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संभोग से समाधि की और —(1)

Posted on सितम्बर 5, 2010by sw anand prashad

िंभोग िे िमाधि की और--ओशो

संभोग : परमात्मा की सज
ृ न-ऊजाा—(भाग–1)
मेरे प्रिय आत्मन,

िेम क्या है ?

जीना और जानना तो आिान है , लेककन कहना बहुत कठिन है । जैिे कोई मछली िे पछ ू े कक
िागर क्या है ? तो मछली कह िकती है , यह है िागर, यह रहा चारों और , वही है । लेककन
कोई पछ
ू े कक कहो क्या है , बताओ मत, तो बहुत कठिन हो जायेगा मछली को। आदमी के
जीवन में जो भी श्रेष्ि है , िन्
ु दर है , और ित्य है ; उिे जजया जा िकता है , जाना जा िकता है ।
हुआ जा िकता है । लेककन कहना बहुत कठिन बहुत मजु ‍कल है ।/

और दर्
ु ट
घ ना और दभ ु ाघग्य यह है कक जजिमें जजया जाना चाठहए, जजिमें हुआ जाना चाठहए,
उिके िंबंि में मनुष्य जातत पााँच छह हजार िाल िे केवल बातें कर रही है । िेम की बात
चल रही है , िेम के गीत गाये जा रहे है । िेम के भजन गाये जा रहे है । और िेम मनुष्य के
जीवन में कोई स्थान नहीं है ।

अगर आदमी के भीतर खोजने जायें तो िेम िे ज्यादा अित्य शब्द दि


ू रा नहीं समलेगा। और
जजन लोगों ने िेम को अित्य सिद्ि कर ठदया है और जजन्होंने िेम की िमस्त िाराओं को
अवरूद्ि कर ठदया है …..ओर बडा दभ
ु ाघग्य यह है कक लोग िमझते है कक वे ही िेम के
जन्मदाता है ।

िमघ-िेम की बातें करता है , लेककन आज तक जजि िकार का िमघ मनष्ु य जातत के ऊपर
दभु ाघग्य की भांतत छाया हुआ है । उि िमघ ने मनष्ु य के जीवन िे िेम के िारे द्वार बंद कर
ठदये है । और न उि िंबंि में परू ब और पज‍चम में फकघ है न ठहन्दस् ु तान और न अमरीका
में कोई फकघ है ।
मनुष्य के जीवन में िेम की िारा िकट ही पायी। और नहीं हो पायी तो हम दोष दे ते है कक
मनुष्य ही बुरा है , इिसलए नहीं िकट हो पाया। हम दोष दे ते है कक यह मन ही जहर है ,
इिसलए िकट नहीं हो पायी। मन जहर नहीं है। और जो लोग मन को जहर कहते रहे है ,
उन्होंने ही िेम को जहरीला कर ठदया,िेम को िकट नहीं होने ठदया है ।

मन जहर हो कैिे िकता है ? इि जगत में कुछ भी जहर नहीं है । परमात्मा के इि िारे
उपक्रम में कुछ भी प्रवष नहीं है , िब अमत
ृ है । लेककन आदमी ने िारे अमत
ृ को जहर कर
सलया है और इि जहर करे ने में सशक्षक, िाि,ु िंत और तथाकधथत िासमघक लोगों का िबिे
ज्यादा हाथ है ।

इि बात को थोडा िमझ लेना जरूरी है । क्योंकक अगर यह बात ठदखाई न पडे तो मनष्ु य के
जीवन में कभी भी िेम…भप्रवष्य में भी नहीं हो िकेगा। क्योंकक जजन कारणों िे िेम नहीं पैदा
हो िका है , उन्ही कारणों को हम िेम िकट करने के आिार ओर कारण बना रहे है ।

हालतें ऐिी है कक गलत सिद्िांतों को अगर हजार वषों तक दोहराया जाये तो कफर यह भूल
ही जाते है कक सिद्िांत गलत है । और ठदखाई पडने लगता है कक आदमी गलत है । क्योंकक
वह उन सिद्िांतों को पूरा नहीं कर पा रहा है ।

मैंने िुना है , एक िम्राट के महल के नीचे िे एक पंखा बेचने वाला गुजरता था। और जोर िे
धचल्ला रहा था कक अनूिे और अद्भुत पंखे मैंने तनसमघत ककये है । ऐिे पंखे कभी नहीं बनाये
गये। ये पंखे कभी दे खे भी नहीं गये है । िम्राट ने खखडकी िे झांक कर दे खा कक कौन है । जो
अनूिे पंखे ले आया है । िम्राट के पाि िब तरह के पंखे थे—दतु नया के कोने-कोने में जो
समल िकते थे। और नीचे दे खा, गसलयारे में खडा हुआ एक आदमी है , िािारण दो-दो पैिे के
पंखे होंगे और धचल्ला रहा है —अनूिे, अद्प्रवतीय।

उि आदमी को ऊपर बल
ु ाया गया और पछ
ू ा गया, इन पंखों में ऐिी क्या खब
ू ी है ? दाम क्या
है इन पंखों के? उि पंखे वाले ने कहा कक महाराज, दाम ज्यादा नहीं है । पंखे को दे खते हुए
दाम कुछ भी नहीं है । सिफघ िौ रूपये का पंखा है ।

िम्राट ने कहा, िौ रूपये का, यह दो पैिे का पंखा, जो बजार में जगह-जगह समलता है , और
िौ रूपये दाम। क्या है इिकी खब
ू ी?

उि आदमी ने कहां ये पंखा िौ वषघ चलता है िौ वषघ के सलए गारं टी है । िौ वषघ िे कम में
खराब नहीं होता हे ।
िम्राट ने कहा, इिको दे ख कर तो ऐिा नहीं लगता है , कक िप्ताह भी चल जाये पूरा तो
मुज‍कल है । िोखा दे ने की कोसशश कर रहे हो? िरािर बेईमानी और वह भी िम्राट के
िामने।

उि आदमी ने कहा,आप मुझे भली भांतत जानते है । इिी गसलयारे में रोज पंखे बेचता हूं। िौ
रूपये दाम है इिके और िौ वषघ न चले तो जजम्मेदार मै हूं। रोज तो नीचे मौजूद होता हूं।
कफर आप िम्राट है , आपको िोखा दे कर जाऊाँगा कहां?

वह पंखा खरीद सलया गया। िम्राट को प्रवश्र्वाि तो न था। लेककन आ‍चयघ भी था कक यह


आदमी िरािर झि
ू बोल रहा है , ककि बल पर बोल रहा है । पंखा िौ रूपये में खरीद सलया
गया और उििे कहा गया कक िातवें ठदन तम
ु उपजस्थत हो जाना।

दो चार ठदन में पंखे की डंडी बहार तनकल गई। िातवें ठदन तो वह बबलकुल मुदाघ हो गया।
लेककन िम्राट ने िोचा शायद पंखे वाला आयेगा नहीं।

लेककन िीक िातवें ठदन वह पंखे वाला हाजजर हो गया और उिने कहा: कहो महाराज, उन्होंने
कहा: कहना नहीं है ,यह पंखा पडा हुआ है टूटा हुआ। यह िात ठदन में ही यह गतत हो गयी।
तुम कहते थे, िौ िाल चलेगा। पागल हो या िोखेबाज? क्या हो?

उि आदमी ने कहा कक ‘मालूम होत है आपको पंखा झलना नहीं आता। पंखा तो िौ िाल
चलता ही। पंखा तो गारन्टीड है । आप पंखा झलते कैिे थे?

िम्राट ने कहा, और भी िुनो,अब मुझे यह भी िीखना पडेगा कक पंखा कैिे ककया जाता है ।

उि आदमी ने कहां की कृपा कर के बतलाईये की इि पंखे की ऐिी गतत िात ठदन में ऐिी
कैिे बना दी आपने? ककि भांतत पंखा ककया है ?

िम्राट ने पंखा उिाकर करके ठदखाया कक इि भांतत मैंने पंखा ककया है ।

तो उि आदमी ने कहा कक िमझ गया भल


ू । इि तरह नहीं ककया जाता पंखा।

िम्राट ने कहा तो ककि तरह ककया जाता है । और क्या तररका है पंखा झलने का?
उि आदमी ने कहां कक ‘पंखा पकडी ये िामने और सिर को ठहलाइयें। पंखा िौ वषघ चलेगा।
आप िमाप्त हो जायेंगे,लेककन पंखा बचेगा। पंखा गलत नहीं है। आपके झलने का ढं ग गलत
है ।

यह आदमी पैदा हुआ है —पााँच छह जार, दि हजार वषघ की िंस्कृतत का यह आदमी फल है ।


लेककन िंस्कृतत गलत नहीं है , यह आदमी गलत है । आदमी मरता जा रहा है रोज और
िंस्कृतत की दहु ाई चलती चली जाती है । कक महान िंस्कृतत महान िमघ, महान िब कुछ।
और उिका यह फल है आदमी। और उिी िंस्कृतत िे गुजरा है और पररणाम है उिका
लेककन नहीं आदमी गलत है और आदमी को बदलना चाठहए अपने को।

और कोई कहने की ठहम्मत नहीं उिाता कक कहीं ऐिा तो नहीं है कक दि हजार वषो में जो
िंस्कृतत और िमघ आदमी को िेम िे नहीं भर पाय, वह िंस्कृतत और िमघ गलत तो नहीं है ।
और अगर दि हजार वषों में आदमी िेम िे नहीं भर पाया तो आगे कोई िंभावना है , इि
िमघ और इिी िंस्कृतत के आिार पर की आदमी कभी िेम िे भा जाए?

दि हजार िाल में जो नहीं हो पाय, वह आगे भी दि हजार वषों में होने वाला नहीं है ।
क्योंकक आदमी यही है , कल भी यही होगा आदमी हमेशा िे यही है , और हमेशा यही होगा।
और िंस्कृतत और िमघ जजनके हम नारे ठदये चले जा रहे है , और िंत और महात्मा जजनकी
दहु ाइयां ठदये चले जा रहे है । िोचने के सलए भी तैयार नहीं है कक कहीं बुतनयादी धचंतन की
ठदशा ही तो गलत नहीं है ?

मैं कहना चाहता हूं कक वह गलत है । और गलत—िबूत है यह आदमी। और क्या िबूत होता
है गलत का?

एक बीज को हम बोये और फल ज़हरीले और कडवे हो तो क्या सिद्ि होता है ? सिद्ि होता


है कक वह बीज जहरीला और कडवा रहा होगा। हालांकक बीज में पता लगाना मजु ‍कल है कक
उििे जो फल पैदा होगें ,वे कडवे पैदा होंगे। बीज में कुछ खोजबीन नहीं की जा िकती। बीज
को तोडो-फोडो कोई पता नहीं चल िकता है कक इििे जो फल पैदा होते होंगे। वे कडवे होंगे।
बीज को बोओ,िौ वषघ लग जायेंगे—वक्ष
ृ होगा, बडा होगा,आकाश में फैलेगा, तब फल आयेंगे
और तब पता चलेगा कक वे कडवे है ।

दि हजार वषघ में िंस्कृतत और िमघ के जो बीज बोये गये है , वह आदमी उिका फल है । और
यह कडवा है । और र्णृ ा िे भरा हुआ है । लेककन उिी की दहु ाई ठदये चले जाते है हम और
िोचते है उिमे िेम हो जायगा। मैं आपिे कहना चाहता हूं,उििे िेम नहीं हो िकता है ।
क्योंकक िेम के पैदा होने की जो बुतनयादी िंभावना है , िमों ने उिकी ही हत्या कर दी है ।
और उिमें जहर र्ोल ठदया है ।

मनुष्य िे भी ज्यादा िेम पशु और पक्षक्षयों और पौिों में ठदखाई पडता है ; जजनके पाि न
कोई िंस्कृतत है , न कोई िमघ है , िंस्कृत और िंस्कृतत और िभ्य मनुष्यों की बजाय अिभ्य
और जंगल के आदमी में ज्यादा िेम ठदखाई पडता है । जजिके पाि न कोई प्रवकसित िमघ है ,
न कोई िभ्यता है , न कोई िंस्कृतत है । जजतना आदमी िभ्य, िुिंस्कृत और तथा कधथत
िमों के िभाव में मजन्दर ओर चचघ में पाथघना करने लगता है , उतना ही िेम िे शून्य क्यों
होता चला जाता है ।

जरूर कुछ कारण है । और दो कारणों पर मैं प्रवचार करना चाहता हूं। अगर वे ख्याल में आ
जाएं तो िेम के अवरूद्ि स्रोत फूट िकते है । और िेम की गंगा बह िकती है । वह हर
आदमी के भीतर है उिे कहीं िे लाना नहीं है ।

िेम कोई ऐिी बात नहीं है कक कहीं खोजने जाना है उिे। वह िाणों की प्याि है ित्येक के
भीतर, वह िाणों की िुगंि है ित्येक के भीतर। लेककन चारों तरफ परकोटा है उिके और वह
िकट नहीं हो पाता। िब तरफ पत्थर की दीवाल है और वह झरने नहीं फूट पाते। तो िेम
की खोज और िेम की िािना कोई पाजीठटव, कोई प्रविायक खोज और िािना नहीं है कक
हम जायें और कही िेम िीख लें।

एक मूततघकार एक पत्थर को तोड रहा था। कोई दे खने गया थ कक मूततघ कैिे बनायी जाती
है । उिने दे खा कक मूततघ तो बबलकुल नहीं बनायी जा रही है । सिफघ छै नी और हथौडे िे पत्थर
तोडा जा रहा था। उि आदमी ने पूछा ‘’यह क्या कर रहे हो, मूततघ नहीं बनाओगे, मैं तो मूततघ
बनाते दे खने के सलया आया था, आप तो केवल पत्थर तोड रहे है ।‘’

और उि मतू तघ कार ने कहा कक मतू तघ तो पत्थर के भीतर तछपी है , उिे बनाने की जरूरत नहीं
है , सिफघ उिके ऊपर जो व्यथघ पत्थर जड
ु ा है उिे अलग कर दे ने की जरूरत है और मतू तघ
िकट हो जायेगी। मतू तघ बनायी नही जाती है मतू तघ सिफघ आप्रवष्कृत होती है । डडस्क वर होती
है । अनावत
ृ होती है , उर्ाडी जाती है ।

मनुष्य के भीतर िेम तछपा है , सिफघ उर्ाडने की बात है । उिे पैदा करने का िवाल नहीं है ।
अनावत ृ करने की बात है। कुछ है , जो हमने ऊपर ओढा हुआ है । जो उिे िकट नहीं होने
दे ता?
एक धचककत्िक िे जाकर आप पूछे कक स्वास्थ क्या है ? और दतु नयां का कोई धचककत्िक नहीं
बता िकता है कक स्वास्थ क्या है । बडे आ‍चयघ कक बात है । स्वास्थ पर ही तो िारा
धचककत्िा शास्र खडा है । िारी मेडडकल िाइंि खडी है । और कोई नहीं बात िकता है कक
स्वास्थ क्या है । लेककन धचककत्िक िे पूछो कक स्वास्थ क्या है । तो वह कहे गा, बीमाररयों के
बाबत हम बात िकते है कक बीमाररयां क्या है , उनके लक्षण हमें पता है । एक-एक बीमारी की
अलग-अलग पररभाषा हमें पता है । स्वास्थ? स्वास्थ का हमें कोई भी पता नहीं है । इतना हम
कहा िकते है कक जब कोई बीमारी नहीं होती है । वह स्वास््य है । स्वास््य तो मनष्ु य के
भीतर तछपा है । इिसलए मनष्ु य की पररभाषा के बाहर है । बीमारी बहार िे आती है । इिसलए
बाहर िे पररभाषा की जा िकती है । स्वास््य भीतर िे आता है। कोई भी पररभाषा नहीं की
जा िकती है । इतना ही हम कह िकते है कक बीमाररयों का अभाव स्वास््य है । लेककन यह
क्या स्वास््य कक पररभाषा हुई? स्वास््य के िंबंि में तो हमने कुछ भी नहीं कहा। कहा है
बीमाररयां नहीं है । तो बीमाररयों के िंबंि में कहा। िच यह है कक स्वास््य पैदा नहीं करना
होता हे । यह तो तछप जाता है बीमाररयों में या हट जात है तो िकट हो जाता है । स्वास््य
हममें हे ।

स्वास््य हमारा स्वभाव है ।

िेम हममें है , िेम हमारा स्वभाव है ।

इिसलए यह बात गलत है कक मनुष्य को िमझाया जाए कक तुम िेम पैदा करो। िोचना यह
है कक िेम पैदा क्यों नहीं हो पा रहा है । क्या बािा है , अडचन क्या है , रूकावट कहां डाल दी
गई है । अगर कोई भी रूकावट न हो तो िेम िगट होता ही, उिे सिखाने की और िमझाने
की कोई भी जरूरत नहीं है ।

अगर मनुष्य के ऊपर गलत िंस्कृतत और गलत िंस्कार की िाराएं और बािाएं न हों, तो हर
आदमी िेम को उपलब्ि होगा ही। यह अतनवायघता है । िेम िे कोई बच ही नहीं िकता। िेम
स्वभाव है ।

गंगा बहती है ठहमालय िे। बहे गी गंगा, उिके िाण है । उिके पाि जल है । वह बहे गी और
िागर को खोज ही लेगी। न ककिी पुसलि वाले िे पछ
ू े गी, न ककिी परु ोठहत िे पछ
ू े गी कक
िागर कहां है । दे खा ककिी गंगा को चौरास्ते पर खडे होकर पुसलि वाले िे पूछते कक िागर
कहां है ? उिके िाणों में ही तछपी है िागर की खोज। और ऊजाघ है तो पहाड तोडगी, मैदान
तोडगी, और पहुंच जायेगी िागर तक। िागर ककतना ही दरू हो, ककतना ही तछपा हो, खोज ही
लेगी। और कोई रास्ता नहीं है । कोई गाईड बुक नहीं है । कक जजििे पता लगा ले कक कहां िे
जान है । लेककन पहुंच जाती है ।
लेककन बााँि बना ठदये जाएं,चारों और परकोटे उिा ठदये जाएं? िकृतत की बािाओं को तो
तोडकर गंगा िागर तक पहुंच जाती है । लेककन आदमी की इंजीतनयररंग की बािाएं खडी कर
दी जाएं तो हो िकता है कक गंगा िागर तक न पहुंच पाए यह भेद िमझ लेना जरूरी है ।

िकृतत की कोई भी बािा अिल में बािा नहीं है , इिसलए गंगा िागर तक पहुंच जाती है ।
ठहमालय को काटकर पहुंच जाती है । लेककन अगर आदमी ईजाद करे ,इंतजाम करे ,तो गंगा को
िागर तक नहीं भी पहुंचने दे िकता है ।

िकृतत को तो एक िहयोग है , िकृतत तो एक हामघनी हे । वहां जो बािा भी ठदखाई पडती है ,


वह भी शायद शजक्त को जगाने के सलए चन
ु ौती है । वह जो प्रवरोि भी ठदखाई पडता है , वह
भी शायद भीतर िाणों में जो तछपा है , उिे िकट करने के सलए बल
ु ावा है । वहां हम बीज को
दबाते हैं जमीन में । ठदखाई पडता है कक जमीन की एक पतघ बीज के ऊपर पडी है , बािा दे
रही है । अगर वह पतघ न हो ती तो बीज अंकुररत भी नहीं हो पाएगा। ऐिा ठदखाई पडता है
कक एक पतघ जमीन की बीज को नीचे दबा रही है । लेककन वह पतघ दबा इिसलए रही है ।
ताकक बीज दबे, गले और टूट जाये और अंकुररत हो जाये। ऊपर िे ठदखायी पडता है कक वह
जमीन बािा दे रही है । लेककन वह जमीन समर है और िहयोग कर रही है बीज को िकट
करने में ।

िकृतत तो एक हामघनी है , एक िंगीत पूणघ लयबद्िता है । (क्रमश: अगले अंक में ……….पढे ।

–ओशो
संभोग से समाधि की और

भारतीय विद्या भिन,बम्बई,

28 अगस्त 1968,

प्रिचन—1

संभोग से समाधि की और —2
Posted on सितम्बर 6, 2010by sw anand prashad
िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो

संभोग : परमात्मा की सज
ृ न-ऊजाा—( 2)
लेककन आदमी ने जो-जो तनिगघ के ऊपर इंजीतनयररंग की है , जो-जो उिने अपने अपनी
यांबरक िारणाओं को िोकने की और बबिाने की कोसशश की है , उििे गंगाए रूक गयी है ।
जगह-जगह अवरूद्ि हो गयी है । और कफर आदमी को दोष ठदया जा रहा है । ककिी बीज को
दोष दे ने की जरूरत नहीं है । अगर वह पौिा न बन पाया, तो हम कहें गे कक जमीन नहीं
समली होगी िीक िे, पानी नहीं समला होगा िीक िे। िूरज की रोशनी नहीं समली होगी िीक
िे।

लेककन आदमी के जीवन में खखल न पाये फूल िेम का तो हम कहते है कक तुम हो
जजम्मेदार। और कोई नहीं कहता कक भूसम नहीं समली होगी, पानी नहीं समला होगा िीक िे,
िूरज की रोशनी नहीं समली होगी िीक िे। इि सलए वह आदमी का पौिा अवरूद्ि हो गया,
प्रवकसित नहीं हो पाया, फूल तक नहीं पहुंच पाया।
मैं आपिे कहना चाहता हूं कक बतु नयादी बािाएं आदमी ने खडी की है । िेम की गंगा तो बह
िकती है और परमात्मा के िागर तक पहुंच िकती है । आदमी बना इिसलए है कक वह बहे
और िेम बढे और परमात्मा तक पहुंच जाये। लेककन हमने कौन िी बािाएं खडी कर ली?

पहली बात, आज तक मनुष्य की िारी िंस्कृतत यों ने िेक्ि का, काम का, वािना का प्रवरोि
ककया है । इि प्रवरोि ने मनुष्य के भीतर िेम के जन्म की िंभावना तोड दी, नष्ट कर दी।
इि तनषेि ने….क्योंकक िचाई यह है कक िेम की िारी यारा का िाथसमक बबन्द ु काम है ,
िेक्ि है ।

िेम की यारा का जन्म, गंगो री—जहां िे गंगा पैदा होगी िेम की—वह िेक्ि है , वह काम है ।

और उिके िब द‍ु मन है । िारी िंस्कृततयां,और िारे िमघ, और िारे गुरु और िारे महात्मा–तो
गंगो री पर ही चोट कर दी। वहां रोक ठदया। पाप है काम, जहर है काम, अिम है काम। और
हमने िोचा भी नहीं कक काम की ऊजाघ ही, िेक्ि एनजी ही, अंतत: िेम में पररवततघत होती है
और रूपांतररत होती है ।
िेम का जो प्रवकाि है , वह काम की शजक्त का ही ट्ांिफॉमें शन है । वह उिी का रूपांतरण है ।

एक कोयला पडा हो और आपको ख्याल भी नहीं आयेगा कक कोयला ही रूपांतररत होकर हीरा
बन जाता है । हीरे और कोयले में बुतनयादी रूप िे कोई फकघ नहीं है । हीरे में भी वे ही तत्व
है , जो कोयले में है । और कोयला ही हजारों िाल की िकक्रया िे गुजर कर हीरा बन जाता है ।
लेककन कोयले की कोई कीमत नहीं है , उिे कोई र्र में रखता भी है तो ऐिी जगह जहां कक
ठदखाई न पडे। और हीरे को लोग छाततयों पर लटकाकर र्ूमते है । जजििे की वह ठदखाई
पडे। और हीरा और कोयला एक ही है , लेककन कोई ठदखाई नहीं पडता है कक इन दोनों के
बीच अंतर-िंबंि है , एक यारा है । कोयले की शजक्त ही हीरा बनती है । अगर आप कोयले के
द‍ु मन हो गये—जो कक हो जाना बबलकुल आिान है । क्योंकक कोयले में कुछ भी नहीं ठदखाई
पडता है —तो हीरे के पैदा होने की िंभावना भी िमाप्त हो गयी, क्योंकक कोयला ही हीरा बन
िकता है ।

िेक्ि की शजक्त ही, काम की शजक्त ही िेम बनती है ।

लेककन उिके प्रवरोि में —िारे द‍ु मन है उिके, अच्छे आदमी उिके द‍ु मन है । और उिके
प्रवरोि में िेम के अंकुर भी नहीं फूटने ठदये है । और जमीन िे, िथम िे, पहली िीढी िे नष्ट
कर ठदया भवन को। कफर वह हीरा नहीं पाता कोयला, क्योंकक उिके बनने के सलए जो
स्वीकृतत चाठहए,जो उिका प्रवकाि चाठहए जो उिको रूपांतररत करने की िकक्रया चाठहए,
उिका िवाल ही नहीं उिता। जजिके हम द‍ु मन हो गये, जजिके हम शरु हो गये, जजििे
हमारी द्वंद्व की जस्थतत बन गयी हो और जजििे हम तनरं तर लडने लगे—अपनी ही शजक्त
िे आदमी को लडा ठदया गया है । िेक्ि की शजक्त िे आदमी को लडा ठदया गया है । और
सशक्षाऐं दी जाती है कक द्वंद्व छोडना चाठहए, कानजललक््ि छोडनी चाठहए, लडना नहीं
चाठहए। और िारी सशक्षाऐं बतु नयाद में सिखा रही है कक लडों।

मन जहर है तो मन िे लडों। जहर िे तो लडना पडेगा। िेक्ि पाप है तो उििे लडों। और


ऊपर िे कहा जा रहा है कक द्वंद्व छोडो। जजन सशक्षाओं के आिार पर मनुष्य द्वंद्व िे भर
रहा है । वे ही सशक्षाऐं दि
ू री तरफ कह रही है कक द्वंद्व छोडो। एक तरफ आदमी को पागल
बनाओ और दि
ू री तरफ पागलखाने खोलों कक बीमाररयों का इलाज यहां ककया जाता है । एक
बात िमझ लेना जरूरी है इि िंबंि।

मनुष्य कभी भी काम िे मुक्त नहीं हो िकता। काम उिके जीवन का िाथसमक बबन्द ु है ।
उिी िे जन्म होता है । परमात्मा ने काम की शजक्त को ही, िेक्ि को ही िजृ ष्ट का मूल बबंद ू
स्वीकार ककया है । और परमात्मा जजिे पाप नहीं िमझ रहा है , महात्मा उिे पाप बात रहे है ।
अगर परमात्मा उिे पाप िमझता है तो परमात्मा िे बडा पापी इि प्
ृ वी पर, इि जगत में
इि प्रव‍व में कोई नहीं है ।

फूल खखला हुआ ठदखाई पड रहा है । कभी िोचा है कक फूल का खखल जाना भी िेक्िुअल
ऐक्ट है , फूल का खखल जाना भी काम की एक र्टना है , वािना की एक र्टना है । फूल में है
क्या—उिके खखल जाने में ? उिके खखल जाने में कुछ भी नहीं है । वे बबंद ु है पराग के, वीयघ के
कण है जजन्हें तततसलयों उडा कर दि
ू रे फूलों पर ले जाएंगी और नया जन्म दे गी।

एक मोर नाच रहा है —और कप्रव गीत गा रहा है । और िंत भी दे ख कर ििन्न हो रहा हे —
लेककन उन्हें ख्याल नहीं कक नत्ृ य एक िेक्िअ
ु ल ऐक्ट है । मोर पक
ु ार रहा है अपनी िेयिी
को या अपने िेमी को। वह नत्ृ य ककिी को ररझाने के सलए है ? पपीहा गीत गा रहा है , कोयल
बोल रही है , एक आदमी जवान हो गया है , एक यव
ु ती िन्
ु दर होकर प्रवकसित हो गयी है। ये
िब की िब िेक्िअ
ु ल एनजी की असभव्यंजना है । यह िब का िब काम का ही रूपांतरण है ।
यह िब का िब काम की ही असभव्यक्त,काम की ही असभव्यंजना है ।

िारा जीवन, िारी असभव्यजक्त िारी ललावररगं काम की है ।

और उि काम के खखलाफ िंस्कृतत और िमघ आदमी के मन में जहर डाल रहे है । उििे
लडाने की कोसशश कर रहे है । मौसलक शजक्त िे मनुष्य को उलझा ठदया है । लडने के सलए,
इिसलए मनुष्य दीन-हीन, िेम िे ररक्त और खोटा और ना-कुछ हो गया है ।

काम िे लडना नहीं है , काम के िाथ मैरी स्थाप्रपत करनी है और काम की िारा को और
ऊचाई यों तक ले जाना है ।

ककिी ऋप्रष ने ककिी बिू को नव वर और विू को आशीवाघद दे ते हुए कहा था कक तेरे दि


पुर पैदा हो और अंतत: तेरा पतत ग्यारहवां पुर बन जाये।

वािना रूपांतररत हो तो पत्नी मां बन िकती है ।

वािना रूपांतररत हो तो काम िेम बन िकता है ।

लेककन काम ही िेम बनता है , काम की ऊजाघ ही िेम की ऊजाघ में प्रवकसित होती है।

लेककन हमने मनुष्य को भर ठदया है , काम के प्रवरोि में । इिका पररणाम यह हुआ है कक िेम
तो पैदा नहीं हो िका, क्योंकक वह तो आगे का प्रवकाि था, काम की स्वीकृतत िे आता है ।
िेम तो प्रवकसित नहीं हुआ और काम के प्रवरोि में खडे होने के कारण मनुष्य का धचत
ज्यादा कामुक हो गया, और िेक्िुअल होता चला गया। हमारे िारे गीत हमारी िारी कप्रवताएं
हमारे धचर, हमारी पें ठटंग, हमारे मंठदर, हमारी मूततघयां िब र्ूम कफर कर िेक्ि के आि पाि
केंठित हो गयी है । हमार मन ही िेक्ि के आिपाि केंठित हो गया है । इि जगत में कोई
भी पशु मनुष्य की भांतत िेक्िुअल नही है । मनुष्य चौबीि र्ंटे िेक्िुअल हो गया है । उिते-
बैिते, िोते जागते,िेक्ि ही िब कुछ हो गया है । उिके िाण में एक र्ाव हो गया है —प्रवरोि
के कारण, द‍ु मनी के कारण, शरत
ु ा के कारण। जो जीवन का मल ू था, उििे मक्
ु त तो हुआ
नहीं जा िकता था। लेककन उििे लडने की चेष्टा में िारा जीवन रूग्ण जरूर हो िकता था,
वह रूग्ण हो गया है ।

और यह जो मनुष्य जातत इतनी कामुक ठदखाई पड रही है , इिके पीछे तथाकधथत िमों और
िंस्कृतत का बुतनयादी हाथ है । इिके पीछे बुरे लोगों का नहीं, िज्जनों और िंतों का हाथ है ।
और जब तक मनुष्य जातत िज्जनों और िंतों के अनाचार िे मुक्त नहीं होगी तब तक िेम
के प्रवकाि की कोई िंभावना नहीं है ।

मुझे एक र्टना याद आती है । एक फकीर अपने र्र िे तनकला था। ककिी समर के पाि
समलने जा रहा था। तनकला है र्ोडे पर चढा हुआ है , अचानक उिके बचपन का एक दोस्त
र्र आकर िामने खडा हो गया है । उिने कहा कक दोस्त, तुम र्र पर रुको, बरिों िे ितीक्षा
करता था कक तुम आओगे तो बैिेंगे और बात करें गे। और दभ
ु ाघग्य कक मुझे ककिी समर िे
समलने जाना है । मैं वचन दे चक ु ा हूं। वो वहां मेरी राह ताकता होगा। मुझे वहां जाना ही
होगा। र्ण्टे भर में जल्दी िे जल्दी लोट कर आने की कोसशश करूंगा। तुम तब तक थोडा
प्रवश्राम कर लो।

उिके समर ने कहा मझ


ु े तो चैन नहीं है , अच्छा होगा कक मैं तम्
ु हारे िाथ ही चला चल।ू
लेककन उिने कहा कक मेरे कपडे गंदे हो गये है । रास्ते की िल
ू के कारण, अगर तम्
ु हारे पाि
कुछ अच्छे कपडे हो तो दे दो मैं पहन लं।ू और िाथ हो जाऊाँ।

तनज‍चत था उि फकीर के पाि। ककिी िम्राट ने उिे एक बहुमूल्य कोट, एक पगडी और एक


िोती भें ट की थी। उिने िंभाल कर रखी थी कक कभी जरूरत पडेगी तो पहनूंगा। वह जरूरत
नहीं आयी। तनकाल कर ले आया खश
ु ी में ।

समर ने जब पहन सलए तब उिे थोडी ईष्याघ पैदा हुई। समर ने पहनी तो समर िम्राट मालूम
होने लगा। बहुमूल्य कोट था, पगडी थी, िोती थी, शानदार जूते थे। और उिके िामने ही वह
फकीर बबलकुल नौकर-चाकर दीन-हीन ठदखाई पडने लगा। और उिने िोचा कक यह तो बडी
मुसशकल हो गई, यह तो गलत हो गया। जजनके र्र मैं जा रहा हूं,उन िब का ध्यान इिी पर
जायेगा। मेरी तरह तो कोई दे खेगा भी नहीं। अपने ही कपडे….ओर आज अपने ही कपडों के
कारण मैं दीन-हीन हो जाऊाँगा। लेककन बार-बार मन को िमझाता कक मुझे ऐिा नहीं िोचना
चाठहए मैं तो एक फकीर हूं—आत्मा परमात्मा की बातें करने वाला। क्या रखा है कोट
में ,पगडी में ,पगडी में छोडो। पहने रहने दो। ककतना फकघ पडता है । लेककन जजतना िमझाने
की कोसशश की ,कोट-पगडी, में क्या रखा है —कोट,पगडी,कोट पगडी ही उिके मन में र्ूमने
लगी।

समर दि
ू री बात करने लगा। लेककन वह भीतर तो….ऊपर कुछ और दि
ू री बातें कर रहा
है ,लेककन वहां उिका मन नहीं है । भीतर उिके बि कोट और पगडी। रास्ते पर जो भी
आदमी दे खता, उिको कोई नहीं दे खता। समर की तरफ िबकी आंखें जाती। वह बडी मुज‍कल
में पड गया यह तो आज भूल कर ली—अपने हाथों िे भूल कर ली।

जजनके र्र जाना था, वहां पहुंचा। जाकर पररचय ठदया कक मेरे समर है जमाल, बचपन के हम
दोस्त हे , बहुत प्यारे आदमी है । और कफर अचानक अनजाने मंहु िे तनकल गया कक रह गये
कपडे मेरे है । क्योंकक समर भी, जजनके र्र गये थे, वह भी उिके कपडों को दे ख रहा था। और
भीतर उिके चल रहा था कोट-पगडी,मेरी कोट-पगडी। और उन्हीं की वजह िे मैं परे शान हो
रहा हूं। तनकल गया मुंह िे की रह गये कपडे, कपडे मेरे है ।

समर भी है रान हुआ। र्र के लोग भी है रान हुए कक यह क्या पागलपन की बात है । ख्याल
उिको भी आया बोल जाने के बाद। तब पछताया कक ये तो भल ू हो गई। पछताया तो और
दबाया अपने मन को। बाहर तनकल कर क्षमा मांगने लगा कक क्षमा कर दो, गलती हो गयी।
समर ने कहा, कक मैं तो है रान हुआ कक तुमिे तनकल कैिे गया। उिने कहा कुछ नहीं, सिफघ
जबू ान थी चक
ु गई। हालांकक की जबान की चक ू कभी भी नहीं होती। भीतर कुछ चलता होता
है , तो कभी-कभी बेमौके जबान िे तनकल जाता है । चक
ु कभी नहीं होती है , माफ कर दो, भल

हो गई। कैिे यह क्या ख्याल आ गया, कुछ िमझ में नहीं आता है । हालांकक परू ी तरह िमझ
में आ रहा था ख्याल कैिे आया है ।

दि
ू रे समर के र्र गये। अब वह तय करता है रास्ते में कक अब चाहे कुछ भी हो जाये, यह
नहीं कहना है कक कपडे मेरे है । पक्का कर लेता है अपने मन को। र्र के द्वार पर उिने
जाकर बबल्कुल दृढ िंकल्प कर सलया कक यह बात नहीं उिानी है कक कपडे मेरे है । लेककन
उि पागल को पता नहीं कक वह जजतना ही दृढ िंकल्प कर रहा है इि बात का, वह दृढ
िंकल्प बता रहा है , इि बात को कक उतने ही जोर िे उिके भीतर यह भावना र्र कर रही
है कक ये कपडे मेरे है ।

आखखर दृढ िंकल्प ककया क्यों जाता है ?


एक आदमी कहता है कक मैं ब्रह्मचयघ का दृढ व्रत लेता हूं, उिका मतलब है कक उिके भीतर
कामुकता दृढता िे िक्के मार रही है । नहीं तो और कारण क्या है ? एक आदमी कहता है कक
मैं किम खाता हूं कक आज िे कम खाना खाऊंगा। उिका मतलब है कक किम खानी पड
रही है । ज्यादा खानें का मन है उिका। और तब अतनवायघ रूपेण द्वंद्व पैदा होता है । जजििे
हम लडना चाहते है , वहीं हमारी कमजोरी है । और तब द्वंद्व पैदा हो जाना स्वाभाप्रवक है ।

वह लडता हुआ दरवाजे के भीतर गया, िंभल-िंभल कर बोला कक मेरे समर है । लेककन जब
वह बोल रहा है , तब उिको कोई भी नहीं दे ख रहा है । उिके समर को उि िर के लोग दे ख
रहे है । तब कफर उिे ख्याल आया—मेरा कोट, मेरी पगडी। उिने कहा कक दृढता िे किम
खायी है । इिकी बात ही नहीं उिानी है । मेरा क्या है —कपडा-लत्ता। कपडे लत्ते ककिी के होत
है । यह तो िब िंिार है , िब तो माया है । लेककन यह िब िमझ रहा है । लेककन अिसलयत
तो बाहर िे भीतर,भीतर िे बाहर हो रही है । िमझाया कक मेरे समर है , बचपन के दोस्त है ,
बहुत प्यारे आदमी है । रह गये कपडे उन्ही के है , मेरे नहीं है । पर र्र के लोगो को ख्याल
आया कक ये क्या–-‘’कपडे उन्हीं के है , मेरे नहीं है ’’ —आज तक ऐिा पररचय कभी दे खा नही
गया था।

बाहर तनकल कर माफी मांगने लगा कक बडी भूल हुई जो रही है , मैं क्या करूं, क्या न करूं,
यह क्या हो गया है मुझ।े आज तक मेरी जजंदगी में कपडों ने इि तरह िे मुझे पकड सलया
है । पहले तो ऐिे कभी नहीं पकडा था। लेककन अगर तरकीब उपयोग में करें तो कपडे भी
पकड िकते है । समर ने कहा, मैं जाता नहीं तुम्हारे िाथ। पर वह हाथ जोडने लगा कक नहीं
ऐिा मत करो। जीवन भर के सलए दुःु ख रह जायेगा की मैंने क्या दव्ु यघवहार ककया। अब मैं
किम खाता हूं की कपडे की बात ही नहीं उिाऊंगा। मैं बबलकुल भगवान की किम खाता हूं।
कपडों की बात ही नहीं उिानी।

आकर किम खाने वालों िे हमेशा िाविान रहना जरूरी है , क्योंकक जो भी किम खाता है ,
उिके भीतर उि किम िे भी मजबत
ू कोई बैिा है । जजिके खखलाफ वह किम खा रहा है ।
और वह जो भीतर बैिा है , वह ज्यादा भीतर है । किम ऊपर है और बाहर है । किम चेतन
मन िे खायी गयी है । ओ जो भीतर बैिा है हव अचेतन की परतों तक िमाया हुआ है ।
अगर मन के दि ठहस्िे कर दें तो किम एक ठहस्िे ने खाई है । नौ ठहस्िा उलटा भीतर
खडा हुआ है । ब्रह्मचयघ की किमें एक ठहस्िा खा रहा है मन का और नौ ठहस्िा परमात्मा
की दहु ाई दे रहा है । वह जो परमात्मा ने बनाया है , वह उिके सलए ही कहे चले जा रहा है ।

गये तीिरे समर के र्र। अब उिने बबलकुल ही अपनी िांिों तक का िंयम कर रखा है ।
िंयम आदमी बडे खतरनाक होते है । क्योंकक उनके भीतर ज्वालामुखी उबल रहा है , ऊपर िे
वह िंयम िािे हुए है ।

और इि बात को स्मरण रखना कक जजि चीज को िािना पडता है —िािने में इतना श्रम
लग जाता है कक िािना पूरे वक्त हो नहीं िकती। कफर सशधथल होना पडेगा, प्रवश्राम करना
पडेगा। अगर मैं जोर िे मु्िी बााँि लूं तो ककतनी दे र बााँिे रह िकता हूं। चौबीि र्ंटे, जजतनी
जोर िे बािग
ूं ा उतना ही जल्दी थक जाऊाँगा और मु्िी खल ु जायेगी। जजि चीज में भी श्रम
करना पडता है जजतना ज्यादा श्रम करना पडता है उतनी जल्दी थकान आ जाती है । शजक्त
खत्म हो जाती है । और उल्टा होना शुरू हो जाता है । मु्िी बांिी जजतनी जोर िे , उतनी ही
जल्दी मु्िी खल
ु जायेगी। मु्िी खल
ु ी रखी जा िकती है । लेककन बााँि कर नहीं रखी जा
िकती है । जजि काम में श्रम पडता है उि काम को आप जीवन नहीं बना िकते। कभी
िहज नहीं हो िकता है वह काम। श्रम पडेगा तो कफर प्रवश्राम का वक्त आयेगा ही।

इिसलए जजतना ििा िंत है उतना ही खतरनाक आदमी होता है । क्योंकक उिके प्रवश्राम का
वक्त आयेगा। चौबीि र्ंटे भी तो उिे सशधथल होना ही पडेगा। उिी बीच दतु नया भी के पाप
उिके भीतर खडे हो जायेंगे। नकघ िामने आ जायेगा।

तो उिने बबलकुल ही अपने को िांि-िांि रोक सलया और कहा कक अब किम खाता हूं इन
कपडों की बात ही नहीं करनी।

लेककन आप िोच लें उिकी हालत, अगर आप थोडे बहुत भी िासमघक आदमी होंगे, तो आपको
अपने अनुभव िे भी पता चल िकता है । उिकी क्या हालत हुई होगी। अगर आपने किम
खायी हो, व्रत सलए हों िंकल्प िािे हों तो आपको भली भांतत पता होगा कक भीतर क्या
हालत हो जाती है ।

भीतर गया। उिके माथे िे पिीना चाँ ू रहा था। इतना श्रम पड रहा है । समर डरा हुआ है
उिके पिीने को दे खकर। उिकी िब निें खखंची हुई है । वह बाल रहा है एक-एक शब्द कक
मेरे समर है , बडे परु ाने दोस्त है । बहुत अच्छे आदमी है । और एक क्षण को वह रुका। जैिे
भीतर िे कोई जोर का िक्का आया हो और िब बह गया। बाढ आ गयी हो और िब बह
गया हो। और उिने कहा कक रह गयी कपडों की बात, तो मैंने किम खा ली है कक कपडों की
बात ही नहीं करनी है ।

तो यह जो आदमी के िाथ हुआ है वह पूरी मनुष्य जातत के िाथ िेक्ि के िंबंि में हो गया
है । िेक्ि को औब्िैशन बना ठदया है । िेक्ि को रोग बना ठदया है , िाव बना ठदया है और
िब प्रवषाक्त कर ठदया है ।
छोटे -छोटे बच्चों को िमझाया जा रहा है कक िेक्ि पाप है । लडककयों को िमझाया जा रहा
है , लडकों को िमझाया जो रहा के िेक्ि पाप है । कफर वह लडकी जवान होती है । इिकी
शादी होती है , िेक्ि की दतु नया शुरू होती है । और इन दोनों के भीतर यह भाव है कक यह
पाप है । और कफर कहा जायेगा स्री को कक पतत को परमात्मा मानों। जो पाप में ले जा रहा
है । उिे परमात्मा कैिे माना जा िकता है । यह कैिे िंभव है कक जो पाप में र्िीट रहा है
वह परमात्मा है । और उि लडके िे कहा जायेगा उि युवक को कहा जायेगा कक तेरी पत्नी
है , तेरी िाधथन है , तेरी िंधगनी है । लेककन वह नकघ में ले जा रही है । शास्रों में सलखा है कक
स्री नकघ का द्वार है । यह नकघ का द्वार िंगी और िाधथनी, यह मेरा आिा अंग—यह नकघ
का द्वार। मझ
ु े उिे में िकेल रहा है । मेरा आिा अंग। इि के िाथ कौन िा िामंजस्य बन
िकता है ।

िारी दतु नया का दाम्पत्य जीवन नष्ट ककया है इि सशक्षा ने। और जब दम्पतत का जीवन
नष्ट हो जाये तो िेम की कोई िंभावना नहीं है । क्योंकक वह पतत और पत्नी िेम न करें िकें
एक दि
ू रे को जो कक अत्यन्त िहज और नैिधगघक िेम है । तो कफर कौन और ककिको िेम
कर िकेगा। इि िेम को बढाया जा िकता है । कक पत्नी और पतत का िेम इतना प्रवकसित
हो, इतना उठदत हो इतना ऊंचा बने कक िीरे -िीरे बााँि तोड दे और दि
ू रों तक फैल जाये। यह
हो िकता है । लेककन इिको िमाप्त ही कर ठदया जाये,तोड ही ठदया जाये, प्रवषाक्त कर ठदया
जाये तो फैलेगा क्या, बढे गा क्या?

–ओशो

संभोग से समाधि की और —(3)


Posted on सितम्बर 7, 2010by sw anand prashad

िंभोग िे िमाधि की और--ओशो


संभोग : परमात्मा की सज
ृ न उजाा—3
रामानुज एक गांव िे गुजर रहे थे। एक आदमी ने आकर कहा कक मुझे परमात्मा को पाना
है । तो उन्होंने कहां कक तूने कभी ककिी िे िेम ककया है ? उि आदमी ने कहा की इि झंझट
में कभी पडा ही नहीं। िेम वगैरह की झंझट में नहीं पडा। मुझे तो परमात्मा का खोजना है ।

रामानुज ने कहा: तूने झंझट ही नहीं की िेम की? उिने कहा, मैं बबलकुल िच कहता हूं
आपिे।

वह बेचारा िीक ही कहा रहा था। क्योंकक िमघ की दतु नया में िेम एक डडस्कवासलकफकेशन है ।
एक अयोग्यता है ।
तो उिने िोचा की मैं कहूं कक ककिी को िेम ककया था, तो शायद वे कहें गे कक अभी िेम-व्रेम
छोड, वह राग-वाग छोड,पहले इन िबको छोड कर आ, तब इिर आना। तो उि बेचारे ने
ककया भी हो तो वह कहता गया कक मैंने नहीं ककया है । ऐिा कौन आदमी होगा,जजिने थोडा
बहुत िेम नहीं ककया हो?

रामानुज ने तीिरी बार पछ


ू ा कक तू कुछ तो बता, थोडा बहुत भी, कभी ककिी को? उिने कहा,
माफ कररए आप क्यों बार-बार वही बातें पूछे चले जा रहे है ? मैंने िेम की तरफ आाँख उिा
कर नहीं दे खा। मुझे तो परमात्मा को खोजना है ।

तो रामानुज ने कहा: मुझे क्षमा कर, तू कहीं और खोज। क्योंकक मेरा अनुभव यह है कक अगर
तूने ककिी को िेम ककया हो तो उि िेम को कफर इतना बडा जरूर ककया जा िकता है कक
वह परमात्मा तक पहुंच जाए। लेककन अगर तूने िेम ही नहीं ककया है तो तेरे पाि कुछ है
नहीं जजिको बडा ककया जा िके। बीज ही नहीं है तेरे पाि जो वक्ष
ृ बन िके। तो तू जा कहीं
और पछ
ू ।

और जब पतत और पत्नी में िेम न हो, जजि पत्नी ने अपने पतत को िेम न ककया हो और
जजि पतत ने अपनी पत्नी को िेम न ककया हो, वे बेटों को, बच्चों को िेम कर िकते है । तो
आप गलत िोच रहे है । पत्नी उिी मारा में बेटे को िेम करे गी, जजि मारा में उिने अपने
पतत को िेम ककया है । क्योंकक यह बेटा पतत का फल है : उिका ही ितत फलन है , उिका ही
रीललैक्शन है। यह एक बेटे के ितत जो िेम होने वाला है , वह उतना ही होगा,जजतना उिके
पतत को चहा और िेम ककया है । यह पतत की मूततघ है , जो कफर िे नई होकर वापि लौट
आयी है । अगर पतत के ितत िेम नहीं है , तो बेटे के ितत िेम िच्चा कभी भी नहीं हो िकता
है । और अगर बेटे को िेम नहीं ककया गया—पालन पोिना और बडा कर दे ना िेम नहीं है —
तो बेटा मां को कैिे कर िकता है । बाप को कैिे कर िकता है ।
यह जो यूतनट है जीवन का—पररवा, वह प्रवषाक्त हो गया है । िेक्ि को दप्रू षत कहने िे,
कण्डेम करने िे, तनजन्दत करने िे।

और पररवार ही फैल कर पुरा जगत है प्रव‍व है ।

और कफर हम कहते है कक िेम बबलकुल ठदखाई नहीं पडता है । िेम कैिे ठदखाई पडेगा?
हालांकक हर आदमी कहता है कक मैं िेम करता हूं। मां कहती है , पत्नी कहती है , बाप कहता
है , भाई कहता है । बहन कहती है । समर कहते है । कक हम िेम करते है । िारी दतु नया में हर
आदमी कहता है कक हम िेम करते है । दतु नया में इक्िा दे खो तो िेम कहीं ठदखाई ही नहीं
पडता। इतने लोग अगर िेम करते है । तो दतु नया में िेम की वषाघ हो जानी चाठहए, िेम की
बाढ आ जानी चाठहए, िेम के फूल खखल जाने चाठहए थे। िेम के ठदये ही ठदये जल जाते।
र्र-र्र िेम का दीया होता तो दतू नया में इक्िी इतनी िेम की रोशनी होती की मागघ आनंद
उत्िव िे भरे होते।

लेककन वहां तो र्ण


ृ ा की रोशनी ठदखाई पडती है । क्रोि की रोशनी ठदखाई पडती है । युद्िों की
रोशनी ठदखाई पडती है । िेम का तो कोई पता नहीं चलता। झूिी है यह बात और यह झूि
जब तक हम मानते चले जायेंगे,जब तक ित्य की ठदशा में खोज भी नहीं हो िकती। कोई
ककिी को िेम नहीं कर रहा।

और जब तक काम के तनिगघ को पररपूणघ आत्मा िे स्वीकृतत नहीं समल जाती है , तब तक


कोई ककिी को िेम कर ही नहीं िकता। मैं आपिे कहाना चाहता हूं कक काम ठदव्य है ,
डडवाइन है ।

िेक्ि की शजक्त परमात्मा की शजक्त है , ई‍वर की शजक्त है ।

और इिसलए तो उििे ऊजाघ पैदा होती है । और नये जीवन प्रवकसित होते है । वही तो िबिे
रहस्यपूणघ शजक्त है , वहीं तो िबिे ज्यादा समस्टीररयि फोिघ है । उििे द‍ु मनी छोड दें । अगर
आप चाहते है कक कभी आपके जीवन में िेम की वषाघ हो जाये तो उििे द‍ु मनी छोड दे ।
उिे आनंद िे स्वीकार करें । उिकी पप्रवरता को स्वीकार करें , उिकी िन्यता को स्वीकार करें ।
और खोजें उिमें और गहरे और गहरे —तो आप है रान हो जायेंगे। जजतनी पप्रवरता िे काम
की स्वीकृतत होगी, उतना ही काम पप्रवर होता हुआ चला जायेगा। और जजतना अपप्रवरता और
पाप की दृजष्ट िे काम का प्रवरोि होगा, काम उतना ही पाप-पूणघ और कुरूप होता चला
जायेगा।
जब कोई अपनी पत्नी के पाि ऐिे जाये जैिे कोई मंठदर के पाि जा रहा है । जब कोई पत्नी
अपने पतत के पाि ऐिे जाये जैिे िच में कोई परमात्मा के पाि जा रहा हो। क्योंकक जब
दो िेमी काम िे तनकट आते है जब वे िंभोग िे गुजरते है तब िच में ही वे परमात्मा के
मंठदर के तनकट िे गुजर रह है । वहीं परमात्मा काम कर रहा है , उनकी उि तनकटता में । वही
परमात्मा की िज
ृ न-शजक्त काम कर रही है ।

और मेरी अपनी दृजष्ट यह है कक मनुष्य को िमाधि का, ध्यान का जो पहला अनुभव समला
है कभी भी इततहाि में ,तो वह िंभोग के क्षण में समला है और कभी नहीं। िंभोग के क्षण में
ही पहली बार यह स्मरण आया है आदमी को कक इतने आनंद की वषाघ हो िकती है ।

और जजन्होंने िोचा, जजन्होंने मेडडटे ट ककया, जजन लोगों ने काम के िंबंि पर और मैथन
ु पर
धचंतन ककया और ध्यान ककया, उन्हें यह ठदखाई पडा कक काम के क्षण में , मैथन
ु के क्षण में
मन प्रवचारों िे शन्
ू य हो जाता है । एक क्षण को मन के िारे प्रवचार रूक जाते है । और वह
प्रवचारों का रूक जाना और वह मन का िहर जाना ही आनंद की वषाघ का कारण होता है ।

तब उन्हें िीक्रेट समल गया, राज समल गया कक अगर मन को प्रवचारों िे मुक्त ककया जा िके
ककिी और प्रवधि िे तो भी इतना ही आनंद समल िकता है । और तब िमाधि और योग की
िारी व्यवस्थाएं प्रवकसित हुई। जजनमें ध्यान और िामातयक और मेडडटे शन और िेयर
(िाथघना) इनकी िारी व्यवस्थाएं प्रवकसित हुई। इन िबके मूल में िंभोग का अनुभव है । और
कफर मनुष्य को अनुभव हुआ कक बबना िंभोग में जाये भी धचत शून्य हो िकता है । और जा
रि की अनुभूतत िंभोग में हुई थी। वह बबना िंभोग के भी बरि िकती है । कफर िंभोग
क्षखणक हो िकता है । क्योंकक शजक्त और उजाघ का वहााँ बहाव और तनकाि है । लेककन ध्यान
ितत हो िकता है।

तो मैं आपिे कहना चाहता हूं, कक एक युगल िंभोग के क्षण में जजि आनंद को अनुभव
करता है , उि आनंद को एक योगी चौबीि र्ंटे अनुभव कर िकता है । लेककन इन दोनों
आनंद में बुतनयादी प्रवरोि नहीं है । और इिसलए जजन्होंने कहा कक प्रवषया नंद और ब्रह्मानंद
भाई-भाई है । उन्होंने जरूर ित्य कहा है । वह िहोदर है , एक ही उदर िे पैदा हुए है , एक ही
अनुभव िे प्रवकसित हुए है । उन्होंने तनज‍चत ही ित्य कहां है ।

तो पहला िूर आपिे कहना चाहता हूं। अगर चाहते है कक पता चले कक िेम क्या है —तो
पहला िूर है काम की पप्रवरता, ठदव्यता, उिकी ई‍वरीय अनुभूतत की स्वीकृतत होगी। उतने ही
आप काम िे मुक्त होते चले जायेगे। जजतना अस्वीकार होता है , उतना ही हम बाँिते है । जैिा
वह फकीर कपडों िे बंि गया था।
जजतना स्वीकार होता है उतने हम मुक्त होते है ।

अगर पररपूणघ स्वीकार है , टोटल एक्िेप्टे बबसलटी है जीवन की, जो तनिगघ है उिकी तो आप
पाएंगे…..वह पररपूणघ स्वीकृतत को मैं आजस्तकता व्यजक्त को मुक्त करती है ।

नाजस्तक मैं उनको कहता हूं, जो जीवन के तनिगघ को अस्वीकार करते है , तनषेि करते है । यह
बुरा है , पाप है , यह प्रवष है , यह छोडो , वह छोडो। जो छोडने की बातें कर रहे है , वह ही
नाजस्तक है ।

जीवन जैिा है , उिे स्वीकार करो और जीओं उिकी पररपूणत


घ ा में । वही पररपूणत
घ ा रोज-रोज
िीठढयां ऊपर उिती जाती है । वही स्वीकृतत मनुष्य को ऊपर ले जाती है । और एक ठदन
उिके दशघन होते है ,जजिका काम में पता भी नहीं चलता था। काम अगर कोयला था तो एक
ठदन हीरा भी िकट होता है िेम का। तो पहला िर
ू यह है ।

दि
ू रा िर
ू आपिे कहना चाहता हूं, और वह दिू रा िरू िंस्कृतत ने, आज तक की िभ्यता ने
और िमों ने हमारे भीतर मजबत
ू ककया है । दिू रा िरू भी स्मरणीय है , क्योंकक पहला िर
ू तो
काम की ऊजाघ को िेम बना दे गा। और दि ू रा िूर द्वार की तरह रोके हुए है उि ऊजाघ को
बहने िे—वह बह नहीं पायेगी। (क्रमश: अगल अंक में पढे …….)

–ओशो

संभोग से समाधि की और — (4 )
Posted on सितम्बर 8, 2010by sw anand prashad

िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो

संभोग : परमात्मा की सज
ृ न-ऊजाा—4
वह दि
ू रा िूर है मनुष्य का यह भाव कक ‘मैं हूं’, ‘’ईगो’’, उिका अहं कार, कक मैं हूं। बुरे लोग
तो कहते है कक मैं हूं। अच्छे लोग और जोर िे कहते है ‘’मैं हूं’’—और मुझे स्वगघ जाना है
और मोक्ष जाना है और मुझे यह करना है और मुझे वह करना है । कक मैं हूं—वह ‘’मैं’’ खडा
है वहां भीतर।

और जजि आदमी का ‘’मैं’’ जजतना मजबूत होगा, उतनी ही उि आदमी की िाम्यघ दि


ू रे िे
िंयुक्त हो जाने की कम होती है । क्योंकक ‘’मैं’’ एक दीवान है , एक र्ोषणा है कक ‘’मैं हूं’’। मैं
की र्ोषणा कह दे ती है ; तुम-तुम हो, मैं-मैं हूं। दोनों के बीच फािला है । कफर मैं ककतना ही
िेम करूं और आपको अपनी छाती िे लगा लूं, लेककन कफर भी हम दो है । छाततयां ककतनी ही
तनकट आ जायें। कफर भी बीच मैं फािला है —मैं िे तुम तक का। तुम-तुम हो मैं-मैं ही हूं।
इिसलए तनकटता अनुभव भी तनकट नहीं ला पाते। शरीर पाि बैि जाते है । आदमी दरू बने
रहते है । जब तक भीतर ‘’मैं’’ बैिा हुआ है , तब तक ‘’दि
ू रे ’’ का भाव नष्ट नहीं होता।
िारघ ने कहीं एक अद्भुत वचन कहा है । कहा है कक ‘’ठद अदर इज़ हे ल’’ वह जो दि ू रा है वह
नकघ है । लेककन िारघ ने यह नहीं कहा कक ‘’व्हाई दी अदर इज़ अदर’’ वह दि
ू रा-दि
ू रा क्यों है ।
वह दिू रा-दि
ू रा इिसलए है के मैं-मैं हूं। और जब मैं ‘’मैं’’ हूं दतू नया में हर चीज दि
ू री है ,
सभन्न है । और जब तक सभन्नता है , तब तक िेम का अनुभव नहीं हो िकता।

िेम है एकात्म का अनुभव।

िेम है इि बात का अनुभव कक धगर गयी दीवाल और दो ऊजाघऐं समल गयीं और िंयुक्त हो
गयी।

जब यही अनुभव एक व्यजक्त और िमस्त के बीच फसलत होता है । तो उि अनुभव को मैं


कहता हूं—परमात्मा। और जब दो व्यजक्त के बीच फसलत होता है तो मैं उिे कहता हूं—िेम।

अगर मेरे और ककिी दि


ू रे व्यजक्त के बीच यह अनुभव फसलत हो जाये कक हमारी दीवालें
धगर जायें, हम ककिी भीतर के तल पर एक हो जायें; एक िंगीत, एक िारा एक िाण, तो यह
अनभ
ु व है िेम।

और ऐिा ही अनुभव मेरे और िमस्त के बीच र्ठटत हो जाये कक मैं प्रवलीन हो जाऊाँ और
िब और मैं एक हो जाऊाँ तो यह अनुभव है परमात्मा।

इिसलए मैं कहता हूं कक िेम है िीढी और परमात्मा है उि यारा की अंततम मंजजल। यह
कैिे िंभव है कक दि
ू रा समट जाए, जब तक मैं न समटू? जब तक दि ू रा कैिे समट िकता है ?
वह दिू रा पैदा ककया है मेरे ‘’मैं’’ की िततध्वतन ने। जजतना जोर िे मैं धचल्लाता हूं के मैं,
उतने ही जोर िे वह दि ू रा पैदा हो जाता है । वह दि ू रा िततध्वतन है , उि तरफ ‘इको’ हो रह
है मेरे ‘’मैं’’ की। और यह अंहकार,यह ‘’ईगो’’ द्वार पर दीवाल बनकर खडी है ।
और ‘मैं’ है क्या? कभी िोचा आपने यह ‘मैं’ है क्या? आपका हाथ है ; ‘’मैं’’, आपका पैर है ,
आपका मजस्तष्क है , आपका ह्रदय है , क्या है आपका मैं?

अगर आप एक क्षण भी शांत होकर भीतर खोजने जायेंगे कक कहां है ‘’मैं’’ कौन िी चीज है
मैं, तो आप एक दम है रान रह जायेगे कक भीतर कोई ‘’मैं’’ खोज िे समलने का नहीं है ।
जजतना गहरा खोजते जाओगे, उतना ही पाओगे, कक भीतर एक िन्नाटा और शून्य है , वहां
कोई मैं नहीं है , वहां कोई ‘’आई’’ वहां कोई ‘’ईगो’’ नहीं है ।

एक सभक्षु हुआ नाग िेन उिे एक ठदन िम्राट समसलन्द ने तनमंरण ठदया था कक तम ु आओ
दरबार में । जो राजदत
ू गया था तनमंरण दे ने, उिने नाग िेन को कहा कक सभक्षु नाग िेन,
आपको बल ु ाया है िम्राट समसलन्द ने। मैं तनमंरण दे ने आया हूं। तो नाग िेन कहने लगा, मैं
चलंग
ू ा जरूर; लेककन एक बात प्रवनय कर दाँ ;ू पहले ही कह दाँ ू कक सभक्षु नाग िेन जैिा कोई है
नहीं। यह केवल एक नाम है , कामचलाऊ नाम। आप कहते है तो मैं चलग
ंू ा जरूर,लेककन ऐिा
कोई आदमी कहीं है नहीं।

राज दत
ू ने जाकर िम्राट को कहा की बडा अजीब आदमी है वह। वह कहने लगा कक मैं
चलूंगा जरूर,लेककन ध्यान रहे कक सभक्षु नाग िेन जैिा कहीं कोई है नहीं, यह केवल एक
कामचलाऊ नाम है । िम्राट ने कहा, अजीब िी बात है , जब वह कहता है , मैं चलूंगा। आयेगा
वह।

वह आया भी रथ र बैिकर। िम्राट ने द्वार पर स्वागत ककया और कहा सभक्षु नाग िेन, हम
स्वागत करते है आपका।

वह हं िने लगा। उिने कहा,स्वागत स्वीकार करता हूं। लेककन स्मरण रहे सभक्षु नाग िेन
जैिा कोई आदमी नहीं है ।

िम्राट कहने लगा बडी अजीब पहली है । आगर आप-आप नहीं है तो कौन है ? कौन आया है
इि रथ पर बैि कर, कौन स्वागत स्वीकार रहा है , कौन दे रहा है उत्तर?

नाग िेन मड
ु ा और उिने कहा, दे खते है , िम्राट समसलन्द, यह रथ खडा है जजि पर मैं बैि कर
आय हूं। िम्राट ने कहां, हााँ यह रथ है । तो सभक्षु ने कहां की र्ोडों को तनकला कर अलग कर
ठदया जाये, र्ोडे अलग कर ठदये, तब सभक्षु नाग िेन ने िम्राट िे पछ ू ा की क्या ये र्ोड रथ
है ?
िम्राट ने कहां, र्ोडे रथ कैिे हो िकते है ? र्ोडे अलग कर ठदये गये, िामने के डंडे जजनिे
र्ोडे बंिे थे, खखंचवा सलए गये।

उिने पूछा क्या ये रथ है ?

सिफघ दो डंडे रथ कैिे हो िकते है ? डंडे अलग कर ठदये गये, चाक तनकलवा ठदये गये, और
एक-एक अंग रथ का तनकलता चला गया। और एक-एक अंग पर िम्राट को कहना पडा कक
नहीं, ये रथ नहीं है । कफर आखखर पीछे शून्य बच गया, वहां कुछ भी नहीं बचा।

सभक्षु नाग िेन पूछने लगा, रथ कहां है अब? रथ कहा है अब, और जजतनी चीजें मैंने तनकालीं,
तुमने कहा ये भी रथ नहीं, ये भी रथ नहीं, ये रथ गया कहां, अब ये रथ कहां है ?

तो िम्राट चौक कर खडा हो गया—रथ एक जोड था। रथ कुछ चीजों का िंग्रह-मार था। रथ
का अपना होना नही है , कोई ‘’ईगो’’ नहीं है । रथ एक जोड है ।

आप खोजें कहां है आपका ‘’मैं’’ और आप पायेंगे कक अनंत शजक्तयों के एक जोड है ; मैं कहीं
भी नहीं है । और एक-एक अंग आप िोचते चले जायें तो एक-एक अंग िमाप्त होता चला
जाता है , कफर पीछे शून्य रह जाता है । उिी शून्य िे िेम का जन्म होता है । क्योंकक वह
शून्य आप नहीं है वह शन्
ू य परमात्मा है ।

एक आदमी ने गांव में एक मछसलयों की दक


ू ान खोली थी। बडी दक
ु ान थी। उि गांव में
पहली दक
ु ान थी। तो उिने एक बहुत खब ू िूरत तख्ती बनवायी और उि पर सलखवाया–”फ्रेश
कफश िोल्ड ठहयर”—यहां ताजी मछसलयााँ बेची जाती है ।

पहले ही ठदन दक
ु ान खल
ु ा और एक आदमी आया ओर कहने लगा, ”फ्रेश कफश िोल्ड ठहयर”?
ताजी मछसलयााँ? कहीं बािी मछसलयााँ भी बेची जाती है ? ताजा सलखने की क्या जरूरत है ?

दक
ु ानदार ने िोचा कक बात तो िीक है । इििे और व्यथघ बातों का ख्याल पैदा होता है । उिने
”फ्रेश” अलग कर ठदया, ताजा अलग कर ठदया। तख्ती रह गयी ”कफश िोल्ड ठहयर” मछसलयााँ
बेची जाती है । मछसलयााँ यहां बेची जाती है ।

दि
ू रे ठदन एक बढ
ू ी औरत आयी और उिने कहां कक मछसलयााँ यहां बेची जाती है –”कफश
िोल्ड ठहयर” कहीं और भी बेची जाती है ।
तो उि आदमी ने कहा की यह ”ठहयर” बबलकुल कफजूल है , उिने तख्ती पर िे एक शब्द और
अलग कर ठदया। रह गया ”कफश िोल्ड”।

तीिरे ठदन एक आदमी आया और कहने लगा ”कफश िोल्ड” मछसलयााँ बेची जाती है ? मुलत में
दे ते हो क्या?

आदमी ने कहा, यह ”िोल्ड” भी खराब है , उिने िोल्ड को भी अलग कर ठदया। अब रह गई


”कफश”

अगले ठदन एक बूढा आदमी आया और कहने लगा, ”कफश”? अंिे को भी मीलों दरू िे पता
चल जाता है , कक यहां मछसलयााँ समलती है । ये तख्ती काहे को लटका रखी है ?

‘’कफश’’ भी चली गयी। खाली तख्ती रह गई।

अगले ठदन एक आदमी आया, वह कहने लगा, यह तख्ती ककि सलए लगी है ? दरू िे दे खने में
पता नहीं चलता की यहां दक
ु ान भी है । यह तख्ती दक
ु ान की आड करती है । उि ठदन वह
तख्ती भी चली गई। वहां अब कुछ भी नहीं रहा। इलीसमनेशन होता गया। एक-एक चीज
हटती चली गयी। पीछे जो शेष रह गया वह है , शुन्य।

उि शुन्य िे िेम का जन्म होता है , क्योंकक उि शून्य में दि


ू रे के शून्य िे समलने की क्षमता
है । सिफघ शून्य ही शून्य िे समल िकता है , और कोई नहीं। दो शून्य समल िकते है । दो
व्यजक्त नहीं। दो इन्डीवीज्युल नहीं समल िकते; दो वैक्यूम, दो एमप्टीनेिेि समल िकते है ;
क्योंकक बािा अब कोई नहीं है । शून्य की कोई दीवाल नहीं होती और हर चीज की दीवाल
होती है ।

तो दिू री बात स्मरणीय है कक व्यजक्त जब समटता है , नहीं रह जाता,पाता है कक ‘’हूं’’ है ही


नहीं। तो है , वह ‘’मैं नहीं है , जो है वह ‘’िब’’ है । तब द्वार धगरता है , दीवाल टूटती है ,है ,ब वह
गंगा बहती है , जो भीतर तछपी है और तैयार है । वह शन्
ू य की ितीक्षा कर रही है । कक कोई
शन्
ू य हो जाये तो उििे बह उिूं।

हम एक कुआं खोदते है , पानी भीतर है । पानी कहीं िे लाना नहीं होता है । लेककन बीच में
सम्टी-पत्थर पडे है । उनको तनकलना है , करते क्या है हम? करते है हम—एक शून्य बनाते है ,
एक खाली जगह बनाते है । एक एमप्टीनेि बनाते है । कुआं खोदने का मतलब है : खाली
जगह बनाना, ताकक खाली जगह में जो भीतर छीपा हुआ है , पानी, वह िकट हो जाये, स्पेि पा
जाये। वह भीतर है , उिको जगह चाठहए िकट होने को । जगह नहीं समल रही है । भरा हुआ
है कुआं सम्टी पत्थर हमने अलग कर ठदये, वह पानी उबल कर बाहर आ गया।

आदमी के भीतर िेम भरा हुआ है , स्पेि चाठहए,जगह चाठहए, जहां वह िकट हो जाये।

और हम भरे हुए है अपने को ‘’मैं’’ िे। और आदमी धचल्लाये चला जा रहा है ‘’मैं’’। और
स्मरण रखें जब आपकी आत्मा धचल्लाती है मैं, तब तक आप सम्टी-पत्थर िे भरे हुए कुएं
है । आप के कुएं में िेम के झरने कभी नहीं ठदखाई दे ते। नहीं फूटते, नहीं फूट िकते।

मैंने िूना है एक बहुत परु ाना वक्ष


ृ था। आकाश में िम्राट की तरह उिके हाथ फैले हुए थे।
उि पर फल आते थे तो दरू -दरू िे पक्षी िुगंि लेते आते थे। उि पर फूल लगते थे तो
तततसलयां उडती चली आती थी। उिकी छाया, उिके फैले हाथ, हवाओं में उिका वह खडा रूप
आकाश में बडा िुन्दर लगता था। एक छोटा िा बच्चा उिकी छाया में रोज खेलने आता था।
उि बडे वक्ष
ृ को उि छोटे बच्चे िे िेम हो गया।

बडों को छोटों िे िेम हो िकता है । अगर बडों को पता न हो कक हम बडे है । वक्ष


ृ को कोई
पता नहीं था कक मैं बडा हूं, वह पता सिफघ आदसमयों को होता है । इिसलए उिका िेम मर
गया है , और वक्ष
ृ अभी तनदोष है तनष्कलुष है उन्हें नहीं पता की मैं बडा हूं।

अहं कार हमेशा अपने िे बडों िे िेम करने की कोसशश करता है । अहं कार हमेशा अपनों िे
बडों िे िंबंि जोडता है । िेम के सलए कोई बडा छोटा नहीं है । जो आ जाएं, उिी िे िंबंि
जूड जाता है ।

वह एक छोटा िा बच्चा खेलने आता था, उि वक्ष


ृ के पाि। उि वक्ष
ृ का उििे िेम हो गया।
लेककन वक्ष
ृ की शाखाएं ऊपर थीं। बच्चा छोटा था तो वक्ष
ृ अपनी शाखाएं उिके सलए नीचे
झुकाता, ताकक वह फल तोड िके, फूल तोड िके।

िेम हमेशा झक
ु ने को राज़ी है , अहं कार कभी भी नहीं झक
ु ने को राज़ी होता है ।

अहं कार के पाि जायेंगे तो अहं कार के हाथ और ऊपर उि जायेंगे। ताकक आप उन्हें छू न
िकें। क्योंकक जजिे छू सलया जाये। वह छोटा आदमी है । जजिे न छुआ जा िके, दरू सिंहािन
पर ठदल्ली में हो, वह आदमी बडा आदमी है ।

उि वक्ष
ृ की शाखाएं नीचे झक
ु आती थी, जब वह बच्चा खेलता हुआ आता उि वक्ष
ृ के पाि,
और वह जब उिका फूल तोडता, तब वह वक्ष
ृ अंदर तक सिहर जाता, िेम की छुअन िे
िराबोर हो जाता। और खश
ु ी के मारे उिकी शाखाएं नाचने झूमने लगती। उिके िाण आनंद
िे भर जाते।

िेम जब भी कुछ दे पाता है तो खश


ु हो जाता है ।

अहं कार जब भी कुछ ले पाता है , तभी खश


ु होता है ।

कफर वह बच्चा बडा होने लगा। वह कभी उिकी छाया में िोता, कभी उिके फल खाता, कभी
उिके फूलों का ताज बनाकर पहनता, वक्ष
ृ उिे जंगल के िम्राट के रूप में दे ख कर गद्द गद
हो जोता।

िेम के फूल जजिके पाि भी बरितें हैं, वही िम्राट हो जाता है , वक्ष
ृ के िाण आनंद िे भर
जाते, उिकी छूआन उिे अन्दर तक गद
ु गद
ु ा जाती। हवा जब उिके पता को छूती तो उििे
मिरु गान तनकलता। नये-नये गीत फूटते उि बच्चे के िंग।

वह लडका कुछ और बडा हुआ। वह वक्षृ के उपर चढने लगा। उिकी शाखाओं िे झुलने लगा।
वह उि की प्रवशाल शाखाओं पर लेट कर प्रवश्राम करता। वक्ष
ृ आनंठदत हो उिता। िेम
आनंठदत होता है जब िेम ककिी के सलए छाया बन जाता है ।

अहं कार आनंठदत होता है जब ककिी की छाया छीन लेता है ।

लडका िीरे -िीरे बडा होता चला गया। ठदन पर ठदन बीतते ही चले गये, मानों िमय को पंख
लग गये। ऋतु पर ऋतु बदलती चली गयी। वक्ष
ृ को पता ही नहीं चला उि िमय का। जब
हम आनंद में होते है तो िमय की गतत तेज हो जाती है । मानों उिके पंख लग गये हो। तब
लडका बडा हो गया तो उिे और दि
ू रे काम भी उिकी दतु नयां में आ गये। महत्वकांक्षाएं आ
गई। उिे परीक्षाए पाि करनी थी। उिे समरों के िाथ भी खेलना था। पढाई में िब को पछाड
कर अव्वल आना था। िीरे -िीरे उिका आना कम िे कमतर होता चला गया। कभी आता
कभी नहीं आता। लेककन वक्ष
ृ तो हमेशा उिकी राह ताकता रहता। की वह कब आये और
उिके उपर चढे उिकी टहनीयों िे खोले, उिके फूल तोडे। उिके फल खाये। लेककन वह हलतों
महीनों बाद कभी आता। वक्ष
ृ उिकी ितीक्षा करता कक वह आये। वह आये। उिके िारे िाण
पक
ु ारते कक आओ-आओ।

िेम तनरं तर ितीक्षा करता है कक आओ-आओ।

िेम एक ितीक्षा है , एक अवेठटंग है ।


लेककन वह कभी आता, कभी नहीं आता, तो वक्ष
ृ उदाि रहने लगा।

िेम की एक ही उदािी है जब वह बांट नहीं िकता। तब वह उदाि हो जाता है । जब वह दे


नहीं पाता, तो उदाि हो जाता है ।

और िेम की एक ही िन्यता है कक जब वह बांट दे ता है , लुटा दे ता है तो आनंठदत हो जाता


है ।

कफर लडका और बडा होता चला गया। और वक्ष


ृ के पाि आने के ठदन कम होत चले गये।

जो आदमी जजतना बडा होता चला जाता है महत्वाकांक्षा के जगत में , िेम के तनकट आने की
िप्रु विा उतनी ही कम होती चली जाती है । उि लडके की महत्वाकांक्षा बढ रही थी। कहां अब
वक्ष
ृ के पाि जाना।

कफर एक ठदन वह वहां िे तनकला जा रहा था, तो उि वक्ष


ृ ने उिे पुकार की िुनो। हवाओं ने
पत्तों ने उिकी आवाज को गुंजायमान ककया। तुम आते नहीं, मैं ितीक्षा करता हूं, मैं रोज
तुम्हारी राह दे खता हूं, कक तुम इिर आओ, मेरी आंखें थक जाती है । पर तुम अब इिर नहीं
आते क्यों?

उि लडके ने एक बार र्ुर कर दे खा उि वक्ष


ृ को और कहां की क्या है तुम्हारे पाि। जो मैं
आऊं,मुझे तो रूपये चाठहए।

हमेशा अहं कार पूछता है , कक क्या हे तुम्हारे पाि, जो मैं आऊं। अहं कार मांगता है कक कुछ हो
तो मैं आऊं। न कुछ हो तो आने की जरूरत नहीं है ।

अहं कार एक ियोजन है , एक परपज़ है । ियोजन पूरा होता है तो मैं आऊं। अगर कोई ियोजन
न हो तो आने की जरूरत क्या है।

और िेम तनष्ियोजन है । िेम का कोई ियोजन नहीं। िेम अपने में ही अपना ियोजन है , वह
बबलकुल पपघजलेि है ।

वक्ष
ृ तो चौंक गया। उिने कहा, तुम तभी आओगे, जब मैं तुम्हें कुछ दाँ ।ू मैं तुम्हें िब दे
िकता हूं। क्योंकक िेम कुछ भी रोकना नहीं चाहता। जो रो ले वह िेम नहीं है । अहं कार
रोकता है । िेम तो बेशतघ दे ता है । लेककन ये रूपये तो मेरे पाि नहीं है । ये रूपये तो आदमी
की ईजाद है । उिी का रोग है अभी हमे नहीं लगा। हम बचे है अभी।
उि वक्ष
ृ ने कहां, इि सलए तो दे खो हम इतने आनंठदत है । पर मनुष्य के िंग िाथ रह कर
हम उिके रोक को पाल लेते है । वरना तो हमारे उत्िव को दे खो इन खीलें फूलों को दे खो,
इतने प्रवशाल तने, इनकी छाया। इनपर पक्षक्षयों का चहकना। अपने र्र बनाना। खेलना
नाचना। कलरव करना। दे खो हम ककतने नाचते है आकाश में , ककतने गीत गाते है। क्योंकक
हमारे पाि पैिा नहीं है । हम आदमी की तरह दीन-हीन मंठदरों में बैि कर, शांतत की कामना
करते है । कक कैिे पाई जाये। िर टरकाते है उिके चरणों में कक हमें कुछ तो दो हम पडे है
तेरे द्वार…पर हमारे पाि पैिा नहीं है ।

तो उिने कहा, कफर क्यों आऊं में तुम्हारे पाि। जहां पर रूपये है मुझे तो वहीं जाना है । तुम
िमझते नहीं हमारी मजबूरी, क्योंकक तुम्हें पैिे की जरूरत नहीं है । पानी तम्
ु हें कुदरत िे समल
जाता है , जजि सम्टी पर तुम खडे हो वह तुम्हें मुलत में समल गई है । हवा, िप
ू जो तुम्हें
पोशण दे ती है उिके सलए तुम्हें कुछ दे ना नहीं होता। पर हमें तो िब पैिे िे ही लेना है ,
हमारा जीवन तो पैिे िे ही चला है …..अब ये बात तुम्हें कैिे िमझाऊं।

अहं कार रूपये मांगता है । क्योंकक रूपया शजक्त है , िुरक्षा है ।

उि वक्ष
ृ ने बहुत िोचा, कफर उिे ख्याल आया….तो तुम एक काम तो कर िकते हो, मेरे िारे
फल तोड कर ले जाओ ओर बेच दो उिे बाजार में , कफर तम्
ु हें शायद पैिा समल जाये।

उि लडके की आंखों में चमक आ गई। उिे तो ये ख्याल ही नहीं आया था। वह खश
ु ी िे
राजा हो गया। वह चढ गया उि वक्ष
ृ पर और तोडने लगा फल, पर आज उिके हाथों में
कुरता थी, उिके चढने िे भी उि वक्ष
ृ को कुछ भारी पन लग रहा था। उिने फलों के िाथ
तोड डालें हजारों पत्ते, टहनीया, वक्ष
ृ को पीडा होती पर वह यह जान कर आनंठदत होता की ये
पीडा उिके िेमी ने ही तो दी है । िेम पीडा में भी आनंद दे ख लेता है । और अहं कार उदारता
में भी द:ु ख। लेककन कफर भी वह वक्ष
ृ खशु था कक इि बहाने उिे उि का िंग िाथ तो
समला।

टूटकर भी िेम आनंठदत हो जाता है ।

अहं कार पाकर भी आनंठदत नहीं होता। पाकर भी द:ु खी होता है । ओर उि लडके ने तो
िन्यवाद भी नहीं ठदया और िारे फल ले कर चल ठदया बाजार की और। वक्ष
ृ उिे तनहारता
रहा। जाते हुए दे खता रहा, अपने को तप्ृ त करता रहा पर उिने एक बार भी पीछे मुड कर
नहीं दे खा।
लेककन उि वक्ष
ृ को पता भी नहीं चला। उिे तो िन्यवाद समल गया इिी में कक उि लडके
ने उिके िेम को स्वीकार ककया। और उििे फल तोडे और उन्हें बेचकर उिे िन समल
जायेगा। वह यह िोच-िोच कर गद्द गद हो रहा था।

लेककन इिके बाद भी वह लडका बहुत ठदनों तक नहीं आया। उिके पाि रूपये थे,और रुपयों
िे रूपये पैदा करने की कोसशश में वह लग गया। वह भूल ही गया उि बात को। कक वह
पैिा उिे उिी वक्ष
ृ के िेम की दे न है । िालों गुजर गये।

और िीरे -िीरे वक्ष


ृ की उदािी उिके पत्तों पर भी उभरने लगी। तेज हवा ये उिे खडखडाती
जरूर पर अब उनमें वह लय वठदता नहीं थी। एक मद
ु े की िी खडखडाहट थी। वह इि सलए
जीवत भी की उिके िाणों में रि का िंचार हााँ रहा था। उिके िाणा को रि बार-बार
पक
ु ारता उि लडके को की तू मेरे पाि आ मैं तझ
ु े अपना रि दाँ ग
ू ा। जैिे ककिी मां के स्तन
में दि
ू भरा हो और उिका बेटा खो जाये। और उिके िाण तडप रहे है कक उिका बेटा कहां
है जजिे वह खोजें, जो उिे हलका कर दे । तनभाघर कर दे । ऐिा उि वक्ष
ृ के िाण पीडडत होने
लगे कक वह आये—आये,आये। उिके िाणों की िारी आवाज में यही गुंज रहा था। आओ-
आओ।

बहुत ठदनों के बाद वह आया। वह लडका िौढ हो गया था। वक्ष


ृ ने उििे कहा आओ मेरे
पाि। मेरे आसलंगन में आओ। उिने कहा छोडो,यह बकवाि। यह बचपन की बातें है । अब में
बडा हो गया हुं मेरे कंिों पर र्र गह
ृ स्थी का बोझ आ गये है । ये िब तम
ु नहीं िमझ
िकते।

अहं कार िेम को पागलपन िमझता है । बचपन की बातें िमझता है ।

उि वक्ष
ृ ने कहा, आओ मेरी डसलयों िे झल
ू ों—नाचो, चढो मझ
ु पर। दौडों भागों….

उिने कहा छोडो भी ये फजूल की िब बातें ,क्या रखा इन िब में । िमय खराब करना ही है ।
मुझे एक मकार बनाना है । तुम मुझे मकान दे िकते हो?

वक्ष
ृ ने कहा, मकान? वह क्या होता है , हम तो कोई मकान नहीं बनाते। क्यों बनाओगे तम

मकान। क्या काम आयेगा। और भी पशु पक्षी भी मकान, र्ोिला बनाते, है चींठटयााँ, दीमक,पर
वह तो आदमी की तरह दुःु खी नहीं होती। वह तो बडे आनंद उत्िव िे उिके बनाने काि
आनंद लेती है । कफर तुम इतने उदाि क्यों है ? लेककन एक बात हो िकती है , मैं क्या िहायता
कर िकता हूं तुम्हारे मकान बनाने के सलए…..कोई हो तो कहो।
वह आदमी थोडी दे र के सलए तो चप
ु हो गया। उिके ठदल की बात ज़ुंबााँ पर आते-आते रूक
गई। पर वह िाहि कर के कहने लगा। तुम अपनी शाखाएं मुझे दे दो तो में अपने मकान
की छात आराम िे डाल िकता हूं। वक्ष ृ मुस्कुराया और कहने लगा तो इिमें इतना िोचने
की क्या बता है । तुम ले िकते हो मेरी शाखाएं। मैं तुम्हारे ककिी भी काम आ िकाँू तो अपने
को िन्य ही मानाँग
ू ा। और मुझे लगेगा की तुमने मुझे प्यार ककया।

और वह आदमी गया और कुल्हाडी लेककर आ गया और उिने उि वक्ष


ृ की शाखाएं काट
डाली। वक्ष
ृ एक िूंि रह गया। एक दम मत
ृ िाय, नग्न, पर कफर भी वह वक्ष
ृ आनंठदत था।

िेम िदा आनंठदत रहता है । चाहे उिके अंग भी काटे जायें। लेककन कोई ले जाये, कोई ले
जाये, कोई बांट ले, कोई िजम्मसलत हो जाये, कोई िाझीदार हो जाये।

और उि आदमी ने पीछे मुड कर इि बार भी नहीं दे खा।

और वक्त गज
ु रता गया। वह िूंि राह दे खता रहा, वह धचल्लाना चाहता था। कहना चाहता था,
अपने ह्रदय की पक
ु ार, पर अब उिके पाि पत्ते भी नहीं थे। शाखाएं भी नहीं थी। हवाएाँ आती
और वह उनिे बात भी नहीं कर पाता था। बुला भी नहीं पाता था अपने िेमी को। लेककन
िाणों में अब भी एक गुंज थी आओ-आओ….एक बार कफर आओ।

और बहुत ठदन बीत गये। तब वह बच्चा अब बूढा आदमी हो गया था। वह तनकल रहा था
उिके पाि िे। और वह वक्ष
ृ के पाि आकर खडा हो गया। बहुत ठदनों बाद आये, पर तुम्हें
मेरी याद िताती तो है । कहो िब िीक है । कैिे उदाि हो। कमर झुक गई है । बाल िफेद हो
गये। आंखों पर चशमा लगा गया है । उिने कहा में िदे श जाना चाहता हूं। यहां इतनी मेहनत
की कुछ नहीं समला। वहां जा कर खबू िन कमाऊगां। पर मैं नदी पर नहीं कर िकता। उिके
सलए नाव चाठहए। तम ु अपना तना मझु े दे दो तो मैं नाव बना जा िकता हूं। नाव तो तम ु
मेरी बना िकते हो, पर मझ
ु े भल
ू मत जाना वहां जाकर। मझ ु े तम्
ु हारी बहुत याद आती है ।
तम
ु लोट कर जरूर इिर आना। मैं यहां तम्
ु हारी ितीक्षा करूंगा।

और उिने उि वक्ष
ृ के तने को काट कर नाव बना ली। वहां रह गया एक छोटा िा िूंि, और
वह आदमी दरू यारा पर तनकल गया। और वह िूंि उिकी ितीक्षा करता रहा की अब
आयेगा। अब आयेगा। लेककन अब तो उिके पाि कुछ भी नहीं था। उिे दे ने की सलए शायद
वह कभी इिर नहीं आयेगा। क्योंकक अहं कार वहीं आता है । जहां कुछ पाने को है । अहं कार
वहीं नहीं जाता,जहां कुछ पाने को नहीं है ।
मैं उि िूंि के पाि एक रात मेहमान हुआ था। तो वह िूंि मुझिे बोला कक वह मेरा समर
अब तक नहीं आया। और मुझे बडी पीडा होती है । की वह िीक िे तो है । वह मेरे तने की
नाव बना कर परदे श गया था। कही मेरे तने में कोई छे द तो नहीं था। मुझे रात ठदन यही
धचंता िताये जाती है । बि एक बार यह पता चल जाये की वह जहां भी है खश
ु है । तो में
तप्ृ त हो जाऊाँगा। एक खबर मुझे भर कोई ला दे । अब मैं मरने के करीब हूं। इतना पता चल
जाये कक वह िकुशल है , कफर कोई बात नहीं। कफर िब िीक है । अब तो मेरे पाि दे ने को
कुछ नहीं है । इिसलए बल
ू ाऊं भी तो शायद वह नहीं आयेगा। क्योंकक वह केवल लेने की ही
भाषा िमझता है ।

अहं कार लेने की भाषा िमझता है ।

िेम दे ने की भाषा है ।

इििे ज्यादा ओर कुछ भी मैं नहीं कहूंगा।

जीवन एक ऐिा वक्ष


ृ बन जाये और उि वक्ष
ृ की शाखाएं अनंत तक फैल जायें। िब उिकी
छाया में हों और िब तक उिकी बााँहें फैल जायें तो पता चल िकता है कक िेम क्या है ।

िेम का कोई शस्र नहीं है । न कोई पररभाषा है । नहीं िेम का कोई सिद्िांत ही है ।

तो मैं बहुत है रानी मैं था कक क्या कहूंगा आपिे की िेम क्या है , तो बताना मुज‍कल है ।
आकर बैि िकता हूं—और अगर मेरी आंखों में वह ठदखाई पड जाये तो ठदखाई पड िकता
है । अगर मेरे हाथों में ठदखाई पड जाये तो ठदखाई पड िकता है । मैं कह िकता हूं ये है िेम

लेककन िेम क्या है ? अगर मेरी आाँख में न ठदखाई पडे मेरे हाथ में न ठदखाई पडे, तो शब्दों में
तो बबलकुल भी ठदखाई नहीं पडा िकता है कक िेम क्या है ।

मेरी बातों को इतने िेम और शांतत िे िुना, उििे बहुत-बहुत अनुगठृ हत हूं, और अंत में िबके
भीतर बैिे परमात्मा को िणाम करता हूं। मेरे िणाम स्वीकार करे ।

–ओशो

संभोग से समाधि की और –(5 )


Posted on सितम्बर 9, 2010by sw anand prashad

िंभोग िे िमाधि की और--ओशो

संभोग: अहं -शून्यता की झलक—1


मेरे वप्रय आत्मन,
एक िबु ह, अभी िरू ज भी तनकलन हीं था। और एक मांझी नदी के ककनारे पहुंच गया था।
उिका पैर ककिी चीज िे टकरा गया। झुककर उिने दे खा। पत्थरों िे भरा हुआ एक झोला
पडा था। उिने अपना जाल ककनारे पर रख ठदया,वह िुबह के िूरज के उगने की ितीक्षा
करने लगा। िूरज ऊग आया,वह अपना जाल फेंके और मछसलयााँ पकडे। वह जो झोला उिे
पडा हुआ समला था, जजिमें पत्थर थे। वह एक-एक पत्थर तनकालकर शांत नदी में फेंकने
लगा। िुबह के िन्नाटे में उन पत्थरों के धगरने की छपाक की आवाज उिे बडी मिरु लग
रही थी। उि पत्थर िे बनी लहरे उिे मुग्ि कर रही थी। वह एक-एक कर के पत्थर फेंकता
रहा।
िीरे -िीरे िुबह का िूरज तनकला, रोशनी हुई। तब तक उिने झोले के िारे पत्थर फेंक ठदये
थे। सिफघ एक पत्थर उिके हाथ में रह गया था। िरू ज की रोशनी मे दे खते ही जैिे उिके
ह्रदय की िडकन बंद हो गई। िांि रूक गई। उिने जजन्हें पत्थर िमझा कर फेंक ठदया था।
वे हीरे -जवाहरात थे। लेककन अब तो अंततम हाथ में बचा था, और वह पूरे झोले को फेंक चक
ू ा
था। और वह रोने लगा, धचल्लाने लगा। इतनी िंपदा उिे समल गयी थी कक अनंत जन्मों के
सलए काफी थी, लेककन अंिेरे में , अंजान अपररधचत, उिने उि िारी िंपदा को पत्थर िमझकर
फेंक ठदया था।

लेककन कफर भी वह मछुआ िौभाग्यशाली था, क्योंकक अंततम पत्थर फेंकने िे पहले िूरज
तनकल आया था और उिे ठदखाई पड गया था कक उिके हाथ में हीरा है । िािारणतया िभी
लोग इतने भाग्यशाली नहीं होते। जजंदगी बीत जाती है , िूरज नहीं तनकलता, िुबह नहीं होती,
िूरज की रोशनी नहीं आती। और िारे जीवन के हीरे हम पत्थर िमझकर फेंक चक
ु े होते है ।
जीवन एक बडी िंपदा है , लेककन आदमी सिवाय उिे फेंकने और गंवाने के कुछ भी नहीं
करता है ।

जीवन क्या है , यह भी पता नहीं चल पाता और हम उिे फेंक दे ते है । जीवन में क्या तछपा
है , कौन िे राज, कौन िे रहस्य, कौन िा स्वगघ, कौन िा आनंद, कौन िी मुजक्त, उन िब का
कोई भी अनुभव नहीं हो पाता और जीवन हमारे हाथ िे ररक्त हो जाता है ।

इन आने वाले तीन ठदनों में जीवन की िंपदा पर ये थोडी िी बातें मुझे कहानी है । लेककन
जो लोग जीवन की िंपदा को पत्थर मान कर बैिे है । वे कभी आाँख खोलकर दे ख पायेंगे कक
जजन्हें उन्होंने पत्थर िमझा है , वह हीरे -माखणक है , यह बहुत कठिन है । और जजन लोगो ने
जीवन को पत्थर मानकर फेंकन में ही िमय गंवा ठदया है । अगर आज उनिे कोई कहने
जाये कक जजन्हें तम
ु पत्थर िमझकर फेंक रहे थे। वहां हीरे -मोती भी थे तो वे नाराज होंगे।
क्रोि िे भर जायेंगे। इिसलए नहीं कक जो बात कही गयी है वह गलत है , बजल्क इिसलए कक
यह बात इि बात का स्मरण ठदलाती है । कक उन्होंने बहुत िी िंपदा फेंक दी।

लेककन चाहे हमने ककतनी ही िंपदा फेंक दी हो, अगर एक क्षण भी जीवन का शेष है तो कफर
भी हम कुछ बचा िकते है । और कुछ जान िकते है और कुछ पा िकते है । जीवन की खोज
में कभी भी इतनी दे र नहीं होती कक कोई आदमी तनराश होने का कारण पाये।

लेककन हमने यह मान ही सलया है —अंिेरे में , अज्ञान में कक जीवन में कुछ भी नहीं है सिवाय
पत्थरों के। जो लोग ऐिा मानकर बैि गये है , उन्होंने खोज के पहले ही हार स्वीकार कर ली
है ।

मैं इि हार के िंबंि में , इि तनराशा के िंबंि के, इि मान ली गई पराजय के िंबंि में िबिे
पहले चेतावनी यह दे ना चाहता हूं के जीवन समटटी और पत्थर नहीं है । जीवन में बहुत कुछ
है । जीवन समटटी और पत्थर के बीच बहुत कुछ तछपा है । अगर खोजने वाली आंखें हो तो
जीवन िे वह िीढी भी तनकलती है , जो परमात्मा तक पहुाँचती है । इि शरीर में भी,जो दे खने
पर हड्डी मांि और चमडी िे ज्यादा नहीं है । वह तछपा है , जजिका हड्डी, मांि और चमडी िे
कोई िंबंि नहीं है । इि िािारण िी दे ह में भी जो आज जन्मती है कल मर जाती है । और
समटटी हो जाती है । उिका वाि है —जो अमत
ृ है , जो कभी जन्मता नहीं और कभी िमाप्त
नहीं होता है ।

रूप के भीतर अरूप तछपा है और दृ‍य के भीतर अदृ‍य का वाि है । और मत्ृ यु के कुहािे में
अमत ृ की ज्योतत छीपी है। मत्ृ यु के िए
ु ाँ में अमत
ृ की लौ भी तछपी हुई है । वह ललेम वह
ज्योतत भी तछपी है , जजिकी की कोई मत्ृ यु नहीं है ।
यह यारा कैिे हो िकती है कक िए ु ाँ के भीतर तछपी हुई ज्योतत को जान िकें, शरीर के भीतर
तछपी हुई आत्मा को पहचान िकें, िकृतत के भीतर तछपे हुए परमात्मा के दशघन कर िकें।
उि िंबंि में ही तीन चरणों में मुझे बातें करनी है ।

पहली बात,हमने जीवन के िंबंि में ऐिे दृजष्टकोण बना सलए है , हमने जीवन के िंबंि में
ऐिी िारणाएं बना ली है । हमने जीवन के िंबंि में ऐिा फलिफा खडा कर रखा है कक उि
दृजष्टकोण और िारणा के कारण ही जीवन के ित्य को दे खने िे हम वंधचत रह जाते है।
हमने मान ही सलया है कक जीवन क्या है —बबना खोजें, बबना पहचाने, बबना जजज्ञािा ककये,
हमने जीवन के िंबंि में कोई तनज‍चत बात ही िमझ रखी है

हजारों वषों िे हमें एक बात मंर की तरह पढाई जाती है । जीवन आिार है , जीवन व्यथघ हे ,
जीवन द:ु ख है । िम्मोहन की तरह हमारे िाणों पर यह मंर दोहराया गया है कक जीवन व्यथघ
है , जीवन आिार है , जीवन छोडने योग्य है । यह बात िन
ु -िन
ु कर िीरे -िीरे हमारे िाणों में
पत्थर की तरह मजबत
ू होकर बैि गयी है । इि बात के कारण जीवन आिार ठदखाई पडने
लगा है । जीवन दुःु ख ठदखाई पडने लगा है । इि बात के कारण जीवन ने िारा आनंद, िारा
िेम,िारा िौंदयघ खो ठदया है । मनुष्य एक कुरूपता बन गया है । मनुष्य एक दुःु ख का अड्डा
बन गया है ।

और जब हमने यह मान ही सलया कक जीवन व्यथघ, आिार है , तो उिे िाथघक बनाने की िारी
चेष्टा भी बंद हो गयी हो तो आ‍चयघ नहीं है । अगर हमने यह मान ही सलया है कक जीवन
एक कुरूपता है ताक उिके भीतर िौंदयघ की खोज कैिे हो िकती है । और अगर हमने यह
मान ही सलया है कक जीवन सिफघ छोड दे ने योग्य है , तो जजिे छोड ही दे ना है । उिे िजाना,
उिे खोजना, उिे तनखारना,इिकी कोई भी जरूरत नहीं है ।

हम जीवन के िाथ वैिा व्यवहार कर रहे है , जैिा कोई आदमी स्टे शन पर प्रवश्रामालय के
िाथ व्यवहार करता है । वेठटंग रूम के िाथ व्यवहार करता है । वह जानता है कक क्षण भर
हम इि वेठटंग में िहरे हुए है । क्षण भर बाद छोड दे ना है , इि वेठटंग रूम का ियोजन क्या
है ? क्या अथघ है ? वह वहां मूंगफली के तछलके भी डालता है । पान भी थक ू दे ता है । गंदा भी
करता है और िोचता है मुझे क्या ियोजन। क्षण भर बाद मुझे चले जाना है ।

जीवन के िंबंि में भी हम इिी तरह का व्यवहार करते है । जहां िे हमें क्षण भर बाद चले
जाना है । वहां िुन्दर और ित्य की खोज और तनमाघण करने की जरूरत क्या है ?

लेककन मैं आपिे कहना चाहता हूं, जजंदगी जरूर हमें छोड कर चले जाना है ; लेककन जो अिली
जजंदगी है , उिे हमें कभी भी छोडने का कोई उपाय नहीं है । हम र्र छोड दें गे,यह स्थान छोड
दें गे; लेककन जो जजंदगी का ित्य है , वह िदा हमारे िाथ होगा। वह हम स्वयं है । स्थान बदल
जायेंगे बदल जायेंगे, लेककन जजंदगी…जजंदगी हमारे िाथ होगी। उिके बदलने का कोई उपाय
नहीं है ।

और िवाल यह नहीं है कक जहां हम िहरे थे उिे हमनें िुंदर ककया था, जहां हम रुके थे वहां
हमने िीततकर हवा पैदा की थी। जहां हम दो क्षण को िहरे थे वहां हमने आनंद की गीत
गाया था। िवाल यह नहीं है कक वहां आनंद का गीत हमने गाया था। िवाल यह है कक
जजिने आनंद का गीत गया था, उिके भीतर आनंद के और बडी िंभावनाओं के द्वार खोल
सलए। जजिने उि मकान को िुंदर बनाया था। उिने और बडे िौंदयघ को पाने की क्षमता
उपलब्ि कर ली है । जजिने दो क्षण उि वेठटंग रूम में भी िेम के बीताये थे, उिने और बडे
पर को पाने की पारता अजजघत कर ली है ।

हम जो करते है उिी िे हम तनसमघत होते है । हमारा कृत्य अंतत: हमें तनसमघत करता है । हमें
बनाता है । हम जो करते है , वहीं िीरे -िीरे हमारे िाण और हमारी आत्मा का तनमाघता हो जाता
है । जीवन के िाथ हम क्या कर रहे है ,इि पर तनभघर करे गा कक हम कैिे तनसमघत हो रहे है ।
जीवन के िाथ हमारा क्या व्यवहार है , इि पर तनभघर होगा कक हमारी आत्मा ककन ठदशाओं
में यारा करे गी। ककन मागों पर जायेगी। ककन नये जगत की खोज करे गी।

जीवन के िाथ हमारा व्यवहार हमें तनसमघत करता है —यह अगर स्मरण हो, तो शायद जीवन
को आिार, व्यथघ माने की दृजष्ट हमें भ्ांत मालूम पडें; तो शायद हमें जीवन को दुःु ख पूणघ
मानने की बात गलत मालूम पडे, तो शायद हमें जीवन िे प्रवरोि रूख अिासमघक मालूम पडे।

लेककन अब तक िमघ के नाम पर जीवन का प्रवरोि ही सिखाया गया है । िच तो यह है कक


अब तक का िारा िमघ मत्ृ यु वादी है , जीवन वादी नहीं, उिकी दृजष्ट में मत्ृ यु के बाद जो है ,
वहीं महत्वपूणघ है , मत्ृ यु के पहले जो है वह महत्वपूणघ नहीं है । अब तक के िमघ की दृजष्ट में
मत्ृ यु की पूजा है , जीवन का िम्मान नहीं। जीवन के फूलों का आदर नहीं, मत्ृ यु के कुम्हला
गये, जा चक
ु े , समट गये, फूलों की क़ब्रों की , िशंिा और श्रद्िा है ।

अब तक का िारा िमघ धचन्तन कहता है कक मत्ृ यु के बाद क्या है —स्वगघ,मोक्ष, मत्ृ यु के पहले
क्या है । उििे आज तक के िमघ को कोई िंबंि नहीं रहा है ।

और मैं आपिे कहना चाहता हूं कक मत्ृ यु के पहले जो है , अगर हम उिे ही िंभालने मे
अिमथघ है , तो मत्ृ यु के बाद जो है उिे हम िंभालने में कभी भी िमथघ नहीं हो िकते। मत्ृ यु
के पहले जो है अगर वहीं व्यथघ छूट जाता है , तो मत्ृ यु के बाद कभी भी िाथघकता की कोई
गुंजाइश कोई पारता, हम अपने में पैदा नहीं करा िकेंगे। मत्ृ यु की तैयारी भी इि जीवन में
जो आिपाि है मौजूद है उि के द्वारा करनी है । मत्ृ यु के बाद भी अगर कोई लोक है , तो
उि लोक में हमें उिी का दशघन होगा। जो हमने जीवन में अनुभव ककया है । और तनसमघत
ककया है । लेककन जीवन को भुला दे ने की,जीवन को प्रवस्मरण कर दे ने की बात ही अब तक
नहीं की गई।

मैं आपिे कहना चाहता हूं कक जीवन के अततररक्त न कोई परमात्मा है , न हो िकता है ।

मैं आपिे यह भी कहना चाहता हूं कक जीवन को िाि लेना ही िमघ की िािना है और
जीवन में ही परम ित्य को अनभ
ु व कर लेना मोक्ष को उपल्बि कर लेने की पहली िीढी है ।

जो जीवन को ही चक
ू जाते है वह और िब भी चक
ू जायेगा,यह तनज‍चत है ।

लेककन अब तक का रूख उलटा रहा है । वह रूख कहता है , जीवन को छोडो। वह रूख कहता
है जीवन को त्यागों। वह यह नहीं कहता है कक जीवन में खोजों। वह यह नहीं कहता है कक
जीवन को जीने की कला िीखों। वह यह भी नहीं कहता है कक जीवन को जीने पर तनभघर
करता है कक जीवन कैिा मालम
ु पडता है । अगर जीवन अंिकार पण
ू घ मालूम पडता है , तो वह
जीने का गलत ढं ग है । यही जीवन आनंद की वषाघ भी बन िकता है । आगर जीने का िही
ढं ग उपलब्ि हो जाये।

िमघ जीवन की तरफ पीि कर लेना नहीं है , जीवन की तरफ पूरी तरह आाँख खोलना है ।

िमघ जीवन िे भागना नहीं है , जीवन को पूरा आसलंगन में ले लेना है ।

िमघ है जीवन का पूरा िाक्षात्कार।

यही शायद कारण है कक आज तक के िमघ में सिफघ बूढे लोग ही उत्िुक रहे है । मंठदरों में
जायें, चचों में , धगरजा र्रों में , गुरु द्वारों में —और वहां वद्
ृ ि लोग ठदखाई पडेंगे। वहां युवा
ठदखाई नहीं पडते, वहां बच्चे ठदखाई नहीं पडते,क्या करण है ?

एक ही कारण है । अब तक का हमारा िमघ सिफघ बढ


ू े लोगों का िमघ है । उन लोगों का िमघ है ,
जजनकी मौत करीब आ रही है । और अब मौत िे भयभीत हो गये है , मौत के बाद की धचंता
के िंबंि में आतरु है , और जानना चाहते है कक मौत के बाद क्या है ।

जो िमघ मौत पर आिाररत है , वह िमघ पूरे जीवन को कैिे िभाप्रवत कर िकेगा। जो िमघ
मौत का धचंतन करता है , वह प्
ृ वी को िासमघक कैिे बना िकता है ।
वह नहीं बना िका। पााँच हजार वषों की िासमघक सशक्षा के बाद भी प्
ृ वी रोज-रोज अिासमघक
होती जा रही है । मंठदर है , मिजजदें है , चचघ है , पुजारी है , पुरोठहत है , िन्यािी है , लेककन प्
ृ वी
िासमघक नहीं हो िकी है । और नहीं हो िकेगी। क्योंकक िमघ का आिार ही गलत है । िमघ कार
आिार जीवन नहीं है , िमघ का आिार मत्ृ यु है । िमघ का आिार खखलते हुए फूल नहीं है , कब्र
है । जजि िमघ का आिार मत्ृ यु है , वह िमघ अगर जीवन के िाणों को स्पंठदत न कर पाता हो,
तो इिमें आ‍चयघ क्या है ? जजम्मेवारी ककि की है ?

मैं इन तीन ठदनों में जीवन के िमघ के िंबंि में बात करना चाहता हूं और इिीसलए पहला
िूर िमझ लेना जरूरी है । और इि िूर के िंबंि में आज तक तछपाने की, दबाने की, भूल
जाने की चेष्टा की गयी है । लेककन जानने और खोजने की नहीं। और उि भूलने और
प्रवस्मत
ृ कर दे ने की चेष्टा के दष्ु पररणाम िारे जगत में व्याप्त हो गये है।

मनष्ु य के िामान्य जीवन के में केंिीय तत्व क्या है —परमात्मा? आत्मा? ित्य?

नहीं,मनुष्य के िाणों में , िामान्य मनुष्य के िाणों में ,जजिने कोई खोज नहीं की, जजिने कोई
यारा नहीं की। जजिने कोई िािना नहीं की। उिके िाणों की गहराई में क्या है —िाथघना?
पूजा? नहीं,बबलकुल नहीं।

अगर हम िामान्य मनुष्य के जीवन-ऊजाघ में खोज करें ,उिकी जीवन शजक्त को हम खोजने
जायें तो न तो वहां परमात्मा है , न वहां पूजा है , न िाथघना है ,न ध्यान है , वहां कुछ और ही
ठदखाई दे ता है , जो ठदखाई पडता है उिे भूलने की चेष्टा की गई है । उिे जानने और िमझने
की नहीं।

वहां क्या ठदखाई पडेगा अगर हम आदमी के िाणों को चीरे और फाडे और वहां खोजें? आदमी
को छोड दें , अगर आदमी िे इतन जगत की भी हम खोज-बीन करें तो वहां िाणों की
गहराईयों में क्या समलेगा? अगर हम एक पौिे की जांच-बीन करें तो क्या समलेगा? एक पौिा
क्या कर रहा है ?

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)


ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

28—लसतम्बर—1968,
संभोग से समाधि की ओर –( 6 )
Posted on सितम्बर 10, 2010by sw anand prashad

िंभाा्ग िे िमाधि की और--ओशो

संभोग : अहं -शून्यता की झलक—2


एक पौिा पूरी चेष्टा कर रहा है —नये बीज उत्पन्न करने की, एक पौिा के िारे िाण,िारा रि
, नये बीज इक्िे करने, जन्म नें की चेष्टा कर रहा है । एक पक्षी क्या कर रहा है । एक पशु
क्या कर रहा है ।

अगर हम िारी िकृतत में खोजने जायें तो हम पायेंगे, िारी िकृतत में एक ही, एक ही कक्रया
जोर िे िाणों को र्ेर कर चल रही है । और वह कक्रया है ितत-िज
ृ न की कक्रया। वह कक्रया है
‘’कक्रएशन’’ की कक्रया। वह कक्रया है जीवन को पन
ु रुज्जीप्रवत, नये-नये रूपों में जीवन दे ने की
कक्रया। फूल बीज को िंभाल रहे है , फल बीज को िंभाल रहे है । बीज क्या करे गा? बीज कफर
पौिा बनेगा। कफर फल बनेगा।

अगर हम िारे जीवन को दे खें, तो जीवन जन्म ने की एक अनंत कक्रया का नाम है । जीवन
एक ऊजाघ है , जो स्वयं को पैदा करने के सलए ितत िंलग्न है और ितत चेष्टा शील है ।
आदमी के भीतर भी वहीं है । आदमी के भीतर उि ितत िज
ृ न की चेष्टा का नाम हमने
‘िेक्ि’ दे रखा है , काम दे रखा है । इि नाम के कारण उि ऊजाघ को एक गाली समल गयी है ।
एक अपमान । इि नाम के कारण एक तनंदा का भाव पैदा हो गया है । मनुष्य के भीतर भी
जीवन को जन्म दे ने की ितत चेष्टा चल रही है । हम उिे िेक्ि कहते है , हम उिे काम की
शजक्त कहते है।

लेककन काम की शजक्त क्या है ?

िमुि की लहरें आकर टकरा रही है िमुि के तट िे हजारों वषों िे। लहरें चली आती है ,
टकराती है , लौट जाती है । कफर आती है , टकराती है लौट जाती है । जीवन भी हजारों वषों िे
अनंत-अनंत लहरों में टकरा रहा है । जरूर जीवन कहीं उिना चाहता होगा। यह िमुि की
लहरें , जीवन की ये लहरें कहीं ऊपर पहुंचना चाहती है ; लेककन ककनारों िे टकराती है और नष्ट
हो जाती है । कफर नयी लहरें आती है , टकराती है और नष्ट हो जाती है । यह जीवन का िागर
इतने अरबों बरिों िे टकरा रहा है , िंर्षघ ले रहा है। रोज उिता है , धगर जाता है , क्या होगा
ियोजन इिके पीछे ? जरूर इिके पीछे कोई बह
ृ त्तर ऊाँचाइयों को छूने का आयोजन चल रहा
होगा। जरूर इिके पीछे कुछ और गहराइयों को जानने का ियोजन चल रहा है । जरूर जीवन
की ितत िकक्रया के पीछे कुछ और महान तर जीवन पैदा करने का ियाि चल रहा है ।

मनुष्य को जमीन पर आये बहुत ठदन नहीं हुए है , कुछ लाख वषघ हुए। उिके पहले मनुष्य
नहीं था। लेककन पशु थे। पशु को आये हुए भी बहुत ज्यादा िमय नहीं हुआ। एक जमाना था
कक पशु भी नहीं था। लेककन पौिे थे। पौिों को भी आये बहुत िमय नहीं हुआ। एक िमय
था जब पौिे भी नहीं थे। पहाड थे। नठदया थी, िागर थे। पत्थर थे। पत्थर, पहाड और नठदयों
की जो दतु नया थी वह ककि बात के सलए पीडडत थी?

वह पौिों को पैदा करना चाहती थी। पौिे िीरे -िीरे पैदा हुए। जीवन ने एक नया रूप सलया।
प्
ृ वी हररयाली िे भर गयी। फूल खखल गये।

लेककन पौिे भी अपने िे तप्ृ त नहीं थे। वे ितत जीवन को जन्म दे ते है । उिकी भी कोई
चेष्टा चल रही थी। वे पशओ
ु ं को पक्षक्षयों को जन्म दे ना चाहते है । पशु, पक्षी पैदा हुए।

हजारों लाखों बरिों तक पशु, पक्षक्षयों िे भरा था यह जगत, लेककन मनुष्य को कोई पता नहीं
था। पशुओं और पक्षक्षयों के िाणों के भीतर तनरं तर मनुष्य भी तनवाि कर रहा था। पैदा होने
की चेष्टा कर रहा था। कफर मनुष्य पैदा हुआ।

अब मनष्ु य ककि सलए?

मनुष्य तनरं तर नये जीवन को पैदा करने के सलए आतुर है । हम उिे िेक्ि कहते है , हम उिे
काम की वािना कहते है । लेककन उि वािना का मूल अथघ क्या है ? मूल अथघ इतना है कक
मनुष्य अपने पर िमाप्त नहीं होना चाहता, आगे भी जीवन को पैदा करना चाहता है । लेककन
क्यों? क्या मनुष्य के िाणों में , मनुष्य के ऊपर ककिी ‘िुपरमैन’ को, ककिी महा मानव को पैदा
करने की कोई चेष्टा चल रही है ?

तनज‍चत ही चल रही है । तनज‍चत ही मनुष्य के िाण इि चेष्टा में िंलग्न है कक मनुष्य िे


श्रेष्ितर जीवन जन्म पा िके। मनुष्य िे श्रेष्ितर िाणी आप्रवभत
ूघ हो िके। नीत्िे िे लेकर
अरप्रवंद तक, पतंजसल िे लेककर बर ट्े न्ड रिल तक। िारे मनुष्य के िाणों में एक कल्पना,
एक िपने की तरह बैिी रही कक मनुष्य िे बडा िाणी पैदा कैिे हो िके। लेककन मनुष्य िे
बडा िाणी पैदा कैिे होगा?

हमने तो हजारों वषों िे इि पैदा होने की कामना को ही तनंठदत कर रखा है । हमने तो िेक्ि
को सिवाय गाली के आज तक दि
ू रा कोई िम्मान नहीं ठदया। हम तो बात करने मैं भयभीत
होते है । हमने तो िेक्ि को इि भांतत तछपा कर रख ठदया है , जैिे वह है ही नहीं। जैिे
उिका जीवन में कोई स्थान नहीं है । जब कक िच्चाई यह है कक उििे ज्यादा महत्वपण
ू घ
मनुष्य के जीवन में ओर कुछ भी नहीं है । लेककन उिको तछपाया है दबाया है , क्यों?

दबाने और तछपाने िे मनुष्य िेक्ि िे मुक्त नहीं हो गया, बजल्क और भी बुरी तरह िे िेक्ि
िे ग्रसित हो गया। दमन उलटे पररणाम लाता है ।

शायद आप में िे ककिी ने एक फ्रैंच वैज्ञातनक कुये के एक तनयम के िंबंि में िुना होगा।
वह तनयम है ’’लॉ ऑफ ररविघ एफेक्ट’’। कुये ने एक तनयम ईजाद ककया है , ‘प्रवपरीत पररणाम
का’। हम जो करना चाहते है , हम इि ढं ग िे कर िकते है । कक जो हम पररणाम चाहते है ,
उिके उल्टा पररणाम हो जाये।

एक आदमी िाइककल चलाना िीखता है । बडा रास्ता है । चौडा रास्ता है । एक छोटा िा पत्थर
रास्ते के ककनारे पडा हुआ है । वह िाइककल चलाने वाला र्बराता है । की मैं कहीं उि पत्थर
िे न टकरा जाऊाँ। अब इतना चौडा रास्ता पडा है । वह िाइककल चलने वाला अगर आाँख बंि
कर के भी चलाना चाहे तो भी उि पत्थर िे टकराने की िंभावना न के बराबर है । इिका िौ
में िे एक ही मौका है वह पत्थर िे टकराये। इतने चौडे रास्ते पर कहीं िे भी तनकल िकता
है लेककन वह दे खकर र्बराता है । कक कहीं पत्थर िे टकरा न जाऊाँ। और जैिे ही वह
र्बराता है , मैं पत्थर िे न टकरा जाऊाँ। िारा रास्ता प्रवलीन हो जाता है । केवल पत्थर ही
ठदखाई ठदया। अब उिकी िाइककल का चाक पत्थर की और मुडने लगा। वह हाथ पैर िे
र्बराता है । उिकी िारी चेतना उि पत्थर की और दे खने लगती है । और एक िम्मोठहत
ठहिोटाइज आदमी कक तरह वह पत्थर की तरफ खखंच जाता है । और जा कर पत्थर िे टकरा
जाता है । नया िाईककल िीखने वाला उिी िे टकरा जाता है जजििे बचना चाहता है । लैम्पो
िे टकरा जाता है , खम्बों िे टकरा जाता है , पत्थर िे टकरा जाता है । इतना बडा रास्ता था
कक अगर कोई तनशानेबाज ही चलाने की कोसशश करता तो उि पत्थर िे टकरा िकता था।
लेककन यह सिक्खड आदमी कैिे उि पत्थर िे टकरा गया।

कुये कहता है कक हमारी चेतना का एक तनयम है : लॉ ऑफ ररविघ एफेक्ट, हम जजि चीज िे


बचना चाहते है , चेतना उिी पर केंठित हो जाती है । और पररणाम में हम उिी िे टकरा जाते
है । पााँच हजार िाल िे आदमी िेक्ि िे बचना चाह रहा है । और पररणाम इतना हुआ की
गली कूचे हर जगह जहां भी आदमी जाता है वहीं िेक्ि िे टकरा जाता है । लॉ ऑफ ररविघ
एफेक्ट मनुष्य की आत्मा को पकडे हुए है ।

क्या कभी आपने वह िोचा है कक आप धचत को जहां िे बचाना चाहते है , धचत वहीं आकप्रषघत
हो जाता है । वहीं तनमंबरत हो जात है । जजन लोगो ने मनष्ु य को िेक्ि के प्रवरोि में
िमझाया, उन लोगों ने ही मनष्ु य को कामक
ु बनाने का जजम्मा भी अपने ऊपर ले सलया है ।

मनुष्य की अतत कामुकता गलत सशक्षाओं का पररणाम है ।

और आज भी हम भयभीत होते है कक िेक्ि की बात न की जाये। क्यों भयभीत होते है ?


भयभीत इिसलए होते है कक हमें डर है कक िेक्ि के िंबंि में बात करने िे लोग और
कामुक हो जायेंगे।

मैं आपको कहना चाहता हूं कक यह बबलकुल ही गलत भ्म है । यह शत-िततशत गलत है ।
प्
ृ वी उिी ठदन िेक्ि िे मुक्त होगी, जब हम िेक्ि के िंबंि में िामान्य, स्वास्थ बातचीत
करने में िमथघ हो जायेंगे।

जब हम िेक्ि को पूरी तरह िे िमझ िकेंगे, तो ही हम िेक्ि का अततक्रमण कर िकेंगे।

जगत में ब्रह्मचयघ का जन्म हो िकता है । मनष्ु य िेक्ि के ऊपर उि िकता है । लेककन
िेक्ि को िमझकर, िेक्ि को परू ी तरह पहचान कर, उि की ऊजाघ के परू े अथघ, मागघ, व्यवस्था
को जानकर, उिके मक्
ु त हो िकता है ।

आंखे बंद कर लेने िे कोई कभी मुक्त नहीं हो िकता। आंखें बंद कर लेने वाले िोचते हों कक
आंखे बंद कर लेने िे शरु िमाप्त हो गया है । मरुस्थल में शुतुरमुगघ भी ऐिा ही िोचता है ।
द‍ु मन हमने करते है तो शुतुरमुगघ रे त में िर तछपा कर खडा हो जाता है । और िोचता है कक
जब द‍ु मन मुझे ठदखाई नहीं दे ता ताक मैं दश
ु मन को कैिे ठदखाई दे नहीं िकता। लेककन
यह वकघ—शुतुरमुगघ को हम क्षमा भी कर िकते है । आदमी को क्षमा नहीं ककया जा िकता
है ।

िेक्ि के िंबंि में आदमी ने शुतुरमुगघ का व्यवहार ककया है । आज तक। वह िोचता है , आाँख
बंद कर लो िेक्ि के ितत तो िेक्ि समट गया। अगर आाँख बंद कर लेने िे चीजें समटती तो
बहुत आिान थी जजंदगी। बहुत आिान होती दतु नया। आाँख बंद करने िे कुछ समटता नहीं है ।
बजल्क जजि चीज के िंबंि में हम आाँख बंद करते है । हम िमाण दे ते है कक हम उि िे
भयभीत है । हम डर गये है । वह हमिे ज्यादा मजबूत है । उििे हम जीत नहीं िकते है ,
इिसलए आाँख बंद करते है । आाँख बंद करना कमजोरी का लक्षण है ।

और िेक्ि के बाबत िारी मनष्ु य जातत आाँख बंद करके बैि गयी है । न केवल आाँख बंद
करके बैि गयी है , बजल्क उिने िब तरह की लडाई भी िेक्ि िे ली है । और उिके पररणाम,
उिके दष्ु पररणाम िारे जगत में ज्ञात है।

अगर िौ आदमी पागल होते है , तो उनमें िे 98 आदमी िेक्ि को दबाने की वजह िे पागल
होते है । अगर हजारों जस्रयों ठहस्टीररया िे परे शान है तो उिमें िे िौ में िे 99 जस्रयों के
पीछे ठहस्टीररया के समरगी के बेहोशी के, िेक्ि की मौजूदगी है । िेक्ि का दमन मौजूद है ।

अगर आदमी इतना बेचन


ै , अशांत इतना दुःु खी और पीडडत है तो इि पीडडत होने के पीछे
उिने जीवन की एक बडी शजक्त को बबना िमझे उिकी तरफ पीि खडी कर ली है । उिका
कारण है । और पररणाम उलटे आते है ।

अगर हम मनुष्य का िाठहत्य उिाकर कर दे खें, अगर ककिी दे वलोक िे कभी कोई दे वता आये
या चंिलोक िे या मंगलग्रह िे कभी कोई यारी आये और हमारी ककताबें पढे , हमारा िाठहत्य
दे खे, हमारी कप्रवता पढ, हमारे धचर दे खे तो बहुत है रान हो जायेगा। वह है रान हो जायेगा यह
जानकर कक आदमी का िारा िाठहत्य िेक्ि पर केंठित है ? आदमी की हर कप्रवताएं िेक्िुअल
क्यों है ? आदसमयों की िारी कहातनयां, िारे उपन्याि िेक्िुअल क्यों है । आदमी की हर ककताब
के उपर नंगी औरत की तस्वीर क्यों है ? आदमी की हर कफल्म नंगे आदमी की कफल्म क्यों
है । वह बहुत है रान होगा। अगर कोई मंगल िे आकर हमें इि हालत में दे खेगा तो बहुत
है रान होगा। वह िोचगा, आदमी िेक्ि के सिवाय क्या कुछ भी नहीं िोचता? और आदमी िे
अगर पूछेगा, बातचीत करे गा तो बहुत है रान हो जायेगा।

आदमी बातचीत करे गा आत्मा की, परमात्मा की, स्वगघ की, मोक्ष की, िेक्ि की कभी कोई बात
नहीं करे गा। और उिका िारा व्यजक्तत्व चारों तरफ िे िेक्ि िे भरा हुआ है । वह मंगलग्रह
का वािी तो बहुत है रान होगा। वह कहे गा, बात चीत कभी नहीं कक जाती जजि चीज की ,
उिको चारों तरफ िे तप्ृ त करने की हजार-हजार पागल कोसशशें क्यों की जा रही है ?

आदमी को हमने ‘’परवटघ ’’ ककया है , प्रवकृत ककया है और अच्छे नामों के आिार पर प्रवकृत
ककया है । ब्रह्मचयघ की बात हम करते है। लेककन कभी इि बात की चेष्टा नहीं करते कक
पहले मनुष्य की काम की ऊजाघ को िमझा जाये, कफर उिे रूपान्तररत करने के ियोग भी
ककये जा िकते है । बबना उि ऊजाघ को िमझे दमन की िंयम की िारी सशक्षा, मनुष्य को
पागल, प्रवक्षक्षप्त और रूग्ण करे गी। इि िंबंि में हमें कोई भी ध्यान नहीं है । यह मनुष्य
इतना रूग्ण, इतना दीन-हीन कभी भी न था, इतना ‘पायजनि’ भी न था। इतना दुःु खी भी न
था।

मैं एक अस्पताल के पाि िे तनकलता था। मैंने एक तख्ते पर अस्पताल के एक सलखी हुई
िच
ू ना पढी। सलखा था तख्ती पर—‘’एक आदमी को बबच्छू ने काटा है , उिका इलाज ककया
गया है । वह एक ठदन में िीक होकर र्र वापि चला गया। एक दि
ू रे आदमी को िांप ने
काटा था। उिका तीन ठदन में इलाज ककया गया। और वह स्वास्थ हो कर र्र वाप्रपि चला
गया। उि पर तीिरी िच
ु ना थी कक एक और आदमी को पागल कुत्ते ने काट सलया था। उि
का दि ठदन में इलाज हो रहा है । वह काफी िीक हो गया है और शीध्र ही उिके पूरी तरह
िीक हो जाने की उम्मीद है । और उि पर चौथी िूचना सलखी थी, कक एक आदमी को एक
आदमी ने काट सलया था। उिे कई िप्ताह हो गये। वह बेहोश है , और उिके िीक होने की
कोई उम्मीद नहीं है ।

मैं बहुत है रान हुआ। आदमी का काटा हुआ इतना जहरीला हो िकता है ।

लेककन अगर हम आदमी की तरफ दे खोगें तो ठदखाई पडेगा—आदमी के भीतर बहुत जहर
इक्िा हो गया है । और उि जहर के इक्िे हो जाने का पहला िुर यह है कक हमने आदमी
के तनिगघ को, उिकी िकृतत को स्वीकार नहीं ककया है । उिकी िकृतत को दबाने और
जबरदस्ती तोडने की चेष्टा की है । मनुष्य के भीतर जो शजक्त है । उि शजक्त को रूपांतररत
करने का, ऊंचा ले जाने का, आकाशगामी बनाने का हमने कोई ियाि नहीं ककया। उि शजक्त
के ऊपर हम जबरदस्ती कब्जा करके बैि गये है । वह शजक्त नीचे िे ज्वालामुखी की तरह
उबल रही है । और िक्के दे रही है । वह आदमी को ककिी भी क्षण उलटा दे ने की चेष्टा कर
रही है । और इिसलए जरा िा मौका समल जाता है तो आपको पता है िबिे पहली बात क्या
होती है ।

अगर एक हवाई जहाज धगर पडे तो आपको िबिे पहले उि हवाई जहाज में अगर पायलट
हो ओर आप उिके पाि जाएं—उिकी लाश के पाि तो आपको पहला ि‍न क्या उिे गा, मन
में । क्या आपको ख्याल आयेगा—यह ठहन्द ू है या मुिलमान? नहीं। क्या आपको ख्याल
आयेगा कक यह भारतीय है या कक चीनी? नहीं। आपको पहला ख्याल आयेगा—वह आदमी है
या औरत? पहला ि‍न आपके मन में उिे गा, वह स्री है या पुरूष? क्या आपको ख्याल है इि
बात का कक वह ि‍न क्यों िबिे पहले ख्याल में आता है ? भीतर दबा हुआ िेक्ि है । उि
िेक्ि के दमन की वजह िे बाहर स्रीयां और पुरूष अततशय उभर कर ठदखायी पडती है ।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

28—लसतम्बर—1968,

संभोग से समाधि की ओर –( 7 )
Posted on सितम्बर 13, 2010by sw anand prashad

संभोग : अहं -शून्यता की झलक—3

िंभोग िे िमाधि कीओर--7

क्या आपने कभी िोचा है ? आप ककिी आदमी का नाम भल


ू िकते है , जातत भल
ू िकते है ।
चेहरा भल
ू िकते है ? अगर मैं आप िे समलंू या मझ
ु े आप समलें तो मैं िब भल
ू िकता हूं—कक
आपका नाम क्या था,आपका चेहरा क्या था, आपकी जातत क्या थी, उम्र क्या थी आप ककि
पद पर थे—िब भूल िकते है । लेककन कभी आपको ख्याल आया कक आप यह भूल िके है
कक जजि िे आप समले थे वह आदमी था या औरत? कभी आप भूल िकते है इि बात को
कक जजििे आप समले थे, वह पुरूष है या स्री? नहीं यह बात आप कभी नहीं भूल िके होगें ।
क्या लेककन? जब िारी बातें भूल जाती है तो यह क्यों नहीं भूलता?

हमारे भीतर मन में कहीं िेक्ि बहुत अततशय हो बैिा है । वह चौबीि र्ंटे उबल रहा है ।
इिसलए िब बातें भूल जाती है । लेककन यह बात नहीं भूलती है । हम ितत िचेष्ट है ।
यह प्
ृ वी तब तक स्वस्थ नहीं हो िकेगी, जब तक आदमी और जस्रयों के बीच यह दीवार
और यह फािला खडा हुआ है । यह प्
ृ वी तब तक कभी भी शांत नहीं हो िकेगी,जब तक
भीतर उबलती हुई आग है और उिके ऊपर हम जबरदस्ती बैिे हुए है । उि आग को रोज
दबाना पडता है । उि आग को िततक्षण दबाये रखना पडता है । वह आग हमको भी जला
डालती है । िारा जीवन राख कर दे ती है । लेककन कफर भी हम प्रवचार करने को राज़ी नहीं
होते। यह आग क्या थी?

और मैं आपिे कहता हूं अगर हम इि आग को िमझ लें , तो यह आग द‍ु मन नहीं दोस्त
है । अगर हम इि आग को िमझ लें तो यह हमें जलायेगी नहीं, हमारे र्र को गमघ भी कर
िकती है । िठदघ यों में ,और हमारी रोठटयााँ भी िेक िकती है । और हमारी जजंदगी में िहयोगी
और समर भी हो िकती है ।

लाखों िाल तक आकाश में बबजली चमकती थी। कभी ककिी के ऊपर धगरती थी और जान
ले लेती थी। कभी ककिी ने िोचा भी नथा कक एक ठदन र्र के पंखा चलायेगी यह बबजली।
कभी यह रोशनी करे गी अंिेरे में , यह ककिी ने नहीं िोचा था। आज—आज वही बबजली हमारी
िाथी हो गयी है । क्यों?

बबजली की तरफ हम आाँख मूंदकर खडे हो जाते तो हम कभी बबजली के राज को न िमझ
पाते और न कभी उिका उपयोग कर पाते। वह हमारी द‍ु मन ही बनी रहती। लेककन नहीं,
आदमी ने बबजली के ितत दोस्ताना भाव बरता। उिने बबजली को िमझने की कोसशश की,
उिने ियाि ककया जानने के और िीरे -िीरे बबजली उिकी िाथी हो गयी। आज बबना बबजली
के क्षण भर जमीन पर रहना मुज‍कल हो जाये।

मनुष्य के भीतर बबजली िे भी अधिक ताकत है िेक्ि की।

मनुष्य के भीतर अणु की शजक्त िे भी बडी शजक्त है िेक्ि की।


कभी आपने िोचा लेककन, यह शजक्त क्या है और कैिे इिे रूपान्तररत करें ? एक छोटे -िे अणु
में इतनी शजक्त है कक ठहरोसशमा का पूरा का नगर जजि में एक लाख आदमी भस्म हो गये।
लेककन क्या आपने िोचा कक मनुष्य के काम की ऊजाघ का एक अणु एक नये व्यजक्त को
जन्म दे ता है । उि व्यजक्त में गांिी पैदा हो िकता है , उि व्यजक्त में महावीर पैदा हो िकता
है । उि व्यजक्त में बुद्ि पैदा हो िकता है , क्राइस्ट पैदा हो िकता है , उििे आइन्िटीन पैदा
हो िकता है । और न्यट
ू न पैदा हो िकता है । एक छोटा िा अणु एक मनुष्य की काम ऊजाघ
का, एक गांिी को तछपाये हुए है । गांिी जैिा प्रवराट व्यजक्त पैदा हो िकता है ।

लेककन हम िेक्ि को िमझने को राज़ी नहीं है । लेककन हम िेक्ि की ऊजाघ के िंबंि में बात
करने की ठहम्मत जुटाने को राज़ी नहीं है । कौन िा भय हमें पकडे हुए है कक जजििे िारे
जीवन का जन्म होता है । उि शजक्त को हम िमझना नहीं चाहते?कौन िा डर है कौन िी
र्बराहट है ?

मैंने प्रपछली बम्बई की िभा में इि िंबंि में कुछ बातें कहीं थी। तो बडी र्बराहट फैल गई।
मुझे बहुत िे पर पहुंचे कक आप इि तरह की बातें मत करें । इि तरह की बात ही मत करें ।
मैं बहुत है रान हुआ कक इि तरह की बात क्यों न की जाये? अगर शजक्त है हमारे भीतर तो
उिे जाना क्यों न जाये? क्यों ने पहचाना जाये? और बबना जाने पहचाने, बबना उिके तनयम
िमझे,हम उि शजक्त को और ऊपर कैिे ले जा िकते है ? पहचान िे हम उिको जीत भी
िकते है , बदल भी िकते है , लेककन बबना पहचाने तो हम उिके हाथ में ही मरें गे और िडेंगे,
और कभी उििे मुक्त नहीं हो िकते।

जो लोग िेक्ि क िंबंि में बात करने की मनाही करते है , वे ही लोग प्


ृ वी को िेक्ि के
गड्ढे में डाले हुए है । यह मैं आपिे कहना चाहता हूं, जो लोग र्बराते है और जो िमझते है
कक िमघ का िेक्ि िे कोई िंबंि नहीं, वह खद ु तो पागल है ही, वे िारी प् ृ वी को पागल
बनाने में िहयोग कर रहे है ।

िमघ का िंबंि मनुष्य की ऊजाघ के ‘’ट्ांिफॉमेशन’’ िे है । िमघ का िंबंि मनुष्य की शजक्त को


रूपांतररत करने िे है ।

िमघ चाहता है कक मनष्ु य के व्यजक्तत्व में जो तछपा है , वह श्रेष्ितम रूप िे असभव्यक्त हो


जाये। िमघ चाहता है कक मनुष्य का जीवन तनम्न िे उच्च की एक यारा बने। पदाथघ िे
परमात्मा तक पहुंच जाये।
लेककन यह चाह तभी पूरी हो िकती है …..हम जहां जाना चाहते है , उि स्थान को िमझना
उतना उपयोगी नहीं है । जजतना उि स्थान को िमझना उपयोगी है । क्योंकक यह यारा कहां
िे शुरू करनी है ।

िेक्ि है फैक्ट, िेक्ि जो है वह त्य है मनुष्य के जीवन का। और परमात्मा अभी दरू है ।
िेक्ि हमारे जीवन का त्य हे । इि त्य को िमझ कर हम परमात्मा की यारा चल िकते
है । लेककन इिे बबना िमझे एक इंच आगे नहीं जा िकते। कोल्हू के बेल कक तरह इिी के
आप पाि र्ूमते रहें गे।

मैंने प्रपछली िभा में कहा था, कक मझ


ु े ऐिा लगता है । हम जीवन की वास्तप्रवकता को
िमझने की भी तैयारी नहीं ठदखाते। तो कफर हम और क्या कर िकते है । और आगे क्या हो
िकता है । कफर ई‍वर की परमात्मा की िारी बातें िान्त्वना ही, कोरी िान्त्वना की बातें है
और झि
ू है । क्योंकक जीवन के परम ित्य चाहे ककतने ही नग्न क्यों न हो, उन्हें जानना ही
पडेगा। िमझना ही पडेगा।

तो पहली बात तो यह जान लेना जरूरी है कक मनुष्य का जन्म िेक्ि में होता है । मनुष्य
का िारा जीवन व्यजक्तत्व िेक्ि के अणुओं िे बना हुआ है । मनुष्य का िारा िाण िेक्ि की
उजाघ िे भरा हुआ है । जीवन की उजाघ अथाघत काम की उजाघ। यह तो काम की ऊजाघ है , यह
जा िेक्ि की ऊजाघ है , यह क्या है ? यह क्यों हमारे जीवन को इतने जोर िे आंदोसलत करती
है ? क्यों हमारे जीवन को इतना िभाप्रवत करती है ? क्यों हम िम
ू -िम
ू कर िेक्ि के आि-
पाि, उिके ईद-धगदघ ही चक्कर लगाते है । और िमाप्त हो जाते है । कौन िा आकषघण है
इिका?

हजारों िाल िे ऋप्रष,मुतन इंकार कर रहे है , लेककन आदमी िभाप्रवत नहीं हुआ मालूम पडता।
हजारों िाल िे वे कह रहे है कक मुख मोड लो इििे। दरू हट जाओ इििे। िेक्ि की कल्पना
और काम वािना छोड दो। धचत िे तनकाल डालों ये िारे िपने।

लेककन आदमी के धचत िे यह िपने तनकले ही नहीं। कभी तनकल भी नहीं िकते है इि
भांतत। बजल्क मैं तो इतना है रान हुआ हूं—इतना है रान हुआ हूं। वे‍याओं िे भी समला हुं,
लेककन वे‍याओं ने मझ ु िे िेक्ि की बात नहीं की। उन्होंने आत्म, परमात्मा के िंबंि में
पूछताछ की। और मैं िािु िंन्यासियों िे भी समला हूं। वे जब भी अकेले में समलते है तो
सिवाये िेक्ि के और ककिी बात के िंबंि में पूछताछ नहीं करते। मैं बहुत है रान हुआ। मैं
है रान हुआ हूं इि बात को जानकर कक िािु-िंन्यासियों को जो तनरं तर इिके प्रवरोि में बोल
रहे है , वे खद
ु ही धचतके तल पर वहीं ग्रसित है । वहीं परे शान है । तो जनता िे आत्मा
परमात्मा की बातें करते है , लेककन भीतर उनके भी िमस्या वही है ।
होगी भी। स्वाभाप्रवक है , क्योंकक हमने उि िमस्या को िमझने की भी चेष्टा नहीं की है ।
हमने उि ऊजाघ के तनयम भी जानने नहीं चाहे है । हमने कभी यह भी नहीं पूछा कक मनुष्य
का इतना आकषघण क्यों है । कौन सिखाता है , िेक्ि आपको।


िारी दतू नया तो िीखने के प्रवरोि में िारे उपाय करती है । मॉ-बाप चेष्टा करते है कक बच्चे
को पता न चल जाये। सशक्षक चेष्टा करता है । िमघ शास्र चेष्टा करते है कहीं स्कूल नहीं,
कहीं कोई युतनवसिघटी नहीं। लेककन आदमी अचानक एक ठदन पाता है कक िारे िाण काम की
आतुरता िे भर गये है । यह कैिे हो जाता है । बबना सिखाये ये क्या होता है ।

ित्य की सशक्षा दी जाती है । िेम की सशक्षा दी जाती है । उिका तो कोई पता नहीं चलता।
िेक्ि का आकषघण इतना िबल है , इतना नैिधगघक केंि क्या है , जरूर इिमें कोई रहस्य है
और इिे िमझना जरूरी है । तो शायद हम इििे मक्
ु त भी हो िकते है।

पहली बात तो यह है कक मनुष्य के िाणों में जो िेक्ि का आकषघण है । वह वस्तुत: िेक्ि


का आकषघण नहीं है । मनष्ु य के िाणों में जो काम वािना है , वह वस्तत
ु : काम की वािना
नहीं है , इिसलए हर आदमी काम के कृत्य के बाद पछताता है । दुःु खी होता है पीडडत होता है ।
िोचता है कक इििे मुक्त हो जाऊाँ। यह क्या है ?

