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गरजहह गज घंटा धुनन घोरा। रथ रव बानज हहस चहु ओरा॥ ननदरर घननह घुर्मममरहह ननसाना। ननज पराआ कछु

सुननऄ न काना॥१॥ महा भीर भूपनत के द्वारें । रज होआ जाआ पषान पबारें ॥ चढी ऄटाररन्ह देखहह नारीं। लिँएँ अरती मंगिँ थारी॥ २॥ गावहह गीत मनोहर नाना। ऄनत अनंद ु न जाआ बखाना॥ तब सुमंत्र दुआ स्यंदन साजी। जोते रनब हय हनदक बाजी॥ ३॥ दोई रथ रुनचर भूप पहह अने। नहह सारद पहह जाहह बखाने॥ राज समाजु एक रथ साजा। दूसर तेज पुंज ऄनत भ्राजा॥ ४॥ दो०-तेहह रथ रुनचर बनसष्ठ कहुँ हरनष चढाआ नरे सु। अपु चढेई स्यंदन सुनमरर हर गुर गौरर गनेसु॥३०१॥

सनहत बनसष्ठ सोह नृप कै सें। सुर गुर संग पुरंदर जैसें॥ करर कु िँ रीनत बेद नबनध राउ। देनख सबनह सब भाँनत बनाउ॥१॥ सुनमरर रामु गुर अयसु पाइ। चिँे महीपनत संख बजाइ॥ हरषे नबबुध नबिँोकक बराता। बरषहह सुमन सुमंगिँ दाता॥ २॥ भयई कोिँाहिँ हय गय गाजे। ब्योम बरात बाजने बाजे॥ सुर नर नारर सुमंगिँ गाइ। सरस राग बाजहह सहनाइ॥३॥ घंट घंरट धुनन बरनन न जाहीं। सरव करहह पाआक फहराहीं॥ करहह नबदूषक कौतुक नाना। हास कु सिँ किँ गान सुजाना॥४॥ दो०-तुरग नचावहह कुँ ऄर बर ऄकनन मृदग ं ननसान॥ नागर नट नचतवहह चककत डगहह न तािँ बँधान॥३०२॥ बनआ न बरनत बनी बराता। होहह सगुन सुंदर सुभदाता॥ चारा चाषु बाम कदनस िँेइ। मनहुँ सकिँ मंगिँ कनह देइ॥१॥

दानहन काग सुखेत सुहावा। नकु िँ दरसु सब काहँ पावा॥ सानुकूिँ बह नत्रनबध बयारी। सघट सवािँ अव बर नारी॥ २॥ िँोवा कफरर कफरर दरसु देखावा। सुरभी सनमुख नससुनह नपअवा॥ मृगमािँा कफरर दानहनन अइ। मंगिँ गन जनु दीनन्ह देखाइ॥३॥ छेमकरी कह छेम नबसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी॥ सनमुख अयई दनध ऄरु मीना। कर पुस्तक दुआ नबप्र प्रबीना॥४॥ दो०-मंगिँमय कल्यानमय ऄनभमत फिँ दातार। जनु सब साचे होन नहत भए सगुन एक बार॥३०३॥ मंगिँ सगुन सुगम सब ताकें । सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें ॥ राम सररस बरु दुिँनहनन सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता॥१॥ सुनन ऄस ब्याहु सगुन सब नाचे। ऄब कीन्हे नबरं नच हम साँचे॥ एनह नबनध कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहह हने ननसाना॥ २॥ अवत जानन भानुकुिँ के तू। सररतनन्ह जनक बँधाए सेतू॥ बीच बीच बर बास बनाए। सुरपुर सररस संपदा छाए॥३॥ ऄसन सयन बर बसन सुहाए। पावहह सब ननज ननज मन भाए॥ ननत नूतन सुख िँनख ऄनुकूिँे। सकिँ बरानतन्ह मंकदर भूिँे॥४॥ दो०-अवत जानन बरात बर सुनन गहगहे ननसान। सनज गज रथ पदचर तुरग िँेन चिँे ऄगवान॥३०४॥ मासपारायण,दसवाँ नवश्राम कनक किँस भरर कोपर थारा। भाजन िँनिँत ऄनेक प्रकारा॥ भरे सुधासम सब पकवाने। नाना भाँनत न जाहह बखाने॥१॥ फिँ ऄनेक बर बस्तु सुहाईं। हरनष भेंट नहत भूप पठाईं॥ भूषन बसन महामनन नाना। खग मृग हय गय बहुनबनध जाना॥ २॥

मंगिँ सगुन सुगंध सुहाए। बहुत भाँनत मनहपािँ पठाए॥ दनध नचईरा ईपहार ऄपारा। भरर भरर काँवरर चिँे कहारा॥३॥ ऄगवानन्ह जब दीनख बराता।ईर अनंद ु पुिँक भर गाता॥ देनख बनाव सनहत ऄगवाना। मुकदत बरानतन्ह हने ननसाना॥४॥ दो०-हरनष परसपर नमिँन नहत कछु क चिँे बगमेिँ। जनु अनंद समुद्र दुआ नमिँत नबहाआ सुबेिँ॥३०५॥ बरनष सुमन सुर सुंदरर गावहह। मुकदत देव दुद ं भ ु ीं बजावहह॥ बस्तु सकिँ राखीं नृप अगें। नबनय कीन्ह नतन्ह ऄनत ऄनुरागें॥१॥ प्रेम समेत रायँ सबु िँीन्हा। भै बकसीस जाचकनन्ह दीन्हा॥ करर पूजा मान्यता बडाइ। जनवासे कहुँ चिँे िँवाइ॥ २॥ बसन नबनचत्र पाँवडे परहीं। देनख धनहु धन मदु पररहरहीं॥ ऄनत सुंदर दीन्हेई जनवासा। जहँ सब कहुँ सब भाँनत सुपासा॥३॥ जानी नसयँ बरात पुर अइ। कछु ननज मनहमा प्रगरट जनाइ॥ हृदयँ सुनमरर सब नसनि बोिँाइ। भूप पहुनइ करन पठाइ॥४॥ दो०-नसनध सब नसय अयसु ऄकनन गईं जहाँ जनवास। निँएँ संपदा सकिँ सुख सुरपुर भोग नबिँास॥३०६॥ ननज ननज बास नबिँोकक बराती। सुर सुख सकिँ सुिँभ सब भाँती॥ नबभव भेद कछु कोई न जाना। सकिँ जनक कर करहह बखाना॥१॥ नसय मनहमा रघुनायक जानी। हरषे हृदयँ हेतु पनहचानी॥ नपतु अगमनु सुनत दोई भाइ। हृदयँ न ऄनत अनंद ु ऄमाइ॥ २॥ सकु चन्ह कनह न सकत गुरु पाहीं। नपतु दरसन िँािँचु मन माहीं॥ नबस्वानमत्र नबनय बनड देखी। ईपजा ईर संतोषु नबसेषी॥३॥ हरनष बंधु दोई हृदयँ िँगाए। पुिँक ऄंग ऄंबक जिँ छाए॥

चिँे जहाँ दसरथु जनवासे। मनहुँ सरोबर तके ई नपअसे॥४॥ दो०- भूप नबिँोके जबहह मुनन अवत सुतन्ह समेत। ईठे हरनष सुखहसधु महुँ चिँे थाह सी िँेत॥३०७॥ मुनननह दंडवत कीन्ह महीसा। बार बार पद रज धरर सीसा॥ कौनसक राई निँये ईर िँाइ। कनह ऄसीस पूछी कु सिँाइ॥१॥ पुनन दंडवत करत दोई भाइ। देनख नृपनत ईर सुखु न समाइ॥ सुत नहयँ िँाआ दुसह दुख मेटे। मृतक सरीर प्रान जनु भेंटे॥ २॥ पुनन बनसष्ठ पद नसर नतन्ह नाए। प्रेम मुकदत मुननबर ईर िँाए॥ नबप्र बृंद बंदे दुहुँ भाईं। मन भावती ऄसीसें पाईं॥३॥ भरत सहानुज कीन्ह प्रनामा। निँए ईठाआ िँाआ ईर रामा॥ हरषे िँखन देनख दोई भ्राता। नमिँे प्रेम पररपूररत गाता॥४॥ दो०-पुरजन पररजन जानतजन जाचक मंत्री मीत। नमिँे जथानबनध सबनह प्रभु परम कृ पािँ नबनीत॥३०८॥ रामनह देनख बरात जुडानी। प्रीनत कक रीनत न जानत बखानी॥ नृप समीप सोहहह सुत चारी। जनु धन धरमाकदक तनुधारी॥१॥ सुतन्ह समेत दसरथनह देखी। मुकदत नगर नर नारर नबसेषी॥ सुमन बररनस सुर हनहह ननसाना। नाकनटीं नाचहह करर गाना॥ २॥ सतानंद ऄरु नबप्र सनचव गन। मागध सूत नबदुष बंदीजन॥ सनहत बरात राई सनमाना। अयसु मानग कफरे ऄगवाना॥३॥ प्रथम बरात िँगन तें अइ। तातें पुर प्रमोदु ऄनधकाइ॥ ब्रह्मानंद ु िँोग सब िँहहीं। बढहुँ कदवस नननस नबनध सन कहहीं॥४॥ दो०-रामु सीय सोभा ऄवनध सुकृत ऄवनध दोई राज। जहँ जहँ पुरजन कहहह ऄस नमनिँ नर नारर समाज॥३०९॥

