाते हए
ु दखाई पड़े ।
सती ने उन वमान को दखकर भगवान िशव से पूछा,
' भो, ये सभी वमान कसके है और कहां जा रहे ह? भगवान
शकंर ने उ र दया आपके पता ने बहोत बडे य का आयोजन कया
ह। सम त दे वता और दे वांगनाएं इन वमान म बैठकर उसी य म स मिलत होने के िलए जा रहे ह।'
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इस पर सती ने दसरा
ू कया या मेरे पता ने आपको य म स मिलत होने के िलए नह ं बुलाया?
भगवान शंकर ने उ र दया, आपके पता मुझसे बैर रखते है, फर वे मुझे य बुलाने लगे?
सती मन ह मन सोचने लगीं फर बोलीं य के इस अवसर पर अव य मेर सभी बहन आएंगी। उनसे िमले हए
ु बहत

दन हो गए। य द आपक अनुमित हो, तो म भी अपने पता के घर जाना चाहती हंू । य म स मिलत हो लूंगी और
बहन से भी िमलने का सुअवसर िमलेगा। भगवान िशव ने उ र दया, इस समय वहां जाना उिचत नह ं होगा। आपके
पता मुझसे जलते ह हो सकता ह वे आपका भी अपमान कर। बना बुलाए कसी के घर जाना उिचत नह ं होता ह।
इस पर सती ने कया एसा यु?
ं भगवान िशव ने उ र दया ववा हता लड़क को बना बुलाए पता के घर नह
ू जाता ह।
जाना चा हए, य क ववाह हो जाने पर लड़क अपने पित क हो जाती ह। पता के घर से उसका संबंध टट
ले कन सती पीहर जाने के िलए हठ करती रह ं। अपनी बात बार-बात दोहराती रह ं। उनक इ छा दे खकर भगवान िशव
ने पीहर जाने क अनुमित दे द । उनके साथ अपना एक गण भी साथ म भेज दया उस गण का नाम वीरभ था।
सती वीरभ के साथ अपने पता के घर ग ।

घर म सतीसे कसी ने भी ेमपूव क वातालाप नह ं कया। द ने उ ह दे खकर कहा तुम या यहां मेरा अपमान

कराने आई हो? अपनी बहन को तो दे खो वे कस कार भांित-भांित के अलंकार और सुंदर व से सुस जत ह।


तु हारे शर र पर मा बाघंबर ह। तु हारा पित मशानवासी और भूत का नायक ह। वह तु ह बाघंबर छोड़कर और
पहना ह या सकता ह। द के कथन से सती के दय म प ाताप का सागर उमड़ पड़ा। वे सोचने लगीं उ ह ने यहां
आकर अ छा नह ं कया। भगवान ठ क ह कह रहे थे, बना बुलाए पता के घर भी नह ं जाना चा हए। पर अब या
हो सकता ह? अब तो आ ह गई हंू ।

पता के कटु और अपमानजनक श द सुनकर भी सती मौन रह ं। वे उस य मंडल म ग जहां सभी दे वता और
ॠ ष-मुिन बैठे थे तथा य कु ड म धू-धू करती जलती हई
ु अ न म आहितयां
ु डाली जा रह थीं। सती ने य मंडप म
सभी दे वताओं के तो भाग दे ख,े कंतु भगवान िशव का भाग नह ं दे खा। वे भगवान िशव का भाग न दे खकर अपने पता
से बोलीं पतृ े ! य म तो सबके भाग दखाई पड़ रहे ह कंतु कैलाशपित का भाग नह ं ह। आपने उनका भाग य
नह ं रखा? द ने गव से उ र दया म तु हारे पित िशव को दे वता नह ं समझता। वह तो भूत का वामी, न न रहने
वाला और ह डय क माला धारण करने वाला ह। वह दे वताओं क पं म बैठने यो य नह ं ह। उसे कौन भाग दे गा?

सती के ने लाल हो उठे । उनक भ हे कु टल हो ग । उनका मुखमंडल लय के सूय क भांित तेजो हो उठा।
उ ह ने पीड़ा से ितलिमलाते हए
ु कहा ओह! म इन श द को कैसे सुन रह ं हंू मुझे िध कार ह। दे वताओ तु ह भी
िध कार ह! तुम भी उन कैलाशपित के िलए इन श द को कैसे सुन रहे हो जो मंगल के तीक ह और जो ण मा
म संपूण सृ को न करने क श रखते ह। वे मेरे वामी ह। नार के िलए उसका पित ह वग होता ह। जो नार
अपने पित के िलए अपमान जनक श द को सुनती ह उसे नरक म जाना पड़ता ह। पृ वी सुनो, आकाश सुनो और
दे वताओं, तुम भी सुनो! मेरे पता ने मेरे वामी का अपमान कया ह। म अब एक ण भी जी वत रहना नह ं चाहती।
सती अपने कथन को समा करती हई
ु य के कु ड म कूद पड़ । जलती हई
ु आहितय
ु के साथ उनका शर र भी जलने
लगा। य मंडप म खलबली पैदा हो गई, हाहाकार मच गया। दे वता उठकर खड़े हो गए। वीरभ ोध से कांप उटे । वे
उ ल-उछलकर य का व वंस करने लगे। य मंडप म भगदड़ मच गई। दे वता और ॠ ष-मुिन भाग खड़े हए।
ु वीरभ
ने दे खते ह दे खते द का म तक काटकर फक दया। समाचार भगवान िशव के कान म भी पड़ा। वे चंड आंधी क
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भांित कनखल जा पहंु चे। सती के जले हए


ु शर र को दे खकर भगवान िशव ने अपने आपको भूल गए। सती के ेम और
उनक भ ने शंकर के मन को याकुल कर दया। उन शंकर के मन
को याकुल कर दया ज ह ने काम पर भी वजय ा क थी और
जो सार सृ को न करने क मता रखते थे। वे सती के ेम म
खो गए, बेसुध हो गए।

भगवान िशव ने उ मत क भांित सती के जले हए


ु शर र को
कंधे पर रख िलया। वे सभी दशाओं म मण करने लगे। िशव और
सती के इस अलौ कक ेम को दे खकर पृ वी क गई, हवा क गई,
जल का वाह ठहर गया और क ग दे वताओं क सांस।े सृ
याकुल हो उठ , सृ के ाणी पुकारने लगे— पा हमाम! पा हमाम!
भयानक संकट उप थत दे खकर सृ के पालक भगवान व णु आगे
बढ़े । वे भगवान िशव क बेसुधी म अपने च से सती के एक-एक
अंग को काट-काट कर िगराने लगे। धरती पर इ यावन थान म
सती के अंग कट-कटकर िगरे । जब सती के सारे अंग कट कर िगर
गए, तो भगवान िशव पुनः अपने आप म आए। जब वे अपने आप म
आए, तो पुनः सृ के सारे काय चलने लगे।

धरती पर जन इ यावन थान म सती के अंग कट-कटकर


िगरे थे, वे ह थान आज श के पीठ थान माने जाते ह। आज भी
उन थान म सती का पूजन होता ह, उपासना होती ह। ध य था िशव
और सती का ेम। िशव और सती के ेम ने उ ह अमर और वंदनीय बना दया ह।

पित-प ी म कलह िनवारण हे तु


य द प रवार म सुख सु वधा के सम त साधान होते हए
ु भी छोट -छोट बातो म पित-प ी के बच मे कलह
होता रहता ह, तो घर के जतने सद य हो उन सबके नाम से गु व कायालत ारा शा ो विध- वधान
से मं िस ाण- ित त पूण चैत य यु वशीकरण कवच एवं गृ ह कलह नाशक ड बी बनवाले एवं उसे
अपने घर म बना कसी पूजा, विध- वधान से आप वशेष लाभ ा कर सकते ह। य द आप मं िस
पित वशीकरण या प ी वशीकरण एवं गृ ह कलह नाशक ड बी बनवाना चाहते ह, तो संपक इस कर
सकते ह।

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िशव पावती का ववाह


 िचंतन जोशी
सती के वयोग म शंकरजी क दयनीय दशा हो गई। िशव हर पल सती का ह यान करते रहते और उ ह ं क चचा म
य त रहते। उधर सती ने भी शर र का याग करते समय संक प कया था क म राजा हमालय के यहाँ ज म लेकर शंकरजी क
अ ािगनी बनूँगी।
जगत जननी जगद बा का संक प यथ होने से तो रहा। वे उिचत समय पर राजा हमालय क प ी मेनका के गभ म
व होकर उनक कोख म से कट हु । पवतराज क पु ी होने के कारण मां जगद बा इस ज म म पावती कहला । जब पावती
बड़ होकर सयानी हु तो उनके माता- पता को यो य वर तलाश करने क िचंता सताने लगी।
एक दन अचानक दे व ष नारद राजा हमालय के महल म आ पहँु चे और पावती को दे ख कहने लगे क इसका ववाह
शंकरजी के साथ होना चा हए और वे ह सभी से इसके यो य ह। पावती के माता- पता को नारद ने जब यह बताया क
पावती सा ात जगद बा के पम इस ज म म आपके यहा कट हइं
ु ह। उनके आनंद ठकाना न रहा।
एक दन अचानक भगवान शंकर सती के वयोग म घूमते-घूमते हमालय दे श म जा पहँु चे और पास ह क गंगावतरण
म तप या करने लगे। जब हमालय को इसक जानकार िमली तो वे पावती को लेकर िशवजी के पास गए। राजा ने िशवजी से
वन तापूव क अपनी पु ी पावती को सेवा म हण करने क ाथना क । िशवजी ने पहले तो आनाकानी क , कंतु पावती क भ
दे खकर वे उनका आ ह नह ं टाल पाये। िशवजी से अनुमित िमलने के
बाद तो पावती ित दन अपनी स खय को साथ ले िशवक सेवा करने
लगीं। पावती इस बात का सदा यान रखती थीं क िशवजी को कसी
भी कार का क न हो। पावती ित दन िशव के चरण धोकर
चरणोदक हण करतीं और षोडशोपचार से पूजा करतीं। इसी तरह
पावती को भगवान शंकर क सेवा करते द घ समय यतीत हो गया।
क तु पावती जैसी सुंदर बाला से इस कार एकांत म सेवा लाभ लेते
रहने पर भी भगवान शंकर के मन म कभी वकार नह ं उतप न हआ।

िशव हमेशा अपनी समािध म ह िन ल रहते। उधर दे वताओं
को तारक नाम का असुर बड़ा ास दे ने लगा था। ा जी ने उस सभी
दे वता को बताया, इस दै य क मृ यु केवल िशव जी के वीय से उ प न
पु के हाथ ह हो सकती ह। सभी दे वता िशव-पावती का ववाह कराने
का यास करने लगे। दे वताओं ने िशव को पावती के ित अनुर करने
के िलए कामदे व को उनके पास भेजा, क तु पु पायुध का पु पबाण भी
शंकर के मन को व ु ध न कर सका। उलटा कामदे व िशवक
ोधा न से भ म हो गए।
इसके बाद शंकर भी वहाँ अिधक नह ं रहना चाहते थे इस
िलये िशव कैलास क ओर चल दए। पावती को शंकर क सेवा से वंिचत होने
का बड़ा दःख
ु हआ
ु , कंतु उ ह ने िनराश न होकर अब क बार तप ारा शंकर को संतु करने क मन म ठानी।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 41 vxLr 2010

