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श्री पी tajmahal
श्री पी tajmahal
श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो
महालय है । इस सम्बंध में उनके द्वारा दिये गये तर्कों का हिंदी रूपांतरण (भावार्थ) इस
प्रकार हैं -
नाम
2. शब्द ताजमहल के अंत में आये 'महल' मुस्लिम शब्द है ही नहीं, अफगानिस्तान से
लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मस्लि
ु म दे श में एक भी ऐसी इमारत नहीं है जिसे कि
महल के नाम से पक
ु ारा जाता हो।
3. साधारणतः समझा जाता है कि ताजमहल नाम मुमताजमहल, जो कि वहां पर दफनाई
गई थी, के कारण पड़ा है । यह बात कम से कम दो कारणों से तर्क सम्मत नहीं है - पहला
यह कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताजमहल था ही नहीं, उसका नाम मुमताज़-उल-
ज़मानी था और दस
ू रा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिय मुमताज़ नामक
औरत के नाम से "मम
ु " को हटा दे ने का कुछ मतलब नहीं निकलता।
4. चँकि
ू महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि ज में
(अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़ होना चाहिये था
(अर्थात ् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz होना था)।
5. शाहज़हां के समय यूरोपीय दे शों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख 'ताज-ए-
महल' के नाम से किया है जो कि उसके शिव मंदिर वाले परं परागत संस्कृत नाम
तेजोमहालय से मेल खाता है । इसके विरुद्ध शाहज़हां और औरं गज़ेब ने बड़ी सावधानी के
साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान
पर पवित्र मकब़रा शब्द का ही प्रयोग किया है ।
7. और यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई तुक
ही नहीं है ।
8. चँकि
ू ताजमहल शब्द का प्रयोग मग़
ु ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता था,
ताजमहल के विषय में किसी प्रकार की मुग़ल व्याख्या ढूंढना ही असंगत है । 'ताज' और
'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं।
9. ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश है ।
तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वर महादे व प्रतिष्ठित थे।
11. दे खने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल
सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि
से चित्रित पच्चीकारी की गई है । इससे साफ जाहिर होता है कि मम
ु ताज़ के मक़बरे वाला
कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगह
ृ है ।
12. संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंद ू
मंदिर परं परा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है ।
13. ताजमहल के रख-रखाव तथा मरम्मत करने वाले ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कि
प्राचीन पवित्र शिव लिंग तथा अन्य मर्ति
ू यों को चौड़ी दीवारों के बीच दबा हुआ और
संगमरमर वाले तहखाने के नीचे की मंजिलों के लाल पत्थरों वाले गुप्त कक्षों, जिन्हें कि
बंद (seal) कर दिया गया है , के भीतर दे खा है ।
14. भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग है । ऐसा प्रतीत होता है कि तेजोमहालय उर्फ ताजमहल
उनमें से एक है जिसे कि नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था क्योंकि उसके जलहरी
को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। जब से शाहज़हां ने उस पर कब्ज़ा
किया, उसकी पवित्रता और हिंदत्ु व समाप्त हो गई।
15. वास्तुकला की विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में 'तेज-लिंग'
का वर्णन आता है । ताजमहल में 'तेज-लिंग' प्रतिष्ठित था इसीलिये उसका नाम
तेजोमहालय पड़ा था।
16. आगरा नगर, जहां पर ताजमहल स्थित है , एक प्राचीन शिव पूजा केन्द्र है । यहां के
धर्मावलम्बी निवासियों की सदियों से दिन में पाँच शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन
करने की परं परा रही है विशेषकर श्रावन के महीने में । पिछले कुछ सदियों से यहां के
भक्तजनों को बालकेश्वर, पथ्
ृ वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल चार ही
शिव मंदिरों में दर्शन-पूजन उपलब्ध हो पा रही है । वे अपने पाँचवे शिव मंदिर को खो
चक
ु े हैं जहां जाकर उनके पर्व
ू ज पज
ू ा पाठ किया करते थे। स्पष्टतः वह पाँचवाँ शिवमंदिर
आगरा के इष्टदे व नागराज अग्रेश्वर महादे व नागनाथेश्वर ही है जो कि तेजोमहालय मंदिर
उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।
प्रामाणिक दस्तावेज
19. ताजमहल के बाहर परु ातत्व विभाग में रखे हुये शिलालेख में वर्णित है कि शाहज़हां
ने अपनी बेग़म मुमताज़ महल को दफ़नाने के लिये एक विशाल इमारत बनवाया जिसे
बनाने में सन ् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का
नमन
ू ा है । पहली बात तो यह है कि शिलालेख उचित व अधिकारिक स्थान पर नहीं है ।
दस
ू री यह कि महिला का नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था न कि मुमताज़ महल। तीसरी,
इमारत के 22 वर्ष में बनने की बात सारे मुस्लिम वर्णनों को ताक में रख कर टॉवेर्नियर
नामक एक फ्रांसीसी अभ्यागत के अविश्वसनीय रुक्के से येन केन प्रकारे ण ले लिया गया
है जो कि एक बेतक
ु ी बात है ।
20. शाहजादा औरं गज़ेब के द्वारा अपने पिता को लिखी गई चिट्ठी को कम से कम तीन
महत्वपर्ण
ू ऐतिहासिक वत
ृ ान्तों में दर्ज किया गया है , जिनके नाम 'आदाब-ए-आलमगिरी',
'यादगारनामा' और 'मरु
ु क्का-ए-अकब़राबादी' (1931 में सैद अहमद, आगरा द्वारा संपादित,
पष्ृ ठ 43, टीका 2) हैं। उस चिट्ठी में सन ् 1662 में औरं गज़ेब ने खुद लिखा है कि मुमताज़
के सातमंजिला लोकप्रिय दफ़न स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो
चक
ु ी हैं कि उनमें पानी चू रहा है और गम्
ु बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है ।
इसी कारण से औरं गज़ेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिये फरमान
जारी किया और बादशाह से सिफ़ारिश की कि बाद में और भी विस्तारपूर्वक मरम्मत
कार्य करवाया जाये। यह इस बात का साक्ष्य है कि शाहज़हाँ के समय में ही ताज प्रांगण
इतना परु ाना हो चक
ु ा था कि तरु ं त मरम्मत करवाने की जरूरत थी।
21. जयपुर के भूतपूर्व महाराजा ने अपनी दै नंदिनी में 18 दिसंबर, 1633 को जारी किये
गये शाहज़हां के ताज भवन समह
ू को मांगने के बाबत दो फ़रमानों (नये क्रमांक आर.