जनक सुकृत मूरनत बैदह े ी। दसरथ सुकृत रामु धरें देही॥ आन्ह सम काँहु न नसव ऄवराधे। कालह न आन्ह समान फिँ िँाधे॥१॥ आन्ह सम कोई न भयई जग माहीं। है नहह कतहँ होनेई नाहीं॥ हम सब सकिँ सुकृत कै रासी। भए जग जननम जनकपुर बासी॥ २॥ नजन्ह जानकी राम छनब देखी। को सुकृती हम सररस नबसेषी॥ पुनन देखब रघुबीर नबअह। िँेब भिँी नबनध िँोचन िँाह॥३॥ कहहह परसपर कोककिँबयनीं। एनह नबअहँ बड िँाभु सुनयनीं॥ बडें भाग नबनध बात बनाइ। नयन ऄनतनथ होआहहह दोई भाइ॥४॥ दो०-बारहह बार सनेह बस जनक बोिँाईब सीय। िँेन अआहहह बंधु दोई कोरट काम कमनीय॥३१०॥ नबनबध भाँनत होआनह पहुनाइ। नप्रय न कानह ऄस सासुर माइ॥ तब तब राम िँखननह ननहारी। होआहहह सब पुर िँोग सुखारी॥१॥ सनख जस राम िँखनकर जोटा। तैसेआ भूप संग दुआ ढोटा॥ स्याम गौर सब ऄंग सुहाए। ते सब कहहह देनख जे अए॥ २॥ कहा एक मैं अजु ननहारे । जनु नबरं नच ननज हाथ सँवारे ॥ भरतु रामही की ऄनुहारी। सहसा िँनख न सकहह नर नारी॥३॥ िँखनु सत्रुसूदनु एकरूपा। नख नसख ते सब ऄंग ऄनूपा॥ मन भावहह मुख बरनन न जाहीं। ईपमा कहुँ नत्रभुवन कोई नाहीं॥४॥ छं०-ईपमा न कोई कह दास तुिँसी कतहुँ कनब कोनबद कहैं। बिँ नबनय नबद्या सीिँ सोभा हसधु आन्ह से एआ ऄहैं॥ पुर नारर सकिँ पसारर ऄंचिँ नबनधनह बचन सुनावहीं॥ ब्यानहऄहुँ चाररई भाआ एहह पुर हम सुमंगिँ गावहीं॥

सो०-कहहह परस्पर नारर बारर नबिँोचन पुिँक तन। सनख सबु करब पुरारर पुन्य पयोनननध भूप दोई॥३११॥ एनह नबनध सकिँ मनोरथ करहीं। अनँद ईमनग ईमनग ईर भरहीं॥ जे नृप सीय स्वयंबर अए। देनख बंधु सब नतन्ह सुख पाए॥१॥ कहत राम जसु नबसद नबसािँा। ननज ननज भवन गए मनहपािँा॥ गए बीनत कु छ कदन एनह भाँती। प्रमुकदत पुरजन सकिँ बराती॥२॥ मंगिँ मूिँ िँगन कदनु अवा। नहम ररतु ऄगहनु मासु सुहावा॥ ग्रह नतनथ नखतु जोगु बर बारू। िँगन सोनध नबनध कीन्ह नबचारू॥३॥ पठै दीनन्ह नारद सन सोइ। गनी जनक के गनकन्ह जोइ॥ सुनी सकिँ िँोगन्ह यह बाता। कहहह जोनतषी अहह नबधाता॥४॥ दो०-धेनुधूरर बेिँा नबमिँ सकिँ सुमंगिँ मूिँ। नबप्रन्ह कहेई नबदेह सन जानन सगुन ऄनुकूिँ॥३१२॥ ईपरोनहतनह कहेई नरनाहा। ऄब नबिँंब कर कारनु काहा॥ सतानंद तब सनचव बोिँाए। मंगिँ सकिँ सानज सब ल्याए॥१॥ संख ननसान पनव बहु बाजे। मंगिँ किँस सगुन सुभ साजे॥ सुभग सुअनसनन गावहह गीता। करहह बेद धुनन नबप्र पुनीता॥२॥ िँेन चिँे सादर एनह भाँती। गए जहाँ जनवास बराती॥ कोसिँपनत कर देनख समाजू। ऄनत िँघु िँाग नतन्हनह सुरराजू॥३॥ भयई समई ऄब धाररऄ पाउ। यह सुनन परा ननसानहह घाउ॥ गुरनह पूनछ करर कु िँ नबनध राजा। चिँे संग मुनन साधु समाजा॥४॥ दो०-भाग्य नबभव ऄवधेस कर देनख देव ब्रह्माकद। िँगे सराहन सहस मुख जानन जनम ननज बाकद॥३१३॥ सुरन्ह सुमंगिँ ऄवसरु जाना। बरषहह सुमन बजाआ ननसाना॥

नसव ब्रह्माकदक नबबुध बरूथा। चढे नबमाननन्ह नाना जूथा॥१॥ प्रेम पुिँक तन हृदयँ ईछाह। चिँे नबिँोकन राम नबअह॥ देनख जनकपुरु सुर ऄनुरागे। ननज ननज िँोक सबहह िँघु िँागे॥२॥ नचतवहह चककत नबनचत्र नबताना। रचना सकिँ ऄिँौककक नाना॥ नगर नारर नर रूप ननधाना। सुघर सुधरम सुसीिँ सुजाना॥३॥ नतन्हनह देनख सब सुर सुरनारीं। भए नखत जनु नबधु ईनजअरीं॥ नबनधनह भयह अचरजु नबसेषी। ननज करनी कछु कतहुँ न देखी॥४॥ दो०-नसवँ समुझाए देव सब जनन अचरज भुिँाहु। हृदयँ नबचारहु धीर धरर नसय रघुबीर नबअहु॥३१४॥ नजन्ह कर नामु िँेत जग माहीं। सकिँ ऄमंगिँ मूिँ नसाहीं॥ करतिँ होहह पदारथ चारी। तेआ नसय रामु कहेई कामारी॥१॥ एनह नबनध संभु सुरन्ह समुझावा। पुनन अगें बर बसह चिँावा॥ देवन्ह देखे दसरथु जाता। महामोद मन पुिँककत गाता॥२॥ साधु समाज संग मनहदेवा। जनु तनु धरें करहह सुख सेवा॥ सोहत साथ सुभग सुत चारी। जनु ऄपबरग सकिँ तनुधारी॥३॥ मरकत कनक बरन बर जोरी। देनख सुरन्ह भै प्रीनत न थोरी॥ पुनन रामनह नबिँोकक नहयँ हरषे। नृपनह सरानह सुमन नतन्ह बरषे॥४॥ दो०-राम रूपु नख नसख सुभग बारहह बार ननहारर। पुिँक गात िँोचन सजिँ ईमा समेत पुरारर॥३१५॥ के कक कं ठ दुनत स्यामिँ ऄंगा। तनडत नबहनदक बसन सुरंगा॥ ब्याह नबभूषन नबनबध बनाए। मंगिँ सब सब भाँनत सुहाए॥१॥ सरद नबमिँ नबधु बदनु सुहावन। नयन नविँ राजीव िँजावन॥ सकिँ ऄिँौककक सुंदरताइ। कनह न जाआ मनहीं मन भाइ॥२॥

बंधु मनोहर सोहहह संगा। जात नचावत चपिँ तुरंगा॥ राजकु ऄँर बर बानज देखावहह। बंस प्रसंसक नबररद सुनावहह॥३॥ जेनह तुरंग पर रामु नबराजे। गनत नबिँोकक खगनायकु िँाजे॥ कनह न जाआ सब भाँनत सुहावा। बानज बेषु जनु काम बनावा॥४॥ छं०-जनु बानज बेषु बनाआ मननसजु राम नहत ऄनत सोहइ। अपनें बय बिँ रूप गुन गनत सकिँ भुवन नबमोहइ॥ जगमगत जीनु जराव जोनत सुमोनत मनन माननक िँगे। ककककनन िँिँाम िँगामु िँनिँत नबिँोकक सुर नर मुनन ठगे॥ दो०-प्रभु मनसहह िँयिँीन मनु चिँत बानज छनब पाव। भूनषत ईडगन तनडत घनु जनु बर बरनह नचाव॥३१६॥ जेहह बर बानज रामु ऄसवारा। तेनह सारदई न बरनै पारा॥ संकरु राम रूप ऄनुरागे। नयन पंचदस ऄनत नप्रय िँागे॥१॥ हरर नहत सनहत रामु जब जोहे। रमा समेत रमापनत मोहे॥ ननरनख राम छनब नबनध हरषाने। अठआ नयन जानन पनछताने॥२॥ सुर सेनप ईर बहुत ईछाह। नबनध ते डेवढ िँोचन िँाह॥ रामनह नचतव सुरेस सुजाना। गौतम श्रापु परम नहत माना॥३॥ देव सकिँ सुरपनतनह नसहाहीं। अजु पुरंदर सम कोई नाहीं॥ मुकदत देवगन रामनह देखी। नृपसमाज दुहुँ हरषु नबसेषी॥४॥ छं०-ऄनत हरषु राजसमाज दुहु कदनस दुद ं भ ु ीं बाजहह घनी। बरषहह सुमन सुर हरनष कनह जय जयनत जय रघुकुिँमनी॥ एनह भाँनत जानन बरात अवत बाजने बहु बाजहीं। रानन सुअनसनन बोनिँ पररछनन हेतु मंगिँ साजहीं॥ दो०-सनज अरती ऄनेक नबनध मंगिँ सकिँ सँवारर। चिँीं मुकदत पररछनन करन गजगानमनन बर नारर॥३१७॥

