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गुलज़ार क ऽवे
णयाँ
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४.शोला सा गुज़रता है मेरे
जःम से होकर
+कस लौ से उतारा है खुदावंद ने तुम को
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११.कभी कभी बाजा़र म. यूँ भी हो जाता है
क़मत ठRक थी,जेब म. इतने दाम नहं थे
ु
१७.चूड़ के टकड़े थे,पैर म. चुभते ह खूँ बह िनकला
नंगे पाँव खेल रहा था,लड़का अपने आँगन म.
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१८.चाँद के माथे पर बचपन क चोट के दाग़ नज़र आते ह&
रोड़े , पZथर और गु़ल@ से +दन भर खेला करता था
बहत
ु कहा आवारा उकाओं क संगत ठRक नहं!
ु
टकड़@ ु
टकड़@ म. सभी लोग िमले ह& मुझ को!
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२५. तुVहारे ह@ठ बहत
ु खु़ँक खु़ँक रहते ह&
इUहं लब@ पे कभी ताज़ा शे’र िमलते थे
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