176 और 177) के विषय में लिख रखा है । यह बात जयपुर के उस समय के शासक के
लिये घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया।
22. राजस्थान प्रदे श के बीकानेर स्थित लेखागार में शाहज़हां के द्वारा (मुमताज़ के
मकबरे तथा कुरान की आयतें खद
ु वाने के लिये) मरकाना के खदानों से संगमरमर पत्थर
और उन पत्थरों को तराशने वाले शिल्पी भिजवाने बाबत जयपुर के शासक जयसिंह को
जारी किये गये तीन फ़रमान संरक्षित हैं। स्पष्टतः शाहज़हां के ताजमहल पर जबरदस्ती
कब्ज़ा कर लेने के कारण जयसिंह इतने कुपित थे कि उन्होंने शाहज़हां के फरमान को
नकारते हुये संगमरमर पत्थर तथा (मुमताज़ के मकब़रे के ढोंग पर कुरान की आयतें
खोदने का अपवित्र काम करने के लिये) शिल्पी दे ने के लिये इंकार कर दिया। जयसिंह ने
शाहज़हां की मांगों को अपमानजनक और अत्याचारयुक्त समझा। और इसीलिये पत्थर
दे ने के लिये मना कर दिया साथ ही शिल्पियों को सरु क्षित स्थानों में छुपा दिया।
23. शाहज़हां ने पत्थर और शिल्पियों की मांग वाले ये तीनों फ़रमान मुमताज़ की मौत
के बाद के दो वर्षों में जारी किया था। यदि सचमच
ु में शाहज़हां ने ताजमहल को 22
साल की अवधि में बनवाया होता तो पत्थरों और शिल्पियों की आवश्यकता मुमताज़ की
मत्ृ यु के 15-20 वर्ष बाद ही पड़ी होती।
25. टॉवेर्नियर, जो कि एक फ्रांसीसी जौहरी था, ने अपने यात्रा संस्मरण में उल्लेख किया
है कि शाहज़हां ने जानबूझ कर मुमताज़ को 'ताज-ए-मकान', जहाँ पर विदे शी लोग आया
करते थे जैसे कि आज भी आते हैं, के पास दफ़नाया था ताकि पूरे संसार में उसकी
प्रशंसा हो। वह आगे और भी लिखता है कि केवल चबूतरा बनाने में पूरी इमारत बनाने
से अधिक खर्च हुआ था। शाहज़हां ने केवल लूटे गये तेजोमहालय के केवल दो मंजिलों में
स्थित शिवलिंगों तथा अन्य दे वी दे वता की मर्ति
ू यों के तोड़फोड़ करने, उस स्थान को कब्र
का रूप दे ने और वहाँ के महराबों तथा दीवारों पर कुरान की आयतें खुदवाने के लिये ही
खर्च किया था। मंदिर को अपवित्र करने, मूर्तियों को तोड़फोड़ कर छुपाने और मकब़रे का
कपट रूप दे ने में ही उसे 22 वर्ष लगे थे।
26. एक अंग्रेज अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन ् 1632 में (अर्थात ् मुमताज की मौत को जब
केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान दे ने वाले
स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गम्
ु बद, वाटिकाओं तथा बाजारों
का जिक्र आया है । इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय स्थान होने की पष्टि
ु करते हैं।
संस्कृत शिलालेख
अनप
ु स्थित गजप्रतिमाएँ
31. ताज के निर्माण के अनेक वर्षों बाद शाहज़हां ने इसके संस्कृत शिलालेखों व दे वी-
दे वताओं की प्रतिमाओं तथा दो हाथियों की दो विशाल प्रस्तर प्रतिमाओं के साथ बुरी तरह
तोड़फोड़ करके वहाँ कुरान की आयतों को लिखवा कर ताज को विकृत कर दिया, हाथियों
की इन दो प्रतिमाओं के सूंड आपस में स्वागतद्वार के रूप में जुड़े हुये थे, जहाँ पर
दर्शक आजकल प्रवेश की टिकट प्राप्त करते हैं वहीं ये प्रतिमाएँ स्थित थीं। थॉमस
ट्विनिंग नामक एक अंग्रेज (अपनी पस्
ु तक "Travels in India A Hundred Years ago" के
पष्ृ ठ 191 में ) लिखता है , "सन ् 1794 के नवम्बर माह में मैं ताज-ए-महल और उससे लगे
हुये अन्य भवनों को घेरने वाली ऊँची दीवार के पास पहुँचा। वहाँ से मैंने पालकी ली
और..... बीचोबीच बनी हुई एक सुंदर दरवाजे जिसे कि गजद्वार ('COURT OF
ELEPHANTS') कहा जाता था की ओर जाने वाली छोटे कदमों वाली सीढ़ियों पर चढ़ा।"
32. ताजमहल में कुरान की 14 आयतों को काले अक्षरों में अस्पष्ट रूप में खद
ु वाया गया
है किंतु इस इस्लाम के इस अधिलेखन में ताज पर शाहज़हां के मालिकाना ह़क होने के
बाबत दरू दरू तक लेशमात्र भी कोई संकेत नहीं है । यदि शाहज़हां ही ताज का निर्माता
होता तो कुरान की आयतों के आरं भ में ही उसके निर्माण के विषय में अवश्य ही
जानकारी दिया होता।
33. शाहज़हां ने शुभ्र ताज के निर्माण के कई वर्षों बाद उस पर काले अक्षर बनवाकर
केवल उसे विकृत ही किया है ऐसा उन अक्षरों को खोदने वाले अमानत ख़ान शिराज़ी ने
खुद ही उसी इमारत के एक शिलालेख में लिखा है । कुरान के उन आयतों के अक्षरों को