उनक माता ने उ ह सुकुमार एवं तप के अयो य समझकर बहत


ु मना कया, क तु पावती पर इसका कोई असर नह ं
हआ।
ु पावती अपने संक प से वे तिनक भी वचिलत नह ं हु । माता पवती भी घर से िनकल उसी िशखर पर तप या करने लगीं,
जहाँ िशवजी ने तप या क थी।
िशखर पर तप या म पवतीने पहले वष फलाहार से जीवन यतीत
कया, दसरे
ू वष वे वृ के प े खाकर रहने लगीं और फर तो उ ह ने पण
का भी याग कर दया।
इस कार पावती ने तीन हजार वष तक तप या क । पावती क
कठोर तप या को दे ख ऋ ष-मुिन भी दं ग रह गए। अंत म भगवान भोले
का आसन हला। उ ह ने पावती क पर ा के िलए पहले स षय को
भेजा और पीछे ु श धारण कर पावती क पर
वयं वटवे ा के िनिम
थान कया।
जब िशवने सब कार से जाँच-परखकर दे ख िलया क पावती क
उनम अ वचल िन ा ह, तब तो वे अपने को अिधक दे र तक न िछपा सके।
वे तुरंत अपने असली प म पावती के सामने कट हो गए और उ ह
पा ण हण का वरदान दे कर अंतधान हो गए।
पावती अपने तप को पूण होते दे ख घर लौट आ और अपने
माता- पता से सारा वृ ांत कह सुनाया। अपनी दलार
ु पु ी क कठोर
तप या को फलीभूत होता दे खकर माता- पता के आनंद का ठकाना नह ं रहा। उधर शंकरजी ने स षय को ववाह का ताव
लेकर हमालय के पास भेजा और इस कार ववाह क शुभ ितिथ िन त होगई।
स षय ारा ववाह क ितिथ िन त कर दए जाने के बाद भगवान ् शंकरजी ने नारदजी ारा सारे दे वताओं को ववाह म
स मिलत होने के िलए आदरपूव क िनमं त कया और अपने गण को बारात क तैयार करने का आदे श दया।
िशवजी के इस आदे श से अ यंत स न होकर गणे र शंखकण, केकरा , वकृ त, वशाख, वकृ तानन, द ु दभ
ु , कपाल,
कुंडक, काकपादोदर, मधु पंग, मथ, वीरभ आ द गण के अ य अपने-अपने गण को साथ लेकर चल पड़े ।
नंद , े पाल, भैरव आ द गणराज भी को ट-को ट गण के साथ िनकल पड़े । ये सभी तीन ने वाले थे। सबके म तक पर चं मा
और गले म नीले िच ह थे। सभी ने ा के आभूषण पहन रखे थे। सभी के शर र पर उ म भ म लगी हई
ु थी।
इन गण के साथ शंकरजी के भूत , ेत , पशाच क सेना भी आकर स मिलत हो गई।
इनम डाकनी, शा कनी, यातुधान, वेताल, रा स आ द भी शािमल थे। इन सभी के प-रं ग, आकार- कार, चे ाएँ, वेश-
भूषा, हाव-भाव आ द सभी कुछ अ यंत विच थे। वे सबके सब अपनी तरं ग म म त होकर नाचते-गाते और मौज उड़ाते हए

शंकरजी के चार ओर एक त हो गए।
चंड दे वी बड़ स नता के साथ उ सव मनाती हई
ु भगवान दे व क बहन बनकर वहाँ आ पहँु चीं। उ ह ने सप के
आभूषण पहन रखे थे। वे ेत पर बैठकर अपने म तक पर सोने का कलश धारण कए हए
ु थीं।
धीरे -धीरे वहाँ सारे दे वता भी एक हो गए। उस दे वमंडली के बीच म भगवान ी व णु ग ड़ पर वराजमान थे। पतामह
ाजी भी उनके पास म मूितमान ्वेद , शा , पुराण , आगम , सनकाद महािस , जापितय , पु तथा कई प रजन के साथ
उप थत थे।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 42 vxLr 2010

दे वराज इं भी कई आभूषण पहन अपने ऐरावत गज पर बैठ वहाँ पहँु चे थे। सभी मुख ऋ ष भी वहाँ आ गए थे। तु बु ,
नारद, हाहा और हह
ू ूआद े गंधव तथा क नर भी िशवजी क बारात क शोभा बढ़ाने के िलए वहाँ पहँु च गए थे। इनके साथ ह
सभी जग माताएँ, दे वक याएँ, दे वयाँ तथा प व दे वांगनाएँ भी वहाँ आ गई थीं। इन सभी के वहाँ िमलने के बाद भगवान शंकरजी
अपने फु टक जैसे उ वल, सुंदर वृ षभ पर सवार हए।
ु द ू हे के वेश म िशवजी क शोभा िनराली ह छटक रह थी। इस द य और
विच बारात के थान के समय डम ओं क डम-डम, शंख के गंभीर नाद, ऋ षय -मह षय के मं ो चार, य , क नर ,
ग धव के सरस गायन और दे वांगनाओं के मनमोहक नृ य और मंगल गीत क गूँज से तीन लोक प र या हो उठे ।
उधर हमालय ने ववाह के िलए बड़ धूम-धाम से तैया रयाँ क ं और शुभ ल न म िशवजी क बारात हमालय के ार पर आ
लगी। पहले तो िशवजी का वकट प तथा उनक भूत- ेत क सेना को दे खकर मैना बहत
ु डर ग और उ ह अपनी क या का
पा ण हण कराने म आनाकानी करने लगीं। पीछे से जब उ ह ने शंकरजी का करोड़ कामदे व को लजाने वाला सोलह वष क
अव था का परम लाव यमय प दे खा तो वे दे ह गेह क सुिध भूल ग और शंकर पर अपनी क या के साथ ह साथ अपनी आ मा
को भी योछावर कर दया। िशव गौर का ववाह आनंद पूव क संप न हआ।
ु हमाचल ने क यादान दया। व णु भगवान तथा
अ या य दे व और दे व-रम णय ने नाना कार के उपहार भट कए। ाजी ने वेदो र ित से ववाह करवाया। सब लोग अिमत
उ साह से भरे अपने-अपने थान को लौट गए।

ी यं
" ी यं " सबसे मह वपूण एवं श शाली यं है । " ी यं " को यं राज कहा जाता है यो क यह
अ य त शुभ फ़लदयी यं है । जो न केवल दसरे
ू य ो से अिधक से अिधक लाभ दे ने मे समथ है
एवं संसार के हर य के िलए फायदे मंद सा बत होता है । पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य यु
" ी यं " जस य के घर मे होता है उसके िलये " ी यं " अ य त फ़लदायी िस होता है उसके
दशन मा से अन-िगनत लाभ एवं सुख क ाि होित है । " ी यं " मे समाई अ ितय एवं अ य
श मनु य क सम त शुभ इ छाओं को पूरा करने मे समथ होित है । ज से उसका जीवन से
हताशा और िनराशा दरू होकर वह मनु य असफ़लता से सफ़लता क और िनर तर गित करने
लगता है एवं उसे जीवन मे सम त भौितक सुखो क ाि होित है । " ी यं " मनु य जीवन म
उ प न होने वाली सम या-बाधा एवं नकारा मक उजा को दरू कर सकार मक उजा का िनमाण
करने मे समथ है । " ी यं " क थापन से घर या यापार के थान पर था पत करने से वा तु दोष
य वा तु से स ब धत परे शािन मे युनता आित है व सुख-समृ , शांित एवं ऐ य क ि होती
है । गु व कायालय मे " ी यं " १२ ाम से ७५ ाम तक क साइज मे उ ल ध है

मू य:- ित ाम 8.20 से 28.00


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गु सेवा
 व तक ऎन जोशी

गंगा नद के कनारे वामी जी का आ म था! वामी जी क दनचया


िनयिमत थी, ातःकाल नान से ारं भ होती थी। उनके सभी िश य भी
ज द उठकर अपने काय से िनवृ होते और गु क सेवा म लग जातेथे।
उनके नान- यान से लेकर अ यापन क क सफाई व आ म के छोटे -बडे
सभी काय िश यगण ह करते थे। एक सुबह वामी जी एक संत के साथ
गंगा- नान कर रहे थे, तभी वामीजी ने अपने िश य को गंगाजी म खड़े -
खड़े ह आवाज लगाकर अपने पास बुलाया। िश य दौड़ा-दौड़ा चला आया।
वामीजी ने उससे कहा : "बेटा मुझे गंगाजल पीना ह"
िश य चंचलता से आ म के भीतर से लोटा लेकर आया और उसे बालू से
मांजकर चमका कर, गंगाजी म उतरकर पुनः लोटा धोकर गंगाजल भरकर
गु जी को थमा दया।
वामी जी ने अंजिल भरकर लोटे से जल पया। इसके बाद िश य खाली
लोटा लेकर वापस लौट गया। यह सब दे खकर साथ नहा रहे संत ने है रान
होते हए
ु पूछा। " वामी जी जब आपको गंगाजल हांथ से ह पीना था तो िश य से यथ प र म य करवाया? आप
यह ं से जल लेकर पी लेते। इस पर वामी जी बोले : यह तो उस िश य को सेवा दे ने का बहाना मा था। सेवा इसीिलए
द जाती ह क य का अंत:करण शु हो जाये और वह व ा का स चा अिधकार बन सके, य क बना गु सेवा
के पूण िश ा ा नह ं क जा सकती।

 या आपके ब चे कुसंगती के िशकार ह?

 या आपके ब चे आपका कहना नह ं मान रहे ह?

 या आपके ब चे घर म अशांित पैदा कर रहे ह?


घर प रवार म शांित एवं ब चे को कुसंगती से छुडाने हे तु ब चे के नाम से गु व कायालत ारा शा ो विध- वधान से मं िस
ाण- ित त पूण चैत य यु वशीकरण कवच एवं एस.एन. ड बी बनवाले एवं उसे अपने घर म था पत कर अ प पूजा, विध-
वधान से आप वशेष लाभ ा कर सकते ह।

य द आप तो आप मं िस वशीकरण कवच एवं एस.एन. ड बी बनवाना चाहते ह, तो संपक इस कर सकते ह।

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द र ता से मु

 िचंतन जोशी
अहो दःखमहो
ु दःखमहो
ु दःखं
ु द र ता (द र ता य का सब से बडा दःख
ु ह)

व के हर दे श, समाज और सं कृ ित म कई तरह क मा यताए चिलत होती ह, जो य के अंतर मन म ल बे समय तक घर


कर जाती ह। इस वषय म जबतक यो य मागदशन या ान ा नह ं हो जाता तबतक य अपनी सम याओं से छुटकारा नह ं
ा कर पाता।
एसी ह मा यता धन अभाव म भारतीय समाजम अ यािधक चिलत ह वह ह,
भा य म जो िलखा ह वह ं होगा!,
नसीब म जो होगा वह ं होता ह!,
भगवान क इ छा के आगे कस क चलती ह!,
भगवान ने दःख
ु िलखा ह तो या करे !,
हमारे तो अमुख ह ह खरब चल रहे ह,
हमारा तो नसीब ह खराब ह.............. इ या द एसे अनेको श द से हर य
अ छ तरह वाक फ ह।

सवशू या द र ता । (अथात: जब द र ता आती ह तब मानव का सव व चला जाता


ह।)