लेककन आकषघण शायद कोई दि ू रा है । और वह आकषघण बहुत ररलीजि, बहुत िासमघक अथघ
रखता है । वह आकषघण यह है …..कक मनुष्य के िामान्य जीवन में सिवाय िेक्ि की अनुभूतत
के वह कभी भी अपने गहरे िे गहरे िाणों में नहीं उतर पाता है । और ककिी क्षण में कभी
गहरे नहीं उतरता है । दक
ु ान करता है , िंिा करता है । यश कमाता है , पैिा कमाता है , लेककन
एक अनुभव काम का, िंभोग का, उिे गहरे ले जाता है । और उिकी गहराई में दो र्टनायें
र्टती है , एक िंभोग के अनुभव में अहं कार प्रविजजघत हो जाता है । ‘’इगोलेिनेि’’ पैदा हो जाती
है । एक क्षण के सलए अहं कार नहीं रह जाता, एक क्षण को यह याद भी नहीं रह जाता कक मैं
हूं।

क्या आपको पता है , िमघ में श्रेष्ितम अनभ


ु व में ‘मैं’ बबलकुल समट जाता है । अहं कार बबलकुल
शन्
ू य हो जाता है । िेक्ि के अनभ
ु व में क्षण भर को अहं कार समटता है । लगता है कक हूं या
नहीं। एक क्षण को प्रवलीन हो जाता है मेरा पन का भाव।

दि
ू री र्टना र्टती है । एक क्षण के सलए िमय मट जाता है ‘’टाइमलेिनेि’’ पैदा हो जाती है ।
जीिि ने कहा है िमाधि के िंबंि में : ‘’दे यर शैल बी टाईम नौ लांगर’’। िमाधि का जो
अनुभव है वहां िमय नहीं रह जाता है । वह कालातीत है । िमय बबलकुल प्रवलीन हो जाता
है । न कोई अतीत है , न कोई भप्रवष्य—शुद्ि वतघमान रह जाता है ।
िेक्ि के अनुभव में यह दि
ू री र्टना र्टती है । न कोई अतीत रह जाता है , न कोई
भप्रवष्य। समट जाता है , एक क्षण के सलए िमय प्रवलीन हो जाता है ।

यह िमघ अनुभूतत के सलए िवाघधिक महत्वपूणघ तत्व है —इगोलेिनेि, टाइमलेिनेि।

दो तत्व है , जजिकी वजह िे आदमी िेक्ि की तरफ आतुर होता है और पागल होता है । वह
आतुरता स्री के शरीर के सलए नहीं है पुरूष के शरीर के सलए स्री की है । वह आतुरता शरीर
के सलए बबलकुल भी नहीं है । वह आतुरता ककिी और ही बात के सलए है । वह आतुरता है —
अहं कार शन्
ू यता का अनभ
ु व, िमय शन्
ू यता का अनभ
ु व।

लेककन िमय-शून्य और अहं कार शून्य होने के सलए आतुरता क्यों है ? क्योंकक जैिे ही अहं कार
समटता है , आत्मा की झलक उपलब्ि होती है । जैिे ही िमय समटता है , परमात्मा की झलक
समलनी शुरू हो जाती है ।

एक क्षण की होती है यह र्टना, लेककन उि एक क्षण के सलए मनष्ु य ककतनी ही ऊजाघ,


ककतनी ही शजक्त खोने को तैयार है । शजक्त खोने के कारण पछतावा है बाद में कक शजक्त
क्षीण हुई शजक्त का अपव्यय हुआ। और उिे पता हे कक शजक्त जजतनी क्षीण होती है मौत
उतनी करीब आती है ।

कुछ पशुओं में तो एक ही िंभोग के बाद नर की मत्ृ यु हो जाती है । कुछ कीडे तो एक ही


िंभोग कर पाते है और िंभोग करते ही िमाप्त हो जाते है । अफ्रीका में एक मकडा होता है ।
वह एक ही िंभोग कर पाता है और िंभोग की हालत में ही मर जाता है । इतनी ऊजाघ क्षीण
हो जाती है ।

मनुष्य को यह अनुभव में आ गया बहुत पहले कक िेक्ि का अनुभव शजक्त को क्षीण करता
है । जीवन ऊजाघ कम होती है । और िीरे -िीरे मौत करीब आती है । पछतावा है आदमी के
िाणों में , पछताने के बाद कफर पाता है र्डी भर बाद कक वही आतुरता है । तनज‍चत ही इि
आतुरता में कुछ और अथघ है , जो िमझ लेना जरूरी है ।

िेक्ि की आतरु ता में कोई ‘ररलीजि’ अनभ


ु व है , कोई आजत्मक अनभ
ु व हे । उि अनभ
ु व को
अगर हम दे ख पाये तो हम िेक्ि के ऊपर उि िकते है । अगर उि अनभ
ु व को हम न दे ख
पाये तो हम िेक्ि में ही जजयेंगे और मर जायेंगे। उि अनभ
ु व को अगर हम दे ख पाये—
अाँिेरी रात है और अंिेरी रात में बबजली चमकती है । बबजली की चमक अगर हमें ठदखाई
पड जाये और बबजली को हम िमझ लें तो अंिेरी रात को हम समटा भी िकते है । लेककन
अगर हम यह िमझ लें कक अंिेरी रात के कारण बबजली चमकती है तो कफर हम अंिेरी रात
को और िना करने की कोसशश करें गे, ताकक बबजली की चमक और गहरी हो।

मैं आपिे कहना चाहता हूं कक िंभोग का इतना आकषघण क्षखणक िमाधि के सलए है । और
िंभोग िे आप उि ठदन मुक्त होंगे। जजि ठदन आपको िमाधि बबना िंभोग के समलना शुरू
हो जायेगी। उिी ठदन िंभोग िे आप मुक्त हो जायेंगे, िेक्ि िे मुक्त हो जायेंगे।

क्योंकक एक आदमी हजारा रूपये खोकर थोडा िा अनुभव पाता हो और कल हम उिे बता दें
कक रूपये खोने की कोई जरूरत नहीं है , इि अनभ
ु व की जो खदानें भरी पडी है । तम
ु चलो
इि रास्ते िे और उि अनभ
ु व को पा लो। तो कफर वह हजार रूपये खोकर उि अनभ
ु व को
खरीदने बाजार में नहीं जायेगा।

िेक्ि जजि अनुभूतत को लाता है । अगर वह अनुभतू त ककन्हीं और मागों िे उपलब्ि हो िके,
तो आदमी को धचत िेक्ि की तरफ बढना, अपने आप बंद हो जाता है । उिका धचत एक नयी
ठदशा लेनी शुरू कर दे ता है ।

इि सलए मैं कहता हूं कक जगत में िमाधि का पहला अनुभव मनुष्य को िेक्ि िे ही
उपलब्ि हुआ है ।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

28—लसतम्बर—1968,

संभोग से समाधि की ओर –(8)


Posted on सितम्बर 15, 2010by sw anand prashad
िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशे

संभोग : अहं -शून्यता की झलक—4


लेककन वह बहुत महं गा अनुभव है , वह अतत महं गा अनुभव है । और दि
ू रा कारण है कक वह
अनुभव िे ही अपलब्ि हुआ है । एक क्षण िे ज्यादा गहरा नहीं हो िकता है । एक क्षण को
झलक समलेगी और हम वापि अपनी जगह लोट आयेंगे। एक क्षण को ककिी लोक में उि
जाते है । ककिी गहराई पर, ककिी पीक एक्िाप्रपररयंि पर, ककिी सशखर पर पहुंचना होता है ।
और हम पहुंच भी नहीं पाते और वापि धगर जाते है । जैिे िमुि की लहर आकाश में उिती
है , उि भी नहीं पाती है , पहुंच भी नहीं पाती है , और धगरना शुरू हो जाती है ।

िीक हमारा िेक्ि का अनुभव—बार-बार शजक्त को इक््िा करके हम उिने की चेष्टा करते
है । ककिी गहरे जगत में , ककिी ऊंचे जगत में एक क्षण को हम उि भी नहीं पाते और िब
लहरें बबखर जाती है । हम वापि अपनी जगह खडे हो जाते है । और उतनी शजक्त और ऊजाघ
को गंवा दे ते है ।
लेककन अगर िागर की लहर बफघ का पत्थर बन जाये और बफघ हो जाये तो कफर उिे नीचे
धगरने की कोई जरूरत नहीं है । आदमी का धचत जब तक िेक्ि की तरलता में बहता है , तब
तक वापि उिता है , धगरता है । उिता है , धगरता है , िारा जीवन यही कहता है ।

और जजि अनभ
ु व के सलए इतना आकषघण है —इगोलेिनेि के सलए—अहं कार शन्
ू य हो जाये, मैं
आत्मा को जान लूं। िमय समट जाये और मैं उिको जान लूं। जो इंटरनल है , जो टाइम लेि
है । उिको जान लूं। जो िमय के बाहर है , अनंत और अनाठद है । उिे जानने की चेष्टा में
िारा जगत िेक्ि के केंि पर र्ूम रहा है ।

लेककन अगर हम इि र्टना के प्रवरोि में खडे हो जायें सिफघ, तो क्या होगा? तो क्या हम उि
अनुभव को पा लें गे जो िेक्ि िे एक झलक की तरह ठदखाई पडता था? नहीं, अगर हम िेक्ि
के प्रवरोि में खडे हो जाते है तो िेक्ि ही हमारी चेतना को केंि बन जाता है , हम िेक्ि िे
मक्
ु त नहीं हो िकते है । और उि िे बंि जाते है । वह लॉ ऑफ ररविघ इफेक्ट काम शुरू कर
दे ता है । कफर हम उििे बंि गये। कफर हमने भोगने की कोसशश करते है । और जजतनी हम
कोसशश करते है , उतने ही बाँिते चले जाते है ।

एक आदमी बीमार था और बीमारी कुछ उिे ऐिी थी कक ठदन रात उिे भूख लगता थी। िच
तो यह है कक उिे बीमारी कुछ भी नहीं थी। भोजन के िंबंि में उिने कुछ प्रवरोि की
ककताबें पढ ली थी। उिने पढ सलया था कक भोजन पाप है । उपवाि पुण्य है । कुछ भी खाना
ठहंिा है । जजतना वह यह िोचने लगा कक भोजन करना पाप है , उतना ही भूख को दबाने
लगा। जजतना भूख को दबाने लगा, भूख अिटघ करने लगी। जो िे िकट होने लगी। तो वह
दो चार ठदन उपवाि करता था और एक ठदन पागल की तरह िे कुछ भी खा जाता था। जब
कुछ भी खा लेता था तो बहुत दख ु होता था। क्योंकक कफर खाने की तकलीफ झेलनी पडती
थी। कफर प‍चाताप में दो-चार ठदन उपवाि करता था। और कफर कुछ भी खा लेता था।
आखखर उिने तय ककया कक यह र्र रहते हुए न हो िकेगा िीक मुझे जंगल चल जान
चाठहए।

वह पहाड पर गया। एक ठहल स्टे शन पर जाकर एक कमरे में रहा। र्र के लोग भी परे शान
हो गये। उिकी पत्नी ने यह िोच कर की शायद वह पहाड पर अब जाकर भोजन की
बीमाररयों िे मुक्त हो जायेगा। उिने बहुत िे फूल पहाड पर सभजवाये। और कहलवाया कक
मैं बहुत खश
ु हूं कक तुम शायद पहाड िे स्वस्थ होकर लौटोगे। मैं शुभ कामना के रूप में ये
फूल भेज रही हूं।

उि आदमी का वापि तार आय। तार में सलख था—‘’मेनी थैंक्ि फॉर दी ललाविघ, दे आर िो
डैसलसियि’’ उिने तार ककया कक बहुत िन्यवाद फूलों के सलए, बडे स्वाठदष्ट है । वह फूलों को
खा गया, वहां पहाड पर जो फूल उिको भेजे गये थे। अब कोई आदमी भोजन िे लडाई शरू ु
कर दे गा। वह फूलों को खा िकता है ।

आदमी िेक्ि िे लडाई शुरू ककया ओर उिने क्या-क्या िेक्ि के नाम पर खाया,इिका आपने
कभी ठहिाब लगाया? आदमी को छोड कर, िभ्य आदमी को छोड कर, होमोिेक्िुअसलटी कहीं
है ? जंगल में आठदवािी रहते है , उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की कक होमोिेक्िुअसलटी भी
कोई चीज होती है । कक पुरूष और के िाथ िंभोग कर िकता है । ये िब कल्पना के बहार
की बात है । मैं आठद वासियों के पाि रहा हूं, मैंने कहां की िभ्य लोग इि तरह भी करते है ,
वे कहने लगे हमारे प्रव‍वाि के बहार की बात है । यह कैिे हो िकता है ?

लेककन अमेररका में उन्होंने आंकडे तनकाले है —पैंतीि िततशत लोग होमोिेक्िुअल है । और
बेजल्जयम और स्वीडन और हॉलैंड में होमोिेक्िअ
ु ल के क्लब हे , िोिाइटी है , अखबार तनकलते
है और िरकार िे यह दावा करते है कक होमोिेक्िुअसलटी के ऊपर िे कानून उिा ठदया जाना
चाठहए। हम तो यह मानते है होमोिेक्िुअसलटी िीक है । इिसलए हमको हक समलना चाठहए।
कोई कल्पना नहीं कर िकता कक यह होमोिेक्िुअसलटी कैिे पैदा हो गई। िेक्ि के बाबत
लडाई का यह पररणाम है ।

जजन िभ्य िमाज है , उतनी वे‍याएं है । कभी आपने िोचा कक वे‍याएं कैिे पैदा हो गयी?
ककिी आठदवािी गांव में जाकर वे‍या खोज िकते हे आप। आज भी बस्तर के गांव में वे‍या
खोजनी मुज‍कल है । और कोई कल्पना में भी मानने को राज़ी नहीं होगा कक स्रीयां ऐिी भी
हो िकती है । जो अपनी इज्जत बेचती हो। अपना िंभोग बेचती हो। लेककन िभ्य आदमी
जजतना िभ्य होता चला गया। उतनी वे‍याएं बढती चली गयी—क्यों?

यह फूलों को खाने की कोसशश शरूु हुई है । और आदमी की जजंदगी में ककतने प्रवकृत रूप िे
िेक्ि ने जगह बनायी है , इिका अगर हम ठहिाब लगाने चलेंगे तो है रान रह जायेंगे कक
आदमी को क्या हुआ है ? इिका जजम्मा ककि पर, ककन लोगों पर।

इिका जजम्मा उन लोगों पर है , जजन्होंने आदमी को—िेक्ि को िमझना नहीं लडना सिखाया।
जजन्होंने ििेशन सिखाया है , जजन्होंने दमन सिखाया हे । दमन के कारण िेक्ि की शजक्त
जगह-जगह िे फूट कर गलत रास्तों िे बहनी शरू
ु हो गयी है । हमारा िारा िमाज रूग्ण और
पीडडत हो गया है । इि रूग्ण िमाज को अगर बदलना है तो हमें यह स्वीकार कर लेना होगा
कक काि का आकषघण है ।

क्यों है काम का आकषघण?

काम के आकषघण का जो बुतनयादी आिार है , उि आिार को अगर हम पकड लें तो मनुष्य


को हम काम के जगत िे उपर उिा िकते है । और मनुष्य तनज‍चत काम के जगत िे ऊपर
उि जाये, तो ही राम का जगत शरू
ु होता है ।

खजुराहो के मंठदरों के िामने मैं खडा था। दि-पााँच समरों को लेकर मैं वहां गया था।
खजुराहो के मंठदर के चारों तरफ की दीवाल पर जो मैथन
ु धचर है , काम-वािनाओं की मूततघयां
है । मेरे समर कहने लगे कक मंठदर के चारों तरफ यह क्या है ?

मैंने उनिे कहा, जजन्होंने यह मंठदर बनाये थे वे बडे िमझदार थे। उनकी मान्यता थी कक
जीवन की बाहर की पररधि पर काम है । और जो लोग अभी काम िे उलझे है , उनको मंठदर
में भीतर िवेश का कोई हक नहीं है ।
कफर मैंने अपने समर िे कहा भीतर चलें , कफर उन्हें भीतर लेकर गया। वहां तो कोई काम
िततमा न थी। वहां भगवान की मूततघ थी। वे कहने लगे कक भीतर कोई िततमा नहीं है । मैंने
उनिे कहां कक जीवन की बाहर की पररधि काम वािना है । जीवन की बाहर की पररधि
दीवाल पर काम-वािना है । जीवन के भीतर भगवान का मंठदर हे । लेककन जो अभी
कामवािना में उलझे है , वे भगवान के मंठदर में िवेश के अधिकारी नहीं हो िकते है । उन्हें
अभी बहार की ठदवाल का ही चक्कर लगाना पडेगा।

जजन लोगों ने ये मंठदर बनवाया था, वे बडे िमझदार थे। यह मंठदर एक ‘’मेडडटे शन मंठदर’’
था। यह मंठदर एक ध्यान का केंि था। जो लोग आते थे, उनिे वे कहते थे। बाहर पहले
मैथन
ु के ऊपर ध्यान करो, पहले िेक्ि को िमझो और जब िेक्ि को पूरी तरह िमझ जाओ
और तुम पाओ कक मन उििे मुक्त हो गया है , तब तुम भीतर आ जाना। कफर भीतर
भगवान िे समलना हो िकता है ।

लेककन िमघ के नाम पर हमने िेक्ि को िमझने की जस्थतत पैदा नहीं की,िेक्ि की शरत
ु ा
पैदा कर दी। िेक्ि को िमझो मत,आाँख बंद कर लो और र्ुि जाओ भगवान के मंठदर में
आाँख बद करके। आाँख बंद करके कभी कोई भगवान के मंठदर में जा िका है । और आाँख बंद
करके अगर आप भगवान के मंठदर में पहुंच भी गये तो बंद आाँख में आपको भगवान ठदखाई
नहीं पडेंगे। जजििे आप भागकर आये है । वही ठदखायी पडता रहे गा। आप उिी िे बंिे रह
जायेंगे।

शायद कुछ लोग मेरी बातें िुनकर िमझते है कक मैं िेक्ि का पक्षपाती हूं। मेरी उिका
कारण शायद लोग िमझते है कक मैं िेक्ि का िचार कर रहा हूं। अगर कोई ऐिा िमझता
हो तो उिने मझ
ु े कभी िन
ू ा ही नहीं है , ऐिा उििे कह दे ना।

इि िमय प्
ृ वी पर मुझिे ज्यादा िेक्ि का द‍ु मन आदमी खोजना मुज‍कल है । और उिका
कारण यह है कक मैं जो बात कह रहा हूं, अगर वह िमझी जा िकी तो मनुष्य जातत को
िेक्ि िे उपर उिाया जा िकता है । अन्यथा नहीं।

और जजन थोथे लोगों को हमने िमझा है कक वे िेक्ि के द‍ु मन थे। वे िेक्ि के द‍ु मन नहीं
थे। उन्होंने िेक्ि में आकषघण पैदा कर ठदया है । िेक्ि िे मजु क्त पैदा नहीं की। िैक्ि िे
आकषघण पैदा हो गया है , प्रवरोि के कारण।

मुझिे एक आदमी ने कहा कक जजि चीज का प्रवरोि न हो, उिके करने में कोई रि नहीं रह
जाता है । चोरी के फल खाने में जजतने मिरु और मीिे होते है । उतने बाजार िे खरीदे गये
फल कभी नहीं होते। इिीसलए अपनी पत्नी उतनी मिरु कभी नहीं मालूम पडती, जजतनी
पडोिी की पत्नी मालूम पडती है । वे चोरी के फल है , वे वजजघत फल है । और िेक्ि को हमने
एक ऐिी जस्थतत दे दी, एक ऐिा चोरी का जामा पहना ठदया, एक ऐिे झूि के सलबाि में
तछपा ठदया,ऐिी दीवालों में खडा कर ठदया कक उिने हमें तीव्र रूप िे आकप्रषत
घ कर सलया है ।

बट्े न्ड रिल ने सलखा है कक जब मैं छोटा बच्चा था। प्रवक्टोररया का जमाना था। जस्रयों के
पैर भी ठदखायी नहीं पडते थे। वे कपडा पहनती थी। जो जमीन पर तर्िटता था और पैर
नहीं ठदखायी दे ते थे। अगर कभी ककिी स्री का अंगूिा ठदख जाता था तो आदमी आतुर
होकर अंगूिा दे खने लगता था। और काम वािना जग जाती थी। और रिल कहता है कक
अब स्रीयां करीब-करीब आिी नंगा र्ूम रही है । और उिका पैर पूरा ठदखाई पड रहा है ।
लेककन कोई अिर नहीं होता। तो रिल ने सलखा हे कक इििे यह सिद्ि होता है कक हम
जजन चीजों को जजतना ज्यादा तछपाते है , उन चीजों में उतना ही कुजत्ित आकषघण पैदा होता
है ।

अगर दतु नया को िेक्ि िे मक्


ु त करना है , तो बच्चों को ज्यादा दे र र्र में नग्न रहने की
िुप्रविा होनी चाठहए। जब तक बच्चे र्र में नग्न खेल िकें—लडके और लडककयां—उन्हें नग्न
खेलने दे ना चाठहए। ताकक वह एक दि
ू रे के शरीर िे भली भांतत पररधचत हो जाये। कर रास्तों
पर उनको ककिी स्री को िक्का दे ने की जरूरत नही पडे। ताकक वह एक दि
ू रे के शरीर िे
इतने पररधचत हो जायें। कक ककिी ककताब पर नंगी औरत की तस्वीर छापने की कोई जरूरत
न रह जाये। वे शरीर िे इतने पररधचत हो जायें कक शरीर का कुजत्ित आकषघण प्रवलीन हो
जाये।

बडी उलटी दतु नयां है । जजन लोगों ने शरीर को ढााँक कर, तछपाकर, खडा कर ठदया है । उन्हीं
लोगों ने शरीर को इतना आकप्रषघत

बच्चे नग्न होने चाठहए। दे र तक नग्न खेलने चाठहए। लडके और लडककयां—एक दि


ू रे को
नग्नता में दे खना चाठहए, ताकक उनके पीछे कोई भी पागलपन न रह जाये। और उिके इि
पागलपन का जीवन भर रोग उनके भीतर न चलता रहे । लेककन वह रोग चल रहा है और
उि रोग को हम बढाये चले जा रहे है । उि रोग के कफर हम नये-नये रास्ते खोजते है ।

गंदी ककताबें छपती है । जो लोग गीता के कवर में भी भीतर रखकर पढते है । बाइबबल में दबा
लेते है । और पढते है। ये गंदी ककताबें है । तो हम कहते है कक गंदी ककताबें बंद होनी चाठहए।
लेककन हम कभी नहीं पूछते कक गंदी ककताबें पढने वाला आदमी पैदा क्यों हो गया है ? हम
कहते है नंगी तस्वीरें दीवालों पर नहीं लगनी चाठहए। लेककन हम कभी नहीं पूछते कक नंगी
तस्वीरें कौन आदमी दे खने को आता है ?
वही आदमी आता है जो स्रीयों के शरीर को दे खने िे वंधचत रह गया है । एक कुतूहल जाग
गया है । क्या है स्री का शरीर।

और मैं आपिे कहता हूं वस्रों ने स्री के शरीर को जजतना िुंदर बना ठदया है । उतना िुंदर
स्री का शरीर है नहीं। वस्रों में ढााँक कर शरीर तछपा नहीं है । और उिड कर िगट हुआ हे ।
ये िारी की िारी धचंतना हमारी प्रवपरीत फल ले आयी हे । इिसलए आज एक बात आपिे
कहना चाहता हूं पहले ठदन की चचाघ में वह यह—िेक्ि क्या है ? उिका आकषघण क्यों है ?
उिकी प्रवकृतत क्यों पैदा हुई? अगर हम ये तीन बातें िीक िे िमझ लें तो मनष्ु य का मन
इनके ऊपर उि िकता है। उिना चाठहए। उिने की जरूरत है ।

लेककन उिने की चेष्टा गलत पररणाम लायी है । क्यों कक हमनें लडाई खडी की है । हमने मैरी
खडी नहीं की है । द‍ु मनी खडी की है । ििेशन खडा नहीं ककया, दमन ककया है । िमझ पैदा
नहीं की।

अंडरस्टैंडडंग चाठहए, ििेशन नहीं।

िमझ चाठहए। जजतनी गहरी िमझ होगी मनुष्य उतना ही ऊपर उिता है। जजतनी कम
िमझ होगी, उतना ही मनुष्य दबाने की कोसशश करता है । और दबाने के कभी िफल
पररणाम,स्वस्थ पररणाम उपलब्ि नहीं होते। मनुष्य के जीवन की िबिे बडी ऊजाघ है काम।
लेककन काम पर रूक जाना है । काम को राम तक ले जाना है ।

िेक्ि को िमझना है , ताकक ब्रह्मचयघ फसलत हो िके। िेक्ि को जानना है , ताकक हम िेक्ि
िे मुक्त हो िके। और ऊपर उि िकें। लेककन शायद ही आदमी…..जीवन भर अनुभव िे
गुजरता है । शायद ही उिने िमझने की कोसशश की हो कक िंभोग के भीतर िमाधि का क्षण
भी का अनभ
ु व हे । वही अनभ
ु व खींच रहा है । वही अनभ
ु व आकप्रषघत कर रहा हे । वही अनभ
ु व
िकार रहा है । आओ ध्यानपव
ू क
घ इि अनभ
ु व को जान लेना है कक कौन िा अनभ
ु व मझ
ु े
आकप्रषघत कर रहा है । कौन मझ
ु े खींच रहा है ।

और मैं आपिे कहता हूं उि अनुभव को पाने के िुगम रास्ते है । ध्यान, योग, िामातयक,
िाथघना—िब उि अनुभव को पाने के मागघ है । लेककन वही अनुभव हमें आकप्रषघत कर रहा है ।
यह िोच लेना जान लेना जरूरी है ।

एक समर ने मुझे सलखा—क्या आपने ऐिी बातें कहीं—कक मां के िाथ बेटी बैिी थी, वह िुन
रही है । बाप के िाथ बेटी बैिी िुन रही है । ऐिी बातें िब के िामने नहीं कहनी चाठहए। मैंने
उनिे कहा, आप बबलकुल पागल है । अगर मां िमझदार होगी, तो उिके पहले कक बेटी िेक्ि
की दतु नया में उतर जाये, उिे िेक्ि के िंबंि में अपने अनुभव िमझा दे गी। ताकक वह
अंजान अिकच्चा, अपररपक्व िेक्ि के गलत रास्तों पर न चली जाये। अगर बात योग्य है
और िमझदार है । तो आपने बेटे को अपने िारे अनुभव बता दे गा। ताकक बेटे और बेठटयााँ
गलत रास्ते पर न चल िके। जीवन उनका प्रवकृत न हो जाये।

लेककन मजा यह है कक न बाप को कोई गहरा अनुभव है , न मां का कोई गहरा अनुभव हे । वे
खद
ु भी िेक्ि के तल िे ऊपर नहीं उि िके। इिसलए र्बराते है कक कहीं िेक्ि की बात
िुनकर बच्चे भी इिी तल में न उलझ जायें।

लेककन मैं आपिे कहता हूं कक आप ककिकी बात िन ु कर उलझे थे। आप अपने आप उलझ
गये थे। बच्चे भी अपने आप उलझ जायेंगे। यह हो भी िकता है कक अगर उन्हें िमझ दी
जाये प्रवचार ठदया जाये,बोि ठदया जाये। तो वह अपनी उजाघ को व्यथघ करने िे बच जाये।
उजाघ को बचा िके, रूपांतररत कर िकें।

रास्तों के ककनारे पर कोयले का ढे र लगा होता है । वैज्ञातनक कहते है कक कोयला ही हजारों


िाल में हीरा बन जाता है । कोयले और हीरे में कोई रािायतनक फकघ नहीं है । कोई केसमकल
भेद नहीं है । कोयले के भी परमाणु वही है । जो हीरे के है । कोयले का भी रिायतनक मौसलक
िंगिन वही है जो हीरे का है । जो हीरे का है । हीरा कोयले का ही रूपांतररत—बदला हुआ रूप
है ।

मैं आपिे कहना चाहता हूं कक िेक्ि कोयले की तरह है । ब्रह्मचयघ हीरे की तरह है । लेककन
वह कोयले का ही बदला हुआ रूप है । वह कोयले का द‍ु मन नहीं है हीरा। वह कोयले की ही
बदलाहट है । वह कोयले का ही रूपांतरण है । वह कोयले को ही िमझकर नहीं ठदशाओं में ले
गयी यारा हे ।

िेक्ि का प्रवरोि नहीं है ब्रह्मचयघ, िेक्ि का ही रूपांतरण है , ट्ांिफॉमेशन है ।

और जो िेक्ि का द‍ु मन है , वह कभी ब्रह्मचयघ को उपलब्ि नहीं हो िकता है । ब्रह्मचयघ की


ठदशा में जाना हो और जाना जरूरी है , क्योंकक ब्रह्मचयघ का मतलब क्या है ?

ब्रह्मचयघ का इतना मतलब है कक यह अनभ


ु व अपलब्ि हो जाये। जो ब्रह्मा की चयाघ जैिा
है । जैिा भगवान का जीवन हो, वैिा जीवन उपलब्ि हो जाये।

ब्रह्मचयघ यानी ब्रह्मा की चयाघ, ब्रह्मा जैिा जीवन। परमात्मा जैिा अनुभव उपलब्ि हो जाये।
वह हो िकता है आनी शजक्तयों को िमझकर रूपांतररत करने िे।

आने वाले दो ठदनों में कैिे रूपांतररत ककया जा िकता है िेक्ि, कैिे रूपांतररत हो जाने के
बाद काम, राम के अनुभव में बदल जाता है । वह मैं आपिे बात करूंगा। और तीन ठदन तक
चाहूंगा कक बहुत गौर िे िुन लें गे। ताकक मेरे िंबि
ं में कोई गलत फहमी पीछे आपके पैदा न
हो। और जो भी ि‍न हो ईमानदारी िे और िच्चे, उन्हें सलख कर दे दें गे, ताकक आने वाले
प्रपछले दो ठदनों में मैं उनकी आपिे में िीिी बात कर िकाँू । ककिी ि‍न को तछपाने की
जरूरत नहीं है । जो जजंदगी में ित्य है , उिे तछपाने का कोई कारण नहीं है । ककिी ित्य िे
मुकरने की जरूरत नहीं है । जो ित्य है , वह ित्य है । चाहे हम आाँख बंद करें , चाहे आाँख खल
ु ी
रखें।

और एक बात मैं जानता हूं। िासमघक आदमी मैं उिका कहता हूं, जो जीवन के िारे ित्यों को
िीिा िाक्षात्कार करने की ठहम्मत रखता है । जो इतने कमजोर, काठहल और नपि
ु ंक है कक
जीवन के त्यों का िामना भी नहीं कर िकते,उनके िासमघक होने की कोई उम्मीद नहीं है ।

ये आने वाले चार ठदनों के सलए तनमंरण दे ता हूं। क्योंकक ऐिे प्रवषय पर यह बात है कक
शायद ऋप्रष-मुतनयों िे आशा नहीं रही है कक ऐिे प्रवषयों पर वे बात करें गे। शायद आपको
िुनने की आदत भी नहीं होगी। शायद आपका मन डरे गा, लेककन कफर भी मैं चाहूंगा कक, इन
पााँच ठदनों आप िीक िे िुनने की कोसशश करें । यह हो िकता है कक काम की िमझ आप
को राम के मंठदर के भीतर िवेश ठदला दे । आकांक्षा मेरी यही है । परमात्मा करे वह आकांक्षा
पूरी हो।

मेरी बातों को इतने िेम और शांतत िे िुना,उिके सलए अनुगठृ हत हूं। और अंत में िबके
भीतर बैिे हुए परमात्मा को िणाम करता हूं, मेरे िणाम स्वीकार करें ।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

28—लसतम्बर—1968,
संभोग से समाधि की ओर –9
Posted on सितम्बर 17, 2010by sw anand prashad

संभोग : समय-शन्
ू यता की झलक—1

िंभोग िे िमाधि कक ओर--ओशो

मेरे वप्रय आत्मन,


एक छोटी िे कहानी िे मैं अपनी बात शुरू करना चाहूंगा। बहुत वषघ बीते, बहुत िठदया।
ककिी दे श में एक बडा धचरकार था। वह जब अपनी युवा अवस्था में था, उिने िोचा कक मैं
एक ऐिा धचर बनाऊं जजिमें भगवान का आनंद झलकता हो। मैं एक ऐिे व्यजक्त को खोजूं
एक ऐिे मनुष्य को जजिका धचर जीवन के जो पार है जगत के जो दरू है उिकी खबर लाता
हो।

और वह अपने दे श के गांव-गांव र्ूमा, जंगल-जंगल अपने छाना उि आदमी को, जजिकी ितत
छप्रव वह बना िके। और आखखर एक पहाड पर गाय चराने वाले एक चरवाहे को उिने खोज
सलया। उिकी आंखों में कोई झलक थी। उिके चेहरे की रूप रे खा में कोई दरू की खबर थी।
उिे दे खकर ही लगाता था कक मनुष्य के भीतर परमात्मा भी है । उिने उिके धचर को
बनाया। उि धचर की लाखों िततयां गांव-गांव दरू -दरू के दे शों में बबकी, लोगों ने उि धचर को
र्र में टााँग कर अपने र्र को िन्य िमझा।
कफर बीि िाल बाद वह धचरकार बूढा हो गया। तब उिे ख्याल आया कक ऐिा धचर तो मैंने
बनाया जजि में परमात्मा की झलक आती थी, जजिकी आंखों में ककिी और लोक की झलक
समलती थी। जीवन के अनुभव िे उिे पता चला था कक आदमी में भगवान ही अगर अकेला
होता तो िीक का, आदमी में शैतान भी ठदखायी पडता है उिने िोचा कक मैं एक और धचर
बनाऊंगा,जजिमें आदमी के भीतर शैतान की छप्रव होगी। तब मेरे दोनों धचर पूरे मनुष्य के
धचर बन िकेंगे।

वह धचर कार कफर गया—जुआ र्रों में , शराब खानों में , पागल खानों में , और उिने खोजबीन
की उि आदमी की जो आदमी न हो शैतान हो। जजिकी आंखों में न कर की लपटें जलती
हो। जजिके चेहरे की आकृतत उि िबका स्मरण ठदलाती हो। जो अशुभ है , कुरूप है , अिुन्दर
है । वह पाप की िततमा की खोज में तनकला। एक िततमा उिने परमात्मा की बनायी थी। वह
एक िततमा पाप की बनाना चाहता है ।

और बहुत खोज के बाद एक कारागह ृ में उिे ऐ कैदी समल गया। जजिने िात हताएं की थी
और जो थोडे ही ठदनों के बाद मत्ृ यु की ितीक्षा कर रहा था। फांिी पर लटकाया जाने वाला
था। उि आदमी की आंखों में नरक के दशघन होते थे। र्ण
ृ ा जैिे िाक्षात थी। उि आदमी के
चेहरे की रूपरे खा ऐिी थी कक वैिा कुरूप मनष्ु य खोजना मजु ‍कल था। उिने उिके धचर को
बनाया। जजि ठदन उिका धचर बनकर परू ा हुआ, वह अपने पहले धचर को भी लेकर कारागह ृ
में आ गया। दोनों धचरों को पाि-पाि रख कर दे खने लगा। धचर कार खुद ही मुग्ि हो गया
था। कक कौन िी कलाकृतत श्रेष्ि है । कली की दृजष्ट िे यह तय करना मुज‍कल था।

और तभी उि धचरकार को पीछे ककिी के रोने की आवाज िुनायी पडी। तो वह कैदी ज़ंजीरों
में बंिा रो रहा था। जजिकी कक उिने तस्वीर बनायी थी। वह धचरकार है रान हुआ। उिने
कहां मेरे दोस्त तुम क्यों रोते हो। धचरों को दे ख कर तुम्हें क्या तकलीफ हुई।

उि आदमी ने कहा, मैंने इतने ठदन तक तछपाने की कोसशश की लेककन आज मैं हार गया।
शायद तुम्हें पता नहीं कक पहली तस्वीर भी तुमने मेरी ही बनाई थी। ये दोनों धचर मेरे ही
है । बीि िाल पहले पहाड पर जो आदमी तुम्हें समला था वह मैं ही था। और मैं इि सलए
रोता हूं,कक मैंने बीि िाल में कौन िी यारा कर ली—स्वगघ िे नरक की, परमात्मा िे पाप
की।

पता नहीं यह कहानी कहां तक िच है । िच हो या न हो, लेककन हर आदमी के जीवन में दो


तस्वीरें है । हर आदमी के भीतर शैतान है , और परमात्मा है । और हर आदमी के भीतर नरक
की भी िंभावना है और स्वगघ की भी। हर आदमी के भीतर िौंदयघ के फूल भी खखल भी खखल
िकते है और कुरूपता के गंदे डबरा भी बन िकते है । ित्येक आदमी इन दो याराओं के बीच
तनरं तर डोल रहा है। ये दो छोर है , जजनमे िे आदमी ककिी को भी छू िकता है । और अधिक
लोग नरक के छोर को छू लेते है । और बहुत कम िौभाग्यशाली है , जो अपने भीतर परमात्मा
को उभार पाते है ।
क्या हम अपने भीतर परमात्मा को उभार पाने में िफल हो िकते है । क्या हम भी वह
िततमा बन िकेंगे जहां परमात्मा की झलक समले?

यह कैिे हो िकता है —इि ि‍न के िाथ ही आज की दि ू री चचाघ मैं शुरू करना चाहता हूं।
यह कैिे हो िकता है कक आदमी परमात्मा की िततमा बने? यह कैिे हो िकता है कक आदमी
का जीवन एक स्वगघ बने—एक िुवाि, एक िुगंि, एक िौन्दयघ? यह कैिे हो िकता है कक
मनुष्य उिे जान ले, जजिकी कोई मत्ृ यु नहीं है ? यह कैिे हो िकता है कक मनुष्य परमात्मा
के मुठदर में िप्रवष्ट हो जाये?

होता तो उलटा है । बचपन में हम कहीं स्वगघ में होते है । और बढ


ू े होते-होते नरम तक पहुंच
जाते है । होता उल्टा है । होता यह है कक बचपन के बाद जैिे हमारा रोज पतन होता है।
बचपन में ककिी इनोिेंि, ककिी तनदोष िंिार का हम अनभ
ु व करते है । और कफर िीरे -िीरे
एक कपट िे भर हुआ पाखंड िे भरा हुआ मागघ हम तय करते है । और बढ ू ा होते-होते ने
केवल हम शरीर िे बढ
ू े हो जोत है , बजल्क हम आत्मा िे भी बढ
ू े हााँ जाते है । न केवल शरीर
दीन-हीन, जीणघ-जजघर हो जाता है , बजल्क आत्मा भी ितीत, जीणघ-जजघर हो जाती है । और इिे
ही हम जीवन मान लेते है । और िमाप्त हो जाते है ।

िमघ इि िंबंि में िंदेह उिाना चाहता है । िमघ एक बडा िंदेह है इि िंबंि में कक यह
आदमी के जीवन की यारा गलत है कक स्वगघ िे हम नरक तक पहुंच जाये। होना तो उल्टा
चाठहए। जीवन की यारा अपलजब्ि की यारा होनी चाठहए। कक हम दुःु ख िे आनंद तक पहुाँचें
हम अंिकार िे िकाश तक पहुंचे हम मत्ृ यु िे अमत
ृ तक पहुंच जायें। िाणों के िाण की
असभलाषा और प्याि भी वहीं है । िाणों मे एक ही आकांक्षा है कक मत्ृ यु िे अमत
ृ तक कैिे
पहुाँचें। िाणों में एक ही प्याि है कक हम अंिकार िे आलोक को कैिे उपलब्ि हों। िाणों की
एक ही मांग है कक हम अित्य िे ित्य तक कैिे जा िकते है ।

तनज‍चत ही ित्य की यारा के सलए, तनज‍चत ही स्वयं के भीतर परमात्मा की खोज के सलए,
व्यजक्त को ऊजाघ का एक िंग्रह चाठहए। कन्जवेशन चाठहए। व्यजक्त को शजक्त का एक
िंविघन चाठहए। उिके भीतर शजक्त इक्किी हो कक वह शजक्त का एक स्रोत बन जाये, तभी
व्यजक्त को स्वगघ तक ले जाया जा िकता है ।

स्वगघ तनबघलों के सलए नहीं है । जीवन के ित्य उनके सलए नहीं है । जो दीन हीन हो गये है ।
शजक्त को खोकर जो जीवन की िारी शजक्त को खो दे ते है । और भीतर दब
ु ल
घ और दीन हो
जाते है । वे यारा नहीं कर िकते। उि यारा पर चढने के सलए उन पहाडों पर चढने के सलए
शजक्त चाठहए।
और शजक्त का िंविघन िमघ का िूर है —शजक्त का िंविघन, कंजरवेशन ऑफ ऐनजी। कैिे
शजक्त इक्िी हो कक हम शजक्त के उबलते हुए भण्डार हो जायें?

लेककन हम तो दीन-हीन जन है । िारी शजक्त खोकर हम िीरे -िीरे तनबघल होते चले जाते है ।
िब खो जाता है भीतर ररजक्त रह जाती है । खाली खालीपन के अततररक्तत और कुछ भी
नहीं छूटता है ।

हम शजक्त को कैिे खो दे ते है ?

मनुष्य का शजक्त को खोने का िबिे बडा द्वार िेक्ि हे । काम मनुष्य की शजक्त के खोने
का िबिे बडा द्वार है । जहां िे वह शजक्त को खोता है ।

और जैिा मैंने कल आपिे कहा, कोई कारण है जजिकी वजह िे वह शजक्त को खोता है ।
शजक्त करे कोई भी खोना नहीं चाहता है । कौन शजक्त को खोना चाहता है । लेककन कुछ
झलक है उपलजब्ि की उि झलक के सलए आदमी शजक्त को खोने को राज़ी हो जाता है ।
काम के क्षणों में कुछ अनभ
ु व है , उि अनभ
ु व के सलए आदमी िब कुछ खोने को तैयार है ।
अगर वह अनुभव ककिी और मागघ िे उपलब्ि हो िके तो मनुष्य िेक्ि के माध्यमिे शजक्त
को खोन को कभी तैयार नहीं होगा।

क्या और कोई द्वार हे , उि अनुभव को पाने का? क्या और कोई मागघ है उि अनुभव को
उपलब्ि करने का—जहां हम अपने िाणों की गहरी-िे गहराई में उतर िके। जहां हम जीवन
की ऊजाघ का ऊंचे िे ऊाँचा सशखर छू िके। जहां पर हम जीवन की शांतत और आनंद की
झलक पाते है । क्या कोई और मागघ है ? क्या कोई और मागघ है अपने भी तीर पहुंचने का।
क्या स्वयं की शांतत और आनंद के स्रोत तक पहुंच जाने की और कोई िीढी है ?

अगर वह िीढी हमे ठदखाई पड जाये तो जीवन में एक क्रांतत र्ठटत हो जाती है । आदमी
काम के ितत प्रवमुख और राम के ितत िम्मुख हो जाता है । एक क्रांतत र्ठटत हो जाती है ।
एक नया द्वार खल
ु जाता है ।

मनष्ु य की जातत को अगर हम नया द्वार न दे िकें तो मनष्ु य एक ररप्रपटीठटव िककघल में ,
एक पन
ु रूजक्त वाले चक्कर में र्म
ू ता है और नष्ट होता है । लेककन आज तक िेक्ि के िंबंि
में जो भी िारणाएं रही है , वह मनष्ु य को िेक्ि के अततररक्त नया द्वार खोलने में िमथघ
नहीं बना पायी। बजल्क एक उल्टा उपिव हुआ। िकृतत एक ही द्वार दे ती है । मनुष्य को वह
िेक्ि का द्वार है । अब तक की सशक्षाओं ने वह बंद भी कर ठदया और नया द्वार खोला
नहीं। शजक्त भीतर र्ूमने लगी और चक्कर काटने लगी। और अगर नया द्वार शजक्त के
सलए न समले तो र्ूमती हुई शजक्त को प्रवक्षक्षप्त कर दे ती है । पागल कर दे ती है । और
प्रवक्षक्षप्त मनुष्य कफर न केवल उि द्वार िे जो िेक्ि का िहज द्वार था, तनकलने की चेष्टा
करता है । वह दीवालों और खखडककयों को तोडकर भी उिकी शजक्त बाहर बहने लगती है। वह
अिाकृततक मागों िे भी िेक्ि की शजक्त बाहर बहने लगती है।

यह दि
ु ट
घ ना र्टी है । यह मनुष्य जातत के बडे िे बडे दभ
ु ाघग्यों में िे एक है । नया द्वार नहीं
खोला गया और पुराना द्वार बंद कर ठदया गया। इिसलए मैं िेक्ि के प्रवरोि में ; द‍ु मनी के
सलए, दमन के सलए अब तक जो भी सशक्षाऐं दी गयी है उन िके स्पष्ट प्रवरोि में खडा हूं,
उन िारी सशक्षाओं िे मनुष्य की िेक्िुअसलटी बढी है । कम नहीं हुई,बजल्क प्रवकृत हुई है ।
क्या करें लेककन, कोई और द्वार खोला जा िकता है ।

मैंने आपिे कल कहा, िंभोग के क्षण की जो ितीतत हे वह ितीतत दो बातों की है —


टाइमलेिनेि और इगोलेिनेि की। िमय शन्
ू य हो जाता है । और अहं कार प्रवलीन हो जाता
है । िमय शन्
ू य होने िे और अहं कार प्रवलीन होने िे हमें उिकी एक झलक समलती है । जो
हमारा वास्तप्रवक जीवन है । लेककन क्षण भर की झलक और हम वापि अपनी जगह खडे हो
जाते है । और एक बडी ऊजाघ एक बडी वैद्युततक शजक्त का िवाह इिमें हम खो दे ते है । कफर
झलक की याद ,स्मतृ त मन को पीडा दे ती रहती है । हम वापि उि अनुभव को पाना चाहते
है । और वह झलक इतनी छोटी है कक एक क्षण में खो जाती है । िीक िे उिकी स्मतृ त भी
नहीं रह जाती कक क्या थी झलक हमने क्या जाना था। बि एक िन
ु एक अजघ एक पागल
ितीक्षा रह जाती है । कफर उि अनुभव को पाने की। और जीवन भर आदमी इिी चेष्टा में
िंलग्न रहता है लेककन उि झलक को एक क्षण िे ज्यादा नहीं पाया जा िकता। वहीं झलक
ध्यान के माध्यम िे भी उपलब्ि होती है ।

मनष्ु य की चेतना तक पहुंचने के दो मागघ है —काम और ध्यान िेक्ि और मेडडटे शन।

िेक्ि िाकृततक मागघ है , जो िकृतत ने ठदया हुआ है । जानवरों को भी ठदया हुआ है , पक्षक्षयों को
भी ठदया हुआ है । पौिों को भी ठदया हुआ है । मनुष्यों को भी ठदया हुआ है । और जब तक
मनुष्य केवल िकृतत के ठदए हुए द्वार का उपयोग करता है , तब तक वह पशुओं िे ऊपर
नहीं है । नहीं हो िकता। वह िारा द्वार तो पशुओं के सलए भी उपलब्ि है ।

मनुष्यता का िारम्भ उि ठदन िे होता है । जजि ठदन िे मनुष्य िेक्ि के अततररक्त एक


नया द्वार खोलने मे िमथघ हो जाता है । उिके पहले हम मनुष्य नहीं है । नाम मार को
मनुष्य है । उिके पहले हमारे जीवन का केंि पशु काि केंि है । िकृतत का केंि है । जब तक
हम उिके ऊपर उि नहीं पाएाँ उिे ट्ांिेंड नहीं कर पाएाँ, उिका अततक्रमण नहीं कर पाएाँ, तब
तक हम पशुओं की भांतत ही जीते है ।
हमने कपडे मनुष्य के पहन रखे है । हम भाषा मनुष्यों की बोलते है , हमने िारा रूप मनुष्यों
का पैदा कर रखा है ; लेककन भीतर गहने िे गहरे मन के तल पर हम पशओ
ु ं िे ज्यादा नहीं
होते। नहीं हो िकते। और इि सलए जरा िा मौका समलते ही हम पशु की तरह व्यवहार
करने लग जाते है ।

ठहन्दस्
ु तान पाककस्तान का बंटवारा हुआ और हमें ठदखायी पड गया कक आदमी के कपडों के
भीतर जानवर बैिा हुआ है । हमें ठदखायी पड गया कक वे लोग जो कल मिजजदों में िाथघना
करते थे और मंठदर में गीता पढते थे वे क्या कर रहे है ? वे हत्याएाँ कर रहे है , वे बलात्कार
कर रहे है । वे ही लोग जो मंठदरों और मिजजदों में ठदखाई पड रहे थे, वे ही लोग बलात्कार
करते हुए ठदखायी पडने लगे। क्या हो गया इनको।

अभी दं गा फिाद हो जाये, अभी यह दं गा हो जाये, और यहीं आदमी को दं गे में मौका समल
जायेगा अपनी आदसमयत का छुटटी लेने का। और फौरन वह भीतर छुपा हुआ पशु के वह
िकट हो जायेगा। वह हमेशा तैयार है , वह ितीक्षा कर रहा हे कक मझ
ु े मौका समल जाये। भीड
भाड में उिे मौका समल जाता हे , तो वह जल्दी िे छोड दे ता है अपना ख्याल। वह जो बााँि-
बूंि कर उिने रखा हुआ है अपने को। भीड में मौका समल जाता है । उिे भूल जाने का कक
मैं भूल जाउं अपने को।

इिसलए आज तक अकेले आदसमयों ने उतने पाप नहीं ककये है , जजतने भीड में आदसमयों ने
ककये हे । अकेला आदमी थोडा डरता है । कक कोई दे ख लेगा। अकेला आदमी थोडा िोचता है ।
कक मैं ये िब क्या कर रहा हूं। अकेले आदमी को अपने कपडों की थोडी कफक्र होती है । लोग
क्या कहें गे। जानवर हो।

लेककन जब बडी भीड होती है तो अकेला आदमी कहता है कक अब कौन दे खता है —अब कौन
पहचानता है । वह भीड के िाथ एक हो जाता है । उिकी आइडेजन्टटी समट जाती है । अब वह
फलां नाम का आदमी नहीं है , अब वह भीड है । और बडी भीड जो करती है वह भी करता है ।
और क्या करता हे ? आग लगाता है । बलात्कार करता है । भीड मे उिे मौका समल जाता है ।
कक वह आपने पशु को वह कफर िे छुटटी दे दें । जो उिके भीतर तछपा है ।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

गोिा ललया टैंक, बम्बई,


29—लसतम्बर—1968,

संभोग से समाधि की ओर —10


Posted on सितम्बर 18, 2010by sw anand prashad

संभोग : समय-शन्
ू यता की झलक—2

िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो

और इिसलए आदमी दि-पााँच वषों में युद्ि की ितीक्षा करने लगता है , दं गों की ितीक्षा करने
लगता है । और ठहन्द-ू मुिलमान का बहाना समल जाये तो ठहन्द-ू मुिलमान िही। अगर ठहन्द-ू
मुिलमान का न समले तो गुजराती-मरािी भी काम करे गा। अगर गुजराती-मरािी न िही तो
ठहन्दी बोलने वाला और गेर ठहन्दी बोलने वाला भी चलेगा।

कोई भी बहाना चाठहए आदमी को, उिके भीतर के पशु को छुटटी चाठहए। वह र्बरा जाता है ।
पशु भीतर बंद रहते-रहते। वह कहता है , मुझे िकट होने दो। और आदमी के भीतर का पशु
तब तक नहीं समटता है , जब तक पशुता का जो िहज मागघ हे , उिके उपर मनुष्य की चेतना
न उिे । पशुता का िहज मागघ—हमारी उजाघ हमारी शजक्त का एक ही द्वार है बहने का—वह
है िेक्ि। और वह द्वार बंद कर दें तो कठिनाई खडी हो जाती है । उि द्वार को बंद करने
के पहले नये ,द्वार का उदर्ाटन होना जरूरी है —जीवन चेतना नयी ठदशा में िवाठहत हो
िके।
लेककन यह हो िकता है । यह आज तक ककया नहीं गया। नहीं ककया गया। क्योंकक दमन
िरल मालूम पडता हे । दबा दे ना ककिी बात को आिान है । बदलना, बदलने कक प्रवधि और
िािना की जरूरत है । इिसलए हमने िरल मागघ का उपयोग ककया कक दबा दो अपने भीतर।

लेककन हम यह भल
ू गये कक दबाने िे कोई चीज नष्ट नहीं होती है , दबाने िे और बलशाली
हो जाती है । और हम यह भल
ू गये कक दबाने िे हमारा आकषघण और गहरा होता है । जजिे
हम दबाते है वह हमारी चेतना की और गहरी पतों में िप्रवष्ट हो जाता है । हम उिे ठदन में
दबा लेते है , वह िपने में हमारी आंखों में झुलने लगता है । हम उिे रोजमराघ दबा लेते है वह
हमारे भी ितीक्षा करता है कक कब मौका समल जाये,कब मैं फूट पडू,ं तनकल पडू।ं जजिे हम
दबाते है उििे हम मुक्त नहीं होते। हम और गहरे अथों में , और गहराइयों में , और अचेतन
में और अनकांशि तक उिकी जडें पहुंच जाती है । और वह हमें जकड लेता है ।

आदमी िेक्ि को दबाने के कारण ही बंि गया और जकड गया। और यही वजह है कक
पशुओं की तो िेक्ि की कोई अवधि होती है । कोई पीररयड होता है। वषघ में ; आदमी की कोई
अवधि न रही। कोई पीररयड न रहा। आदमी चौबीि र्ंटे बाहर महीने िेक्िअ
ु ल है । िारे
जानवरों में कोई जानवर ऐिा नहीं है । जो बारह महीने, चौबीि र्ंटे कामुकता िे भरा हुआ
हो। उिका वक्त है , उिकी ऋतु है ; वह आती है और चली जाती है । और कफर उिका स्मरण
भी खो दे ता है ।

आदमी को क्या हो गया है ? आदमी ने दबाया जजि चीज को वह फैल कर उिके चौबीि र्ंटे
बारह महीने के जीवन पर फैल गई है ।

कभी आपने इि पर प्रवचार क्या कक कोई पशु हर जस्थतत में हर िमय कामुक नहीं होता।
लेककन आदमी हर वक्त हर जस्थतत में हर िमय कामुक है —जो कामुकता उबल रही है । जैिे
कामुकता ही िब कुछ हो। वह कैिे हो गया? यह कैिे हो गया? यह दर् ु ट
घ ना कैिे िंभव हुई
है ? प्
ृ वी पर सिफघ मनुष्य के िाथ हुआ है , और ककिी जानवर के िाथ नहीं—क्यों?

एक ही कारण है सिफघ आदमी ने दबाने की कोसशश की है । और जजिे दबाया, वह जहर की


तरह िब तरफ फैल गई। और दबाने के सलए हमें क्या करना पडा? दबाने के सलए हमें तनंदा
करनी पडी,दबाने के सलए हमें कहना पडा की िेक्ि नरक है । हमें कहना पडा जो िेक्ि में है
वह गठहघत है , तनंठदत है । हमें ये िारी गासलयां खोजनी पडी, तभी हम दबाने में िफल हो िके।
और हमें ख्याल भी नहीं कक इन तनंदा ओर गसलयों के कारण हमारा िारा जीवन जहर िे भर
गया है ।

नीत्िे ने एक वचन कहा है , जो बहुत अथघपण


ू घ है । उिने कहा है कक िमों ने जहर खखलाकर
िेक्ि को मार डालने की कोसशश की है । िेक्ि मरा तो नहीं, सिफघ जहरीला और तनंठदत हो
गया है । मर भी जाता तो िीक था। वह मरा नहीं। लेककन ओर गडबड हो गयी बात। वह
जहरीला होकर जजंदा है । यह जो िेक्िुअसलटी है , यह जहरीला िेक्ि है ।

िेक्ि तो पशुओं भी है , काम तो पशुओं में भी है । क्योंकक काम जीवन की ऊजाघ है । लेककन
िेक्िुअसलटी, कामुकता सिफघ मनुष्य में है । कामुकता पशुओं में नहीं है । पशुओं की आंखों में
दे खें, वहां कामुकता ठदखाई नहीं पडेगी। आदमी की आंखों में झांके, वहां एक कामुकता का रि
झलकता हुआ ठदखायी पडेगा। इिसलए पशु आज भी एक तरह िे िुन्दर है । लेककन दमन
करने वाले पागलों की कोई िीमा नहीं है कक वे कहां तक बढ जायेंगे।

मैंने कल आपको कहा था कक अगर हमें दतु नया को िेक्ि िे मुक्त करना है , तो बच्चे और
बच्ची यों को एक दि
ू रे के तनकट लाना होगा। इिके पहले कक उनमें िेक्ि जागे। चौदह िाल
के पहले वे एक दि
ू रे के शरीर िे इतने स्पष्ट रूप िे पररधचत हो लें कक वह आकांशा प्रवलीन
हो जाये।

लेककन अमरीका में अभी-अभी एक नया आंदोलन चला है । और वह नया आंदोलन वहां के
बहुत िासमघक लोग चला रहे है । शायद आपको पता हो। वह नया आंदोलन बडा अद्भत है ।
वह आंदोलन यह है कक िडकों पर गाय, भेि, र्ोडे, कुत्ते, बबल्ली को बबना कपडों के न
तनकाला जाये। उनको भी कपडे पहने चाठहए। क्योंकक नंगे पशओ
ु ं को दे ख कर बच्चें बबगड
िकते है । यह बडे मजे कक बात है । नंगे पशओ
ु ं को दे ख कर बच्चें बबगड िकते है । अमरीका
के कुछ नीतत शास्री इिके बाबत आंदोलन और िंगिन ओर िंस्थाएं बना रहे है । आदमी को
बचाने की इतनी कोसशश चल रही है । और कोसशश बचाने की जो करने वाले लोग है , वे ही
आदमी को नष्ट कर रहे है ।

लेककन वह जो भयभीत लोग है , वे जो डरे हुए लोग है । वे भय और डर के कारण िब कुछ


कर रहे है आज तक। और उनके िब करने िे आदमी रोज नीचे उतरता जा रहा है । जरूरत
तो यह है कक आदमी भी किी ठदन इतना िरल हो कक नग्न खडा हो िके—तनदोष और
आनंद िे भरा हुआ।

जरूरत तो यह है कक—जैिे महावीर जैिा व्यजक्त नग्न खडा हो गया। लोग कहते है कक
उन्होंने कपडे छोडे कपडों का त्याग ककया। मैं कहता हूं, न कपडे छोडे न कपडों का त्याग
ककया। धचत इतना तनदोष हो गया होगा। इतना इनोिेंि, जैिे एक छोटे बच्चे का, तो वे नग्न
खडे हो गये होंगे। क्योंकक ढांकने को जब कुछ भी नहीं रह जाता तो आदमी नग्न हो िकता
है ।

जब तक ढााँकने को कुछ है हमारे भीतर,तब तक आदमी आपने को तछपायेंगा। जब ढांकने को


कुछ भी नहीं है , तो नग्न हो िकता है ।

चाठहए तो एक ऐिी प्
ृ वी कक आदमी भी इतना िरल होगा कक नग्न होने में भी उिे कोई
प‍चाताप कोई पीडा न होगी। नग्न होने में उिे कोई अपराि न होगा। आज तो हम कपडे
पहन कार भी अपरािी मालूम होते है । हम कपडे पहनकर भी नंगे है । और ऐिे लोग भी रहे
है । जो नग्न होकर भी नग्न नहीं थे।

नंगापन मन की एक वतृ त है ।

िरलता, तनदोष धचत—कफर नग्नता भी िाथघक हो जाती है । अथघ पूणघ हो जाती है । वह भी एक


िौंदयघ ले लेती है ।

लेककन अब तक आदमी को जहर प्रपलाया गया है । और जहर का पररणाम यह हुआ है कक


हमारा िारा जीवन एक कोने िे लेकर दि
ू रे कोने तक प्रवषाक्त हो गया है।

स्रीयों को हम कहते है , पतत को परमात्मा िमझना। और उन जस्रयों को बचपन िे सिखाया


गया है कक िेक्ि पाप है। वे कल प्रववाठहत होंगी। वे उि पतत को कैिे परमात्मा मान
िकेंगी, जो उन्हें िेक्ि में और नरक में ले जा रहा है । एक तरफ हम सिखाते है पतत
परमात्मा है और पत्नी का अनभ
ु व कहता है कक यह पहला पापी है जो मझ
ु े नरक में र्िीट
रहा है ।

एक बठहन ने मुझे आकर कहा, प्रपछली मीठटंग में जब मैं बोला, भारतीय प्रवद्या भवन में तो
एक बहन मेरे पाि उिी ठदन आयी और उिने कहा कक मैं……मैं बहुत गुस्िे में हूं? मैं बहुत
क्रोि में हूं। िेक्ि तो बडी र्खृ णत चीज है । िेक्ि तो पाप है । और आपने िेक्ि की इतनी
बातें क्यों कक। मैं तो र्ण
ृ ा करती हूं िेक्ि िे।

अब यह पत्नी है इिका पतत है , इिके बच्चें है । बजच्चयां है । और यह पत्नी िेक्ि िे र्ण


ृ ा
करती है । यह पतत को कैिे िेम कर िकेगी। जो इिे िेक्ि में सलए जा रहा है । यह उन
बच्चों को कैिे िेम कर िकेगी। जो िेक्ि िे पैदा हुए है । इिका िेम जहरीला हो गया है ।
इिके िेम में जहर तछपा है । पतत और उिके बीच एक बुतनयादी दीवाल खडी हो गई है ।
बच्चों और इिके बीच एक बुतनयादी ठदवाल खडी हो गई है क्योंकक वे िेक्ि िे पैदा हुए हे ।
ये बच्चें पाप िे आये है । क्योंकक यह िेक्ि की दीवाल और िेक्ि की कंडेमनेशन की वतृ त
बीच में खडी है । यह पतत और मेरे बीच पाप का िंबंि है , और जजनके िाथ पाप को िंबंि
हो, उिके ितत मैरीपूणघ कैिे हो िकते है ? पाप के ितत हम मैरी पूणघ हो िकते है ।

िारी दतु नयां का गह


ृ स्थ जीवन नष्ट ककया है , िेक्ि को गाली दे ने वाले,तनंदा करने वाले लोगों
ने। और वे इिे नष्ट करके जो दष
ु ा् पररणाम लाये है वह यह नहीं है कक िेक्ि िे लोग मुक्त
हो गये है । जो पतत अपनी पत्नी और अपने बीच एक दीवाल पाता है । पाप की, वह पत्नी िे
कभी भी तजृ प्त अनुभव नहीं कर पाता। तो आिपाि की जस्रयों को खोजता है , वे‍याओं को
खोजता है । अगर पत्नी िे उिे तजृ प्त समल गयी होती तो शायद इि जगत की िारी स्रीयां
उिके सलए मां और बहन हो जातीं। लेककन पत्नी िे भी तजृ प्त न समलने के कारण िारी
स्रीयां उिे पोटें सशयसलटी औरतों की तरह पोटें सशयल पजत्नओं की तरह मालूम पडती है ।
जजनको पत्नी में बदला जा िकता है ।

यह स्वाभाप्रवक है यह होने वाला था। यह होने वाला था, क्योंकक जहां तजृ प्त समल िकती थी।
वहां जहर है । वहां पाप है। और तजृ प्त नहीं समलती। और चह चारों तरफ भटकता है और
खोजता है । और क्या-क्या ईजादें करता है खोजकर आदमी। अगर इन िारी ईजादों को हम
िोचने बैिे तो र्बरा जायेंगे कक आदमी ने क्या-क्या ईजादें की है । लेककन एक बुतनयादी बात
पर खयाल नहीं ककया कक वह जो िेम का कुआं था, वह जो काम का कुआं का, वह जहरीला
हो गया है ।

और जब पत्नी और पतत के बीच जहर का भाव हो, र्बराहट का भाव हो, पाप का भाव हो तो
कफर यह पाप की भावना रूपांतरण नहीं करने दे गी। अन्यथा मेरी िमझ यह है कक एक पतत
और पत्नी अगर एक दि ू रे के ितत िमझ पूवक
घ िेम िे भरे हुए आनंद िे भरे हुए और
िेक्ि के ितत बबना तनंदा के िेक्ि को िमझने की चेष्टा करें गे तो आज नहीं कल, उनके
बीच का िंबंि रूपांतररत हो जाने वाला है । यह हो िकता है कक कल वहीं पत्नी मां जैिी
ठदखाई पडने लगे।

गांिी जी 1930 के करीब श्री लंका गये थे। उनके िाथ कस्तूरबा िाथ थी। िंयोजकों ने
िमझा कक शायद गांिी की मां िाथ आयी हुई है । क्योंकक गााँिीजी कस्तूरबा को खदु भी बा
ही कहते थे। लोगों ने िमझा शायद उनकी मां होगी। िंयोजकों ने पररचय दे ते हुए कहा कक
गांिी जी आये है और बड िौभाग्य की बात है कक उनकी मां भी िाथ आयी हुई है । वह
उनके बगल में बैिी है । गांिी जी के िैक्रेटरी तो र्बरा गये कक यह तो भल
ू हमारी है , हमें
बताना था कक िाथ में कौन है । लेककन अब तो बडी दे र हो चक
ु ी थी। गांिी तो मंच पर
जाकर बैि भी गये थे और बोलना शरू ु कर ठदया था। िैक्रेटरी र्बराये हुए है कक गांिी पीछे
क्या कहें गे। उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कक गांिी नाराज नहीं होंगे, क्योंकक ऐिे परू
ु ष
बहुत कम है , जो पत्नी को मां बनाने में िमथघ हो जाते है ।

लेककन गांिी जी ने कहां, की िौभाग्य की बात है , जजन समर ने मेरा पररचय ठदया है । उन्होंने
भूल िे एक िच्ची बात कह दी। कस्तूरबा कुछ वषों िे मेरी मां हो गयी है । कभी वह मेरी
पत्नी थी। लेककन अब वह मेरी मां है ।
इि बात की िंभावना है कक अगर पत्नी और पतत काम को, िंभोग को िमझने की चेष्टा
करे तो एक दि
ू रे के समर बन िकते है और दि
ू रे के काम के रूपांतरण में िहयोगी और
िाथी हो िकते है ।

और जजि ठदन पतत और पत्नी अपने आपि के िंभोग के िंबंि को रूपांतररत करने में
िफल हो जाते है उि ठदन उनके जीवन में पहली दफा एक दि
ू रे के ितत अनुग्रह और
ग्रेटी्यूड का भाव पैदा होता हे , उिके पहले नहीं। उिके पहले वे एक दि
ू रे के ितत क्रोि िे
भरे रहते है , उिके पहले वे एक दि
ू रे के बुतनयादी शरु बने रहते है । उिके पहले उनके बीच
एक िंर्षघ हे , मैरी नहीं।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)


ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन–3

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

29—लसतम्बर—1968,

संभोग से समाधि की ओर —11


Posted on सितम्बर 19, 2010by sw anand prashad

संभोग : समय-शून्यता की झलक—3

िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो


मैरी उि ठदन शुरू होती है । जजि ठदन वे एक दि
ू रे के िाथी बनते है और उनके काम की
ऊजाघ को रूपांतरण करने में माध्यम बन जाते है । उि ठदन एक अनुग्रह एक ग्रेटी्यूड, एक
कृतज्ञता का भाव ज्ञापन होता है । उि ठदन पुरूष आदर िे भरता है । स्री के ितत क्योंकक
स्री ने उिे काम-वािना िे मुक्त होने में िहयोग पहुंचायी है । उि दीन स्री अनुगठृ हत होती
है पुरूष के ितत कक उिने उिे िाथ ठदया और वािना िे मुजक्त ठदलवायी। उि ठदन वे
िच्ची मैरी में बाँिते है , जो काम की नहीं िेम की मैरी है । उि ठदन उनका जीवन िीक उि
ठदशा में जाता है , जहां पत्नी के सलए पतत परमात्मा हो जाता है । और पतत के सलए पत्नी
परमात्मा हो जाती है ।
लेककन वह कुआं तो प्रवषाक्त कर ठदया है , इिी सलए मैंने कल कहा कक मुझिे बडा शरु िेक्ि
का खोजना कठिन हे । लेककन मेरी शरत
ु ा का यह मतलब नहीं है कक मैं िेक्ि को गाली दाँ ू
और तनंदा करूं। मेरी शरत
ु ा का मतलब यह है कक मैं िेक्ि को रूपांतररत करने के िंबंि में
ठदशा-िूचन करूं। मैं आपको कहूं कक वह कैिे रूपांतररत हो िकता है । मैं कोयले का द‍ु मन
हूं,क्योंकक मैं कोयले को हीरा बनाना चाहता हूं। मैं िेक्ि को रूपांतररत करना चाहता हूं। वह
कैिे रूपांतररत होगा, उिकी क्या प्रवधि होगी?

मैंने आपिे कहा, एक द्वार खोलना जरूरी है —नया द्वार। बच्चे जैिे ही पैदा होते है , वैिे ही
उनके जीवन में िेक्ि का आगमन नही हो जाता। अभी दे र है । अभी शरीर शजक्त इक्िी
कर रहा है । अभी शरीर के अणु मजबूत होंगे। अभी उि ठदन की ितीक्षा है । जब शरीर पूरी
तरह िे तैयार हो जायेगा। ऊजाघ इक्िी होगी द्वार जो बंद रहा है । 14 वषो तक वह खल

जायेगा उजाघ के िक्के िे, और िेक्ि की दतु नया शुरू हो जायेगी। एक बार द्वार खल
ु जाने के
बाद नया द्वार खोलना मजु ‍कल हो जायेगा। क्योंकक िमस्त उजाघ का तनयम यही है । िमस्त
शजक्त का वह एक दफा अपना मागघ खोज ले बहने के सलए तो वह उिी मागघ िे बहना
पिन्द करती है ।

गंगा बह रही है िागर की ओर, उिने एक बार रास्ता खोज सलया। अब वह उिी रास्ते िे
बही चली जाती है । बही चली जाती है । रोज-रोज नया पानी आता है । उिी रास्ते िे बहता
हुआ चला जाता है । गंगा रोज नया रास्ता नहीं खोजती है ।

जीवन की ऊजाघ भी एक रास्ता खोज लेती है । अब वह उिी रास्ते िे बही चली जाती है ।
अगर जीवन को कामुकता िे मुक्त करना हे , तो िेक्ि का रास्ता खल
ु ने िे पहले नया रास्ता,
ध्यान का रास्ता तोड दे ना जरूरी है । एक-एक बच्चे को ध्यान की अतनवायघ सशक्षा और दीक्षा
समलनी चाठहए।

पर हम उिे िेक्ि के प्रवरोि की दीक्षा दे ते है , जो कक अत्यंत मूखत


घ ापूणघ है । िेक्ि के प्रवरोि
की दीक्षा नहीं दे नी है । सशक्षा दे नी है ध्यान की, पाजीठटव कक वह ध्यान के सलए कैिे उपलब्ि
हो। और बच्चे ध्यान को जल्दी उपलब्ि हो िकते है । क्योंकक अभी उनकी ऊजाघ का कोई भी
द्वार खल
ु ा नहीं है । अभी द्वार बंद है , अभी ऊजाघ िंरक्षक्षत है , अभी कहीं भी नये द्वार पर
िक्के ठदये जो िकते है , और नया द्वार खोला जो िकता है । कफर ये ही बढ
ू े , हो जायेंगे और
इन्हें ध्यान में पहुंचना, अत्यंत कठिन हो जायेगा।

ऐिे ही, जैिे एक नया पौिा पैदा होता है , उिकी शाखाएं कहीं भी झुक जाती है । कहीं भी
झुकायी जा िकती है । कफर वही बूढा वक्ष
ृ हो जाता है । कफर हम उिकी शाखाओं को झुकाने
की कोसशश करते है , तो कफर शाखाएं टूट जाती है , झुकती नहीं।

बढ
ू े लोग ध्यान की चेष्टा करते है दतु नया में , जो बबलकुल ही गलत है । ध्यान की िारी चेष्टा
बच्चों पर की जानी चाठहए। लेककन मरने के करीब पहुंच कर आदमी ध्यान में उत्िुक होता
है । वह पछ
ू ता है ध्यान क्या, योग क्या,हम कैिे शांत हो जायें। जब जीवन की िारी ऊजाघ खो
गयी, जब जीवन के िब रास्ते िख्त और मजबत
ू हो गये। जब झक
ु ना और बदलना मजु ‍कल
हो गया, तब वह पछ
ू ता है कक अब मैं कैिे बदल जाऊाँ। एक पैर आदमी कब्र में डाल लेता है ,
और दि
ू रा पैर बहार रख कर पूछता है । ध्यान का कोई रास्ता है ?

अजीब िी बात है । बबलकुल पागलपन की बात है । यह प्


ृ वी कभी भी शांत और ध्यानस्थ
नहीं हो िकती। जब तक ध्यान का िंबंि पहले ठदन के पैदा हुए बच्चे िे हम न जोडेंगे
अंततम ठदन के वद्
ृ ि िे नहीं जोडा जा िकता। व्यथघ ही हमें बहुत श्रम उिाना पडता है बाद
के ठदनों में शांत होने के सलए, जो कक पहले एकदम हो िकता था।

छोटे बच्चे को ध्यान की दीक्षा काम के रूपांतरण का पहला चरण है —शांत होने की दीक्षा,
तनप्रवघचार होने की दीक्षा मौन होने की दीक्षा।

बच्चे ऐिे भी मौन है , बच्चे ऐिे ही शांत है , अगर उन्हें थोडी िी ठदशा दी जाये और उन्हें
मौन और शांत होने के सलए र्डी भर की भी सशक्षा दी जाये तो जब वे 14 वषघ के होने के
करीब आयेंगे। जब काम जगेगा, जब तक उनका एक द्वार खल
ु चक
ु ा होगा। शजक्त इक्िी
होगी और जो द्वार िे बहनी शरू
ु हो जायेगी। वह अनभ
ु व उनकी ऊजाघ को गलत मागों िे
रोकेगा और िीक मागों पर ले आयेगा।

लेककन हम छोटे -छोटे बच्चों को ध्यान तो नहीं सिखाते, काम का प्रवरोि सिखाते है । पाप है
गंदगी है । कुरूपता है , बुराई है , नरक है —यह िब हम बता रहे है । और इि िबके बताने िे
कुछ भी फकघ नहीं पडता—कुछ भी फकघ नहीं पडता। बजल्क हमारे बताने िे वे और भी
आकप्रषघत होते है और तलाश करते है कक क्या है यह गंदगी, क्या है नरक, जजिके सलए बडे
इतने भयभीत और बेचन
ै होते है ।
और कफर थोडे ही ठदनों में उन्हें यह भी पता चल जाता है कक बडे जजि बात िे हमें रोकने
की कोसशश कर रहे है । खद
ु ठदन रात उिी में लीन रहते है । और जजि ठदन उन्हें यह पता
चल जाता है , मां बाप के ितत िारी श्रद्िा िमाप्त हो जाती है ।

मां-बाप के ितत श्रद्िा िमाप्त करने में सशक्षा का हाथ नहीं है । मां-बाप के ितत श्रद्िा
िमाप्त करने में मां बाप का अपना हाथ है ।

आप जजन बातों के सलए बच्चों को गंदा कहते है । बच्चे बहुत जल्दी पता लगा लेते है कक
उन िारी गंदधगयों में आप भली भांतत लवलीन हे । आपकी ठदन की जजंदगी दि ू री और रात
की दि
ू री। आप कहते है कुछ और करते है कुछ।

छोटे बच्चे बहुत एक्यूट आब्जवघर होते है । वे बहुत गौर िे तनरीक्षण करते रहते है । कक क्या
हो रहा है । र्र में वे दे खते है कक मां जजि बात को गंदा कहती है , बाप जजि बात को गंदा
कहता है । वही गंदी बात ठदन रात र्र में चल रही है । इिकी उन्हें बहुत जल्दी बोि हो जाता
है । उनकी िारी श्रद्िा का भाव प्रवलीन हो जाता है । कक िोखेबाज है ये मां-बाप। पाखंडी है ।
ठहपोक्रेट है । ये बातें कुछ और कहते है , करते कुछ और है ।

और जजन बच्चों का मां-बाप पर िे प्रवश्र्वाि उि गया। वे बच्चे परमात्मा पर कभी प्रव‍वाि


नहीं कर िकेंगे। इिको याद रखना। क्योंकक बच्चों के सलए परमात्मा का पहला दशघन मां-बाप
में होता है । अगर वहीं खंडडत हो गया तो। ये बच्चे भप्रवष्य में नाजस्तक हो जाने वाले है ।
बच्चों को पहले परमात्मा की ितीतत अपने मां-बाप की पप्रवरता िे होती है । पहली दफा बच्चे
मां-बाप को ही जानते है । तनकटतम और उनिे ही उन्हें पहली दफा श्रद्िा और ररवरें ि का
भाव पैदा होता है । अगर वही खंडडत हो गया तो इन बच्चों को मरते दम तक वापि
परमात्मा के रास्ते पर लाना मुज‍कल हो जायेगा। क्योंकक पहला परमात्मा ही िोखा दे गया।
जो मां थी, जो बाप था, वहीं िोखे बाज सिद्ि हुआ।

आज िारी दतु नया में जो लडके यह कह रहे है कक कोई परमात्मा नहीं है , कोई आत्मा नहीं
है । कोई मोक्ष नहीं है । िमघ िब बकवाि है । उिका कारण यह नहीं है कक लडकों ने पता
लगा सलया है कक आत्मा नहीं है । परमात्मा नहीं है । उिका कारण यह है कक लडकों ने मां-
बाप का पता लगा सलया है । कक वे िोखेबाज है । और यह िार िोखा िेक्ि के आि पाि
केंठित है । और यह िारा िोखा केंि पर खडा है ।

बच्चों को यह सिखाने की जरूरत नहीं है कक िेक्ि पाप है , बजल्क ईमानदारी िे यह सिखाने


की जरूरत है कक िेक्ि जजंदगी का एक ठहस्िा है और तुम िेक्ि िे ही पैदा हुए हो, और वह
हमारी जजंदगी में है , ताकक बच्चे िरलता िे मां बाप को िमझ िकें और जब जीवन को वह
जानेंगे तो आदर िे भर िकें कक मां-बाप िच्चे और ईमानदार है । उनको जीवन में आजस्तक
बनाने में इििे बडा िंबल और कुछ भी नहीं है । वे अपने मां बाप को िच्चे और ईमानदार
अनुभव कर िकते है ।

लेककन आज िब बच्चे जानते है कक मां-बाप बेईमान और िोखेबाज हे । यह बच्चे और मां


बाप के बीच एक कलह का एक कारण बनता है । िेक्ि का दमन पतत ओर पत्नी को तोड
ठदया है । मां-बाप और बच्चों को तोड ठदया है ।

नहीं, िेक्ि का प्रवरोि नहीं, तनंदा नहीं, बजल्क िेक्ि की सशक्षा दी जानी चाठहए।

जैिे ही बच्चे पूछने को तैयार हो जायें, जो भी जरूरी मालूम पडे,जो उनकी िमझ के योग्य
मालूम पडे, वह िब उन्हें बता ठदया जाना चाठहए। ताकक वे िेक्ि के िंबंि में अतत उत्िुक
न हों। ताकक उनका आकषघण न पैदा हो, ताकक वे दीवाने होकर गलत रास्तों िे जानकारी पाने
की कोसशश न करें ।

आज बच्चे िब जानकारी पा लेते है , यहााँ-वहां िे। गलत मागों िे, गलत लोगों िे उन्हें
जानकारी समलती है । जो जीवन भर उन्हें पीडा दे ती है । और मां-बाप और उनके बीच एक
मौन की दीवार होती है —जैिे मां-बाप को कुछ भी पता नहीं और बच्चों को भी पता नहीं है ।
उन्हें िेक्ि की िम्यक सशक्षा समलनी चाठहए—राइट एजुकेशन।

और दि
ू री बात, उन्हें ध्यान की दीक्षा समलनी चाठहए। कैिे मौन हों, कैिे शांत हों, कैिे
तनप्रवघचार हों। और बच्चे तत्क्षण तनप्रवघचार हो िकते है । मौन हो िकते है । शांत हो िकते है ।
चौबीि र्ंटे में एक र्ंटा अगर बच्चों को र्र में मौन में ले जाने की व्यवस्था हो। तनज‍चत
ही वह मौन में तभी जा िकेंगे,जब आप भी उनके िाथ मौन बैि िकें। हर र्र में एक र्ंटा
मौन का अतनवायघ होना चाठहए। एक ठदन खाना न समले र्र में तो चल िकता है । लेककन
एक र्ंटा मौन के बबना र्र नहीं चलना चाठहए।

वह र्र झूिा हे । उि र्र को पररवार कहना गलत है , जजि पररवार में एक र्ंटे के मौन की
दीक्षा नहीं है । वह एक र्ंटे का मौन चौदह वषों में उि दरवाजे को तोड दे गा। रोज िक्के
मारे गा। उि दरवाजे को तोड दे गा। जजिका नाम ध्यान है । जजि ध्यान िे मनुष्य को िमय
हीन, टाइमलेिनेि इगोलेिनेि, अहं कार-शुन्य का अनुभव होता है । जहां िे आत्मा की झलक
समलती है । वह झलक िेक्ि के अनुभव के पहले समल जानी जरूरी है । अगर वह झलक समल
जाए तो िेक्ि के ितत अततशय दौड िमाप्त हो जायेगी। उजाघ इि नये मागघ िे बहने लगेगी।
यह मैं पहला चरण कहता हूं।
ब्रह्मचयघ की िािना में , िेक्ि के ऊपर उिने की िािना में िेक्ि की उजाघ के ट्ांिफॉमेशन
के सलए पहला चरण है ध्यान और दि
ू रा चरण है िेम।

बच्चों को बचपन िे ही िेम की दीक्षा ठद जानी चाठहए।

हम अब तक यही िोचते है कक िेम की सशक्षा मनुष्य को िेक्ि में ले जायेगी। यह बात


अत्यंत भ्ांत हे । िेक्ि की सशक्षा तो मनुष्य को िेम में ले जा िकती है । लेककन िेम की
सशक्षा कभी ककिी मनुष्य को िेक्ि में नहीं ले जाती। बजल्क िच्चाई बबलकुल उल्टी है ।

जो लोग जजतने कम िेम िे भरे होते है , उतने ही ज्यादा कामुक होते है ।

जजिके जीवन में जजतना कम िेम है , उनके जीवन में उतनी ही ज्यादा िण
ृ ा होगी।

जजनके जीवन में जजतना कम िेम है , उनके जीवन में उतना ही प्रवद्वेष होगा।

जजनके जीवन में जजतना कम िेम है , उनके जीवन में उतनी ही ईष्याघ होगी।

जजनके जीवन में जजतना कम िेम है , उनके जीवन में उतनी ही िततस्पिाघ होगी।

जजनके जीवन में जजतना कम िेम है , उनके जीवन में उतनी ही दुःु ख और धचंता होगी।

दुःु ख, धचंता, ईष्याघ, र्ण


ृ ा, द्वेष इन िबिे जो आदमी जजतना ज्यादा तर्रा है , उिकी शजक्तयां
िारी की िारी भीतर इक्िा हो जाती है । उनके तनकाि का कोई मागघ नहीं रह जाता है ।
उनके तनकाि का एक ही मागघ रह जाता है —वह िेक्ि हे ।

िेम शजक्तयों का तनकाि बनता है । िेम बहाव है । कक्रएशन—िज


ृ नात्मक है िेम। इिीसलए वह
बहता है और एक तजृ प्त लाता है । वह तजृ प्त िेक्ि की तजृ प्त िे बहुत ज्यादा कीमती और
गहरी है । जजिे वह तजृ प्त समल गयी, वह कफर कंकड-पत्थर नहीं बीनता। जजिे हीरे जवाहरात
समलने शुरू हो जाते है ।

लेककन र्ण
ृ ा िे भरे आदमी को वह तजृ प्त कभी नहीं समलती। र्ण
ृ ा में वह तोड दे ता है चीजों
को। लेककन तोडने िे कभी ककिी आदमी को कोई तजृ प्त नहीं समलती। तजृ प्त समलती है
तनमाघण करने िे।
द्वेष िे भरा आदमी िंर्षघ करता है । लेककन िंर्षघ िे कोई तजृ प्त नहीं समलती तजृ प्त समलती
है , दान िे , दे ने िे। छीन लेने िे नहीं। िंर्षघ करने वाला छीन लेता है । छीनने िे वह तजृ प्त
कभी नहीं समलती जो ककिी को दे ने िे और दान िे उपलब्ि होती है ।

महत्व कांक्षी आदमी एक पद िे दि


ू रे पद की यारा करता रहता है । लेककन कभी भी शांत
नहीं हो पाता। शांत वे होते है जो पदों की यारा नहीं करते,बजल्क िेम की यारा करते है । जो
िेम के एक तीथघ िे दि
ू रे तीथघ की यारा करते है ।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)


ओशो

संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन—3

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

29—लसतम्बर—1968,

संभोग से समाधि की ओर —12


Posted on सितम्बर 20, 2010by sw anand prashad

िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो


संभोग: समय शून्यता की झलक—4
जजतना आदमी िेम पूणघ होता है । उतनी तजृ प्त, एक कंटें टमें ट, एक गहरा िंतोष, एक गहरा
आनंद का भाव, एक उपलजब्ि का भाव, उिके िाणों के रग-रग में बहने लगाता है । उिके िारे
शरीर िे एक रि झलकने लगता है । जो तजृ प्त का रि है , वैिा तप्ृ त आदमी िेक्ि की
ठदशाओं में नहीं जाता। जाने के सलए रोकने के सलए चेष्टा नहीं करनी पडती। वह जाता ही
नहीं,क्योंकक वह तजृ प्त, जो क्षण भर को िेक्ि िे समलती थी, िेम िे यह तजृ प्त चौबीि र्ंटे
को समल जाती है ।

तो दि
ू री ठदशा है , कक व्यजक्तत्व का अधिकतम प्रवकाि िेम के मागों पर होना चाठहए। हम
िेम करें , हम िेम दें , हम िेम में जजयें।
और जरूरी नहीं है कक हम िेम मनष्ु य को ही दें गे, तभी िेम की दीक्षा होगी। िेम की दीक्षा
तो परू े व्यजक्तत्व के िेमपण
ू घ होने की दीक्षा है । वह तो ‘टू बी सलप्रवंग’ होने की दीक्षा है ।

एक पत्थर को भी हम उिाये तो हम ऐिे उिा िकते है । जैिे समर को उिा रहे है । और एक


आदमी का हाथ भी हम पकड िकते है , जैिे शरु का पकडे हुए है । एक आदमी वस्तुओं के
िाथ भी िेमपूणघ व्यवहार कर िकता है । एक आदमी आदसमयों के िाथ भी ऐिा व्यवहार
करता है , जैिा वस्तुओं के िाथ भी नहीं करना चाठहए। र्ण
ृ ा िे भरा हुआ आदमी वस्तुएं
िमझता है मनुष्य को। िेम िे भरा हुआ आदमी वस्तुओं को भी व्यजक्तत्व दे ता है ।

एक फकीर िे समलने एक जमघन यारी गया हुआ था। उि फकीर िे जाकर नमस्कार ककया।
उिने दरवाजे पर जोर िे जूते खोल ठदये, जूतों को पटका, िक्का ठदया जोर िे दरवाजे को।

क्रोि में आदमी जूते भी खोलता है तो ऐिे जैिे जूते द‍ु मन हो। दरवाजे भी खोलता है तो
ऐिे दरवाजे िे कोई झगडा हो।

दरवाजे को िक्का दे कर वह भीतर गया। उि फकीर िे जाकर नमस्कार ककया। उि फकीर ने


कहा: नहीं, अभी मैं नमस्कार का उत्तर न दे िकंू गा। पहले तुम दरवाजे िे और जूतों िे
क्षमा मांग कर आओ।

उि आदमी ने कहा, आप पागल हो गये है ? दरवाज़ों और जत


ू ों िे क्षमा। क्या उनका भी कोई
व्यजक्तत्व है ?

उि फकीर ने कहा, तुमने क्रोि करते िमय कभी भी न िोचा कक उनका कोई व्यजक्तत्व है ।
तुमने जूते ऐिे पटके जैिे उनमें जाने हो, जैिे उनका कोई किूर हो। तुमने दरवाजा ऐिे
खोला जैिे तुम द‍ु मन हो। नहीं, जब तुमने क्रोि करते वक्त उनका व्यजक्तत्व मान सलया,तो
पहले जाओ, क्षमा मांग कर आ जाओ, तब मैं तुमिे आगे बात करूंगा। अन्यथा मैं बात करने
को नहीं हूं।

अब वह आदमी दरू जमघनी िे उि फकीर को समलने गया था। इतनी िी बात पर मुलाकात
न हो िकेगी। मजबूरी थी। उिे जाकर दरवाजे पर हाथ जोडकर क्षमा मांगनी पडी कक समर
क्षमा कर दो। जूतों को कहना पडा, माफ कररए,भूल हो गई, हमने जो आपको इि भांतत गुस्िे
में खोला।

उि जमघन यारी ने सलखा है कक लेककन जब मैं क्षमा मांग रहा था तो पहले तो मझ


ु े हं िी
आयी कक मैं क्या पागलपन कर रहा हूं। लेककन जब मैं क्षमा मांग चक
ु ा तो मैं है रान हुआ।
मझ
ु े एक इतनी शांतत मालम
ू हुई, जजिकी मझ ु े कल्पना तक नहीं थी। कक दरवाजे और जत ू ों
िे क्षमा मांग कर शांतत समल िकती है ।

मैं जाकर उि फकीर के पाि बैि गया, वह हं िने लगा। उिने कहां, अब िीक है , अब कुछ
बात हो िकती है । तुमने थोडा िेम जाठहर ककया। अब तुम िंबंधित हो िकते हो, िमझ भी
िकते हो। क्योंकक अब तम
ु िफुजल्लत हो, अब तुम आनंद िे भर गये हो।

िवाल मनुष्यों के िाथ ही िेम पूणाघ होने का नहीं, यह िवाल नहीं है कक मां को िेम दो? ये
गलत बात है। जब कोई मां अपने बच्चे को कहती है कक में तेरी मां हूं इिसलए िेम कर।
तब वह गलत सशक्षा दे रही है । क्योंकक जजि िेम में इिसलए लगा हुआ है । दे य फोर वह िेम
झूिा है । जो कहता है , इिसलए िेम करो कक मैं बाप हूं,वह गलत सशक्षा दे रहा है । वह कारण
बता रहा है िेम का।

िेम अकारण होता है , िेम कारण िठहत नहीं होता है ।

मां कहती है , मैं तेरी मां हूं,मैंने तुझे इतने ठदन पाला-पोिा,बडा ककया, इिसलए िेम कर। वह
वजह बता रही है , िेम खत्म हो गया। अगर वह िेम भी होगा तो बच्चा झूिा िेम ठदखाने की
कोसशश करे गा। क्योंकक यह मां है । इिसलए िेम ठदखाना पड रहा है ।

नहीं िेम की सशक्षा का मतलब है : िेम का कारण नहीं; िेमपण


ू घ होने की िप्रु विा और व्यवस्था
कक बच्चा िेमपण
ू घ हो िके।

जो मां कहती है कक मुझिे िेम कर, क्योंकक मैं मां हूं, वह िेम नहीं सिखा रही। उिे यह
कहना चाठहए कक यह तेरा व्यजक्तत्व,यह तेरे भप्रवष्य, यह तेरे आनंद की बात है , कक जो भी
तेरे मागघ पर पड जाये, तू उििे िेमपूणघ हो—पत्थर पड जाए। फूल पड जाये, आदमी पड जाये,
जानवर पड जाये, तू िेम दे ना। मां को िेम दे ने का नहीं, तेरे िेमपूणघ होने का है । क्योंकक तेरा
भप्रवष्य इि पर तनभघर करे गा। कक तू ककतना िेमपण
ू घ है । तेरा व्यजक्तत्व ककतना िेम िे भरा
हुआ है । उतना तेरे जीवन में आनंद की िंभावना बढे गी।

िेम पूणघ होने की सशक्षा चाठहए मनुष्य को, तो वह कामुकता िे मुक्त हो िकता है ।

लेककन हम तो िेम की कोई सशक्षा नहीं दे ते। हम तो िेम का कोई भाव पैदा होने नहीं दे ते।
हम तो िेम के नाम पर जो भी बात करते है वह झि
ू े ही सिखाते है उनको।

क्या आपको पता है कक एक आदमी एक के ितत िेमपूणघ है और दि


ू रे के ितत र्ण
ृ ा पूणघ हो
िकता है ? यह अिंभव है।

िेमपण
ू घ आदमी िेमपण
ू घ होता है । आदमी िे कोई िंबंि नहीं है उि बात का। अकेले में बैिता
है तो भी िेमपण
ू घ होता है। कोई नहीं होता तो भी िेमपण
ू घ होता है । िेमपण
ू घ होना उिके
स्वभाव की बात है । वह आपिे िंबंधित होने का िवाल नहीं है ।

क्रोिी आदमी अकेले में भी क्रोिपूणघ होता है । र्ण


ृ ा िे भरा आदमी र्ण
ृ ा िे भरा हुआ होता
है । वह अकेले भी बैिा है तो आप उिको दे ख कर कह िकते है कक यह आदमी क्रोिी है ,
हालांकक वह ककिी पर क्रोि नहीं कर रहा है । लेककन उिका िारा व्यजक्तत्व क्रोिी है ।

िेम पूणघ आदमी अगर अकेले में बैिा है , तो आप कहें गे यह आदमी ककतने िेम िे भरा हुआ
बैिा है ।

फूल एकांत में खखलते है जंगल के तो वहां भी िुगंि बबखेरते रहते है । चाहे कोई िूंर्ने वाला
हो या न हो। रास्तें िे कोई तनकले या न तनकले। फूल िुगंधित होता रहता है । फूल का
िग
ु ंधित होना स्वभाव है । इि भल
ू में आप मत पडना कक आपके सलए िग
ु ंधित हो रहा है ।

िेमपूणघ होना व्यजक्तत्व बनाना चाठहए। वह हमार व्यजक्तत्व हो, इििे कोई िंबंि नहीं कक
वह ककिके ितत।

लेककन जजतने िेम करने वाले लोग है , वे िोचते है कक मेरे ितत िेमपण
ू घ हो जाये। और ककिी
के ितत नहीं। और उनको पता नहीं है कक जो िबके ितत िेम पण
ू घ नहीं है वह ककिी के ितत
भी िेम पण
ू घ नहीं हो िकता।
पत्नी कहती है पतत िे, मुझे िेम करना बि, कफर आ गया स्टाप। कफर इिर-उिर कहीं दे खना
मत, कफर और कहीं तुम्हारे िेम की जरा िी िारा न बहे , बि िेम यानी इि तरफ। और उि
पत्नी को पता नहीं है कक िेम झूिा है , वह अपने हाथ िे ककये ले रही है , जो पतत िेमपूणघ
नहीं है हर जस्थतत में , हरे क के ितत,वह पत्नी के ितत भी िेम पूणघ नहीं हो िकता।

िेम पूणघ चौबीि र्ंटे के जीवन का स्वभाव है । वह ऐिी कोई नहीं कक हम ककिी के ितत
िेमपूणघ हो जायें और ककिी के ितत िेमहीन हो जायें। लेककन आज तक मनुष्य इिको
िमझने में िमथघ नहीं हो िका है ।

बाप कहता है कक मेरे ितत िेम पण


ू ,घ लेककन र्र में जा चपरािी है उिके ितत….वह तो नौकर
है । लेककन उिे पता है कक जो बेटा एक बूढे नौकर के ितत िेमपण
ू घ नहीं हो पाया है ….वह बढ
ू ा
नौकर भी ककिी का बाप है ।

लेककन उिे पता नहीं कक जो बेटा एक बूढे नौकर के ितत िेमपूणघ नहीं हो िका वह आज
नहीं कल, जब उिका बाप भी बूढा हो जायेगा। उिके ितत भी िेम पूणघ नहीं रह पायेगा। तब
वह बाप पछतायेंगा। कक मेरा लडका मेरे ितत िेमपूणघ नहीं है । लेककन इि बाप को पता ही
नहीं कक लडका िेमपूणघ हो िकता था। उिके ितत भी, अगर जो भी आिपाि थे, िबके ितत
िेमपूणघ होने की सशक्षा दी गयी होती। तो वह उिके ितत भी िेमपूणघ होता।

िेम स्वभाव की बात है । िंबंि की बात नहीं है ।

िेम ररलेशनसशप नहीं है । िेम है ‘’स्टे ट ऑफ माइंड’’ मनुष्य के व्यजक्तत्व का भीतरी अंग है ।

तो हमें िेम पूणघ होने की दि


ू री दीक्षा दी जानी चाठहए—एक-एक चीज के ितत। अगर बच्चा
एक ककताब को भी गलत ढं ग िे रखे तो गलती बात है , उिे उिी क्षण टोकना चाठहए कक ये
तुम्हारे व्यजक्तत्व के ितत शोभा दायक नहीं है । कक तुम इि भांतत ककताब को रखो। कोई
दे खेगा,कोई िुनेगा, कोई पायेगा कक तुम ककताब के िाथ दव्ु यघवहार ककये हो? तुम कुत्ते के
िाथ गलत ढं ग िे पेश आये हो यह तुम्हारे व्यजक्तत्व की गलती है।

एक फकीर के बाबत मझ
ु े ख्याल आता है । एक छोटा िा फकीर का झोंपडा था। रात थी, जोर
िे वषाघ होती थी। रात के बारह बजे होंगे। फकीर और उिकी पत्नी दोनों िोते थे। ककिी
आदमी ने दरवाजे पर दस्तक दी। छोटा िा झोंपडा कोई शायद शरण चाहता था। उिकी
पत्नी िे उिने कहा कक द्वार खोल दें , कोई द्वार पर खडा है , कोई यारी कोई अपररधचत
समर।
िुनते है उिकी बात, उिने कहां, कोई अपररधचत समर, हमारे तो पररधचत है , वह भी समर नहीं
है । उिने कहां की कोई अपररधचत समर,िेम का भाव है ।

कोई अपररधचत समर द्वार पर खडा है , द्वार खोल उिकी पत्नी ने कहां,लेककन जगह तो
बबलकुल नहीं है । हम दो के लायक ही मुज‍कल िे है । कोई तीिरा आदमी भीतर आयेगा तो
हम क्या करें गे।

उि फकीर ने कहा,पागल यह ककिी अमीर का महल नहीं है ,जो छोटा पड जाये। यह गरीब
को झोंपडा है । अमीर का महल छोटा पड जाता है । हमेशा एक मेहमान आ जाये तो महल
छोटा पड जाता है । यह गरीब की झोपडी है ।

उिकी पत्नी ने कहां—इिमे झोपडी….अमीर और गरीब का क्या िवाल है ? जगह छोटी है ।

उि फकीर ने कहा कक जहां ठदल में जगह बडी हो वहां, झोपडी महल की तरह मालम
ू हो
जाती है । और जहां ठदल में छोटी जगह हो, वहां झोंपडा तो क्या महल भी छोटा और झोंपडा
हो जाता है । द्वार खोल दो, द्वार पर खडे हुए आदमी को वापि कैिे लौटाया जा िकता है ?
अभी हम दोनों लेटे थे, अब तीन लेट नहीं िकेंगे,तीन बैिेंगे। बैिने के सलए काफी जगह है ।

मजबूरी थी, पत्नी को दरवाजा खोल दे ना पडा। एक समर आ गया, पानी िे भीगा हुआ। उिके
कपडे बदले और वे तीनों बैि कर गपशप करने लग गये। दरवाजा कफर बंद कर ठदया।

कफर ककन्हीं दो आदसमयों ने दस्तक दी। अब उि समर ने उि फकीर को कहा, वह दरवाजे के


पाि था, कक दरवाजा खोल दो। मालूम होता है कक कोई आया है । उिी आदमी ने कहा, कैिे
खोल दाँ ू दरवाजा, जगह कहां हे यहां।

वह आदमी अभी दो र्डी पहले आया था खद


ु और भूल गया वह बात की जजि िेम ने मुझे
जगह दी थी। वह मझ
ु े जगह नहीं दी थी, िेम था उिके भीतर इि सलए जगह दी थी। अब
कोई दि
ू रा आ गया जगह बनानी पडेगी।

लेककन उि आदमी ने कहा,नहीं दरवाजा खोलने की जरूरत नहीं; मुज‍कल िे हम तीन बैिे हे।

वह फकीर हं िने लगा। उिने कहां, बडे पागल हो। मैंने तम्
ु हारे सलए जगह नहीं की थी। िेम
था, इिसलए जगह की थी। िेम अब भी है , वह तम
ु पर चक
ु नहीं गया और िमाप्त नहीं हो
गया। दरवाजा खोलों, अभी हम दरू -दरू बैिे है । कफर हम पाि-पाि बैि जायेंगे। पाि-पाि
बैिने के सलए काफी जगह है । और रात िं डी है , पाि-पाि बैिने में आनंद ही और होगा।
दरवाजा खोलना पडा। दो आदमी भीतर आ गये। कफर वह पाि-पाि बैिकर गपशप करने
लगे। और थोडी दे र बीती है और रात आगे बढ गयी है और वषाघ हो रही है ओर एक गिे ने
आकर िर लगाया दरवाजे िे। पानी में भीग गया था। वह रात शरण चाहता था।

उि फकीर ने कहा कक समरों, वे दो समर दरवाजे पर बैिे हुए थे जो पीछे आये थे; दरवाजा
खोल दो, कोई अपररधचत समर कफर आ गया।

उन लोगों ने कहा, वह समर वगैरह नहीं है , वह गिा है । इिके सलए द्वार खोलने की जरूरत
नहीं है ।

उि फकीर ने कहा कक तुम्हें शायद पता नहीं, अमीर के द्वार पर आदमी के िाथ भी गिे
जैिा व्यवहार ककया जाता है । यह गरीब की झोपडी है , हम गिे के िाथ भी आदमी जैिा
व्यवहार करे ने की आदत भर हो गई है । दरवाजा खोल दो।

पर वे दोनों कहने लगे, जगह।

उि फकीर ने कहा, जगह बहुत है ; अभी हम बैिे है , अब खडे हो जायेंगे। खडे होने के सलए
काफी जगह है । और कफर तम
ु र्बडाओं मत, अगर जरूरत पडेगी तो मैं हमेशा बहार होने के
सलए तैयार हूं। िेम इतना कर िकता है ।

एक सलप्रवंग एटी्यूड, एक िेमपूणघ ह्रदय बनाने की जरूरत है । जब िेम पूणघ ह्रदय बनता है ।
तो व्यजक्तत्व में एक तजृ प्त का भाव एक रिपूणघ तजृ प्त…..।

क्या आपको कभी ख्याल है कक जब भी आप ककिी के ितत जरा-िे िेमपूणघ हुए, पीछे एक
तजृ प्त की लहर छूट गयी है । क्या आपको कभी भी खयाल है कक जीवन में तजृ प्त के क्षण
वही रहे है । जो बेशतघ िेम के क्षण रहे होंगे। जब कोई शतघ न रही होगी िेम की। और जब
आपने रास्ते चलते एक अजनबी आदमी को दे खकर मस्
ु कुरा ठदया होगा—उिके पीछे छूट
गयी तजृ प्त का कोई अनभ
ु व है ? उिके पीछे िाथ आ गया एक शांतत का भाव। एक िाणों में
एक आनंद की लहर का कोई पता है । जब राह चलते ककिी आदमी को उिा सलया हो, ककिी
धगरते को िंभाल सलया हो, ककिी बीमार को एक फूल दे ठदया हो। इिसलए नहीं कक वह
आपकी मां है , इिसलए नहीं की वह आपका प्रपता है । नहीं वह आपका कोई नहीं है । लेककन
एक फूल ककिी बीमार को दे दे ना आनंद पण
ू घ है ।
व्यजक्तत्व में िेम की िंभावना बढती जानी चाठहए। वह इतनी बढ जानी चाठहए—पौिों के
ितत, पक्षक्षयों के ितत पशुओं के ितत, आदमी के ितत, अपररधचत के ितत, अंजान लोगों के
ितत, प्रवदे सशयों के ितत, जो बहुत दरू है उिके ितत, िेम हमारा बढत चला जाए।

जजतना िेम हमारा बढता है , उतनी ही िेक्ि की जीवन में िंभावना कम होती चली जाती है ।

िेम और ध्यान दोनों समलकर उि दरवाजे को खोल दे ते है , जो दरवाजा परमात्मा की और


जाता है ।

िेम+ध्यान=परमात्मा। िेम और ध्यान का जोड हो जाये और परमात्मा उपलब्ि हो जाता है ।

और उि उपलजब्ि िे जीवन में ब्रह्मचयघ फसलत होता है । कफर िारी उजाघ एक नये ही मागघ
पर ऊपर चढने लगती है । कफर बह-बह कर तनकल जाती है । कफर जीवन िे बाहर तनकल-
तनकल कर व्यथघ नहीं हो जाती। कफर जीवन के भीतरी मागों पर गतत करने लगती है । उिका
एक ऊध्वघगमन, एक ऊपर की तरफ की यारा शरू
ु होती है ।

अभी हमारी यारा नीचे की तरफ है । िेक्ि ऊजाघ का अिोगमन है , नीचे की तरफ बह जाना
है । ब्रह्मचयघ ऊजाघ का ऊध्वघगमन है , उपर की तरफ उि जाना है ।

िेम और ध्यान ब्रह्मचयघ के िूर है ।

तीिरी बात कल आपिे करने को हूं कक ब्रह्मचयघ अपलब्ि होगा तो क्या फल होगा? क्या
होगी उपलजब्ि,क्या समल जायेगा?

ये दो बातें मैंने आज आपिे कहीं—िेम और ध्यान। मैंने यह कहा है कक छोटे बच्चों िे


इनकी सशक्षा शुरू हो जानी चाठहए। इििे आप यह मत िोच लेना कक अब तो हम बच्चे नहीं
रहे । इिसलए करने को कुछ बाकी नहीं बचा। यह आप मत िोच कर चले जाना। अन्यथा
मेरी मेहनत कफजूल हो जायेगी। आप ककिी भी उम्र के हो, यह काम शुरू ककया जा िकता है ।
यह काम कभी भी शुरू ककया जा िकता है । हालांकक जजतनी उम्र बढती चली जाती है , उतनी
मुज‍कल होती चली जाती है । बच्चों के िाथ हो िके िौभाग्य, लेककन कभी भी हो िके
िौभाग्य। इतनी दे र कभी नहीं हुई है कक हम कुछ भी न कर िकें। हम आज शुरू कर िकते
है ।

और जो लोग िीखने के सलए तैयार है , वे बढ


ू े भी बच्चों जैिे ही होते है । वे बढ
ु ापे में भी शरू

कर िकते है । अगर उनकी िीखने की क्षमता है ,अगर लतनिंग का एटी्यूड है , अगर वे इि
ज्ञान िे नहीं भर गये है कक हमने िब जान सलया और िब पा सलया है । तो वे सिख िकते
है । और वे छोटे बच्चों की भांतत नई यारा शुरू कर िकते है ।

बुद्ि के पाि एक सभक्षु कुछ वषों िे दीक्षक्षत था। एक ठदन बुद्ि ने उििे पूछा: ‘’सभक्षु
तुम्हारी उम्र क्या है ।‘’ उि सभक्षु ने कहा, भंते, मेरी उम्र पााँच वषघ की होगी। बुद्ि कहने
लगे,पााँच वषघ, तुम तो कोई ित्तर वषघ के मालूम होते हो। झूि बोलते हो सभक्षु।

तो उि सभक्षु ने कहा, लेककन पााँच वषघ पहले ही मेरी जीवन में ध्यान की ककरण फूटी। पााँच
वषघ पहले ही मेरे जीवन में िेम की वषाघ हुई। उिके पहले मैं जीता था, वह िपने में जीने
जैिा था। नींद में जीने जैिा था। उिकी धगनती में अब जीवन में नहीं करता। िोना भी कोई
जीना होता है । उिे कैिे करू?

जजंदगी तो इिर पााँच वषघ िे ही शुरू हुई है । यहीं पााँच वषघ में अपनी आयु के मानता हूं।

बद्
ु ि ने अपने सभक्षुओं िे कहां, सभक्षुओं इि बात को खयाल में रख लेना। अपनी उम्र आज
िे तम
ु भी इि तरह जोडना। यही उम्र को नापने का ढं ग है ।

अगर िेम और ध्यान का जन्म नहीं हुआ है तो उम्र कफजूल चली गयी। अभी आपकी िीक
जन्म भी नहीं हुआ। और कभी भी उतनी दे र नहीं हुई है , जब कक हम ियाि करें , श्रम करें
और हम अपने नये जन्म को उपल्बि न हो जाये।

इिसलए मेरी बात िे यह नतीजा मत तनकाल लेना आप कक आप तो अब बचपन के पार हो


चक
ु े , इिसलए यह बात आने वाले बच्चों के सलए है । कोई आदमी ककिी भी क्षण इतनी दरू
नहीं तनकल गया है कक वापि नहीं लौट िके। कोई आदमी ककतने ही गलत रास्तों पर चला
हो, ऐिी जगह नहीं पहुंच गया है कक िीक रास्ता उिे ठदखाई न पड िके। कोई आदमी
ककतने ही हजारों वषों िे अंिकार में रह रहा हो, इिका मतलब यह नहीं है कक वह ठदया
जलायेगा तो अंिकार कहे गा कक मैं हजार वषघ पुराना हूं। इिसलए नहीं टूटता। ठदया जलाने िे
एक ठदन का अंिकार भी टूटता है । और हजार वषघ का अंिकार भी टूटता है । ठदया जलाने
की चेष्टा बचपन में आिान हो िकती है , बाद में थोडी मुज‍कल हो जाती है । मार यही भेद
है ।

लेककन कठिनाई का अथघ अिंभावना नहीं है । कठिनाई का अथघ है , थोडा ज्यादा श्रम। कठिनाई
का अथघ है , थोडी और मेहनत, और िंकल्प। कठिनाई का अथघ है : थोडा ज्यादा—ज्यादा लगन
पूवक
घ । ज्यादा िातत्य िे तोडना पडेगा। व्यजक्तत्व की जो बंिी िाराएं है । उनको और नये
मागघ खोलने पडेंगे।
लेककन जब नये मागघ की जरा िी भी ककरण फूटनी शुरू होती है तो िारा श्रम ऐिा लगता है
कक हमने कुछ भी नहीं ककया है । और बहुत कुछ पा सलया है । जब एक ककरण भी आती है
उि आनंद की, उि ित्य की उि िकाश की तो लगता है । कक हमने तो बबना कुछ ककये पा
सलया है ; क्योंकक हमने जो ककया था, उिका तो कोई भी मूल्य नहीं था। जो हाथ में आ गया
ळ वह तो अमूल्य है । वह तो अमूल्य है । इिसलए यह भाव मन में आप न लेंगे। ऐिी मेरी
िाथघना है ।

मेरी बातों को इतनी शांतत और िेम िे िुना; उिके सलए बहुत-बहुत अनुगठृ हत हूं और अंत में
िबके भी तर बैिे परमात्मा को िणाम करता हूं, मेरा िणाम स्वीकार करें ।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)


ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन—3

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

29—लसतम्बर—1968,

संभोग से समाधि की और —13


Posted on अक्टूबर 27, 2010by sw anand prashad

समाधि : अहं शून्यता, समय-शून्यता के अनुभि

मेरे प्रिया आत्मन,


एक छोटा िा गांव था, उि गांव के स्कूल में सशक्षक राम की कथा पढाता था। करीब-करीब
िारे बच्चे िोये हुए थे।
राम की कथा िुनते-िुनते बच्चे िो जाये, ये आ‍चयघ नहीं। क्योंकक राम की कथा िुनते िमय
बूढे भी िोते है । इतनी बार िुनी जा चक
ु ी है जो बात उिे जाग कर िुनने का कोई अथघ भी
नहीं रह जाता।

बच्चे िोये थे और सशक्षक भी पढा रहा था। लेककन कोई भी उिे दे खता तो कह िकता था
कक वह भी िोया हुआ पढाता है । उिे राम की कथा कंिस्थ थी। ककताब िामने खल
ु ी थी।
लेककन ककताब पढने की उिे जरूरत न थी। उिे िब याद था। यह यंर की भांतत कहे जाता
था। शायद ही उिे पता हो कक वह क्या कह रहा है ।

तोतों को पता नहीं होता है कक वे क्या कह रहे है । जजन्होंने शब्दों को कंिस्थ कक सलया है ,
उन्हें भी पता नहीं होता की वे क्या कह रहे है ।
और तभी अचानक एक िनिनी दौड गयी कक्षा में । अचानक ही स्कूल का तनरीक्षक आ गया
था। वह कमरे के भीतर गया। बच्चे िजग होकर बैि गये। सशक्षक भी िजग होकर पढाने
लगा। उिे तनरीक्षक ने कहां कक मैं कुछ पछ
ू ना चाहूंगा। और चकंू क राम की कथा पढाई जाती
है । इिसलए राम िे िंबंधित ही कोई ि‍न पूछा। उिने बच्चों िे एक िीिी िी बात पूछी।
उिने पूछा कक ‘सशव का िनुष ककिने तोडा था?’ उिने िोचा कक बच्चों को तोड-फोड की बात
बहुत याद रह जाती है । उन्हें जरूर याद होगा कक ककिने सशव का िनुष तोडा।

लेककन इिके पहले कक कोई बोले, एक बच्चे ने हाथ ठहलाया और खडे होकर कहा, क्षमा
कररये। मुझे पता नहीं कक ककिने तोडा था। एक बात तनज‍चत है कक मैं 15 ठदन िे छु्टी
पर था। मैंने नहीं तोडा है। और इिके पहले कक मेरे पर इलजाम लग जाये, में पहले ही िाफ
कर दे ना चाहता हूं। कक िनुष का मुझे कुछ पता नहीं है । क्योंकक जब भी स्कूल की कोई भी
चीज टूटती है तो िबिे पहले मेरे उपर दोषारोपण आता है । इिसलए मैं तनवेदन ककये दे ता हूं।

तनरीक्षक तो है रान रह गया। उिने िोचा भी नहीं था कक कोई यह उत्तर दे गा।

उिने सशक्षक की तरफ दे खा। सशक्षक अपना बेंत तनकाल रहा था और उिने कहा, जरूर इिी
बदमाश ने तोडा होगा। इिकी हमेशा की आदत है । और अगर तन
ू े नहीं तोडा था तो तन
ू े खडे
होकर क्यों कहा कक मैंने नहीं तोडा है ?

और उिने इंस्पेक्टर िे कहा कक इिकी बातों में मत आयें, यह लडका शरारती है । और स्कूल
में िौ चीजें टूटे तो 99 यहीं तोडता है ।

तब तो वह तनरीक्षक और भी है रान हो गया। कफर उिने कुछ भी वहां कहना उधचत नहीं
िमझा। वह िीिा ििान अध्यापक के पाि गया। जाकर उिने कहां कक ये-ये र्टना र्टी है ।
राम की कथा पढाई जाती थी जजि कक्षा में , उिमें मैंने पूछा कक सशव का िनुष ककिने तोडा
है । तो एक बच्चे ने कहां कक मैंने नहीं तोडा है । मैं 15 ठदन िे छु्टी पर था। यहां तक भी
गनीमत थी। लेककन सशक्षक ने यह कहा कक जरूर इिी ने तोडा होगा। जब भी कोई चीज
टूटती है तो यह जजम्मेदार होता है । इिके िंबंि में क्या ककया जाये?

उि ििान अध्यापक ने कहा कक इि िंबंि में एक ही बात की जा िकती है कक अब बात


को आगे न बढाया जाये, क्योंकक लडकों िे कुछ भी कहना खतरा मोल लेना है । ककिी क्षण
भी हडताल हो िकती है । अनशन हो िकता है । अब जजिने भी तोडा होगा। आप कृपा करें
और बात बंद करें । कोई दो महीने िे शांतत चल रही है स्कूल में , उिको भंग करने की
कोसशश मत करें । न मालूम ककतना फनीचर तोड डाला है लडकों ने। हम चप
ु चाप दे खते रहते
है । स्कूल की दीवालें टूट रही है , हम चप
ु चाप दे खते रहते है । क्योंकक कुछ भी बोलना
खतरनाक है । हडताल हो िकती है । अनशन हो िकता है । इिसलए चप
ु चाप दे खने के सिवाय
कोई मागघ नहीं है ।

वह इंस्पेक्टर तो अवाक। वह तो आंखे फाडे रह गया। अब कुछ कहने का उपाय न था वह


वहां िे िीिा स्कूल की जो सशक्षा िसमतत थी उिके अध्यक्ष के पाि गया। और उिने जाकर
कहा कक यह हालत है स्कूल की। राम की कथा पढाई जाती है । वहां बच्चा कहता है कक मैंने
सशव का िनुष नहीं तोडा, सशक्षक कहता है कक इिी ने तोडा होगा, ििान अध्यापक कहता है
कक जजिने भी तोडा हो बात को रफा-दफा कर दें । शांत कर दें । इिे आगे बढाना िीक नहीं,
हडताल हो िकती है। आप क्या कहते है ?

उि अध्यक्ष ने कहा, िीक ही कहता है ििान अध्यापक। ककिी ने भी तोडा हो हम िीक


करवा दें गे िसमतत की तरफ िे। आप फनीचर वाले के यहां सभजवा दें और िीक करवा लें।
इिकी धचंता करने की जरूरत नहीं कक ककिने तोडा। िि
ु रवाने का उपाय होगा। आपको
िि
ु रवाने की जरूरत है और क्या करना है ?

वह स्कूल का इंस्पेक्टर मुझिे ये िारी बातें कहता था। वह मुझिे पूछने लगा कक क्या
जस्थतत है यह? मैंने उििे कहा कक इिमे कुछ बडी जस्थतत नहीं है । मनुष्य की एक िामान्य
कमजोरी है , वही इि कहानी में िकट होती है । और वह कमजोरी क्या है ?

वह कमजोरी यह है कक जजि िंबंि में हम कुछ भी नहीं जानते है , उि िंबंि में भी हम ऐिी
र्ोषणा करना चाहते है कक हम जानते है । वह कोई भी कुछ नहीं जानते थे कक सशव का
िनुष क्या है ? क्या उधचत न होता कक वह कह दे ते कक हमें पता नहीं है कक सशव का िनुष
क्या है । लेककन अपना अज्ञान कोई भी स्वीकार नहीं करना चाहता है ।
मनुष्य जातत के इततहाि में इििे बडी कोई दर्
ु टघ ना नहीं र्टी है कक हम अपना अज्ञान
स्वीकार करने को राज़ी नहीं होते। जीवन के ककिी भी ि‍न के िंबंि में कोई भी आदमी
इतनी ठहम्मत और िाहि नहीं ठदख पाता है । कक मुझे नहीं पता है । यह कमजोरी बहुत
र्ातक सिद्ि होती है । िारा जीवन व्यथघ हो जाता है ।

और चकूं क हम यह मानकर बैि जाते है कक हम जानते है , इिसलए जो उत्तर हम दे ते है वह


इतने ही मूखत
घ ापूणघ होते है , जजतने उि स्कूल में ठदये गये थे—बच्चों िे लेककर अध्यक्ष तक।
जजिका हमें पता नहीं हे उिका उत्तर दे ने की कोसशश सिवाय मूढता के और कहीं भी नहीं
ले जायेगी। कफर यह तो हो भी िकता है सशव का िनुष ककिने तोडा या न तोडा1 इििे
जीवन को कोई गहरा िंबंि नहीं है लेककन जजन ि‍नों के जीवन िे बहुत गहरे िंबंि है
जजनके आिार पर िारा जीवन िुन्दर बनेगा या कुरूप हो जायेगा। स्वस्थ बनेगा या प्रवक्षक्षप्त
हो जायेगा; जजनके आिार पर जीवन की िारी गतत और ठदशा तनभघर है , उन ि‍नों के िंबंि
में भी हम यह भाव ठदखलाने की कोसशश करते है कक हम जानते है । और कफर जो हम
जीवन में उत्तर दे ते है वह बता दे ते है कक हम ककतना जानते है ।

एक-एक आदमी की जजन्दगी बता रही है कक हम जजंदगी के िंबंि में कुछ भी नहीं जानते
है —अन्यथा इतनी अिफलता, इतनी तनराश, इतनी दख
ु ,इतनी धचन्ता।

यही बात मैं िेक्ि के िंबंि में आपिे कहना चाहता हूं कक हम कुछ भी नहीं जानते है ।

आप बहुत है रान होंगे। आप कहें गे कक हम यह मान िकते है कक ई‍वर के िंबंि में कुछ
नहीं जानते,आत्मा के िंबि
ं में कुछ नहीं जानते; लेककन हम यह कैिे मान िकते है कक हम
काम के यौन के और िैक्ि के िंबंि में कुछ नहीं जानते? िबूत है —हमारे बच्चे पैदा हुए है ,
पत्नी है । हम िेक्ि के िंबंि मे नहीं जानते है ?

लेककन मैं आपिे तनवेदन करना चाहता हूं कक यह बहुत कठिन पडेगा, लेककन इिे िमझ लेना
जरूरी है । आप िेक्ि के अनभ
ु व िे गज
ू रें होंगे। लेककन िेक्ि के िंबंि में आप इतना ही
जानते है कक जजतना छोटा िा बच्चा जानता है । उििे ज्यादा कुछ भी नहीं जानते है ।
अनभ
ु व िे गज
ु र जाना जान लेने के सलए पयाघप्त नहीं है ।

एक आदमी कार चलाता है वह कार चलाना जानता है और हो िकता है हजारों मील कार
चलाकर वह आ गया हो; लेककन उििे यह कोई मतलब नहीं होता है कक वह कार के भीतर
के यंर और मशीन और उिकी व्यवस्था, उिके काम करने के ढं ग के िंबंि में कुछ भी
जानता हो। वह कहा िकता है कक मैं हजार मील चल कर आया हूं कार िे। मैं नहीं जानता
हूं कार के िंबंि में ? लेककन कार चलाना एक ऊपरी बात है और कार की पूरी आंतररक
व्यवस्था को जानना बबलकुल दि ू री बात है ।

एक आदमी बटन दबाता है और बबजली चल जाती है । वह आदमी यह कह िकता है कक मैं


बबजली के िंबंि में िब जानता हूं। क्योंकक में बटन दबाता हूं और बबजली जल जाती है ।
बटन दबाता हूं बबजली बुझ जाती है । मैंने हजार दफा बबजली जलायी इिसलए मैं बबजली के
िबंि में िब जानता हूं हम कहें गे कक वह पागल है बटन दबाना और बबजली जला लेना और
बुझा लेना बच्चें भी कर िकते है । इिके सलए बबजली के ज्ञान की कोई जरूरत नहीं है ।

बच्चे कोई भी पैदा िकता है । िेक्ि को जानने िे इिका कोई िंबंि नहीं है । शादी कोई भी
कर िकता है । पशु भी बच्चे पैदा कर रहे है , लेककन वे िेक्ि िंबंि कुछ जानते है । इि भ्म
में पडने का कोई कारण नहीं। िच तो यह है कक िेक्ि को कोई प्रवज्ञान ही प्रवकसित नहीं हो
िका। िेक्ि का कोई शास्र िीक िे प्रवकसित नहीं हो िका। क्योंकक हर आदमी यह मानता
है कक हम जानते है । शास्र की जरूरत क्या है । प्रवज्ञान की जरूरत क्या है।

और मैं आपिे कहता हूं कक इििे बडे दभ ु ाघग्य की और कोई बात नहीं है क्योंकक जजि ठदन
िेक्ि का पूरा शास्र और पूरा प्रवचार और पूरा प्रवज्ञान प्रवकसित होगा उि ठदन हम बबलकुल
नये तरह के आदमी को पैदा करने में िमथघ हो िकते है । कफर यह कुरूप और अपंग मनुष्य
पैदा करने की जरूरत नहीं है । यह रूग्ण और रोते हुए और उदाि आदमी पैदा करने की कोई
जरूरत नहीं है । यह पाप और अपराि िे भरी हुई िंततत को जन्म दे ने की जरूरत नहीं है ।

लेककन हमें कुछ भी पता नहीं है । हम सिफघ बटन दबाना और बुझाना जानते है और उिी िे
हमने िमझ सलया है कह हम बबजली के जानकार हो गये है । िेक्ि के िंबंि में पूरी जजंदगी
बीत जाने के बाद भी आदमी इतना ही जानता है के बटन दबाना और बुझाना इििे ज्यादा
कुछ भी नहीं। लेककन चकूं क यह भ्म है कक हम िब जानते है ; इिसलए इि िंबंि में कोई
शोि कोई खोज कोई प्रवचार कोई धचंतन को कोई उपाय नहीं है । और इिी भ्म के कारण कक
हम िब जानते है । हम ककिी िे न कोई बात करते है न प्रवचार करते है , न िोचते है ।
क्योंकक जब िभी को िब पता है तो जरूरत क्या है ?

और मैं आप िे कहना चाहता हूं कक जीवन में और जगत में िेक्ि के अणु को भी परू ी तरह
जान िकेंगे, उि ठदन मनुष्य जातत ज्ञान के एक बबलकुल नये जगत में िप्रवजष्ट हो जायेगी।
अभी हमने पदाथघ की थोडी बहुत खोजबीन की है और दतु नया कहां िे कहां पहुंच गई। जजि
ठदन हम चेतना के जन्म की िकक्रया और कीसमया को िमझ लेंगे, उि ठदन हम मनष्ु य को
कहां िे कहां पहुंचा दें गे। इिको आज कहना कठिन है । लेककन एक बात तनज‍चत कहीं जा
िकती है कक काम की शजक्त और काम की िकक्रया जीवन और जगत में िवाघधिक रहस्यपूणघ
िवाघधिक गहरी िबिे मूल्यवान बात है । और उिके िंबंि में हम बबलकुल चप
ु है । जो
िवाघधिक मूल्यवान है , उिके िंबंि में कोई बात भी नहीं की जाती। आदमी जीवन भी िंभोग
िे गुजरता है और अंत तक भी नहीं जान पाता है कक क्या था िंभोग।

और जब मैंने पहले ठदन आपिे कहा कक शून्य का—अहं कार शून्यता का, प्रवचारशून्यता का
अनुभव होगा। तो अनेक समरों को यह बात अनहोनी,आ‍चयघजनक लगी है । एक समर ने
लौटते ही मुझे कहा यह तो मेरे ख्याल में भी न था। लेककन ऐिा हुआ है । एक बहन ने आज
मुझे आकर कहा, लेककन मुझे तो इिका कोई अनुभव नहीं है आप कहते है कक इतनी मझ ु े
ख्याल आता है कक मन थोडा शांत और मौन होता है । लेककन मुझे अहं कार शून्यता का यह
ककिी और गहरे अनुभव का कोई भी पता नहीं।

हो िकता है अनेकों को इि िंबंि में प्रवचार मन में उिा हो। उि िंबंि में थोडी िी बातें
ओर गहराई िे स्पष्ट कर लेना जरूरी है ।

पहली बात मनुष्य जन्म के िाथ ही िंभाग के पूरे प्रवज्ञान को जानता हुआ पैदा नहीं होता
है । शायद प्
ृ वी पर बहुत थोडे िे लोग अनेक जीवन के अनुभव के बाद िंभोग की पूरी की
पूरी कला और पूरी की पूरी प्रवधि और पूरा शास्र जानने में िमथघ हो पाते है । और ये ही वे
लोग है । जो ब्रह्मचयघ को उपलब्ि हो जाते है । क्योंकक जो व्यजक्त िंभोग को पूरी तरह िे
जानने में िमथघ हो जाता है , उि के सलए िंभोग व्यथघ हो जाता है । वह उि के पाि तनकल
जाता है । वह उि का अततक्रमण कर जाता है । लेककन इि िंबंि में कुछ बहुत स्पष्ट बातें
नहीं कही गई है ।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन—4

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

1 अक्टूबर—1968,
संभोग से समाधि की और-14
Posted on अक्टूबर 28, 2010 by sw anand prashad

समाधि : अहं शून्यता, समय-शून्यता के अनुभि

एक बात, पहली बात स्पष्ट कर लेनी जरूरी है वह हय कक यह भ्म छोड दे ना चाठहए कक हम


पैदा हो गये है , इिसलए हमें पता है —क्या है काम, क्या है िंभोग। नहीं पता नहीं है । और
नहीं पता होने के कारण जीवन पूरे िमय काम और िेक्ि में उलझा रहता है और व्यतीत
होता है ।

मैंने आपिे कहा, पशुओं का बंिा हुआ िमय है । उनकी ऋतु है । उनके मौिम है । आदमी का
कोई बंिा हुआ िमय नहीं है । क्यों? पशु शायद मनुष्य िे ज्यादा िंभोग की गहराई में उतरने
में िमथघ है और मनुष्य उतना भी िमथघ नहीं रह गया है ।
जजन लोगों ने जीवन के इन तलों पर बहुत खोज की है और गहराइयों में गये है और जजन
लोगों ने जीवन के बहुत िे अनुभव िंग्रहीत ककये है । उनको यह जानना, यह िुर उपलब्ि
हुआ है कक अगर िंभोग एक समनट तक रुकेगा तो आदमी दिू रे ठदन कफर िंभोग के सलए
लालातयत हो जायेगा। अगर तीन समनट तक रूक िके तो यह िप्ताह तक उिे िेक्ि की
वह याद भी नहीं आयेगी। और अगर िाम समनट तक रूक िके तो तीन महीने के सलए
िेक्ि िे इि तरह मक्
ु त हो जायेगा कक उिकी कल्पना में भी प्रवचार िप्रवष्ट नहीं होगा। और
अगर तीन र्ंटे तक रूक िके तो जीवन भर के सलए मुक्त हो जायेगा। जीवन में उिको
कल्पना भी नहीं उिे गी।

लेककन िामान्यत: क्षण भर का अनुभव है मनुष्य का। तीन र्ंटे की कल्पना करनी भी
मुज‍कल है । लेककन मैं आपिे कहता हूं के तीन र्ंटे अगर िंभोग की जस्थतत में , उि िमाधि
की दशा में व्यजक्त रूक जाये तो एक िंभोग पूरे जीवन के सलए िेक्ि िे मुक्त करने के
सलए पयाघप्त है । इतनी तजृ प्त पीछे छोड जाता है —इतनी अनुभव,इतनी बोि छोड जाता है कक
जीवन भर के सलए पयाघप्त हो जाता है । एक िंभोग के बाद व्यजक्त ब्रह्मचयघ को अपलब्ि हो
िकता है ।

लेककन हम तो जीवन भी िंभोग के बाद भी उपलब्ि नहीं होते। क्या है ? बढ


ू ा हो जाता है
आदमी मरने के करीब पहुंच जाता है और िंभोग की कामना िे मुक्त नहीं होता। िंभोग की
कला और िंभोग के शास्र को उिने िमझा नहीं है । और न कभी ककिी ने िमझाया है , न
प्रवचार ककया है । न िोचा है , न बात की है । कोई िंवाद भी नहीं हुआ जीवन में —कक अनुभवी
लोग उि पर िंवाद करते और प्रवचार करते हम बबलकुल पशुओं िे भी बदतर हालत पर है ।
उि जस्थतत में है । आप कहें गे कक एक क्षण िे तीन र्ंटे तक िंभोग की दशा िहर िकती है ,
लेककन कैिे?

कुछ थोडे िे िरू आपको कहता हूं। उन्हें थोडा ख्याल में रखेंगे तो ब्रह्मचयघ की तरफ जाने
में बडी यारा िरल हो जायेगी। िंभोग करते क्षणों में क्षणों ‍वाि जजतनी तेज होगी। िंभोग
का काल उतना ही छोटा होगा। ‍वाि जजतनी शांत और सशधथल होगी। िंभोग का काल
उतना ही लंबा हो जायेगा। अगर ‍वाि को बबलकुल सशधथल करने का थोडा अभ्याि ककया
जाये, तो िंभोग के क्षणों को ककतना ही लंबा ककया जा िकता है । और िंभोग के क्षण जजतने
लंबे होंगे, उतने ही िंभोग के भीतर िे िमाधि का जो िूर मैंने आपिे कहा है —तनरहं कार
भाव, इगोलेिनेि और टाइमलेिनेि का अनुभव शुरू हो जायेगा। ‍वाि अत्यंत सशधथल होनी
चाठहए। ‍वाि के सशधथल होते ही िंभोग की गहराई अथघ और उदर्ाटन शुरू हो जायेंगे।

और दि
ु री बात, िंभोग के क्षण में ध्यान दोनों आंखों के बीच, जहां योग आज्ञा चक्र को
बताता है । वहां अगर ध्यान हो तो िंभोग की िीमा और िमय तीन र्ंटे तक बढाया जा
िकता है । और एक िंभोग व्यजक्त को िदा के सलए ब्रह्मचयघ में िततजष्ित कर दे गा—न
केवल एक जन्म के सलए, बजल्क अगले जन्म के सलए भी।

ककन्हीं एक बहन ने पर सलखा है और मुझे पूछा है कक प्रवनोबा तो बाल ब्रह्मचारी है , क्या


उन्हें िमाधि का अनुभव नहीं हुआ होगा। मेरे बाबत पूछा है कक मैंने तो प्रववाह नहीं ककया, मैं
तो बाल ब्रह्मचारी हूं मुझे िमाधि का अनुभव नहीं हुआ होगा।

उि बहन को अगर वह यहां मौजद ू हों तो मैं कहना चाहता हूं। प्रवनोबा को या मझ
ु े या ककिी
को भी बबना अनुभव के ब्रह्मचयघ उपलब्ि नहीं होता। वह अनुभव चाहे इि जन्म का हो, चाहे
प्रपछले जन्म का हो—जो इि जन्म में ब्रह्मचयघ को उपलब्ि होता है , वह प्रपछले जन्मों के
गहरे िंभोग के अनुभव के आिार पर और ककिी आिार पर नहीं। कोई और रास्ता नहीं है ।
लेककन अगर प्रपछले जन्म में ककिी को गहरे िंभोग की अनुभूतत हुई हो ता इि जन्म के
िाथ ही वह िेक्ि िे मुक्त पैदा होगा। उिकी कल्पना के मागघ पर िेक्ि कभी भी खडा नहीं
होगा और उिे है रानी दि
ू रे लोगों को दे खकर कक यह क्या बात है । लोग क्यों पागल हैं, क्यों
दीवाने है ? उिे कठिनाई होगी यह जांच करने में कक कौन स्री है , कौन पुरूष है ? इिका भी
ठहिाब रखने में और फािला रखने में कठिनाई होगी।

लेककन कोई अगर िोचता हो कक बबना गहरे अनुभव के कोई बाल ब्रह्मचारी हो िकता है । तो
बाल ब्रह्मचारी नहीं होगा, सिफघ पागल हो जायेगा। जो लोग जबरदस्ती ब्रह्मचयघ थोपने की
कोसशश करते है , वह प्रवक्षक्षप्त होते है और कहीं भी नहीं पहुंचते।

ब्रह्मचयघ थोपा नहीं जाता। वह अनभ


ु व की तनष्पतत है । वह ककिी गहरे अनभ
ु व का फल है ।
और वह अनभ
ु व िंभोग का ही अनभ
ु व है । अगर वह अनभ
ु व एक बार भी हो जाए तो अनंत
जीवन की यारा के सलए िेक्ि िे मजु क्त हो जाती है ।

तो दो बातें मैंने कहीं, उि गहराई के सलए—‍वाि सशधथल हो इतनी सशधथल हो कक जैिे


चलती ही नहीं और ध्यान, िारी अटैंशन आज्ञा चक्र के पाि हो। दोनों आंखों के बीच के बबन्द ु
पर हो। जजतना ध्यान मजस्तष्क के पाि होगा, उतनी ही िंभोग की गहराई अपने आप बढ
जायेगी। और जजतनी श्राव सशधथल होगी, उतनी लम्बाई बढ जायेगी। और आपको पहली दफा
अनुभव होगा कक िंभोग का आकषघण नहीं है मनुष्य के मन में । मनुष्य के मन में िमाधि
का आकषघण है । और एक बार उिकी झलक समल जाए, एक बार बबजली चमक जाये और
हमें ठदखाई पड जाये अंिेरे में कक रास्ता क्या है कफर हम रास्ते पर आगे तनकल िकते है ।

एक आदमी एक गंदे र्र में बैिा है । दीवालें अंिेरी है ओर िए


ु ाँ िे पूती हुई है । र्र बदबू िे
भरा हुआ है । लेककन खखडकी खोल िकता है । उि गंदे र्र की खखडकी में खडे होकर वह दे ख
िकता है दरू आकाश को तारों को िूरज को, उडते हुए पक्षक्षयों को। और तब उिे उि र्र के
बहार तनकलने में कठिनाई नहीं रह जायेगी।

जजि ठदन आदमी को िंभोग के भीतर िमाधि का पहली थोडी िह भी अनभ


ु तू त होती है उिी
ठदन िेक्ि का गंदा मकान िेक्ि की दीवालें अंिेरे िे भरी हुई व्यथघ हो जाती है आदमी
बाहर तनकल जाता है ।

लेककन यह जानना जरूरी है कक िािारणतया हम उि मकान के भीतर पैदा होते है । जजिकी


दीवालें बंद है । जो अंिेरे िे पूती है । जहां बदबू है जहां दग
ु ि
िं है और इि मकान के भीतर ही
पहली दफा मकान के बाहर का अनुभव करना जरूरी है , तभी हम बहार जा िकते है । और
इि मकान को छोड िकते है । जजि आदमी ने खखडकी नहीं खोली उि मकान की और उिी
मकान के कोने में आाँख बंद करके बैि गया है कक मैं इि गंदे मकान को नहीं दे खग
ूाँ ा, वह
चाहे दे खे और चाहे न दे खे। वह गंदे मकान के भीतर ही है और भीतर ही रहे गा।

जजिको हम ब्रह्मचारी कहते है । तथाकधथत जबर दस्ती थोपे हुए ब्रह्मचारी, वे िेक्ि के
मकान के भीतर उतने ही है जजतना की कोई भी िािारण आदमी है । आाँख बंद ककये बैिे है ,
आप आाँख खोले हुए बैिे है , इतना ही फकघ है । जो आप आाँख खोलकर कर रहे है , वह आाँख
बंद कर के भीतर कर रहे है । जो आप शरीर िे कर रहे है । वे मन िे कर रहे है । और कोई
फकघ नहीं है ।

इिसलए मैं कहता हूं कक िंभोग के ितत दभु ाघव छोड दे । िमझने की चेष्टा,ियोग करने की
चेष्टा करें और िंभोग को एक पप्रवरता की जस्थतत दे ।

मैंने दो िूर कहे । तीिरी एक भाव दशा चाठहए िंभोग के पाि जाते िमय। वैिा भाव-दशा
जैिे कोई मंठदर के पाि जा रहा है । क्योंकक िंभोग के क्षण में हम परमात्मा के तनकटतम
होते है । इिीसलए तो िंभोग में परमात्मा िज
ृ न का काम करता है । और नये जीवन को जन्म
दे ता है । हम कक्रएटर के तनकटतम होते है ।

िंभोग की अनुभूतत में हम िष्ृ टा के तनकटतम होते है ।

इिीसलए तो हम मागघ बन जाते है । और एक नया जीवन हमिे उतरता है । और गततमान हो


जाता है । हम जन्मदाता बन जाते है ।

क्यों?

िष्ृ टा के तनकटतम है वह जस्थतत। अगर हम पप्रवरता िे िाथघना िे िेक्ि के पाि जायें तो


हम परमात्मा की झलक को अनुभव कर िकते है । लेककन हम तो िेक्ि के पाि र्ण
ृ ा एक
दभ
ु ाघव एक कंडेमनेशन के िाथ जाते है । इिसलए दीवाल खडी हो जाती है । और परमात्मा का
यहां कोई अनभ
ु व नहीं हो पाता है ।

िेक्ि के पाि ऐिे जाऐं, जैिे की मंठदर के पाि जा रहे है । पत्नी को ऐिा िमझें, जैिे की वह
िभु है । पतत को ऐिा िमझें कक जैिे कक वह परमात्मा है । और गंदगी में क्रोि में किोरता
में द्वेष में , ईष्याघ में , जलन में धचन्ता के क्षणों में कभी भी िेक्ि के पाि न जायें। होता
उलटा है । जजतना आदमी धचजन्तत होता है । जजतना परे शान होता है। जजतना क्रोि िे भरा
होता है । जजतना र्बराया होता है , जजतना एंजग्वश में होता है । उतना ही ज्यादा वह िेक्ि के
पाि जाता है ।
आनंठदत आदमी िेक्ि के पाि नहीं जाता। दे खी आदमी िेक्ि की तरफ जाता है । क्योंकक
दख
ु को भुलाने के सलए इिको एक मौका ठदखाई पडता है ।

लेककन स्मरण रखें कक जब आप दुःु ख में जायेंगे, धचंता में जायेंगे, उदाि हारे हुए जायेगे, क्रोि
में लडे हुए जायेंगे। तब आप कभी भी िेक्ि की उि गहरी अनुभूतत को उपलब्ि नहीं कर
पायेंगे। जजिका की िाणों में प्याि है । वह िमाधि की झलक वहां नहीं समलेगी। लेककन यहां
उलटा होता है ।

मेरी िाथघना है जब आनंद में हों, जब िेम में हों, जब िफुजल्लत हों और जब िाण ‘िेयर फुल’
हों। जब ऐिा मालमु पडे कक आज ह्रदय शांतत िे और आनंद िे कृतज्ञता िे भरा हुआ है ,
तभी क्षण है —तभी क्षण है िंभोग के तनकट जाने का। और वैिा व्यजक्त िंभोग िे िमाधि
को उपलब्ि होता है । और एक बार भी िमाधि की एक ककरण समल जाये। तो िंभोग िे िदा
के सलए मक्
ु त हो जाता है । और िमाधि में गततमान हो जाता है ।

स्री और पुरूष का समलन एक बहुत गहरा अथघ रखता है । स्री और पुरूष के समलन में पहली
बार अहं कार टूटता है और हम ककिी िे समलते है ।

मां के पेट िे बच्चा तनकलता है और ठदन रात उिके िाणों में एक ही बात लगी रहती है
जैिे की हमने ककिी वक्ष
ृ को उखाड सलया जमीन िे। उि पूरे वक्ष
ृ के िाण तडपते है कक
जमीन िे कैिे जुड जाये। क्योंकक जमीन िे जुडा हुआ होकर ही उिे िाण समलता था। रि
समलता था जीवन समलता था। व्हाइटासलटी समलती थी। जमीन िे उखड गया तो उिकी िारी
जडें धचल्लाये गी कक मुझे जमीन में वापि भेज दो। उिका िारा िाण धचल्लाये गा कक मुझे
जमीन में वापि भेज दो। वह उखड गया टूट गया। अपरूटे ड हो गया।

आदमी जैिे ही मां के पेट िे बाहर तनकलता है , अपरूटे ड हो जाता है । वह िारे जीवन और
जगत िे एक अथघ में टूट गया। अलग हो गया। अब उिकी िारी पक
ु ार और िारे िाण की
आकांशा जगत और जीवन और अजस्तत्व िे, एजग्ज़िटैंि िे वापि जड
ु जाने की है । उिी
पक
ु ार का नाम िेम और प्याि है ।

िेम का और अथघ क्या है ? हर आदमी चाह रहा है कक मैं िेम पाऊाँ और िेम करूं। िेम का
मतलब क्या है ?