नबधुबदनीं सब सब मृगिँोचनन। सब ननज तन छनब रनत मदु मोचनन॥ पनहरें बरन बरन बर चीरा। सकिँ नबभूषन सजें सरीरा॥१॥ सकिँ सुमंगिँ ऄंग बनाएँ। करहह गान किँकं रठ िँजाएँ॥ कं कन ककककनन नूपुर बाजहह। चानिँ नबिँोकक काम गज िँाजहह॥२॥ बाजहह बाजने नबनबध प्रकारा। नभ ऄरु नगर सुमंगिँचारा॥ सची सारदा रमा भवानी। जे सुरनतय सुनच सहज सयानी॥३॥ कपट नारर बर बेष बनाइ। नमिँीं सकिँ रननवासहह जाइ॥ करहह गान किँ मंगिँ बानीं। हरष नबबस सब काहुँ न जानी॥४॥ छं०-को जान के नह अनंद बस सब ब्रह्मु बर पररछन चिँी। किँ गान मधुर ननसान बरषहह सुमन सुर सोभा भिँी॥ अनंदकं दु नबिँोकक दूिँहु सकिँ नहयँ हरनषत भइ॥ ऄंभोज ऄंबक ऄंबु ईमनग सुऄंग पुिँकावनिँ छइ॥ दो०-जो सुख भा नसय मातु मन देनख राम बर बेषु। सो न सकहह कनह किँप सत सहस सारदा सेषु॥३१८॥ नयन नीरु हरट मंगिँ जानी। पररछनन करहह मुकदत मन रानी॥ बेद नबनहत ऄरु कु िँ अचारू। कीन्ह भिँी नबनध सब ब्यवहारू॥१॥ पंच सबद धुनन मंगिँ गाना। पट पाँवडे परहह नबनध नाना॥ करर अरती ऄरघु नतन्ह दीन्हा। राम गमनु मंडप तब कीन्हा॥२॥ दसरथु सनहत समाज नबराजे। नबभव नबिँोकक िँोकपनत िँाजे॥ समयँ समयँ सुर बरषहह फू िँा। सांनत पढहह मनहसुर ऄनुकूिँा॥३॥ नभ ऄरु नगर कोिँाहिँ होइ। अपनन पर कछु सुनआ न कोइ॥ एनह नबनध रामु मंडपहह अए। ऄरघु देआ असन बैठाए॥ छं०-बैठारर असन अरती करर ननरनख बरु सुखु पावहीं॥४॥

मनन बसन भूषन भूरर वारहह नारर मंगिँ गावहीं॥ ब्रह्माकद सुरबर नबप्र बेष बनाआ कौतुक देखहीं। ऄविँोकक रघुकुिँ कमिँ रनब छनब सुफिँ जीवन िँेखहीं॥ दो०-नाउ बारी भाट नट राम ननछावरर पाआ। मुकदत ऄसीसहह नाआ नसर हरषु न हृदयँ समाआ॥३१९॥ नमिँे जनकु दसरथु ऄनत प्रीतीं। करर बैकदक िँौककक सब रीतीं॥ नमिँत महा दोई राज नबराजे। ईपमा खोनज खोनज कनब िँाजे॥१॥ िँही न कतहुँ हारर नहयँ मानी। आन्ह सम एआ ईपमा ईर अनी॥ सामध देनख देव ऄनुरागे। सुमन बरनष जसु गावन िँागे॥२॥ जगु नबरं नच ईपजावा जब तें। देखे सुने ब्याह बहु तब तें॥ सकिँ भाँनत सम साजु समाजू। सम समधी देखे हम अजू॥३॥ देव नगरा सुनन सुंदर साँची। प्रीनत ऄिँौककक दुहु कदनस माची॥ देत पाँवडे ऄरघु सुहाए। सादर जनकु मंडपहह ल्याए॥४॥ छं०-मंडपु नबिँोकक नबनचत्र रचनाँ रुनचरताँ मुनन मन हरे ॥ ननज पानन जनक सुजान सब कहुँ अनन हसघासन धरे ॥ कु िँ आष्ट सररस बनसष्ट पूजे नबनय करर अनसष िँही। कौनसकनह पूजत परम प्रीनत कक रीनत तौ न परै कही॥ दो०-बामदेव अकदक ररषय पूजे मुकदत महीस। कदए कदब्य असन सबनह सब सन िँही ऄसीस॥३२०॥ बहुरर कीन्ह कोसिँपनत पूजा। जानन इस सम भाई न दूजा॥ कीन्ह जोरर कर नबनय बडाइ। कनह ननज भाग्य नबभव बहुताइ॥१॥ पूजे भूपनत सकिँ बराती। समधी सम सादर सब भाँती॥ असन ईनचत कदए सब काह। कहौं काह मूख एक ईछाह॥२॥

सकिँ बरात जनक सनमानी। दान मान नबनती बर बानी॥ नबनध हरर हरु कदनसपनत कदनराउ। जे जानहह रघुबीर प्रभाउ॥३॥ कपट नबप्र बर बेष बनाएँ। कौतुक देखहह ऄनत सचु पाएँ॥ पूजे जनक देव सम जानें। कदए सुअसन नबनु पनहचानें॥४॥ छं०-पनहचान को के नह जान सबहह ऄपान सुनध भोरी भइ। अनंद कं दु नबिँोकक दूिँहु ईभय कदनस अनँद मइ॥ सुर िँखे राम सुजान पूजे माननसक असन दए। ऄविँोकक सीिँु सुभाई प्रभु को नबबुध मन प्रमुकदत भए॥ दो०-रामचंद्र मुख चंद्र छनब िँोचन चारु चकोर। करत पान सादर सकिँ प्रेमु प्रमोदु न थोर॥३२१॥ समई नबिँोकक बनसष्ठ बोिँाए। सादर सतानंदु सुनन अए॥ बेनग कु ऄँरर ऄब अनहु जाइ। चिँे मुकदत मुनन अयसु पाइ॥१॥ रानी सुनन ईपरोनहत बानी। प्रमुकदत सनखन्ह समेत सयानी॥ नबप्र बधू कु िँबृि बोिँाईं। करर कु िँ रीनत सुमंगिँ गाईं॥२॥ नारर बेष जे सुर बर बामा। सकिँ सुभायँ सुंदरी स्यामा॥ नतन्हनह देनख सुखु पावहह नारीं। नबनु पनहचानन प्रानहु ते प्यारीं॥३॥ बार बार सनमानहह रानी। ईमा रमा सारद सम जानी॥ सीय सँवारर समाजु बनाइ। मुकदत मंडपहह चिँीं िँवाइ॥४॥ छं०-चनिँ ल्याआ सीतनह सखीं सादर सनज सुमंगिँ भानमनीं। नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुं जर गानमनीं॥ किँ गान सुनन मुनन ध्यान त्यागहह काम कोककिँ िँाजहीं। मंजीर नूपुर कनिँत कं कन तािँ गती बर बाजहीं॥

दो०-सोहनत बननता बृंद महुँ सहज सुहावनन सीय। छनब िँिँना गन मध्य जनु सुषमा नतय कमनीय॥३२२॥ नसय सुंदरता बरनन न जाइ। िँघु मनत बहुत मनोहरताइ॥ अवत दीनख बरानतन्ह सीता॥रूप रानस सब भाँनत पुनीता॥१॥ सबनह मनहह मन ककए प्रनामा। देनख राम भए पूरनकामा॥ हरषे दसरथ सुतन्ह समेता। कनह न जाआ ईर अनँद ु जेता॥२॥ सुर प्रनामु करर बरसहह फू िँा। मुनन ऄसीस धुनन मंगिँ मूिँा॥ गान ननसान कोिँाहिँु भारी। प्रेम प्रमोद मगन नर नारी॥३॥ एनह नबनध सीय मंडपहह अइ। प्रमुकदत सांनत पढहह मुननराइ॥ तेनह ऄवसर कर नबनध ब्यवहारू। दुहुँ कु िँगुर सब कीन्ह ऄचारू॥४॥ छं०-अचारु करर गुर गौरर गनपनत मुकदत नबप्र पुजावहीं। सुर प्रगरट पूजा िँेहह देहह ऄसीस ऄनत सुखु पावहीं॥ मधुपकम मंगिँ द्रब्य जो जेनह समय मुनन मन महुँ चहैं। भरे कनक कोपर किँस सो सब निँएहह पररचारक रहैं॥१॥ कु िँ रीनत प्रीनत समेत रनब कनह देत सबु सादर ककयो।

एनह भाँनत देव पुजाआ सीतनह सुभग हसघासनु कदयो॥

नसय राम ऄविँोकनन परसपर प्रेम काहु न िँनख परै ॥

मन बुनि बर बानी ऄगोचर प्रगट कनब कै सें करै ॥२॥ दो०-होम समय तनु धरर ऄनिँु ऄनत सुख अहुनत िँेहह। नबप्र बेष धरर बेद सब कनह नबबाह नबनध देहह॥३२३॥

