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वो जो तंगहाऱी में जीती है राते जजसकी भूखे ऩेट बीती है एक जजन्दगी है वो भी ये उसकी हर ददन की आऩबीती है घर टऩकता है सूखे में

भी जजसका बबना आंधी क े घर उजड़ता है बेरुखी झेऱता है आये ददन समाज बस तमाचे जड़ता है अब क्या क्या बताये क्या क्या समझाए कहने को अंततम बस यही बचता है

"हाय ये गरीबी उसऩे महं गाई


नीम ऩे चढ़ता करे ऱा है भाई"

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