Munshi Premchand2

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Munshi Premchand's Stories ममममम

ममममममममम मम मममममम
Stories from the greatest literary figure of Hindi-Urdu literature | िहनदी उदूर सािहतय के शीषरतम कथाकार की
कहािनया
||||||||||||||| Contents - कहािनयो की सूची ||||||||||||||| Updates - नया कया है |||||||||||||||

मममम ममममम
सेठ पुरषोतमदास पूना की सरसवती पाठशाला का मुआयना करने के बाद बाहर िनकले तो एक लडकी ने दौडकर उनका दामन
पकड िलया। सेठ जी रक गये और मुहबबत से उसकी तरफ देखकर पूछा—कया नाम है?

लडकी ने जवाब िदया—रोिहणी।

सेठ जी ने उसे गोद मे उठा िलया और बोले—तुमहे कुछ इनाम िमला?

लडकी ने उनकी तरफ बचचो जैसी गंभीरता से देखकर कहा—तुम चले जाते हो, मुझे रोना आता है, मुझे भी साथ लेते चलो।

सेठजी ने हँसकर कहा—मुझे बडी दूर जाना है, तुम कैसे चालोगी?

रोिहणी ने पयार से उनकी गदरन मे हाथ डाल िदये और बोली—जहॉँ तुम जाओगे वही मै भी चलूँगी। मै तुमहारी बेटी हूँगी।

मदरसे के अफसर ने आगे बढकर कहा—इसका बाप साल भर हुआ नही रहा। मॉँ कपडे सीती है, बडी मुिशकल से गुजर होती
है।

सेठ जी के सवभाव मे करणा बहुत थी। यह सुनकर उनकी आँखे भर आयी। उस भोली पाथरना मे वह ददर था जो पतथर-से िदल
को िपघला सकता है। बेकसी और यतीमी को इससे जयादा ददरनाक ढंग से जािहर कना नामुमिकन था।

उनहोने सोचा—इस ननहे-से िदल मे न जाने कया अरमान होगे। और लडिकयॉँ अपने िखलौने िदखाकर कहती होगी, यह मेरे बाप
ने िदया है। वह अपने बाप के साथ मदरसे आती होगी, उसके साथ मेलो मे जाती होगी और उनकी िदलचिसपयो का िजक करती
होगी। यह सब बाते सुन-सुनकर इस भोली लडकी को भी खवािहश होती होगी िक मेरे बाप होता। मॉँ की मुहबबत मे गहराई और
आितमकता होती है िजसे बचचे समझ नही सकते। बाप की मुहबबत मे खुशी और चाव होता है िजसे बचचे खूब समझते है।

सेठ जी ने रोिहणी को पयार से गले लगा िलया और बोले—अचछा, मै तुमहे अपनी बेटी बनाऊँगा। लेिकन खूब जी लगाकर
पढना। अब छुटी का वकत आ गया है, मेरे साथ आओ, तुमहारे घर पहुँचा दूँ।

यह कहकर उनहोने रोिहणी को अपनी मोटरकार मे िबठा िलया। रोिहणी ने बडे इतमीनान और गवर से अपनी सहेिलयो की तरफ
देखा। उसकी बडी-बडी आँखे खुशी से चमक रही थी और चेहरा चॉँदनी रात की तरह िखला हुआ था।