िेम का मतलब है कक मैं टुट गया हूं, आइिोलेट हो गया हूं। अलग हो गया हूं। मैं वापि जुड
जाऊाँ जीवन िे। लेककन इि जुडने का गहरे िे गहरा अनुभव मनष्ु य को िेक्ि के अनुभव में
होता है । स्री और पुरूष को होता है । वह पहला अनुभव है जुड जाने का। और जो व्यजक्त
इि जुड जाने के अनुभव को—िेम की प्याि, जुडने की आकांशा के अथघ में िमझेगा,वह
आदमी एक दि
ू रे अनुभव को भी शीध्र उपलब्ि हो िकता है ।

योगी जुडता है , िािु भी जुडता है । िंत भी जुडता है , िमाधिस्थ व्यजक्त भी जुडता है । िंभोगी
भी जुडता है ।

िंभोग करने में दो व्यजक्त जुडते है । एक व्यजक्त दि


ू रे िे जुडता है और एक हो जाता है ।

िमाधि में एक व्यजक्त िमजष्ट िे जुडता है और एक हो जाता है ।

िंभोग दो व्यजक्तयों के बीच समलन है ।

िमाधि एक व्यजक्त और अनंत के बीच समलन है ।

स्वभावत: दो व्यजक्त का समलन क्षण भर को हो िकता है । एक व्यजक्त और अनंत का


समलन अनंत के सलए हो िकता है । दोनों व्यजक्त िीसमत है । उनका समलन अिीम नहीं हो
िकता। यही पीडा है , यहीं कष्ट है , िारे दांपत्य का, िारे िेम का कक जजििे हम जड
ु ना चाहते
है । उििे भी िदा के सलए नहीं जड
ु पाते। क्षण भर को जड
ु ते है और कफर फािले हो जात
है । फािले पीडा दे ते है । फािले कष्ट दे ते है । और तनरं तर दो िेमी इिी पीडा में परे शान रहते
है । कक फािला क्यों है । और हर चीज कफर िीरे -िीरे ऐिी मालूम पडने लगती है कक दि
ू रा
फािला बना रहा है । इिीसलए दि
ू रे पर क्रोि पैदा होना शुरू हो जाता है ।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन—4

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

1 अक्टूबर—1968,

संभोग से समाधि की और- 16


Posted on अक्टूबर 30, 2010by sw anand prashad

समाधि : अहं -शून्यता समय शून्यता का अनुभि—4

िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो

और अब तो हम उि जगह पहुंच गये है कक शायद और पतन की गुंजाइश नहीं है । करीब-


करीब िारी दतु नया एक मेड हाऊि एक पागलखाना हो गयी है ।

अमरीका के मनोवैज्ञातनकों ने ठहिाब लगया है न्यय


ू ाकघ जैिे नगर में केवल 18 िततशत लोग
मानसिक रूप िे स्वस्थ कहे जा िकते है । 18 िततशत, 18 िततशत लोग मानसिक रूप िे
स्वास्थ है । तो 82 िततशत लोग करीब-करीब प्रवक्षक्षप्त होने की हालत में है ।

आप कभी अपने िंबंि में कोने में बैिकर प्रवचार करना, तो आपको पता चलेगा कक पागलपन
ककतना है भीतर। ककिी तरह दबाये है पागलपन को, ककिी तरह िंभलकर चले जा रहे है ।
वह बात दि
ू री है । जरा िा कोई िक्का दे -दे और कोई भी आदमी पागल हो िकता है ।
यह िंभावना है कक िौ वषघ के भीतर िारी मनष्ु यता एक पागलखाना बन जाये। िारे लोग
करीब-करीब पागल हो जाये। कफर हमें एक फायदा होगा कक पागलों के इलाज की कोई
जरूरत नहीं रहे गी। एक फायदा ओर होगा कक पागलों के धचककत्िक नहीं होंगे। एक फायदा
होगा कक कोई अनभ
ु व नहीं करे गा कक कोई पागल है । क्योंकक पागल का पहला लक्षण यह है
कक वह कभी नहीं मानता कक मैं पागल हूं। इतना ही फायदा होगा।

लेककन यह रूग्णता बढती चली जाती है । यह रोग, यह अस्वस्थता, यह मानसिक धचंता और


मानसिक अंिकार बढता चला जाता है । क्या मैं आपिे कहूं कक िेक्ि को ‘स्िीच्युअलाइज’
ककये बबना, िंभोग को आध्याजत्मक बनाये बबना कोई नयी मनुष्यता पैदा नहीं हो िकती है ?
इन तीन ठदनों में थोडी िी बातें आपिे कहीं। तनज‍चत ही एक नये मनुष्य को जन्म दे ना है ।
मनुष्य के िाण आतुर है उं चाईयों को छूने के सलए, आकाश में उि जाने के सलए, चााँद तारों
जैिे रोशन होने के सलए, फूलों जैिे खखल जाने के सलए, नत्ृ य के सलए, िंगीत के सलए, आदमी
की आत्मा रोती है । और प्यािी है । और आदमी कोल्हू के बैल की तरह चक्कर में र्ूमता है
और उिी में िमाप्त हो जाता है । चक्कर के बहार नहीं उि पाता है । क्या कारण है ?

कारण एक ही है , मनुष्य के जन्म की िकक्रया बेहूदी है , एब्िडघ है । मनुष्य के पैदा होने की


प्रवधि पागलपन िे भरी हुई है । मनुष्य के िंभोग को हम द्वार नहीं बना िके िमाधि का
इिीसलए। मनुष्य का िंभोग िमाधि का द्वार बन िकता है ।

इन तीन ठदनों में इिी छोटे िे मंर पर मैने िारी बातें कहीं और अंत में एक बात दोहरा दाँ ू
और आज की चचाघ में पूरी करूं।

मैं यह कह दे ना चाहता हूं, कक जीवन के ित्यों िे आंखें चरु ाने वाले लोग मनुष्य के शरु है ।
जो आपिे कहें कक िंभोग और िेक्ि की बात का प्रवचार भी नहीं करना चाठहए। वह आदमी
मनुष्य का द‍ु मन हे , क्योंकक ऐिे ही द‍ु मनों ने हमें िोचने नहीं ठदया। अन्यथा यह कैिे
िंभव था कक हम आज तक वैज्ञातनक दृजष्ट ने खोज लेते और जीवन को नया करने का
ियोग न खोज लेत।

जो आपिे कहे कक िेक्ि का िमघ िे कोई िंबंि नहीं है । वह आदमी िौ िततशत गलत है ।
क्योंकक िेक्ि की ऊजाघ ही पररवततघत और रूपांतररत होकर िमघ के जगत में िवेश पाती है ।
वीयघ की शजक्त ही उध्वघस्वी होकर मनुष्य को उन लोको में ले जाती है , जजनका हमें कोई पता
नहीं है । जहां कोई मत्ृ यु नहीं है , जहां कोई दुःु ख नहीं जहां आनंद के अततररक्त और कोई
अजस्तत्व नहीं है ।

उि ित धचत आनंद में ले जाने वाली शजक्त और ऊजाघ ककिके पाि है और कहां है ?

हम उिे व्यय कर रहे है । हम उन पारों की तरह है , जजनमें छे द है , जजन्हें हम कुओं में डालते
हैं खींचने के सलए। ऊपर तक पार तो आ जाता है , शेर गुल भी बीच में बहुत होता है और
पानी धगरता है और लगता है कक पानी आता होगा। लेककन पानी िब बीच में धगर जाता है ।
खाली पार हाथ में वापि आ जाता है ।

हम उन नाव की तरह है , जजनके छे द है । हम नावों को खेते है —सिफघ डूबने के सलए; नावें


ककिी ककनारे पर नहीं पहुंच पाती है । सिफघ मंझिार में डूबा दे ती है । और नष्ट हो जाती है ।
और ये िारे तछि मनुष्य की िेक्ि ऊजाघ के गलत मागों िे िवाठहत और बह जाने के कारण
है । और उन गलत मागों पर बहाने वाले लोग वह नहीं है , जजन्होंने नंगी तस्वीरें लटकायी है ;
वे नहीं है जजन्होंने नंगे उपन्याि सलखे है ; वह नहीं है , जो नंगी कफल्में बना रहे है ।

मनुष्य की ऊजाघ को प्रवकृत करनेवाले वे लोग हैं, जजन्होंने मनुष्य को िेक्ि के ित्य िे
पररधचत होने में बािा दी है । और उन्हीं लोगों के कारण ये नंगी तस्वीरें बबक रही है । नंगी
कफल्में बबक रही है । लोग नए क्लबों को ईजाद कर रहे है । और गंदगी के नये-नये और
बेहूदगी के नये-नये रास्ते तनकाल रहे है ।

ककनके कारण? ये उनके कारण जजनको हम िािु और िंन्यािी कहते है । उन्होंने इनके बाजार
का रास्ता तैयार ककया है । अगर गौर िे हम दे खें तो वे इनके प्रवज्ञापनदाता है , वे इनके
एजेन्ट है ।

एक छोटी िी कहानी, मैं अपनी बात पूरी कर दाँ ग


ू ा।

एक परु ोठहत जा रहा था। अपने चचघ की तरफ। दरू था गांव, भागा हुआ चला जा रहा था।
तभी उिे पाि की खाई में जंगल में एक आदमी पडा हुआ ठदखायी पडा र्ावों िे भरा हुआ।
खन
ू बह रहा था। छुरी उिकी छाती में चभु ी है ।

पुरोठहत को ख्याल आया कक चलू में इिे उिा लूं, लेककन उिने दे खा कक चचघ पहुंचने में दे र
हो जायेगी। और वहां उिे व्याख्यान दे ना है । और लोगों को िमझाना है । आज वह िेम के
िंबंि में ही िमझाने जाता है । आज उिके प्रवषय चन
ु ा था, ‘’लव इज़ गॉड’’ क्राइस्ट के वचन
को चन
ु ा था कक ई‍वर परमात्मा िेम है । वह यही िमझाने जा रहा था। लेककन उि आदमी
ने आंखे खोली और वह धचल्लाया, पुरोठहत मुझे पता है कक तू िेम पर बोलने जा रहा है । मैं
भी आज िन
ु ने आने वाला था। लेककन दष्ु टों ने मुझे छुरी मारकर यहां पटक ठदया है । लेककन
याद रख अगर में जजन्दा रह गया तो गांव भर में खबर कर दाँ ग
ू ा कक आदमी मर रहा था।
और यह आदमी िेम पर व्याख्यान दे ने चला गया था। दे ख आगे मत बढ।

इििे पुरोठहत को थोडा डर लगा। क्योंकक अगर वह आदमी जजंदा रह गया तो गांव में खबर
कर दे तो लोग कहें गे कक िेम का व्याख्यान बडा झूिा है । आपने इि आदमी की कफक्र न
की, जो मरता था। तो मजबूरी में उिे नीचे उतर कर उिके पाि जाना पडा। वहां जाकर
उिका चेहरा दे खा तो बहुत र्बराया। चेहरा तो पहचाना हुआ िा मालूम पडता है । उिने कहा,
ऐिा मालूम होता है मैंने तुम्हें कहीं दे खा है ? और उि मरणािन्न आदमी ने कहां,जरूर दे खा
होगा। मैं शैतान हूं और पादररयों िे अपना पुराना नाता है । तुमने नहीं दे खा होगा तो ककिने
मुझे दे खा होगा।
तब उिे ख्याल आया कक वह तो शैतान है , चचघ में उिकी तस्वीर लटकी हे । उिने अपने हाथ
अलग कर सलये और कहा कक मर जा। शैतान को तो हम चाहते है कक वह मर ही जाये।
अच्छा हुआ कक तू मर जा, मैं तुझे बचाने का क्यों उपाय करूं। मैंने तेरा खन
ू भी छू सलया,
यह भी पाप हुआ। मैं जाता हूं।

वह शैतान जोर िे हं िा, उिने कहा याद रखना जजि ठदन में मर जाऊाँगा,उि ठदन तुम्हारा
िंिा भी मर जायेगा। मेरे बबना तुम जजंदा भी नहीं रह िकते हो। मैं हूं, इिसलए तुम जजंदा
हो। मैं तुम्हारे िंिे का आिार हूं। मुझे बचाने की कोसशश करों, नहीं तो जजि ठदन शैतान मर
जायगा, उिी ठदन पुरोठहत पंड,े पुजारी िब मर जायेगे; क्योंकक दतु नया अच्छी हो जायेगी। पंड,े
पुजारी, पुरोठहत,की कोई जरूरत नही रह जायेगी।

परु ोठहत ने िोचा और र्बरा गया। बात तो एक दम िही है । बात तो बहुत बतु नयादी कह रहा
है । ये बात मेरी िमझ में क्यों नहीं आई। उिने उिे तत्काल कंिे पर उिाया, और कहां प्यारे
शैतान तमु र्बराओ मत, मैं तम्
ु हें अस्पताल में ले चलता हूं वहां तम्
ु हारी इलाज कराऊंगा।
तुम दे खना जरूर िीक हो जाओगे। लेककन दे खो मर मत जाना। तम ु बबलकुल िीक कहते हो।
तुम मर गये तो हम बबलकुल ही बेकार हो जायेगे।

हमें ख्याल भी नहीं आ िकता हे कक पुरोठहत के िंिे के पीछे शैतान है । हमें यह भी ख्याल
नहीं आ िकता कक शैतान के िंिे के पीछे पुरोठहत हे । कक जो शैतान का िंिा चल रहा
है …..िेक्ि का शोषण चल रहा है । िारी दतु नया में ….हर चीज के पीछे िेक्ि का शोषण चल
रहा है । हमें ख्याल भी नहीं आ िकता की इिके पीछे पुरोठहत का हाथ हो िकता है । पुरोठहत
ने जजतनी तनंदा की है । िेक्ि उतना आकषघक हो गया है । कफर उिने जजतने दमन के सलए
कहां है , आदमी उतना भोग में धगर गया है । परु ोठहत ने जजतना इंकार ककया हे कक िेक्ि के
िंबंि में िोचना ही मत, िेक्ि उतनी ही अंजान पहे ली हो गयी है । और हम उिके िंबंि में
कुछ भी करने मे अिमथघ है ।

नहीं। ज्ञान चाठहए। ज्ञान शजक्त है । और िेक्ि का ज्ञान बडी शजक्त बन िकता है । अज्ञान में
जीना ठहतकर नहीं है । और िेक्ि के अज्ञान में जीना तो बबलकुल ठहतकर नहीं है ।

यह भी हो िकता है , कक हम न जायें चााँद पर। कोई जरूरत नहीं है चााँद पर जान पर की।
चााँद को जान लेने िे कोई मनुष्य जातत का बहुत ठहत नहीं हो िकता। यह भी जरूरी नहीं है
कक हम पैसिकफक महािागर की गहराइयों में उतरें पााँच मील, जहां की िूरज की रोशनी नहीं
पहुाँचती। उिको जान लेने िे भी मनुष्य जातत का कोई बहुत परम मंगल हो जाने वाला नहीं
है । यह भी जरूरी नहीं है कक हम एटम को तोडे ओर पहचाने।
लेककन एक बात बबलकुल जरूरी हे , िबिे जरूरी है , अल्टीमेट कन्िनघ की है । और वह यह है
कक मनुष्य के िेक्ि को िीक िे जान लें और िमझ लें । ताकक नये मनुष्य को जन्म दे ने में
िफल हो िकें।

ये थोडी िे बातें तीन ठदन में मैंने आपिे कहीं। कल आपके ि‍न के उत्तर दाँ ग
ू ा। और चकूं क
कल का ठदन खाली छूट गया। कुछ समर आये और दे खकर लौट गये तो मेरे ऊपर उनका
ऋण हो गया है तो मैं कल दो र्ंटे उत्तर दे दाँ ग
ू ा, ताकक आपको कोई अडचन और तकलीफ
न हो। अपने ि‍न आप सलखकर दे दें गे ईमानदारी िे क्योंकक यह मामला ऐिा नहीं है कक
आप परमात्मा, आत्मा के िंबंि में जजि तरह की बातें पूछते है , वह यहां पूछे। यह मामला
जजन्दगी का है और िीिे और िच्चे अगर आपके ि‍न पूछे तो हम इन प्रवषयों की और
गहराई में भी उतरने में िमथघ हो िकते है ।

मेरी बातों को इतने िेम िे िन


ु ा, उिके सलए अनुगठृ हत हूं। और अंत में िबके भीतर बैिे
परमात्मा को िणाम करता हूं, मेरे िणाम स्वीकार करें ।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन—4

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

1 अक्टूबर—1968,

संभोग से समाधि की और —17


Posted on अक्टूबर 31, 2010by sw anand prashad

समाधि : संभोग-उजाा का अध्यात्त्मक ननयोजन—5


िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो

मेरे प्रिय आत्मजन,

समरों ने बहुत िे ि‍न पछ


ू े है । िबिे पहले एक समर ने पूछा है कक मैंने बोलने के सलए
िेक्ि या काम का प्रवषय क्यों चन ू ा?

इिकी थोडी िी कहानी है । एक बडा बाजार है । उि बडे बाजार को कुछ लोग बंबई कहते है ।
उि बडे बाजार में एक िभा थी और उि िभा में एक पंडडतजी कबीर क्या कहते है , इि
िंबंि में बोलते थे। उन्होंने कबीर की एक पंजक्त कहीं और उिका अथघ िमझाया। उन्होंने
कहा, ‘’कबबरा खडा बजार में सलए लुकािी हाथ, जो र्र बारे अपना चले हमारे िाथ।’’ उन्होंने
यह कहा कक कबीर बाजार में खडा था और धचल्लाकर लोगों िे कहने लगा कक लकडी उिाकर
बुलाता हूं उन्हें जो अपने र्र को जलाने की ठहम्मत रखते हों वे हमारे िाथ आ जायें।

उि िभा में मैंने दे खा कक लोग यह बात िनु कर बहुत खश ु हुए। मझ


ु े बडी है रानी हुई—मझ
ु े
है रानी यह हुई कक वह जो लोग खश ु हो रहे थे। उनमें िे कोई भी आपने र्र को जलाने को
कभी तैयार नहीं था। लेककन उन्हें ििन्न दे खकर मैंने िमझा कक बेचारा कबीर आज होता तो
ककतना खश
ु न होता। जब तीन िौ िाल पहले वह था और ककिी बाजार में उिने धचल्लाकर
कहा होगा तो एक भी आदमी खश ु नहीं हुआ होगा।
आदमी की जात बडी अद्भुत है । जो मर जाते है उनकी बातें िुनकर लोग खश
ु होते है जो
जजंदा होते है , उन्हें मार डालने की िमकी दे ते है ।

मैंने िोचा कक आज कबीर होते, इि बंबई के बडे बाजार में तो ककतने खश


ु होते कक लोग
ककतने ििन्न हो रहे है । कबीर जी क्या कहते है , इिको िुनकर लोग ििन्न हो रहे हे ।
कबीर जी को िुनकर वे कभी भी ििन्न नहीं हुए थे। लेककन लोगों को ििन्न दे खकर ऐिा
लगा कक जो लोग अपने र्र को जलाने के सलए भी ठहम्मत रखते है और खश ु होते है , उनिे
कुछ ठदल की बातें आज कही जायें। तो मैं भी उिी िोखे में आ गया। जजिमें कबीर और
क्राइस्ट और िारे लोग हमेशा आत रहे है ।

मैंने लोगों िे ित्य की कुछ बात कहनी चाही। और ित्य के िंबंि में कोई बात कहनी हो तो
उन अित्यों को िबिे पहले तोड दे ना जरूरी है , जो आदमी ने ित्य िमझ रखे है । जजन्हें हम
ित्य िमझते है और जो ित्य नहीं है । जब तक उन्हें न तोड ठदया जाए, तब तक ित्य क्या
है उिे जानने की तरफ कोई कदम नहीं उिाया जा िकता।

मझु े कहा गया था उि िभा में कक मैं िेम के िंबंि में कुछ कहूं और मुझे लगा कक िेम के
िंबंि में तब तक बात िमझ में नहीं आ िकती, जब तक कक हम काम और िेक्ि के िंबंि
में कुछ गलत िारणाएं सलए हुए बैिे है । अगर गलत िारणाएं है िेक्ि के िंबंि में तो िेम
के िंबंि में हम जो भी बातचीत करें गे वह अिरू ी होगी। वह झि
ू ी होगी। वह ित्य नहीं हो
िकती।

इिसलए उि िभा में मैंने काम और िेक्ि के िंबंि में कुछ कहा। और यह कहा कक काम
की उजाघ ही रूपांतररत होकर िेम की असभव्यजक्त बनती है । एक आदमी खाद खरीद लाता है ,
गंदी और बदबू िे भरी हुई और अगर अपने र्र के पाि ढे र लगा ले तो िडक पर िे
तनकलना मुज‍कल हो जायेगा। इतनी दग
ु ि
िं वहां फैलेगी। लेककन एक दि
ू रा आदमी उिी खाद
को बग़ीचे में डालता है और फूलों के बीज डालता है । कफर वे बीज बडे होते है पौिे बनते है ।
और उनमें फूल तनकलते है । फूलों की िुगंि पाि-पडोि के र्रों मे तनमंरण बनकर पहुंच
जाती है । रहा िे तनकलते लोगों को भी वह िगु ंि छूती है । वह पौिों को लहराता हुआ िंगीत
अनभ
ु व होता है । लेककन शायद ही कभी आपने िोचा हो कक फूलों िे जो िुगंि बनकर िकट
हो रहा रही है । वह वही दग
ु ि
िं है जो खाद िे िकट होती थी। खाद की दग
ु ि
िं बीजों िे गज
ु र
कर फूलों की िग
ु ंि कर जाती है ।

दग
ु ि
िं िुगंि बन िकती है । काम िेम बन िकता है ।

लेककन जो काम के प्रवरोि में हो जायेगा। वह उिे िेम कैिे बनायेगे। जो काम का शरु हो
जायगा, वह उिे कैिे रूपांतररत करे गा? इिसलए काम को िेक्ि को, िमझना जरूरी है । यह
वहां कहां और उिे रूपांतररत करना जरूरी है ।

मैंने िोचा था, जो लोग सिर ठहलाते थे र्र जल जाने पर, वे लोग मेरी बातें िुनकर बडे खश

होंगे। लेककन मुझिे गलती हो गयी। जब मैं मंच िे उतरा तो उि मंच पर जजतने नेता थे,
जजतने िंयोजक थे, वे िब भाग चक
ु े थे। वे मुझे उतरते वक्त मंच पर कोई नहीं समले। वे
शायद अपने र्र चले गये होंगे कक कहीं र्र में आग न लग जाये। उिे बुझाने का इंतजाम
करने भोग गये थे। मुझे िन्यवाद दे ने को भी िंयोजक वहां नहीं थे। जजतनी भी िफेद
टोप्रपयों थी। जजतने भी खादी वाले लोग थे। वे मंच पर कोई भी नहीं थे। वे जा चक
ु े थे। नेता
बडा कमजोर होता है । वह अनुयातययों के पहले भाग जाता है ।

लेककन कुछ ठहम्मत वर लोग जरूर आये। कुछ बच्चे आये, कुछ बजच्चयां आयी, कुछ बूढे, कुछ
जवान। और उन्होंने मुझिे कहा कक आपने वह बात हमें कहीं है , जो हमें ककिी ने कभी नहीं
कही। और हमारी आंखें खोल दी है । हमें बहुत ही िकाश अनुभव हुआ है । तो कफर मैंने िोचा
कक उधचत होगा कक इि बात को और िीक िे परू ी तरह कहां जाये। इिसलए यह प्रवषय मैंने
आज यहां चन
ु ा। इि चार ठदनों में यक कहानी जो वहां अिरू ी रह गयी थी। उिे पूरा करने
का एक कारण यह था कक लोगों ने मुझे कहा। और वह उन लोगों ने कहा, जजनको जीवन को
िमझने की हाठदघ क चेष्टा है । और उन्होंने चाहा कक मैं पूरी बात कहूं। एक तो कारण यह था।

और दि
ू रा कारण यह था कक वे जो भाग गये थे मंच िे, उन्होंने जगह-जगह जाकर कहना
शुरू कर ठदया कक मैंने तो ऐिी बातें कही है कक िमघ का प्रवनाश ही हो जायेगा। मैंने तो ऐिी
कहीं है , जजनिे कक लोग अिासमघक हो जायेंगे।

तो मुझे लगा कक उनका भी कहना पूरा स्पष्ट हो िके, उनको भी पता चल िके कक लोग
िेक्ि के िंबंि में िमझकर अिासमघक होने वाले नहीं है । नहीं िमझा है उन्होंने आज तक
इिसलए अिासमघक हो गये है ।

अज्ञान अिासमघक बनाता हो। ज्ञान कभी भी अिासमघक नहीं बना िकता है ।

और अगर ज्ञान अिासमघक बनाता हो तो मैं कहता हूं कक ऐिा ज्ञान उधचत है । जो अिासमघक
बना दे , उि अज्ञान की बजाय जो कक िासमघक बनाता हो। िमघ तो वही ित्य है जो ज्ञान के
आिार पर खडा होता है ।

और मुझे नहीं ठदखायी पडता की ज्ञान मनुष्य को कहीं भी कोई हातन पहुंचा िकता है । हातन
हमेशा अंिकार िे पहुंचती है और अज्ञान िे।

इिसलए अगर मनष्ु य जातत भ्ष्ट हो गयी; यौन के िंबंि में प्रवकृत और प्रवक्षक्षप्त हो गयी।
िेक्ि के िंबंि में पागल हो गयी तो उिका जजम्मा उन लोगो पर नहीं है , जजन्होंने िेक्ि के
िंबंि में ज्ञान की खोज की है । उिका जजम्मा उन नैततक िासमघक और थोथे िािु-िंतों पर
है , जजन्होंने मनुष्य को हजारों वषो िे अज्ञान में रखने की चेष्टा की है । यह मनुष्य जातत
कभी की िेक्ि िे मुक्त हो गयी होती। लेककन नहीं यह हो िका। नहीं हो िका उनकी वजह
िे जो अंिकार कायम रखने की चेष्टा कर रहे है ।

तो मैंने िमझा की अगर थोडी िह ककरण िे इतनी बेचन ै ी हुई तो कफर पूरे िकाश की चचाघ
कर लेनी उधचत है । ताकक िाफ हो िके कक ज्ञान मनुष्य को िासमघक बनाता है या अिासमघक
बनाता है । यह कारण था इिसलए यह प्रवषय चन
ु ा। और अगर यह कारण न होता तो शायद
मुझे अचानक खयाल न आता इिे चन
ु ने का। शायद इि पर मैं कोई बात नहीं करता। इि
सलहाज िे वे लोग िन्यवाद के पार है , जजन्होंने अविर पैदा ककया यह प्रवषय चन
ु ने का। और
अगर आपको िन्यवाद दे ना हो तो मुझे मत दे ना। वह भारतीय प्रवद्या भवन ने जजन्होंने
िभा आयोजजत की थी, उनको िन्यवाद दे ना। उन्होंने ही यह प्रवषय चन
ु ाव ठदया। मेरा इिमें
कोई हाथ नहीं है ।

एक समर ने पछ
ू ा है , कक मैंने कहा कक काम का रूपांतरण ही िेम बनता है। तो उन्होंने पछ
ू ा
है कक मां का बेटे के सलए िेम—क्या वह भी काम है । वह भी िेक्ि है । और भी कुछ लोगों
ने इिी तरह के ि‍न पछ
ू े है ।

इिे थोडा िमझ लेना उपयोगी होगा।

एक तल तो शरीर का तल है —बबलकुल कफजजयोलॉजलीकल। एक आदमी वे‍या के पाि जाता


है । उिे जो िेक्ि का अनुभव होता है । वह शरीर का गहरा नहीं हो िकता। वे‍या शरीर बेच
िकती है । मन नहीं बेच िकती। और आत्मा को बेचने का तो कोई उपाय ही नहीं है । शरीर
–शरीर िे समल िकता है ।

एक आदमी बलात्कार करता है । तो बलात्कार में ककिी का मन भी नहीं समल िकता ओर


ककिी की आत्मा भी नहीं समल िकती। शरीर पर बलात्कार ककया जा िकता है । आत्मा पर
बलात्कार करने का कोई उपाय नहीं है । ने खोजा जा िका हे । न खोजा जा िकता है । तो
बलात्कार में जो भी अनुभव होगा वह शरीर का होगा। िेक्ि का िाथसमक अनभ
ु व शरीर िे
ज्यादा गहरा नहीं होता। लेककन शरीर के अनभ
ु व पर ही जो रूक जाते है । वे िेक्ि के परू े
अनभ
ु व को उपलब्ि नहीं होते। उन्हें मैंने जो गहराइयों की बातें कहीं है । उिका कोई पता
नहीं चल िकता। और अधिक लोग शरीर के तल पर ही रूक जाते है ।

इि िंबंि में यह भी जान लेना जरूरी है कक जजन दे शों में भी िेम के बबना प्रववाह होता है ।
उि दे श में िेक्ि शरीर के तल पर रूक जाता है । और उििे गहरे नहीं जा िकता।
प्रववाह दो शरीरों का हो िकता है , प्रववाह दो आत्माओं का नहीं। दो आत्माओं का िेम हो
िकता है ।

वह अगर िेम िे प्रववाह तनकलता हो, तब तो प्रववाह एक गहरा अथघ ले लेता है । और अगर
प्रववाह दो पंडडतों के और दो ज्योततप्रषयों के ठहिाब ककताब िे तनकलता हो, और जातत के
प्रवचार िे तनकलता हो और िन के प्रवचार िे तनकलता हो तो वैिा प्रववाह कभी भी शरीर िे
ज्यादा गहरा नहीं जा िकता।

लेककन ऐिे प्रववाह का एक फायदा है । शरीर मन के बजाय ज्यादा जस्थर चीज है । इिसलए
शरीर जजन िमाजों में प्रववाह का आिार है , उन िमाजों में प्रववाह िजु स्थर होगा। जीवन भर
चल जाएगा।

शरीर अजस्थर चीज नहीं है । शरीर बहुत जस्थर चीज है । उिमें पररवतघन बहुत िीरे -िीरे आता
है । और पता भी नहीं चलता। शरीर जडता का तल है । इिसलए जजन िमाजों ने यह िमझा
कक प्रववाह को जस्थर बनाना जरूरी है —एक ही प्रववाह पयाघप्त हो, बदलाहट की जरूरत न पडे;
उनको िेम अलग कर दे ना पडा। क्योंकक िेम होता है मन िे और मन चंचल है ।

जो िमाज िेम के आिार पर प्रववाह को तनसमघत करें गे, उन िमाजों में तलाक अतनवायघ होगा।
उन िमाजों में प्रववाह पररवततघत होगा। प्रववाह स्थायी व्यवस्था नहीं हो िकती है । क्योंकक
िेम तरल है ।

मन चंचल है , और शरीर जस्थर और जड है ।

आपके र्र में एक पत्थर पडा हुआ है । िुबह पत्थर पडा था। िांझ भी पत्थर वहीं पडा रहे गा।
िुबह एक फूल खखला था। शाम तक मुरझा जाएगा। फूल जजंदा है । जन्मे गा, मरे गा। पत्थर
मुदाघ है । वैिे का वैिा िुबह था। वैिा ही ‍याम पडा रहे गा। पत्थर बहुत जस्थर है ।

प्रववाह पत्थर पडा हुआ है । शरीर के तल पर जो प्रववाह है , वह जस्थरता लाता है । िमाज के


ठहत में है । लेककन एक-एक व्यजक्त के अठहत में है । क्योंकक वह जस्थरता शरीर के तल पर
लायी गई है ओर िेम िे बचा गया है ।

इिसलए शरीर के तल िे ज्यादा पतत और पत्नी का िंभोग और िेक्ि नहीं पहुंच पात है ।
एक यांबरक , एक मेकैतनकल रूटीन हो जाती है । एक यंर की भांतत जीवन हो जाता है । िेक्ि
का। उि अनुभव को ररप्रपट करते रहते हे । और जड होते चले जाते है । लेककन उििे ज्यादा
गहराई कभी भी नहीं समलती।
जहां िेम के बबना प्रववाह होता है । उि प्रववाह में और वे‍या के पाि जाने में बुतनयादी भेद
नहीं, थोडा िा भेद है । बुतनयादी नहीं है वह। वे‍या को आप एक ठदन के सलए खरीदते है और
पत्नी को आप पूरे जीवन के सलए खरीदते है । इििे ज्यादा फकघ नहीं पडता। जहां िेम नहीं
है , वहां खरीदना ही है । चाहे एक ठदन के सलए खरीदो चाहे पूरी जजंदगी के सलए खरीदो।
हालांकक िाथ रहने िे रोज-रोज एक तरह का िंबंि पैदा हो जाता है एिोसिएशन िे। लोग
उिी को िेम िमझ लेते है । वह िेम नहीं है। वह िेम और ही बात है । शरीर के तल पर
प्रववाह है इिसलए शरीर के तल िे गहरा िंबंि कभी भी नहीं उत्पन्न हो पाता है । यह एक
तल है ।

दि
ू रा तल है िेक्ि का—मन का तल, िाइकोलॉजीकल वात्यायन िे लेकर पंडडत कोक तक
जजन लोगों ने भी इि तरह के शास्र सलखे हे िेक्ि के बाबत वे शरीर के तल िे गहरे नही
जाते। दि
ू रा तल है मानसिक। जो लोग िेम करते है और कफर प्रववाह में बाँिते है । उनका
िेम शरीर के तल िे थोडा गहरा जाता है । वह मन तक जाता है । उिकी गहराई
िाइकोलॉजीकल है । लेककन वह भी रोज-रोज पुनरूजक्त होने िे थोडे ठदनों में शरीर के तल पर
आ जाता है । और यांबरक हो जाता है ।

जो व्यवस्था प्रवकसित की है दो िौ वषों में िेम प्रववाह की, वह मानसिक तल तक िेक्ि को


ले जाता है , ,और आज पज‍चम में आज िमाज अस्त-व्यस्त हो गया है । क्योंकक मन का कोई
भरोिा नहीं है , वह आज कहता है कुछ, कल कुछ और कहने लग जाता है । िुबह कुछ कहने
लगता है , ‍याम कुछ कहने लगता है । र्डी भर पहले कुछ कहता है । र्डी भर बाद कुछ कहने
लगता है ।

शायद आपने िन
ु ा होगा कक बायरन ने जब शादी की तो कहते है कक तब वह कोई िाि-
ित्तर जस्रयों िे िंबंधित रह चक
ु ा था। एक स्री ने उिे मजबरू की कर ठदया प्रववाह के
सलए। जो उिने प्रववाह ककया और जब वह चचघ िे उतर रहा था प्रववाह करके अपनी पत्नी
का हाथ-हाथ में लेकर। र्ंठटया बज रही है चचघ की। मोमबप्रत्तयााँ अभी जो जलाई गई थी। जल
रही है । अभी जो समर स्वागत करने आये थे। वे प्रवदा हो रहे है । और वह अपनी पत्नी को
हाथ पकडकर िामने खडी र्ोडा-गाडी में बैिने के सलए चचघ की िीठढयााँ उतर रहा है । तभी
उिे चचघ केिामने ही एक और स्री जाती हुई ठदखाई दे ती है । एक क्षण को वह भल
ू जाता है
अपनी पत्नी को। उिके हाथ को, अपने प्रववाह को। िारा िाण उि स्री के पीछा करने लगा।
जाकर वह गाडी में बैिा। बहुत ईमानदार आदमी रहा होगा। उिने अपनी पत्नी िे कहां, तूने
कुछ ध्यान ठदया। एक अजीव र्टना र्ट गई। कल तक तुझिे मेरा प्रववाह नहीं हुआ था, तो
मैं प्रवचार करता था कक तू मुझे समल पायेगी या नहीं। तेरे सिवाय मुझे कोई भी ठदखाई नहीं
पडता था और आज जबकक प्रववाह हो गया है , मैं तेरा हाथ पकडकर नीचे उत्तर रहा हूं। मुझे
एक स्री ठदखाई पडी गाडी के उि तरफ जाती हुई और तू मुझे भल गयी। और मेरा मन उि
स्री का पीछा करने लगा। और एक क्षण को मुझे लगा कक काश यह स्री मझ
ु े समल जाये।

मन इतना चंचल है । तो जजन लोगों को िमाज को व्यवजस्थत रखना था। उन्होंने मन के


तल पर िेक्ि को नहीं जाने ठदया। उन्होंने शरीर के तल पर रोक सलया। प्रववाह करो,िेम
नहीं। कफर प्रववाह िे िेम आता हो तो आये। न आता हो न आये। शरीर के तल पर जस्थरता
हो िकती है । मन के तल पर जस्थरता बहुत मुसशकल है । लेककन मन के तल पर िेक्ि का
अनुभव शरीर िे ज्यादा गहरा होता है।

परू ब की बजाय पज‍चम का िेक्ि का अनभ


ु व ज्यादा गहरा है ।

पज‍चम के जो मनोवैज्ञातनक हैं फ्रायड िे जुंग तक, उन िारे लोगों ने जो सलखा है वह िेक्ि
की दि
ू री गहराई है , वह मन की गहराई है ।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन—4

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

2 अक्टूबर—1968,

संभोग से समाधि की और —18


Posted on नवम्बर 6, 2010by sw anand prashad

समाधि : संभोग-उजाा का अध्यात्त्मक ननयोजन—5


िंभोग िे िमाधि कीओर--ओशो

लेककन मैं जजि िेक्ि की बात कर रहा हूं, वह तीिरा तल है । वह न आज तक परू ब में पैदा
हुआ है , न पज‍चम में । वह तीिरा तल है जस्िचअ
ु ल, वह तीिरा तल है , अध्याजत्मक। शरीर के
तल पर भी एक जस्थरता है । क्योंकक शरीर जड है। और आत्मा के तल पर भी जस्थरता है ,
क्योंकक आत्मा के तल पर कोई पररवतघन कभी होता ही नहीं। वहां िब शांत है , वहां िब
िनातन है । बीच में एक तल है मन का जहां पारे की तरह तरल है मन। जरा में बदल जाता
है ।

पज‍चम मन के िाथ ियोग कर रहा है इिसलए प्रववाह टूट रहा है । पररवार नष्ट हो रहा है ।
मन के िाथ प्रववाह और पररवार खडे नहीं रह िकते। अभी दो वषघ में तलाक है , कल दो र्ंटे
में तलाक हो िकता है । मन तो र्ंटे भर में बदल जाता है । तो पज‍चम का िारा िमाज
अस्त-व्यस्त हो गया है । परू ब का िमाज व्यवजस्थत था। लेककन िेक्ि की जो गहरी अनभ
ु तू त
थी, वह परू ब को अपलब्ि नहीं हो िकी।
एक और जस्थरता है , एक और र्डी है अध्यात्म की। उि तल पर जो पतत-पत्नी एक बार
समल जाते है या दो व्यजक्त एक बार समल जाते है । उन्हें तो ऐिा लगता है कक वे अनंत
जन्मों के सलए एक हो गये। वहां कफर कोई पररवतघन नहीं है। उि तल पर चाठहए जस्थरता।
उि तल पर चाठहए अनुभव।

तो मैं जजि अनुभव की बात कर रहा हूं,जजि िेक्ि की बात कहर रहा हूं। वह जस्िचअ
ु ल
िेक्ि हे । अध्याजत्मक अथघ तनयोजन करना चाहता हूं काम की वािना में । और अगर मेरी
यह बात िमझेंगे तो आपको पता चल जायेगा। कक मां का बेटे के ितत जो िेम है , वह
आध्याजत्मक काम है । वह जस्िचअ ु ल िेक्ि का ठहस्िा है । आप कहें गे यह तो बहुत उलटी
बात है …मां को बेटे के ितत काम का क्या िंबंि?

लेककन जैिा मैंने कहा कक पुरूष और स्री पतत और पत्नी एक क्षण के सलए समलते है , एक
क्षण के सलए दोनों की आत्माएं एक हो जाती है । और उि र्डी में जो उन्हें आनंद का
अनुभव होता है । वही उनको बांिने वाला हो जाता है ।

कभी आपने िोचा कक मां के पेट में बेटा नौ महीने तक रहता है। और मां के आजस्तत्व िे
समला रहता है । पतत एक क्षण को समलता है । बेटा नौ महीने के सलए होता है इक््िा होता
है । इिीसलए मां का बेटे िे जो गहरा िंबंि है , वह पतत िे भी कभी नहीं होता। हो भी नहीं
िकता। पतत एक क्षण के सलए समलता है आजस्तत्व के तल पर, जहां एजग्ज़िटैंि है , जहां
बीइंग है , वहां एक क्षण को समलता है , कफर बबछुड जाता है । एक क्षण को करीब आते है ओर
कफर कोिों का फािला शुरू हो जाता है ।

लेककन बेटा नौ महीने तक मां की िांि िे िांि लेता है । मां के ह्रदय िे िडकता है । मां के
खन
ू , मां के िाण िे िाण, उिका अपना कोई आजस्तत्व नहीं होता है । वह मां का एक ठहस्िा
होता है । इिीसलए स्री मां बने बबना कभी भी पूरी तरह तप्ृ त नहीं हो पाती। कोई पतत स्री
को कभी तप्ृ त नहीं कर िकता। जो उिका बेटा उिे कर दे ता है । कोई पतत कभी उतना
गहरा कन्टें टमें ट उिे नहीं दे पाता जजतना उिका बेटा उिे दे पाता है ।

स्री मां बने बबना पूरी नहीं हो पाती। उिके व्यजक्तत्व का पूरा तनखार और पूरा िौंदयघ उिके
मां बनने पर िकट होता है । उििे उिके बेटे के आजत्मक िंबंि बहुत गहरे होते है ।

और इिीसलए आप यह भी िमझ लें कक जैिे ही स्री मां बन जाती है । उिकी िेक्ि में रूधच
कम हो जाती है । यह कभी आपने ख्याल ककया है । जैिे ही स्री मां बन जाती है , िेक्ि के
ितत रूधच कम हो जाती है । कफर िेक्ि में उिे उतना रि नहीं मालम
ू पडता। उिने एक और
गहरा रि ले सलया है । मातत्ृ व का। वह एक िाण के िाथ और नौ महीने तक इक्िी जी
ली है । अब उिे िेक्ि में रि नहीं रह जाता है ।

अकिर पतत है रान होते है । प्रपता बनने िे पतत में कोई फकघ नहीं पडता। लेककन मां बनने िे
स्री में बुतनयादी फकघ पड जाता है । प्रपता बनने िे पतत में कोई फकघ नहीं पडता। क्योंकक
प्रपता कोई बहुत गहरा िंबंि नहीं है । जो नया व्यजक्त पैदा होता है उििे प्रपता का कोई
गहरा िंबंि नहीं है ।

प्रपता बबलकुल िामाजजक व्यवस्था है , िोशल इंस्टीटयूशन है ।


प्रपता के बबना भी दतु नया चल िकती है , इिीसलए प्रपता को कोई गहरा िंबंि नहीं है बेटे का।

मां िे उिके गहरे िंबंि है , और मां तप्ृ त हो जाती है उिके बाद। और उिमें एक और ही
तरह की आध्याजत्मक गररमा िकट होती है । जो मां नहीं बनी है स्री उिको दे खे और जो मां
बन गई है उिे दे खें। उन दोनों की चमक और उजाघ और उनकी व्यजक्तत्व अलग मालूम
होगा। मां की दीजप्त ठदखाई पडेगी—शांत, जैिे नदी जब मैदान में आ जाती है , तब शांत हो
जाती है । जो अभी मां नहीं बनी है , उि स्री में एक दौड ठदखेगी, जैिे पहाड पर नदी दौडती
है । झरने की तरह टूटती है , धचल्लाती है ; गडगडाहट करती है ; आवाज है ; दौड है ; मां बन कर
वह एक दम िे शांत हो जाती है ।

इिीसलए मैं आपिे इि िंदभघ में यह भी कहना चाहता हूं कक जजन जस्रयों को िेक्ि का
पागलपन िवार हो गया है , जैिे पज‍चम में —वे इिीसलए मां नहीं बनना चाहती। क्योंकक मां
बनने के बाद िेक्ि का रि कम हो जाता है । पज‍चम की स्री मां बनने िे इंकार करती है ।
क्योंकक मां बनी कक िेक्ि का रि कम हुआ। िेक्ि का रि तभी तक रह िकता है जब वह
मां नहीं बन जाती। पर प्रवकृतत एक अपवाद नहीं है ।

तो पज‍चम की अनेक हुकूमतें र्बरा गयी है इि बात िे कक वह रो अगर बढता चला गया
तो उनकी िंख्या का क्या होगा। हम यहां र्बरा रहे कक हमारी िंख्या न बढ जाए। पज‍चम
के मुल्क र्बरा रहे है कक उनकी िंख्या कहीं कम न हो जाये। क्योंकक जस्रयों को अगर इतने
तीव्र रूप िे यह भाव पैदा हो जाये कक मां बनने िे िेक्ि का रि कम हो जाता है और वह
मां न बनना चाहे तो क्या ककया जा िकता है । कोई कानूनी जबदघ स्ती की जा िकती है ।

ककिी को िंततत तनयमन के सलए तो कानूनी जबदघ स्ती भी की जा िकती है । कक हम


जबदघ स्ती बच्चे नहीं होने दें गे। लेककन ककिी स्री को मजबूर नहीं ककया जा िकता कक बच्चे
पैदा करने की पडेंगे।

पज‍चम के िामने हमिे बडा िवाल है । हमारा िवाल उतना बडा नहीं है , हम िंख्या को रोक
िकते है । जबदघ स्ती कानन
ू न,लेककन िंख्या को कानन
ू न बढाने को कोई रास्ता नहीं है । ककिी
व्यजक्त को जबदघ स्ती नहीं की जात िकती की तम
ु बच्चे पैदा करों।

और आज िे दो िौ िाल के भीतर पज‍चम के िामने यक ि‍न बहुत भारी हो जायेगा,


क्योंकक पूरब की िंख्या बढती चली जायेगी, वह िारी दतु नया पर छा िकती है । और पज‍चम
की िंख्या क्षीण होती जा िकती है । स्री को मां बनने के सलए उन्हें कफर िे राज़ी करना
पडेगा।
और उनके कुछ मनोवैज्ञातनकों ने यह िलाह दे नी शुरू कर दी है , कक बाल प्रववाह शुरू कर दें ,
अन्यथा खतरा है । क्योंकक स्री होश में आ जाती है तो वह मां नहीं बनना चाहती। उिे िेक्ि
का रि लेने में ज्यादा िीक मालूम होता है । इिसलए बचपन में शादी कर दो उिे पता ही न
चले कक वह कब मां बन गई।

पूरब में जो बाल-प्रववाह चलता था, उिके एक कारणों में यह भी था। स्री जजतनी युवा हो
जायेगी और जजतनी िमझदार हो जायेगी। और िेक्ि का जैिे रि लेने लगेगी,वैिे वह मां
नहीं बनना चाहें गी। हालांकक उिे कुछ पता नहीं कक मां बनने िे क्या समलेगा। वह तो मां
बनने िे ही पता चल िकता है । उििे पहले कोई उपाय नहीं है ।

स्री तप्ृ त होने लगती है मां बनकर—क्यों? उिने एक आध्याजत्मक तल पर िेक्ि का अनभ
ु व
कर सलया बच्चे के िाथ। और इिीसलए मां और बेटे के पाि एक आत्मीयता है । मां अपने
िाण दे िकती है बेटे के सलए, मां बेटे के िाण लेने की कल्पना नहीं कर िकती।

पत्नी पतत के िाण ले िकती है । सलए है अनेक बार। और अगर नहीं भी लेगी तो पूरी
जजंदगी में िाण लेने की हालत पैदा कर दे गी। लेककन बेटे के सलए कल्पना भी नहीं कर
िकती। वह िंबंि बहुत गहरा है ।

और मैं आपिे यह भी कहूं कक उििे अपने पतत को िंबंि भी इतना हो जाता है —तो पतत
उिे बेटे की तरह ठदखाई दे ता है । पतत की तरह नहीं। यहां इतनी स्रीयां बैिी है और इतने
पुरूष बैिे है । मैं उनिे ये पूछता हूं कक जब उन्होंने अपनी पत्नी को बहुत िेम ककया है तो
क्या उन्होंने इि तरह का व्यवहार नहीं ककया। जैिे छोटा बच्चा अपनी मां के िाथ करता है ।
क्या आपको इि बात का ख्याल है कक पुरूष के हाथ स्री के स्तन की तरफ क्यों पहुंच जाते
है ?

वह छोटे बच्चे के हाथ है , जो अपनी मां के स्तन की तरफ जा रहे है ।

जैिे ही पुरूष स्री के ितत गहरे िेम िे भरता है , उिके हाथ उिके स्तन की तरफ बढते है —
क्यों, स्तन िे क्या िंबंि है िेक्ि का।

स्तन िे कोई िंबंि नहीं है । स्तन िे मां और बेटे का िंबंि है । बचपन िे वह जानता रहा
है । बेटे का िंबंि स्तन िे है । और जैिे ही परू
ु ष गहरे िेम िे भरता है वह बेटा हो जाता है ।

और स्री का हाथ कहां पहुंच जाता है ?


वह पुरूष के सिर पर पहुंच जाता है । उिके बालों में अगुसलयां चली जाती है । वह पुराने बेटे
की याद है । वह पुराने बेटे का िर है , जजिे उिने िहलाया है ।

इिसलए अगर िीक िे िेम आध्याजत्मक तल तक प्रवकसित हो जाये तो पतत आखखर में बेटा
हो जाता है । और बेटा हो जाना चाठहए। तो आप िमखझए कक हमने तीिरे तल पर िेक्ि का
अनुभव ककया। अध्यात्म के तल पर जस्िचअ
ु ल के तल पर। इि तल पर एक िंबंि है ,
जजिका हमें कोई पता नहीं है । पतत पत्नी का िंबि
ं उिकी तैयारी है । उिका अंत नहीं है ।
वह यारा की शुरूआत है । पहुंचा नहीं है ।

इिसलए पतत पत्नी के बीच एक इनर कानजललक््ि चौबीि र्ंटे चलती रहती है । चौबीि र्ंटे
एक कलह चलती है । जजिे हम िेम करते है , उिी के िाथ चौबीि र्ंटे कलह चलती है ।
लेककन न पतत िमझता है , न पत्नी िमझती है । कक कलह का क्या करण है । पतत िोचता है
कक शायद दि
ू री स्री होती तो िीक हो जाता। पत्नी िोचती है कक शायद दि
ू रा परू
ु ष होता
तो िीक हो जाता। यह जोडा गलत हो गया है।

लेककन मैं आपिे कहता हूं कक दतु नया भर के जोडों का यही अनुभव है । और आपको अगर
बदलने का मौका दे ठदया जाये तो इतना ही फकघ पडेगा कक जैिे कुछ लोग अथी को लेकर
मरर्ट जाते है । कंिे पर रखकर अथी को। एक कंिा दुःु ख ने लगता है तो उिाकर दि
ू रे कंिे
पर अथी रख लेते है । थोडी दे र राहत समलती है । कंिा बदल गया। थोडी दे र बाद पता चलता
है कक बोझ उतना का उतना ही कफर शुरू हो गया है ।

पज‍चम में इतने तलाक होते है । उनका अनुभव यह है कक दि


ू री स्री दि पााँच ठदन के बाद
कफर पहली स्री िाबबत होती है । दि
ू रा पुरूष 15 ठदन के बाद कफर पहला पुरूष िाबबत हो
जाता है । इिके कारण गहरे है । इिके कारण इिी स्री और इिी पुरूष के िंबंधित नहीं है ।
इिके कारण इि बात िे िंबंधित है कक जो स्री और पुरूष का पतत और पत्नी का िंबंि
बीच की यारा का िंबंि है । वह मुकाम नहीं है , वह अंत नहीं है । अंत तो वही होगा, जहां स्री
मां बन जायेगी। और पुरूष कफर बेटा हो जायेगा।

तो मैं आपिे कह रहा हूं कक मां और बेटे का िंबंि आध्याजत्मक काम का िंबंि है और जजि
ठदन स्री और परू
ु ष में , पतत-पत्नी में भी अध्याजत्मक काम का िंबंि उत्पन्न होगा,उि ठदन
कफर मां-बेटे का िंबंि स्थाप्रपत हो जायेगा। और वह स्थाप्रपत हो जाये तो एक तजृ प्त है ।
जजिको मैंने कहा, कन्टें टमें ट, अनुभव होगा और उि अनुभव िे ब्रह्मचयघ फसलत होता है । तो
यह मत िोचें कक मां और बेटे के िंबंि में कोई काम नहीं है । आध्याजत्मक काम है । अगर
हम िीक िे कहें तो आध्याजत्मक काम को ही िेम कह िकते है । वह िेम…स्िीच्युअलाइज
जैिे ही िेक्ि हो जाता है। वह िेम हो जाता है ।
( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन—4

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

2 अक्टूबर—1968,

संभोग से समाधि की और —19


Posted on नवम्बर 7, 2010by sw anand prashad

समाधि : संभोग-उजाा का अध्यात्त्मक ननयोजन—5

िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो

एक समर ने इि िंबंि में और एक बात पूछी है । उन्होंने पूछा है कक आपको हम िेक्ि पर


कोई आथोररटी कोई िामाखणक व्यजक्त नहीं मान िकते है । हम तो आपिे ई‍वर के िंबंि में
पछ
ू ने आये थे। और आप िेक्ि के िंबंि में बताने लगे। हम तो िन
ु ने आये थे ई‍वर के
िंबंि में तो आप हमें ई‍वर के िंबंि में बताइए।

उन्हें शायद पता नहीं कक जजि व्यजक्त को हम िेक्ि के िंबंि में भी आथोररटी नहीं मान
िकते। उििे ई‍वर के िंबंि में पूछना कफजूल है । क्योंकक जो पहली िीढी के िंबंि में भी
कुछ नहीं जानता। उििे आप अंततम िीढी के िंबंि में पूछना चाहते हो? अगर िेक्ि के
िंबंि में जो मैंने कहा वह स्वीकायघ नहीं है । तो कफर तो भूलकर ई‍वर के िंबंि में मुझिे
पूछने कभी मत आना, क्योंकक वह बात ही खत्म हो गयी पहल कक्षा के योग्य भी मैं सिद्ि
नहीं हुआ। तो अंततम कक्षा के योग्य कैिे सिद्ि हो िकता हूं। लेककन उनके पूछने का
कारण है ।
अब तक काम और राम को द‍ु मन की तरह दे खा गया है । अब तक ऐिा िमझा जाता रहा
है कक जो राम की खोज करते है , उनको काम िे कोई िंबंि नहीं है । और जो लोग काम की
यारा करते है । उनको अध्यात्म िे कोई िंबंि नहीं है । ये दोनों बातें बेवकूफी की है ।

आदमी काम की यारा भी राम की खोज के सलए ही करता है । वह काम का इतना तीव्र
आकषघण, राम की ही खोज है और इिीसलए काम में कभी तजृ प्त नहीं समलती। कभी ऐिा नहीं
लगता कक िब पूरा हो गया है । वह जब तक राम न समल जाये। तब तक लग भी नहीं
िकता।

और जो लोग काम के शरु होकर राम को खोजते है , राम की खोज नहीं है वह। वह सिफघ
राम के नाम में काम िे एस्केप है , पलायन है । काम िे बचना है । इिर िाण र्बराते है , डर
लगता है तो राम चदररया ओढ कर उिमें तछप जाते है । और राम-राम-राम जपते समले तो
जरा दे खना वह कहीं काम की याद िे तो नहीं बच रहे ।

जब भी कोई आदमी राम-राम-राम जपते समले तो जरा गौर करना। उिके भीतर राम-राम के
जप के पीछे काम का जप चल रहा होगा। िेक्ि का जप चल रहा होगा। स्री को दे खेगा
और माला फेरने लगेगा। कहे गा, राम-राम। वह स्री ठदखी कक वह ज्यादा जोर िे माला फेरता
है । ज्यादा जोर िे राम-राम कहता है ।

क्यों?

वह भीतर जो काम बैिा है , वह िक्के मार रहा है । राम का नाम ले-लेकर उिे भल
ु ाने की
कोसशश करता है । लेककन इतनी आिान तरकीबों िे जीवन बदलते होते तो दतु नया कभी की
बदल गयी होती। उतना आिान रास्ता नहीं हे ।

तो मैं आपिे कहना चाहता हूं। कक काम को िमझना जरूरी है अगर आप अपने राम की
और परमात्मा की खोज को भी िमझना चाहते है । क्यों? यह इिीसलए मैं कहता हूं कक एक
आदमी बंबई िे कलकत्ता की यारा करना चाहे ; वह कलकत्ता के िंबंि में पता लगाये कक
कलकत्ता कहां है ककि ठदशा में है ? लेककन उिे यही पता न हो कक बंबई कहां है और ककि
ठदशा में है और कलकत्ता की वह यारा करना चाहे , तो क्या वह कभी िफल हो िकेगा।
कलकत्ता जाने के सलए िबिे पहले यह पता लगाना जरूरी है कक बंबई कहां हे । जहां मैं हूं,
वह ककि ठदशा में है ? कफर कलकत्ता की तरफ ठदशा प्रवचार की जा िकती हे । लेककन मुझे
यही पता नहीं कक बंबई कहां है , तो कलकत्ता के बाबत की िारी जानकारी कफजूल है ….क्योंकक
यारा मुझे बंबई िे शुरू करना पडेगी। यारा का िारं भ बंबई िे करना है । और िारं भ पहले है ,
अंत बाद में ।

आप कहां खडे है ?

राम की यारा करना चाहते है , वह िीक। भगवान तक पहुंचना चाहते है वह िीक। लेककन खडे
कहां है । खडे तो काम में है , खडे तो वािना में है , खडे तो िेक्ि में है । वह आपका तनवाि
गह
ृ है जहां िे आपको कदम उिाने है । और यारा करनी है । तो पहले तो उि जगह को
िमझ लेना जरूरी है , जहां हम है , जो है उिे, जो एक्जअ
ु लठट, पहले जो वास्तप्रवक है उिे पहले
िमझ लेना जरूरी है । तब हम उिे भी िमझ िकते है जो िंभावना है । जो पासिबबलठट है
जो हम हो िकते है , उिे जानने के सलए,जो हम है उिे पहले जान लेना जरूरी है । अंततम
कदम को िमझने के पहले पहला कदम िमझ लेना जरूरी है । क्योंकक पहला कदम ही
अंततम कदम तक पहुंचाने का रास्ता बनेगा। और अगर पहला कदम ही गलत होगा तो
अंततम कदम कभी भी िही नहीं होने वाला है ।

राम िे भी ज्यादा महत्वपूणघ काम को िमझना है , परमात्मा िे भी ज्यादा महत्वपूणघ िेक्ि


को िमझना है , क्यों इतना महत्वपूणघ है ?

इिी सलए महत्वपूणघ है कक अगर परमात्मा तक पहुंचना है तो िेक्ि को बबना िमझे आन


नहीं पहुंच िकते। इिसलए यह मत पूछे।

रह गयी अथरीटी की बात कक मैं आथोररटी हूं या नहीं—यह कैिे तनणघय होगा। अगर मैं ही
इि िंबंि में कुछ कहूंगा तो वह तनणाघयक नहीं रहे गा, क्योंकक मेरे िंबंि में ही तनणघय होना
है । अगर मैं ही कहूं मैं अथरीटी हूं तो उिका कोई मतलब नहीं। अगर मैं कहूं कक मैं अथरीटी
नहीं हूं। तो उिका भी कोई मतलब नहीं है । क्योंकक मेरे दोनों वक्तव्य के िंबंि में
प्रवचारणीय है कक अथाररटे ठटव आदमी कह रहा है । गैर-अथाररटे ठटव। मैं जो भी कहूंगा इि
िंबंि में वह कफजलू है । मैं अथरीटी हूं या नहीं यह तो आप थोडे िेक्ि की दतु नया में ियोग
करके दे खना। जब अनभ
ु व आयेगा तो पता चलेगा। कक जो मैंने कहा था वह अथरीटी थी या
नहीं, उिके बबना कोई रास्ता नहीं है ।

मैं आपिे कहता हूं कक तैरने का यह रास्ता है , आप कहें कक , लेककन हम कैिे मानें कक आप
तैरने के िंबंि में िामाखणक बात कर रहे है । तो मैं कहता हूं कक चसलए, आपको िाथ लेकर
नदी में उतरा जा िकता है । आपको नदी में उतारे दे ता हूं। मैने जो कहा है आपको, अगर वह
कारगर हो जाये पार होने में हाथ पैर चलाने में और तैरने में तो आप िमझना कक जो मैंने
कहा है , वह कुछ जानकर कहा है ।

उन्होने यह भी कहा है कक फ्रायड अथरीटी हो िकते है । लेककन मैं आपिे कहता हूं कक जो मैं
कह रह हूं, उिपर शायद फ्रायड दो कौडी भी नहीं जानते। फ्रायड मानसिक तल िे कभी उपर
उिे ही नहीं। उनको कल्पना भी नहीं है । आध्याजत्मक िेक्ि की। फ्रायड की िारी जानकारी
रूग्ण िेक्ि की है —ठहस्टे ररक, होमोिेक्िुअसलटी, मास्टरबेशन—इि िबकी खोजबीन है । रूग्ण
िेक्ि, प्रवकृत िेक्ि के बाबत खोजबीन है , पैथोलाजजकल, है । बीमार की धचककत्िा की वह खोज
है । फ्रायड एक डाक्टर है कफर पज‍चम में जजन लोगों को उिने अध्यान ककया, वे मन के तल
के िेक्ि के लोग है । उिके पाि एक भी अध्याजत्मक नहीं है । एक भी केि ठहस्ट्ी नहीं
जजिको जस्िचअ
ु ल िेक्ि कहा जा िके।

तो अगर खोज करनी है कक जो मैं कह रहा हूं, वह कहां तक िच है , तो सिफघ एक ठदशा में
खोज हो िकती है , वह ठदशा है तंर। और तंर के बाबत हमने हजारों िाल िे िोचना बंद कर
ठदया है । तंर ने िेक्ि को जस्िचअ
ु ल बनाने का दतु नया में िबिे पहला ियाि ककया था।
खजुराहो में खडे मंठदर, पुरी और कोनाकघ में मंठदर िबूत है । कभी आप खजुराहो गये है ? कभी
आपने जाकर खजुराहो की मूततघयां दे खी?

तो आपको दो बातें अद्भुत अनुभव होगी। पहली तो बात यह है कक नग्न मैथन


ु की
िततमाओं को दे खकर भी आपको ऐिा नहीं लगेगा कक उनमें जरा भी कुछ गंदा है । जरा भी
कुछ अगली है । नग्न मैथन
ु की िततमाओं को दे खकर कहीं भी ऐिा नहीं लगेगा कक कुछ
कुरूप है , कुछ बुरा है । बजल्क मैथन
ु की िततमाओं को दे खकर एक शांतत एक पप्रवरता का
अनभ
ु व होगा जो बडी है रानी की बात है । वे िततमाएं आध्याजत्मक िेक्ि काक जजन लोगों ने
अनभ
ु व ककया था। उन सशजल्पयों िे तनसमघत करवायी गई थी।

उन िततमाओं के चेहरों पर…..आप एक िेक्ि िे भरे हुए आदमी को दे खें उिकी आंखे दे खें
उिका चेहरा दे खें, वह तर्नौना, र्बरानें वाला, कुरूप ितीत होगा। उिकी आंखों िे एक झलक
समलती हुई मालूम होगी, जो र्बरानें वाली और डराने वाली होगी। प्यारे िे प्यारे आदमी को,
अपने तनकटतम प्यारे िे प्यारे व्यजक्त को भी स्री जब िेक्ि िे भरा हुआ पाि आता हुई
दे खती है तो उिे द‍ु मन ठदखायी पडता है , समर नहीं ठदखाई पडता। प्यारी िे प्यारी स्री को
अगर कोई पुरूष अपने तनकट िेक्ि िे भरा हुआ आता हुआ ठदखायी दे गा तो उिे उिके
भीतर नरक ठदखायी दे गा। स्वगघ नहीं ठदखायी पडेगा।

लेककन खजुराहो की िततमाओं को दे खें तो उनके चेहरे को दे ख कर ऐिा लगता है । जैिे बुद्ि
का चेहरा हो, महावीर का चेहरा हो, मैथन
ु की िततमाओं और मैथन
ु रत जोडे के चेहरे पर जो
भाव है , वे िमाधि के है , और िारी िततमाओं को दे ख लें और पीछे एक हल्की िी शांतत की
झलक छूट जायेगी। और कुछ भी नहीं। और एक आ‍चयघ आपको अनुभव होगा।

आप िोचते होंगे कक नंगी तस्वीरे और मूततघयां दे खकर आपको भीतर कामुकता पैदा होगी। तो
मैं आपिे कहता हूं कफर आप दे र न करें और िीिे खजुराहो चल जायें। खजुराहो प्
ृ वी इि
िमय अनूिी चीज है ।

लेककन हमारे कई नीतत शास्री पुरूषोतम दाि टं डन और उनके कुछ िाथी इि िुझाव के थे
कक खजरु ाहो के मंठदर पर सम्टी छाप कर दीवालें बंद कर दे नी चाठहए, क्योंकक दे खने िे
वािना पैदा हो िकती है । मैं है रान हो गया।

खजुराहो के मंठदर जजन्होंने बनाये थे, उनका ख्याल यह था कक इन िततमाओं को अगर कोई
बैिकर र्ंटे भर दे खे तो वािना िे शून्य हो जायेगा। वे िततमाएं आब्जेक््ि फार मेडडटे शन
रहीं हजारों वषघ तक। वे िततमाएं ध्यान के सलए ऑब्जेक्ि का काम करती है । जो लोग अतत
कामुक थे। उन्हें खजुराहो के मंठदर के पाि भेज कर उन पर ध्यान करवाने के सलए कहा
जाता था। कक तुम ध्यान करो—इन िततमाओं को दे खो और इनमें लीन हो जाओ।

और यह आ‍चयघ कक बात है , हालांकक हमारे अनुभव में है , लेककन हमें ख्याल नहीं। आपको
पता है रास्ते पर दो आदमी लड रहे हों और आप रास्ते िे चले जा रहे हों, तो आपका मन
होता है कक खडे होकर उनकी लडाई दे खे। लेककन क्यों? आपने कभी ख्याल ककया लडाई दे खने
िे आपको क्या फायदा है ? हजार जरूरी काम छोडकर आप आिे र्ंटे ते दो आदसमयों की
मुक्केबाजी दे ख िकते है , उििे क्या फायदा है ?

शायद आपको पता नहीं फायदा एक है । दो आदसमयों को लडते दे खकर आपके भीतर भी जो
लडने की िवतृ त है , वह प्रविजजघत होती है । जजिका तनकाि हो जाता है । वह इवोपरे ट हो जाती
है ।

अगर मैथन
ु की िततमा को कोई र्ंटे भर तक शांत बैिकर ध्यान मग्न होकर दे खे तो उिके
भीतर जो मैथन
ु करने का पागल भाव है , वह प्रवलीन हो जाता है ।

एक मनोवैज्ञातनक के पाि एक आदमी को लाया गया था। वह एक दलतर में काम करता है ।
और अपने मासलक िे अपने बॉि िे बहुत रूष्ट है । मासलक उििे कुछ भी कहता है तो उिे
बहुत अपमान मालूम होता है । और उिके मन में होता है कक तनकालू जूता और मार दाँ ।ू
लेककन मासलक को जूता कैिे मारा जो िकता है । हालांकक ऐिे नौकर कम ही होंगे। जजनके
मन में ये ख्याल नहीं आता होगा। कक तनकालू जूता और मार दाँ ।ू ऐिा नौकर खोजना
मुज‍कल है । अगर आप मासलक है तो भी आपको पता होगा और अगर आप नौकर है तो भी
आपको पता होगा।

नौकर के मन में नौकर होने की भारी पीडा है । और मन होता है कक इिका बदला ले लूं।
लेककन नौकर अगर बदला ले िकता तो नौकर होता क्यों? तो बह बेचारा मजबूर है और
दबाये चला जाता है । दबाये चला जाता है ।

कफर तो हालत उिकी ऐिी रूग्ण हो गयी कक उिे डर पैदा हो गया कक ककिी ठदन आवेश में
मैं जत
ू ा मार ही न दाँ ।ू वह जत
ू ा र्र ही छोड जाता है । लेककन दलतर में उिे जत
ू े की ठदन
भर याद आती है । और जब मासलक ठदखायी दे ता है वह पैर टटोलता है । कक जत
ू ा कहां है —
लेककन जत
ू ा तो वह र्र छोड आया है । और खशु होता है कक अच्छा हुआ। मैं छोड आया।
ककिी ठदन आवेश में क्षण में तनकल आये जत
ू ा तो मजु ‍कल होगी।

लेककन र्र जूता छोड आने िे जूते िे मुजक्त नहीं होती। जूता उिका पीछा करने लगा। वह
कागज पर कुछ भी बनाता है तो जूता बन जाता है । वह रजजस्टर पर कुछ ऐिों ही सलख रहा
है कक पाता है जूते ने आकार ले लेना शुरू कर ठदया। उिके िाणों में जूता तर्रनें लगा। यह
बहुत र्बरा गया है उिे ऐिा डर लगने लगा है िीरे -िीरे कक मैं ककिी भी ठदन हमला कर
िकता हूं। तो उिने अपने र्र आकर कहा कक अब मुझे नौकरी पर जाना िीक नहीं, मैं छूटी
लेना चाहता हूं; क्योंकक अब हालत भी ऐिी हो गयी कक मैं दि ू रे का जूता तनकालकर भी मार
िकता हूं। और अपने जत ू े की जरूरत नहीं रह गयी। मेरे हाथ दि ू रे लोगों के पैरों की तरफ
भी बढने की कोसशश करते है ।

तो र्र के लोगों ने िमझा कक वह पागल हो गया है । उिे एक मनोवैज्ञातनक के पाि ले


गये। उि मनोवैज्ञातनक ने कहा, इिकी बीमारी बडी छोटी िी है । इिके मासलक की एक
तस्वीर र्र में लगा लो और उििे कहो, रोज िुबह पााँच जूता िासमघक भाव िे मारा करे । पााँच
जूता मारे तब दलतर जाये—बबल्कुल ररलीजिली। ऐिा नहीं की ककिी ठदन चक
ु जाये। जैिे
लोग ध्यान, जप करते है —बबलकुल वक्त पर पााँच जूता मारे । दलतर िे लौटकर पााँच जूता
मारे । वह आदमी पहले तो बोला, यह क्या पागलपन की बातें है । लेककन भीतर िे उिे खश
ु ी
मालूम हो रही थी। वह है रान हुआ उिने कहा, लेककन मुझे भीतर खश
ु ी मालूम हो रही है ।

तस्वीर टांग ली गयी। और वह रोज पााँच जूते मारकर दलतर गया। पहले ठदन ही जब वह
पााँच जूते मारकर दलतर गया तो उिे एक बडा अनुभव हुआ। मासलक के ितत उिने दलतर
में उतना क्रोि अनुभव नहीं ककया। और 15 ठदन के भीतर तो वह मासलक के ितत अत्यंत
प्रवनयशील हो गया। मासलक को भी है रानी हुई। उिे तो कुछ पता नहीं कक भी क्या चल रहा
है । उिने उिको पूछा कक तुम आजकल बहुत आज्ञाकारी, बहुत प्रवनम्र, बहुत शांत ठदल हो गये
हो। बात क्या है ? उिने कहा कक मत पूतछए, नहीं तो िब गूडगोबर हो जायेगा।

क्या हुआ—तस्वीर को जूते मारने िे कुछ हो िकता है । लेककन तस्वीर को जूते मारने िे वह
जो जूते मारने का भाव है , वह ततरोठहत हुआ, वह इवोपरे ट हुआ, वह वाष्पीभूत हुआ।

खजुराहो के मंठदर या कोणाकघ और पुरी के मंठदर जैिे मंठदर िारे दे श के गांव-गांव में होने
चाठहए।

बाकी मंठदरों की कोई जरूरत नहीं है । वे बेवकूफी के िबूत है । उनमें कुछ नहीं है । उनमें न
कोई वैज्ञातनकता है न कोई अथघ है । न कोई ियोजन है । वे तनपट गाँवारी के िबूत है । लेककन
खजुराहो के मंठदर जरूरी अथघपूणघ है ।

जजि आदमी का मन िेक्ि िे बहुत भरा हो, वह जाकर इन मंठदरों कक मूततघयों पर ध्यान
करे । वह हलका होकर लौटे गा। शांत होकर लौटे गा। तंरों ने जरूर िेक्ि को आध्याजत्मक
बनाने की कोसशश की थी। लेककन इि मुल्क के नीतत शास्री अरे मॉरल िीचिघ है , उन दष्ु टों
ने उनकी बात काक िमाज तक नहीं पहुंचने ठदया। वह मेरी बात भी नहीं पहुंचने दे ना
चाहते।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन—4

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

2 अक्टूबर—1968,

संभोग से समाधि की और —20


Posted on नवम्बर 8, 2010by sw anand prashad

समाधि : संभोग-उजाा का अध्यात्त्मक ननयोजन—5


िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो

यहां िे मैं भारतीय प्रवद्या भवन िे बोल कर जबलपरु वापि लौटा और तीिरे ठदन मझ
ु े एक
पर समला कक अगर आप इि तरह की बातें कहना बंद नहीं कर दे ते है तो आपको गोली क्यों
ने मार ठद जाये? मैंने उत्तर दे ना चाहा था, लेककन वह गोली मारने वाले िज्जन बहुत कायर
मालूम पडे। न उन्होंने नाम सलखा था, न पता सलखा था। शायद वे डरे होंगे कक मैं पुसलि को
न दे दं ।ू ा् लेककन अगर वह यहां कहीं हों—अगर होंगे तो जरूर ककिी झाड के पीछे या ककिी
दीवाल के पीछे तछप कर िून रहे होंगे। अगर वह यहां कहीं हों तो मैं उनको कहना चाहता
हूं। कक पुसलि को दे ने की कोई भी जरूरत नहीं है । वह अपना नाम और पता मुझे भेज दें ।
ताकक में उनको उत्तर दें िकाँू । लेककन अगर उनकी ठहम्मत न हो तो मैं उत्तर यहीं ठदये
दे ता हूं। ताकक वह िुन ले।

पहली तो बात यह है कक इतनी जल्दी गोली मारने की मत करना, क्योंकक गोली मारते ही
जो बात मैं कह रहा हूं। वह परम ित्य हो जायेगी। इिका उनको पता होना चाठहए। जीिि
क्राइस्ट को दतु नया कभी की भल
ू गयी होती। अगर उिको िल ू ी न समली होती। िल
ू ी दे ने
वाले ने बडी कृपा की।
और मैंने तो यहां तक िन
ू ा है जो इनर िककघलि में जो जीवन की गहराईयों की खोज करते
है । उनिे मझ
ु े यह भी ज्ञात हुआ है की जीिि ने खद
ु अपनी िल
ू ी लगवाने की योजना और
षडयंर ककया था। जीिि ने चाहा था कक मुझे िूली लगा दी जाये। क्योंकक िूली लगते ही जो
जीिि ने कहा है वह करोडों-करोडों वषघ के सलए अमर हो जायेगा। और हजारों लोगों के,
लाखों लोगो के काम आ िकेगा।

इि बात की बहुत िंभावना है , क्योंकक जूदाि। जजिने ईिा को तीि रूपये में बेचा था। वह
ईिा के प्यारे िे प्यारे सशष्यों में िे एक था। और यह िंभव नहीं है कक जो वषों िे ईिा के
पाि रहा हो, वह सिफघ तीि रूपये में ईिा को बेच दे । सिवाय इिके कक ईिा ने उिको कहा
हो कक तू कोसशश कर, द‍ु मन िे समल जा और ककिी तरह मुझे उलझादे और िूली लगवा दे ,
ताकक मैं जो कह रहा हूं, वह अमत
ृ का स्थान ले-ले और करोडों लोगों का उद्िार बन जाये।

महावीर को अगर िूली लगी होती तो दतु नया में केवल तीि लाख जैन नहीं होते। तीि करोड
हो िकते थे। लेककन महावीर शांतत िे मर गये, िल
ू ी का उन्हें पता नहीं था। न ककिी ने
लगायी, न उन्होंने लगवाने की व्यवस्था ही की। आज आिी दतु नयां ईिाई है । उिका इिके
सिवाय कोई कारण नहीं कक ईिा अकेला िूली पर लटका हुआ है —न बुद्ि, न मुहम्मद, न
महावीर, न कृष्ण, न राम। िारी दतु नया भी ईिाई हो िकती है । यह िूली पर लटकने िे यह
फायदा हो गया। तो मैं उनिे कहता हूं कक जल्दी मत करना। नहीं तो नुकिान में पड
जाओगे।

दि ू री बात यह कहना चाहता हूं। कक र्बराये न वे। मेरे इरादे खाट पर मरने के है भी नहीं
है । मैं परू ी कोसशश करूंगा कक कोई न कोई गोली मार ही दे । तो मैं खद
ू ही कोसशश करूंगा,
जल्दी उनको करने की आव‍यकता नहीं है। िमय आने पर मैं चाहूंगा कक कोई गोली मार ही
दे । जजंदगी भी काम आती है और गोली लग जाये तो मौत भी काम आती है । और जजंदगी
िे ज्यादा काम आ जाती है । जजंदगी जो नहीं दे पाती है , वह गोली लगी हुई मौत दे जाती है ।
अब तक हमेशा यह भूल की है द‍ु मनों ने। नािमझी की है । िुकरात को जजन्होंने िूली पर
लटका ठदया, जजन्होंने जहर प्रपला ठदया; मंिूर को जजन्होंने िूली पर लटका ठदया। और अभी
गाँडािे ने गांिी को गोली मार दी है । गाँडािे को पता नहीं कक गांिी के भक्त और गांिी के
अनुयायी गांिी को इतने दरू तक स्मरण कराने में कभी िफल नहीं हो िकते थे। जजतना
अकेले गाँडािे ने कर ठदया है ।

और अगर गांिी ने मरते वक्त। जब उन्हें गोली लगी और हाथ जोडकर गाँडािे को नमस्कार
ककया होगा तो बडा अथघपण
ू घ था वह नमस्कार। वह अथघपण
ू घ था कक मेरा अंततम सशष्य िामने
आ गया। अब ये मझ
ु े आखखर और हमेशा के सलए अमर कर ठदये दे रहा है । भगवान ने
आदमी भेज ठदया, जजिकी जरूरत थी।

जजंदगी का ड्रामा, वह जो जजंदगी की कहानी है , वह बहुत उलझी हुई है । वह इतनी आिान


नहीं है । खाट पर मरने वाले हमेशा के सलए मर जाते है । गोली मरने वालों का मरना बहुत
मुज‍कल हो जाता है ।

िुकरात िे ककिी ने पूछा उिके समरों ने कक अब तुम्हें जहर दे ठदया जायेगा। अब तुम मर
जाओगे तो हम तुम्हारे गाडने की कैिी व्यवस्था करें गे? जलाये, कब्र बनाये, क्या करें ? िुकरात
ने कहा पागलों तुम्हें नहीं पता कक तुम मुझे नहीं गाड िकोगे। तुम जब िब समट जाओगे,
तब भी मैं जजंदा रहूंगा। मैंने मरने की तरकीब जो चन
ु ी है , वह हमेशा जजंदा रहने वाली है ।
तो वह समर अगर कहीं हों तो उनको पता होना चाठहए, जल्दी न करें । जल्दी में नुकिान हो
जायेगा। उनका। मेरा कुछ होने वाला नहीं है । क्योंकक जजिको गोली लग िकती है वह मैं
नहीं हूं। और जो गोली लगने के बाद भी पीछे बच जाता है वहीं हूं। तो वह जल्दी न करें ।
और दि ू री बात यह कक वह र्बराये भी न। मैं हर तरह की कोसशश करूंगा कक खाट पर न
मर िकाँू । वह मरना बडा गडबड है । वह बेकार ही मर जाना है । वह तनरथघक मर जाना है ।
मर जाने की भी िाथघकता चाठहए।

और तीिरी बात कक वह दस्तखत करने िे न र्बराये, न पता सलखने िे र्बराये। क्योंकक


अगर मुझे लगे कक कोई आदमी मारने को तैयार हो गया है तो वह जहां मुझे बूलायेगा, मैं
चप
ु चाप बबना ककिी को खबर ककये, वहां आने को हमेशा तैयार हूं। ताकक उिके पीछे कोई
मुिीबत न आये।

लेककन ये पागलपन िझ
ू ते है । इि तरह के िासमघक…..ओर जजि बेचारे ने सलखा है , उिने
यही िोच कर सलखा है कक वह िमघ की रक्षा कर रहा है । उिने यही िोचकर सलखा है कक मैं
िमघ को समटाने की कोसशश कर रहा हूं। वह िमघ की रक्षा कर रहा है । उिकी नीयत में कहीं
खराबी नहीं है । उिके भाव बडे अच्छे है । लेककन बद्
ु धि मूढता की है ।

तो हजारों िाल िे तथाकधथत नैततक लोगों ने जीवन के ित्यों को पूरा-पूरा िकट होने में
बािा डाली है , उिे िकट नहीं होने ठदया गया है । नहीं िकट होने के कारण एक अज्ञात
व्यापक हो गया और उिे अज्ञात—अंिेरी रात में हम टटोल रहे है । भटक रहे है , धगर रहे है ।
और वे मॉरल टीचिघ वे नीततशास्र के उपदे शक,हमारे इि अंिकार के बीच में मंच बनाकर
उपदे श दे ने का काम करते रहते है ।

यह भी िच है कक जजि ठदन हम अच्छे लोग हो जायेंगे, जजि ठदन हमारे जीवन में ित्य की
ककरण आयेगी िमाधि की कोई झलक आयेगी। जजि ठदन हमारा िामान्य जीवन भी
परमात्मा-जीवन में रूपांतररत होने लगेगा। उि ठदन उपदे शक व्यथघ हो जायेगे। उिकी कोई
जरूरत नहीं रह जायेगी। उपदे शक तभी तक िाथघक है , जब तक लोग अंिेरे में भटकते है ।

गांव में धचककत्िक की तभी तक जरूरत है । जब तक लोग बीमार पडते है। जजि ठदन
आदमी बीमार पडना बंद कर दे गा। उि ठदन धचककत्िक को प्रवदा कर दे ना पडेगा। तो
हालांकक धचककत्िक ऊपर िे बीमार का इलाज करता हुआ मालूम पडता है । लेककन भी तर िे
उिके िाणों को आकांक्षा यही होती है । कक लोग बीमार पडते रहें । यह बडी उलटी बात है ।
क्योंकक धचककत्िक जीता है लोगों के बीमार पडने पर। उिका िोफेशन बडा कंट्ाडडक्री है ।
उिका िंिा बडा प्रवरोिी है । कोसशश तो उिकी यह है कक लोग बीमार पडत रहे । और जब
मलेररया फैलता है और ललू की हवाएाँ आती है । तो वह भगवान को एकांत में िन्यवाद दे ता
है । क्योंकक यह िंिे को वक्त आया िीजन है।

मैंने िुना है , एक रात एक मिश


ु ाला में बडी दे र तक कुछ समर आकर खाना-पीना करते रहे ,
शराब पीते रहे । उन्होंने खब
ू मौज की और जब वे चलने लगे आिी रात को तो शराब खाने
के मासलक ने अपनी पत्नी को कहा कक भगवान को िन्यवाद बडे लोग आये। ऐिे लोग रोज
आते रहें तो कुछ ही ठदनों में हम मालामाल हो जायें।

प्रवदा होते मेहमानों को िन


ु ायी पड गया और जजिने पैिे चक
ु ाये थे उिने कहा, दोस्त भगवान
िे िाथघना करो कक हमारा भी िंिा रोज चलता रहे तो हम रोज आयें।

चलते-चलते उिे शराबर्र के मासलक ने पूछा भाई तुम्हारा िंिा क्या है ?

उिने कहां, मेरा िंिा पछू ते हो, मैं मरर्ट पर लकडडयां बेचता हूं, मि
ु ों के सलए। जब आदमी
ज्यादा मरते है , तब मेरा िंिा अच्छा चलता है । तब हम थोडा खश ु हो जाते है । हमारा भी
िंिा अच्छा चलता रहे तो हम तो रोज यहां आये।

धचककत्िक का िंिा है कक लोगों को िीक करें । लेककन फायदा, लाभ और शोषण इिमें है कक
लोग बीमार पडते रहें । तो एक हाथ िे धचककत्िक िीक करता है और उिके िाणों की िाथघना
होती है कक मरीज जल्दी िीक न हो जाये।

इिीसलए पैिे वाले मरीज होने में बडी दे र लगती है । गरीब मरीज जल्दी िीक हो जाया है ;
क्योंकक गरीब मरीज को ज्यादा दे र बीमार रहने िे कोई फायदा नहीं है । धचककत्िक को कोई
फायदा नहीं है । धचककत्िक को फायदा है अमीर मरीज है , तो अमीर मरीज लम्बा बीमार रहता
है । िच तो यह है कक अमीर अक्िर ही बीमार रहते है । यह धचककत्िक की िाथघनाएं काम
कर रही है । उिकी आंतररक इच्छा भी उिके हाथ को रोकती है कक मरीज एकदम िीक ही न
हो जाये।

उपदे शक की जस्थतत भी ऐिी ही है । िमाज जजतना नीततभ्ष्ट फैल जजतना अनाचार फैले
उतना ही उपदे शक का मंच ऊपर उिने लगता है । क्योंकक जरूरत आ जाती है , कक वह लोगों
को कहं ; अठहंिा का पालन करो, ित्य का पालन करो, ईमानदारी स्वीकार करो; यह व्रत पालन
करो, वह व्रत पालन करो। अगर लोग व्रती हों, अगर लोग िंयमी हों, अगर लोग शांत हों,
ईमानदार हों तो उपदे शक मर गया। उिकी कोई जगह न रही।
और ठहंदस्
ु तान में िारी दतु नया िे ज्यादा उपदे शक क्यों है ? ये गांव-गांव गरु
ु और र्र-र्र
स्वामी और िंन्यािी क्यों है ? यह महात्माओं की इतनी भीड और यह कतार क्यों है ?

यह इिसलए नहीं है कक आप बडे िासमघक दे श में रहते है , जहां कक िंत-महात्मा पैदा होते है ।
यह इिीसलए है कक आप इि िमय प्
ृ वी पर िबिे ज्यादा अिासमघक और अनैततक दे श है ।
इिीसलए इतने उपदे शकों को पालने का िे का और िंिा समल गया है । हमारा तो जातीय रोग
हो गया है ।

मैंने िन
ु ा हे कक अमरीका में ककिी ने एक लेख सलखा हुआ था। ककिी समर ने वह लेख मेरे
पाि भेज ठदया। उिमें एक कमी थी, उन्होंने मेरी िलाह चाही। ककिी ने लेख सलखा था
वहां—मजाक का कोई लेख था, उिमें सलखा था कक हर आदमी और हर जाती का लक्षण
शराब प्रपलाकर पता लगाया जा िकता है । कक बेसिक कैरे क्टर क्या है ?

उिने सलखा था कक अगर डच आदमी को शराब प्रपला दी जाये तो वह एकदम िे खाने पर


टूट पडता है , कफर वह ककचन के बाहर ही नहीं तनकलता। कफर वह एकदम खाने की मेज िे
उिता ही नहीं। बि शराब पी कक वह दो-दो, तीन-तीन र्ंटे तक खाना खाता रहता है । अगर
फ्रैंच को शराब प्रपला दी जायें तो शराब पीने के बाद वह एकदम नाच-गाने के सलए तत्पर हो
जाता है । और अंग्रेज को शराब प्रपला ठद जाये तो वह एक दम चप
ु हो कर एक कोने में बैि
जाता है । वह वैिे ही चप
ु बैिा रहता है , और शराब पी ली तो उिका कैरे क्टर है , वह और चप

हो जाता है । ऐिे दतु नया के िारे लोगों के लक्षण थे। लेककन भूल िे यह अज्ञान के वश
भारत के बाबत कुछ भी नहीं सलखा था, तो ककिी समर ने मुझे लेख भेजा और कहा कक आप
भारत के कैरे क्टर की बाबत क्या कहते है । अगर भारतीय को शराब प्रपलायी जायें तो वह
क्या करे गा।

तो मैंने कहा कक वह तो जग जाठहर बात है । भारतीय शराब प्रपयेगा। और तत्काल उपदे श


दे ना शुरू कर दे गा। यह उिका कैरे क्टरजस्टक है , वह उिका जातीय गुण है ।

यह जो—यह जो उपदे शकों का िमाज और िाि,ु िंतों और महात्माओं की लंबी कतार है , ये


रोग के लक्षण है , ये अनीतत के लक्षण है । और मजा यह है कक इनमें िे कोई भी भीतर ह्रदय
िे कभी नहीं चाहता कक अनीतत समट जाये, रोग समट जाये; क्योंकक उनके समटने के िाथ वह
भी समट जाते है ,िाणों की पुकार तो यही कहती है कक रोग बना रहे और बढता रहे ।

और उि रोग को बढाने के सलए जो िबिे िुगम उपाय है वह यह है , कक जीवन के िंबंि में


िवािंगीण ज्ञान उत्पन्न न हो िके। और जीवन के जो िबिे ज्यादा गहरे केंि है , जजनके
अज्ञान के कारण अनीतत और व्यसभचार और भ्ष्टाचार फैलता है , उन केंिों को आदमी कभी
भी न जान िकें क्योंकक उन केंिों को जान लेने के बाद मनुष्य के जीवन िे अनीतत तत्काल
प्रवदा हो िकती है ।

और मैं आपिे कहना चाहता हूं ा् कक िेक्ि मनुष्य की अनीतत का िवाधिघक केंि है । मनुष्य के
व्यसभचार का, मनुष्य की प्रवकृतत का िबिे मौसलक, िबिे आिारभूत केंि और इिसलए
िमघगुरू उिकी बबलकुल बात नहीं करना चाहते है ।

एक समर ने मुझे खबर सभजवायी है कक कोई िंत-महात्मा िेक्ि की बात नहीं करता। और
आपने िेक्ि की बात की तो हमारे मन में आपका आदर बहुत कम हो गया है ।

मैंने उनिे कहा,उिमें कुछ गलती नहीं हुई। पहले आदर था, उिमें गलती थी। इिमें क्या
गलती हुई? मेरे ितत आदर होने की जरूरत क्या है ? मुझे आदर दे ने का ियोजन क्या है ? मैंने
कब मांगा है कक मुझे आदर दें ? दे ते थे तो आपकी गलती थी। नहीं दे ते तो आपकी कृपा, मैं
महात्मा नहीं रहा। मैंने कभी चाहा होता कक मैं महात्मा होऊं तो मुझे बडी पीडा होती। मैं
कहता, क्षमा करना भूल िे ये बातें मैंने कह दीं।

मैं महात्मा था नहीं, मैं महात्मा हूं नहीं, मैं महात्मा होना चाहता नहीं।

जहां इतनी बडे जगत में इतने दीन-हीन लोग है , वहां एक आदमी महात्मा होना चाहे , उििे
ज्यादा तनम्न िवतृ त और स्वाथघ िे भरा हुआ आदमी नहीं है । जहां इतने दीन-हीन आत्माओं
का प्रवस्तार है , वहां महात्मा होने की कल्पना और प्रवचार ही पाप है ।

महान मनुष्यता में चाहता हूं। महान मनुष्य में चाहता हूं।

महात्मा होने की मेरे मन में कोई और आकांक्षा नहीं है । महात्माओं के ठदन प्रवदा हो जाने
चाठहए। महात्माओं की कोई जरूरत नहीं है । महान मनुष्य की जरूरत है । महान मनुष्यता की
जरूरत है । ग्रेट मैन नही, ग्रेट ह्रुसमतनटी। बडे आदमी बहुत हो चक
ु े । उनिे क्या फायदा हुआ।
अब बडे आदसमयों की जरूरत नहीं, बडी आदसमयत की जरूरत है ।

तो मुझ…
े ..मुझे अच्छा लगा कम िे कम एक आदमीका इल्युजन तो टूटा। एक आदमी तो
डडिइल्यज
ू ंड हुआ। एक आदमी को तो यह पता चल गया कक यह आदमी महात्मा नहीं है ।
एक आदमी का भ्म टूट गया,यह भी बडी बात है । वह शायद िोचे होंगे कक इि भांतत
कहकर वह शायद मुझे िलोभन दे रहे है कक मुझे महात्मा और महप्रषघ बनाया जा िकता है ।
अगर मैं इि तरह की बातें न करूं।
आज तक महाप्रषघयों और महात्माओं को इिी तरह बनाया गया है । इिीसलए उन कमजोर
लोगों ने इि तरह की बातें नहीं की, जजनिे महात्मापन तछन िकता था। अपना महात्मापन
बचा रखने के सलए—उि िलोभन में जीवन का ककतना अठहत हो िकता है इिका उन्होंने
कोई भी ख्याल नहीं ककया।

मुझे धचंता नहीं है , मुझे प्रवचार भी नहीं है , मुझे ख्याल भी नहीं है । मुझे र्बराहट ही होती है ,
जब कोई मुझे महात्मा मानना चाहे गा।

और आज की दतु नया में महात्मा में महात्मा बन जाता और महप्रषघ बन जाना, इतना आिान
है । जजिका कोई ठहिाब नहीं। हमेशा आिान रहा है । हमेशा आिान रहे गा। वह िवाल नहीं
है । िवाल यह है कक महान मनष्ु य कैिे पैदा हो? उिके सलए हम क्या कर िकते है , क्या
िोच िकते है । क्या खोज िकते है । और मझ
ु े लगता है कक मैंने बतु नयादी िवाल पर जो
बातें आपिे कहीं है । वह आपके जीवन में एक ठदशा तोडने में िहयोगी हो िकती है । उनिे
एक मागघ िकट हो िकता है । और क्रमश: आपकी वािना का रूपांतरण आत्मा की ठदशा में
हो िकता है । अभी हम वािना है , आत्मा नहीं। कल हम आत्मा भी हो िकते है । लेककन वह
होंगे कैिे? इिी वािना के िवािंग रूपांतरण िे इिी शजक्त को तनरं तर ऊपर ले जाने िे।

जैिा मैंने कल आपको कहा, उि िंबंि में भी बहुत िे ि‍न हे । उिके िंबंि में एक बात
कहूंगा।

मैंने आपको कहा कक िंभोग में िमाधि की झलक का स्मरण रखें , ररमेम्बररंग रखें और उि
बबंद ु को पकडने की कोसशश करें । उि बबंद ु को जो प्रवद्युत की तरह िंभोग के बीच में
चमकती है िमाधि का। एक क्षण को जो चमक आती है , और प्रवदा हो जाती है । उि बबंद ु को
पकडने की कोसशश करें कक वह क्या है । उिे जानने की कोसशश करें । उिको पकड लें पूरी
तरह िे कक वह क्या है। और एक दफा उिे आपने पकड सलया तो उि पकड में आपको
ठदखायी पडेगा कक उि क्षण में आप शरीर नहीं रह जाते है —बॉडीलेिनेि। उि क्षण में आप
शरीर नहीं है । उि क्षण में एक झलक की तरह आप कुछ और हो गये है । आप आत्मा हो
गये है ।

और वह झलक आपको ठदखायी पड जाये तो कफर उि झलक के सलए ध्यान के मागघ िे श्रम
ककया जा िकता है । उि झलक को कफर ध्यान की तरह िे पकडा जा िकता है । और अगर
वह ज्ञान हमारे जानने ओर जीवन का ठहस्िा बन जाय तो आपके जीवन में िेक्ि की कोई
जगह नहीं रह जायेगी।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)


ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन—4

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

2 अक्टूबर—1968,

संभोग से समाधि की और —21


Posted on नवम्बर 9, 2010by sw anand prashad

समाधि : संभोग-उजाा का अध्यात्त्मक ननयोजन—5

िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो

एक समर ने पूछा है कक अगर इि भांतत िेक्ि प्रवदा हो जायगा तो दतु नया में िंततत का
क्या होगा? अगर इि भांतत िारे लोग िमाधि का अनुभव करके ब्रह्मचयघ को उपलब्ि हो
जायेंगे तो बच्चों का क्या होगा।

जरूर इि भांतत के बच्चे पैदा नहीं होंगे। जजि भांतत आज पैदा होते है । वह ढं ग
कुत्ते,बबजल्लयों और इजल्लयों का तो िीक है , आदसमयों का िीक नहीं हे । यह कोई ढं ग है ? यह
कोई बच्चों की कतार लगाये चले जाना—तनरथघक, अथघहीन, बबना जाने बझ
ु े—यह भीड पैदा
ककये जाना। यह ककतनी हो गयी? यह भीड इतनी हो गयी है कक वैज्ञातनक कहते है कक अगर
िौ बरि तक इिी भांतत बच्चे पैदा होते रहें और कोई रूकावट नहीं लगाई गई, तो जमीन पर
टहनी ठहलाने के सलए भी जगह नहीं बचेगी। हमेशा आप िभा में ही खडे हुए मालम
ू होंगे।
जहां जायेंगे वहीं, िभा मालूम होंगी। िभी करना बहुत मुज‍कल हो जायेगा। टहनी ठहलाने की
जगह नहीं रह जाने वाली है िौ िाल के भीतर, अगर यही जस्थतत रही।
वह समर िीक पूछते है कक अगर इतनी ब्रह्मचयघ अपलब्ि होगा तो बच्चे कैिे पैदा होंगे?
उनिे भी मैं एक और बात कहना चाहता हूं, वह भी अथघ की है और आपके ख्याल में आ
जाना चाठहए, ब्रह्मचयघ िे भी बच्चे पैदा हो िकते है । लेककन ब्रह्मचयघ िे बच्चों के पैदा करने
का िारा ियोजन और अथघ बदल जायेगा। काम िे बच्चें पैदा होते है । िेक्ि िे बच्चे पैदा
होते है —बच्चे पैदा करने के सलए कोई िेक्ि में नहीं जाता है ।

बच्चे पैदा होना आकजस्मत है , एक्िीडेंट है ।

िेक्ि में आप जाते है ककिी और कारण िे बीच में आ जाते है , बच्चों के सलए आप कभी
िेक्ि में नहीं जाते। बबना बल
ु ाये मेहमान है बच्चे और इिीसलए बच्चों के ितत आपके मन
में वह िेम नहीं हो िकता। जो बबना बल
ु ाये मेहमानों के ितत होता है । र्र में कोई आ जाये
अततधथ बबना बल
ु ाये तो जो हालत र्र में हो जाती है —बबस्तर भी लगाते है उिको िल
ु ाने के
सलए, खाना भी खखलाते है , आवभगत भी करते है , हाथ भी जोडते है , लेककन पता होगा आपको
कक बबना बुलाये मेहमान के िाथ क्या र्र की हालत हो जाती है । वह िब ऊपर-ऊपर होता
है । भीतर कुछ भी नहीं होता। भी कुछ भी नहीं। और पूरे वक्त यही इच्छा होती है कक कब
आप बबदा हों, कब आप जायें।

बबना बुलाये बच्चों के िाथ भी दव्ु यघवहार होगा। िद्व्यवहार हो ही नही िकता। क्योंकक उन्हें
हमने कभी चाहा न था, कभी हमारे िाणों की बह आकांक्षा नहीं थी। हम तो ककिी और ही
तरफ गये थे। वह बाईिॉडक्ट हैं, िोडेक्ट नहीं। आज के बच्चे िॉडक्ट नहीं है । बाईिॉडक्ट है ।
वे उत्पती नहीं है । वह उत्पती के िाथ, जैिे गेहूाँ के िाथ भि
ू ा पैदा हो जाता है । वैिी हालत
है । आपका प्रवचार आपकी कामना दि ू री थी, बच्चे बबलकुल आकजस्मक है ।

और इिीसलए िारी दतु नया में हमेशा िे यह कोसशश चली है वात्स्यायन िे लेककर आज तक
यह कोसशश चली है कक िेक्ि को बच्चों िे ककिी तरह मुक्त कर सलया जाये। उिी िे बथघ
कंट्ोल प्रवकासित हुआ। िंततत तनयमन प्रवकसित हुआ, कृबरम िािन प्रवकसित हुए कक हम
बच्चों िे भी बच जायें और िेक्ि को भी भोग लें। बच्चों िे बचने की चेष्टा हजारों िाल िे
चल रही है । आयुवेद के तीर-चार-पााँच हजार िाल पुराने ग्रंथ इिका प्रवचार करते है और अभी
आज का आितु नकतम स्वास््य का समतनस्टर भी इिी की बात करता है । क्यों? आदमी ने ये
ईजाद करने की चेष्टा क्यों की?

बच्चे बडे उपिव का कारण हो गये है । वे बीच में आते हैं , जजम्मेदारी ले आते है । और भी
एक खतरा—बच्चों के आते िे स्री पररवततघत हो जाती है ।
पुरूष भी बच्चो नहीं चाहता है । नहीं होते है तो चाहता है इि कारण नहीं की बच्चों के िेम
है , बजल्क अपनी िंपतत िे िेम है । कल मासलक कौन होगा। बच्चों िे िेम नहीं है । बाप जब
चाहता है कक बच्चा हो जाये एक र्र में , लडका नहीं है , तो आप यह मत िोचना कक लडके
के सलए बडे उिके िाण आतुर हो रहे है । नहीं, आतुरता यह हो रही है कक मैं रूपये कमा-कमा
कर मरा जा रहा हूं, न मालूम कौन कब्जा कर लेगा। एक हकदार मेरे खन
ू का उिको बचाने
के सलए होना चाठहए।

बच्चों के सलए…कोई कभी नहीं चाहता कक बच्चे आ जायें। बच्चों िे हम बचने की कोसशश
करते रहे है । लेककन बच्चे पैदा होते चले गये। हमने िंभोग ककया और बच्चे बीच में आ
गये। वह उिके िाथ जुडा हुआ िंबंि था। यह काम जन्य िंततत है । यह बाई िॉडक्ट है
िेक्िुअसलटी कीओर इिीसलए मनुष्य इतना रूग्ण इतना,दीन-हीन इतना उदाि इतना धचंततत
हो गया है ।

ब्रह्मचयघ िे भी बच्चे आयेंगे,लेककन वे बच्चे िेक्ि की बाईिॉडक्ट नहीं होगें । उन बच्चों के


सलए िेक्ि एक वैठहकल होगा। उन बच्चों को लाने के सलए िेक्ि एक माध्यम होगा। िेक्ि
िे कोई िंबंि नहीं होगा।

जैिे एक आदमी बैलगाडी में बैिकर कहीं गया। उिे बैलगाडी िे कोई मतलब है ? वह हवाई
जहाज में भी बैिकर जा िकता था। आप यहां िे बैिकर ठदल्ली गये हवाई जहाज में । हवाई
जहाज िे आपको कोई मतलब है । कोई भी िंबंि है । कोई भी नाता है ? कोई नाता नहीं है ,
नाता केवल ठदल्ली जाने िे है । हवाई जहाज सिफघ वैठहकल है , सिफघ माध्यम है ।

ब्रह्मचयघ को जब लोग उपलब्ि हों और िंभोग की यारा िमाधि तक हो जाये, तब भी वे


बच्चे चाह िकते है । लेककन उन बच्चों का जन्म, उत्पजत्त होगी। वह िॉडक्ट होंगे। वह िज
ृ न
होंगे। िेक्ि सिफघ माध्यम होगा।

और जजि भांतत अब तक यह कोसशश की गयी है —इिे बहुत गौर िे िन ु लेना—जजि भांतत


अब तक यह कोसशश की गयी है । कक बच्चों िे बचकर िेक्ि को भोगा जा िके। वह नयी
मनष्ु यता यह कोसशश कर िकती है कक िेक्ि िे बचकर बच्चे पैदा ककये जा िके। मेरी आप
बात िमझे?

ब्रह्मचयघ अगर जगत में व्यापक हो जाये तो हम एक नयी खोज करें गे। जैिी पुरानी खोज
की है कक बच्चों िे बचा जा िके और िेक्ि का अनुभव पूरा हो जाये। इििे उल्टा ियोग
आने वाले जगत में हो िकता हे । जब ब्रह्मचयघ व्यापक होगा। िेक्ि िे बचा जा िके और
बच्चे हो जाये।
और यह हो िकता है , इिमें कोई भी कठिनाई नहीं है । इिमें जरा भी कठिनाई नहीं है। यह
हो िकता है । ब्रह्मचयघ िे जगत का अंत होने कोई िंबंि नहीं है ।

जगत का अंत होने का िंबंि िेक्िुअसलटी िे पैदा हो गया है । तुम करते जाओ बच्चे पैदा
और जगत का अंत हो जायेगा। न एटम बम की जरूरत है , न हाइड्रोजन बम की जरूरत है ।
यह बच्चों की इतनी बडी तादाद, यह कतार यह काम; यह काम िे उत्पन्न हुए कीडों-मकोडों
जैिी मनुष्यता यह अपने आप नष्ट हो जायेगी।

ब्रह्मचयघ िे तो एक और ही तरह का आदमी पैदा होगा। उिकी उम्र बहुत लंबी हो िकती है ।
उिकी उम्र इतनी लंबी हो िकती है । जजिकी हम कोई कल्पना भी नहीं कर िकते। उिका
स्वास््य अद्भत
ु हो िकता है उिमें बीमारी पैदा न हो। उिका मजस्तष्क वैिा होगा। जैिा
कभी-कभी कोई िततभा ठदखायी पडती है । उिके व्यजक्त में िग
ु ंि ही और होगी। बल ही और
होगा, ित्य ही और होगा। िमघ ही और होगा। िमघ ही और होगा, िमघ ही और होगा। वह िमघ
को िाथ लेकर पैदा होगा।

हम अिमघ को िाथ लेकर पैदा होते है और अिमघ में जीते है और अिमघ में ही मर जाते है ।
इिसलए ठदन-रात जजंदगी भर िमघ की चचाघ करते रहते है । शायद उि मनुष्य में िमघ की
कोई चचाघ नहीं होगी, क्योंकक िमघ लोगों का जीवन होगा। हम चचाघ उिी की करते है जो
हमारा जीवन नहीं होता। जो जीवन होता है उिकी हम चचाघ नहीं करते है । हम िेक्ि की
चचाघ नहीं करते क्योंकक हम जजंदगी में उपलब्ि नहीं कर पाते। बातचीत करके उिको पूरा
कर लेते है ।

आपने ख्याल ककया होगा, स्रीयां पुरूषों िे ज्यादा लडती है । स्रीयां लडती ही रहती है , कुछ न
कुछ खटपट पाि पडोि….िब तरफ चलती रहती है । कहते है कक दो स्रीयां िाथ-िाथ बहुत
दे र तक शांतत िे बैिी रहें , यह बहुत कठिन हे ।

मैंने तो िन
ु ा है कक चीन में एक बार बडी िततयोधगता हुई और उि िततयोधगता में चीन के
िबिे बडे झि ू बोलने वाले लोग इक्िे हुए। झिू बोलने की िततयोधगता थी कक कौन िबिे
झि
ू बोलता है उिको पहला परु स्कार समल जाए।

एक आदमी को पहला पुरस्कार समला। और उिने यह बात बोली थी सिफघ कक मैं एक बग़ीचे
में गया। दो औरतें एक ही बेंच पर पााँच समनट िे चप
ु चाप बैिी थी।
और लोगों ने कहा कक इििे बडा झूि कुछ भी नहीं हो िकता हे । यह तो अल्टीमेट अनटुथ
हो गया। और भी बडी-बडी झूि लोगों ने बोली थी। उन्होंने कहा, यह िब बेकार है , पुरस्कार
इिको दे दो। वह आदमी बाजी मार ले गया।

लेककन कभी आपने िोचा कक स्रीयां इतनी बातें क्यों करती है ? पुरूष काम करते है , जस्रयों के
हाथ में कोई काम नहीं है । और काम नहीं होता है तो बात होती है ।

भारत इतनी बातचीत क्यों करता है ? वही जस्रयों वाला दग


ु ुणघ है । काम कुछ भी नहीं है —
बातचीत-बातचीत।

ब्रह्मचयघ िे एक नये मनुष्य का जन्म होगा। जो बातचीत करने वाला नहीं जीने वाला होगा।
वह िमघ की बात नहीं करे गा। िमघ को जीयेगा। लोग भूल ही जायेंगे कक िमघ कुछ है , वह
इतना स्वभाप्रवक हो िकता है । उि मनुष्य के बाबत प्रवचार भी अद्भुत है । वैिे कुछ मनुष्य
पैदा होते है । आकजस्मक था उनका पैदा होना।

कभी एक महावीर पैदा हो जाता है । ऐिा िंद


ु र आदमी पैदा हो जाता है । कक वह वस्र पहले
तो उतना िुंदर न मालूम पडे। नग्न खडा हो जाता है । उिके िौंदयघ की िुगंि फैल जाती है ।
िब तरफ। लोग महावीर को दे खने चले आते है । वह ऐिा मालूम होता है , जैिे कोई
िंगमरमर की िततमा हो। उिमें इतना वीयघ िकट होता है कक—उिका नाम तो विघमान था—
लोग उिको महावीर कहने लगते है । उिके ब्रह्मचयघ का तेल इतना िकट होता है कक लोग
असभभूत हो जाते है । कक वह आदमी ही और है ।

कभी एक बुद्ि पैदा होता है , कभी एक क्राइस्ट पैदा होता है , कभी एक कंलयूसशयि पैदा होता
है । पूरी मनुष्य जातत के इततहाि में दि-पच्चीि नाम हम धगन िकते है , जो पैदा हुए है ।

जजि ठदन दतु नया में ब्रह्मचयघ िे बच्चे आयेंगे। और यह शब्द भी िुनना,आपको लगेगा कक
ब्रह्मचयघ िे बच्चे। मैं एक नये ही कंिेप्ट की बात कर रहा हूं। ब्रह्मचयघ िे जजि ठदन बच्चे
आयेंगे, उि ठदन िारे जगत के लोग ऐिे होंगे। ऐिे िुंदर, ऐिे शजक्तशाली,ऐिे मेिावी, ऐिे
प्रवचार शील—कफर ककतनी दे र होगी उन लोगों को कक वे परमात्मा को न जानें। वे परमात्मा
को इिी भांतत जानेंगे, जैिे हम रात को िोते है ।

लेककन जजि आदमी को नींद नहीं आती, उििे अगर कोई कहं कक मैं सिफघ तककये पर िर
रखता हूं और िौ जाता हूं, तो वह आदमी कहे गा। कक यह बबलकुल झूि है , ऐिा हो नहीं
िकता मैं तो िारी रात करवटें ही बदलता रहता हूं, उिता हूं, बैिता हूं,माला फेरता हूं, गाय-भैंि
धगनता हूं, लेककन कुछ नहीं—नींद आती ही नहीं। आप झूि कहते है । ऐिे कैिे हो िकता है ।
कक तककये पर िर रखा है और नींद आ जाये। आप िरािर झूि बोलते हो। क्योंकक मैंने तो
बहुत ियोग करके दे ख सलया; नींद तो कभी नहीं आती, रात-रात गुजर जाती है ।

अमरीका में न्यय


ू ाकघ जैिे नगरों में तीि िे लेकर चालीि िततशत लोग नींद की दवायें लेकर
िो रहे है । और अमरीकी वैज्ञातनक कहते है कक िौ वषघ के भीतर न्यूयाकघ जैिे नगर में एक
भी आदमी िहज रूप िे िौ नहीं िकता,उिे दवा लेनी ही पडेगी। तो यह हो िकता है कक
न्यूयाकघ में िौ िाल बाद होगा,दो िौ िाल बाद ठहंदस्
ु तान में होगा; क्योंकक ठहंदस्
ु तान के नेता
इि बात के पीछे पडे है कक हम उनका मुकाबला करके रहें गे। हम उनिे पीछे नहीं रह िकते
है । वे कहते है , हम उनिे पीछे नहीं रह िकते उन की िब बबमाररयों को हम आत्म िात कर
ही चैन लेंगे।

तो यह हो िकता है कक पााँच िौ िाल बाद दतु नया के लोग नींद की दवा लेकर ही िोये।
और बच्चा जब पहली दफा पैदा हो मां के पेट िे तो वह दि
ू न मांगे, वह कहं ट्े न्कोलाइजर,
नहीं मैं िो नहीं पाया तम्
ु हारे पेट में , ट्े न्कोलाइजर कहां है । तो पााँच िौ िाल बाद उन लोगों
को यह प्रव‍वाि ठदलाना कठिन होगा कक आज िे पााँच िौ िाल पहले िारी मनुष्यता आाँख
बंद करते ही िो जाती थी। वे कहें गे इंपासिबल,यह अिंभव है , यह बात हो नहीं िकती। ये
बात कैिे हो िकती है ।

मैं आपिे कहता हूं उि ब्रह्मचयघ िे जो जीवन उपजेगा, उिको यह प्रव‍वाि करना कठिन हो
जायेगा कक लोग चोर थे, लोग बेईमान थे, लोग हत्यारे थे। लोग आत्म-हत्याएाँ कर लेते थे।
लोग जहर खाते थे। लोग शराब पीते थे। लोग छुरे भोंकते थे, युद्ि करते थे। उनको प्रव‍वाि
करना मुज‍कल हो जायेगा। काम िे अब तक उत्पती हुई है । और वह भी उि काम िे जो
कफजजयोलॉजजकल िे ज्यादा नहीं है ।

एक अध्याजत्मक काम का जन्म हो िकता है । और एक नये जीवन का िारं भ हो िकता हे ।


उि नये जीवन के िारं भ के सलए ये थोडी िी बातें , इि चार ठदनों में मैंने आपिे कहीं है ।
मेरी बातों को इतने िेम और इतनी शांतत िे—और ऐिी बातों को, जजन्हें िेम और शांतत िे
िुनना बहुत मुज‍कल हो गया है । बडी कठिनाई मालूम पडी होगी।

एक समर तो मेरे पाि आये और कहने लगे कक मैं डर रहा था कक कहीं दि बीि आदमी खडे
होकर यह न कहने लगें कक बंद कररये। ये बातें नहीं होनी चाठहए। मैंने कहा, इतने ठहम्मत
वर आदमी भी होते तो भी िीक था। इतने ठहम्मत वर आदमी भी कहां है कक ककिी को कह
दें कक बंद कररये यह बात। इतने ही ठहम्मत वर आदमी इि मुल्क में होते तो बेवक़ूफों की
कतार जो कुछ भी कह रही है मुल्क में , वह कभी की बंद हो गयी होती। लेककन वह बंद नहीं
हो पा रही है ।
मैंने कहा कक मैं ितीक्षा करता हूं कक कभी कोई बहादरू आदमी खडे होकर कहे गा कक बंद करे
ये बात। उििे कुछ बात करने का मजा होगा। तो ऐिी बातों को, जजनिे कक समर डरे हुए थे
कक कहीं कोई खडे होकर न कह दे , आप इतने िेम िे िुनते रहे , आप बडे भले आदमी हे ।
और जजतना आपका ररण मानूं उतना कम है ।

अंत में यही कामना करता हूं परमात्मा िे कक ित्येक व्यजक्त के भीतर जो काम है , वह राम
के मंठदर तक पहुंचने की िीढी बन िके। बहुत-बहुत िन्यवाद। और अंत में िबके भीतर बैिे
परमात्मा को िणाम करता हूं। मेरे िणाम स्वीकार करें ।

( क्रमश: अगले अंक में ………………दे खें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन—4

गोिा ललया टैंक, बम्बई,

2 अक्टूबर—1968,

संभोग से समाधि की और —22


Posted on नवम्बर 11, 2010by sw anand prashad

यौन : जीिन का ऊजाा-आयाम–6


िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो

िमघ के दो रूप है । जैिा िभी चीजों के होत है । एक स्वस्थ और एक अस्वस्थ।

स्वस्थ िमघ जो जीवन को स्वीकार करता है । अस्वस्थ िमघ जीवन को अस्वीकार करता है ।

जहां भी अस्वीकार है , वहां अस्वास््य है जजतना गहरा अस्वीकार होगा, उतना ही व्यजक्त
आत्मर्ाती है । जजतना गहरा स्वीकार होगा, उतना ही व्यजक्त जीवनोन्मुक्त होगा।

ऐिे िमघ शस्र भी है , जो स्री पुरूष के बीच ककिी तरह की कलह, द्वंद्व और िंर्षघ नहीं
करते। उन्हीं तरह के िमघ-शास्रों का नाम तंर है । और मेरी मान्यता यह है कक जजतना गहरी
तंर की पहुंच है जीवन में , उतनी क्षुि शास्रों की नहीं है । जहां तनषेि ककया गया है । मैं तो
िमथघन में नहीं हूं। क्योंकक मेरी मान्यता ऐिी है कक जीवन और परमात्मा दो नहीं है ।
परमात्मा जीवन की गहनत्म अनभ ु तू त है । और मोक्ष कोई िंिार के प्रवपरीत नहीं है । बजल्क
िंिार के अनभ
ु व में ही जाग जाने का नाम है ।

मैं पूरे जीवन को स्वीकार करता हूं—उिके िमस्त रूपों में ।

स्री-पुरूष इि जीवन के दो अतनवायघ अंग है । और एक अथघ में परू


ु ष भी अिरू ा है , और एक
अथघ में स्री भी अिरू ी है । उनकी तनकटता जजतनी गहन। हो िके उतना ही एक का अनभ
ु व
शुरू होता है । तो मेरी दृजष्ट में स्री-पुरूष के िेम में परमात्मा की पहली झलक उपलब्ि होती
है । और जजि व्यजक्त को स्री-पुरूष के िेम में परमात्मा की पहली झलक उपलब्ि नहीं होती,
उिे कोई भी झलक उपलब्ि होनी मुज‍कल हे ।
स्री पुरूष के बीच जो आकषघण है , वह अगर हम िीक िे िमझें तो जीवन का ही आकषघण
है , और गहरे िमझें तो स्री-पुरूष के बीच जो आकषघण है वह परमात्मा की ही लीला का
ठहस्िा है । उिका ही आकषघण है । तो मेरी दृजष्ट में उिके बीच को आकषघण में कोई भी पाप
नहीं है ।

लेककन क्या कारण है , स्री–पुरूष को कुछ िमों ने, कुछ िमघ शस्रों ने कुछ िमघ गुरूओं ने एक
शरत
ु ा का भाव पैदा कर ठदया है । गहरे में एक ही कारण है । मनुष्य के अहं कार पर िबिे
बडी चोट िेम में पडती है । जब एक पुरूष एक स्री के िेम में पड जाता है । या स्री एक
पुरूष के िेम में पडती है । तो उन्हें अपना अहं कार तो छोडना ही पडता है। िेम की पहली
चोट अहं कार पर होती है । तो जो अतत अहं कारी हैं, वे िेम िे बचें गे। बहुत अहं कारी व्यजक्त
िेम नहीं कर िकता, क्योंकक वह दांव पर लगाना पडेगा िेम।

िेम का मतलब ही यह है कक मैं अपने िे ज्यादा मल्


ू यवान ककिी दि ू रे को मान रहा हूं,
उिका मतलब ही यह है कक मेरा िखु गौन है , अब ककिी दि ू रे का िुख ज्यादा महत्वपण ू घ है
और जरूरत पडे तो मैं अपने पूरा समटा िकता हूं। ताकक दि ू रा बच िके। और कफर िेम की
जो िकक्रया है , उिका मतलब ही है कक एक दि
ू रे में लीन हो जाना।

शरीर के तल पर यौन भी इिी लीनता का उपाय है —शरीर के तल पर। िेम और गहरे तल


पर इिी लीनता का उपाय है । लेककन दोनों लीनताएं—एक दि
ू रे में डूब जाना है , और एक हो
जाना; एक लयूजन, फािला समट जाये और कहीं मेरा ‘’मैं’’ खो जाये; अजस्तत्व रह जाय, ‘’मैं’’
का कोई भाव न रहो।

तो िेम िे िबिे ज्यादा पीडा उनको होती है । जजनको अहं कार की कठिनाई है । तो अहं कारी
व्यजक्त िेम नहीं कर िकता है । अहं कारी व्यजक्त िेम के ही प्रवरोि में हो जायेगा, और
अहं कारी व्यजक्त काम के भी प्रवरोि में हो जायेगा। ऐिे अहं कारी व्यजक्त अगर िासमघक हो
जायें तो उनिे भी िमघ का जन्म होता है । वह रूग्ण िमघ है । और ऐिे अहं कारी व्यजक्त
अक्िर िासमघक हो जाते है । क्योंकक उन्हें जीवन में अब कहीं जाने का उपाय नहीं रह जाता।

जजिका िेम का द्वार बंद है , उिके जीवन का भी द्वार बन्द हो गया। और जजिे िेम का
अनभ
ु व नहीं हो रहा है ; उिके जीवन में दुःु ख ही दुःु ख रह गया। अब इि दुःु ख िे ऊब रहे है ।
इिसलए ऊबरने का कोई रास्ता खोज रहे है । वह िेम में खो नहीं िकता तो अब वह कहीं
और खोने का रास्ता खोज रहा है । तो वह परमात्मा की कल्पना करे गा, मोक्ष की कल्पना
करे गा। लेककन उिका परमात्मा और मोक्ष अतनवायघ रूप िे िंिार के प्रवरोि में होगा। क्योंकक
वह िंिार के प्रवरोि में है । िंिार का मतलब है : िेम के प्रवरोि में है , शरीर के प्रवरोि में है ।
तो उिका जो परमात्मा है उिकी कल्पना का वह प्रवपरीत हो गया िंिार के। एक अथघ में
िंिार का द‍ु मन हो गया।

ऐिा जो आदमी िासमघक हो जाये तो रूग्ण िमघ पैदा होगा। और ऐिे लोग अक्िर िासमघक हो
जाते है । ऐिे लोग शास्र भी सलखते है , ऐिे लोग अपने प्रवचार का िचार भी करते है , और
दतु नया में बहुत दुःु खी लोग है । वे इि आशा में कक इि तरह के प्रवचारों िे आनन्द समलेगा,
वे भी इि तरफ झुकते है। और दतु नया में िभी के पाि थोडा बहुत अहं कार हे । तो जजनके
भी अहं कार को थोडा बढावा पाने की इच्छा हो, वे इि और झुक जाते है ।

अहं कारी आदमी हमेशा आक्रामक होता है । तो वह अपने िमघ को लेकर भी आक्रमण करता
है । दि
ू रों पर। उनको कनवटघ करता, उनको िमझाता-बझ
ु ाता, बदलता है । और चकंू क वह काम
जीवन के िामान्य िंबंिों िे अपने को दरू रखता है । स्वभावत: ऐिा लगता है कक वह बडा
त्याग कर रहा है । और जजन चीजों िे हमें िख
ु समल रहा है , उन िबको छोड रहा है । इिसलए
हमारे मन में भी आदर पैदा होता है ।

आदर तभी पैदा होता है , जब हमिे प्रवपरीत कोई कुछ कर रहा है । जो हम न कर पा रहे हों।
वह कोई कर रहा हो तो आदर पैदा होता है । और वह आक्रामक है , अहं कारी है । वह िब भांतत
अपने प्रवचार को हमारे ऊपर थोपने की कोसशश करता है । तो िेम जो वह, पाप हो जाता है ।
िेम भी करते है और भीतर कहीं गहरे में यह भी लगता रहता है । कक कुछ गलत कर रहे है ।
तो िेम जो है , कुछ पाप कर रहा है । इिका पररणाम यह होता है कक िेम िे जो भी िुख
समलता था, वह समलना बंद हो जाता है । िेम जारी रहता है और िुख इि अपराि भाव के
कारण समलना बंद कहो जाता है ।

जजि चीज में भी अपराि भाव पैदा हो जाय, उिमे िुख नहीं समल िकता।

िख
ु के सलए पहली बात जरूरी है कक मन में अहो भाव हो, अपराि भाव न हो।

तो पुरूष का मन है कक स्री को िेम करे , स्री का मन है कक पुरूष को िेम करे । यह


स्वभाप्रवक है । नैिधगघक, कुछ इिमें बुरा नहीं है । लेककन अब वह जो अपराि पैदा कर दें गे
त्यागी वह जहर बन जायेगा। तो स्री-पुरूष एक दि
ू रे के ितत आकप्रषघत भी होंगे और िाथ
ही प्रवकप्रषघत भी होंगे। एक दोहरी िारा, द्वंद्व और प्रवपरीत जस्थतत बन जायेगी,एक भीतर
कन्ट्ाडडक्शन खडा हो जायेगा। यह िारी मनुष्य जातत में उन्होंने पैदा कर दी। इिके उनको
फायदे है । क्योंकक जब आपको िेम िे कोई िुख नहीं समलता तो उनकी बात बबलकुल िीक
लगने लगती है । कक न तो इिमें कोई िूख….ओर िुख नहीं समलता। इिसलए नहीं कक िेम
में िुख नहीं है ; िुख नहीं समलता इिसलए कक उन्होंने पाप का भाव पैदा कर ठदया। अगर
कोई बच्चे को िमझा दे कक स्वाि लेने में पाप हो तो स्वाि लेने में दुःु ख समलने लगेगा।
हम जो भी िमझा दें , उिमें दुःु ख समलने लगेगा।

दुःु ख जो है , वह कोई भी गलत काम हम कर रहे है , उििे समलने लगेगा। वह काम है या


नहीं, यह िवाल नहीं है । जैिे जैन र्र का बच्चा रात को खाना खाये तो लगता है पाप हो
गया।

जब मैंने पहली दफा रात में खाना खाया तो मुझे वॉसमट हो गई। एकदम उल्टी हो गई।
क्योंकक चौदह िाल तक मैंने कभी रात में खाना खाया ही नहीं था। र्र पर कभी खाता नहीं
था। और रात में खाना पाप था। िब ठहन्द ू थे। उनको ठदन में कोई कफ्रक न थी। कक भोजन
या खाने की। और मेरे अकेले के सलए मझ
ु े अच्छा भी नहीं लगा कक कुछ खाए। ठदन भर की
थकान, पहाडी पर चढना, ठदन भर की भख
ू और कफर रात उनका खाना बनाना मेरे िाथ। तो
भख
ू भी उनके खाने की गंि भी, जो मैं राज़ी हो गया। तो मैंने िोचा कक ये लोग इतने ठदन
िे खाते है , अभी तक नकघ नहीं गये। एक दो ठदन खा लेने िे नकघ नहीं चला जाऊाँगा। नकघ
तो नहीं गया। लेककन रात में तकलीफ में पड गया। मैं नकघ में ही रहा। क्योंकक मुझे उल्टी
हो गई खाने के बाद चौदह िाल तक जजि बात को पाप िमझता हो उिको एकदम िे भीतर
ले जाना बहुत मुज‍कल है । उि ठदन जब मुझे उल्टी हो गई तो मैंने यह िोचा कक बात पाप
की है , नहीं तो उल्टी कैिे हो जाती।

तो प्रवज‍यि िककघल हे , प्रवचार के भी दष्ु ट चक्र है । जजि चीज को हम पाप मान लेते है उिमें
िुख नहीं समलता, दुःु ख समलने लगता है । और जब दुःु ख समलने लगता है तो उिे और भी
पाप मान लेने का गहरा भाव हो जाता है । जजतना गहरा पाप मानते है , उतना ज्यादा दुःु ख
समलते लगता है ।

इि भांतत पााँच हजार िाल िे त्याग वादी आदमी की गदघ न पकडे हुए है । और वे बीमार लोग
है , रूग्ण है । जीवन को जो भोग नहीं िकते क्योंकक जीवन को भोगने के सलए जो अतनवायघ
शतघ है , उिको वह पूरी नहीं कर िकते। उनका अहं कार बािा बनता है । तब कफर वे कहने शुरू
कर दे ते है कक िब अंगूर ख्टे है । और यह इतना िचार ककया हुआ है अंगूर ख्टे होने का।
कक अंगूर ख्टे हो ही जाते है । जब आप उनको मुंह में डालते है तो दााँत कहते है कक ख्टे
है ।

इन िारे लोगों ने स्री पुरूष के बीच बहुत तरह की बािाएं खडी की है । और चकूं क इनमें
अधिक लोग पुरूष थे। इिसलए स्वभावत: स्री को उन्होंने बुरी तरह तनंठदत ककया है । ये िब
शास्र रचने वाले चूंकक अधिकतर पुरूष थे, इिसलए स्री को उन्होंने नकघ का द्वार बना ठदया।
तो नकघ के द्वार को छूने में खतरा तो है ही, कफर नकघ के द्वार के पाि आने में भी खतरा
हे । और जजतना इन लोगों नह यह भाव पैदा ककया कक स्री नकघ का द्वार है , स्री पुरूष के
िंबंि पाप है , अपराि है —ये भी िामान्य मनुष्य थे, इनके भीतर भी स्री के ितत वही
आकषघण था, जो ककिी और के मन में है । और जब इन्होंने इतना प्रवरोि ककया तो वह
आकषघण और बढ गया। तनषेि िे आकषघण बढता है ।

जजि चीज का इंकार ककया जाए,उिमे एक तरह का रि पैदाहोना शुरू हो जाता है ।

तो ये ठदन रात इंकार करते रहे तो इनका रि भी बढ गया। और जब इनका रि बढ गया—


तो अगर इि तरह के लोग ध्यान करने बैिे, िाथघना करने बैिे—तो स्री ही उनको ठदखाई
पडने वाली है । वे भगवान को दे खना चाहते है , लेककन ठदखाई स्री पडती है । तब स्वभावत:
उनको ओर भी पक्का होता चला गया कक स्री ही नकघ का द्वार है । हम भगवान को जल्दी
पाना जानना चाहते है । तभी स्री बीच में आ जाती है ।

िारे ऋप्रष मुतनयों को स्रीयां िताती है । इिमें जस्रयों को कोई किूर नहीं है । इिमें ऋप्रष
मुतनयों के मन की भाव-दशा है । ये ऋप्रष मुतन स्री के खखलाफ लड रहे है । कोई उपर इंि
बैिा हुआ नहीं है । जो अप्िराएं भेजता है । मगर इन िबको अप्िराएं भेज दी थी। नग्न और
िुन्दर जस्रयां—ये इनके मन के रूप है , जो इन्होंने दबाया है । और जजिको तनषेि ककया है , वह
इतना िगाढ हो गया है। वह इतना िगाढ हो गया है । वह अब उनको बबल्कुल वास्तप्रवक
मालूम पडता है ।

तो इनके कहने में भी गलती नहीं है कक उन्होंने जो अप्िराएं दे खीं, बबलकुल वास्तप्रवक है ।
यह अत्यंत रूग्ण व्यजक्त की ठदशा है । प्रवक्षक्षप्त धचत की दशा है । जब कोई वािना इतनी
िगाढ हो जाती है कक उि वािना िे जो स्वप्न खडा होता है वह वास्तप्रवक मालूम होता है ।
यह पागल मन की हालत है । और िबको जस्रयां ही िताती है । क्योंकक इनके पूरे जीवन का
िार िंर्षघ ही है । जजििे िंर्षघ है , वह िताएगा।

जजि ठदन आपने उपवाि ककया है , उि ठदन भोजन के स्वप्न ही आयेंगे। और अगर दो चार
महीने आपको लंबा उपवाि करना पडे तो आप इल्यज
ू न की हालत में हो जायेंगे—मजस्तष्क
िे जो भी दे खेगा। भोजन ही ठदखाई पडेगा। कुछ भी िन
ु ेगा। भोजन ही िन
ु ाई पडेगा। कोई
भी गंि आयेगी, वह भोजन की ही गंि होगी। इििे कोई िंबंि बहार का नहीं है । इिके
भीतर जो अभाव पैदा हो गया है । वह िक्षेपण कर रहा है ।

तो जब इन ऋप्रष मुतनयों को ऐिा लगा कक स्री िब तरह िे डडगाती है और उनके ध्यान


की अवस्था में आ जाती है । और वे बडी ऊाँचाई पर चढ रहे थे। और नीचे धगर जाते है । कोई
धगरा नहीं रहा, न कहीं चढ रहा है । िब उनके मन का खेल है । तो जजििे लड रहे थे जजििे
भाग रहे थे। उिी िे खींचकर नीचे धगर जाते है । तो कफर स्वभाप्रवक है उन्होंने कहां कक स्री
को दे खना भी नहीं, छूना भी नहीं, स्री बैिी हो ककिी जगह भी तो एक दम बैि मत जाना।
कुछ काल व्यतीत हो जाने दे ना,ताकक उि स्री की ध्वतन-तरं गें उि स्थान िे अलग हो जाएं।
अब यह बबलकुल रूग्ण धचत लोगों की दशा है । इतने भयभीत लोग। और जो स्री िे इतने
भयभीत हो वे कुछ और पा िकेंगे। इिकी िंभावना नहीं है ।

इि तरह के लोगों ने जो बातें सलखी है , मैं मानता हूं कक आज नहीं कल हम उनको प्रवक्षक्षप्त,
मनोप्रवकार ग्रस्त शास्रों में धगनंगे। मेरा कोई िमथघन इनको नहीं है ।

मेरा तो मानना है । कक जीवन में मजु क्त का एक ही उपाय है कक जीवन का जजतना गहन
अनभ
ु व हो िके और जजि चीज के हम जजतने गहन अनभ
ु व में उतर जाते है । उतना ही
उििे हमारा छुटकारा हो जाता है ।

अगर तनषि िे रि पैदा होता है । तो अनुभव िे वैराग्य पैदा होता है ।

मेरी यह दृजष्ट है कक जजि चीज को हम जान लेते है । जानते ही उििे जो प्रवक्षक्षप्त आकषघण
था वह शांत होने लगता है ।

और स्वभावत: काम का आकषघण है —होगा। क्योंकक हम उत्पन्न काम िे होते है । और हमारे


शरीर का एक-एक कण जीवाणु का कण हे । माता-प्रपता के जजि कामाणु िे तनसमघत होता है ।
कफर उिी का प्रवस्तार हमारा पूरा शरीर है । तो हमारा तो हमारा रोआं-रोआं काम िे तनसमघत
हे । पूरी िजृ ष्ट–काम िजृ ष्ट है । इिमे होने का मतलब ही है , काम वािना के भीतर होना।

जैिे हम स्वाि ले रहे है हवा में उििे भी गहरा हमारा आजस्तत्व कामवािना में है । क्योंकक
स्वाि लेना तो बहुत बाद में शुरू होता है । बच्चा जब मां के पेट िे पैदा होगा और जब
रौएगा। तब पहली स्वाि लेगा। इिके पहले भी नौ महीने वह जजंदा रह चुका हे । और वह नौ
महीने जो जजंदा रह चक
ु ा है , वह तो उिकी काम उजाघ का ही फैलाव हे । तो वह जो काम उजाघ
िे हमारा िारा शरीर तनसमघत है , स्वाि िे भी गहरा हमारा उिमे अजस्तत्व तछपा हुआ है , उििे
भागकर कोई भी बच िकता है । क्योंकक भागकर कोई बच नहीं िकता, क्योंकक भागोगे कहां।
वह तुम्हारे भीतर है , तुम ही हो। मैं तो कहता हूं उििे भागने की कोई जरूरत नहीं हे । और
भाग कर उपिव में पड जाता है । तो जीवन में जो है उिका िहज अनुभव उिका स्वीकार।

और जजतना गहरा अनुभव होता है , उतना हम जाग िकते है ।

ओशो
संभोग से समाधि की और

प्रिचन—6

संभोग से समाधि की और —23


Posted on नवम्बर 13, 2010by sw anand prashad

यौन : जीिन का ऊजाा-आयाम–6

िंभोग िे िमाधि कीओर--ओशो

इि सलए मैं तंर के पक्ष में हूं, त्याग के पक्ष में नहीं हूं। और मेरा मानना है जब तक िमघ
दतु नया िे िमाप्त नहीं होते, तब तक दतु नया िख ु ी नहीं हो िकती। शांत नहीं हो िकती। िारे
रोग की जड इनमें तछपी है ।

तंर की दृजष्ट बबलकुल उल्टी है । तंर कहता है कक अगर स्री पुरूष के बीच आकषघण है तो
इि आकषघण को ठदव्य बनाओ। इििे भागों मत, इिको पप्रवर करो। अगर काम-वािना इतनी
गहरी है तो उििे तम
ु भाग िकोगे भी नहीं। इि गहरी काम वािना को ही क्यों ने परमात्मा
िे जड
ु ने का मागघ बनाओ। और अगर िजृ ष्ट काम िे हो रही है तो परमात्मा को हम काम
वािना िे मक्
ु त नहीं कर िकते। नहीं तो कुछ तो कुछ होने का उपाय नहीं है ।
अगर कहीं भी कोई शजक्त है इि जगत में तो उिका हमें ककिी ने ककिी रूप में काम
वािना िे िंबंि जोडना ही पडेगा। नहीं तो इि िजृ ष्ट के होने का कहीं कोई आिार नहीं रह
जाता। इि िजृ ष्ट में जो कुछ हो रहा है , वह ककिी ने ककिी रूप में परमात्मा िे जुडा है । और
हम आंखें खोलकर चारों तरफ दे खें तो िारा काम को फैलाव है । आदमी है तो हम बेचन
ै हो
जाते है —वे ऋप्रष मुतन भी। आदमी बेचन
ै हो जाता है , लेककन उि तरफ उनको ख्याल में नहीं
आता।

िुबह जब पक्षी गीत गा रहे है तो उनको लगता है कक बडी ठदव्य बात हो रही है । लेककन वह
पक्षी जो पुकार लगा रहा है । वह िब काम-वािना है । और जब फूल खखलते है तो ऋप्रष की
वाठटका में तो वह िोचता है बडी अदभुत बात है । और फूलों को जाकर भगवान को चढा रहा
है । लेककन िब फूल काम वािना के रूप है । वे वीयाघणु है । उनमें ….उनमें तछपा बीज है जन्म
का। और फूलों पर तततसलयां र्ूम कर उनके वीयाघणु को लेककन दि
ू रे फूलों िे जाकर समला
रही है । तो फूल दे खकर तो ऋप्रष खश
ु होता है । यह उिके ख्याल में नहीं आ रह कक फूल जो
है , वह काम वािना के रूप है । पक्षी का गीत िुनकर खश
ु होता है । मोर नाचता है तो खश

होता है । आदमी िे क्या परे शानी है ।

वह काम,लेककन आदमी के काम िे वह पररधचत है वह उिकी खद


ु की पीडा है । बाकी परू ी
िकृतत काम का फैलाव है । यहां जो भी ठदखाई पड रहा है । वह िबके भीतर काम तछपा हुआ
है । िारा फैलाव िारा खेल उिका तो जो काम इतने गहरे में है। वह परमात्मा िे जुडा होगा।

तंर कहता है : िबिे ज्यादा गहरी चीज काम वािना है , क्योंकक उििे ही जन्म होता है । उििे
ही जीवन फैलता है । यहां जो भी ठदखाई पड रहा है । वह िबके भीतर काम तछपा हुआ है ।
िारा फैलाव िारा खेल उिका, तो इि गहरे तंतु का हम उपयोग कर लें । इि तंतु िे लडे न,
बजल्क इि तंतु को िारा बना लें , जजिमें हम बह जाएं।

और काम वािना को अगर कोई िारा बना ले, ध्यान बना ले, िमाधि बना ले। तो दोहरे
पररणाम होत है । वह जो ऋप्रष तनरन्तर चाहता है —त्याग वादी—का छुटकारा हो जाय, प्रव भी
हो जाता है । और दि
ू रा पररणाम यह होता है कक यह व्यजक्त काम—वािना िे भी छूट जाता
है । और काम वािना के कारण अहं कार िे भी छूट जाता है ।

तंर की िािना ही स्वस्थ िािना है ।

तो मैं तो प्रवरोि में नहीं हूं। न तो मैं प्रवरोि में हूं कक इि पतघ िे बचो। न बच िकते है ।
ऐिा ऊपर िे बचें गे तो भीतर अप्िराएं िताएगी। उििे इि प् ृ वी की जस्रयों में कुछ ज्यादा
उपिव नहीं। बचने की बात ही मैं मानता हूं, गलत।

भागना क्यों, डरना क्यों जीवन जैिा है , उिके त्यों में जागरूक होना। और जब मेरे मन में
ककिी चीज क ितत आकषघण है तो इि आकषघण को िमझने की कोसशश करूं। क्या है यह
आकषघण। क्यों है यह आकषघण? और इि आकषघण को मैं कैिे िज
ृ नात्मक करूं कक इििे
मेरा जीवन खखले और प्रवकसित हो। यह मेरा प्रवध्वंि न बन जाए। और इि आकषघण को मैं
उपयोग कैिे करूं। यह िवाल है ।

तो इि आकषघण का गहरा उपयोग ध्यान के सलए हो िकता है । और स्री–पुरूषों की िजन्नधि


बडी मुक्त दायी हो िकती है । मगर कभी ऐिा हुआ तो मनुष्य ओर ज्यादा िमझदार और
ज्यादा प्रवचारपूणघ हुआ। तब हम स्री पुरूष के बीच की िारी बािाएं तोड दें गे। स्री पुरूष के
बीच की बािाएं तोडते ही हमारे नब्बे परिैंट बीमाररयां प्रवलीन हो जाएं। क्योंकक उन बािाओं
के कारण िारे रोग खडे हो रहे है । हमको ठदखाई नहीं पडता। और चक्र ऐिा है कक जब रोग
खडे होते है तो हम िोचते है और बािाएं खडी करो। ताकक रोग खडे न हो।

मैं एक गांव में था। और कुछ बडे प्रवचारक और िंत िािु समलकर अ‍लील पोस्टर प्रवरोिी
एक िम्मेलन कर रहे थे। तो उनका ख्याल है कक अ‍लील पोस्टर लगता है दीवालों पर,
इिसलए लोग काम-वािना िे परे शान रहते है । जबकक हालत दि
ू री है लोग काम वािना िे
परे शान है । इिसलए पोस्टर में मजा है । यह पोस्टर कौन दे खेगा? पोस्टर को दे खने कौन जा
रहा है ।

पोस्टर को दे खने वही जा रहा है , जो स्री पुरूष के शरीर को दे ख ही नहीं िका। जो शरीर के
िौन्दयघ को नहीं दे ख िका। जो शरीर की िहजता को अनुभव नहीं कर िका। वह पोस्टर
दे ख रहा है ।

पोस्टर को दे खने वही जा रहा है । जो स्री पुरूष के शरीर को दे ख ही नहीं िका। जो शरीर के
िौन्दयघ को नहीं दे ख िका। जो शरीर की िहजता को अनुभव नहीं कर िका वह पोस्टर दे ख
रहा है ।

पोस्टर इन्हीं गरू


ु ओं की कृपा िे लग रहे है । क्योंकक ये इिर स्री परू
ु ष को समलने झल
ु ने
नहीं दे ते, पाि नहीं होने दे ते तो इिका परवटे ड, प्रवकृत रूप है कक काई गंदी ककताब पढ रहा
है । कोई गंदी तस्वीर दे ख रहा है । कोई कफल्म बना रहा है । क्योंकक आखखर यह कफल्म कोई
आिमान िे नहीं टपकती, लोगों की जरूरत है ।

इिसलए िवाल यह नहीं है कक गंदी कफल्म कोई क्यों बना रहा है ? लोगों की जरूरत क्या है ?
यह तस्वीर जो पोस्टर लगती है । कोई ऐिे ही मल
ु त पैिा खराब करके नहीं लगता। इिका
कोई उपयोग है । इिे कहीं कोई दे खने को तैयार है , मांग है इिकी वह मांग कैिे पैदा हुई? वह
मांग हमने पैदा की है । स्री पुरूष को दरू करके। वह मांग पैदा कर दी। अब वह मांग को
पूरा करने जब कोई जाता है तो हमको लगता है कक बडी गडबड हो गई। तो उिको और
बािाएं डालों। उिको जजतनी वह बािाएं डालेगा,वह नए रास्ते खोजेगा मांग के। क्योंकक मांग
तो अपनी पूततघ मााँगती है ।

तो मैंने उनको कहा कक अगर िच में ही चाहते हो कक पोस्टर प्रवलीन हो जाये, तो स्री पुरूषों
के बीच की बािा कम करो। क्योंकक मैं नहीं दे खता—आठदवािी िमाज है जहां, स्री पुरूष
िहज है , करीब-करीब नग्न–वहां कोई पोस्टर लगा है ? या कोई पोस्टर में रि ले रहा है ?