इन श दो से तो एसा ितत होता ह मानो य इन श दो का योग करके अपने द र होने का गौरव य कर रहा ह !
मानो जेसे द र ता उसके िलये कसी जंग म जीते हवे
ु मेडल जेसी ह ! एसे ह म पैदा करने वाली धारणाओं के चलते य का
आज यह हाल ह। एवं इसी कारण वह धन उ से दन ित दन दरू होता चलाजाता ह। इस िलये कुछ लोगो के पास म जीवन के
सभी सुख साधन उ ल ध होते ह तो कोइ भीख मांग रहा होता ह।

य आज द र ह, िनधन ह तो वह उसके िनजी कम का फल मा ह। आपक द र ता कसी ह के कारण नह ं ह तो


केवल य के कम का फल दान करने हे तु वधाताके सहयोगी ह।

दर य अपनी गलतीयां अपने नसीब और भगवान पर लाद दे ते ह। एसा य अपनी गलतीयां सुधार कर अपने कम
के बल से धनवान नह ं बनना चाहता। इस कारण य वयं ह अपने भा य को कोस रहा ह।

य अपने जीवन म द र ता को पीछे छोड आगे बढने के उपाय खोजने बजाय एसे श दो का योग कर अपने आस-पास
म नकारा मक उजा (ओरा) िनिमत करलेता ह। जसके फल व प नकार मक उजा उसे जीवन म अथक पर म करने के बावजूद
भी उसे उिचत सफलता दलाने हे तु असमथ रहती है । य द य के मन म ह द र ता का नकारा मक भाव घर कर गया ह तो
i Xkq:Ro T;ksfr”k 45 vxLr 2010

उसके जीवनम धन-समृ केसे आयेगी? केसे वह य जीवन के सम त भौितक सुख समृ एवं ऎ य को ा करने म
सफल हो पायेग? हाल क हर य धन ाि हे तु मेहनत करने क इ छा नह ं रखता, ले कन उसक खूब गती हो, वह जीवन म
खूब आगे बढे , ढे र सारा धन कमाये एसे दवा व न वह खूब दे खता ह, उसे व न लोक म वचरण करना तो रास आता ह, ले कन
य अपने उन सपनो को पूण करने का साथक यास नह ं करता।

उ प ते वलीय ते द र ाणां मनोरथाः । (अथात:द र मानव क इ छाएँ मन म उठती ह और मनम ह वलीन हो जाती ह
अथवा पूर नह ं हो पाती)

य द आप एसे य को एसा कह क आप भी धनवान हो सकते ह, तो वह िनराशावाले भाव से हा य तरं ग बखेरते हवे



आप से कहे गा या भाई आप मेरा मजाक उडारहे ह । म यो मु कल से अपने और अपने प रवार के िलये द व क रोट जुटा
पारहा हंु , और आप धनवान होने क बात करते ह। यवहार कता से दे खे तो उसक बात भी गलत नह ं ह, सामा य या अित
सामा य य जो मु कल से अपनी ज रतो को पूरा करा ह। वह य होने क सोच केसे सकता है ? अपनी हालत को मु कल से
टकाके रखने का यास कर रहा हो वहा अपनी गित क उसे सुझ केसे सकती ह? ले कन इस यवहार क बात को वह ं तक सीमीत
रखकर अपने मु े पर वापस आते ह।

सामा य य जब अपने धनवान होने के व न दे खता ह तो उसे लगता ह वह गलत च कर म पड जायेगा, इस िलये
यादातर मामलो म य अपने धनवान होने का वचार यह ं पर रोक दे ता ह। य ह सबसे बड भूल हो जाती ह, धनवान होने क
वचार को य को रोकना नह ं चा हये। उन वचार को अपने अंतर मन म वेश करने द, उन वचार को समय के साथ साथ ढ
बनाए। वतमान क ितकूल पर थती को यानम रखने के साथ ह भ व य म समृ ा करने के वचार भी अपने अंदर
तरं गीत करते रह।

हमारे ॠषी-मुनी ने हजारो वष पूव अपने तपोबल से ात कर िलया था क मनु य क श यां अपार और अनंत ह। जीसे
आज का आधुिनक व ान भी मान चुका ह क एक य अपनी वा तवीक श का मा ३(तीन) ितशत इ तेमाल करता ह।
िथक इसी कार आपके भीतर भी परमा मा क अपार श यां मौजुद ह बस उन श ओं को उजागर करने क ज रत मा ह, आप
अपने अंदर उठनेवाली इन तरं गो के कारण आपके आस-पास का वातावतण सकारा मक उजा से भर जायेगा एवं यह उजा आपके
अंतर मन क गहराई तक वेश कर गई तो इन श यो से आपको आ म बल क ाि होगी जो आपको इस और अ त होने का
माग वतः ह खूलने लगेगा। फर आपक मं झल आपसे दरू नह ं रह जायेगी। य य द एक बार चाहले तो वह अपनी थती म
प रवतन लासकता ह बस ज रत ह एक ढ संक प क।

उ मे ना त दा र यम ् । (अथात:उ म करने से द र ता क नह ं रह जाती ।)

हर िनधन या द र य को य ह सोच रखनी चा हये क मुझे धनवान बनना ह।


य द इस बात पर भी य द आपको हसी आजाये तो समज लेना क यह आपके वचार क िनधनता ह। यह वह ं मानिसकता ह।
जो सद य से हमारे दे श के अनेक य के अंदर घर कर गई ह। इसका ता पय कुछ एसा ितत होता ह क मानो य कह रहा ह
क हे समृ आप मेरे पास आये ये मेर इ छा ह पर आप मेरे पास आयेगी इस बात पर मुझे व ास नह ं। मुझे संदेह ह, क म
आपको पासकता हंु ! सायद आप मेरे जेसे िनधन य के िलये नह ं ह।
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यो क आप यहा अपनी िनधनता का कारणा भी ढंू ढ लेता ह, इस िलये आप िनधन ह। अभी तक मेने समृ पाने के
सभी यास कये जो िन फल रहे , और आप मेरे से दरू ह रह ह। इस िलये मुझे व ास नह ं ह, और मेने तुजे पाने के इ छाभी
यागद ह। यो क तुझे पानेका जतना चाहे यास करलूं पत आप िमलोगे उसक मुझे आशा नह ं ह।

जस य के भीतर एसे वचार आते हो वह केसे धनवान हो सकता ह! ल मी ाि हे तु मं जाप साधना इ या द करले
पर मनम य द अल मी के वचार घर कर जाये फर य द र रह जाये इसम कोन सी नयी बात ह।

द र ः पु षः लोके शवव लोकिन दतः । (अथात: दिनया


ु म द र मानव मुद क तरह िनंदनीय िगना जाता है ।)

द र ता-गर बी-द नता ह नता एक अिभशाप ह। गर ब या िनधन य को सब लोग ओिछ नजरोसे दे खते ह, उसका सब
ितर कार करते ह, अपमािनत करते ह एवं िनधन य हमेशा समाज क अवहे लना का िशकार होता ह।

द र ता के वचार जब य के अंदर घरकर जाते ह तो वह समाज के डर से अपने जीवन को दःख


ु दद एवं अभावो के सहारे
ह खचता चलाजाता ह उसे अभाव म जीवन जीने क आदत पड जाती ह। िनधनता का भार उसे भीतर से झंझोरकर रख दे ता ह
जसके फल व प य के ववेक वचार इ या द का दमन होजाता ह।, जस कारण य प र म हन व आलसी बनजाता ह।
उसक सोचने समझने और मन को सकार मक उजा से तरं गीत करने वाले भाव संकूिचत होते चले जाते ह। अब यह वचार अंदर
जाने वाले नह ं ह एसे ह वचार उसे हमेशा क िलये द र ,गर ब, द न, अभागा, कायर और दसर
ू क दया पर जीवन जीनेवाल
बनादे ता ह। कोइ उसे पसंद नाह ं करता! य िचंता ह आग म जलता रहता ह। परे शानीया उसका पीछा नह ं छोडती।
ल बे समय तक द र ता का बोझ ढोणे वाला य समय से पहले वृ होजाता ह, वह तु छ, ह न, कंगाल, रोग से पी डत आस
होकर समय बतने के साथ मंदबु अ का बनजाता ह। य वयं ह अपना घातक श ु बन जाता ह। उसका जीवन अंधकारमय
ितत होता ह।

य मेहनत मेहनत करता ह, मजदरू करता ह। उसक मेहनत का उसे पूरा मू य भी नह ं िमलता!, वह मांग भी नह ं
सकता। उसका चार और से शोषण होता ह, लोग उसक मजबूर का फायदा उठाते ह।
सामा य सामान उठाने वाले मजदरू जो फटे कपडोम होते ह उसे उसक मजदरू का 15-20 पये दे ने के िलये आनाकानी कर उसे 5-
10 पये दे नेवाले लोग हमने बहोत दे खे ह वह ं लोग बड होटल म सूट-बूटा टाई बांधे वेटरको उसके बीना मंगे अपना तबा और
अपने धनवान होने का दखा करने के िलये उसे 50-100 पये ट प म दे ने से नह ं हच कचात एसे लोग भी बहोत दे खे ह हमने और
आपने।

यहा गहराई से सोचने वाली एक बात ह यहा य वह ं ह िसफ उसके आस-पासका माहोल बदल जाता ह, और इस माहोल
के बदलने से उसके वतन म बदलाव आजाता ह। इसाका कारण ह मजदरू का वयं का धन नह ं ा करने क अपनी अ मता,
द र ता का वचार करना एवं उसका द र दखना इन दोनो कारणो से धनवान मजदरू को दबाता ह।

यह कहावत हो आपने सुिनह होगी "जो दखता ह वह ं बकता ह" इसी कारण से वेटर अपनी उ म सेवा एवं रौबदार कपडो
के दम के साथ उसक आसपासका महौल जो क आिलशान एवं शानदार होता ह। इस कारण से उ ह टप के तौरपर बना मांगे
पये िमलजाते ह।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 47 vxLr 2010

कुपा दानात ् च भवेत ् द र ो दा र य दोषेण करोित पापम ् ।

पाप भावात ् नरकं याित पुनद र ः पुनरे व पापी ॥

अथात: कुपा को दान दे ने से द र बनता है । दा र य दोष से पाप होता है । पाप के भाव से नरक म जाता है ; फर से द र और
फर से पाप होता है ।

हमने बहोत सारे एसे लोग भी दे खे ह जो हर म हने हजारो लाखो पये कमाते ह फर भी अ य लोगो के
सामने रोते फरते ह, मेरे पास धन नह ं ह, घर म खाने के पैसे नह ं ह, मेर तो हालत बहोत खरब चल रह ं
ह............ इ या द ढे रो वा य सुने ह।

या िमलता ह? धन होते हवे


ु भी रोने से। एसे रोने से कोई दे कर नह ं जाने वाल आपको धन। हां इ से, उधर
मांगने वाले मांगने क ह मत नह ं करगे। ले कन बनामांगे ह यो रोना?