सेठ ने रोिहणी को बाजार की खूब सैर करायी और कुछ उसकी पसनद से, कुछ अपनी पसनद से बहुत-सी चीजे खरीदी, यहॉँ
तक िक रोिहणी बाते करते-करते कुछ थक-सी गयी और खामोश हो गई। उसने इतनी चीजे देखी और इतनी बाते सुनी िक
उसका जी भर गया। शाम होते-होते रोिहणी के घर पहुँचे और मोटरकार से उतरकर रोिहणी को अब कुछ आराम िमला।
दरवाजा बनद था। उसकी मॉँ िकसी गाहक के घर कपडे देने गयी थी। रोिहणी ने अपने तोहफो को उलटना-पलटना शुर िकया
—खूबसूरत रबड के िखलौने , चीनी की गुिडया जरा दबाने से चूँ-चूँ करने लगती और रोिहणी यह पयारा संगीत सुनकर फूली न
समाती थी। रेशमी कपडे और रंग-िबरंगी सािडयो की कई बणडल थे लेिकन मखमली बूटे की गुलकािरयो ने उसे खूब लुभाया
था। उसे उन चीजो के पाने की िजतनी खुशी थी, उससे जयादा उनहे अपनी सहेिलयो को िदखाने की बेचैनी थी। सुनदरी के जूते
अचछे सही लेिकन उनमे ऐसे फूल कहॉँ है। ऐसी गुिडया उसने कभी देखी भी न होगी। इन खयालो से उसके िदल मे उमंग भर
आयी और वह अपनी मोिहनी आवाज मे एक गीत गाने लगी। सेठ जी दरवाजे पर खडे इन पिवत दृशय का हािदरक आननद उठा रहे
थे। इतने मे रोिहणी की मॉँ रिकमणी कपडो की एक पोटली िलये हुए आती िदखायी दी। रोिहणी ने खुशी से पागल होकर एक
छलॉँग भरी और उसके पैरो से िलपट गयी। रिकमणी का चेहरा पीला था, आँखो मे हसरत और बेकसी िछपी हुई थी, गुपत िचंता
का सजीव िचत मालूम होती थी, िजसके िलए िजंदगी मे कोई सहारा नही।

मगर रोिहणी को जब उसने गोद मे उठाकर पयार से चूमा मो जरा देर के िलए उसकी ऑंखो मे उनमीद और िजंदगी की झलक
िदखायी दी। मुरझाया हुआ फूल िखल गया। बोली—आज तू इतनी देर तक कहॉँ रही, मै तुझे ढू ँढने पाठशाला गयी थी।

रोिहणी ने हुमककर कहा—मै मोटरकार पर बैठकर बाजार गयी थी। वहॉँ से बहुत अचछी-अचछी चीजे लायी हूँ। वह देखो कौन
खडा है?

मॉँ ने सेठ जी की तरफ ताका और लजाकर िसर झुका िलया।

बरामदे मे पहुँचते ही रोिहणी मॉँ की गोद से उतरकर सेठजी के पास गयी और अपनी मॉँ को यकीन िदलाने के िलए भोलेपन से
बोली—कयो, तुम मेरे बाप हो न?

सेठ जी ने उसे पयार करके कहा—हॉँ, तुम मेरी पयारी बेटी हो।

रोिहणी ने उनसे मुंह की तरफ याचना-भरी आँखो से देखकर कहा—अब तुम रोज यही रहा करोगे?

सेठ जी ने उसके बाल सुलझाकर जवाब िदया—मै यहॉँ रहूँगा तो काम कौन करेगा? मै कभी-कभी तुमहे देखने आया करँगा,
लेिकन वहॉँ से तुमहारे िलए अचछी-अचछी चीजे भेजूँगा।

रोिहणी कुछ उदास-सी हो गयी। इतने मे उसकी मॉँ ने मकान का दरवाजा खोला ओर बडी फुती से मैले िबछावन और फटे हुए
कपडे समेट कर कोने मे डाल िदये िक कही सेठ जी की िनगाह उन पर न पड जाए। यह सवािभमान िसतयो की खास अपनी
चीज है।

रिकमणी अब इस सोच मे पडी थी िक मै इनकी कया खाितर-तवाजो करँ। उसने सेठ जी का नाम सुना था, उसका पित हमेशा
उनकी बडाई िकया करता था। वह उनकी दया और उदारता की चचाएँ अनेको बार सुन चुकी थी। वह उनहे अपने मन का
देवता समझा कतरी थी, उसे कया उमीद थी िक कभी उसका घर भी उसके कदमो से रोशन होगा। लेिकन आज जब वह शुभ
िदन संयोग से आया तो वह इस कािबल भी नही िक उनहे बैठने के िलए एक मोढा दे सके। घर मे पान और इलायची भी नही। वह
अपने आँसुओं को िकसी तरह न रोक सकी।