ध्यान से दे खने से पता चलता है कि उन्हें एक प्राचीन शिव मंदिर के पत्थरों के टुकड़ों से
बनाया गया है ।
कार्बन 14 जाँच
वास्तुशास्त्रीय तथ्य
35. ई.बी. हॉवेल, श्रीमती केनोयर और सर डब्ल.ू डब्ल.ू हं टर जैसे पश्चिम के जाने माने
वास्तुशास्त्री, जिन्हें कि अपने विषय पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है , ने ताजमहल के अभिलेखों
का अध्ययन करके यह राय दी है कि ताजमहल हिंद ू मंदिरों जैसा भवन है । हॉवेल ने
तर्क दिया है कि जावा दे श के चांदी सेवा मंदिर का ground plan ताज के समान है ।
36. चार छोटे छोटे सजावटी गुम्बदों के मध्य एक बड़ा मुख्य गुम्बद होना हिंद ू मंदिरों की
सार्वभौमिक विशेषता है ।
37. चार कोणों में चार स्तम्भ बनाना हिंद ू विशेषता रही है । इन चार स्तम्भों से दिन में
चौकसी का कार्य होता था और रात्रि में प्रकाश स्तम्भ का कार्य लिया जाता था। ये
स्तम्भ भवन के पवित्र अधिसीमाओं का निर्धारण का भी करती थीं। हिंद ू विवाह वेदी और
भगवान सत्यनारायण के पज
ू ा वेदी में भी चारों कोणों में इसी प्रकार के चार खम्भे बनाये
जाते हैं।
असंगतियाँ
40. शभ्र
ु ताज के पर्व
ू तथा पश्चिम में बने दोनों भवनों के ढांचे, माप और आकृति में एक
समान हैं और आज तक इस्लाम की परं परानुसार पूर्वी भवन को सामुदायिक कक्ष
(community hall) बताया जाता है जबकि पश्चिमी भवन पर मस्ज़िद होने का दावा
किया जाता है । दो अलग-अलग उद्देश्य वाले भवन एक समान कैसे हो सकते हैं? इससे
सिद्ध होता है कि ताज पर शाहज़हां के आधिपत्य हो जाने के बाद पश्चिमी भवन को
मस्ज़िद के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन
को मस्ज़िद बताया जाने लगा। वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन
थे।
42. ताजमहल में मुमताज़ महल के नकली कब्र वाले कमरे की दीवालों पर बनी
पच्चीकारी में फूल-पत्ती, शंख, घोंघा तथा हिंद ू अक्षर ॐ चित्रित है । कमरे में बनी
संगमरमर की अष्टकोणीय जाली के ऊपरी कठघरे में गुलाबी रं ग के कमल फूलों की
खुदाई की गई है । कमल, शंख और ॐ के हिंद ू दे वी-दे वताओं के साथ संयुक्त होने के
कारण उनको हिंद ू मंदिरों में मल
ू भाव के रूप में प्रयक्
ु त किया जाता है ।
43. जहाँ पर आज मुमताज़ का कब्र बना हुआ है वहाँ पहले तेज लिंग हुआ करता था जो
कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक है । इसके चारों ओर परिक्रमा करने के लिये पाँच
गलियारे हैं। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली के चारों ओर घम
ू कर या कमरे से लगे
विभिन्न विशाल कक्षों में घूम कर और बाहरी चबूतरे में भी घूम कर परिक्रमा किया जा
सकता है । हिंद ू रिवाजों के अनुसार परिक्रमा गलियारों में दे वता के दर्शन हे तु झरोखे
बनाये जाते हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था इन गलियारों में भी है ।
44. ताज के इस पवित्र स्थान में चांदी के दरवाजे और सोने के कठघरे थे जैसा कि हिंद ू
मंदिरों में होता है । संगमरमर के अष्टकोणीय जाली में मोती और रत्नों की लड़ियाँ भी
लटकती थीं। ये इन ही वस्तओ
ु ं की लालच थी जिसने शाहज़हां को अपने असहाय
मातहत राजा जयसिंह से ताज को लूट लेने के लिये प्रेरित किया था।
45. पीटर मुंडी, जो कि एक अंग्रेज था, ने सन ् में , मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर
ही चांदी के दरवाजे, सोने के कठघरे तथा मोती और रत्नों की लड़ियों को दे खने का जिक्र
किया है । यदि ताज का निर्माणकाल 22 वर्षों का होता तो पीटर मुंडी मुमताज़ की मौत के
एक वर्ष के भीतर ही इन बहुमल्
ू य वस्तओ
ु ं को कदापि न दे ख पाया होता। ऐसी बहुमल्
ू य
सजावट के सामान भवन के निर्माण के बाद और उसके उपयोग में आने के पूर्व ही
लगाये जाते हैं। ये इस बात का इशारा है कि मुमताज़ का कब्र बहुमूल्य सजावट वाले
शिव लिंग वाले स्थान पर कपट रूप से बनाया गया।
46. मुमताज़ के कब्र वाले कक्ष फर्श के संगमरमर के पत्थरों में छोटे छोटे रिक्त स्थान
दे खे जा सकते हैं। ये स्थान चुगली करते हैं कि बहुमूल्य सजावट के सामान के विलोप
हो जाने के कारण वे रिक्त हो गये।
47. मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटकती है जिसमें अब एक कंदील लटका दिया
है । ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग पर बद
ंू बंद
ू
पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था।
48. ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि हिंद ू परं परा के अनुसार शरदपूर्णिमा की
रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बंद
ू टपके। इस पानी के टपकने को इस्लाम
धारणा का रूप दे कर शाहज़हां के प्रेमाश्रु बताया जाने लगा।
मकब़रे में इतना परिश्रम करके बहुमंजिला कुआँ बनाना बेमानी है । इतना विशाल दीर्घाकार कुआँ किसी कब्र के लिये अनावश्यक
भी है।
50. यदि शाहज़हां ने सचमुच ही ताजमहल जैसा आश्चर्यजनक मकब़रा होता तो उसके तामझाम का विवरण और मुमताज़ के
दफ़न की तारीख इतिहास में अवश्य ही दर्ज हुई होती। परं तु दफ़न की तारीख कभी भी दर्ज नहीं की गई। इतिहास में इस तरह
का ब्यौरा न होना ही ताजमहल की झूठी कहानी का पोल खोल दे ती है ।
51. यहाँ तक कि मुमताज़ की मत्ृ यु किस वर्ष हुई यह भी अज्ञात है । विभिन्न लोगों ने सन ् 1629,1630, 1631 या 1632 में
मम
ु ताज़ की मौत होने का अनम
ु ान लगाया है । यदि मम
ु ताज़ का इतना उत्कृष्ट दफ़न हुआ होता, जितना कि दावा किया जाता
है , तो उसके मौत की तारीख अनुमान का विषय कदापि न होता। 5000 औरतों वाली हरम में किस औरत की मौत कब हुई
इसका हिसाब रखना एक कठिन कार्य है । स्पष्टतः मुमताज़ की मौत की तारीख़ महत्वहीन थी इसीलिये उस पर ध्यान नहीं दिया
गया। फिर उसके दफ़न के लिये ताज किसने बनवाया?
आधारहीन प्रेमकथाएँ
52. शाहज़हां और मुमताज़ के प्रेम की कहानियाँ मूर्खतापूर्ण तथा कपटजाल हैं। न तो इन कहानियों का कोई ऐतिहासिक आधार
है न ही उनके कल्पित प्रेम प्रसंग पर कोई पस्
ु तक ही लिखी गई है। ताज के शाहज़हां के द्वारा अधिग्रहण के बाद उसके
आधिपत्य दर्शाने के लिये ही इन कहानियों को गढ़ लिया गया।
कीमत
53. शाहज़हां के शाही और दरबारी दस्तावेज़ों में ताज की कीमत का कहीं उल्लेख नहीं है क्योंकि शाहज़हां ने कभी ताजमहल को
बनवाया ही नहीं। इसी कारण से नादान लेखकों के द्वारा ताज की कीमत 40 लाख से 9 करोड़ 17 लाख तक होने का काल्पनिक
अनुमान लगाया जाता है ।
निर्माणकाल
54. इसी प्रकार से ताज का निर्माणकाल 10 से 22 वर्ष तक के होने का अनुमान लगाया जाता है । यदि शाहज़हां ने ताजमहल को
बनवाया होता तो उसके निर्माणकाल के विषय में अनुमान लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि उसकी प्रविष्टि शाही
दस्तावेज़ों में अवश्य ही की गई होती।
भवननिर्माणशास्त्री
55. ताज भवन के भवननिर्माणशास्त्री (designer, architect) के विषय में भी अनेक नाम लिये जाते हैं जैसे कि ईसा इफेंडी जो
कि एक तर्क
ु था, अहमद़ में हदी या एक फ्रांसीसी, आस्टीन डी बोरडीक्स या गेरोनिमो वेरेनियो जो कि एक इटालियन था, या
शाहज़हां स्वयं।
दस्तावेज़ नदारद
56. ऐसा समझा जाता है कि शाहज़हां के काल में ताजमहल को बनाने के लिये 20 हजार लोगों ने 22 साल तक काम किया।
यदि यह सच है तो ताजमहल का नक्शा (design drawings), मजदरू ों की हाजिरी रजिस्टर (labour muster rolls), दै निक खर्च
(daily expenditure sheets), भवन निर्माण सामग्रियों के खरीदी के बिल और रसीद (bills and receipts of material
ordered) आदि दस्तावेज़ शाही अभिलेखागार में उपलब्ध होते। वहाँ पर इस प्रकार के कागज का एक टुकड़ा भी नहीं है ।
57. अतः ताजमहल को शाहज़हाँ ने बनवाया और उस पर उसका व्यक्तिगत तथा सांप्रदायिक अधिकार था जैसे ढोंग को समूचे
संसार को मानने के लिये मजबूर करने की जिम्मेदारी चापलूस दरबारी, भयंकर भूल करने वाले इतिहासकार, अंधे
भवननिर्माणशस्त्री, कल्पित कथा लेखक, मर्ख
ू कवि, लापरवाह पर्यटन अधिकारी और भटके हुये पथप्रदर्शकों (guides) पर है ।
58. शाहज़हां के समय में ताज के वाटिकाओं के विषय में किये गये वर्णनों में केतकी, जै, जूही, चम्पा, मौलश्री, हारश्रिंगार और
बेल का जिक्र आता है । ये वे ही पौधे हैं जिनके फूलों या पत्तियों का उपयोग हिंद ू दे वी-दे वताओं की पूजा-अर्चना में होता है ।
भगवान शिव की पूजा में बेल पत्तियों का विशेष प्रयोग होता है । किसी कब्रगाह में केवल छायादार वक्ष
ृ लगाये जाते हैं क्योंकि
श्मशान के पेड़ पौधों के फूल और फल का प्रयोग को वीभत्स मानते हुये मानव अंतरात्मा स्वीकार नहीं करती। ताज के