एसे लोगो के पास भ व य म वा तव म धन नह ं रह जाता। यातो उनका धन-संपदा उनक संताने न कर


दे ती ह, घर म कसी ना कसी कार का रोग लगारहता ह जसके कारण उनका संिचत कया हवा
ु धन भी डॉ टरो के
च कार काट काट कर ख म होजाता ह और उपर से कज कर लेते ह, कोइना कोइ ववादो म उनका धन फसा रहता
ह चाहे वह कसी को सूद म दया हो या कह ं पूंजी िनवेश म नु शान ह होते हवे
ु लोगो को हमने वयं दे खा ह।

य द आप यह काय कर रह ह तो अपनी आंखे खोल द और अपने िनधन होने का रोना छोडदे ।

हमारे दे श म आज भी लाखो करोडो लोग अपने भा य को दोष दे नेवाले भरे पडे ह।

द र ता का मु य कारण ह य का आलसी होना।


आलस कबहँु न क जए, आलस अ र सम जािन।
आलस से व ा घटे , सुख-स प क हािन॥

इस िलये आप चाह जस कसी भी कारण से िनधन हो, तो आप िनराश मत होईये आल य एवं नकारा म वचार को
यागकर अपने यासो को सफल बनाने हे तु यास रत हो जाए। य द आपको अपने काय म सफल होने का मग ा नह ं हो रहा
ह। तो आप आ या मक मा यम से सहायता ा करने का यास कर।

िनधनता-द र ता िनवारण हे तु गु व कायालय ारा संचािलत लोग www.gurutvakaryalay.blogspot.com पर मं


एवं उपाय उपल ध ह।

>> आने वाले अ टू बर/नव बर अंक म म द र ता िनवारण हे तु अनेको जानकार एवं उपाय उपल ध कराने हे तु हम यास रत ह।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 48 vxLr 2010

दोष त का मह व

 िचंतन जोशी
रखना, लोहा, ितल, काली उड़द, शकरकंद, मूली, कंबल,
जूता और कोयला आ द दान करने से शिन का कोप
भी शांत हो जाता ह, ज से य के रोग, यािध,
द र ता, घर क अशांित, नौकर या यापार म परे शानी
आ द का वतः िनवारण हो जाएगा।
भौम दोष त एवं शिन दोष त के दन
िशवजी, हनुमानजी, भैरव क पूजा-अचना करना भी
लाभ द होता ह। गु वार के दन पडने वाला दोष त
वशेष कर पु कामना हे तु या संतान के शुभ हे तु रखना
उ म होता ह। संतानह न दं प य के िलए इस त पर
घरम िम ान या फल इ या द गाय को खलाने से शी
शुभ फलक ाि होित ह। संतान क कामना हे तु 16
दोष त करने का वधान ह, एवं संतान बाधा म शिन
दोष त सबसे उ म मनागया ह।
दोष त के दन पित-प ी दोनो ातः
नान इ या द िन य कम से िनवृ त होकर िशव, पावती
दोष त हर मह ने म दो बार शु ल प और और गणेशजी क एक साथम आराधना कर कसी भी
कृ ण प क ादशी के दन होता ह। य द इन ितिथय को िशव मं दर म जाकर िशविलंग पर जल िभषेक, पीपल
सोमवार होतो उसे सोम दोष त कहते ह, य द मंगल के मूल म जल चढ़ाकर सारे दन िनजल रहने का
वार होतो उसे भौम दोष त कहते ह और शिनवार होतो वधान ह।
उसे शिन दोष त त कहते ह। वशेष कर सोमवार, संतानह नता या संतान के ज म के बाद भी
मंगलवार एवं शिनवार के दोष त अ यािधक य द नाना कार के क व न बाधाएं, रोजगार के साथ
भावकार माने गये ह। साधारण तौर पर हमारे यहा पर सांसा रक जीवन से परे शािनया ख म नह ं हो रह ह, तो
ा शी एवं योदशी क ितिथ को दोष ितिथ कहते ह। इस उस य के िलए ित माह म पड़ने वाले दोष त
दन त रखने का वधान ह। पर जप, दान, त इ या द पू य काय करना शुभ
दोष त का मह व कुछ इस कार का फल द होता ह।
बताया गया ह क य द य को सभी तरह के जप, योितष क से जो य चं मा के
तप और िनयम संयम के बाद भी य द उसके गृ ह थ कारण पी डत हो उसे वष भर दोष त पर चहे वह
जीवन म दःख
ु , संकट, लेश आिथक परे शािन, कसी भी वार को पडता हो उसे दोष त अव य
पा रवा रक कलह, करना चा हये। दोष त पर उपवास 


i Xkq:Ro T;ksfr”k 49 vxLr 2010

GURUTVA KARYALAY
NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL

Emerald (iUuk) 100.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above


Yellow Sapphire (iq[kjkt) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
Blue Sapphire (uhye) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
White Sapphire (lQsn iq[kjkt) 370.00 900.00 1500.00 2400.00 4600.00 & above
Bangkok Black Blue(cSadkd uhye) 80.00 150.00 200.00 500.00 1000.00 & above
Ruby (ekf.kd) 55.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above
Ruby Berma (cekZ ekf.kd) 2800.00 3700.00 4500.00 10000.00 21000.00 & above
Speenal (uje ekf.kd ykyMh) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above
Pearl (eksrh) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above
Red Coral (4 jrh rd) (yky ewaxk) 55.00 75.00 90.00 120.00 180.00 & above
Red Coral (4 jrh ls mij) (yky ewaxk) 90.00 120.00 140.00 180.00 280.00 & above
White Coral (lQsn ewaxk) 15.00 24.00 33.00 42.00 51.00 & above
Cat’s Eye (yglqfu;k) 18.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Cat’s Eye Orissa (mfM+lk yglqfu;k) 210.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Gomed (xksesn) 15.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Gomed CLN (flyksuh xksesn ) 300.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Zarakan (tjdu) 150.00 230.00 330.00 410.00 550.00 & above
Aquamarine (cs:t) 190.00 280.00 370.00 550.00 730.00 & above
Lolite (uhyh) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above
Turquoise (fQjkstk) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Golden Topaz (lqugyk) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Real Topaz (mfM+lk iq[kjkt@Vksikt) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
Blue Topaz (uhyk Vksikt) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
White Topaz (lQsn Vksikt) 50.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above
Amethyst (dVsyk) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Opal (miy) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Garnet (xkjusV) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Tourmaline (rqeZyhu) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above
Star Ruby (lw;ZdkUr e.kh) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above
Black Star (dkyk LVkj) 10.00 20.00 30.00 40.00 50.00 & above
Green Onyx (vksusDl) 09.00 12.00 15.00 19.00 25.00 & above
Real Onyx (vksusDl) 60.00 90.00 120.00 190.00 280.00 & above
Lapis (yktoZr) 15.00 25.00 30.00 45.00 55.00 & above
Moon Stone (panzdkUr e.kh) 12.00 21.00 30.00 45.00 100.00 & above
Rock Crystal (LQfVd) 09.00 12.00 15.00 30.00 45.00 & above
Kidney Stone (nkuk fQjaxh) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above
Tiger Eye (Vkbxj LVksu) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above
Jade (ejxp) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Sun Stone (luflrkjk) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Diamond (ghjk) 50.00 100.00 200.00 370.00 460.00 & above
(.05 to .20 Cent ) (Per Cent ) (Per Cent ) (PerCent ) (Per Cent) (Per Cent )

Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
*** Super fine & Special Quality Not Available Easily. We can try only after getting order
fortunately one or two pieces may be available if possible you can tack corres pondence about
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मं िस कवच
मं िस कवच को वशेष योजन म उपयोग के िलए और शी भाव शाली बनाने के िलए तेज वी मं ो ारा
शुभ महतू म शुभ दन को तैयार कये जाते है अलग अलग कवच तैयार करने केिलए अलग अलग तरह के
. - -

मं ो का योग कया जाता है . .

 य चुने मं िस कवच?
 उपयोग म आसान कोई ितब ध नह ं
 कोई वशेष िनित-िनयम नह ं
 कोई बुरा भाव नह ं
 कवच के बारे म अिधक जानकार हे तु

कवच सूिच
सव काय िस कवच - 3700-/ ऋण मु कवच – 730/- वरोध नाशक कवचा- 550-/
सवजन वशीकरण कवच - 1050-/* नव ह शांित कवच – 730/- वशीकरण कवच – 460/-* )2-3 य के िलए(
अ ल मी कवच – 1050/- तं र ा कवच – 730/- प ी वशीकरण कवच – 460/-*
आक मक धन ाि कवच – 910/- श ु वजय कवच – 640/-* नज़र र ा कवच – 460/-
भूिम लाभ कवच – 910/- पद उ नित कवच – 640/- यापर वृ कवच- 370-/
संतान ाि कवच – 910/- धन ाि कवच – 640/- पित वशीकरण कवच – 370/-*
काय िस कवच – 910/- ववाह बाधा िनवारण कवच – 640/- दभा
ु य नाशक कवच – 370/-
काम दे व कवच – 820/- म त क पृ वधक कवच – 640/- सर वती कवक – 370/-) क ा+ 10 के िलए(
जगत मोहन कवच -730/-* कामना पूित कवच – 550/- सर वती कवक -280/-) क ा 10 तक के िलए(
पे - यापर वृ कवच – 730/- व न बाधा िनवारण कवच – 550/- वशीकरण कवच – 280/-* ) 1 य के िलए(

*कवच मा शुभ काय या उ े य के िलये

(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)


i Xkq:Ro T;ksfr”k 51 vxLr 2010

सव काय िस कवच
जस य को लाख य और प र म करने के बादभी उसे मनोवांिछत सफलताये एवं कये गये काय
म िस (लाभ) ा नह ं होती, उस य को सव काय िस कवच अव य धारण करना चा हये।

कवच के मुख लाभ: सव काय िस कवच के ारा सुख समृ और नव ह के नकारा मक भाव को
शांत कर धारण करता य के जीवन से सव कार के द:ु ख-दा र का नाश हो कर सुख-सौभा य एवं
उ नित ाि होकर जीवन मे सिभ कार के शुभ काय िस होते ह। जसे धारण करने से य यद
यवसाय करता होतो कारोबार मे वृ होित ह और य द नौकर करता होतो उसमे उ नित होती ह।

 सव काय िस कवच के साथ म सवजन वशीकरण कवच के िमले होने क वजह से धारण करता
क बात का दसरे
ू य ओ पर भाव बना रहता ह।

 सव काय िस कवच के साथ म अ ल मी कवच के िमले होने क वजह से य पर मां महा


सदा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना रहता ह। ज से मां ल मी के अ प (१)-आ द
ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय
ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी पो का अशीवाद ा होता ह।

 सव काय िस कवच के साथ म तं र ा कवच के िमले होने क वजह से तां क बाधाए दरू
होती ह, साथ ह नकार मन श यो का कोइ कु भाव धारण कता य पर नह ं होता। इस
कवच के भाव से इषा- े ष रखने वाले य ओ ारा होने वाले द ु भावो से र ाहोती ह।

 सव काय िस कवच के साथ म श ु वजय कवच के िमले होने क वजह से श ु से संबंिधत


सम त परे शािनओ से ु
वतः ह छटकारा िमल जाता ह। कवच के भाव से श ु धारण कता
य का चाहकर कुछ नह बगड सकते।

अ य कवच के बारे मे अिधक जानकार के िलये कायालय म संपक करे :

कसी य वशेष को सव काय िस कवच दे ने नह दे ना का अंितम िनणय हमारे पास सुर त ह।

GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us - 9338213418, 9238328785
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com

(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)


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Ask Your Questions: Specific Consultation


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i Xkq:Ro T;ksfr”k 53 vxLr 2010

वेदसार िशव तवः


पशूनां पितं पापनाशं परे शं गजे य कृ ं वसानं वरे यम।
जटाजूटम ये फुर ा गवा रं महादे वमेकं मरािम मरा रम॥१॥