आिखर जब अंधेरा हो गया और पास के ठाकुरदारे से घणटो और नगाडो की आवाजे आने लगी तो उनहोने जरा ऊँची आवाज मे
कहा—बाईजी, अब मै जाता हूँ। मुझे अभी यहॉँ बहुत काम करना है। मेरी रोिहणी को कोई तकलीफ न हो। मुझे जब मौका
िमलेगा, उसे देखने आऊँगा। उसके पालने -पोसने का काम मेरा है और मै उसे बहुत खुशी से पूरा करँगा। उसके िलए अब तुम
कोई िफक मत करो। मैने उसका वजीफा बॉँध िदया है और यह उसकी पहली िकसत है।

यह कहकर उनहोने अपना खूबसूरत बटुआ िनकाला और रिकमणी के सामने रख िदया। गरीब औरत की आँखे मे आँसू जारी
थे। उसका जी बरबस चाहता था िक उसके पैरो को पकडकर खूब रोये। आज बहुत िदनो के बाद एक सचचे हमददर की आवाज
उसके मन मे आयी थी।
जब सेठ जी चले तो उसने दोनो हाथो से पणाम िकया। उसके हृदय की गहराइयो से पाथरना िनकली—आपने एक बेबस पर दया
की है, ईशर आपको इसका बदला दे।

दूसरे िदन रोिहणी पाठशाला गई तो उसकी बॉँकी सज-धज आँखो मे खुबी जाती थी। उसतािनयो ने उसे बारी-बारी पयार िकया
और उसकी सहेिलयॉँ उसकी एक-एक चीज को आशयर से देखती और ललचाती थी। अचछे कपडो से कुछ सवािभमान का
अनुभव होता है। आज रोिहणी वह गरीब लडकी न रही जो दूसरो की तरफ िववश नेतो से देखा करती थी। आज उसकी एक-
एक िकया से शैशवोिचत गवर और चंचलता टपकती थी और उसकी जबान एक दम के िलए भी न रकती थी। कभी मोटर की
तेजी का िजक था कभी बाजार की िदलचिसपयो का बयान, कभी अपनी गुिडयो के कुशल-मंगल की चचा थी और कभी अपने
बाप की मुहबबत की दासतान। िदल था िक उमंगो से भरा हुआ था।

एक महीने बाद सेठ पुरषोतमदास ने रोिहणी के िलए िफर तोहफे और रपये रवाना िकये। बेचारी िवधवा को उनकी कृपा से
जीिवका की िचनता से छुटी िमली। वह भी रोिहणी के साथ पाठशाला आती और दोनो मॉँ-बेिटयॉँ एक ही दरजे के साथ-साथ
पढती, लेिकन रोिहणी का नमबर हमेशा मॉँ से अववल रहा सेठ जी जब पूना की तरफ से िनकलते तो रोिहणी को देखने जरर
आते और उनका आगमन उसकी पसनता और मनोरंजन के िलए महीनो का सामान इकटा कर देता।

इसी तरह कई साल गुजर गये और रोिहणी ने जवानी के सुहाने हरे-भरे मैदान मे पैर रकखा, जबिक बचपन की भोली-भाली
अदाओं मे एक खास मतलब और इरादो का दखल हो जाता है।

रोिहणी अब आनतिरक और बाह सौनदयर मे अपनी पाठशाला की नाक थी। हाव-भाव मे आकषरक गमभीरता, बातो मे गीत का-सा
िखंचाव और गीत का-सा आितमक रस था। कपडो मे रंगीन सादगी, आँखो मे लाज-संकोच, िवचारो मे पिवतता। जवानी थी
मगर घमणड और बनावट और चंचलता से मुकत। उसमे एक एकागता थी ऊँचे इरादो से पैदा होती है। िसतयोिचत उतकषर की
मंिजले वह धीरे-धीरे तय करती चली जाती थी।

