You are on page 1of 1

||विष्णुषट्पदी || अविनयमऩनय विष्णो दमय मन् शमय विषयमग ृ तष् ृ णणां | भूतदयणां विस्तणरय तणरय सांसणरसणगरत् ||१|| ददव्यधन

ु ीमकरन्दे ऩररमऱऩररभोगसच्चिदणनन्दे | श्रीऩततऩदणरविन्दे भिभयखेदच्चिदे िन्दे ||२|| सत्यवऩ भेदणऩगमे नणथ तिणहां न मणमकीनस्त्िां | सणमुद्रो दह तरङ्ग् क्ििन समद्र ु ो न तणरङ्ग् ||३|| उद्धृतनग नगभभदनज ु दनज ु क ु ऱणभमत्र भमत्रशभशदृष्टे | मत्स्यणददभभरितणरै रितणरितणऽितण सदण िसध ु णां | दृष्टे भितत प्रभितत न भितत ककां भिततरस्कणर् ||४|| ऩरमेश्िर ऩररऩणल्यो भितण भितणऩभीतोऽहां ||५|| दणमोदर गुणमच्न्दर सुन्दरिदनणरविन्द गोविन्द | भिजऱधधमथनमन्दर ऩरमां दरमऩनय त्िां मे ||६|| नणरणयण करुणणमय शरणां करिणणण तणिकौ िरणौ | इतत षट्ऩदी मदीये िदनसरोजे सदण िसतु ||७||
||इतत श्रीमद् शङ्करणिणययविरधितां विष्णष य ् || ु ट्ऩदीस्तोत्रां सांऩण ू म

You might also like