The Happiness Project: Or, Why I Spent a Year Trying to Sing in the Morning, Clean My Closets, Fight Right, Read Aristotle, and Generally Have More Fun
कुछ कर गज ु रने की चाह थी ह्म सबमे, शयद हम छूना चाह्ते थे अम्बर को, या अम्बर पर चमकते उस मयंक को, राहुल बनना चाह्ते थे हम अपने कर्म क्षेत्र के, या फ़िर राज करना चाह्ते थे इस दनि ु या पर, शायद हम चुराना चाह्ते थे भाष्कर का तेज। एसा था हमारा बचपन यहां ISM मे, एसे प्रदीप सपने थे हमारे यहा ISM मे। यहाँ वेद मे अंकित मन्त्रों का सा ज्ञान मिला हमे अपने Professors से, कभी दे खा उनका रुद्र रूप, तो कभी ढे र सारा प्यार मिला हमे अपने Professors से। यहाँ हमने बहुत कुछ सीखा और बहुत कुछ सिखाया, हमे रास्ता भले ही पता न हो, दस ू रो को रास्ता जरुर दिखाया। फ़िर तरुण हुआ हमारा बचपन, लावण्य अया जीवन मे, प्रखर हुई हमारी सोच, अभिनव हुए हमारे सपने, कुछ पहले से थे अपने कुछ नये हुए अपने। हमने कभी अपस मे बहुत प्यार दिखाया, कभी बहुत गस् ु सा, पर ये सब तो पल दो पल की बते थी, हमारा अपस मे प्यार अमित रहे गा, चन्दन और सौरभ कि तरह, हम सब रतन जग्मगाएंगे, शशाँक की तरह्। श्याम की मनोहरता से यक् ु त होगा हमारा व्यक्तित्व, अपनी कर्म शक्ति से, प्रमणित करें गे हम अपना महत्व। होगा शैलेन्द्र जैसा धैर्य, और राकेश की सी चमक हम सबमे, शभ ु म होगा हर कल हमारा, आयष ू होगा हमरे जीवन मे। ॠषभ हमारी शिक्षा होगी, मनवता को अर्पित हमारे सपने, सुशांत हो ये विश्व हमारा, सच हो हम सबके सपने। चलते चलते हम अ पहुचे विकास के उस पथ पर जहाँ संतोष कहाँ? भगवान हमे शिवांगी की शक्ती दे ना, तो हम जीत ले ये सारा जहाँ।
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