सेठ जी के बडे बेटे नरोतमदास कई साल तक अमेिरका और जमरनी की युिनविसरिटयो की खाक छानने के बाद इंजीिनयिरंग
िवभाग मे कमाल हािसल करके वापस आए थे। अमेिरका के सबसे पितिषत कालेज मे उनहोने सममान का पद पापत िकया था।
अमेिरका के अखबार एक िहनदोसतानी नौजवान की इस शानदार कामयाबी पर चिकत थे। उनही का सवागत करने के िलए बमबई
मे एक बडा जलसा िकया गया था। इस उतसव मे शरीक होने के िलए लोग दूर-दूर से आए थे। सरसवती पाठशाला को भी
िनमंतण िमला और रोिहणी को सेठानी जी ने िवशेष रप से आमंितत िकया। पाठशाला मे हफतो तैयािरयॉँ हुई। रोिहणी को एक
दम के िलए भी चैन न था। यह पहला मौका था िक उसने अपने िलए बहुत अचछे-अचछे कपडे बनवाये। रंगो के चुनाव मे वह
िमठास थी, काट-छॉँट मे वह फबन िजससे उसकी सुनदरता चमक उठी। सेठानी कौशलया देवी उसे लेने के िलए रेलवे सटेशन
पर मौजूद थी। रोिहणी गाडी से उतरते ही उनके पैरो की तरफ झुकी लेिकन उनहोने उसे छाती से लगा िलया और इस तरह
पयार िकया िक जैसे वह उनकी बेटी है। वह उसे बार-बार देखती थी और आँखो से गवर और पेम टपक पडता था।

इस जलसे के िलए ठीक समुनदर के िकनारे एक हरे-भरे सुहाने मैदान मे एक लमबा-चौडा शािमयाना लगाया गया था। एक तरफ
आदिमयो का समुद उमडा हुआ था दूसरी तरफ समुद की लहरे उमड रही थी, गोया वह भी इस खुशी मे शरीक थी।

जब उपिसथत लोगो ने रोिहणी बाई के आने की खबर सुनी तो हजारो आदमी उसे देखने के िलए खडे हो गए। यही तो वह लडकी
है। िजसने अबकी शासती की परीका पास की है। जरा उसके दशरन करने चािहये। अब भी इस देश की िसतयो मे ऐसे रतन
मौजूद है। भोले-भाले देशपेिमयो मे इस तरह की बाते होने लगी। शहर की कई पितिषत मिहलाओं ने आकर रोिहणी को गले
लगाया और आपस मे उसके सौनदयर और उसके कपडो की चचा होने लगी।

आिखर िमसटर पुरषोतमदास तशरीफ लाए। हालॉँिक वह बडा िशष और गमभीर उतसव था लेिकन उस वकत दशरन की उतकंठा
पागलपन की हद तक जा पहुँची थी। एक भगदड-सी मच गई। कुिसरयो की कतारे गडबड हो गई। कोई कुसी पर खडा हुआ,
कोई उसके हतथो पर। कुछ मनचले लोगो ने शािमयाने की रिससयॉँ पकडी और उन पर जा लटके कई िमनट तक यही तूफान
मचा रहा। कही कुिसरया टू टी, कही कुिसरयॉँ उलटी, कोई िकसी के ऊपर िगरा, कोई नीचे। जयादा तेज लोगो मे धौल-धपपा होने
लगा।

तब बीन की सुहानी आवाजे आने लगी। रोिहणी ने अपनी मणडली के साथ देशपेम मे डू बा हुआ गीत शुर िकया। सारे उपिसथत
लोग िबलकुल शानत थे और उस समय वह सुरीला राग, उसकी कोमलता और सवचछता, उसकी पभावशाली मधुरता, उसकी
उतसाह भरी वाणी िदलो पर वह नशा-सा पैदा कर रही थी िजससे पेम की लहरे उठती है, जो िदल से बुराइयो को िमटाता है और
उससे िजनदगी की हमेशा याद रहने वाली यादगारे पैदा हो जाती है। गीत बनद होने पर तारीफ की एक आवाज न आई। वही ताने
कानो मे अब तक गूँज रही थी।

गाने के बाद िविभन संसथाओं की तरफ से अिभननदन पेश हुए और तब नरोतमदास लोगो को धनयवाद देने के िलए खडे हुए।
लेिकन उनके भाषाण से लोगो को थोडी िनराशा हुई। यो दोसतो की मणडली मे उनकी वकतृता के आवेग और पवाह की कोई सीमा
न थी लेिकन सावरजिनक सभा के सामने खडे होते ही शबद और िवचार दोनो ही उनसे बेवफाई कर जाते थे। उनहोने बडी-बडी
मुिशकल से धनयवाद के कुछ शबद कहे और तब अपनी योगयता की लिजजत सवीकृित के साथ अपनी जगह पर आ बैठे। िकतने
ही लोग उनकी योगयता पर जािनयो की तरह िसर िहलाने लगे।

