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14 अगस्त 1947 कि रात को 

आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का


एग्रीमें ट हुआ था

आदरणीय दोस्तों 

आपने दे खा होगा कि राजीव भाई बराबर सत्ता के हस्तांतरण के संधि के बारे में बाट करते
थे और आप बार बार सोचते होंगे कि आखिर ये क्या है ? मैंने उनके अलग अलग व्याख्यानों
में से इन सब को जोड़ के आप लोगों के लिए लाया हूँ उम्मीद है कि आपको पसंद आएगी |
पढ़िए सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) यानि भारत के
आज़ादी की संधि | ये इतनी खतरनाक संधि है की अगर आप अंग्रेजों द्वारा सन 1615 से
लेकर 1857 तक किये गए सभी 565 संधियों या कहें साजिस को जोड़ दें गे तो उस से भी
ज्यादा खतरनाक संधि है ये | 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है  वो आजादी नहीं
आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमें ट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड  माउन्ट बेटन
के बीच में  | Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है  | स्वतंत्रता और
सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है  | और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है  ? आप
दे खते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार है , वो चन
ु ाव में हार जाये, दस
ू री पार्टी की सरकार आती
है  तो दस
ू री पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है , तो वो शपथ ग्रहण करने के
तरु ं त बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है , आप लोगों में से बहुतों ने दे खा होगा, तो
जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है , उसी रजिस्टर को ट्रान्सफर ऑफ़
पॉवर की बक
ु कहते है  और उस पर हस्ताक्षर के बाद परु ाना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को
सत्ता सौंप दे ता है  | और पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर चला जाता है   | यही नाटक हुआ
था 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे | लार्ड  माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के
हाथ में सौंपी थी, और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया | कैसा स्वराज्य और काहे का
स्वराज्य? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? और हमारे लिए स्वराज्य का
मतलब क्या था ? ये भी समझ लीजिये | अंग्रेज कहते थे क़ि हमने स्वराज्य
दिया, माने अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौंपा है ताकि तुम लोग कुछ दिन इसे चला लो जब
जरुरत पड़ेगी तो हम दब
ु ारा आ जायेंगे |  ये अंग्रेजो का interpretation (व्याख्या) था | और
हिन्दस्
ु तानी लोगों की व्याख्या क्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया | और इस संधि के
अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए और भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion
States बनाये गए हैं | ये Dominion State का अर्थ हिंदी में होता है एक बड़े राज्य के अधीन
एक छोटा राज्य, ये शाब्दिक अर्थ है और भारत के सन्दर्भ में इसका असल अर्थ भी यही है |
अंग्रेजी में इसका एक अर्थ है   "One of the self-governing nations in the British
Commonwealth" और दस
ू रा "Dominance or power through legal authority "| Dominion
State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है | मतलब सीधा है क़ि
हम (भारत और पाकिस्तान) आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | दःु ख तो ये होता है
की उस समय के सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे या आप कह सकते हैं क़ि पुरे
होशो हवास  में इस संधि को मान लिया या कहें जानबझ
ू कर ये सब स्वीकार कर लिया |
और ये जो तथाकथित आज़ादी आयी, इसका कानन
ू अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और
इसका नाम रखा गया Indian Independence Act यानि भारत के स्वतंत्रता का कानन
ू | और
ऐसे धोखाधड़ी से अगर इस दे श की आजादी आई हो तो वो आजादी, आजादी है कहाँ ?  और
इसीलिए गाँधी जी (महात्मा गाँधी) 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे | वो
नोआखाली में थे | और कोंग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बल
ु ाने के लिए गए थे  कि बापू
चलिए आप | गाँधी जी ने मना कर दिया था | क्यों ? गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं
कि कोई आजादी आ रही है  | और गाँधी जी ने स्पस्ट कह दिया था कि ये आजादी नहीं आ
रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है  | और गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस
विज्ञप्ति जारी की थी | उस प्रेस स्टे टमें ट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा  कि मै
हिन्दस्
ु तान के उन करोडो लोगों को ये सन्दे श दे ना चाहता हु कि ये जो तथाकथित आजादी
(So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया | ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के
हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है  | मै मानता नहीं कि इस दे श में कोई आजादी आई
है  | और 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे नोआखाली में थे | माने
भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पुरोधा जिसने हिन्दस्
ु तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव
रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में मौजद
ू नहीं था | क्यों ? इसका
अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे | (नोआखाली के दं गे तो एक बहाना था असल
बात तो ये सत्ता का हस्तांतरण ही था) और 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ
है  वो आजादी नहीं आई .... ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमें ट लागू हुआ था पंडित नेहरु और
अंग्रेजी सरकार के बीच में  | अब शर्तों की बात करता हूँ , सब का जिक्र करना तो संभव नहीं
है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण शर्तों की जिक्र जरूर करूंगा जिसे एक आम भारतीय जानता है और
उनसे परिचित है ...............