वाटिकाओं में बेल तथा अन्य फूलों के पौधों की उपस्थिति सिद्ध करती है कि शाहज़हां के हथियाने के पहले ताज एक शिव मंदिर
हुआ करता था।
60. मोहम्मद पैगम्बर ने निर्देश दिये हैं कि कब्रगाह में केवल एक कब्र होना चाहिये और उसे कम से कम एक पत्थर से चिन्हित
करना चाहिये। ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर के मंज़िल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को
मम
ु ताज़ का बताया जाता है , यह मोहम्मद पैगम्बर के निर्देश के निन्दनीय अवहे लना है । वास्तव में शाहज़हां को इन दोनों
स्थानों के शिवलिंगों को दबाने के लिये दो कब्र बनवाने पड़े थे। शिव मंदिर में , एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में , दो शिव
लिंग स्थापित करने का हिंदओ
ु ं में रिवाज था जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर, जो कि अहिल्याबाई
के द्वारा बनवाये गये हैं, में दे खा जा सकता है ।
61. ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं जो कि हिंद ू भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि
चतुर्मुखी भवन कहा जाता है ।
हिंद ू गम्
ु बज
64. ताजमहल दक्षिणमुखी भवन है । यदि ताज का सम्बंध इस्लाम से होता तो उसका मुख पश्चिम की ओर होता।
65. महल को कब्र का रूप दे ने की गलती के परिणामस्वरूप एक व्यापक भ्रामक स्थिति उत्पन्न हुई है । इस्लाम के आक्रमण
स्वरूप, जिस किसी दे श में वे गये वहाँ के, विजित भवनों में लाश दफन करके उन्हें कब्र का रूप दे दिया गया। अतः दिमाग से
इस भ्रम को निकाल दे ना चाहिये कि वे विजित भवन कब्र के ऊपर बनाये गये हैं जैसे कि लाश दफ़न करने के बाद मिट्टी का
टीला बना दिया जाता है । ताजमहल का प्रकरण भी इसी सच्चाई का उदाहरण है । (भले ही केवल तर्क करने के लिये) इस बात
को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज़ की लाश दफ़नाई गई न कि लाश दफ़नाने के बाद
उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया।
66. ताज एक सातमंजिला भवन है । शाहज़ादा औरं गज़ेब के शाहज़हां को लिखे पत्र में भी इस बात का विवरण है । भवन के चार
मंजिल संगमरमर पत्थरों से बने हैं जिनमें चबूतरा, चबूतरे के ऊपर विशाल वत
ृ ीय मुख्य कक्ष और तहखाने का कक्ष शामिल है ।
मध्य में दो मंजिलें और हैं जिनमें 12 से 15 विशाल कक्ष हैं। संगमरमर के इन चार मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बने दो और
मंजिलें हैं जो कि पिछवाड़े में नदी तट तक चली जाती हैं। सातवीं मंजिल अवश्य ही नदी तट से लगी भूमि के नीचे होनी चाहिये
क्योंकि सभी प्राचीन हिंद ू भवनों में भूमिगत मंजिल हुआ करती है ।
67. नदी तट से भाग में संगमरमर के नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहज़हां ने चुनवा
दिया है। इन कमरों को जिन्हें कि शाहज़हां ने अतिगोपनीय बना दिया है भारत के पुरातत्व विभाग के द्वारा तालों में बंद रखा
जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता है । इन 22 कमरों के दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी
भी प्राचीन हिंद ू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है । गलियारे के दोनों सिरों में एक
एक दरवाजे बने हुये हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारा से चुनवा दिया गया है कि वे
दीवाल जैसे प्रतीत हों।
68. स्पष्तः मूल रूप से शाहज़हां के द्वारा चुनवाये गये इन दरवाजों को कई बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है । सन ्
1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाये हुये दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झाँक कर दे खा था। उसके भीतर एक वह
ृ त
कक्ष (huge hall) और वहाँ के दृश्य कोदे ख कर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत सा हो गया। वहाँ बीचोबीच भगवान
शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारे मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि
वहाँ पर संस्कृत के शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिये कि ताजमहल हिंद ू चित्र, संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख,
सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तओ
ु ं जैसे कौन कौन से साक्ष्य छुपे हुये हैं उसके के सातों मंजिलों को खोल कर उसकी साफ
सफाई करने की नितांत आवश्यकता है ।
69. अध्ययन से पता चलता है कि इन बंद कमरों के साथ ही साथ ताज के चौड़ी दीवारों के बीच में भी हिंद ू चित्रों, मूर्तियों आदि
छिपे हुये हैं। सन ् 1959 से 1962 के अंतराल में श्री एस.आर. राव, जब वे आगरा परु ातत्व विभाग के सप
ु रिन्टे न्डेंट हुआ करते थे,
का ध्यान ताजमहल के मध्यवर्तीय अष्टकोणीय कक्ष के दीवार में एक चौड़ी दरार पर गया। उस दरार का पूरी तरह से अध्ययन
करने के लिये जब दीवार की एक परत उखाड़ी गई तो संगमरमर की दो या तीन प्रतिमाएँ वहाँ से निकल कर गिर पड़ीं। इस
बात को खामोशी के साथ छुपा दिया गया और प्रतिमाओं को फिर से वहीं दफ़न कर दिया गया जहाँ शाहज़हां के आदे श से पहले
दफ़न की गई थीं। इस बात की पुष्टि अनेक अन्य स्रोतों से हो चुकी है । जिन दिनों मैंने ताज के पूर्ववर्ती काल के विषय में
खोजकार्य आरं भ किया उन्हीं दिनों मुझे इस बात की जानकारी मिली थी जो कि अब तक एक भूला बिसरा रहस्य बन कर रह
गया है। ताज के मंदिर होने के प्रमाण में इससे अच्छा साक्ष्य और क्या हो सकता है ? उन दे व प्रतिमाओं को जो शाहज़हां के
द्वारा ताज को हथियाये जाने से पहले उसमें प्रतिष्ठित थे ताज की दीवारें और चुनवाये हुये कमरे आज भी छुपाये हुये हैं।
70. स्पष्टतः के केन्द्रीय भवन का इतिहास अत्यंत पेचीदा प्रतीत होता है । शायद महमद
ू गज़नी और उसके बाद के मस्लि
ु म
प्रत्येक आक्रमणकारी ने लूट कर अपवित्र किया है परं तु हिंदओ
ु ं का इस पर पुनर्विजय के बाद पुनः भगवान शिव की प्रतिष्ठा
करके इसकी पवित्रता को फिर से बरकरार कर दिया जाता था। शाहज़हां अंतिम मुसलमान था जिसने तेजोमहालय उर्फ ताजमहल
के पवित्रता को भ्रष्ट किया।
71. विंसट
ें स्मिथ अपनी पुस्तक 'Akbar the Great Moghul' में लिखते हैं, "बाबर ने सन ् 1630 आगरा के वाटिका वाले महल में
अपने उपद्रवी जीवन से मुक्ति पाई"। वाटिका वाला वो महल यही ताजमहल था।
73. बाबर स्वयं अपने संस्मरण में इब्राहिम लोधी के कब्जे में एक मध्यवर्ती अष्टकोणीय चारों कोणों में चार खम्भों वाली इमारत
का जिक्र करता है जो कि ताज ही था। ये सारे संदर्भ ताज के शाहज़हां से कम से कम सौ साल पहले का होने का संकेत दे ते
हैं।
74. ताजमहल की सीमाएँ चारों ओर कई सौ गज की दरू ी में फैली हुई है । नदी के पार ताज से जुड़ी अन्य भवनों, स्नान के घाटों
और नौका घाटों के अवशेष हैं। विक्टोरिया गार्डन के बाहरी हिस्से में एक लंबी, सर्पीली, लताच्छादित प्राचीन दीवार है जो कि एक
लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय स्तंभ तक जाती है । इतने वस्तत
ृ भूभाग को कब्रिस्तान का रूप दे दिया गया।
77. शाहज़हां ने मम
ु ताज़ से निक़ाह के पहले और बाद में भी कई और औरतों से निक़ाह किया था, अतः मम
ु ताज़ को कोई ह़क
नहीँ था कि उसके लिये आश्चर्यजनक कब्र बनवाया जावे।
78. मम
ु ताज़ का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था और उसमें ऐसा कोई विशेष योग्यता भी नहीं थी कि उसके लिये ताम-
झाम वाला कब्र बनवाया जावे।
79. शाहज़हां तो केवल एक मौका ढूंढ रहा था कि कैसे अपने क्रूर सेना के साथ मंदिर पर हमला करके वहाँ की सारी दौलत
हथिया ले, मुमताज़ को दफ़नाना तो एक बहाना मात्र था। इस बात की पुष्टि बादशाहनामा में की गई इस प्रविष्टि से होती है कि
मुमताज़ की लाश को बुरहानपुर के कब्र से निकाल कर आगरा लाया गया और 'अगले साल' दफ़नाया गया। बादशाहनामा जैसे
अधिकारिक दस्तावेज़ में सही तारीख के स्थान पर 'अगले साल' लिखने से ही जाहिर होता है कि शाहज़हां दफ़न से सम्बंधित
विवरण को छुपाना चाहता था।
80. विचार करने योग्य बात है कि जिस शाहज़हां ने मुमताज़ के जीवनकाल में उसके लिये एक भी भवन नहीं बनवाया, मर जाने
के बाद एक लाश के लिये आश्चर्यमय कब्र कभी नहीं बनवा सकता।
81. एक विचारणीय बात यह भी है कि शाहज़हां के बादशाह बनने के तो या तीन साल बाद ही मुमताज़ की मौत हो गई। तो
क्या शाहज़हां ने इन दो तीन साल के छोटे समय में ही इतना अधिक धन संचय कर लिया कि एक कब्र बनवाने में उसे उड़ा
सके?