अब जलसा खतम होने का वकत आया। वह रेशमी हार जो सरसवती पाठशाला की ओर से भेजा गया था, मेज पर रखा हुआ था।
उसे हीरो के गले मे कौन डाले? पेिसडेणट ने मिहलाओं की पंिकत की ओर नजर दौडाई। चुनने वाली आँख रोिहणी पर पडी और
ठहर गई। उसकी छाती धडकने लगी। लेिकन उतसव के सभापित के आदेश का पालन आवशयक था। वह सर झुकाये हुए मेज
के पास आयी और कॉँपते हाथो से हार को उठा िलया। एक कण के िलए दोनो की आँखे िमली और रोिहणी ने नरोतमदास के गले
मे हार डाल िदया।

दूसरे िदन सरसवती पाठशाला के मेहमान िवदा हुए लेिकन कौशलया देवी ने रोिहणी को न जाने िदया। बोली—अभी तुमहे देखने से
जी नही भरा, तुमहे यहॉँ एक हफता रहना होगा। आिखर मै भी तो तुमहारी मॉँ हूँ। एक मॉँ से इतना पयार और दूसरी मॉँ से इतना
अलगाव!

रोिहणी कुछ जवाब न दे सकी।

यह सारा हफता कौशलया देवी ने उसकी िवदाई की तैयािरयो मे खचर िकया। सातवे िदन उसे िवदा करने के िलए सटेशन तक
आयी। चलते वकत उससे गले िमली और बहुत कोिशश करने पर भी आँसुओं को न रोक सकी। नरोतमदास भी आये थे।
उनका चेहरा उदास था। कौशलया ने उनकी तरफ सहानुभूितपूणर आँखो से देखकर कहा—मुझे यह तो खयाल ही न रहा, रोिहणी
कया यहॉँ से पूना तक अकेली जायेगी? कया हजर है, तुमही चले जाओ, शाम की गाडी से लौट आना।

नरोतमदास के चेहरे पर खुशी की लहर दौड गयी, जो इन शबदो मे न िछप सकी—अचछा, मै ही चला जाऊँगा। वह इस िफक मे
थे िक देखे िबदाई की बातचीत का मौका भी िमलता है या नही। अब वह खूब जी भरकर अपना ददे िदल सुनायेगे और मुमिकन
हुआ तो उस लाज-संकोच को, जो उदासीनता के परदे मे िछपी हुई है, िमटा देगे।

रिकमणी को अब रोिहणी की शादी की िफक पैदा हुई। पडोस की औरतो मे इसकी चचा होने लगी थी। लडकी इतनी सयानी हो
गयी है, अब कया बुढापे मे बयाह होगा? कई जगह से बात आयी, उनमे कुछ बडे पितिषत घराने थे। लेिकन जब रिकमणी उन
पैमानो को सेठजी के पास भेजती तो वे यही जवाब देते िक मै खुद िफक मे हूँ। रिकमणी को उनकी यह टाल-मटोल बुरी मालूम
होती थी।

रोिहणी को बमबई से लौटे महीना भर हो चुका था। एक िदन वह पाठशाला से लौटी तो उसे अममा की चारपाई पर एक खत पडा
हुआ िमला। रोिहणी पढने लगी, िलखा था—बहन, जब से मैने तुमहारी लडकी को बमबई मे देखा है, मै उस पर रीझ गई हूँ। अब
उसके बगैर मुझे चैन नही है। कया मेरा ऐसा भागय होगा िक वह मेरी बहू बन सके? मै गरीब हूँ लेिकन मैने सेठ जी को राजी कर
िलया है। तुम भी मेरी यह िवनती कबूल करो। मै तुमहारी लडकी को चाहे फूलो की सेज पर न सुला सकूँ, लेिकन इस घर का
एक-एक आदमी उसे आँखो की पुतली बनाकर रखेगा। अब रहा लडका। मॉँ के मुँह से लडके का बखान कुछ अचछा नही
मालूम होता। लेिकन यह कह सकती हूँ िक परमातमा ने यह जोडी अपनी हाथो बनायी है। सूरत मे, सवभाव मे, िवदा मे, हर दृिष
से वह रोिहणी के योगय है। तुम जैसे चाहे अपना इतमीनान कर सकती हो। जवाब जलद देना और जयादा कया िलखूँ। नीचे थोडे-
से शबदो मे सेठजी ने उस पैगाम की िसफािरश की थी।

