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जय जय जय जननी। जय जय जय जननी। जय जननी, जय जन्मदाियनी। िवश्व विन्दनी लोक पािलनी। दे िव पावर्ती, शिक्त शािलनी।
पापभंिजनी, मुिक्तकािरणी।
जय जय जय जननी। जय जय जय जननी।
यादगारों क साये े
चांदनी में नहा क आती है । े जब कभी तेरी याद आती है
तब तेरे फल से तबःसुम का ू
तू कहीं दर उफ़क से चल कर ू मेरे ख्यालों में उतर आती है । मेरे वीरान िबयाबानों में
ओस की तरह िझलिमलाती है । तू िसतारों में िटमिटमाती है । वक्त रुख़सत की बेबसी ऐसी े मेरी रातों की हसरतें बन कर
आँख से आरज़ू अयाँ न हई। ु बेज़ुबानी मगर ज़ुबां न हई। ु एक लमहे क ददर् को लेकर े
िकतनी सिदयां उदास रहती हैं । मेरी मंिज़ल क पास रहती हैं । े रात आई तो बेकली लेकर दिरयां जो कभी नहीं िमटतीं ू
चँमे पुरनम बही, बही, न बही। िज़न्दगी है , रही, रही, न रही। तुम तो कह दो जो तुमको कहना था मेरा क्या है कही, कही, न कही।
जीवन दीप
अंिधयारों में ूखर ूज्ज्विलत, तूफानों में अचल, अिवचिलत, मेरे मन का ज्योितपुंज यह दीपक अिविजत, अपरािजत।
जो जग को ज्योितमर्य करता है ।
पग पग पर ूेिरत करता है । मेरा एक दीप जलता है । यह िवशाल ॄह्मांड लेिकन हीन नहीं हँू । यहाँ मैं लघु हँू
ू जो अटट है ।
नश्वर हँू ,
न्यूटन क िसद्धान्त सरीखा े परम सत्य है , सुन्दर है , िशव है शाश्वत है । मेरे मानस में पलता है । मेरा यह िवश्वास िनरन्तर
ूवासी गीत
लौट चलें अब उस धरती पर; ज्योितहीन गीले नयनों से जहाँ अभी तक बाट तक रही चलो, घर चलें,
(िजनमें हैं भिवंय क सपने े कल क ही बीते सपनों से), े आँचल में मातृत्व समेटे,
वृद्ध िपता भी थका परािजत साँसें भी बोिझल लगती हैं उस बूढ़ी दबर्ल छाती पर। ु चलो, घर चलें,
लौट चलें अब उस धरती पर; ताक रही हैं नीला अम्बर। जहाँ बहन की कातर आँखें आँसू से िमट गई उसी की सूना रहा दज का आसन, ू
चलो, घर चलें,
लौट चलें अब उस धरती पर। रोज़गार क िकतने बन्धन! े छोटा सा संदेश आया है ,
कवल एक पऽ आया है , े
बहत व्यःत हैं , आ न सकगे। ें ु एक वषर् की और ूतीक्षा, शायद अगले साल िमलेंगे।
ममता की यह िवकट परीक्षा। हैं आशाओं की दे हरी पर। लौट चलें अब उस धरती पर। चलो, घर चलें, चलो, घर चलें, धीरे धीरे िदये बुझ रहे
लौट चलें अब उस धरती पर। अगला साल कहाँ आता है आिखर सब कछ खो जाता है ु
नई नई मिहिफ़लें लगेंगी,
लेिकन िफर वह बात न होगी, जो अपने हैं , वह न रहें गे। घर का वह माहौल न होगा, वतर्मान तो जल जाता है
चलो, घर चलें,
लौट चलें अब उस धरती पर। जहाँ अभी भी प्यार िमलेगा, रूठे तो मनुहार िमलेगा,
अपने सर की कसम िमलेगी, नाज़ुक सा इसरार िमलेगा। होली और िदवाली होगी, राखी का त्योहार िमलेगा। सावन की बौछार िमलेगी, मधुिरम मेघ-मल्हार िमलेगा। कजरी का उपहार िमलेगा। एक सरल संसार िमलेगा, एक ठोस आधार िमलेगा
अपनी ूामािणक हःती पर। लौट चलें अब उस धरती पर। चलो, घर चलें, चलो, घर चलें,
लौट चलें अब उस धरती पर। कभी ूवासी लौट न पाये। पूरी होती नहीं ूतीक्षा,
राम गए वनवास, न आये। िकतने रक्षाबन्धन बीते, भैया गये िवदे श, न आये। अम्बर एक, एक है पृथ्वी, चलो, घर चलें, िफर भी दे श-दे श दरी पर। ू
लौट चलें अब उस धरती पर। सूख गई आँसू की सिरता। उद्वे िलत, उत्पीिड़त मन क े आहत सपनों की आकलता। ु जहाँ ूतीक्षा करते करते
लौट चलें अब उस धरती पर। जहाँ अभी वह राख िमलेगी, ःमृितयों क कोमल ःवर में े िजसमें िनिहत एक ःनेिहल छिव,
चलो, घर चलें,
चलो, घर चलें,
प्यार का नाता
िज़न्दगी क मोड़ पर यह प्यार का नाता हमारा। े राह की वीरािनयों को िमल गया आिखर सहारा।
ज्योत्सना सी िःनग्ध सुन्दर, तुम गगन की तािरका सी। पुिंपकाओं से सजी, मधुमास की अिभसािरका सी। रूप की साकार छिव, माधुय्यर् की ःवच्छन्द धारा।
बाट तकता हँू तुम्हारी, रात की तनहाइयों में। आज मेरी कामनाओं ने तुम्हे िकतना पुकारा।
प्यार का नाता हमारा, प्यार का नाता हमारा। दर हो तुम िकन्तु िफर भी दीिपका हो ज्योित मेरी। ू
ूेरणा हो शिक्त हो तुम, ूीित की अनुभूित मेरी। गुनगुना लो प्यार से, यह गीत मेरा है तुम्हारा। प्यार का नाता हमारा, प्यार का नाता हमारा।