जब पहली दफे ईिाई समशनरी ऐिे कबीलों में पहुाँच,े जहां नग्न लोग थे। तो उनको ये भरोिा
ही नहीं आया कक कोई नग्न स्री में भी रि ले िकता है । क्योंकक रि लेने का कोई कारण
नहीं है । जब तक हम वस्रों में ढांके है और दीवालें ओर बािाएं खडी ककए है । तब तक रि
पैदा होगा। रि पैदा होगा तो हम िोचते है कक—और डर पैदा हो रहा है —तो इिको रोको।

मनुष्य की अधिक उलझनें इिी भांतत की है । कक जो िोचता है कक िीठढयां है िुलझाव की,


वहीं उपिव है , वही बािाएं है ।

तो मैं मानता हूं कक बच्चे बडे हों, िाथ बडे हों; लडके और लडककयों के बीच कोई फािला न
हो; िाथ दे खें दौडें बडे हों, िाथ स्नान करें , तैरें। ताकक स्री पुरूष के शरीर की नैिधगघक ितीतत
हो। और वह ितीतत कभी भी रूग्ण न बन जाए। और उिके सलए कोई बीमार रास्ते न
खोजने पडे।

और यह बबलकुल उधचत ही है । कक पुरूषों की शरीर में उत्िुकता हो। स्री की पुरूषों के शरीर
में उत्िक
ु ता हो। यह बबलकुल स्वाभाप्रवक है । और इिमे कुछ भी कुरूप नहीं है और कुछ भी
अशोभन नहीं है । अशोभन तो तब है जो हमने ककया है । उििे अशोभन हो गई बात।

अब जजि स्री िे मेरा िेम हो, उिके शरीर में मेरा रि होना स्वाभाप्रवक है । नहीं तो िेम तो
िेम भी नहीं होगा। लेककन एक अंजान स्री को रास्ते में िक्का मार दाँ ू भीड में यह अशोभन
है । लेककन इिके पीछे ऋप्रष मुतनयों का हाथ है । जजि स्री िे मेरा िेम है । उिे मैं अपने
करीब तनकट ले ल,ूं उिका आसलंगन करूं, यह िमझ में आने वाली बात है । इिमें कुछ बुरा
नहीं है । लेककन जजि स्री को मैं जानता ही नहीं, जजििे मेरा कोई लेना दे ना ही नहीं है ।
रास्ते पर मौका भीड में समल जाये। और में उिको िक्का मारू। उि िक्के में जरूर कोई
बीमार बात है । वह िक्का क्यों पैदा हो रहा है ? वह िक्का ककिी जरूरत का रूग्ण रूप है ।
जजििे िेम हो िकता है । उिको मैं कभी पाि नहीं ले पाता। वह रूग्ण हो गई वतृ त, अब
िक्का मारने में भी रि ले रहा हूं। तो भीड में एक िक्का ही मार कर चला गया तो भी
िमझो कक कुछ िुख पाया। और िुख इिमें समल नहीं िकता; ग्लातन समलेगी मन को, तनन्दा
समलेगी अपराि का भाव पैदा होगा मन में । मैं िमझूंगा कक मैं पाप कर रहा हूं। और जजतना
मैं िमझूंगा कक मैं पाप कर रहा हूं,उतना स्री ओ मेरे बीच का फािला बढता जाएगा। और
जजतना फािला बढे गा, इिको समटाने की बेहूदी कोसशशें करूंगा और यह चलता रहे गा।

स्री-पुरूष को तनकट लाना चाहता हूं, इतने तनकट कक उनको यह ितीतत नहीं रह जानी
चाठहए कक कौन स्री है और कौन पुरूष।

स्री-पुरूष होना, चौबीि र्ंटे का बोि नहीं होना चाठहए। वह बीमारी है , अगर इतना बोि बना
रहता है तो स्री पुरूष दोनों को चौबीि र्ंटे बोि नहीं होना चाठहए। वह समटे गा तभी जब हम
बीच में फािले समटाएंगे।

और इतने गहरे पररणाम होंगे—कक िमाज की अ‍लीलता, गंदा िाठहत्य, गंदी कफल्में बेहूदी
वतृ तयां, वे अपने आप धगर जाएं। और एक ज्यादा स्वस्थ मनुष्य का जन्म हो। और यह जो
स्वस्थ मनुष्य है इिकी मैं आशा कर िकता हूं कक यह िासमघक हो िके। क्योंकक जो स्वस्थ
ही नहीं हो पाया अभी उिके िासमघक होने की कोई आशा मैं नहीं मानता।

तो एक तो िमघ है , जो अिमघ िे भी बरू ा है , अस्वस्थ िमघ। उििे तो अिमघ िीक है । और एक


िमघ है जो अिमघ िे श्रेष्ि है , और उिे मैं कहता हूं स्वस्थ िमघ। जीवन की िमझ, ितीतत,
अनुभव, होश—इििे पैदा हुआ िमघ।

स्री-पुरूष जजतने तनकट होंगे, उतना ही यह उपिव कम होगा, शांत होगा। और अगर यह
उपिव शांत हो जाये तो अिली खोज शुरू हो िकती है । क्योंकक आदमी बबना आकषघण के
नहीं जी िकता। और अगर स्री पुरूष का आकषघण शांत हो जाता है तो वे और गहरे
आकषघण की खोज में लग जाते है । बबना आकषघण के जीना मुज‍कल है । वही ियोजन है ।
और जो स्री-पुरूष में ही लडता रहा है —उिका आकषघण तो कायम रहता है , दि
ू रा आकषघण
का कोई उपाय नहीं है ।

परमात्मा मेरे सलए िकृतत में ही गहरे अनुभव का नाम है ।

और जजि ठदन वह अनुभव होने लगता है । उिी ठदन ये िारे ,जजनिे हम बचना चाहते थे,
इनिे हम बच जाते है । पर बबना कोई चेष्टा ककए। एक तो कच्चा फल है , जजिको कोई
झटका दे कर तोड ले। और एक पका हुआ फल है जो वक्ष
ृ िे धगर जाता है । न वह वक्ष
ृ को
खबर होती है कक वह कब धगर गया। न फल को खबर होती है । कब धगर गया। न फल को
लगता है कक कोई बडा भारी ियािकरना पडा। न कहीं होता है । न कहीं कुछ होता है । यह
िब चप
ु चाप हो जाता है ।
तो जीवन के अनुभव िे एक वैराग्य का जन्म होता है । जजिको मैं पका हुआ फल कहता हूं।
और जीवन िे लडने िे एक वैराग्य का जन्म होता है । जजिको मैं कच्चा फल कहता हूं। िब
तरफ र्ाव छूट जाते है , और उन र्ावों का भरना मुज‍कल है । तो मैं तो किी ऐिे शास्रों के
पक्ष में नहीं हूं।

मेरा तो मानना यह है कक जो भी िकृतत िे उपलब्ि है िमग्र िवािंगीण स्वीकार।

और उिी स्वीकार िे रूपांतरण है । और यही रूपांतरण गहरा हो िकता है । िंर्षघ में मेरा
भरोिा नहीं है । और इिी बात को में आजस्तत्व कहता हूं। िब त्याधगयों को मैं नाजस्तक
कहता हूं। क्योंकक परमात्मा की िजृ ष्ट उन्हें स्वीकार नहीं। और जजनको परमात्मा की िजृ ष्ट
स्वीकार नहीं, वे परमात्मा भी उन्हें समल जाएगा तो स्वीकार करें गे। मैं नहीं मानता।
अस्वीकृतत की उनकी आदत इतनी गहरी है कक जब वे परमात्मा को भी दे खेंगे तो हजार भल
ू े
तनकाल लेंगे कक इिमे यह पाप है ।

शोपहार ने कहीं कहा है कक हे परमात्मा, तू तो मझ


ु े स्वीकार है , तेरी िजृ ष्ट स्वीकार नहीं है ।
लेककन इनको परमात्मा स्वीकार है तो उिकी िजृ ष्ट अतनवायघ रूपेण स्वीकृतत हो जाय। और
अगर उिकी िजृ ष्ट स्वीकार नहीं है , तो बहुत गहरे में हम उिे भी स्वीकार नहीं कर िकते।
कैिे स्वीकार करें गे। कफर या तो हम परमात्मा िे ज्यादा िमझदार हो गए है । उििे ऊपर
अपने को रख सलया कक हम उिमें भी चन
ु ाव करते है ।

मेरा कोई चन ु ाव नहीं, मैं तो मानता हूं जो िकट है , वह अिकट का ही ठहस्िा है । जो ठदखाई
पड रहा है । उिके पीछे ही अदृ‍य तछपा हुआ हे । थोडी पतघ भीतर िवेश करने की जरूरत है ।
और िेम जजतना गहरा जाता है । इि जगत में कोई और चीज इतनी गहरी नहीं जाती। मैं
छुरा मार िकता हूं। आपकी छाती में ,वह इतना गहरा जाएगा जजतना मेरी िेम आपके भीतर
गहरा जाएगा। िेम िे गहरा तो कुछ भी नहीं जाता इिको भी जो छोड दे ता है वह उथला
ितह पर रह जाता है। तो मेरे मन में तो ऐिे शास्र अतनष्ट है । और जजतने शीध्र उनिे
छुटकारा हो, उतना ही अच्छा है । और ऐिे ऋप्रष मुतनयों की धचककत्िा……मानसिक रोग है
इन्हें ।

ओशो
संभोग से समाधि की और

प्रिचन—6
संभोग से समाधि की और —24
Posted on नवम्बर 21, 2010by sw anand prashad

यि
ु क और यौन—

िंभोग िे िमाधि कीओर-ओशो

एक कहानी िे मैं अपनी बात शुरू करना चाहूंगा।

एक बहुत अद्भत ु व्यजक्त हुआ है । उि व्यजक्त का नाम था निीरुद्दीन एक ठदन िांझ वह


अपने र्र िे बाहर तनकलता था समरों िे समलने के सलए। तभी द्वार पर एक बचपन का
बबछुडा समर र्ोडे िे उतरा। बीि बरि बाद वह समर उििे समलने आया था। लेककन
निीरुद्दीन ने कहा कक तम
ु िहरो र्डी भर मैंने ककिी को बचन ठदया है । उनिे समलकर
अभी लौटकर आता हूं। दभ ु ाघग्य कक वषो बाद तुम आये हो और मुझे र्र िे अभी जाना पड
रहा है ।, लेककन मैं जल्दी ही लौट आऊाँगा।

उि समर ने कहां, तुम्हें छोडने का मेरा मन नहीं है , वषो बाद हम समले है । उधचत होगा कक मैं
भी तुम्हारे िाथ चलू। रास्ते में तुम्हें दे खग
ूाँ ा भी, तुमिे बात भी कर लुंगा। लेककन मेरे िब
कपडे िल
ू में हो गये है । अच्छा होगा, यठद तुम्हारे पाि दि
ू रे कपडे हों तो मुझे दे दो।

वह फकीर कपडे की एक जोडी जजिे बादशाह ने उिे भेट की थी—िुंदर कोट था, पगडी थी,
जूते थे। वह अपने समर के सलए तनकाल लाया। उिने उिे कभी पहना नहीं था। िोचा था;
कभी जरूरत पडेगी तो पहनूंगा। कफर वह फकीर था। वे कपडे बादशाही थे। ठहम्मत भी उिकी
पहनने की नहीं पडी थी।
समर ने जल्दी िे वे कपडे पहन सलए। जब समर कपडे पहन रहा था, तभी निीरुद्दीन को
लगा कक यह तो भूल हो गयी। इतने िुंदर कपडे पहनकर वह समर तो एक िम्राट मालूम
पडने लगा। और निरूदीन उिके िामने एक फकीर, एक सभखारी मालूम पडने लगा। िोचा
रास्ते पर लोग समर की तरफ ही दे खेंगे,जजिके कपडे अच्छे है । लोग तो सिफघ कपडों की
तरफ दे खते है और तो कुछ ठदखायी नहीं पडता है । जजनके र्र ले जाऊाँगा वह भी समर को
ही दे खेंगे, क्योंकक हमारी आंखे इतनी अंिी है । कक सिवाय कपडों के और कुछ भी नहीं दे खती।
उिके मन में बहुत पीडा होने लगी। कक यह कपडे पहनाकर मैंने एक भूल कर ली।
लेककन कफर उिे ख्याल आया कक मेरा प्यारा समर है , वषों बाद समला है । क्या अपने कपडे भी
मैं उिको नहीं दे िकता। इतनी नीच इतनी क्षुि मेरी वतृ त है । क्या रखा है कपडों में । यही
िब अपने को िमझाता हुआ वह चला, रास्ते पर नजरें उिके समर के कपडों पर अटकी रही।
जजिने भी दे खा, वहीं गोर िे दे खने लगा। वह समर बडा िंद
ु र मालम
ू पड रहा था। जब भी
कोई उिके समर को दे खता, निरूदीन के मन में चोट लगती कक कपडे मेरे है और दे खा समर
जा रहा है । कफर अपने को िमझाता कक कपडे क्या ककिी के होते है , में तो शरीर तक को
अपना नहीं मानता तो कपडे को अपना क्या मानना है , इिमें क्या हजघ हो गया है ।

िमझाता-बुझाता अपने समर के र्र पहुंचा। भीतर जाकर जैिे ही अन्दर गया, पररवार के
लोगों की नजरें उिके समर के कपडों पर अटक गई। कफर उिे चोट लगी, ईष्याघ मालूम हुई
कक मेरे ही कपडे और मैं ही उिके िामने दीन हीन लग रहा हूं। बडी भूल हो गई। कफर
अपने को िमझाया कफर अपने मन को दबाया।

र्र के लोगों ने पूछा की ये कौन है , निरूदीन ने पररचय ठदया। कहा, मेरे समर है बचपन के
बहुत अद्भुत व्यजक्त है। जमाल इनका नाम है । रह गये कपडे, िो मेरे है ।

र्र के लोग बहुत है रान हुए। समर भी है रान हुआ। निरूदीन भी कहकर है रान हुआ। िोचा भी
नहीं था कक ये शब्द मुहाँ िे तनकल जायेंगे।

लेककन जो दबाया जाता है , वह तनकल जाता है । जो दबाओ, वह तनकलता है ; जो ििेम करो,


वह िकट होगा। इिसलए भूल कर भी गलत चीज न दबाना। अन्यथा िारा जीवन गलत चीज
की असभव्यजक्त बन जाता है ।

वह बहुत र्बरा गया। िोचा भी नहीं था कक ऐिा मंह


ु िे तनकल जाएगा। समर भी बहुत
हतिभ रह गया। र्र के लोग भी िोचने लगे। यह क्या बात कही। बाहर तनकल कर समर ने
कहा, अब मैं तम्
ु हारे िाथ दि
ू रे र्र न जाऊाँगा। यह तम
ु ने क्या बात कहीं।

निरूदीन की आंखों में आंिू आ गये। क्षमा मांगने लगा। कहने लगा भूल हो गई। जबान
पलट गई। लेककन जबान कभी नहीं पलटती है ।

ध्यान रखना, जो भी तर दबा हो वह कभी भी जबान िे तनकल जाता है । जबान पलटती


कभी नहीं।
तो वह कहने लगा क्षमा कर दो, अब ऐिी भूल न होगी। कपडे में क्या रखा है । लेककन कैिे
तनकल गई ये बात,मैंने कभी िोचा भी नहीं था कक कपडे ककिके है ।

लेककन आदमी वहीं नहीं कहता, जो िोचता है , कहता कुछ और है िोचता कुछ और है ।

कहता था मैंने तो कुछ िोचा भी नहीं, कपडे का तो मुझ ख्याल भी नहीं आया। यह बात कैिे
तनकल गई। जब कक र्र िे चलने में और र्र तक आने में सिवाय कपडे के उिको कुछ भी
ख्याल नहीं आया था।

आदमी बहुत बेईमान हे । जो उिके भीतर ख्याल आता है । कभी कहता भी नहीं। और जो
बहार बताता है , वह भीतर बबलकुल नहीं होता है । आदमी िरािर झूि है ।

समर ने कहां—मैं चलता हूं तम्


ु हारे िाथ लेककन अब कपडे की बात न उिाना। निरूदीन ने
कहा, कपडे तम्
ु हारे ही हो गये। अब मैं वापि पहनगंू ा भी नहीं। कपडे में क्या रखा है ।

कह तो वह रहा था कक कपडे में क्या रखा है , लेककन ठदखाई पड रहा था कक कपडे में ही िब
कुछ रखा है । वे कपडे बहुत िुंदर थे। वे समर बहुत अद्भुत मालूम पड रहा था। कफर चले
रास्ते पर। और निरूदीन कफर अपने को िमझाने लगा की कपडे दे ही दाँ ग ू ा समर को। लेककन
जजतना िमझता था, उतना ही मन कहता था कक एक बार भी तो पहने नहीं। दि
ू रे र्र तक
पहुंच,े िंभलकर िंयम िे।

िंयमी आदमी हमेशा खतरनाक होता हे। क्योंकक िंयमी का मतलब होता है कक उिने कुछ
भीतर दबा रखा है । िच्चा आदमी सिफघ िच्चा आदमी होता है । उिके भीतर कुछ भी दबा
नहीं रहता है । िंयमी आदमी के भीतर हमेशा कुछ दबा होता है । जो ऊपर िे ठदखाई दे ता है ।
िीक उलटा उिके भीतर ठदखाई दबा होता है । उिी को दबाने की कोसशश में वह िंयमी हो
जाता है । िंयमी के भीतर हमेशा बारूद है , जजिमें कभी भी आग लग जाये तो बहुत
खतरनाक है । और चौबीि र्ंटे दबाना पडता है उिे, जो दबाया गया है । उिे एक क्षण को भी
फुरित दी, छु्टी की वह बहार आ जायेगा। इि सलए िंयमी आदमी को अवकाश कभी नहीं
होता। चौबीि र्ंटे जब तक जागता है । नींद में बहुत गडबड हो जाती हे । िपने में िब बदल
जाता है । और जजिको दबाया है वह नींद में िकट होने लगता है । क्योंकक नींद में िंयम नहीं
चलता। इिीसलए िंयमी आदमी नींद में डरता है । आपको पता है , िंयमी आदमी कहता है
क्या िोना। इिके अलावा उिका कोई कारण नहीं है । नींद तो परमात्मा का अद्भुत आशीवाघद
है । लेककन िंयमी आदमी नींद िे डरता है । क्योंकक जो दबाया है , वह नींद में िक्के मारता
है । िपने बनकर आता है।
ककिी तरह िंयम िािना करके, बेचारा निरूदीन उिी दि ू रे समर के र्र में र्ूिा। दबाये हुए
मन को। िोच रहा है कक कपडे मेरे नहीं है । समर के ही है । लेककन जजतना वह कह रहा है
कक मेरे नहीं है , समर के ही है । उतने ही कपडे उिे अपने मालुम पड रहे है ।

इनकार बुलावा है । मन में भीतर ‘ना’ का मतलब है , ‘हां’ होता है । जजि बात को तुमने कहा
‘नहीं’ मन कहे गा हां यही।

मन कहने लगा कौन कहता है , कौन कहता है कक कपडे मेरे नहीं है ? और निरूदीन की ऊपर
की बद्
ु धि िमझाने लगी कक नहीं, कपडे तो मैंने दे ठदये समर को। जब वे भीतर र्र में गये,
तब निरूदीन को दे खकर कोई िमझ भी नहीं िकता था। वह भीतर कपडे िे लड रहा है ।
र्र में समर मौजद
ू था, उिकी िंद
ु र पत्नी समली। उिकी आंखें एक दम अटक गई समर के
उपर। निरूदीन को कफर िक्का लगा। उि िंद
ु र स्री ने उिे भी कभी इतने प्यार िे नहीं
दे खा था। पछ
ू ने लगी ये कौन है , कभी दे खा नहीं इन्हें । निरूदीन ने िोचा, इि दष्ु ट को कहां
िे िाथ ले आया। जो दे खो इिको दे खता है । और परू
ु षों के दे खने तक तो गनीमत थी।
लेककन िुंदर जस्रयां भी उिी को दे ख रही है । कफर तो और भी अधिक मुिीबत हो गई
निरूदीन के मन में । िकट में कहा, मेरे समर है , बचपन के िाथी है । बहुत अच्छे आदमी है ।
रह गये कपडे िो उन्हीं के है , मेरे नहीं है ।

लेककन कपडे उन्हीं के थे तो कहने की जरूरत क्या थी। कह गया तब पता चला कक भूल हो
गई।

भूल का तनयम है कक वह हमेशा अततयों पर होती है । एक्िट्ीम िे बचो तो दि


ू रे एक्िट्ीम
पर हो जाती है । भूल र्डी के पैंडुलम की तरह चलती है । एक कोने िे दि
ू रे कोने पर जाती
है । बीच में नहीं रुकती। भोग िे जायेगी तो एकदम त्याग पर चली जायेगी। एक बेवकूफी िे
छूटी दि
ू री बेवकूफी पर पहुंच जायेगी। जो ज्यादा भोजन िे बचेगा, वह उपवाि करे गा। और
उपवाि ज्यादा भोजन िे भी बदतर हे । क्योंकक ज्यादा भोजन भी आदमी दो एक बार कर
िकता है । लेककन उपवाि करने वाला आदमी ठदन भर मन ही मन भोजन करता है । वह
चौबीि र्ंटे भोजन करता रहता है ।

एक भल
ू िे आदमी का मन बचता है तो दि
ू री भल
ू पर चला जाता है । अततयों पर वह
डोलता है । एक भूल की थी कक कपडे मेरे है । अब दि
ू री भूल हो गई कक कपडे उिी के है , तो
िाफ हो जाता है कक कपडे उिके बबलकुल नहीं है ।
और बडे मजे की बात है कक जोर िे हमें वही बात कहनी पडती है , जो िच्ची नहीं होती है ।
अगर तुम कहो कक मैं बहुत बहादरु आदमी हूं तो िमझ लेना कक तुम पक्के नंबर के कायर
हो।

अभी ठहंदस्
ु तान पर चीन का हमला हुआ। िारे दे श में कप्रव हो गये, जैिे बरिात में में ढक
पैदा हो जाते है । ‘हम िोये हुए शेर है , हमें मत छे डों।‘ कभी िोये हुए शेर ने कप्रवता की है कक
हमको मत छे डों, कभी िोये हुऐ शेर को छे ड कर दे खो तो पता चल जाएगा। कक छे डने का
क्या मतलब होता है । लेककन हमारा परू ा मुल्क कहने ला कक हम िोये हुऐ शेर है । हम ऐिा
कर दें गे,वैिा कर दें गे। चीन लाखों मील दबा कर बैि गया है और हमारे िोये शेर कफर िे िो
गये है । कप्रवता बंद हो गई है । यह शेर होने का ख्याल शेरों को पैदा नहीं होता। वह कायरों
को पैदा होता है । शेर-शेर होता है । धचल्ला धचल्लाकर कहने की उिे जरूरत नहीं होती।

कह तो ठदया निरूदीन ने कक कपडे—कपडे इन्हीं के है । लेककन िन


ु कर वह स्री तो है रान
हुई। समर भी है रान हुआ कक कफर वही बात।

बाहर तनकल कर उिे समर ने कहा कक क्षमा करो, अब मैं लौट जाता हूं। गलती हो गई है कक
तुम्हारे िाथ आया। क्या तुम्हें कपडे ही ठदखाई पड रहे है ।

निरूदीन ने कहा, मैं खद


ु भी नहीं िमझ पाता। आज तक जजंदगी में कपडे मुझे ठदखाई नहीं
पडे। यह पहला ही मौका है । क्या हो गया मुझ।े मेरे ठदमाग में क्या गडबड हो गई। पहले
एक भल
ू हो गई थी। अब उििे उलटी भूल हो गई। अब मैं कपडों की बात ही नहीं करूंगा।
बि एक समर के र्र और समलना है कफर र्र चल कर आराम िे बैिे गे। और एक मौका
मुझे दे दो। नहीं तो जजंदगी भी सलए अपराि मन में रहे गा कक मैंने समर के िाथ कैिा
दव्ु यघवहार ककया।

समर िाथ जाने को राज़ी हो गया। िोचा था अब और क्या करे गा भल


ू । बात तो खत्म हो ही
गई हे । दो ही बातें हो िकती थी। और दोनों बातें हो गई है । लेककन उिे पता न था भल

करने वाले बडे इनवैठटव होते है । नयी भल
ू ईजाद कर लेते है । शायद आपको भी पता न हो।

वे तीिरे समर के र्र गये। अब की बार तो निरूदीन अपनी छाती को दबाये बैिा है कक कुछ
भी हो जाये, लेककन कपडों की बात न तनकालूंगा।

जजतने जोर िे ककिी चीज को दबाओ, उतने जोर िे वह पैदा होनी शुरू होती है । ककिी चीज
को दबाना उिे शजक्त दे ने का दि
ू रा नाम है । दबाओ तो और शजक्त समलती है उिे। जजतने
जोर िे आप दबाते है उि जोर में जो ताकत आपकी लगती है वह उिी में चली जाती है ।
जजि को आप दबाते हो। ताकत समल गई उिे।

अब वह दबा रहा है और पूरे वक्त पा रहा है कक मैं कमजोर पडता जा रहा हूं। कपडे मजबूत
होते जा रहे है । कपडे जैिी कफजूल चीज भी इतनी मजबूत हो िकती है । कक निरूदीन जैिा
ताकतवर आदमी हारे जा रहा है उिके िामने। जो ककिी चीज िे न हारा था, आज उिे
िािारण िे कपडे हराये डालते है । वह अपनी पूरी ताकत लगा रहा है । लेककन उिे पता नहीं
है कक पूरी ताकत हम उिके खखलाफ लगाते है , जजििे हम भयभीत हो जाते है । जजििे हार
जाते है , उििे हम कभी नहीं जीत िकते।

ताकत िे नहीं जीतना है , अभय िे जीतना है , ‘कफयरालेिनेि’ िे जीतना है । बडे िे बडा


ताकतवर हार जायेगा। अगर भीतर भय हो तो। ध्यान रहे हम दि
ू रे िे कभी नहीं हारते,
अपने ही भय िे हारते है। कम िे कम मानसिक जगत में तो यह पक्का है कक दि
ू रा हमें
कभी नहीं हरा िकता,हम हमारा भय ही हराता है।

निरूदीन जजतना भयभीत हो रहा है , उतनी ही ताकत लगा रहा है । और वह जजतनी ताकत
लगा रहा है , उतना भयभीत हुआ जा रहा है । क्योंकक कपडे छूटते ही नहीं। वे मन में बहुत
चक्कर काट रहे है । तीिरे मकान के भीतर र्ुिा है । लगता है वह होश में नहीं है । बेहोश है।
उिे न दीवालें ठदख रही है , न र्र के लोग ठदखायी पड रहे हे । उिे केवल वहीं कोट पगडी
ठदखाई पड रही है । समर भी खो गया है । बि कपडे है और वह हे । हालांकक ऊपर िे ककिी
को पता नहीं चलता है । जजि र्र में गया, कफर आाँख ठटक गयीं उिके समर के कपडों पर।
पूछा गया ये कौन है ? लेककन निरूदीन जैिे बुखार में है । वह होश में नहीं है ।

दमन करने वाले लोग हमेशा बुखार में जीते है । कभी स्वस्थ नहीं होते। ििेशन जो है , वह
में टल कफवर है । दमन जो है । वह मानसिक बुखार है ।

दबा सलया है और बख ु ार पकडा हुआ है । हाथ पैर कांप रहे है उिके। वह अपने हाथ पैर
रोकने की बेकार कोसशश कर रहा है । जजतना रोकता है वह उतने कांपते जा रहे है । कौन है
यह?….यह तो अब उिे खद
ु भी याद नहीं आ रहा है । कौन है यह, शायद कपडे है , सिफघ
कपडे। िाफ मालम ू पड रहा है । कक कपडे है लेककन यह कहना नहीं है । लगा जैिे बहुत
मुज‍कल में पड गया है । उिे याद नहीं आ रहा कक क्या कहना है । कफर बहुत मुज‍कल िे
कहां मेरे बचपन का समर है , नाम है फला। और रह गये कपडे, िो कपडे की तो बात ही नहीं
करना है । वे ककिी के भी हो, उनकी बात नहीं उिानी है ।

लेककन बात उि गई, जजिकी बात न उिानी हो उिी की बात ज्यादा उिती है ।
ये छोटी िी कहानी क्यों कहीं मैंने? िेक्ि की बात नहीं उिानी है और उिकी ही बात चौबीि
र्ंटे उिती है । नहीं ककिी िे बात करना है जो कफर अपने िे ही बात चलती है । न करें दि
ू रे
िे तो खद
ु ही करनी पडेगी बात अपने आप िे। और दि
ू रे िे बात करने में राहत भी समल
िकती है । खद ु िे बात करने में कोई राहत भी नहीं है । कोल्हू के बैल की तरह अपने भीतर
ही र्ूमते रहो। िेक्ि की बात नहीं करना है , उिकी बात ही नहीं उिानी है। मां अपनी बेटी के
िामने नहीं उिाती। बेटा आपने बाप के िामने नहीं उिाता। समर-समर के िामने नहीं उिाते।
क्योंकक उिानी ही नहीं है बात। जो उिाते है वे असशष्ट है । जबकक चौबीि र्ंटे िबके मन में
ही बात चलती है ।

िेक्ि उतना महत्वपूणघ नहीं है जजतना कक बात न उिाने िे महत्वपूणघ हो गया है । िेक्ि
उतना महत्वपूणघ बबल्कुल नहीं है जजतना कक हम िमझ रहे है उिे।

लेककन ककिी भी व्यथघ की बात को उिाना बंद कर दो उिे तो वह बहुत महत्वपण ू घ हो जाती
है । इि दरवाजे पर एक तख्ती लगा दें कक यहां झांकना मना है । और यहां झांकना बडा
महत्वपूणघ हो जायेगा। कफर चाहे आपको यूतनवसिघटी में कुछ भी हो रहा हो, भले ही आइंस्टीन
गखणत पर भाषण दे रहा हो। बह िब बेकार है , यह तख्ती महत्वपूणघ हो जायेगी। यहीं झांकने
को बार-बार मन करे गा। हर प्रवद्याथी यहीं चक्कर लगाने लगेगा। लडके जरा जोर िे
लगायेंगे, लडककयां जरा िीरे िे।

कोई बुतनयादी फकघ नहीं है आदमी-आदमी में ।

मन में भी होगा कक क्या है इि तख्ती के भीतर,यह तख्ती एकदम अथघ ले लगी। हां कुछ
जो अच्छे लडके-लडककयां नहीं है , वे आकर िीिा झांकने लगें गे। वही बदनामी उिायेगे कक ये
अच्छे लोग नहीं है । तख्ती जहां लगी थी कक नहीं झांकना है वहीं झांक रहे हे । जो भि जन
है , िज्जन है , अच्छे र्र के या इि तरह के वहम जजनके ठदमाग में है , वह उिर िे ततरछी
आंखें ककए हुए तनकल जायेगे, और ततरछी आंखें िे दे खते ही रहे गें तख्ती को। और ततरछी
आाँख िे जो चीज ठदखाई पडती है , वह खतरनाक हो जाती है ।

कफर पीडडत जन जो वहां िे ततरछी आंखें ककए हुए तनकल जायेंगे वह इिके बदला लें गे।
ककििे, जो झांक रहे थे उनिे। गासलयां दें गे उनको कक बरु े लोग है । असशष्ट है , िज्जन नहीं
है , िािु नहीं है । और इि तरह मन में िांत्वना कंिोलेशन जुटायेंगे कक हम अच्छे आदमी है ,
इिसलए हमने झााँकर नहीं दे खा। लेककन झााँकर दे खना तो जरूर था, यह मन कहे चला
जायेगा। कफर िांझ होते-होते अाँिेरा तर्रते-तर्रते वे आयेंगे। क्लाि में बैिकर पढें गे,तब भी
तख्ती ठदखाई पडेगी, ककताब नहीं। लेबोरे टरी में ऐक्िपैररमैंट करते होंगे और तख्ती बीच-बीच
में आ जायेगी। िांझ तक वह आ जायेगी दे खना। आना ही पडेगा
–ओशो

िंभोग िे िमाधि की ओर,

िवचन—6

युवक और यौन,

बडौदा,प्रव‍वप्रवद्यालय, बडौदा।

संभोग से समाधि की और —25


Posted on माचघ 11, 2011by sw anand prashad

िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो

युिक और यौन—
आदमी के मन का तनयम उलटा है । इि तनयमों का उलटा नहीं हो िकता है । हां कुछ जो
बहुत ही कमजोर होंगे, वह शायद नहीं आ पायेंगे तो रात िपने में उनको भी वहां आना
पडेगा। मन में उपवाद नहीं मानते है । जगत के ककिी तनयम में कोई अपवाद नहीं होता।
जगत के तनयम अत्यंत वैज्ञातनक है । मन के तनयम भी उतने ही वैज्ञातनक हे ।

यह जो िेक्ि इतना महत्वपूणघ हो गया है वजघना के कारण। वजघना की तख्ती लगी है । उि


वजघना के कारण यह इतना महत्वपूणघ हो गया है । इिने िारे मन को र्ेर सलया है । िारा मन
िेक्ि के इदघ -धगदघ र्ूमने लगाता है ।

फ्रायड िीक कहता है कक मनष्ु य का मन िेक्ि के आि पाि ही र्म


ू ता है । लेककन वह यह
गलत कहता है कक िेक्ि महत्वपण
ू घ है , इिसलए र्म
ू ता है ।
नहीं, र्म
ू ने का कारण है , वजघना इनकार, प्रवरोि, तनषेि। र्म
ू ने का कारण है हजारों िाल की
परम्परा। िेक्ि को वजजघन, गठहघत,तनंठदत सिद्ि करने वाली परम्परा इिके सलए जजम्मेदार है ।
िेक्ि को इतना महत्वपण
ू घ बनाने वालों में िाि,ु महात्माओं का हाथ है । जजन्होंने तख्ती
लटकाई है वजघना की।

यह बडा उलटा मालूम पडेगा। लेककन यह ित्य है । और कहना जरूरी हे कक मनुष्यजातत को


िेक्िुअसलटी की, कामुकता की तरफ ले जाने का काम महात्माओं ने ही ककया है । जजतने जोर
िे वजघना लगाई है उन्होंने, आदमी उतने जोर िे आतुर होकर भागने लगा है । इिर वजघना
लगा दी। उिर उिका पररणाम यह हुआ कक िेक्ि आदमी की रग-रग िे फूट कर तनकल
पडा है । थोडी खोजबीन करो, उपर की राख हटाओं, भीतर िेक्ि समलेगा। उपन्याि, कहानी,
महान िे महान िाठहत्यकार की जरा राख झाडों। भीतर िेक्ि समलेगा। धचर दे खो मूततघ दे खो
सिनेमा दे खो, िब वही।

और िािु िंत इि वक्त सिनेमा के बहुत खखलाफ है । शायद उन्हें पता नहीं कक सिनेमा नहीं
था तो भी आदमी यही िब करता था। कासलदाि के ग्रंथ पढो,कोई कफल्म इतनी अ‍लील नहीं
बन िकती। जजतने कासलदाि के वचन है । उिाकर दे खें परु ाने िाठहत्य को, परु ानी मतू तघयों को,
पुराने मंठदरों को। जो कफल्म में है । वह पत्थरों में खद
ु ा समलेगा। लेककन उनिे आंखे नहीं
खल
ु ती हमारी। हम अंिे की तरह पीछे चले जाते है । उन्हीं लकीरों पर।

िेक्ि जब तक दमन ककया जायेगा और जब तक स्वस्थ खल


ु े आकाश में उिकी बात न
होगी और जबतक एक-एक बच्चे के मन में वजघना की तख्ती नही हटे गी। तब तक दतु नया
िेक्ि के औब्िैशन िे मुक्त नहीं हो िकती। तब तक िेक्ि एक रोग की तरह आदमी को
पकडे रहे गा। वह कपडे पहनेगा तो नजर िेक्ि पर होगी। खाना खायेगा तो नजर िेक्ि पर
होगी। ककताब पढे गा तो नजर िेक्ि पर होगी। गीत गायेगा तो नजर िेक्ि पर होगी। िंगीत
िन
ु ेगा तो नजर िेक्ि पर होगी। नाच दे खेगा तो नजर िेक्ि पर होगी। िारी जजंदगी उिकी
िेक्ि के आिपाि र्म
ू ेगा।

अनातोली फ्रांि मर रहा था। मरते वक्त एक समर उिके पाि गया और अनातोली जैिे
अदभुत िाठहत्यकार िे उिने पूछा कक मरते वक्त तुमिे पूछता हूं, अनातोली जजंदगी में िबिे
महत्वपूणघ क्या है ? अनातोली ने कहा, जरा पाि आ जाओ, कान में ही बता िकता हूं। आि
पाि और भी लोग बैिे थे। समर पाि आ गया। वह है रान हुआ कक अनातोली जैिा आदमी,
जो मकानों की चोठटयों पर चढकर धचल्लाने का आदमी है । जो उिे िीक लगा हमेशा कहता
रहा। वह आज भी मरते वक्त इतना कमजोर हो गया है कक जीवन की िबिे महत्वपूणघ बात
बताने को कहता है कक पाि आ जाओ। कान में कहूंगा। िुनो िीरे िे कान में , समर पाि
िरक आया। अनातोली कान के पाि होंि ले गया। लेककन कुछ बोला नहीं। समर ने कहा,
बोलते क्यों नहीं? अनातोली कहां तुम िमझ गये। अब बोलने की कोई जरूरत नहीं है ।
ऐिा मजा है । और समर िमझ गये और तुम भी िमझ गये होगें । लेककन हं िने की बात
नहीं है । क्या ये पागल पन है ? ये कैिे मनुष्य को पागलपन की और ले जा रहा है । दतु नयां
को पागलखाना बनाने की कोसशश की जा रही है ।

इिका बुतनयादी कारण यह है कक िेक्ि को आज तक स्वीकार नहीं ककया गया है । जजििे


जीवन का जन्म होता है , जजििे जीवन के बीज फूटते है । जजििे जीवन में फूल आते है ।
जजििे जीवन की िारी िुगंि है , िारा रं ग है । जजििे जीवन का िारा नत्ृ य है , जजिके आिार
पर जीवन का पठहया र्ूमता है । उिको स्वीकार नहीं ककया गया। जीवन के मौसलक आिार
को अस्वीकार ककया गया है । जीवन में जो केंिीय है परमात्मा जजिको िजृ ष्ट का आिार
बनाये हुए है —चाहे फूल हो, चाहे पक्षी हो, चाहे बीज हो, चाहे पौिे हो, चाहे मनुष्य हो—िेक्ि
जो कक जीवन के जीवन के जन्म का मागघ है , उिको ही अस्वीकार कर ठदया गया है ।

उि अस्वीकृतत को दो पररणाम हुए। अस्वीकार करते ही वह िबिे ज्यादा महत्वपण


ू घ हो गया।
अस्वीकार करते ही वह िवाघधिक महत्वपण
ू घ हो गया और मनष्ु य के धचत को उिने िब तरफ
िे पकड सलया है । अस्वीकार करते ही उिे िीिा जानने का कोई उपाय नहीं रहा। इिसलए
ततरछे जानने के उपाय खोजने पडे, जजनिे मनुष्य का धचत प्रवकृत और बीमार हो गया है ।
जजि चीज को िीिा जानने के उपाय न रह जायें और मन जानना चाहता हो,तो वह कफर
गलत उपाय खोजने लग जाता है ।

मनुष्य को अनैततक बनाने में तथा कधथत नैततक लोगों का हाथ है । जजन लोगों ने आदमी
को नैततक बनाने की चेष्टा की है , दमन के द्वारा,वजघना के द्वारा, उन लोगों ने िारी मनुष्य
जातत को अनैततक बना ठदया है ।

और जजतना आदमी अनैततक होता जा रहा है । उतनी ही वजघना िख्त होती चली जाती है । वे
कहते है । कक कफल्मों में नंगी तस्वीरें नहीं होनी चाठहए। वे कहते है , पोस्टरों पर नंगी तस्वीरे
नहीं होनी चाठहए। वे कहते है ककताब ऐिी होनी चाठहए। वे कहते है कफल्म में चब
ुं न लेते
वक्त ककतने इंच का फािला होना चाठहए। यह भी गवनघमेंट तय करें । वे यह िब कहते है ।
बडे अच्छे लोग हैं वे, इिसलए वे कहते है कक आदमी अनैततक न हो जाये।

और उनकी ये िब चेष्टायें कफल्मों को और गंदा करती चली जाती है । पोस्टर और अ‍लील


होते चले जाते है । ककताबें और गंदी होती चली जा रही है । हां, एक फकघ पडता है । ककताब के
भीतर कुछ रहता है , उपर कवर पर कुछ और रहता है । और अगर ऐिा नहीं रहता तो लडका
गीता खोल लेता है और गीता के अंदर दि
ू री ककताब रख लेता है । उिको पढता है । बाइबबल
पढता है , अगर बाइबबल पढता हो तो िमझना भीतर कोई दि
ू री ककताब है । यह िब िोखा
यह डडिेप्शन पैदा होता है वजघना िे।
प्रवनोबा कहते है , तुलिी कहते है , अ‍लील पोस्टर नहीं चाठहए। पुरूषोतम दाि टं डन तो यहां
तक कहते थे कक खजुराहो और कोणाकघ के मंठदरों पर सम्टी पोतकर उनकी िततमाओं को
ढं क दे ना चाठहए। कहीं आदमी इनको दे खकर गंदा न हो जाये। और बडे मजे की बात यह है
कक तुम ढाँ कते चले जाओ इनको,हजार िाल िे ढााँक ही रहे हो। लेककन इनिे आदमी गंदगी
िे मुक्त नहीं होता। गंदगी रोज-रोज बढती चली जाती है ।

मैं यह पूछना चाहता हूं, कक अ‍लील ककताब, अ‍लील सिनेमा के कारण आदमी कामुक होता
है या कक आदमी कामुक है , इिसलए अ‍लील तस्वीर और पोस्टर धचपकाये जा रहा है । कौन
है बुतनयादी?

बतु नयाद में आदमी की मांग है , अ‍लील पोस्टर के सलए, इिसलए अ‍लील पोस्टर लगता है
और दे खा जाता है । िािु िंन्यािी भी दे खते है । लेककन दे खने में एक फकघ रहता है । आप
उिको दे खते है और अगर आप पकड सलए जायेंगे दे खते हुए तो िमझा जायेगा कक यह
आदमी गंदा है । और अगर कोई िािु िंन्यािी समल जाये, और आप उििे कहें कह आप
क्यों दे ख रहे है । तो वह कहे गा कक हम तो तनरीक्षण कर रहे है , स्टडी कर रहे है , कक ककि
तरह लोगों को अनैततकता िे बचाया जाये। इिसलए अध्यन कर रहे है । इतना फकघ पडेगा।
बाकी कोई फकघ नहीं पडेगा। बजल्क आप बबना दे खे तनकल भी जायें। िािु िंन्यािी बबना दे खे
कभी नहीं तनकल िकते थे। क्योंकक उनकी वजघना और भी ज्यादा है , उनका धचत और भी
वजजघत है ।

एक िंन्यािी मेरे पाि आये। वे नौ वषघ के थे, तब दष्ु टों ने उनको दीक्षा दे दी। नौ वषघ के
बच्चे को दीक्षा दे ना कोई भले आदमी का काम हो िकता है । नौ वषघ का बच्चा, बाप मर गया
है उिका। िंन्यािी को मौका समल गया। उन्होंने उिको दीक्षा दे दी। अनाथ बच्चे के िाथ
कोई भी दव्ु यघवहार ककया जा िकता था। उनको दीक्षा दे दी गई। वह आदमी नौ वषघ की उम्र
िे बेचारा िंन्यािी है । अब उनकी उम्र कोई पचाि िाल है । वह मेरे पाि रुके थे। मेरी बात
िन
ु कर उनकी ठहम्मत जगी कक मझ
ु े िच्ची बात कही जा िकती है । इि मल्
ु क में िच्ची
बातें ककिी िे भी नहीं कहीं जा िकती है । िच्ची बातें कहना मत, नहीं तो फंि जाओगे।
उन्होंने एक रात मझ
ु िे कहा कक मैं बहुत परे शान हूं,सिनेमा के पाि िे तनकलता हूं तो मझु े
लगता है , अंदर पता नहीं क्या होता होगा? इतने लोग तो अंदर जाते है । इतनी क्यू लगाये
खडे रहते है । जरूर कुछ न कुछ बात तो होगी ही। हालांकक मंठदर में जब मैं बोलता हूं तो मैं
कहता हूं कक सिनेमा जाने वाले नकघ में जायेंगे। लेककन जजनको मैं कहता हूं नकघ जाओगे,वे
नकघ की िमकी िे भी नहीं डरते। और सिनेमा जाते है । मुझे लगता है जरूर कुछ बात होगी।

नौ िाल का बच्चा था, तब िािु हो गया। नौ िाल के बाद ही उनकी बुद्धि अटकी रह गयी।
उिके आगे प्रवकसित नहीं हुई। क्योंकक जीवन के अनुभव िे उन्हें तोड ठदया गया था। नौ
िाल के बच्चे के भीतर जैिे भाव उिे कक सिनेमा के भीतर क्या हो रहा है। ऐिा उनके मन
में उिता है लेककन ककििे कहें ? मुझिे कहा, तो मैंने उनिे कहा कक सिनेमा ठदखला दाँ ू
आपको? वे बोले कक अगर ठदखला दें तो बडी कृपा होगी। झंझट छूट जाये,यह ि‍न समट
जाये। कक क्या होता है ? एक समर को मैंने बुलवाया कक इनको ले जाओ। वह समर बोले कक
मैं झंझट में नहीं पडता। कोई दे ख ले कक िािु को लाया हूं तो मैं झंझट में पड जाऊाँगा।
अंग्रेजी कफल्म ठदखाने जरूर ले जा िकता हूं इनको। क्योंकक वह समसलट्ी एररया में है । और
उिर िािओ ु ं को मानने वाले भक्त भी न होंगे। वहां मैं इनको ले जा िकता हूं। पर वे िािु
अंग्रेजी नहीं जानते थे। कफर भी कहने लगे, कक कोई हजघ नहीं कम िे कम दे ख तो लेंगे कक
क्या मामला है ।

यह धचत है और यहीं धचत वहां गाली दे गा। मंठदर में बैिकर कक नकघ जाओगे। अगर अ‍लील
पोस्टर दे खोगें । यह बदला ले रहा है । वह ततरछा दे खकर तनकल गया आदमी बदला ले रहा
है । जजिने िीिा दे खा उनिे बदला ले रहा है । लेककन िीिा दे खने वाले मुक्त भी हो िकते
है । ततरछा दे खने वाले मुक्त कभी नहीं होते। अ‍लील पोस्टर इि सलए लग रहे है । अ‍लील
ककताबें इिसलए छप रही है । लडके-बूढे-नौजवान अशलील गासलयां बक रहे है । अशलील कपडे
इिसलए पहने जा रहे है । क्योंकक तुमने जो मौसलक था और स्वाभाप्रवक था उिे अस्वीकार
कर ठदया है । उिकी अस्वीकृतत के पररणाम में यह िब गलत रास्ते खोज जा रहे है ।

क्रमश: अगले लेख में …………

–ओशो
संभोग से समाधि की ओर,

प्रिचन—6

यि
ु क और यौन,

बडौदा,विश्िविद्यालय, बडौदा।

संभोग से समाधि की और —26


Posted on माचघ 13, 2011by sw anand prashad
िंभोग िे िमाधि की ओर--ओशो

युिक और यौन—
जजि ठदन दतु नया में िेक्ि स्वीकृत होगा, जैिा कक भोजन, स्नान स्वीकृत है । उि ठदन दतु नया
में अ‍लील पोस्टर नहीं लगें गे। अ‍लील ककताबें नहीं छपेगी। अ‍लील मंठदर नहीं बनेंगे।
क्योंकक जैि-े जैिे वह स्वीकृतत होता जाएगा। अ‍लील पोस्टरों को बनाने की कोई जरूरत नहीं
रहे गी।

अगर ककिी िमाज में भोजन वजजघत कर ठदया जाये, की भोजन तछपकर खाना। कोई दे ख न
ले। अगर ककिी िमाज में यह हो कक भोजन करना पाप है , तो भोजन के पोस्टर िडकों पर
लगने लगें गे फौरन। क्योंकक आदमी तब पोस्टरों िे भी तजृ प्त पाने की कोसशश करे गा। पोस्टर
िे तजृ प्त तभी पायी जाती है । जब जजंदगी तजृ प्त दे ना बंद कर दे ती है । और जजंदगी में तजृ प्त
पाने का द्वार बंद हो जाता है ।

वह जो इतनी अ‍लीलता और कामुकता और िेक्िुअसलटी है , वह िारी की िारी वजघना का


अंततम पररणाम है ।
मैं युवकों िे कहना चाहूंगा कक तुम जजि दतु नया को बनाने में िंलग्न हो, उिमें िेक्ि को
वजजघत मत करना। अन्यथा आदमी और भी कामुक िे कामक ु होता चला जाएगा। मेरी यह
बात दे खने में बडी उलटी लगेगी। अखबार वाले और नेतागण धचल्ला-धचल्ला कर र्ोषणा
करते है कक मैं लोगों में काम का िचार कर रहा हूं। िच्चाई उलटी है के मैं लोगों को काम
िे मक्
ु त करना चाहता हूं। और िचार वे कर रहे है । लेककन उनका िचार ठदखाई नहीं पडता।
क्योंकक हजारों िाल की परं परा िे उनकी बातें िन
ु -िन
ु कर हम अंिे और बहरे हो गये है ।
हमें ख्याल ही रहा कक वे क्या कह रहे है । मन के िर
ू ों का, मन के प्रवज्ञान का कोई बोि ही
नहीं रहा। कक वे क्या कर रहे है । वे क्या करवा रहे है । इिसलए आज जजतना कामक
ु आदमी
भारत में है । उतना कामक
ु आदमी प्
ृ वी के ककिी कोने में नहीं है ।

मेरे एक डाक्टर समर इंग्लैण्ड के एक मेडडकल कांफ्रेंि में भाग लेने गये थे। व्हाइट पाकघ में
उनकी िभा होती थी। कोई पााँच िौ डाक्टर इक्िे थे। बातचीत चलती थी। खाना पीना
चलता था। लेककन पाि की बेंच पर एक युवक और युवती गले में हाथ डाले अत्यंत िेम में
लीन आंखे बंद ककये बैिे थे। उन समर के िाणों में बेचन
ै ी होने लगी। भारतीय िाण में चारों
तरफ झांकने का मन होता है । अब खाने में उनका मन न रहा। अब चचाघ में उनका रि न
रहा। वे बार-बार लौटकर उि बेंच कीओर दे खने लगे। पुसलि क्या कर रही है । वह बंद क्यों
नहीं करती ये िब। ये कैिा अ‍लील दे श है । यह लडके और लडकी आाँख बंद ककये हुए
चप
ु चाप पााँच िौ लोगों की भीड के पाि ही बेंच पर बैिे हुए िेम िकट कर रहे है । कैिे लोग
है यह क्या हो रहा है । यह बदाघ‍त के बाहर है । पुसलि क्या कर रही है । बार-बार वहां दे खते।

पडोि के एक आस्ट्े सलयन डाक्टर ने उनको हाथ के इशारा ककया ओर कहा, बार-बार मत
दे खखए, नहीं तो पुसलिवाला आपको यहां िे उिा कर ले जायेगा। वह अनैततकता का िबूत है ।
यह दो व्यजक्तयों की तनजी जजंदगी की बात है । और वे दोनों व्यजक्त इिसलए पााँच िौ लोगों
की भीड के पाि भी शांतत िे बैिे है , क्योंकक वे जानते है कक यहां िज्जन लोग इक्िे है ,
कोई दे खेगा नहीं। ककिी को ियोजन भी क्या है । आपका यह दे खना बहुत गठहघत है , बहुत
अशोभन है , बहुत असशष्ट है । यह अच्छे आदमी का िबूत नहीं है । आप पााँच िौ लोगों को
दे ख रहे है कोई भी कफक्र नहीं कर रहा। क्या ियोजन है ककिी िे। यह उनकी अपनी बात है ।
और दो व्यजक्त इि उम्र में िेम करें तो पाप क्या है ? और िेम में वह आाँख बंद करके पाि-
पाि बैिे हों तो हजघ क्या है ? आप परे शान हो रहे है । न तो कोई आपके गले में हाथ डाले हुए
है , न कोई आपिे िेम कर रहा है ।

वह समर मुझिे लौटकर कहने लगे कक मैं इतना र्बरा गया ककये कैिे लोग है । लेककन िीरे -
िीरे उनकी िमझ में यह बात पडी की गलत वे ही थे।

हमारा पूरा मुल्क ही एक दि


ू रे र्र में दरवाजे के होल बना कर झााँकता रहता है । कहां क्या
हो रहा है । कौन क्या कर रहा है ? कौन जा रहा है ? कौन ककिके िाथ है ? कौन ककिके गले में
हाथ डाले है ? कौन ककिका हाथ-हा् में सलए है ? क्या बदतमीजी है , कैिी िंस्कारहीनता है । यह
िब क्या है ? यह क्यों हो रहा है ? यह हो रह है इिसलए कक भीतर वह जजिको दबाता है , वह
िब तरफ िे ठदखाई पड रहा है । वही ठदखाई पड रहा है ।

युवकों िे मैं कहना चाहता हूं कक तुम्हारे मां बाप, तुम्हारे पुरखे,तुम्हारी हजारों िाल की
पीठढयााँ िेक्ि िे भयभीत रही है । तमु भयभीत मत रहना। तुम िमझने की कोसशश करना
उिे। तुम पहचानने की कोसशश करना। तुम बात करना। तुम िेक्ि के िंबंि में आितु नक
जो नई खोज हुई है उनको पढना, चचाघ करना और िमझने की कोसशश करना कक िेक्ि क्या
है । क्या है िेक्ि का मैकेतनज्म? उिका यंर क्या है ? उिका यंर क्या है ? क्या है उिकी
आकांक्षा? क्या है उिकी प्याि? क्या है िाणों के भीतर तछपा हुआ राज? इिको िमझना।
इिकी िारी की िारी वैज्ञातनकता को पहचाना। उििे भागना, ‘एस्केप’ मत करना। आाँख बंद
मत करना। और तुम है रान हो जाओगे कक तुम जजतना िमझोगे, उतने ही मुक्त हो जाओगे।
तुम जजतना िमझोगे, उतने ही स्वस्थ हो जाओगे। तुम जजतना िेक्ि के फैक्ट को िमझ
लोगे, उतना ही िेक्ि के ‘कफक्शन’ िे तुम्हारा छुटकारा हो जायेगा।

त्य को िमझते ही आदमी कहातनयों िे मुक्त हो जाता है । और जो त्य िे बचता है , वह


कहातनयों में भटक जाता है ।

ककतनी िेक्ि की कहातनयां चलती हे । और कोई मजाक ही नहीं है हमारे पाि, बि एक ही


मजाक है कक िेक्ि की तरफ इशारा करें और हं ि।े हद हो गई। तो जो आदमी िेक्ि की
तरफ इशारा करके हं िता है , वह आदमी बहुत ही क्षुि है । िेक्ि की तरफ इशारा करके हं िने
का क्या मतलब है ? उिका एक ही मतलब है कक आप िमझते ही नहीं।

बच्चे तो बहुत तकलीफ में है कक उन्हें कौन िमझायें,ककििे वे बातें करें कौन िारे त्यों को
िामने रखे। उनके िाणों में जजज्ञािा है , खोज है , लेककन उिको दबाये चले जाते हे । रोके चले
जाते है । उिके दष्ु पररणाम होते है । जजतना रोकते है , उतना मन वहां दौडने लगता है और उि
रोकने और दौडने में िारी शजक्त और ऊजाघ नष्ट हो जाती है ।

यह मैं आपिे कहना चाहता हूं कक जजि दे श में भी िेक्ि की स्वस्थ रूपा िे स्वीकृतत नहीं
होती, उि दे श की िततभा का जन्म नहीं होता।

पज‍चम में तीन वषो में जो जीतनयि पैदा हुआ है , जो िततभा पैदा हुई है । वह िेक्ि के त्य
की स्वीकृतत िे पैदा हुई है ।

जैिे ही िेक्ि स्वीकृत हो जाता है । वैिे ही जो शजक्त हमारी लडने में नष्ट होती है , वह
शजक्त मुक्त हो जाती है । वह ररलीज हो जाती है । और उि ठदन शजक्त को कफर हम
रूपांतररत करते है —पढने में खोज में , आप्रवष्कार में , कला में , िंगीत में ,िाठहत्य में ।

और अगर वह शजक्त िेक्ि में ही उलझी रह जाये जैिा कक िोच लें कक वह आदमी जो
कपडे में उलझ गया है —निरूदीन, वह कोई प्रवज्ञान के ियोग कर िकता था बेचारा। कक वह
कोई ित्य का िज
ृ न कर िकता था? कक वह कोई मतू तघ का तनमाघण कर िकता था। वह कुछ
भी कर िकता था। वह कपडे ही उिके चारों और र्म
ू ते रहते है ओर वह कुछ भी नहीं कर

पाता है ।

भारत के यव
ु क के चारों तरफ िेक्ि र्म
ू ता रहता है परू े वक्त। और इि र्म
ू ने के कारण
उिकी िारी शजक्त इिी में लीन और नष्ट हो जाती है । जब तक भारत के युवक की िेक्ि
के इि रोग िे मुजक्त नहीं होती, तब तक भारत के युवक की िततभा का जन्म नहीं हो
िकता। िततभा का जन्म तो उिी ठदन होगा, जजि ठदन इि दे श में िेक्ि की िहज स्वीकृतत
हो जायेगी। हम उिे जीवन के एक त्य की तरह अंगीकार कर लेंगे—िेम िे, आनंद िे—
तनंदा िे नहीं। और तनंदा और र्ण
ृ ा का कोई कारण भी नहीं है ।

िेक्ि जीवन का अद्भुत रहस्य है । वह जीवन की अद्भुत समजस्ट् हे । उििे कोई र्बरानें
की,भागने की जरूरत नहीं है । जजि ठदन हम इिे स्वीकार कर लेंगे, उि ठदन इतनी बडी उजाघ
मुक्त होगी भारत में कक हम न्यूटन पैदा कर िकेंगे,हम आइंस्टीन पैदा कर िकेंगे। उि ठदन
हम चााँद-तारों की यारा करें गे। लेककन अभी नहीं। अभी तो हमारे लडकों को लडककयों के
स्कटघ के आि पाि पररभ्मण करने िे ही फुरित नहीं है । चााँद तारों का पररभ्मण कौन
करे गा। लडककयां चौबीि र्ंटे अपने कपडों को चस्
ु त करने की कोसशश करें या कक चााँद तारों
का प्रवचार करें । यह नहीं हो िकता। यह िब िेक्िुअसलटी का रूप है ।

हम शरीर को नंगा दे खना और ठदखाना चाहते है । इिसलए कपडे चस्


ु त होते चले जाते है ।

िौंदयघ की बात नहीं है यह, क्योंकक कई बार चस् ु त कपडे शरीर को बहुत बेहूदा और भोंडा बना
दे ते है । हां ककिी शरीर पर चस्
ु त कपडे िुंदर भी हो िकते है । ककिी शरीर पर ढीले कपडे
िुंदर हो िकते है । और ढीले कपडे की शान ही और है । ढीले कपडों की गररमा और है । ढीले
कपडों की पप्रवरता और है ।

लेककन वह हमारे ख्याल में नहीं आयेगा। हम िमझेंगे यह फैशन है , यह कला है , असभरूधच है ,
टे स्ट है । नहीं ‘’टे स्ट’’ नहीं है । अभी रूधच नहीं है । वह जो जजिको हम तछपा रहे है भीतर
दि
ू रे रास्तों िे िकट होने की कोसशश कर रहा है । लडके लडककयों का चक्कर काट रहे है ।
लडककयां लडकों के चक्र काट रही है । तो चााँद तारों का चक्कर कौन काटे गा। कौन जायेगा
वहां? और िोफेिर? वे बेचारे तो बीच में पहरे दार बने हुए खडे है । ताकक लडके लडककयां एक
दि
ू रे के चक्कर न काट िकें। कुछ और उनके पाि काम है भी नहीं। जीवन के और ित्य
की खोज में उन्हें इन बच्चों को नहीं लगाना है । बि, ये िेक्ि िे बचे जायें,इतना ही काम
कर दें तो उन्हें लगता है कक उनका काम पूरा हो गया।

यह िब कैिा रोग है , यह कैिा डडिीज्ड माइंड, प्रवकृत ठदमाग है हमारा। हम िेक्ि के त्यों
की िीिी स्वीकृतत के बबना इि रोग िे मुक्त नहीं हो िकते। यह महान रोग है ।

इि पूरी चचाघ में मैंने यह कहने की कोसशश की है कक मनुष्य को क्षुिता िे उपर उिना है ।
जीवन के िारे िािारण त्यों िे जीवन के बहुत ऊंचे त्यों की खोज करनी है । िेक्ि िब
कुछ नहीं है । परमात्मा भी है दतु नया में । लेककन उिकी खोज कौन करे गा। िेक्ि िब कुछ
नहीं है इि दतु नया में ित्य भी है । उिकी खोज कौन करे गा। यहीं जमीन िे अटके अगर हम
रह जायेंगे तो आकाश की खोज कौन करे गा। प्
ृ वी के कंकड पत्थरों को हम खोजते रहें गे तो
चााँद तारों की तरफ आंखे उिायेगा कौन?

पता भी नहीं होगा उनको जजन्होंने प्


ृ वी की ही तरफ आाँख लगाकर जजंदगी गुजार दी। उन्हें
पता नहीं चलेगा कक आकाश में तारे भी हैं, आकाश गंगा भी है । राबर के िन्नाटे में मौन
िन्नाटा भी है आकाश का। बेचारे कंकड पत्थर बीनने वाले लोग, उन्हें पात भी कैिे चलेगा
कक और आकाश भी है । और अगर कभी कोई कहे गा कक आकाश भी है , चमकते हुए तारे भी
है । तो वे कहें गे िब झूिी बातचीत है , कोरी कल्पना है । िच में तो केवल पत्थर ही पत्थर है ।
हां कहीं रं गीन पत्थर भी होते है । बि इतनी ही जजंदगी है ।

नहीं, मैं कहता हूं इि प्


ृ वी िे मक्
ु त होना है ,ताकक आकाश ठदखाई पड िके। शरीर िे मक् ु त
होना है । ताकक आत्मा ठदखाई पड िके। और िेक्ि िे मक् ु त होना है , ताकक िमाधि तक
मनष्ु य पहुंच िके। लेककन उि तक हम नहीं पहुंच िकेंगे। अगर हम िेक्ि िे बंिे रह जाते
है तो। और िेक्ि िे हम बंि गये है । क्योंकक हम िेक्ि िे लड रहे है ।

लडाई बााँि दे ती है । िमझ मुक्त कर दे ती है । अंडरस्टैंडडंग चाठहए िमझ चाठहए।

िेक्ि के पूरे रहस्य को िमझो बात करो प्रवचार करो। मुल्क में हवा पैदा करो कक हम इिे
तछपायेंगा नहीं। िमझेंगे। अपने प्रपता िे बात करो,अपनी मां िे बात करो। वैिे वे बहुत
र्बराये गे। अपने िोफेिर िे बात करो। अपने कुलपतत को पकडो और कहो कक हमें
िमझाओ। जजंदगी के िवाल है ये। वे भागेगे। वे डरे हुए लोग है । डरी हुई पीढी िे आयें है ।
उनको पता भी नहीं है । जजंदगी बदल गयी है । अब डर िे काम नहीं चलेगा। जजंदगी का एन
काउं टर चाठहए मुकाबला चाठहए। जजंदगी िे लडने और िमझने की तैयारी करो। समरों का
िहयोग लो, सशक्षकों का िहयोग लो, मां-बाप का िहयोग लो।

वह मां गलत है , जो अपनी बेटी को और अपने बेटे को वे िारे राज नहीं बात जाती,जो उिने
जाने। क्योंकक उिके बताने िे बेटा और उिकी बेटी भल
ू ों िे बच िकती है । उिके न बताने
उनिे भी उन्हीं भल
ू ों को दोहराने की िंभावना है । जो उिने खद
ु की होगी। बाप गलत है , जो
अपने बेटे को अपनी िेम की और अपनी िेक्ि की जजंदगी की िारी बातें नहीं बता दे ता।
क्योंकक बता दे ने िे बेटा उन भूलों िे बच जायेगा। शायद बैटा ज्यादा स्वस्थ हो िकेगा।
लेककन वही बात इि तरह जीयेगा कक बेटे को पता चले कक उिने िेम ही नहीं ककया। वह
इि तरह खडा रहे गा। आंखे पत्थर की बनाकर कक उिकी जजंदगी में कभी कोई औरत इिे
अच्छी लगी ही नहीं थी।
यह िब झूि है । यह िरािर झूि है । तुम्हारे बाप न भी िेम ककया है । उनके बाप ने भी िेम
ककया है । िब बाप िेम करते रहे है । लेककन िब बाप िोखा दे ते रहे है । तुम भी िेम करोगे।
और बाप बनकर िोखा दोगे। यह िोखे की दतु नया अच्छी नहीं है । दतु नया िाफ िीिी होनी
चाठहए। जो बाप ने अनुभव ककया है वह बेटे को दे जाये। जो मां ने अनुभव ककया, वह बेटी
को दे जाये। जो ईष्रा्या उिने अनुभव कक है । जो िेम के अनुभव ककये है । जो गलततयां उिने
की है । जजन गलत रास्तों पर वह भटकी है और भ्सम है । उि िबकी कथा को अपनी बेटी
को दे जाये। जो नहीं दे जाते है , वे बच्चे का ठहत नहीं करते है । अगर हम ऐिा कर िके तो
दतु नया ज्यादा िाफ होगी।

हम दि
ू री चीजों के िंबंि में िाफ हो गये है । शायद केमेस्ट्ी के िंबंि में कोई बात जाननी
हो तो िब िाफ है । कफजज़क्ि के िंबंि में कोई बात जाननी है तो िब िाफ है । भूगोल के
बाबत जाननी हो तो िब िाफ है । नक्शे बने हुए है । लेककन आदमी के बाबत िाफ नहीं है ।
कहीं कोई नक्शा नहीं है । आदमी के बाबत िब झूि है । दतु नया िब तरफ िे प्रवकसित हो
रही है । सिफघ आदमी प्रवकसित नहीं हो रहा। आदमी के िंबंि में भी जजि ठदन चीजें िाफ-
िाफ दे खने की ठहम्मत हम जुटा लें गे। उि ठदन आदमी का प्रवकाि तनज‍चत है ।

यह थोडी बातें मैंने कहीं। मेरी बातों को िोचना। मान लेने की कोई जरूरत नहीं क्योंकक हो
िकता है कक जो मैं कहूं बबलकुल गलत हो। िोचना, िमझना, कोसशश करना। हो िकता है
कोई ित्य तुम्हें ठदखाई पडे। जो ित्य तुम्हें ठदखाई पड जायेंगा। वही तम्
ु हारे जीवन में िकार
का ठदया बन जायेगा।

ओशो
यि
ु क और यौन,

बडौदा,विश्िविद्यालय, बडौदा

संभोग से समाधि की और —27


Posted on माचघ 15, 2011by sw anand prashad

िेम ओर प्रववाह--ओशो
प्रेम ओर वििाह–
मनुष्य की आत्मा, मनुष्य के िाण तनरं तर ही परमात्मा को पाने के सलए आतुर है । लेककन
ककि मनुष्य को? कैिे परमात्मा को? उिका कोई अनुभव, उिका कोई आकार, उिकी कोई
ठदशा मनुष्य को ज्ञात नहीं है । सिफघ एक छोटा िा अनुभव है , जो मनुष्य को ज्ञात है । और
जो परमात्मा की झलक दे िकता है । वह अनुभव िेम का अनुभव है ।

जजिके जीवन में िेम की कोई झलक नहीं है । उिके जीवन में परमात्मा के आने की कोई
िंभावना नहीं है ।

न तो िाथघनाएं परमात्मा तक पहुंचा िकती है । न िमघ शास्र पहुंचा िकते है । न मंठदर


मजस्जद पहुंचा िकते है । न कोई ठहंद ू और न मुिलमानों के, ईिाइयों के, पारसियों के िंगिन
पहुंचा िकते है ।
मंठदर और मजस्जद तो िेम की ज्योतत को बुझाने का काम करते है । जजन्हें हम िमघगुरू
कहते है । वे मनुष्य को मनुष्य िे तोडने के सलए जहर फैलाते है । जजन्हें हम िमघशास्र कहते
है , वे र्ण
ृ ा और ठहंिा के आिार और माध्यम बन गये है ।

जो िेम परमात्मा तक पहुंचा िकता था, वह अत्यंत उपेक्षक्षत होकर जीवन के रास्ते के ककनारे
अंिेरे में कहीं पडा रह गया। इिसलए पााँच हजार वषों िे आदमी िाथघनाएं कर रहा है । भजन
पूजन कर रहा है । मिजजदों और मंठदरों की मूततघयों के िामने सिर टे क रहा है । लेककन
परमात्मा की कोई झलक मनुष्यता को उपलब्ि नहीं हो िकी। परमात्मा की कोई ककरण
मनुष्य के भीतर अवतररत नहीं हो िकी। कोरी िाथघनाएं हाथ में रह गयी है और आदमी रोज
नीचे धगरता गया है । और रोज-रोज अंिेरे में भटकता गया है । आनंद के केवल िपने हाथ में
रह गये है । िच्चाइयााँ अत्यंत दुःु ख पूणघ होती चली गयी है । आज तो आदमी करीब-करीब
ऐिी जगह खडा हो गया है , जहां उिे ख्याल भी लाना अिंभव होता जा रहा है कक परमात्मा
भी हो िकता है ।

क्या आपने कभी िोचा है कक यह र्टना कैिे र्ट गयी है ? क्या नाजस्तक इिके सलए
जजम्मेदार है ? या कक लोगों की आकांक्षाओं और अभीप्िाएं परमात्मा की ठदशा की तरफ जाना
बंद हो गयी है । क्या वैज्ञातनक ओर भौततकवादी लोगो ने परमात्मा के द्वार बंद कर ठदये है ?

नहीं परमात्मा के द्वार इिसलए बंद हो गये है कक परमात्मा का ही द्वार था—िेम और उि


िेम की तरफ हमारा कोई ध्यान ही नहीं गया है । और भी अजीब और कठिन और आ‍चयघ
की बात यह हो गयी है कक तथाकधथत िासमघक लोगों ने समल-जुलकर िेम की हत्या कर दी
और मनुष्य को जीवन में इि भांतत िुव्यवजस्थत करने की कोसशश की गयी है कक उिमें िेम
की ककरण की िंभावना ही न रह जाये।

िेम के अततररक्त मुझे कोई रास्ता नहीं ठदखाई पडता है । जो िभु तक पहुंच िकता है । और
इतने लोग जो वंधचत हो गये है , िभु तक पहुंचने िे वह इिीसलए कक वे िेम तक पहुंचने िे
ही वंधचत रह रहे है ।

िमाज की पूरी व्यवस्था अिेम की व्यवस्था है । पररवार का पूरा का पूरा केंि…..अिेम केंि है ।
बच्चे के गभाघिान, कंिेप्शन िे लेकर उिकी मत्ृ यु तक िारी यारा अिेम की यारा है । और
हम इिी िमाज को इिी पररवार को इिी गह
ृ स्थी को िम्मान ठदये जाते है । अदब ठदये जाते
है । शोरगल
ु मचाये चले जाते है कक बडा पप्रवर पररवार है , बडा पप्रवर िमाज है । बडा पप्रवर
जीवन है । यही पररवार और यही िमाज और यही िभ्यता जजिके गण
ु गान करते हम थकते
नहीं है । मनष्ु य को िेम िे रोकने का कारण बन रहा है ।

इि बात को थोडा िमझ लेना जरूरी होगा। मनुष्यता के प्रवकाि में कहीं कोई बुतनयादी भूल
हो गयी है । यह िवाल नहीं है कक एकाि आदमी ई‍वर को पा ले। कोई कृष्ण,कोई राम, कोई
बुद्ि,कोई क्राइस्ट ई‍वर को उपलब्ि हो जाये। यह कोई िवाल नही है । अरबों-खरबों लोगों में
अगर एक आदमी में ज्योतत उतर भी आती हो तो यह कोई प्रवचार करने की बात नहीं है ।
इिमें तो कोई ठहिाब रखने की जरूरत भी नहीं है ।

एक माली एक बग़ीचा लगाता है । उिने दि करोड पौिे उि बग़ीचे में लगाये है । और एक


पौिे में एक अच्छा िा फूल आ जाये। तो माली की िशंिा करने कौन जायेगा। कौन कहे गा
कक माली तू बहुत कुशल है । तूने जो बग़ीचा लगाया है । वह बहुत अद्भुत हे । दे ख दि करोड
वक्ष
ृ ों में एक फूल खखल गया है । हम कहें गे यह माली की कुशलता का िबूत है । एक फूल
खखल जाना।

माली की भल
ू चक
ू िे खखल गया होगा। क्योंकक बाकी िारे पेड खबर दे रहे है कक माली में
ककतना कौशल है । यह फूल माली के बावजद
ू खखल गया होगा। माली ने कोसशश की होगी कक
न खखल पाये; क्योंकक बाकी िारे पौिे तो खबर दे रहे हे कक माली के फूल कैिे खखले है ।

खरबों लोगों के बीच कोई एकाि आदमी के जीवन में ज्योतत जल जाती है । और हम उिी
को शोरगुल मचाते रहते है हजारों िालों ते पूजा करते रहते है उिी के मंठदर बनाते रहते है ।
उिी का गुण गान करते रहते है । अब तक हम रामलीला कर रहे है । अब तक हम बुद्ि की
जयंती मना रहे है । अब तक महावीर की पूजा कर रहे है । अब तक क्राइस्ट के िामने र्ुटने
टे क रहे है । यह ककि बात का िबूत है ?
यह इि बात का िबूत है कक पााँच हजार िाल में पााँच छह आदसमयों के अततररक्त
आदसमयत के जीवन में परमात्मा का कोई िंपकघ नहीं हो िकता है । नहीं तो कभी के हम
भूल गये होते राम को कभी के भूल गये होत बुद्ि को, कभी के भूल गये होते महावीर को।

महावीर को हुए ढाई हजार िाल हो गये है । ढाई हजार िाल में कोई आदमी नहीं हुआ कक
महावीर को हम भल ू िकते। महावीर को याद रखना पडा। वह एक फूल खखला था, जजिे अब
तक हमें याद रखना पडता है । यह कोई गौरव की बात नहीं है । कक हमें अब तक स्मतृ त है
बुद्ि की, महावीर की, क्राइस्ट की, मुहम्मद की, या जरथत्त्ु ि की। यह इि बात का िबूत है कक
और आदमी होते ही नहीं कक उनको हम भूल िकें। बि दो चार इने-धगने नाम अटके रह गये
है मनुष्य जातत की स्मतृ त में ।

और इन नामों के िाथ हमने क्या ककया। सिवाय उपिव के, ठहंिा के। और उनकी पज
ू ा करने
वाले लोगों ने क्या ककया है सिवाय आदमी के जीवन को नकघ बनाने के। मंठदरों और
मिजजदों के पुजारी यों और पज
ू कों ने जमीन पर जजतनी हत्याएाँ की है । और जजतना खन

बहाया है । और जीवन का जीतना अठहत ककया है । उतना ककिी ने कभी नहीं ककया है । जरूर
कहीं कोई बुतनयादी भूल हो गयी है । नहीं तो इतने पौिे लगें और फूल न आयें। यह बडे
आ‍चयघ की बात है । कहीं भूल जरूर हो गयी है ।

मेरी दृजष्ट में िेम अब तक मनुष्य के जीवन का केंि नहीं बनाया जा िका है । इिीसलए भूल
हो गयी है । और िेम केंि बनेगा। भी नहीं। क्योंकक जजन चीजों के कारण िेम जीवन का केंि
बन रहा है , हम उन्हीं चीजों का शोरगुल मचा रहे है । आदर कर रहे है । िम्मान कर रहे है ,
उन्हीं चीजों को बढावा दे रहे है ।

मनुष्य की जन्म िे लेककर मत्ृ यु तक की यारा की गलत हो गयी है । इिी पर पुनप्रवघचार


करना चाठहए। अन्यथा सिफघ हम कामनाए कर िकते है और कुछ भी उपलब्ि नहीं हो
िकता है । क्या आपको कभी ये बात ख्याल में आयी है कक आपका पररवार िेम का शरु है ?
क्या कभी आपको यह बात ख्याल में आई है । कक आपका िमाज िेम का शरु है । क्या कभी
आपको यह बात ख्याल में आई है कक मनु िे लेकर आज तक के िभी नीतत कार िेम के
प्रवरोिी है ।

जीवन का केंि है —पररवार। और पररवार प्रववाह पर खडा है । जबकक पररवार िेम पर खडा
होना चाठहए था। भूल हो गयी है । आदमी के िारे पाररवाररक प्रवकाि की भूल हो गयी हे ।
पररवार तनसमघत होना चाठहए िेम के केंि पर, ककंतु पररवार तनसमघत ककया जाता है प्रववाह के
केंि पर। इििे ज्यादा झूिी और सम्या बात नहीं हो िकती है ।
िेम और प्रववाह का क्या िंबंि है ?

िेम िे तो प्रववाह तनकल िकता है , लेककन प्रववाह िे िेम नहीं तनकलता और न ही तनकल
िकता है । इि बात को थोडा िमझ लें तो हम आगे बढ िकें।

िेम परमात्मा की व्यवस्था है , और प्रववाह आदमी की व्यवस्था है ।

प्रववाह िामाजजक िंस्था है , िेम िकृतत का दान है ।

िेम तो िाणों के ककिी कोने में अनजाने पैदा होता है ।

लेककन प्रववाह? िमाज, कानून तनयसमत करता है , जस्थर करता है , बनाता है ।

प्रववाह आदमी की ईजाद है ।

और िेम? िेम परमात्मा का दान है ।

हमने िारे पररवार को प्रववाह का केंि पर खडा कर ठदया है । िेम के केंि पर नहीं। हमने यह
मान रखा है कक प्रववाह कर दे ने िे दो व्यजक्त िेम की दतु नया में उतर जायेंगे। अद्भत
ु झि
ू ी
बात है , और पााँच हजार वषों में भी हमको इिका ख्याल नहीं आ िका हे । हम अद्भत
ु अंिे
है । दो आदसमयों के हाथ बााँि दे ने िे िेम के पैदा हो जाने की कोई जरूरत नहीं है । कोई
अतनवायघता नहीं है । बजल्क िच्चाई यह है कक जो लोग बंिा हुआ अनुभव करते है , वे आपि
में िेम कभी नहीं कर िकते।

िेम का जन्म होता है स्वतंरता में । िेम का जन्म होता है स्वतंरता की भूसम में —जहां कोई
बंिन नहीं, कोई मजबूरी नहीं है ।

ककंतु हम अप्रववाठहत स्री या पुरूष के मन में युवक ओर युवती के मन में उि िेम की


पहली ककरण का गला र्ोंटकर हत्या कर दे ते है । कफर हम कहते है कक प्रववाह िे िेम पैदा
होना चाठहए। वह बबलकुल पैदा ककया, कलठटवेटेड होता है । कोसशश िे लाया गया होता है।
वह िेम वास्तप्रवक नहीं होता, वह िेम िहज-स्फूतघ, स्पांटेतनअि, नहीं होता है । वह िेम िाणों िे
िहज उिता नही है । फैलता नहीं है । जजिे हम प्रववाह िे उत्पन्न िेम कहते है । वह िेम
केवल िहवाि के कारण पैदा हुआ मोह होता है । िाणों की ललक और िाणों का आकषघण
और िाणों की प्रवद्युत वहां अनुपजस्थत होती है ।
और इि तरह िे पररवार बनता है । इि प्रववाह िे पैदा हुआ पररवार और पररवार की पप्रवरता
की कथाओं का कोई ठहिाब नहीं है । पररवार की िशंिाओं,स्तुततयों की कोई गणना नहीं है ।
और यहीं पररवार िबिे कुरूप िंस्था िाबबत हुई है । पूरी मनुष्यजातत को प्रवकृत करने में ।
िेम िे शून्य पररवार मनुष्य को प्रवकृतत करने में , अिासमघक करने में , ठहंिक बनाने में िब िे
बडा िंस्था िाबबत हुई है । िेम िे शून्य पररवार िे ज्यादा अिुंदर और कुरूप,अगली कुछ भी
नहीं है । और वही अिमघ का अड्डा बना हुआ है ।

जब हम एक युवक और युवती को प्रववाह में बााँिते है बबना िेम के, बबना आंतररक पररचय
के, बबना एक दि
ू रे के िाणों के िंगीत के; तब हम केवल पंडडत के मंरों में और वेदों की पूजा
में और थोथे उपक्रम में उनको प्रववाह िे बााँि दे ते है । कफर आशा करते है कक उनके जीवन
में िेम पैदा हो जायेगा। िेम तो पैदा नही होता है , सिफघ उनके िंबंि कामुक िेक्िुअल होते
है । क्योंकक िेम तो पैदा ककया जा िकता है । िेम पैदा हो जाय तो व्यजक्त िाथ जुडकर
पररवार तनमाघण कर िकता है । दो व्यजक्तयों को पररवार के तनमाघण के सलए जोड ठदया जाये
और कफर आशा की जाये कक िेम पैदा हो जाये, यह नहीं हो िकता।

जब िेम पैदा नहीं होता है , तो क्या पररणाम होते है , आपको पता है ?

एक-एक पररवार में कलह है । जजिको हम गह


ृ स्थी कहते है , प्रव िंर्षघ, कलह, द्वेष, ईष्याघ, और
चौबीि र्ंटे उपिव का अड्डा बनी हुई है । लेककन न मालूम हम कैिे अंिे है कक दे खने की
कोसशश भी नहीं करते। बाहर जब हम तनकलते है तो मुस्कराते हुए तनकलते है । र्र के िब
आंिू पोंछकर बाहर जाते है —पत्नी भी हं िती हुई मालूम पडती है । पतत भी हं िता हुआ
मालूम पडता है । ये चेहरे झूिे है । ये दि
ू रों को ठदखाई पडने वाले चेहरे है । र्र के भीतर के
चेहरे बहुत आंिओ
ु ं िे भरे हुए है । चौबीि र्ंटे कलह और िंर्षघ में जीवन बीत रहा है । कफर
इि कलह और िंर्षघ के पररणाम भी होंगे ही।

िेम के अततररक्त जगत के ककिी व्यजक्त के जीवन में आत्म तजृ प्त नहीं उपलब्ि होती।

क्रमश अगले लेख में …………

ओशो
प्रेम और वििाह

संभोग से समाधि की और

प्रिचन—8
संभोग से समाधि की और —28
Posted on माचघ 18, 2011by sw anand prashad

िेम ओर प्रववाह--ओशो

प्रेम ओर वििाह–
िेम जो है , वह व्यजक्तत्व की तजृ प्त का चरम बबंद ु है । और जब िेम नहीं समलता है तो
व्यजक्तत्व हमेशा मांग करता है कक मुझे पूततघ चाठहए। व्यजक्तत्व हमेशा तडपता हुआ अतप्ृ त
हमेशा अिरू ा बेचन
ै रहता है । यह तडपता हुआ व्यजक्तत्व िमाज में अनाचार पैदा करता है ।
क्योंकक तडपता हुआ व्यजक्तत्व िेम को खोजने तनकलता है । उिे प्रववाह में िेम नहीं समलता।
वह प्रववाह के अततरजक्त िेम को खोजने की कोसशश करता है ।

वे‍याएं पैदा होती है प्रववाह के की कारण।

प्रववाह है मूल,रूट। प्रववाह है जड वे‍याओं के पैदा करने की। और अब तक तो स्री वे‍याएं


थी, ककंतु अब तो िभ्य मुल्कों में पुरूष वे‍याएं मेल िास्टी्यूट उपलब्ि है । वे‍याएं पैदा
होगीं। क्योंकक पररवार में जो िेम उपलब्ि होना चाठहए था। वह नहीं उपलब्ि हो रहा है ।
आदमी दि
ू रे र्रों में झांक रहा है उि िेम के सलए। वे‍याएं होगी।
और अगर वे‍याएं रोक दी जायेगी तो दि
ू रे पररवारों में पीछे के द्वारों िे पाप के रास्ते
तनसमघत होंगे। इिीसलए तो िारे िमाज ने यह तय कर सलया है कक कुछ वे‍याएं तनज‍चत कर
दो। ताकक पररवारों का आचरण िुरक्षक्षत रहे । स्रीयों को पीडा में डाल दो। ताकक बाकी जस्रयां
पततव्रता बनी रह िके।

लेककन जो िमाज ऐिा अनैततक उपाय खोजता है , जजि िमाज में वे‍याएं जैिी अनैततक
िंस्थाएं ईजाद करना पडती है , जान लेना चाठहए कक वह पूरा िमाज बुतनयादी रूप में पूरा
अनैततक होगा। अन्यथा यह अनैततक ईजाद की आव‍यकता नहीं थी।

वे‍या पैदा होती है , अनाचार पैदा होता है , व्यसभचार पैदा होता है । तलाक पैदा होते है । यठद
तलाक न होता न व्यसभचार होता,और न अनाचार होत, तो र्र एक चौबीि र्ंटे का मानसिक
तनाव, ऐंग्जाइटी बन जाता।
िारी दतु नया में पागलों की िंख्या बढती गयी है । ये पागल पररवार के भीतर पैदा होते है ।

िारी दतु नयां में जस्रयां ठहस्टीररया और न्यूरोसिि िे पीडडत है । प्रवक्षक्षप्त उन्माद िे भरती
चली जा रही है । बेहोश होती धगरती है , धचल्लाती है ।

पुरूष पागल होते चले जा रहे है । एक र्ंटे में जमीन पर एक हजार आत्म हत्याएाँ हो जाती
है । और हम धचल्लाये जा रहे है —िमाज हमारा बहुत महान है । ऋप्रष-मुतनयों ने तनसमघत ककया
है । हम धचल्लाये जा रहे है कक बहुत िोच-प्रवचार िे िमाज के आिार रखे गये है । कैिे
ऋप्रष-मतु न और कैिे ये आिार। अभी एक र्ंटा मैं बोलंू तो इि बीच एक हजार आदमी कहीं
छुरा मार लें गे। तो कहीं ट्े न के नीचे लेट जायेंगे। तो कोई जहर पी लेगा। उन एक हजार
लोगों की जजंदगी कैिी होगी, जो हर र्ंटे मरने को तैयार हो जाते है ?

आप यह मत िोचना कक वे जो नहीं मरते है , वे बहुत िुखमय है । कुल जमा कारण यह है


कक वे मरने की ठहम्मत नहीं जुटा पाते। उनके िुख का कोई भी िवाल नहीं है । वे कायर है ।
मरने की ठहम्मत नहीं जुटा पाते है तो जजये चले जाते है । िक्के खाये चले जाते है । िोचते
है , आज गलत है तो कल िीक हो जायेगा। परिों िब िीक हो जायेगा। लेककन मजस्तष्क
उनके रूग्ण होते चले जाते है ।

िेम के अततररक्त कोई आदमी कभी स्वस्थ नहीं हो िकता।

िेम जीवन में न हो तो मजस्तष्क रूग्ण होगा। धचंता िे भरे गा, आदमी शराब प्रपयेगा। नशा
करे गा। कहीं जाकर अपने को भूल जाना चाहे गा। दतु नया में बढती हुई शराब शराबबयों के
कारण नहीं है । पररवार ने उि हालत में ला ठदया है लोगों को कक बबना बेहोश हुए थोडी दे र
के सलए भी रास्ता समलना मुज‍कल हो गया है । तो लोग शराब पीने चले जायेंगे। लोग बेहोश
पडे रहें गे लोग हत्या करें गे, लोग पागल होते चले जायेंगे।

अमरीका में िततठदन बीि लाख आदमी अपना मानसिक इलाज करवा रहे है । ये िरकारी
आंकडे है । आप तो भली भांतत जानते है िरकारी आंकडे कभी भी िही नहीं होते है । बीि
लाख िरकार कहती है । तो ककतने लोग इलाज करा रहे होंगे। यह कहना मुज‍कल है । जो
अमरीका की हालत है वह िारी दतु नयां की हालत है ।

आितु नक यग
ु के मानप्रवद यह कहते है कक करीब-करीब चार आदसमयों में दो आदमी
एबनामघल हो गये है । चार आदसमयों में तीन आदमी रूग्ण हो गये है । स्वस्थ नहीं है । जजि
िमाज में चार आदसमयों में तीन आदमी मानसिक रूप िे रूग्ण हो जाते हों, उि िमाज के
आिारों को उिकी बुतनयादों को कफर िे िोच लेना जरूरी है । नहीं तो कल चार आदमी भी
रूग्ण होंगे और कफर िोचने वाले भी शेष नहीं रह जायेंगे। कफर बहुत मुज‍कल हो जायेगी।

लेककन होता ऐिा है कक जब एक ही बीमारी िे िारे लोग ग्रसित हो जाते है । तो उि बीमारी


का पता नहीं चलता। हम िब एक जैिे रूग्ण, बीमार, परे शान है ; तो हमें पता नहीं चलता।
िभी ऐिे है इिीसलि स्वस्थ मालूम पडते है । जब िभी ऐिे है , तो िीक है । दतु नयां चलती है ,
यही जीवन हे । जब ऐिी पीडा ठदखाई दे ती है तो हम ऋप्रष-मुतनयों के बचन दोहराते है कक
वह तो ऋप्रष-मुतनयों ने पहले ही कह ठदया था। की जीवन दुःु ख है ।

यह जीवन दुःु ख नहीं है । यह दुःु ख हम बनाये हुए है । वह तो पहले ही ऋप्रष-मतु नयों ने कह


ठदया था। कक जीवन तो आिार है , उििे छुटकारा पाना चाठहए। जीवन अिार नहीं है । यह
अिार हमने बनाया हुआ है ।

जीवन िे छुटकारा पाने की िब बातें दो कौडी की है । क्योंकक जो आदमी जीवन िे छुटकारा


पाने की कोसशश करता है वह िभु को कभी उपलब्ि नहीं हो िकता। क्योंकक जीवन िभु है ,
जीवन परमात्मा है । जीवन में परमात्मा ही तो िकट हो रहा है । उििे जो दरू भागेगा,वह
परमात्मा िे ही दरू चला जायेगा।

जब एक िी बीमारी पकडती है । तो ककिी को पता नहीं चलता है । पूरी आदसमयत जड िे


रूग्ण है । इिसलए पता नहीं चलता, तो दि
ू री तरकीबें खोजते है इलाज के सलए। मूल कारण,
एक्जुअलठट जो है , बुतनयादी कारण जो है । उिको िोचते नहीं। ऊपरी इलाज भी क्या िोचते
है ? एक आदमी शराब पीने लगता है । जीवन िे र्बराकर। एक आदमी नत्ृ य दे खने लगता है ,
वे‍या के र्र जाकर, दि
ू रा आदमी सिनेमा में बैि जाता है । तीिरा आदमी चन
ु ाव लडने लगता
है । ताकक भूल जाय िबको। चौथा आदमी मंठदर में जाकर भजन कीतघन करने वाला भी खद

के जीवन को भूलने की कोसशश कर रहा है । यह कोई परमात्मा को पाने का रास्ता नहीं है ।

परमात्मा तो जीवन में िवेश िे उपलब्ि होता है । जीवन िे भागने िे नहीं। ये िब पलायन
एस्केप है । एक आदमी मंठदर में भजन कीतघन कर रहा है ठहल-डुल रहा है । हम कहते है कक
भक्त जी बहुत आनंठदत है । भजक्त जी आनंठदत नहीं हो रहा है । भक्त जी ककिी दुःु ख िे
भोगे हुए है । वह भल
ु ाने की कोसशश कर रहे है । शराब काही यह दि
ू रा रूप है । यह
आध्याजत्मक नशा, जस्िचुअल इंटाक्िीकेशन, यह अध्यात्म के नाम िे नहीं शराबें है । जो िारी
दतु नया में जलती है । इन लोगों ने भाग-भाग कर जजंदगी को बदला नहीं आज तक। जजंदगी
वहीं की वही दुःु ख िे भरी हुई है । और जब भी कोई दुःु खी हो जाता है वह भी इनके पीछे
चला जाता है । कक हमको भी गुरु मंर दे दें । हमारा भी कान फूंक दें कक हम भी इिी तरह
िुखी हो जायें। जैिे आप हो गये है । लेककन यह जजंदगी क्यों दुःु ख पैदा कर रही है । इिको
दे खने के सलए इिके प्रवज्ञान को खोजने के सलए कोई भी जाता नहीं है ।

मेरी दृजष्ट में यह है कक जहां जीवन की शुरूआत होती है , वहीं कुछ गडबड हो गयी है । वह
गडबड यह हो गयी है कक हमने मनुष्य जातत पर िेम की जगह प्रववाह थोप ठदया है । यठद
प्रववाह होगा तो ये िारे रूप पैदा होंगे। और जब दो व्यजक्त एक दि
ू रे िे बंि जाते है और
उनके जीवन में कोई शांतत और तजृ प्त नहीं समलती, तो वे दोनों एक दि
ू रे पर क्रुद्ि हो जाते
है । कक तेरे कारण मुझे शांतत नहीं समल रही। वे कहते है , ‘’तेरे कारण मुझे शांतत नहीं समल
पा रही है ।‘’ वे एक दि
ू रे को िताना शुरू करते है । परे शान करना शुरू करते है । और इिी
है रानी इिी परे शानी इिी कलह के बीच बच्चों का जन्म होता है । ये बच्चे पैदाइश िे ही
प्रवकृत परवटे ड हो जाते है।

मेरी िमझ में , मेरी दृजष्ट में मेरी िारणा में जज ठदन आदमी परू ी तरह आदमी के प्रवज्ञान को
प्रवकसित करे गा। तो शायद आपको पता लगे कक दतु नया में बद्
ु ि कृष्ण और क्राइस्ट जैिे
लोग शायद इिीसलए पैदा हो िके है कक उनमें मां-बाप ने जजि क्षण िंभोग ककया था, उि
िमय वे अपूवघ िेम िे िंयुक्त हुए थे। िेम के क्षण में गभघस्थापन, कंिेप्शन हुआ था। यह
किी ठदन जजि ठदन जन्म प्रवज्ञान पूरी तरह प्रवकसित होगा। उि ठदन शायद हमको यह
पता चलेगा कक जो दतु नया मैं थोडे िे अद्भुत लोग हुए—शांत आनंठदत, िभु को उपलब्ि—वे
लोग वे ही थे। जजनका पहला अणु िेम की दीक्षा िे उत्पन्न हुआ था। जजनका पहला अणु
िेम के जीवन में िराबोर पैदा हुआ था।

पतत और पत्नी कलह िे भरे हुए है , क्रोि िे, ईष्याघ िे; एक दि


ू रे के ितत िंर्षघ िे, अहं कार िे,
एक दि
ू रे की छाती पर चढे हुए है । एक दि ू रे के मासलक बनना चाह रहे है । इिी बीच उनके
बच्चे पैदा हो रहे है । ये बच्चे ककिी आध्याजत्मक जीवन में कैिे िवेश पायेंगे?

मैंने िुना है एक र्र में एक मां ने अपने बेटे और छोटी बेटी को—वे दोनों बेटे और बेटी
बाहर मैदान में लड रहे थे। एक दि
ू रे पर र्ूंिेबाजी कर रहे थे—कहा कक आरे यह क्या कर
रहे हो। ककतनी बार मैने िमझाया कक लडा मत करो, आपि में लडों मत। उि लडके ने
कहा,हम लड नहीं रहे है , हम तो मम्मी—डैडी का खेल कर रहे है । वी आर जाट फाइठटंग, बी
आर प्ले इंग मम्मी डैडी। जो र्र में रोज हो रहा है । वह हम दोहरा रहे है । यह खेल जन्म
के क्षण िे शुरू हो जाता है । इि िंबंि में दो चार बातें िमझ लेनी बहुत जरूरी है ।

ओशो
प्रेम और वििाह
संभोग से समाधि की और

प्रिचन—8

संभोग से समाधि की और —29


Posted on माचघ 23, 2011by sw anand prashad

प्रववाह ओर िेम--ओशो

प्रेम ओर वििाह–
मेरी दृजष्ट में जब तक एक स्री और पुरूष पररपूणघ िेम के आिार पर समलते हे , उनका
िंभोग होता है । उनका समलन होता है तो उि पररपूणघ िेम के तल पर उनके शरीर ही नहीं
समलते है । उनकी आत्मा भी समलती है । वे एक लयपूणघ िंगीत में डूब जाते है । वे दोनों
प्रवलीन हो जाते है , और शायद परमात्मा ही शेष रह जाता है उि क्षण। उि क्षण जजि बच्चो
का गभाघिान होता है । वह बच्चा परमात्मा को उपलब्ि हो िकता है । क्योंकक िेम के क्षण का
पहला कदम उिके जीवन में उिा सलया गया है ।
लेककन जो मां-बाप, पतत और पत्नी आपि में द्वेष िे भरे है , िण
ृ ा िे भरे है , क्रोि िे भरे है ।
कलह िे भरे है , वे भी समलते है ; लेककन उनके शरीर ही समलते है । उनकी आत्मा और िाण
नहीं समलते। उनके शरीर के ऊपरी समलन िे जो बच्चे पैदा होते है । वे अगर शरीर वादी
मैठटररयासलस्ट पैदा होते है । बीमार और रूग्ण पैदा होते है । और उनके जीवन में अगर आत्मा
की प्याि पैदा न होती हो, तो दोष उन बच्चों को मत दे ना। बहुत ठदया जा चक
ु ा यह दोष।
दोष दे ना उन मां बाप को, जजनकी छप्रव लेकर वह जन्मते है । जजनका िब अपराि और
जजनकी िब बीमाररयां लेककन जन्मते है । और जजनका िब क्रोि और र्ण
ृ ा लेकर जन्मते है ।
जन्म के िाथ उनका पौिा प्रवकृत हो जाता है । कफर इनको प्रपलाओ गीता, इनको िमझाओ
कुरान, इनिे कहो कक िाथघनाएं करो—जो झि
ू ी हो जाती है । क्योंकक िेम का बीज ही शरू
ु नहीं
हो िका जो िाथघनाएं कैिे शरू
ु हो िकती है ।

जब एक स्री और पुरूष पररपूणघ िेम और आनंद में समलते है । तो वह समलन एक


आध्याजत्मक कृत्य जस्िचुअल एक्ट हो जाता है । कफर उिका काम, िेक्ि िे कोई िंबंि नहीं
है । वह समलन कफर कामुक नहीं है । वह समलन शारीररक नही है । वह समलन अनूिा है । वह
उतना ही महत्वपूणघ है । जजतनी ककिी योगी की िमाधि। उतना ही महत्वपूणघ है वह समलन,
जब दो आत्माएं पररपूणघ िेम िे िंयुक्त होती है । उतना ही पप्रवर है वह कृत्य—क्योंकक
परमात्मा उिी कृत्य िे जीवन को जन्म दे ता है । और जीवन को गतत दे ता है ।

लेककन तथाकधथत िासमघक लोगों ने, तथाकधथत झूिे िमाज ने, तथाकधथत झूिे पररवार ने
यही िमझाने की कोसशश की है कक िेक्ि,काम, यौन, अपप्रवर है , र्खृ णत है । तनतांत पागलपन
की बातें है । अगर यौन र्खृ णत और अपप्रवर है । तो िारा जीवन अपप्रवर हो गया। अगर
िेक्ि पाप है तो पूरा जीवन पाप हो गया। पूरा जीवन तनंठदत कंडम हो गया। अगर जीवन
ही पूरा तनंठदत हो जायेगा, तो कैिे िच्चे लोग उपलब्ि होंगे। जब जीवन ही पूरा का पूरा पाप
है तो िारी रात अंिेरी हो गयी है । अब इिमें िकाश की ककरण कहीं िे लानी पडेगी।

मैं आपको बि एक बात कहना चाहता हूं कक एक नयी मनष्ु यता के जन्म के सलए िेक्ि की
पप्रवरता, िेक्ि की िासमघकता स्वीकार करना अत्यंत आव‍यक है ; क्योंकक जीवन उििे
जन्मता है । परमात्मा उिी कृत्य िे जीवन को जन्माता है ।

परमात्मा ने जजिको जीवन की शुरूआत बनाया है । वह पाप नहीं हो िकता है , लेककन आदमी
ने उिे पाप कर ठदया है ।

जो चीज िेम िे रठहत है , वह पाप हो जाती है । जों चीज िेम िे शून्य हो जाती है । वह
अपप्रवर हो जाती है । आदमी की जजंदगी में िेम नहीं रहा। इिसलए केवल कामुकता,
िेक्िुअसलटी रह गयी है । सिफघ यौन रह गया है । वह यौन पाप हो गया है । वह यौन पाप
नहीं है , वह हमारे िेम के आभाव का पाप है । और उि पाप िे िारा जीवन शुरू होता है ।
कफर बच्चे पैदा होत है । कफर बच्चे जन्मते है ।

स्मरण रहे , जो पत्नी अपने पतत को िेम करती है। उिके सलए पतत परमात्मा हो जाता है ।
शास्रों के िमझाने िे नहीं होती है यह बात। जो पतत अपनी पत्नी िे िेम करता है । उिके
सलए पत्नी भी परमात्मा हो जाती है , क्योंकक िेम ककिी को भी परमात्मा बना दे ता है ।
जजिकी तरफ उिकी आंखें िेम िे उिती है , वह परमात्मा हो जाता है । परमात्मा को कोई
अथघ नहीं है ।

िेम की आाँख िारे जगत को िीरे -िीरे परमात्मा मय दे खने लगती है ।

लेककन जो एक को ही िेम िे भर नहीं पाता और िारे जगत को ब्रह्मा मय दे खने की बातें


करता है , उिकी वे बातें झूिी है । उन बातों का कोई आिार और अथघ नहीं है ।
जजिने कभी एक को िेम नहीं ककया। उिके जीवन में परमात्मा की कोई शुरूआत ही नहीं हो
िकती, क्योंकक िेम के ही क्षण में पहली दफा कोई व्यजक्त परमात्मा हो जाता है । वह पहली
झलक है िभु की। कफर उिी झलक को आदमी बढता है , और एक ठदन वही झलक पूरी हो
जाती है । िारा जगत उिी रूप में स्थांतररत हो जाता है । लेककन जजिने पानी की कभी बूंद
नहीं दे खी। वह कहता है पानी की बूंद िे मुझे कोई मतलब नहीं है । पानी की बूंद का मैं क्या
करूंगा। तुमने पानी की बूंद भी नहीं दे खी, पानी की बूंद भी नहीं जानी, नहीं िमझी, नहीं
चखी। और चले हो िागर को खोजने। तो तम
ू पागल हो। क्योंकक िागर क्या है ? पानी की
अनंत बाँद
ू ों का जोड।

परमात्मा क्या है ? िेम की अनंत बाँद


ू ों का जोड हे । तो िेम की अगर एक बूंद तनंठदत है तो
पूरा परमात्मा तनंठदत हो गया। कफर हमारे झूिे परमात्मा खडे होंगे, मूततघयां खडी होंगी। पूजा
पाि होंगे,िब बकवाि होगी। लेककन हमारे िाणों का कोई अंतर िंबंि उििे नहीं हो िकता।
और यह भी ध्यान में रख लेना जरूरी है कक कोई स्री अपने पतत को िेम करती है , जीवन
िाथी को िेम करती है , तभी िेम के कारण पूणघ िेम के कारण ही वह िीक अथों में मां बन
पाती है । बच्चे पैदा कर लेने मार िे कोई मां नहीं बन जाती। मां ता कोई स्री तभी बनती है
और प्रपता कोई पुरूष तभी बनता है जब कक उन्होंने एक दि
ू रे को िेम ककया हो।

जब पत्नी अपने पतत को िेम करती है , अपने जीवन िाथी को िेम करती है तो बच्चे उिे
अपने पतत का पुनजघन्म मालूम पडते है । वह कफर वही शक्ल है ,कफर वही रूप है । कफर वहीं
तनदोष आंखे है । जो उिके पतत में तछपी थी। कफर िकट हुई है । उिने अगर अपने पतत को
िेम ककया है । तो वह बच्चे को िेम कर िकती है । बच्चे को ककया गया िेम, पतत को ककया
गया िेम की िततध्वतन है । यह पतत ही कफर वापि लौट आया है । बच्चे का रूप लेकर। बच्चे
को ककया गया िेम, पतत कफर पप्रवर और नया हो कर वापि लोट आया है ।

लेककन अगर पतत के ितत िेम नहीं है तो बच्चे के ितत कैिे हो िकता है ।

बाप भी तभी कोई बनता है जब वह अपनी पत्नी को इतना िेम करता है । कक पत्नी भी उिे
परमात्मा ठदखाई दे ती है । तब बच्चा कफर िे पत्नी का ही लोटा हुआ रूप है । पत्नी को जब
उिने पहली बार दे खा था। तब वह जैिी तनदोष थी, तब वह जैिी शांत थी। तब जैिी िुंदर
थी, तब उिकी आंखे जैिी झील की तरह थी। इि बच्चे में वापि लोट आई है । इन बच्चों में
कफर वही चेहरा वापि लौट आया है । ये बच्चे कफर उिी छप्रव में नये होकर आ गये है —जैिे
प्रपछले बिंत में फूल खखले थे। प्रपछले बिंत में पत्ते आये थे। कफर िाल बीत गया। पुराने
पत्ते धगर गये है। कफर नयी कोंपलें तनकल आयी है । कफर नये पत्तों िे वक्ष
ृ भर गया है ।
कफर लौट आया है बिंत। कफर िब नया हो गया है । लेककन जजिने प्रपछले बिंत को ही िेम
नहीं ककया था। वह इि बिंत को कैिे िेम कर िकेगा।
जीवन तनरं तर लोट रहा है । तनरं तर जीवन का पुनजघन्म चल रहा है । रोज नया होता चला
जाता है । पुराने पत्ते धगर जाते है । नये आ जाते है । जजिने प्रपछले बिंत को िेम नहीं ककया
इि बिंत को कैिे कर िकता है ।

जीवन तनरं तर लौट रहा है । तनरं तर जीवन का पुनजघन्म चल रहा है । रोज नया होता है , पुराने
पत्ते धगर जाते है । नये आ जाते है । जीवन की यह िज
ृ नात्मकता, कक्रएठटव टी ही तो
परमात्मा है । यही तो िभु है । जो इिको पहचानेगा। वही तो उिे पहचानेगा।

लेककन न मां बच्चे को िेम कर पाती है । न प्रपता बच्चे को िेम कर पाता है । और जब मां
और बाप को िेम नहीं कर पाते है । तो बच्चे जन्म िे ही पागल होने के रास्ते पर िंलग्न हो
जाते है । उनको दि
ू समलता है , कपडे समलते है , मकान समलता है । लेककन िेम नहीं समलता है ।
िेम के बबना उनको परमात्मा नहीं समल िकता है । और िब समल िकता है ।

अभी रूि का एक वैज्ञातनक बंदरों के ऊपर कुछ ियोग करता था। उिने कुछ नकली बंदररयााँ
बनायी। नकली बबजली के यंर, हाथ और पैर उनके बबजली के तारों का ढांचा। जो बंदर पैदा
हुए, उनको नकली माताओं के पाि िर ठदया गया। नकली माताओं िे वे धचपक गये। वे
पहले ठदन के बच्चे थे। उनको कुछ पता नहीं कक कौन अिली है , कौन नकली। वे नकली मां
के पाि ले जाये गये। पैदा होते ही उनकी छाती िे धचपक गये। नकली दि
ू है वह उनके मुंह
में जा रहा हे । वे पी रहे है , वह धचपके रहते है । वह बंदररया नकली है । वह ठहलती रहती है ,
बच्चे िमझते है मां ठहल-ठहल कर झूला रही हे । ऐिे बीि बंदर के बच्चों को नकली मां के
पाि पाला गया और उनको अच्छा दि
ू ठदया गया। मां ने उनको अच्छी तरह ठहलाया-डुलाया।
मां कूदती -फााँदती िब करती। वे बच्चे स्वस्थ ठदखाई पडते थे। कफर वे बडे भी हो गये।
लेककन वे िब बंदर पागल तनकले। वे िब अिामान्य,एबनामघल िाबबत हुए। उनको….उनका
शरीर अच्छा हो गया; लेककन उनका व्यवहार प्रवक्षक्षप्त हो गया।

वैज्ञातनक…दि ू समला….बडे है रान हुए कक इनको क्या हुआ। इनको िब तो समला, कफर वे
प्रवक्षक्षप्त कैिे हो गये?

एक चीज जो वैज्ञातनक की लेबोरे टरी में नहीं पकडी जा िकीं थी। वह उनको नहीं समली—िेम
उनको नहीं समला,जो उन 20 बंदरों की हालत हुई, वहीं िाढे तीन अरब मनष्ु यों की हो रही
है । झूिी मां समलती है , झूिा बाप समलता है । नकली मां ठहलती है , नकली बाप ठहलता है ।
और ये बच्चे प्रवक्षक्षप्त हो जाते है । और हम कहते है कक ये शांत नहीं होते। अशांत होते चले
जाते है । ये छुरे बाजी करते है । ये लडककयों पर एसिड फेंकते है । ये कालेज में आग लगाते
है । ये बि पर पत्थर फेंकते है , ये मास्टर को मारते है । मारें गे,मारे बबना इनको कोई रास्ता
नहीं। अभी थोडा–थोडा मारते है । कल और ज्यादा मारें गे।
तुम्हारे कोई सशक्षक, तुम्हारे कोई नेता, तुम्हारे कोई िमघगुरू इनको नहीं िमझा िकेंगे। क्योंकक
िवाल िमझाने का नहीं है । आत्मा ही रूग्ण पैदा हुई हे । यह रूग्ण आत्मा प्याि पैदा करे गी।
यह चीजों को तोडगी, समटाये गी। तीन हजार िाल िे जो चलती थी बात, वह चरम पररणतत
क्लाइमैक्ि पर पहुंच रही है । िौ डडग्री तक हम पानी को गरम करते है । पानी भाप बनकर
उड जाता है । तनन्यानवे डडग्री तक पानी बना रहता है । कफर िौ डडग्री पर भाप बनने लगता
है ।

िौ डडग्री पर पहुंच गया है आदसमयत का पागलपन। अब वह भाप बनकर उडना शुरू हो रहा
है । मत धचल्लाइए, मत परे शान होइए। बनने दीजजए भाप। आप उपदे श दे ते रठहये। अपने
िािु िंतों िे कठहए िमझाते रहा करे । अच्छी-अच्छी बातें और गीता की टीकाएं करते रहें ।
करते रहो िवचन-टीका गीता पर, और दोहराते रहो पुराने शब्दों को। ये भाप बननी बंद नहीं
होगी। ये भाप बननी तब बंद होगी। जब जीवन की पूरी िकक्रया को हम िमझेंगे कक कहीं
कोई भूल हो रही है । कहीं कोई भूल हुई है ।

और वह कोई आज की भूल नहीं है । चार पााँच हजार िाल की भूल है । जो सशखर क्लाइमैक्ि
पर पहुंच गयी है । इिसलए मुज‍कल खडी हुई है । ये िेम ररक्त बच्चे जन्मते है और िेम िे
ररक्त हवा में पाले जाते है । कफर यही नाटक ये दोहरायेंगे। मम्मी और डैडी का पुराना खेल।
ये कफर बडे हो जायेंगे। कफर वे यह नाटक दोहरायेंगे, कफर प्रववाह में बांिे जायेंगे; क्योंकक
िमाज िेम को आज्ञा नहीं दे ता। न मां पिंद करती है कक मेरी लडकी ककिी को िेम करे । न
बाप पिंद करते है कक मेरा बेटा ककिी को िेम करे । न िमाज पिंद करता है कक कोई ककिी
को िेम करे । वह कहता है िेम तो होना ही नहीं चाठहए। िेम तो पाप है । वह तो बबलकुल ही
योग्य बात नहीं है। प्रववाह होना चाठहए। कफर िेम नहीं होगा। वही पठहया पूरा का पूरा र्ूमता
है ।

आप कहें गे कक जहां िेम होता है । वहां भी कोई बहुत अच्छी हालत मालम
ू नहीं पडती। नहीं
मालम
ू पडती। नहीं मालम ू होगी, क्योंकक िेम को आप जजि भांतत मौका दे ते है , उिमें िेम
एक चोरी की तरह होता है , िेम एक िीक्रेिी की तरह िेम करने वाले डरते है । र्बराये हुए
िेम करते है । चोरों की तरह िेम करते है । अपरािी प्रविोह में वे िेम करते है । यह िेम भी
स्वास्थ नहीं है । िेम के सलए स्वस्थ हवा नहीं है , इिके पररणाम भी अच्छे नहीं हो िकते।

िेम के सलए िमाज को हवा पैदा करनी चाठहए। मौका पैदा करना चाठहए। अविर पैदा करना
चाठहए।

िेम की सशक्षा दी जानी चाठहए, दीक्षा दी जानी चाठहए।


िेम की तरफ बच्चों को प्रवकसित ककया जाना चाठहए। क्योंकक वही उनके जीवन का आिार
बनेगा। वहीं उनके पूरे जीवन का केंि बनेगा। उिी केंि िे उनका जीवन प्रवकसित होगा।

लेककन अभी िेम की कोई बात नहीं है । उििे हम दरू खडे रहते है , आंखे बंद ककये खडे रहते
है । न मां बच्चे िे िेम की बात करती है । और न बाप। न उन्हें कोई सिखाता है कक िेम
जीवन का आिार है । न उन्हें कोई तनभघय बनाता है कक तुम िेम के जगत में तनभघय होना।
न कोई उनिे कहता है कक जब तक तुम्हारा ककिी िे िेम न हो तब तक तुम प्रववाह मत
करना, क्योंकक वह प्रववाह गलत होगा, झूिा होगा, पाप होगा। वह िारी कुरूपता की जड होगा
और िारी मनुष्यता को पागल करने का कारण होगा।

ओशो
प्रेम और वििाह

संभोग से समाधि की और

प्रिचन—8

संभोग से समाधि की और —30


Posted on अिैल 1, 2011by sw anand prashad

प्रेम ओर वििाह–

िेम ओर प्रववाह--ओशो

अगर मनष्ु य जातत को परमात्मा के तनकट लाना है , तो पहला काम परमात्मा की बात मत
कररये। मनष्ु य जातत को िेम के तनकट ले आइये। जीवन जोखखम भरा है । न मालम
ू ककतने
खतरे हो िकते है । जीवन की बनी-बनाई व्यवस्था में न मालम
ू ककतने पररवतघन करने पड
िकते है । लेककन न पर करें गे पररवतघन तो यह िमाज अपने ही हाथ मौत के ककनारे पहुंच
गया है । इिसलए मर जाएगा। यह बच नहीं िकता। िेम िे ररक्त लोग ही युद्िों को पैदा
करते है । िेम िे ररक्त लोग ही अपरािी बनते है। िेम िे ररक्त ही अपराि, कक्रमीनसलटी की
जड है और िारी दतु नयां में अपरािी फैलते चले जाते है ।
जैिे मैंने आपिे कहा कक अगर ककिी ठदन जन्म प्रवज्ञान प्रवकसित होगा, तो हम शायद पता
लगा पाये कक कृष्ण का जन्म ककन जस्थततयों में हुआ। ककिी िमस्वरता हामघनी में कृष्ण के
मां-बाप ने ककि िेम के क्षण में गभघ स्थापन, कन्िैप्शन ककया इि बच्चे का। ककि िेम के
क्षण में यह बच्चा अवतररत हुआ। तो शायद हमें दि
ू री तरफ यह भी पता चल जाए कक
ठहटलर ककि अिेम के क्षण में पैदा हुआ। मि
ु ोलनी ककि क्षण पैदा हुआ होगा। तैमरु लंग,
चंगेज खां ककि अविर पर पैदा हुए थे।

हो िकता है यह पता चले कक चंगेज खां िंर्षघ र्णृ ा और क्रोि िे भरे मां-बाप िे पैदा हुआ
हो। जजंदगी भी कफर वह क्रोि िे भरा हुआ है । वह जो क्रोि का मौसलक वेग,ओररजजनल
मोमैंटम है हव उिको जजंदगी भर दौडाये चला जा रहा है । चंगेज खां जजि गांव में गया,
लाखों लोगों को कटवााँ दे ता था।

तैमुर जजि राजिानी में जाता, दि-दि हजार बच्चों की गदघ नें कटवााँ दे ता। भाले मैं तछदवा
दे ता। जुलूि तनकालता तो दि हजार बच्चों की गदघ नें लटकी हुई है । भालों के ऊपर। पीछे
तैमुर जा रहा है । लोग पछ
ू ते है यह तुम क्या कर रहे हो। तो वह कहता कक ताकक लोग याद
रखें की कभी तैमुर लंग इि नगरी में आया था। इि पागल को याद रखने की कोई और
बात िमझ में नहीं पडती थी।

ठहटलर ने जमघनी में िाि लाख यहूठदयों की हत्या की। पााँच िौ यहूदी रोज मारता रहा।
स्टै सलन ने रूि में िाि लाख लोगों की हत्या की।

जरूर इनके जन्म के िाथ कोई गडबड हो गयी। जरूर ये जन्म के िाथ पागल पैदा हुए।
उन्माद इनके जन्म के िाथ इनके खन
ू में आया और कफरा वे इिको फैलाते चले गये।

पागलों में बडी ताकत होती है । पागल कब्जा कर लेते है और दौड कर हावी हो जाते है —िन
पर,पद पर, यश पर, कफर वे िारी दतू नया को प्रवकृत करते है । पागल ताकतवर होते है ।

यह जो पागलों ने दतु नया बनायी है । यह दतु नया तीिरे महायुद्ि के करीब आ गयी है । िारी
दतु नया मरे गी। पहले महायुद्ि में िाढे तीन करोड लोगों की हत्या की गई। दि
ू रे महायुद्र् में
िाढे िात करोड लोगों की हत्या की गई। तब तीिरे में ककतनी की जायेगी?

मैंने िूना है जब आइन्िटीन भगवान के र्र पहुंच गया तो भगवान ने उििे पूछा कक मैं
बहुत र्बराया हुआ हूं। तीिरे महायुद्ि के िंबंि में कुछ बताओगे? क्या होगा? उिने कहा,
तीिरे के बाबत कहना मजु ‍कल है , चौथे के िंबंि में कुछ जरूर बता िकता हूं। भगवान ने
कहा, तीिरे के बाबत नहीं बता िकते तो चौथे के बाबत कैिे बताओगे? आइन्िटीन ने कहा
एक बात बता िकता हूं चौथे के बाबत कक चौथा महायुद्ि कभी नहीं होगा। क्योंकक तीिरे में
िब िमाप्त हो जायेगा। चौथे के होने की कोई िंभावना नहीं है । और तीिरे के बाबत कुछ
भी कहना मुज‍कल है कक िाढे तीर अरब पागल आदमी क्या करें गे? तीिरे महायुद्ि में कुछ
नहीं कहा जा िकता कक क्या जस्थतत होगी।

िेम िे रठहत मनुष्य मार एक दर्


ु टघ ना है —मैं अंत में यह बात तनवेदन करना चाहता हूं।

मेरी बातें बडी अजीब लगी होंगी; क्योंकक ऋप्रष मतु न इि तरह की बातें करते ही नहीं। मेरी
बात बहुत अजीब लगी होगी। आपने िोचा होगा कक मैं भजन-कीतघन का कोई नस् ु खा
बताऊंगा। आपने िोचा होगा कक मैं कोई माला फेरने की तरकीब बतालाऊंगा। आपने िोचा
होगा कक मैं कोई आपको ताबीज दे दाँ ग
ू ा। जजिको बांिकर आप परमात्मा िे समल जायें। ऐिी
कोई बात में आपको नहीं बता िकता हूं। ऐिे बताने वाले िब बेईमान है , िोखेबाज है ।
िमाज को उन्होंने बहुत बबाघद ककया है ।

िमाज की जजंदगी को िमझने के सलए मनुष्य के पूरे प्रवज्ञान को िमझना जरूरी है । पररवार
को दं पतत को, िमाज को—उिकी पूरी व्यवस्था को िमझना जरूरी है । कक कहां गडबड हुई
है । अगर िारी दतु नया यह तय कर ले कक हम प्ृ वी में एक िेम का र्र बनायेगे, झूिे प्रववाह
का नहीं। हां, िेम िे प्रववाह तनकले तो यह िच्चा प्रववाह होगा। हम िारी दतु नया को िेम का
एक मंठदर बनायेगे। जजतनी कठिनाइयां होंगी। मुज‍कलें होंगी, अव्यवस्था होगी। उिको
िंभालने का हम कोई उपाय खोजेंगे। उि पर प्रवचार करें गे। लेककन दतु नया िे हम यह अिेम
का जो जाल है , इिको तोड दें गे। और िेम की एक दतु नया बनायेगे। तो शायद परू ी
मनष्ु यजातत बच िकती है । और स्वस्थ हो िकती है ।

जोर दे कर मैं आपके यह कहना चाहता हूं कक अगर िारे जगत में िेम के केंि पर पररवार
बन जाये तो अतत मानव िुपरमैन की कल्पना, जो हजारों िाल िे हो रही है । आदमी को
महा मानव बनाने की—यह जो नीत्िे कल्पना करता है , अरप्रवंद कल्पना करते है —यह कल्पना
पूरी हो िकती है , लेककन न तो अरप्रवंद को िाथघनाओं िे और न नीत्िे के द्वारा पैदा ककये
गये सिद्िांत िे वह िपना पूरा हो िकता है ।

अगर प्
ृ वी पर हम िेम की िततष्िा को वापि लौटा लाये, अगर िेम जीवन में वापि लौट
आये िम्मातनत हो जाए; अगर िेम एक आध्याजत्मक मूल्य ले-ले, तो नये मानव का तनमाघण
हो िकता है । नयी िंततत का नयी पीठढयों को नये आदमी का। और वह आदमी वह बच्चा
वह भ्ूण जजिका पहला अणु िेम िे जन्में गा, प्रव‍वाि ककया जा िकता है आ‍वािन ठदया जा
िकता है कक उिकी अंततम िांि परमात्मा में तनकलेगी।

िेम है िारं भ। परमात्मा है अंत। वह अंततम िीढी है ।

जो िेम को ही नहीं पाता है , वह परमात्मा को पा ही नहीं िकता, यह अिंभावना है ।

लेककन जो िेम में दीक्षक्षत हो जाता है और िेम में प्रवकसित हो जाता है । और िेम की िांिों
में चलता है और िेम के फूल जजिकी िांि बन जाते है । और िेम जजिका अणु-अणु बन
जाता है और जो िेम में बढता जाता है । कफर एक ठदन वह पाता है कक िेम की जज गंगा में
वह चला था, वह गंगा अब ककनारे छोड रही है । और िागर बन रही है । एक ठदन वह पाता है
कक गंगा के ककनारे समटते जाते है । और अनंत िागर आ गया िामने। छोटी-िी गंगा की
िारा था गंगोरी में , छोटी िी िेम की िारा होती है शुरू में कफर वह बढती है , कफर वह बडी
होती है । कफर वह पहाडों और मैदानों को पार करती है और एक वक्त आता है कक ककनारे
छूटने लगते है ।

जजि ठदन िेम के ककनारे छूट जाते है , उिी ठदन िेम परमात्मा बन जाता है । जब तक िेम
के ककनारे होते है । तब तक वह परमात्मा नहीं होता है । गंगा नदी होती है। जब तक कक वह
इि जमीन के ककनारे िे बंिी होती है । कफर ककनारे छूटते है और वह िागर में समल जाते
है । कफर वह परमात्मा िे समल जाती है ।

िेम की िररता और परमात्मा का िागर है । लेककन हम िेम की िररता ही नहीं है , हम िेम


की नठदया ही नहीं है । और हम बैिे है हाथ जोडे और िाथघनाएं कर रहे है । कक हमको
भगवान चाठहए। जो िररता नहीं है , वह िागर को कैिे पायेगी?

िारी मनुष्य जाती के सलए पूरा आंदोलन चाठहए। पूरी मनुष्य जातत के आमूल पररवतघन की
जरूरत है । पूरा पररवार बदलने की जरूरत है । बहुत कुरूप है हमारा पररवार। वह बहुत िुंदर
हो िकता है । लेककन केवल िेम के केंि पर ही पूरा िमाज को बदलने की जरूरत है । और
तब एक िासमघक मनुष्यता पैदा हो िकती है ।

िेम िथम, परमात्मा अंततम।

और क्यों यह िेम परमात्मा पर पहुंच जाता है ?


क्योंकक िेम है बीज और परमात्मा है वक्ष
ृ । िेम का बीज ही कफर फूटता है और वक्ष
ृ बन
जाता है ।

िारी दतु नया की जस्रयों िे मेरा कहने का यह मन होता है और खािकर जस्रयों िे, क्योंकक
पुरूष के सलए िेम अन्य बहुत िी जीवन की ठदशाओं में एक ठदशा है । स्री के सलए िेम
अकेली ठदशा है । पुरूष के सलए िेम और बहुत िे जीवन के आयामों में एक आयाम है । उिके
और भी आयाम है व्यजक्तत्व के; लेककन स्री का एक ही आयाम है एक ही ठदशा है —वह है
िेम। स्री पूरी िेम भी है और दि
ू री चीज भी है ।

अगर स्री का िेम प्रवकसित हो तो वह िमझे,िेम की ककसमया; िेम का रिायन। और बच्चों


को दीक्षा दे िेम की और िेम के आकाश में उिने की सशक्षा दे ; उनको पंखों को मजबत
ू करे ।
लेककन अभी तो हम काट दे ते है पंख कक प्रववाह की जमीन पर िरको। िेम के आकाश में
मत उडना। जब की होना यह चाठहए कक हम िेम की जोखखम सिखाए। लेककन जो जोखखम
नहीं उिाते। वे जमीन पर रें गने वाले ककले हो जाते है । जो जोखखम उिाते है , वे दरू अनंत
आकाश में उडने वाले पक्षी सिद्ि होत है ।

आदमी रें गता हुआ कीडा हो गया है । क्योंकक हम सिखा रहे है ; कोई जोखखम, ररिक न उिाना,
कोई खतरा डेंजर मत उिाना। अपने र्र का दरवाजा बंद करों और जमीन पर िरको।
आकाश में मत उडना जब कक होना यह चाठहए कक हम िेम की जोखखम सिखाये, िेम का
खतरा सिखाये। िेम का अभय सिखाये और िेम के आकाश में उडने के सलए उनके पंखों को
मजबूर करें । और चारों तरफ जहां भी िेम पर हमला होता हो उिके खखलाफ खडे हो जायें।
िेम को मजबूत करें ताकत दें ।

िेम के जजतने द‍ु मन खडे है दतु नयां में उनमें नीतत शास्री भी है । क्योंकक िेम के प्रवरोि में
जो हो, वह क्या नीतत शास्री होगा? िािु-िंन्यािी खडे है िेम के प्रवरोि में । क्योंकक वे कहते
है कक यह िब पाप है । यह िब बंिन है । इिको छोडो और परमात्मा की तरफ चलो।

जो आदमी कहता है कक िेम को छोडकर परमात्मा की तरफ चलो। वह परमात्मा का शरु है ;


क्योंकक िेम के अततररक्त परमात्मा की तरफ जाने का कोई रास्ता ही नहीं है ।

बडे बूढे भी खडे है िेम के प्रवपरीत, क्योंकक उनका अनुभव कहता है कक िेम खतरा है । लेककन
अनुभवी लोगों िे जरा िाविान रहना। क्योंकक जजंदगी में कभी कोई नया रास्ता वे नहीं
बनने दे ते। वे कहते है कक पुराने रास्ते का हमें अनुभव है , हम पुराने रास्ते पर चले है , उिी
पर िबको चलना चाठहए।
लेककन जजंदगी को रोज नया रास्ता चाठहए। जजंदगी रे ल की पटररयों पर दौडती हुई रे लगाडी
नहीं है कक बनी पटररयों पर दौडती रहे । यठद दौडती तो एक मशीन हो जायेगी। जजंदगी तो
एक िररता है , जो रोज एक नया रास्ता बना लेती है । मैदानों में जंगलों में अनूिे रास्ते िे
तनकलती है । अंजान जगत में िवेश करती है और िागर तक पहुंच जाती है ।

नाररयों के िामने आज एक ही काम है । वह काम यह नहीं है कक अनाथ बच्चों को पढा रही


है बैिकर। तुम्हारे बच्चे भी तो िब अनाथ है । नाम के सलए वे तुम्हारे बच्चे है । न उनकी मां
है , न उनका बाप। िमाज िेवक स्रीयां िोचती है । कक अनाथ बच्चों का अनाथालय खोल
ठदया। बहुत बडा काम कर ठदया। उनको पता नहीं कक तुम्हारे अनाथ ऑरफंि है , कोई नहीं
उनका—न तुम हो, न तुम्हारे पतत है । न उनकी मां है और न उनका बाप है , क्योंकक वह िेम
ही नहीं है ,जो उनको िनाथ बना दे ।

िोचते है हम कक आठदवािी बच्चों को जाकर सशक्षा दें । तम


ु आठदवािी बच्चों को जाकर
सशक्षा दो और तम् ु हारे बच्चे िीरे -िीरे आठदवािी हुए चले जा रहे है । ये जो बीटल है , बीट तनक
है ; फलां है , ठढकां है ; ये कफर िे आदमी के आठदवािी होने की शक्लें है । तम ु िोचते हो, जस्रयां
िोचती है कक जायें और िेवा करें ।

जजि िमाज में िेम नहीं है , उि िमाज में िेवा कैिे हो िकती है ?

िेवा तो िेम की िुगंि है ।

मैं तो एक ही बात आज कहना चाहूंगा। आज तो सिफघ एक िक्का आपको दे दे ना चाहूंगा।


ताकक आपके भीतर धचंतन शुरू हो जाए। हो िकता है मेरी बातें आपको बुरी लगें तो बहुत
अच्छा है । हो िकता है मेरी बातों िे आपको चोट लगे। ततलसमलाहट पैदा हो जाए। उतना ही
अच्छा है क्योंकक उििे कुछ िोच-प्रवचार पैदा होगा।

हो िकता है मेरी िब बातें गलत हों, इिसलए मेरी बात मान लेने की कोई जरूरत नहीं है ।
लेककन मैंने जो कहा है , उि पर आप िोचना। मैं कफर दोहरा दे ता हूं दो चार िूरों को और
कहकर अपनी बात पूरी ककये दे ता हूं।

आज तक का मनष्ु य का िमाज, िेम के केंि पर तनसमघत नहीं है । इिीसलए प्रवक्षक्षप्तता है ।


इिीसलए पागलपन है , इिीसलए यद्
ु ि है , इिीसलए आत्मा हत्याएाँ है । इिीसलए अपराि है । िेम
के जगत ने एक झूिा स्थानापन्न िब्स्टी्यूट प्रववाह का ईजाद कर सलया है । प्रववाह के
कारण वे‍याएं हे , गुंडे है । प्रववाह के शराबी है । प्रववाह के कारण बेहोसशयां है । प्रववाह के कारण
भागे हुए िंन्यािी है , प्रववाह के कारण मंठदरों मे भजन करने वाले झूिे लोग है । जब तक
प्रववाह है तब तक यह रहे गा।

मैं यह नहीं कह रहा हूं कक प्रववाह समट जाये, मैं यह कहा रहा हूं कक प्रववाह िेम िे तनकले।
प्रववाह िे िेम नहीं तनकलता है । िेम िे प्रववाह तनकले तो शभ
ु है , और प्रववाह िे िेम को
तनकलने की कोसशश की जाये तो यह िेम झूिा होगा। क्योंकक जबदघ स्ती कभी भी कोई िेम
नहीं तनकल िकता है । िेम या तो तनकलता है या नहीं तनकलता है । जबदघ स्ती नहीं तनकाला
जा िकता है ।

तीिरी बात मैंने यह कहीं है कक जो मां-बाप िेम िे भरे हुए नहीं है ; उनके बच्चे जन्म िे ही
प्रवकृत, परवटें ड , एबनामघल, रूग्ण और बीमार पैदा होंगे। मैंने यह कहा जो मां-बाप जो पतत-
पत्नी, जो िेमी यग
ु ल िेम के िंभोग में लीन नहीं होते है । वे केवल उन बच्चों को पैदा करें गे
जो शरीवादी होंगे। भौततकवादी होगें । उनकी जीवन की आाँख पदाथघ िे ऊपर कभी नहीं उिे गी।
वे परमात्मा को दे खने के सलए अंिे पैदा होंगे। आध्याजत्मक रूप िे अंिे बच्चे हम पैदा कर
रहे है ।

मैंने आपिे चौथी बात यह कहीं कक मां-बाप अगर एक दि


ू रे को िेम करते है तो वे बच्चों के
मां-बाप बनेंगे; क्योंकक बच्चे उनकी ही िततध्वतन हे । वह आया हुआ नया बिंत है । वे कफर िे
जीवन के दरख़्त पर लगी हुई कोंपलें है । लेककन जजिने पुराने बिंत को िेम नहीं ककया, वह
नये बिंत को िेम कैिे करे गा?

और मैने अंततम बात यह कहीं कक िेम शुरूआत है और परमात्मा अंततम प्रवकाश है । िेम में
जीवन शुरू हो तो परमात्मा में पूणघ होता है । िेम बीज बने तो परमात्मा अंततम वक्ष
ृ की
छाया बनता है । िेम गंगोरी हो तो परमात्मा का िागर उपलब्ि होता है ।

जजिके मन की कामना हो कक परमात्मा तक जाये, वह अपने जीवन को िेम के गीत िे भर


ले। और जजिकी भी आकांशा हो कक परू ी मनष्ु यता परमात्मा के जीवन िे भर जाए। वह
िारी मनष्ु यता को िेम की तरफ ले जाने के मागघ पर जजतनी बािाएं हों वह उनको तोडे
समटाये और िेम को उन्मक्
ु त आकाश दे ; ताकक एक ठदन एक नये मनष्ु य का जन्म हो िके।

पुराना मनुष्य रूग्ण था। कुरूप था, अशुभ था। पुराने मनुष्य ने अपने आत्मर्ात का इंतजाम
कर सलया था। वह आत्मा हत्या कर रहा था। िारे जगत में वह एक िाथ आत्मर्ात कर
लेगा। िावघजतनक आत्मर्ात, यूतनविघल स्यूिाइड का उपाय कर सलया गया है । अगर इिे
बचाना है तो िेम की वषाघ, िेम की भूसम और िेम के आकाश को तनसमघत कर लेना जरूरी है ।
ओशो
प्रेम और वििाह

संभोग से समाधि की और

प्रिचन—8

संभोग से समाधि की और –31


Posted on अिैल 3, 2011by sw anand prashad

जनसंख्या का विस्फोट-
प्
ृ वी के नीचे दबे हुए, पहाडों की कंदराओं में तछपे हुए, िमुि की ितह में खोजें गये बहुत िे
ऐिे पशुओ के अजस्थर पंजर समले है , जजनका अब कोई नामों तनशान नहीं रह गया है । वे
कभी थे। आज िे दि लाख िाल पहले प् ृ वी बहुत िे िरीिप
ृ िाखणयों िे भरी थी। लेककन,
आज हमारे र्र में तछपकली के अततररक्त उनका कोई ितततनधि नहीं है । तछपकली भी बहुत
छोटा ितततनधि है । दि लाख िाल पहले उिके पूवज
घ हाधथयों िे भी पााँच गुना बडे होते थे।
वे िब कहां खो गये, इतने शजक्तशाली पशु प्
ृ वी िे कैिे प्रवलुप्त हो गये। ककिी ने उन पर
हमला ककया? ककिी ने उन पर एटम बम, हाइड्रोजन बम धगराया? नहीं उनके खत्म होने की
अद्भुत कथा है ।
उन्होंने कभी िोचा भी न होगा कक वे खत्म हो जायेंगे। वे खत्म हो गए, अपनी िंततत के बढ
जाने के कारण। वे इतने बढ गये कक प्
ृ वी पर जीना उनके सलए अिंभव हो गया। भोजन
कम हुआ, पानी कम हुआ,सलजव्हं ग स्पेि कम हुआ। जीने के सलए जजतनी जगह चाठहए वह
कम हो गयी। उन पशुओं को बबलकुल आमूल नष्ट हो जाना पडा।

ऐिी दर्
ु टघ ना आज तक मनुष्य जातत के जीवन में नहीं आयी है ; लेककन भप्रवष्य में आ िकती
है । आज तक नहीं आयी उिका कारण यह था कक िकृतत ने तनरं तर मत्ृ यु को और जन्म
िंतुसलत रखा था। बुद्ि के जमाने में दि आदमी पैदा होते थे तो िात या आि जन्म के
बाद मर जाते थे। दतु नया की आबादी कभी इतनी नहीं बढी थी कमी पड जाए, खाने की कमी
पड जाये। प्रवज्ञान और आदमी की तनरं तर खोज ने और मत्ृ यु िे लडाई लेने की होड ने यह
जस्थतत पैदा कर दी है । कक आज दि बच्चे पैदा होते है तो उनमें िे मुज‍कल िे एक बच्चा
मर पाता है ।

जस्थतत बबलकुल उल्टी हो गयी है । आज रूि में डेढ िौ वषघ की उम्र के भी हजारों लोग है ।
औित उम्र अस्िी और बयािी वषघ तक कुछ मुल्कों में पहुच गई है । स्वाभाप्रवक पररणाम जो
होना था, वह हुआ कक जन्म की दर पुरानी रही, ककन्तु मत्ृ यु दि हमने कर दी। अकाल थे;
ककंतु आकाल में मरना हमने बंद कर ठदया। महामाररयााँ आती थी, प्लेग आते थे, मलेररया
होता था, है जा होता था, वे िब हमने बंद कर ठदये। हमने मत्ृ यु के बहुत िे द्वार रोक ठदये
और जन्म के िब द्वार खल ु े छोड ठदये। मत्ृ यु और जन्म के बीच जो िंतुलन था, वह
प्रवलुप्त हो गया।

1945 में ठहरोसशमा और नागािाकी में एटम बम धगरे , उनमें एक लाख आदमी मरे । इि
िमय लोगों को खतरा है की एटम बम बनते चले गये तो, िारी दतु नयां नष्ट हो जायेगी।
लेककन आज जो लोग िमझते है , वे कहते है कक दतु नया के नष्ट होने की िंभावना एटम बम
िे बहुत कम है ; दतु नयां की नयी िम्भावना है यह है —लोगों के पैदा होने िे। एक एटम बम
धगराकर ठहरोसशमा में एक लाख आदमी हमने मारे ; लेककन हम िततठदन डेढ लाख आदमी
दतु नया में बढा दे ते है ।

एक ठहरोसशमा क्या, दो ठहरोसशमा रोज हम पैदा कर लेते है । दो लाख आदमी िततठदन बढ


जाते है ।

इिका डर है कक यठद इिी तरह िंख्या बढती चली गयी तो इि िदी के पूरे होते-होते ठहलने
के सलए भी जगह शेष न रह जाएगी। और तब िभाएाँ करने की जरूरत नहीं रह जायेगी।
क्योंकक तब हम लोग चौबीि र्ंटे िभाओं में होंगे। आदमी को न्यूयाकघ और बम्बई में चौबीिों
र्ंटे ठहलने की फुरित नहीं है । उिे िुप्रविा नहीं है अवकाश नहीं है ।

इि िमय िबिे बडी धचंता, जो मनुष्य जातत के ठहत के िंबंि में िोचते है , उन लोगों के
िमक्ष अतत तीव्र हो जाना िुतनज‍चत है कक यठद मत्ृ युदर को रोक ठदया और जनम दर को
पुराने रास्ते चलने ठदया तो बहुत डर है कक प्
ृ वी हमारी िंख्या िे ही डूब जाये और नष्ट हो
जाये। हम इतने ज्यादा हो गये कक जीना अिंभव हो गया है । इिसलए जों भी प्रवचारशील है ,
वे वहीं कहें गे कक जजि भांतत हमने मत्ृ यु दर को रोका है उिी भांतत जन्म दर को भी रोकना
बहुत महत्वपूणघ है ।

पहली बात तो यह ध्यान में रख लेनी है कक जीवन एक अवकाश चाठहए है । जंगल में
जानवर मक्
ु त है मीलों के र्ेरे में र्म
ू ता है । दौडता है उिे कट र्रे में बंद कर दें , तो उिका
प्रवक्षक्षप्त होना शुरू हो जाता है । बंदर भी मीलों नाचा करते है । पचाि बंदरों को एक मकान में
बंद कर दें , तो उनका पागल होना शुरू हो जायेगा। ित्येक बंदर को एक सलजव्हं ग स्पेि, खल
ु ी
जगह चाठहए जहां वह जी िके।
ं टन में सलजव्हं ग स्पेि खो गये है । छोटे -छोटे कट र्रों
अब लंदन, मॉस्को, न्यूयॉकघ,और वासशग
में आदमी बंद है । एक-एक र्र में एक-एक कमरे में दि-दि बारह-बारह आदमी बंद है । वहां
वे पैदा होते है , वहीं मरते है , वहीं वे भोजन करते है , वहीं बीमार पडते है । एक-एक कमरे में
दि-दि बारह-बारह पंिह-पंिह लोग बंद है । अगर वे प्रवक्षक्षप्त हो जायें तो कोई आ‍चयघ नहीं
है । अगर वे पागल हो जाये तो को चमत्कार नहीं है । वे पागल होंगे ही। वे पागल नहीं हो रहे
है , यहीं चमत्कार है । यही आ‍चयघ है , अगर इतने कम पागल हो पा रहे है यही कम आ‍चयघ
की बात है ।

मनुष्य को खल
ु ा स्थान चाठहए जीने के सलए लेककन िंख्या जब ज्यादा हो जाये, तो यह बुराई
हमें ख्याल में नहीं आती। जब आप एक कमरे में होते है , अब एक मुजक्त अनुभव करते है ।
दि लोग आकर कमरे में सिफघ बैि जायें कुछ न करें तो भी आपके मजस्तष्क में एक अंजान
भार बढना शुरू हो जाता है । मनोवैज्ञातनक कहते है कक चारों तरफ बढती हुई भीड का ित्येक
व्यजक्त के मन पर एक अनजाना भार है । आप रास्ते पर चल रहे है , अकेले कोई भी उि
रास्ते पर नहीं है । तब आप दि
ू रे ढं ग के आदमी होते है । और कफर उि रास्ते पर दो आदमी
बगल की गली के तनकल कर आ जाते है । तो आप दि
ू रे ढं ग के आदमी हो जाते है । उनकी
मौजूदगी आपके भीतर कोई तनाव पैदा कर दे ती है ।

आप अपने बाथरुम में होते है , तब आपने ख्याल ककया है कक आप वही आदमी नहीं होते
बैिक र्र में होते है । बाथरुम में आप बबलकुल दि
ू रे आदमी होते है । बूढा भी बाथरुम में
बच्चे जैिा उन्मक्
ु त हो जाता है । बूढे भी बाथरुम के आईने में बच्चे जैिी जीभ ठदखाई है ।
मुहर धचढाते है । नाच भी लेते है । लेककन अगर उन्हें पता चल जाये कक ककिी छे द कोई झांक
रहा है । तो कफर वे एकदम बूढे हो जायेगे। उनका बचपना खो जायेगा। कफर वे िख्त और
मजबूर होकर बदल जायेंगे।

हमें कुछ क्षण चाठहए, जब हम बबलकुल अकेले हो िकें।

मनुष्य की आत्मा के जो श्रेष्ि फूल है , वे एकांत और अकेले में ही खखलते है ।

काव्य, िंगीत अथवा परमात्मा की िततध्वतन िब एकांत और अकेले में ही समलती है ।

आज तक जगत में भीड-भाड में श्रेष्ि काम नहीं हुआ, भीड ने अब तक कोई श्रेष्ि काम
ककया ही नहीं।

जो भी जगत में श्रेष्ि है —कप्रवता,धचर, िंगीत,परमात्मा, िाथघना, िेम—वे िब एकान्त में और


अकेले में ही फूले है ।
लेककन वे िब फूल शेष न रहे जायेंगे। मुझाघ जायेंगे, मुझाघ रही है । वे िब समट जायेंगे। िब
लुप्त हो जायेंगे। क्योंकक आदमी श्रेष्ि िे ररक्त हो गया है ।

भीड में तनजता समट गई है । इंडीवीजुअलटी समट जाती है ।

स्वयं को बोि कम हो जाता है । आप अकेले नहीं मार भीड के अंग होते है । इिसलए भीड बुरे
काम कर िकती है । अकेला आदमी इतने बुरे काम नहीं कर पाता।

अगर ककिी मजस्जद को जलाना हो, तो अकेला आदमी उिे नहीं जला िकता है , चाहे वह
ककतना ही पक्का ठहन्द ू क्यों न हो। अगर ककिी मंठदर में राम की मूततघ तोडनी हो तो अकेला
मुिलमान नहीं तोड िकता है । चाहे वह ककतना ही पक्का मुिलमान क्यों न हो। उिके सलए
भीड चाठहए अगर बच्चों की हत्या करना हो स्रीयों के िाथ बलात्कार करना और जजंदा
आदसमयों में आग लगानी हो तो अकेला बहुत कठिनाई अनुभव करता है लेककन भीड एकदम
िरलता िे करवा लेती है। क्यों?