रोिहणी गालो पर हाथ रखकर सोचने लगी। नरोतमदास की तसवीर उसकी आँखो के सामने आ खडी हुई। उनकी वह पेम की
बाते, िजनका िसलिसला बमबई से पूना तक नही टू टा था, कानो मे गूंजने लगी। उसने एक ठणडी सॉँस ली और उदास होकर
चारपाई पर लेट गई।

सरसवती पाठशाला मे एक बार िफर सजावट और सफाई के दृशय िदखाई दे रहे है। आज रोिहणी की शादी का शुभ िदन। शाम
का वकत, बसनत का सुहाना मौसम। पाठशाला के दारो-दीवार मुसकरा रहे है और हरा-भरा बगीचा फूला नही समाता।

चनदमा अपनी बारात लेकर पूरब की तरफ से िनकला। उसी वकत मंगलाचरण का सुहाना राग उस रपहली चॉँदनी और हलके-
हलके हवा के झोको मे लहरे मारने लगा। दूला आया, उसे देखते ही लोग हैरत मे आ गए। यह नरोतमदास थे।

दूला मणडप के नीचे गया। रोिहणी की मॉँ अपने को रोक न सकी, उसी वकत जाकर सेठ जी के पैर पर िगर पडी। रोिहणी की
आँखो से पेम और आनदद के आँसू बहने लगे।

मणडप के नीचे हवन-कुणड बना था। हवन शुर हुआ, खुशबू की लपेटे हवा मे उठी और सारा मैदान महक गया। लोगो के िदलो-
िदमाग मे ताजगी की उमंग पैदा हुई।

िफर संसकार की बारी आई। दूला और दुलन ने आपस मे हमददी; िजममेदारी और वफादारी के पिवत शबद अपनी जबानो से
कहे। िववाह की वह मुबारक जंजीर गले मे पडी िजसमे वजन है, सखती है, पाबिनदयॉँ है लेिकन वजन के साथ सुख और
पाबिनदयो के साथ िवशास है। दोनो िदलो मे उस वकत एक नयी, बलवान, आितमक शिकत की अनुभूित हो रही थी।
जब शादी की रसमे खतम हो गयी तो नाच-गाने की मजिलस का दौर आया। मोहक गीत गूँजने लगे। सेठ जी थककर चूर हो गए
थे। जरा दम लेने के िलए बागीचे मे जाकर एक बेच पर बैठ गये। ठणडी-ठणडी हवा आ रही आ रही थी। एक नशा-सा पैदा करने
वाली शािनत चारो तरफ छायी हुई थी। उसी वकत रोिहणी उनके पास आयी और उनके पैरो से िलपट गयी। सेठ जी ने उसे
उठाकर गले से लगा िलया और हँसकर बोले—कयो, अब तो तुम मेरी अपनी बेटी हो गयी?

-- जमाना, जून १९१४


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Labels: Anaath Ladki, Premchand, Stories, अनाथ लड़की, कहानी, पर्ेमचन्द

5 comments:

CASANOVA said...
simple, yet elegant. The essence & purity of intention is should be "liked".

11:23 AM

Priya said...
thanks for making such an afford ,
5:54 AM

govind said...
ek simple story ko itna bakhoobi likha,,,,,,,,,,,,,,,my salute to a great writer

5:18 AM

arunkumar said...
Ye likhna sirf premchand ke bas ki baat hai. tabhi to itne salon baad bhi is parampara ko
koi lekhak badha naa saka.

7:00 AM

Tarun said...
really munshi ji is the best story writer till todays date

tarun

1:24 AM

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