 इस संधि की शर्तों के मत
ु ाबिक हम आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | वो एक
शब्द आप सब सुनते हैं न Commonwealth Nations | अभी कुछ दिन पहले दिल्ली
में Commonwealth Game हुए थे आप सब को याद होगा ही और उसी में बहुत
बड़ा घोटाला भी हुआ है | ये Commonwealth का मतलब होता है समान सम्पति |
किसकी समान सम्पति ? ब्रिटे न की रानी की समान सम्पति | आप जानते हैं ब्रिटे न
की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है
और हमारे जैसे 71 दे शों की महारानी है वो | Commonwealth में 71 दे श है और
इन सभी 71 दे शों में जाने के लिए ब्रिटे न की महारानी को वीजा की जरूरत नहीं
होती है क्योंकि वो अपने ही दे श में जा रही है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और
राष्ट्रपति को ब्रिटे न में जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है क्योंकि वो दस
ु रे दे श
में जा रहे हैं | मतलब इसका निकाले तो ये हुआ कि या तो ब्रिटे न की महारानी
भारत की नागरिक है या फिर भारत आज भी ब्रिटे न का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटे न
की रानी को पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं होती है अगर दोनों बाते सही है तो
15 अगस्त 1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झठ
ू है |
और Commonwealth Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के
रूप में है न क़ि Independent Nation के रूप में | इस दे श में प्रोटोकोल है क़ि जब
भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अलावा किसी को
भी नहीं | लेकिन ब्रिटे न की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी
जाती है , इसका क्या मतलब है ? और पिछली बार ब्रिटे न की महारानी यहाँ आयी थी
तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटे न
की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था मतलब हमारे
दे श का राष्ट्रपति दे श का प्रथम नागरिक नहीं है | ये है राजनितिक गुलामी, हम कैसे
माने क़ि हम एक स्वतंत्र दे श में रह रहे हैं | एक शब्द आप सुनते होंगे High
Commission ये अंग्रेजों का एक गुलाम दे श दस
ु रे गल
ु ाम दे श के यहाँ खोलता है
लेकिन इसे Embassy नहीं कहा जाता | एक मानसिक गुलामी का उदहारण भी
दे खिये ....... हमारे यहाँ के अख़बारों में आप दे खते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं
- (ब्रिटे न की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटे न के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स
चार्ल्स , (ब्रिटे न की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डैना (अब तो वो हैं नहीं), अब तो एक और
प्रिन्स विलियम भी आ गए है |    

 भारत का नाम INDIA रहे गा और सारी दनि


ु या में भारत का नाम इंडिया प्रचारित
किया जायेगा और सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित
किया जायेगा | हमारे और आपके लिए ये भारत है लेकिन दस्तावेजों में ये इंडिया है
| संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है "India that is Bharat " जब क़ि होना
ये चाहिए था "Bharat that was India " लेकिन दर्भा
ु ग्य इस दे श का क़ि ये भारत के
जगह इंडिया हो गया | ये इसी संधि के शर्तों में से एक है | अब हम भारत के लोग
जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है | कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़
रहा था अब किसका था याद नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि
इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस दे श में आश्चर्यजनक बदलाव
आ जायेगा और ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस शख्स के बात में
कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता, लेकिन भारत जब तक भारत था तब तक तो
दनि
ु या में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे , पीछे और पीछे
ही होता जा रहा है | 
 भारत के संसद में वन्दे मातरम नहीं गया जायेगा अगले 50 वर्षों तक यानि 1997
तक | 1997 में पर्व
ू प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मद्द
ु े को संसद में उठाया तब जाकर
पहली बार इस तथाकथित आजाद दे श की संसद में वन्दे मातरम गाया  गया | 50
वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है | और
वन्दे मातरम को ले के मस
ु लमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश
पर ही हुआ था | इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मसु लमानों के
दिल को ठे स पहुचाये | आपत्तिजनक तो जन,गन,मन में है जिसमे एक शख्स को
भारत भाग्यविधाता यानि भारत के हर व्यक्ति का भगवान बताया गया है या कहें
भगवान से भी बढ़कर |

 इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा अंग्रेजों के हवाले
करना था | यही वजह रही क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने दे श के लिए लापता रहे और
कहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को मालूम नहीं है | समय समय पर कई
अफवाहें फैली लेकिन सभ
ु ाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और न ही किसी ने
उनको ढूँढने में रूचि दिखाई | मतलब भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी अपने
ही दे श के लिए बेगाना हो गया | सभ
ु ाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी
ये तो आप सब लोगों को मालम
ू होगा ही लेकिन महत्वपर्ण
ू बात ये है क़ि ये 1942
में बनाया गया था और उसी समय द्वितीय विश्वयद्ध
ु चल रहा था और सभ
ु ाष चन्द्र
बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से मदद ली थी जो कि अंग्रेजो के
दश्ु मन थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे ज्यादा नक
ु सान पहुँचाया
था | और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों
की वजह से ये द्वितीय विश्वयद्ध
ु हुआ था और दोनों दे श एक दस ु रे के कट्टर दश्ु मन
थे | एक दश्ु मन दे श की मदद से सभ
ु ाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा
दिए थे | एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दस
ू री तरफ उन्हें भारत में भी
सुभाष चन्द्र बोस की वजह से परे शानियों का सामना करना पड़ रहा था |  इसलिए
वे सुभाष चन्द्र बोस के दश्ु मन थे | 

 इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद


विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था
बहुत दिनों तक | और अभी एक महीने पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत
सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने
अदालत में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदे श दिया है (ये
समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले दे खा था) | 
 आप भारत के सभी बड़े रे लवे स्टे शन पर एक किताब की दक
ु ान दे खते होंगे "व्हीलर
बक
ु स्टोर" वो इसी संधि की शर्तों के अनस
ु ार है | ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर
सबसे बड़ा अत्याचारी था | इसने इस दे श क़ि हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ
बलात्कार किया था | इसने किसानों पर सबसे ज्यादा गोलियां चलवाई थी | 1857
की क्रांति के बाद कानपरु के नजदीक बिठुर में व्हीलर और नील नामक दो अंग्रजों
ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को जान से मरवा दिया था चाहे वो गोदी का बच्चा
हो या मरणासन्न हालत में पड़ा कोई बड्
ु ढा | इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक
एजेंसी शुरू हुई थी और वही भारत में आ गयी | भारत आजाद हुआ तो ये ख़त्म
होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम भी बदल दे ते | लेकिन वो नहीं बदला
गया क्योंकि ये इस संधि में है |

 इस  संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज दे श छोड़ के चले जायेगे लेकिन इस दे श में
कोई भी कानून चाहे वो किसी क्षेत्र में हो नहीं बदला जायेगा | इसलिए आज भी इस
दे श में 34735 कानून वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था
| Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil
Administrative Act), Indian Penal Code(Ireland में भी IPC चलता है और
Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वही भारत के IPC में "I" का मतलब Indian
है बाकि सब के सब कंटें ट एक ही है , कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं
है )  Indian Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land
Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income
Tax Act, Indian Forest Act, Indian Agricultural Price Commission Act  सब के
सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले हुए |