क्योंकक भीड में कोई व्यजक्त नहीं रह जाता और जब व्यजक्त नहीं रह जाता, तो
दातयत्व,ररस्पॉन्िबबसलटी,भी प्रवदा हो जाती है । तब हम कह िकते है कक हमने नहीं
ककया,आप भी भीड में िजम्मसलत थे।

कभी आपने दे खा की भीड तेजी िे चल रही हो; नारे लगा रही हो, तो आप भी नारे लगाने
लगते है । और आप भी भीड के िाथ एक हो जाते हे । ऐिा क्या?

एडल्ट ठहटलर ने अपनी आत्मकथा में सलखा है कक शुरू-शुरू में मेरे पाि बहुत थोड लोग थे,
दि पन्िह लोग थे। लेककन दि-पन्िह लोगों िे ठहटलर, कैिे हुकूमत पर पहुंचा, सि अजीब
कथा है । ठहटलर ले सलखा है कक मैं अपने दि पन्िह लोगों को ही लेकर िभा में पहुंच जात
था। उन पन्िह लोगों को अलग-अलग कोनों पर खडा कर दे ता था और जब मैं बोलता था तो
उन पन्िह लोगों को अलग-अलग तासलयां बजाने को कहा जाता था। वे पन्िह लोग ताली
बजाते थे और बाकी भीड भी उनके िाथ हो जाती थी। बाकी भीड भी तासलयां बजाती थी।

कभी आपने ख्याल ककया है कक जब आप भीड में ताली बजाते है तो आप नहीं बजाते। भीड
बजवाती है । जब आप भीड में हं िते है तो भीड ही आपको हं िा दे ती है । भीड िंक्रामक है , वह
कुछ भी करवा लेती है । क्योंकक वह व्यजक्त को समटा दे ती है । वह व्यजक्त की आत्मा को जो
उिका अपना होता है उिे पोंछ डालती है ।
अगर प्
ृ वी पर भीड बढती गयी,तो व्यजक्त प्रवदा हो जायेगा। भीड रह जायेगी। जव्यक्तत्व
क्षीण हो जायेगा। खत्म हो जायेगा। समट जायेगा। यह भी िवाल नहीं है कक प्
ृ वी आगे
इतने जीवों को पालने में अिमथघ हो जाये। अगर हमने िब उपाय भी कर सलए, िमुि िे
भोजन तनकाल सलया, तनकाल भी िकते है । क्योंकक मजबूरी होगी, कोई उपाि िोचना पडेगा।
िमुि िे भोजन तनकल िकता है । हो िकता है हवा में भी खाना तनकाला जा िके। और यह
भी हो िकता है कक सम्टी िे भी भोजन को ग्रहण कर िकें। यह बि हो िकता है । सिफघ
गोसलयां खाकर भी आदमी जजंदा रह िकता है । भीड बढती गई तो भोजन का कोई हल तो
हम कर लेंगे, लेककन आत्मा का हल नहीं हो िकेगा।

इिसलए मेरे िामने पररवारतनयोजन केवल आधथघक मामला नहीं है , बहुत गहरे अथों में
िासमघक मामला है ।

भोजन तो जट
ु ाया जा िकता है । उिमे बहुत कठिनाई नहीं है । भोजन की कठिनाई अगर
लोग िमझते है तो बबलकुल गलत िमझते है । अभी िमि ु भरे पडे है । अभी िमि
ु ों में बहुत
भोजन है । वैज्ञातनक ियोग यह कह रहे है कक िमुिों के पानी िे बहुत भोजन तनकाला जा
िकता है । आखखर मछली भी तो िमुि िे भोजन ले रही है । लाखों तरह के जानवर िमुि िे,
पानी िे भोजन ले रहे है । हम भी पानी िे भोजन तनकाल िकते है । हम मछली को खा लेते
है तो हमारा भोजन बन जाती है । और मछली ने जो भोजन सलया, वह पानी िे सलया। अगर
हम एक ऐिी मशीन बना िके जो मछली का काम कर िकती है । तो हम पानी िे िीिा
भोजन पैदा कर िकते है । आखखर मछली भी एक मशीन का ही तो काम कर रही है ।

गया र्ाि खाती है , हम गाय का दि


ू पी लेते है । हम िीिा र्ाि खाये तो मुज‍कल होगी।
बीच में मध्यस्थ गाय चाठहए। गाय र्ाि को इि हालात में बदल दे ती है हमारे भोजन के
योग्य हो जाता है । आज नहीं कल हम मशीन की गाय भी बना लेंगे। जो र्ाि को इि
हालत में बदल दे कक हम उिको खा लें । तब दि
ू जल्दी ही बन िकेगा। जब व्हे जजटबल र्ी
बन िकता है तो व्हे जजटबल दि
ू क्यों नहीं बन िकता है । कोई कठिनाई नहीं है । भोजन का
मिला तो हल हो जायेगा। लेककन अिली िवाल भोजन का नहीं है । अिली िवाल ज्यादा
गहरे है ।

अगर आदमी की भीड बढती जाती है तो प्


ृ वी कीडे मकोडे की तरह आदमी िे भर जायेगी।
इििे आदमी की आत्मा खो जायेगी। और उि आत्मा को दे न का प्रवज्ञान के पाि कोई
उपाय नहीं है । आत्मा खो ही जायेगी। और अगर भीड बढती चली गई तो, एक-एक व्यजक्त
पर चारों और िे अनजाना दबाव पडेगा। हमें अनजाने दबाव कभी ठदखाई नहीं पडते।
आप जमीन पर चलते है आपके कभी िोचा की जमीन का ग्रेजव्हटे शन, गुरुत्वाकषघण आपको
खींच रहा है । हम बचपन िे ही इिके आदी हो गये है इििे हमें पता नहीं चलता, लेककन
जमीन का बहुत बडा आकषघण हमें पूरे वक्त खींचे हुए है । अभी चााँद पर जो यारी गये है ,
उन्हें पता चला कक जमीन उन्हें लौटकर वैिी नहीं लगी। जैिी पहले लगती थी। चााँद पर वे
यारी िाि कफट छलांग भी लगा िकते थे। क्योंकक चााँद की पकड बहुत कम है । चााँद बहुत
नहीं खींचता है । जमीन बहुत जोर िे खींच रही है । हवाएाँ चारों तरफ िे दबाव डाले हुए है ।
लेककन उनका पता हमें नहीं चलता। क्योंकक हम उिके आदी हो गये है ।

क्रमश: अगले लेख में …………

ओशो
संभोग से समाधि की और

जनसंख्या विस्फोट

संभोग से समाधि की और —32


Posted on अिैल 14, 2011by sw anand prashad

जनसंख्या विस्फोट
और बहुत िे अनजाने मानसिक दबाब भी है । गुरुत्वाकषघण तो भौततक दबाव हे ; लेककन चारों
तरफ िे लोगों की मोजूदगी भी हमको दबा रही है । वे भी हमें भीतर की तरफ िेि कर रहे
है । सिफघ उनकी मौजूदगी भी हमें परे शान ककये हुए है । अगर यह भीड बढती चली जाती है ।
तो एक िीमा पर पूरी मनुष्यता के ‘’न्यूरोठटक’’ प्रवक्षक्षप्त हो जाने का डर है ।

िच तो यह है कक आितु नक मनोप्रवज्ञान, मनोप्रव‍लेषण यह कहता है कक जो लोग पागल हुए


जा रहे है , उन पागल होने वालों में नब्बे िततशत पागल ऐिे है जो भीड के दबाव को नहीं
िह पा रहे है । दबाव चारों तरफ िे बढता चला जा रहा है । और भीतर दबाब को िहना
मजु ‍कल हुआ जा रहा है । उनके मजस्तष्क की निें फटी जा रही है । इिसलए बहुत गहरे में
िवाल सिफघ मनष्ु य के शारीररक बचाव का नहीं है । कफजजकल िरवाइवल का ही नहीं है ।
उिके आजत्मक बचाव का भी है ।
जो लोग यह कहते है कक िंततत तनयमन जैिी चीजें अिासमघक है । उन्हें िमघ का कोई पता
नहीं है । क्योंकक िमघ का पहला िर
ू है कक व्यजक्त को व्यजक्तत्व समलना चाठहए। और व्यजक्त
के पाि एक आत्मा होनी चाठहए। व्यजक्त भीड का ठहस्िा न रह जाये।
लेककन जजतनी भीड बढे गी,उतना ही हम व्यजक्तयों की कफक्र करने में अिमथघ हो जायेंगे।
जजतनी भीड ज्यादा हो जायेगी। उतनी हमें भीड की कफक्र नहीं करनी पडेगी। जजतनी भीड ही
हमें पूरे जगत की इक्िी कफक्र करनी पडेगी। कफर यह िवाल नहीं होगा की आपको कौन
िा भोजन िीततकर है , और कौन िे कपडे िीततकर हे और कैिे मकान िीततकर हे । तब ये
िवाल नहीं है । कैिा मकान ठदया जा िकता है भीड को, कैिे कपडे ठदये जा िकते है भीड
को, कैिा भोजन ठदया जो िकता है भीड को। यह िवाल होगा। तब व्यजक्त का िवाल प्रवदा
हो जाता हे और भीड के एक अंश की तरह आपको भोजन कपडा और अन्य िप्रु विाएं दी जा
िकती है ।

अभी एक समर जापान िे लौटे है , वे कह रहे थे कक जापान में र्रों की ककतनी तकलीफ है ।
भीड बढती चली जा रही है । एक नये तरह के पलंग उन्होंने ईजाद ककये है । आज नहीं कल
हमें भी ईजाद करने पडेंगे। वे मल्टी-स्टोरी पलंग है । रात आप अकेले िो भी नहीं िकते। िब
खाटें एक िाथ जुडी हुई है । एक के उपर एक। रात मैं जब आप िोते है , तो अपने नम्बर की
खाट पर चढकर िो जाते है । आप िोने में भी भीड के बाहर नहीं रह िकते है । क्योंकक भीड
बढती चली जा रही है । वह रात आपके िोने के कमरे में भी मौजूद हो जायेगी। पर दि
आदमी एक ही खाट पर िो रहे हो। तो वे र्र कम रह गया,रे लवे कम्पाटघ मेंट ज्यादा हो गया।
रे लवे कम्पाटघ मेंट में भी अभी ‘’टे न-टायर’’ नहीं है । लेककन दि में भी मामला हल नहीं हो
जायेगा।

अगर यह भीड बढती जाती है तो यह िब तरफ व्यजक्त को एन्क्रोचमें ट करे गी। वह व्यजक्त
को िब तरफ िे र्ेरे गी िब तरफ िे बंद करे गी। और हमें ऐिा कुछ कना पडेगा कक व्यजक्त
िीरे -िीरे खोता ही चला जाये, उिकी धचंता ही बंद कर दे नी पडे।

मेरी दृजष्ट में मनष्ु य की िंख्या का प्रवस्फोट,जनिंख्या का प्रवस्फोट बहुत गहरे अथों में
िासमघक िवाल है । सिफघ भोजन का आधथघक िवाल नहीं है ।

जब पररजस्थततयां बदल जाती है तब पुराने तनयम प्रवदा हो जाते है ।

लेककन, आज भी र्र में एक बच्चा पैदा होता है , तो हम बैंड बाजा बजवाते है , शोरगल
ु करते
है , ििाद बांटते है । पााँच हजार िाल पहले बबलकुल ऐिी ही बात थी। क्योंकक पााँच हजार िाल
पहले दि बच्चे पैदा होते थे, तो िात और आि मर जाते थे। और उि िमय एक बच्चे का
पैदा होना बडी र्टना थी। िमाज के सलए उिकी बडी जरूरत थी। क्योंकक िमाज में बहुत
थोडे लोग थे। लोग ज्यादा होना चाठहए। नहीं तो पडोिी शरु के हमले में जीतना मुज‍कल हो
जायेगा। एक व्यजक्त का बढ जाना बढी ताकत थी। क्योंकक व्यजक्त ही अकेली ताकत था।
व्यजक्त िे लडना था। पाि के कबीले िे हारना िंभव हो जाता। अगर िंख्या कम हो जाती
है । तब िंख्या को बढाने की कोसशश करना जरूरी था। िंख्या जजतनी बढ जाये, उतना कबीला
मजबूत हो जाता था। इिसलए िंख्या का बडा होना महत्व पणघ था।

लोग कहते थे कक हम इतनी करोड है । उिमें बडी अकड थी। उिमें बडा अहं कार था। लेककन
वक्त बदल गया है , हालत बदल गई है उलटी हो गई है । तनयम पुराना चल रहा है । हालतें
बबलकुल उल्टी हो गई है ।

अब जो जजतना ज्यादा िंख्या में है । वह उतनी ही जल्दी मरने के उपाय में है । तब जो

जजतनी ज्यादा िंख्या में था। उतनी ज्यादा उिके जीतने की िंभावना थी। आज िंख्या
जजतनी

ज्यादा होगी,मत्ृ यु उतनी ही नजदीक हो जायेगी।

आज जनिंख्या का बढना स्युिाइडल है , आत्मर्ाती है ।

आज कोई िमझदार मल्


ु क अपनी िंख्या नहीं बढा रहा है , बजल्क िमझदार मल्
ु कों में िंख्या
धगरने तक की िंभावना पैदा हो गयी है । जैिे फ्रांि की िरकार थोडी धचंततत हो गयी है
क्योंकक कहीं ज्यादा न धगर जाए, यह डर भी पैदा हो गया है । लेककन कोई िमझदार मुल्क
अपनी िंख्या नहीं बढा रहा।

िंख्या के बढने के पीछे कई कारण है । पहला कारण तो यह है कक यठद जीवन में िुख
चाठहए तो न्यन
ू तम लोग होने चाठहए। अगर दीनता चाठहए, द:ु ख चाठहए,गरीबी चाठहए, बीमारी
चाठहए, पागलपन चाठहए तो अधिकतम लोग पैदा करना उधचत है ।

जब एक बाप अपने पांचवें बच्चे के बाद भी बच्चे पैदा कर रहा है तो वह बच्चे का बाप नहीं,
द‍ु मन है । क्योंकक वह उिे ऐिी दतु नया में िक्का दे रहा है , जहां वह सिफघ गरीबी ही बांट
िकेगा। वह बेटे के ितत िेम पैदा करना अब िेम नहीं सिफघ नािमझी है और द‍ु मनी है ।

आप दतु नयां में िमझदार मां-बाप हो िकते है , इि बात को िोचकर की आप ककतने बच्चे
पैदा करें गे। आने वाली दतु नया में िंख्या द‍ु मन हो िकती है । कभी िंख्या उिकी समर थी,
कभी िंख्या बढने िे िख
ु बढता था, आज िंख्या बढने िे दुःु ख बढता है । जस्थतत बबलकुल
बदल गई है ।
आज जजन लोगों को भी इि जगत में िुख की मंगल की कामना है , उन्हें यह कफक्र करनी ही
पडेगी कक िंख्या तनरं तर कम होती चली जाए।

हम अपने को अभागा बना िकते है , हमें उिका कोई भी बोि नहीं, हमें उिका कोई भी
खयाल नहीं।1947 में ठहंदस्
ु तान पाककस्तान का बंटवारा हुआ था। तब ककिी ने िोचा भी न
होगा कक बीि िाल में पाककस्तान में जजतने लोग गये थे। हम उििे ज्यादा कफर पैदा कर
लेंगे।

हमने एक पाककस्तान कफर पैदा कर सलया है ।

1947 में जजतनी िंख्या पूरे ठहंदस्


ु तान और पाककस्तान को समलाकर थी, आज अकेले
ठहन्दस्
ु तान की उििे ज्यादा है । यह िंख्या इतने अनुपात िे बढती चली जा रही है ।

और कफर दुःु ख बढ रहा है । दररिता बढ रही है , दीनता बढ रही है , बेकारी बढ रही है । तो हम


परे शान होते है । उििे डरते है और हम कहते है कक बेकारी नहीं चाठहए, बीमारी नहीं चाठहए,
हर आदमी को जीवन का िारा िख
ु िप्रु विाएं समलनी चाठहए। और हम यह भी नहीं िोचते है
कक जो हम कर रहे है उििे हर आदमी को जीवन की िारी िुप्रविाएं कभी भी नहीं समल
िकती। हमारे बेटे बेकार ही रहें गे। सभखमंगी और गरीबी बढे गी। लेककन हमारे िमघ गुरु
िमझाते है कक यह ई‍वर का प्रवरोि है , िंततत तनयमन की बात ई‍वर का प्रवरोि है ।

हां िमघ गुरु जरूर चाह िकते है । क्योंकक मजे की बात यह है कक दतु नया में जजतना दुःु ख
बढता है , िमघ गुरूओं की दक
ु ानें उतनी ही िीक िे चलती है । दतु नया में िुख की दक
ु ानें नहीं
है । िमघ की दक
ु ानें के दुःु ख पर तनभघर करती है ।

िुखी और आनंठदत आदमी िमघ गुरु की तरफ नहीं जाता है । स्वस्थ और ििन्न आदमी िमघ
गुरु की तरफ नहीं जाता है । दुःु खी बीमार और परे शान व्यजक्त िमघ की तलाश करता है ।

दुःु खी और परे शान आदमी आत्मा प्रव‍वाि खो दे ता है । वह ककिी का िहारा चाहता है । ककिी
िमघ गरु
ु के चरण चाहता है । ककिी का हाथ चाहता है । ककिी का मागघ दशघन चाहता है ।

दतु नया में जब तक दुःु ख है , तभी तक िमघ गुरु ठटक िकता है । िमघ तो ठटकेगा िुखी हो जाने
के बाद भी लेककन िमघ गुरु के ठटकने का कोई उपाय नहीं है । इिसलए िमघ गुरु चाहे गा कक
दुःु ख खत्म न हो जायें, दुःु ख िमाप्त न हो जाये। उनके अजीब-अजीब िंिे है ।
मैंने िुना एक रात एक होटल में बहुत दे र तक कुछ समर आकर शराब पीते रहे , भोजन करते
रहे । आिी रात जब वे प्रवदा होने लगे तो मैनेजर ने अपनी पत्नी िे कहा कक ऐिे भले प्यारे ,
ठदल फेंक खचघ करने वाले लोग अगर रोज आयें तो हमारी जजंदगी में आनंद हो जायें। चलते
वक्त मैनेजर ने उनिे कहा, ‘’आप जब कभी आया करें । बडी कृपा होगी। आप आये हम बडे
आनंठदत हुए।‘’ जजि आदमी ने पैिे चकु ाये थे, उिने कहा, भगवान िे िाथघना करना कक हमारा
िंिा िीक चले हम रोज आते रहें गे। मैनेजर ने पछू ा,’’क्या िंिा करते है आप?

उिने कहा कक मैं मरर्ट में लकडी बेचने का काम करता हूं। हमारा िंिा रोज चलता रहे तो
हम बारबार आते रहें गे। कभी-कभी होता है कक िंिा बबलकुल नहीं चलता। कोई गांव में
मरता ही नहीं, लकडी बबलकुल बबकती नहीं। जजि ठदन गांव में ज्यादा लोग मरते है , उि ठदन
लकडी ज्यादा बबकती है । जजि ठदन ज्यादा िंिा होता है उि ठदन आपके पाि चले आते है ।

आपने िन
ू ा डाक्टर लोग भी कुछ ऐिा ही कहते है । जो मरीज ज्यादा होते है , तो कहते है
िीजन अच्छा चल रहा है । आ‍चयघ की बात है । अगर ककन्हीं लोगों का िंिा लोगों के बीमार
होने िे चलता हो, तो कफर बीमारी समटना बहुत मुज‍कल है ।

अभी डॉक्टरों को भी हमने उलटा काम िौंपा हुआ है कक वह लोगों की बीमारी समटाये। अत:
उनकी भीतरी आकांशा यह है कक लोग ज्यादा बीमार हों, क्योंकक उनका व्यविाय बीमारी पर
खडा है ।

इिसलए रूि ने क्रांतत के बाद जो काम ककये, उनमें एक काम यह था कक उन्होंने डाक्टर के
काम को ने‍नलाइज कर ठदया। उन्होंने कहा कक डाक्टर का काम व्यजक्तगत तनिाघररत करना
खतरनाक है , क्योंकक वह उपर िे बीमार को िीक करना चाहे गा और भीतर आंकाक्षा करे गा
की ‘’बीमार’’ बीमार ही बना रहे । कारण उिका िंिा तो ककिी के बीमार रहने िे ही चलता
है । इिसलए उन्होंने डाक्टर का िंिा िाइवेट िैजक्टि बबलकुल बंद कर दी। वहां डाक्टर को
वेतन समलता है । बजल्क उन्होंने एक नया ियोग भी ककया है । हर डाक्टर को एक क्षेर ठदया
जाता है , उिमें यठद लोग बीमार होते है तो उििे एक्िप्लेनेशन मांगा जाता है । इि क्षेर में
ज्यादा लोग बीमार कैिे हुए? वहां डाक्टर को यह धचंता करनी होती है की कोई बीमार ने पडे।

चीन में माओ ने आते ही वकील के िंिे को ने‍नलाइज कर ठदया। क्योंकक वकील का िंिा
खतरनाक है । क्योंकक वकील का िंिा कांन्ट्ाडडक्टरी है । है तो वह इिसलए कक न्याय उपलब्ि
करायें। और उिकी िारी चेष्टा यह रहती है कक उपिव हो, चोरी हो, हत्याएाँ हो, क्योंकक उिका
िंिा इिी पर तनभघर करता है ।
िमघ गुरु का िंिा भी बडा प्रवरोिी है । वह चेष्टा तो यह करता है की लोग शांत हो, आनंठदत
हो, िुखी हो, लेककन उिका िंिा इि पर तनभघर करता है कक लोग अशांत रहें , दुःु खी रहें बेचन

और परे शान रहे । कारण अशांत लोग ही उिके पाि यह जानने आते है कक हम शांत कैिे
रहें । दुःु खी लोग उिके पाि आते है हमारा दुःु ख कैिे समटे ? दीन-दररि उिके पाि आते है कक
हमारी दीनता का अंत कैिे हो?

िमघ गुरु का िंिा लोगों के बढते हुए दुःु ख पर तनभघर है ।

इिसलए जब भी दतु नया के िमघ गरू


ु ओं ने िब बातें ई‍वर पर थोप दी है , और ई‍वर कभी
गवाही दे ने आता नहीं है कक उिकी मजी क्या है ? यह क्या चाहता है ? उिकी क्या इच्छा है ?
इंग्लैण्ड और जमघनी में अगर यद्
ु ि हो तो इंग्लैण्ड का िमघ गरु
ु िमझाता है कक ई‍वर की
इच्छा है कक इंग्लैण्ड जीते? और जमघनी का िमघ गरु
ु िमझाता है कक ई‍वर की इच्छा है कक
जमघनी जीते। जमघनी में उिी भगवान िे िाथघना की जाती है कक अपने दे श को जजताओ और
इंग्लैण्ड में भी पादरी और परु ोठहत िाथघना करता है कक है भगवान, अपने दे श को जजताओ।

ई‍वर की इच्छा पर हम अपनी इच्छा थोपते रहते है । ई‍वर बेचारा बबलकुल चप


ु है । कुछ
पता नहीं चलता कक उिकी इच्छा क्या है । अच्छा हो कक हम ई‍वर पर अपनी इच्छा न
थोपों। हम इि जीवन को िोचें , िमझें ओर वैज्ञातनक रास्ता तनकाले।

यह भी ध्यान में रखने योग्य है कक जो िमाज जजतना िमद्


ृ ि होता है , वह उतने ही कम
बच्चे पैदा करता है । लेककन दुःु खी दीन, दररि लोग जीवन में ककिी अन्या मनोरं जन और
िुख की िुप्रविा न होने िे सिफघ िेक्ि में ही िुख लेने लगते है । उनके पाि और कोई उपाय
नहीं रहता।

एक अगर िंगीत भी िन
ु ता है , िाठहत्य भी पढता है , धचर भी दे खता है , र्म
ू ने भी जाता है ,
पहाड की यारा भी करता है , उिकी शजक्त बहुत ठदशाओं में बह जाती है । एक गरीब आदमी
के पाि शजक्त बहाने का और कोई उपाय नहीं रहता। उिके मनोरं जन का कोई और उपाय
नहीं रहता। क्योंकक िब मनोरं जन खचीला है ; सिफघ िेक्ि ही ऐिा मनोरं जन है , जो मल
ु त
उपलब्ि है । इिसलए गरीब आदमी बच्चे इक्िे करता चला जाता है ।

गरीब आदमी इतने अधिक बच्चे इक्िे कर लेता है कक गरीबी बढती चली जाती है । गरीब
आदमी ज्यादा बच्चे पैदा करता है । गरीब के बच्चे और गरीब होते चले जाते है । वे और
बच्चे पैदा करते जाते है और दे श और गरीब होता चला जाता है । ककिी ने ककिी तरह गरीब
आदमी की इि भ्ामक जस्थतत को तोडना जरूरी है । इिे तोडना ही पडेगा,अन्यथा गरीबी का
कोई पारावार न रहे गा। गरीबी इतनी बढ जायेगी की जीना अिंभव हो जायेगा।
इि दे श में तो गरीबी बढ ही रही है , जीना करीब-करीब अिंभव हो गया है । कोई मान ही
नहीं िकता कक हम जी रहे है । अच्छा हो कक कहा जाये कक हम िीरे -िीरे मर रहे है ।

ओशो
संभोग से समाधि की और

प्रिचन—9

जनसंख्या विस्फोट

संभोग से समाधि की और —33


Posted on अिैल 24, 2011by sw anand prashad

जनसंख्या विस्फोट
जीने का क्या अथघ?

जीने का इतना ही अथघ है कक ‘ईग्जस्ट’ करते है । हम दो रोटी खा लेते है , पानी पी लेते है ।


और कल तक के सलए जी लेते है । लेककन जीना िीक अथों में तभी उपलब्ि होता है जब हम
‘एलल्यि
ु न्ि’ को, िमद्
ृ धि को उपलब्ि हो।

जीवन का अथघ है ‘ओवर ललोइंग’ जीने का अथघ है , कोई चीज हमारे ऊपर िे बहने लगे।

एक फूल है । आपने कभी ख्याल ककया है कक फूल कैिे खखलता है पौिे पर? अगर पौिे को
खाद न समले, िीक पानी न समले, तो पौिा जजंदा रहे गा, लेककन फूल नहीं खखलायेगे। फूल
‘ओवर ललोइंग’ है । जब पौिे में इतनी शजक्त इक्िी हो जाती है कक अब पत्तों को, शाखाओं
को, जडों को कोई आव‍यकता नहीं रह जाती है । तब पौिे के पाि कुछ अततररक्त इक्िा हो
जाता है । तब फूल खखलता है । फूल जो है , वह अततरजक्त है , इिसलए फूल िुन्दर है । वह
अततरे क है । वह ककिी चीज का बहुत हो जाने के बहाव िे है ।
जीवन में िभी िौंदयघ अततरे क है । जीवन िौंदयघ ‘ओवर ललोइंग’ है , ऊपर िे बह जाना है ।

जीवन के िब आनंद भी अततरे क है । जीवन में जो भी श्रेष्ि है , वह िब ऊपर िे बह जाता


है ।

महावीर और बुद्ि राजाओं के बेटे है , कृष्णा और राम राजाओं के बेटे है । ये ‘ओवर ललोइंग’
है । ये फूल जो खखले है गरीब के र्र में नहीं खखल िकते थे। कोई महावीर गरीब के र्र में
पैदा नहीं होगा। कोई बुद्ि गरीब के र्र में पैदा नहीं होगा। कोई राम और कोई कृष्ण भी
नहीं।

गरीब के र्र में ये फूल नहीं खखल िकते। गरीब सिफघ जी िकता है , उिका जीना इतना
न्यूनतम है कक उििे फूल खखलनें का कोई उपाय नहीं है । गरीब पौिा है , वह ककिी तरह जी
लेता है । ककिी तरह उिके पत्ते भी हो जाते है , ककिी तरह शाखाएं भी तनकल आती है ।
लेककन न तो वह पूरी ऊाँचाई ग्रहण कर पाता है , न वह िूरज को छू पाता है । न आकाश की
तरफ उि पाता है । न उिमें फूल खखल पाते है । क्योंकक फूल तो तभी खखल िकते है , जब
पौिे के पाि जीने िे अततररक्त शजक्त इक्िी हो जाय। जीने िे अततररक्त जब इक्िा
होता है , तभी फूल खखलते है ।

ताज महल भी वैिा ही फूल हे । वह अततरे क िे तनकला हुआ फूल है ।

जगत में जो भी िुंदर है , िाठहत्य है , काव्य है , वे िब अततरे क िे तनकले हुए फूल है ।

गरीब की जजंदगी में फूल कैिे खखल िकते है ?

लेककन, हम रोज अपने को गरीब करने का उपाय करते चले जाते है ? लेककन ध्यान रहे , जीवन
में जो िबिे बडा फूल है परमात्मा का….वह िंगीत िाठहत्य, काव्य,धचर और जीवन के छोटे -
छोटे आनंद िे भी ज्यादा शजक्त जब ऊपर इक्िी होती है , तब वह परम फूल खखलता है
परमात्मा का।

लेककन गरीब, िमाज उि फूल के सलए कैिे उपयुक्त बन िकता है। गरीब िमाज रोज दीन
होता जाता है । रोज हीन होता चला जाता है । गरीब बाप जब दो बेटे पैदा करता है , तो अपने
िे दग
ु ुने गरीब पैदा करता जाता है । जब वह अपने चार बेटों में िंपतत का प्रवभाजन करता है
तो उिकी िंपतत नहीं बाँटती। िंपतत तो है ही नहीं। बाप ही गरीब था, बाप के पाि ही कुछ
नहीं था। तो बाप सिफघ अपनी गरीबी बांट दे ता है । और चौगुना गरीब िमाज में , अपने बच्चों
को खडा कर जाता है ।

ठहंदस्
ु तान िैकडों िालों िे अमीरी नही, सिफघ गरीबी बांट रहा है ।

हां, िमघ गुरु सिखाते है ब्रह्मचयघ। वे कहते है कक कम बच्चे पैदा करना हो तो ब्रह्मचयघ का
पालन करना चाठहए। ककन्तु गरीब आदमी के सलए मनोरं जन के िब िािन बंद है । और
िमघ-गुरु कहते है कक वह ब्रह्मचयघ िारण करे । अथाघत जीवन में जो कुछ मनोरं जन का िािन
उपलब्ि है । उिे भी ब्रह्मचयघ िे बंद कर दे । तब तो गरीब आदमी मर ही गया। वह धचर
दे खने जाता है तो रूपया खचघ होता है । ककताब पढने जाता है तो रूपया खचघ होता है । िंगीत
िुनने जाता है तो रूपया खचघ होता है । एक रास्ता और िुलभ िािन था, िमघ-गुरु कहता है
कक ब्रह्मचयघ िे उिे भी बंद कर दे । इिीसलए िमघ-गुरु की ब्रह्मचयघ की बात कोई नहीं िुनता,
खद
ु िमघ गुरु ही नहीं िुनते अपनी बात। यह बकवाि बहुत ठदनों चल चक
ु ी। उिका कोई
लाभ नहीं हुआ। उििे कोई ठहत भी नहीं हुआ।

प्रवज्ञान ने ब्रह्मचयघ की जगह एक नया उपाय ठदया, जो िवघिुलभ हो िकता है । वह है िंततत


तनयमन के कृबरम िािन,जजििे व्यजक्त को ब्रह्मचयघ में बंिने की कोई जरूरत नहीं। जीवन
के द्वार खल
ु े रह िकत है , अपने को स्पेि, दसमत करने की कोई जरूरत नहीं।

और यह भी ध्यान रहे कक जो व्यजक्त एक बार अपनी यौन िवतृ त को जोर िे दबा दे ता है ।


वह व्यजक्त िदा के सलए ककन्हीं अथों में रूग्ण हो जाता है । यौन की वतृ त िे मक्
ु त हुआ जा
िकता है । लेककन यौन की वजृ त्त को दबा कर कोई कभी मक् ु त नहीं हो िकता। यौन की वतृ त
िे मक्
ु त हुआ जा िकता है । अगर यौन में तनकलने वाली शजक्त ककिी और आयाम में ककिी
और ठदशा में िवाठहत हो जाये, तो मक्
ु त हुआ जा िकता है ।

एक वैज्ञातनक मुक्त हो जाता है । बबना ककिी ब्रह्मचयघ के, बबना राम-राम का पाि ककये, बबना
ककिी हनुमान चालीिा पढ एक वैज्ञातनक मुक्त हो जाता है । एक िंगीतज्ञ भी मुक्त हो
िकता है । एक परमात्मा का खोजी भी मुक्त हो िकता है ।

ध्यान रहे ,लोग कहते है ब्रह्मचयघ जरूरी है , परमात्मा की खोज के सलए। मैं कहता हूं,यह बात
गलत है । हां परमात्मा की खोज पर जाने वाला ब्रह्मचयघ को उपलब्ि हो जाता है । अगर कोई
परमात्मा की खोज में पूरी तरह चला जाये, तो उिकी िारी शजक्तयां इतनी लीन हो जाती है ।
कक उिके पाि यौन कक ठदशा में जाने के सलए न शजक्त का बहाव बचता है और न ही
आकांशा।

ब्रह्मचयघ िे कोई परमात्मा की तरफ नहीं जा िकता, लेककन परमात्मा की तरफ जाने वाला
ब्रह्मचयघ को उपलब्ि हो जात है ।

लेककन, अगर हम ककिी िे कहें कक वह बच्चे रोकने के सलए ब्रह्मचयघ का उपयोग करे , तो
यह अव्यावहाररक है ।

गांिी जी तनरं तर यहीं कहते रहे , इि मुल्क के और भी महात्मा यहीं कहते है कक ब्रह्मचयघ
का उपयोग करो। लेककन, गांिी जैिे महान आदमी भी िीक-िीक अथों में ब्रह्मचयघ को कभी
उपलब्ि नहीं हुए। वे भी कहते है कक मेरे स्वप्न में कामवािना उतर आती है । वे भी कहते
है कक ठदन में तो मैं िंयम रख पाता हूं। पर स्वप्नों में िब िंयम टूट जाता है । और जीवन
के अंततम ठदनों में एक स्री को बबस्तर पर लेकर, िो कर वे ियोग करते थे कक अभी भी
कहीं कामवािना शेष तो नहीं रह गयी। ित्तर िाल की उम्र में एक युवती को रात में
बबस्तर पर लेकर िोते थे, यह जानने के सलए कक कहीं काम-वािना शेष तो नहीं रह गई है।
पता नहीं,क्या पररणाम हुआ। वे क्या जान पाये। लेककन एक बात पक्की है कक उन्होंने ित्तर
वषघ की उम्र तक शक रहा होगा। कक ब्रह्मचयघ उपल्बि हुआ या नहीं। अन्यथा इि परीक्षा की
क्या जरूरत थी।

ब्रह्मचयघ की बात एकदम अवैज्ञातनक और अव्यावहाररक है । कृबरम िािनों का उपयोग ककया


जा िकता है । और मनुष्य के धचत पर बबना दबाव ठदये उनका उपयोग ककया जा िकता है ।

ओशो
संभोग से समाधि की और

प्रिचन—9

जनसंख्या विस्फोट

संभोग से समाधि की और —34


Posted on अिैल 27, 2011by sw anand prashad

जनसंख्या विस्फोट
कुछ प्रश्न उठाये जाते है । यहां उनके उत्तर दे ना पसंद करंगा:–
एक समर ने पूछा है कक अगर यह बात िमझायी जाये तो जो िमझदार है , बुद्धिजीवी है ,
इंटेसलजेजन्िया है , मुल्क का जो असभजात वगघ है , बुद्धिमान और िमझदार है , वह तो िंततत
तनयमन कर लेगा, पररवार तनयोजन कर लेगा। लेककन जो गरीब है , दीन-हीन है , वे पढे सलखे
ग्रामीण है , जो कुछ िमझते ही नही, वह बच्चे पैदा करते ही चले जायेंगे और लम्बे अरिे में
पररणाम यह होगा कक बद्
ु धि मानों के बच्चे कम हो जायेगे और गैर-बद्
ु धि मानों के बच्चों
की िंख्या बढती जायेगी।

इिे दि
ू रे तरह िे िमघ-गुरु भी उिाते है । वे कहते है कक मुिलमान तो िुनते ही नहीं, ईिाई
िुनते नहीं, कैथोसलक िुनते नही, वे कहते है कक ‘िंततत तनयमन’ हमारे िमघ के प्रवरोि में है ।
मुिलमान कफ्रक नहीं करता तो ठहन्द ू क्यों कफ्रक करे गा। ठहन्द ू िमघ गुरु कहते है कक ठहन्द ू
सिकुडे और मुिलमान, ईिाई बढते चले जायेंगे। पचाि िाल में मुज‍कल हो जायेगी, ठहन्द ू
नगण्य हो जायेंगे। मुिलमान और ईिाई बढ जायेंगे। इि बात में भी थोडा अथघ है ।
इन दोनों के िंबंि में कुछ कहना चाहूंगा।

पहली बात तो यह है कक िंततत तनयमन कम्पलिरी, अतनवायघ होना चाठहए, वालेन्टरी, इेजच्छक
नहीं।

जब तक हम एक-एक आदमी को िमझाने की कोसशश करें गे की तुम्हें िंततत तनयमन


करवाना चाठहए, तब तक इतनी भीड हो चक
ु ी होगी कक िंततत तनयमन का कोई अथघ नहीं रह
जायेगा।

एक अमेररकी प्रवचार ने सलखा है कक इि वक्त िारी दतु नया में जजतने डाक्टर पररवार
तनयोजन में िहयोगी हो िकते है , अगर प्रव िब के िब एसशया में लगा ठदए जायें,और वे
बबलकुल न िोये चौबीि र्ंटे आपरे शन करते रहें , तो भी उन्हें एसशया को उि जस्थतत में लाने
के सलए, जहां जनिंख्या तनयंरण में आ जाय, पााँच िौ वषघ लगें गे। और पााँच िौ वषघ में तो
हमने इतने बच्चे पैदा कर सलए होंगे जजिका कोई ठहिाब नहीं रह जायेगा।

ये दोनों िंभावनाएं नहीं है । दतु नया के िभी डाक्टर एसशया में लाकर लगाये नहीं जा िकते।
और पााँच िौ वषघ में हम खाली थोडे ही बैिे रहें गे। पााँच िौ वषों में तो हम जाने क्या कर
डालेंगे। नहीं यह िंभव नहीं होगा। िमझाने बुझाने के ियोग िे तो िफलता ठदखाई नहीं
पडती है ।

िंततत तनयमन तो अतनवायघ करना पडेगा और यह अलोकतांबरक नहीं है ।

एक आदमी की हत्या करने में जजतना नुकिान होता है , उििे हजार गुना नुकिान एक बच्चे
को पैदा करने िे होता है । आत्महत्या िे जजतना नुकिान होता है , एक बच्चा पैदा करने िे
उििे हजार गुणा नुकिान होता है । िमझाने-बुझाने के ियोग िे तो िफलता ठदखाई नहीं
पडती।

िंततत तनयमन तो अतनवायघ होना चाठहए।

तब गरीब व अमीर और बुद्धिमान व गैर बुद्धिमान का िवाल नहीं रह जायगा। तब ठहन्द,ू


मुिलमान और ईिाई का िवाल नहीं रह जायेगा।
यह दे श बडा अजीब है , हम कहते है कक हम िमघतनरपेक्ष है , और कफर भी िब चीजों में िमघ
का प्रवचार करते है । िरकार भी प्रवचार रखती है । ‘ठहन्द ू कोड बबल’ बना हुआ है । वह सिफघ
ठहन्द ू जस्रयों पर ही लागू होता है । यह बडी अजीब बात है । िरकार जब िमघ तनरपेक्ष है तो
मुिलमान जस्रयों को अलग करके िोचे, यह बात ही गलत है । िरकार को िोचना चाठहए
जस्रयों के िंबंि में ।

मुिलमान को हक है कक वह चार शाठदयााँ करे ,ककन्तु ठहन्द ू को हक नहीं है । तो मानना क्या


होगा? यह िमघ तनरपेक्ष राज्य कैिे हुआ?

ठहन्दओ
ु ं के सलए अलग तनयम और मि
ु लमान के सलए अलग तनयम नहीं होना चाठहए।

िरकार को िोचना चाठहए ‘स्री‘ के सलए। क्या यह उधचत है कक चार जस्रयां एक आदमी की
पत्नी बने? यह ठहन्द ू हो या मुिलमान, यह अिंगत है । चार जस्रयों एक आदमी की पजत्नयााँ
बने, यह बात ही अमानवीय है ।

यह िवाल नहीं है कौन ठहन्द ू है और कौन मि


ु लमान है । यह अपनी-अपनी इच्छा की बात
है । कफर कल हम यह भी कह िकते है कक मुिलमान को हत्या करने की थोडी िुप्रविा दे नी
चाठहए। ईिाई को थोडी या ठहन्द ू को थोडी िुप्रविा दे नी चाठहए हत्या करने की। नहीं, हमें
व्यजक्त और आदमी की दृजष्ट िे प्रवचार करने की जरूरत नहीं है । यह िवाल पूरे मुल्क का
है , इिमें ठहन्द,ू मुिलमान और ईिाई अलग नहीं ककये जा िकते।

दि
ू री बात प्रवचारणीय है कक हमारे दे श में हमारी िततभा तनरं तर क्षीण होती चली गयी है ।
और अगर हम आगे भी ऐिे ही बच्चे पैदा करना जारी रखते है तो िंभावना है कक हम िारे
जगत में िततभा में िीरे -िीरे प्रपछडते चले जायेंगे।

अगर इि जातत को ऊाँचा उिाना हो—स्वास््य में , िौन्दयघ में , िततभा में , मेिा में तो हमें
ित्येक आदमी को बच्चे पैदा करने का हक नहीं दे ना चाठहए।

िंततत तनयमन अतनवायघ तो होना ही चाठहए। बजल्क जब तक प्रवशेषज्ञ आज्ञा न दें , तब तक


बच्चा पैदा करने का हक ककिी को भी नहीं रह जाना चाठहए। मेडडकल बोडघ जब तक
अनम
ु तत न दे -दे , तब तक कोई आदमी बच्चे पैदा न कर िके।

ककतने कोढी बच्चे पैदा ककये जाते है , ककतने ईडडयट, मूखघ पैदा ककये जाते है । ककतने िंक्रामक
रोगों िे भरे लोग बच्चे पैदा करते है और उनके बच्चे पैदा होते चले जाते है । और दे श में
दया और िमघ करने वाले लोग है । अगर वे खद
ु अपने बच्चे न पाल िकते हों, तो हम उनके
सलए अनाथालय खोलकर उनके बच्चों पालने का भी इंतजाम कर दे ते है । ये ऊपर िे तो दान
और दया ठदखाई पड रही है , लेककन है बडी खतरनाक इंतजाम। इंतजाम तो यह होना चाठहए
कक बच्चे स्वस्थ,िुन्दर,बुद्धिमान, िततभाशाली वह िंक्रामक रोगों िे मुक्त हों।

अिल में शादी के पहले ही हर गांव में हर नगर में डॉक्टरों की, प्रवचारशील मनोवैज्ञातनकों,
िाइकोलॉसलस्टि की िलाहकारिसमतत होनी चाठहए। जो ित्येक व्यजक्त को तनदे श दे । अगर
दो व्यजक्त शादी करते है , तो वे बच्चे पैदा कर िकेंगे या नहीं, यह बता दें । शादी करने का
हक ित्येक को है । ऐिे दो लोग भी शादी कर िकेंगे जजनको िलाह नदी गयी हो, लेककन
बच्चो पैदा न कर िकेंगे।

हम जानते है कक पौिे पर ‘क्राि ब्रीडडंग’ िे ककतना लाभ उिाया जा िकता है । एक माली


अच्छी तरह जानता है कक नये बीज कैिे प्रवकसित ककये जाते है । गलत बीजों को कैिे हटाया
जा िकता है । छोटे बीज कैिे अलग ककये जा िकते है , बडे बीज कैिे बचाये जा िकते है ।
एक माली िभी बीज नहीं बो दे ता। बीजों को छााँटता है ।

हम अब तक मनुष्य-जातत के िाथ उतनी िमझदारी नहीं कर िके, जो एक िािारण िा


माली बग़ीचे में करता है । यह भी आपको ख्याल हो कक जब माली को बडा फूल पैदा करना
होता है तो वह छोटे फूलों को पहले काट दे ता है । आपने कभी फूलों की िदशघनी दे खी है , जो
फूल जीतते है ,उनके जीतने का कारण क्या है ?

उनका कारण यह है कक माली ने होसशयारी िे एक पौिे पर एक ही फूल पैदा ककया। बाकी


फूल पैदा ही नहीं होने ठदये। बाकी फूलों को उिने जड िे ही अलग कर ठदया, पौिे की िारी
शजक्त एक ही फूल में िवेश कर गयी।

एक आदमी बारह बच्चे पैदा करता है तो भी कभी भी बहुत िततभाशाली बच्चे पैदा नहीं कर
िकता। अगर एक ही बच्चा पैदा करे तो बारह बच्चों की िारी िततभा एक बच्चे में िवेश
कर िकती है ।

िकृतत के भी बडे अद्भुत तनयम है । िकृतत बडे अजीब ढं ग िे काम करती है । जब युद्ि
होता है दतु नया में ,तो युद्ि के बाद लोगों की िंततत पैदा करने की क्षमता बढ जाती है । यह
बडी है रानी की बात है । युद्ि िे क्या लेना-दे ना। जब-जब भी युद्ि होता है तो जन्म दर बढ
जाती है । पहले महायुद्ि के बाद जन्म दर एकदम ऊपर उि गई, कयोंकक पहले महायुद्ि में
िाढे तीन करोड लोग मर गये थे। िकृतत कैिे इंतजाम रखती है । यह भी है रानी की बात है ।
िकृतत को कैिे पता चला कक युद्ि हो गया, और अब बच्चों की जन्म दर बढ जानी चाठहए।
दि
ू रे महायुद्ि में भी कोई िाढे िात करोड लोग मारे गये। जन्म दर एकदम बढ गई।
महामारी के बाद है जा के बाद,प्लेग के बाद लोगों की जन्म दर बढ जाती है ।

अगर एक आदमी पचाि बच्चे पैदा करे तो उिकी शजक्त पचाि पर बबखर जाती है । अगर
वह एक ही बच्चे पर केजन्ित करे तो उिकी शजक्त,उिकी िततभा िकृतत एक ही बच्चे में
डाल िकती है । िौ लडककयां पैदा होती है तो लडके 116 पैदा होते है । यह अनुपात है िारी
दतु नया में । और यह बडे मजे की बात है कक 116 लडके ककि सलए पैदा होते है ? 16 लडते
बेकार रह जायेगे, इन्हें कौन लडकी दे गा? 100लडककयां पैदा होती है , 116 लडके पैदा होते है ।
लेककन िकृतत का इंतजाम बडा अद्भुत है । िकृतत का इंतजाम बहुत गहरा है । वह लडककयों
को कम पैदा करती है और लडकों को अधिक; क्योंकक उम्र पाते-पाते िौढ होते-होते16 लडके
मर जाते है । और िंख्या बराबर हो जाती है । अिल में लडककयों के जीवन में जीने की
रे जजस्टे न्ि, अवरोि-क्षमता लडकों िे ज्यादा होती है। इि सलए 16 लडके ज्यादा पैदा होते है ।
हर 14 िाल बाद िंख्या बराबर हो जाती है । लडककयों में जजंदा रहने की शजक्त लडकों िे
ज्यादा है ।

आमतौर पर पुरूष िोचता है कक हम िब तरह िे शजक्तवान है । इि भूल में मत पडना।


कुछ बातों को छोडकर जस्रयां पुरूषों िे कई अथों में ज्यादा शजक्तवान है , उनका रे जजस्टे न्ि,
उनकी शजक्त कई अथों में ज्यादा है । शायद िकृतत ने स्री को िारी क्षमता इिसलए दी है कक
वह बच्चे को पैदा करने की बच्चे को झेलने की, बडा करने की जो इतनी तकलीफदे ह िकक्रया
है , उन िब को झेल िके। िकृतत िब इंतजाम कर दे ती है । अगर हम बच्चे कम पैदा करें गे
तो िकृतत जो अनेक बच्चों पर िततभा दे ती है । वह एक बच्चे पर डाल दे गी।

आदमी इि सलए रहा है कक वह दि


ू री चीजों के प्रवषय में वैज्ञातनक धचंतन कर लेता है ,
लेककन आदसमयों के िंबंि में नहीं करता। आदसमयों के िंबंि में हम बडे अवैज्ञातनक है । हम
कहते है कक हम कंु डली समलायेंगे। हम कहते है कक हम ब्राह्मण िे ही शादी करें गे।

प्रवज्ञान तो कहता है की शादी जजतनी दरू हो उतनी ही अच्छी है । अगर अन्तर जातीय होत
बहुत अच्छा है । अंतदे शीय हो; तो और भी अच्छा है । और अंतराघष्ट्ीय हो तो अधिक अच्छा
है । और आज नहीं तो कल अंतग्रघहीय हो जाये, मंगल पर या कहीं और आदमी समल जाये तो
और भी अच्छा है । क्योंकक हम जानते है कक अंग्रेजी िांड और ठहन्दस्
ु तानी गाय हो तो जो
बछडे पैदा होंगे? उिका मुकाबला नहीं रहे गा।

हम आदमी के िंबंि में िमझ का उपयोग कब करें गे?


अगर हम िमझ का उपयोग करें गे तो जो हम जानवरों के िाथ कर रहे है , िमद्
ृ ि फूलों के
िाथ कर रहे है । वही आदमी के िाथ करना जरूरी होगा। ज्यादा अच्छे बच्चे पैदा ककये जा
िकते है , ज्यादा स्वस्थ,ज्यादा उम्र जीने वाले, िततभा शाली। लेककन उनके सलए कोई व्यवस्था
दे ने की जरूरत है ।

पररवार तनयोजन,मनुष्य के वैज्ञातनक िंततत तनयोजन का पहला कदम है ।

अभी और कदम उिाने पडेंगे, यह तो अभी सिफघ पहला कदम है । लेककन पहले कदम िे ही
क्रांतत हो जाती है । वह क्रांतत आपके ख्याल में नहीं है । वह मैं आपिे कहना चाहूंगा। जो बडी
क्रांतत पररवार तनयोजन की व्यवस्था िे हो जाती है । हम पहली बार िेक्ि को यौन को
िंततत िे तोड दे ते है । अब तक यौन िंभोग का अथघ था—िंततत का पैदा होना। अब हम
दोनों को तोड दे ते है । अब हम कहते है , िंततत को पैदा होने की कोई अतनवायघता नहीं है ।

यौन और िंततत को हम दो ठहस्िों में तोड रहे है —यह बहुत बडी क्रांतत है।

इिका मतलब अंतत: यह होगा कक अगर यौन िे िंततत के पैदा होने की िंभावना नहीं है
तो कल हम ऐिी िंततत को भी पैदा करने की व्यवस्था करें गे जजिका हमारे यौन िे कोई
िंबंि न हो—यह दि
ू रा कदम होगा।

िंततत तनयमन का अंततम पररणाम यह होने वाला है कक हम वीयघ-कणों को िुरक्षक्षत रखने


की व्यवस्था कर िकेंगे? आइंस्टीन का वीयघ कण उपलब्ि हो िकता है ।

एक आदमी के पाि ककतने वीयघ-कण है । कभी आपने िोचा है ? एक िंभोग में एक आदमी
ककतने वीयघ कण खोता है ? एक िंभोग में एक आदमी इतने वीयघ कण खोता है कक उनिे एक
करोड बच्चे पैदा हो िकत है । और एक आदम अंदाजन जजंदगी में चार हजार बार िंभोग
करता है । याने एक आदम चार हजार करोड बच्चों को जन्म दे िकता है ।

एक आदमी के वीयघ कण अगर िंरक्षक्षत हो िकें तो एक आदमी चार करोड बच्चों का बाप
बन िकता है । एक आइंस्टीन चार हजार बच्चों को जन्म दे िकता है । एक बद्
ु ि चार हजार
बच्चों को जन्म दे िकता है ।

क्या ये उधचत होगा की हम आदमी की बाबत प्रवचार करे । और हम इि बात की खोज करें ?
िंततत तनयमन ने पहली र्टना शुरू कर दी, हमने िेक्ि को तोड ठदया। अब हम कहते है कक
बच्चे की कफक्र छोड दो िंभोग ककया जा िकता है । िंभोग का िुख सलया जा िकता है ।
बच्चे की धचंता की कोई जरूरत नहीं है । जैिे ही यह बात स्थाप्रपत हो जायेगी। दि
ू री कदम
भी उिाया जा िकता है ।

और वह यह कक—अब जजििे िंभोग करते हों, उििे ही बच्चा पैदा हो, तुम्हारे ही िंभोग िे
बच्चा पैदा हो, यह भी अवैज्ञातनक है ।

और अच्छी व्यवस्था की जा िकती है , और वीयघ-कण उपलब्ि ककया जा िकता है । वैज्ञातनक


व्यवस्था की जा िकती है । और तुम्हें वीयघ कण समल िकता है । चकूं क अब तक हम उिको
िरु क्षक्षत नहीं रख िकते थे। अब तो उिको िरु क्षक्षत रखा जा िकता है । अब जरूरी नहीं कक
आप जजंदा हों, तभी आपका बेटा पैदा हो। आपके मरने के 50 िाल बाद भी आपका बेटा पैदा
हो िकता है ।

इिसलए यह जल्दी करने की जरूरत नहीं है कक मेरा बेटा मेरे जजंदा रहने में ही पैदा हो
जाये। वह बाद में 10 हजार िाल बाद भी पैदा हो िकता है । अगर मनुष्यों ने िमझा कक
आपका बेटा पैदा करना जरूरी है । तो वह आपके सलए िुरक्षा कर िकता है ।

आपका बच्चा कभी भी पैदा हो िकता है । अब बाप और बेटे का अतनवायघ िंबंि उि हालत
में नहीं रह जायेगा। जजि हालत में अब तक था, वह टूट जायेगा।

एक क्रांतत हो रही है । लेककन इि दे श में हमारे पाि िमझ बहुत कम है । अभी तो हम


िंततत तनयमन को ही नहीं िमझ पा रहे है । यह पहला कदम है , यह िेक्ि मारे सलटी के
िंबंि में पहला कदम है । और एक दफा िेक्ि की पुरानी आदत, पुरानी नीतत टूट जाये तो
इतनी क्रांतत होगी कक जजिका ठहिाब लगाना मुज‍कल है । क्योंकक हमें पता भी नहीं कक जो
भी हमारी नीतत है वह ककिी पुरानी यौन व्यवस्था िे िंबंधित है । यौन व्यवस्था पूरी तरह
टूट जाये तो परू ी नीतत बदल जाती है ।

िमघ-गुरु इिसलए भी डरा हुआ है । गांिी जी और प्रवनोबा जी इिसलए भी डरे हुए है कक अगर
यह कदम उिाया गया तो यह परु ानी नैततक व्यवस्था को तोड दे गा। नयी तनतत प्रवकसित हो
जायेगी। क्योंकक पुरानी नीतत का कोई अथघ नहीं रह जायेगा।

अब तक स्री को तनरं तर दबाया जा िकता था। परू


ु ष अपने िेक्ि के िंबंि में स्वतंरता
बरत िकता है । क्योंकक उिको पकडना मजु ‍कल है ।

इिसलए, पुरूष ने ऐिी व्यवस्था बनायी था, जजिमे स्री की पप्रवरता और अपनी स्वतंरता का
पूरा इंतजाम रखा था। इिसलए स्री को िती होना पडता था, पुरूष को नहीं।
इिसलए स्री के काँु वारे रहने पर भारी बल था, पुरूष के काँु वारे रहने की कोई धचंता न थी। इि
सलए अब भी माताएं ओर जस्रयां कहती है । कक लडके तो लडके है , लेककन लडककयों के िंबंि
में ठहिाब अलग है ।

अगर िंततत तनयमन की बात पूरी होगी। होनी ही पडेगी। तो लडककयां भी लडकों जैिी मुक्त
हो जायेगी। उनको कफर बांिने और दबाने का उपाय नहीं रहे गा। लडककयां उपिव में पड
िकती थीं,क्योंकक उनको गभघ रह जा िकता है । परू
ु ष उपिव में नहीं पडता था, क्योंकक उिको
गभघ का कोई डर नहीं है ।

नई व्यवस्था ने लडककयों को भी लडकों की जस्थतत में खडा कर ठदया है । पहली दफा स्री
और परू
ु ष की िमानता सिद्ि हो िकेगी। अब तक सिद्ि ने हो िकती थी। चाहे हम
ककतना भी धचल्लाते कक जस्रयों और परू
ु ष िमान है । वे इिसलए िमान नहीं हो िकते थे।
क्योंकक परू
ु ष स्वतंरता बरत िकता था। पकडा जाने के भय िे स्री स्वतंरता नहीं बरत
िकती थी।

प्रवज्ञान की व्यवस्था ने स्री को पुरूष के तनकट खडा कर ठदया है । अब वे दोनों बराबर


स्वतंर है । अगर पप्रवरता तनज‍चत करनी है , तो दोनों को ही तनज‍चत करनी पडेगी। अगर
स्वतंरता तय करनी है , तो दोनों िमान रूप िक स्वतंर होगें ।

बथघ-कंट्ोल, िंततत तनयमन के कृबरम िािन स्री को पहली बार पुरूष के तनकट बबिाते है ।
बुद्ि नहीं बबिा िके, महावीर नहीं बबिा िके। अब तक दतु नयां में कोई महापुरुष नहीं बबिा
िका।

उन्होंने कहा, दोनों बराबर हे । लेककन वे बराबर हो नहीं िके। क्योंकक उनकी एन टॉमी,उनकी
शरीर की व्यवस्था खाि कर गभघ की व्यवस्था कठिनाई में डाल दे ती थी। स्री कभी भी पुरूष
की तरह स्वतंर नहीं हो िकती थी। आज पहली दफा स्री भी स्वतंर हो िकती है । अब
इिके दो मतलब होंगे—या तो स्री स्वतंर की जाये या परू
ु ष की अब तक की स्वतंरता पर
पन
ु प्रवघचार ककया जाये।

अब िारी नीतत को बदलना पडेगा। इिसलए िमघ-गुरु परे शान है । अब मनु की नीतत को
बदलना पडेगा। इि सलए िमघ गुरु परे शान है । अब मनु की नीतत नहीं चलेगी, क्योंकक िारी
व्यवस्था बदल जायेगी और इिसलए उनकी र्बराहट स्वाभाप्रवक है ।

लेककन, बुद्धिमान लोगों को िमझ लेना चाठहए कक उनकी र्बराहट,उनकी नीतत को बचाने के
सलए मनुष्यता की हत्या नहीं की जा िकती। उनकी नीतत जाती हो कल, तो आज चली जाये।
लेककन मनुष्यता को बचाना ज्यादा महत्वपूणघ है और ज्यादा जरूरी है । मनुष्य रहे गा तो हम
नयी नीतत खोज लेंगे,और अगर मनुष्यता न रही तो मनु की याज्ञवल्क्य की ककताबें िड
जायेगी। और गल जायेगी तथा नष्ट हो जायेगी। उनको कोई बचा नहीं िकता।

मैं पररवार तनयोजन में मनुष्य के सलए भप्रवष्य में बडी क्रांतत की िंभावनाएं दे खता हूं।

इतना ही नहीं कक आप दो बच्चों पर रोक लेंगे अपने को, बजल्क अगर पररवार तनयोजन की
स्वीकृतत उिका पूरा दशघन हमारे ख्याल में आ जाये तो मनुष्य की पूरी नीतत पूरा िमघ,
अंतत: पररवार की परू ी व्यवस्था और अंततम रूप िे पररवार का परू ा ढांचा बदल जाएगा।
कभी छोटी चीजें िब बदल दे ती है । जजनका हमें ख्याल नहीं होता।

मैं पररवार तनयोजन और कृबरम िािनों के पक्ष में हूं, क्योंकक मैं अनंत: जीवन को चारों
तरफ िे क्रांतत िे गुजरा हुआ दे खना चाहता हूं।

चीन िे एक आदमी ने जमघनी के एक प्रवचारक को एक छोटी िी पेटी भेजी। लकडी की


पेटी,बहुत खब
ू िरू त खद
ु ाई थी उि पेटी पर। अपने समर को वह पेटी भेजी और सलखा कक मेरी
एक शतघ है उिको ध्यान में रखना, इि पेटी का मुंह हमेशा पूवघ की तरफ रखना। क्योंकक यह
पेटी हजार वषघ पुरानी है और जजन-जजन लोगों के हाथ में गई है , यह शतघ उनके िाथ रही है
कक इिका मुंह पूवघ की तरफ रहे , यह इिे बनाने वाले की इच्छा है । अब तक पूरी की गई
थी। इि का ध्यान रखना।

उिके समर ने सलख भेजा कक चाहे कुछ भी हो, वह पेटी का मुंह पूवघ की तरफ रखेगा। इिमें
कठिनाई क्या है ? लेककन पेटी इतनी खब
ू िूरत थी कक जब उिने अपने बैिक खाने में पेटी का
मुंह पूवघ की और करके रखा तो दे खा कक पूरा बैिक खाना बेमेल हो गया। उिे पूरे बैिक
खाने को बदलना पडा,कफर िे आयोजजतकरना पडा, िोफा बदलने पडे,टे बल बदलने पडे, फोटो
बदलनी पडी। तो उिे है रानी हुई कक कमरे के जो दरवाजे खखडककयााँ थी। वे बेमेल हो गई। पर
उिके पक्का आ‍वािन ठदया था तो उिने खखडकी दरवाजे भी बदल डाले। लेककन वह कमरा
अब परू े मकान में बेमल
े हो गया। तो उिने परू ा मकान बदल सलया। आ‍वािन ठदया था। तो
उिे परू ा करना था। तब उिने पाया कक उिका बग़ीचा, बाहर का दृ‍य फूल िब बेमेल हो
गये। तब उिको उन िब को बदलना पडा।

कफर भी उिने अपने समर को सलखा कक मेरा र्र मेरी बस्ती में बेमेल हुआ जा रहा है ।
इिसलए मैं बडी मुज‍कल में पड गया हूं। अपने र्र तक तो बदल िकता हूं, लेककन पूरे गांव
को कैिे बदलूंगा और गांव को बदलूंगा तो शायद वह िारी दतु नया बेमेल हो जाए। तो बडी
मुज‍कल हो जायेगी।
यह र्टना बताती है कक एक छोटी िी बदलाहट अंतत: िब चीजों को बदल दे ती है ।

िमघ गुरु का डरना िीक है , वह डरा हुआ है । उिके कारण है । उिे अचेतन में यह बोि हो रहा
है कक अगर िंततत तनयमन और पररवार तनयोजन की व्यवस्था आ गई तो अब तक की
पररवार की िारणा नीतत िब बदल जायेगी।

और मैं क्यों पक्ष में हूं? क्योंकक मैं चाहता हूं कक वह जजतनी जल्दी बदले, उतना ही अच्छा है ।
आदमी ने बहुत दुःु ख झेले सलए परु ानी व्यवस्था िे, उिे नयी व्यवस्था चाठहए। जरूरी नहीं कक
नयी व्यवस्था िख
ु ही लायेगी। लेककन कम िे कम परु ाना दुःु ख तो न होगा। दुःु ख भी होगें
तो नये होगें । और जो नये दुःु ख खोज िकता है , वह नये िख
ु भी खोज िकता है ।

अिल में नये की खोज की ठहम्मत जुटानी जरूरी है । पूरे मनुष्य को नया करना है । और
पररवार तनयोजन और िंततत तनयमन केंठिय बन िकता है । क्योंकक िेक्ि मनुष्य के जीवन
में केंठिय है । हम उिकी बात करें या न करें । हम उिकी चचाघ करें या न करें , िेक्ि मनुष्य
के जीवन में केंठिय तत्व है । अगर उिमे कोई भी बदलाहट होती है तो हमारा पूरा िमघ पूरी
नीतत िब बदल जायेगी। वे बदल जानी ही चाठहए।

मनुष्य के भोजन तनवाि भप्रवष्य की िमस्याएं ही इििे बंिी नहीं है , मनुष्य की आत्मा
मनुष्य की नैततकता मनष्ु य के भप्रवष्य का िमघ मनुष्य के भप्रवष्य का परमात्मा भी इि बात
पर तनभघर है कक हम अपने यौन के िंबंि में क्या दृजष्ट कोण अजख्तयार करते है ।

ओशो
संभोग से समाधि की और

प्रिचन—9

जनसंख्या विस्फोट

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संभोग से समाधि की और —35


Posted on अिैल 29, 2011by sw anand prashad

जनसंख्या विस्फोट
प्रश्नकताा: भगिान श्री, पररिार ननयोजन के बारे में अनेक लोग प्रश्न करते है कक पररिार
द्िारा अपने बच्चों की संख्या कम करना िमा के खखलाफ है । क्योंकक उनका कहना है कक
बच्चे तो ईश्िर की दे न है , और खखलाने िाला परमात्मा है । हम कौन है ? हम तो लसफा जररया
है , इंस्टूरमें ट है । हम तो लसफा बीच में इंस्टुमें ट है , त्जसके ज़ररये ईश्िर खखलाता है । दे ने िाला
िह, करने िाला िह, कफर हम क्यों रोक डालें? अगर हमको ईश्िर ने दस बच्चे ददये तो दसों
को खखलाने का प्रबंि भी तो िह ं करे गा। इस संबि
ं में आपका क्या विचार है ?
भगवान श्री: िबिे पहले तो ‘िमघ क्या है ’ इि िंबि
ं में थोडा िी बात िमझ लेनी चाठहए।

िमघ है मनुष्य को अधिकतम आनंद, मंगल और िख


ु दे ने की कला।

मनष्ु य कैिे अधिकतम रूप में मंगल और िख


ु को उपलब्ि हो, इिका प्रवज्ञान ही िमघ है ।
तो, िमघ ऐिी ककिी बात की िलाह नहीं दे िकता, जजििे मनष्ु य के जीवन में िख
ु की कमी
हो। परमात्मा भी वह नहीं चाह िकता, जजििे कक मनष्ु य का दुःु ख बढे , परमात्मा भी चाहे गा
कक मनष्ु य का आनंद बढे । लेककन परमात्मा मनष्ु य को परतंर भी नहीं करता क्यों? क्योंकक
परतंरता भी दुःु ख है । इिसलए परमात्मा ने मनष्ु य को परू ी तरह स्वतंर छोडा है । और
स्वतंरता में अतनवायघ रूप िे यह भी िजम्मसलत है कक मनष्ु य चाहे तो अपने सलए दुःु ख
तनमाघण कर ले, तो परमात्मा रोकेगा नहीं।

हम अपना दुःु ख भी बना िकते है , और िुख भी। हम आनंदमय हो िकते है और परे शान
भी। यह िारी स्वतंरता मनुष्य को है । इिसलए यठद हम दुःु खी होते है , तो परमात्मा जजम्मेदार
नहीं है । उि दुःु ख के कारण हमें खोजने पडेंगे और बदलने पडेंगे।

मनुष्य ने दुःु ख के कारण बदलने में बहुत प्रवकाि ककया है । एक बडा दुःु ख था जगत में कक
मत्ृ यु की दर बहुत ज्यादा थी। दि बच्चे पैदा होते थे तो नौ बच्चे मर जाते थे। खद
ु का
मरना भी शायद दख
ु द न होगा। जजतना दि बच्चो का पैदा होना और नौ कर मर जाना। तो
मां बाप बच्चों के जन्म की करीब-करीब खश
ु ी ही नहीं मना पाते,मरने का दुःु ख मनाते ही
जजंदगी बीत जाती थी।

तो मनष्ु य ने तनरं तर खोज की और अब यह हालत आ गई है कक दि बच्चों में िे नौ बच


िकते है । और कल दि बच्चे भी बचाये जा िकते है । दि बच्चे में िे नौ बच्चे मरते थे तो
एक आदमी को अगर तीन बच्चे बचाना हो तो कम िे कम औितन तीि बच्चे पैदा करने
होते थे। तब तीि बच्चे पैदा होते तो तीन बच्चे बचते थे।

अब मनुष्य ने खोज कर ली है तनयमों की और वह इि जगह पहुंच गया है कक दि बच्चों


में िे नौ बच्चे जजन्दा रहें गे; दि भी जजंदा रह िकते है । लेककन, आदत उिकी पुरानी पडी हुई
है —तीि बच्चे पैदा करने की।
आज पररवार तनयोजन जो कह रहा है ‘’दो या तीन बच्चे बि’’ यह कोई नई बात नहीं है।
इतने बच्चे तब भी थे। इििे ज्यादा तो कभी होते ही नहीं थे। औित तो यहीं था, तीन
बच्चों का। और 27 बच्चे मर जाते थे। कफर 27 बच्चों के मर जाने िे तीन का िुख भी
िमाप्त हो जाता था। तो हमने व्यवस्था कर ली कक हमने मत्ृ यु दर को कम कर सलया। वह
भी हमने परमात्मा के तनयमों को खोज कर ककया। वे तनयम भी कोई आदमी के बनाये
तनयम नहीं है । अगर बच्चे मर जाते थे तो वे भी हमारे तनयम की नािमझी के कारण मरते
थे। हमने तनयम खोज सलया है । बच्चे ज्यादा बचा लेते है । बच्चे जब हम ज्यादा बचा लेते है
तो िवाल खडा हुआ कक इतने बच्चों के सलए इि प् ृ वी पर िखु की व्यवस्था हम कर
पायेंगे? इतने बच्चों के सलए िख
ु की व्यवस्था इि प्ृ वी पर नहीं की जा िकती।

बुद्ि के िमय में ठहंदस्


ु तान की आबादी दो करोड थी। आज ठहंदस्
ु तान की आबादी 50 करोड
के ऊपर है । जहां दो करोड खश
ु हाल हो िकते थे वहां, 50 करोड लोग कीडे मकोडों की तरह
मरने लगें गे। और परे शान होने लगें गे। क्योंकक जमीन नहीं बढती। जमीन के उत्पादन की
क्षमता नहीं बढती। आज प्
ृ वी पर िाढे तीन खरब लोग है , यह िंख्या इतनी ज्यादा है कक
प्
ृ वी िंपन्न नहीं हो िकती। इतनी िंख्या के होते हुए भी हमने मत्ृ यु दर रो ली है । उि
वक्त हमने न कहां की भगवान चाहता है कक दि बच्चे पैदा हो और नौ मर जाये। अगर
हम उि वक्त कहते तो भी िीक था। उि वक्त हम राज़ी हो गये। लेककन अब हम कहते है
कक हम बच्चे पैदा करें गे, क्योंकक भगवान दि बच्चे दे ता है । यह तकघ बेईमान तकघ है । इिका
भगवान िे िमघ िे कोई िंबंि नहीं है । जब हम दि बच्चे पैदा कर के नौ मारते थे। तब भी
हमें यहीं कहना चाठहए था। हम न बचायेंगे। हम दवा न करें गे। हम इलाज न करें गे। हम
धचककत्िा की व्यवस्था न करें गे।

धचककत्िा की व्यवस्था इलाज,दवाएं िबकी खोज हमने की, जो कक बबलकुल उधचत ही है और


इिको तनज‍चत ही भगवान आशीवाघद दे गा। क्योंकक भगवान बीमारी का आशीवाघद दे ता हो,
और इतने बच्चे पैदा हों और उनमें अधिकतम मर जायें। इिके सलए उिका आशीवाघद हो,
ऐिी बात जो लोग कहते है , वे िासमघक नहीं हो िकते। वे तो भगवान को भी क्रूर,हत्यारा और
बुरा सिद्ि कर दे ते है ।

अगर बच्चे मरते थे तो हमारी नािमझी थी। अब हमने िमझ बढा ली, अब बच्चे बचें गे। अब
हमें दि
ू री िमझ बढानी पडेगी कक ककतने बच्चे पैदा करें । मत्ृ यु दर जब हमने कम कर ली
तो हमें जन्म दर भी कर करनी पडेगी, अन्यथा नौ बच्चों के मरने िे जजतना दुःु ख होता था,
दि बच्चों के बचने िे उििे कई गुणा ज्यादा दख
ु जमीन पर पैदा हो जायेगा।

आदमी स्वतंर है अपने दुःु ख और िुख के सलए।


वह आदमी की बुद्धिमत्ता पर तनभघर है कक वह ककतना िुख अजजघत करे या ककतना दुःु ख
अजजघत करे ।

तो अब जरूरी हो गया है कक हम कम बच्चे पैदा करे । ताकक अनुपात वही रहे जो की प्


ृ वी
िंभाल िकती है ।

और बडे मजे की बात है कक हम भगवान का नाम लेते है तो यह भूल जाते है कक अगर


भगवान बच्चे पैदा कर रहा है तो बच्चों को रोकने की जो कल्पना, जो ख्याल पैदा हो रहा है ,
वह कौन पैदा कर रहा है । अगर डाक्टर के भीतर िे भगवान बच्चे को बचा रहा है तो डाक्टर
के भीतर िे उन बच्चों को आने िे रोक भी रहा है । जो की प्
ृ वी को कष्ट में दख
ु में डाल
दें गे।

अगर िभी कुछ भगवान का है तो यह पररवार तनयोजन का ख्याल भी भगवान का ही है ।

और मनष्ु य की यह आकांशा कह हम अधिकतम िख


ु ी हों, यह भी इच्छा भगवान की ही है ।

अधिकतम िुख चाठहए तो पररवार का तनयमन चाठहए।

पररवार तनयोजन का और कोई अथघ नहीं है —इिका अथघ इतना ही है कक प्


ृ वी ककतने लोगों
को िुख दे िकती है । भोजन दे िकती है । उििे ज्यादा लोगों को प्
ृ वी पर खडे करना,
अपने हाथ िे प्
ृ वी को नरक बनाना है ।

प्
ृ वी स्वगघ बन िकती है , नरक बन िकती है —और यह आदमी के हाथ में है ।

जब तक आदमी ना िमझ था तो िकृतत की अंिी शजक्तयां काम करती थी। बच्चे ककतने ही
पैदा कर लो, मर जाते थे। बीमारी आती थी, महामारी आती थी। प्लेग आता था, मलेररया
आता था, और बच्चे प्रवदा हो जाते थे। युद्ि होता। आकाल पडता भूकम्प होते और बच्चे
प्रवदा हो जाते थे।

मनष्ु य ने िकृतत की ये िारी प्रवध्वंिक शजक्तयां पर बहुत दरू तक कब्जा पा सलया है । प्लेग
नहीं होगा, महामारी नहीं होगी, मलेररया नहीं होगा, माता नहीं होगी, आकाल नहीं होगा, और
बच्चे मरने नहीं दें गे। प्रपछला अकाल जो बबहार में पडा उिमें अनम
ु ान था कक कोई दो करोड
लोगों की मत्ृ यु हो जायेगी;लेककन मरे केवल 40 आदमी। तो आकार भी जजन लोगों को मार
िकता था उनको भी हमने िब भांतत बचा सलया।
तो हमने िकृतत की प्रवध्वंिक शजक्त पर तो रोक लगा ठद और उिकी िज
ृ नात्मक शजक्त पर
अगर हम उिी अनुपात में रोक न लगाये तो हम िकृतत का िंतुलन नष्ट करने वाले सिद्ि
होंगे।

परमात्मा के खखलाफ कोई काम हो िकता है तो यह है िकृतत का िंतुलन नष्ट हो जाये। तो,
जो लोग आज िंख्या बढा रहे है , जमीन की क्षमता िे ज्यादा वे लोग परमात्मा के खखलाफ
काम कर रहे है । क्योंकक परमात्मा का िंतुलन बबगडने दे रहे है ।

िकृतत का िंतल
ु न बचेगा,अगर िकृतत की िज
ृ नात्मक शजक्तयों पर भी उिी अनप
ु ात में रोक
लगा दें , जजि अनप
ु ात में प्रवध्वंिक शजक्तयों पर रोक लगा दी है । तो अनप
ु ात वही होगा।
और यह िख
ु द है बजाय इिके कक बच्चे पैदा हो और मरे बीमारी में , आकाल में , भक
ू म्प में ,
यद्
ु ि में , इििे ज्यादा उधचत है कक वे पैदा ही न हो। क्योंकक पैदा होने के बाद मरना, मारना
मरने दे ना अत्यन्त दख
ु द है । न पैदा कना कतई दख
ु द नहीं है ।

इिसलए मैं यह कतई नहीं मानता हूं कक पररवार तनयोजन कोई परमात्मा के खखलाफ बात है ।

बजल्क मैं तो मानता हूं कक इि वक्त जजनके भीतर िे परमात्मा थोडी बहुत आवाज दे रहा
है , वे यह कहें गे कक पररवार तनयोजन परमात्मा का काम है ।

तनज‍चत ही परमात्मा का काम हर युग में बदल जाता है । क्योंकक कल जो परमात्मा का


काम था, जरूरी नहीं कक वह आज भी वहीं हो। यग
ु बदलता है पररजस्थतत बदल जाती है । तो
काम भी बदल जाता है ।

अब िारी पररजस्थततयां बदल गई है । और आदमी के हाथ में इतनी शजक्तआं गयी है कक वह


प्
ृ वी को अत्यंत आनंदपूणघ बना िकता है ।

सिफघ एक चीज की रूकावट हो गयी है कक िंख्या अत्यधिक हो गयी है । तो प्


ृ वी नष्ट हो
जायेगी। और बहुत िे िाणी भी अपनी बहुत िंख्या करके मर चक
ु े है , आज उनका अवशेष
भी नहीं समलता। मनष्ु य भी मर िकता है ।

इि िमय वहीं मनुष्य िासमघक है , जो मनुष्य की िंख्या कम करने में िहयोगी हो रहा है ।

इि िमय परमात्मा की ठदशा में और मनष्ु य की िेवा की ठदशा में इििे बडा कोई कदम
नहीं हो िकता है । इिसलए िासमघक धचत तो यही कहे गा। कक पररवार तनयोजन हो।
हां, यह हो िकता है । हम इिे बेईमान लोग है कक जो हमें करना होता है , उिके सलए हम
भगवान का िहारा खोज लेते है । और जो हमें नहीं करना होता, उिके सलए हम भगवान के
िहारे की बात नहीं करते। जब हमें बीमारी होती है तब हम अस्पताल जाते है ; तब हम यह
नहीं कहते की बीमारी भगवान ने भेजी है । कैं िर टी.बी भगवान ने भेजे है । तब हम डाक्टर
को खोजते है । और जब डाक्टर हमें खोजता हुआ आता है और कहता है इतने बच्चे नहीं, तब
हम कहते है कक ये तो भगवान के भेजे हुए है ।

तो, हमें इन दो में िे कुछ एक तय करना होगा कक बीमारी भी भगवान की भेजी हुई है —
मलेररया भी, प्लेग भी, आकाल भी, तब हमें इनमें मरने के सलए तैयार होना चाठहए। और
अगर हम कहते है कक भगवान के भेजे हुए नहीं है । हम इनिे लडेंगे तो कफर हमें तनणघय
लेना होगा कक कफर बच्चे भी जो हम कहते है भगवान के भेजे है , उन पर हमें तनयंरण करना
जरूरी है ।

मझ
ु े एक र्टना याद है ।

इथोप्रपया में बडी िंख्या में बच्चे मर जाते है । तो इथोप्रपया के िम्राट ने एक अमेररकन
डॉक्टरों के समशन को बुलाया और जांच पडताल करवाई कक क्या कारण है । तो पता चला कक
इथोप्रपया में जो पानी पीने की व्यवस्था है , वह गंदी है । और पानी जो है , वे रोगाणुओं िे भरा
है । और लोग िडक के ककनारे के गंदे डबरों का ही पानी पीते रहते है । उिी में िब मल मूर
भी बहता रहता है । और लोग उिी का पानी पीते है । वहीं उनकी बीमाररयों और मत्ृ यु का
बडा कारण है । िाल भर मेहनत के बाद उनके समशन ने ररपोट दी और िम्राट को कहा कक
पानी पीने की यह व्यवस्था बंद करवाईये, िडक के ककनारे के गड्ढों का पानी बंद करवाईये
और पानी की कोई नयी वैज्ञातनक व्यवस्था करवाईये।

तो इथोप्रपया के िम्राट ने कहा कक मैंने िमझ ली आपकी बातें और कारण भी िमझ सलया;
लेककन मैं ये नहीं करूंगा। क्योंकक आज अगर हम यह इंतजाम कर लें , आदसमयों को बीमारी
िे बचाने का, तो कफर कल इन्हीं लोगों को िमझाना मुज‍कल होगा कक पररवार तनयोजन
करो। इथोप्रपया के िम्राट ने कहा यह दोहरा झंझट हम न लेंगे। पहले हम इनको यह
िमझायें कक तुम गंदा पानी मत पीओ। इिमे झंझट झगडा होगा। बामुज‍कल बहुत खचघ
करके हम इनको राजी कर पायेंगे। तब जनिंख्या बढे गी। तब हम इन्हें िमझायें गे दब
ु ारा
कक तुम बच्चे कम पैदा करो। तब उिने कहा, इििे यह जो हो रहा है , वहीं िीक हो रहा है ।

मैं भी िमझता हूं कक यठद भगवान पर छोडना है तो कफर इथोप्रपया का िम्राट िीक कहता
है । तो कफर हमें भी इिी के सलए राज़ी होना चाठहए। अस्पताल बंद, लोग गंदा पानी प्रपये,
बीमारी में रहें —कफर हम िब भगवान पर छोड दे —जजतने जजयें। इतना जरूर कहे दे ता हूं कक
भगवान के हाथ में छोडकर इतने आदमी दतु नया में कभी न बचे थे। जजतने आदमी ने अपने
हाथ में लेकर बचाये। इतने आदमी भगवान के हाथ में बचते।

इिसलए जब हमने प्रवध्वंि की शजक्तयों पर रोक लगा दी तो हमें िज


ृ न की शजक्तयों पर भी
रोक लगाने की तैयारी ठदखानी चाठहए। और इि तैयारी में परमात्मा का कोई प्रवरोि नहीं हो
रहा है । और न इिमें कोई िमघ का प्रवरोि हो रहा है । क्योंकक िमघ है ही इिी सलए कक
मनुष्य अधिकतम िुखी कैिे हो इिका इंतजाम इिकी व्यवस्था करनी है ।

ओशो
संभोग से समाधि की और

प्रिचन—9

संभोग से समाधि की और —36


Posted on मई 2, 2011by sw anand prashad

जनसंख्या विस्फोट
प्रश्न कताा: भगिान श्री, एक और प्रश्न है कक पररिार ननयोजन जैसा अभी चल रहा है उसमें
हम दे खते है कक दहन्द ू ह उसका प्रयोग कर रहे है , और बाकी और िमों के लोग ईसाई,
मुत्स्लम, ये सब कम ह उपयोग कर रहे है । तो ऐसा हो सकता है कक उनकी संख्या थोडे िर्षों
के बाद इतनी बढ़ जाये कक एक और पाककस्तान मांग लें और तुककास्तान मांग लें और कुछ
ऐसी मुत्श्कलें खडी हो जायें। कफर पाककस्तान या चीन है , जहां जनसंख्या पर रकािट नह ं है ।
तो उसमें अधिक लोग हो जायेंगे और पर हमला करने की चेष्टा रखते है । तो हमार
जनसंख्या कम होने से हमार ताकत कम हो जाय। तो इसके बारे में आपके क्या ख्याल है ?
भगिान श्री: इि िंबंि में दो तीन बातें ख्याल में रखने की है ।
पहली बात तो यह कक आज के वैज्ञातनक यग
ु में जनिंख्या का कम होना, शजक्त का कम
होना नहीं है । हालतें उल्टी है , हाल तो यह है कक जजि मल्
ु क की जनिंख्या जजतनी ज्यादा है ,
या टे कांलॉजजकल दृजष्ट िे कमजोर है । क्योंकक इतनी बडी जनिंख्या के पालन-पोषण में ,
व्यवस्था में उिके पाि अततररक्त िम्पतत बचने वाली नहीं है । जजििे वह एटम बम बनाये,
हाइड्रोजन बम बनाये, िप
ु र बन बनाये, और चााँद पर जाये। जजतना गरीब दे श होगा आज वह
उतना ही वैज्ञातनक दृजष्ट िे शजक्तहीन दे श है ।

आज तो वहीं दे श शजक्त शाली होगा, जजिके पाि ज्यादा िंपतत है , ज्यादा व्यजक्त नहीं।
वह जमाना गया, जब आदमी ताकतवर था, अब मशीन ताकतवर है। और मशीन उिी दे श के
पाि अच्छी िे अच्छी हो िकेगी, जजि दे श के पाि जजतनी िम्पन्नता होगी और िम्पन्नता
उिी दे श के पाि ज्यादा होगी, जजिके पाि िाकृततक िािन ज्यादा और जनिंख्या कम
होगी।

तो पहली बात यह है कक आज जनिंख्या शजक्त नहीं है और इिसलए भ्ांतत में पडने का कोई
कारण नहीं है । चीन के पाि चाहे जजतनी जनिंख्या हो तो भी शजक्तशाली अमेररका होगा।
चीन के पाि जजतनी भी जनिंख्या हो तो भी छोटा िा मुल्क इंगलैंड शजक्तशाली है । और
जापन जैिा मुल्क भी शजक्त शाली है । शजक्त का पूरा का पूरा आिार बदल गया है ।

जब आदमी ही एक मार आिार था, तब तो ये बातें िीक थी कक जनिंख्या बडा मूल्य रखती
थी। लेककन अब आदमी िे भी बडी शजक्त हमने पैदा कर ली है , जो मशीन की है । मशीन
ताकत है । और उतना ही िम्पन्न हो िकता है । जजतना ज्यादा जनिंख्या उिकी कम हो,
ताकक उिके पाि िम्पतत बच िके, लोगों को खखलाने कपडा पठहनाने, इलाज कराने के बाद;
ताकक उि शजक्त को वैज्ञातनक प्रवकाि में लगा िकें।

दि
ू री बात यह िमझने जैिी है कक िंख्या कम होने िे उतना बडा दभ
ु ाघग्य नहीं टूटे गा,
जजतना बडा दभ
ु ाघग्य िंख्या के बढ जाने िे बबना ककिी हमले के टूट जायेगा। यानी हमले का
तो कोई उपाय भी ककया जा िकता है कक कोई बडा मुल्क हम पर हमला करे तो हम दि
ू रों
िे िहायता ले लें , लेककन हमारे ही बच्चे हमलावर सिद्ि हो जायें िंख्या के अत्यधिक बढ
जाने के कारण तो हम ककिी की िहायता न ले िकेंगे। उि वक्त हम बबलकुल अिहाय हो
जायेंगे।

इि वक्त युद्ि इतना बडा खतरा नहीं है , जजतना बडा खतरा जनिंख्या प्रवस्फोट का है ।
खतरा बाहर नहीं है कक हमें कोई मार डाले,वरन जो हमारी उत्पाद क्षमता है बच्चें की, वहीं
हमारे सलए िबिे बडा खतरा है —कक िंख्या इतनी ही जाये कक हम सिफघ मर जाये इि कारण
िे कक न पानी हो, न भोजन हो, न रहने को जगह।

तीिरी बात यह कक जो हम िोचते है क ठहन्द ू अपनी िंख्या कम कर लें तो मि


ु लमान िे
कम न हो जायें, तो इि डर िे ठहंद ू भी अपनी िंख्या कम न करें । मि
ु लमान भी इि डर िे
अपनी िंख्या कम न करें कक कहीं ठहन्द ू ज्यादा न हो जायें। ईिाई भी यही डर रखें। जैन भी
यहीं डर रखें। तो इन िके डर एक है । तब पररणाम यह होगा कक मुल्क ही मर जायेगा। तो
यह डर ककिी को तो तोडना शुरू करना पडेगा। और जो िमाज इि डर को तोडेगा, वह
िंपन्न हो जायेगा। मुिलमानों िे उनके बच्चे ज्यादा स्वस्थ ज्यादा सशक्षक्षत होंगे, ज्यादा
अच्छे मकानों में रहें गे। वे दि
ू रे िमाजों को जजनकी िंख्या कीडे मकोडों की तरह बढे गी
उनको पीछे छोडकर आगे तनकल जायेंगे। और इिका पररणाम यह भी होगा कक दि
ू रे िमाजों
में भी स्पिाघ पैदा होगी इि ख्याल िे कक वे गलती कर रहे है ।

आज दतू नया में यह बडा िवाल नहीं है कक ठहन्द ू कम हो गये तो कोई हजघ हो रहा है । कक
मुिलमान ज्यादा हो गये तो उनको कोई फायदा हो रहा है । बडा िवाल यह है कक अगर इन
िारे लोगों के ठदमाग में यही िवाल भरा रहे तो यह पूरा मुल्क मर जायेगा। मगर यही
प्रवकल्प है कक ठहन्द ू कम हो जायेंगे और इििे ठहन्दओ
ु ं की िंख्या को नुकिान पहुाँचग
े ा।
मुिलमान ज्यादा हो जायेंगे, ईिाई ज्यादा हो जायेंगे। तो भी मैं कहूंगा कक ठहन्द ू अपने को
कम कर लें और भारत को बचाने का श्रेय ले लें । चाहे खद ु समट जायें। हालांकक इिकी कोई
िंभावना नहीं है । तो भी मैं कहूंगा कक मेरे सलए यह इतना बडा िवाल नहीं है , ठहन्द-ू
मुिलमान का, जजतना बडा मेरे सलए एक दि ू रा िवाल है ।

जब तक हम पररवार तनयोजन को स्वेच्छा पर छोडे हुए है , तब तक खतरा एक दि ू रा है कक


जो जजतना सशक्षक्षत आरे उन्नत है , जो जजतना िंपन्न है , जजिकी बद्
ु धि प्रवकसित है , वह तो
राजी हो जाएगा स्वभावत। वह तो आज पररवार तनयोजन के सलए राज़ी हो जाएगा। सिफघ
बुद्िओ
ू ं को छोडकर। बुद्धिमान तो राज़ी होंगे ही; क्योंकक पररवार तनयोजन िे उिके बच्चे
ज्यादा िुखी होंगे। ज्यादा सशक्षक्षत होंगे।

लेककन खतरा यह है कक जो बुद्धिहीन वगघ है —उिको न कोई सशक्षा है , न कोई ज्ञान है , न


कोई िवाल है —वे िमझ ही न पाये और बच्चे पैदा करते चले जायें। तो जो नुकिान हो
िकता है लम्बे अथों में ,वह यह हो िकता है वह असशक्षक्षत,अप्रवकसित, प्रपछडे हुए लोग ज्यादा
बच्चे पैदा करें और सशक्षक्षत वह िंपन्न लोग कम बच्चे पैदा करें तो मुल्क की िततभा को
ज्यादा नक
ु िान पहुंच।े यह हो िकता है ।

इिसलए मेरी यह मान्यता है कक पररवार तनयोजन की बात िीरे -िीरे अतनवायघ हो जानी
चाठहए।

कहीं ऐिा न हो कक बद्


ु धिमान तो स्वीकार कर लें और गैर-बद्
ु धिमान न करें ,तो वह अतनवायघ
होना चाठहए। इिसलए मैं अतनवायघ पररवार तनयोजन के पक्ष में हूं।

पररवार तनयोजन ककिी का स्वेच्छा पर नहीं छोडा जा िकता है ।

यह तो ऐिा है कक जैिे हम हत्या को स्वेच्छा पर छोड दें कक जजिको करना हो करें , जजनको
न करना हो न करें । डाके को स्वेच्छा पर छोड दें कक जजिको डाका डालना हो डाले,न डालना
हो न डाले। िरकार िमझाने की कोसशश करे गी ओर दे खती रहे गी। डाका भी आज उतना
खतरनाक नहीं है हत्या भी आज उतनी खतरनाक नहीं है जजतना जनिंख्या का बढना।

इि जीवंत िवाल को इि तरह स्वेच्छा पर नहीं छोडा जाना चाठहए। और जब हम इिे


स्वेच्छा पर नहीं छोडते तो यह ठहन्द,ू मुिलमान, ईिाई का िवाल नहीं रह जाता। क्योंकक
सिक्ख को उिका गुरु िमझा रहा है कक तुम कम हो जाओगे। मुिलमान ज्यादा हो जायेंगे।
मुिलमान को मौलवी िमझा रहा है कक तुम कम हो जाओगे, ठहन्द ू कम ज्यादा हो जायेगे।
वहीं ईिाई पादरी भी िोच रहा है वही ठहन्द ू पंडडत भी िोच रहा है । ये बि जा िोच रहे है
इनकी िोचने की वजह भी अतनवायघ पररवार तनयोजन िे समट जायेगी।

यठद हम पररवार तनयोजन कर दे ते है तो कोई ठहन्द,ू मि


ु लमान, ईिाई का िवाल नहीं रह
जाता है ।

मेरे सलए तो िवाल यह है कक िैकडों वषों में कुछ लोग प्रवकसित हो गये है और कुछ लोग
अप्रवकसित रह गये है । जो अप्रवकसित वगघ है , वह बच्चे ज्यादा छोड जाये तो दे श की िततभा
और बुद्धिमत्ता को भी भारी नुकिान पहुंच िकता है । और यह नुकिान खतरनाक सिद्ि
हो िकता है । इिसलए इि दृजष्ट िे मैं िारे िवाल को िोचता हूं कक केवल पररवार तनयोजन
ही न हो, बजल्क ऐिा लगता है कक वह अतनवायघ हो। एक भी व्यजक्त सिफघ इिसलए न छोडा
जा िके कक वह राज़ी नहीं है । और यह हमें करना ही पडेगा। इिे बबना ककये हम इन आने
वाले 50 वषों में जजन्दा नहीं रह िकते।

शजक्त के िारे मापदं ड बदल गये है , यह हमें िीक िे िमझ लेना चाठहए।

आज शजक्तशाली वह है जो िंपन्न है और िंपन्न वह है , जजिके पाि जनिंख्या कम है और


उत्पादन के िािन ज्यादा है ।

आज मनुष्य न तो उत्पादन का िािन है । न शजक्त का िािन है । आज मनुष्य सिफघ भोक्ता


है , कन्ज्यम
ू र है । मशीन पैदा करती है , जमीन पैदा करती है , मनुष्य खा रहा है ।

और िीरे -िीरे जैिे टे क्नोलॉजी प्रवकसित होती है , आदमी की शजक्त िा िारा मल्
ू य िमाप्त
हुआ जा रहा है । आदमी ने हो तो भी चल िकता है । एक लाख आदमी जजि फैक्टरी में काम
करते हों, उिे एक आदमी चला िकेगा। न हो तो भी चल िकता है । और ठहरोसशमा में एक
लाख आदमी मारना हो तो उन्हें एक आदमी मार िकेगा। पुराने जमाने में तो कम िे कम
एक लाख आदमी ले जाने पडते। अब तो कोई एक आदमी जाता है और एटम बम धगराकर
उनको िमाप्त कर दे ता है । कल यह भी हो िकता है कक एक आदमी को भी न जाना पडे।
कम्प्यट
ु राइज्ड आदे श एक आदमी भर दे गा मशीन में काम हो जायेगा। आदमी की िंख्या
बबलकुल महत्वहीन हो गयी है ।

यह जरूरी नहीं है कक मेरी िारी बातें मान ली जायें। इतना ही काफी है कक आप मेरी बात
पर िोचें ,प्रवचार करें , अगर इि दे श में िोच-प्रवचार आ जाये तो शेष चीजें अपने आप छाया
की तरह पीछे चली आयेगी।

मेरी बातें ख्याल में ले और उि पर िूक्ष्मता िे प्रवचार करें तो हो िकता है कक आपको यह


बोि आ जाये कक पररवार तनयोजन की अतनवायघता कोई िािारण बात नहीं है । जजिकी
उपेक्षा की जा िके। वह जीवन की अनेक-अनेक िमस्याओं की गहनत्म जडों िे िंबंधित है ।
और उिे कक्रयाजन्वत करने की दे री परू ी मनष्ु य जातत के सलए आत्म िात सिद्ि हो िकती
है ।

ओशो

िंभोग िे िमाधि की और

जनिंख्या प्रवस्फोट

िवचन—9

संभोग से समाधि की और —37 ( विद्रोह क्या है ?) भाग–1


Posted on मई 3, 2011by sw anand prashad

दहप्पी िाद मैं कुछ कहूं ऐसा छात्रों ने अनुरोि ककया है ।


इि िंबंि में पहली बात, बनाघडघ शॉ ने एक ककताब सलखी है : मैजक्िम्प फॉर ए रे व्होल्यूशनरी,
क्रांततकारी के सलए कुछ स्वणघ-िूर। और उिमें पहला स्वणघ बहुत अद्भुत सलखा है । और एक
ढं ग िे पहले स्वणघ िूर सलखा है : ‘ठद फास्टघ गोल्डन रूल इज़ दै ट दे यर आर नौ गोल्डन
रूल्ि’ पहला स्वणघ तनयम यही है कक कोई भी स्वणघ-तनयम नहीं है ।

ठहप्पी वाद के िंबंि में जो पहली बात कहना चाहूंगा, वह यह कक ठहप्पी वाद कोई वाद नहीं
है , िमस्त वादों का प्रवरोि है । पहली पहले इि ‘वाद’ को िीक िे िमझ ले।
पााँच हजार वषों िे मनुष्य को जजि चीज ने िवाघधिक पीडडत ककया है वह है वाद—वह चाहे
इस्लाम हो, चाहे ईिाइयत हो, चाहे ठहन्द ू हो, चाहे कम्यूतनज़म हो, िोशसलज्म हो, फासिस्ट, या
गांिी-इज्म हो। वादों ने मनुष्य को बहुत ज्यादा पीडडत ककया है ।

मनुष्य इततहाि के जजतने युद्ि है , जजतना ठहंिा पात है , वह िब वादों के आिपाि िठटत
हुआ है । वाद बदलते चले गये है , लेककन नये वाद पुरानी बीमाररयों को जगह ले लेते है और
आदमी कफर वही का वहीं खडा हो जाता है ।

1917 में रूि में परु ाने वाद िमाप्त हुए, परु ाने दे वी-दे वता प्रवदा हुए तो नये दे वी-दे वता पैदा हो
गये। नया िमघ पैदा हो गया। क्रेमसलन अब मक्का और मदीना िे कम नहीं है । वह नयी
काशी है , जहां पज
ू ा के फूल चढाने िारी दतू नया के कम्युतनस्ट इक्िे होते है । मतू तघयां हट
गई, जीिि क्राइस्ट के चचघ समट गये। लेककन लेतनन की मत
ृ दे ह क्रेमसलन के चौराहे पर रख
दी गयी है । उिकी भी पज
ू ा चलती है ।

वाद बदल जाता है ,लेककन नया वाद उिकी जगह ले लेता है ।

ठहप्पी िमस्त बादों िे प्रवरोि है । ठहप्पी के नाम िे जजन युवकों को आज जाना जाता है ,
उनकी िारणा यह है कक मनुष्य बबना वाद के जी िकता है । न ककिी िमघ की जरूरत है , न
ककिी शास्र, न ककिी सिद्िांत की, न ककिी प्रवचार िम्िदाय, आइडडयालॉजी की। क्योंकक
उनकी िमझ यह है जजतना ज्यादा प्रवचार की पकड जोती है , जीवन उतना ही कम हो जाता
है । ठहजप्पयों की इि बात िे मैं अपनी िहमतत जाठहर करना चाहता हूं। इन अथों में वे बहुत
िांकेततक है , सिम्बासलक है और आने वाले भप्रवष्य की एक िूचना दे ते है ।

आज िे 100 वषघ बाद दतु नया में जो मनुष्य होगा, वह मनुष्य वादों के बाहर तो तनज‍चत ही
चला जायेगा। वाद का इतना प्रवरोि होने का कारण क्यो है ?

ठहजप्पयों के मन में उन युवकों के मन में जो िमस्त वादों के प्रवरोि में चले गए है । िमस्त
मंठदरों, िमस्त चचों के प्रवरोि में चले गये है । जाने का कारण है । और कारण है इतने ठदनों
का तनरं तर का अनुभव। वह अनुभव यह है कक जजतना ही हम मनुष्य के ऊपर वाद थोपते
है । उतनी ही मनुष्य की आत्मा मर जाती है ।

जजतना बडा ढांचा होगा वाद का, उतनी ही भीतर की स्वतंरता िमाप्त हो जाती है ।

इिसलए यह कहा जा िकता है कक हममें िे बहुत िे लोग मर तो बहुत पहले जाते है


दफनाए बहुत बाद में जाते है । कोई 30 िाल में मर जाता है और 70 िाल में दफनाया
जाता है । हम उिी ठदन अपनी स्वतंरता, अपना व्यजक्तत्व अपनी आत्मा खो दे ते है , जजि
ठदन कोई प्रवचार का कोई ढांचा हमें िब तरफ िे पकड लेता है ।

िींकचे तो ठदखाई पडते है लोहे के, कारागह


ृ ठदखाई पडते है लोहे के, लेककन प्रवचार के कारागह

ठदखाई नहीं पडते और जो कारागह
ृ जजतना कम ठदखाई पडता है उतना ही खतरनाक है ।

अभी में एक नगर िे प्रवदा हुआ। बहुत िे समर छोडने आए थे जजि कम्पाटघ मेंट में मैं था
उिमें एक िाथी थे। उन्होंने दे खा कक बहुत समर मुझे छोडने आये है । तो जैिे ही मैं अंदर
िप्रवष्ट हुआ, गाडी चली, उन्होंने जल्दी िे मेरे पैर छुए और कहा कक महात्मा जी, नमस्कार
करता हूं। बडा आनंद हुआ कक आप मेरे िाथ होंगे। मैंने उनिे कहा कक िीक िे पता लगा
लेना कक महात्मा हू या नहीं। आपने तो जल्दी पैर छू सलये। अब अगर मैं महात्मा सिद्ि न
हुआ तो पैर छूने को वापि कैिे लें गे?

उन्होंने कहा, नहीं-नहीं ऐिा कैिे हो िकता है , आपके कपडे कहते है । मैंने कहा, अगर कपडों
िे कोई महात्मा होता तो तब तो प्
ृ वी िारी की िारी कभी की महात्मा हो गई होती।
उन्होंने कहा कक नहीं इतने लोग छोडने आये थे? तो मैंने कहा कक ककराये के आदमी इतने
ज्यादा लोगों को छोडने आते है कक उिका कोई मतलब नहीं रहा है। वे कहने लगे, कम िे
कम आप ठहन्द ू तो है ?

उन्होंने िोचा कक न िही कोई महात्मा हों, ठहन्द ू होंगे तो भी चलेगा। कोई ज्यादा गुनाह नहीं
हुआ, पैर छू सलए। तो मैंने कहा, नहीं, ठहन्द ू भी नहीं हूं। तो उन्होंने कहा,आप आदमी कैिे है ?
कुछ तो होंगे, मुिलमान होंगे, ईिाई होंगे? मैंने उनिे पूछा कक क्या मेरे सिफघ आदमी होने िे
आपको कोई एतराज है ? क्या सिफघ आदमी होकर मैं नहीं हो िकता हूं, मुझे कुछ और होना
ही पडेगा? उनकी बेचन
ै ी दे खने जैिी थी। कंडक्टर को बुलाकर वे दि
ू रे कंपाटघ मेंट में अपना
िामान ले गये।

मैं थोडी दे र बाद उनके पाि गया और मैंने उनको कहा आप तो कहते थे ित्िंग होगा, बडा
आनंद होगा। आप तो चले गये। क्या एक आदमी के िाथ िफर कना उधचत नहीं मालम

पडा? ठहन्द ू के िाथ िफर हो िकता था। आदमी के िाथ बहुत मजु ‍कल है ।

आज पज‍चम में जजन युवकों ने ठहजप्पयों का नाम ले रखा है , उनकी पहली बगावत यह है कक
वे कहते है कक हम िीिे आदमी की तरह जीयेंगे। न हम ठहन्द ू होंगे, न हम कम्युतनस्ट होंगे।
न हम िोशसलस्ट होंगे, न ईिाई होंगे; हम िीिे तनपट आदमी की तरह जीने की कोसशश
करें गे। तनपट आदमी की तरह जीने की जो भी कोसशश है , वह मुझे तो बहुत िीततकर हे ।
ठहप्पी नाम तो नया है । लेककन र्टना बहुत पुरानी है । मनुष्य के इततहाि में आदमी ने कई
बाद तनपट आदमी की तरह जीने की कोसशश की है । तनपट आदमी की तरह जीने में बहुत िे
िवाल है ।

िमघ नहीं, चचघ नहीं, िमाज नहीं—अंतत: दे श भी नहीं; क्योंकक दे श, राष्ट् िब उपिव है । िब
बीमाररयां है ।

कल तक पाककस्तान की भूसम हमारी मातभ ृ ूसम हुआ करती थी। अब वह हमारे शरु की
मातभ
ृ सू म है । जमीन वहीं की वही है । कहीं टूटी नहीं, कहीं दरार नहीं पडी।

मैंने िुना है , एक पागल खाना था ठहन्दस्


ु तान के बंट वारे के िमय। ठहन्दस्
ु तान पाककस्तान
की िीमा पर। अब वह भी िवाल उिा कक इि पागल खाने को कहां जाने दे —ठहन्दस्
ु तान में
कक पाककस्तान में । कोई राजनैततक उत्िुक न था कक वह पागलखाना कहीं भी ला जाये। तो
पागलों िे ही पूछा अधिकाररयों ने कक तुम कहां जाना चाहते हो। ठहन्दस्
ु तान में या
पाककस्तान में ? तो उन पागलों ने कहा हम तो जहां है , वहां बडे आनंद में है। हमें कहीं जाने
की कोई इच्छा नहीं है । पर उन्होंने कहा कक जाना तो पडेगा ही, यह इच्छा का िवाल नही है ।
और तुम र्बराओ मत। तुम ठहन्दस्
ु तान में चाहो तो ठहन्दस्
ु तान में चले जाओ,पाककस्तान में
चाहो तो पाककस्तान में चले जाओ। तुम जहां हो वहीं रहोगे। यहां िे हटना न पडेगा।

तब तो वे पागल बहुत हं िने लगे। उन्होंने कहा,हम तो िोचते थे कक हम ही पागल है ।


लेककन ये अधिकारी और भी पागल मालूम पडता है । क्योंकक ये कहता है कक जाना कहीं न
पडेगा और पूछते है जाना कहां चाहते हो। उन पागलों ने कहा, कक जब जाना ही नहीं पडेगा
तो जाना चाहते हो का िवाल क्या है ? उन पागलों को िमझाना बहुत मुज‍कल हुआ। आखखर
आिा पागलखाना बीच िे दीवार उिाकर पाककस्तान में चला गया, आिा ठहन्दस्ु तान में चला
गया।

मैंने िन
ु ा है कक अभी वे पागल एक दि
ू रे की दीवार पर चढ जाते है और आपि में िोचते है
कक बडी अजीब बात है , हम वहीं के वहीं है , लेककन तम
ु पाककस्तान में चले गये हो और हम
ठहन्दस्
ु तान में चले गये है ।

ये पागल हमिे कम पागल मालूम होत है । हमने जमीन को बांटा है , आदमी को बांटा है ।

ठहप्पी कह रहा है , हम बांटेंगे नहीं; हम तनपट बबना बटे हुए आदमी की तरह जीना चाहते है ।
और बाद बांटते है । बांटने की िबिे िुप्रविापूणघ तरकीब बाद है इज्म है ।
इिसलए ठहप्पी कहते है कक हम ककिी इज्म में नहीं है । ऊब चक
ु े तुम्हारे बादों िे, तुम्हारे
िमों िे। हमें तनपट आदमी की तरह छोड दो—हम जैिे है , वैिे जीना चाहते है ।

यह तो पहला िूर है । इिसलए मैंने कहा, यह बात पहले िमझ लेना जरूरी है । ठहप्पी इज्म
जैिी चीज नहीं है , ठहप्पीज है । ठहप्पी वाद नहीं है । ठहप्पी जरूर है ।

दि
ू री बात ध्यान में लेने जैिी है और वह यह कक ठहजप्पयों की ऐिी िारण है कह न केवल
आदमी की तरह जीयें बजल्क िहज आदमी की तरह जीयें। हजारों िाल िे िभ्यता ने आदमी
को अिहज बनाया है , जैिा वह नहीं है वैिा बनाया है । हजारों िाल की िभ्यता िंस्कार,
व्यवस्था ने आदमी को कृबरम को झि
ू ा बनाने की कोसशश की है । उिके हजार चेहरे बना
ठदये है ।

मैने िुना है कह अगर एक कमरे में मैं और आप दो जन समलें तो वहां दो जन नहीं होंगे,
वहां कम िे कम 6 जन होंगे। एक मैं—जैिा मैं हूं, एक मैं—जैिा की मैं िोचता हूं। और एक
मैं—जैिाकक आप मुझे िमझते है कक मैं हूं। और तीन आप और तीन मैं। उि कमरे में जहां
दो आदमी समलते है कम िे कम 6 आदमी समलते है । हजार समल िकते है , क्योंकक हमारे
हजार चेहरे है , मुखौटे है ।

हर आदमी कुछ है ओर, कुछ ठदखला रहा है । कुछ है , कुछ बन रहा है । और कुछ ठदखला रहा
है । और कफर न मालुम ककतने चेहरे है —जैिे दपघण के आगे दपघण, और दपघण के आगे दपघण
और एक दि
ू रे के िततबबम्ब हजार-हजार िततबबम्ब हो गये है । इन िततबबम्बों की भीड में
पता लगाना ही मुज‍कल है कक कौन है आप। तय करना ही मुज‍कल है कक कौन िा चेहरा है
आपका अपना?

पत्नी के िामने आपका चेहरा दि


ू रा होता है । बेटे के िामने दि
ू रा हो जाता है । नौकर के
िामने एक होता है । मासलक के िामने एक हो जाता है । जब आप मासलक के िामने खडे
होते है तो जो पंछ
ू आपके पाि नहीं है , वह ठहलती रहती है। और जब आप नौकर के पाि
खडे होते है तब जो पछ
ंू उिके पाि नहीं है , आप गौर िे दे खते रहते है कक वह ठहला रहा है
या नहीं ठहला रहा है ।

ठहजप्पयों की िारण मुझे िीततकर मालूम पडती है । वे कहते है कक हम िहज आदसमयों की


तरह जीयेंगे। जैिे हम है। िोखा न दें गे। िवंचना, पाखंड, डडिेप्शन खडा न करें गे। िीक है ,
तकलीफ होगी तो तकलीफ झेलेंगे। लेककन हम जैिे हम है , वैिे ही रहें गे।
अगर ठहप्पी को लगता है कक वह ककिी िे कहे कक मुझे आप पर क्रोि आ रहा है और गाली
दे ने का मन होता है तो वह आपिे आकर कहे गा पाि में बैिकर कक मुझे आप पर बहुत
क्रोि आ रहा है और मैं आपको दो गाली दे ना चाहता हूं।

मैं िमझता हूं कक वह बडा मानवीय गुण है । और वह क्षमा मांगने नहीं आयेगा पीछे , जब
तक उिे लगे न, क्योंकक वह कहे गा गाली दे ने का मेरा मन था, मैंने गाली दी और अब जो
भी फल हो उिे लेने के सलए मैं तैयार हूं। लेककन गाली भीतर ऊपर मुस्कराहट इि बात को
इंकार कर रहा हूं। लेककन हमारी जस्थतत यह है कक भीतर कुछ है , बहार कुछ। भीतर एक नकघ
तछपाये हुए है हम, बाहर हम कुछ और हो गये है । एक आदमी एक जीता-जागता झूि है ।

ठहप्पी का दि
ू रा िूर यह है कक हम जैिे है , वैिे है । हम कुछ भी रूकावट न करें गे, तछपा वट
न करें गे।

मेरे एक समर ठहजप्पयों के एक छोटे िे गांव में जाकर कुछ ठदन तक रहे तो मुझिे बोले कक
बहुत बेचनै ी होती है वहां। क्योंकक वहां िारे मुखौटे उखड जाते है । वहां बजाय एक युवक एक
युवती के पाि आकर कप्रवताएं कहे , िेम की और बातें करे हजार तरह की, वह उििे िीिा ही
आकर तनवेदन कर दे गा कक मैं आपको भोगना चाहता हूं। वह कहे गा कक इतने िारे जाल के
पीछे इरादा तो वही है । उि इरादे के सलए इतने जाल बनाने की कोई जरूरत नहीं है । वह
कह िकता है एक लडकी को जाकर कक मैं तुम्हारे िाथ बबस्तर पर िोना चाहता हूं।

बहुत र्बरानें वाली बात लगेगी। लेककन िारी बातचीत और िारी कप्रवता और िारे िंगीत
और िारे िेम चचाघ के बाद यही र्टना अगर र्टने वाली है । तो ठहप्पी कहता है कक इिे
िीिा ही तनवेदन कर दे ना उधचत है । ककिी को िोखा तो न हो, वह लडकी अगर न चाहती है
िोना, तो कह तो िकती है कक क्षमा करो।

एक जाल िभ्यता ने खडा ककया है , जजिने आदमी को बबलकुल ही झि


ू ी इकाई बना ठदया है ।

अब एक पतत है , वह अपनी पत्नी िे रोज कहे जा रहा है कक मैं तुम्हें िेम करता हूं। और
भीतर जानता है कक यह मैं क्यों कहा रहा हूं। एक पत्नी है , वह अपने पतत िे रोज कहे जा
रही है कक मैं तुम्हारे बबना एक क्षण नहीं जी िकती और उिी पतत के िाथ एक क्षण जीना
मुज‍कल हुआ जा रहा है ।

बाप बेटे िे कुछ कह रहा है । कक बाप बेटे िे कहा रह है कक मैं तुम्हें इिसलए पढा रहा हूं कक
मैं तुझे बहुत िेम करता हूं। और वह पढा इिसलए रहा है कक बाप अपढ रह गया है । और
उिके अहं कार की चोट र्ाव बन गयी है । वह अपने बेटे को पढा कर अपने अहं कार की पूततघ
करना चाहता है । बाप नहीं पहुंच पाया समतनस्टरी तक, वह बेटे को पहुंचाना चाहता है । पर वह
कहता है बेटे को मैं बहुत िेम करता हूं इिसलए…..लेककन उिे पता नहीं है कक बेटे को
समतनस्टरी तक पहुंचाना बेटे को नकघ तक पहुंचा दे ना है । अगर िेम है तो कम िे कम बाप
एक बात तो न चाहे गा कक बेटा राजनीततज्ञ हो जाए।

िारी दतू नया िेम कर रही है । लेककन िेम का कोई प्रवस्फोट कभी नहीं होता है । िारी दतू नया
िेम कर रही है और जब भी प्रवस्फोट होता है तो र्ण
ृ ा का होता है । ठहप्पी कहता है जरूर
हमारा िेम कहीं िोखे का है । कर रहे है र्ण
ृ ा कह रहे है िेम।

मैं एक स्री को कहता हूं कक मैं तझ


ु े िेम करता हूं और मेरी स्री जरा पडोि के आदमी की
तरफ गौर िे दे ख ले तो िारा िेम प्रवदा हो गया और तलवार खखंच गयी। कैिा िेम है । अगर
मैं इि स्री को िेम करता हूं तो ईष्याघलु नहीं हो िकता। िेम में ईष्याघ की कहां जगह है ?
लेककन जजि को हम िेम कहते है वे सिफघ एक दि ू रे के पहरे दार बन जाते है और कुछ भी
नहीं,और एक दि
ू रे के सलए ईष्याघ का आिार खोज लेते है । जलते है ,जलाते है परे शान करते
है ।

ठहप्पी यह कह रहा है कक बहुत हो चकु ी यह बेईमानी। अब हम तो जैिे है , वैिे है । अगर िेम


है तो कह दें गे कक िेम है और जजि चकु जायेगा उि ठदन तनवेदन कर दें गे कक िेम चक ु
गया। अब झूिी बातों में पडने की कोई जरूरत नहीं है , मैं जाता हूं।

लेककन पुराने िेम की िारणा कहती है कक िेम होता है तो कफर कभी नहीं समटता, शा‍वत
होता है । ठहप्पी कहता है होता होगा। अगर होगा तो कह दाँ ग
ू ा कक शा‍वत है , ठटका है । नहीं
होगा तो कह दाँ ू की नहीं है ।

एक जाल है जो िभ्यता ने प्रवकसित ककया है । उि जाल में आदमी की गदघ न ऐिे फंि गई
है , जैिे फांिी लग गई हो उि जाल िे बगावत है ठहप्पी की।

ओशो
िंभोग िे िमाधि की और

प्रविोह क्या है ,

िवचन—10
संभोग से समाधि की और —38 ( विद्रोह क्या है ?) भाग–2
Posted on मई 13, 2011by sw anand prashad

विद्रोह क्या है ?
दि
ू रा िर
ू है —िहज जीवन—जैिे हैं, है ।

लेककन िहज होना बहुत कठिन है । िहज होना िच में ही बहुत कठिन बात है । क्योंकक हम
इतने अिहज हो गए है कक हमने इतनी यारा कर ली है । असभनय की कक वहां लौट जाना,
जहां हमारी िच्चाई िकट हो जाये, बहुत मुज‍कल है ।

डॉक्टर पल्िघ एक मनोवैज्ञातनक है , जो ठहजप्पयों का गुरु कहा जा िकता है । एक मठहला गई


थी वहां। मैंने उििे कहा था कक जरूर उि पहाडी पर हो आना, 2-4ठदन रूक जाना। तो जब
वह पल्िघ के पाि गयी और वहां का िारा ठहिाब दे खा, वह तो र्बरा गई। बहुत र्बरा गयी,
क्योंकक वहां िहज जीवन िूर है । िारे लोग बैिे है और एक आदमी नंगा चला आयेगा हाल
में और आकर बैि जायेगा। अगर उिको नंगा होना िीक लग रहा है तो यह उिकी मरजी
है । इिमें ककिी को कुछ लेना दे ना नहीं है । न कोई हाल में चीखेगी, न कोई धचल्लायेगा, न
कोई गौर िे दे खेगा, उिे जैिा िीक लग रहा है , उिे वैिा करने दे ना है ।
और जो लोग पल्िघ के पाि महीने भर रह आते है । उनकी जजंदगी में कुछ नये फूल खखल
जाते है । क्योंकक पहली दफा वे हल्के, पक्षक्षयों की तरह जी पाते है । पौिों की तरह, या जैिे
आकाश में कभी चील को उडते दे खा हो—पंख भी नहीं चलाती। पंख भी बंद हो जाते है । बि
हवा पर तैरती रहती है। उिे पहाडी पर पल्िघ के पाि भी व्यजक्त हवा में तैर रहे है । एक
आदमी बहार नाच रहा है । कोई गीत गा रहा है । तो गीत गा रहा है । कोई रो रहा है तो रो
रहा है । कोई रूकावट नहीं है ।

लेककन हमने तो आदमी को िब तरह िे रोक रखा है । बच्चे को तनदे श दे ने िे शुरू हो जाती
है कहानी। हमारी िारी सशक्षा–‘डू नाट’ िे शुरू हो जाती है । और हर बच्चे के ठदमाग में हम
ज्यादा िे ज्यादा ‘मत करो’ थोपते चले जाते है । अंतत: करने की िारी क्षमता, िज
ृ न की िारी
क्षमता, ‘न-करने’ के इि जाल में लुप्त हो जाती है । या तो वह आदमी चोरी िे शुरू कर दे ता
है , जो-जो हमने रोका था, कक यह मत करो। और या कफर भीतर परे शानी में पड जाता है ।

दो ही रास्ते है , या पाखंडी हो जाये, या पागल हो जाये।

अगर भीतर लडा और अगर सिंसियर होगा, ईमानदार होगा तो पागल हो जायेगा। अगर
होसशयार हुआ, चालाक हुआ, कौतनंग हुआ ता पाखंडी हो जायेगा। एक दरवाजा मकान के पीछे
िे बना लेगा। जहां िे करने की दतु नया रहे गी। एक दरवाजा बाहर िे रहे गा जहां ‘न करने’ के
िारे ‘टे न कमांडमैं्ि’ सलखे हुए है । वहां वह िदा ऐिा खडा होगा कक यह में नहीं करता हूं।
और करने की अलग दतु नया बना लेगा।

मनुष्य को खंडडत, जस्कजोफ्रेतनक बनाने में , मनुष्य के मन को खंड-खंड करने में िभ्यता की
‘न करने’ की सशक्षा ने बडा काम ककया है ।

ठहप्पी कह रहा है कक जो हमें करना है , वह हम करें गे। और उिके सलए जो भी हमें भोगना
है , हम भोग लेंगे। लेककन एक बात हम न करें गे कक करें कुछ, और ठदखायें कुछ। यही बडी
बगावत है ।

हालांकक िदा िे िाि-ु िंतों ने कहा था कक बाहर और भीतर एक होना चाठहए। ठहप्पी भी यही
कहते है । लेककन एक बुतनयादी फकघ है । िाि-ु िंत कहते है । कक बाहर और भीतर एक होना
चाठहए। तब उनका मतलब है : बाहर जैिे हो वैिे ही भीतर होना चाठहए। ठहप्पी जब कहता है
कक बाहर भीतर एक होना चाठहए: तो वह कहता है कक भीतर जैिे हो वैिे ही बाहर भी होना
चाठहए। इन दोनो में फकघ है ।

िािु िंत जब कहते है कक बहार भीतर एक जैिा होना चाठहए। तो वह कहते है कक भीतर का
दरवाजा बंद करो। ठहप्पी कहता है बहार भीतर एक होना चाठहए। तो वह कहता है : बाहर जो
दि तनषेि आज्ञाओं, टे न कमांडमैं्ि की तख्ती लगी है उिको उखाडकर फेंक दो। और जैिे
भी हो, वैिे हो जाओ। अगर चोर हो तो चोर अगर बेईमान हो तो बेईमान, क्रोिी हो तो क्रोिी।
बडा खतरा तो यह है कक क्रोिी असभनय कर रहा अक्रोि का, ठहंिक असभनय कर रहा है
अठहंिक का, कामी असभनय कर रहा है ब्रह्मचयघ का। और पुरानी िारी िंस्कृततयां असभनय
को बडी कीमत दे ती है । और कुशल असभनेता की बडी पूजा हाथी है ।

ठहप्पी कह रहा है हम असभनय की पज


ू ा नहीं करते। हम जीवन के पज
ू क है । ठहप्पी यह कह
रहा है कक झि
ू े ब्रह्मचयघ िे िच्चा यौन भी अथघपूणघ है । झि
ू े ब्रह्मचयघ में भी वह िग
ु ंि नहीं
है , जो िच्चे यौन में हो िकती है । िच्चे ब्रह्मचयघ की तो बात ही दि
ू री है । उिकी िग
ु ंि का
हमे क्या पता? लेककन िच्चा यौन न हो तो िच्चे ब्रह्मचयघ की कोई िंभावना ही नहीं है ।
अभी ठहप्पी यह नहीं कह रहे है , लेककन शीध्र ही जानें गे तो कहें गे। हम अगर पशु है तो
स्वीकृत है कक हम पशु है और हम पशु की भांतत ही जीयेंगे।

तीिरी बात, जब मैं िोचता हूं तो मुझे लगता है कक अगर खोज की जाये तो ईिाईयों की
कहानी के अदम और ईव ठहजप्पयों के आठद पुरूष कहे जाने चाठहए। क्योंकक अदम और ईव
को ई‍वर ने कहा था कक तुम ज्ञान के वक्ष
ृ का फल मत चखना। उन्होंने बगावत कर दी
और जजि वक्ष
ृ का फल नहीं चखने को कहा था, उिी का फल चख सलया और ईडन के बग़ीचे
िे बठहष्कृत कर ठदये गये।

तीिरा िूर है ठहप्पी का: प्रविोह, इनकार का िाहि। एक तो कन्फरसमस्ट की जजन्दगी है , ‘हां-
हुजूर की’ ‘यि िर’ की। वह जो भी कह रहा है , ‘हां’ कह रहा है । वह िदा ‘हां हुजूर’ कहने के
सलए तैयार है । उिने चाहे बात भी िीक िे नहीं िन ु ी है , लेककन ‘हां हुजरू ’ कहे जा रहा है । उिे
पता भी नहीं कक वह ककि चीज में हां भर रहा है । लेककन वह हां भरे चला जा रहा है । एक
गुरु एक िीक्रेट उिे पता है । जजन्दगी में जीना हो तो िब चीज में ‘हां’ कहे चले जाओ।

ठहप्पी कह रहा है जब तक हम िमाज की हर चीज में ‘हां’ कह रहे है , तब तक व्यजक्त का


जन्म नहीं होता। व्यजक्त का जन्म होता है ‘नौ िे इंग’ िे, न कहना शरू
ु करने िे।

अिल में मनुष्य की आत्मा ही तब पैदा होती है , जब कोई आदमी ‘नो’ नहीं कहने की ठहम्मत
जुटा लेता है ।

जब कोई कह िकता है , नहीं, चाहे दांव पर परू ी जजंदगी लग जाती हो। और जब एक बार
आदमी नहीं, कहना शुरू कर दे , ‘नहीं’ कहना िीख ले, तब पहली दफा उिके भीतर इि ‘नहीं’
कहने के कारण, ‘डडनायल’ के कारण व्यजक्त का जन्म शुरू होता है । यह ‘न’ की जो रे खा है ,
उिको व्यजक्त बनाती है । ‘हां’ की रे खा उिको िमूह का अंग बना दे ती है । इिसलए िमूह िदा
आज्ञाकाररता पर जोर दे ता है ।

बाप अपने ‘गोबर गणेश’ बेटे को कहे गा कक आज्ञाकारी है । क्योंकक गोबर गणेश बेटे िे न
तनकलती ही नहीं। अिल में ‘न’ तनकलने के सलए थोडी बुद्धि चाठहए। हां तनकलने के सलए
बुद्धि की कोई जरूरत नहीं है । हां तो कम्प्युटराइज्ड है , वह तो बुद्धि जजतनी कम होगी,
उतनी जल्दी तनकलता है । न तो िोच प्रवचार मांगता है । न तो तकघ आगम
ुघ ें ट मांगता है । न
जब कहें गे तो पच्चीि बार िोचना पडता है । क्योंकक न कहने पर बात खत्म नहीं होती। शरू

होती है । हां कहने पर बात खत्म हो जाती है । शरू
ु नहीं होती।

बुद्धिमान बेटा होगा तो बाप को िीक नहीं लगेगा, क्योंकक बुद्धिमान बेटा बहुत बार बाप को
तनबुद्
घ धि सिद्ि कर दे गा। बहुत क्षणों में बाप को िीक नहीं लगेगा, क्योंकक अपने आप को भी
वह तनबुद्
घ धि मालूम पड रहा है । बडी चोट है , अहं कार को। वह कठिनाई में डाल दे गा।

इिसलए हजारों िाल िे बाप, पीढी, िमाज ‘हां’ कहने की आदत डलवा रहा है । उिको वह
अनुशािन कहे , आज्ञाकाररता कहे और कुछ नाम दे लेककन ियोजन एक है । और वह यह है
कहे प्रविोह नहीं होना चाठहए। बगावती धचत नहीं होना चाठहए।
ठहजप्पयों का तीिरा िूर है कक अगर धचत ही चाठहए हो तो सिफघ बगावती ही हो िकता है ।
अगर आत्मा चाठहए हो तो वह ‘ररबैसलयि’ ही हो िकती है । अगर आत्मा ही न चाठहए तो
बात दि
ू री।

कन्फरसमस्ट के पाि कोई आत्मा नहीं होती।

यह ऐिा ही है , जैिे एक पत्थर पडा है , िडक के ककनारे । िडक के ककनारे पडा हुआ पत्थर
मूततघ नहीं बनता। मूततघ तो तब बनता है । जब छै नी और हथौडी उि पर चोट करती और
काटती है । जब कोई आदमी ‘न’ कहता है। और बगावत करता है। तो िारे िाणों पर छै नी
और हथौडडयां पडने लगती है । िब तरफ िे मतू तघ तनखरना शरू
ु होती है । लेककन जब कोई
पत्थर कह दे ता है ‘’हां’’ तो छै नी हथौडी नहीं होती वहां पैदा। वह कफर पत्थर ही रह जाता है ।
िडक के ककनारे पडा हुआ।

लेककन िमस्त ित्ताधिकारी यों को चाहे वे प्रपता हो, चाहे मां, चाहे सशक्षक हो। चाहे बडा भाई
हो, चाहे राजनेता हो, िमस्त ित्ताधिकारी यों को ‘’हां-हुजूर’’ की जमात चाठहए।

ठहप्पी कहते है कक इििे हम इंकार करते है । हमें जो िीक लगेगा। वैिा हम जीयेंगे।
तनज‍चत ही तकलीफ है और इिसलए ठहप्पी भी एक तरह का िंन्यािी है । अिल में िंन्यािी
कभी एक ठदन एक तरह का ठहप्पी ही था, उिने भी इंकार ककया था, अ-नागररक था, िमाज
छोड ठदया, चला गया स्वछं द जीने की राह पर।

जैिे महावीर नग्न खडे हो गए, महावीर जजि ठदन बबहार में नग्न हुए होंगे। उि ठदन मैं नहीं
िमझता कक पुरानी जमात ने स्वीकार ककया होगा। यहां तक बात चली कक अब महावीर को
मानने वालों के दो ठहस्िे है । एक तो कहता है कक वस्र पहनते थे। लेककन वे अदृ‍य वस्र
थे, ठदखाई नहीं दे ते थे। यह परु ाना कन्फरसमस्ट जो होगा, उिने आखखर महावीर को भी वस्र
पहना ठदये, लेककन ऐिे वस्र जो ठदखाई नहीं पड रहे है । इि सलए कुछ लोगों को भल
ू हुई कक
वे नंगे थे। वे नंगे नहीं थे। वस्र पहने थे।

जीिि, बुद्ि, महावीर जैिे लोग िभी बगावती है । अिल में मनुष्य जातत के इततहाि में
जजनके नाम भी गौरव िे सलये जा िकें वे िब बगावती है ।

ओशो

िंभोग िे िमाधि की और
प्रविोह क्या है ,

िवचन—10

संभाेेग से समाधि की और –39 सेक्स नैनतक या अनैनतक: भाग-


( 1)
Posted on ठदिम्बर 30, 2011by sw anand prashad

िेक्ि नैततक या अनैततक--ओशो

िेक्ि िे िंबंधित ककिी नैततकता का कोई भप्रवष्य नहीं है । िच तो यह है कक िेक्ि और


नैततकता के िंयोजन ने नैततकता के िारे अतीत को प्रवषैला कर ठदया है । नैततकता इतनी
िेक्ि केंठित हो गई कक उिके दि
ू रे िभी आयाम खो गये—जो अधिक महत्वपूणघ है । अिल
में िेक्ि नैततकता िे इतना िंबंधित नहीं होना चाठहए।
िच, ईमानदारी, िामाखणकता, पूणत
घ ा—इन चीजों का नैततकता िे िंबंि होना चाठहए। चेतना,
ध्यान, जागरूकता, िेम, करूण—इन बातों का अिल में नैततकता िे िंबंि होना चाठहए।
लेककन अतीत में िेक्ि और नैततकता लगभग पयाघयवाची रहे है ; िेक्ि अधिक मजबूत,
अत्यधिक भारी हो गया। इिसलए जब कभी तुम कहो कक कोई व्यजक्त अनैततक है तब
तुम्हारा मतलब होता है , कक उिके िेक्ि जीवन के बारे में कुछ गलत है । और जब तुम
कहते हो कक कोई व्यजक्त बहुत नैततक है , तुम्हारा िारा अथघ यह होता है , कक वह िभी
नैततकता एक आयामी हो गई; यह िीक नहीं था। ऐिी नैततकता का कोई भप्रवष्य नहीं है , वह
िमाप्त हो रही है । वास्तव में यह मर चक
ु ी है । तम
ु सिफघ लाश को ढो रहे हो।

िेक्ि तो आमोद-िमोद पूणघ होना चाठहए। न कक गंभीर मामला जैिा कक अतीत में बना ठदया
गया। यह तो एक नाटक की तरह होना चाठहए, एक खेल कक तरह: मार दो लोग एक दि
ू रे
की शारीररक ऊजाघ के िाथ खेल रहे है । यठद वे दोनों खश
ु है , तो इिमें ककिी दि
ू रे की दखल
अंदाजी नहीं होनी चाठहए। वे ककिी को नुकिान नहीं पहुंचा रहे । वे बि एक दि
ू रे की ऊजाघ
का आनंद ले रहे है । यह ऊजाघओं का एक िाथ नत्ृ य है । इिमें िमाज का कुछ लेना दे ना
नहीं है । जब तक कक कोई एक दि
ू रे के जीवन में नुकिान न दें । अपने को थोपे, लादे ,
ठहंिात्मक न हो, ककिी के जीवन को नुकिान न पहुाँचाए, तब ही िमाज को बीच में आना
चाठहए। अन्यथा कोई िमस्या नहीं है ; इिका ककिी तरह िे लेना दे ना नहीं होना चाठहए।

िेक्ि के बारे में भप्रवष्य में पूरा अलग ही नजररया होगा। यह अधिक खेल पूण,घ आनंद पूण,घ
अधिक समरतापूण,घ अधिक िहज होगा। अतीत की तरह गंभीर बात नहीं। इिने लोगों का
जीवन बबाघद कर ठदया है । बेवजह िरददघ बन गया था। इिने बबना ककिी कारण—ईष्याघ,
अधिकार, मलककयत, ककचककच, झगडा, मारपीट, भत्िघना पैदा की।

िेक्ि िािारण बात है , जैप्रवक र्टना मार। इिे इतना महत्व नहीं ठदया जाना चाठहए। इिका
इ तना ही महत्व है कक ऊजाघ का ऊध्वघगमन ककया जा िके। यह अधिक िे अधिक
आध्याजत्मक हो िकता है । और अधिक आध्याजत्मक बनाने के सलए इिे कम िे कम गंभीर
मिला बनाना होगा।

िेक्ि िे िंबंधित नैततकता के भप्रवष्य को लेकर बहुत धचंततत मत होओ, यह पूरी तरह िे
िमाप्त हो जाने वाला है । भप्रवष्य में िेक्ि के बारे में परू ी तरह िे नया ही दृजष्टकोण होगा।
और एक बार िेक्ि का नैततकता िे इतना गहरा िंबंि िमाप्त हो जायेगा। तो नैततकता का
िंबंि दि
ू री अन्य बातों िे हो जायेगा जजनका अधिक महत्व है ।

ित्य, ईमानदारी, िामाखणकता, पूणत


घ ा, करूण, िेवा, ध्यान, अिल में इन बातों का नैततकता िे
िंबंि होना चाठहए। क्योंकक ये बातें है जो तुम्हारे जीवन को रूपांतररत करती है । ये बातें है
जो तुम्हें अजस्तत्व के करीब लाती है ।

ओशो
आह, ददस

गंदा बूढ़ा जैसी अलभव्यत्क्त क्यों बनी?


