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ऻान ही आऩको आऩका हक ददराता हैं

"जीवन ऩथ जदिर है मे, कारचक्र कदिन है मे, ऩग ऩग ऩे बेद -बाव है , यक्त-यॊ जजत ऩाॉव है , जन्भ से ककसी क े सय वॊश की छाॉव है , झूि क े यथ ऩे सवाय डाक ु ओॊ का गाॉव है ,

ककसी क े ऩास है छर-कऩि, ककसी को रूऩ का वयदान है , मे सोच क े भत फैि जा कक मे ववधध का ववधान है | फजा यहा भद ृ ॊ ग है , मे कहता अॊग-अॊग है , की प्राण अबी शेष है , भान अबी शेष है , बगवान से |

उिा रे ऻान का धनष ु , एक कण बी औय क ु छ भाॊग भत ऻान की कभान ऩे रगा दे तू ववजम ततरक, कार क े कऩार ऩे लरख दे तू मे गर ु ार से, 'की योक सकता कोई तो योक क े ददखा भुझ, े ऻान क े भॊच ऩय सफ एक साभान हैं,

ह़ छीनता आमा है जो अफ छीन क े फता भुझ. े' ववधध का ववधान ऩरि दे , तो ब्रह्भास्त्र ऻान है . तो आज से मे िान रे, मे फात गाॊि फाॉध रे, की कभम क े क ु रुऺेर भें ,

ना रूऩ काभ आता है , ना झूि काभ आता है ,

ना जाती काभ आती है , ना फाऩ का नाभ काभ आता है , लसप म ऻान ही आऩको आऩका ह़ ददराता है ||

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