 इस संधि के अनस
ु ार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे | शहर
का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे | आज दे श का संसद भवन,
सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े
हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं | लार्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी शहर है , वास्को
डी गामा नामक शहर है (हाला क़ि वो पर्त
ु गाली था ) रिपन रोड, कर्जन रोड, मेयो
रोड, बेंटिक रोड,  (पटना में ) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों भवन और रोड हैं,  सब
के सब वैसे के वैसे ही हैं | आप भी अपने शहर में दे खिएगा वहां भी कोई न कोई
भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे | हमारे गुजरात में एक शहर है सूरत, इस
सूरत शहर में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला | अंग्रेजों को जब जहाँगीर
ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो सूरत में आये थे और सूरत में
उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था | ये गल
ु ामी का पहला अध्याय आज तक
सूरत शहर में खड़ा है |   
 हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और मजे
क़ि बात ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ
अलग किस्म क़ि शिक्षा व्यवस्था रखी है | हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है
और उनके यहाँ ठीक उल्टा है | मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ
तो भारत में पछ
ू ा जायेगा क़ि तम्
ु हारे पास कौन सी डिग्री है ? अगर नहीं है तो मेरे
अविष्कार और ज्ञान का कोई मतलब नहीं है | जबकि उनके यहाँ ऐसा बिलकुल नहीं
है आप अगर कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है लेकिन कोई डिग्री
नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा | नोबेल पुरस्कार पाने के
लिए आपको डिग्री की जरूरत नहीं होती है | हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में
बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है | ये जो 30 नंबर का पास
मार्क्स आप दे खते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था क़ि दे न है , मतलब ये है क़ि आप भले
ही 70 नंबर में फेल है लेकिन 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसा शिक्षा तंत्र से सिर्फ
गदहे ही पैदा हो सकते हैं और यही अंग्रेज चाहते थे | आप दे खते होंगे क़ि हमारे
दे श में एक विषय चलता है जिसका नाम है Anthropology | जानते है इसमें क्या
पढाया जाता है ? इसमें गल
ु ाम लोगों क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता
है | और ये अंग्रेजों ने ही इस दे श में शुरू किया था और आज आज़ादी के 64 साल
बाद भी ये इस दे श के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि
सिविल सर्विस की  परीक्षा में भी ये चलता है | 

 इस संधि की शर्तों के हिसाब से हमारे दे श में आयर्वे


ु द को कोई सहयोग नहीं दिया
जायेगा मतलब हमारे दे श की विद्या हमारे ही दे श में ख़त्म हो जाये ये साजिस की
गयी | आयर्वे
ु द को अंग्रेजों ने नष्ट करने का भरसक प्रयास किया था लेकिन ऐसा
कर नहीं पाए | दनि
ु या में जितने भी पैथी हैं उनमे ये होता है क़ि पहले आप बीमार
हों तो आपका इलाज होगा लेकिन आयुर्वेद एक ऐसी विद्या है जिसमे कहा जाता है
क़ि आप बीमार ही मत पड़िए |  आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ -जोर्ज
ं टन जो क़ि अमेरिका का पहला राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में बीमार पड़ा
वाशिग
और जब उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरों ने कहा क़ि इनके
शरीर का खून गन्दा हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा
और उसके दोनों हाथों क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और खून निकल जाने की वजह
ं टन मर गया | ये घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत
से जोर्ज वाशिग
आया था और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख के गया था | मतलब कहने का ये है
क़ि हमारे दे श का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय | और ये सब
आयुर्वेद की वजह से था और उसी आयुर्वेद को आज हमारे सरकार ने हाशिये पर
पंहुचा दिया है |   
 इस संधि के हिसाब से हमारे दे श में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया
जायेगा | हमारे दे श के समद्धि
ृ और यहाँ मौजद
ू उच्च तकनीक की वजह ये गरु
ु कुल
ही थे | और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस दे श की गरु
ु कुल परं परा को ही तोडा था, मैं
यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना चाहूँगा जो उसने 2 फ़रवरी 1835
को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था "“I have traveled across the length
and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief,
such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such
caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the
very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and,
therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her
culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and
greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they
will become what we want them, a truly dominated nation” | गुरुकुल का मतलब हम
लोग केवल वेद, पुराण,उपनिषद ही समझते हैं जो की हमारी मुर्खता है अगर आज
की भाषा में कहूं तो ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning
Institute हुआ करते थे | 

 इस संधि में एक और खास बात है | इसमें कहा गया है क़ि अगर हमारे दे श के
(भारत के) अदालत में कोई ऐसा मक़
ु दमा आ जाये जिसके फैसले के लिए कोई
कानन
ू न हो इस दे श में या उसके फैसले को लेकर संबिधान में भी कोई जानकारी
न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे मक
ु दमों का फैसला अंग्रेजों
के न्याय पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श
उसमे लागू नहीं होगा | कितनी शर्मनाक स्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का
ही अनस
ु रण करना होगा |

