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29-03-2010 Jagran - Yahoo!

India - Dharm Marg

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क याणकार पंचमु खी हनु मान


मा यता है क भ का क याण करने के लए ह पंचमु खीहनु म ान का अवतार हु आ। इस वष यह त थ
10नवंबर है । हनु म ानजी का एकमु ख,ीपंचमु खीऔर एकादशमु खी व प स है । चार मु ख वाले ,ा
पांच मु ख वाल गाय ी, छह मु ख वाले का त केय, चतु भ ु ज व णु, अ भु जीदु गा, दशमु खीगणेश के समान
पांच मु ख वाले हनु म ान क भी मा यता है ।
पंचमु खीहनु म ानजी का अवतार माग शीष कृ णा मी को माना जाता है । शंकर के अवतार हनु म ान ऊजा के
तीक माने जाते ह। इसक आराधना से बल , क त, आरो य और नभ कता बढती है । आनंद रामायण
के अनु सार, वराट व प वाले हनु म ान पांच मु ख, पं ह ने और दस भु जाओ ं से सु शो भत ह। हनु म ान के
पांच मु ख मश:पू व, पि म , उ र, द ण और ऊ र् व दशा म त त ह।
पंचमु ख हनु म ान के पू व क ओर का मु ख वानर का है । िजसक भा करोड सू य के समान है । पू व मु ख
वाले हनु म ान का मरण करने से सम त श ु ओ ं का नाश हो जाता है । पि म दशा वाला मु ख ग ड का है ।
ये व न नवारक माने जाते ह। ग ड क तरह हनु म ानजी भी अजर-अमर माने जाते ह। हनु म ानजी का
उ र क ओर मु ख शू कर का है । इनक आराधना करने से सकल स प क ा होती है ।
भ हलाद क र ा के लए हनु मान भगवान नृ स ं ह के प म तंभ से कट हु ए और हर यक यपु का
वध कया। यह उनका द णमु खहै । उनका यह प भ के भय को दू र करता है ।
ी हनु मान का ऊ र् वमु ख घोडे के समान है । ा जी क ाथ ना पर उनका यह प कट हु आ था। मा यता है क हय वदै ी य का संहार करने के
लए वे अवत रत हु ए। क म पडे भ को वे शरण दे ते ह। ऐसे पांच मु ं ह वाले कहलाने वाले हनु म ान बडे दयालु ह।
हनु म तमहाका य म पंचमु खीहनु मान के बारे म एक कथा है । एक बार पांच मु ं ह वाला एक भयानक रा स कट हु आ। उसन े तप या करके
ाजीसे वरदान पाया क मेरे प जै स ा ह कोई य मु झे मार सके। ऐसा वरदान ा करके वह भयंकर उ पात मचाने लगा। सभी दे वताओ ं ने
भगवान से इस क से छुटकारा मलने क ाथ ना क । तब भु क आ ा पाकर हनु म ानजी ने वानर, नर स ं ह, ग ड, अ और शू कर का पंचमु ख
व प धारण कया।
मा यता है क पंचमु खीहनु म ान क पू ज-ाअच ना से सभी दे वताओ ं क उपासना का फल मलता है । हनु म ान के पांच मु ख म तीन -तीन सु ंदर
आंख आ याि मक, आ धदै वक तथा आ धभौ तक तीन ताप को छुडाने वाल ह। ये मनु य के सभी वकार को दू र करने वाले माने जातेह।
श ु ओ ं का नाश करने वाले हनु म ानजी का हमेशा मरण करना चा हए।
-[डा. आनंद व प ीवा तव]

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