क्योंकक लंबे िमय िे िमाज दमन करता चला आया है इिसलए गंदे बूढे होते है । यह तुम्हारे
िाि-ु िंतों, पंडडत-पुजाररयों की दे न है ।

यठद लोग अपने िेक्ि जीवन को आनंदपूणघ ढं ग िे जी िके तो बयालीि िाल के होत-होत,
याद रखो में कह रहा हूं, बयालीि, न कक चौरािी…बयालीि के होते िेक्ि उन पर िे अपनी
पकड छोडना शुरू कर दे गा। ऐिे ही जैिे कक चौदह के होते स्वयं िेक्ि आता है और
ताकतवर होता है । ऐिे ही कोई बयालीि का होता है िेक्ि प्रवदा हो जाता है । बूढा व्यजक्त
अधिक िेम पूण,घ करुणापूण,घ एक उत्िव िे भरा व्यजक्त हो जाता है । उिके िेम में कामुकता
नहीं होती। कोई चाहत नहीं होगी, इिके द्वारा ककिी तरह की वािना को पूरी करने की मंशा
नहीं होगी। उिका िेम शुद्ि होगा। मािूम; उिका िेम आनंद होगा।

िेक्ि तुम्हें िुख दे ता है । और िेक्ि तभी िुख दे ता है जब तुम इिमें िे गूजरों तब िुख
इिका पररणाम होगा। यठद िेक्ि अिािंधगक हो गया हो—न कक दमन, बजल्क तुमने इतनी
गहनता िे अनुभव ककया कक इिका कोई मुल्य नहीं है । तुमने इिे पूणत
घ ा िे जान सलया, और
ज्ञान हमेशा स्वतंरता लता है । तुमने इिे पूणत
घ ा िे जाना और चकूं क तुमने इिे जान सलया,
रहस्य िमाप्त हो गया, इििे अधिक जानने को कुछ नहीं रहा। इि जानने में , िारी ऊजाघ,
काम की ऊजाघ, िेम और करूण में रूपांतररत हो जाती है । आनंद वश कोई दे ता है । तब बूढा
व्यजक्त दतु नया का िबिे िुंदर व्यजक्त है , दतु नया का िवाघधिक स्वच्छ व्यजक्त।

दतु नया की ककिी भाषा में स्वच्छ बढ


ू ा जैिा कोई शब्द नहीं है । मैंने कभी नहीं िन
ू ा। लेककन
गंदा बूढा िारी भाषाओं में होता है । कारण यह है कक शरीर बूढा हो गया है । शरीर थक गया
है । शरीर िारी कामुकता िे मुक्त होना चाठहए। लेककन मन, दसमत इच्छाओं की वजह िे, अब
भी लालातयत रहता है । जब कक शरीर इिके काबबल नहीं रहा। और मन ितत मांग करता
रहता है । जजिके सलए शरीर िक्षम नहीं है । िच तो बूढा व्यजक्त परे शान होता है । उिकी
आंखें, कामुक, वािना िे भरी है , उिका शरीर मत ृ िाय हो थका हुआ है । और उिका मन उिे
उत्तेजजत ककये जाता है । वह भद्दे ढं ग िे दे खने लगता है , गंदा-चेहरा; उिके भीतर कुछ गंदा
तनसमघत होने लगता है।

शरीर दे र िबेर बढ
ू ा होता है ; इिका बढ
ू ा होना पक्का है । लेककन यठद तम
ु ने अपनी वािनाओं
को िीक िे नहीं जजया तो वे तम्
ु हारे आिपाि र्म
ू ती रहें गी। वे तम्
ु हारे भीतर कुछ गंदा
तनसमघत करके रहे गी। या तो बढ
ू ा व्यजक्त दतू नया का िबिे िंद
ु र व्यजक्त होता है । क्योंकक
उिने वहीं भोलापन अजजघत कर सलया है । जो छोटे बच्चे में होता है । या यंू कह लीजजए की
छोटे बच्चे िे भी अधिक गहरा भोलापन। वह िंत हो जाता है । लेककन यठद वािनाएं अभी
भी है , आंतररक प्रवद्यत
ु की भांतत दौडती हुई, तब वह परे शानी में पडने ही वाला है ।

यठद तुम बूढे हो रहे हो, याद रखो वद्


ृ िावस्था जीवन का िबिे अधिक िुंदर अनुभव है ।
अगर तुम इिे बना िको तो। क्योंकक बच्चें को भप्रवष्य की धचंता है । यह करना है और वह
करना है उिकी महान इच्छाएं है । हर बच्चा िोचता है कक वह कुछ प्रवशेष होने वाला है वह
वािनाओं और भप्रवष्य में जीता है । युवा अपनी िभी इंठियों में बहुत अधिक उलझा होता है ।
िेक्ि वहां है , आितु नक खोज कहती है । हर आदमी तीन िेकेंड में एक बार िेक्ि के बारे में
िोचता है । जस्रयां थोडी अधिक िीक है । वे छ: िेकंड में एक बार िेक्ि के बारे में िोचती
है । यह बहुत बडा अंतर है । लगभग दोगुना; पतत पत्नी के बीच होने वाली कलह का यह एक
कारण हो िकता है ।

हर तीन िेकंड में िेक्ि मन में कौंिता है । युवक िकृतत की ऐिी ताकत होती है । इििे वह
स्वतंर नहीं हो पाता। महत्वाकांक्षा है , और िमय तेज गतत िे भागा जा रहा है । और उिे
कुछ करना है । िभी इच्छाएं, वािनाएं और बचपन की पररकल्पनांए पूरी करनी है ; वह पागल
दौड में है , बहुत जल्दी में है ।

बढ
ू ा व्यजक्त जानता है कक यौवन के वे िारे ठदन और उनकी परे शातनयां जा चक
ु ी है । बढ
ू ा
उिी दशा में है जैिे कक तफ
ू ान के बाद शांतत उतर आती है । वह मौन अत्यधिक िंद
ु र, गहन
िंपदा िे भरा हो िकता है । यठद बढ
ू ा व्यजक्त िचमच ु िौढ है , जो कक बहुत कम होता है । तब
वह िंद
ु र होगा। लेककन लोग सिफघ उम्र में बढते है , वे िौढ नहीं होते। इि कारण िमस्या है ।

पररपक्व होओ, अधिक िौढ होओ, और अधिक जागरूक और िचेत होओ। और वद्
ृ िावस्था
तुम्हें अंततम अविर ठदया गया है : इिके पहले कक मौत आये, तैयार हो जाओ। और कोई
मत्ृ यु के सलए कैिे तैयार होता है ? अधिक ध्यान पूणघ होकर।

यठद कुछ वािनाएं अभी अटकी है , और शरीर बूढा हो रहा है । और शरीर उनको पूरा करने की
दशा में नहीं है , धचंता मत करो। उन वािनाओं पर ध्यान करो, िाक्षा बनो, िचेत होओ। सिफघ
िचेत होने व िाक्षी होने िे और जागरूक होने िे, वे वािनाएं और उनमें लगी ऊजाघ
रूपांतररत हो िकती है । लेककन इिके पहले कक मौत आये िभी वािनाओं िे मुक्त हो
जाओ।

जब मैं कहता हूं कक िभी वािनाओं िे मुक्त हो जाओं तो मरा यह मतलब है कक वािनाओं
के िभी िंिािनों िे मक्
ु त हो जाओ। तब वहां शद्ु ि अभीप्िा होगी, बगैर ककिी प्रवषय
वािना के बगैर ककिी पते के, बगैर ककिी ठदशा के, बगैर ककिी मंजजल के। शद्
ु ि ऊजाघ, ऊजाघ
का कंु ड, िहरा हुआ। बद्
ु ि होने का यही मतलब है ।

ओशो
दद बुक ऑफ विज़डन
ऐिा लगता है कक पज‍चम के सलए यह स्वीकारना बहुत मुज‍कल है कक िेक्ि का बबदा होना
आनंद और अनंत का आशीवाघद की तरह हो िकता है । क्योंकक वे मार भौततक शरीर में ही
प्रव‍वाि करते है । ककिी भी पल काम तजृ प्त का आनंद लेने के सलए िेक्ि एक िािन मार
है । यठद तुम पयाघप्त भाग्यशाली हो तो, जोकक लाखों लोग नहीं है ।
सिफघ कभी-कभार कोई थोडा िा काम के चरमोत्कषघ का अनुभव ले पाता है । तुम्हारे िंस्कार
तुम्हें रोकते है । पूरब में यठद िेक्ि स्वत: धगर जाता है यह तो उत्िव है 1 हमने जीवन को
पूरा दि
ू री ही तरह िे सलया है , हमने इिे िेक्ि का पयाघयवाची नहीं बनाया। इिके प्रवपरीत,
जब तक िेक्ि रहता है इिका मतलब है कक तुम पयाघप्त िौढ नहीं हुए।

जब िेक्ि बबदा हो जाता है , तुम में अत्यधिक िौढता और केंिीयता आती है । और अिली
ब्रह्मचयघ, िामाखणक ब्रह्मचयघ। और अब तुम जैप्रवक बंिनों िे मुक्त हुए जो सिफघ ज़ंजीरें मार
है । जो तुम्हें अंिी शजक्तयों के कैदी बनाते है , तुम आंखे खोलते हो और इि अजस्तत्व की
िुंदरता को दे ख िकते हो। तुम अपने ब्रह्मचयघ के ठदनों में अपनी ही मूढता पर हं िोगे। कक
कभी तुम िोचते थे कक यही िब कुछ है जो जीवन हमें दे ता है ।

ओशो
सत्यम, लशिम ्, सुंदरम ्

संभाेेग से समाधि की और –39 सेक्स नैनतक या अनैनतक: भाग-


( 1)
Posted on ठदिम्बर 30, 2011by sw anand prashad

िेक्ि नैततक या अनैततक--ओशो

िेक्ि िे िंबंधित ककिी नैततकता का कोई भप्रवष्य नहीं है । िच तो यह है कक िेक्ि और


नैततकता के िंयोजन ने नैततकता के िारे अतीत को प्रवषैला कर ठदया है । नैततकता इतनी
िेक्ि केंठित हो गई कक उिके दि
ू रे िभी आयाम खो गये—जो अधिक महत्वपण
ू घ है । अिल
में िेक्ि नैततकता िे इतना िंबंधित नहीं होना चाठहए।
िच, ईमानदारी, िामाखणकता, पण
ू त
घ ा—इन चीजों का नैततकता िे िंबंि होना चाठहए। चेतना,
ध्यान, जागरूकता, िेम, करूण—इन बातों का अिल में नैततकता िे िंबंि होना चाठहए।
लेककन अतीत में िेक्ि और नैततकता लगभग पयाघयवाची रहे है ; िेक्ि अधिक मजबूत,
अत्यधिक भारी हो गया। इिसलए जब कभी तुम कहो कक कोई व्यजक्त अनैततक है तब
तुम्हारा मतलब होता है , कक उिके िेक्ि जीवन के बारे में कुछ गलत है । और जब तुम
कहते हो कक कोई व्यजक्त बहुत नैततक है , तुम्हारा िारा अथघ यह होता है , कक वह िभी
नैततकता एक आयामी हो गई; यह िीक नहीं था। ऐिी नैततकता का कोई भप्रवष्य नहीं है , वह
िमाप्त हो रही है । वास्तव में यह मर चक
ु ी है । तम
ु सिफघ लाश को ढो रहे हो।

िेक्ि तो आमोद-िमोद पूणघ होना चाठहए। न कक गंभीर मामला जैिा कक अतीत में बना ठदया
गया। यह तो एक नाटक की तरह होना चाठहए, एक खेल कक तरह: मार दो लोग एक दि
ू रे
की शारीररक ऊजाघ के िाथ खेल रहे है । यठद वे दोनों खश
ु है , तो इिमें ककिी दि
ू रे की दखल
अंदाजी नहीं होनी चाठहए। वे ककिी को नुकिान नहीं पहुंचा रहे । वे बि एक दि
ू रे की ऊजाघ
का आनंद ले रहे है । यह ऊजाघओं का एक िाथ नत्ृ य है । इिमें िमाज का कुछ लेना दे ना
नहीं है । जब तक कक कोई एक दि
ू रे के जीवन में नुकिान न दें । अपने को थोपे, लादे ,
ठहंिात्मक न हो, ककिी के जीवन को नुकिान न पहुाँचाए, तब ही िमाज को बीच में आना
चाठहए। अन्यथा कोई िमस्या नहीं है ; इिका ककिी तरह िे लेना दे ना नहीं होना चाठहए।

िेक्ि के बारे में भप्रवष्य में पूरा अलग ही नजररया होगा। यह अधिक खेल पूण,घ आनंद पूण,घ
अधिक समरतापूण,घ अधिक िहज होगा। अतीत की तरह गंभीर बात नहीं। इिने लोगों का
जीवन बबाघद कर ठदया है । बेवजह िरददघ बन गया था। इिने बबना ककिी कारण—ईष्याघ,
अधिकार, मलककयत, ककचककच, झगडा, मारपीट, भत्िघना पैदा की।

िेक्ि िािारण बात है , जैप्रवक र्टना मार। इिे इतना महत्व नहीं ठदया जाना चाठहए। इिका
इ तना ही महत्व है कक ऊजाघ का ऊध्वघगमन ककया जा िके। यह अधिक िे अधिक
आध्याजत्मक हो िकता है । और अधिक आध्याजत्मक बनाने के सलए इिे कम िे कम गंभीर
मिला बनाना होगा।

िेक्ि िे िंबंधित नैततकता के भप्रवष्य को लेकर बहुत धचंततत मत होओ, यह पूरी तरह िे
िमाप्त हो जाने वाला है । भप्रवष्य में िेक्ि के बारे में परू ी तरह िे नया ही दृजष्टकोण होगा।
और एक बार िेक्ि का नैततकता िे इतना गहरा िंबंि िमाप्त हो जायेगा। तो नैततकता का
िंबंि दि
ू री अन्य बातों िे हो जायेगा जजनका अधिक महत्व है ।

ित्य, ईमानदारी, िामाखणकता, पूणत


घ ा, करूण, िेवा, ध्यान, अिल में इन बातों का नैततकता िे
िंबंि होना चाठहए। क्योंकक ये बातें है जो तुम्हारे जीवन को रूपांतररत करती है । ये बातें है
जो तुम्हें अजस्तत्व के करीब लाती है ।
ओशो
आह, ददस

गंदा बूढ़ा जैसी अलभव्यत्क्त क्यों बनी?


क्योंकक लंबे िमय िे िमाज दमन करता चला आया है इिसलए गंदे बूढे होते है । यह तुम्हारे
िाि-ु िंतों, पंडडत-पुजाररयों की दे न है ।

यठद लोग अपने िेक्ि जीवन को आनंदपूणघ ढं ग िे जी िके तो बयालीि िाल के होत-होत,
याद रखो में कह रहा हूं, बयालीि, न कक चौरािी…बयालीि के होते िेक्ि उन पर िे अपनी
पकड छोडना शरूु कर दे गा। ऐिे ही जैिे कक चौदह के होते स्वयं िेक्ि आता है और
ताकतवर होता है । ऐिे ही कोई बयालीि का होता है िेक्ि प्रवदा हो जाता है । बढ
ू ा व्यजक्त
अधिक िेम पण
ू ,घ करुणापूण,घ एक उत्िव िे भरा व्यजक्त हो जाता है । उिके िेम में कामक
ु ता
नहीं होती। कोई चाहत नहीं होगी, इिके द्वारा ककिी तरह की वािना को परू ी करने की मंशा
नहीं होगी। उिका िेम शद्
ु ि होगा। मािम
ू ; उिका िेम आनंद होगा।

िेक्ि तुम्हें िुख दे ता है । और िेक्ि तभी िुख दे ता है जब तुम इिमें िे गूजरों तब िुख
इिका पररणाम होगा। यठद िेक्ि अिािंधगक हो गया हो—न कक दमन, बजल्क तुमने इतनी
गहनता िे अनुभव ककया कक इिका कोई मुल्य नहीं है । तुमने इिे पूणत
घ ा िे जान सलया, और
ज्ञान हमेशा स्वतंरता लता है । तुमने इिे पूणत
घ ा िे जाना और चकूं क तुमने इिे जान सलया,
रहस्य िमाप्त हो गया, इििे अधिक जानने को कुछ नहीं रहा। इि जानने में , िारी ऊजाघ,
काम की ऊजाघ, िेम और करूण में रूपांतररत हो जाती है । आनंद वश कोई दे ता है । तब बूढा
व्यजक्त दतु नया का िबिे िुंदर व्यजक्त है , दतु नया का िवाघधिक स्वच्छ व्यजक्त।

दतु नया की ककिी भाषा में स्वच्छ बूढा जैिा कोई शब्द नहीं है । मैंने कभी नहीं िूना। लेककन
गंदा बूढा िारी भाषाओं में होता है । कारण यह है कक शरीर बूढा हो गया है । शरीर थक गया
है । शरीर िारी कामुकता िे मुक्त होना चाठहए। लेककन मन, दसमत इच्छाओं की वजह िे, अब
भी लालातयत रहता है । जब कक शरीर इिके काबबल नहीं रहा। और मन ितत मांग करता
रहता है । जजिके सलए शरीर िक्षम नहीं है । िच तो बूढा व्यजक्त परे शान होता है । उिकी
आंखें, कामुक, वािना िे भरी है , उिका शरीर मत ृ िाय हो थका हुआ है । और उिका मन उिे
उत्तेजजत ककये जाता है । वह भद्दे ढं ग िे दे खने लगता है , गंदा-चेहरा; उिके भीतर कुछ गंदा
तनसमघत होने लगता है।

शरीर दे र िबेर बूढा होता है ; इिका बूढा होना पक्का है । लेककन यठद तुमने अपनी वािनाओं
को िीक िे नहीं जजया तो वे तुम्हारे आिपाि र्ूमती रहें गी। वे तुम्हारे भीतर कुछ गंदा
तनसमघत करके रहे गी। या तो बूढा व्यजक्त दतू नया का िबिे िुंदर व्यजक्त होता है । क्योंकक
उिने वहीं भोलापन अजजघत कर सलया है । जो छोटे बच्चे में होता है । या यूं कह लीजजए की
छोटे बच्चे िे भी अधिक गहरा भोलापन। वह िंत हो जाता है । लेककन यठद वािनाएं अभी
भी है , आंतररक प्रवद्युत की भांतत दौडती हुई, तब वह परे शानी में पडने ही वाला है ।

यठद तुम बूढे हो रहे हो, याद रखो वद्


ृ िावस्था जीवन का िबिे अधिक िुंदर अनुभव है ।
अगर तुम इिे बना िको तो। क्योंकक बच्चें को भप्रवष्य की धचंता है । यह करना है और वह
करना है उिकी महान इच्छाएं है । हर बच्चा िोचता है कक वह कुछ प्रवशेष होने वाला है वह
वािनाओं और भप्रवष्य में जीता है । युवा अपनी िभी इंठियों में बहुत अधिक उलझा होता है ।
िेक्ि वहां है , आितु नक खोज कहती है । हर आदमी तीन िेकेंड में एक बार िेक्ि के बारे में
िोचता है । जस्रयां थोडी अधिक िीक है । वे छ: िेकंड में एक बार िेक्ि के बारे में िोचती
है । यह बहुत बडा अंतर है । लगभग दोगुना; पतत पत्नी के बीच होने वाली कलह का यह एक
कारण हो िकता है ।

हर तीन िेकंड में िेक्ि मन में कौंिता है । यव


ु क िकृतत की ऐिी ताकत होती है । इििे वह
स्वतंर नहीं हो पाता। महत्वाकांक्षा है , और िमय तेज गतत िे भागा जा रहा है । और उिे
कुछ करना है । िभी इच्छाएं, वािनाएं और बचपन की पररकल्पनांए पूरी करनी है ; वह पागल
दौड में है , बहुत जल्दी में है ।

बूढा व्यजक्त जानता है कक यौवन के वे िारे ठदन और उनकी परे शातनयां जा चक


ु ी है । बूढा
उिी दशा में है जैिे कक तूफान के बाद शांतत उतर आती है । वह मौन अत्यधिक िुंदर, गहन
िंपदा िे भरा हो िकता है । यठद बूढा व्यजक्त िचमुच िौढ है , जो कक बहुत कम होता है । तब
वह िुंदर होगा। लेककन लोग सिफघ उम्र में बढते है , वे िौढ नहीं होते। इि कारण िमस्या है ।

पररपक्व होओ, अधिक िौढ होओ, और अधिक जागरूक और िचेत होओ। और वद्
ृ िावस्था
तुम्हें अंततम अविर ठदया गया है : इिके पहले कक मौत आये, तैयार हो जाओ। और कोई
मत्ृ यु के सलए कैिे तैयार होता है ? अधिक ध्यान पूणघ होकर।

यठद कुछ वािनाएं अभी अटकी है , और शरीर बढ


ू ा हो रहा है । और शरीर उनको परू ा करने की
दशा में नहीं है , धचंता मत करो। उन वािनाओं पर ध्यान करो, िाक्षा बनो, िचेत होओ। सिफघ
िचेत होने व िाक्षी होने िे और जागरूक होने िे, वे वािनाएं और उनमें लगी ऊजाघ
रूपांतररत हो िकती है । लेककन इिके पहले कक मौत आये िभी वािनाओं िे मुक्त हो
जाओ।

जब मैं कहता हूं कक िभी वािनाओं िे मुक्त हो जाओं तो मरा यह मतलब है कक वािनाओं
के िभी िंिािनों िे मक्
ु त हो जाओ। तब वहां शद्ु ि अभीप्िा होगी, बगैर ककिी प्रवषय
वािना के बगैर ककिी पते के, बगैर ककिी ठदशा के, बगैर ककिी मंजजल के। शुद्ि ऊजाघ, ऊजाघ
का कंु ड, िहरा हुआ। बुद्ि होने का यही मतलब है ।

ओशो
दद बुक ऑफ विज़डन
ऐिा लगता है कक पज‍चम के सलए यह स्वीकारना बहुत मुज‍कल है कक िेक्ि का बबदा होना
आनंद और अनंत का आशीवाघद की तरह हो िकता है । क्योंकक वे मार भौततक शरीर में ही
प्रव‍वाि करते है । ककिी भी पल काम तजृ प्त का आनंद लेने के सलए िेक्ि एक िािन मार
है । यठद तुम पयाघप्त भाग्यशाली हो तो, जोकक लाखों लोग नहीं है ।

सिफघ कभी-कभार कोई थोडा िा काम के चरमोत्कषघ का अनभ


ु व ले पाता है । तम्
ु हारे िंस्कार
तम्
ु हें रोकते है । परू ब में यठद िेक्ि स्वत: धगर जाता है यह तो उत्िव है 1 हमने जीवन को
परू ा दि
ू री ही तरह िे सलया है , हमने इिे िेक्ि का पयाघयवाची नहीं बनाया। इिके प्रवपरीत,
जब तक िेक्ि रहता है इिका मतलब है कक तम
ु पयाघप्त िौढ नहीं हुए।

जब िेक्ि बबदा हो जाता है , तुम में अत्यधिक िौढता और केंिीयता आती है । और अिली
ब्रह्मचयघ, िामाखणक ब्रह्मचयघ। और अब तुम जैप्रवक बंिनों िे मुक्त हुए जो सिफघ ज़ंजीरें मार
है । जो तुम्हें अंिी शजक्तयों के कैदी बनाते है , तुम आंखे खोलते हो और इि अजस्तत्व की
िुंदरता को दे ख िकते हो। तुम अपने ब्रह्मचयघ के ठदनों में अपनी ही मूढता पर हं िोगे। कक
कभी तुम िोचते थे कक यही िब कुछ है जो जीवन हमें दे ता है ।

ओशो
सत्यम, लशिम ्, सुंदरम ्

संभोग से समाधि की ओर –40 सेक्स नैनतक या अनैनतक: भाग-


( 2)
Posted on ठदिम्बर 31, 2011by sw anand prashad

हास्य और सेक्स के बीच क्या संबंि है –


िेक्ि नैततक या अनैततक—ओशो

इनमें तनज‍चत िंबंि है ; िंबंि बहुत िामान्य है । िेक्ि का चरमोत्कषघ और हं िी एक ही ढं ग


िे होता है ; उनकी िकक्रया एक जैिी है । िेक्ि के चरमोत्कषघ में भी तम
ु तनाव के सशखर तक
जाते हो। तम
ु प्रवस्फोट के करीब और करीब आ रहे हो। और तब सशखर पर अचानक चरम
िुख र्टता है । तनाव के पाि सशखर पर अचानक िब कुछ सशधथल हो जाता है । तनाव के
सशखर और सशधथलता के बीच इतना बडा प्रवरोि है कक तुम्हें ऐिा लगता है कक तुम शांत,
जस्थर िागर में धगर गये—गहन प्रवश्रांतत, ििन िमपघण।
यही कारण है कक कभी भी ककिी की मत्ृ यु िेक्ि कक्रया के दौरान हाटघ अटे क िे नहीं हुई।
यह आ‍चयघजनक है । क्योंकक िेक्ि कक्रया श्रमिाध्य कायघ है । यह महान योग है । लेककन
कभी कोई नहीं मरा इिका िामान्य िा कारण है कक यह गहन प्रवश्रांतत लाता है । िच तो
यह है कक काडडघयोलॉजजस्ट और हाटघ स्पेशसलस्ट तो हाटघ के मरीजों को िेक्ि औषधि की तरह
सिफाररश करने लगे है । िेक्ि उनके सलए बहुत मददगार हो िकता है । यह तनाव को प्रवश्रांत
करता है । और जब तनाव चला जाता है , तुम्हारा हाटघ अधिक िाकृततक ढं ग िे कायघ करने
लगता है ।

यही िकक्रया हं िी के िाथ भी है : यह भी तम्


ु हारे भीतर का तनमाघण करता है । एक तनज‍चत
कहानी और तम
ु ितत उपेक्षा ककये चले जाते हो। कक कुछ होगा। और जब िचमच
ु कुछ
होता है वह इतना अनउपेक्षक्षत होता है कक वह तनाव को मुक्त कर दे ता है । वह होना
ताककघक नहीं है । हं िी के बारे में यह बहुत महत्वपण
ू घ बात िमझना आव‍यक है । यह होना
बहुत मजाककया होना चाठहए, इिे तनज‍चत हास्यास्पद होना चाठहये। यठद तुम इिका ताककघक
ढं ग िे तनष्कषघ तनकाल िको, तब वहां हं िी नहीं होगी।

एक और अथघ में हं िी और िेक्ि मन में गहरे िे जुडे है । तुम्हारी िेक्ि की इंिी तुम्हारे
िेक्ि का बाहरी ठहस्िा है । अिल में िेक्ि वही नहीं है । िेक्ि ठदमाग के ककिी केंि पर है ।
इिसलए दे र-िबेर मानव इि परु ाने तरह के िेक्ि िे मक्
ु त हो जायेगा। यह िचमच

हास्यास्पद है । यही कारण है कक लोग िेक्ि अंिेरे में , रात के कंबल की ओट में करते है ।
यह इतनी बेतुकी कक्रया है कक यठद तुम स्वयं अपने को िेक्ि कक्रया में रत दे खो, तुम कफर
इिके बारे में कभी नहीं िोचोगे। इिसलए लोग छुपाते है । वे अपने दरवाजे बंद कर लेत है ।
दरवाज़ों पर ताले लगा लेते है । प्रवशेष रूप िे वे बच्चों िे बहुत डरते है । क्योंकक वे इि
हास्यास्पद जस्थतत को तत्काल दे ख लेते हे । तुम क्या कर रहे हो। डैडी आप क्या कर रहे थे?
क्या आप पागल हो गये है ? और यह पागलपन लगता है । जैिे कक समरगी का दौरा पडा हो।

िेक्ि और हं िी के केंि ठदमाग में बहुत पाि-पाि है , इिसलए कभी-कभी वे एक दि ू रे को


ढााँक िकते है । इिसलए जब तुम िेक्ि कक्रया में जाते हो, यठद तुम इिे िचमुच होने दो, स्री
को गुदगुदी होने लगेगी। यह गुदगुदाता है । क्योंकक केंि बहुत पाि है । सशष्टता वश वह
हं िेगी नहीं, क्योंकक पुरूष को बुरा लग िकता है । लेककन केंि बहुत पाि है । और कभी-कभी
जब तुम गहरी हं िी में होते हो तो आनंद का वैिा ही प्रवस्फोट होगा जैिा िेक्ि में होता है ।

वह मार िांयोधगक नहीं है । कक कई खबू िरू त चट


ु कुले िेक्ि िे जड
ु े होते है । केंि बहुत
नजदीक है …..मैं क्या कर िकता हूं?

ओशो
कम, कम, याट अगेन कम
सेक्स के प्रनत ज़ेन नजररया क्या है ?
ज़ेन का िेक्ि के ितत कोई नजररया नहीं है । और यह ज़ेन की खब
ू िूरती है । यठद तुम्हारा
कोई नजररया होता है इिका मतलब ही होता है कक तुम इि तरह या उि तरह उििे ग्रस्त
हो। कोई िेक्ि के प्रवरोि में है —उिका एक तरह का नजररया है ; और कोई िेक्ि के पक्ष में
है —उिका दि
ू रे तरह का रवैया है । और पक्ष में या प्रवपक्ष में दोनों एक िाथ चलते है जैिे
कक गाडी के दो पठहये। ये शरु नहीं है , समर है , एक ही व्यविाय के भागीदार।

ज़ेन का ककिी तरह नजररया नहीं है । िेक्ि के ितत ककिी का कोई भी नजररया क्यों होना
चाठहए? यही इिकी खब
ू िूरती है —ज़ेन पूरी तरह िे िहज है । पानी पीने के बारे में तुम्हारा
कोई नजररया है ? भोजन करने के बारे में तुम्हारा कोई नजररया है ? राज िोने को लेकर
तुम्हारा कोई नजररया है ? कोई नजररया नहीं है ।

मैं जानता हूं कक पागल लोग है जजनका इन चीजों के बारे में भी नजररया है , कक पााँच र्टों िे
अधिक नहीं िोना भी एक तरह का पाप है , कुछ मानों आव‍यक बुराई, इिसलये ककिी को
पााँच र्ंटे िे अधिक नहीं िोना चाठहए। या भारत में ऐिे लोग है जो िोचते है कक तीन र्ंटों
िे अधिक नहीं िोना चाठहए।
कई िठदयों िे यह बहुत बडी दिु ट
घ ना र्टी है । लोग िजृ नहीन लोगों को पूजते रहे है । और
कभी-कभी प्रवकृत चीजों को। तब िोने के ितत भी तम् ु हारा नजररया होगा। ऐिे लोग है
जजनका भोजन के ितत नजररया है । यह खाओ या वह खाओ, इतना खाओ, इििे अधिक
नहीं। वे अपने शरीर की नहीं िुनते है , शरीर भूखा है या नहीं। उनका अपना कोई प्रवचार है
जो वे िकृतत पर थोपते है ।

ज़ेन का िेक्ि के बारे में ककिी िकार का नजररया नहीं है । जेन बहुत िामान्य है , ज़ेन
मािूम है । ज़ेन बच्चे जैिा है । वह कहाता है कक ककिी िकार के नज़ररये की जरूरत नहीं है ।
क्यों? क्या छींकने को लेकर तुम्हारा कोई नजररया है ? छींके या नहीं। यह पाप है या पुण्य।
तुम्हारा कोई नजररया नहीं है । लेककन मैंने ऐिा व्यजक्त दे खा है जो छींकने का प्रवरोिी है ।
और जब कभी वह छींकता है स्वयं की रक्षा के सलए तत्काल मंर जाप करता है । वह एक
छोटे िे मूखघ पंथ का ठहस्िा था। वह िंिदाय िोचता है जब तुम तछं कते हो तुम्हारी आत्मा
बाहर चली जाती है । छींकने में आत्मा बाहर जाती है , और यठद तुम परमात्मा को याद नहीं
करो तो हो िकता है वापि न आये। यठद तुम छींकते हुए मर जाते हो तो तुम नकघ चले
जाओगे।

ककिी भी चीज के सलए तुम्हारा नजररया हो िकता है । एक बार तुम्हारा कोई नजररया होता
है , तुम्हारा भोलापन नष्ट हो जाता है । और वे नजररया तुम्हारा तनयंरण करने लगते है । ज़ेन
न तो ककिी चीज के पक्ष में है न ही ककिी के प्रवपक्ष में । ज़ेन के अनुिार जो कुछ िामान्य
है वह िीक है । िािारण होना, कुछ नहीं होना, शुन्य होना, बगैर ककिी अविारणा के होना,
चररर के बगैर, चररर प्रवहीन……

जब तम्
ु हारे पाि कोई चररर होता है तम
ु ककिी तरह के मनोरोगी होते हो। चररर का मतलब
है कक कुछ तम्
ु हारे भीतर पक्का हो चक
ु ा है । चररर का मतलब है तम्
ु हारी अतीत। चररर का
मतलब है िंस्कार, पररष्कार। जब तम्
ु हारा कोई चररर होता है तब तम
ु इिके कैदी हो जाते
हो, तम
ु अब स्वतंर नहीं रहे । जब तम्
ु हारे पाि चररर होता है तब तम्
ु हारे आिपाि कवच
होता है । तम
ु स्वतंर व्यजक्त नहीं रहे । तम
ु अपना कैद खाना अपने िाथ लेककन चल रहे हो;
यह बहुत िक्ष्
ू म कैद खाना है । िच्चा आदमी चररर प्रवहीन होगा।

जब मैं कहता हूं चररर प्रवहीन तब इिका क्या मतलब होता है । वह अतीत िे मुक्त होगा।
वह क्षण में व्यवहार करे गा। क्षण के अनुिार। सिफघ वही तात्कासलक हो िकता है । वह स्मतृ त
ने नहीं दे खा कक अब क्या करना। एक तरह की जस्थतत बनी और तुम अपनी स्मतृ त में दे ख
रहे हो—इिका मतलब है कक तुम्हारे पाि चररर है । जब तुम्हारे पाि कोई चररर नहीं होता है
तब तुम सिफघ जस्थतत को दे खते हो और जस्थतत तय करती है कक क्या ककया जाना चाठहए।
तब यह तात्कासलक होता है तब वहां जवाब होगा न कक िततकक्रया।
ज़ेन के पाि ककिी बात के सलए कोई प्रव‍वाि-िकक्रया नहीं है । और इिमे िेक्ि भी आ जाता
है —ज़ेन इिके बारे में कुछ नहीं कहता है । और यह मूलभूत बात होनी चाठहए। िमाज ने
दसमत मन पैदा ककया, जीवन तनरोिी मन, आनंद का प्रवरोिी। िमाज िेक्ि के बहुत अधिक
प्रवरोि में है । िमाज िेक्ि के इतना प्रवरोि में क्यों है । क्योंकक यठद तुम लोगों को िेक्ि का
मजा लेने दो, तुम उन्हें गुलाम नहीं बना िकते। यह अिंभव है —एक आनंठदत व्यजक्त गुलाम
बनाये जा िकते है । आनंठदत व्यजक्त स्वतंर व्यजक्त है ; उिके पाि अपनी आत्म तनभघयता
है ।

तुम एक आनंठदत व्यजक्त को युद्ि के सलए भरती नहीं कर िकते। वे यद्


ु ि के सलए क्यों
जायेंगे? लेककन यठद व्यजक्त ने अपने िेक्ि का दामन ककया है तो वह युद्ि के सलए तैयार
हो जायेगा। वह युद्ि में जाने के सलए तत्पर होगा। क्योंकक उिने जीवन का आनंद नहीं
सलया। वह जीवन का आनंद लेने काबबल नहीं रहा, इिसलए वह िज
ृ न के भी काबबल नहीं
रहा। अब वह मार एक काम कर िकता है —वह प्रवध्वंि कर िकता है । उिकी िारी उजाघ
जहर हो गई है ।

यठद िमाज आनंठदत होने के पूरी स्वतंरता दे ता है , तो कोई भी प्रवध्वंिात्मक नहीं होगा। जो
लोग िुंदर ढं ग िे प्यार कर िकते है वे कभी प्रवध्वंिात्मक नहीं हो िकते। और जो लोग
िुंदर ढं ग िे िेम कर िकते है और जीवन का आनंद मना िकते हे वे िततयोधगक भी नहीं
होंगे। सिफघ िेम की मुजक्त इि दतु नया में क्रांतत ला िकती है । िाम्यवाद अिफल हो गया,
तानाशाही अिफल हो गया। िभी वाद अिफल हो गये क्योंकक गहरे में ये िभी िेक्ि का
ं टन और मॉस्को में कोई
दमन करते है । इि मामले में उनके बीच कोई फकघ नहीं है —वासशग
मतभेद नहीं है । बीजजंग और ठदल्ली में —कोई मतभेद नहीं है । ये िभी एक बात पर िहमत
है —िेक्ि पर तनयंरण ककया जाना चाठहए। लोगों को िेक्ि में िहज आनंद लेने की अनुमतत
नहीं दे ते है ।

िामान्यतया िमाज िेक्ि के प्रवरोि में है , तंर मानवता की मदद करने के सलए आया है ,
मानवता को िेक्ि पन
ु : दे ने के सलए। और जब िेक्ि वापि ठदया जायेगा, तब ज़ेन की
उत्पती होती है । ज़ेन का कोई नजररया नहीं है । ज़ेन शद्
ु ि स्वास््य है ।

ओशो
दद डायमंड सूत्रा

संभोग से समाधि की और –42


Posted on सितम्बर 17, 2013by sw anand prashad

विद्रोह क्या है —प्रिचन दसिां


ठहप्पी वाद मैं कुछ कहूं ऐिा छारों ने अनुरोि ककया है ।

इि िंबंि में पहली बात, बनाघडघ शॉ ने एक ककताब सलखी है : मैजक्िम्प फॉर ए रे व्होल्यूशनरी,
क्रांततकारी के सलए कुछ स्वणघ-िूर। और उिमें पहला स्वणघ बहुत अद्भुत सलखा है । और एक
ढं ग िे पहले स्वणघ िूर सलखा है : ‘ठद फास्टघ गोल्डन रूल इज़ दै ट दे यर आर नौ गोल्डन
रूल्ि’ पहला स्वणघ तनयम यही है कक कोई भी स्वणघ-तनयम नहीं है ।

ठहप्पी वाद के िंबंि में जो पहली बात कहना चाहूंगा, वह यह कक ठहप्पी वाद कोई वाद नहीं
है , िमस्त वादों का प्रवरोि है । पहली पहले इि ‘वाद’ को िीक िे िमझ ले।

पााँच हजार वषों िे मनष्ु य को जजि चीज ने िवाघधिक पीडडत ककया है वह है वाद—वह चाहे
इस्लाम हो, चाहे ईिाइयत हो, चाहे ठहन्द ू हो, चाहे कम्यतू नज़म हो, िोशसलज्म हो, फासिस्ट, या
गांिी-इज्म हो। वादों ने मनष्ु य को बहुत ज्यादा पीडडत ककया है ।
मनष्ु य इततहाि के जजतने यद् ु ि है , जजतना ठहंिा पात है , वह िब वादों के आिपाि िठटत
हुआ है । वाद बदलते चले गये है , लेककन नये वाद पुरानी बीमाररयों को जगह ले लेते है और
आदमी कफर वही का वहीं खडा हो जाता है ।

1917 में रूि में पुराने वाद िमाप्त हुए, पुराने दे वी-दे वता प्रवदा हुए तो नये दे वी-दे वता पैदा हो
गये। नया िमघ पैदा हो गया। क्रेमसलन अब मक्का और मदीना िे कम नहीं है । वह नयी
काशी है , जहां पूजा के फूल चढाने िारी दतू नया के कम्युतनस्ट इक्िे होते है । मूततघयां हट
गई, जीिि क्राइस्ट के चचघ समट गये। लेककन लेतनन की मत
ृ दे ह क्रेमसलन के चौराहे पर रख
दी गयी है । उिकी भी पूजा चलती है ।

वाद बदल जाता है ,लेककन नया वाद उिकी जगह ले लेता है ।

ठहप्पी िमस्त बादों िे प्रवरोि है । ठहप्पी के नाम िे जजन यव


ु कों को आज जाना जाता है ,
उनकी िारणा यह है कक मनष्ु य बबना वाद के जी िकता है । न ककिी िमघ की जरूरत है , न
ककिी शास्र, न ककिी सिद्िांत की, न ककिी प्रवचार िम्िदाय, आइडडयालॉजी की। क्योंकक
उनकी िमझ यह है जजतना ज्यादा प्रवचार की पकड जोती है , जीवन उतना ही कम हो जाता
है । ठहजप्पयों की इि बात िे मैं अपनी िहमतत जाठहर करना चाहता हूं। इन अथों में वे बहुत
िांकेततक है , सिम्बासलक है और आने वाले भप्रवष्य की एक िूचना दे ते है ।
आज िे 100 वषघ बाद दतु नया में जो मनुष्य होगा, वह मनुष्य वादों के बाहर तो तनज‍चत ही
चला जायेगा। वाद का इतना प्रवरोि होने का कारण क्यो है ?

ठहजप्पयों के मन में उन युवकों के मन में जो िमस्त वादों के प्रवरोि में चले गए है । िमस्त
मंठदरों, िमस्त चचों के प्रवरोि में चले गये है । जाने का कारण है । और कारण है इतने ठदनों
का तनरं तर का अनुभव। वह अनुभव यह है कक जजतना ही हम मनुष्य के ऊपर वाद थोपते
है । उतनी ही मनुष्य की आत्मा मर जाती है ।

जजतना बडा ढांचा होगा वाद का, उतनी ही भीतर की स्वतंरता िमाप्त हो जाती है ।

इिसलए यह कहा जा िकता है कक हममें िे बहुत िे लोग मर तो बहुत पहले जाते है


दफनाए बहुत बाद में जाते है । कोई 30 िाल में मर जाता है और 70 िाल में दफनाया
जाता है । हम उिी ठदन अपनी स्वतंरता, अपना व्यजक्तत्व अपनी आत्मा खो दे ते है , जजि
ठदन कोई प्रवचार का कोई ढांचा हमें िब तरफ िे पकड लेता है ।

िींकचे तो ठदखाई पडते है लोहे के, कारागह


ृ ठदखाई पडते है लोहे के, लेककन प्रवचार के कारागह

ठदखाई नहीं पडते और जो कारागह
ृ जजतना कम ठदखाई पडता है उतना ही खतरनाक है ।

अभी में एक नगर िे प्रवदा हुआ। बहुत िे समर छोडने आए थे जजि कम्पाटघ मेंट में मैं था
उिमें एक िाथी थे। उन्होंने दे खा कक बहुत समर मुझे छोडने आये है । तो जैिे ही मैं अंदर
िप्रवष्ट हुआ, गाडी चली, उन्होंने जल्दी िे मेरे पैर छुए और कहा कक महात्मा जी, नमस्कार
करता हूं। बडा आनंद हुआ कक आप मेरे िाथ होंगे। मैंने उनिे कहा कक िीक िे पता लगा
लेना कक महात्मा हू या नहीं। आपने तो जल्दी पैर छू सलये। अब अगर मैं महात्मा सिद्ि न
हुआ तो पैर छूने को वापि कैिे लें गे?

उन्होंने कहा, नहीं-नहीं ऐिा कैिे हो िकता है , आपके कपडे कहते है । मैंने कहा, अगर कपडों
िे कोई महात्मा होता तो तब तो प्
ृ वी िारी की िारी कभी की महात्मा हो गई होती।
उन्होंने कहा कक नहीं इतने लोग छोडने आये थे? तो मैंने कहा कक ककराये के आदमी इतने
ज्यादा लोगों को छोडने आते है कक उिका कोई मतलब नहीं रहा है। वे कहने लगे, कम िे
कम आप ठहन्द ू तो है ?

उन्होंने िोचा कक न िही कोई महात्मा हों, ठहन्द ू होंगे तो भी चलेगा। कोई ज्यादा गन
ु ाह नहीं
हुआ, पैर छू सलए। तो मैंने कहा, नहीं, ठहन्द ू भी नहीं हूं। तो उन्होंने कहा,आप आदमी कैिे है ?
कुछ तो होंगे, मुिलमान होंगे, ईिाई होंगे? मैंने उनिे पूछा कक क्या मेरे सिफघ आदमी होने िे
आपको कोई एतराज है ? क्या सिफघ आदमी होकर मैं नहीं हो िकता हूं, मुझे कुछ और होना
ही पडेगा? उनकी बेचन
ै ी दे खने जैिी थी। कंडक्टर को बुलाकर वे दि
ू रे कंपाटघ मेंट में अपना
िामान ले गये।

मैं थोडी दे र बाद उनके पाि गया और मैंने उनको कहा आप तो कहते थे ित्िंग होगा, बडा
आनंद होगा। आप तो चले गये। क्या एक आदमी के िाथ िफर कना उधचत नहीं मालूम
पडा? ठहन्द ू के िाथ िफर हो िकता था। आदमी के िाथ बहुत मुज‍कल है ।

आज पज‍चम में जजन युवकों ने ठहजप्पयों का नाम ले रखा है , उनकी पहली बगावत यह है कक
वे कहते है कक हम िीिे आदमी की तरह जीयेंगे। न हम ठहन्द ू होंगे, न हम कम्युतनस्ट होंगे।
न हम िोशसलस्ट होंगे, न ईिाई होंगे; हम िीिे तनपट आदमी की तरह जीने की कोसशश
करें गे। तनपट आदमी की तरह जीने की जो भी कोसशश है , वह मझ
ु े तो बहुत िीततकर हे ।

ठहप्पी नाम तो नया है । लेककन र्टना बहुत पुरानी है । मनुष्य के इततहाि में आदमी ने कई
बाद तनपट आदमी की तरह जीने की कोसशश की है । तनपट आदमी की तरह जीने में बहुत िे
िवाल है ।

िमघ नहीं, चचघ नहीं, िमाज नहीं—अंतत: दे श भी नहीं; क्योंकक दे श, राष्ट् िब उपिव है । िब
बीमाररयां है ।

कल तक पाककस्तान की भूसम हमारी मातभ ृ ूसम हुआ करती थी। अब वह हमारे शरु की
मातभ
ृ ूसम है । जमीन वहीं की वही है । कहीं टूटी नहीं, कहीं दरार नहीं पडी।

मैंने िुना है , एक पागल खाना था ठहन्दस्


ु तान के बंट वारे के िमय। ठहन्दस्
ु तान पाककस्तान
की िीमा पर। अब वह भी िवाल उिा कक इि पागल खाने को कहां जाने दे —ठहन्दस्
ु तान में
कक पाककस्तान में । कोई राजनैततक उत्िुक न था कक वह पागलखाना कहीं भी ला जाये। तो
पागलों िे ही पूछा अधिकाररयों ने कक तुम कहां जाना चाहते हो। ठहन्दस्
ु तान में या
पाककस्तान में ? तो उन पागलों ने कहा हम तो जहां है , वहां बडे आनंद में है। हमें कहीं जाने
की कोई इच्छा नहीं है । पर उन्होंने कहा कक जाना तो पडेगा ही, यह इच्छा का िवाल नही है ।
और तुम र्बराओ मत। तुम ठहन्दस्
ु तान में चाहो तो ठहन्दस्
ु तान में चले जाओ,पाककस्तान में
चाहो तो पाककस्तान में चले जाओ। तुम जहां हो वहीं रहोगे। यहां िे हटना न पडेगा।

तब तो वे पागल बहुत हं िने लगे। उन्होंने कहा,हम तो िोचते थे कक हम ही पागल है ।


लेककन ये अधिकारी और भी पागल मालूम पडता है । क्योंकक ये कहता है कक जाना कहीं न
पडेगा और पूछते है जाना कहां चाहते हो। उन पागलों ने कहा, कक जब जाना ही नहीं पडेगा
तो जाना चाहते हो का िवाल क्या है ? उन पागलों को िमझाना बहुत मुज‍कल हुआ। आखखर
आिा पागलखाना बीच िे दीवार उिाकर पाककस्तान में चला गया, आिा ठहन्दस्
ु तान में चला
गया।

मैंने िुना है कक अभी वे पागल एक दि


ू रे की दीवार पर चढ जाते है और आपि में िोचते है
कक बडी अजीब बात है , हम वहीं के वहीं है , लेककन तुम पाककस्तान में चले गये हो और हम
ठहन्दस्
ु तान में चले गये है ।

ये पागल हमिे कम पागल मालूम होत है । हमने जमीन को बांटा है , आदमी को बांटा है ।

ठहप्पी कह रहा है , हम बांटेंगे नहीं; हम तनपट बबना बटे हुए आदमी की तरह जीना चाहते है ।
और बाद बांटते है । बांटने की िबिे िुप्रविापूणघ तरकीब बाद है इज्म है ।

इिसलए ठहप्पी कहते है कक हम ककिी इज्म में नहीं है । ऊब चक


ु े तम्
ु हारे बादों िे, तम्
ु हारे
िमों िे। हमें तनपट आदमी की तरह छोड दो—हम जैिे है , वैिे जीना चाहते है ।

यह तो पहला िूर है । इिसलए मैंने कहा, यह बात पहले िमझ लेना जरूरी है । ठहप्पी इज्म
जैिी चीज नहीं है , ठहप्पीज है । ठहप्पी वाद नहीं है । ठहप्पी जरूर है ।

दि
ू री बात ध्यान में लेने जैिी है और वह यह कक ठहजप्पयों की ऐिी िारण है कह न केवल
आदमी की तरह जीयें बजल्क िहज आदमी की तरह जीयें। हजारों िाल िे िभ्यता ने आदमी
को अिहज बनाया है , जैिा वह नहीं है वैिा बनाया है । हजारों िाल की िभ्यता िंस्कार,
व्यवस्था ने आदमी को कृबरम को झूिा बनाने की कोसशश की है । उिके हजार चेहरे बना
ठदये है ।

मैने िुना है कह अगर एक कमरे में मैं और आप दो जन समलें तो वहां दो जन नहीं होंगे,
वहां कम िे कम 6 जन होंगे। एक मैं—जैिा मैं हूं, एक मैं—जैिा की मैं िोचता हूं। और एक
मैं—जैिाकक आप मझ
ु े िमझते है कक मैं हूं। और तीन आप और तीन मैं। उि कमरे में जहां
दो आदमी समलते है कम िे कम 6 आदमी समलते है । हजार समल िकते है , क्योंकक हमारे
हजार चेहरे है , मख
ु ौटे है ।

हर आदमी कुछ है ओर, कुछ ठदखला रहा है । कुछ है , कुछ बन रहा है । और कुछ ठदखला रहा
है । और कफर न मालुम ककतने चेहरे है —जैिे दपघण के आगे दपघण, और दपघण के आगे दपघण
और एक दि
ू रे के िततबबम्ब हजार-हजार िततबबम्ब हो गये है । इन िततबबम्बों की भीड में
पता लगाना ही मुज‍कल है कक कौन है आप। तय करना ही मुज‍कल है कक कौन िा चेहरा है
आपका अपना?
पत्नी के िामने आपका चेहरा दि
ू रा होता है । बेटे के िामने दि
ू रा हो जाता है । नौकर के
िामने एक होता है । मासलक के िामने एक हो जाता है । जब आप मासलक के िामने खडे
होते है तो जो पूंछ आपके पाि नहीं है , वह ठहलती रहती है। और जब आप नौकर के पाि
खडे होते है तब जो पूंछ उिके पाि नहीं है , आप गौर िे दे खते रहते है कक वह ठहला रहा है
या नहीं ठहला रहा है ।

ठहजप्पयों की िारण मुझे िीततकर मालूम पडती है । वे कहते है कक हम िहज आदसमयों की


तरह जीयेंगे। जैिे हम है। िोखा न दें गे। िवंचना, पाखंड, डडिेप्शन खडा न करें गे। िीक है ,
तकलीफ होगी तो तकलीफ झेलेंगे। लेककन हम जैिे हम है , वैिे ही रहें गे।

अगर ठहप्पी को लगता है कक वह ककिी िे कहे कक मझ


ु े आप पर क्रोि आ रहा है और गाली
दे ने का मन होता है तो वह आपिे आकर कहे गा पाि में बैिकर कक मझ
ु े आप पर बहुत
क्रोि आ रहा है और मैं आपको दो गाली दे ना चाहता हूं।

मैं िमझता हूं कक वह बडा मानवीय गुण है । और वह क्षमा मांगने नहीं आयेगा पीछे , जब
तक उिे लगे न, क्योंकक वह कहे गा गाली दे ने का मेरा मन था, मैंने गाली दी और अब जो
भी फल हो उिे लेने के सलए मैं तैयार हूं। लेककन गाली भीतर ऊपर मुस्कराहट इि बात को
इंकार कर रहा हूं। लेककन हमारी जस्थतत यह है कक भीतर कुछ है , बहार कुछ। भीतर एक नकघ
तछपाये हुए है हम, बाहर हम कुछ और हो गये है । एक आदमी एक जीता-जागता झूि है ।

ठहप्पी का दि
ू रा िूर यह है कक हम जैिे है , वैिे है । हम कुछ भी रूकावट न करें गे, तछपा वट
न करें गे।

मेरे एक समर ठहजप्पयों के एक छोटे िे गांव में जाकर कुछ ठदन तक रहे तो मुझिे बोले कक
बहुत बेचनै ी होती है वहां। क्योंकक वहां िारे मख
ु ौटे उखड जाते है । वहां बजाय एक यव
ु क एक
यव
ु ती के पाि आकर कप्रवताएं कहे , िेम की और बातें करे हजार तरह की, वह उििे िीिा ही
आकर तनवेदन कर दे गा कक मैं आपको भोगना चाहता हूं। वह कहे गा कक इतने िारे जाल के
पीछे इरादा तो वही है । उि इरादे के सलए इतने जाल बनाने की कोई जरूरत नहीं है । वह
कह िकता है एक लडकी को जाकर कक मैं तम्
ु हारे िाथ बबस्तर पर िोना चाहता हूं।

बहुत र्बरानें वाली बात लगेगी। लेककन िारी बातचीत और िारी कप्रवता और िारे िंगीत
और िारे िेम चचाघ के बाद यही र्टना अगर र्टने वाली है । तो ठहप्पी कहता है कक इिे
िीिा ही तनवेदन कर दे ना उधचत है । ककिी को िोखा तो न हो, वह लडकी अगर न चाहती है
िोना, तो कह तो िकती है कक क्षमा करो।
एक जाल िभ्यता ने खडा ककया है , जजिने आदमी को बबलकुल ही झूिी इकाई बना ठदया है ।

अब एक पतत है , वह अपनी पत्नी िे रोज कहे जा रहा है कक मैं तुम्हें िेम करता हूं। और
भीतर जानता है कक यह मैं क्यों कहा रहा हूं। एक पत्नी है , वह अपने पतत िे रोज कहे जा
रही है कक मैं तुम्हारे बबना एक क्षण नहीं जी िकती और उिी पतत के िाथ एक क्षण जीना
मुज‍कल हुआ जा रहा है ।

बाप बेटे िे कुछ कह रहा है । कक बाप बेटे िे कहा रह है कक मैं तुम्हें इिसलए पढा रहा हूं कक
मैं तझ
ु े बहुत िेम करता हूं। और वह पढा इिसलए रहा है कक बाप अपढ रह गया है । और
उिके अहं कार की चोट र्ाव बन गयी है । वह अपने बेटे को पढा कर अपने अहं कार की पतू तघ
करना चाहता है । बाप नहीं पहुंच पाया समतनस्टरी तक, वह बेटे को पहुंचाना चाहता है । पर वह
कहता है बेटे को मैं बहुत िेम करता हूं इिसलए…..लेककन उिे पता नहीं है कक बेटे को
समतनस्टरी तक पहुंचाना बेटे को नकघ तक पहुंचा दे ना है । अगर िेम है तो कम िे कम बाप
एक बात तो न चाहे गा कक बेटा राजनीततज्ञ हो जाए।

िारी दतू नया िेम कर रही है । लेककन िेम का कोई प्रवस्फोट कभी नहीं होता है । िारी दतू नया
िेम कर रही है और जब भी प्रवस्फोट होता है तो र्ण
ृ ा का होता है । ठहप्पी कहता है जरूर
हमारा िेम कहीं िोखे का है । कर रहे है र्ण
ृ ा कह रहे है िेम।

मैं एक स्री को कहता हूं कक मैं तुझे िेम करता हूं और मेरी स्री जरा पडोि के आदमी की
तरफ गौर िे दे ख ले तो िारा िेम प्रवदा हो गया और तलवार खखंच गयी। कैिा िेम है । अगर
मैं इि स्री को िेम करता हूं तो ईष्याघलु नहीं हो िकता। िेम में ईष्याघ की कहां जगह है ?
लेककन जजि को हम िेम कहते है वे सिफघ एक दि ू रे के पहरे दार बन जाते है और कुछ भी
नहीं,और एक दि
ू रे के सलए ईष्याघ का आिार खोज लेते है । जलते है ,जलाते है परे शान करते
है ।

ठहप्पी यह कह रहा है कक बहुत हो चकु ी यह बेईमानी। अब हम तो जैिे है , वैिे है । अगर िेम


है तो कह दें गे कक िेम है और जजि चकु जायेगा उि ठदन तनवेदन कर दें गे कक िेम चक ु
गया। अब झि
ू ी बातों में पडने की कोई जरूरत नहीं है , मैं जाता हूं।

लेककन पुराने िेम की िारणा कहती है कक िेम होता है तो कफर कभी नहीं समटता, शा‍वत
होता है । ठहप्पी कहता है होता होगा। अगर होगा तो कह दाँ ग
ू ा कक शा‍वत है , ठटका है । नहीं
होगा तो कह दाँ ू की नहीं है ।
एक जाल है जो िभ्यता ने प्रवकसित ककया है । उि जाल में आदमी की गदघ न ऐिे फंि गई
है , जैिे फांिी लग गई हो उि जाल िे बगावत है ठहप्पी की।

िहज जीवन—जैिे हैं, है ।

लेककन िहज होना बहुत कठिन है । िहज होना िच में ही बहुत कठिन बात है । क्योंकक हम
इतने अिहज हो गए है कक हमने इतनी यारा कर ली है । असभनय की कक वहां लौट जाना,
जहां हमारी िच्चाई िकट हो जाये, बहुत मुज‍कल है ।

डॉक्टर पल्िघ एक मनोवैज्ञातनक है , जो ठहजप्पयों का गुरु कहा जा िकता है । एक मठहला गई


थी वहां। मैंने उििे कहा था कक जरूर उि पहाडी पर हो आना, 2-4ठदन रूक जाना। तो जब
वह पल्िघ के पाि गयी और वहां का िारा ठहिाब दे खा, वह तो र्बरा गई। बहुत र्बरा गयी,
क्योंकक वहां िहज जीवन िूर है । िारे लोग बैिे है और एक आदमी नंगा चला आयेगा हाल
में और आकर बैि जायेगा। अगर उिको नंगा होना िीक लग रहा है तो यह उिकी मरजी
है । इिमें ककिी को कुछ लेना दे ना नहीं है । न कोई हाल में चीखेगी, न कोई धचल्लायेगा, न
कोई गौर िे दे खेगा, उिे जैिा िीक लग रहा है , उिे वैिा करने दे ना है ।

और जो लोग पल्िघ के पाि महीने भर रह आते है। उनकी जजंदगी में कुछ नये फूल खखल
जाते है । क्योंकक पहली दफा वे हल्के, पक्षक्षयों की तरह जी पाते है । पौिों की तरह, या जैिे
आकाश में कभी चील को उडते दे खा हो—पंख भी नहीं चलाती। पंख भी बंद हो जाते है । बि
हवा पर तैरती रहती है। उिे पहाडी पर पल्िघ के पाि भी व्यजक्त हवा में तैर रहे है । एक
आदमी बहार नाच रहा है । कोई गीत गा रहा है । तो गीत गा रहा है । कोई रो रहा है तो रो
रहा है । कोई रूकावट नहीं है ।

लेककन हमने तो आदमी को िब तरह िे रोक रखा है । बच्चे को तनदे श दे ने िे शरू


ु हो जाती
है कहानी। हमारी िारी सशक्षा–‘डू नाट’ िे शरू
ु हो जाती है । और हर बच्चे के ठदमाग में हम
ज्यादा िे ज्यादा ‘मत करो’ थोपते चले जाते है । अंतत: करने की िारी क्षमता, िज
ृ न की िारी
क्षमता, ‘न-करने’ के इि जाल में लप्ु त हो जाती है । या तो वह आदमी चोरी िे शरू
ु कर दे ता
है , जो-जो हमने रोका था, कक यह मत करो। और या कफर भीतर परे शानी में पड जाता है ।

दो ही रास्ते है , या पाखंडी हो जाये, या पागल हो जाये।

अगर भीतर लडा और अगर सिंसियर होगा, ईमानदार होगा तो पागल हो जायेगा। अगर
होसशयार हुआ, चालाक हुआ, कौतनंग हुआ ता पाखंडी हो जायेगा। एक दरवाजा मकान के पीछे
िे बना लेगा। जहां िे करने की दतु नया रहे गी। एक दरवाजा बाहर िे रहे गा जहां ‘न करने’ के
िारे ‘टे न कमांडमैं्ि’ सलखे हुए है । वहां वह िदा ऐिा खडा होगा कक यह में नहीं करता हूं।
और करने की अलग दतु नया बना लेगा।

मनुष्य को खंडडत, जस्कजोफ्रेतनक बनाने में , मनुष्य के मन को खंड-खंड करने में िभ्यता की
‘न करने’ की सशक्षा ने बडा काम ककया है ।

ठहप्पी कह रहा है कक जो हमें करना है , वह हम करें गे। और उिके सलए जो भी हमें भोगना
है , हम भोग लें गे। लेककन एक बात हम न करें गे कक करें कुछ, और ठदखायें कुछ। यही बडी
बगावत है ।

हालांकक िदा िे िाि-ु िंतों ने कहा था कक बाहर और भीतर एक होना चाठहए। ठहप्पी भी यही
कहते है । लेककन एक बुतनयादी फकघ है । िाि-ु िंत कहते है । कक बाहर और भीतर एक होना
चाठहए। तब उनका मतलब है : बाहर जैिे हो वैिे ही भीतर होना चाठहए। ठहप्पी जब कहता है
कक बाहर भीतर एक होना चाठहए: तो वह कहता है कक भीतर जैिे हो वैिे ही बाहर भी होना
चाठहए। इन दोनो में फकघ है ।

िािु िंत जब कहते है कक बहार भीतर एक जैिा होना चाठहए। तो वह कहते है कक भीतर
का दरवाजा बंद करो। ठहप्पी कहता है बहार भीतर एक होना चाठहए। तो वह कहता है : बाहर
जो दि तनषेि आज्ञाओं, टे न कमांडमैं्ि की तख्ती लगी है उिको उखाडकर फेंक दो। और
जैिे भी हो, वैिे हो जाओ। अगर चोर हो तो चोर अगर बेईमान हो तो बेईमान, क्रोिी हो तो
क्रोिी। बडा खतरा तो यह है कक क्रोिी असभनय कर रहा अक्रोि का, ठहंिक असभनय कर रहा
है अठहंिक का, कामी असभनय कर रहा है ब्रह्मचयघ का। और पुरानी िारी िंस्कृततयां असभनय
को बडी कीमत दे ती है । और कुशल असभनेता की बडी पूजा हाथी है ।

ठहप्पी कह रहा है हम असभनय की पज


ू ा नहीं करते। हम जीवन के पज
ू क है । ठहप्पी यह कह
रहा है कक झि
ू े ब्रह्मचयघ िे िच्चा यौन भी अथघपूणघ है । झि
ू े ब्रह्मचयघ में भी वह िग
ु ंि नहीं
है , जो िच्चे यौन में हो िकती है । िच्चे ब्रह्मचयघ की तो बात ही दि
ू री है । उिकी िग
ु ंि का
हमे क्या पता? लेककन िच्चा यौन न हो तो िच्चे ब्रह्मचयघ की कोई िंभावना ही नहीं है ।
अभी ठहप्पी यह नहीं कह रहे है , लेककन शीध्र ही जानें गे तो कहें गे। हम अगर पशु है तो
स्वीकृत है कक हम पशु है और हम पशु की भांतत ही जीयेंगे।

तीिरी बात, जब मैं िोचता हूं तो मुझे लगता है कक अगर खोज की जाये तो ईिाईयों की
कहानी के अदम और ईव ठहजप्पयों के आठद पुरूष कहे जाने चाठहए। क्योंकक अदम और ईव
को ई‍वर ने कहा था कक तुम ज्ञान के वक्ष
ृ का फल मत चखना। उन्होंने बगावत कर दी
और जजि वक्ष
ृ का फल नहीं चखने को कहा था, उिी का फल चख सलया और ईडन के बग़ीचे
िे बठहष्कृत कर ठदये गये।

तीिरा िूर है ठहप्पी का: प्रविोह, इनकार का िाहि। एक तो कन्फरसमस्ट की जजन्दगी है , ‘हां-
हुजूर की’ ‘यि िर’ की। वह जो भी कह रहा है , ‘हां’ कह रहा है । वह िदा ‘हां हुजूर’ कहने के
सलए तैयार है । उिने चाहे बात भी िीक िे नहीं िन ु ी है , लेककन ‘हां हुजरू ’ कहे जा रहा है । उिे
पता भी नहीं कक वह ककि चीज में हां भर रहा है । लेककन वह हां भरे चला जा रहा है । एक
गुरु एक िीक्रेट उिे पता है । जजन्दगी में जीना हो तो िब चीज में ‘हां’ कहे चले जाओ।

ठहप्पी कह रहा है जब तक हम िमाज की हर चीज में ‘हां’ कह रहे है , तब तक व्यजक्त का


जन्म नहीं होता। व्यजक्त का जन्म होता है ‘नौ िे इंग’ िे, न कहना शरू
ु करने िे।

अिल में मनुष्य की आत्मा ही तब पैदा होती है , जब कोई आदमी ‘नो’ नहीं कहने की ठहम्मत
जुटा लेता है ।

जब कोई कह िकता है , नहीं, चाहे दांव पर परू ी जजंदगी लग जाती हो। और जब एक बार
आदमी नहीं, कहना शुरू कर दे , ‘नहीं’ कहना िीख ले, तब पहली दफा उिके भीतर इि ‘नहीं’
कहने के कारण, ‘डडनायल’ के कारण व्यजक्त का जन्म शुरू होता है । यह ‘न’ की जो रे खा है ,
उिको व्यजक्त बनाती है । ‘हां’ की रे खा उिको िमूह का अंग बना दे ती है । इिसलए िमूह िदा
आज्ञाकाररता पर जोर दे ता है ।

बाप अपने ‘गोबर गणेश’ बेटे को कहे गा कक आज्ञाकारी है । क्योंकक गोबर गणेश बेटे िे न
तनकलती ही नहीं। अिल में ‘न’ तनकलने के सलए थोडी बुद्धि चाठहए। हां तनकलने के सलए
बुद्धि की कोई जरूरत नहीं है । हां तो कम्प्युटराइज्ड है , वह तो बुद्धि जजतनी कम होगी,
उतनी जल्दी तनकलता है । न तो िोच प्रवचार मांगता है । न तो तकघ आगम
ुघ ें ट मांगता है । न
जब कहें गे तो पच्चीि बार िोचना पडता है । क्योंकक न कहने पर बात खत्म नहीं होती। शरू

होती है । हां कहने पर बात खत्म हो जाती है । शरू
ु नहीं होती।

बुद्धिमान बेटा होगा तो बाप को िीक नहीं लगेगा, क्योंकक बुद्धिमान बेटा बहुत बार बाप को
तनबुद्
घ धि सिद्ि कर दे गा। बहुत क्षणों में बाप को िीक नहीं लगेगा, क्योंकक अपने आप को भी
वह तनबुद्
घ धि मालूम पड रहा है । बडी चोट है , अहं कार को। वह कठिनाई में डाल दे गा।

इिसलए हजारों िाल िे बाप, पीढी, िमाज ‘हां’ कहने की आदत डलवा रहा है । उिको वह
अनुशािन कहे , आज्ञाकाररता कहे और कुछ नाम दे लेककन ियोजन एक है । और वह यह है
कहे प्रविोह नहीं होना चाठहए। बगावती धचत नहीं होना चाठहए।
ठहजप्पयों का तीिरा िूर है कक अगर धचत ही चाठहए हो तो सिफघ बगावती ही हो िकता है ।
अगर आत्मा चाठहए हो तो वह ‘ररबैसलयि’ ही हो िकती है । अगर आत्मा ही न चाठहए तो
बात दि
ू री।

कन्फरसमस्ट के पाि कोई आत्मा नहीं होती।

यह ऐिा ही है , जैिे एक पत्थर पडा है , िडक के ककनारे । िडक के ककनारे पडा हुआ पत्थर
मूततघ नहीं बनता। मूततघ तो तब बनता है । जब छै नी और हथौडी उि पर चोट करती और
काटती है । जब कोई आदमी ‘न’ कहता है। और बगावत करता है। तो िारे िाणों पर छै नी
और हथौडडयां पडने लगती है । िब तरफ िे मतू तघ तनखरना शरू
ु होती है । लेककन जब कोई
पत्थर कह दे ता है ‘’हां’’ तो छै नी हथौडी नहीं होती वहां पैदा। वह कफर पत्थर ही रह जाता है ।
िडक के ककनारे पडा हुआ।

लेककन िमस्त ित्ताधिकारी यों को चाहे वे प्रपता हो, चाहे मां, चाहे सशक्षक हो। चाहे बडा भाई
हो, चाहे राजनेता हो, िमस्त ित्ताधिकारी यों को ‘’हां-हुजूर’’ की जमात चाठहए।

ठहप्पी कहते है कक इििे हम इंकार करते है । हमें जो िीक लगेगा। वैिा हम जीयेंगे।
तनज‍चत ही तकलीफ है और इिसलए ठहप्पी भी एक तरह का िंन्यािी है । अिल में िंन्यािी
कभी एक ठदन एक तरह का ठहप्पी ही था, उिने भी इंकार ककया था, अ-नागररक था, िमाज
छोड ठदया, चला गया स्वछं द जीने की राह पर।

जैिे महावीर नग्न खडे हो गए, महावीर जजि ठदन बबहार में नग्न हुए होंगे। उि ठदन मैं नहीं
िमझता कक पुरानी जमात ने स्वीकार ककया होगा। यहां तक बात चली कक अब महावीर को
मानने वालों के दो ठहस्िे है । एक तो कहता है कक वस्र पहनते थे। लेककन वे अदृ‍य वस्र
थे, ठदखाई नहीं दे ते थे। यह परु ाना कन्फरसमस्ट जो होगा, उिने आखखर महावीर को भी वस्र
पहना ठदये, लेककन ऐिे वस्र जो ठदखाई नहीं पड रहे है । इि सलए कुछ लोगों को भल
ू हुई कक
वे नंगे थे। वे नंगे नहीं थे। वस्र पहने थे।

जीिि, बुद्ि, महावीर जैिे लोग िभी बगावती है । अिल में मनुष्य जातत के इततहाि में
जजनके नाम भी गौरव िे सलये जा िकें वे िब बगावती है ।………….

दि
ू रा िर
ू है —िहज जीवन—जैिे हैं, है ।
लेककन िहज होना बहुत कठिन है । िहज होना िच में ही बहुत कठिन बात है । क्योंकक हम
इतने अिहज हो गए है कक हमने इतनी यारा कर ली है । असभनय की कक वहां लौट जाना,
जहां हमारी िच्चाई िकट हो जाये, बहुत मुज‍कल है ।

डॉक्टर पल्िघ एक मनोवैज्ञातनक है , जो ठहजप्पयों का गुरु कहा जा िकता है । एक मठहला गई


थी वहां। मैंने उििे कहा था कक जरूर उि पहाडी पर हो आना, 2-4ठदन रूक जाना। तो जब
वह पल्िघ के पाि गयी और वहां का िारा ठहिाब दे खा, वह तो र्बरा गई। बहुत र्बरा गयी,
क्योंकक वहां िहज जीवन िूर है । िारे लोग बैिे है और एक आदमी नंगा चला आयेगा हाल
में और आकर बैि जायेगा। अगर उिको नंगा होना िीक लग रहा है तो यह उिकी मरजी
है । इिमें ककिी को कुछ लेना दे ना नहीं है । न कोई हाल में चीखेगी, न कोई धचल्लायेगा, न
कोई गौर िे दे खेगा, उिे जैिा िीक लग रहा है , उिे वैिा करने दे ना है ।

और जो लोग पल्िघ के पाि महीने भर रह आते है । उनकी जजंदगी में कुछ नये फूल खखल
जाते है । क्योंकक पहली दफा वे हल्के, पक्षक्षयों की तरह जी पाते है । पौिों की तरह, या जैिे
आकाश में कभी चील को उडते दे खा हो—पंख भी नहीं चलाती। पंख भी बंद हो जाते है । बि
हवा पर तैरती रहती है। उिे पहाडी पर पल्िघ के पाि भी व्यजक्त हवा में तैर रहे है । एक
आदमी बहार नाच रहा है । कोई गीत गा रहा है । तो गीत गा रहा है । कोई रो रहा है तो रो
रहा है । कोई रूकावट नहीं है ।

लेककन हमने तो आदमी को िब तरह िे रोक रखा है । बच्चे को तनदे श दे ने िे शुरू हो जाती
है कहानी। हमारी िारी सशक्षा–‘डू नाट’ िे शुरू हो जाती है । और हर बच्चे के ठदमाग में हम
ज्यादा िे ज्यादा ‘मत करो’ थोपते चले जाते है । अंतत: करने की िारी क्षमता, िज
ृ न की िारी
क्षमता, ‘न-करने’ के इि जाल में लप्ु त हो जाती है । या तो वह आदमी चोरी िे शरू
ु कर दे ता
है , जो-जो हमने रोका था, कक यह मत करो। और या कफर भीतर परे शानी में पड जाता है ।

दो ही रास्ते है , या पाखंडी हो जाये, या पागल हो जाये।

अगर भीतर लडा और अगर सिंसियर होगा, ईमानदार होगा तो पागल हो जायेगा। अगर
होसशयार हुआ, चालाक हुआ, कौतनंग हुआ ता पाखंडी हो जायेगा। एक दरवाजा मकान के पीछे
िे बना लेगा। जहां िे करने की दतु नया रहे गी। एक दरवाजा बाहर िे रहे गा जहां ‘न करने’ के
िारे ‘टे न कमांडमैं्ि’ सलखे हुए है । वहां वह िदा ऐिा खडा होगा कक यह में नहीं करता हूं।
और करने की अलग दतु नया बना लेगा।

मनुष्य को खंडडत, जस्कजोफ्रेतनक बनाने में , मनुष्य के मन को खंड-खंड करने में िभ्यता की
‘न करने’ की सशक्षा ने बडा काम ककया है ।
ठहप्पी कह रहा है कक जो हमें करना है , वह हम करें गे। और उिके सलए जो भी हमें भोगना
है , हम भोग लेंगे। लेककन एक बात हम न करें गे कक करें कुछ, और ठदखायें कुछ। यही बडी
बगावत है ।

हालांकक िदा िे िाि-ु िंतों ने कहा था कक बाहर और भीतर एक होना चाठहए। ठहप्पी भी यही
कहते है । लेककन एक बुतनयादी फकघ है । िाि-ु िंत कहते है । कक बाहर और भीतर एक होना
चाठहए। तब उनका मतलब है : बाहर जैिे हो वैिे ही भीतर होना चाठहए। ठहप्पी जब कहता है
कक बाहर भीतर एक होना चाठहए: तो वह कहता है कक भीतर जैिे हो वैिे ही बाहर भी होना
चाठहए। इन दोनो में फकघ है ।

िािु िंत जब कहते है कक बहार भीतर एक जैिा होना चाठहए। तो वह कहते है कक भीतर
का दरवाजा बंद करो। ठहप्पी कहता है बहार भीतर एक होना चाठहए। तो वह कहता है : बाहर
जो दि तनषेि आज्ञाओं, टे न कमांडमैं्ि की तख्ती लगी है उिको उखाडकर फेंक दो। और
जैिे भी हो, वैिे हो जाओ। अगर चोर हो तो चोर अगर बेईमान हो तो बेईमान, क्रोिी हो तो
क्रोिी। बडा खतरा तो यह है कक क्रोिी असभनय कर रहा अक्रोि का, ठहंिक असभनय कर रहा
है अठहंिक का, कामी असभनय कर रहा है ब्रह्मचयघ का। और पुरानी िारी िंस्कृततयां असभनय
को बडी कीमत दे ती है । और कुशल असभनेता की बडी पूजा हाथी है ।

ठहप्पी कह रहा है हम असभनय की पूजा नहीं करते। हम जीवन के पूजक है । ठहप्पी यह कह


रहा है कक झूिे ब्रह्मचयघ िे िच्चा यौन भी अथघपूणघ है । झूिे ब्रह्मचयघ में भी वह िुगंि नहीं
है , जो िच्चे यौन में हो िकती है । िच्चे ब्रह्मचयघ की तो बात ही दि
ू री है । उिकी िुगंि का
हमे क्या पता? लेककन िच्चा यौन न हो तो िच्चे ब्रह्मचयघ की कोई िंभावना ही नहीं है ।
अभी ठहप्पी यह नहीं कह रहे है , लेककन शीध्र ही जानें गे तो कहें गे। हम अगर पशु है तो
स्वीकृत है कक हम पशु है और हम पशु की भांतत ही जीयेंगे।

तीिरी बात, जब मैं िोचता हूं तो मुझे लगता है कक अगर खोज की जाये तो ईिाईयों की
कहानी के अदम और ईव ठहजप्पयों के आठद पुरूष कहे जाने चाठहए। क्योंकक अदम और ईव
को ई‍वर ने कहा था कक तुम ज्ञान के वक्ष
ृ का फल मत चखना। उन्होंने बगावत कर दी
और जजि वक्ष
ृ का फल नहीं चखने को कहा था, उिी का फल चख सलया और ईडन के बग़ीचे
िे बठहष्कृत कर ठदये गये।

तीिरा िूर है ठहप्पी का: प्रविोह, इनकार का िाहि। एक तो कन्फरसमस्ट की जजन्दगी है , ‘हां-
हुजूर की’ ‘यि िर’ की। वह जो भी कह रहा है , ‘हां’ कह रहा है । वह िदा ‘हां हुजूर’ कहने के
सलए तैयार है । उिने चाहे बात भी िीक िे नहीं िन ु ी है , लेककन ‘हां हुजरू ’ कहे जा रहा है । उिे
पता भी नहीं कक वह ककि चीज में हां भर रहा है । लेककन वह हां भरे चला जा रहा है । एक
गुरु एक िीक्रेट उिे पता है । जजन्दगी में जीना हो तो िब चीज में ‘हां’ कहे चले जाओ।

ठहप्पी कह रहा है जब तक हम िमाज की हर चीज में ‘हां’ कह रहे है , तब तक व्यजक्त का


जन्म नहीं होता। व्यजक्त का जन्म होता है ‘नौ िे इंग’ िे, न कहना शुरू करने िे।

अिल में मनुष्य की आत्मा ही तब पैदा होती है , जब कोई आदमी ‘नो’ नहीं कहने की ठहम्मत
जुटा लेता है ।

जब कोई कह िकता है , नहीं, चाहे दांव पर पूरी जजंदगी लग जाती हो। और जब एक बार
आदमी नहीं, कहना शुरू कर दे , ‘नहीं’ कहना िीख ले, तब पहली दफा उिके भीतर इि ‘नहीं’
कहने के कारण, ‘डडनायल’ के कारण व्यजक्त का जन्म शुरू होता है । यह ‘न’ की जो रे खा है ,
उिको व्यजक्त बनाती है । ‘हां’ की रे खा उिको िमूह का अंग बना दे ती है । इिसलए िमूह िदा
आज्ञाकाररता पर जोर दे ता है ।

बाप अपने ‘गोबर गणेश’ बेटे को कहे गा कक आज्ञाकारी है । क्योंकक गोबर गणेश बेटे िे न
तनकलती ही नहीं। अिल में ‘न’ तनकलने के सलए थोडी बुद्धि चाठहए। हां तनकलने के सलए
बुद्धि की कोई जरूरत नहीं है । हां तो कम्प्युटराइज्ड है , वह तो बुद्धि जजतनी कम होगी,
उतनी जल्दी तनकलता है । न तो िोच प्रवचार मांगता है । न तो तकघ आगम
ुघ ें ट मांगता है । न
जब कहें गे तो पच्चीि बार िोचना पडता है । क्योंकक न कहने पर बात खत्म नहीं होती। शुरू
होती है । हां कहने पर बात खत्म हो जाती है । शरू
ु नहीं होती।

बुद्धिमान बेटा होगा तो बाप को िीक नहीं लगेगा, क्योंकक बुद्धिमान बेटा बहुत बार बाप को
तनबुद्
घ धि सिद्ि कर दे गा। बहुत क्षणों में बाप को िीक नहीं लगेगा, क्योंकक अपने आप को भी
वह तनबद्
ुघ धि मालम
ू पड रहा है । बडी चोट है , अहं कार को। वह कठिनाई में डाल दे गा।

इिसलए हजारों िाल िे बाप, पीढी, िमाज ‘हां’ कहने की आदत डलवा रहा है । उिको वह
अनुशािन कहे , आज्ञाकाररता कहे और कुछ नाम दे लेककन ियोजन एक है । और वह यह है
कहे प्रविोह नहीं होना चाठहए। बगावती धचत नहीं होना चाठहए।

ठहजप्पयों का तीिरा िर
ू है कक अगर धचत ही चाठहए हो तो सिफघ बगावती ही हो िकता है ।
अगर आत्मा चाठहए हो तो वह ‘ररबैसलयि’ ही हो िकती है । अगर आत्मा ही न चाठहए तो
बात दि
ू री।

कन्फरसमस्ट के पाि कोई आत्मा नहीं होती।


यह ऐिा ही है , जैिे एक पत्थर पडा है , िडक के ककनारे । िडक के ककनारे पडा हुआ पत्थर
मूततघ नहीं बनता। मूततघ तो तब बनता है । जब छै नी और हथौडी उि पर चोट करती और
काटती है । जब कोई आदमी ‘न’ कहता है। और बगावत करता है। तो िारे िाणों पर छै नी
और हथौडडयां पडने लगती है । िब तरफ िे मूततघ तनखरना शुरू होती है । लेककन जब कोई
पत्थर कह दे ता है ‘’हां’’ तो छै नी हथौडी नहीं होती वहां पैदा। वह कफर पत्थर ही रह जाता है ।
िडक के ककनारे पडा हुआ।

लेककन िमस्त ित्ताधिकारी यों को चाहे वे प्रपता हो, चाहे मां, चाहे सशक्षक हो। चाहे बडा भाई
हो, चाहे राजनेता हो, िमस्त ित्ताधिकारी यों को ‘’हां-हुजूर’’ की जमात चाठहए।

ठहप्पी कहते है कक इििे हम इंकार करते है । हमें जो िीक लगेगा। वैिा हम जीयेंगे।
तनज‍चत ही तकलीफ है और इिसलए ठहप्पी भी एक तरह का िंन्यािी है । अिल में िंन्यािी
कभी एक ठदन एक तरह का ठहप्पी ही था, उिने भी इंकार ककया था, अ-नागररक था, िमाज
छोड ठदया, चला गया स्वछं द जीने की राह पर।

जैिे महावीर नग्न खडे हो गए, महावीर जजि ठदन बबहार में नग्न हुए होंगे। उि ठदन मैं नहीं
िमझता कक पुरानी जमात ने स्वीकार ककया होगा। यहां तक बात चली कक अब महावीर को
मानने वालों के दो ठहस्िे है । एक तो कहता है कक वस्र पहनते थे। लेककन वे अदृ‍य वस्र
थे, ठदखाई नहीं दे ते थे। यह पुराना कन्फरसमस्ट जो होगा, उिने आखखर महावीर को भी वस्र
पहना ठदये, लेककन ऐिे वस्र जो ठदखाई नहीं पड रहे है । इि सलए कुछ लोगों को भूल हुई कक
वे नंगे थे। वे नंगे नहीं थे। वस्र पहने थे।

जीिि, बुद्ि, महावीर जैिे लोग िभी बगावती है । अिल में मनुष्य जातत के इततहाि में
जजनके नाम भी गौरव िे सलये जा िकें वे िब बगावती है ।

और कृष्ण िे बडा-महा ठहप्पी खोजना तो अिंभव ही है । इिसलए कृष्ण को मानने वाल कृष्ण
को काट-काटकर स्वीकार करता है । अगर िरू दाि के पाि जायें तो वे कृष्ण को बच्चे िे
ऊपर बढने ही नहीं दे ते। क्योंकक बच्चे के ऊपर बढकर वह जो उपिव करे गा, वह िरू दाि की
पकड के बाहर है । तो बालकृष्ण को ही वे स्वीकार कर िकते है , छोटे बच्चे को। तब उिकी
चोरी भी तनदोष हो जाती है । लेककन िरू दाि िोच ही नहीं िकते कक उनका कृष्ण राि रचा
िकता है । गोप्रपयों िे िेम कर िकता है । नहाती हुई जस्रयों के कपडे लेकर वक्ष
ृ पर चढ कर
कहता है । हाथ उिाओं। कफर पूराना कन्फरसमस्ट जब आयेगा व्याख्या करने तो वह कहे गा वे
गोप्रपयां नही है । गोपी का मतलब होता है इंठियां। तो इंठियों को तनवारण करने वे वक्ष
ृ पर
चढ गये है । ककिी स्री को तनवारण करके नहीं।
कन्फरसमस्ट बार-बार लौटकर प्रविोहो को भी अपने कैं प में खडा कर लेता है । इिसलए जीिि
को िूली दे नी पडती है । लेककन दो चार िौ वषघ बाद जीिि भी उिी कतार में िजम्मसलत हो
जाते है । अब कभी हमने नहीं िोचा कक जीिि को िूली दे ने का कारण क्या था?

जीिि को िूली दे ने का कारण बडा अजीब था। बडे िे बडे कारणों में एक तो यह था कक
गैर-पारं पररक, नान-कन्फरसमस्ट थे। वे अंि-स्वीकारी नहीं थे। वे इंकार करने वाल व्यजक्त थे।
लोगों ने कहां वह मेग्दलीन वे‍या के, उिके र्र में मत िहरो। तो जीिि ने कहा, मैं भी
अगर वै‍या के र्र में नहीं िहरूंगा तो कफर कौन िहरे गा?

इिसलए जानकर है रानी होगी कक जजि ठदन जीिि को िल ू ी हुई, उि िल


ू ी के पाि ने तो
जीिि को कोई अनय ु ायी था, न कोई सशष्य था। उिकी िलू ी के पाि जीिि के बद्ु धिमान
सशष्यों में िे कोई भी न था। जीिि के पाि सिफघ दो औरते थी। एक तो वह वे‍या थी, जो
उनकी फांिी का कारण थी। िल
ू ी िे जजिने लाश को उतारा वह मेग्दलीन थी।

तो जीिि को स्वीकार करना उि िमाज के सलए अिंभव रहा होगा। इिसलए जीिि को जब
िूली दी तो दो चोरों के बीच में िूली दी। दो तरफ दो चोर लटकाये, बीच में जीिि को
लटकाया। और जनता में िे लोगों ने यह भी चील्लाकर कहा कक इन चोरों को क्यों मार रहे
हो। लेककन ककिी ने यह न कहा कक जीिि का क्यों मार रहे हो। कफर हम िब िाफ-िुथरा
कर लेते है ।

बग़ावत आत्मा का जन्म है ।

ठहप्पी प्रविोह को जी रहा है ।

इि िंबंि में एक बात और मुझे कह लेने जैिी है कक ठहप्पी क्रांततकारी, ररव्योल्यूशनरी नहीं
है —प्रविोहो, ररबेसलयि है । क्रांततकारी नहीं है —बगावती है । प्रविोहो है ।

और क्रांतत और बगावत के फकघ को थोडा िमझ लेना उपयोगी है । अिल में हजारों िाल में
ककतनी ही क्रांततयां हो चक
ु ीं, लेककन िब क्रांततयां अिफल हो गयीं। ठहप्पी का कहना है , िब
क्रांततयां अिफल हो गयीं, क्योंकक क्रांतत िफल हो ही नहीं िकती है । िफल हो िकता है ,
केवल अतनयोजजत प्रविोह। 1917 की क्रांतत अिफल हो गयी, क्योंकक एक जार को मारा और
दि
ू रा जार उिकी जगह बैि गया। सिफघ नाम बदल गया है । स्टै सलन हो गया उिका नाम।
वह दि
ू रा जार है । ककिी जार ने इतने आदमी न मारे थे।
स्टे सलन ने अपनी जजंदगी में एक करोड लोगों की हत्या की, ककिी जार ने अथवा िब जारों ने
समलकर भी इतने आदमी नहीं मारे थे! तो बडी कठिन बात है कक क्रांतत भी होती है तो कफर
उिके ऊपर एक जार बैि जाता है । नाम बदल जाता है , झंडा बदल जाता है , बैिने वाले नहीं
बदलते। वही चंगेज, वही तैमूर, कफर वाप्रपि बैि जाता है ।

ठहटलर िोशसलस्ट था। उनकी पाटी का नाम था ‘नेशनसलस्ट िोशसलस्ट पाटी’,राष्ट्ीयवादी


िमाजवादी दल! ककिने िोचा था कक ठहटलर यह करे गा, जो उिने ककया।

क्रांततयां जब िफल होती हैं, तब पता चलता है कक िब व्यथघ हो गया। जब तक िफल नहीं
होतीं, तब तक तो लगता है बहुत कुछ हो रहा है । कफर एकदम व्यथघ हो जाती हैं।

हमारे ही दे श में क्रांतत हुई और 1947 के बाद हमने िोचा, आजादी आ जायेगी। कफर 1947 के
बाद भी हम िोच ही रहे हैं कक 22 िाल हो गये, अभी तक आई नहीं? कब आयेगी? हां, फकघ
हो गया है । िफेद चमडी के मासलक बदल गये, उनकी जगह काली चमडी के लोग बैि गये।
काली चमडी वालों को भी लगा कक िफेद चमडी होनी चाठहए। चमडी तो िफेद करना बहुत
मुज‍कल थी, कपडे उिने िफेद कर सलए। बि इतना फकघ हो गया। अंग्रेजों ने जजतनी गोसलयां
नहीं चलायी इि दे श में , इन्हें जजनको हम अपने ही आदमी कहें , उन्होंने चलायी। कभी अगर
इततहाि पूछेगा तो वह पछ
ू िकेगा कक गुलाम कौम पर इतनी गोसलयां नहीं चलानी पडी,
आजाद होने के बाद इतनी गोसलयां अपने ही लोगों पर चलानी पडीं, यह बात क्या है ? हो क्या
गया है !

कोई क्रांतत िफल नहीं हो पायी, न होने का कारण है । एक तो यह कक क्रांतत के उपकरण बडे
गैर-क्रांततकारी होते हैं, बडे दककयानूिी होते हैं।

दि
ू रा यह कक क्रांतत वस्तत
ु : िततकक्रयाअक, ररक्ष्मानरी होती है । उनके िाण उिी में होते हैं,
जजििे कक वह लडती है । कफर इिसलए शरु के मरते ही उिके होने का भी कोई कारण नहीं
रह जाता है । क्रांतत की िफलता ही मत्ृ यु बन जाती है ।

ठहप्पी का खयाल यह है कक क्रांतत इिसलए भी िफल नहीं होती कक क्रांतत पुन: िमाज को ही
केंि मानकर चलती है । वह कहती है , िमाज बदले।

प्रविोह व्यजक्त को केंि मानता है , क्रांतत िमाज को केंि मानती है ।

क्रांतत कहती है , िमाज बदले।


ठहप्पी कहता है भाड में जाये तुम्हारा पूरा िमाज, मैं बदलता हूं। मैं तुम्हारे िमाज के सलए
नहीं रुला। मैं अकेला बदल जाता हूं। इिसलए ठहप्पी व्यजक्तगत प्रविोही है ।

और मेरी िमझ में यह बात भी बडी कीमती है , क्योंकक िब क्रांततयां िफल हो गयीं, कफर भी
हम नयी क्रांततयों की बात िोचते चले जाते हैं। अिल में क्रांतत करने में जो इलजाम करना
पडता है , वह क्रांतत की ही हत्या कर दे ता है । पहले तो क्रांतत करने के सलए िंगिन बनाना
पडता है और जैिे ही िंगिन बनता है तो िंगिन के अपने तनयम हैं। वह िंगिन ककिी का
भी हो-जब िंगिन बनता है और कोई प्रवचार इंस्टी्यूशन बनता है , तब िब रोग वापि लौट
आते हैं। जो रोग पुराने िंगिन में थे, वे पुराने िंगिन की वजह न थे। िंगिन के कारण
कुछ रोग अतनवायघ हैं।

िंगिन होगा तो कोई पद पर होगा, मासलक होगा, कोई अधिनायक, डडक्टे टर होगा। कोई आशा
चलायेगा। िंगिन होगा तो कुछ थोडे िे लोग शजक्तशाली हो जायेंगे। िंगिन होगा तो िन
इक्िा होगा। िंगिन होगा तो भीड इक्िी होगी। और ध्यान रहे भीड िदा परम्परानग
ु त,

कन्फरसमस्ट है । भीड िदा ‘हां-हुजूर’ है ।

ठहप्पी यह कहता है कक अब क्रांतत िे नहीं होगा, अब तो प्रविोह करना पडेगा।

प्रविोह का मतलब है कक जजिे लगता है गलत है , वह तत्काल गलत िे प्रवदा हो जाये।

उनका एक शब्द है ‘ड्राप्रपंग आउट’। वे कहते हैं रास्ते पर भीड चली जा रही है , हम कोई
आग्रह नहीं करते कक िारी भीड को बदलेंगे। हमें लगता है कक गलत है यह भीड, गलत है
यह रास्ता, ‘वी जस्ट ड्राप आउट’, हम रास्ता छोडकर नीचे उतर जाते हैं। हम कहते हैं ,
‘नमस्कार, तुम जाओ। ‘

यह िारणा बडी नयी है , व्यजक्तगत प्रविोह की। बडी िबल भी है , क्योंकक शायद ककिी
क्रांततकारी ने इतना दांव नहीं लगाया। वे कहते हैं, िब बदलें गे। तो एक कम्यतु नस्ट भी
करोडपतत हो िकता है । कोई कठिनाई नहीं है । वह कहता है जब िमाज बदलेगा, जब िबकी
िंपप्रत्त बटे गी तो मेरी भी बंट जायेगी। लेककन जब तक. िबकी नहीं बंटी, तब तक मझ
ु े क्यों
बांटने की कफकर करना है । लेककन ठहप्पी कहता है , िम्पप्रत्त अगर रोग है तो मैं तो बाहर हुआ
जाता हूं। कफर जब िमाज बदलेगा, बदलेगा। लेककन कफर तम ु मझ
ु े जजम्मेदार न िहरा
िकोगे।
अगर प्रवयतनाम में गलत युद्ि हो रहा है तो क्रांततकारी कहे गा कक आन्दोलन चलाओ,
हडताल करो, र्ेराव करो। ठहप्पी कहता है िब र्ेराव करो, िब हडताल करो, िब आंदोलन
चलाओ। लेककन चलाने में ठहंिा चाठहए, र्ेराव करने में ठहंिा चाठहए। और अगर जीत गये
तुम ककिी ठदन तो जीतते-जीतते इतने ठहंिक हो जाओगे कक प्रवयतनाम की जगह दि
ू रा
प्रवयतनाम तुम चला दोगे। ठहप्पी कहता है कक हमको लगता है कक गलत है प्रवयतनाम, हम
युद्ि पर जाने िे इन्कार करते हैं। तुम हमें गोली मार दो, हम ये बैिे हैं, हम नहीं जायेंगे।

व्यजक्तगत प्रविोह-पहली दफा तनपट एक व्यजक्त िाहि कर रहा है कक िारा िमाज गलत
लगता है तो हम बाहर हो जायें। वह यह नहीं कह रहा कक िमाज के प्रववाह के तनयम
बदलेंगे, तब हम िुिरें गे। वह यह कह रहा है , हमने बदल ठदये हैं तनयम अपने सलए। अब जो
तकलीफ होगी, वह हम िह लेंगे।

अब ठहप्पी ऐिी लडककयों के िाथ रह रहा है जजििे वह प्रववाठहत नहीं है । ठहप्पी लडककयां
ऐिे यव
ु कों के िाथ रह रही हैं, जजनिे उनका कोई प्रववाह नहीं हुआ।

क्योंकक ठहप्पी कहता है कक प्रववाह जो है , वह ‘लीगलाइब्द िॉस्टी्यूशन’ है । िमाज के द्वारा


आदे सशत, लाइिेस्ट वे‍याधगरी है ।

िमाज लाइिेंि दे ता है दो आदसमयों के सलए कक अब हम तुम्हारे बीच में बािा नहीं बनेंगे।
लाइिेंि दे ने की कई तरकीबें है । कहीं िात चक्कर लगा कर लाइिेंि दे ता है , कहीं माला
पहनवा कर दे ता है , कहीं दलतर में रजजस्टर पर दस्तखत करवाकर दे ता है । वे प्रवधियां तो
गैर-महत्वपूण,घ नॉन-एिेजन्यायल हैं। महत्वपूणघ यह है कक िमाज एक लाइिेंि दे ता है कक अब
इन दो आदसमयों के बीच जो यौन िंबंि होंगे, उनमें हम बािा न दें गे।

ठहप्पी यह कहता है कक मेरा िेम मेरी तनजी बात है । और जजििे मेरा िेम है , यह दो
व्यजक्तयों की बात है , इिमें हमें िमाज िे स्वीकृतत का िवाल कहां है । इिमें परू े िमाज का
िंबंि कहां है ? यह परू ा िमाज हमारे िेम तक पर भी काबू रखने की कोसशश क्यों करता है ?
यह हमें स्वतंर व्यजक्त बबल्कुल नहीं रहने दे ना चाहता। िेम पर भी इिका काबू होना चठहए।

लेककन वह तकलीफें झेल रहा हैं। क्योंकक बच्चा हो जायेगा ठहप्पी लडकी को, स्कूल में भरती
करने जायेगी तो वहां सशक्षक पूछता है , इिके बाप का नाम? तो ठहप्पी लडकी सलखवाती है कक
नहीं, इिका कोई बाप नहीं है ? मां ही है । बडी तकलीफ है , जजि गांव में एक लडकी यह कह
िकती हो कक इिका बाप नहीं है , सिफघ मां दे । आप अगर बबना बाप के नाम सलख िकते हों
तो िीक।
मुझे उपतनषद की एक कहानी याद आती है , ित्यकाम जाबाल की। वक्त बदल जाता है
इिसलए हम कहानी ‘तो बठढया रूप दे दे ते हैं। ित्यकाम गुरु के आश्रम गया तो पूछा, तेरे
प्रपता का नाम क्या है ? तो वह वाप्रपि लौटा। उिने अपनी मां को कहा कक मेरे प्रपता का नाम
क्या है ? तो उिकी मां ने कहा, जब मैं युवा थी और तेरा जन्म हुआ तो बहुत लोगों की मैं
िेवा करती थी। कौन तेरा प्रपता है , मुझे पता नहीं। तो तू जा वापि। अपने गुरु को कह दे ना
ित्यकाम मेरा नाम है , जाबाल मेरी मां का नाम है , इिसलए ित्यकाम जाबाल आप मुझे कह
िकते हैं। और मेरी मां ने कहा है कक जब वह यव
ु ा थी तो बहुत लोगों के िम्पकघ में आयी।
पता नहीं प्रपता कौन है ।

ित्यकाम वापि गया उिने गुरु िे कहा कक मेरी मां ने कहा है कक जब मैं युवा थी, तब
बहुत लोगों के िम्पकघ में आयी, पता नहीं कक तेरा प्रपता कौन है । इतना ही उिने कहा कक
मेरा नाम ित्यकाम है और मां का नाम जाबाल है इिसलए आप मुझे ित्यकाम जाबाल कह
िकते हैं।

मैंने तो िुना है , कोई कह रहा था कक जबलपुर जाबाल के नाम पर ही तनसमघत है । पता नहीं
मुझ,े मुझे कोई कह रहा था, हो िकता है ।

लेककन गुरु ने कहा कक तब तुझे मैं ले लेता हूं क्योंकक मैं मान लेता हूं कक तू तनधश्रत ही
ब्राह्मण है , क्योंकक इतना ित्य सिफघ ब्राह्मण ही बोल िकता है । इतना ित्य तेरी मां ने
बोला कक मुझे पता नहीं बहुत लोगों के िम्पकघ में आयी, पता नहीं कौन प्रपता था। इतना
ित्य सिफघ ब्राह्मण ही बोल िकता है ।

ठहप्पी एक अथघ में ब्राह्मण है । इि अथघ में ब्राह्मण है कक जीवन का जो ित्य है , जैिा है , वह
वैिा बोल रहा है , कह रहा है । ये तीन बातें ।

और चौथी अजन्तम बात। कफर मेरी दृजष्ट क्या है ठहप्पी के बाबत, वह मैं आपको कहूं। चौथी
बात।

मनुष्य ने इतनी िम्पप्रत्त, इतनी िुप्रविा, इतनी िामग्री पैदा की है , लेककन ककिी गहरे अथघ में
मनुष्य भीतर दररि हो गया है , चेतना िंकुधचत हो गयी है ।

तो ठहप्पी का चौथा िूर है , चेतना का प्रवस्तार, एक्िपान्शन ऑफ कान्शिनेि। वह यह कह


रहा है कक हम अपनी चेतना को कैिे फैलायें। तो चेतना फैलाने के सलए वह िब तरह के
ियोग कर रहा है । गांजा, अफीम, भांग, हशीश, एल एि डी, मेस्केसलन, मारीजुआना,योग-ध्यान,
वह यह िब कर रहा है कक चेतना कैिे फैले, िंकुधचत चेतना का प्रवस्तार कैिे उपलब्ि हो
जाये। तो केसमकल ड्रग्ि का भी उपयोग कर रहा है । एल एि डी, मेस्केलीन, जजनके द्वारा
थोडी दे र के सलए धचत्त नये लोक में िवेश कर जाता है ।

कानून प्रवरोि में है , क्योंकक कानून तो हर नई चीज के प्रवरोि में है । क्योंकक कानून तो बनता
है कभी और युग बदल जाता है । कानून तो प्रवरोि में है । कानून तो एल एि डी को पाप
मानता है । मैं नहीं िमझ पा रहा हूं। एल एि डी और मेस्केलीन में बडी िंभावनाएं हैं। इि
बात की बहुत िंभावनाएं हैं कक ये दोनों चीजें मनुष्य की चेतना को नये दशघन कराने में
िफल रूप िे ियुक्त की जा िकती हैं। ऐिा मैं नहीं मानता हूं कक इनके द्वारा कोई िमाधि
को उपलब्ि हो जायेगा, लेककन िमाधि की एक झलक समल िकती है । और झलक ?? जाये
तो िमाधि की प्याि पैदा हो जाती है । आज तो पज‍चम में योग और ध्यान के सलए इतना
आकषघण है , उिके बहुत गहरे में एल एि डी है । लाखों लोग एल एि डी लेकर दे ख रहे हैं।

जब कोई आदमी एल एि डी की एक ठटककया लेता है तो कई र्ंटों के सलए उिकी िारी


दतु नया बदल जाती है । जैिे ‘ब्लेक’ की कप्रवता हम पढें तो ऐिा लगता है कक ब्लेक कुछ ऐिे
रं ग जानता है , जो हम नहीं जानते। उिे फूल कुछ ऐिा ठदखायी दे ता पडता है , जैिा हमें
ठदखाई नहीं पडता।

लेककन एल एि डी लेकर हम भी वही जान पाते हैं। पत्ते-पत्ते रं गीन हो जाते हैं फूल-फूल
अदभुत हो जाता है । एक आदमी की आख में इतनी गहराई ठदखाई पडने लगती है , जजतनी
कभी नहीं ठदखाई पडी। एक िािारण-िी कुिी भी एक जीवंत अथघ ले लेती हैं। थोडी दे र के
सलए जगत और ढं ग का ठदखाई पडने लगता है । जैिे कक बबजली चमक जाये अंिेरी रात में ,
और एक िेकेंड को वक्ष
ृ ठदखाई पडे, फूल ठदखाई पडे, रास्ता ठदखाई पडे। बबजली तो गयी तो
कफर अंिेरा भर गया, लेककन अब हम वही आदमी नहीं हो िकते, जो बबजली के पहले है ।

इन िाइकेडेसलक ड्रग्ि का, इन रािायतनक तत्वों का ठहप्पी बडे पैमाने पर ियोग कर रहे हैं।
मेरी िमझ में िोमरि इििे सभन्न बात न थी। अस्तुअि हक्िले ने तो एक ककताब सलखी
है । तो उिमें िन 2000 वषघ के बाद जो प्रवकसित िाइकेडेसलक ड्रग, रािायतनक िव्य होगा
उिका नाम ही िीमा ठदया है , िोमरि के आिार पर ही।

और एल एि डी और मेस्केलीन जजन्होंने सलया है तो पहली दफा उनको खयाल आया कक


वैठदक ऋप्रषयों को दे वी-दे वता एकदम जमीन पर चलते-चलते नजर क्यों आते थे। वे हमको
भी आ िकते हैं। भांग में कुछ थोडी-िी बात है , बहुत ज्यादा नहीं, बहुत थोडी। लेककन भांग के
पीछे थोडा-िा ‘हैंग ओवर’ होता है । एल एि डी का कोई ‘हैंग ओवर’ नहीं है । गांजे में कुछ
थोडी बात है , लेककन बहुत ज्यादा नहीं। हजारों िाल िे िाि,ु भांग, गांजा, अफीम का उपयोग
करते रहे हैं। वह अकारण नहीं है । और इिर जजतनी खोज होती है , उििे कुछ है रानी के
त्य िामने आते हैं।

अगर एक आदमी बहुत दे र तक उपवाि करे तो भी शरीर में जो फकघ होते हैं, वे केसमकल हैं।
अब ऊपर िे दे खने में लगता है कक महावीर तो गांजे के बबल्कुल खखलाफ हैं। लेककन उपवाि
के बहुत पक्ष में हैं। हालांकक उपवाि िे भी 30 ठदन भूखा रहने िे शरीर में जो फकघ होंगे, वे
केसमकल हैं। कोई फकघ नहीं है ।

िाणायम िे भी जो फकघ होते हैं, वे केसमकल हैं। अगर एक आदमी प्रवशेष प्रवधि िे ‍वाि
लेता है तो आक्िीजन की मारा के अन्तर पडने शरू
ु हो जाते हैं। ज्यादा ऑक्िीजन कुछ
तत्वों को जला दे ती है , कुछ तत्वों ही बचा लेती है। भीतर जो फकघ होते हैं, वे केसमकल हैं।

ठहप्पी यह कह रहा है कक अब तक की जजतनी िािना पद्िततयां हैं, वे ककिी न ककिी रूप


में केसमकल फकघ ही ला रही हैं। तो केसमकल फकघ एक गोली िे भी लाया जा िकता है ।
चौथा जो ठहप्पी का जोर है , जजिकी वजह िे वह परे शानी में पडा हुआ है , वह इन ड्रग्ि के
कारण है । कानून इनके खखलाफ है । कानून उन्होंने बनाया था, जजनको एल एि डी का कुछ
भी पता नहीं था।

डा. सलयरी एक अदभुत आदमी हैं इि ठदशा में , जजि आदमी ने इिर बहुत काम ककया कक
ड्रग्ि कैिे मनुष्य को िमाधि तक पहुंचा िकते हैं।

और जजन लोगों ने एक बार इि तरह का ियोग ककया है , वे आदमी और ही तरह के हो गये,


उनकी जजन्दगी और ही तरह की हो जाती है । जैिे हम जीते हैं एक तनाव में , जैिे ही कोई
इि तरह के ड्रग्ि लेता है तो िारा मन रलेक्स्ड, प्रवश्रामपूणघ हो जाता है । जीते हैं कफर आप
तनाव में नहीं, अभी और यहां। ठहप्पीज का जो शब्द है उिके सलए, वह है , ‘टतनिंग आन’ -कोई
एक टनघ है , मोड है , दरवाजा है , जो एक गोली दे ने िे आपके सलए खल
ु जाता है । जैिे ‘ड्राप्रपंग
आफ’, रास्ते के ककनारे उतर जाना; ऐिे ही ‘टतनिंग आन ‘ जहां हम हैं, वहां िे कहीं और मड

जाना-उि दतु नया में , उि आयाम, डायमेशन में जजिका हमें कोई पता नहीं है । रािायतनक
ियोग के द्वारा मनष्ु य की चेतना प्रवस्तीणघ हो िकती है और िौंदयघबोि, एस्थेठटक िे भर
िकती है ।

इि ठदशा में डा. सलयरी बडे गहरे ियोग कर रहे हैं। छोटी-छोटी उनकी जमातें बनी हुई हैं-
जंगलों में , पहाडों में , गांवों के बाहर। पुसलि उनका पीछा कर रही है । उन्हें उखाड रही है ।
केवल अमेररका में दो लाख ठहप्पी हैं। और यह तो िीक गणना की िंख्या है । लेककन बहुत-िे
लोग जो पीररयाडडकल, िावधिक ठहप्पी हो जाते हैं-कोई दो चार महीने के सलए; कफर वाप्रपि
दतु नया में लौट आते हैं, उनकी िंख्या भी बडी है । बहुत िे िेंटिघ हैं, जहां बैिकर इन िबका
ियोग चल रहा है । जहां बबल्कुल ही िीक िायंटीकफक तनरीक्षण में लोग एल एि डी और ये
िारी चीजें ले रहे हैं।

एल्डुअि हक्िले ने एक ककताब सलखी है , ‘डोिघ ऑफ परिेपान्ि’। उि ककताब में उिने कहा
है कक कबीर और नानक को जो हुआ, मैं अब जानता हूं कक क्या हुआ। एल एि डी लेने के
बाद हक्िले को लगता है कक क्या दआ
ु ! क्योंकक जजि तरह की बातें वे कह रहे हैं कक अनहद
नाद बज रहा है और अमत
ृ की वषाघ हो रही है और आकाश में बादल ही बादल तर्रे हैं और
अमत
ृ ही अमत
ृ बरि रहा है और कबीर नाच रहे हैं। अब यह जो हम कप्रवता में पढकर
िमझने की कोसशश करते हैं, लेककन न तो कभी कोई बादल ठदखाई पडते हैं, जजनमें अमत

भरा हो। न कभी अमत
ृ बरिता ठदखाई पडता है , न कोई अनहद नाद िुनाई पडता है ।

लेककन एल एि डी लेने पर ऐिी ध्वतनयां िुनाई पडनी शुरू होती हैं, जो कभी नहीं िुनी
गयीं। और ऐिी बरखा शरू ु हो जाती है , जो कभी नहीं हुई। और इतना मन हल्का और नया
हो जाता है , जैिा कभी न था।

चौथी बात, ठहप्पीज को जो नवीनतम है वह है , ‘एक्िपांशन आफ कान्दािनेि भू ड्रग्ि’,


रािायतनक िव्यों द्वारा चेतना का प्रवस्तार। ये चार िूर मैं मौसलक मानता हूं।

मेरी क्या िततकक्रया है , वह मैं िंक्षेप में कहूं।

ठहजप्पयों ने छोटी-छोटी कयून बना रखी हैं। वे कयन


ू वैकजल्पक िमाज, आलरनेट िोिायटी हैं।
वे कहते हैं, एक िमाज तम्
ु हारा है ‘हां-हुजरू ों’ का, प्रवयतनाम में लडने वालों का, क‍मीर ककिका
है यह दावा करने वालों का। और एक हमारा है , जजनका कोई दावा नहीं है । जजनका
प्रवयतनाम में ककिी िे कोई िंर्षघ नहीं, क‍मीर में जजनका कोई झगडा नहीं राजिातनयों में
जाने की जजनकी कोई इच्छा नहीं।

एक िमाज तुम्हारा है , जजिमें तुम कहते हो कक भप्रवष्य में िब कुछ होगा। एक हमारा है जो
कहते हैं, अभी और यहीं, जो होना है वह हो। एक आलरनेट िोिायटी, एक वैकजल्पक िमाज है
ठहजप्पयों का। तो इि िमाज िे जो ऊब गये, र्बडा गये, परे शान हो गये, वे उि िमाज में
िवेश कर जाते हैं।
ठहप्पी अभी और यहीं-िदा आनन्द में है । जो कहता है इिी वक्त आनंद में हूं और कल की
धचन्ता नहीं करता।

ठहजप्पयों के प्रविोह के िंबंि में मेरी पहली दृजष्ट तो यह है -पीछे िे शुरू करूं, िाइकेडेसलक
ड्रग्ि िे-तनश्रय ही रािायतनक तत्वों के द्वारा झलक पायी जा िकती है , लेककन सिफघ झलक,
अवस्था नहीं।

महावीर या कबीर या बुद्ि के पाि जो है , वह अवस्था है , झलक नहीं।

लेककन झलक भी कीमती चीज है । झलक को अवस्था िमझ लेना भूल है । तो ठहजप्पयों िे
यहां मेरा फकघ है । वे झलक को अवस्था िमझ रहे हैं! झलक सिफघ झलक है । और झलक
ककिी गोली पर तनभघर है , वह व्यजक्त को रूपांतररत, ट्ांिफामघ नहीं कर पाती। गोली के अिर
के बाद आदमी वहीं का वहीं होता है ।

लेककन बद्
ु ि दि
ू रे आदमी हैं। उि अनभ
ु व के बाद वे दि
ू रे आदमी हैं। ित्य की, ब्रह्म की,
आत्मा की, मोक्ष की, तनवाघण की ितीतत के बाद आदमी दि
ू रा आदमी है , पहला आदमी मर
गया। यह दिू रा जन्म हुआ उिका, वह द्प्रवज हुआ। यह दि
ू रा ही आदमी है । यह वही
आदमी नहीं है ।

लेककन ड्रग्ि के द्वारा जो झलक समलती है , वह झलक ही है अवस्था नहीं है । ठहप्पी इतना
तो िीक कहते हैं कक यह झलक कीमती है । और जजन्हें नहीं समली उन्हें समल जाए तो शायद
वह अनुभव, अवस्था की भी तलाश करें । जैिे यहां मैं बैिा हूं। लंदन मैं नहीं गया हूं न्यूयाकघ
मैं नहीं गया हूं; लेककन एक कफल्म यहां बनाई जा िकती है , जजिमें मैं लंदन को दे ख लूं।
लेककन यह मेरा लंदन में होना नहीं है । हालांकक कफल्म को दे खकर -लंदन में होने का खयाल
पैदा हो िकता है । एक यारा शरू
ु हो िकती है ।

ड्रग्ि यारा के पहले बबन्द ु पर उपयोगी हो िकते हैं। इििे मैं ठहजप्पयों िे राजी हूं। और
ठहप्पी प्रवरोधियों के प्रवरोि में हूं जो कहते हैं ड्रग्ि का कोई उपयोग नहीं, कोई अथघ नहीं।
दि ू री बात में मैं ठहप्पी प्रवरोधियों िे राजी हूं क्योंकक यह अवस्था नहीं है । और ठहजप्पयों के
प्रवरोि में हूं क्योंकक उन्होंने अगर झलक को अवस्था िमझा और बाहर िे आरोप्रपत, फोस्टघ
केसमकल िभाव को उन्होंने िमझा कक मेरी आत्मा नयी हो गयी तो वे तनधश्रत ही भूल में
पडे जा रहे हैं

शराबी िदा िे इिी भूल में है । इि भूल के मैं प्रवरोि में हूं। लेककन यह मुझे लगता है कक
आने वाले मनुष्य के सलए िाइक्खैसलक ड्रग्ि का बहुत कीमती उपयोग ककया जा िकता है ।
दि
ू री बात। ठहप्पी क्रांतत के प्रवरोि में हैं, प्रविोह के पक्ष में । लेककन मजा यह है कक जजतने
ठहप्पी गये छोडकर िमाज को उनका भी पैटनघ, ढांचा बन गया है । अगर आप बाल काटकर
ठहजप्पयों में पहुंच जायें तो ठहप्पी आपको ऐिे गुस्िे िे दे खेंगे, जैिे गुस्िे िे बाल बडे आदमी
कौ िमाज दे खता है ! अगर आप ठहप्पी िमाज में कहें कक िंभोग िे िमाधि की ओरा मैं रोज
स्नान करूंगा तो आप उिी क्रोि िे दे खे जायेंगे, जजि तरह िे ककिी ब्राह्मण के र्र में िहरा
हूं और कहूं कक आज खान न करूंगा। ऐिा यह जो प्रविोह है , वह प्रविोह ररएक्शनरी,
िततकक्रयाअक है ।

ठहप्पी स्नान नहीं करता। महावीर को मानने वाले मनुष्यों को बडा ििन्न हो जाना चाठहए।
वे भी स्नान नहीं करते। ठहप्पी गंदगी को ओढता है । क्योंकक वह कहता है , जैिा मैं हूं हूं।
अगर मेरे पिीने में बदबू आती है तो मैं िुगंि परलयूम न डालूंगा। आने दो पिीने में बदबू।
पिीने में बदबू है । यह बबल्कुल िीक है । लेककन यह िततकक्रया अगर है तो खतरनाक है ।
माना कक पिीने में बदबू है , लेककन परलयूम िे बदबू समटाई जा िकती है । और दि
ू रे आदमी
को बदबू झेलने के सलए मजबूर करना, दि
ू रे की िीमाओं का अनधिकृत अततक्रमण, ट्े िपाि
दै । मेरे पिीने में बदबू है , मैं मजे िे अपने पिीने में रहूं। लेककन जब भी दि
ू रा आदमी मेरे
पडोि में है , तो उिको ‘भी मेरी बदबू झेलने के सलए मजबूर करना, तो ठहंिा शुरू हो गयी।
यानी उिकी स्वतंरता में बािा डालना शुरू हो गया।

एका् र्टना मैंने कहीं िुनी है कक रवीन्िनाथ के पाि गांिीजी मेहमान थे। िांझ को जा रहे थे
दोनों र्ूमने तो रवीन्िनाथ ने कहा, मैं जरा तैयार हो लूं। पर उन्हें तैयार होने में बहुत दे र
लगी। गांिीजी को तैयार होने की बात में ही है रानी थी। कफर दे र होते दे ख उन्होंने झांककर
भीतर दे खा तो पाया कक रवीन्िनाथ आदम कद आइने के िामने खडे स्वयं को िजाने में
लीन हैं! गांिीजी ने कहा, यह क्या कर रहे हैं, और इि उम्र में ! तो कप्रव ने कहा, ‘जब उम्र
कम थी, तब तो बबना िजे भी चला जाता था, अब नहीं चलता है । और मैं ककिी को कुरूप
ठदलू तो लगता है कक उिके िाथ ठहंिा कर रहा हूं। ‘

मैं मानता हूं कक ररक्ष्मानरी कभी भी िीक अथों में ररबेसलयि नहीं हो पाता है । िततकक्रयावादी
जो सिफघ िततकक्रया कर रहा है , वह िमाज िे उलटा हो जाता है । तम ु ऐिे कपडे पहनते हो,
हम ऐिे पहनेंगे। तम
ु स्वच्छता िे रहते हो, हम गंदगी िे रहें गे। तम
ु ऐिे हो, हम उलटे चले
जायेंगे। लेककन उलटा जाना प्रविोह नहीं है , िततकक्रया है । मैं मानता हूं, प्रविोह की बडी कीमत
है । लेककन ठहप्पी िततकक्रया में पड गया है । िततकक्रया की कोई कीमत नहीं है । प्रविोह तो एक
मूल्य है , लेककन िततकक्रया एक रोग है ।

और ध्यान रहे िततकक्रयावादी हमेशा उििे बंिा रहता है , जजिकी वह िततकक्रया कर रहा है ।
अब ऐिा जरूरी नहीं है , कक एक आदमी नंगा आकर इि कमरे में बैिे तो वह िहज ही हो।
यह भी हो िकता है कक वह सिफघ कपडे पहनने वाले लोगों की िततकक्रया में इिर नंगा आकर
बैि गया हो, िहज बबल्कुल न हो। िहजता का तो मूल्य है , लेककन अिहजता कपडे पहनने में
हो ही नहीं िकती, ऐिा कौन कह िकता है । िततकक्रया पकड रही है । िततकक्रया के पररणाम
खतरनाक हैं और िततकक्रया ज्यादा स्थायी नहीं होती, सिफघ िंक्रमण की बात होती है। इिसलए
िीरे - िीरे िततकक्रया भी िेटल, व्यवजस्थत होती जा रही है । ठहजप्पयों का भी एक िमाज बन
गया, उिके भी तनयम और कानून बन गये। उनकी भी आथोडाक्िी बन गयी है ! उनका भी
परु ोठहत, पंडडत, नेता िब हो गया है ! वहां भी आप जायें तो आप जैिे हैं, वे आपको बेचन
ै ी
दे ना शरू
ु कर दें गे।

अभी मैं एक र्टना पढ रहा था। एक अमेररकन परकार मठहला ठहजप्पयों का अध्ययन करने
बहुत िे िमाजों मैं गई। वह एक िमाज में गई है , वहां भोजन चल रहा है ठहजप्पयों का, तो
उन्होंने चम्मचें नहीं ली है । ठहन्दस्
ु तान में क्या करें गे? अगर ठहप्पी आयें तो बडा मुज‍कल
पडेगा। अमेररका में तो हाथ िे खाना बगावत है । ठहन्दस्
ु तान में चम्मच िे खाना भी बगावत
हो िकता है ।

हाथ िे ही भोजन खा रहे हैं वे! हाथ िे खाने की आदत भी नहीं है तो िब गंदे हाथ हो गये
हैं। और इक्िा भोजन रखा हुआ है , वह िब गंदा हो गया है ! और इि तरह भोजन खा रहे
हैं! अब यह जो मठहला परकार है यह अपनी चम्मच उिाती है तो ककिी ने उिकी चम्मच
छीन ली। और उिका हाथ भोजन में डाल ठदया है । अब वह बहुत र्बडा गयी तै। लेककन वहां
यही तनयम है ! अगर वह मठहला हां भरती है तो मैं कहता हूं अब वह मठहला कफर
कन्फरसमस्ट हो गयी है । उिे इंकार करना चाठहए। लेककन वहां इंकार करना मुज‍कल है ।

वहां एक ठहप्पी ने एक स्री का ब्लाऊज फाड डाला है । उिके ऊपर उिने िब खाना डाल
ठदया और उिके शरीर िे चाट रहा है । अब यह िब िततकक्रयाएं हो गयीं। यह पागलपन हो
गया। हां, ककिी िेम के क्षण में ककिी िी के शरीर का स्वाद भी अथघपण
ू घ हो िकता है । वह
अतनवायघत: अनथघ नहीं है। लेककन बि ककिी क्षण में । लेककन ककिी स्री के शरीर पर शोरवा
डालकर, उिे चाटकर तो वे सिफघ मंह
ु ठदखा रहे हैं तम्
ु हारे िमाज को; वे यह कह रहे हैं कक
क्या तम
ु िमझते हो हमें ।

धगन्िबगघ ठहप्पी कप्रव है । एक छोटी-िी ‘पोय्ि गेदररग’, कप्रव िम्मेलन में बोल रहा है ।
िाहि पर कोई कप्रवता बोल रहा है । और उिमें अ‍लील शब्दों का ियोग कर रहा है । एक
आदमी ने खडे होकर कहा कक इिमें कौन िा िाहि है -इि गाली-गलौज का उपयोग करने
में । तो धगन्िबगघ ने उत्तर में कहा, कफर िाहि दे खोगे? अिली िाहि ठदखलाये? उि आदमी ने
कहा, ठदखलाओ। तो उिने पैंट खोल ठदया और वह नंगा खडा हो गया! और उिने उि आदमी
िे कहा कक तुम भी नंगे खडे हो जाओ, अगर िाहिी हो तो। लेककन नंगे खडे होने में कौन
िा िाहि है ? नंगे खडे होने में िाहि है , ऐिा कहने वाला आदमी नंगा खडा होने िे डरा हुआ
होना चाठहए। अन्यथा िाहि ठदखाना न पडे!

मेरे एक सशक्षक थे हाईस्कूल में । उनको जब भी मौका समल जाये, वे अपनी बहादरु ी की बात
कहे बबना नहीं रहते थे कक मैं अकेला ही मरर्ट चला जाता हूं। अंिेरी रात में , और बबल्कुल
अकेले। मैंने एक ठदन उनिे कहा कक आप ऐिी बातें न ककया करें । लडकों को शक होता है
कक आप कुछ डरपोक आदमी हैं। इन बातों का क्या बहादरु आदमी भी कहे गा? मैं अकेला ही
अंिेरी रात में चला जाता हूं यह तो सिफघ भयभीत आदमी ही कह िकता है । जजिको भय
नहीं है , उिको पता ही नहीं चलता कक कब अंिेरी रात है और कब िूरज तनकला। वह बि
चला जाता है और ठहिाब नहीं रखता!

पीछे धगन्िबगघ मझु े कभी समले तो उििे मैं कहना चाहूंगा कक तम ु ने बहादरु ी नहीं बताई,
तम
ु ने सिफघ मंह
ु बबचकाया। वह आदमी कपडे पहने हुए है , तम ु ने कपडे तनकाल ठदए, कुछ
बहादरु ी न हो गई। और इििे उलटा भी हो िकता है कक कल पांच िौ आदमी नंगे बैिे हों
और मैं कपडे पहने पहुंच जाऊाँ। और मैं कहूं कक मैं बहादरु हूं। क्योंकक मैं कपडे पहने हूं। तब
भी कोई कठिनाई नहीं है।

मैंने एक र्टना िुनी है -नैततक िाहि, मॉरल करे ज की। मैंने िुना है एक स्कूल में एक पादरी
नैततक िाहि, मॉरल करे ज क्या है , यह िमझा रहा है । उिने कहा कक 30 बच्चे प्रपकतनक पर
गए हैं। वे ठदन भर में थक गए, कफर िांझ को आकर उन्होंने भोजन ककया। 29 बच्चे तो
तत्काल अपने बबस्तर में चले गए, एक बच्चा िं डी रात थका—मादा, उिके बाद भी र्ुटने टे क
कर उिने िाथघना की। उि पादरी ने कहा इि बच्चे में ‘मॉरल करे ज’ है , इिमें नैततक िाहि
है । रात कह रही है िो जाओ, िं ड कह रही है िो जाओ, थकान कह रही है िो जाओ। 29
लडके कंबलों के भीतर हो गए हैं और एक लडका बैिकर रात की आखखरी िाथघना कर रहा है ।

महीने भर बाद वह वापि लौटा। उिने कहा, नैततक िाहि पर मैंने तुम्हें कुछ सिखाया था।
तुम्हें कुछ याद हो तो मुझे तुम कुछ र्टना बताओ। एक लडके ने कहा, मैं भी आपको एक
काल्पतनक र्टना बताता हूं। आप जैिे 30 पादरी प्रपकतनक पर गए। ठदन भर थके, भूखे—
प्यािे वापि लौटे । २९ पादरी िाथघना करने लगे, एक पादरी कंबल ओढकर िो गया। तो हम
उिको नैततक िाहि कहते हैं। जहां 29 पादरी िाथघना कर रहे हों और एक—एक की आंखें कह
रही हों कक नकघ जाओगे, अगर िाथघना न की; वहां एक पादरी कंबल ओढकर िो जाता है ।

लेककन नैततक िाहि का क्या मतलब इतना ही है कक जो िब कर रहे हों, उििे प्रवपरीत
करना नैततक िाहि हो जायेगा? सिफघ प्रवपरीत होना िाहि हो जायेगा? नहीं, प्रवपरीत होने िे
िाहि नहीं हो जाता। प्रवपरीत होना जरूरी रूप िे िही होना नहीं है ।
और अक्िर तो यह होता है कक गलत के प्रवपरीत जब कोई होता है , तब दि
ू री गलती करता
है और कुछ भी नहीं करता। अक्िर दो गलततयों के बीच में वह जगह होती है , जहां िही
होता है । एक गलती िे आदमी पें डुलम की तरह दि
ू री गलती पर चला जाता है । बीच में
िहरना बडा मुज‍कल होता है ।

मुझे लगता है , ठहप्पी जजिे प्रविोह कह रहे हैं वह प्रविोह तो है —होना चाठहए वैिा प्रविोह,
लेककन वह िततकक्रगा ज्यादा है । और िततकक्रया िे मेरा प्रवरोि है ।

एक ररबेसलयि, प्रविोही आदमी बहुत और तरह का आदमी है । एक प्रविोही आदमी इिसलए


‘नहीं’ नहीं कहता कक नहीं कहना चाठहए.। अगर नहीं कहना चाठहए, इिसलए कोई नहीं कहता
है तो यह ‘हां—हुजरू ी’ है। इिमें कोई फकघ न हुआ। वह ‘नहीं’ इिसलए कहता है कक उिे लगता
है कक नहीं कहना उधचत है । और अगर उिे लगता है कक ‘हां’ कहना उधचत है तो दि हजार
‘नहीं’ कहने वालों के बीच में भी वह ‘हां’ कहे गा, यानी वह िोचेगा।

मेरा कहना यह है कक प्रविोह अतनवायघ रूप िे प्रववेक है और िततकक्रया अप्रववेक है ।

तो ठहप्पी प्रविोह की बात करके िततकक्रया की तरफ चला जाता है । वहां िब बातें व्यथघ हो
जाती हैं।

दि
ू री बात मैंने कही कक ठहप्पी कह रहा है . िहज जीवन। लेककन िहज जीवन क्या है ? जो
मेरे सलये िहज है , वह जरूरी नहीं है कक आपके सलए भी िहज हो। जो आपके सलए िहज है ,
वह मेरे सलए जरूरी नहीं है कक िहज हो। जो एक के सलए जहर हो, वह दि
ू रे के सलए अमत

हो िकता है । अिल में एक—एक व्यजक्त का अपना— अपना होने का यही अथघ है । लेककन
ठहप्पी कह रहा है कक िहज जीवन, और िहज जीवन के भी तनयम बनाये ले रहा है ! वह कह
रहा है िहज जीवन यही है , जहां पाखाना ककया है , उिी के बगल में बैिकर खाना खा लो!

हमारे मुल्क ने भी परमहं ि पैदा ककये हैं। उनका भी िहज जीवन यही था कक पाखाना पडा
है , वहीं बैिकर खाना खा लेते। लेककन एक के सलए यह िहज हो िकता है । और दि
ू रे के
सलए यह बहुत अिहज हो िकता है कक पाखाना पडा हो वहां और वह खाना खाये। िहज
जीवन का कोई तनयम नहीं हो िकता।

लेककन ठहजप्पयों ने भी तनयम बना सलए हैं—ककतना लम्बा बाल होना चाठहए, ककि कट का
कोट होना चाठहए! ककि छींट की कमीज होनी चाठहए, पैंट की मोरी ककतनी िंकरी होनी
चाठहए! जूते कैिे होने चाठहए, चाल कैिी होनी चाठहए! गले में ठहन्दस्
ु तान की एक रुिाक्ष की
एक माला भी होनी चाठहए! उिके भी तनयम, उिकी भी िारी व्यवस्था हो गयी है ! अिल में
आदमी कुछ ऐिा है कक वह व्यवस्था के बाहर हो ही नहीं पाता। इिर िे व्यवस्था तोडता है ,
उिर िे व्यवस्था बना लेता है । यहां मैं ठहजप्पयों िे राजी नहीं हूं।

मैं मानता हूं कक एक िहज दतू नया िब तरह के लोग को स्वीकार करे गी। यानी वह इि
आदमी को भी स्वीकार करे गी, जजिको हम िमझते हों कक िहज नहीं है । लेककन उिके सलए
वह िहज होना हो िकता है । िबका स्वीकार ही िहजता का आिार बन िकता है ।

लेककन ठहप्पी के सलए िब स्वीकार नहीं है । वह दि


ू रों को ऐिे ही दे खता है , जैिे कक दि
ू रे
उिको दे खते हैं। कंडेमनेशन िे, तनन्दा की नजर िे। दि
ू रे लोगों को वह कहता है ‘स्कवॉयर’,
चौखटे लोग। वह स्वयं भर स्कवॉयर नहीं है । बाकी जजतने लोग हैं , वे चौखटे हैं—जों दलतर
जा रहे हैं, स्कूल में पढा रहे हैं, दक
ु ान कर रहे हैं, पतत हैं, प्रपता हैं। लेककन ककिी के सलए पतत
होना उतना ही िहज हो िकता है , जजतना ककिी के सलए िेमी होना। और ककिी के सलए एक
ही िी जीवन भर के सलए िहज हो िकती है , जजतना ककिी अन्य का स्री को बदल लेना।
लेककन ठहप्पी यठद कहे कक िी का बदलना ही िहज है , तब कफर दि
ू री अतत पर वही भल

शुरू हो गयी। इिसलए मैं इि िूर में भी उनिे राजी नहीं हूं। मैं राजी हूं कक ित्येक व्यजक्त
का अंगीकार होना जरूरी है ।

और अंततम बात। जब कोई वादों को भी जानकर और चेष्टा िे प्रवरोि करता है , तब चाहे वह


ककतना ही कहे कक वाद नहीं है , वाद बनना शुरू हो जाता है । जजिको हम अ—कप्रवता कहते
हैं, वह भी कप्रवता ही बन जाती है । जजिको जापान में अ—नाटक, ‘नो ड्रामा’ कहा जाता है , वह
भी ड्रामा है । और जजिको हम अ—वाद कहते हैं, वह भी नये तरह का वाद हो जाता है । अिल
में मनुष्य जब तक वाद का प्रवरोि भी करे गा तो भी वाद तनसमघत हो जायेगा। अगर अ—वादी
ककिी को होना है तो उिे तो मौन ही होना पडेगा। उिे वाद के प्रवरोि का भी उपाय है ।
इिसलए अ—वादी तो दतू नया में सिफघ वे ही लोग थे, जो चप
ु ही रह गये। क्योंकक बोले तो
वाद बन जाये।

अब नागाजुन
घ है , वह िारे वादों का खंडन करता है । कोई उििे पूछे कक तुम्हारा वाद क्या है
तो वह कहता है , मेरा कोई वाद नहीं है । वह िबका खण्डन करता है और उिका अपना कोई
वाद नहीं है । लेककन तब िबका खंडन करना भी वाद बन िकता है ।

अिल में एंटी—कफलािफी भी कफलािफी ही है । नान—कफलािकफक होना बहुत मुज‍कल है ।


एंटी—कफलािकफक होना बहुत आिान है । दशघन के प्रवरोि में होने में कठिनाई नहीं है । क्योंकक
एक दशघन प्रवकसित हो जायेगा, जो दशघन का प्रवरोि करे गा। लेककन नान—कफलािकफक होना—
दशघन के ऊपर चले जाना, बबयांड—पार चले जाना तो सिफघ समजस्टक के सलए िंभव है ,
रहस्यवादी के सलए िंभव है , िंत के सलए िं० है । जो कहता है , ित्य के, सिद्िान्त के, वाद के
पार। इतना ही नहीं, वह कहता है बुद्धि के पार, प्रवचार के पार, मन के पार, जहां मैं ही नहीं
हूं वहां। जब िबके पार जो शेष रह जाता है , वही है । लेककन उिे तो कैिे कहें । अ ठहप्पी वहां
नहीं पहुंचा, लेककन कभी पहुंच िकता है ।

कफर ठहप्पी बडी जमात है । उिमें वगघ भी हैं। अगर हमें रास्ते में एक पीत वस्रिारी सभक्षु
समल जाये तो उिे दे खकर बुद्ि को नहीं तौलना चाठहए। काशी में जो ठहप्पी भीख मांग रहा
है िडक पर, उिे दे खकर डा. ततमोती सलयरी को या डा. पल्िघ को नहीं तौलना चाठहये। वे बडे
अद्भुत लोग हैं। लेककन िभी वगघ के लोग इक्िे हो जाते हैं।

ठहजप्पयों का एक श्रेष्ि वगघ तनज‍चत ही पार जा रहा है । और इि बात की िंभावना है कक


पज‍चम में समजस्टसिज्य का जन्म ठहजप्पयों का जो श्रेष्ितम वगघ है , उििे पैदा होगा। एक
नये वैज्ञातनक यग
ु में भी, बद्
ु धि को आग्रह करने वाले यग
ु में भी, बद्
ु धि—अतीत की ओर
इशारा करने वाला एक वगघ पैदा होगा।

लेककन ये दो चार ठहजप्पयों की बात है । बाकी जो बडा िमूह है , वह भीड— भाड है । वह सिफघ
र्र िे भागे हुए छोकरों का िमूह है । कोई पढना नहीं चाहता है , कोई बाप िे क्रोि में है ।
कोई ककिी लडकी िे प्रववाह करना चाहता है । कोई गांजा पीना चाहता है । कोई कैिे भी रहना
चाहता है । कोई िुबह दि बजे तक िोना चाहता है । इन िारे लोगों का िमूह है । इिसलए मैं
दो बातें अंत में कह दं ।ू

एक यह कक ठहप्पी में जो श्रेष्ितम फूल हैं, उनिे तो मुझे आशा बंिती है कक उनिे एक नये
तरह के समजस्टसिज्य, एक नये तरह के रहस्य का जन्म होगा।

लेककन ठहजप्पयों में जो नीचे का वगघ है , उनिे कोई आशा नहीं बंिती। वे सिफघ र्र—भगोडे हैं।
ठहप्पी शब्द भी ‘ठहप’ िे ही बनता है , अथाघत पीि ठदखाकर भाग जाने वाले। ऐिे भगोडे थोडे
ठदन में वाप्रपि भी लौट जाते हैं। वे र्र लौट जायेंगे ही।

इिसलए आपको 35 िाल िे ऊपर का ठहप्पी मुज‍कल िे समलेगा,नीचे का ही समलेगा।


अधिकतर तो टीन एजिघ, उन्नीि वषघ के भीतर के हैं। क्योंकक जैिे ही उनको एक बच्चा हुआ
और िेम हो गया एक िी िे कक र्र बनाने का िवाल शुरू हो जाता है । कफर उन्हें नौकरी
चाठहए। कफर वे वापि लौट आते हैं। स्कवॉयर लोगों की दतु नया में , चौखटे लोगों की दतू नया
में वे कफर वापि आ जाते हैं। कफर ककिी दलतर में नौकरी। कफर र्र है , कफर गह
ृ स्थी है , कफर
िब चलने लगता है ।
लेककन ऐिा मैं जरूर िोचता हूं कक ठहजप्पयों ने एक िवाल खडा ककया है िारी मनुष्य
िंस्कृतत पर और उि िवाल के उत्तर में भप्रवष्य के सलए बडे िंकेत हो िकते हैं। इिसलए
िोचने योग्य है हमारे सलए बहुत। ठहन्दस्
ु तान तो अभी ठहप्पी नहीं पैदा कर िकता।

गरीब कौम ठहप्पी पैदा नहीं करती। िमद्


ृ धि ही ठहप्पी पैदा करती है ।

गौतम बुद्ि राजा के बेटे है । महावीर राजा के बेटे हैं। जैतनयों के िब तीथिंकर राजाओं के बेटे
हैं। राम, कृष्ण, िब राजाओं के बेटे हैं। जहां िब समल जाता है , वहां िे बगावती और आगे
जाने वाला आदमी पैदा होता है ।

ठहप्पी का अभी यहां भारत में िवाल नहीं है । अभी हम ठहप्पी भी पैदा करें गे तो वह सिफघ
बाल बढाने वाला आदमी होगा और कुछ भी नहीं। उिको कहो कक एक आदमी दि हजार
रुपये दे रहा है , लडकी की शादी के सलए तो वह कहे गा, कफर र्ोडा कहां है !

गरीब कौम ठहप्पी पैदा नहीं कर िकती, िमद्


ृ ि कौम ही कर िकती है । अिल में इिका
मतलब यह हुआ कक ‘वी केन नाट अफडघ’—यह हमारे सलए महं गा िौदा है । यह दख ु द है । यह
िुखद नहीं है । हम अभी ठहप्पी पैदा नहीं कर िकते, यह बडे दख
ु की बात है । हम गरीब हैं
बहुत। अभी हम उि जगह नहीं हैं, जहां कक हमारे लडके कुछ भी न करें , तो जी िकें।

अगर दो लाख आदमी बबना कुछ ककये जी रहे हैं, तो उिका मतलब है कक िमाज िमद्
ृ ि,
एस्थअ
ू ट
ं है , िमाज में बहुत पैिा है । एक ठहप्पी है , वह दो ठदन काम कर आता है गांव में ,
और महीने भर के सलए कमा है । वह 28 ठदन पडा रहता है , एक वक्ष ृ के नीचे ढोल बजाता
रहता है । हरर भजन करता रहता है। हरर कीतघन करता रहता है।

गरीब कौम ऐिा प्रविोह नहीं पैदा कर िकती। लेककन िदा के सलए तो हम गरीब नहीं रहें गे।
इिसलए छारों ने आकर कहा कक ठहजप्पयों पर कुछ कहें तो मैंने कहा अच्छा है , आज नहीं
कल ठहप्पी हम भी तो पैदा करें गे ही। तो उिके पहले िाफ हो जाना चाठहये कक ठहप्पी याने
क्या?

वैिे इि दे श ने अपनी िमद्


ृ धि के ठदनों में बहुत तरह के ठहप्पी पैदा ककए। जजनका पज‍चम
को कुछ पता भी नहीं धगन्िबगघ जब काशी आया तो एक िंन्यािी िे उिको समलाने ले गए।
उि िंन्यािी िे जब कहा गया कक ‘? ठहप्पी है तो वह िंन्यािी खब
ू हं िा और उिने कहा,
तुम तो सिफघ ठहप्पी हो, हम महाठहप्पी हैं। हम काशीवािी हैं और काशी है नामी महाठहप्पी
भगवान शंकर की भूसम। शंकर जैिे परम स्वतन्र व्यजक्तत्व भारत ने कभी पैदा ककए थे।
लेककन वह िमद्
ृ ि ठदनों की पुरानी याददा‍त है । भप्रवष्य में हम कफर कभी ठहप्पी पैदा कर
िकते हैं।

लेककन िोचना तो बहुत जरूरी है । और िोचकर यह दे खना जरूरी है कक ठहजप्पयों की इि


र्टना में क्या मूल्यवान र्ठटत हो रहा है मनुष्य की चेतना के सलए।

मनुष्य—चेतना क्रांतत के एक कगार पर खडी है और एक तनणाघयक छलांग अतत तनकट है ।

बाह्य प्रवस्तार अब िाथघक नहीं है । अंति प्रवस्तार की खोज बेचन


ै ी िे चल रही है अनेक
आयामों में ।

स्वयं की भावी चेतना को खोज रहा है । िब


ु ह होने के पहले अंिेरा भी तनज‍चत ही गहन हो
गया है , लेककन ‘स्वणघ—िभात की योजना भी समल रही है ।

ओशो
िंभोग िे िमाधि कक ओर

सभोग से समाधि की और –43


Posted on सितम्बर 17, 2013by sw anand prashad

युिक कौन—ग्याहरिां प्रिचन


युवकों के सलए कुछ भी बोलने के पहले यह िीक िे िमझ लेना जरूरी है कक युवक का अथघ
क्या है ?