 भारत में आज़ादी की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ था और संधि
के हिसाब से ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ के जाना था और वो चली भी
गयी लेकिन इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत से
लेकिन बाकि 126 विदे शी कंपनियां भारत में रहें गी और भारत सरकार उनको पूरा
संरक्षण दे गी | और उसी का नतीजा है क़ि ब्रक
ु बोंड, लिप्टन, बाटा, हिंदस्
ु तान लीवर
(अब हिंदस्
ु तान यूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां आज़ादी के बाद इस दे श में बची रह
गयी और लुटती रही और आज भी वो सिलसिला जारी है |

 अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहे गा भारत में जैसा क़ि अभी
(1946 में ) है और ये भी इसी संधि का हिस्सा है | आप दे खिये क़ि हमारे दे श में ,
संसद में , न्यायपालिका में , कार्यालयों में हर कहीं अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब
क़ि इस दे श में 99% लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है | और उन 1% लोगों क़ि हालत
दे खिये क़ि उन्हें मालूम ही नहीं रहता है क़ि उनको पढना क्या है और UNO में जा
के भारत के जगह पर्त
ु गाल का भाषण पढ़ जाते हैं |

 आप में से बहुत लोगों को याद होगा क़ि हमारे दे श में आजादी के 50 साल बाद तक
संसद में वार्षिक बजट शाम को 5:00 बजे पेश किया जाता था | जानते है क्यों ?
क्योंकि जब हमारे दे श में शाम के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते
हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर
सके | इतनी गुलामी में रहा है ये दे श | ये भी इसी संधि का हिस्सा है |

 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम
शुरू किया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज क़ि जरूरत थी और वे ये
अनाज भारत से चाहते थे | इसीलिए उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन
कार्ड क़ि शुरुआत क़ि | वो प्रणाली आज भी लागू है इस दे श में क्योंकि वो इस संधि
में है | और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय शुरू
किया गया और वो आज भी जारी है | जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही
वोट दे ने का अधिकार होता था | आज भी दे खिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचान पत्र
है इस दे श में |

 अंग्रेजों के आने के पहले इस दे श में गायों को काटने का कोई कत्लखाना नहीं था |


मग
ु लों के समय तो ये कानन
ू था क़ि कोई अगर गाय को काट दे तो उसका हाथ
काट दिया जाता था | अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय
काटने का कत्लखाना शरू
ु किया, पहला शराबखाना शरू
ु किया, पहला वेश्यालय शरू

किया और इस दे श में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी वहां वहां
वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां शराबखाना खल ु ा, वहां वहां गाय के काटने के लिए
कत्लखाना खुला | ऐसे पुरे दे श में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों के | अब ये सब
क्यों बनाये गए थे ये आप सब आसानी से समझ सकते हैं | अंग्रेजों के जाने के
बाद ये सब ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में
है |

 हमारे दे श में जो संसदीय लोकतंत्र है वो दरअसल अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है