महे शं सुरेशं सुराराितनाशं वभुं व नाथं वभू य गभूषम।्


व पा िम कव ने ं सदान दमीडे भुं प चव म॥्२॥

िगर शं गणेशं गले नीलवण गवे ािध ढं गुणातीत पम।्


भवं भा वरं भ मना भू षता गं भवानीकल ं भजे प चव म॥्३॥

िशवाका त शंभो शशा काधमौले महे शान शूिल जटाजूटधा रन।्


वमेको जग यापको व पः सीद सीद भो पूण प॥४॥

परा मानमेकं जग जमा ं िनर हं िनराकारम कारवे म।्


यतो जायते पा यते येन व ं तमीशं भजे लीयते य व म॥्५॥

न भूिमन चापो न व न वायु- न चाकाशमा ते न त ा न िन ा।


न गृ मो न शीतं न दे शो न वेषो न य या त मूित मूित तमीड॥६॥

अजं शा तं कारणं कारणानां िशवं केवलं भासकं भासकानाम।्


तुर यं तमःपारमा तह नं प े परं पावनं ै तह नम॥७॥

नम ते नम ते वभो व मूत नम ते नम ते िचदान दमूत।


नम ते नम ते तपोयोगग य नम ते नम ते ु ित ानगम॥
् ८॥

भो शूलपाणे वभो व नाथ महादे व शंभो महे श नेत।्


िशवाका त शा त मरारे पुरारे वद यो वरे यो न मा यो न ग यः॥९॥

शंभो महे श क णामय शूलपाणे गौर पते पशुपते पशुपाशनािशन।्


काशीपते क णया जगदे तदे क- वंहंिस पािस वदधािस महे रोऽिस॥१०॥

व ो जग वित दे व भव मरारे व येव ित ित जग मृ ड व नाथ।


व येव ग छित लयं जगदे तद श िल गा मके हर चराचर व पन॥११॥

यह आ दगु ी शंकराचाय ारा रिचत वेद व णत िशव क तुित ह।


i Xkq:Ro T;ksfr”k 54 vxLr 2010

महाकाल तवन

असंभवं संभव-क ु मुघतं, च ड-झंझावृ ितरोधस म।


युग य िनमाणकृ ते समुघतं, परं महाकालममुं नमा यहम॥

यदा धरायामशांितः वृ ा, तदा च त यां शांितं विधतुम।


विनिमतं शांितकुंजा य-तीथकं, परं महाकालममुं नमा यहम॥

अनाघन तं परमं मह यसं, वभोः व पं प रचायय मुहु ः।


यगगानु पं च पंथं यदशयत्, परं महाकालममुं नामा यह॥

उपे ता य महा दकाः याः, वलु ाय खलु सा यमा हकम।


समु तं
ृ येन जग ताय वै, परं महाकालममुं नामा यहम॥

ितर कृ तं व मडतम युपे तं, आरो यवहं यजन चा रतुंम।


कलौ कृ तं यो रिचतुं समघतः, परं महाकालममुं नामा यहम॥

तपः कृ तं येन जग ताय, वभी षकाया जग नु र तुम।


समु वला य य भ व य-घोषणा, परं महाकालममुं नामा यहम॥

मृ दु दारं दयं नु य य यत ्, तथैव ती णं गहनं च िच तनम।


ऋषे र ं परमं प व कं, परं महाकालममुं नामा यहम॥

जनेष दे व ववृ ितं विधतु,ं वय धराया च वधातुम यम।


युग य िनमाणकृ ता च योजना, परं महाकालममुं नामा यहम॥

यः पठे च त ये चा प, महाकाल- व पकम।


लभेत परमां ीित, महाकाल कृ पा शा॥

॥इित महाकाल तवन संपूण ॥


i Xkq:Ro T;ksfr”k 55 vxLr 2010

ािभषेक तो
ॐ सवदे वता यो नम :

ॐ नमो भवाय शवाय ाय वरदाय च । पशूनाम ् पतये िन यमु ाय च कप दने ॥१॥

महादे वाय भीमाय य बकाय च शा तये । ईशानाय मख नाय नमोऽ व धकघाितने ॥२॥

कुमारगुरवे तु यम ् नील ीवाय वेधसे । पना कने हव याय स याय वभवे सदा ॥३॥

वलो हताय धू ाय याधायानपरा जते । िन यनीिलशख डाय शूिलने द यच ुषे ॥४॥

ह े गो े ने ाय याधाय वसुरेतसे । अिच याया बकाभ सवदे व तुताय च ॥५॥

वृ ष वजाय मु डाय जटने चा रणे । त यमानाय िसलले याया जताय च ॥६॥

व ा मने व सृ जे व मावृ य ित ते । नमो नम ते से याय भूतानां भवे सदा ॥७॥

व ाय सवाय शंकराय िशवाय च । नमोऽ तु वाच पतये जानां पतये नम: ॥८॥

नमो व य पतये महतां पतये नम: ।

नम: सहि शरसे सह भुजमृ यवे । सह ने पादाय नमोऽसं येयकमणे॥९॥

नमो हर यवणाय हर यकवचाय च । भ ानु क पने िन यं िस यतां नो वर: भो ॥१०॥

एवं तु वा महादे वं वासुदेव: सहाजुन: । सादयामास भवं तदा ोपल धये ॥११॥

॥ इित ािभषेक तो म ् संपूण ॥

योग: तांबेके लोटे म शु ध पानी या गंगाजल, गाय का क चा दध


ू , सफेद या काले ितल इन सबको लोटे म
िमलाकर िशविलंग उपर दध
ू क धारा चालु रखकर उपरो लघु ािभषेक तो का पाठ यारा बार धा पूव क
करने से जीवन म आयी हई ु
ु और आनेवाली सम त कार के क ो से छटकारा िमलता ह और सुख शांित एवं
समृ क ाि होती है । इसम लेस मा सदे ह नह ं ह।
i Xkq:Ro T;ksfr”k 56 vxLr 2010

िशव मानस पूजा

र ैः क पतमासनं हमजलैः नानं च द या बरं


नानार वभू षतं मृ गमदामोदा कतं च दनम।्
जातीच पक ब वप रिचतं पु पं च धूपं तथा
द पं दे व दयािनधे पशुपते क पतं गृ ताम॥
् १॥

सौवण नवर ख डरिचते पा े घृ तं पायसं भ यं


प च वधं पयोदिधयुतं र भाफलं पानकम ् ।
शाकानामयुतं जलं िचकरं कपूरख डो वलं ता बूलं
मनसा मया वरिचतं भ या भो वीकु ॥२॥

छ ं चामरयोयु गं यजनकं चादशकं िनमलम ्


वीणाभे रमृ द गकाहलकला गीतं च नृ यं तथा।
सा ा गं णितः तुितबहु वधा ेत सम तं मया
स क पेन सम पतं तव वभो पूजां गृ हाण भो॥३॥

आ मा वं िग रजा मितः सहचराः ाणाः शर रं गृ हं


पूजा ते वषयोपभोगरचना िन ा समािध थितः।
स चारः पदयोः द ण विधः तो ा ण सवािगरो
य कम करोिम त द खलं श भो तवाराधनम॥्४॥

करचरण कृ तं वा कायजं कमजं वा


वणनयनजं वा मानसंवापराधम।्
व हतम व हतं वा सवमेत म व
जय जय क णा धे ीमहादे वश भो॥५॥

॥ इित ीम छ कराचाय वरिचता िशवमानसपूजा संपूण॥

आ द गु शंकराचाय ारा रिचत िशव मानस पूजा िशव जी क अ त


ू तुित है ।
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िशवा कम

त मै नम: परमकारणकारणाय, द ो वल विलत प गललोचनाय ।


नागे हारकृ तकु डलभूषणाय, े व णुवरदाय नम: िशवाय ॥ १ ॥

ीम स नशिशप नगभूषणाय, शैले जावदनचु बतलोचनाय ।


कैलासम दरमहे िनकेतनाय, लोक याितहरणाय नम: िशवाय ॥ २ ॥

प ावदातम णकु डलगोवृ षाय, कृ णाग चुरच दनचिचताय ।


भ मानुष वकचो पलम लकाय, नीला जक ठस शाय नम: िशवाय ॥ ३ ॥

ल ब स प गल जटा मुकुटो कटाय, दं ाकराल वकटो कटभैरवाय ।


या ा जना बरधराय मनोहराय, लोकनाथनिमताय नम: िशवाय ॥ ४ ॥

द जापितमहाखनाशनाय, ं महा पुरदानवघातनाय ।


ो जतो वग ो टिनकृ ं तनाय, योगाय योगनिमताय नम: िशवाय ॥ ५॥

संसारसृ घटनाप रवतनाय, र : पशाचगणिस समाकुलाय ।


िस ोरग हगणे िनषे वताय, शादलचमवसनाय
ू नम: िशवाय ॥ ६ ॥

भ मा गरागकृ त पमनोहराय, सौ यावदातवनमाि तमाि ताय ।


गौर कटा नयनाधिनर णाय, गो ीरधारधवलाय नम: िशवाय ॥ ७ ॥

आ द य सोम व णािनलसे वताय, य ा नहो वरधूमिनकेतनाय ।


ऋ सामवेदमुिनिभ: तुितसंयुताय, गोपाय गोपनिमताय नम: िशवाय ॥ ८ ॥

॥इित ी िशवा कम संपूण॥


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ी ा कम

नमामीशमीशान िनवाण पं। वभुं यापकं वेद व पं।


िनजं िनगुणं िन वक पं िनर हं । िचदाकाशमाकाशवासं भजेडहं ॥१॥

िनराकारम कारमूलं तुर यं। िगरा यान गोतीतमीशं िगर शं।


करालं महाकाल कालं कृ पालं। गुणागार संसारपारं नतोडहं ॥२॥

तुषारा संकाश गौरं ग भीरं । मनोभूत को ट भा ी शर रं ।


फुर मौिल क लोिलनी चा गंगा। लस ालबाले द ु क ठे भुजंगा॥३॥

चल कु डलं ू सुने ं वशालं। स नाननं नीलक ठं दयालं।


मृ गाधीशचमा बरं मु डमालं। यं शंकरं सवनाथं भजािम॥४॥

च डं कृ ं ग भं परे शं। अख डं अजं भानुको ट काशम।्


य: शूल िनमूलनं शूलपा णं। भजेडहं भवानीपितं भावग यं॥५॥

कलातीत क याण क पांतकार । सदास जनान ददाता पुरार ।


िचदान द संदोह मोहापहार । सीद सीद भो म मथार ॥६॥

न याव उमानाथ पादार वंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।


न ताव सुखं शा त स तापनाशं। सीद भो सवभूतािधवासं॥७॥

न जानािम योगं जपं नैव पूजां। नतोडहं सदा सवदा श भु तु यं।


जराज म द:ु खौघ तात यमानं। भो पा ह आप मामीश शंभो॥८॥

ा किमदं ो ं व ेण हरतोषये।
ये पठ त नरा भ या तेषां श भु: सीदित॥९॥

॥इित ी ा कम संपूण॥
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िलंगा कम
मुरा रसुरािचत िलगं िनमलभा षतशोिभत िलंग।
ज मजदःख
ु वनाशक िलंग त णमािम सदािशव िलंगं॥१॥