जनक पाटमनहषी जग जानी। सीय मातु ककनम जाआ बखानी॥ सुजसु सुकृत सुख सुदर ं ताइ। सब समेरट नबनध रची बनाइ॥१॥ समई जानन मुननबरन्ह बोिँाइ। सुनत सुअनसनन सादर ल्याइ॥ जनक बाम कदनस सोह सुनयना। नहमनगरर संग बनन जनु मयना॥२॥ कनक किँस मनन कोपर रूरे । सुनच सुंगध मंगिँ जिँ पूरे॥ ननज कर मुकदत रायँ ऄरु रानी। धरे राम के अगें अनी॥३॥ पढहह बेद मुनन मंगिँ बानी। गगन सुमन झरर ऄवसरु जानी॥ बरु नबिँोकक दंपनत ऄनुरागे। पाय पुनीत पखारन िँागे॥४॥ छं०-िँागे पखारन पाय पंकज प्रेम तन पुिँकाविँी। नभ नगर गान ननसान जय धुनन ईमनग जनु चहुँ कदनस चिँी॥ जे पद सरोज मनोज ऄरर ईर सर सदैव नबराजहीं। जे सकृ त सुनमरत नबमिँता मन सकिँ कनिँ मिँ भाजहीं॥१॥ जे परनस मुननबननता िँही गनत रही जो पातकमइ। मकरं द ु नजन्ह को संभु नसर सुनचता ऄवनध सुर बरनइ॥ करर मधुप मन मुनन जोनगजन जे सेआ ऄनभमत गनत िँहैं। ते पद पखारत भाग्यभाजनु जनकु जय जय सब कहै॥२॥ बर कु ऄँरर करतिँ जोरर साखोचारु दोई कु िँगुर करैं । भयो पाननगहनु नबिँोकक नबनध सुर मनुज मुनन अँनद भरैं ॥ सुखमूिँ दूिँहु देनख दंपनत पुिँक तन हुिँस्यो नहयो। करर िँोक बेद नबधानु कन्यादानु नृपभूषन ककयो॥३॥ नहमवंत नजनम नगररजा महेसनह हररनह श्री सागर दइ। नतनम जनक रामनह नसय समरपी नबस्व किँ कीरनत नइ॥ क्यों करै नबनय नबदेहु ककयो नबदेहु मूरनत सावँरी।

करर होम नबनधवत गाँरठ जोरी होन िँागी भावँरी॥४॥ दो०-जय धुनन बंदी बेद धुनन मंगिँ गान ननसान। सुनन हरषहह बरषहह नबबुध सुरतरु सुमन सुजान॥३२४॥ कु ऄँरु कु ऄँरर किँ भावँरर देहीं। नयन िँाभु सब सादर िँेहीं॥ जाआ न बरनन मनोहर जोरी। जो ईपमा कछु कहौं सो थोरी॥१॥ राम सीय सुंदर प्रनतछाहीं। जगमगात मनन खंभन माहीं । मनहुँ मदन रनत धरर बहु रूपा। देखत राम नबअहु ऄनूपा॥२॥ दरस िँािँसा सकु च न थोरी। प्रगटत दुरत बहोरर बहोरी॥ भए मगन सब देखननहारे । जनक समान ऄपान नबसारे ॥३॥ प्रमुकदत मुननन्ह भावँरी फे री। नेगसनहत सब रीनत ननबेरीं॥ राम सीय नसर सेंदर ु देहीं। सोभा कनह न जानत नबनध के हीं॥४॥ ऄरुन पराग जिँजु भरर नीकें । सनसनह भूष ऄनह िँोभ ऄमी कें ॥ बहुरर बनसष्ठ दीन्ह ऄनुसासन। बरु दुिँनहनन बैठे एक असन॥५॥ छं०-बैठे बरासन रामु जानकक मुकदत मन दसरथु भए । तनु पुिँक पुनन पुनन देनख ऄपनें सुकृत सुरतरु फिँ नए॥ भरर भुवन रहा ईछाहु राम नबबाहु भा सबहीं कहा। के नह भाँनत बरनन नसरात रसना एक यहु मंगिँु महा॥१॥ तब जनक पाआ बनसष्ठ अयसु ब्याह साज सँवारर कै । माँडवी श्रुनतकीरनत ईरनमिँा कु ऄँरर िँईं हँकारर के ॥ कु सके तु कन्या प्रथम जो गुन सीिँ सुख सोभामइ। सब रीनत प्रीनत समेत करर सो ब्यानह नृप भरतनह दइ॥२॥ जानकी िँघु भनगनी सकिँ सुंदरर नसरोमनन जानन कै । सो तनय दीन्ही ब्यानह िँखननह सकिँ नबनध सनमानन कै ॥

जेनह नामु श्रुतकीरनत सुिँोचनन सुमुनख सब गुन अगरी। सो दइ ररपुसूदननह भूपनत रूप सीिँ ईजागरी॥३॥ ऄनुरुप बर दुिँनहनन परस्पर िँनख सकु च नहयँ हरषहीं। सब मुकदत सुंदरता सराहहह सुमन सुर गन बरषहीं॥ सुंदरी सुंदर बरन्ह सह सब एक मंडप राजहीं। जनु जीव ईर चाररई ऄवस्था नबभुन सनहत नबराजहीं॥४॥ दो०-मुकदत ऄवधपनत सकिँ सुत बधुन्ह समेत ननहारर। जनु पाए मनहपािँ मनन कियन्ह सनहत फिँ चारर॥३२५॥ जनस रघुबीर ब्याह नबनध बरनी। सकिँ कु ऄँर ब्याहे तेहह करनी॥ कनह न जाआ कछु दाआज भूरी। रहा कनक मनन मंडपु पूरी॥१॥ कं बिँ बसन नबनचत्र पटोरे । भाँनत भाँनत बहु मोिँ न थोरे ॥ गज रथ तुरग दास ऄरु दासी। धेनु ऄिँंकृत कामदुहा सी॥२॥ बस्तु ऄनेक कररऄ ककनम िँेखा। कनह न जाआ जानहह नजन्ह देखा॥ िँोकपािँ ऄविँोकक नसहाने। िँीन्ह ऄवधपनत सबु सुखु माने॥३॥ दीन्ह जाचकनन्ह जो जेनह भावा। ईबरा सो जनवासेहह अवा॥ तब कर जोरर जनकु मृद ु बानी। बोिँे सब बरात सनमानी॥४॥ छं०-सनमानन सकिँ बरात अदर दान नबनय बडाआ कै । प्रमुकदत महा मुनन बृंद बंदे पूनज प्रेम िँडाआ कै ॥ नसरु नाआ देव मनाआ सब सन कहत कर संपुट ककएँ। सुर साधु चाहत भाई हसधु कक तोष जिँ ऄंजनिँ कदएँ॥१॥ कर जोरर जनकु बहोरर बंधु समेत कोसिँराय सों। बोिँे मनोहर बयन सानन सनेह सीिँ सुभाय सों॥

संबंध राजन रावरें हम बडे ऄब सब नबनध भए। एनह राज साज समेत सेवक जाननबे नबनु गथ िँए॥२॥ ए दाररका पररचाररका करर पानिँबीं करुना नइ। ऄपराधु छनमबो बोनिँ पठए बहुत हौं ढीट्यो कइ॥ पुनन भानुकुिँभूषन सकिँ सनमान नननध समधी ककए। कनह जानत नहह नबनती परस्पर प्रेम पररपूरन नहए॥३॥ बृंदारका गन सुमन बररसहह राई जनवासेनह चिँे। दुद ं भ ु ी जय धुनन बेद धुनन नभ नगर कौतूहिँ भिँे॥ तब सखीं मंगिँ गान करत मुनीस अयसु पाआ कै । दूिँह दुिँनहननन्ह सनहत सुंदरर चिँीं कोहबर ल्याआ कै ॥४॥ दो०-पुनन पुनन रामनह नचतव नसय सकु चनत मनु सकु चै न। हरत मनोहर मीन छनब प्रेम नपअसे नैन॥३२६॥ मासपारायण, ग्यारहवाँ नवश्राम स्याम सरीरु सुभायँ सुहावन। सोभा कोरट मनोज िँजावन॥ जावक जुत पद कमिँ सुहाए। मुनन मन मधुप रहत नजन्ह छाए॥१॥ पीत पुनीत मनोहर धोती। हरनत बािँ रनब दानमनन जोती॥ किँ ककककनन करट सूत्र मनोहर। बाहु नबसािँ नबभूषन सुंदर॥२॥ पीत जनेई महाछनब देइ। कर मुकद्रका चोरर नचतु िँेइ॥ सोहत ब्याह साज सब साजे। ईर अयत ईरभूषन राजे॥३॥ नपऄर ईपरना काखासोती। दुहुँ अँचरनन्ह िँगे मनन मोती॥ नयन कमिँ किँ कुं डिँ काना। बदनु सकिँ सौंदजम ननधाना॥४॥ सुंदर भृकुरट मनोहर नासा। भािँ नतिँकु रुनचरता ननवासा॥ सोहत मौरु मनोहर माथे। मंगिँमय मुकुता मनन गाथे॥