| ये अंग्रेजो के इंग्लैंड क़ि संसदीय प्रणाली है | ये कहीं से भी न संसदीय है और न
ही लोकतान्त्रिक है | लेकिन इस दे श में वही सिस्टम है क्योंकि वो इस संधि में कहा
गया है | और इसी वेस्टमिन्स्टर सिस्टम को महात्मा गाँधी बाँझ और वेश्या कहते
थे (मतलब आप समझ गए होंगे) |
ऐसी हजारों शर्तें हैं | मैंने अभी जितना जरूरी समझा उतना लिखा है | मतलब यही है क़ि इस
दे श में जो कुछ भी अभी चल रहा है वो सब अंग्रेजों का है हमारा कुछ नहीं है | अब आप के
मन में ये सवाल हो रहा होगा क़ि पहले के राजाओं को तो अंग्रेजी नहीं आती थी तो वो
खतरनाक संधियों (साजिस)  के जाल में फँस कर अपना राज्य गवां बैठे लेकिन आज़ादी के
समय वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी आती थी फिर वो कैसे इन संधियों के जाल में फँस
गए | इसका कारण थोडा भिन्न है क्योंकि आज़ादी के समय वाले नेता अंग्रेजों को अपना
आदर्श मानते थे इसलिए उन्होंने जानबझ
ू कर ये संधि क़ि थी | वो मानते थे क़ि अंग्रेजों से
बढियां कोई नहीं है इस दनि
ु या में | भारत की आज़ादी के समय के नेताओं के भाषण आप
पढें गे तो आप पाएंगे क़ि वो केवल दे खने में ही भारतीय थे लेकिन मन,कर्म और वचन से
अंग्रेज ही थे | वे कहते थे क़ि सारा आदर्श है तो अंग्रेजों में , आदर्श शिक्षा व्यवस्था है तो
अंग्रेजों की, आदर्श अर्थव्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श चिकित्सा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की,
आदर्श कृषि व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श न्याय व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कानून
व्यवस्था है तो अंग्रेजों की | हमारे आज़ादी के समय के नेताओं को अंग्रेजों से बड़ा आदर्श
कोई दिखता नहीं था और वे ताल ठोक ठोक कर कहते थे क़ि हमें भारत अंग्रेजों जैसा बनाना
है | अंग्रेज हमें जिस रस्ते पर चलाएंगे उसी रास्ते पर हम चलेंगे | इसीलिए वे ऐसी मूर्खतापूर्ण
संधियों में फंसे | अगर आप अभी तक उन्हें दे शभक्त मान रहे थे तो ये भ्रम दिल से निकाल
दीजिये | और आप अगर समझ रहे हैं क़ि वो ABC पार्टी के नेता ख़राब थे या हैं तो XYZ
पार्टी के नेता भी दध
ू के धुले नहीं हैं | आप किसी को भी अच्छा मत समझिएगा क्योंक़ि
आज़ादी के बाद के इन 64 सालों में सब ने चाहे वो राष्ट्रीय पार्टी हो या प्रादे शिक पार्टी, 
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता का स्वाद तो सबो ने चखा ही है | खैर
...............

तो भारत क़ि गुलामी जो अंग्रेजों के ज़माने में थी, अंग्रेजों के जाने के 64 साल बाद आज
2011 में जस क़ि तस है क्योंकि हमने संधि कर रखी है और दे श को इन खतरनाक संधियों
के मकडजाल में फंसा रखा है | बहुत दःु ख होता है अपने दे श के बारे जानकार और सोच कर
| मैं ये सब कोई ख़ुशी से नहीं लिखता हूँ ये मेरे दिल का दर्द होता है जो मैं आप लोगों से
शेयर करता हूँ | 

ये सब बदलना जरूरी है लेकिन हमें सरकार नहीं व्यवस्था बदलनी होगी और आप अगर
सोच रहे हैं क़ि कोई मसीहा आएगा और सब बदल दे गा तो आप ग़लतफ़हमी में जी रहे हैं |
कोई हनुमान जी, कोई राम जी, या कोई कृष्ण जी नहीं आने वाले | आपको और हमको ही ये
सारे अवतार में आना होगा, हमें ही सड़कों पर उतरना होगा और और इस व्यवस्था को जड
मूल से समाप्त करना होगा | भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं
करता है | 

इतने लम्बे पत्र को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद् | और अच्छा
लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे
उस भाषा में अनव
ु ादित कीजिये (अंग्रेजी छोड़ कर), अपने अपने ब्लॉग पर डालिए,
मेरा नाम हटाइए अपना नाम डालिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है | मतलब बस
इतना ही है की ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये | 
-- 

राजीव दिक्षित  

व्यवस्था परिवर्तन 

पिछले 63 सालों से हम सरकारे बदल-बदल  कर दे ख चक


ु े है ..................... हर समस्या के मल
ू में मौजद
ू ा त्रटि
ु पर्ण
ू संविधान है , जिसके सारे के सारे
कानून / धाराएँ अंग्रेजो ने बनाये थे भारत की गुलामी को स्थाई बनाने के लिए ...........इसी त्रुटिपूर्ण संविधान के लचीले कानूनों की आड़ में पिछले
63 सालों से भारत लुट रहा है ............... इस बार सरकार नहीं बदलेगी ...................... अबकी बार व्यवस्था परिवर्तन होगा...................

अधिक जानकारी के लिए रोजाना रात 8 .00 बजे से 9 .00 बजे तक आस्था चें नल और रात 9 .00 बजे से 10 .00 बजे तक संस्कार चेनल
दे खिये

Manzoor Khan Pathan


Contact  Numbers  :   92528-84207

Do you know that our country India is going to be a slave again? . ............. See AASTHA Channel at night from 08-00 PM to
9.00 PM and SANSKAR Channel from 9.00 PM to 10.00 PM.

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