दे वमुिन वरािचत िलंग,ं कामदहं क णाकर िलंगं।


रावणदप वनाशन िलंगं त णमािम सदािशव िलंगं॥२॥

सवसुगं धसुले पत िलंग,ं बु ववधनकारण िलंगं।


िस सुरासुरव दत िलंग,ं त णमािम सदािशव िलंगं॥३॥

कनकमहाम णभू षत िलंग,ं फ णपितवे तशोिभत िलंगं।


द सुय वनाशन िलंग,ं त णमािम सदािशव िलंगं॥४॥

कुंकुमचंदनले पत िलंग,ं पं कजहारसुशोिभत िलंगं।


सं चतपाप वनािशन िलंग,ं त णमािम सदािशव िलंगं॥५॥

दे वगणािचतसे वत िलंग, भवैभ िभरे वच िलंगं।


दनकरको ट भाकर िलंग,ं त णमािम सदािशव िलंगं॥६॥

अ दलोप रवे त िलंग,ं सवसमु वकारण िलंगं।


अ द र वनािशत िलंग,ं त णमािम सदािशव िलंगं॥७॥

सुरगु सुरवरपू जत िलंग,ं सुरवनपु पसदािचत िलंगं।


परा परं परमा मक िलंग,ं तत णमािम सदािशव िलंगं॥८॥

॥इित ी िलंगा कमसंपूण ॥


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िशवम ह न तो म ्

म ह नः पारं ते परम वदषो


ु य स शी तुित ाद ना म प तदवस ना विय िगरः ।
अथावा यः सवः वमितप रणामिध गृ णन् ममा येषः तो े हर िनरपवादः प रकरः ॥१॥

अतीतः पंथानं तव च म हमा वा मनसयो रत यावृ यायं च कतमिभध े ु ितर प ।


स क य तोत यः कित वधगुणः क य वषयः पदे ववाचीने पतित न मनः क य न वचः ॥२॥

मधु फ ता वाचः परमममृ तं िनिमतवत तव कं वा ग प सुरगुरो व मयपदम ् ।


मम वेतां वाणीं गुणकथनपु येन भवतः पुनामी यथ मन ् पुरमथनबु यविसता ॥३॥

तवै य य जगददयर
ु ा लयकृ त यी व तु य तं ितसृ षु गुणिभ नासु तनुषु ।
अभ यानाम मन ् वरद रमणीयामरमणीं वहं तुं यो ोशीं वदधत इहै के जडिधयः ॥४॥

किमहः कंकायः स खलु कमुपाय भुवनं कमाधारो धाता सृ जित कमुपादान इित च ।
अतकय य व यनवसरदःु थो हतिधयः कुतक डयंकां मुखरयित मोहाय जगतः ॥५॥

अज मानो लोकाः कमवयवंवतोड प जगता मिध ातारं कं भव विधरनाद य भवित ।


अनीशो वा कुयाद भुवनजनने कः प रकरो यतो मंदा वां यमरवर संशेरत इमे ॥६॥

यी सां यं योगः पशुपितमतं वै णविमित िभ ने थाने परिमदमदः प यिमित च ।


चीनां वैिच या दजुकु टलनानापथजुषां नृ णामेको ग य वमिस पयसामणव इव ॥७॥

महो ः ख वांगं परशुर जनं भ म फ णनः कपालं चेतीय व वरद तं ोपकरणम ् ।


सुरा तां तामृ ं दधित तु भव ू ण हतां न ह वा मारामं वषयमृ गतृ णा मयित ॥८॥


ु ंक सव सकलमपर व ुविमदं परो ो या ो ये जगित गदित य त वषये ।
सम तेड येत म पुरमथन तै व मत इव तुवं ज े िम वां न खलु ननु धृ ा मुखरता ॥९॥

तवै य य ा दप
ु र व रं िचह ररधः प र छे तुं याता वनलमनल कंधवपुषः ।
ततो भ ा भरगु गृ ण यां िग रश यत ् वयं त थे ता यां तव कमनुव ृ ने फलित ॥१०॥

अय ादापा भुवनमवैर यितकरं दशा यो य ाहू नभृ न रणकंडु परवशान ् ।


िशरःप े णी रिचतचरणांभो हबलेः थराया व े पुरहर व फू जतिमदम ् ॥११॥

अमु य व सेवा समिधगतसारं भुजवनं बला कैलासेड प वदिधवसतौ व मयतः ।


अल यापाताले ड यलसचिलतांगु िशरिस ित ा व या सी ुवमुपिचतो मु ित खलः ॥१२॥
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यद ं सु ा णो वरद परमो चैर प सती मध े बाणः प रजन वधेय भुवनः ।


न त च ं त मं व रविसत र व चरणयो न क या यु न यै भवित िशरस व यवनितः ॥१३॥

अका ड ा ड यच कतदे वासुरकृ पा वधेय यासी नय वषं सं तवतः ।


स क माषः क ठे तव न कु ते न ि यमहो वकारोड प ा यो भुवनभयभंग यसिननः ॥१४॥

अिस ाथा नैव कविचद प सदे वासुरनरे िनवत ते िन यं जगित जियनो य य विशखाः ।
स प य नीश वािमतरस रसाधारणमभूत ् मरः मत या मा न ह विशषु प यः प रभवः ॥१५॥

मह पादाधाता जित सहसा संशयपदं पदं व णो ा य ुजप रघ ण हगणम ् ।


मुहु द यं या यिनभृ तजटाता डततटा जग ायै वं नटिस ननु वामैव वभुता ॥१६॥

वय यापी तारागणगु णतफेनो म िचः वाहो वारां यः पृ षतलघुद ः िशरिस ते ।


जग पाकारं जलिधवलयं तेन कृ तिम यनेनैवो नेयं धृतम हम द यं तव वपुः ॥१७॥

रथः ोणी य ता शतधृ ितरगे ो धनुरथो रथाडगे च ाक रथचरणपा णः शर इित ।


दध ो ते कोडयं पुरतृ णमाड बर विधर् वधेयैः ड यो न खलु परत ाः भुिधयः ॥१८॥

ह र ते साह ं कमलबिलमाधाय पदयो य दकोने त मन ् िनजमुदहर ने कमलम ् ।


गतो भक यु े कः प रणितमसौ च वपुषा याणां र ायै पुरहर जागित जगताम ् ॥१९॥

तौ सु े जा वमिस फलयोगे तुमतां व कम व तं फलित पु षाराधनमृ ते ।


अत वां स े य तुषु फलदान ितभुवं ु तौ ां ब वा दटप रकरः कमसु जनः ॥२०॥

याद ो द ः तुपितरधीश तनुभ ृ ता मृ षीणामा व यं शरणद सद याः सुरगणाः ।


तु ंष व ः तुफल वधान यसिननो ुवं कतु ः ा वधुरमिभचाराय ह मखाः ॥२१॥

जानाथं नाथ सभमिभकं वां द ु हतरं गतं रो ह तां


ू ररमियषुम ृ य य वपुषा ।
धनु पाणेयातं दवम प सप ाकृ तंममुं स तं तेड ा प यजित न मृ ग याधरभसः ॥२२॥

वलाव याशंसाधृ तधनुषम ाय तृ णवत् पुरः लु ं द वा पुरमथन पु पायुधम प ।


यद ैणं दे वी यमिनरत दे हाधघटना दवैित वाम ा बत वरद मु धा युवतयः ॥२३॥

मशाने वा डा महर पशाचाः सहचरा ताभ मालेपः तग प नृ करोट प रकरः ।


अमंग यं शीलं तव भवतु नामैवम खलं तथाड प मतृ णां वरद परमं मंगलमिस ॥२४॥
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मनः य च े स वधमवधाया म तः य ोमाणः मदसिललो संिगतदशः ।


यदालो या ादं द इव िनम यामृ तमये द यंत त वं म प यिमन त कल भवान ् ॥२५॥

वमक वं सोम वमिस पवन वं हतवह


ु वमाप वं योम वमु धर णरा मा विमित च ।
प र छ नामेवं वियप रणता ब तु िगरं न व त वं वयिमह तु य वं न भविस ॥२६॥

यीं ित ो वृ ी भुवनमथो ीन पसुरा नकारा ैव ण िभरिभदध ीण वकृ ितः ।


तुर यं ते धाम विनिभरव धानमणुिभः सम तं य तं वां शरणद गृ णा योिमित पदम ् ॥२७॥

भवः शव ः पशुपितरथो ः सहमहां तथां भीमशाना वित यदिभधाना किमदम ् ।


अमु म येकं वतरित दे व ु ितर प याया मै धा ने ण हतनम योड म भवते ॥२८॥

नमो ने द ाय यदवद व ाय च नमो नमः ो द ाय मरहर म ह ाय च नमः ।


नमोव ष ाय नयन य व ा च नमो नमः सव मै ते त ददिमितशवाय च नमः ॥२९॥

बहलरजसे व ो प ौ भवाय नमो नमः बलतमसे त संहारे हराय नमो नमः ।


जनसुखकृ ते स वो ौ मृ डाय नमो नमः महिस पदे िन ैगु ये िशवाय नमो नमः ॥३०॥

कृ शप रणित चेतः लेशव यं व चेदं व च तव गुणसीमो लंिधनी श ः।


इित च कतमम द कृ य मां भ राधा वरद चरणयो ते वा य-पु पोपहारम ् ॥३१॥

अिसतिग रसमं यात ् क जलं िसंधुपा े सुरत वरशाखा ले खनी प मु व ।


िलखित य द गृ ह वा शारदा सवकालं तद प तव गुणाना मीश पारं न याित ॥३२॥

असुरसुरमुनी ै रिचत ये दमौले


ु िथतगुणम ह नो िनगु ण ये र य ।
सकलगणव र ः पु पद तािभधानो िचरमलधुव ृ ैः तो मेत चकार ॥३३॥

अहरहरनव ं धूज टे ः तो मेतत ् पठित परमभ या शु िच ः पुमा यः ।


स भवित िशवलोके तु य तथाड चुरतरधनायुः पु वा क ितमां ॥३४॥

महे शा नापरो दे वो म ह नो नापरा तुितः । अघोरा नापरो मं ो ना त त वं गुरोः परम ्


द ा दानं तप तीथ ानं यागा दकाः याः । म ह न तवपाठ य कलां नाह त षोडशीम ् ॥३५॥

कुसुमदशननामा सवग धवराजः िशशुशिशधरमौलेदव दे व य दासः ।


स खलु िनजम ह नो एवा य रोषात ् तवनिमदमकाष द य द यं म ह नः ॥३६॥
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सुरवरमुिनपू यं वगमो ैकहे तुं पठित य द मनु यः ांजिलना यचेताः ।


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जित िशवसमीपं क नरै ः तूयमानः तवनिमदममोघं पु पद त णीतम ् ॥३७॥

आसमा िमदं तो ं पु यं गंधवभा षतम ् । अनौप यं मनोहा रिशवमी रवणनम ् ।


इ येषा वाडमयी पूजा ीम छं करपादयोः । अ पता तेन दे वेशः ीयतां मे सदािशवः ॥३८॥

तव त वं न जानािम क शोडिस महे र । या सोडिस महादे व ता शाय नमो नमः ।


एककालं कालं वा कालं यः पठे नरः । सवपाप विनमु ः िशवलोके मह यते ॥३९॥

ी पु पदं तमुखपंकजिनगतेन तो ण क बहरे ण हर येण ।


कंठ थतेन प ठतेन समा हतेन सु ी णतो भवित भूतपितमहे शः ॥४०॥

जो मनु य िशवजी क अित य इस तुित का पाठ करता ह उस पर िशवजी क अव य कृ पा होती ह।

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ा कृ त िशव तो
नम ते भगवान भा करािमत तेजसे।
नमो भवाय दे वाय रसाया बुमया मन॥१॥