छं०-गाथे महामनन मौर मंजुिँ ऄंग सब नचत चोरहीं। पुर नारर सुर सुंदरीं बरनह नबिँोकक सब नतन तोरहीं॥ मनन बसन भूषन वारर अरनत करहह मंगिँ गावहह। सुर सुमन बररसहह सूत मागध बंकद सुजसु सुनावहीं॥१॥ कोहबरहह अने कुँ ऄर कुँ ऄरर सुअनसननन्ह सुख पाआ कै । ऄनत प्रीनत िँौककक रीनत िँागीं करन मंगिँ गाआ कै ॥ िँहकौरर गौरर नसखाव रामनह सीय सन सारद कहैं। रननवासु हास नबिँास रस बस जन्म को फिँु सब िँहैं॥२॥ ननज पानन मनन महुँ देनखऄनत मूरनत सुरूपननधान की। चािँनत न भुजबल्िँी नबिँोकनन नबरह भय बस जानकी॥ कौतुक नबनोद प्रमोदु प्रेमु न जाआ कनह जानहह ऄिँीं। बर कु ऄँरर सुंदर सकिँ सखीं िँवाआ जनवासेनह चिँीं॥३॥ तेनह समय सुननऄ ऄसीस जहँ तहँ नगर नभ अनँद ु महा। नचरु नजऄहुँ जोरीं चारु चारयो मुकदत मन सबहीं कहा॥ जोगीन्द्र नसि मुनीस देव नबिँोकक प्रभु दुद ं न ु भ हनी। चिँे हरनष बरनष प्रसून ननज ननज िँोक जय जय जय भनी॥४॥ दो०-सनहत बधूरटन्ह कु ऄँर सब तब अए नपतु पास। सोभा मंगिँ मोद भरर ईमगेई जनु जनवास॥३२७॥ पुनन जेवनार भइ बहु भाँती। पठए जनक बोिँाआ बराती॥ परत पाँवडे बसन ऄनूपा। सुतन्ह समेत गवन ककयो भूपा॥१॥ सादर सबके पाय पखारे । जथाजोगु पीढन्ह बैठारे ॥ धोए जनक ऄवधपनत चरना। सीिँु सनेहु जाआ नहह बरना॥२॥ बहुरर राम पद पंकज धोए। जे हर हृदय कमिँ महुँ गोए॥

तीननई भाइ राम सम जानी। धोए चरन जनक ननज पानी॥३॥ असन ईनचत सबनह नृप दीन्हे। बोनिँ सूपकारी सब िँीन्हे॥ सादर िँगे परन पनवारे । कनक कीिँ मनन पान सँवारे ॥४॥ दो०-सूपोदन सुरभी सरनप सुंदर स्वादु पुनीत। छन महुँ सब कें परुनस गे चतुर सुअर नबनीत॥३२८॥ पंच कविँ करर जेवन िँऄगे। गारर गान सुनन ऄनत ऄनुरागे॥ भाँनत ऄनेक परे पकवाने। सुधा सररस नहह जाहह बखाने॥१॥ परुसन िँगे सुअर सुजाना। हबजन नबनबध नाम को जाना॥ चारर भाँनत भोजन नबनध गाइ। एक एक नबनध बरनन न जाइ॥२॥ छरस रुनचर हबजन बहु जाती। एक एक रस ऄगननत भाँती॥ जेवँत देहह मधुर धुनन गारी। िँै िँै नाम पुरुष ऄरु नारी॥३॥ समय सुहावनन गारर नबराजा। हँसत राई सुनन सनहत समाजा॥ एनह नबनध सबहीं भौजनु कीन्हा। अदर सनहत अचमनु दीन्हा॥४॥ दो०-देआ पान पूजे जनक दसरथु सनहत समाज। जनवासेनह गवने मुकदत सकिँ भूप नसरताज॥३२९॥ ननत नूतन मंगिँ पुर माहीं। नननमष सररस कदन जानमनन जाहीं॥ बडे भोर भूपनतमनन जागे। जाचक गुन गन गावन िँागे॥१॥ देनख कु ऄँर बर बधुन्ह समेता। ककनम कनह जात मोदु मन जेता॥ प्रातकिया करर गे गुरु पाहीं। महाप्रमोदु प्रेमु मन माहीं॥२॥ करर प्रनाम पूजा कर जोरी। बोिँे नगरा ऄनमऄँ जनु बोरी॥ तुर्महरी कृ पाँ सुनहु मुननराजा। भयईँ अजु मैं पूरन काजा॥३॥ ऄब सब नबप्र बोिँाआ गोसाईं। देहु धेनु सब भाँनत बनाइ॥ सुनन गुर करर मनहपािँ बडाइ। पुनन पठए मुनन बृंद बोिँाइ॥४॥

दो०-बामदेई ऄरु देवररनष बािँमीकक जाबानिँ। अए मुननबर ननकर तब कौनसकाकद तपसानिँ॥३३०॥ दंड प्रनाम सबनह नृप कीन्हे। पूनज सप्रेम बरासन दीन्हे॥ चारर िँच्छ बर धेनु मगाइ। कामसुरनभ सम सीिँ सुहाइ॥१॥ सब नबनध सकिँ ऄिँंकृत कीन्हीं। मुकदत मनहप मनहदेवन्ह दीन्हीं॥ करत नबनय बहु नबनध नरनाह। िँहेईँ अजु जग जीवन िँाह॥२॥ पाआ ऄसीस महीसु ऄनंदा। निँए बोनिँ पुनन जाचक बृंदा॥ कनक बसन मनन हय गय स्यंदन। कदए बूनझ रुनच रनबकु िँनंदन॥३॥ चिँे पढत गावत गुन गाथा। जय जय जय कदनकर कु िँ नाथा॥ एनह नबनध राम नबअह ईछाह। सकआ न बरनन सहस मुख जाह॥४॥ दो०-बार बार कौनसक चरन सीसु नाआ कह राई। यह सबु सुखु मुननराज तव कृ पा कटाच्छ पसाई॥३३१॥ जनक सनेहु सीिँु करतूती। नृपु सब भाँनत सराह नबभूती॥ कदन ईरठ नबदा ऄवधपनत मागा। राखहह जनकु सनहत ऄनुरागा॥१॥ ननत नूतन अदरु ऄनधकाइ। कदन प्रनत सहस भाँनत पहुनाइ॥ ननत नव नगर ऄनंद ईछाह। दसरथ गवनु सोहाआ न काह॥२॥ बहुत कदवस बीते एनह भाँती। जनु सनेह रजु बँधे बराती॥ कौनसक सतानंद तब जाइ। कहा नबदेह नृपनह समुझाइ॥३॥ ऄब दसरथ कहँ अयसु देह। जद्यनप छानड न सकहु सनेह॥ भिँेहह नाथ कनह सनचव बोिँाए। कनह जय जीव सीस नतन्ह नाए॥४॥ दो०-ऄवधनाथु चाहत चिँन भीतर करहु जनाई। भए प्रेमबस सनचव सुनन नबप्र सभासद राई॥३३२॥

पुरबासी सुनन चनिँनह बराता। बूझत नबकिँ परस्पर बाता॥ सत्य गवनु सुनन सब नबिँखाने। मनहुँ साँझ सरनसज सकु चाने॥१॥ जहँ जहँ अवत बसे बराती। तहँ तहँ नसि चिँा बहु भाँती॥ नबनबध भाँनत मेवा पकवाना। भोजन साजु न जाआ बखाना॥२॥ भरर भरर बसहँ ऄपार कहारा। पठइ जनक ऄनेक सुसारा॥ तुरग िँाख रथ सहस पचीसा। सकिँ सँवारे नख ऄरु सीसा॥३॥ मत्त सहस दस हसधुर साजे। नजन्हनह देनख कदनसकुं जर िँाजे॥ कनक बसन मनन भरर भरर जाना। मनहषीं धेनु बस्तु नबनध नाना॥४॥ दो०-दाआज ऄनमत न सककऄ कनह दीन्ह नबदेहँ बहोरर। जो ऄविँोकत िँोकपनत िँोक संपदा थोरर॥३३३॥ सबु समाजु एनह भाँनत बनाइ। जनक ऄवधपुर दीन्ह पठाइ॥ चनिँनह बरात सुनत सब रानीं। नबकिँ मीनगन जनु िँघु पानीं॥१॥ पुनन पुनन सीय गोद करर िँेहीं। देआ ऄसीस नसखावनु देहीं॥ होएहु संतत नपयनह नपअरी। नचरु ऄनहबात ऄसीस हमारी॥२॥ सासु ससुर गुर सेवा करे ह। पनत रुख िँनख अयसु ऄनुसरे ह॥ ऄनत सनेह बस सखीं सयानी। नारर धरम नसखवहह मृद ु बानी॥३॥ सादर सकिँ कु ऄँरर समुझाइ। राननन्ह बार बार ईर िँाइ॥ बहुरर बहुरर भेटहह महतारीं। कहहह नबरं नच रचीं कत नारीं॥४॥ दो०-तेनह ऄवसर भाआन्ह सनहत रामु भानु कु िँ के तु। चिँे जनक मंकदर मुकदत नबदा करावन हेतु॥३३४॥ चाररऄ भाआ सुभायँ सुहाए। नगर नारर नर देखन धाए॥ कोई कह चिँन चहत हहह अजू। कीन्ह नबदेह नबदा कर साजू॥१॥ िँेहु नयन भरर रूप ननहारी। नप्रय पाहुने भूप सुत चारी॥