युवक का कोई भी िंबंि शरीर की अवस्था िे नहीं है । उम्र िे युवा है । उम्र का कोई भी
िंबंि नहीं है । बढ
ू े भी यव
ु ा हो िकते हैं, और यव
ु ा भी बढ
ू ा हो िकते हैं। लेककन ऐिा कभी—
कभी ही होता है कक बढ
ू े यव
ु ा हो, ऐिा अकिर होता है कक यव
ु ा बढ
ू े होते हैं। और इि दे श में
तो यव
ु क पैदा होते हैं यह िंठदग्ि बात है ।

युवा होने का अथघ है —धचत्त की एक दशा, धचत्त की एक जीवंत दशा, सलप्रवंग स्टे ट ऑफ माइंड।
बूढे होने का अथघ है —धचत्त की मरी हुई दशा।
‘इि दे श में युवक पैदा ही शायद नहीं होते हैं। ‘जब ऐिा मैं कहता हूं तो उिका अथघ यही है
कक हमारा धचत्त जीवंत नहीं है । वह जो जीवन का उत्िाह, वह जो जीवन का आनंद और
िंगीत हमारे हृदय की वीणा पर होना चाठहए, वह नहीं है । आंखों में , िाणों में , रोम—रोम में ,
वह जो जीवन को जो। की उद्दाम लालिा होनी चाठहए, वह हममें नहीं है । जीवन को जजयें,
इििे पहले ही हम जीवन िे उदाि हो जाते हैं। जीवन को जानें , इििे पहले।। हम जीवन को
जानने की जजज्ञािा की हत्या कर दे ते हैं।

मैंने िुना है , स्वगघ के एक रे स्तरां में एक ठदन िुबह एक छोटी—िी र्टना र्ट गई। उि
रे स्तरां में तीन अदभुत लोग एक टे बबल के आिपाि बैिे हुए थे—गौतम बुद्ि, कन्लयूसशयि,
और लाओत्िे। वे तीनों स्वगघ के रे स्तरां में बैि कर गपशप करते थे। कफर एक अप्िरा जीवन
का रि लेकर आयी

उि अप्िरा ने कहा, जीवन का रि प्रपयेंगे?

बुद्ि ने िुनते ही आंख बंद कर ली और कहा, जीवन व्यथघ है , अिार है , कोई िार नहीं।

कन्लयसू शयि ने आिी आंख बन्द कर ली और आिी खल


ु ी रखी। वह गोल्डन मीन को
मानता था, हमेशा मध्य—मागघ। उिने थोडी—िी खल
ु ी आंखों िे दे खा और कहा, एक र्ंट
ू लेकर
चखग
ंू ा। अगर आगे भी पीने योग्य लगा तो प्रवचार करूंगा। उिने थोडा—िा जीवन—रि लेकर
चखा और कहा, न पीने योग्य है , न छोडने योग्य; कोई िार भी नहीं, कोई अिार भी नहीं।
उिने मध्य की बात कही।

लाओत्िे ने पूरी की पूरी िुराही हाथ में ले ली और जीवन—रि को कुछ कहे बबना पूरा पी
गया। और तब नाचने लगा और कहने लगा, आश्रयघ कक गौतम तुमने बबना प्रपये ही इन्कार
कर ठदया और आ‍चयघ कक कन्लयूसशयि, तुमने थोडा िा चखा। लेककन कुछ चीजें ऐिी होती
हैं कक पूरी ही जानी जायें तो ही जानी जा िकती हैं। थोडा चखने िे उनका कोई भी पता
नहीं चलता।

अगर ककिी कप्रवता का एक छोटा—िा टुकडा ककिी को ठदया जाये—दो पंजक्तयों का, तो उििे
पूरी कप्रवता के िंबंि में कुछ भी पता नहीं चलता। एक उपन्याि का पन्ना फाडकर ककिी
को दे ठदया जाये, तो उििे पूरे उपन्याि के िंबंि में कोई पता नहीं चलता है । कोई वीणा
पर िंगीत बजाता हो, उिका एक स्वर ककिी को िुनने ० समल जाये तो उििे उिको,
वीणाकार ने क्या बजाया था, इिका कुछ भी पता नहीं चलता। एक बडे धचर का छोटा—िा
टुकडा फाडकर ककिी को दे ठदया जाये, तो उिे बडे धचर में क्या है , उि छोटे टुकडे िे कुछ
भी पता नहीं चल िकता।

कुछ चीजें हैं, जजनके थोडे स्वाद िे कुछ पता नहीं चलता, जजन्हें उनकी होलनेि में , उनकी
िमग्रता, टोटे सलटी ” ही पीना पडता है , तभी पता चलता है ।
लाओत्िे कहने लगा, नाच उिा हूं मैं। अदभुत था जीवन का रि।

और अगर जीवन का रि भी अदभुत नहीं है तो अदभुत क्या होगा? जजनके सलए जीवन का
रि ही व्यथघ है , उिके सलए िाथघकता कहां समलेगी? कफर वे खोजें और खोजें। वे जजतना
खोजेंगे, उतना ही खोते चले जायेंगे। क्योंकक जीवन ही है एक िारभूत, जीवन ही है एक रि,
जीवन ही है एक ित्य। उिमें ही तछपा है िारा िौन्दयघ, िारा आनंद, िारा िंगीत।

लेककन भारत में युवक उि जीवन के उद्दाम वेग िे आपूररत नहीं मालूम पडते और न ऐिा
लगता है कक उनके है में , उनके िाणों में उन सशखरों को छूने की कोई आकांक्षा है , जो जीवन
के सशखर हैं। न ऐिा लगता है कक अतीत सशखरों को खोजने के सलए िाणों में कोई िबल
पीडा है —उन सशखरों को जो जीवन के सशखर हैं, जीवन के अंिेरे को, न जीवन के िकाश को,
न जीवन की गहराई को, न जीवन की ऊंचाई को, न जीवन की को, न जीवन की जीत को,
कुछ भी जानने का जो उद्दाम वेग, जो गतत, जो ऊजाघ होनी चाठहए, वह यव
ु क के पाि नहीं
है । इिसलए यव
ु क भारत में हैं—ऐिा कहना केवल औपचाररकता है , फासमघसलटी है ।

भारत में युवक नहीं हैं, भारत हजारों िाल िे बूढा दे श है । उिमें बूढे पैदा होते हैं, बूढे ही जीते
हैं और बूढे मरते हैं। न बच्चे पैदा होते हैं, न जवान पैदा होते हैं।

हम इतने बूढे हो गये है कक हमारी जडें ही जीवन के रि को नहीं खींचती और न हमारी


शाखाएं जीवन के आकाश में फैलती हैं और न हमारी शाखाओं में जीवन के पक्षी बिेरा करते
हैं और न हमारी शाखाओं पर जीवन का िूरज उगता है और न जीवन का चांद चांदनी
बरिात। है , सिफघ िल
ू जमती जाती है , जडें िूखती जाती हैं, पत्ते कुम्हलाते जाते हैं। फूल पैदा
नहीं होते, फल आते नहीं हैं। वक्ष
ृ हैं, न उनमें पत्ते हैं, न फूल हैं। िूखी शाखाएं खडी हैं। ऐिा
अभागा हो गया है यह दे श!

जब यव
ु कों के िंबंि में कुछ बोलना हो तो पहली बात यही ध्यान दे नी जरूरी है । यठद यव
ु क
कोई शारीररक अवस्था है , तब तो हमारे पाि भी यव
ु क हैं। यव
ु क अगर कोई मानसिक दशा
है , स्टे ट आफ माइंड है , तो यव
ु क हमारे पाि नहीं हैं।

अगर युवक हमारे पाि होते तो दे श में इतनी गंदगी, इतनी िडांि, इतना िडा हुआ िमाज
जीप्रवत रह िकता था? कभी की उन्होंने आग लगा दी होती। अगर युवक हमारे पाि होते, तो
हम एक हजार िाल तक गुलाम रहते? कभी की गुलामी को उन्होंने उखाड फेंका होता। अगर
युवक हमारे पाि होते तो हम हजारों—हजारों िाल तक दररिता और दीनता और दख
ु में
बबताते? हमने कभी की दररिता समटा दी होती या खद
ु समट गये होते।
लेककन नहीं, युवक शायद नहीं हैं। युवक हमारे पाि होते तो इतना पाखंड, इतना अंिप्रव‍वाि
पलता इि दे श में ? युवक बरदा‍त करते? एक—एक करोड रुपये यज्ञों में जलाने दे ते, युवक
अगर मुल्क के पाि होते? अब मैं िुनता हूं कक और भी करोडों रुपये जलाने का इंतजाम
करने के सलए िाि—ु िंन्यािी लालातयत हैं। और युवक ही जाकर चंदा इक्िा करें गे और
वालंठटयर बनकर उि यज्ञ को करवाये जायेंगे, जहां दे श की िंपप्रत्त जलेगी तनपट गंवारी में !
अगर युवक मुल्क में होते तो ऐिे लोगों को कक्रसमनल्ि कहकर, पकडकर अदालतों में खडा
ककया होता, जो मल्
ु क की िंपप्रत्त को इि भांतत बबाघद करते हैं। एक करोड रुपये की िंपप्रत्त
जलाने में जो आदमी जजतना अपरािी हो जाता है , उििे भी ज्यादा अपरािी एक करोड रुपये
यश में जलाने िे होता है। क्योंकक एक करोड रुपये की िंपप्रत्त को जलाने वाला थोडा बहुत
अपराि भी अनभ ु व करे गा। यश में जलाने वाले पायि कक्रसमनल है , पप्रवर अपरािी हैं! उनको
अपराि भी नहीं मालम
ू पडता है ।

लेककन युवक मुल्क में नहीं हैं, इिसलए ककिी भी तरह की मूढता चलती है , इिसलए मुल्क में
ककिी भी तरह का अंिकार चलता है । युवकों के होने का िबूत नहीं समलता दे श को दे खकर!
क्या चल रहा है दे श में ? युवक ककिी भी चीज पर राजी हो जाते हैं!

वह युवक कैिा जजिके भीतर प्रविोह न हो, ररवोल्युशन न हो? युवक होने का मतलब क्या
हुआ उिके भीतर? जो गलती के िामने झुक जाता हो, उिको युवक कैिे कहें ? जो टूट जाता
हो लेककन झुकता न हो, जो समट जाता हो लेककन गलत को बरदा‍त न करता हो, वैिी
जस्पररट, वैिी चेतना का नाम ही युवक होना है । टु बी यंग—युवा होने का एक ही मतलब है ।
िंभोग िे िमाधि की ओरा

वैिी आत्मा प्रविोही की, जो झक


ु ना नहीं जानती, टूटना जानती है , जो बदलना चाहती है । जो
जजंदगी को नयी ठदशओ में , नये आयामों में ले जाना चाहते हैं, जो जजंदगी को पररवततघत
करना चाहते हैं। क्रांतत की वह उद्दाम आकांक्षा ही यव
ु ा होने के लक्षण हैं।

कहां है क्रांतत की उद्दाम आकांक्षा?

एक प्रवचारक भारत आया था, काउं ट केिरले। लौटकर उिने एक ककताब सलखी है । उि
ककताब को मैं पढता तो मझ
ु े बहुत है रानी होने लगी। उिने एक वाक्य सलखा है , जो मेरी
िमझ के बाहर हो गया, क्योंकक वाक्य कुछ मालूम पडता था, जो कक कंट्ाडडक्टरी है ,
प्रवरोिाभािी है ।

कफर मैंने िोचा कक छापेखाने की कोई भूल हो गयी होगी। तो ख्याल आया कक ककताब जमघनी
में छपी है । में छापेखाने की तो भूलें होती नहीं। वह तो हमारे ही दे श में होती हैं। यहां तो
ककताब छपती है , उिके ऊपर —छ: पन्ने की भूल—िुिार छपी रहती है और उन पांच—छह
पन्नों को गौर िे पठढये तो उिमें भूलें समल जायेंगी! ककताब जमघनी में छपी है , भूल नहीं हो
िकती।

कफर मैंने गौर िे पढा, कफर बार—बार िोचा, कफर ख्याल आया, भूल नहीं की है , उि आदमी ने
मजाक की है । सलखा है कक मैं ठहन्दस् ु तान गया। मैं एक नतीजा लेकर वापि आया हूं
‘इजण्डया इज ए ररच कंट्ी, व्हे अर पीपुल सलव। ‘ ठहन्दस्
ु तान एक अमीर दे श है , जहां गरीब
आदमी रहते हैं!

मैं बहुत है रान हुआ, यह कैिी बात है ! अगर दे श अमीर है तो गरीब आदमी क्यों रहते हैं
वहां? और दे श अमीर है तो वहां के लोग गरीब क्यों हैं? लेककन वह मजाक कर रहा है । वह
यह कह रहा है कक ठहन्दस्
ु तान पाि जवानी नहीं है , जो कक दे श के तछपे हुए िन को िगट
कर दे और दे श को िनवान बना दे । दे श में िन तछपा हुआ है , लेककन दे श बढ
ू ा है ।

बूढा कुछ कर नहीं िकता। िन खजाने में पडा रह जाता है , का भूखा मरता रहता है । िन
जमीन में दबा जाता है , बूढा भूखा मरता है ! दे श का है , इिसलए गरीब है । दे श जवान हो तो
गरीब होने का कोई कारण नहीं। दे श के पाि क्या कमी है ?

लेककन अगर हमें कुछ िूझता है तो एक ही बात िूझती है कक जाओ दतू नया में और भीख
मांगो। जाओ अमरीका, जाओ रूि, हाथ फैलाओ िारी दतु नया में । सभखारी होने में हमें शमघ भी
नहीं आती! हम जवान हैं?

रास्ते पर एक जवान, स्वस्थ आदमी भीख मांगता हो तो हम उििे कहते हैं कक जवान होकर
भीख मांगते हो? हम कभी नहीं िोचते कक हमारा पूरा मुल्क िारी दतु नया में भीख मांग रहा
है ! हमें जवान होने का हक रह है ? िडक पर भीख मांगते आदमी को कोई भी कह दे ता है कक
जवान होकर भीख मांगते हो। हम जानते है कक होकर भीख मांगना लज्जा िे भरी हुई बात
है , अपमानजनक है । जवान को पैदा करना चाठहए। हां, बढ
ू ा छ मांगता हो तो हम क्षमा कर
िकते हैं, अब उििे आशा नहीं पैदा करने की।

िारी दतु नया में हम भीख मांग रहे हैं! 1947 के बाद अगर हमने कोई महान कायघ ककया है तो
वह यही कक िारी दतू नया िे भीख मांगने में िफलता पायी है ! शमघ भी नहीं आती हमें !
दतू नया क्या िोचती होगी कक बूढा दे श है , कुछ कर नहीं िकता, सिफघ भीख मांग िकता है !
लेककन उन्हें पता नहीं है कक हम पहले िे ही पैदा करने की बजाय, भीख मांगने को आदर
दे ते रहे हैं। ठहन्दस्
ु तान में जो भीख मांगता है , वह आदृत है । ब्राह्मण हजार िाल तक दे श में
आधश्रत रहे , सिफघ इिसलए कक वे पैदा नहीं करते और भीख मांगते हैं।

और ठहन्दस्
ु तान ने बडे—बडे सभखारी पैदा ककये हैं! महापुरुष—बुद्ि िे लेकर प्रवनोबा तक
भीख मांगने वाले महापुरुष! अगर िारा मुल्क भीख मांगने लगा हो तो हजघ क्या है ? हम िब
महापुरुष हो गये हैं। महापुरुषों का दे श है , िारा दे श महापुरुष हो गया है । हम िारी दतु नया में
भीख मांग रहे हैं! सभक्षा—वप्रृ त्त बडी िासमघक वप्रृ त्त है !

पैदा करने में ठहंिा भी होती है , पैदा करने में हमें श्रम भी उिाना पडता है । और कफर हम
पैदा क्यों करें ? जब भगवान ने हमें पैदा कर ठदया है तो भगवान इंतजाम करे । जजिने चोंच
दी है , वह ऋ दे गा। हम अपनी चोंच को ठहलाते कफरें गे िारी दतु नया में कक चन
ू दो, क्योंकक
हमें पैदा ककया है और जो हमें भीख न दें गे, हम गासलयां दें गे उन्हें कक तम
ु भौततकवादी हो—
यू मैटीररयासलस्ट—तम
ु भौततकवाद में मरे जा रहे हो, हम आध्याजत्मक लोग हैं! हम इतने
आध्याजत्मक हैं कक हम पैदा भी नहीं करते! हम खाते हैं; खाना आध्याजत्मक काम है , पैदा
करना भौततक काम है ! भोगना आध्याजत्मक काम है ! श्रम? श्रम आध्याजत्मक लोग कभी नहीं
करते, हीन आत्माएं श्रम करती हैं! महात्मा भोग करते हैं। पूरा दे श महात्मा हो गया है !

1962 में चीन में अकाल की हालत थी। बब्रटे न के कुछ भले मानुषों ने एक बडे जहाज पर
बहुत—िा िामान, बहुत—िा भोजन, कपडे, दवाइयां भरकर वहां भेजे। हम अगर होते तो
चन्दन ततलक लगाकर फूल मालाएं पहनाकर उि जहाज की पूजा करते, लेककन चीन ने
उिको वापि भेज ठदया और जहाज पर बडे—बडे अक्षरों में सलख ठदया, हम मर जाना पिंद
करें गे, लेककन भीख स्वीकार नहीं कर िकते।

शक होता है कक यहां कुछ जवान लोग होंगे!

जवान ही यह ठहम्मत कर िकता है कक भख


ू े मरते दे श में , और आया हो भोजन बाहर िे
और सलख दे जहाज पर कक हम भख
ू ों मर िकते हैं, लेककन भीख नहीं मांग िकते।

भूखा मरना इतना बुरा नहीं है , भीख मांगना बहुत बुरा है । लेककन जवानी हो तो बुरा लगे,
भीतर जवान खनू हो तो चोट लगे, अपमान हो। हमारा अपमान नहीं होता! हम शांतत िे
अपमान को झेलते चले जाते हैं! हम बडे तटस्थ हैं , अपमान को झेलने में कुछ भी हो जाये,
हम आंख बंद करके झेल लेते हैं। यह तो िंतोष का, शांतत का लक्षण है कक जो भी हो, उिको
झेलते रहो, बैिे रहो चप
ु चाप और झेलते रहो।
हजारों िाल िे दे श दख
ु झेल—झेल कर मर गया तो कैिे हम स्वीकार कर लें कक दे श के
पाि जवान आदमी हैं, अथवा युवक हैं। युवक दे श के पाि नहीं हैं।

और इिसलए पहला काम तथाकधथत युवकों के सलए.. जो उम्र िे युवक ठदखायी पडते हैं, वह
यह है कक वह मानसिक यौवन को पैदा करने की दे श में चेष्टा करें । वे शरीर के यौवन को
मानकर तप्ृ त न हो जायें। आजत्मक यौवन, स्िीचुअल यंगनेि पैदा करने का एक आदोलन
िारे दे श में चलना चाठहए। हम इििे राजी नहीं होंगे कक एक आदमी शकल िूरत िे जवान
ठदखायी पडता है तो हम जवान मान लें । हम इिकी कफक्र करें गे कक ठहन्दस्
ु तान के पाि
जवान आत्मा हो।

स्वामी राम भारत के बाहर यारा में पहली दफा गये थे। जजि जहाज पर वे यारा कर रहे थे,
उि पर एक बढ
ू ा जमघन था, जजिकी उम्र कोई 90 िाल होगी। उिके िारे बाल िफेद हो चक
ु े
थे, उिकी आंखों में 90 िाल की स्मतृ त ने गहराइयां भर दी थीं, उिके चेहरे पर झरू रघ यां थीं
लम्बे अनभ
ु वों की; लेककन वह जहाज के डैक पर बैिकर चीनी भाषा िीख रहा था!

चीनी भाषा िीखना िािारण बात नहीं है , क्योंकक चीनी भाषा के पाि कोई वणघमाला नहीं है ,
कोई अ ब ि नहीं होता चीनी भाषा के पाि। वह प्रपक्टोररयल लैंग्वेज है , उिके पाि तो धचर
हैं। िािारण आदमी को िािारण शान के सलए कम िे कम पांच हजार धचरों का ज्ञान चाठहए
तो एक लाख धचरों का ज्ञान हो, तब कोई आदमी चीनी भाषा का पंडडत हो िकता है । दि—
पन्िह वषघ का श्रम मांगती है चीनी भाषा। 90 िाल का बूढा िुबह िे बैिकर िांझ तक चीनी
भाषा िीख रहा है !

रामतीथघ बेचन
ै हो गये। यह आदमी पागल है , 90 िाल की उि में चीनी भाषा िीखने बैिा है ,
कब िीख पायेगा? आशा नहीं कक मरने के पहले िीख जायेगा। और अगर कोई दरू की
कल्पना भी करे कक यह आदमी जी जायेगा दि—पन्िह िाल, िौ िाल पार कर जायेगा, जो
कक भारतीय कभी कल्पना नहीं कर िकता कक िौ िाल पार कर जायेगा। 35 िाल पार करना
तो मुज‍कल हो जाता है , िौ कैिे पार करोगे? लेककन िमझ लें भूल—चक
ू भगवान की कक यह
िौ िाल िे पार तनकल जायेगा तो भी फायदा क्या है ? जजि भाषा को िीखने में 15 वषघ खचघ
हों, उिका उपयोग भी तो दि—पच्चीि वषघ करने का मौका समलना चाठहए। िीखकर भी
फायदा क्या होगा?

दो तीन ठदन दे खकर रामतीथघ की बेचन


ै ी बढ गयी। वह का तो आंख उिाकर भी नहीं दे खता
था कक कहां क्या हो रहा है , वह तो अपने िीखने में लगा था। तीिरे ठदन उन्होंने जाकर उिे
ठहलाया और कहा कक महाशय, क्षमा कररये, मैं यह पूछता हूं कक आप यह क्या कर रहे हैं?
इि उम्र में चीनी भाषा िीखने बैिे हैं? कब िीख पाइयेगा? और िीख भी सलया तो इिका
उपयोग कब कररयेगा? आपकी उम्र क्या है ?

तो उि बूढे ने कहा, उम्र? मैं काम में इतना व्यस्त रहा कक उम्र का ठहिाब रखने का कुछ
मौका नहीं समला। उम्र अपना ठहिाब रखती होगी। हमें फुिघत कहां कक उम्र का ठहिाब रखें ।
और फायदा क्या है उम्र का ठहिाब रखने में ? मौत जब आनी है , तब आनी है । तुम चाहे
ककतने ठहिाब रखो, कक ककतने हो गये, उििे कोई फकघ पडने वाला नहीं है । मुझे फुिघत नहीं
समली उम्र का ठहिाब रखने की, लेककन जरूर नब्बे तो पार कर गया हूं।

रामतीथघ ने कहा कक कफर यह िीखकर क्या फायदा? बढ


ू े हो। अब कब िीख पाओगे? उि बढ
ू े
आदमी ने क्या कहा? उिने कहा, मरने का मझ ु े ख्याल नहीं आता, जब तक मैं िीख रहा हूं।
जब िीखना खत्म हो जाएगा तो िोचग ंू ा मरने की बात। अभी तो िीखने में जजंदगी लगा रहा
हूं अभी तो मैं बच्चा हूं क्योंकक मैं िीख रहा हूं। बच्चा िीखता है । लेककन उि बढ
ू े ने कहा
कक चकंू क मैं िीख रहा हूं इिसलए बच्चा हूं।

यह आध्याजत्मक जगत में पररवतघन हो गया।

उिने कहा, चकूं क मैं िीख रहा हूं और अभी िीख नहीं पाया, अभी तो जजंदगी की पािशाला में
िवेश ककया है । अभी तो बच्चा हूं अभी िे मरने की कैिे िोचें ? जब िीख लूंगा, तब िोचग
ूं ा
मरने की बात।

कफर उि बूढे ने कहा, मौत हर रोज िामने खडी है । जजि ठदन पैदा हुआ था, उि ठदन उतनी
ही िामने खडी थी, जजतनी अभी खडी है । अगर मौत िे डर जाता तो उिी ठदन िीखना बंद
कर दे ता। िीखने का क्या फायदा नहीं था? मौत आ िकती है कल, लेककन 90 िाल का
अनभ
ु व मेरा कहता है कक मैं 90 िाल मौत को जीता हूं। रोज मौत का डर रहा है कक कल
आ जायेगी, लेककन आयी नहीं। 90 िाल तक मौत नहीं आयी तो कल भी कैिे आयेगी? 90
िाल का अनभ
ु व कहता है कक अब तक नहीं आयी तो कल भी कैिे आ पायेगी? अनभ
ु ब करे
मानता हूं। 90 िाल तक डर कफजल
ू था। वह बढ
ू ा पछ
ू ने लगा रामतीथघ िे आपकी उम्र क्या
है ?

रामतीथघ तो र्बरा ही गये थे उिकी बात िुनकर। उनकी उम्र केवल 30 वषघ थी।

उि बूढे ने कहा, तुम्हें दे खकर, तुम्हारे भय को दे खकर मैं कह िकता हूं, भारत बूढा क्यों हो
गया। तीि िाल का आदमी मौत की िोच रहा है ! मर गया। मौत की िोचता कोई तब है ,
जब मर जाता है । तीि िाल का आदमी िोचता है कक िीखने िे क्या फायदा, मौत करीब आ
रही है ! यह आदमी जवान नहीं रहा। उि बूढे ने कहां, मैं िमझ गया कक भारत बूढा क्यों हो
गया है ? इन्हीं गलत िारणाओं के कारण।

भारत को एक युवा अध्यात्म चाठहए। युवा अध्यात्म। बूढा अध्यात्म हमारे पाि बहुत है ।
हमारे पाि ऐिा अध्यात्म है , जो बूढा करने की कीसमया है , केसमस्ट्ी है । हमारे पाि ऐिी
आध्याजत्मक तरकीबें हैं कक ककिी भी जवान के आिपाि उन तरकीबों का उपयोग करो, वह
फौरन बूढा हो जायगा। हमने बूढे होने का राज खोज सलया है , िीक्रेट खोज सलया है । बूढे होने
का क्या राज है ?

बढ
ू ा होने का राज है : जीवन पर ध्यान मत रखो, मौत पर ध्यान रखो। यह पहला िीक्रेट है ।
जजंदगी पर ध्यान मत दे ना, ध्यान रखना मौत पर। जजंदगी की खोज मत करना, खोज करना
मोक्ष की। इि प्
ृ वी की कफक्र मत करना, कफक्र करना परलोक की, स्वगघ की। यह बढ
ू ा होने
का पहला िीक्रेट है । जजन—जजन को बढ
ू ा होना हो, इिे नोट कर लें। कभी जजंदगी की तरफ
मत दे खना। अगर फूल खखल रहा हो तो तम
ु खखलते फूल की तरफ मत दे खना, तम
ु बैिकर
िोचना कक जल्द ही यह मुरझा जायेगा। यह बूढे होने की तरकीब है ।

अगर एक गुलाब के पौिे के पाि खडे हों तो फूलों की धगनती मत करना, कांटों की धगनती
करना की िब अिार है , कांटे ही कांटे पैदा होते हैं। एक फूल खखलता है , मुज‍कल िे हजार
कांटों में । हजार कांटों की धगनती कर लेना। उििे जजंदगी अिार सिद्ि करने में बडी
आिानी समलेगी।

अगर ठदन और रात को दे खो, तो कभी मत दे खना कक दो ठदन के बीच एक रात है । हमेशा
ऐिा दे खना कक दो रातों के बीच में एक छोटा—िा ठदन है ।

बढू े होने की तरकीब कह रहा हूं। जजंदगी में जहां अंिेरे हों, उनको मैग्रीफाई करना। बडा
ठदखाने वाला कौन अपने पाि रखना, जहां अंिेरा ठदखाई पडे, फौरन मैग्रीफाई ग्लाि लगा
दे ना, बडा भारी अंिेरा दे खना है । और जहां रोशनी ठदखाई पडे, वहां छोटा कर दे ने वाला ग्लाि
अपने पाि रखना, जो जल्दी िे रोशनी को छोटा कर दे । जहां फूल ठदखाई पडे, धगनती मत
करना और फौरन िोच लेना क्या रखा है फूल में ? क्षण भर को है , अभी खखला है , अभी मरु झा
जायेगा। और कांटा स्थायी है , शा‍वत है , िनातन है, न कभी खखलता है , न कभी मरु झाता है ।
हमेशा है । इन बातों पर ध्यान दे ने िे आदमी बहुत जल्दी बूढा हो जाता है ।

मैंने िुना है कक न्यूयाकघ की िौवीं मंजजल िे एक आदमी धगर रहा था। िौवी मंजजल िे वह
आदमी धगर रहा था। जब वह पचािवीं मंजजल के पाि िे गुजर रहा था, तो खखडकी िे एक
आदमी ने धचल्लाकर उििे पूछा कक दोस्त क्या हाल है ? उिने कहा कक अभी तक तो िब
िीक है । यह आदमी गडबड आदमी है । यह आदमी जवान होने का ढं ग जानता है ।

लेककन यह िीक नहीं है । उि आदमी ने कहा, अभी तक िब िीक है , अभी जमीन तक पहुंचे
नहीं हैं, जब पहुंचेंगे तब दे खेंगे। अभी पचािवीं खखडकी तक िब िीक चल रहा है । ओके। यह
आदमी जवान होने की तरकीब जानता है ।

लेककन हमको ऐिी तरकीबें कभी नहीं िीखनी चाठहए। हमें तो बूढे होने के रास्ते पर चलना
चाठहए। बढ
ू ा होने का रास्ता—कभी जजंदगी में जो िन्
ु दर हो, उिकी तरफ ध्यान मत दे ना, जो
अिन्
ु दर हो उिकी खोज—बीन करना। और कोई आदमी आकर आपको कहे कक फलां आदमी
बहुत बडा िंगीतज्ञ है , ककतनी अदभत
ु बांिरु ी बजाता है । तो फौरन उिको कहना कक वह
बांिरु ी क्या खाक बजायेगा। वह आदमी चोर है , बेईमान है , वह बांिरु ी कैिे बजा िकता है ।
आप िोखे में पड गये होंगे, वह आदमी पका बेईमान है , वह बांिरु ी नहीं बजा िकता। यह बढ
ू े
होने की तरकीब है ।

अगर जवान आदमी उि गांव में जायेगा और कोई उििे कहे गा, उि आदमी को जानते हो?
वह बडा चोर, बेईमान है ? तो वह जवान आदमी कहे गा कक यह कैिे हो िकता है कक वह चोर
है , बेईमान है । मैंने उिे बडी िुन्दर बांिुरी बजाते दे खा है । इतनी अदभुत बांिुरी जो बजाता
है , वह चोर नहीं हो िकता।

बूढे का जजंदगी को दे खने का ढं ग है —दख


ु द को दे खना, अंिेरे को दे खना, मौत को दे खना, कांटे
को दे खना।

ठहंदस्
ु तान हजारों िाल िे दख
ु द को दे ख रहा है । जन्म भी दख
ु है , जीवन भी दख
ु है , मरण भी
दख
ु है ! प्रियजन का बबछुडना दख
ु है , अप्रियजन का समलना दख
ु है , िब दख
ु है ! मां के पेट का
दख
ु झेलो, कफर जन्म का दख
ु झेलो, कफर बडे होने का दख
ु झेलो, कफर जजंदगी में गह
ृ स्थी के
चक्कर झेलो, कफर बढ
ु ापे की बबमाररयां झेली, कफर मौत झेलो, कफर जलने की अि में अंततम
पीडा झेलो! ऐिे जीवन की एक दख
ु की लम्बी कथा है । बढ
ू ा होना हो तो इिका स्मरण
करना चाठहए।

बूढा होना है तो बगीचे में नहीं जाना चाठहए, हमेशा मरर्ट पर बैिकर ध्यान करना चाठहए,
जहां आदमी जलाये जाते हों। िुंदर िे बचना चाठहए, अिुंदर को दे खना चाठहए। प्रवकृत को
दे खना चाठहए, स्वस्थ को छोडना चाठहए। िुख समले तो कहना चाठहए क्षणभंगुर है , अभी खत्म
हो जायेगा। दख
ु समले तो छाती िे लगाकर बैि जाना चाठहए। और िदा आंखें रखनी चाठहए
जीवन के उि पार, कभी इि जीवन पर नहीं।
इि जीवन को िमझना चाठहए एक वेठटंग रूम है ।

जैिे बडौदा के स्टे शन पर एक वेठटग रूम हो, उिमें बैिते हैं आप थोडी दे र। वहीं तछलके फेंक
रहे हैं वहीं पान थक
ू रहे हैं, क्योंकक हमको क्या करना है , अभी थोडी दे र में हमारी ट्े न आयेगी
और कफर हम चले जायेंगे। तुमिे पहले जो बैिा था, वह भी वेठटंग रूम के िाथ यही
िदव्यवहार कर रहा था, तुम भी वही िदव्यवहार करो, तुम्हारे बाद वाला भी वही करे गा।

वेठटंग रूम गंदगी का एक र्र बन जायेगा, क्योंकक ककिी को क्या मतलब है । हमको थोडी दे र
रुकना है तो आंख बंद करके राम—राम जप के गज
ु ार दें गे। अभी ट्े न आती है , चली जायेगी।

जजंदगी के िाथ जजन लोगों की आंखें मौत के पार लगी हैं उनका व्यवहार वेठटंग रूम का
व्यवहार है । वे कहते हैं, क्षण भर की तो जजंदगी है ; अभी जाना है , क्या करना है हमें ।
ठहंदस्
ु तान के िंत—महात्मा यही िमझा रहे हैं लोगों को— क्षणभंगुर है जजंदगी, इिके मायामोह
में मत पडना। ध्यान वहां रखना आगे, मौत के बाद। इि छाया में िारा दे श बूढा हो गया है ।

अगर जवान होना है तो जजंदगी को दे खना, मौत को लात मार दे ना। मौत िे क्या ियोजन
है ? जब तक जजंदा हैं, तब तक जजंदा हैं। तब तक मौत नहीं है । िुकरात मर रहा था। िीक
मरते वक्त जब उिके सलए बाहर जहर र्ोला जा रहा था। वह जहर र्ोलने वाला िीरे —िीरे
र्ोल रहा है । वह िोचता है , जजतने दे र िुकरात और जजंदा रह ले, अच्छा है । जजतनी दे र लग
जाय।

वक्त हो गया है , जहर आना चाठहए। िुकरात उिकर बाहर जाता है और पूछता है समर,
ककतनी दे र और?

उि आदमी ने कहा, तुम पागल हो गये हो िुकरात, मैं दे र लगा रहा हूं इिसलए कक थोडी दे र
तुम और रह लो, थोडी दे र िांि तुम्हारे भीतर और आ जाय, थोडी दे र िूरज की रोशनी और
दे ख लो, थोडी दे र खखलते फूलों को, आकाश को, समरों की आंखों को और झांक लो, बि थोडी
दे र और। नदी भी िमुि में धगरने के पहले पीछे लौटकर दे खती है । तुम थोडी दे र लौटकर
दे ख लो। मैं दे र लगाता हूं तुम जल्दी क्यों कर रहे हो? तुम इतनी उतावली क्यों ककये जा रहे
हो?

िक
ु रात ने कहा, मैं जल्दी क्यों ककये जा रहा हूं! मेरे िाण तडपे जा रहे हैं मौत को जानने
को। नयी चीज को जानने की मेरी हमेशा िे इच्छा रही है । मौत बहुत बडी नयी चीज है ;
िोचता हूं दे खूं क्या चीज है !
यह आदमी जवान है , यह का नहीं है । मौत को भी दे खने के सलए इिकी आतुरता है । समर
कहने लगा कक थोडी दे र और जी लो।

िुकरात ने कहा, जब तक मैं जजन्दा हूं मैं यह दे खना चाहता हूं कक जहर पीने िे मरता हूं कक
जजंदा रहता हूं। लोगों ने कहा कक अगर मर गये तो?

उिने कहा कक यठद मर ही गये तो कफक्र ही खअ हो गयी। धचंता का कोई कारण न रहा और
जब तक जजंदा हूं जजंदा हूं।। जब मर ही गये, धचंता की कोई बात नहीं, खत्म हो गयी बात।
लेककन जब तक मैं जजंदा हूं जजंदा हूं तब तक मैं मरा हुआ नहीं हूं और पहले िे क्यों मर
जाऊं? समर िब डरे हुए बैिे हैं पाि, रो रहे हैं, जहर की र्बराहट आ रही है ।

वह िुकरात ििन्न है ! वह कहता है , जब तक मैं जजन्दा हूं तब तक मैं जजंदा हूं तब तक


जजंदगी को जानूं। और िोचता हूं कक शायद मौत भी जजंदगी में एक र्टना है ।

िक
ु रात को बढ
ू ा नहीं ककया जा िकता। मौत िामने खडी हो जाय तो भी यह बढ
ू ा नहीं
होता।

और हम?.. जजंदगी िामने खडी रहती है और बूढे हो जाते हैं। यह रुख भारत में युवा
मजस्तष्क को पैदा नहीं होने दे ता है । जीवन का प्रवषादपूणघ धचर फाडकर फेंक दो। और उिमें
जजंदगी के दख
ु और जजंदगी के प्रवषाद को बढा—चढा कर बतलाते हैं; वे जजंदगी के द‍ु मन हैं,
दे श में युवा को पैदा होने दे ने में द‍ु मन हैं। वह यव
ु क को पैदा होने के पहले का बना दे ते हैं।

अभी मैं कुछ ठदन पहले भावनगर में था। एक छोटी िी लडकी ने, तेरह चौदह िाल उम्र थी,
उिने मुझे आकर कहा कक मुझे आवागमन िे छुटकारे का रास्ता बताइए! तेरह—चौदह िाल
की लडकी कहती है कक आवागमन िे कैिे छूटूं कफर इि मुल्क में कैिे जवानी पैदा होगी?
तेरह—चौदह िाल की लडकी बूढी हो गयी! वह कहती है , मैं मुक्त कैिे होऊं? जीवन िे छूटने
का प्रवचार करने लगी है !

अभी जीवन के द्वार पर थपकी भी नहीं दी, अभी जीवन की खखडकी भी नहीं खल
ु ी, अभी
जीवन की वीणा भी नहीं बजी, अभी जीवन के फूल भी नहीं खखले। वह द्वार के बाहर ही
पछ
ू ने लगी, छुटकारा, मजु क्त, मोक्ष कैिे समलेगा?

जहर डाल ठदया होगा ककिी ने उिके ठदमाग में । मां—बाप ने, गुरुओं ने, सशक्षकों ने उिको
पायजन बना ठदया। उिकी जवानी पैदा नहीं होगी अब। अब वह बूढी ही जजयेगी। उिका
प्रववाह भी होगा तो वह एक बूढी औरत का प्रववाह है , जवान लडकी का नहीं। उिके र्र के
द्वार पर शहनाइयां बजेगी तो एक बूढी औरत िन
ु ेगी उन शहनाइयों को, एक जवान लडकी
नहीं। उन शहनाइयों िे’ भी मौत की आवाज िुनाई पडेगी, जीवन का िंगीत नहीं? वह बूढी हो
गयी!

पहली बात, अगर बूढा होना है तो मौत पर ध्यान रखना, जीवन पर नहीं।

और अगर जवान होना है तो मौत को लात मार दे ना। वह जब आयेगी, तब मुकाबला कर


लेंगे। जब तक जीते हैं, तब तक पूरी तरह िे जजयेंगे, उिकी टोटसलटी में जीवन के रि को
खोजेंगे, जीवन के आनन्द को खोजेंगे।

रवीन्िनाथ मर रहे थे। एक बूढे समर आये और उन्होंने कहा, अब मरते वक्त तो भगवान िे
िाथघना कर लो कक अब दोबारा जीवन में न भेजे। अब आखखरी वक्त िाथघना कर लो कक अब
आवागमन िे छुटकारा हो जाये। अब इि ख्वाब, इि गंदगी के चक्कर में न आना पडे।

रवीन्िनाथ ने कहा, क्या कहते हैं आप? मैं और यह िाथघना करूं? मैं तो मन ही मन यह कह
रहा हूं कक हे िभ,ु अगर तन ू े मझ
ु े योग्य पाया हो, तो बार—बार तेरी प्ृ वी पर भेज दे ना। बडी
रं गीन थी, बडी िुन्दर थी; ऐिे फूल नहीं दे खे, ऐिा चांद, ऐिे तारे , ऐिी आंखें , ऐिा िुन्दर
चेहरा! मैं दं ग रह गया हूं मैं आनन्द िे भर गया हूं। अगर तूने मुझे योग्य पाया हो तो हे
परमात्मा, बार—बार इि दतू नया में मुझे भेज दे ना। मैं तो यह िाथघना कर रहा हूं मैं तो डरा
हुआ हूं कक कहीं मैं अपार न सिद्ि हो जाऊं कक दोबारा न भेजा जाऊं।

रवीन्िनाथ को बूढा बनाना बहुत मुज‍कल है । शरीर बूढा हो जायेगा। लेककन इि आदमी के
भीतर जो आत्मा है , वह जवान है , वह जीवन की मांग कर रही है ।

रवीन्िनाथ ने मरने के कुछ ही र्डी पहले, कुछ कडडयां सलखवायी। उनमें दो कडडयां हैं। दे खा
तो मैं नाचने लगा! क्या प्यारी बात कही है !

ककिी समर ने रवीन्िनाथ को कहा कक तम


ु तो महाकप्रव हो, तम
ु ने छह हजार गीत सलखे, जो
िंगीत में बांिे जा िकते है ! शेली को लोग पज‍चम में कहते हैं, उिके तो सिफघ दो हजार
गीत िंगीत में बंि िकते हैं, तम्
ु हारे तो छह हजार गीत! तम
ु िे बडा कोई कप्रव दतु नया में
कभी नहीं हुआ।

रवीन्िनाथ की आंखों िे आंिू बहने लगे। रवीन्िनाथ ने कहा क्या कहते हो, मैं तो भगवान िे
कह रहा हूं कक अभी मैंने गीत गाये कहां थे, अभी तो िाज बबिा पाया था और प्रवदा का क्षण
आ गया। अभी तो िोक—पीटकर तंबूरा िीक ककया था सिफघ, अभी मैंने गीत गाया ही कहां
था। अभी तो मैंने तंबूरे की तैयारी की थी, िोक—पीटकर तैयार हो गया था, िाज बैि गया
था। अब मैं गाने की चेष्टा करता और यह तो प्रवदा का क्षण आ गया। और मेरे तंबूरे के
िोकने—पीटने िे लोगों ने िमझ सलया है कक यह महाकप्रव हो गया है ! भगवान िे कह रहा
हूं कक ‘ का िाज तैयार हो गया और मुझे प्रवदा कर रहे हो? अब तो मौका आया था कक मैं
गीत गाऊं। मरते रवीन्िनाथ कहते हैं कक अभी तो मौका आया है कक मैं गीत गाऊं!

वह यह कहे रहे थे कक अभी मौका आया था कक मैं जवान हुआ था। वह यह कह रहे हैं कक
अब तो मौका आया था कक िारी तैयारी हो गयी थी और मुझे प्रवदा कर रहे हो। बूढा आदमी
यह कह िकता है तो कफर वह आदमी बूढा नहीं है ।

अगर जवान होना है तो जजंदगी को उिको िामने िे पकड लेना पडेगा। एक—एक क्षण
जजन्दगी भागी जा रही है , उिे म्
ु िी में पकड लेना पडेगा, उिे जीने की परू ी चेष्टा करनी
पडेगी। और जी केवल वे ही िकते हैं जो उिमें रि का दशघन करते हैं। और वहां दोनों चीजें
है जजन्दगी के रास्ते पर, कांटे भी हैं और फूल भी। बढ
ू ा होना हो वे कांटों की धगनती कर लें ।
जजन्हें जवान होना हो वे फूल को धगन लें ।

और मैं कहता हूं कक करोड कांटे भी फूल की एक पंखडु ी के मुकाबले कम हैं । एक गुलाब की
छोटी—िी पंखड
ु ी इतना बडा समरे कल है , इतना बडा चमत्कार है कक करोडों कांटे इक्िे कर
लो, उििे और कुछ सिद्ि नहीं होता उििे सिफघ इतना ही सिद्ि होता है कक बडी अदभुत है
यह दतु नया। जहां इतने कांटे हैं, वहां मखमल जैिा गुलाब का फूल पैदा हो िका है । उििे
सिफघ इतना सिद्ि होता है और कुछ भी सिद्ि नहीं होता। लेककन यह दे खने कक दृजष्ट पर
तनभघर है कक हम कैिे दे खते हैं।

पहली बात, जजन्दगी पर ध्यान चाठहए। मेडीटे शन आन लाइफ, मौत पर नहीं। तो आदमी
जवान िे जवान होता चला जाता है । बुढापे के अंततम क्षण तक मौत द्वार पर भी खडी हो
तो वैिा आदमी जवान होता है ।

दि
ू री बात, जो आदमी जीवन में िंद
ु र को दे खता है , जो आदमी जवान है ; वह आदमी अिंद
ु र
को समटाने के सलए लडता भी है । जवानी कफर दे खती नहीं, जवानी लडती भी है ।

जवानी स्पेक्टे टर नहीं, जवानी तमाशबीन है कक तमाशा दे ख रहे हैं खडे होकर।

जवानी का मतलब है जीना, तमाशगीरी नहीं।

जवानी का मतलब है िज
ृ न।
जवानी का मतलब है िजम्मसलत होना, पाठटघ सिपेशन।

दि
ू रा िूर है ।

खडे होकर रास्ते के ककनारे अगर दे खते हो जवानी की यारा को, तुम तमाशबीन हो; तुम
जवान नहीं हो, एक तनकक्रय दे खने वाले। तनजष्क्रय दे खने वाला आदमी जवान नहीं हो िकता।
जवान िजम्मसलत होता है जीवन में ।

और जजि आदमी को िौंन्दयघ िे िेम है , जजि आदमी को जीवन का आल्हाद है , वह जीवन


को बनाने के सलए श्रम करता है , िुन्दर बनाने के सलए श्रम करता है । वह जीवन की कुरूपता
िे लडता है , वह जीवन को कुरूप करने वालों के खखलाफ प्रविोह करता है । ककतनी कुरूपता है
िमाज में और जजन्दगी में ?

अगर तम्
ु हें िेम है िौंदयघ िे.. तो एक यव
ु क एक िंद
ु र लडकी की तस्वीर लेकर बैि जाये और
पज
ू ा करने लगे? एक यव
ु ती एक िंद
ु र यव
ु क की तस्वीर लेकर बैि जाय और कप्रवताएं करने
लगे? इतने िे जवानी का काम परू ा नहीं हो जाता?

िौंदयघ िे िेम का मतलब है ? िौंदयघ को पैदा करो, कक्रयेट, करो; जजन्दगी को िुंदर बनाओ।
आनंद की उपलजब्ि और आनंद की आकांक्षा और अनुभूतत को बबखराओ। फूलों को चाहते हो
तो फूलों को पैदा करने की चेष्टा में िंलग्र हो जाओ। जैिा तुम चाहते हो जजन्दगी को वैिी
बनाओ।

जवानी मांग करती है कक तुम कुछ करो, खडे होकर दे खते मत रहो।

ठहन्दस्
ु तान की जवानी तमाशबीन है । हम ऐिे रहते हैं खडे होकर जीवन में , जैिे कोई जुलूि
जा रहा है । वैिे रुके हैं, दे ख रहे हैं; कुछ भी हो रहा है ! शोषण हो रहा है , जवान खडा हुआ दे ख
रहा है ! बेवकूकफयां हो रही हैं, जवान खडा दे ख रहा है ! बद् ु धिहीन लोग दे श को नेतत्ृ व दे रहे
हैं, जवान खडा दे ख रहा है । जडता िमघगरु ु बनकर बैिी है , जवान खडा हुआ दे ख रहा है ! िारे
मल् ु क के ठहतों को नष्ट ककये जा रहे हैं, जवान खडा हुआ दे ख रहा है ! यह कैिी जवानी है ?

कुरूपता िे लडना पडेगा, अिौंदयघ िे लडना पडेगा, शोषण िे लडना पडेगा, जजन्दगी को प्रवकृत
करने वाले तत्वों िे लडना पडेगा। जो आदमी जवान होता है , वह िागर की लहरों और
तूफानों में जीता है , कफर आकाश में उिकी उडान होनी शुरू होती है । लेककन लडोगे तुम?
व्यजक्तगत लडाई ही नहीं हैं यह, िामूठहक लडाई की बात है । कोई फाइट नहीं!
और बबना फाइट के, बबना लडाई के, जवानी तनखरती नहीं। जवानी िदा लडाई के बबना
तनखरती नहीं। जवानी िदा लडती है और तनखरती है , जजतनी लडती है , उतनी तनखरती है ।
िुंदर के सलए, ित्य के सलए जवानी जजतनी लडती है , उतनी तनखरती है । लेककन क्या लडोगे?

तुम्हारे प्रपता आ जायेंगे, तुम्हारी गदघ न में रस्िी डालकर कहें गे, इि लडकी िे प्रववाह करो और
तुम र्ोडे पर बैि जाओगे! तुम जवान हो? और तम्
ु हारे बाप जाकर कहें गे कक दि हजार रुपये
लेंगे इि लडकी के प्रपता िे और तुम मजे िे मन में धगनती करोगे कक दि हजार में स्कूटर
खरीदें कक क्या करें ? तुम जवान हो? ऐिी जवानी दो कौडी की जवानी है ।

जजि लडकी को तम
ु ने कभी चाहा नहीं, जजि लडकी को तम
ु ने कभी िेम नहीं ककया, जजि
लडकी को तम
ु ने कभी छुआ नहीं, उि लडकी िे प्रववाह करने के सलए तम
ु पैिे के सलए राजी
हो रहे हो? िमाज की व्यवस्था के सलए राजी हो रहे हो? तो तम
ु जवान नहीं हो। तम्
ु हारी
जजन्दगी में कभी भी वे फूल नहीं खखलें गे, जो यव
ु ा मजस्तष्क छूता है । तम
ु हो ही नहीं; तम

एक सम्टी के लौदें हो, जजिको कहीं भी िरकाया जा रहा हो, कहीं पर भी सलया जा रहा हो।
कुछ भी नहीं तुम्हारे मन में , न िंदेह है , न जजज्ञािा है , न िंर्षघ है , न पूछ है , न इन्क्वायरी है
कक यह क्या हो रहा है ! कुछ भी हो रहा है , हम दे ख रहे हैं खडे होकर! नहीं, ऐिे जवानी नहीं
पैदा होती है ।

इिसलए दि
ू रा िूर तुमिे कहता हूं और वह यह कक जवानी िंर्षघ िे पैदा होती है ।

िंर्षघ गलत के सलए भी हो िकता है और तब जवानी कुरूप हो जाती है । िंर्षघ बुरे के सलए
भी हो िकता है , तब जवानी प्रवकृत हो जाती है । िंर्षघ अिरू े की सलए भी हो िकता है , तब
जवानी आत्मर्ात कर लेती है ।

लेककन िंर्षघ जब ित्य के सलए, िन्


ु दर के सलए, श्रेष्ि के सलए होता है , िंर्षघ जब परमात्मा के
सलए होता है , िंर्षघ जब जीवन के सलए होता है ; तब जवानी िन्
ु दर, स्वस्थ, ित्य होती चली
जाती है ।

हम जजिके सलए लडते हैं, अंततुः वही हम हो जाते हैं।

लडो िन्
ु दर के सलए और तम
ु िन्
ु दर हो जाओगे। लडो ित्य के सलए और तम
ु ित्य हो
जाओगे। लडो श्रेष्ि के सलए तम
ु श्रेष्ि हो जाओगे। और मरो—िडो तम
ु —खडे—खडे िडोगे
और मर जाओगे और कुछ भी नहीं होओगे।

जजंदगी िंर्षघ है और िंर्षघ िे ही पैदा होती है । जैिा हम िंर्षघ करते हैं , वैिे ही हो जाते हैं।
ठहन्दस्
ु तान में कोई लडाई नहीं है , कोई फाइट नहीं है ! िब कुछ हो रहा है , अजीब हो रहा है ।
हम िब हैं, दे खते हैं, िब हो रहा है और होने दे रहे हैं! अगर ठहन्दस्
ु तान की जवानी खडी हो
जाय, तो ठहन्दस्
ु तान में कफर ये िब नािमखझयां नहीं हो िकती हैं, जो हो रही हैं। एक आवाज
में टूट जायेंगी। क्योंकक जवान नहीं है , ‘ कुछ भी हो रहा है । मैं यह दि
ू री बात कहता हूं।
लडाई के मौके खोजना ित्य के सलए, ईमानदारी के सलए।

अगर अभी न लड िकोगे तो बुढापे में कभी नहीं लड िकोगे। अभी तो मौका है कक ताकत
है , अभी मौका है कक शजक्त है , अभी मौका है कक अनुभव ने तुम्हें बेईमान नहीं बनाया है ।
अभी तुम तनदोष हो, अभी तुम िकते हो, अभी तुम्हारे भीतर आवाज उि िकती है , यह गलत
है । जैिे—जैिे उम्र बढे गी, अनुभव बढे गा चालाकी बढे गी।

अनभ
ु व िे ज्ञान नहीं बढता है , सिफघ कतनंगनेि बढती है , चालाकी बढती है ।

अनुभवी आदमी चालाक हो जाता है , उिकी लडाई कमजोर हो जाती है , वह अपना ठहत दे खने
लगता है हमें क्या मतलब है , अपनी कफक्र करो, इतनी बडी दतु नया के झंझट में मत पडो।

जवान आदमी जूझ िकता है , अभी उिे कुछ पता नहीं। अभी उिे अनुभव नहीं है चालाककयों
का।

इिके पहले कक चालाककयों में तुम दीक्षक्षत हो जाओ और तुम्हारे उपकुलपतत और तुम्हारे
सशक्षक और? मां—बाप दीक्षांत िमारोह में तुम्हें चालाककयों के िठटघ कफकेट दें गे, उिके पहले
लडना। शायद लडाई तुम्हारी रहे , तो तुम चालाककयों में नहीं, जीवन के अनुभव में दीक्षक्षत हो
जाओ। और शायद लडाई तुम्हारी जारी रहे , वह जो तछपी है भीतर आत्मा, वह तनखर जाये, वह
िकट हो जाये। और जैिे आदमी अपने भीतर तछपे हुए का पूरा अनुभव करता है , उिी ठदन
परू े अथों में जीप्रवत होता है ।

और मैं कहता हूं कक जो आदमी एक क्षण को भी पूरे अथों में जीवन का रि जान लेता है ,
उिकी कफर कभी मत्ृ यु कभी नहीं होती। वह अमत
ृ िे िंबंधित हो जाता है ।

यव
ु ा होना अमत
ृ िे िंबंधित होने का मागघ है । यव
ु ा होना आत्मा की खोज है । यव
ु ा होना
परमात्मा के मंठदर पर िाथघना है ।

‘युिक कौन’
बडौदा
संभोग से समाधि की और –44
Posted on सितम्बर 18, 2013by sw anand prashad

युिा धचत्त का जन्म—बाहरिां प्रिचन


मेरे प्रिय आत्मन

िोरवान प्रव‍वप्रवद्यालय की दीवालों पर जगह—जगह एक नया ही वाक्य सलखा हुआ ठदखायी


पडता है । जगह—जगह दीवालों पर, द्वारों पर सलखा है : ‘ ‘िोफेििघ, यू आर ओल्ड’ ‘ —
अध्यापकगण, आप बढ
ू े हो गये हैं!

िोरवान प्रव‍वप्रवद्यालय की दीवालों पर जो सलखा है , वह मनुष्य की पूरी िंस्कृतत, पूरी


िभ्यता की दीवालों पर सलखा जा िकता है । िब कुछ बूढा हो गया है , अध्यापक ही नहीं।
मनुष्य का मन भी बूढा हो गया है ।

मैंने िुना है कक लाओत्िे के िंबंि में एक कहानी है कक वह बूढा ही पैदा हुआ है । यह


कहानी कैिे िच होगी? कहना मुज‍कल है । िुना नहीं कक कभी कोई आदमी बूढा ही पैदा हुआ
हो! शरीर िे तो कभी नहीं िुना है कक कोई आदमी बूढा पैदा हुआ हो! लेककन ऐिा हो िकता
है कक मन िे आदमी पैदा होते ही बूढा हो जाये।

और लाओत्िे भी अगर बूढा पैदा हुआ होगा, तो इिी अथघ में कक वह कभी बच्चा नहीं रहा
होगा। कभी जवान नहीं हुआ होगा। धचत्त के जो वािघक्य के, ‘ ओल्डनेि’ के जो लक्षण हैं, वे
पहले ठदन िे ही उिमें िप्रवष्ट हो गये होंगे। लेककन लाओत्िे बढ ू ा पैदा हुआ हो या न हुआ
हो, आज जो मनष्ु यता हमारे िामने है , वह बढ ू ी ही पैदा होती है । हमने बढ ू े होने के िर
ू पकड
रखे हैं।
और इिके पहले मैं कहूं कक यव ु ा धचत्त का जन्म कैिे हो, मैं इि भाषा में कहूंगा कक धचत्त
बढ
ू ा कैिे हो जाता है ; क्योंकक बहुत गहरे में धचत्त का बढ
ू ा होना, मनष्ु य की चेष्टा िे होता है ।

धचत्त अपने आप में िदा जवान है । शरीर की तो मजबूरी है कक वह बूढा हो जाता है ; लेककन
चेतना की कोई मजबूरी नहीं है कक वह बूढी हो जाये। चेतना युवा ही है । ‘माइंड’ तो ‘यंग’ ही
है । वह कभी का नहीं होता, लेककन अगर हम व्यवस्था करें , तो उिे भी बूढा बना िकते हैं।

इिसलए जवान धचत्त कैिे पैदा हो, ‘यंग माइंड’ कैिे पैदा हो, यह िवाल उतना महत्वपूणघ नहीं
है ; जजतना गहरे में िवाल यह है कक धचत्त को बूढा बनाने की तरकीबों िे कैिे बचा जाये।
अगर हम धचत्त को बूढा बनाने की तरकीबों िे बच जाते हैं, तो जवान धचत्त अपने—आप पैदा
हो जाता है ।
धचत्त जवान है ही। धचत्त कभी का होता ही नहीं। वह िदा ताजा है । चेतना िदा ताजी है ।
चेतना नयी है , रोज नयी है ।

लेककन हमने जो व्यवस्था की है , वह उिे रोज बूढा और पुराना करती चली जाती है । तो
पहले मैं िमझाना चाहूंगा कक धचत्त के बूढा होने के िूर क्या हैं :

पहला िूर है कफयर, भय। जजि धचत्त में जजतना ज्यादा भय िप्रवष्ट हो जायेगा, वह उतना ही
‘पैरालाइब्द’ और ‘कक्रपल्ड ‘ हो जायेगा। वह उतना ही बूढा हो जायेगा।

और हमारी पूरी िंस्कृतत—आज तक के मनुष्य की पूरी िंस्कृतत, भय पर खडी हुई है ।

हमारा तथाकधथत िारा िमघ भय पर खडा हुआ है । हमारे भगवान की मतू तघयां हमने भय के
कारखाने में डाली हैं। वहीं वे तनसमघत हुई है । हमारी िाथघनाएं हमारी पज
ू ाएं— थोडा हम भीतर
िवेश करें , तो भय की आिारसशलाओं पर खडी हुई समल जायेंगी। हमारे िंबंि, हमारा पररवार,
हमारे राष्ट्, बहुत गहरे में , भय पर खडे ?? पररवार तनसमघत हो गये हैं; लेककन पतत भयभीत है !
परु
ु ष भयभीत है ! िी भयभीत है ! बच्चे भयभीत हैं! िाथ खडे हो जाने िे भय थोडा कम
मालूम होता है ।

िंिदाय, िंगिन खडे हो गये हैं भय के कारण! राष्ट्, दे श खडे हैं भय के कारण!

हमारी जो भी आज तक की व्यवस्था है , वह िारी व्यवस्था भय पर खडी है । एक—दि


ू रे िे
हम भयभीत हैं। दि
ू रे िे ही नहीं, हम अपने िे भी भयभीत हैं।

इि भय के कारण, धचत्त का युवा होना कभी िंभव नहीं है , क्योंकक धचत्त तभी युवा होता है ,
जब अभय हो। खतरे और जोखखम उिाने में िमथघ हो। जो जजतना ही भयभीत है , वह खतरे
में उतना ही िवेश नहीं करता है । वह िुरक्षा का रास्ता लेता है , ‘सिक्योररटी’ का रास्ता लेता
है । जहां कोई खतरे न हों, वह रास्ता लेता है ।

और सिफघ उन्हीं रास्तों पर खतरा नहीं मालूम होता है , जो हमारे पररधचत हैं। जजन पर हम
बहुत बार गुजरकर गये हैं। तो बूढा मनुष्य, कोल्हू के बैल की तरह एक ही रास्ते पर र्ूमता
रहता है । रोज िुबह वहीं उिता है , जहां कल िांझ िोया था! रोज वही करता है , जो कल
ककया था! रोज वही—जो कल था, उिी में जीने की कोसशश करता है ! नये िे डरता है । नये में
खतरा भी हो िकता है । भयभीत धचत्त बूढा होता है । और भय हमारे पूरे िाणों को ककि बुरी
तरह मार डालता है , यह हमें पता नहीं है ।
मैंने िुना है , एक गांव के बाहर एक फकीर का झोपडा था। एक िांझ अंिेरा उतरता था।
फकीर झोपडे के बाहर बैिा है । एक काली छाया उिे गांव की तरफ भागती जाती मालूम
पडी। रोका उिने उि छाया को! पूछा, तुम कौन हो? और कहां जाती हो? उि छाया ने कहा,
मुझे पहचाना नहीं, मैं मौत हूं और गांव में जा रही हूं। प्लेग आने वाला है । गांव में मेरी
जरूरत पड गयी है ।

उि फकीर ने पूछा, ककतने लोग मर गये हैं? ककतने लोगों के मरने का इंतजाम है , ककतने की
योजना है ? उि मौत की काली छाया ने कहा, बि! हजार लोग ले जाने हैं।

मौत चली गयी। महीना भर बीत गया। गांव में प्लेग फैल गया। कोई पचाि हजार आदमी
मरे । दि लाख की नगरी थी। कुल पचाि हजार आदमी मर गए।

फकीर बहुत है रान हुआ कक आदमी िोखा दे ता था। यह मौत भी िोखा दे ने लगी, मौत भी
झूि बोलने लगा! और मौत क्यों झि
ू बोले? क्योंकक आदमी झूि बोलता है डर के कारण! मौत
ककििे डरती होगी, कक झूि बोले। मौत को तो डरने का कोई कारण नहीं, क्योंकक मौत ही
डरने का कारण है , तो मौत को क्या डर हो िकता है ? फकीर बैिा रहा कक मौत वापि लौटे ,
तो पूछ लूं। महीने भर के बाद मौत वापि लौटी। कफर रोका और कहा कक बडा िोखा ठदया।
कहा था, हजार लोग मरें गे, पचाि हजार लोग मर चक
ु े हैं।

मौत ने कहा, मैंने हजार ही मारे हैं, बाकी भय िे मर गये हैं। उनिे मेरा कोई िंबंि नहीं है ।
वे अपने—आप मर गये हैं।

और भय िे कोई आदमी बबलकुल मर जाये, बडा खतरा नहीं है , लेककन भय िे हम भीतर मर


जाते हैं, और बाहर जीते चले जाते हैं। भीतर लाश हो जाती है , बाहर जजंदा रह जाते हैं। भीतर
िब ‘डेड—वेट’ हो जाता है —मद
ु ाघ, मरा हुआ। और बाहर हमारी आंखें ,हाथ—पैर चलते हुए
मालम
ू पडते हैं।

बूढे होने का मतलब यह है कक जो आदमी भीतर िे मर गया है , सिफघ बाहर िे जी रहा है ।


जजिका जजंदगी सिफघ बाहर है । भीतर जो मर चक
ु ा है , वह आदमी बूढा है ।

यह हो िकता है , कक एक आदमी बाहर िे बढ


ू ा हो जाये। शरीर पर झरु घ ईयां पड गयी हैं, और
मत्ृ यु के चरण—धचह्न ठदखायी पडने लगे हैं। मत्ृ यु की पग— ध्वतनयां िन
ु ायी पडने लग गयी
हैं। और भीतर िे जजंदा हो, जवान हो, उि आदमी को बूढा कहना गलत है । बूढा, शारीररक
मापदण्ड िे नहीं तौला जा िकता है । बुढापा तौला जाता है , भीतर ककतना मत
ृ हो गया है ,
उििे। कुछ लोग बूढे ही जीते हैं; जन्मते हैं, और मरते हैं!
कुछ थोडे—िे िौभाग्यशाली लोग युवा जीते हैं। और जो युवा होकर जी लेता है , वह युवा ही
मरता है । वह मौत के आखखरी क्षण में भी युवा होता है । मत्ृ यु उिे छीन नहीं पाती। क्योंकक
जजिे बुढापा ही नहीं छू पाता है , उिे मत्ृ यु कैिे छू पायेगी। लेककन िंस्कृातत हमारी, भय को
ही िचाररत करती है । हजार तरह के भय खडे करती है ।

िारे पुराने िमों ने ई‍वर का भय सिखाया है । और जजिने भी ई‍वर का भय सिखाया है ,


उिने प्
ृ वी पर अिमघ के बीज बोये हैं। क्योंकक भयभीत आदमी िासमघक हो ही नहीं िकता।
भयभीत आदमी िासमघक ठदखायी पड िकता है ।

भय िे कभी ककिी व्यजक्त के जीवन में क्रांतत हुई है ? रूपांतरण हुआ है ? पसु लि वाला चौरास्ते
पर खडा है , इिसलए मैं चोरी न करूं, तो मैं अच्छा आदमी हूं! पसु लि वाला हट जाये, तो मेरी
चोरी अभी शरू
ु हो जाये।

अगर पका पता चल ू जाये कक ई‍वर मर गया है —उिकी खबरें तो बहुत आती हैं; लेककन पका
नहीं हो पाता कक ई‍वर मर गया है । तो जजिको हम िासमघक आदमी कहते हैं , वह एक क्षण
में अिासमघक हो जाये। अगर इिकी गारं टी हो जाये कक ई‍वर मर गया है , तो जजिको हम
िासमघक आदमी कहते हैं, मंठदर कभी न जाये। कफर िचाई, ित्य और गीता और कुरान और
बाइबबल की बातें वह भूलकर भी न करें । वह कफर टूट पडे जीवन पर, पागल की तरह! उिने
भगवान को एक बहुत बडा िुिीम कांस्टे बल की तरह िमझा हुआ है । है ड कांस्टे बल, िबके
ऊपर बैिा हुआ पुसलिवाला, वह उिको डराये हुए है ।

पुराना शब्द है ‘गॉड—कफयररग’, ई‍वर— भीरू! िासमघक आदमी को हम कहते हैं—ई‍वर भीरू!

परिों मैं एक समर के र्र था बडौदा में , उन्होंने कहा, मेरे प्रपता बहुत ‘गॉड फीयररग’ हैं, बडे
िासमघक आदमी हैं। िनु सलया मैंने! लेककन ‘गॉड—कफयररग’ िासमघक कैिे हो िकता है ? ‘गॉड—
लप्रवंग’, ई‍वर को िेम करने वाला िासमघक हो िकता है । ई‍वर िे डरने वाला कैिे िासमघक हो
िकता है ?

और ध्यान रहे , जो डरता है , वह िेम कभी नहीं कर िकता है । जजििे हम डरते हैं, उिको हम
िेम कर िकते हैं? उिको हम र्ण
ृ ा कर िकते हैं, िेम नहीं कर िकते! हां, िेम ठदखा िकते
हैं। भीतर होगी र्ण
ृ ा, बाहर ठदखायेंगे िेम! िेम एजक्टं ग होगा, असभनय होगा!

जो भगवान िे डरा हुआ है , उिकी िाथघना झूिी है । उिके िेम की िब बातें झूिी हैं। क्योंकक
जजििे हम डरे हैं, उििे िेम अिंभव है । उििे िेम का िंबंि पैदा ही नहीं होता है ।
कभी आपको खयाल है , जजििे आप डरे हैं, उिे आपने िेम ककया है ? लेककन यह भ्ांतत गहरी
है । वह ऊपर बैिा हुआ प्रपता भी इि तरह पेश ककया गया है कक उििे हम डरे हैं। नीचे भी
जजिको हम प्रपता कहते हैं, मां कहते हैं, गरु
ु कहते हैं, वे िब डरा रहे हैं। और िब िोचते हैं
कक डर िे िेम पैदा हो जाये।

बाप, बेटे को डरा रहा है । डराकर िोच रहा है कक िेम पैदा होता है । नहीं! द‍ु मनी पैदा हो रही
है । हर बेटा, बाप का द‍ु मन हो जायेगा। जो बाप भी बेटे को डरायेगा, द‍ु मनी पैदा हो जाना
तनज‍चत है । और बेटा आज नहीं कल, बदले में बाप को डरायेगा। थोडा वक्त लगेगा, थोडा
िमय लगेगा। बाप जब बूढा हो जायेगा, बेटा जब जवान होगा, तो बाप ने जब जवान था और
बेटा जब बच्चा था, जजि भांतत डराया था, पहलू बदल जायेगा, अब बेटा बाप को डरायेगा! और
बाप धचल्लायेगा बेटे बबलकुल बबगड गये हैं!

बेटे कभी नहीं बबगडते। पहले बाप को बबगडना पडता है । तब बेटे बबगडते हैं।

बाप पहले बबगड गया। उिने बचपन में बेटे के िाथ वह िब कर सलया है , जो बेटे को बुढापे
में उिके िाथ करना पडेगा। िब चक्के र्ूमकर अपनी जगह आ जाते हैं।

अगर भय हमने पैदा ककया है तो पररणाम में भय लौटे गा, र्ण


ृ ा लौटे गी, द‍ु मनी लौटे गी। िेम
नहीं लौटता।

और हमने जो ई‍वर बनाया था, वह भय का िाकार रूप था। भय ही भगवान था। स्वाभाप्रवक
रूप िे आदमी उििे डरा। डरकर िासमघक बना तो िासमघकता झूिी ही थोपी! एकदम ऊपरी।
भीतर भय था। भीतर डर था। आज एक युवती ने मुझे आकर कहा कक बचपन िे मुझे ऐिा
लगता है कक ई‍वर मुझे समल जाये तो उिे मार डालूं। मैंने कहा, यह िब खयाल है तेरे मन
में ? लेककन जो भी डराने वाला है , उिको मारने का खयाल हमारे मन में पैदा होगा ही। उि
यव
ु ती को िीक ही खयाल पैदा हुआ है । ठहम्मत है , उिने कह ठदया है । हममें ठहम्मत नहीं है ,
हम नहीं कहते। वैिे हर आदमी इि खोज में है कक ई‍वर को कैिे खत्म कर दें , कैिे मार
डालें।

ं इज
दोस्तोवस्की ने अपने उपन्याि में कहा है कक अगर ई‍वर न हो, ‘दे न एवरी धथग
कसमटे ड’। एक बार पका हो जाये, ई‍वर नहीं है तो हर चीज की आज्ञा समल जाये। कफर हमें
जो करना है , हम कर िकते हैं। कफर कोई डर न रह जाय। वही तो तनज‍चत है । बाद में उिने
कहा कक तुम छोड दो भय। खबर नहीं समली तुम्हें —गॉड इज नाउ डैड, मैन इज फ्री, ई‍वर मर
चक
ु ा है और आदमी मुक्त है !
ई‍वर बंिन था कक उिके मरने िे आदमी मुक्त होगा? इिमें ई‍वर का किूर नहीं है । इिमें
िमघ के नाम पर जो परं पराएं बनीं, उन्होंने भय का बंिन बना ठदया था। जरूरी हो गया था
कक ई‍वर के बेटे ककिी ठदन उिे कत्ल कर दें ।

आज दतू नया भर के बेटे ई‍वर का कत्ल कर दे रहे हैं। रूि ने कत्ल ककया है , चीन ने कत्ल
ककया है ; ठहन्दस्
ु तान में भी कत्ल करें गे। बचाना बहुत मुज‍कल है । नक्िलवादी ने शुरू ककया
है , बंगाल में शुरू ककया है । गुजरात थोडा पीछे जायेगा। थोडा गखणत बुद्धि का है , थोडी दे र
में ; लेककन आयेगा, बच नहीं िकता।

ई‍वर प्
ृ वी के कोने—कोने में कत्ल ककया जायेगा। उिका जजम्मा नाजस्तकों का नहीं होगा,
गौर रखना। उिका जजम्मा उनका होगा, जजन्होंने ई‍वर के िाथ भय को जोडा है , िेम को
नहीं। इिके सलए जजम्मेदार तथाकधथत िासमघक लोग होंगे—वे चाहे ठहंद ु हों, चाहे मि
ु लमान हों,
चाहे ईिाई हों; इििे कोई फकघ नहीं पडता। जजन्होंने भी, मनष्ु य—जातत के मन में ई‍वर और
भय का एिोसिएशन करवा ठदया है , दोनों को जड
ु वा ठदया है , उन्होंने इतनी खतरनाक बात
पैदा की है कक आदमी के िासमघक होने में िबिे बडी बािा बन गयी है । या तो ई‍वर को भय
िे मुक्त करो—या ई‍वर आदमी को बूढा करने और मारने का कारण हो गया है —क्योंकक भय
बूढा करता है और मारता है ।

और ध्यान रहे , चीजें िंयुक्त हो जाती हैं। प्रवपरीत चीजें भी िंयुक्त हो िकती हैं। मन के
तनयम हैं। अब भय िे भगवान का कोई िंबंि नहीं है । अगर इि प्
ृ वी पर, इि जगत में ,
इि जीवन में कोई एक चीज है , जजििे तनभघय हुआ जा िकता है तो वह भगवान है । कोई
एक तत्व है , जजििे तनभघय हुआ जा िकता है पूरा, तो वह परमात्मा है ; क्योंकक बहुत गहरे में
हम उिकी ही ककरणें हैं, उिके ही ठहस्िे हैं। उिके ही भाग हैं, उििे ही लगे हैं। उििे भय
का िवाल क्या है ? उििे भयभीत होना अपने िे भयभीत होने का मतलब रखेगा। लेककन
हम जोड िकते हैं चीजों को।

पावलव ने रूि में बहुत ियोग ककये हैं एिोसिएशन पर, िंयोग पर। एक कुत्ते को पावलव
रोज रोटी खखलाता है । रोटी िामने रखता है , कुत्ते की लार टपकने लगती है । कफर रोटी के
िाथ वह र्ंटी बजाता है । रोज रोटी दे ता है , र्ंटी बजाता है । रोटी दे ता है , र्ंटी बजाता है ।
पन्िह ठदन बाद रोटी नहीं दे ता है , सिफघ र्ंटी बजाता है । और कुत्ते की लार टपकनी शुरू हो
जाती है ! अब र्ंटी िे लार टपकने का कोई भी िंबंि कभी िुना है ? र्ंटी बजने िे कुत्ते की
लार टपकने का क्या िंबंि है ?

कोई भी िंबंि नहीं है । तीन काल में कोई िंबंि नहीं है । लेककन एिोसिएशन हो जाता है ।
रोटी के िाथ र्ंटी जुड गयी। जब रोटी समली तब र्ंटी बजी, जब र्ंटी बजी तब रोटी समली।
रोटी और र्ंटी मन में कहीं एक िाथ हो गयीं। अब सिफघ र्ंटी बज रही है , लेककन रोटी का
खयाल िाथ में आ रहा है और तकलीफ शुरू हो गयी है ।

मनुष्य कुछ खतरनाक िंयोग भी बना िकता है । भगवान और भय का िंयोग ऐिा ही


खतरनाक है । पावलव का ियोग बहुत खतरनाक नहीं है । र्ंटी और रोटी में िंबंि हो जाये,
हजघ क्या है ? लेककन भगवान और भय में िंबंि हो जाये तो मनुष्यता बूढी हो जायेगी।

अतीत का मनुष्य बूढा मनुष्य था। अतीत का इततहाि वद्


ृ ि मनुष्यता का इततहाि है , ‘ ओल्ड
माइंड का’। बढ
ू े मन का इततहाि है , क्योंकक वह भय पर खडा हुआ है ।

िमघ… भय पर खडे हुए मंठदर हैं, हाथ जोडे हुए भयभीत लोग! यह फािला, भय, डर, कक
भगवान समटा दे गा! वह तो तैयार बैिा हुआ है । भगवान तैयार बैिा हुआ है आदसमयों को
िताने को, डराने को। आदमी जरा ही इंकार करे गा और भगवान बबाघद कर दे गा, और नरकों
में िडा दे गा।

नरक के कैिे—कैिे भय पैदा हमने ककये हैं भगवान के िाथ? कैिे अदभत
ु भय पैदा ककये हैं?
कक्रसमनल माइंड भी, अपरािी िे अपरािी आदमी भी ऐिी योजना नहीं बना िकता है जैिी,
जजन्हें हम ऋप्रष—मुतन कहते हैं, उन्होंने नरक की योजना बनायी है ! नरक की योजना दे खने
लायक है । और ध्यान रहे , नरक की योजना कोई बहुत िौंदयघ को, ित्य को, िेम को, परमात्मा
को खयाल में रखने वाला बना नहीं िकता है । यह अिंभव है कक अगर वास्तव में परमात्मा
हो तो नरक भी हो िके। ये दोनों बातें एक िाथ िंभव नहीं हैं। या तो परमात्मा नहीं होगा,
तो नरक हो िकता है । और अगर नरक है , तो कफर परमात्मा को प्रवदा करो। वह नहीं हो
िकता है । ये दोनों चीजें एक िाथ िंभव नहीं हैं। उनका को—इजग्जिूटेंि नहीं हो िकता है ।
उनका िह—अजस्तत्व िंभव नहीं है ।

नरक की क्या—क्या योजना है , िोचा है आपने कभी? ककतना डराया होगा आदमी को? और
आदमी इतना कम जानता था कक डराया जा िकता है । इतना कम जानता था कक र्बडाया
जा िकता है । आदमी एक अथघ में अबोि था। वह बहुत भयभीत ककया जा िकता था।

हर मुल्क को नरक की अलग—अलग कल्पना करनी पडी। क्यों? क्योंकक हर मुल्क में भय का
अलग—अलग उपाय खोजा गया है । स्वाभाप्रवक था। कुछ चीजें, जजनिे हम भयभीत हैं, दि
ू रे
लोग भयभीत नहीं हैं। जैिे ततब्बत में िं ड भय पैदा करती है , ठहन्दस्
ु तान में पैदा नहीं करती।
िं ड अच्छी लगती है । तो हमारे नरक में िं ड का बबलकुल इन्तजाम नहीं है । हमारे नरक में
आग जल रही है और िप
ू और गमी हमें परे शान करती है , भयभीत करती है । और हमने
नरक में आग के अखंड क्यूं जला रखे हैं! यज्ञ ही यज्ञ हो रहे है नरक में ! आग ही आग जल
रही है और अनंत काल िे उिमें र्ी डाला जा रहा होगा! भडकती ही चली जा रही है । और
उि आग का कभी बुझना नहीं होगा। वह इटनघल फायर है , और वह कभी बुझती नहीं है ,
अनंत आग है । और उिमें पाप्रपयों को डाला जा रहा है , िडाया जा रहा है । मजा एक है कक
कोई मरे गा नहीं उि आग में डालने िे, क्योंकक मर गये तो दख
ु खल हो जायेगा। इंतजाम
यह है , आग में डाले जायेंगे। जलेंगे िडेंगे, गलेंगे, मरें गे भर नहीं। जजंदा तो रहना ही पडेगा।

नरक में कोई मरता नहीं है , खयाल रखना!

क्योंकक मरना भी एक राहत हो िकती है , ककिी जस्थतत में । मरना भी कंफटे बल हो िकता है
ककिी हालात में । ककिी क्षण में आदमी चाह िकता है , मर जाऊं!

वहां कोई आत्महत्या नहीं कर िकता है । पहाड िे धगरो, गदघ न टूट जायेगी, आप बच जाओगे।
फांिी लगाओ, गला कट जायेगा, आप बच जाओगे। छुरा मारो, छुरा र्ुप जायेगा, आप बच
जाओगे। जहर प्रपयो, फोडे—फुंसिया पैदा हो जायेंगी, जहर उगाने लगेगा शरीर, लेककन आप नहीं
मरोगे। नरक में आत्महत्या का उपाय नहीं है ! आग जल रही है , जजिे हम जला रहे हैं।

ततब्बत में … और ततब्बत के नरक में आग नहीं जलती, क्योंकक ततब्बत में अण बडी िुखद है ।
तो ततब्बत में आग की जगह शा‍वत बफघ जमा हुआ है , जो कभी नहीं प्रपर्लता है ! वह बफघ
में दबाये जायेंगे, ततब्बत के पापी। वह बफघ में दबाया जायेगा। ततब्बत के स्वगघ में आग है ।
िूरज चमकता है तेज िप
ू है , बफघ बबलकुल नहीं जमती। ठहन्दस्
ु तान के स्वगघ बबलकुल
एयरक्कीशंड है , वातानुकूसलत है । शीतल मंद पवन हमेशा बहती रहती है । कभी ऐिा नहीं होता
कक िं डक में कमी आती है । िं डक ही बनी रहती है । िूरज भी तनकलता है तो ककरणें तपाने
वाली नहीं है , बडी शीतल हैं।

दख
ु , भय, आदमी को नरक का, पापों का, पापों के कमों का.. लंबे—लंबे भय, हमने मनष्ु य के
मानि में तनिाघररत ककये हैं! और ककिसलए? यह आदमी िासमघक है ? यह आदमी िासमघक नहीं
हुआ, सिफघ बढ
ू ा हो गया है । सिफघ वद्
ृ ि हो गया है । इतना भयभीत हो गया है कक वद्
ृ ि हो
गया है । भय बडी तेजी िे वािघक्य लाता है ।

यहां तक र्टनाएं िंग्रहीत की गयी हैं कक एक आदमी को कोई तीन िौ वषघ पहले हालैंड में
फांिी की िजा दी गयी। वह आदमी जवान था। जजि ठदन उिे फांिी की िजा िुनायी गयी,
िांझ वह जाकर अपनी कोिरी में िोया। िुबह उिकर पहरे दार उिे पहचान न िके कक यह
आदमी वही है । उिके िारे बाल िफेद हो गये हैं! उिके चेहरे पर झुररघ यां पड गयी हैं, वह
आदमी बूढा हो गया है !
ऐिी कुछ र्टनाएं इततहाि में िंग्रहीत हैं, जब आदमी क्षण भर में बूढा हो गया हो। इतनी
तेजी िे! भयभीत अगर हो गया होगा, तो हो िकता है । जो रि स्रोत तीि वषघ में िूखते, वह
भय के क्षण में , एक ही क्षण में िूख गये हों। कठिनाई क्या है ? तनज‍चत, बाल िफेद होंगे ही।
तीि—चालीि वषघ, पचाि वषघ िमय लगता है उनके बाल िफेद होने में । यह हो िकता है कक
इतनी तीव्रता िे भय ने पकडा हो कक भीतर के जजन रि स्रोतों िे बालों में कासलख आती हो,
वे एक ही भय के िक्के में िूख गये हों। बाल िफेद हो गये हों।

आदमी एक क्षण में बूढा हो िकता है , भय िे।

और अगर दि हजार िाल की परू ी िंस्कृतत भय पर ही खडी है । सिवाय भय के कोई आिार


ही न हो, तो अगर आदमी का मन बढ
ू ा हो जाये, तो आ‍चयघ नहीं है ।

जजिे बूढा होना हो, उिे भय में दीक्षा लेनी चाठहए। उिे भय िीखना चाठहए, उिे भयभीत
होना चाठहए।

यरू ोप में ईिाइयों के दो िंिदाय थे—एक तो अब भी जजन्दा है , क्वेकर। क्वेकर का मतलब


होता है , कैप जाना। जमीन कंप जाती है । क्वेकर का मतलब होता है , कंप जाना।

क्वेकर िंिदाय का जन्म ऐिे लोगों िे हुआ है , जजन्होंने लोगों को इतना भयभीत कर ठदया—
कक उनकी िभा में लोग कंपने लगते हैं, धगर जाते हैं और बेहोश हो जाते हैं। इिसलए इि
िंिदाय का नाम क्वेकर हो गया। एक और िंिदाय था, जजिका नाम था शेकर। वह भी कंपा
दे ता था। जान बकेले जब बोलता था तो जस्रयां बेहोश हो जाती थीं, आदमी धगर पडते थे, लोग
कांपने लगते थे, लोगों के नथन
ु े फूल जाते थे। क्या बोलता था? नरक के धचर खींचता था।
िाफ धचर। और लोगों के मन में धचर बबिा दे ता था। और डर बबिा दे ता था। वे िारे लोग
हाथ जोडकर कहते थे कक हमें िभु ईिा के िमघ में दीक्षक्षत कर दो। डर गये।

इिसलए जजतने दतु नया में िमघ नये पैदा होते हैं, वे र्बराते हैं कक दतु नया का अंत जल्दी हौने
वाला है । बहुत शीघ्र दतु नया का अंत आने वाला है । िब नष्ट हो जायेगा। जो हमें मान लें गे,
वही बच जायेंगे। र्बडाहट में लोग उन्हें मानने लगते है ।

अभी भी इि मल्
ु क में कुछ िंिदाय चलते हैं, जो लोगों को र्बराते है कक जल्दी िब अंत
होने वाला है । िब खतम हो जायेगा। और जो हमारे िाथ होंगे, वे बच जायेंगे, शेष िब नरक
में पड जायेंगे।
िब िमघ यही कहते हैं कक जो हमारे िाथ होंगे, वे बच जायेंगे, बाकी िब नरक में पड जायेंगे।
अगर उन िब की बातें िही हैं तो एक भी आदमी के बचने का उपाय नहीं ठदखता है ।
जीिि को नरक में जाना पडेगा, क्योंकक जीिि ठहन्द ू नहीं हैं, जैन नहीं हैं, बौद्ि नहीं हैं।
महावीर को भी नरक में पडना पडेगा, क्योंकक महावीर ईिाई नहीं हैं, बौद्ि नहीं हैं, ठहन्द ू नहीं
हैं, मुिलमान नहीं हैं। बुद्ि को भी नरक में पडना पडेगा, क्योंकक वह ठहन्द ू नहीं हैं, ईिाई नहीं
हैं, जैन नहीं हैं। दतू नया के िब िमघ कहते हैं कक हम सिफघ बचा लें गे, बाकी िब डुबा दें गे। उि
र्बराहट में िीक िे— भय शोषण का उपाय बन गया है ।

भयभीत करो, आदमी शोप्रषत हो जाता है ।

भयभीत कर दो आदमी को, कफर वह होश में नहीं रह जाता है । कफर वह कुछ भी स्वीकार
कर लेता है । डर में वह इनकार नहीं करता। भयभीत आदमी कभी िंदेह नहीं करता और जो
िंदेह नहीं करता है , वह का हो जाता है ।

जो आदमी िंदेह कर िकता है , वह िदा जवान है ।

जो आदमी भयभीत होता है , वह प्रव‍वाि कर लेता है , ‘बबलीव’ कर लेता है , मान लेता है कक


जो है , वह िीक है । क्योंकक इतनी ठहम्मत जुटानी कठिन है कक गलत है । बूढा आदमी
प्रव‍वािी होता है । युवा सिफघ तनरं तर िंदेह करता है —खोजता है , पूछता है , िश्र करता है ।

यह ध्यान रहे , यव
ु ा धचत्त िे प्रवज्ञान का जन्म होता है और बूढे धचत्त िे प्रवज्ञान का जन्म
नहीं होता है ।

जजन दे शों में जजतना भय और जजतना वािघक्य लादा गया है , उन दे शों में प्रवतान का जन्म
नहीं हो िका, क्योंकक प्रवचार नहीं, िन्दे ह नहीं, ि‍न नहीं, जजज्ञािा नहीं!

क्या हम िब भयभीत नहीं हैं? क्या हम िब भयभीत होने के कारण िारी व्यवस्था को बांिे
हुए, ‘पकडे हुए नहीं खडे हैं? क्या हम िब डरे हुए नहीं हैं?

अगर हम डरे हुए हैं तो यह िंस्कृतत और यह िमाज िुंदर नहीं है , जजिने हमें डरा ठदया है ।
िंस्कृतत और िमाज तो तब िंद ु र और स्वस्थ होगा, जब हमें भय िे मुक्त करे , हमें अभय
बनाये। अभय, ‘कफयरलेिनेि’, तनभघय नहीं। तनभघय और अभय में बडा फकघ है । फकघ है , यह
िमझ लेना जरूरी है ।
भयभीत आदमी, भीतर भयभीत है और बाहर िे अकडकर डर इनकार करने लगे, तो वह
तनभघय होता है । भय शांत नहीं होता है उिके भीतर। वह बहादरु ी ठदखायेगा बाहर िे, भीतर
भय होगा। जजनके हाथ में भी तलवार है , वे ककतने भी बहादरु हों, वे भयभीत जरूर रहे होंगे,
क्योंकक बबना भय के हाथ में तलवार का कोई भी अथघ नहीं है । जजनके भी हाथ में तलवार है ,
चाहे उनकी मूततघयां चौरस्ते पर खडी कर दी गयी हों, और चाहे र्रों में धचर लगाये गये हों, वे
र्ोडे पर बैिे हुए—तलवारें हाथ में सलए हुए लोग, भयभीत लोग हैं। भीतर भय है । तलवार
उनकी िरु क्षा है — भय की।

और ध्यान रहे , जो आदमी तनभघय हो जायेगा, वह दि


ू रे को भयभीत करने के उपाय शुरू कर
दे गा। क्योंकक भीतर उिके भय है , वह डरा हुआ है । मैक्यावेसल ने कहा है , डडफेंि का, िुरक्षा
का एक िबिे अच्छा उपाय आक्रमण है , ‘अटै क’ है । ितीक्षा मत करो कक दि ू रा आक्रमण
करे गा, तब हम उत्तर दें गे। आक्रमण कर दो, ताकक, दि
ू रे को आक्रमण का मौका न रहे ।

जजतने लोग आक्रामक हैं, एग्रेसिव हैं, िब भीतर िे भय िे भरे हुए हैं। भयभीत आदमी हमेशा
आक्रामण होगा, क्योंकक वह डरता है । इिके पहले कक कोई मुझ पर हमला करे , मैं हमला कर
दं ।ू पहला मौका मुझे समल जाये। हमला हो जाने के बाद, कहा नहीं जा िकता है , क्या हो?
इिसलए भयभीत आदमी हमेशा तलवार सलए हुए है । वह कवच बांिे हुए समलेगा। कवच बहुत
तरह के हो िकते हैं। एक आदमी कह िकता है कक मैं तो भगवान में प्रव‍वाि करता हूं।
मुझे कोई डर नहीं है । मैं तो भगवान का िहारा मांगता हूं। यह भी कवच बनाया है भगवान
का, तलवार बना रहा है भगवान को। भगवान की तलवारें मत डालो। भगवान कोई लोहा नहीं
है कक तलवारें ढाली जा िकें और कवच बनाया जा िके।

वह आदमी कहता है , मझ
ु े कोई डर नहीं है । रोज मैं हनम
ु ान चालीिा पढता हूं। वह हनम
ु ान
चालीिा को ढाल बना रहा है । और भीतर भयभीत है । और भयभीत आदमी ककतना ही
हनम
ु ान चालीिा पढे .. तो हनम
ु ान कफर पछ
ू ते होंगे कक कई ठदनों िे यह पागल क्या कर रहा
है ? भयभीत आदमी ककतनी ही कवच उपलब्ि कर लें , मत
ृ नहीं समटता है । तनभघय भी भय
करने लगेगा और ठदखाने की कोसशश करे गा कक मैं ककिी िे भयभीत नहीं हूं। जो भी आदमी
ठदखाने की कोसशश करे कक मैं ककिी िे भयभीत नहीं हूं जान लेना कक ठदखाने की कोसशश
में भीतर भय उपजस्थत है । अभय बबलकुल और बात है ।

अभय का मतलब है , भय का प्रविजजघत हो जाना।

अभय का मतलब, भय का प्रविजघन। तनभघय नहीं हो जाना है । अभय का मतलब है , भय का


प्रविजजघत हो जाना। सिफघ अभय को जो उपलब्ि हुआ हो, वही व्यजक्त अठहंिक हो िकता है ।
तनभघय व्यजक्त, अठहंिक नहीं हो िकता। भीतर भय काम करता ही रहे गा। और भय िदा
ठहंिा की मांग करता रहे गा। भय िदा िुरक्षा चाहे गा। िुरक्षा के सलए ठहंिा का आयोजन
करना पडेगा।

आज तक का पूरा िमाज हमारा ठहंिक िमाज रहा है ।

अच्छे लोग भी ठहंिक रहे हैं, बुरे लोग भी ठहंिक रहे हैं।

इि िमघ के मानने वाले भी ठहंिक हैं, उि िमघ के मानने वाले भी ठहंिक हैं। इि दे श के, उि
दे श के; िारी प्
ृ वी ठहंिक रही है ।

िारी प्
ृ वी का परू ा इततहाि ठहंिा और यद्
ु िों का इततहाि है ।

नाम हम कुछ भी दे ते हों, नाम गौण है । जैिे कोई आदमी अपने कोट को खट
ूं ी पर टांग दे ।
खट
ूं ी गौण है , अिली िवाल कोट है । यह खट
ूं ी न समलेगी, दि
ू री खट
ूं ी पर टागेगा। दि
ू री न
समलेगी, तीिरी खट
ूं ी पर टांगेगा। खट
ूं ी िे कोई मतलब नहीं है ।

हजार खठंू टयों पर आदमी अपनी ठहंिा टांगता रहा है । िमघ की खट


ंू ी पर भी ठहंिा टांग दे ता
है , आश्रयघ की बात है । ठहन्द—
ू मि
ु लमान लड पडते हैं, ठहंिा हो जाती है । िमघ की खट
ंू ी पर
युद्ि टांगता है । िमघ की खट
ूं ी पर युद्ि टै ग िकता है । भाषा की खट
ूं ी पर युद्ि याता रहता
है । राष्ट्ों के चन
ु ाव पर युद्ि टै ग जायेगा।

कोई भी बहाना चाठहए आदमी को लडने का।

आदमी को लडने का बहाना चाठहए, क्योंकक आदमी भय िे भरा है ।

और जब तक आदमी भय िे भरा है , तब तक वह लडने िे मुक्त नहीं हो िकता। लडना ही


पडेगा। लडने िे वह अपनी ठहम्मत बढाता है ।

कभी दे खा है , अंिेरी गली में कोई जाता हो तो जोर िे गीत गाने लगता है ! िमझ मत रखना
कक कोई गीत गा रहा है अन्दर। सिफघ गीत गाकर भुला रहा है अपने भय को। िीटी बजाने
लगाता है आदमी अंिेरे में ! ऐिा लगता है कक िीटी िे बहुत िेम है । िीटी बजाकर भुला रहा
है , भीतर के भय को। हजार उपाय हम उपयोग करते हैं भीतर के भय को भुलाने के, लेककन
भीतर का भय समटता नहीं।
मैंने िुना है , चीन में एक बहुत बडा फकीर था। उिकी बडी ख्यातत थी। दरू —दरू तक ख्यातत
थी कक वह अभय को उपलब्ि हो गया है । ‘कफयरलेिनेि’ को उपलब्ि हो गया है । वह
भयभीत नहीं रहा है। यह िबिे बडी उपलजब्ि है । क्योंकक जो आदमी अभय को उपलब्ि हो
जायेगा वह ताजा, जवान धचत्त पा लेता है । और ताजा, जवान धचत्त फौरन परमात्मा को जान
लेता है , ित्य को जान लेता है ।

ित्य को जानने के सलए चाठहए ताजगी, ‘फ्रेशनेि’, जैिे िुबह के फूल में होती है , जैिे िुबह
की पहली ककरण में होती है ।

और बढ
ू े धचत्त में —सिफघ िड गये, धगर गये फूलों की दग
ु ि
िं होती है और प्रवदा हो गयी ककरणों
के पीछे का अंिेरा होता है । ताजा धचत्त चाठहए।

तो खबर समली, दरू —दरू तक खबर फैल गयी कक फकीर अभय को उपलब्ि हो गया है । एक
युवक िंन्यािी उि फकीर की खोज में गया जंगल में —र्ने जंगल में , जहां बहुत भय था, वह
फकीर वहां रहता था। जहां शेर दहाड करते थे, जहां पागल हाथी वक्ष
ृ ों को उखाड दे ते थे, उनके
ही बीच, च्टानों पर ही, वह फकीर पडा रहता था। और रात जहां अजगर रें गते थे, वहां वह
िोया रहता था तनज‍चत। युवक िंन्यािी उिके पाि गया। उिी च्टान के पाि बैि गया।
उििे बात करने लगा, तभी एक पागल हाथी दौडता हुआ तनकला पाि िे। उिकी चोटों िे
पत्थर ठहल गये। वक्ष
ृ नीचे धगर गये। वह युवक कंपने लगा खडे होकर। उि बूढे िंन्यािी के
पीछे तछप गया, उिके हाथ—पैर कंप रहे हैं।

वह बूढा िंन्यािी खब ू हं िने लगा और उिने कहा, तुम अभी डरते हो? तो िंन्यािी कैिे हुए?
क्योंकक जो डरता है , उिका िंन्याि िे क्या िंबंि? हालांकक अधिक िंन्यािी डरकर ही
िंन्यािी हो जाते हैं। पत्नी तक िे डरकर आदमी िंन्यािी हो जाते हैं। और डर की बात दरू
है —बडे डर तो दरू है , बडे—छोटे डरो िे डरकर िंन्यािी हो जाता है ।

उि बढ
ू े िंन्यािी ने कहा, तम
ु डरते हो? िंन्यािी हो तम
ु ? कैिे िंन्यािी हो? वह यव
ु क कैप
रहा है । उिने कहा, मझ
ु े बहुत डर लग गया। िच में , बहुत डर लग गया। अभी िंन्याि
वगैरह का कुछ खयाल नहीं आता। थोडा पानी समल िकेगा, मेरे तो ओंि िख ू गये,बोलना
मजु ‍कल है ।

बूढा उिा, वक्ष


ृ के नीचे, जहां उिका पानी रखा था, पानी लेकर गया। जब तक बूढा लौटा, उि
युवक िंन्यािी ने एक पत्थर उिाकर उि च्टान पर जजि पर बूढा बैिा था, लेटता था, बुद्ि
का नाम सलख ठदया—नमो बुद्िा:। बूढा लौटा, च्टान पर पैर रखने को था, नीचे ठदखायी पडा
नमो बुद्िा:। पैर कंप गया, च्टान िे नीचे उतर गया!
वह युवक खब
ू हं िने लगा। उिने कहा, डरते आप भी हैं। डर में कोई फकघ नहीं है । और मैं तो
एक हा िे डरा, जो बहुत वास्तप्रवक था। और एक लकीर िे मैंने सलख ठदया, नमो बुद्िा:, तो
पैर रखने में डर लगता कक भगवान के नाम पर पैर न पड जाये!

ककिका डर ज्यादा है ? वह युवा पूछने लगा। क्योंकक मैं खोजने आया था अभय। मैं पाता हूं
आप ” तनभघय हैं, अभय नहीं। तनभघय हैं सिफघ। भय को मजबूत कर सलया है भीतर। चारों
तरफ र्ेरा बना सलया है अभय का। सिंह नहीं डराता, पागल हाथी नहीं डराता, अजगर तनकल
जाते हैं; िख्त हैं बहुत आप। लेककन जजिके आिार पर िख्ती होगी, वह आपका भय बना
हुआ है । भगवान के आिार पर िख्त हो गये है । भगवान? िुरक्षा बना सलया है । तो भगवान
के खडडया िे सलखे नाम पर पैर रखने में डर लगता है !

उि यव
ु क ने कहा, डरते आप भी हैं। डर में कोई फकघ नहीं पडा। और ध्यान रहे , हाथी िे डर
जाना, पा िे—बद्
ु धिमत्ता भी हो िकती है । जरूरी नहीं कक डर हो। बद्
ु धिमानी ही हो िकती है ।
लेककन भगवान के नाम पर पैर रखने िे डर जाना तो बद्
ु धिमानी नहीं कही जा िकती है ।
पहला डर, बहुत स्वाभाप्रवक हो िकता है । दि
ू रा डर, बहुत िाइकोलॉजजकल, बहुत मानसिक
और बहुत भीतरी है । हम िब डरे हुए हैं। बहुत भीतरी डर है , िब तरफ िे मन को पकडे हुए
हैं। और हमारे भीतरी डरो का आिार वही होगा, जजिके आिार पर हमने दि ू रे डरो को बाहर
कर ठदया है ।

हम गाते हैं न कक तनबघल के बल राम! गा रहे हैं िुबह िे बैिकर कक हे भगवान, तनबघल के
बल तुम्हीं हो!

ककिी तनबघल का कोई बल राम नहीं है । जजिकी तनबघलता गयी, वह राम हो जाता है ।

तनबघलता गयी कक राम और ‍याम में फािला ही नहीं रह जाता। तनबघलता ही फािला है , वही
डडस्टें ि है । तनबघल के बल राम नहीं होते। तनबघलता राम होती ही नहीं। तनबघलता सिफघ राम
की कल्पना है । और तनबघलता को बचाने के सलए ढाल है । और िारी िाथघना, पज
ू ा, भय को
तछपाने का उपाय है । ‘सिक्योररटी मेजरमें ट’ है , और कुछ भी नहीं है । इंतजाम है िरु क्षा का।

कोई बैंक में इंतजाम करता है रुपये डालकर, कोई राम—राम—राम जपकर इंतजाम करता है
भगवान की पुकार करके। िब इंतजाम है ।

लेककन इंतजाम िे भय कभी नहीं समटता। ज्यादा िे ज्यादा तनभघय हो िकते हैं आप, लेककन
भय कभी नही समटता। तनभघय िे कोई अंतर नहीं पडता, भय मौजूद रह जाता है । भय मौजूद
ही रहता है , भीतर िरकता चला जाता है ।
जजि व्यजक्त के भीतर भय की पतघ चलती रहती है , वह व्यजक्त कभी भी युवा धचत्त का नहीं
हो िकता। उिकी िारी आत्मा बूढी ह्में जाती है । कफयर जो है , वह कक्रपसलग है , वह पंगु कर
दे ता है , िब हाथ—पैर तोड डालता है , िब अपंग कर दे ता है ।

और हम िब भयभीत हैं—क्या करें ? अभय कैिे हों? कफयरलेिनेि कैिे आये?

तनभघयता तो हम िब जानते हैं, आ िकती है। दं ड—बैिक लगाने िे भी एक तरह की


तनभघयता आती है , क्योंकक आदमी जंगली जानवर की तरह हो जाता है । एक तरह की
तनभघयता आती है। लोग ऊब जाते हैं दं ड बैिक लगाने िे। एक तरह की तनभघयता आ जाती
है । वह तनभघयता नहीं है अभय। तलवार रख ले कोई। खद
ु के हाथ में न रखकर, दि
ू रे के
हाथों में रख दे ।

पद पर पहुंच जाये कोई, तो एक तरह की तनभघयता आ जाती है । दतू नया भर के िब भयभीत


लोग पदों की खोज करते हैं। पद एक िरु क्षा दे ता है । अगर मैं राष्ट्पतत हो जाऊं तो जजतना
िुरक्षक्षत रहूंगा, बबना राष्ट्पतत हुए नहीं रह िकता। राष्ट्पतत के सलए, जजतने भयभीत लोग हैं,
िब दौड करते रहते हैं। डर गये हैं। भय है अकेले होने का। िरु क्षा चाठहए, इंतजाम चाठहए।
जजनको हम बहुत बडे—बडे पदों पर दे खते हैं, यह मत िोचना कक यह ककिी तनभघयता के बल
पर वहां पहुंच जाते हैं। वे तनभघयता के अभाव में ही पहुंचते हैं, भीतर भय है ।

ठहटलर के िंबंि में मैंने िुना है कक ठहटलर अपने कंिे पर हाथ ककिी को भी नहीं छुआ
िकता है । इिीसलए शादी भी नहीं की, कम िे कम पत्नी को तो छुआना ही पडेगा। शादी िे
डरता रहा कक शादी की, तो पत्नी तो कम िे कम कमरे में िोयेगी, लेककन भरोिा क्या है कक
पत्नी रात में गदघ न न दबा दे । ठहटलर ठदखता होगा, बहुत बहादरु आदमी।

ये बहादरु आदमी िब ठदखते हैं। यह िब बहादरु ी बबलकुल ऊपरी है , भीतर बहुत डरे हुए
आदमी हैं।

ठहटलर ककिी िे ज्यादा दोस्ती नहीं करता था, क्योंकक दोस्त के कारण जो िुरक्षा है , जो
व्यवस्था है , वह टूट जाती है । दोस्तों के पाि बीच के फािले टूट जाते हैं। ठहटलर के कंिे पर
कोई हाथ नहीं रख िकता था। ठहमलर या गोयबल्ि भी नहीं। कंिे पर हाथ कोई भी नहीं
रख िकता है । एक फािला चाठहए, एक दरू ी चाठहए। कंिे पर हाथ रखने वाला आदमी
खतरनाक हो िकता है । गदघ न पाि ही है , कंिे िे बहुत दरू नहीं है ।

एक औरत ठहटलर को बहुत िेम करती रही। लेककन भयभीत लोग कहीं िेम कर िकते हैं?
ठहटलर उिे टालता रहा, टालता रहा, टालता रहा। आप जानकर है रान होंगे, मरने के दो ठदन
पहले, जब मौत पकी हो गयी, जब बसलघन पर बम धगरने लगे, तो ठहटलर जजि तलर्र में
तछपा हुआ था, उिके िामने द‍ु मन की गोसलयां धगरने लगीं और द‍ु मन के पैरों की आवाज
बाहर िुनायी दे ने लगी, द्वार पर युद्ि होने लगा, और जब ठहटलर को पका हो गया कक मौत
तनज‍चत है , अब मरने िे बचने का कोई उपाय नहीं है , तो उिने पहला काम यह ककया है कक
एक समर को भेजा और कहा कक जाओ आिी रात उि औरत को ले आओ। कहीं कोई पादरी
िोया—जगा समल जाये, उिे उिा लाओ। शादी कर लूं। समरों ने कहा, यह कोई िमय है शादी
करने का? ठहटलर ने कहा, अब कोई भय नहीं है , अब कोई भी मेरे तनकट हो िकता है , अब
मौत बहुत तनकट है । अब मौत ही करीब आ गयी है , तब ककिी को भी तनकट सलया जा
िकता है ।

दो र्ंटे पहले ठहटलर ने शादी की तलर्र में ! सिफघ मरने के दो र्ंटे पहले!

तो परु ोठहत और िेक्रेटरी को बल


ु ाया था। उनकी िमझ के बाहर हो गया कक यह ककिसलए
शादी हो रही है ?

इिका ियोजन क्या है ? ठहटलर होश में नहीं है । परु ोठहत ने ककिी तरह शादी करवा दी है ।
और दो र्ंटे? उन्होंने जहर खाकर िुहागरात मना ली है और गोली मार ली है —दोनो ने! यह
आदमी मरते वक्त तक.. भी नहीं कर िका, क्योंकक दि
ू रे आदमी का िाथ रहना, पाि लेना
खतरनाक हो िकता है ।

दतु नया के जजन बडे बहादरु ों की कहातनयां हम इततहाि में पढते है , बडी झूिी हैं। अगर दतु नया
के बहादरु ों भीतरी मन में उतरा जा िके तो वहा भयभीत आदमी समलेगा। चाहे नाठदर हो,
चाहे चंगेज हो, चाहे तैमूर हो, वहां भीतर भयभीत आदमी समलेगा।

नाठदर लौटता था आिी दतू नया जीतकर, और िहरा है एक रे धगस्तान में । रात का वक्त है।
रात को िो िकता था। कैिे िोता? डर िदा भीतर था। तंबू में िोया। चोर र्ि
ु गये है तंबू
में । नाठदर को मारने नही हैं। कुछ िंपप्रत्त समल जाये, लेने को र्ि
ु गये हैं। नाठदर र्बडाकर
बाहर तनकला है । भागा है डरकर, तंबक
ू ी खट
ंू ी में पैर फंिकर धगर पडा है और मर गया है ।

वे जो बडे पदों की खोज में , बडे िन की खोज में , बडे यश की खोज मे—लोग लगे है , वे सिफघ
िुरक्षा रहे हैं। भीतर एक भय है । इतंजाम कर लेना चाहते हैं। भीतर एक दीवाल बना लेना
चाहते हैं, कोई डर नहीं है कल बीमारी आये, गरीबी आये, सभखमंगी आये, मत्ृ यु आये कोई डर
नहीं है । िब इतंजाम ककये लेते हैं। और लोग ऐिा इंतजाम करते हैं , कुछ लोग भीतरी
इंतजाम करते हैं!
रोज भगवान की िाथघना कर रहे है —कक कुछ भी हो जाये। इतने ठदन तक जो धचल्लाये है ,
वह वक्त पर पडेगा। इतने नाररयल चढाये, इतनी रर‍वत दी, वक्त पर िोखा दे गये हो?

भय में आदमी भगवान को भी रर‍वत दे ता रहा है !

और जजन दे शो मे भगवान को इतनी रर‍वत दी गयी हो, उन दे शों में समतनस्टर रूपी भगवानों
को रर‍वत दी लगी हो तो कोई मुज‍कल है , कोई है रानी है ? और जब इतना बडा भगवान
रर‍वत ले लेता हो तो छोटे —’ समतनस्टर ले लेते हों तो नाराजगी क्या है ? भय है , भय की
िरु क्षा के सलए हम िब उपाय कर रहे है । क्या ऐिे कोई आदमी अभय हो िकता है ? क भी
नहीं। अभय होने का क्या रास्ता है ? िरु क्षा की व्यवस्था अभय होने का रास्ता नहीं है ।

अिुरक्षा की स्वीकृतत अभय होने का रास्ता है , ‘ए टोटल एक्िेऐंि आफ इनसिक्योररटी, जीवन


अिुरक्षक्षत’ इिकी पररपूणघ स्वीकृतत मनुष्य को अभय कर जाती है ।

मत्ृ यु है , उििे बचने का कोई उपाय नहीं है , उििे भागने का कोई उपाय नहीं है वह है । वह
जीवन का एक त्य है । वह जीवन का ही एक ठहस्िा है । वह जन्म के िाथ ही जड
ु ा है ।

जैिे एक डंडे में एक ही छोर नहीं होता, दि


ू रा छोर भी होता है । और वह आदमी पागल है , जो
एक छोर स्वीकारे और दि
ू रे को इनकार कर लेता है । सिक्के में एक ही पहलू नहीं होता है ,
दि
ू रा भी होता है । और वह पागल है , जो एक को खीिे में रखना चाहे और दि
ू रे िे छुटकारा
पाना चाहे । यह कैिे हो िकेगा?

जन्म के िाथ मत्ृ यु का पहलू जुडा है । मत्ृ यु है , बीमारी है ,अिुरक्षा है ; कुछ भी तनज‍चत नहीं
है , िब अनिटे न है ।

जजंदगी ही एक अनिटें नटी है , जजंदगी ही एक अतनज‍चत है ।

सिफघ मौत एक तनज‍चत है । मरे हुए को कोई डर नहीं रह जाता। जजंदा में िब अिुरक्षा है ।
कदम—कदम पर अिुरक्षा है ।

जो क्षण भर पहले समर था, क्षण भर बाद समर होगा, यह तय नहीं है । इिे जानना ही होगा,
मानना ही होगा। क्षण भर पहले जो समर था, वह क्षण भर बाद समर होगा, यह तय नहीं है ।
क्षण भर पहले जो िेम कर रहा था, वह क्षण भर बाद कफर िेम करे गा, यह तनज‍चत नहीं है ।
क्षण भर पहले जो व्यवस्था थी, वह क्षण भर बाद नहीं खो जायेगी, यह तनज‍चत नहीं है । िब
खो िकता है , िब जा िकता है , िब प्रवदा हो िकता है । जो पत्ता अभी हरा है , वह थोडी दे र
बाद िूखेगा और धगरे गा। जो नदी वषाघ में भरी रहती है , थोडी दे र बाद िूखेगी और रे त ही रह
जायेगी।

जीवन जैिा है उिे जान लेना, और जीवन में जो अतनज‍चत है , उिका पररपूणघ बोि और
स्वीकृतत मनुष्य को अभय कर दे ती है । कफर कोई भय नहीं रह जाता।

मैं भावनगर िे आया। एक धचरकार को उिके मां—बाप मेरे पाि ले आए। योग्य, िततभाशाली
धचरकार है , लेककन एक अजीब भय िे िारी िततभा कंु ठित हो गयी है । एक भय पकड गया
है , जो जान सलये ले रहा है । अमरीका भी गया था वह, वहां भी धचककत्िा चली। मनोवैज्ञातनकों
ने मनोप्रव‍लेषण ककये, िाइकोएनसलसिि की। कोई फल नहीं हुआ िब िमझाया जा चक ु ा है ,
कोई फल नहीं हुआ। मेरे पाि लाये हैं,कहा कक हम मजु ‍कल में पड गये हैं। कोई फल होता
नहीं है । िब िमझा चक
ु े हैं, िब हो चक
ु ा है । इिे क्या हो गया है , यह एकदम भयभीत है ।

मैंने पूछा, ककि बात िे भयभीत है ? तो उन्होंने कहा कक रास्ते पर कोई लंगडा आदमी ठदख
जाये, तो यह इिको भय हो जाता है कक कहीं मैं लंगडा न हो जाऊं। अब बडी मुज‍कल है ।
अंिा आदमी समल जाये, तो र्र आकर रोने लगता है कक कहीं मैं अंिा न हो जाऊं। हम
िमझाते हैं कक तू अंिा क्यों होगा, तू बबलकुल स्वस्थ है , तुझे कोई बीमारी नहीं है । कोई
आदमी मरता है रास्ते पर, बि यह बैि जाता है । यह कहता है कहीं मैं मर न जाऊं। हम
िमझाते हैं, िमझाते—िमझाते हार गये। डाक्टरों ने िमझाया, धचककत्िकों ने िमझाया, इिकी
िमझ में नहीं पडता है ।

मैंने कहा, तुम िमझाते ही गलत हो। वह जो कहता है , िीक ही कहता है। गलत कहां कहता
है ? जो आदमी आज अंिा है , कल उिके पाि भी आंख थी। और जो आदमी आज लंगडा है ,
हो िकता है कक उिके पाि भी पैर हों। और आज उिके पाि पैर हैं, कल वह लंगडा हो
िकता है । और आज जजिके पाि आंख है , कल वह अंिा हो िकता है । इिमें यह युवक
गलत नहीं कह रहा है । गलत तुम िमझा रहे हो। और तुम्हारे िमझाने िे इिका भय बढता
जा रहा है । तुम ककतना ही िमझाओ कक तू अंिा नहीं हो िकता है । गारं टी कराओ। कौन
कह िकता है कक मैं अंिा नहीं हो िकता। िारी दतू नया कहे तो भी तनज‍चत नहीं है कक मैं
अंिा नहीं हो िकता। अंिा मैं हो िकता हूं क्योंकक आंखें अंिी हो िकती हैं। मेरी आंखों ने
कोई िे का सलया है कक अंिी नहीं हों! पैर लंगडे हुए हैं। मेरा पैर लंगडा हो िकता है । आदमी
पागल हुए हैं। मैं पागल हो िकता हूं। जो ककिी आदमी के िाथ कभी भी र्टा है —वह मेरे
िाथ भी र्ट िकता हूएए, क्योंकक िारी िंभावना िदा है ।
मैंने कहा, इि युवक को तुम गलत िमझा रहे हो। तुम्हारे गलत िमझाने िे —यह ककतनी
ही कोसशश करे कक मैं अंिा नहीं हो िकता, लेककन इिे ठदखायी पडता है कक अंिे होने की
िंभावना—तुम ककतना ही कहो कक नहीं हो िकता है —समटती नहीं।

उि युवक ने कहा, यही मेरी तकलीफ है । यह जजतना िमझाते हैं, उतना मैं भयभीत हुए चला
जा रहा हूं। मैंने उििे कहा कक यह बबलकुल ही गलत िमझाते हैं। मैं तम
ु िे कहता हूं तुम
अंिे हो िकते हो, तुम लंगडे हो िकते हो, तुम कल िुबह मर िकते हो, तम्
ु हारी पत्नी तुम्हें
कल छोड िकती है , मां तुम्हारी द‍ु मन हो िकती है , मकान धगर िकता है , गांव नष्ट हो
िकता है , िब हो िकता है । इिमें कुछ इनकार करने जैिा जरा भी नहीं है । इिे स्वीकार
करो। मैंने कहा, तुम जाओ, इिे स्वीकार करो। िुबह मेरे पाि आना।

यह यव
ु क गया है —तभी मैंने जाना है कक वह कुछ और ही होकर जा रहा है । अब कोई लडाई
नहीं है । जो हो िकता है , और जजििे बचाव का कोई उपाय नहीं है , और जजिके बचाव का
कोई अथघ नहीं है और जजिके लडने की मानसिक तैयारी बेमानी है । वह हलका होकर गया
है ।

वह िुबह आया है और उिने कहा कक तीन िाल में मैं पहली दफे िोया हूं। आश्रयघ, कक यह
बात स्वीकार कर लेने िे हल हो जाती है कक मैं अंिा हो िकता हूं। िीक है , हो िकता हू।

मैंने कहा, तुम डरते क्यों हो अंिे होने िे? उिने कहा कक डरता इिसलए हूं कक कफर धचर न
बना पाऊंगा। तो मैंने कहा, जब तक अंिे नहीं हो, धचर बनाओ, व्यथघ में िमय क्यों खोते हो।
जब अंिे हो जाओगे, नहीं बना पाओगे, पका है । इिसलए बना लो, जब तक आंख—हाथ है , बना
लो। जब आंख प्रवदा हो जाये, तब कुछ और करना।

लेककन आंख प्रवदा हो िकती है । िारा जीवन ही प्रवदा होगा एक ठदन, िब प्रवदा हो िकता है ।
ककिी की िब चीजें इक्िी प्रवदा होती हैं, ककिी की फुटकर—फुटकर प्रवदा होती हैं, इिमें
झंझट क्या है ? एक आदमी होलिेल चला जाता है , एक आदमी पाटघ —पाटघ में जाता है , टुकडे—
टुकडे में जाता है । ककिी की आंख चली गयी तो कुछ और, कफर कुछ और गया। कोई आदमी
इक्िे ही चला गया।

इक्िे जाने वाले िमझते हैं कक जजनके थोडे— थोडे ठहस्िे जा रहे हैं, वे अभागे हैं। बडी
मुज‍कल बात है । इतना ही क्या कम िौभाग्य है कक सिफघ आंख गयी है । अभी पैर नहीं गया,
अभी पूरा नहीं गया। इतना ही क्या कम िौभाग्य है कक सिफघ पैर गये हैं, अभी पूरा आदमी
नहीं गया है ।
बुद्ि का एक सशष्य था.. उि युवक िे मैंने यह कहानी कही थी, वह मैं आपको अभी कहता
हूं। उि युवक िे मैंने कहा कक अब तू भय के बाहर हो गया है ।

इनसिक्योररटी को जजिने स्वीकार कर सलया है , वह भय के बाहर हो जाता है , वह अभय हो


जाता है ।

बुद्ि का एक सशष्य है पूण।घ और बुद्ि ने उिकी सशक्षा पूरी कर दी है और उििे कहा है ,


अब तू जा और खबर पहुंचा लोगों तक। पूणघ ने कहा, मैं जाना चाहता हूं िूखा नाम के एक
इलाके में ।

बुद्ि ने कहा, वहां मत जाना, वहां के लोग बहुत बुरे हैं। मैंने िुना है , वहां कोई सभक्षु कभी भी
गया तो अपमातनत होकर लौटा है , भाग आया है डरकर। बडे दष्ु ट लोग है , वहां मत जाना।

उि पण
ू घ ने कहा, लेककन वहां कोई नहीं जायेगा, तो उन दष्ु टों का क्या होगा? बडे भले लोग हैं,
सिफघ गासलयां ही दे ते हैं, अपमातनत ही करते हैं, मारते नहीं। मार भी िकते थे, ककतने भले
लोग हैं, ककतने िज्जन हैं?

बुद्ि ने कहा, िमझा। यह भी हो िकता है कक वे तुझे मारें भी, पीटें भी। पीडा भी पहुंचाये,
काटे भी छे दें , पत्थर मारें , कफर क्या होगा?

तो पूणघ ने कहा, यही होगा भगवान, कक ककतने भले लोग हैं कक सिफघ मारते हैं, मार ही नहीं
डालते हैं। मार डाल िकते थे।

बुद्ि ने कहा, आखखरी िवाल। वे तुझे मार भी डाल िकते हैं, तो मरते क्षण में तुझे क्या
होगा?

पूणघ ने कहा, अजन्तम क्षण में िन्यवाद दे ते प्रवदा हो जाऊंगा कक ककतने अच्छे लोग हैं कक
इि जीवन िे मुजक्त दी, जजिमें भूल—चक
ू हो िकती थी।

बद्
ु ि ने कहा, अब तू जा। अब तू अभय हो गया। अब तझ
ु े कोई भय न रहा। तन
ू े जीवन की
िारी अिरु क्षा िारे भय को स्वीकार कर सलया। तन
ू े तनभघय बनने की कोसशश ही छोड दी।

ध्यान रहे , भयभीत आदमी तनभघय बनने की कोसशश करता है । उि कोसशश िे भय कभी नहीं
समटता है । उिको उपलब्ि होता है —जो भय है , ऐिी जीवन की जस्थतत है —इिे जानता है ,
स्वीकार कर लेता है । भय के बाहर हो जाता है । और युवा धचत्त उिके भीतर पैदा होता है , जो
भय के बाहर हो जाता है।

एक िूर युवा धचत्त के जन्म के सलए, भय के बाहर हो जाने के सलए अभय है ।

और दि
ू रा िूर.?? पहला िूर है , बूढे धचत्त का मतलब है ‘कक्रपल्ड प्रवद कफयर’, भय िे पुंज।

और दि
ू रा िूर है … बूढे धचत्त का अथघ है , ‘बडघन प्रवद नालेज’, ज्ञान िे बोखझल।

जजतना बूढा धचत्त होगा उतना ज्ञान िे बोखझल होगा। उतने पांडडत्य का भारी पत्थर उिके
सिर पर होगा। जजतना यव
ु ा धचत्त होगा, उतना ज्ञान िे मक्
ु त होगा।

उिने स्वयं ही जो जाना है , जानते ही उिके बाहर हो जायेगा और आगे बढ जायेगा। ‘ए


कास्टें ट अवेयरनेि आफ नाट नोन’। एक ितत भाव उिके मन में रहे गा, नहीं जानता हूं।
ककतना ही जान ले, उि जानने को ककनारे हुआ, न जानने के भाव को िदा जजंदा रखेगा। वह
अतीत में भी क्षमता रखेगा। रोज िब िीख िकेगा, पल िीख िकेगा। कोई ऐिा क्षण नहीं
होगा, जजि ठदन वह कहे गा कक मैं पहले िे ही जानता हूं इिसलए सिखने की अब कोई जरूरत
नहीं है । जजि आदमी ने ऐिा कहा, वह बूढा हो गया।

युवा धचत्त का अथघ है : िीखने की अनंत क्षमता।

बूढे धचत्त का अथघ है : िीखने की क्षमता का अंत।

और जजिको यह खयाल हो गया, मैंने जान सलया है , उिकी िीखने की क्षमता का अंत हो
जाता है ।

और हम िब भी जान िे बोखझल हो जाते हैं। हम ज्ञान इिीसलए इक्िा करते हैं कक बोखझल
हो जायें। ज्ञान हम सिर पर लेकर चलते हैं। जान हमारा पंख नहीं बनता है , ज्ञान हमारा
पत्थर बन जाता है ।

ज्ञान बनना चाठहए पंख। ज्ञान बनता है पत्थर।

और ज्ञान ककनका पंख बनता है , जो तनरं तर और—और—और जानने के सलए खल


ु े हैं मक्
ु त हैं,
द्वार जजनके बंद नहीं है ।
एक गांव में एक फकीर था। उि गांव के राजा को सशकायत की गयी कक वह फकीर लोगों
को भ्ष्ट कर रहा है । अिल में अच्छे फकीरों ने दतू नया को िदा भ्ष्ट ककया ही है । वे करें गे
ही, क्योंकक दतु नया भ्ष्ट है । और इिको बदलने के सलए भ्ष्ट करना पडता है । दो भ्ष्टताएं
समलकर िुिार शुरू होता है । दतू नया भ्ष्ट है । इि दतु नया को ऐिा ही स्वीकार कर लेने के
सलए कोई िंन्यािी, कोई फकीर कभी राजी नहीं हुआ है ।

गांव के लोगों ने खबर की, पंडडतों ने खबर की कक यह आदमी भ्ष्ट कर रहा है । ऐिी बातें
सिखा रहा है , जो ककताबों में नहीं हैं। और ऐिी बातें कह रहा है कक लोगों का िंदेह जग
जाये। और लोगों को ऐिे तकघ दे रहा है कक लोग भ्समत हो जायें, िंठदग्ि हो जायें।

राजा ने फकीर को बल
ु ाया दरबार में , और कहा कक मेरे दरबार के पंडडत कहते हैं कक तम

नाजस्तक हो। तम
ु लोगों को भ्ष्ट कर रहे हो। तम
ु गलत रास्ता दे रहे हो। तम
ु लोगों में िंदेह
पैदा कर रहे हो।

उि फकीर ने कहा, मैं तो सिफघ एक काम कर रहा हूं कक लोगों को युवक बनाने की कोसशश
कर रहा हूं। लेककन अगर तुम्हारे पंडडत ऐिा कहते हैं तो मैं तुम्हारे पंडडतों िे कुछ पूछना
चाहूंगा।

राजा के बडे िात पंडडत बैि गये। उन्होंने िोचा वे तैयार हो गये!

पंडडत वैिे भी एवररे डी, हमेशा तैयार रहता है , क्योंकक रे डडमेड उत्तर िे पंडडत बनता है । पंडडत
के पाि कोई बोि नहीं होता है । जजिके पाि बोि हो, वह पंडडत बनने को राजी नहीं हो
िकता है । पंडडत के पाि तैयार उत्तर होते हैं।

वे तैयार होकर बैि गए हैं। उनकी रीढें िीिी हो गयीं—जैिे छोटे बच्चे स्कूल में परीक्षाएं दे ने
को तैयार हो जाते हैं। छोटे बच्चों में , बडे पंडडतों में बहुत फकघ नहीं। परीक्षाओं में फकघ हो
िकता है । तैयार हो गया पंडडतों का वगघ। उन्होंनें कहा, पूछो। िोचा की शायद पछ ू े गा, ब्रह्म
क्या है ? मोक्ष क्या है ? आत्मा क्या है ? कठिन िवाल पूछेगा। तो िब उत्तर तैयार थे। उन्होंने
मन में दहु रा सलए जल्दी िे कक क्या उत्तर दे ने हैं।

जजि आदमी के पाि उत्तर नहीं होता है , उिके पाि बहुत उत्तर होते हैं! और जजिके पाि
उत्तर होता है , उिके पाि तैयार कोई उत्तर नहीं होता है ! िश्र आता है तो उत्तर पैदा होता है ।
उनके पाि िश्र पहले िे तैयार होते हैं, जजनके पाि बोि नहीं होता है ! क्योंकक बोि न हो तो
िश्र तैयार, िश्र का उत्तर तैयार होना चाठहए, नहीं तो वक्त पर मुज‍कल हो जायेगा।
उन पंडडतों ने जल्दी िे अपने िारे जान की खोजबीन कर ली होगी। उिने चार—पांच कागज
के टुकडे उन पंडडतों के हाथ में पक्का ठदये, एक—एक टुकडा। और कहा कक एक छोटा—िा
िवाल पूछता हूं व्हाट इज ब्रेड? रोटी क्या है ?

पंडडत मुज‍कल में पड गए, क्यौंकक ककिी ककताब में नहीं सलखा हुआ है , ककिी उपतनषद में
नहीं, ककिी वेद में नहीं, ककिी पुराण में नहीं। व्हाट इज ब्रेड, रोटी क्या है ? कहा कक कैिा
नािमझ आदमी है ! कैिा िरल िवाल पूछता है ।

लेककन वह फकीर िमझदार रहा होगा। उिने कहा, आप सलख दें एक—एक कागज पर। और
ध्यान रहे एक दि
ू रे के कागज को मत दे खना, क्योंकक पंडडत िदा चोर होते हैं। वह िदा
दि
ू रों के उत्तर िीख लेते हैं। आिपाि मत दे खना। जरा दरू —दरू हटकर बैि जाओ। अपना—
अपना उत्तर सलख दो।

राजा भी बहुत है रान हुआ। राजा ने कहा, क्या पूछते हो तुम? उिने कहा, इतना उत्तर दे दें तो
गनीमत है । पंडडतों िे ज्यादा आशा नहीं करनी चाठहए। बडा िवाल बाद में पूछूंगा, अगर छोटे
िवाल का उत्तर आ जाये।

पहले आदमी ने बहुत िोचा, रोटी, यानी क्या? कफर उिने सलखा कक रोटी एक िकार का भोजन
है । और क्या करता? दि
ू रे आदमी ने बहुत िोचा रोटी यानी क्या? तो उिने सलखा, रोटी आटा,
पानी और आग का जोड है । और क्या करता? तीिरे आदमी ने बहुत िोचा, रोटी यानी क्या?
उिे उत्तर नहीं समलता। तो उिने सलखा, रोटी भगवान का एक वरदान है । पांचवें ने सलखा कक
रोटी एक रहस्य है , एक पहे ली है , क्योंकक रोटी खून कैिे बन जाती है , यह भी पता नहीं। रोटी
एक बडा रहस्य है , रोटी एक समस्ट्ी है । छिे ने सलखा, रोटी क्या है ? यह िवाल ही गलत है ।
यह िवाल इिसलए गलत है कक इिका उत्तर ही पहले िे कहीं सलखा हुआ नहीं है । गलत
िवाल पूछता है यह आदमी। िवाल वह पूछने चाठहए, जजनके उत्तर सलखें हो। िातवें आदमी
ने कहा कक मैं उत्तर दे ने िे इनकार करता हूं क्योंकक उत्तर तब ठदया जा िकता है , जब मुझे
पता चल जाये कक पूछने वाले ने ककि दृजष्ट िे पछ ू ा है ? तो रोटी यानी क्या? हजार दृजष्टकोण
हो िकते हैं, हजार उत्तर हो िकते हैं। िमाजदवादी रहा होगा। कहा कक, यह भी हो िकता है ,
वह भी हो िकता है ।

िातों उत्तर लेकर राजा के हाथ में फकीर ने दे ठदये और उििे कहा कक ये आपके पंडडत हैं।
इन्हें यह पता नहीं कक रोटी क्या है ? और इनको यह पता है कक नाजस्तक क्या है , आजस्तक
क्या है ! लोग ककििे भ्ष्ट होंगे, ककििे बनेंगे, यह इनको पता हो िकता है!
राजा ने कहा पंडडतों, एकदम दरवाजे के बाहर हो जाओ। पंडडत बाहर हो गए। उिने फकीर िे
पूछा कक तुमने ख. मुज‍कल में डाल ठदया है ।

फकीर ने कहा, जजनकी खोपडी पर भी जान का बोझ है , उन्हें िरल—िा िवाल मुज‍कल में
डाल िकता है । ज्यादा बोझ, उतनी िमझ कम हो जाती है । क्योंकक यह खयाल पैदा हो जाता
है बोझ िे कक िमझ तो है । और िमझ ऐिी चीज है कक कास्टें टली कक्रएट करनी पडती है , है
नहीं। कोई ऐिी चीज नहीं है कक आपके भीतर छ है िमझ। उिे आप रोज पैदा कररये तो
वह पैदा होती है , और बंद कर दीजजये तो बंद हो जाती है ।

िमझ िाइककल चलाने जैिी है । जैिे एक आदमी िाइककल चला रहा है । अब िाइककल चल
पडी है । अब वह कहता है , िाइककल तो चल पडी है , अब पैडल रोक लें। अब पैडल रोक लें ,
िाइककल चलेगी? चार—छह—कदम के बाद धगरे गा। हाथ—पैर तोड दे गा। िाइककल का चलाना
तनरं तर चलने के ऊपर तनभघर है ।

िततभा भी तनरं तर गतत है । जीतनयि कोई ‘डैड स्टे ठटक एन्टाइटी’ नहीं है । िततभा कोई ऐिी
चीज नहीं है कक कहीं रखी है भीतर, कक आपके पाि ककतनी िततभा है , िेर भर और ककिी के
पाि दो िेर! ऐिी कोई चीज नहीं िततभा।

िततभा मूवमें ट है , गतत है , तनरं तर गतत है।

इिसलए तनरं तर जो िज
ृ न करता है , उिके भीतर, मजस्तष्क, बुद्धि और िततभा, िज्ञा पैदा होती
है । जो िज
ृ न बंद कर दे ता है उिके भीतर जंग लग जाती है और िब खत्म हो जाती है ।

रोज चसलए। और चलेगा कौन? जजिको यह खयाल नहीं है कक मैं पहुंच गया। जजिको यह
खयाल हो गया कक पहुंच गया, वह चलेगा क्यों? वह प्रवश्राम करे गा, वह लेट जाएगा। जान का
बोि पहुंच जाने का खयाल पैदा करवा दे ता है कक हम पहुंच गये, पा सलया, जान सलया, अब
क्या है ? रुक गये।

ज्ञान ककतना ही आये, और ज्ञान आने की क्षमता तनरं तर शेष रहनी चाठहए। वह तभी रह
िकती है , जब ज्ञान बोझ न बने। जान को हटाते चलें। रोज िीखें। और रोज जो िीख जायें,
राख की तरह झाडू दें । और कचरे कक तरह—जैिे िब
ु ह फेंक ठदया था र्र के बाहर कचरा,
ऐिे रोज िांझ, जो जाना, जो िीखा, उिे फेंक दें । ताकक कल आप कफर ताजे िब
ु ह उिें , और
कफर जान िकें, कफर िीख िकें, िीखना जारी रहे ।
ध्यान रहे , क्या हम िीखते हैं, यह मूल्यवान नहीं है । ककतना हम िीखते हैं—उि िीखने की
िकक्रया िे गुजरने वाली आला तनरं तर जवान होती चली जाती है ।

िुकरात जजतना जवानी में रहा होगा मरते वक्त, उििे ज्यादा जवान है । क्योंकक मरते वक्त
भी िीखने को तैयार है । मर रहा है , जहर ठदया जा रहा है , जहर बाहर बांटा जा रहा है । िारे
समर रो रहे हैं, और िुकरात उि—उिकर बाहर जाता है , और जहर र्ोंटने वाले िे पूछता है
बडी दे र लगाते हो! िमय तो हो गया, िूरज अब डूबा जाता है । वह जहर र्ोंटने वाला कहने
लगा, पागल हो गये हो िक
ु रात! मैं तुम्हारी वजह िे िीरे — िीरे र्ोंटता हूं कक तुम थोडी दे र
और जजंदा रह लो। ताकक इतने अच्छे आदमी का प् ृ वी पर और थोडी दे र रहना हो जाये।
तुम पागल हो, तुम खद
ु ही इतनी जल्दी मचा रहे हो, तुम्हें जल्दी क्या है ? उिके समर पूछते
हैं,इतना जल्दी क्या है ? क्यों इतनी मरने की आतुरता है ?

िक
ु रात कहता है , मरने की आतरु ता नहीं; जीवन को जाना, मौत भी जानने का बडा मन हो
रहा है कक क्या है मौत! क्या है मौत? मरने के क्षण पर खडा हुआ आदमी जानना चाहता है
कक क्या है मौत! यह आदमी जवान है , इिको मार िकते हो? इिका मारना बहुत मुज‍कल है ।
इिको मौत भी नहीं मार िकती है । यह मौत को भी जान लेगा और पार हो जायेगा।

जो जान लेता है , वह पार हो जाता है । जजिे हम जान लेते हैं, उििे पार हो जाते हैं।

लेककन हम मरने के पहले ही जानना बंद कर दे ते हैं। आमतौर िे बीि िाल के, इक्कीि िाल
के करीब आदमी की बुद्धि िप हो जाती है । उिके बाद बुद्धि प्रवकसित नहीं होती, सिफघ
िंग्रह बढता चला जाता है —सिफघ िंयत। दि पत्थर की जगह पन्िह पत्थर हो जाते हैं , बीि
पत्थर हो जाते हैं। दि ककताबों की जगह पचाि ककताबें हो जाती हैं , लेककन क्षमता जानने की
कफर आगे नहीं बढती। बि इक्कीि िाल में आदमी बुद्धि के ठहिाब िे मर जाता है ! बूढा हो
जाता है ।

कुछ लोग और जल्दी मरना चाहते हैं—और जल्दी! और जो जजतना जल्दी मर जाता है ,
िमाज उिको आदमी ही आदर दे ता है । तो जजतना दे र जजंदा रहे गा, उििे उतनी तकलीफ
होती है िमाज को। क्योंकक जजंदा आदमी िोचने वाला आदमी, खोजने वाला आदमी नए पहलू
दे खता है , नये आयाम दे खता है , ‘डडस्टबबिंग ‘ होता है । बहुत—िी जगह चीजों को तोडता—
मरोडता मालूम होता है । हम िब जान के बोझ िे दब गये है ।

मैंने िुना है , एक आदमी र्ोडे पर िवार जा रहा है , एक गांव को। गांव के लोगों ने उिे र्ेर
सलया और कहा कक तुम बहुत अदभुत आदमी हो। वह आदमी अदभुत रहा होगा। वह अपना
पेटी बबस्तर सिर पर रखे था और र्ोडे के ऊपर बैिा हुआ था। गांव के लोगों ने पूछा, यह
तुम क्या कर रहे हो? र्ोडे पर पेटी बबस्तर िा। लो। उिने कहा, र्ोडे पर बहुत ज्यादा वजन
हो जायेगा,इिसलए मैं अपने सिर पर रखे हुए हूं!

उि आदमी ने िोचा कक र्ोडे पर पेटी बबस्तर रखने िे बहुत वजन हो जायेगा, कुछ ठहस्िा
बंटा लें। खद
ु र्ोडे पर बैिे हुए है और पेटी बबस्तर अपने सिर पर रखे हुए है , ताकक अपने पर
कुछ वजन पडे और र्ोडे पर वजन कम हो जाये।

ज्ञान को अपने सिर पर मत रखखये। जजंदगी काफी िमथघ है । आप छोड दीजजए, आपकी
जजंदगी की िारा उिे. िंभाल लेगी। उिे सिर पर रखने की जरूरत नहीं। और सिर पर रखने
िे कोई फायदा नहीं। आप तो छोडडए। जो भी उिमें एिेंसशयल है , जो भी िारभत
ू है , वह
आपकी चेतना का ठहस्िा होता चला जायेगा।

उिे सिर पर मत रखखए। ककताबों को सिर पर मत रखखए, रे डीमेड उत्तर सिर पर मत रखखए।
बंिे हुए उत्तर िे बधचये, बंिे हुए ज्ञान िे बधचए और भीतर एक युवा धचत्त पैदा हो जायेगा।
जो व्यजक्त ज्ञान के बोझ िे मुक्त हो जाता है , जो व्यजक्त भय िे मुक्त हो जाता है , वह
व्यजक्त युवा हो जाता है ।

और जो व्यजक्त का होने की कोसशश में लगा है , अपने ही हाथों िे, क्योंकक ध्यान रहे , मैं
कहता हूं कक बुढापा अजजघत है । बुढापा है नहीं। हमारा अचीवमें ट है , हमारी चेष्टा िे पाया हुआ
फल है ।

जवानी स्वाभाप्रवक है , युवा धचत्त होना स्वभाव है । वद्


ृ िावस्था हमारा अजघन है । अगर हम
िमझ जायें, धचत्त िे कैिे वद्
ृ ि होता है , तो हम तत्क्षण जवान हो जायेंगे।

बूढा धचत्त बोझ िे भरा धचत्त है , जवान धचत्त तनबोझ है । बोखझल है बूढा धचत्त।

जवान धचत्त तनबोझ है , वेटलेि है । जवान धचत्त ताजा है । जैिे िब


ु ह अंकुर खखला हो, तनकला
हो नये बीज िे, ऐिा ताजा है । जैिे नया बच्चा पैंदा हुआ हो, जैिे नया फूल खखला हो, जैिी
नयी ओि की बंद ू धगरी हो, नयी ककरण उिी हो, नया तारा जगा हो, वैिा ताजा है ।

बूढा धचत्त जैिे अंगारा बुझ गया, राख हो गया हो। पत्ता िड गया, धगर गया, मर गया। जैिे
दग
ु ि
िं इक्िी हो गयी हो, िड गयी हो लाश। इक्िी कर ली हैं लाशें, तो र्र में रख दी हैं,
तो बाि फैल गयी हो। ऐिा है बूढा धचत्त।
नया धचत्त, ताजा धचत्त, ‘यंग माइंड’ नदी की िारा की तरह तेज, पत्थरों को काटता, जमीन को
तोडता, ितर की तरफ भागता है । अनंत, अज्ञात की यारा पर।

और बूढा धचत्त? तालाब की तरह बंद। न कहीं जाता, न कहीं यारा करता है ; न कोई िागर है
आगे, न कोई पथ है , न कोई जमीन काटता, न पत्थर तोडता, न पहाड पार करता—कहीं जाता
ही नहीं। बूढा धचत्त बंद, अपने में र्ूमता, िडता, गंदा होता। िूरज की िप
ू में पानी उडता और
िूखता और कीचड होता चला जाता है । इिसलए जवान धचत्त जीवन है , बूढा धचत्त मत्ृ यु है ।

और अगर जीवन को जानना हो, परम जीवन को, जजिका नाम परमात्मा है , उि परम जीवन
को, तो यव
ु ा धचत्त चाठहए, यंग माइंड चाठहए।

और हमारे हाथ में है कक हम अपने को बूढा करें या जवान। हमारे हाथ में है कक हम वद्
ृ ि
हो जायें, िड जायें या युवा हों, ताजे और नये। नये बीज की तरह हमारे भीतर कुछ फूटे या
पुराने ररकाडघ की तरह कुछ बार—बार ररपीट होता रहे । हमारे हाथ में है िब।

आदमी के हाथ में है कक वह िभु के सलए द्वार बन जाये। तो यव


ु ा है भीतर, िभु के सलये
द्वार बन गया।

और जो बूढा हो गया उिकी दीवाल बंद है , द्वार बन्द है । वह अपने में मरे गा, गलेगा, िडेगा।
कब्र अततररक्त उिका कहीं और पहुंचना नहीं होता।

लेककन अब तक जो िमाज तनसमघत हुआ है , वह बढ


ू े धचत्त को पैदा करने वाला िमाज है ।

एक नया िमाज चाठहए, जो नये धचत्त को जन्म दे ता हो। एक नयी सशक्षा चाठहए, जो बूढे
धचत्त को पैदा करती हो और नये धचत्त को पैदा करती हो। एक नयी हवा, नया िसशक्षण, नयी
दीक्षा, नया जीवन, एक वातावरण चाठहए, जहां अधिकतम लोग जवान हो िकें। बूढा आदमी
अपवाद हो जाये, वद्
ृ ि धचत्त अपवाद जाये, जहां युवा धचत्त हो।

अभी उलटी बात है । युवा धचत्त अपवाद है । कभी कोई बुद्ि, कभी कोई कृष्ण, कभी कोई
क्राइस्ट युवा है और परमात्मा की िुगंि और गीत और नत्ृ य िे भर जाता है । हजारों िाल
तक उिकी िुगंि खबर लाती है । इतनी ताजगी पैदा कर जाता है कक हजारों िाल तक
उिकी िुगंि आती है । उिके िाणों िे उिी हुई पुकार गूंजती रहती है । कभी ये मनुष्यता के
लंबे इततहाि में दो—चार लोग युवा होते हैं। हम िब के ही पैदा होते हैं बूढे ही मर जाते हैं!
लेककन, हमारे अततररक्त और कोई जजम्मेदार नहीं है । यह मैने दो बातें तनवेदन कीं। इन पर
िोचना। मेरी ‘ मान मत लेना। जो मानता है , वह बूढा होना शुरू हो जाता है । िोचना, गलत
हो िकता हो, िब गलत हो िकता है । जो मैंने कहा, एक भी िीक न हो। िोचना, खोजना,
शायद कुछ िीक हो तो वह आपके जीवन को युवा करने में समर बन िकता है ।

मेरी बातों को इतने िेम और शांतत िे िुना, उििे अनुग्रहीत हूं और अंत में िबके भीतर बैिे
परमात्मा िणाम करता हूं।

मेरे िणाम स्वीकार करें ।

अहमदाबाद,
20 अगस्त 1969, रात्रत्र

संभोग से समाधि की

संभोग से समाधि की ओर –45


Posted on सितम्बर 19, 2013by sw anand prashad

नार और क्रांनत—प्रिचन तैरहिां


मेरे प्रिय आत्मन

व्यजक्तयों में ही, मनुष्य में ही िी और पुरुष नहीं होते हैं—पशुओं में भी पक्षक्षयों में भी।
लेककन एक और भी नयी बात आपिे कहना चाहता हू : दे शों में भी िी और पुरुष दे श होते
हैं।

भारत एक िी दे श है और िी दे श रहा है । भारत की पूरी मनुःजस््त स्रैण है । िीक उिके


उलटे जमघनी और अमेररका जैिे दे शों को पुरुष दे श कहा जाता है । भारत की पूरी आत्मा नारी
है । इिसलए ही भारत कभी? आक्रामक नहीं हो पाया। पूरे इततहाि में आक्रामक नहीं हो पाया!