83. शाहज़हां एक कृपण सूदखोर बादशाह था। अपने सारे प्रतिद्वंदियों का कत्ल करके उसने राज सिंहासन प्राप्त किया था।
जितना खर्चीला उसे बताया जाता है उतना वो हो ही नहीं सकता था।
84. मम
ु ताज़ की मौत से खिन्न शाहज़हां ने एकाएक ताज बनवाने का निश्चय कर लिया। ये बात एक मनोवैज्ञानिक असंगति है ।
दख
ु एक ऐसी संवेदना है जो इंसान को अयोग्य और अकर्मण्य बनाती है ।
87. ताजमहल के ऊपरी मंजिल के गौरवमय कक्षों से कई जगह से संगमरमर के पत्थर उखाड़ लिये गये थे जिनका उपयोग
मुमताज़ के नकली कब्रों को बनाने के लिये किया गया। इसी कारण से ताज के भत
ू ल के फर्श और दीवारों में लगे मल्
ू यवान
संगमरमर के पत्थरों की तुलना में ऊपरी तल के कक्ष भद्दे, कुरूप और लूट का शिकार बने नजर आते हैं। चँ कि
ू ताज के ऊपरी
तलों के कक्षों में दर्शकों का प्रवेश वर्जित है , शाहज़हां के द्वारा की गई ये बरबादी एक सुरक्षित रहस्य बन कर रह गई है । ऐसा
कोई कारण नहीं है कि मुगलों के शासन काल की समाप्ति के 200 वर्षों से भी अधिक समय व्यतीत हो जाने के बाद भी
शाहज़हां के द्वारा ताज के ऊपरी कक्षों से संगमरमर की इस लट
ू को आज भी छुपाये रखा जावे।
88. फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में गैर मस्लि
ु मों को जाने की इजाजत नहीं थी क्योंकि
वहाँ चौंधिया दे ने वाली वस्तुएँ थीं। यदि वे वस्तुएँ शाहज़हां ने खुद ही रखवाये होते तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव
के साथ करता। परं तु वे तो लट
ू ी हुई वस्तुएँ थीं और शाहज़हां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था इसीलिये वह नहीं चाहता
था कि कोई उन्हें दे खे।
89. ताज की सुरक्षा के लिये उसके चारों ओर खाई खोद कर की गई है । किलों, मंदिरों तथा भवनों की सुरक्षा के लिये खाई
बनाना हिंदओ
ु ं में सामान्य सुरक्षा व्यवस्था रही है ।
90. पीटर मुंडी ने लिखा है कि शाहज़हां ने उन खाइयों को पाटने के लिये हजारों मजदरू लगवाये थे। यह भी ताज के शाहज़हां
के समय से पहले के होने का एक लिखित प्रमाण है ।
91. नदी के पिछवाड़े में हिंद ू बस्तियाँ, बहुत से हिंद ू प्राचीन घाट और प्राचीन हिंद ू शव-दाह गह
ृ है । यदि शाहज़हाँ ने ताज को
बनवाया होता तो इन सबको नष्ट कर दिया गया होता।
93. जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रं ग में पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊँची गुणवत्ता वाले
शुभ्र रं ग के हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाये गये हैं।
94. कुछ कल्पनाशील इतिहासकारों तो ने ताज के भवननिर्माणशास्त्री के रूप में कुछ काल्पनिक नाम सझ
ु ाये हैं पर और ही
अधिक कल्पनाशील इतिहासकारों ने तो स्वयं शाहज़हां को ताज के भवननिर्माणशास्त्री होने का श्रेय दे दिया है जैसे कि वह
सर्वगुणसम्पन्न विद्वान एवं कला का ज्ञाता था। ऐसे ही इतिहासकारों ने अपने इतिहास के अल्पज्ञान की वजह से इतिहास के
साथ ही विश्वासघात किया है वरना शाहज़हां तो एक क्रूर, निरं कुश, औरतखोर और नशेड़ी व्यक्ति था।
95. और भी कई भ्रमित करने वाली लुभावनी बातें बना दी गई हैं। कुछ लोग विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि शाहज़हां
ने पूरे संसार के सर्वश्रेष्ठ भवननिर्माणशास्त्रियों से संपर्क करने के बाद उनमें से एक को चुना था। तो कुछ लोगों का यग विश्वास
है कि उसने अपने ही एक भवननिर्माणशास्त्री को चुना था। यदि यह बातें सच होती तो शाहज़हां के शाही दस्तावेजों में इमारत
के नक्शों का पुलिदं ा मिला होता। परं तु वहाँ तो नक्शे का एक टुकड़ा भी नहीं है। नक्शों का न मिलना भी इस बात का पक्का
सबूत है कि ताज को शाहज़हां ने नहीं बनवाया।
96. ताजमहल बड़े बड़े खंडहरों से घिरा हुआ है जो कि इस बात की ओर इशारा करती है कि वहाँ पर अनेक बार युद्ध हुये थे।
99. संपूर्ण ताज में 400 से 500 कमरे हैं। कब्र जैसे स्थान में इतने सारे रहाइशी कमरों का होना समझ के बाहर की बात है।
100. ताज के पड़ोस के ताजगंज नामक नगरीय क्षेत्र का स्थूल सुरक्षा दीवार ताजमहल से लगा हुआ है । ये इस बात का स्पष्ट
निशानी है कि तेजोमहालय नगरीय क्षेत्र का ही एक हिस्सा था। ताजगंज से एक सड़क सीधे ताजमहल तक आता है । ताजगंज