शवाय ित पाय नंद सुरभये नमः।


ईशाय वसवे सु यं नमः पशमया मने॥२॥

पशूनां पतये चैव पावकायािततेजसे।


भीमाय योम पाय श द मा ाय ते नमः॥३॥
उ ायो ा व पाय यजमाना मने नमः।
महािशवाय सोमाय नम वमृ त मूत ये॥४॥

॥इित ी ाकृ त िशव तो संपूण ॥

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िशव आरती
जय िशव ओंकारा, ॐ जय िशव ओंकारा।
ा, व णु, सदािशव, अ ागी धारा॥ ॐ जय िशव ओंकारा………

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।


हं सासन ग ड़ासन वृ षवाहन साजे॥ ॐ जय िशव ओंकारा………

दो भुज चार चतुभु ज दसभुज अित सोहे ।


गुण प िनरखते भुवन जन मोहे ॥ ॐ जय िशव ओंकारा………

अ माला वनमाला मु डमाला धार ।


पुरार कंसार कर माला धार ॥ ॐ जय िशव ओंकारा………

ेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे।


सनका दक ग णा दक भूता दक संगे॥ ॐ जय िशव ओंकारा………

कर के म य कमंडलु च शूलधार ।
सुखकार दखहार
ु जगपालन कार ॥ ॐ जय िशव ओंकारा………

ा व णु सदािशव जानत अ ववेका।


णवा र म शोिभत ये तीन एका॥ ॐ जय िशव ओंकारा………

ल मी व सा व ी पावती संगा।
पावती अ ागी, िशवलहर गंगा॥ ॐ जय िशव ओंकारा………

पवत सोह पावती, शंकर कैलासा।


भांग धतूर का भोजन, भ मी म वासा॥ ॐ जय िशव ओंकारा………

जटा म गंग बहत है , गल मु डन माला।


शेष नाग िलपटावत, ओढ़त मृ गछाला॥ ॐ जय िशव ओंकारा………

काशी म वराजे व नाथ, नंद चार ।


िनत उठ दशन पावत, म हमा अित भार ॥ ॐ जय िशव ओंकारा………

गुण वामी जी क आरित जो कोइ नर गावे।


कहत िशवानंद वामी सुख संपित पावे॥ ॐ जय िशव ओंकारा………
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िशव तांडव तो
जटाटवीग ल जल वाहपा वत थले गलेऽवल यल बतां भुजंगतुंगमािलकाम।्
डम डम डम डम ननादव डमवयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः िशवः िशवम ॥१॥

जटा कटा हसं म म निलंपिनझर । वलोलवी िचव लर वराजमानमूध िन ।


धग ग ग वल ललाट प टपावके कशोरचं शेखरे रितः ित णं ममं ॥२॥

धरा धर नं दनी वलास बंधुवंधुर- फुर गंत संतित मोद मानमानसे ।


कृ पाकटा धारणी िन दधराप
ु द कविच ग बरे मनो वनोदमेतु व तुिन ॥३॥

जटा भुजं ग पंगल फुर फणाम ण भा- कदं बकुंकुम व िल द वधूमुखे ।


मदांध िसंधु र फुर वगु र यमेदरेु मनो वनोद तं
ु बंभतु भूतभत र ॥४॥

सह लोचन भृ य शेषलेखशेखर- सून धूिलधोरणी वधूसरांि पीठभूः ।


भुजंगराज मालया िनब जाटजूटकः ि ये िचराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥५॥

ललाट च वर वल नंजय फु रगभा- िनपीतपंचसायकं िनम निलंपनायम ् ।


सुधा मयुख लेखया वराजमानशेखरं महा कपािल संपदे िशरोजयालम तू नः ॥६॥

कराल भाल प टकाधग ग ग वल- नंजया धर कृ त चंडपंचसायके ।


धराधर नं दनी कुचा िच प क- क पनैकिश पिन लोचने मितमम ॥७॥

नवीन मेघ मंडली िन दधर


ु फुर- कुहु िनशीिथनीतमः बंधबंधुकंधरः ।
िनिल पिनझ र धर तनोतु कृ िसंधुरः कलािनधानबंधुरः ि यं जगं रंु धरः ॥८॥

फु ल नील पंकज पंचकािलम छटा- वडं ब कंठकंध रा िच बंधकंधरम ्


मर छदं पुर छं द भव छदं मख छदं गज छदांधक छदं तमंतक छदं भजे ॥९॥

अगवसवमंगला कलाकद बमंजर - रस वाह माधुर वजृ ंभणा मधु तम ् ।


मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

जय वद व म म जं
ु गम फुर- ग ग िनगम कराल भाल ह यवा -
िधिम िम िम न मृ दंगतुंगमंगल- विन म वितत च ड ता डवः िशवः ॥११॥

ष िच त पयोभु जंग मौ कम जो- ग र र लो योः सु प प योः ।


तृ णार वंदच ुषोः जामह महे योः समं वतय मनः कदा सदािशवं भजे ॥१२॥
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कदा िनिलंपिनझर िनकुजकोटरे वसन ् वमु दमितः


ु सदा िशरः थमंजिलं वहन ् ।
वमु लोललोचनो ललामभालल नकः िशवेित मं मु चरन ् कदा सुखी भवा यहम ् ॥१३॥

िनिल प नाथनागर कद ब मौलम लका- िनगु फिनभ र म धू णकामनोहरः ।


तनोतु नो मनोमुदं वनो दनींमहिनशं प र य परं पदं तदं गज वषां चयः ॥१४॥

च ड वाडवानल भाशुभ चारणी महा िस कािमनी जनावहत


ू ज पना ।
वमु वाम लोचनो ववाहकािलक विनः िशवेित म भूषगो जग जयाय जायताम ् ॥१५॥

इमं ह िन यमेव मु मु मो म तवं पठ मरन ् ुव नरो वशु मेित संततम ् ।


हरे गुरौ सुभ माशु याित नांयथा गितं वमोहनं ह दे हना तु शंकर य िचंतनम ॥१६॥

पूजाऽवसानसमये दशव गीतं यः श भूपूजनिमदं पठित दोषे ।


त य थरां रथगज तुरंगयु ां ल मी सदै व सुमुखीं ददाित श भुः ॥१७॥

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िशव तुित (राम च रतमानस)

नमािमशमीशान िनवाण पम।्


वभुं यापकम ् वेद व पम।॥
् १॥

िनजं िनगुणम ् िन क पं िनर हम।्


िचदाकाशमाकाशवासं भजेहम॥्२॥

िनराकारम कारमूलम ् तुर यम।्


िगरा ान गोतीतमीशम ् िगर शम॥्३॥

करालं महाकाल कालं कृ पालम।्


गुणागार संसारपारम ् नतोहम॥्४॥

तुषारा संकाश गौरम ् गंभीरम।्


मनोभूत को ट भा ी शर रम॥्५॥
i Xkq:Ro T;ksfr”k 67 vxLr 2010

मािसक रािश फल
 िचंतन जोशी
मेष:समय थोडा ितकूल ह अतः एहितयात वत एवं संयम तुला : अपने िनजी अनुभव से काय कर। प रवार िम ो से
बनाये रखने म समझदार ह। धन हानी के योग बन रह संबंध म सुधार होगा एवं लाभ ा होगा। थोडे से प र म
ह। आपको अपनी इ छा से व काय करने पड सकते से अिधक लाभ ा कर सकते ह। अनैितक काय से दरू
ह। श ु सरकार से परे शानी संभव ह। रह। िनवेश करने से नु शान होगा।

वृ ष: प र म के उपरांत सफलता ा होने म क ठनाई


वृ क : मन श न रह गा। पीछले कुछ समय से जो
अनुभग करगे। संबंिध एवं िम ो क और से पा रवा रक
परे शािनया दरू होगी। आक मक धन लाभ होगा। नौक र
तनाव उ प न होने के योग ह। आय से यय अिधक
यवसाय म गती होगी। भूिम-भवन संबंिधक काय म
रहे गा। अपने वा य के े म लापरवाह ं गंिभर सम या
लाभ होने के योग बन रह ह। वा य उ म रहे गा। दसरो

पैदा कर सकती ह।
क ज मेदार लेनेसे बचे।

िमथुन: बना वजह से मानिसक तनाव बना रहे गा।


धनु : समय उ म ह। घर प रवार से सहयोग ा होगा।
संबंिधओ से वाद- ववाद करने से बचे। यथ के कामो म
वदे श से लाभा ा होने योग बन रहे ह । नौकर यापार
उलझे रहगे। लेन-दे न म सावधानी वत धन संबंिधत
म सुधार होगा। श ु परा त ह गे। वा य से संबंिधत
परे शानी हो सकती ह। सामा जक काय म िच रहे गी
परे शानी हो सकती ह सावधानी बत।
ज से आप क ित ा म वृ होगी।

कक : समय के साथ चलने म व ास रख, अिधक प र म मकर : मानिसक परे शानी बनी रहे गी। काय म य तता
के बाद थोडा लाभ ा होगा। कोई भी नये काम म रहे गी। अिधक या ा संभव ह। अिधकार वग से लाभ ा
ज दबाजी अिधक नु शान दान करे गी। अपने आप कर होगा। धन संबंिधत मामलो म सामा य लाभ ा होने के
काबू रखे अ यथा पा रवा रक लेष बढने क संभावना ह। योग ह। पा रवा रक सम याए बनी रहे गी।

िसंह : धन लाभ होगा, यापर, नौकर से उ नित एवं लाभ कुंभ : थती सामा य रहे गी। यवसाय और नौकर म
के बल योग ह। ले कन अपने खच पर िनयं ण रखने वशेष लाभ ा होगा। काय े म गती होगी। धन के
क अिधक आव यकता रहे गी। यथ म दसरो
ू से उलझने मामले मे समय सामा य ह वा य भी पूव क अपे ा
से बचे। वा य उ म रहे गा खान-पान पर संयम बत। उ म रहे गा। बकाया धन ा होने के योग ह।

क या : समय ितकूल ह। वयं के ोध-गु से को


मीन : अ यािधक प र म बना रहे गा। यथ क िचंता,
िनयं त करने क कोिशस नाकाम होगी। धन संबंिधत
मानिसक परे शानी बनी रहे गी। प र म क अपे ा लाभ
मामलो म भी समय अनुकूल नह ं अतः खच पर काबू
कम ा होगा। जस कारण िनराशावाद भाव उ प न
रखे। िनवेश करने से बचे। पा रवा रक सम याए घेरे
होगे। कंतु 15 अग त के बाद म थती म सुधार होगा।
रहे गी।
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अग त -२०१० मािसक पंचांग


चं
द माह प ितिथ समाि न समाि योग समाि करण समाि समाि
रािश

1 ावण कृ ण ष ी 20:36:41 रे वित 26:01:03 धृ ित 28:11:22 गर 07:44:11 मीन 26:01:00

2 ावण कृ ण स मी 22:01:37 अ नी 27:55:03 शूल 28:11:56 व ी 09:23:11 मेष

3 ावण कृ ण अ मी 22:47:11 भरणी 29:10:37 गंड 27:42:30 बालव 10:28:26 मेष

4 ावण कृ ण नवमी 22:49:37 कृ ितका 29:42:07 वृ 26:37:26 तैितल 10:53:22 मेष 11:23:00

