You are on page 1of 11

दगार् वन्दना ु

जय जय जय जननी। जय जय जय जननी। जय जननी, जय जन्मदाियनी। िवश्व विन्दनी लोक पािलनी। दे िव पावर्ती, शिक्त शािलनी।

जय जय जय जननी। जय जय जय जननी। परम पूिजता, महापुनीता।

जय दगार्, जगदम्बा माता। ु

जन्म मृत्यु भवसागर तिरणी।

जय जय जय जननी। जय जय जय जननी। सवर्रिक्षका, अन्नपूणार्।

ज्योतोरूिपणी, पथूदिशर्नी। जय जय जय जननी। जय जय जय जननी। िसंहवािहनी, शस्तर्धािरणी।

महामािननी, महामयी मां।

पापभंिजनी, मुिक्तकािरणी।

मिहषासुरमिदर् नी, िवजियनी।

जय जय जय जननी। जय जय जय जननी।

यादगारों क साये े
चांदनी में नहा क आती है । े जब कभी तेरी याद आती है

भीग जाते हैं आँख में सपने

शब में शबनम बहा क आती है । े मेरी तनहाई क तसव्वुर में े

तेरी तसवीर उभर आती है ।

तू नहीं है तो तेरी याद सही

िज़न्दगी कछ तो संवर जाती है । ु जब बहारों का िज़ब आता है

मेरे माज़ी की दाःतानों में

रं ग भरता है आसमानों में।

तब तेरे फल से तबःसुम का ू

तू कहीं दर उफ़क से चल कर ू मेरे ख्यालों में उतर आती है । मेरे वीरान िबयाबानों में

प्यार बन कर क िबखर जाती है । े तू िकसी पंखरी क दामन पर े

ओस की तरह िझलिमलाती है । तू िसतारों में िटमिटमाती है । वक्त रुख़सत की बेबसी ऐसी े मेरी रातों की हसरतें बन कर

आँख से आरज़ू अयाँ न हई। ु बेज़ुबानी मगर ज़ुबां न हई। ु एक लमहे क ददर् को लेकर े

िदल से आई थी बात होठों तक

िकतनी सिदयां उदास रहती हैं । मेरी मंिज़ल क पास रहती हैं । े रात आई तो बेकली लेकर दिरयां जो कभी नहीं िमटतीं ू

चन्द उलझे हये से अफ़साने ु

सहर आई तो बेकरार आई।

िज़न्दगी और कछ नहीं लाई। ु

चँमे पुरनम बही, बही, न बही। िज़न्दगी है , रही, रही, न रही। तुम तो कह दो जो तुमको कहना था मेरा क्या है कही, कही, न कही।

जीवन दीप

अंिधयारों में ूखर ूज्ज्विलत, तूफानों में अचल, अिवचिलत, मेरे मन का ज्योितपुंज यह दीपक अिविजत, अपरािजत।

मेरा एक दीप जलता है ।

मेरा एक दीप जलता है ।

जो जग को ज्योितमर्य करता है ।

सूयर् िकरण जल की बून्दों से वही िकरण धरती पर िकतने

छन कर इन्िधनुष बन जाती, रं ग िबरं गे फल िखलाती। ू पर दोनों में िनिहत

ये िकतनी िविभन्न घटनायें, ूकृ ित का िनयम एक है ,

पग पग पर ूेिरत करता है । मेरा एक दीप जलता है । यह िवशाल ॄह्मांड लेिकन हीन नहीं हँू । यहाँ मैं लघु हँू

जो िवज्ञान मुझे जीवन में

इस पर अिडग आःथा मुझको

ू जो अटट है ।

ऊजार् का भौितकीकरण हँू ।

मैं पदाथर् हँू

मैं हँू अपना अहम

पर क्षीण नहीं हँू ।

नश्वर हँू ,

न्यूटन क िसद्धान्त सरीखा े परम सत्य है , सुन्दर है , िशव है शाश्वत है । मेरे मानस में पलता है । मेरा यह िवश्वास िनरन्तर

शिक्त का अिमट ॐोत, जो

मेरा एक दीप जलता है ।

ूवासी गीत
लौट चलें अब उस धरती पर; ज्योितहीन गीले नयनों से जहाँ अभी तक बाट तक रही चलो, घर चलें,

(िजनमें हैं भिवंय क सपने े कल क ही बीते सपनों से), े आँचल में मातृत्व समेटे,

वृद्ध िपता भी थका परािजत साँसें भी बोिझल लगती हैं उस बूढ़ी दबर्ल छाती पर। ु चलो, घर चलें,

ू माँ की क्षीण, टटती काया।

िकन्तु ूवासी पुऽ न आया।

लौट चलें अब उस धरती पर।

लौट चलें अब उस धरती पर; ताक रही हैं नीला अम्बर। जहाँ बहन की कातर आँखें आँसू से िमट गई उसी की सूना रहा दज का आसन, ू

चलो, घर चलें,

सजी हई अल्पना द्वार पर। ु चाँद सरीखा भाई न आया।

अपनी सीमाओं में बंदी,

सूख गया रोचना हाँथ में, छोटी बहन उदास, रुवासी,

एक ूवासी लौट न पाया। िबखर गये चावल क दाने। े

अब तो िकतनी धूल जम गई चलो, घर चलें, राखी की रे शम डोरी पर।

भैया आये नहीं मनाने।

लौट चलें अब उस धरती पर। चलो, घर चलें,

लौट चलें अब उस धरती पर। रोज़गार क िकतने बन्धन! े छोटा सा संदेश आया है ,

िकतना िवषम, िववश है जीवन!