द्वार ताजमहल के द्वार तथा उसके लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय वाटिका के ठीक सीध में है ।
102. आगरे के लाल किले के एक बरामदे में एक छोटा सा शीशा लगा हुआ है जिससे परू ा ताजमहल प्रतिबिंबित होता है । ऐसा
कहा जाता है कि शाहज़हां ने अपने जीवन के अंतिम आठ साल एक कैदी के रूप में इसी शीशे से ताजमहल को दे खते हुये और
मुमताज़ के नाम से आहें भरते हुये बिताया था। इस कथन में अनेक झूठ का संमिश्रण है । सबसे पहले तो यह कि वद्ध
ृ शाहज़हां
को उसके बेटे औरं गज़ेब ने लाल किले के तहखाने के भीतर कैद किया था न कि सजे-धजे और चारों ओर से खल
ु े ऊपर के
मंजिल के बरामदे में। दस
ू रा यह कि उस छोटे से शीशे को सन ् 1930 में इंशा अल्लाह ख़ान नामक पुरातत्व विभाग के एक
चपरासी ने लगाया था केवल दर्शकों को यह दिखाने के लिये कि पुराने समय में लोग कैसे पूरे तेजोमहालय को एक छोटे से
शीशे के टुकड़े में दे ख लिया करते थे। तीसरे , वद्ध
ृ शाहज़हाँ, जिसके जोड़ों में दर्द और आँखों में मोतियाबिंद था घंटो गर्दन उठाये
हुये कमजोर नजरों से उस शीशे में झाँकते रहने के काबिल ही नहीं था जब लाल किले से ताजमहल सीधे ही पूरा का पूरा
दिखाई दे ता है तो छोटे से शीशे से केवल उसकी परछाईं को दे खने की आवश्कता भी नहीं है । पर हमारी भोली-भाली जनता
इतनी नादान है कि धूर्त पथप्रदर्शकों (guides) की इन अविश्वासपूर्ण और विवेकहीन बातों को आसानी के साथ पचा लेती है ।
104. ताजमहल पर शाहज़हां के स्वामित्व तथा शाहज़हां और मुमताज़ के अलौकिक प्रेम की कहानी पर विश्वास कर लेने वाले
लोगों को लगता है कि शाहज़हाँ एक सहृदय व्यक्ति था और शाहज़हां तथा मम
ु ताज़ रोम्यो और जूलियट जैसे प्रेमी युगल थे।
परं तु तथ्य बताते हैं कि शाहज़हां एक हृदयहीन, अत्याचारी और क्रूर व्यक्ति था जिसने मम
ु ताज़ के साथ जीवन भर अत्याचार
किये थे।
105. विद्यालयों और महाविद्यालयों में इतिहास की कक्षा में बताया जाता है कि शाहज़हां का काल अमन और शांति का काल
था तथा शाहज़हां ने अनेकों भवनों का निर्माण किया और अनेक सत्कार्य किये जो कि पर्ण
ू तः मनगढ़ं त और कपोल कल्पित हैं।
जैसा कि इस ताजमहल प्रकरण में बताया जा चुका है , शाहज़हां ने कभी भी कोई भवन नहीं बनाया उल्टे बने बनाये भवनों का
नाश ही किया और अपनी सेना की 48 टुकड़ियों की सहायता से लगातार 30 वर्षों तक अत्याचार करता रहा जो कि सिद्ध करता है
कि उसके काल में कभी भी अमन और शांति नहीं रही।
झूठे दस्तावेज़
107. ताज के गम्
ु बज की दे खरे ख करने वाले मस
ु लमानों के पास एक दस्तावेज़ है जिसे के वे "तारीख-ए-ताजमहल" कहते हैं।
इतिहासकार एच.जी. कीन ने उस पर 'वास्तविक न होने की शंका वाला दस्तावेज़' का मुहर लगा दिया है । कीन का कथन एक
रहस्यमय सत्य है क्योंकि हम जानते हैं कि जब शाहज़हां ने ताजमहल को नहीं बनवाया ही नहीं तो किसी भी दस्तावेज़ को जो
कि ताजमहल को बनाने का श्रेय शाहज़हां को दे ता है झूठा ही माना जायेगा।
108. पेशेवर इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता तथा भवनशास्त्रियों के दिमाग में ताज से जुड़े बहुत सारे कुतर्क और चतुराई से भरे झूठे
तर्क या कम से कम भ्रामक विचार भरे हैं। शुरू से ही उनका विश्वास रहा है कि ताज पूरी तरह से मस्लि
ु म भवन है । उन्हें यह
बताने पर कि ताज का कमलाकार होना, चार स्तंभों का होना आदि हिंद ू लक्षण हैं, वे गुणवान लोग इस प्रकार से अपना पक्ष
रखते हैं कि ताज को बनाने वाले कारीगर, कर्मचारी आदि हिंद ू थे और शायद इसीलिये उन्होंने हिंद ू शैली से उसे बनाया। पर
उनका पक्ष गलत है क्योंकि मस्लि
ु म वत
ृ ान्त दावा करता है कि ताज के रूपांकक (designers) बनवाने वाले शासक मुस्लिम थे,
और कारीगर, कर्मचारी इत्यादि लोग मुस्लिम तानाशाही के विरुद्ध अपनी मनमानी कर ही नहीं सकते थे।
किस प्रकार से अलग अलग मुस्लिम शासकों ने दे श के हिंद ू भवनों को मुस्लिम रूप दे कर उन्हें बनवाने का श्रेय स्वयं ले लिया
इस बात का ताज एक आदर्श उदारहरण है ।
आशा है कि संसार भर के लोग जो भारतीय इतिहास का अध्ययन करते हैं जागरूक होंगे और पुरानी झूठी मान्यताओं को
इतिहास के पन्नों से निकाल कर नई खोजों से प्राप्त सत्य को स्थान दें गे।