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अजमेर की अनेक मिहला िचिकतसको ने मेरी सोनोगाफी की िरपोटर देखकर मुझे गायिनक ऑपरेशन कराने की
सलाह दी थी। अंततः ऑपरेशन का िदन भी िनिशत िकया गया। परंतु मेरे पुत को इनजीिनयिरंग मे पिशकण पापत करने के
िलए जमरनी जाना पडा अतः ऑपरेशन का कायरकम सथिगत कर िदया। एक िदन मेरे पडोसी ने जब मुझे यह सलाह दी
िकः 'आशम की पुिसतका शी आसारामायण का पाठ करो, भगवान सब ठीक करे ग। '....तो मैने शी आसारामायण का 108
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बार पाठ करने का संकलप िकया। इसी बीच जब मेर पुत का जमरनी से वापस आने का कायरकम बना तब मैने बेहतर
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ऑपरेशन के िलए जयपुर मे डॉकटर ले समपकर िकया। पुनः परीकण करने के बाद डाकटरो ने कहा िकः 'हालत सामानय
है। गभाशय मे सूजन मात है, अब उसमे गाठ नही है। अतः दवा से ठीक हो जायगा, ऑपरेशन की जररत नही है।'
िफर अजमेर मे उनही िचिकतसको से परीकण करवाया जो पहले गायिनक आपरेशन की सलाह देते थे। परीकण
के बाद उनहोने भी कहाः 'िक ऑपरेशन की िबलकुल जररत नही है, केवल दवा की ही िचिकतसा काफी है।'
सचमुच, ऑपरेशन टलना मेरे िलये एक चमतकािरक घटना है। शी आसारामायण के 108 पाठ करने के संकलप
मात का यह फल है।
शीमित िवदा लाटा
गुलाबबाडी, अजमेर।
ऋिष पर्साद, जनवरी 2001, पृष संखया 31, अंक 97
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