कवल एक पऽ आया है , े

बहत व्यःत हैं , आ न सकगे। ें ु एक वषर् की और ूतीक्षा, शायद अगले साल िमलेंगे।

ममता की यह िवकट परीक्षा। हैं आशाओं की दे हरी पर। लौट चलें अब उस धरती पर। चलो, घर चलें, चलो, घर चलें, धीरे धीरे िदये बुझ रहे

लौट चलें अब उस धरती पर। अगला साल कहाँ आता है आिखर सब कछ खो जाता है ु

अन्तराल की गहराई में।

इस िमथ्या माया नगरी में नये साज़ो-सामान सजेंगे।

नये दोःत अहबाब िमलेंगे।

नई नई मिहिफ़लें लगेंगी,

भीड़ भाड़ की तनहाई में।

जीवन तो चलता रहता है

लेिकन िफर वह बात न होगी, जो अपने हैं , वह न रहें गे। घर का वह माहौल न होगा, वतर्मान तो जल जाता है

ये बीते क्षण िमल न सकगे। ें काल दे वता की काठी पर।

लौट चलें अब उस धरती पर। चलो, घर चलें,

चलो, घर चलें,

लौट चलें अब उस धरती पर। जहाँ अभी भी प्यार िमलेगा, रूठे तो मनुहार िमलेगा,

अपने सर की कसम िमलेगी, नाज़ुक सा इसरार िमलेगा। होली और िदवाली होगी, राखी का त्योहार िमलेगा। सावन की बौछार िमलेगी, मधुिरम मेघ-मल्हार िमलेगा। कजरी का उपहार िमलेगा। एक सरल संसार िमलेगा, एक ठोस आधार िमलेगा

धुनक धुनक ढोलक की धुन पर

अपनी ूामािणक हःती पर। लौट चलें अब उस धरती पर। चलो, घर चलें, चलो, घर चलें,

एक अटल िवश्वास जगेगा,

लौट चलें अब उस धरती पर। कभी ूवासी लौट न पाये। पूरी होती नहीं ूतीक्षा,

राम गए वनवास, न आये। िकतने रक्षाबन्धन बीते, भैया गये िवदे श, न आये। अम्बर एक, एक है पृथ्वी, चलो, घर चलें, िफर भी दे श-दे श दरी पर। ू

द्शरथ गए िसधार िचता, पर

गये द्वारका ँयाम न आये।

िकतना रोती रही यशोदा,

लौट चलें अब उस धरती पर। चलो, घर चलें,

लौट चलें अब उस धरती पर। सूख गई आँसू की सिरता। उद्वे िलत, उत्पीिड़त मन क े आहत सपनों की आकलता। ु जहाँ ूतीक्षा करते करते

राख हो गई माँ की ममता। दर गगन क पार गई वह े ू

तकते तकते बाट, िचता पर।

एक फल ही अिपर्त कर दें ू चलो, घर चलें,

आँखों में ले िसफ िववशता। र्

उस सूखी, जजर्र अःथी पर।

लौट चलें अब उस धरती पर।

लौट चलें अब उस धरती पर। जहाँ अभी वह राख िमलेगी, ःमृितयों क कोमल ःवर में े िजसमें िनिहत एक ःनेिहल छिव,

चलो, घर चलें,

मधुर मधुर लोरी गायेगी।

एक अलौिकक शािन्त िमलेगी। सर रख कर माँ की िमट्टी पर। आँख मूँद कर सो जायेंगे,

िपघल िपघल कर बह जायेगी।

युगों युगों की यह व्याकलता, ु

िकसी ूवासी मन की पीड़ा,

और उसी आँचल में िछप कर,

चलो, घर चलें,

लौट चलें अब उस धरती पर।

प्यार का नाता
िज़न्दगी क मोड़ पर यह प्यार का नाता हमारा। े राह की वीरािनयों को िमल गया आिखर सहारा।

ज्योत्सना सी िःनग्ध सुन्दर, तुम गगन की तािरका सी। पुिंपकाओं से सजी, मधुमास की अिभसािरका सी। रूप की साकार छिव, माधुय्यर् की ःवच्छन्द धारा।

प्यार का नाता हमारा, प्यार का नाता हमारा।

बाट तकता हँू तुम्हारी, रात की तनहाइयों में। आज मेरी कामनाओं ने तुम्हे िकतना पुकारा।

मैं तुम्ही को खोजता हँू , चाँद की परछाइयों में।

प्यार का नाता हमारा, प्यार का नाता हमारा। दर हो तुम िकन्तु िफर भी दीिपका हो ज्योित मेरी। ू

ूेरणा हो शिक्त हो तुम, ूीित की अनुभूित मेरी। गुनगुना लो प्यार से, यह गीत मेरा है तुम्हारा। प्यार का नाता हमारा, प्यार का नाता हमारा।

You might also like