को जानै के नह सुकृत सयानी। नयन ऄनतनथ कीन्हे नबनध अनी॥२॥ मरनसीिँु नजनम पाव नपउषा। सुरतरु िँहै जनम कर भूखा॥ पाव नारकी हररपदु जैसें। आन्ह कर दरसनु हम कहँ तैसे॥३॥ ननरनख राम सोभा ईर धरह। ननज मन फनन मूरनत मनन करह॥ एनह नबनध सबनह नयन फिँु देता। गए कु ऄँर सब राज ननके ता॥४॥ दो०-रूप हसधु सब बंधु िँनख हरनष ईठा रननवासु। करनह ननछावरर अरती महा मुकदत मन सासु॥३३५॥ देनख राम छनब ऄनत ऄनुरागीं। प्रेमनबबस पुनन पुनन पद िँागीं॥ रही न िँाज प्रीनत ईर छाइ। सहज सनेहु बरनन ककनम जाइ॥१॥ भाआन्ह सनहत ईबरट ऄन्हवाए। छरस ऄसन ऄनत हेतु जेवाँए॥ बोिँे रामु सुऄवसरु जानी। सीिँ सनेह सकु चमय बानी॥२॥ राई ऄवधपुर चहत नसधाए। नबदा होन हम आहाँ पठाए॥ मातु मुकदत मन अयसु देह। बािँक जानन करब ननत नेह॥३॥ सुनत बचन नबिँखेई रननवासू। बोनिँ न सकहह प्रेमबस सासू॥ हृदयँ िँगाआ कु ऄँरर सब िँीन्ही। पनतन्ह सौंनप नबनती ऄनत कीन्ही॥४॥ छं०-करर नबनय नसय रामनह समरपी जोरर कर पुनन पुनन कहै। बनिँ जाँई तात सुजान तुर्मह कहुँ नबकदत गनत सब की ऄहै॥ पररवार पुरजन मोनह राजनह प्राननप्रय नसय जाननबी। तुिँसीस सीिँु सनेहु िँनख ननज कककरी करर माननबी॥ सो०-तुर्मह पररपूरन काम जान नसरोमनन भावनप्रय। जन गुन गाहक राम दोष दिँन करुनायतन॥३३६॥ ऄस कनह रही चरन गनह रानी। प्रेम पंक जनु नगरा समानी॥ सुनन सनेहसानी बर बानी। बहुनबनध राम सासु सनमानी॥१॥

राम नबदा मागत कर जोरी। कीन्ह प्रनामु बहोरर बहोरी॥ पाआ ऄसीस बहुरर नसरु नाइ। भाआन्ह सनहत चिँे रघुराइ॥२॥ मंजु मधुर मूरनत ईर अनी। भइ सनेह नसनथिँ सब रानी॥ पुनन धीरजु धरर कु ऄँरर हँकारी। बार बार भेटहह महतारीं॥३॥ पहुँचावहह कफरर नमिँहह बहोरी। बढी परस्पर प्रीनत न थोरी॥ पुनन पुनन नमिँत सनखन्ह नबिँगाइ। बािँ बच्छ नजनम धेनु िँवाइ॥४॥ दो०-प्रेमनबबस नर नारर सब सनखन्ह सनहत रननवासु। मानहुँ कीन्ह नबदेहपुर करुनाँ नबरहँ ननवासु॥३३७॥ सुक साररका जानकी ज्याए। कनक हपजरनन्ह रानख पढाए॥ ब्याकु िँ कहहह कहाँ बैदह े ी। सुनन धीरजु पररहरआ न के ही॥१॥ भए नबकिँ खग मृग एनह भाँती। मनुज दसा कै सें कनह जाती॥ बंधु समेत जनकु तब अए। प्रेम ईमनग िँोचन जिँ छाए॥२॥ सीय नबिँोकक धीरता भागी। रहे कहावत परम नबरागी॥ िँीनन्ह राँय ईर िँाआ जानकी। नमटी महामरजाद ग्यान की॥३॥ समुझावत सब सनचव सयाने। कीन्ह नबचारु न ऄवसर जाने॥ बारहह बार सुता ईर िँाइ। सनज सुंदर पािँकीं मगाइ॥४॥ दो०-प्रेमनबबस पररवारु सबु जानन सुिँगन नरे स। कुँ ऄरर चढाइ पािँककन्ह सुनमरे नसनि गनेस॥३३८॥ बहुनबनध भूप सुता समुझाइ। नाररधरमु कु िँरीनत नसखाइ॥ दासीं दास कदए बहुतेरे। सुनच सेवक जे नप्रय नसय के रे ॥१॥ सीय चिँत ब्याकु िँ पुरबासी। होहह सगुन सुभ मंगिँ रासी॥ भूसुर सनचव समेत समाजा। संग चिँे पहुँचावन राजा॥२॥ समय नबिँोकक बाजने बाजे। रथ गज बानज बरानतन्ह साजे॥

दसरथ नबप्र बोनिँ सब िँीन्हे। दान मान पररपूरन कीन्हे॥३॥ चरन सरोज धूरर धरर सीसा। मुकदत महीपनत पाआ ऄसीसा॥ सुनमरर गजाननु कीन्ह पयाना। मंगिँमूिँ सगुन भए नाना॥४॥ दो०-सुर प्रसून बरषनह हरनष करहह ऄपछरा गान। चिँे ऄवधपनत ऄवधपुर मुकदत बजाआ ननसान॥३३९॥ नृप करर नबनय महाजन फे रे । सादर सकिँ मागने टेरे॥ भूषन बसन बानज गज दीन्हे। प्रेम पोनष ठाढे सब कीन्हे॥१॥ बार बार नबररदावनिँ भाषी। कफरे सकिँ रामनह ईर राखी॥ बहुरर बहुरर कोसिँपनत कहहीं। जनकु प्रेमबस कफरै न चहहीं॥२॥ पुनन कह भूपनत बचन सुहाए। कफररऄ महीस दूरर बनड अए॥ राई बहोरर ईतरर भए ठाढे। प्रेम प्रबाह नबिँोचन बाढे॥३॥ तब नबदेह बोिँे कर जोरी। बचन सनेह सुधाँ जनु बोरी॥ करौ कवन नबनध नबनय बनाइ। महाराज मोनह दीनन्ह बडाइ॥४॥ दो०-कोसिँपनत समधी सजन सनमाने सब भाँनत। नमिँनन परसपर नबनय ऄनत प्रीनत न हृदयँ समानत॥३४०॥ मुनन मंडनिँनह जनक नसरु नावा। अनसरबादु सबनह सन पावा॥ सादर पुनन भेंटे जामाता। रूप सीिँ गुन नननध सब भ्राता॥१॥ जोरर पंकरुह पानन सुहाए। बोिँे बचन प्रेम जनु जाए॥ राम करौ के नह भाँनत प्रसंसा। मुनन महेस मन मानस हंसा॥२॥ करहह जोग जोगी जेनह िँागी। कोहु मोहु ममता मदु त्यागी॥ ब्यापकु ब्रह्मु ऄिँखु ऄनबनासी। नचदानंद ु ननरगुन गुनरासी॥३॥ मन समेत जेनह जान न बानी। तरकक न सकहह सकिँ ऄनुमानी॥ मनहमा ननगमु नेनत कनह कहइ। जो नतहुँ कािँ एकरस रहइ॥४॥

दो०-नयन नबषय मो कहुँ भयई सो समस्त सुख मूिँ। सबआ िँाभु जग जीव कहँ भएँ इसु ऄनुकुिँ॥३४१॥ सबनह भाँनत मोनह दीनन्ह बडाइ। ननज जन जानन िँीन्ह ऄपनाइ॥ होहह सहस दस सारद सेषा। करहह किँप कोरटक भरर िँेखा॥१॥ मोर भाग्य राईर गुन गाथा। कनह न नसराहह सुनहु रघुनाथा॥ मै कछु कहईँ एक बिँ मोरें । तुर्मह रीझहु सनेह सुरठ थोरें ॥२॥ बार बार मागईँ कर जोरें । मनु पररहरै चरन जनन भोरें ॥ सुनन बर बचन प्रेम जनु पोषे। पूरनकाम रामु पररतोषे॥३॥ करर बर नबनय ससुर सनमाने। नपतु कौनसक बनसष्ठ सम जाने॥ नबनती बहुरर भरत सन कीन्ही। नमनिँ सप्रेमु पुनन अनसष दीन्ही॥४॥ दो०-नमिँे िँखन ररपुसूदननह दीनन्ह ऄसीस महीस। भए परस्पर प्रेमबस कफरर कफरर नावहह सीस॥३४२॥ बार बार करर नबनय बडाइ। रघुपनत चिँे संग सब भाइ॥ जनक गहे कौनसक पद जाइ। चरन रे नु नसर नयनन्ह िँाइ॥१॥ सुनु मुनीस बर दरसन तोरें । ऄगमु न कछु प्रतीनत मन मोरें ॥ जो सुखु सुजसु िँोकपनत चहहीं। करत मनोरथ सकु चत ऄहहीं॥२॥ सो सुखु सुजसु सुिँभ मोनह स्वामी। सब नसनध तव दरसन ऄनुगामी॥ कीनन्ह नबनय पुनन पुनन नसरु नाइ। कफरे महीसु अनसषा पाइ॥३॥ चिँी बरात ननसान बजाइ। मुकदत छोट बड सब समुदाइ॥ रामनह ननरनख ग्राम नर नारी। पाआ नयन फिँु होहह सुखारी॥४॥ दो०-बीच बीच बर बास करर मग िँोगन्ह सुख देत। ऄवध समीप पुनीत कदन पहुँची अआ जनेत॥३४३॥û हने ननसान पनव बर बाजे। भेरर संख धुनन हय गय गाजे॥