5 ावण कृ ण दशमी 22:05:11 रो ह ण 29:27:41 ुव 24:54:52 व णज 10:33:19 वृष

6 ावण कृ ण एकादशी 20:35:45 मृगिशरा 28:29:11 याघात 22:35:45 बव 09:25:26 वृष 17:04:00

7 ावण कृ ण ादशी 18:23:11 आ ा 26:50:22 हषण 19:41:56 कौलव 07:34:26 िमथुन

8 ावण कृ ण योदशी 15:34:04 पुनवसु 24:36:52 व 16:18:07 व णज 15:34:04 िमथुन 19:12:00

9 ावण कृ ण चतुदशी 12:15:52 पु य 21:58:04 िस 12:29:56 शकुिन 12:15:52 कक

10 ावण कृ ण अमाव या 08:38:56 आ ेषा 19:04:15 यितपात 08:26:45 नाग 08:38:56 कक 19:04:00

ितपदा- 25:06:40 मघा 16:06:40 प र ह 24:02:55 बालव 14:58:14 िसंह


11 ावण शु ल
तीया

12 ावण शु ल तृतीया 21:31:36 पूवाफा गुनी 13:15:40 िशव 20:00:40 तैितल 11:16:36 िसंह 18:35:00

13 ावण शु ल चतुथ 18:18:05 उ राफा गुनी 10:42:28 िस 16:16:13 व णज 07:52:47 क या

14 ावण शु ल पंचमी 15:36:27 ह त 08:37:23 सा य 12:56:08 बालव 15:36:27 क या 19:46:00

15 ावण शु ल ष ी 13:30:26 िच ा 07:07:00 शुभ 10:05:07 तैितल 13:30:26 तुला

16 ावण शु ल स मी 12:09:25 वाती 06:16:55 शु ल 07:49:44 व णज 12:09:25 तुला 24:10:00

17 ावण शु ल अ मी 11:31:31 वशाखा 06:12:46 06:10:54 बव 11:31:31 वृ क

18 ावण शु ल नवमी 11:39:33 अनुराधा 06:51:45 वैध ृ ित 28:35:48 कौलव 11:39:33 वृ क

19 ावण शु ल दशमी 12:26:58 जे ा 08:12:54 वषकुंभ 28:33:32 गर 12:26:58 वृ क 08:13:00

20 ावण शु ल एकादशी 13:49:04 मूल 10:07:49 ीित 28:54:41 व ी 13:49:04 धनु


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ावण शु ल ादशी 15:40:13 पूवाषाढ़ 12:29:54 आयु मान 29:31:46 बालव 15:40:13 धनु 19:08:00

ावण शु ल योदशी 17:48:14 उ राषाढ़ 15:11:40 सौभा य 30:21:03 तैितल 17:48:14 मकर

ावण शु ल चतुदशी 20:08:27 वण 18:04:42 सौभा य 06:20:38 गर 06:57:12 मकर

ावण शु ल पू णमा 22:35:13 धिन ा 21:03:20 सोभन 07:16:28 व ी 09:21:09 मकर 07:33:00

भा पद कृ ण ितपदा 25:01:59 शतिभषा 24:02:55 अितगंड 08:15:06 बालव 11:48:51 कुंभ

भा पद कृ ण तीया 27:24:04 पूवाभा पद 26:58:45 सुकमा 09:12:49 तैितल 14:13:45 कुंभ 20:15:00

भा पद कृ ण तृतीया 29:36:46 उ राभा पद 29:45:12 धृ ित 10:03:57 वा णज 16:32:04 मीन

भा पद कृ ण चतुथ 31:34:27 रे वित 32:17:35 शूल 10:48:31 बव 18:37:16 मीन

भा पद कृ ण पंचमी 07:34:02 रे वित 08:17:09 गंड 11:19:58 बालव 07:34:02 मीन 08:17:00

भा पद कृ ण ष ी 09:10:09 अ नी 10:27:58 वृ 11:34:32 तैितल 09:10:09 मेष

भा पद कृ ण स मी 10:18:10 भरणी 12:10:40 ुव 11:25:40 व णज 10:18:10 मेष

अग त -२०१० मािसक त-पव- यौहार


द माह प ितिथ समाि मुख योहार

1 ावण कृ ण ष ी 20:36:41

2 ावण कृ ण स मी 22:01:37 ावण सोमवार त ारं भ, शीतला स मी,

3 ावण कृ ण अ मी 22:47:11 मंगला गौर त, काला मी त

4 ावण कृ ण नवमी 22:49:37 दशाफल त

5 ावण कृ ण दशमी 22:05:11

6 ावण कृ ण एकादशी 20:35:45 कािमका एकादशी, कामदा त,

7 ावण कृ ण ादशी 18:23:11 शिन दोष त पु - ाि हे तु उ म

8 ावण कृ ण योदशी 15:34:04 िशव चतुदशी त, मािसक िशवरा

9 ावण कृ ण चतुदशी 12:15:52 ावण सोमवार, ा अमाव या, सोमवती अमावस

10 ावण कृ ण अमाव या 08:38:56 मंगला गौर पूजन त, नानदान, ह रयाली अमाव या,
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11 ावण शु ल एकम- तीया 25:06:40 िसंधारा, चं दशन

12 ावण शु ल तृतीया 21:31:36 ह रयाली तीज, मधु वा तीज, वणगौर त,

18:18:05 वरद वनायक चतुथ त, दवागणपित


ू चतुथ , महाल मी-पूजा (चं
13 ावण शु ल चतुथ
रा.09:01)

14 ावण शु ल पंचमी 15:36:27 नागपंचमी, त क-पूजन

15 ावण शु ल ष ी 13:30:26 रांधण छठ (गु),

16 ावण शु ल स मी 12:09:25 ावण सोमवार, शीतला स मी,

17 ावण शु ल अ मी 11:31:31 मंगला गौर त, दगा


ु मी त, अ नपूणा मी त

18 ावण शु ल नवमी 11:39:33 नकुल नवमी, सौर मास भा पद ारं भ

19 ावण शु ल दशमी 12:26:58

20 ावण शु ल एकादशी 13:49:04 पु दा एकादशी त, वरदल मी त,

21 ावण शु ल ादशी 15:40:13 शिन दोष त पु - ाि हे तु उ म

22 ावण शु ल योदशी 17:48:14 सूय-महापूजा,

23 ावण शु ल चतुदशी 20:08:27 ावण सोमवार, ओणम (के), सौर शर ऋतु ारं भ

22:35:13 र ाबंधन, मंगला गौर त, राखी पू णमा, नारयली पू णमा, नान-दान-


24 ावण शु ल पू णमा
त हे तु उ म

25 भा पद कृ ण एकम 25:01:59 कजिलयां (म. ),

26 भा पद कृ ण तीया 27:24:04 अशू य शयन त, बृह पित पूजा,

27 भा पद कृ ण तृतीया 29:36:46 कजली तीज त, कजर तीज, गोपूजा तृतीया,

31:34:27 संक ी गणेश चतुथ त, वनायक चतुथ त, बहला


ु चतुथ , (चं ो रा
28 भा पद कृ ण चतुथ
08:20)

29 भा पद कृ ण पंचमी 07:34:02 र ापंचमी, गोगा पंचमी,

30 भा पद कृ ण ष ी 09:10:09 हलष ी त, रांधण छठ (गु), शीतला त

31 भा पद कृ ण स मी 10:18:10
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अग त २०१० वशेष योग


काय िस योग
दनांक योग अविध अमृ त योग
2 रा 02:01 से सूय दय तक दनांक योग अविध
4 ात:काल 05:09 से रातभर 28 ात:काल 05:45 से सूय दय तक
9 रा 12.35 से रा 09:57 तक
10 सूय दय से सं या 07:03 तक पु कर योग
22 सूय दय से दोपहर 03:10 तक दनांक योग अविध
29 ात:काल 08:17 से रातभर 21 दोपहर 12:28 से 01:38 तक
31 दोपहर12:11 से रातभर 31 दोपहत 12:10 से रातभ

योग फल :
काय िस योग मे कये गये शुभ काय मे िन त सफलता ा होती ह, एसा शा ो वचन ह।
अमृ त योग म कये गये काय म शुभ फल क ाि होती ह। एसा शा ो
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ तीन गुना होता ह। एसा शा ो वचन ह।
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सूचना
 प का म कािशत सभी लेख प का के अिधकार के साथ ह आर त ह।

 लेख कािशत होना का मतलब यह कतई नह ं क कायालय या संपादक भी इन वचारो से सहमत ह ।

 ना तक/ अ व ासु य मा पठन साम ी समझ सकते ह।

 प का म कािशत कसी भी नाम, थान या घटना का उ लेख यहां कसी भी य वशेष या कसी भी थान या
घटना से कोई संबंध नह ं है .

 कािशत लेख योितष, अंक योितष, वा तु, मं , यं , तं , आ या मक ान पर आधा रत होने के कारण


य द कसी के लेख, कसी भी नाम, थान या घटना का कसी के वा त वक जीवन से मेल होता ह तो यह मा
एक संयोग ह।

 कािशत सभी लेख भारितय आ या मक शा से े रत होकर िलये जाते ह। इस कारण इन वषयो क


स यता अथवा ामा णकता पर कसी भी कार क ज मेदार कायालय या संपादक क नह ं ह।

 अ य लेखको ारा दान कये गये लेख/ योग क ामा णकता एवं भाव क ज मेदार कायालय या संपादक
क नह ं ह। और नाह ं लेखका के पते ठकाने के बारे म जानकार दे ने हे तु कायालय या संपादक कसी भी
कार से बा य नह ं ह।

 योितष, अंक योितष, वा तु, मं , यं , तं , आ या मक ान पर आधा रत लेखो म पाठक का अपना


व ास होना आव यक ह। कसी भी य वशेष को कसी भी कार से इन वषयो म व ास करने ना करने
का अंितम िनणय वयं का होगा।

 पाठक ारा कसी भी कार क आप ी वीकाय नह ं होगी।

 हमारे ारा पो ट कये गये सभी लेख हमारे वष के अनुभव एवं अनुशंधान के आधार पर िलखे होते ह। हम कसी भी य
वशेष ारा योग कये जाने वाले मं - यं या अ य योग या उपायोक ज मेदार न हं लेते ह।

 यह ज मेदार मं -यं या अ य योग या उपायोको करने वाले य क वयं क होगी। यो क इन वषयो म नैितक
मानदं ड , सामा जक , कानूनी िनयम के खलाफ कोई य य द नीजी वाथ पूित हे तु योग कता ह अथवा
योग के करने मे ु ट होने पर ितकूल प रणाम संभव ह।

 हमारे ारा पो ट कये गये सभी मं -यं या उपाय हमने सैकडोबार वयं पर एवं अ य हमारे बंधुगण पर योग कये ह
ज से हमे हर योग या मं -यं या उपायो ारा िन त सफलता ा हई
ु ह।

 पाठक क मांग पर एक ह लेखका पूनः काशन करने का अिधकार रखता ह। पाठक को एक लेख के पूनः
काशन से लाभ ा हो सकता ह।

 अिधक जानकार हे तु आप कायालय म संपक कर सकते ह।

(सभी ववादो केिलये केवल भुवने र यायालय ह मा य होगा।)


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गु व योितष प का अग त-2010
संपादक

िचंतन जोशी
संपक
गु व योितष वभाग

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July
2010

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