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Devataki Purna Golakar Arati Hi Kyon Utari Jati Hai - (Hindi Article) - Vidhi
Devataki Purna Golakar Arati Hi Kyon Utari Jati Hai - (Hindi Article) - Vidhi
दे वताक पण
ू गोलाकार आरती ह य उतार जाती है ?
सारणी -
उपासकके 7दयम) भितद'पको तेजोमय बनानेका व देवतासे कृपाशीवाद 3हण करनेका सुलभ शुभावसर है `आरती' । सं त;वारा र0चत
आर तयको गानेसे ये उ<े*य न:सं शय सफल होते ह> । कोई कृ त हमारे अंत:करणसे तब तब होती है , जब उसका मह@@व हमारे मनपर
अंAकत हो । इसी उ<े*यसे आरतीके अंतगत /व/वध कृ तयका आधारभूत अCया@मशाDE यहां दे रहे ।
`सूयFदयके समय GHमांडम) देवताओंक" तरं गका आगमन होता है । जीवको इनका Dवागत आरतीके माCयमसे करना चाहए ।
सूयाDतके समय राजसी-तामसी तरं गके उJचाटन हेतु जीवको आरतीके माCयमसे देवताओंक" आराधना करनी चाहए । इससे जीवक"
देहके आस पास सुरLाकवच नमाण होता है ।
३. आरतीक संपण
ू कृत
१. आरतीके पूव तीन बार शं ख बजाएं ।
शं ख बजाना ारं भ करते समय गद न उठाकर, ऊCव दशाक" ओर मन एका3 कर शं ख बजाएं ।
शं ख बजाते समय ऐसा भाव रख) Aक, `ई*वर'य तरं गको जागत
ृ कर रहे ह>' ।
हो सके तो पहले *वाससे छाती भरकर, एक ह' *वासम) शं ख बजाएं ।
शं खको धीमे Dवरम) आरं भ कर, Dवर बढाते जाएं व उसे वह'ंपर छोड द) ।
इस भावसे आरती कर) Aक, `ई*वर @यL मेरे समL ह> व म> उSह) पक
ु ार रहा हूं' ।
अथको Cयानम) रखते हुए आरती कर) ।
अCया@मशाDEक" TिUटसे शVदका योWय उJचारण कर) ।
३. आरती गाते समय ताल' बजाएं । घं ट' मधुर Dवरम) बजाएं व उसका नाद एक लयम) हो । साथम) मं जीरा,
झांझ, हारमो नयम व तबला जै से वा;यका भी तालबY योग कर) ।
४. आरती गाते हुए देवताक" आरती उतार) ।
५. आरती उतारनेपर `कपूरगौरं क_णावतारं ' मं Eका उJचारण करते हुए कपूर-आरती कर) ।
६. कपूर-आरतीके उपरांत देवताओंके नामका जयघोष कर) ।
७. आरती 3हण कर) , अथात ् दोन हथेZलयको bयो तपर रखकर, तदप
ु रांत दाहना हाथ Zसरसे लेकर पीछे गद नतक घुमाएं ।
८. आरती 3हण करनेके उपरांत `@वमेव माता, /पता @वमेव' ाथना बोल) ।
९. ाथनाके उपरांत मं EपुUपांजZल बोल) ।
१०. मं EपUु पांजZलके उपरांत देवताके चरणम) फूल व अLत अपण कर) ।
११. तदप
ु रांत, देवताक" पfर[मा लगाना सु/वधाजनक न हो, तो एक जगह खडे होकर, चार ओर घूमते हुए तीन बार पfर[मा लगाएं ।
१२. पfर[माके प*चात ् देवताको शरणागत भावसे नमDकार कर) व मानस-ाथना कर) ।
१३. त@प*चात ् तीथ ाशन कर, gूमCयपर (उदब@ती अथात ् अगरब@तीक") /वभू त लगाएं ।
३.१ दे वताक पण
ू गोलाकार आरती ह य उतार) ?
`पंचारतीके समय आरतीक" थाल'को पूण गोलाकार घुमाएं । इससे bयो तसे Lे/पत साि@@वक तरं ग) गोलाकार पY तसे ग तमान
होती ह> । आरती गानेवाले जीवके चार ओर इन तरं गका कवच नमाण होता है । इस कवचको `तरं ग कवच' कहते ह> । जीवका ई*वरके
त भाव िजतना अ0धक होगा, उतना ह' यह कवच अ0धक समयतक बना रहेगा । इससे जीवके देहक" साि@@वकताम) व/ृ Y होती है
और वह GHमांडक" ई*वर'य तरं गको अ0धक माEाम) 3हण कर सकता है ।
`उ;घोष' यानी जीवक" नाZभसे नकल' आ@त पुकार । सं पूण आरतीसे जो साCय नह'ं होता, वह एक आ@त भावसे Aकए जयघोषसे
साCय हो जाता है ।
३.३ /व0धय
ु त आरती 3हण करने का अथ या है ?
देवताओंक" आरती उतारनेके प*चात ् दोन हथेZलयको द'पक" bयो तपर कुछ Lण रखकर उनका Dपश अपने मDतक, कान, नाक,
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Devataki purna golakar arati hi kyon utari jati hai? (Hindi Article) | Vidhi http://www.hindujagruti.org/hinduism/knowledge/article/devataki-purna-...
देवताओंक" आरती उतारनेके प*चात ् दोन हथेZलयको द'पक" bयो तपर कुछ Lण रखकर उनका Dपश अपने मDतक, कान, नाक,
आंख), मुख, छाती, पेट, पेटका नचला भाग, घुटने व पैरपर कर) । इसे `/व0धयुत आरती 3हण करना' कहते ह> ।'
आरतीके उपरांत `@वमेव माता, /पता @वमेव' ाथना कर) इससे साधकका देवता व गु_के त शरणाग तका भाव बढता है
और मं EपUु पांजZलके उJचारण उपरांत देवताके चरणम) फूल व अLत चढाएं ।
आरतीके उपरांत देवताक" पfर[मा लगाएं । सु/वधाजनक न हो, तो एक ह' Dथानपर खडे होकर अपने चार ओर पfर[मा
लगाएं । आरतीके उपरांत वातावरणक" साि@@वकता बढती है । अपने चार ओर पfर[मा लगानेसे वातावरणम) फैल' स@@वतरं ग)
अपने चार ओर गोल घूमने लगती ह> ।
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