झाँनझ नबरव हडडमीं सुहाइ। सरस राग बाजहह सहनाइ॥१॥ पुर जन अवत ऄकनन बराता। मुकदत सकिँ पुिँकावनिँ गाता॥ ननज ननज सुंदर सदन सँवारे । हाट बाट चौहट पुर द्वारे ॥२॥ गिँीं सकिँ ऄरगजाँ हसचाइ। जहँ तहँ चौकें चारु पुराइ॥ बना बजारु न जाआ बखाना। तोरन के तु पताक नबताना॥३॥ सफिँ पूगफिँ कदनिँ रसािँा। रोपे बकु िँ कदंब तमािँा॥ िँगे सुभग तरु परसत धरनी। मननमय अिँबािँ किँ करनी॥४॥ दो०-नबनबध भाँनत मंगिँ किँस गृह गृह रचे सँवारर। सुर ब्रह्माकद नसहाहह सब रघुबर पुरी ननहारर॥३४४॥ भूप भवन तेनह ऄवसर सोहा। रचना देनख मदन मनु मोहा॥ मंगिँ सगुन मनोहरताइ। ररनध नसनध सुख संपदा सुहाइ॥१॥ जनु ईछाह सब सहज सुहाए। तनु धरर धरर दसरथ दसरथ गृहँ छाए॥ देखन हेतु राम बैदह े ी। कहहु िँािँसा होनह न के ही॥२॥ जुथ जूथ नमनिँ चिँीं सुअनसनन। ननज छनब ननदरहह मदन नबिँासनन॥ सकिँ सुमंगिँ सजें अरती। गावहह जनु बहु बेष भारती॥३॥ भूपनत भवन कोिँाहिँु होइ। जाआ न बरनन समई सुखु सोइ॥ कौसल्याकद राम महतारीं। प्रेम नबबस तन दसा नबसारीं॥४॥ दो०-कदए दान नबप्रन्ह नबपुिँ पूनज गनेस पुरारी। प्रमुकदत परम दररद्र जनु पाआ पदारथ चारर॥३४५॥ मोद प्रमोद नबबस सब माता। चिँहह न चरन नसनथिँ भए गाता॥ राम दरस नहत ऄनत ऄनुरागीं। पररछनन साजु सजन सब िँागीं॥१॥ नबनबध नबधान बाजने बाजे। मंगिँ मुकदत सुनमत्राँ साजे॥ हरद दूब दनध पल्िँव फू िँा। पान पूगफिँ मंगिँ मूिँा॥२॥

ऄच्छत ऄंकुर िँोचन िँाजा। मंजुिँ मंजरर तुिँनस नबराजा॥ छु हे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकु न जनु नीड बनाए॥३॥ सगुन सुंगध न जाहह बखानी। मंगिँ सकिँ सजहह सब रानी॥ रचीं अरतीं बहुत नबधाना। मुकदत करहह किँ मंगिँ गाना॥४॥ दो०-कनक थार भरर मंगिँनन्ह कमिँ करनन्ह निँएँ मात। चिँीं मुकदत पररछनन करन पुिँक पल्िँनवत गात॥३४६॥ धूप धूम नभु मेचक भयउ। सावन घन घमंडु जनु ठयउ॥ सुरतरु सुमन मािँ सुर बरषहह। मनहुँ बिँाक ऄवनिँ मनु करषहह॥१॥ मंजुिँ मननमय बंदननवारे । मनहुँ पाकररपु चाप सँवारे ॥ प्रगटहह दुरहह ऄटन्ह पर भानमनन। चारु चपिँ जनु दमकहह दानमनन॥२॥ दुद ं न ु भ धुनन घन गरजनन घोरा। जाचक चातक दादुर मोरा॥ सुर सुगन्ध सुनच बरषहह बारी। सुखी सकिँ सनस पुर नर नारी॥३॥ समई जानी गुर अयसु दीन्हा। पुर प्रबेसु रघुकुिँमनन कीन्हा॥ सुनमरर संभु नगरजा गनराजा। मुकदत महीपनत सनहत समाजा॥४॥ दो०-होहह सगुन बरषहह सुमन सुर दुद ं भ ु ीं बजाआ। नबबुध बधू नाचहह मुकदत मंजुिँ मंगिँ गाआ॥३४७॥ मागध सूत बंकद नट नागर। गावहह जसु नतहु िँोक ईजागर॥ जय धुनन नबमिँ बेद बर बानी। दस कदनस सुननऄ सुमंगिँ सानी॥१॥ नबपुिँ बाजने बाजन िँागे। नभ सुर नगर िँोग ऄनुरागे॥ बने बराती बरनन न जाहीं। महा मुकदत मन सुख न समाहीं॥२॥ पुरबानसन्ह तब राय जोहारे । देखत रामनह भए सुखारे ॥ करहह ननछावरर मननगन चीरा। बारर नबिँोचन पुिँक सरीरा॥३॥ अरनत करहह मुकदत पुर नारी। हरषहह ननरनख कुँ ऄर बर चारी॥

नसनबका सुभग ओहार ईघारी। देनख दुिँनहननन्ह होहह सुखारी॥४॥ दो०-एनह नबनध सबही देत सुखु अए राजदुअर। मुकदत मातु परुछनन करहह बधुन्ह समेत कु मार॥३४८॥ करहह अरती बारहह बारा। प्रेमु प्रमोदु कहै को पारा॥ भूषन मनन पट नाना जाती॥करही ननछावरर ऄगननत भाँती॥१॥ बधुन्ह समेत देनख सुत चारी। परमानंद मगन महतारी॥ पुनन पुनन सीय राम छनब देखी॥मुकदत सफिँ जग जीवन िँेखी॥२॥ सखीं सीय मुख पुनन पुनन चाही। गान करहह ननज सुकृत सराही॥ बरषहह सुमन छनहह छन देवा। नाचहह गावहह िँावहह सेवा॥३॥ देनख मनोहर चाररई जोरीं। सारद ईपमा सकिँ ढँढोरीं॥ देत न बनहह ननपट िँघु िँागी। एकटक रहीं रूप ऄनुरागीं॥४॥ दो०-ननगम नीनत कु िँ रीनत करर ऄरघ पाँवडे देत। बधुन्ह सनहत सुत पररनछ सब चिँीं िँवाआ ननके त॥३४९॥ चारर हसघासन सहज सुहाए। जनु मनोज ननज हाथ बनाए॥ नतन्ह पर कु ऄँरर कु ऄँर बैठारे । सादर पाय पुननत पखारे ॥१॥ धूप दीप नैबेद बेद नबनध। पूजे बर दुिँनहनन मंगिँनननध॥ बारहह बार अरती करहीं। ब्यजन चारु चामर नसर ढरहीं॥२॥ बस्तु ऄनेक ननछावर होहीं। भरीं प्रमोद मातु सब सोहीं॥ पावा परम तत्व जनु जोगीं। ऄमृत िँहेई जनु संतत रोगीं॥३॥ जनम रं क जनु पारस पावा। ऄंधनह िँोचन िँाभु सुहावा॥ मूक बदन जनु सारद छाइ। मानहुँ समर सूर जय पाइ॥४॥ दो०-एनह सुख ते सत कोरट गुन पावहह मातु ऄनंद॥ ु भाआन्ह सनहत नबअनह घर अए रघुकुिँचंद॥ ु ३५०(क)॥

िँोक रीत जननी करहह बर दुिँनहनन सकु चाहह। मोदु नबनोदु नबिँोकक बड रामु मनहह मुसकाहह॥३५०(ख)॥ देव नपतर पूजे नबनध नीकी। पूजीं सकिँ बासना जी की॥ सबहह बंकद मागहह बरदाना। भाआन्ह सनहत राम कल्याना॥१॥ ऄंतरनहत सुर अनसष देहीं। मुकदत मातु ऄंचिँ भरर िँेंहीं॥ भूपनत बोनिँ बराती िँीन्हे। जान बसन मनन भूषन दीन्हे॥२॥ अयसु पाआ रानख ईर रामनह। मुकदत गए सब ननज ननज धामनह॥ पुर नर नारर सकिँ पनहराए। घर घर बाजन िँगे बधाए॥३॥ जाचक जन जाचनह जोआ जोइ। प्रमुकदत राई देहह सोआ सोइ॥ सेवक सकिँ बजननअ नाना। पूरन ककए दान सनमाना॥४॥ दो०-देंहह ऄसीस जोहारर सब गावहह गुन गन गाथ। तब गुर भूसुर सनहत गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ॥३५१॥ जो बनसष्ठ ऄनुसासन दीन्ही। िँोक बेद नबनध सादर कीन्ही॥ भूसुर भीर देनख सब रानी। सादर ईठीं भाग्य बड जानी॥१॥ पाय पखारर सकिँ ऄन्हवाए। पूनज भिँी नबनध भूप जेवाँए॥ अदर दान प्रेम पररपोषे। देत ऄसीस चिँे मन तोषे॥२॥ बहु नबनध कीनन्ह गानधसुत पूजा। नाथ मोनह सम धन्य न दूजा॥ कीनन्ह प्रसंसा भूपनत भूरी। राननन्ह सनहत िँीनन्ह पग धूरी॥३॥ भीतर भवन दीन्ह बर बासु। मन जोगवत रह नृप रननवासू॥ पूजे गुर पद कमिँ बहोरी। कीनन्ह नबनय ईर प्रीनत न थोरी॥४॥ दो०-बधुन्ह समेत कु मार सब राननन्ह सनहत महीसु। पुनन पुनन बंदत गुर चरन देत ऄसीस मुनीसु॥३५२॥

नबनय कीनन्ह ईर ऄनत ऄनुरागें। सुत संपदा रानख सब अगें॥ नेगु मानग मुनननायक िँीन्हा। अनसरबादु बहुत नबनध दीन्हा॥१॥ ईर धरर रामनह सीय समेता। हरनष कीन्ह गुर गवनु ननके ता॥ नबप्रबधू सब भूप बोिँाइ। चैिँ चारु भूषन पनहराइ॥२॥ बहुरर बोिँाआ सुअनसनन िँीन्हीं। रुनच नबचारर पनहरावनन दीन्हीं॥ नेगी नेग जोग सब िँेहीं। रुनच ऄनुरुप भूपमनन देहीं॥३॥ नप्रय पाहुने पूज्य जे जाने। भूपनत भिँी भाँनत सनमाने॥ देव देनख रघुबीर नबबाह। बरनष प्रसून प्रसंनस ईछाह॥४॥ दो०-चिँे ननसान बजाआ सुर ननज ननज पुर सुख पाआ। कहत परसपर राम जसु प्रेम न हृदयँ समाआ॥३५३॥ सब नबनध सबनह समकद नरनाह। रहा हृदयँ भरर पूरर ईछाह॥ जहँ रननवासु तहाँ पगु धारे । सनहत बहरटन्ह कु ऄँर ननहारे ॥१॥ निँए गोद करर मोद समेता। को कनह सकआ भयई सुखु जेता॥ बधू सप्रेम गोद बैठारीं। बार बार नहयँ हरनष दुिँारीं॥२॥ देनख समाजु मुकदत रननवासू। सब कें ईर ऄनंद ककयो बासू॥ कहेई भूप नजनम भयई नबबाह। सुनन हरषु होत सब काह॥३॥ जनक राज गुन सीिँु बडाइ। प्रीनत रीनत संपदा सुहाइ॥ बहुनबनध भूप भाट नजनम बरनी। रानीं सब प्रमुकदत सुनन करनी॥४॥ दो०-सुतन्ह समेत नहाआ नृप बोनिँ नबप्र गुर ग्यानत। भोजन कीन्ह ऄनेक नबनध घरी पंच गआ रानत॥३५४॥ मंगिँगान करहह बर भानमनन। भै सुखमूिँ मनोहर जानमनन॥ ऄँचआ पान सब काहँ पाए। स्त्रग सुगंध भूनषत छनब छाए॥१॥ रामनह देनख रजायसु पाइ। ननज ननज भवन चिँे नसर नाइ॥

प्रेम प्रमोद नबनोदु बढाइ। समई समाजु मनोहरताइ॥२॥ कनह न सकनह सत सारद सेसू। बेद नबरं नच महेस गनेसू॥ सो मै कहौं कवन नबनध बरनी। भूनमनागु नसर धरआ कक धरनी॥३॥ नृप सब भाँनत सबनह सनमानी। कनह मृद ु बचन बोिँाइ रानी॥ बधू िँररकनीं पर घर अईं। राखेहु नयन पिँक की नाइ॥४॥ दो०-िँररका श्रनमत ईनीद बस सयन करावहु जाआ। ऄस कनह गे नबश्रामगृहँ राम चरन नचतु िँाआ॥३५५॥ भूप बचन सुनन सहज सुहाए। जररत कनक मनन पिँँग डसाए॥ सुभग सुरनभ पय फे न समाना। कोमिँ कनिँत सुपेतीं नाना॥१॥ ईपबरहन बर बरनन न जाहीं। स्त्रग सुगंध मननमंकदर माहीं॥ रतनदीप सुरठ चारु चँदोवा। कहत न बनआ जान जेहह जोवा॥२॥ सेज रुनचर रनच रामु ईठाए। प्रेम समेत पिँँग पौढाए॥ ऄग्या पुनन पुनन भाआन्ह दीन्ही। ननज ननज सेज सयन नतन्ह कीन्ही॥३॥ देनख स्याम मृद ु मंजुिँ गाता। कहहह सप्रेम बचन सब माता॥ मारग जात भयावनन भारी। के नह नबनध तात ताडका मारी॥४॥ दो०-घोर ननसाचर नबकट भट समर गनहह नहह काहु॥ मारे सनहत सहाय ककनम खिँ मारीच सुबाहु॥३५६॥ मुनन प्रसाद बनिँ तात तुर्महारी। इस ऄनेक करवरें टारी॥ मख रखवारी करर दुहुँ भाइ। गुरु प्रसाद सब नबद्या पाइ॥१॥ मुननतय तरी िँगत पग धूरी। कीरनत रही भुवन भरर पूरी॥ कमठ पीरठ पनब कू ट कठोरा। नृप समाज महुँ नसव धनु तोरा॥२॥ नबस्व नबजय जसु जानकक पाइ। अए भवन ब्यानह सब भाइ॥ सकिँ ऄमानुष करम तुर्महारे । के विँ कौनसक कृ पाँ सुधारे ॥३॥

अजु सुफिँ जग जनमु हमारा। देनख तात नबधुबदन तुर्महारा॥ जे कदन गए तुर्महनह नबनु देखें। ते नबरं नच जनन पारहह िँेखें॥४॥ दो०-राम प्रतोषीं मातु सब कनह नबनीत बर बैन। सुनमरर संभु गुर नबप्र पद ककए नीदबस नैन॥३५७॥ नीदईँ बदन सोह सुरठ िँोना। मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना॥ घर घर करहह जागरन नारीं। देहह परसपर मंगिँ गारीं॥१॥ पुरी नबराजनत राजनत रजनी। रानीं कहहह नबिँोकहु सजनी॥ सुंदर बधुन्ह सासु िँै सोइ। फननकन्ह जनु नसरमनन ईर गोइ॥२॥ प्रात पुनीत कािँ प्रभु जागे। ऄरुनचूड बर बोिँन िँागे॥ बंकद मागधनन्ह गुनगन गाए। पुरजन द्वार जोहारन अए॥३॥ बंकद नबप्र सुर गुर नपतु माता। पाआ ऄसीस मुकदत सब भ्राता॥ जनननन्ह सादर बदन ननहारे । भूपनत संग द्वार पगु धारे ॥४॥ दो०-कीन्ह सौच सब सहज सुनच सररत पुनीत नहाआ। प्रातकिया करर तात पहह अए चाररई भाआ॥३५८॥ नवान्हपारायण,तीसरा नवश्राम भूप नबिँोकक निँए ईर िँाइ। बैठै हरनष रजायसु पाइ॥ देनख रामु सब सभा जुडानी। िँोचन िँाभ ऄवनध ऄनुमानी॥१॥ पुनन बनसष्टु मुनन कौनसक अए। सुभग असननन्ह मुनन बैठाए॥ सुतन्ह समेत पूनज पद िँागे। ननरनख रामु दोई गुर ऄनुरागे॥२॥ कहहह बनसष्टु धरम आनतहासा। सुनहह महीसु सनहत रननवासा॥ मुनन मन ऄगम गानधसुत करनी। मुकदत बनसष्ट नबपुिँ नबनध बरनी॥३॥ बोिँे बामदेई सब साँची। कीरनत कनिँत िँोक नतहुँ माची॥ सुनन अनंद ु भयई सब काह। राम िँखन ईर ऄनधक ईछाह॥४॥

दो०-मंगिँ मोद ईछाह ननत जाहह कदवस एनह भाँनत। ईमगी ऄवध ऄनंद भरर ऄनधक ऄनधक ऄनधकानत॥३५९॥ सुकदन सोनध किँ कं कन छौरे । मंगिँ मोद नबनोद न थोरे ॥ ननत नव सुखु सुर देनख नसहाहीं। ऄवध जन्म जाचहह नबनध पाहीं॥१॥ नबस्वानमत्रु चिँन ननत चहहीं। राम सप्रेम नबनय बस रहहीं॥ कदन कदन सयगुन भूपनत भाउ। देनख सराह महामुननराउ॥२॥ मागत नबदा राई ऄनुरागे। सुतन्ह समेत ठाढ भे अगे॥ नाथ सकिँ संपदा तुर्महारी। मैं सेवकु समेत सुत नारी॥३॥ करब सदा िँररकन्ह पर छोह। दरसन देत रहब मुनन मोह॥ ऄस कनह राई सनहत सुत रानी। परे ई चरन मुख अव न बानी॥४॥ दीन्ह ऄसीस नबप्र बहु भाँती। चिँे न प्रीनत रीनत कनह जाती॥ रामु सप्रेम संग सब भाइ। अयसु पाआ कफरे पहुँचाइ॥५॥ दो०-राम रूपु भूपनत भगनत ब्याहु ईछाहु ऄनंद। ु जात सराहत मनहह मन मुकदत गानधकु िँचंद॥ ु ३६०॥ बामदेव रघुकुिँ गुर ग्यानी। बहुरर गानधसुत कथा बखानी॥ सुनन मुनन सुजसु मनहह मन राउ। बरनत अपन पुन्य प्रभाउ॥१॥ बहुरे िँोग रजायसु भयउ। सुतन्ह समेत नृपनत गृहँ गयउ॥ जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा। सुजसु पुनीत िँोक नतहुँ छावा॥२॥ अए ब्यानह रामु घर जब तें। बसआ ऄनंद ऄवध सब तब तें॥ प्रभु नबबाहँ जस भयई ईछाह। सकहह न बरनन नगरा ऄनहनाह॥३॥ कनबकु िँ जीवनु पावन जानी॥राम सीय जसु मंगिँ खानी॥ तेनह ते मैं कछु कहा बखानी। करन पुनीत हेतु ननज बानी॥४॥ छं०-ननज नगरा पावनन करन कारन राम जसु तुिँसी कह्यो।

रघुबीर चररत ऄपार बाररनध पारु कनब कौनें िँह्यो॥ ईपबीत ब्याह ईछाह मंगिँ सुनन जे सादर गावहीं। बैदन े ह राम प्रसाद ते जन सबमदा सुखु पावहीं॥ सो०-नसय रघुबीर नबबाहु जे सप्रेम गावहह सुनहह। नतन्ह कहुँ सदा ईछाहु मंगिँायतन राम जसु॥३६१॥ मासपारायण, बारहवाँ नवश्राम आनत श्रीमद्रामचररतमानसे सकिँकनिँकिँुषनबध्वंसने प्रथमः सोपानः समाप्तः। (बािँकाण्ड समाप्त)

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