इिसलए भारत में ठहंिा का कोई िभाव पैदा नहीं हो िका। भारत की पूरे प्रवचार की कथा
अठहंिा की कथा है । भारत के पूरे इततहाि को दे खने िे एक? आश्रयघजनक र्टना मालूम
पडती है । दतु नया का कोई भी दे श उि अथों में स्रैण नहीं है , जजि अथों में भारत। यही
भारत का दभु ाघग्य भी सिद्ि हुआ। िारा जगत पुरुषों का, िारा जगत पुरुष—वप्रृ त्तयों का, िारा
आक्रामक, िारा जगत ठहंिात्मक भारत अकेला आक्रामक नहीं, ठहंिात्मक नहीं!
भारत के प्रपछले तीन हजार वषघ का इततहाि दख
ु , परे शानी और कष्ट ० इततहाि रहा है ।
लेककन यही त्य आने वाले भप्रवष्य में िौभाग्य का कारण भी बन िकता है । क्योंकक जजन
दे शों ने पुरुष के िभाव में प्रवकाि ककया, अपनी मरण र्डी के तनकट पहुाँच गये।

पुरुष का धचत्त आक्रमण का धचत्त है , एग्रेशन का। पुरुष का धचत्त ठहंिा का धचत्त है , वायलेंि
का। पज‍चम के जजन दे शों ने उि धचत्त के अनुकूल प्रवकाि ककया, वे िारे दे श िीरे — िीरे
युद्िों िे गुजरकर अंततम युद्ि, टोटल वार के करीब पहुंच गये। अब कोई पररणतत नहीं
मालूम होती—सिवाय कक ये टकराये और टूट जायें, नष्ट हो जायें। उनके िाथ पुरुषों ने जो
िभ्यता खडी की है आज तक, वह िारी की िारी नष्ट हो जाये।

या दि
ू रा उपाय यह है कक इततहाि का चक्र र्म
ू े और परु
ु ष की िभ्यता की कथा बंद हो, और
एक नया अध्याय शरू
ु हो, जो अध्याय िी धचत्त की िभ्यता का अध्याय होगा।

इिे थोडा िमझ लेना जरूरी है । इिे हम िमझें तो हम मनुष्य चेतना के भीतर चलने वाले
िबिे बडे ऊहापोह िे पररधचत हो िकेंगे।

नीत्शे जैिा व्यजक्त भारत में हम लाख कोसशश करें तो पैदा नहीं हो िकता। नीत्शे जमघनी में
ही पैदा हो िकता है ! और जमघनी लाख उपाय करे तो भी गांिी और बुद्ि जैिे आदमी को
पैदा करना जमघनी के सलए अिंभव है । गांिी और बुद्ि जैिे व्यजक्त भारत में ही पैदा हो
िकते हैं। यह पैदा हो जाना आकजस्मक नहीं है , यह एक्िीडेन्टल नहीं है । कोई व्यजक्त पैदा
होता है , कोई प्रवचारिारा पैदा होती है , यह पूरे दे श के िाणों के हजारों वषों के मंथन का
पररणाम होता है ।

यह आश्रयघजनक है कक भारत का आज तक का पूरा इततहाि भूलकर भी पुरुष का इततहाि


नहीं रहा है । और इिीसलए भारत में प्रवज्ञान का जन्म भी नहीं हो िका। प्रवज्ञान एक परु
ु ष
कमघ है । प्रवज्ञान का अथघ है : िकृतत पर प्रवजय। प्रवज्ञान का अथघ है , जो चारों तरफ फैला हुआ
जगत है , उिको जीतना। परु ु ष का मन जीतने में बहुत आतरु है ।

भारत ने िकृतत को जीतने की कोई कोसशश नहीं की। अिल में भारत ने कभी भी ककिी को
जीतने की कोई कोसशश नहीं की। जीतने की िारणा ही भारत के धचत्त में बहुत गहरे नहीं जा
िकी। कभी ककन्हीं ने छोटे —छोटे ियाि ककये तो भारत की आत्मा उनके िाथ खडी नहीं हो
िकी।

स्वभावत: इि दतु नया में िारे लोग जीतने में आतरु हों, उिमें भारत प्रपछडता चला गया। यह
भी ठदखाई पडेगा कक इि प्रपछड जाने में अब तक तो दभ
ु ाघग्य रहा। लेककन आगे िौभाग्य हो
िकता है । क्योंकक वे जो जीत की दौड में आगे गये थे, वे अपनी जीत के ही अंततम पररणाम
में वहां पहुंच गये हैं, जहां आत्मर्ात के सिवा और कुछ भी नहीं हो िकता।

बुद्ि ने कहा था, बैर को बैर िे नहीं जीता जा िकता, ठहंिा िे ठहंिा भी नहीं जीती जा
िकती। लेककन यह ककिी ने भी िुना नहीं। िुना भी नहीं जा िकता था, िमय भी नहीं था
पररपक्व िुनने के सलए। आज यह बात िुनी जा िकती है । आज यह िमझ में आना शुरू हो
गया कक आज तो ठहंिा का अथघ है : िावघजतनक प्रवनाश। प्रपछले महायुद्ि में ठहरोसशमा और
नागािाकी पर जो एटम धगराया गया था, उि िमय प्रवचारशील लोगों ने िोचा था, इििे
खतरनाक अस्र अब पैदा नहीं हो िकेगा। लेककन 20 ही वषों में प्रवचारशीलों को पता चला
कक आज ठहरोसशमा और नागािाकी पर धगराये गये एटम बम बच्चों के खखलौने मालूम पडते
हैं। इतने 20 वषों में हमने बडे अस्र पैदा कर सलए!

एक उदजन बम चालीि हजार वगघमील में ककिी तरह के जीवन को नहीं बचने दे गा। और
प्
ृ वी पर पचाि हजार उदजन बम तैयार हैं। ये पचाि हजार उदजन बम जरूरत िे ज्यादा
हैं, िरप्लि हैं। अगर हम पूरी प्
ृ वी को नष्ट करना चाहें तो थोडे िे बम िे काम हो जायेगा।
इतने की कोई जरूरत नहीं पडेगी।

लेककन राजनैततक बहुत होसशयार हैं। वे िोचते हैं कक भूल—चक


ू न हो जाये, इिसलए पूरा—
और जरूरत िे ज्यादा—इंतजाम करना उधचत है । पचाि हजार उदजन बम इि तरह की िात
पजृ ्वयों को नष्ट करने के सलप्त काफी हैं। यह प्
ृ वी बहुत छोटी है । या हम ऐिा िमझ
िकते हैं कक अब मनुष्य—जातत की कुल िंख्या िाढे तीन अरब है , पच्चीि अरब लोगों को
मारने के सलए हमने इंतजाम कर सलया। या हम ऐिा भी िमझ िकते हैं कक एक आदमी को
िात—िात बार मरना पडे तो हमारे पाि िप्रु विा और व्यवस्था है । हालांकक आदमी एक ही
बार में मा जाता है । दब
ु ारा मारने की जरूरत नहीं पडती। लेककन भल
ू —चक
ू न हो जाये,
इिसलए इंतजाम कर लेना िीक िे उधचत और जरूरी है ।

एक—एक आदमी को िात—िात बार मारने के इंतजाम का अथघ क्या है ? ियोजन क्या है ? यह
क्या है ? पागल दौड है ! क्या मनुष्य जातत का मन प्रवक्षक्षप्त हो गया है ? मनुष्य जातत का मन
तनज‍चत प्रवक्षक्षप्त हो गया है । क्योंकक मनुष्य जातत का पूरा का पूरा अब तक का प्रवकाि
अकेले पुरुष का प्रवकाि है । पुरुष आिा है —पुरूष जातत का। आिी िी जातत का उि प्रवकाि
में कोई भी हाथ नहीं! इिसलए िंतुलन खो गया। बैलेंि खो गया।

यह दतु नया करीब—करीब ऐिी है , जैिे एक दे श में सस्रयां बबलकुल न हों। सिफघ पुरुष ही पुरुष
रह जाये, तो वह दे श पागल हो जाएगा। िीक इििे उलटा भी हो जायेगा। अगर ककिी दे श में
जस्रयां ही जस्रयां हों और पुरूष न हों तो वह दे श पागल हो जायेगा। स्री और पुरुष पररपूरक
हैं। वे दोनों िाथ हैं, तभी पूरे हैं। लेककन िभ्यता के मामले में जो िभ्यता आज तक तनसमघत
हुई है , वह अकेले पुरुष की िभ्यता है , उिमें स्री का कोई योगदान नहीं है ! स्री िे कोई मांग
भी नहीं की गई। स्री ने आगे बढकर कोई योगदान ककया भी नहीं। यह परु ु ष की िभ्यता
पागल होने के करीब आ गई।

एक छोटी—िी कहानी िे मैं िमझाने की कोसशश करूं, जो मुझे बहुत िीततकर रही है ।

एक झूिी कहानी है । मैंने िुनार है कक ई‍वर दि


ू रे महायुद्ि के बाद बहुत परे शान हो गया।
ई‍वर तो तभी िे परे शान है , जब िे उिने आदमी को बनाया। जब तक आदमी नहीं था, बडी
शांतत थी दतु नया में । जब िे आदमी को बनाया, तब िे ई‍वर बहुत परे शान है । िन
ु ा तो मैंने
यह है कक तबिे वह िीक िे िो नहीं िका बबना नींद की दवा सलए। िो भी नहीं िकता।
आदमी िोने दे तब न! आदमी खद
ु न िोता है , न ककिी और को िोने दे ता दे । और इतने
आदमी है कक ई‍वर को िोने कैिे दें गे! इिसलए आदमी को बनाने के बाद ई‍वर ने कफर और
कुछ नहीं बनाया। बनाने का काम ही बंद कर ठदया। इतना र्बडा गया होगा कक बि अब
क्षमा चाहते हैं, अब आगे बनाना भी िीक नहीं। दि
ू रे महायुद्ि के बाद वह र्बडा गया होगा।

ऐिे तो इतने युद्ि हुए कक ई‍वर की छाती पर ककतने र्ाव पडे होंगे कक कहना मुज‍कल है ।
िबिे मजा तो यह है कक हर र्ाव पहुंचाने वाला ई‍वर की िाथघना करके ही र्ाव पहुंचाता है ।
और मजा तो यह है कक हर युद्ि करने वाला ई‍वर िे िाथघना करता है कक हमें प्रवजेता
बनाना। चचों में र्ंठटयां बजाई जाती हैं, मंठदरों में िाथघनायें की जाती हैं, युद्िों में जीतने के
सलए! पोप आशीवाघद दे ते हैं, युद्िों में जीतने, के सलए! ई‍वर की छाती पर जो र्ाव लगते
होंगे, उन र्ावों का ठहिाब लगाना मुज‍कल है ।

तीन हजार िाल के इततहाि में पंिह हजार युद्ि और आगे का पीछे का इततहाि तो पता
नहीं है । हम यह मान नहीं िकते कक उिके पहले आदमी नहीं लडता रहा होगा। लडता ही
रहा होगा। जब तीन हजार वषों में पंिह हजार युद्ि करता है आदमी, ितत वषघ पांच युद्ि
करता है तो ऐिा मानना बहुत मुज‍कल है कक वह शांत रहा होगा। इतना ही है कक उिके
पहले का इततहाि हमें शात नहीं। दि
ू रे महायुद्ि के बाद ई‍वर र्बडा गया। क्योंकक पहले
महायुद्ि में िाढे तीन करोड लोगों की हत्या हुई! दि
ू रे महायुद्ि में हत्या की िंख्या िाढे
िात करोड पहुंच गई। क्या हो गया आदमी को?

उिने दतू नया के तीन बडे ितततनधियों को अपने पाि बुलाया। रूि को, अमेररका को, बब्रटे न
को और उनिे पूछा कक मैं तुम्हें वरदान दे ना चाहता हूं! तुम एक—एक वरदान मांग लो, ताकक
यह दतु नया की पागल होड बंद हो जाये। युद्ि बंद हो जायें। आदमी बच िके। और कफर तो
यह िीक भी है । अगर आदमी यह तय करता हो कक हमको मरना है तो मर जाये, लेककन
अपने िाथ िारे जीवन को नष्ट करने का तो कोई हक मनुष्य को नहीं। मैं तुमिे िाथघना
करता हूं!

ई‍वर िे हमेशा िाथघना की गई थी, लेककन िमय बदल गया! कभी नाव नदी पर होती है ,
कभी नदी नाव पर हो जाती है !

ई‍वर ने हाथ जोडकर र्ुटने टे क ठदये, उन तीनों के िामने! हम िाथघना करते हैं कक एक—एक
वरदान मांग लो। तुम जो भी चाहते हो, मैं पूरा कर दं ।ू अमेररका के ितततनधि ने कहा, ‘हे
महािभ,ु एक ही इच्छा है हमारी, वह परू ी हो जाये कफर तो दतू नया में कभी यद्
ु ि नहीं होगा।
रूि जमीन पर न बचे। इिका कोई तनशान न रह जाये। इतना हम चाहते हैं और हमारी
कोई आकांक्षा नहीं। ‘

ई‍वर ने र्बराकर रूि की तरफ दे खा। जब अमेररका यह कहता हो— िासमघक दे श! तो रूि
क्या कहे गा? रूि ने कहा महाशय! यह हो िकता है , कहा हो कामरे ड! क्षमा करें । पहले तो मैं
प्रव‍वाि नहीं करता कक आप हैं। कैप्रपटल पढी है कालघ माक्िघ की? कम्यूतनस्ट मैतनफेस्टो पढा
है —एंजल्ि और कालघ माक्िघ का? ककतने जमाना पहले उन्होंने खबर कर दी कक भगवान नहीं
है । और 1917 िे रूि के ग़ररजों िे आपको तनकाल बाहर ककया। आप अब नहीं हैं। मुझे शक
होता है , मैं वोडका शराब ज्यादा पी गया हूं। इिसलए आप ठदखाई पड रहे हैं। और या यह भी
हो िकता है कक मैं कोई िपना दे ख रहा हूं। लेककन बडा आश्रयघजनक है कक िोप्रवयत भसू म
पर ऐिा िासमघक िपना कैिे िंभव हो पाता? अगर िरकार को पता लग गया कक ऐिे
िासमघक िपने आदमी दे खते हैं, तो िपने दे खने पर भी पाबंदी हो जायेगी। िपने दे खने की
स्वतंरता नहीं दी जा िकती आदमी को। गलत िपने दे खने की स्वतंरता दी जाये? रूि में
नहीं दी जा िकती। चीन में नहीं दी जा िकती।

कफर भी मैं आपिे यह कहता हूं कक हो िकता है कक आप हों। एक िबूत दें होने का तो हम
आपकी पूजा कफर िे शुरू कर दें । दीये जलें गे, िप
ू जलेगी, मंठदरों में पज
ू ा होगी, र्ंठटयां
बजेगी—एक इच्छा पूरी कर दें । एक ही इच्छा है हमारी—दतू नया का नक्शा हो, लेककन
अमेररका के सलए कोई रं गरे खा उि नक्शे पर हम नहीं चाहते।

और र्बरायें मत! क्योंकक ई‍वर र्बडा गया होगा। र्बडाये मत, अगर आप न कर िकें तो
कफकर मत करें , अगर खुद यह काम करने का पूरा इंतजाम कर सलया है । हम खद
ु भी कर
लेंगे। हम आपके भरोिे पर नहीं कर यह इंतजाम। यह इंतजाम अपने पैरों पर ककया है और
हमें इिकी भी कोई धचन्ता नहीं है कक अमेररका को समटाने में हम समट जायेंगे। हम समट
जायें, उिकी कफकर नहीं, लेककन अमेररका नहीं रहना चाठहए। यह हमारा कष्ट है ।
ई‍वर ने बहुत र्बडाकर बब्रटे न की तरफ दे खा। बब्रटे न ने जो कहा, वह ध्यान िे िुन लेना।
बब्रटे न ने कहा, हे परम प्रपता, चरणों पर सिर रख ठदया, अब हमारी कोई आकांक्षा नहीं, ‘इन
दोनों की आकांक्षाएं एक िाथ पूरी कर दी जायें, हमारी आकांक्षा पूरी हो जायेगी।’

यह हमें हं िने जैिा मालूम होता है , लेककन ककि पर हं िते हैं आप? बब्रटे न पर, अमेररका पर,
रूि पर, भगवान पर—ककि पर हं िते हैं आप? या तो अपने पर, या कक मनुष्य पर, या कक
मनुष्यता पर? मनुष्य को क्या हुआ है ? कौन—िा रोग है उिके मन में ? उिके िाणों को
कौन—िी चीज खा रही है कक समटाना, समटाना, यही इिके िाणों की पुकार बन गई है —मत्ृ यु
और मत्ृ यु! पुरुष जीतना चाहता है और जीत उिको एक ही तरह िूझती है । मारने िे, मत्ृ यु
िे, समटाने िे। पुरुष को िूझता ही नहीं कक समटाने के अलावा कोई जीत होती है ? उिे यह
पता ही नहीं है कक यह समटाकर कभी कोई जीता ही नहीं है ।

एक और जीत भी होती है , जो समटाने िे नहीं आती। उिे यह पता भी नहीं है , एक और जीत


भी होती है , जो हार जाने िे आती है । यह परु
ु ष को पता ही नहीं!

एक ऐिी जीत भी हो िकती है , जो उिको समलती है जो हार जाता है , जो लडता ही नहीं।


इिका पुरुष को कोई भी पता नहीं।

उिे पता हो भी नहीं िकता। उिके धचत्त की पूरी की पूरी िकृतत एग्रेसिव, आक्रामक है ।
उिका एक ही खयाल है : दबो या दबाओ, हारो या जीतो। और जीतने की दौड में चाहे कुछ
भी हो जाये, खद
ु समटो चाहे कोई समट जाये, लेककन जीतना जरूरी है । लेककन जीतना
ककिसलए जरूरी है ? जीतना जीने के सलए जरूरी है । और जीतने में मौत लानी पडती है और
जीना मुज‍कल हो जाता है । अजीब चक्र है । जीतना जीने के सलए जरूरी मालूम पडता है , और
जीतने में मौत आती है और जीना मुज‍कल हो जाता है ।

लेककन इिी प्रवसशयि िककघल में , दष्ु चक्र में , प्रपछले 3—4 हजार वषघ का इततहाि आदमी का,
र्म
ू ते—र्म
ू ते आखखरी इिी जगह, क्लाइमैक्ि पर आ गया है , जहां कक प्रव‍वयद्
ु ि की परू ी
िंभावना खडी हो गयी है । या तो प्रव‍वयद्
ु ि होगा और िारी मनष्ु यता िमाप्त होगी। और या
कफर अब तक मनष्ु य—जातत के दि
ू रे ठहस्िे ने कोई भी कंट्ीब्यश
ू न मनष्ु य की िभ्यता का
तनमाघण करने में , मनष्ु य को जीने में , िहयोग दे ने में , जो आिी दतु नया अब तक चप
ु चाप खडी
रही है , उिे कुछ करना पडेगा। और एक नयी िभ्यता को, जो पुरुष ििान न हो, नयी िभ्यता
को, जो ही के हृदय और स्री के गुणों पर खडी होती हो, उिको जन्म दे ना पडेगा।

नीत्शे ने बहुत क्रोि िे यह बात सलखी है कक मैं बुद्ि को और क्राइस्ट को स्रैण मानता हूं
बूसमतनस्ट मानता हूं। यह उिने गाली दी है बद्
ु ि को और क्राइस्ट को। अगर वह गांिी को
जानता होता तो गांिी के’ बाबत भी यही कहता कक तीनों के तीनों आदमी िीक अथों में पुरुष
नहीं है । उिने यह िोचा होगा कक ककिी पुरुष को स्री कह दे ने िे और कोई बडी गाली क्या
हो िकती है ?

लेककन पुरुष होना ही आज—वह जो पुरुष की आज तक की िगतत रही है , उिमें होना आज—
िंकट, क्राइसिि पैदा कर ठदया है । आज खोजबीन करनी जरूरी है कक स्री के धचत्त िे क्या
िभ्यता का आिार, मूल आिार रखा जा िकता है ? क्या यह हो िकता है ? क्या हम दि
ू री
तरफ भी दे खें? और ध्यान करें कक क्या उि तरफ िे भी जीवन की नयी ठदशा में प्रवकाि के
नये स्रोत, मनुष्यता का एक नया इततहाि रखा जा िकता है ?

मझ
ु े लगता है कक रखा जा िकता है । और अगर नहीं रखा जा िकता है तो कफर परु
ु ष के
हाथ में अब आगे कोई भप्रवष्य नहीं है , वह अपने अंततम क्षण पर आ गया है ।

लेककन सस्रयों को कोई खयाल नहीं है ! या तो जस्रयां गुलाम हैं पुरुष की या जस्रयां नंबर 2 के
पुरुष बनने की कोसशश में िंलगन हैं! दोनों ही हालतें बुरी हैं। गुलामी की, स्लेवरी की हैं।
भारत जैिे मुल्कों में जस्रयों की कोई आवाज नहीं। अपनी कोई आत्मा भी नहीं। भारत में
स्री का अपना कोई व्यजक्तत्व नहीं। उिकी कोई पुकार नहीं। उिका कोई होना नहीं। वह न
होने के बराबर है ।

हालांकक पूरे दे श का प्रवचार कभी भी पुरुष धचत्त के अनुकूल नहीं रहा, क्योंकक भारत को जजन
लोगों ने िभाप्रवत ककया, उन्होंने जीवन के बहुत कोमल गुणों—पर जोर ठदया। बुद्ि ने करुणा
पर, महावीर ने अठहंिा पर। उन्होंने जोर ठदया जीवन के िेम तत्व पर। लेककन उनकी आवाज
गज कर खोती रही। यह ककिी को खयाल नहीं आया कक यह आवाज अगर सस्रयां पकड लेंगी
तो ही िफल हो िकती हैं, अन्यथा यह आवाज िफल नहीं हो िकती। अगर पुरुष िेम की
बात भी करे गा तो अठहंिा िे आगे नहीं जा िकता। और इिे थोडा िमझ लेना। अठहंिा का
मतलब होता है , हम ठहंिा नही करें गे। यह तनगेठटव बात है । हम ककिी को चोट नहीं
पहुचायेंगे। अठहंिा िे आगे पुरुष का जाना मुज‍कल है । वह या तो ठहंिा कर िकता है या
अठहंिा कर िकता है । लेककन िेम का उिे िझ ू ता ही नहीं! िेम पाजजठटव बात है । अठहंिा का
मतलब है , हम दि ू रे को दख
ु नहीं पहुचायेंगे। एक बात है कक हम दिू रे को दखु नहीं
पहुचायेंगे, यही हमारे जीवन का िूर होगा। चाहे एक दि ू रे को ककतना ही दखु पहुंच,े हम
अपना िुख पायेंगे। यही जीवन की आिार—सशला होगी। एक िूर तो यह है पुरुष का।

कफर पुरुष अगर बहुत ही िोच—िमझ और प्रवचार का उपयोग करता है , तो इििे उलट िूर
पर पहुंचता है । वह कहता है , हम दि
ू रे को दख
ु नहीं पहुंचायेंगे।
लेककन स्री का धचत्त अठहंिा िे राजी नहीं हो िकता। स्री का धचत्त कहता है िेम। िेम का
अथघ है : हम दि
ू रे को िुख पहुंचायेंगे।

इिसलए अठहंिा िीक अथों में ठहंिा का प्रवरोि नहीं है । सिफघ ठहंिा का अभाव है । ठहंिा का
िीक प्रवरोि िेम है । क्योंकक ठहंिा कहती है , हम दिू रे को दख
ु पहुंचायेंगे, यही हमारे िुख का
मागघ है । िेम कहता है , हम दि ू रे को िुख पहुचायेंगे, यही हमारे िुख का मागघ है ।

अठहंिा बीच में है , और अठहंिा कहती है , हम दि ू रे को दख


ु नहीं पहुचायेंगे। अठहंिा बहुत
इम्पोटें ट हैं। अठहंिा बीच में अटक जाती है , बहुत आगे नहीं जाती, वह परु ु ष को ठहंिा करने
िे रोक लेती है । लेककन िेम करने तक नहीं पहुंचाती। ठहन्दस्
ु तान ने अठहंिा की तो बात की।
लेककन… क्योंकक परुु षों ने बात की थी, वह भी बहुत िीक। वे अठहंिा तक की बात कर िके।
पज‍चम के परु
ु षों िे उन्होंने एक कदम बहुत आगे उिाया। स्री के हृदय की तरफ एक कदम
आगे बढाया। लेककन आखखर परु ु ष ककतने दरू जा िकते हैं? वह बात अठहंिा पर आकर अटक
गयी।

और मैंने ऐिा अनुभव ककया है , अगर पुरुष अठहंिा की भी बात करे तो बहुत जल्दी उिकी
अठहंिा में भी ठहंिा शुरू हो जाती है । अगर पुरुष ित्याग्रह भी करे गा, अगर पुरुष अनशन भी
करे गा तो वह अनशन भी दि
ू रे की गदघ न दबाने के उपाय की तरह करे गा। वह भी िेशर, वह
भी दबाव होगा। वह भी जबदघ स्ती होगी। अगर दि आदमी अनशन करें गे ककिी काम के
सलए, तो वे िमकी दे रहे हैं कक हम मर जायेंगे, हमारी बात मानो। यह िमकी बहुत ठहंिापूणघ
है । यह िमकी अठहंिक नहीं है । यह बहुत ठहंिापण ू घ है । अठहंिा का भी ठहंिक उपयोग है यह।

मैंने िुना है , एक युवक, एक युवती को िेम करता था। उिने जाकर उिके र्र के िामने
अठहंिक अनशन कर ठदया, कहा कक मुझिे प्रववाह करो, अन्यथा मैं भूखा मर जाऊंगा। र्र के
लोग र्बडा गये। क्योंकक अगर वह छुरा लेकर आता तो पुसलि में खबर कर दे ते। वह छुरा
लेकर नहीं आया। वह िमकी लेकर आया था कक मैं मर जाऊंगा। वह बोररया—बबस्तर
लगाकर द्वार के िामने बैि गया। गांव में उिका िचार करने वाले लोग समल गये।

बेवकूफों का िचार करने वालों की कोई कमी नहीं है । उन्होंने जाकर गांव भर में खबर कर
दी, कक एक अठहंिक आंदोलन हो रहा है । एक यव
ु क ने अपने िाण बाजी पर लगा ठदये है ।
िारे गांव की िहानुभूतत उि युवक के िाथ होने लगी। जो भी मरता हो, उिके िाथ
िहानुभूतत स्वाभाप्रवक है । र्र के लोग बहुत र्बडा गये उन्होंने कहा हम क्या करें ? बडी
मुिीबत हो गई?
र्र के लोगों को ककिी पररधचत ने िलाह दी कक गांव में एक और भी अठहंिक ित्याग्रह
करने वाला अनुभवी व्यजक्त है । तुम उििे जाकर पूछो। उन्होंने जाकर िलाह ली। उिने कहा
र्बराओ मत हर चीज का उपाय है । अठहंिात्मक िमकी का उपाय अठहंिात्मक ढं ग िे ठदया
जा िकता है । मैं रात आ जाऊंगा। र्बराओ मत।

वह रात एक बूढी औरत को लेकर पहुंच गया। उि बूढी औरत ने जाकर अपना बबस्तर लगा
ठदया और उि युवक िे कहा कक मेरे हृदय में तेरे सलए भारी िेम का उदय हुआ है । मैं मर
जाऊंगी, अगर तुमने मुझ िे प्रववाद नहीं ककया। मैं अनशन शुरू करती हूं। यह आमरण
अनशन है । उि युवक ने िुना और अपना पेटी—बबस्तर लेकर वह रात में भण गया!
स्वाभाप्रवक है ।

इि दे श में यह हो रहा है। अठहंिा के नाम यही हो रहा है । हर आदमी अठहंिा के नाम पर
ठहंिा की िमकी दे ता है ! आि को अलग करो नहीं तो आमरण अनशन करके मर जायेंगे।
पंजाब को अलग करो नहीं तो यत हो जायेगा। कोई भी आदमी िमकी दे रहा है ।

यह बडी है रानी की बात है कक गांिी ने अठहंिा की बात की और अठहंिा का कुल उपयोग


ठहंिात्मक ढं ग रो कर रहे हैं!

ककिी की कल्पना भी नहीं हो िकती कक पुरुष का मन ऐिा है कक उिके हाथ में जो भी


हधथयार आ जायेगा—चाहे तलवार और चाहे ित्याग्रह—दोनों का उपयोग ठहंिात्मक ढं ग िे
करना।

पुरुष के धचत्त की बनावट आक्रामक है , ठहंिात्मक है । और अब तक चकूं क िारी िंस्कृतत उिके


आिार पर तनसमघत हुई है । इिसलए िारी िंस्कृतत ठहंिात्मक है ।

क्या यह नहीं हो िकता कक िी के हृदय की आवाज को भी इि िंस्कृतत के तनमाघण में


पत्थर बनाया जाये?

लेककन स्री तो चप
ु ! या तो वह गल
ु ाम है , जैिा मैंने कहा या वह परु
ु ष होने की दौड में है ।

पूरब की स्री गुलाम है । उिने कभी यह र्ोषणा ही नहीं की कक मेरे पाि भी आत्मा है । वह
चप
ु चाप पुरूष के पीछे चल पडती है ।

अगर राम को िीता को फेंक दे ना है तो िीता की कोई आवाज नहीं। अगर राम कहते हैं कक
मुझे शक है तेरे चररर पर तो उिे अण में डाला जा िकता है । यह बडे मजे की बात है । यह
ककिी के खयाल में कभी नहीं आती कक िीता लंका में बंद थी, अकेली, तो राम को उिके
चररर पर शक होता है । लेककन िीता को राम के चररर पर शक नहीं होता! उतने ठदन वह
अकेले रहे ! अधग्र िे गुजरना ही है तो राम को आगे और िीता को पीछे गुजरना चाठहए।
जैिा कक हमेशा शादी प्रववाह में राम आगे रहे , िीता पीछे रही, चक्कर लगाती रही। कफर आग
में र्ुिते वक्त िीता आगे अकेली आगे चली। राम बाहर खडे तनरीक्षण करते रहे ! बडी िोखे
की बात मालूम पडती हैं!

तीन—चार हजार वषघ हो गए रामायण को सलखे गए और मैं यह बात पहली दफे कह रहा हूं।
यह बात कभी नहीं उिाई गई कक राम की अधग्र परीक्षा क्यों नहीं होती? नहीं, पुरुष का तो
िवाल ही नहीं! यह िब िवाल स्री के सलए है !

स्री की कोई आत्मा नहीं, उिकी कोई आवाज नहीं। कफर यह अजग्न परीक्षा िे गज
ु री हुई स्री
एक ठदन मक्खी की तरह फेंक दी गई तो भी कोई आवाज नहीं! कोई आवाज नहीं है ! और
ठहन्दस्
ु तान भर को सस्रयां राम को मयाघदा परु
ु षोत्तम कहे चली जायेंगी! मंठदर में जाकर दीया
र्ुमाती रहें गी और पूजा—िाथघना करती रहें गी! राम की पूजा सस्रयां करती रहें गी!

स्री के पाि कोई आत्मा नहीं। कोई िोच—प्रवचार नहीं। िारे ठहन्दस्
ु तान की जस्रयों को कहना
था कक बठहष्कार हो जाये राम का, ककतने ही अच्छे आदमी रहे हणै। लेककन बात खत्म हो
गई। सस्रयों के िाथ भारी अपमान हो गया। भारी अिम्मान हो गया।

लेककन राम को सस्रयां ही जजन्दा रखे हैं। राम बहुत प्यारे आदमी हैं। बहुत अदभुत आदमी हैं।
लेककन राम को यह खयाल पैदा नहीं होता कक वह स्री के िाथ क्या कर रहे हैं! वह हमारा
कल्पना नहीं है , वह हमारे खयाल में नहीं है ।

यधु िजष्िर जैिा अदभत


ु आदमी िौपदी को जए
ु में दांव पर लगा दे ता है ! कफर भी कोई यह
नहीं कहता कक हम कभी यधु िजष्िर को िमघराज नहीं कहें गे। नहीं, कोई यह नहीं कहता! बजल्क
कोई कहे गा तो हम कहें गे कक अिासमघक आदमी है । नाजस्तक आदमी है , इिक़ी बात मत िन
ु ो!

स्री को जुए पर, दांव पर लगाया जा िकता है , क्योंकक भारत में स्री िम्पदा है , िम्पप्रत्त है ।
हम हमेशा िे कहते रहें हैं, स्री िम्पप्रत्त है और इिीसलए तो पतत को स्वामी कहते हैं। स्वामी
का मतलब आप िमझते हैं, क्या होता है ?

अगर ठहन्दस्
ु तान की स्री में थोडी भी अक्ल होती तो एक—एक शब्द िे उिे ‘स्वामी’ तनकाल
बाहर कर दे ना चाठहए। कोई पुरुष कोई स्री का स्वामी नहीं हो िकता। स्वामी का क्या
मतलब होता है ?
स्री दस्तखत कर दे ती है अपनी धच्िी में ” आपकी दािी’ ‘ और पतत दे व बहुत ििन्न होकर
पढते हैं। बडे आनजन्दत होते हैं कक बडी िेम की बात सलखी है ।

लेककन इिका पता है कक स्वामी और दाि में कभी िेम नहीं हो िकता। िेम की िंभावना
िमान तल पर हो िकती है । स्वामी और दाि में क्या िेम हो िकता है ?

इिसलए ठहंदस्
ु तान में िेम की िंभावना ही िमाप्त हो गई। ठहंदस्
ु तान में स्री—पुरुष िाथ रह
रहे हैं और िाथ रहने को िेम िमझ रहे हैं! वह िेम नहीं है ।

ठहंदस्
ु तान में िेम का िरािर िोखा है । िाथ रहना भर िेम नहीं है । ककिी तरह कलह करके
24 र्ंटे गुजार दे ना, िेम नहीं है । जजंदगी गुजार दे नी िेम नहीं है ।

िेम की पल
ु क और है । िेम की िाथघना और है । िेम की िग
ु ंि और है । िेम का िंगीत और
है ।

लेककन वह कहीं भी नहीं! अिल में गुलाम और दाि में , मासलक में और स्वामी में , कोई िेम
नहीं हो िकता। लेककन हमारे खयाल में नहीं है यह बात कक पूरब की स्री नेहु प्रवशेषकर
भारत की स्री ने अपनी आत्मा का अधिकार ही स्वीकार नहीं ककया है । आत्मा की आवाज
भी नहीं दी है । उिने ठहम्मत भी नहीं जुटाई कक वह कह िके कक ‘मैं भी हूं!

आज स्री को शादी करके ले जाते हैं एक िज्जन। अगर उनका नाम कृष्णचन्ि मेहता है तो
उनकी पत्नी समिेज कृष्णचन्ि मेहता हो जाती है । लेककन कभी उििे उलटा दे खा कक
इन्दम
ु ती मेहता को एक िज्जन िेम करके, ब्याह कर लाये हों और उनका नाम सम. इन्दम
ु ती
मेहता हो जाये? वह नहीं हो िकता है । लेककन क्यों नहीं हो िकता? नहीं, वह नहीं हो िकता,
क्योंकक हमारी यह सिफघ व्यवहार की बात नहीं है , उिके पीछे पूरा हमारे जीवन को दे खने का
ढं ग तछपा हुआ है ।

स्री परु
ु ष के पीछे आकर परु
ु ष का अंग हो जाती है । वह समिेज हो जाती है । लेककन परु
ु ष
स्री का अंग नहीं होता! स्री परु
ु ष का आिा अंग है । लेककन परु
ु ष स्री का अंग नहीं है !
इिसलए परु
ु ष मरता है तो स्री को िती होना चाठहए। आग में जल जाना चाठहए। वह उिका
अंग है । उिको बचने का हक कहां है ?

ठहंदस्
ु तान में हजारों वषों में ककतनी लाखों सस्रयों को आग में जलाया, उिका ठहिाब लगाना
बहुत मुज‍कल है । बहुत मुज‍कल है । और ककि पीडा िे उन सस्रयों को गुजरना पडा है , इिका
ठहिाब लगाना मुज‍कल है । कफर भी बडी कृपा थी, जो आग में जल गईं उन जस्रयों के सलए।
लेककन जब िे आग में जलना बंद हो गया है तो करोडों प्रविवाओं को हम रोके हुए हैं।
उनका जीवन आग में जलने िे बदतर है । िती की िथा प्रविवा की िथा िे ज्यादा बेहतर
थी। आदमी एक बार में मर जाता है । खत्म हो जाता है । आखखर एक बार में मरना, कफर भी
बहुत दयापूणघ है । बजाय 40—50 िाल िीरे —िीरे मरने के, अपमातनत होने के।

जजंदगी में जहां िेम की कोई िंभावना न रह जाये, उि जीवन को जीप्रवत कहने का क्या अथघ
है ?

और यह ध्यान रहे कक परु


ु ष के सलए िेम 24 र्ंटे में आिी र्डी, र्डी भर की बात है । उिके
सलए और बहुत काम हैं। िेम भी एक काम है । िेम िे भी तनपटकर दि ू रे कामों में वह लग
जाता है । स्री के सलए िेम ही एकमार काम है । और िारे काम उिी िेम िे तनकलते हैं और
पैदा होते हैं।

तो अगर पुरुष को प्रविरु रखा जाये तो उतना टाचघर नहीं है , जजतना स्री को प्रविवा रखना
अत्याचार है । उिे 24 र्ंटे िेम की जंजीर है । िेम गया—उि जंजीर के सिवाय कुछ नहीं रह
गया। और दि
ू रे िेम की िंभावना िमाज छोडता नहीं। लेककन हजारों िाल तक हम उिे
जलाते रहे और कभी ककिी ने न िोचा!

अगर कोई पूछता था कक सस्रयों को क्यों जलना चाठहए आग में ? तो पुरुष कहते, उिका िेम
है , वही जी नहीं िकती परु
ु ष के बबना। लेककन ककिी पुरुष को िेम नहीं था इि मुल्क में कक
वह ककिी स्री के सलए िती हो जाते? वह िवाल ही नहीं है । वह िवाल ही नहीं उिाना
चाठहए। क्योंकक िारे िमघ—ग्रंथ पुरुष सलखते हैं, अपने ठहिाब िे सलखते हैं, अपने स्वाथघ िे
सलखते हैं। जस्रयों का सलखा हुआ न ग्रंथ है , न जस्रयों का मनु है , न सस्रयों का याज्ञवल्ल है !
जस्रयों का कोई स्मतृ तकार नहीं, सस्रयों का कोई िमघ—ग्रंथ नहीं! सस्रयों का कोई िरू नहीं!
उनकी कोई आवाज नहीं! पूरब की स्री तो एक गुलाम छाया है , जो पतत के आगे पीछे र्ूमती
रहती है ।

पज‍चम की स्री ने प्रविोह ककया है । और मैं कहता हूं कक अगर छाया की तरह रहना है तो
उििे बेहतर है वह प्रविोह। लेककन वह प्रविोह बबलकुल गलत रास्ते पर चला गया। वह गलत
रास्ता यह है कक पज‍चम की स्री ने प्रविोह का मतलब यह सलया है कक िीक परु
ु ष जैिी वह
भी खडी हो जाये! पुरुष जैिी वह हो जाये!

पज‍चम की स्री पुरुष होने की दौड में पड गयी। वह पुरुष जैिे वस्र पहनेगी, पुरुष जैिा बाल
कटायेगी, पुरुष जैिा सिगरे ट पीना चाहे गी, पुरुष जैिा िड्कों पर चलना चाहे गी, पुरुष जैिा
अभि शब्दों का उपयोग करना चाहे गी। वह पुरुष के मुकाबले खडा हो जाना चाहती है ।
एक सलहाज िे कफर भी अच्छी बात है । कम िे कम बगावत तो है । कम िे कम हजारों िाल
की गुलामी को तोडने का तो खयाल है । लेककन गल
ु ामी ही नहीं तोडनी है । क्योंकक गुलामी
तोडकर भी कोई कुएं में िे खाई में धगर िकता है ।

पज‍चम की स्री इिी हालत में खडी हो गई। वह जजतना अपने को पुरुष जैिा बनाती जा
रही है , उतना ही उिका व्यजक्तत्व कफर खोता चला जा रहा है । भारत में वह छाया बनकर
खतम हो गई। पज‍चम में वह नंबर 2 का पुरुष बनकर खतम होती जा रही है । उनका अपना
व्यजक्तत्व वहां भी नहीं रह जायेगा!

यह ध्यान रहे , स्री के पाि एक अपने तरह का एक व्यजक्तत्व है । जो परुु ष िे बहुत सभन्न
है , बहुत प्रवरोिी, बहुत अलग, बहुत दि
ू रा है । उिका िारा आकषघण, उिकी जीवन की िारी
िग
ु ंि, उिके अपने होने में है , उिके तनज होने में है । अगर वह अपनी तनजता के बबंद ु िे
छूत होती है और परु ु ष जैिे होने की दौड में लग जाती है तो यह बात इतनी बेहूदी होगी,
जैिे कोई परु
ु ष सस्रयों के कपडे पहनकर दाढी मंछ ू र्ट
ु ाकर जस्रयों जैिा बनकर र्म
ू ने लगता
है तो वह बेहूदा हो जाता है । यह बात इतनी ही बेहूदी है ।

लेककन पुरुष इिकी तनंदा नहीं करे गा। क्योंकक सस्रयां पुरुष जैिी हो रही हैं, पुरुष को क्या
धचंता है ? आपने हमेशा िुना होगा, अगर कोई पुरुष सस्रयों जैिे ढं ग िे रहे तो हम लोग कहें गे
नामदघ । उिकी तनंदा होगी। लेककन अगर कोई स्री पुरुषों जैिी रहे तो कहें गे, ‘खब
ू लडी मदाघनी
वह तो झांिी वाली रानी थी। ‘ इज्जत दें गे उिको। सस्रयां अगर पुरुषों जैिे ढं ग अजख्तयार करें
तो उनको इज्जत समलेगी और पुरुष अगर सस्रयों जैिे ढं ग अजख्तयार करें तो उनका अपमान
होगा! पुरुष को भी उििे मजा आता है कक स्रीयां पुरुष जैिे होने की कोसशश कर रही है ।
इिका अथघ है कक उिने हमारी श्रेष्िता कफर स्वीकार कर ली।

कल तक वह पतत के रूप में श्रेष्िता स्वीकार करती थी, तब भी हम िुपीररयर, मासलक थे।
अब भी हम िुपीररयर हैं। क्योंकक हमारे जैिे होने की कोसशश कर रही है । और ध्यान रहे ,
स्री ककतने ही पुरुष जैिी हो जाये, काबघन कापी िे ज्यादा नहीं हो िकती। कैिे हो िकती है !
कैिे हो िकती है स्री पुरुष जैिी? और काबघन कापी कफर छाया रह जायेगी।

यह बडे मजे की बात है कक ठहंदस्


ु तान में परु
ु ष ने जबदघ स्ती स्री को छाया बना ठदया।
पज‍चम की स्री अपने हाथ िे मेहनत करके छाया बनी जा रही है ! क्या कोई तीिरा रास्ता
नहीं है ? ये दोनों बातें स्री जातत के सलए खतरनाक हैं। ये दोनों बातें िततकक्रयावादी हैं ,
ररएक्शनरी हैं। स्री की जजंदगी में क्रांतत चाठहए। पज‍चम में क्रांतत भटक गई उगे’ प्रविोह हो
गई है । प्रविोह क्रांतत नहीं है । बगावत क्रांतत नहीं है ।
क्रांतत का मतलब है एक नये व्यजक्तत्व का उदर्ाटन।

बगावत का मतलब है . परु ाने व्यजक्तत्व को तोड दे ना है , इिकी बबना कफक्र ककए कक नया
व्यजक्तत्व कुछ बनता है कक नहीं बनता है ।

बगावत क्रोि है , क्रांतत प्रवचार है ।

बगावत कर दे ना बहुत आिान है । क्रांतत करना बहुत िोच—प्रवचार और धचंतन की बात है ।

भारत की स्री को भी पज‍चम की स्री की दौड पक्केगी, क्योंकक भारत के पुरुष को पज‍चम
के परु
ु ष की दौड पकडेगी। उिी के पीछे स्री भी जायेगी, आज नहीं कल। वह उिने होना शरू

कर ठदया है । वह परु
ु ष के िाथ परु
ु ष जैिा होने की दौड में शासमल हो गयी है ! आज नहीं
कल भारत में भी वही होगा, जो पज‍चम में हो रहा है । पज‍चम में जो हो गया है , वह इतना
दख
ु द है कक अब भारत में उिको कफर दोहरा लेना, एक बहुत बठढया मौका खो दे ना है । एक
पररवतघन का, एक ट्ांजजशन का मौका खो दे ना है । एक बदलाहट का वक्त आया है और कफर
बदलाहट में हम वही गलती कर ले रहे हैं। वही गलती, जजिमें कुछ फकघ नहीं पडेगा। वही
भूल कफर हो जायेगी।

िी. एम. जोड ने कहीं सलखा है , जब मैं पैदा हुआ था, होम्ि थे, मेरे दे श में । र्र थे। अब सिफघ
हाउिेज हैं। अब सिफघ मकान हैं। स्वभावत: अगर स्री पुरुष जैिी हो जाती है , तब होम जैिी
चीज िमाप्त हो जायेगी। र्र जैिी चीज िमाप्त हो जायेगी। मकान रह जायेंगे। मकान रह
जायेंगे, क्योंकक मकान र्र बनता था, एक व्यजक्तत्व िे स्री के। वह खो गया। अब िीक वह
पुरुष जैिी कलह करती है ! पुरुष जैिी झगडती है ! पुरुष जैिी बा त करती है ! प्रववाद करती
है ! वह िब िीक पुरुष जैिा कर रही है !

लेककन उिे पता नहीं है कक उिकी आत्मा कभी भी यह करके तप्ृ त नहीं हो िकती। क्योंकक
आत्मा तप्ृ त होती है वही होकर, जो होने को आदमी पैदा हुआ है । एक गुलाब, गुलाब बन
जाता है तो तजृ प्त आती है । एक चमेली, चमेली बन जाती है तो तजृ प्त आती है । वह तजृ प्त
ललॉवररंग की है । हमारे भीतर तछपा है —वह खखल जाये, पूरा खखल जाये तो आनंद उपलब्ि
होता है ।

स्री आज तक कभी आनंठदत नहीं रही, न परू ब के मल्


ु कों में , न पज‍चम के मल्
ु कों में । परू ब
के मुल्कों में वि गुलाम थी, इिसलए आनंठदत नहीं हो िकी; क्योंकक आनंद बबना स्वतंरता के
कभी उपलब्ि नहीं होता है ।
िारे आनंद के फूल स्वतंरता के आकाश में खखलते हैं।

ध्यान रहे , अगर स्री आनंठदत नहीं है तो पुरुष कभी आनंठदत नहीं हो िकता है । वह लाख
सिर पटके। क्योंकक िमाज का आिा ठहस्िा दख
ु ी है । र्र का केंि दख
ु ी है । वह दख
ु ी केंि
अपने चारों तरफ दख
ु की ककरणें फेंकता रहता है । और दख
ु के केंि की ककरणों में िारा
व्यजक्तत्व िमाज का, दख
ु ी हो जाता है ।

और मैं आपिे कहना चाहता हूं जजतना दख ु होता है , उतनी धचंता शुरू हो जाती है । क्यों?
क्योंकक दख
ु ी आदमी दि
ू रे को दख
ु ी करने में आतरु होता है । क्योंकक दख
ु ी आदमी कफर ककिी
को िख
ु ी दे खना नहीं चाहता। दख
ु ी आदमी चाहता है , दि
ू रे को दख
ु हो दख
ु ी आदमी का एक
ही िख
ु होता है , दि
ू रे को दख
ु दे दे ने का िख
ु ।

स्री के दख
ु ने िारे िमाज के जीवन को दख
ु की छाया िे भर ठदया है । स्री आनंठदत हो
िकती है मुक्त होकर, लेककन पुरुष होकर नहीं। मुक्त हो जाये और कफर परु
ु ष जैिे होने लगे,
कफर दख
ु ी हो जायेगी। आज पज‍चम की स्री कोई िुखी नहीं है । वह कफर उिने नये दख

खोज सलए हैं। कफर नये दख
ु ों िे अपने व्यजक्तत्व को कि सलया है । कफर िमाज वहां एक
नये तनाव में भरता चला जायेगा। क्या ककया जा िकता है ? कौन—िी क्रांतत?

मैं एक तीिरा िुझाव दे ना चाहता हूं। और वह यह.. वक्त है , इि वक्त मुल्क के िामने
बदलाहट होगी। बदलाहट का िमय है । अभी स्री की गुलामी ज्यादा ठदन नहीं चलेगी।
हालांकक स्री की अभी भी कोई इच्छा नहीं है बहुत, कक गुलामी टूट जाये। वह पुरुष तो
चाहे गा। लेककन िारी दतु नया की हवायें िक्के दे रही हैं और गुलामी टूट रही है । भारत की
सस्रयां यह न िोचें कक उनके कुछ करने िे गुलामी टूट रही है ।

भारत बहुत अजीब दे श है। िारी दतू नया की हवायें बदलीं। 1947 में हम आजाद हो गये। हमने
िमझा कक हमने आजादी ले ली! वह हमने आजादी ली नहीं। वह दतु नया की हवाएं बदलीं,
दतु नया का परू ा मौिम बदला। दतु नया में पररवतघन का एक वक्त आया। आजादी हमें समली।
ठहन्दस्
ु तान के ककिी नेता को पता भी नहीं था कक आजादी िन 1947 में समल िकती है ।
कल्पना भी नहीं की। आंदोलन तो हमारा िन 1942 में खत्म हो गया था! और बडा भारी
आंदोलन था! िात ठदन में खत्म हो गया था! ऐिी महान क्रांतत दतु नया में कभी नहीं हुई! वह
िात ठदन में खल हो गई थी! उिके बाद हम िं डे पड चक
ु े थे।

अब 20 िाल तक कोई दब
ु ारा जाने को जेल में राजी भी नहीं हो िकता था। अचानक
आजादी आ गयी, तो हमने कहा, हमने आजादी ले ली। िीक वैिी ही भारत की स्री की
आजादी भी आ रही है । यह भूल में मत पडना कक वह आजादी ले रही है ।
और ध्यान रहे जो आजादी आती है , उि आजादी में और जो आजादी ली जाती है , उि
आजादी में , जमीन आिमान का फकघ होता है । जो आजादी समलती है , वह मुदाघ होती है । वह
कभी जजंदा नहीं हो िकती। भीख होती है । और आजादी भी भीख में समल िकती है । इिसलए
इि मुल्क में जो आजादी समली, वह मुदाघ आजादी, बबलकुल डैड—उिमें कोई जजंदगी नहीं। पडी
हुई लाशों वाली आजादी।

इिसलए 20 िाल िे हम िड रहे हैं। उि आजादी िे कोई पुलक नहीं आयी जीवन में । न
कोई नत्ृ य आया, न कोई खशु ी आयी, न कोई उत्िाह आया, न कुछ ऐिा हुआ कक हम बदल दें
जजंदगी को। हजारों िाल के सिलसिले को तोड दें । नया मुल्क बनायें। नया आदमी पैदा करें ।
कुछ भी पैदा नहीं हुआ! बि, इतना बि हुआ कक हमने झंडा बदल ठदया। दि ू रा झंडा फहरा
ठदया और नेता बदल ठदये। हालांकक शरीर बदला नेताओं का। उनकी बुद्धि वही रही, जो
प्रपछले नेताओं की थी, जो प्रपछले हुकूमत करने वालों की थी। बुद्धि वही की वही रही! कपडे
बदल गये। वह शेरवानी पहनकर खडे हो गये। उनको लगा कक हम िब भारतीय हो गये।

िीक वैिी ही आजादी सस्रयों के मामले में र्ठटत हो रही है । नहीं, यह िीक नहीं हो रहा है ।
ठहन्दस्
ु तान की नारी को, ठहन्दस्
ु तान की स्री को आजादी लेनी है । क्योंकक मूल्य आजादी
समलने का नहीं है । वह जो लेने की िकक्रया है , उिी में आला पैदा होती है । इिको िीक िे
िमझ लेना चाठहए। वह जो लेने की िकक्रया है , वह जो जद्दोजहद है । वह जो िंर्षघ है , वह
जो स्ट्गल है , उि स्ट्गल में , लेने की िकक्रया में आत्मा पैदा होती है ।

आजादी समलने िे आत्मा पैदा नहीं होती। आजादी लेने की िकक्रया में िे गुजरना ही आजाद
आत्मा का पैदा हो जाना है । आजादी उिका पररणाम है । आजादी आती है ।

लेककन भारतीय स्री के िाथ वही हो रहा है । आजादी उि पर आ रही है । थोपी जा रही है ।
वह बेमन िे उिको स्वीकार करती चली जा रही है । और िीरे — िीरे पज‍चम की हवायें
उिको पतछम की तरफ ले जायेंगी और एक मौका चक
ू जायेगा। इि मौके को मैं बहुत क्रांतत
का अविर कहता हूं।

भारत की स्री को करना यह है कक पहले तो उिे स्पष्ट रूप िे यह िमझ लेना है कक परु
ु ष
के व्यजक्तत्व की शोि और खोज खत्म हो गई। परु
ु ष ने जो मागघ पकडा था पांच—छ: हजार
वषों में , वह डैड एण्ड पर आ गया, अब उिके आगे कोई रास्ता नहीं है ।

स्री को पहली दफा यह िोचना है , क्या स्री भी एक नई िंस्कृतत को जन्म दे ने के आिार


रख िकती है ? कोई िंस्कृतत जहां युद्ि और ठहंिा न हो। कोई िंस्कृतत जहां िेम, िहानुभूइत
और दया हो। कोई िंस्कृतत जो प्रवजय के सलए बहुत आतुर न हो। जीने के सलए आतुर हो।
जीने की आतुरता हो। जीवन को जीने की कला और जीवन को शांतत िे जीने की आस्था
और तनष्िा पर खडी ककिी िंस्कृतत को स्री जन्म दे िकती है ? स्री जरूर जन्म दे िकती
है ।

आज तक चाहे युद्ि में कोई ककतना ही मरा हो, स्री का मन तनरं तर—िाण उिके दख
ु िे
भरे रहे । उिका भाई मरता है , उिका बेटा मरता है , उिका बाप मरता है , पतत मरता है , िेमी
मरता है । स्री का कोई न कोई युद्ि में जाकर मरता है ।

अगर िारी दतु नया की सस्रयां एक बार तय कर लें कक भाड में जाने दें रूि को, अमरीका को।
िारी दतु नया की सस्रयां एक बार तय कर लें यद्
ु ि नहीं होगा। दतू नया का कोई राजनैततक
यद्
ु ि में कभी ककिी को नहीं र्िीट िकता। सिफघ सस्रयां तय कर लें , यद्
ु ि अभी नहीं होगा,
तो नहीं हो िकता है। क्योंकक कौन जायेगा यद्
ु ि पर? कोई बेटा जाता है , कोई पतत जाता है ,
कोई बाप जाता है । सस्रयां एक बार तय कर लें।

लेककन जस्रयां पागल हैं। युद्ि होता है तो टीका करती हैं कक जाओ युद्ि पर! पाककस्तानी
मां पाककस्तानी बेटे के माथे पर टीका करती है कक जाओ युद्ि पर! ठहंदस्
ु तानी मां ठहंदस्
ु तानी
बेटे के माथे पर टीका करती है कक जाओ बेटे युद्ि पर जाओ।

पता चलता है कक स्री को कुछ पता नहीं कक क्या हो रहा है । वह पुरुष के पूरे जाल में सिफघ
एक खखलौना, हर जगह एक खखलौना बन जाती है । चाहे पाककस्तानी बेटा मरता हो और चाहे
ठहंदस्
ु तानी ककिी मां का बेटा मरता है । यह स्री को िमझना होगा। और चाहे रूि का पतत
मरता हो चाहे अमेररका का। स्री को िमझना होगा उिका पतत मरता है ।

और अगर िारी दतु नया की सस्रयों को एक खयाल पैदा हो जाये कक अब हमें अपने पतत को,
अपने बेटे को, अपने बाप को यद्
ु ि पर नहीं भेजना है , तो कफर परु
ु ष की लाख कोसशश और
राजनैततकों की हर चेष्टा व्यथघ हो िकती है । यद्
ु ि नहीं हो िकता है ।

यह स्री की इतनी बडी शजक्त है , लेककन उिने उिका कोई उपयोग नहीं ककया। उिने कभी
कोई आवाज नहीं की, उिने कोई कफक्र नहीं की। वह आदमी ने, पुरुष ने जो रे खायें खींचीं हैं
राष्ट्ों की, उनको वह भी मान लेती है ! िेम कोई रे खायें नहीं मान िकता, ठहंिा रे खायें मानती
है ।

हम कहते हैं भारत माता! भारत माता जैिी कोई चीज दतू नया में नहीं है । अगर है भी कोई
तो प्
ृ वी माता जैिी कोई चीज हो िकती है ? भारत माता पुरुष की ईजाद है । अपने हाथ िे
उिने कीलें िोंक कर झंडे गाड ठदये हैं! और कहा कक यह भारत अलग!
लेककन मुझे ऐिा लगता है कक स्री के मन में आज भी और हमेशा िे कभी भी िीमा नहीं
रही है , उन अथों में जजन अथों में पुरुष के मन में िीमा है । क्योंकक जहां भी िेम है , वहां
िीमा नहीं होती। िारी दतू नया की सस्रयों को एक तो बुतनयादी यह खयाल जाग जाना चाठहए
कक हम एक नई िंस्कृतत को, एक नये िमाज को, एक नई िभ्यता को जन्म दे िकती हैं—
जो पुरुष का आिार है , उिके िीक प्रवपरीत आिार रखकर।

भारत में यह बहुत िुप्रविा िे हो िकता है । भारत में यह रूपांतरण बहुत आिानी िे हो
िकता है । तो पहली तो बात यह है कक दतू नया की सस्रयों की एक शजक्त और एक आवाज,
एक आत्मा तनसमघत होनी चाठहए। और वह दो तरह की बगावत करे । पुरुष की िारी िंस्कृतत
को कहे कक गलत है । और वह गलत है । अिरू ी है और खतरनाक है ।

दि
ू री बात, स्री के मन में जो िेम है , उि िेम का भी परू ा प्रवकाि नहीं हो िका है । परु
ु ष ने
उि पर भी दीवालें बांिी हैं। उि पर भी उिने कारागह
ृ खडा ककया है कक िेम की इतनी
िीमा है कक इििे आगे मत जाने दे ना। िेम िे परु ु ष बहुत भयभीत है । वह िेम पर पच्चीि
रुकावटें डालता है । कारागह
ृ बनाता है । उि कारागहृ ने दतू नया में स्री के िेम को प्रवकसित
नहीं होने ठदया। फैलने नहीं ठदया। उि िुगंि िे दतू नया को भरने नहीं ठदया। स्री को इि
तरफ भी बगावत करनी जरूरी है कक वह कहे कक िेम पर िीमाएं हम तोडेंगे।

िेम की कोई िीमा नहीं है और िेम की अपनी पप्रवरता है ।

िारी िीमाएं उि पप्रवरता को नष्ट करती हैं और गंदा करती हैं। उि िीमा को फैलाना है ।
उिकी िीमा बढनी चाठहए, फैलनी चाठहए। अगर वह फैलती है तो जैिे पॉजेसिव पुरुष की
एक िवप्रृ त्त है —पॉजेि करने की.?.। कभी आपने खयाल ककया, पुरुष की िारी िवप्रृ त्त है , इक्िा
करो। मासलक बन जाओ। स्री की िारी िवप्रृ त्त है , दे दो। मालककयत छोड दो। ककिी को दे
दो। स्री का िारा आनंद दे दे ने में है और पुरुष का िारा आनंद कब्जा कर लेने में है । यह
कब्जा करने वाला पुरुष ही दतू नया में युद्ि का कारण बना है ।

अगर दतु नया में कभी भी हमें गैर—यद्


ु ि वाली दतू नया बनानी हो तो ध्यान रखना पडेगा,
इक्िा कर लेना, पॉजेि कर लेना, मासलक बन जाना, इि िवप्रृ त्त को जगह न दे दे ने की
ठहम्मत जट
ु ानी पडेगी। नहीं तो.?

मैंने िुना है एक छोटा—िा गीत, रवीन्िनाथ ने सलखा है । और मुझे बहुत िीततकर लगी वह
कहानी, जो गीत में उन्होंने गायी है । गाया है कक एक सभखारी एक ठदन िुबह अपने र्र के
बाहर तनकला। त्यौहार का ठदन है । आज गांव में बहुत सभक्षा समलने की िंभावना है । वह
अपनी झोली में थोडे िे दाने डालकर चावल के, बाहर आया। चावल के दाने उिने डाल ठदये
हैं अपने झोली में । क्योंकक झोली अगर भरी ठदखाई पडे तो दे ने वाले को आिानी होती है ।
उिे लगता है ककिी और ने भी ठदया है । िब सभखारी अपने हाथ में पैिे लेकर अपने र्र िे
तनकलते हैं, ताकक दे ने वाले को िंकोच मालूम पडे कक नहीं ठदया तो अपमातनत हो जाऊंगा—
और लोग दे चक
ु े हैं।

आपकी दया— आपकी दया काम नहीं करती सभखारी को दे ने में । आपका अहं कार काम करता
है — और लते दे चक
ु े हैं, और मैं कैिे न दं ।ू

वह डालकर तनकला है थोडे िे दाने। थोडे िे दाने उिने डाल रखे हैं चावल के। बाहर तनकला
है । िरु ज तनकलने के करीब है । रास्ता िोया है । अभी लोग जाग रहे हैं। दे खा है उिने, राजा
का रथ आ रहा है । स्वणघ रथ—िरू ज की रोशनी में चमकता हुआ।

उिने कहा, िन्य भाग्य मेरे! भगवान को िन्यवाद। आज तक कभी राजा िे सभक्षा नहीं मांग
पाया, क्योंकक द्वारपाल बाहर िे ही लौटा दे ते। आज तो रास्ता रोककर खडा हो जाऊंगा! आज
तो झोली फैला दं ग ू ा। और कहूंगा, महाराज! पहली दफा सभक्षा मांगता हूं। कफर िम्राट तो
सभक्षा दें गे। तो कोई ऐिी सभक्षा तो न होगी। जन्म—जन्म के सलए मेरे दख ु पूएर हो जायेंगे।
वह कल्पनाओं में खोकर खडा हो गया।

रथ आ गया। वह सभखारी अपनी झोली खोले, इििे पहले ही राजा नीचे उतर आया। राजा को
दे खकर सभखारी तो र्बडा गया और राजा ने अपनी झोली अपना वस्र सभखारी के िामने कर
ठदया। तब तो वह बहुत र्बडा गया। उिने कहा आप! और झोली फैलाते हैं?

राजा ने कहा, ज्योततप्रषयों ने कहा है कक दे श पर हमले का डर है । और अगर मैं जाकर आज


राह पर भीख मांग लूं तो दे श बच िकता है । वह पहला आदमी जो मुझे समले, उिी िे भीख
मांगनी है । तम्
ु हीं पहले आदमी हो। कृपा करो। कुछ दान दो। राष्ट् बच जाये।

उि सभखारी के तो िाण तनकल गए। उिने हमेशा मांगा था। ठदया तो कभी भी नहीं था। दे ने
की उिे कहीं कल्पना ही नहीं थी। कैिे ठदया जाता है , इिका कोई अनुभव नहीं था। िब
मांगता था। बि मांगता था। और दे ने की बात आ गई, तो उिके िाण तो रुक ही गये!
समलने का तो िपना धगर ही गया। और दे ने की उलटी बात! उिने झोली में हाथ डाला।
मु्िी भर दाने हैं वहां। भरता है मु्िी, छोड दे ता है । ठहम्मत नहीं होती कक दे दें । राजा ने
कहा, कुछ तो दे दो। दे श का खयाल करो। ऐिा मत करना कक मना कर दो। अन्यथा बहुत
हे रान हो जायेगी। बहुत मुज‍कल िे बहुत कठिनाई िे एक दाना भर उिने तनकाला और राजा
के वस्र में डाल ठदया! राजा रथ पर बैिा। रथ चला गया। िल
ू उडती रह गई।
और िाथ में दख
ु रह गया कक एक दाना अपने हाथ िे आज दे ना पडा। सभखारी का मन दे ने
का नहीं होता। ठदन भर भीख मांगी। बहुत भीख समली। लेककन धचत्त में दख
ु बना रहा एक
दाने का, जो ठदया था।

ककतना ही समल जाये आदमी को, जो समल जाता है , उिका िन्यवाद नहीं होता; जो नहीं समल
पाया, जो छूट गया, जो नहीं है पाि, उिकी पीडा होती है ।

लौटा िांझ दख
ु ी, इतना कभी नहीं समला था! झोला लाकर पटका। पत्नी नाचने लगी। कहा,
इतनी समल गयी भीख! नाच मत पागल! तझ
ु े पता नहीं, एक दाना कम है , जो अपने पाि हो
िकता था।

कफर झोली खोली। िारे दाने धगर पडे। कफर वह सभखारी छाती पीटकर रोने लगा, अब तक तो
सिफघ उदाि था। रोने लगा। दे खता कक दानों की उि कतार में , उि भीड में एक दाना िोने
का हो गया! तो वह धचल्ला—धचल्लाकर रोने लगा कक मैं अविर चक
ू गया। बडी भूल हो
गयी। मैं िब दाने दे दे ता, िब िोने के हो जाते। लेककन कहां खोजूं उि राजा को? कहां जाऊं?
कहा वह रथ समलेगा? कहां राजा द्वार पर हाथ फैलायेगा? बडी मुज‍कल हो गयी। क्या होगा?
अब क्या होगा? वह तडपने लगा।

उिकी पत्नी ने कहा, तुझे पता नहीं, शायद जो हम दे ते हैं, वह स्वणघ का हो जाता है । जो हम
कब्जा कर लेते हैं, वह िदा सम्टी का हो जाता है ।

जो जानते हैं, वे गवाही दें गे इि बात की; जो ठदया है , वही स्वणघ का हो गया।

मत्ृ यु के क्षण में आदमी को पता चलता है , जो रोक सलया था, वह पत्थर की तरह छाती पर
बैि गया है । जो ठदया था, जो बांट ठदया था, वह हलका कर गया। वह पंख बन गया। वह
स्वणघ हो गया। वह दरू की यारा पर मागघ बन गया।

लेककन स्री का परू ा व्यजक्तत्व, दे ने वाला व्यजक्तत्व है ।

और अब तक हमने जो दतु नया बनायी है , वह लेने वाले व्यजक्तत्व की है । लेने वाले व्यजक्तत्व
के कारण पूंजीवाद है । लेने वाले व्यजक्तत्व के कारण िाम्राज्यशाही है । लेने वाले व्यजक्तत्व के
कारण युद्ि है , ठहंिा है ।

क्या हम दे ने वाले व्यजक्तत्व के आिार पर कोई िमाज का तनमाघण कर िकते हैं? यह हो


िकता है । लेककन यह परु
ु ष नहीं कर िकेगा। यह स्री कर िकती है । और स्री िजग हो,
कांशि हो, जागे तो कोई भी कठिनाई नहीं। एक क्रांतत, बडी िे बडी क्रांतत दतु नया में स्री को
लानी है । वह यह, एक िेम पर आिाररत—दे ने वाली िंस्कृतत; जो मलती नहीं, इक्िा नहीं
करती, दे ती है । ऐिी एक िंस्कृतत तनसमघत करनी है । ऐिी िंस्कृतत के तनमाघण के सलए जो भी
ककया जा िके, वह िब.? उि िबिे बडा िमघ स्री के िामने आज कोई और नहीं।

यह थोडी—िी बात मैंने कही। पुरुष के िंिार को बदल दे ना है आमूल। स्री के हृदय में जो
तछपा है , उिकी छाया को फैलाना है । उि वक्ष
ृ को बडा करना है , तो शायद एक अच्छी
मनुष्यता का जन्म हो िकता है । स्री के जीवन में चेतना की क्रांतत िारी मनुष्यता के सलए
क्रांतत बन िकती है ।

कौन करे गा लेककन यह? सस्रयां न िोचतीं, न प्रवचारती। सस्रयां न इक्िा हैं, न कोई िामठू हक
आवाज है , न उिकी कोई आका है ! शायद परु ानी पीढी नहीं कर िकेगी। लेककन नई पीढी की
लडककयां कुछ अगर ठहम्मत जट
ु ायेगी और कफर परु
ु ष होने की नकल और बेवकूफी में नहीं
पडेगी तो यह क्रांतत तनज‍चत हो िकती है । उनकी तरफ बहुत आशा िे भरकर दे खा जा
िकता है ।

मेरी ये िब बातें इतने िेम और शांतत िे िुनीं, इििे बहुत अनुगह


ृ ीत हूाँ।

और अंत में िबके भीतर बैिे हुए परमात्मा को िणाम करता हूं।

मेरे िणाम स्वीकार करें ।

‘नारी और क्रांतत’

संभोग से समाधि की ओर –46


Posted on सितम्बर 19, 2013by sw anand prashad

नार एक और आयाम—प्रिचन चौदहिां


स्री और पुरुष के इततहाि में भेद की, सभन्नता की, लम्बी कहानी जुडी हुई है । बहुत िकार के
वगघ हमने तनसमघत ककये हैं। गरीब का, अमीर का; िन के आिार पर, पद के आिार पर। और
िबिे आ‍चयघ की बात तो यह है कक हमने स्री पुरुष के बीच भी वगोंका तनमाघण ककया है !
शायद हमारे और िारे वगघ जल्दी समट जायेंगे, स्री पुरुष के बीच खडी की गयी दीवाल को
समटाने में बहुत िमय लग िकता है । बहुत कारण हैं।
स्री और पुरुष सभन्न हैं, यह तो तनसशत है , लेककन अिमान नहीं।

सभन्नता और अिमानता दो अलग बातें हैं। सभन्न होना एक बात है । िच में एक आदमी
दि
ू रे आदमी िे सभन्न है ही। कोई आदमी िमान नहीं है ।। कोई पुरुष भी िमान नहीं है ।
स्री और पुरुष भी सभन्न हैं। लेककन सभन्नता तो वगघ बनाना, ऊंचा—नीचा बनाना, मनुष्य का
पुराना षड्यंर और शैतानी रही है ।
हजारों वषों का अतीत का इततहाि स्री के शोषण का इततहाि भी है । पुरुष ने ही चकूं क िारे
कानून तनसमघत ककये हैं, और पुरुष चकूं क शजक्तशाली था। उिने स्री पर जो भी थोपना चाहा,
थोप ठदया।

जब तक स्री के ऊपर िे गल
ु ामी नहीं उिती, तब तक दतु नया िे गल
ु ामी का बबलकुल अंत
नहीं हो िकता।

राष्ट् स्वतंर हो जायेंगे। आज नहीं कल, गरीब और अमीर के बीच के फािले भी कम हो


जायेंगे, लेककन स्री और पुरुष के बीच शोषण का जाल िबिे गहरा है । स्री और पुरुष के
बीच फािले की कहानी इतनी लंबी गयी है कक करीब—करीब भूल गयी है ! स्वयं सस्रयों को भी
भूल गयी है ,

पुरुषों को भी भूल गयी है !

इि िंबंि में थोडी बातें प्रवचार करना उपयोगी होगा। इिसलए कक आने वाली जजंदगी को
जजिे आप बनाने में लगें गे— हो िकता है स्री और पुरुष के बीच िमानता का, स्वतंरता का,
एक िमाज और एक पररवार तनसमघत कर िकें। अगर खयाल ही न हो तो हम पुराने ढांचों में
ही कफर र्ूमकर जीने लगते हैं। हमें पता भी नहीं चलता कक हमने कब पुरानी लीकों पर
चलना शरू
ु कर ठदया है !

आदमी िबिे ज्यादा िुगम इिे ही पाता है कक जो हो रहा था, वैिा ही होता चला जाये, लीस्ट
रे सिस्टें ि वहीं है । इिसलए पुराने ढं ग का पररवार चलता चला जाता है । पुरानी िमाज
व्यवस्था चली जाती है । पुराने ढं ग िे िोचने के ढं ग चलते चले जाते हैं। तोडने में कठिनाई
मालूम पडती है , बदलने में मुज‍कल मालूम पडती है —दो कारणों िे। एक तो पुराने की आदत
और दि
ू रा नये को तनमाघण करने की मुज‍कल।

सिफघ वे ही पीठढयां पुराने को तोडती हैं, जो नये को िज


ृ न दे ने की क्षमता रखती है । प्रव‍वाि
रखती हैं स्वयं पर। और स्वयं का प्रव‍वाि न हो तो हम पुरानी पीढी के पीछे चलते चले
जाते हैं। वह पुरानी पीढी भी अपने िे पुरानी पीढी के पीछे चल रही है ! कुछ छोटी—िी
स्मरणीय बातें पहले हम खयाल कर लें —स्री और पुरुष के बीच फािले, अिमानता ककि—
ककि रूप में खडी हुई है ।

सभन्नता शुतनधश्रत है और सभन्नता होनी ही चाठहए।

सभन्नता ही स्री को व्यजक्तत्व दे ती है और पुरुष को व्यजक्तत्व दे ती है ।

लेककन हमने सभन्नता को ही अिमानता में बदल ठदया। इिसलए िारी दतू नया में जस्रयां
सभन्नता को तोडने की कोसशश कर रही हैं, ताकक वे िीक पुरुष जैिी मालूम पडने लगें । उन्हें
शायद खयाल है कक इि भांतत अिमानता भी टूट जायेगी।

मैंने िन
ु ा है , एक सिनेमा गह
ृ के िामने अमरीका के ककिी नगर में बडी भीड है । क्यू लगा
हुआ है । लंबी कतार है । लोग ठटकट लेने को खडे हैं। एक बढ
ू े आदमी ने अपने िामने खडे
हुए व्यजक्त िे पछ
ू ा, आप दे खते हैं, वह िामने जो लडका खडा हुआ है , उिने ककि तरह
लडककयों जैिे बाल बढा रखे हैं। उि िामने वाले व्यजक्त ने कहा, माफ कररये, वह लडका नहीं
है , वह मेरी लडकी है । उि बढ
ू े ने कहा, क्षमा कररये, मझ
ु े क्या पता था कक आपकी लडकी है ।
तो आप उिके प्रपता हैं? उिने कहा कक नहीं, मै उिकी मां हूं!

कपडों का फािला कम ककया जा रहा है । िीरे —िीरे कपडे करीब एक जैिे होते जा रहे हैं। हो
िकता है , िौ वषघ बाद कपडों के आिार पर फकघ करना मुज‍कल हो जाये। लेककन, कपडों के
फािले कम हो जाने िे सभन्नता नहीं समट जायेगी। सभन्नता गहरी, बायोलाजजकल, जैप्रवक
और शारीररक है । सभन्नता िाइकोलाजजकल भी है बहुत गहरे में । कपडों िे कुछ फकघ नहीं पड
जाने वाला है । एक

पुरुषों ने भी सभन्नता समटाने के बहुत ियोग ककये हैं। हमें खयाल में नहीं है । क्योंकक हम
आदी हो जाते हैं। राम, कृष्ण, बुद्ि और महावीर की मूततघयां और धचर आपने दे खे होंगे। और
अगर िोचते होंगे थोडा—बहुत तो यह खयाल आया होगा कक इन लोगों के चेहरे पर दाढी
मूंछ क्यों ठदखायी नहीं पडते? अिंभव है यह बात। एकाि के िाथ हो भी िकता है कक ककिी
एक राम, कृष्ण, महावीर, ककिी एक को दाढी मूंछ न रही हो। यह िंभव है । कभी हजार में
एक पुरुष को नहीं भी होती है । लेककन चौबीि जैतनयों के तीथिंकर, ठहन्दओ
ु ं के िब अवतार,
बुद्िों की िारी कल्पना, ककिी को दाढी मूंछ नहीं है ! कुछ कारण है । पुरुष को ऐिा लगा है
कक स्री िुन्दर है , तो स्री जैिे होने िे जैिे पुरुष भी िुन्दर हो जायेगा। कफर राम और कृष्ण
को तो हमने मान सलया कक उनको दाढी मूंछ होती ही नहीं। कफर हम क्या करें ? तो िारी
जमीन पर पुरुष दाढी मूंछ को काटने की कोसशश में लगा है । स्री जैिा चेहरा बनाने की
चेष्टा चल रही है । उििे भी कोई भेद समट जाने वाले नहीं हैं।
न कपडे बदलने िे कोई फकघ पडने वाला है । न िपनों पर ऊपरी फकघ कर लेने िे कुछ फकघ
पडने वाला है । भेद गहरा है और अगर भेद समटाने कक कोसशश िे हम चाहते हों कक
अिमानता समटे तो अिमानता कभी नहीं समटे गी। अिमानता हमारी थोपी हुई है । भेद में
अिमानता नहीं है । दो सभन्न व्यजक्त बबलकुल िमान हो िकते हैं। िमान िततष्िा दी जा
िकती है ।

पहली भूल मनुष्य ने यह की कक सभन्नता को अिमानता िमझा। डडफरें ि को इनइक्यासलटी


िमझा। और अब उिी भूल पर दि
ू री भूल चल रही है कक हम सभन्नता को कम कर लें। जो
काम पुरुष करते हैं, वे ही सस्रयां करें ! जो कपडे वे पहनते हैं, वे हम भी पहनें! जजि भाषा का
वे उपयोग करते हैं, जस्रयां भी वैिी ही करें ! अमरीका में जजन शब्दों का उपयोग जस्रयों ने
कभी भी नहीं ककया था मनुष्य के इततहाि में , कुछ गासलयां सिफघ पुरुष ही दे ते हैं, वह उनका
गौरव है । अमरीका की लडककयां उन्हीं गासलयों को दे ने के सलए भी चेष्टा में िंलगन हैं! उन
गासलयों का भी उपयोग कर रही हैं! क्योंकक पुरुष के िाथ िमान खडे हो जाने की बात है ।

और िमानता का खयाल ऐिा है कक हम शायद भेद, सभन्नता को ककिी तरह िे लीप—पोत


कर एक—िा कर दें , तो शायद िमानता उपलब्ि हो जाय। नहीं, िमानता उििे उपलब्ि नहीं
होगी, क्योंकक अिमानता का भी मूल आिार वह नहीं है । अिमानता ककन्हीं और कारणों िे
तनसमघत हुई है । और जैिे हम कहानी िुनते हैं कक ित्यवान मर गया है , िाप्रवरी उिे दरू िे
जाकर लौटा लायी है । लेककन कभी कोई कहानी ऐिी िुनी कक पली मर गयी हो और पतत
दरू िे जाकर लौटा लाया हो। नहीं िुनी है हमने।

सस्रयां लाखों वषघ तक इि दे श में पुरुषों के ऊपर बबाघद होती रही हैं। मरकर िती होती रही
है । कभी ऐिा िन
ु ा, कक कोई परु
ु ष भी ककिी स्री के सलए िती हो गया हो? क्योंकक िारा
तनयम, िारी व्यवस्था, िारा अनश
ु ािन परु
ु ष ने पैदा ककया है । वह स्री पर थोपा हुआ है । िारी
कहातनयां उिने गढी है । वह कहातनयां गढता है , जजिमें परु
ु ष को स्री बचाकर लौट आती है ।
और ऐिी कहानी नहीं गढता, जजिमें परु
ु ष स्री को बचाकर लौटता हो।

स्री गयी कक पुरुष दि


ू री स्री की खोज में लग जाता है , उिको बचाने का िवाल नहीं है ।
पुरुष ने अपनी शुप्रविा के सलये िारा इलजाम कर सलया है । अिल में जजिके पाि थोडी—िी
भी शजक्त हो, ककिी भांतत की, वे जो थोडे भी तनबघल हों ककिी भी भांतत िे, उनके ऊपर िवार
हो ही जाते हैं। मासलक बन ही जाते हैं। गुलामी पैदा हो जाती है ।

पुरुष थोडा शजक्तशाली है शरीर की दृजष्ट िे। ऐिे यह शजक्तशाली होना ककन्हीं और कारणों
िे पुरुष को पीछे भी डाल दे ता है । पुरुष के पाि स्ट्ैंग्थ और शजक्त ज्यादा है । लेककन
रे सिस्टें ि उतनी ज्यादा नहीं है , जजतनी स्री के पाि है । और अगर पुरुष और स्री दोनों को
ककिी पीडा में िफररंग में िे गुजरना पडे तो पुरुष जल्दी टूट जाता है । स्री ज्यादा दे र तक
ठटकती है । रे सिस्टें ि उिकी ज्यादा है । िततरोिक शजक्त उिकी ज्यादा है । लेककन िामान्य
शजक्त कम है । शायद िकृतत के सलए यह जरूरी है कक दोनों में यह भेद हो, क्योंकक स्री कुछ
पीडाएं झेलती है ।

जो पुरुष अगर एक बार भी झेले, तो कफर िारी पुरुष जातत कभी झेलने को राजी, नहीं होगी।
नौ महीने तक एक बच्चे को पेट में रखना और कफर उिे जन्म दे ने की पीडा और कफर उिे
बडा करने की पीडा, वह कोई पुरुष कभी राजी नहीं होगा। अगर एक रात भी एक छोटे बच्चे
के िाथ पतत को छोड ठदया जाय तो या तो वह उिकी गदघ न दबाने की िोचेगा या अपनी
गदघ न दबाने की िोचेगा।

मैंने िन
ु ा है , एक ठदन िब
ु ह मास्को की िडक पर एक आदमी छोटी—िी बच्चों की गाडी को
िक्का दे ता हुआ चला जा रहा है । िब
ु ह है लोग र्म
ू ने तनकले हैं। फूल खखले हैं, पक्षी खखले हैं।
वह आदमी रास्ते में चलते—चलते बार—बार यह कहता है अब्राहम शांत रह— अब्राहम उिका
नाम होगा। पता नहीं, वह ककििे कह रहा है । वह बार—बार कहता है , अब्राहम शांत रह।
अब्राहम िीरज रख। बच्चा रो रहा है । वह गाडी को िक्के दे रहा है । एक बूढी औरत उिके
पाि आती है । वह कहती है , क्या बच्चे का नाम अब्राहम है ?

वह आदमी कहता है , क्षमा करना, अब्राहम मेरा नाम है । मैं अपने को िमझा रहा हूं। शान्त
रह, िीरज रख, अभी र्र आया चला जाता है । इि बच्चे को तो िमझाने का िवाल नहीं है ।
अपने को िमझा रहा हूं कक ककिी तरह दोनों िही िलामत र्र पहुंच जायें।

स्री के पाि एक िततरोिक शजक्त है , जो िकृतत ने उिे दी है । एक रे सिस्टें ि की ताकत है ।


बहुत बडी ताकत है । ककतनी ही पीडा और ककतने ही दख ु और ककतने ही दमन के बीच वह
जजंदा रहती है और मुस्करा भी िकती है । परु
ु षों ने जजतना दबाया है स्री को, अगर सस्रयों ने
उि दमन को, उि पीडा को कष्ट िे सलया होता तो शायद वे कभी की टूट गयी होतीं।
लेककन वे नहीं टूटी हैं। उनकी मुस्कराहट भी नहीं टूटी है । इतनी लम्बी परतंरता के बाद भी
उिके चेहरे पर कम तनाव है पुरुष की बजाय।

रे सिस्टें ि की, झेलने की, िहने की, टालरें ि की, िठहष्णत


ु ा की बडी शजक्त उिके पाि है ।
लेककन मस्कुलर, बडे पत्थर उिाने की, और बडी कुल्हाडी चलाने की शजक्त पुरुष के पाि है ।
शायद जरूरी है कक पुरुष के पाि वैिी शजक्त ज्यादा हो। उिे कुछ काम करने हैं जजंदगी में ,
वह वैिी शजक्त की मांग करते हैं। स्री को जो काम करने हैं, वह वैिी शजक्त की मांग करते
हैं। और िकृतत या अगर हम कहें परमात्मा इतनी व्यवस्था दे ता है जीवन को कक िब तरफ
िे जो जरूरी है जजिके सलए, वह उिको समल जाता है ।
कभी हमने खयाल भी नहीं ककया। जमीन पर, इतनी बडी प्
ृ वी पर कोई तीन—िाढे तीन
अरब लोग हैं सस्रयां पुरुष िब समलाकर। ककिी र्र में लडके ही लडके पैदा हो जाते हैं। ककिी
र्र में लडककयां भी हो जाती हैं। लेककन अगर पूरी प्
ृ वी का हम ठहिाब रखें तो लडके और
लडककयां करीब—करीब बराबर पैदा होते हैं। पैदा होते वक्त बराबर नहीं होते। लेककन पांच छ:
िाल में बराबर हो जाते हैं; पैदा होते वक्त 125 लडके पैदा होते हैं िौ लडककयों पर। क्योंकक
लडकों का रे सिस्टें ि कम है । पच्चीि लडके तो जवान होते—होते मर जाने वाले हैं। लडके
ज्यादा पैदा होते हैं। लडककयां कम पैदा होती हैं, लेककन जवान होते—होते लडके और लडककयों
की िंख्या दतु नया में करीब—करीब बराबर हो जाती है ।

कोई बहुत गहरी व्यवस्था भीतर िे काम करती है । नहीं तो कभी ऐिा भी हो िकता है , इिमें
कोई दर्
ु टघ ना तो नहीं कक जमीन पर सस्रयां हो जायें एकबार। या परु
ु ष ही पुरुष हो जायें। यह
िंभावना है , अगर बबलकुल अंिेरे में व्यवस्था चल रही हो। लेककन भीतर कोई तनयम काम
करता है । और तनयम के पीछे बायोलाजजकल व्यवस्था दे । जजतने अणु होते हैं, वीयाघणु होते
हैं; उनमें आिे सस्रयों को पैदा करने में िमथघ हैं, आिे पुरुषों को इिसलए ककतना ही एक र्र
में भेद पडे, लम्बे प्रवस्तार पर भेद बराबर हो जाता है ।

स्री को वह शजक्तयां समली हुई हैं, जो उिे अपने काम को—और स्री का बडे िे बडा काम
उिका मां होना है । उििे बडा काम िंभव नहीं है । और शायद मां होने िे बडी कोई िंभावना
पुरुष के सलए तो है ही नहीं। स्री कं सलए भी नहीं है । मां होने की िंभावना हम िामान्य
रूप िे महण कर लेते हैं।

कभी आपने नहीं िोचा होगा, इतने पेन्टर हुए, इतने मूततघकार हुए, इतने धचरकार, इतने कप्रव,
इतने आककघटे क्ट, लेककन स्री कोई एक बडी धचरकार नहीं हुई! कोई एक स्री बडी आककघटे क्ट,
वास्तक
ु ला में अग्रणी नहीं हुई! कोई।]क स्री ने बहुत बडे िंगीत को जन्म नहीं ठदया! कोई
एक स्री ने कोई बहुत अदभत ु मतू तघ नहीं काटी! िज
ृ न न,। िारा काम परु
ु ष ने ककया है । और
कई बार परु
ु ष को ऐिा खयाल आता है कक कक्रएठटव, िज
ृ नात्मक शजक्त हमीर पाि है । स्री
के पाि कोई िज
ृ नात्मक शजक्त नहीं है ।

लेककन बात उलटी है । स्री पुरुष को पैदा करने मैं इतना बडा श्रम कर लेती है कक और कोई
िज
ृ न करने कक जरूरत नहीं रह जाती। स्री के पाि अपना एक कक्रएठटव एक्ट है । एक
िज
ृ नात्मक कृत्य है , जो इतना बडा कक न, पत्थर की मूततघ बनाना और एक जीप्रवत व्यजक्त
को बडा करना.. लेककन स्री के काम को हमने िहज स्वीकार कर सलया है । और इिीसलए
स्री की िारी िज
ृ नात्मक शजक्त उिके मां बनने में लग जाती है । उिके पाि और कोई
िज
ृ न की न िुप्रविा बचती है , न शजक्त बचती है । न कोई आयाम, कोई डायमें शन बचता है ।
न िोचने का िवाल है ।
एक छोटे िे र्र को िुंदर बनाने में —लेककन हम कहें गे, छोटे िे र्र को िुंदर बनाना, कोई
माइकल एंजलो तो पैदा नहीं हो िकता, कोई वानगाग तो पैदा नहीं हो जायेगा। कोई इजरा
पाउं ड तो पैदा नहीं होगा। कोई कासलदाि तो पैदा नहीं होगा। एक छोटे िे र्र को… लेककन मैं
कुछ र्रों में जाकर िहरता रहा हूं।

एक र्र में िहरता था, मैं है रान हो गया। गरीब र्र है । बहुत िम्पन्न नहीं है । लेककन इतना
िाफ िुथरा, इतना स्वच्छ मैंने कोई र्र नहीं दे खा। लेककन उि र्र की िशंिा करने कोई
कभी नहीं जायेगा। र्र की गह
ृ णी उि र्र को ऐिा पप्रवर बना रही है कक कोई मंठदर भी
उतना स्वच्छ और पप्रवर नहीं मालूम पडता है । लेककन उिकी कौन कफक्र करे गा? कौन
माइकेल एंजलो,कासलदाि और वानगाग में उिकी धगनती करे गा? वह खो जायेगी। या : एक
ऐिा काम कर रही है , जजिके सलए कोई िततष्िा नहीं समलेगी। क्यों नहीं समलेगी? नहीं समलेगी
यह, यह दतु नयां पुरुषों की दतु नया है ।

स्री के प्रवकाि, स्री की िंभावनाओं, जस्रयों की जो पोटे सशयसलटीज हैं, उनके जो आयाम,
ऊंचाइयां हैं, उनको हमने धगनती में ही नहीं सलया है । अगर एक आदमी गखणत में कोई नयी
खोज कर ले तो नोबल िाइज समल िकता है । लेककन सस्रयां तनरं तर िज ृ न के बहुत नये—नये
आयाम खोजती हैं। कोई नोबल िाइज उनके सलए नहीं है ! या : सस्रयों की दतु नया नहीं हैं।
सस्रयों को िोचने के सलए, सस्रयों को ठदशा दे ने के सलए, उनके जीवन में जो हो, उिे भी मूल्य
दे ने का हमारे पाि कोई आिार नहीं है ।

हम सिफघ पुरुषों को आिार दे ते हैं! इिसलए अगर हम इततहाि उिाकर दे खें तो उिमें चोर,
डकैत, हल।, बडे—बडे आदमी समल जायेंगे। उिमें चंगेज खां, तैमूर लंग और ठहटलर और
स्टै सलन और माओ िबका स्थान है । लेककन उिमें हमें ऐिी जस्रयां खोजने में बडी मजु ‍कल
पड जायेगी। उनका कोई उल्लेख ही नहीं है जजन्होंने िन्
ु दर र्र बनाया हो। जजन्होंने एक बेटा
पैदा ककया हो और जजिके िाथ, जजिे बडा करने में िारी मां की ताकत, िारी िाथघना, िारा
िेम लगा ठदया हो। इिका कोई ठहिाब नहीं समलेगा।

पुरुष की एक तरफा अिूरी दतू नया अब तक चली है । और जो पूरा इततहाि है , वह पुरुष का


ही इततहाि है , इिसलये यद्
ु िों का, ठहंिाओं का इततहाि है ।

जजि ठदन स्री भी स्वीकृत होगी और प्रवराट मनुष्यता में उतना ही िमान स्थान पा लेगी,
जजतना पुरुष का है , तो इततहाि भी िीक दि
ू री ठदशा लेना शुरू करे गा।
मेरी दृजष्ट में जजि ठदन स्री बबलकुल िमान हो जाती है , शायद युद्ि अिंभव हो जाएं।
क्योंकक युद्ि में कोई भी मरे , वह ककिी का बेटा होता है । ककिी का भाई होता है । ककिी का
पतत होता है ।

लेककन पुरुषों को मरने, मारने की ऐिी लम्बी बीमारी है , क्योंकक बबना मरे मारे , वह अपने
पुरुषत्व को ही सिद्ि नहीं कर पाते हैं। वे यह बता ही नहीं पाते हैं कक मैं भी कुछ हूं। तो
मरने मारने का एक लम्बा जाल और कफर जो मर जाए ऐिे जाल में उिको आदर दे ना।

उन्होंने जस्रयों को भी राजी कर सलया है कक जब तम्


ु हारे बेटे यद्
ु ि पर जाएं तो तम
ु टीका
करना! रो रही है मां, आंिू टपक रहे है , और वह टीका कर रही है ! आशीवाघद दे रही है ! यह
परु
ु ष ने जबदघ स्ती तैयार करवाया हुआ है । अगर दतू नया भर की जस्रयां तय कर लें , तो यद्
ु ि
अिंभव हो जायें।

लेककन िब व्यवस्था, िब िोचना, िारी िंस्कृतत, िारी िभ्यता पुरुष के गुणों पर खडी है ।
इिसलए पूरी मनुष्यता इततहाि की युद्िों का इततहाि है ।

अगर हम तीन हजार वषघ की कहानी उिाकर दे खें तो मुज‍कल पडती है , कक आदमी कभी ऐिा
रहा हो, जब युद्ि न ककया हो! युद्ि चल ही रहा है ! आज इि कोने में आग लगी है जमीन
के। कल दि
ू रे कोने में । परिों दि
ू रे कोने में । आग लगी ही है । आदमी जल ही रहा है ।
आदमी मारा ही जा रहा है । और अब? अब हम उि जगह पहुंच गये हैं जहां हमने बडा
इंतजाम ककया है । अब हम आगे आदमी को बचने नहीं दे गे।

अगर पुरुष िफल हो जाता है अपने अंततम उपाय में , तीिरे महायुद्ि में तो शायद मनुष्यता
नहीं बचेगी।

इतना इंतजाम करवा सलया है कक हम पूरी प्


ृ वी को नष्ट कर दें । पूरी तरह िे नष्ट कर दें ।
यह पुरुष के इततहाि की आखखरी क्लाइमेक्ि हो िकती थी चरम, वहां हम पहुंच गये हैं। यह
हम क्यों पहुंच गये हैं?

क्योंकक परु
ु ष गखणत में िोचता है , िेम उिकी िोचने की भाषा नहीं है ।

ध्यान रहे , प्रवज्ञान प्रवकसित हुआ है । िमघ प्रवकसित नहीं हो िका।

और िमघ तब तक प्रवकसित नहीं होगा जब तक स्री िमान िंस्कृतत और जीवन में दान नहीं
करती है । और उिे दान का मौका नहीं समलता है ।
गखणत िे जो चीज प्रवकसित होगी, वह प्रवज्ञान है । गखणत परमात्मा तक ले जाने वाला नहीं
है । चाहे दो और दो ककतने ही बार जोडो तो भी बराबर परमात्मा होने वाला नहीं है । गखणत
ककतना ही बढता चला जाये वह पदाथघ िे ऊपर जाने वाला नहीं है ।

िेम परमात्मा तक पहुंच िकता है । लेककन हमारी िारी खोज गखणत की है । तकघ की है । वह
प्रवज्ञान लेकर खडा हो गया है । उिके आगे नहीं जाता।

िेम की हमारी कोई खोज नहीं है ! शायद िेम की बात करना भी हम जस्रयों के सलए छोड
दे ते हैं। या कप्रवयों के सलए जजनको हम करीब—करीब जस्रयों जैिा धगनती करते हैं। उनकी
धगनती हम कोई परु
ु षों में नहीं करते।

नीत्शे ने तो एक अदभुत बात सलखी है जो बहुत खतरनाक है । ककिी को बुरी भी लग िकती


है । नीत्शे ने कई बातें सलखी हैं; मैं मानता हूं िच हैं। उिने तो पोज में सलखी है और गाली
दे ने के इरादे िे सलखी है , लेककन बात िच है । नीत्शे ने सलखा है कक बुद्ि और क्राइस्ट को
मै बूमतनस्ट मानता हूं! स्रैण मानता हूं! बुद्ि और क्राइस्ट को मैं स्रैण मानता हूं। मैं पुरुष
नहीं मानता। क्योंकक जो लडने की बात नहीं करते,और जो लडने िे बचने की बात करते हैं
वह पुरुष कैिे हो िकते हैं? पुरुषत्व तो लडने में ही है ।

नीत्शे ने कहा, मैंने िुन्दरतम जो दृ‍य दे खा है जीवन में , वह तब दे खा, जब िूरज की उगती
रोशनी में सिपाठहयों की चमकती हुई तलवारें और उनके चमकते हुए बूटों की आवाजें, उनका
एक पंजक्तबद्ि, रास्ते िे गुजरना, िूरज की रोशनी का धगरना, और पंजक्तबद्ि उनके पैरों की
आवाज और उनकी चमकती हुई िंगीनें —मैंने उििे िुन्दर दृ‍य जीवन में दि
ू रा नहीं दे खा।

अगर यह आदमी, और यह मानता है कक ऐिा दृ‍य िुंदर है , तो फूल स्रैण हो जायेंगे।


तनज‍चत ही, जब चमकती हुई िगीने िन्
ु दर हैं तो फूल कहां ठटकेंगे? फूलों को बाहर कर दे ना
होगा िौन्दयघ के।

और जब नीत्शे कहता है , जो लडते हैं, और लड िकते हैं, और लडते रहते हैं, युद्ि ही जजनका
जीवन है , मै ही पुरुष हैं तो िीक है । बुद्ि और क्राइस्ट और महावीर को अलग कर दे ना
होगा। उनकी जस्रयों में ही धगनती करनी पडेगी।

लेककन दतु नया में जो भी िेम के रास्ते िे गया हो, उिमें ककिी न ककिी अथों मे नीत्शे का
कहना िीक है कक वह स्रैण है । यह अपमानजनक नहीं है । अगर पुरुष ने भी िेम ककया हो
तो, वह जो पुरुष की आम िारणाए हैं युद्ि की, िंर्षघ की, ठहंिा की, वायलें ि की, वे धगर जाती
हैं। और नयी िारणाएं पैदा होती हैं—िहयोग की, क्षमा की, िेम की।
एक बौद्ि सभक्षु था। उि सभक्षु का नाम था पूण।घ उिकी सशक्षा पूरी हो गयी। सशक्षा पूरी हो
जाने पर बुद्ि। उििे कहा कक पूण,घ अब तू जा और मेरे िेम की खबर लोगों तक पहुंचा दे ।
तू उन जगहों में जा जहां कोई नहीं गया हो। तू मेरी खबर ले जा िेम की। ठहंिा की खबरें
बहुत पहुंचायी गयी हैं। कोई िेम की खबर भी पहुंचाये। न गया

पूणघ ने बुद्ि के पैर छुये और कहा कक मुझे आज्ञा दें कक मैं िूखा नाम का छोटा—िा बबहार
का एक ठहंिा। है , वहां जाऊं और आपका िंदेश ले जाऊं।

बद्
ु ि ने कहा, वहां तू मत जा, तो बडी कृपा हो। वहां के लोग अच्छे नहीं हैं। वहां के लोग
बहुत बरु े हैं। पण
ू घ ने कहा, तब मेरी वहां जरूरत ही जरूरत है । जहां लोग बरु े हैं और अच्छे
नहीं हैं, वहीं तो िेम का िंदेश ले जाना पडेगा।

बुद्ि ने कहा, कफर मैं तुझिे दो तीन िश्र पूछता हूं। उत्तर दे दे । तब जा। िब िे पहले पूछता
हूं अगर भा:। के लोगों ने तेरा अपमान ककया, गासलयां दीं तो तुझे क्या होगा? पूणघ ने कहा
क्या होगा? मैं िोचग
ूं ा, लोग ककतने अच्छे हैं, सिफघ गासलयां दे ते हैं, अपमान करते हैं, मारते नहीं
हैं। मार भी िकते थे।

बुद्ि ने कहा, यहां तक भी िीक है । लेककन अगर वे मारने लगे, वे लोग बरु े हैं, मार भी िकते
हैं। अगर उन्होंने मारा, और तेरे िेम के िंदेश पर पत्थर फेंके और लकडडयां तेरे सिर पर
बरिीं तो तुझे क्या होगा?

पूणघ ने कहा, क्या होगा, मुझे यही होगा कक लोग अच्छे हैं। सिफघ मारते हैं, मार ही नहीं डालते।

बुद्ि ने कहा, मैं तीिरी बात और पूछता हूं। अगर उन्होंने तुझे मार ही डाला तो मरते क्षण
में तेरे मन को क्या होगा?

पण
ू घ ने कहा, मेरे मन को होगा, ककतने भले लोग हैं, मझ
ु े उि जीवन िे मुक्त कर ठदया,
जजिमें भल
ू चक
ू हो िकती थी। जजिमें मैं भटक भी िकता था। जजिमें मैं मारने को तैयार
हो िकता था। उििे मक्
ु त कर ठदया है ।

बुद्ि ने कहा, अब तू जा। तेरा िेम पूरा हो गया है । और जजिका िेम पूरा हो गया है वही
युद्ि के प्रवपरीत, ठहंिा के प्रवपरीत खबर और हवा ले जा िकता है । तू जा।
सस्रयां जजि ठदन मनुष्य की िंस्कृतत में िमान पुरुष के िाथ खडी हो िकेंगी और मनुष्य की
िंस्कृतत में आिा दान उनका होगा,उि ठदन गखणत अकेली चीज नहीं होगी। उि ठदन िेम
भी एक चीज होगी।

िेम गखणत िे बबलकुल उलटा है । िमघ प्रवतान िे बबलकुल उलटा है । गखणत की और ही


दतु नया है ।

समलट्ी में हम आदसमयों के नाम हटा दे ते हैं। अगर आप भती हो गये हैं या मैं भती हो गया
हूं तो 11, 12, 15 ऐिे नंबर हो जायेंगे। जब एक आदमी मरे गा तो समलट्ी के बाहर नोठटि लग
जायेगा, 12 नंबर धगर गया। आदमी नहीं मरता समलट्ी में । सिफघ नंबर मरते हैं! आदमी के
ऊपर भी हम नंबर लगा दे ते हैं, तो फकघ बहुत ज्यादा है ।

अगर पता चले कक फलां आदमी मर गया, जजिकी पत्नी है , जजिके दो बेटे हैं, जजिकी बूढी
मां है , वे िब अिहाय हो गये। फलां आदमी मर गया तो एक आदमी की तस्वीर उिती है ।
लेककन 12 नंबर की न कोई पत्नी होती है , न कोई बेटे होते हैं। नंबर की कहीं पजत्नयां और
बेटे हुए हैं? नंबर बबलकुल नंबर है । जब 12 नंबर धगरने का बोडघ पर नोठटि लगता है तो लोग
पढकर तनकल जाते हैं।

गखणत का एक िवाल जैिा होता है कक इतने नंबर धगर गये। इतने नंबर खत्म हो गये।
दि
ू रे नंबर उनकी जगह खडे हो जायेंगे। 12 नंबर दि
ू रे आदमी का लग जायेगा। दि
ू रा आदमी
बारह नंबर की जगह खडा हो जायेगा। गखणत में ररप्लेिमें ट िंभव है । जजंदगी में तो नहीं।
एक आदमी मरा, उिको अब दतू नया में कोई दि
ू रा आदमी उिकी जगह ररप्लेि नहीं हो
िकता। लेककन गखणत में कोई कठिनाई नहीं है । गखणत में हो िकता है । इिसलए तो समलट्ी
में तकलीफ नहीं है । नंबर ही धगरते हैं, नंबर ही मरते हैं। और हमने पूरी व्यवस्था की है ,
गखणत िे िोचने वाला आदमी जो व्यवस्था करता है , वह इतनी ही किोर यांबरक, मेकेतनकल
और इतनी ही जड होती है ।

मैंने िन
ु ा है कक जजि आदमी ने िबिे पहले एवरे ज का तनयम खोजा—जब कोई आदमी कोई
नया तनयम खोज लेता है तो बडी उत्िक
ु ता िे भर जाता है । हम तो जानते हैं, आकघसमडीज
तो नंगा ही बाहर तनकल आया अपने टब के, और धचल्लाने लगा यरु े का, युरेका समल गया,
समल गया। और भूल गया कक वह कपडे नहीं पहने है , इतनी खश
ु ी िे भर गया।

जजि आदमी ने एवरे ज का सिद्िांत खोजा, वह भी इतनी ही खश


ु ी िे भर गया होगा। जजि
ठदन उिने सिद्िात खोजा, अपनी पली अपने बच्चों को लेकर खश
ु ी में प्रपकतनक पर गया।
एवरे ज का मतलब.. एवरे ज का मतलब है कक ठहन्दस्
ु तान में एवरे ज आदमी की ककतनी
आमदनी है । और मजा यह है कक एवरे ज आदमी होता ही नहीं। एवरे ज आदमी बबलकुल झूिी
बात है । एवरे ज आदमी कहीं नहीं समलेगा। एवरे ज आदमी एक रुपया है तो आप ऐिा आदमी
नहीं खोज िकते कक जो एवरे ज आदमी हो। िोलत्न आने वाला समलेगा, िरह आने वाला
समलेगा, पौने िोलह आने वाला समलेगा, पैिे वाला समलेगा, भूखा समलेगा। िीक एवरे ज आदमी
पूरे ठहन्दस्
ु तान में खोजने िे नहीं समलेगा। क्योंकक एवरे ज गखणत िे तनकली हुई बात है ,
आदमी की जजंदगी िे नहीं। हम यहां इतने लोग बैिे हैं। हम िब की एवरे ज उम्र तनकाली जा
िकती है । िब की उम्र जोड दी और िब आदसमयों की गणना का भाग दे ठदया। आ गया
पंिह िाल या िात िाल या कुछ भी।

वह आदमी अपनी पली और बच्चों के िाथ जा रहा था। रास्ते में एक छोटा—िा नाला पडा।
उिकी पत्नी —ने कहा नाले को जरा िीक िे दे ख लो, क्योंकक छोटे बच्चे हैं। पांच िाल के
बच्चे हैं। कोई डूब न जाये।

उिने कहा, िहर, मैं बच्चों की एवरे ज ऊंचाई नाप लेता हूं और नाले की एवरे ज गहराई। अगर
एवरे ज गहराई िे एवरे ज बच्चा ऊंचा है तो बेकफक्र होकर पार हो िकते हैं। उिने अपना फुट
तनकाला। फुट िाथ रखा हुआ था। नाप सलया—बच्चे नाप सलए। एवरे ज बच्चा, एवरे ज गहराई
िे ऊंचा था। कोई बच्चा बबलकुल छोटा था, को? बच्चा बडा था और कहीं नाला बबलकुल
उथला था, और कहीं गहरा था। लेककन वह एवरे ज में नहीं आती बातें। गखणत में नहीं आती।
उिने कहा, बेकफक्र रह, मैंने ठहिाब बबलकुल िीक कर सलया है । रे त पर ठहिाब लगा सलया।
आगे गखणतज्ञ हो गया। बीच में उिके बच्चे हैं, पीछे पली है । पत्नी थोडी डरी हुई है ।

सस्रयों का गखणत पर कभी भरोिा नहीं रहा है । थोडा भय और नीचे भी कुछ गडबड हुई जा
रही है , क्योंकक नाले में कई जगह हरापन ठदखायी पडता है । नाला कई जगह गहरा मालम

पडता है । उिने दे खा कक उिका पतत खद
ु कहीं बबलकुल डूब गया है , और िाथ एक छोटा
बच्चा भी है ।

वह िचेत है , लेककन पतत अकडकर आगे चला जा रहा है । एक बच्चा डूबने लगा। उिकी पली
ने धचल्लाकर कहा, दे खखये बच्चा डूब रहा है ! आप िमझते हैं?

उि आदमी ने क्या ककया, पुरुष ने क्या ककया? उिने कहा, यह हो ही नहीं िकता। क्योंकक
गखणत गलत कैिे हो िकता है ? बच्चे को बचाने की बजाय वह भाग कर नदी के उि तरफ
गया, जहां उिने रे त पर गखणत ककया था! पहले उिने गखणत दे खा, कक गखणत कहीं गलत तो
नहीं है । वह वहीं िे धचल्लाया कक यह हो नहीं िकता गखणत बबलकुल िीक है ।
गखणत की एक ठदशा है , जहां जड तनयम होते हैं। चीजें तौली, नापी जा िकती हैं।

अब तक पुरुष ने जो िंस्कृतत बनायी है , वह गखणत की िंस्कृतत है । वहां नाप, जोख, तौल िब


है । स्री का कोई हाथ इि िंस्कृतत में नहीं है । क्योंकक उिे िमानता का कोई हक नहीं है ।
उिे कभी हमने पुकारा नहीं कक तुम आओ और तम
ु एक दि
ू रे आयाम िे, िेम के आयाम िे
भी दान करो कक िमाज कैिा हो।

स्री अगर िोचेगी तो और भाषा में िोचती है । और उिका िोचना भी हमिे बहुत सभन्न है ।
उिे हम िोचना भी नहीं कह िकते। भावना कह िकते है । परु
ु ष िोचता है , स्री भावना
करती है । िोचना भी नहीं कह िकते, क्योंकक िोचना गखणत की दतु नया का ठहिाब है । और
इिसलए परु
ु ष हमेशा ठहिाब लगाता है । स्री ठहिाब के आिपाि चलती है । िीक ठहिाब नहीं
लगा पाती। िीक ठहिाब नहीं है उिके पाि।

लेककन जजंदगी अकेला गखणत नहीं है । जजंदगी बहुत बडे अथों में िेम है जहां कोई ठहिाब
नहीं होता। कोई गखणत नहीं होता। जजंदगी बहुत बेबूझ है और इि जजंदगी को अगर हमने
गखणत की िीिी िाफ रे खाओं पर तनसमघत ककया तो हम िीिी िाफ रे खाएं बना लेंगे। लेककन
आदमी पुंछता चला जायेगा, समटता चला जायेगा। और यही हो रहा है । रोज यह हो रहा है
कक आदमी की जडें नीचे िे कट रही हैं। क्योंकक हम जो इंतजाम कर रहे हैं, वह ऐिा इंतजाम
है , जजिके ढांचे में जजंदगी नहीं पल िकती।

जैिे कक अगर िमझ लें , मुझे एक फूल बहुत प्यारा लगे तो मैं एक ततजोरी में उिे बंद कर
लूं। गखणत यही कहे गा कक ततजोरी में बंद कर लो। ताला लगा दो जोर िे। मुझे िूरज की
रोशनी बहुत अच्छी लगे, एक पेटी में बंद कर लूं। अपने र्र रखूं बांिकर। लेककन, जजंदगी
पेठटयों में बंद नहीं होती—न गखणत की पेठटयों में , न िाइंि की पेठटयों में । कहीं बंद नहीं
होती। जजंदगी बाहर छूट जाती है , एकदम छूट जाती है । मु्िी बांिी… अगर यहां हवा है और
मैं मु्िी जोर िे बांिू और िोचूं कक हवा को हाथ के भीतर बंद कर लूं.. तो मु्िी जजतने
जोर िे बंिेगी हवा, उतनी हाथ िे बाहर हो जायेगी।

जजंदगी बंिना मानती नहीं। जजंदगी एक तरलता और एक बहाव है । लेककन हमारी, परु
ु ष की
धचतना की िारी जो कैटे गररज हैं, परु
ु ष के िोचने का जो ढं ग है , वह िब चीजों को बांिता है ।
व्यवजस्थत बांि लेता है , ठहिाब में बांि लेता है । अगर उििे पूछो कक मां का क्या मतलब
है ? अगर िीक पुरुष िे पूछो कक मां का क्या मतलब है ? तो वह कहे गा, बच्चे पैदा करने की
एक मशीन है ! और क्या हो िकता है ?
मैं एक वैज्ञातनक की ककताब पढ रहा था। उि वैज्ञातनक िे ककिी ने पूछा, मुगी क्या है ? तो
उि आदमी ने कहा, मुगी अंडे की तरकीब है , और अंडे पैदा करने के सलए। अंडे की तरकीब,
और अंडे पैदा करने के सलए! मुगी क्या है ? अंडे की तरकीब। और अंडे पैदा करने के सलए—
और क्या हो िकता है ? गखणत ऐिा िोचेगा—िोचेगा ही। गखणत इििे सभन्न िोच भी नहीं
िकता। प्रवतान इििे सभन्न िोच भी नहीं िकता। प्रवज्ञान आत्मा की गणना नहीं करता!
जीवन की गणना नहीं करता! चीजों को काट लेता है । काटकर खोज कर लेता है । प्रव‍लेषण
कर लेता है । और प्रव‍लेषण में जो जीवन था, वह एकदम खो जाता है ।

पुरुष ने जो दतू नया बनायी है .. वह पुरुष अिरू ा है , अिरू ी दतु नया बन गयी है । पुरुष अिरू ा है ,
यह ध्यान रहे। और स्री के िाथ बबना उिकी िंस्कृतत अिरू ी होगी।

तो एक—एक र्र में परु


ु ष एक—एक स्री को लाया है । एक—एक र्र में तो परु
ु ष अकेला
रहने को राजी नहीं है । स्री भी अकेले रहने को राजी नहीं है । चाहे ककतनी कलह हो, स्री
और परु
ु ष िाथ रह रहे हैं!

लेककन िंस्कृतत और िभ्यता की जहां दतू नया है , वहां स्री का बबलकुल िवेश नहीं हुआ है ।
वहां पुरुष बबलकुल अकेला है । पुरुष के अकेले, अिूरेपन ने.. पुरुष बबलकुल अिरू ा है , जैिे स्री
अिरू ी है । वे काम्पलीमें टरी हैं, दोनों को समलाकर एक पूणघ व्यजक्तत्व बनता है ।

लेककन मनुष्य की िंस्कृतत अिरू ी सिद्ि हो रही है । क्योंकक वह आिे पुरुष ने ही तनसमघत की
है । स्री िे उिने कभी मल नहीं की। स्री िब गडबड कर दे ती है , अगर वह आये तो। अगर
लेबोरे टरी में उिे ले जाओ तो बजाय इिके कक वह आपकी परखनली और आपके टै स्ट—्यूब
में क्या हो रहा है यह दे खे, हो िकता है टै स्ट—्यूब को रं ग कर िुंदर बनाने की कोसशश
करे । स्री को लेबोरे टरी में ले जाओ, गडबड होनी शरू
ु हो जायेगी। या पुरुष को स्री की
बधगया में ले जाओ तो भी गडबड होनी शुरू हो जायेगी। इि गडबड के डर िे हमने
कम्पाटघ मेंट बांट सलए हैं।

परु
ु ष की एक दतु नया बना दी है । स्री की एक अलग दतु नया बना दी है । और दोनों के बीच
एक बडी दीवाल खडी कर ली है । और दीवाल खडी करके परु
ु ष अकड गया है और कहता है ,
मझ
ु िे तम्
ु हारा मक
ु ाबला क्या? का कुछ कर ही नहीं िकती। इिसलए र्र में बंद रहो। तम
ु िे
कुछ हो नहीं िकता। हम पुरुष ही कुछ कर िकते है । हम पुरुष श्रेष्ि हैं। जस्रयो, तुम्हारा
काम है कक तुम बतघन मलो, खाना बनाओ, बि इतना! इििे ज्यादा तुम्हारा कोई काम नहीं
है । बच्चों को बडा करो! यह िब पुरुष ने स्री को एक दीवाल बना करके वहां िौप ठदया है
और वह बाहर अकेला मासलक होकर बैि गया है ! िब तरफ पुरुष इक्िे हो गये हैं।
कल्वर की जहां दतु नया है , िंस्कृतत की, वहां पुरुष इक्िे हो गये हैं! सस्रयां वजजघत हैं! जस्रयां
अस्प‍ृ य की, अनटचेबल की भांतत बाहर कर दी गयी हैं!

मेरी दृजष्ट में इिीसलए मनुष्य की िभ्यता अब तक िुख की और आनंद की िभ्यता नहीं
बन िकी। अब तक मनुष्य की िभ्यता पूणघ इंटीग्रेटेड नहीं बन िकी है । उिका आिा अंग
बबलकुल ही काट ठदया गया है । इि आ हो अंग को वाप्रपि िमान हक न समले, इिे वाप्रपि
पूरा जीवन, परू ा अविर, स्वतंरता न समले तो मनुष्य का बहुत भप्रवष्य नहीं माना जा िकता।
मनुष्य का भप्रवष्य एकदम अंिकारपूणघ कहा जा िकता है ।

स्री को लाना है । भेद हैं, सभन्नताएं है । सभन्नताएं आनंदपण


ू घ हैं, सभन्नताएं दख
ु का कारण नहीं
हैं। अिमानता दख
ु का कारण है । और अिमानता को हमने सभन्नता के आिार पर…
अिमानता को इतना मजबत
ू कर सलया है कक कल्पना के बाहर है , कक स्री और परु
ु ष समर
हो िकते हैं। परु
ु ष को लगता ही नहीं कक स्री और परू
ु ष समर! नहीं हो िकती! पत्नी हो
िकती है ! पत्नी यानी दािी।

और जब वह धच्िी सलखती है कक आपकी चरणों की दािी तो पुरुष बडा ििन्न होता है


पढकर। बहुत ििन्न होता है । िीक पत्नी समल गयी है । ऐिी ही पत्नी होनी चाठहए।

पुरुषों के ऋप्रष—मुतन िमझाते हैं कक स्री परमात्मा माने पुरुष को! पुरुष खुद ही िमझा रहा
है कक मुझे परमात्मा मानो!

और जस्रयों के ठदमाग को वह तीन हजार िाल िे कंडीशंड कर रहा है । और उनके ठदमाग में
यह िचार कर रहा है कक मुझे यह मानो!

पुरुषों ने ककताबें सलखी हैं, जजिमें उन्होंने सलखा है कक स्री अगर कल्पना भी कर ले दि
ू रे
पुरुष की, तो पाप्रपन है ! और पुरुष अगर वे‍या के र्र भी जाये तो पप्रवर! स्री वही है , जो उिे
कंिे पर बबिाकर वे‍या के र्र पहुंचा दे ।

मजेदार लोग हैं—बहुत मजेदार लोग हैं! और हम.. लेककन यह स्वीकृत हो गया! इिमें सस्रयों
को भी एतराज नहीं है . यह स्वीकृत हो गया है !

सस्रयों को.. इतने ठदन िे िोपेगण्डा ककया गया है उनकी खोपडी पर, हे मररंग की गयी है कक
उन्होंने मान सलया है । बचपन िे ही उन्हें नंबर दो की जस्थतत स्वीकार करने के सलए मां—
बाप तैयार करते हैं। वह नंबर एक नहीं हे । वह नंबर दो है । इिकी स्वीकृतत बचपन िे उनके
मन पर थोपी चली जाती है !
पूरी िंस्कृतत, पूरी व्यवस्था.. कैिे यह छुटकारा हो, कैिे यह स्री पुरुष के िामान खडी हो
िके, बहुत कठिन मामला मालूम पडता है ।

लेककन दो—तीन िूर िुझाना चाहता हूं। इनके बबना शायद स्री पुरुष के िमान खडी नहीं हो
िकती। और ध्यान रहे जब तक पूरी पररजस्थतत नहीं बदलती है .. पुरुष ककतना ही कहे कक
तुमको भी तो िमान हक है वोट करने का, तुम िमान हो। िब बातें िीक हैं। अिमानता
क्या है ? इििे कुछ हल नहीं होगा। स्री के नीचे होने में , उिके जीवन की गुलामी में , उिकी
अिमानता में कुछ कारण हैं। जैिे जब तक सस्रयों की अपनी कोई आधथघक जस्थतत नहीं है ,
जब तक उनकी अपनी इकॉनासमक, अथघगत, िम्पप्रत्तगत अपनी कोई जस्थतत नहीं है , तब तक
सस्रयों की िमानता बातचीत की बात होगी। गरीब अमीर िमान हैं। हम कहते हैं. हम कहते
हैं, गरीब अमीर िमान हैं, बराबर वोट का हक है । िब िीक है । लेककन गरीब अमीर िमान
कैिे हो िकता है ? अमीरी और गरीबी इतनी . अिमानता पैदा कर दे ती है ।

और सस्रयों िे ज्यादा गरीब कोई भी नहीं है , क्योंकक हमने उनको बबलकुल अपंग कर ठदया है
कमाने िे। पैदा िे अपंग कर ठदया है । वे कुछ पैदा नहीं करती। न वे कुछ कमाती हैं। न वे
जजंदगी में आकर बाहर कुछ काम करती हैं। र्र के भीतर बंद कर ठदया। उनकी गुलामी का
मूल—िूर यह है कक वे जब तक आधथघक रूप िे बंिी हैं, तब तक वे िमान हक में हो भी
नहीं िकतीं।

और बुरा है यह। एकदम बुरा है , क्योंकक सस्रयां िब तरफ फैल जायें, िब कामों में तो पुरुष के
िब तरफ कामों जो पुरुषपन आ गया है , िब सशधथल हो जाय। फकघ हम जानते हैं। फकघ
बहुत स्पष्ट है । स्री के िवेश िे ही एक और हवा हर दलतर में िप्रवष्ट हो िकती है और हो
ही जाती है ।

एक क्लाि, जहां लडके ही लडके पढ रहे हैं और पुरुष ही पढा रहा है । एक और तरह की
क्लाि है । जहां लडककयां भी आकर बैि गयी हैं—क्लाि की हवा में फकघ पड गया है , बुतनयादी
फकघ पड गया है । ज्यादा िे ज्यादा िुगंि िे भरी वह हवा हो गयी है । कम पुरुष, कम किोर
चीजें सशधथल हो गयी हैं और चीजें ज्यादा सशष्ट हो गयी हैं।

स्री को जीवन के िब पहलओ


ु ं पर फैला दे ने की जरूरत है । ऐिा कोई काम नहीं है , जो कक
सस्रयां न कर िकती हो।

रूि में सस्रयों ने िब काम करके बता ठदया है । हवाई जहाज के पायलट होने िे, छोटे —छोटे
काम तक। स्री अंतररक्ष में उडकर भी बताया है । वह इि बात की खबर है कक सस्रयां करीब—
करीब िब काम कर िकती हैं।
कुछ काम होंगे, जो एकदम मस्कुलर हैं। कुछ काम होंगे, अब तो नहीं रह गये। क्योंकक मस्त
का िब काम ० करने लगी है । पुराना जमाना गया। कोई शेर—वेर िे लडने जाना नहीं पडता
और गामा वगैरह बनना अब िब बेवकूफी हो गयी है । वह िमझ की बातें नहीं हैं।

अब तो, मस्ल का काम मशीन ने कर ठदया है , इिसलए स्री को िमान होने का पूरा मौका
समल गया है । मशीन बडे िे बडा काम कर दे ती है । बडे िे बडा पत्थर उिा दे ती है । बडे िे
बडे वजन को िका दे ती है । अब पुरुष को भी िकाना नहीं पड रहा है । अब कोई जरूरत नहीं
है । अब स्री ित्येक काम में पुरुष के िाथ खडी हो िकती

और जैिे ही स्री जीवन के िब पहलओ


ु ं में िप्रवष्ट कर जायेगी, िभी पहलुओं के वातावरण
में बतु नयादी फकघ पडेगा। और कुछ काम तो ऐिे हैं… अब यह है रानी की बात है , ऐिा शायद
ही कोई काम अब बचा है परु
ु ष के पाि, जो स्री नहीं कर िकती।

लेककन कुछ काम ऐिे हैं, जो जस्रयां ही कर िकती हैं और पुरुष नहीं कर िकते हैं। और उन
कामों को भी परू
ु ष पकडे हुए है । जैिे सशक्षक का काम है । सशक्षक के काम िे पुरुष को हट
जाना चाठहए। पुरुष सशक्षक हो ही नहीं िकता। उिका डडक्टे टोररयल माइंड इतना ज्यादा है
कक वह सशक्षक नहीं हो िकता है ।

वह थोपने की कोसशश करता है । और वह जो भी मानता है , उिे थोपने की कोसशश करता है ।


वह कहता है , जो मैं कहता हूं वह िीक है । वह इजल्डंग नहीं है । वह झुक नहीं िकता। वह
प्रवनम्र नहीं हो िकता। खसु मसलटाघ नहीं है । हम्बलनेि नहीं है । सशक्षक अगर जरा भी थोपने
वाला है तो दि
ू री तरफ के मजस्तष्क को बुतनयादी रू’। िे नुकिान पहुंचाता है ।

और नुकिान पहुंचता है िारी मनुष्य जातत को। क्योंकक सशक्षक कैिे व्यवहार कर रहा है ।
तनसशत ही िारी दतु नया में सशक्षा का करीब—करीब िारा काम—करीब—करीब कहता हूं िारा
काम सस्रयों के हाथ में चला ही जाना चाठहए। यह बबलकुल ही ठहतकर होगा। उधचत होगा।
महत्वपण
ू घ होगा, क्योंकक सशक्षा तब एक रूखी िख
ू ी बात नहीं रह जायेगी। उिके िाथ एक रि
और एक पाररवाररक वातावरण जड
ु जायेगा और िंबंधित हो जायेगा।

बहुत काम ऐिे हो िकते हैं, जो कक सस्रयों को पूरी तरह उपलब्ि हो जाने चाठहए। और बहुत
काम जो सस्रयां कर िकती हैं, उन्हें िब तरफ िे तनमंरण समलने चाठहए और बहुत ठदशाएं जो
हमेशा िे अिरू ी पडी हुई हैं, जजनको कभी छुआ नहीं गया है , खोली जानी चाठहए। उन ठदशाओं
के दरवाजे तोडे जाने चाठहए, ताकक एक और तरह की धचतना—स्री की धचतना, स्री की
भावना, बबलकुल और तरह की है ।
उिमें कुछ डायनासमकली अपोजजट है । कुछ बुतनयादी रूप िे उलटे तत्व हैं। वह ज्यादा
इनटयूठटव है । इंटलेल्युअल नहीं है । वह बहुत बुद्धि और तकघ की नहीं है , ज्यादा अंतर
अनुभूतत की है । मनुष्य अंतर अनुभूतत िे शून्य हो गया है , बबलकुल शून्य है ।

जस्रयां अगर िब ठदशाओं में फैल जायें और जीवन र्रों में बंद न रह जाये, क्योंकक र्रों का
काम इतना उबाने वाला है , इतना बोररंग है , इतना बोडघम िे भरा हुआ है कक उिे तो मशीन
के हाथ में िीरे —िीरे छोड दे ना चाठहए। आदमी को करने की—न जस्रयों को, न पुरुषों को—
कोई जरूरत नहीं है । रोज िुबह वही काम, रोज दोपहर वही काम, रोज िांझ वही काम!

एक स्री चालीि पचाि वषघ तक एक मशीन की तरह िब


ु ह िे िांझ, यंर की तरह र्म
ू ती
रहती है और वही काम करती रहती है। और इिका पररणाम क्या होता है ? इिका पररणाम है
कक मनष्ु य के परू े जीवन में प्रवष र्ल
ु जाता है ।

एक स्री जब चौबीि र्ंटे ऊब वाला काम करती है । रोज बतघन मलती है —वही बतघन, वही
मलना; वहीं रोटी, वही खाना; वही उिना, वही कपडे िोना, वही बबस्तर लगाना; रोज एक चक्कर
में िारा काम चलता है । थोडे ठदन में वह इि िबिे ऊब जाती है । लेककन करना पडता है ।

और जजि काम िे कोई ऊब गया हो और करना पडे तो उिका बदला वह ककिी न ककिी िे
लेगी। इिसलए सस्रयां हर पुरुष िे हर तरह का बदला ले रही हैं। हर तरह का बदला,पुरुष र्र
आया कक स्री तैयार है टूटने के सलए। इिसलए पुरुष र्र के बाहर—बाहर र्म
ू ते कफरते हैं।
क्लब बनाते हैं। सिनेमा जाते हैं, पच्चीि उपाय िोचते 256

वह अपने को िमझा रहे हैं कक स्री नकघ का द्वार है । िाविान! बचना! स्री की तरफ दे खना
भी मत। यह इन र्बडाये हुए, भागे हुए एस्केप्रपस्ट, पलायनवादी लोगों ने स्री को िमझने,
स्री को आदृत होने, िम्मातनत होने, िाथ खडे होने का मौका नहीं ठदया।

अभी जब मैं बम्बई था कुछ ठदन पहले, एक समर ने आकर मुझे खबर दी कक एक बहुत बडे
िंन्यािी वहां िवचन कर रहे है । आपने उनके िवचन िुने होंगे, नाम तो काही होगा। वह
िवचन कर रहे हैं। भगवान की कथा कर रहे हैं! या कुछ कर रहे हैं, स्री नहीं छू िकती हैं
उन्हें ! एक स्री अजनबी आयी होगी! उिने उनके पैर छू सलए! तो महाराज भारी कष्ट में पड
गये हैं! अपप्रवर हो गये है ! उन्होने िात ठदन का उपवाि ककया है शुद्ि के सलए! जहा दि
पन्िह हजार सस्रयां पहुंचती थीं, वहााँ िात ठदन के उपवाि के कारण एक लाख सस्रयां इक्िी
होने लगीं कक यह आदमी अिली िािु है !
सस्रयां भी यही िोचती है कक जो उनके छूने िे अपप्रवर हो जायेगा, अिली िािु है ! हमने
उनको िमझाया हुआ है । नहीं तो वहां एक स्री भी नहीं जानी थी कफर। क्योंकक स्री के सलए
भारी अपमान की बात है ।

लेककन अपमान का खयाल ही समट गया है । लम्बी गुलामी अपमान के खयाल समटा दे ती है ।
लाख सस्रयां वहां इक्िी हो गयी है ! िारी बम्बई में यही चचाघ है कक यह आदमी है अिली
िाि!ु स्री के छूने िे अपप्रवर हो गया है ! िात ठदन का उपवाि कर रहा है ! उन महाराज को
ककिी को पूछना चाठहए, पैदा ककि िे हुए थे? हड्डी, मांि, मज्जा ककिने बनाया था? वह िब
स्री िे लेकर आ गये हैं। और अब अपप्रवर होते है स्री के छूने िे। हद्द कमजोर िाितु ा है ,
जो स्री के छूने िे अपप्रवर हो जाती है ! लेककन इन्ही िारे लोगों की लम्बी परपरा ने स्री को
दीन—हीन और नीचा बनाया है । और मजा यह है —मजा यह है , कक यह जो दीन—हीनता की
लम्बी परपरा है , इि परं परा को तो जस्रयां ही पूरी तरह बल दे ने में अग्रणी है ! कभी के मंठदर
समट जायें और कभी के धगरजे िमाप्त हो जायें—सस्रयां ही पालन पोषण कर रही है मंठदरो,
धगरजों, िाि,ु िंतो—महं तों का। चार सस्रयां ठदखायी पडेगी एक िािु के पाि, तब कही एक
पुरुष ठदखायी पडेगा। वह पुरुष भी अपनी पत्नी के पीछे बेचारा चला आया हुआ होगा।

तीिरी बात मैं आप िे यह कहना चाहता हू कक जब तक हम स्री—पुरुष के बीच के ये


अपमानजनक फािले, ये अपमानजनक दरू रयां—कक छूने िे कोई अपप्रवर हो जायेगा—नहीं तोड
दे ते हैं, तब तक शायद हम स्री को िमान हक भी नहीं दे िकते।

को—एजुकेशन शुरू हुई है । िैकडों प्रव‍वप्रवद्यालय, महाप्रवद्यालय को—एजुकेशन दे रहे हैं।


लडककयां और लडके िाथ पढ रहे हैं। लेककन बडी अजीब—िी हालत ठदखायी पडती है । लडके
एक तरफ बैिे हुए है ! लडककयां दि
ू री तरफ बैिी हुई हैं! बीच में पसु लि की तरह िोफेिर खडा
हुआ है ! यह कोई मतलब है ? यह ककतना अशोभन है , अनकल्वडघ है । को—एजक ु े शन का अब
एक ही मतलब हो िकता है कक कालेज या प्रव‍वप्रवद्यालय स्री परु
ु ष में कोई फकघ नहीं
करता। को—एजक
ु े शन का एक ही मतलब हो िकता है —कालेज की दृजष्ट में िेक्ि—डडफरें िेि
का कोई िवाल नहीं है ।

आखखरी बात, और अपनी चचाघ मैं पूरी कर दं ग


ू ा। एक बात आखखरी।

और वह यह कक अगर एक बेहतर दतु नया बनानी हो तो स्री पुरुष के िमस्त फािले धगरा
दे ने हैं। सभन्नता बचेगी, लेककन िमान तल पर दोनों को खडा कर दे ना है और ऐिा इंतजाम
करना है कक ‘स्री को स्री होने की कांशिनेि’ और ‘पुरुष को पुरुष होने की कांशिनेि’
चौबीि र्ंटे न र्ेरे रहे । यह पता भी नहीं चलना चाठहए। यह चौबीि र्ंटे ख्याल भी नहीं
होना चाठहए। अभी तो हम इतने लोग यहां बैिे हैं, एक स्री आये तो िारे लोगों को खयाल
हो जाता है कक स्री आ गयी। स्री को भी पूरा खयाल है कक पुरुष यहााँ बैिे हुए है । यह
असशष्टता है , अनकल्वडघनेि है , अिंस्कृतत है , अिभ्यता है । यह बोि नहीं होना चाठहए। ये बोि
धगरने चाठहए। अगर ये धगर िकें तो हम एक अच्छे िमाज का तनमाघण कर िकते हैं। मेरी
बातों को इतने िेम और शांतत िे िुना, उििे बहुत अनुगठृ हत हूं।

और अंत में िबके भीतर बैिे परमात्मा को िणाम करता हूं।

मेरे िणाम स्वीकार करें ।

एम—एस. कालेज बडौदा


16 अगस्त 1969

संभोग से समाधि कीओर –47


Posted on सितम्बर 21, 2013by sw anand prashad

लसद्िन, शास्त्र और िाद से मत्ु क्त—पन्द्रं हिां प्रिचन


मेरे प्रिय आत्मन

अभी-अभी िूरज तनकला। िूरज के दशघन कर रहा था। दे खा आकाश में दो पक्षी उडे जा रहे
हैं। आकाश में न तो कोई रास्ता है , न कोई िीमा है , न कोई दीवाल है , न उडनेवाले पक्षक्षयों के
कोई चरण-धचन्ह बनते हैं। खल
ु े आकाश में जजनकी कोई िीमाएं नहीं, उन पक्षक्षयों को उडता
दे खकर मेरे मन में एक िवाल उिा : क्या आदमी की आत्मा भी इतने ही खल
ु े आकाश में
उडने की गण नहीं करती? क्या आदमी के िाण भी नहीं तडपते हैं िारी िीमाओं के ऊपर उि
जाने के सलये-िारे बंिन तोड दे ने के सलये? िारी दीवालों के पार-वहां, जहां कोई दीवाल नहीं;
वहां, जहां कोई फािले नहीं; वहां, जहां कोई रास्ते नहीं; वहां, जहां कोई चरण-धचन्ह नहीं बनते-
उि खल
ु े आकाश में उि जाने को मनुष्य की आत्मा की भी क्या प्याि नहीं है ?

उि खल
ु े आकाश का नाम है , परमात्मा। लेककन अभी तो पैदा होते ही बंिनों में बंिने लगता
है । चाहे पैदा कोई स्वतंर होता हो, लेककन बहुत कम िौभाग्यशाली लोग हैं, जो स्वतंर जीते
हैं; और बहुत कम िौभाग्यशाली लोग हैं, जो स्वतंर होकर मर पाते हैं। आदमी पैदा तो स्वतंर
होता है , और कफर तनरं तर परतंर होता चला जाता है । ककिी आदमी की आत्मा परतंर न ही
होना चाहती; कफर भी आदमी परतंर होता चला जाता है !
.. तो ऐिा ितीत होता है कक शायद हमने परतंरता की बेडडयों को फूलो िे िजा रखा है ;
शायद हमने परतंरता को स्वतंरता के नाम दे रखे हैं; शायद हमने कारागह
ृ ों को मंठदर िमझ
रखा है । और इिसलये यह िंभव हो िका है कक ित्येक आदमी के िाण स्वतंर होना चाहते
हैं, पर ित्येक आदमी परतंर ही जीता है और परतंर ही मरता है ! बजल्क, ऐिा भी ठदखायी
पडता है कक हम अपनी परतंरता की रक्षा भी करते हैं! अगर परतंरता पर चोट हो, तो हमें
तकलीफ भी होती है , पीडा भी होती है ! अगर कोई परतंरता हमारी तोड दे ना चाहे , तो वह हमें
द‍ु मन भी मालूम होता है !

परतंरता िे आदमी का ऐिा िेम क्या है ?

…… नहीं परतंरता िे ककिी का भी िेम नहीं है । लेककन परतंरता को हमने स्वतंरता के शब्द
और वस्र ओढा रखे हैं। एक आदमी अपने को ठहंद ू कहने में जरा भी ऐिा अनभ
ु व नहीं
करता कक मैं अपनी गल ु ामी की िच
ू ना कर रहा हूं। एक आदमी अपने को मि ु लमान कहने
में जरा भी नहीं िोचता कक मिु लमान होना मनष्ु यता के ऊपर दीवाल बनानी है । एक आदमी
ककिी बात में , ककिी िंिदाय में , ककिी दे श में अपने को बांिकर कभी ऐिा नहीं िोचता कक
मैंने अपना कारागह
ृ अपने हाथों िे बना सलया है । बडी चालाकी, बडा िोखा आदमी अपने को
दे ता रहा है । और िबिे बडा िोखा यह है कक हमने कारागह
ृ ों को िुंदर नाम दे ठदये हैं, हमने
बेडडयों को फूलों िे िजा ठदया है ; और जो हमें बांिे हुए हैं, उन्हें हम मुजक्तदायी िमझ रहे हैं!

यह मैं पहली बात आज आपिे कहना चाहता हूं कक जो लोग भी अपने जीवन में क्रांतत लाना
चाहते हैं, िबिे पहले उन्हें यह िमझ लेना होगा कक बंिा हुआ आदमी कभी भी जीवन की
क्रांतत िे नहीं गुजर िकता। और हम िारे ही लोग बंिे हुए लोग है । यद्यप्रप हमारे हाथों में
जंजीरें नहीं हैं, हमारे पैरों में बेडडयां नहीं हैं; लेककन हमारी आत्माओं पर बहुत जंजीरें हैं, बहुत
बेडडयां हैं। और पैरों में बेडडयां पडी हों, तो ठदखायी भी पड जाती है , पर आत्मा पर जंजीरें पडी
हों, तो ठदखायी भी नहीं पडती। अदृ‍य बंिन इि बरु ी तरह बांि लेते हैं कक उनका पता भी
नहीं चलता। और जीवन हमारा एक कैद बन जाता है । और वे अदृ‍य बंिन हैं-सिद्िांतों के,
शास्रों के और शब्दों के।

एक गांव में एक ठदन िुबह-िुबह बुद्ि का िवेश हुआ। गांव के द्वार पर ही एक व्यजक्त ने
बुद्ि को पूछा, ” आप ई‍वर को मानते हैं? मैं नाजस्तक हूं। मैं ई‍वर को नहीं मानता हूं।
आपकी क्या दृजष्ट है ?’ बुद्ि ने कहा, ‘ई‍वर? ई‍वर है । ई‍वर के अततररक्त और कुछ भी ित्य
नहीं है । ”

बुद्ि गांव के भीतर पहुंचे तो एक दि


ू रे व्यजक्त ने बुद्ि को कहा, ‘‘मैं आजस्तक हूं। मैं ई‍वर
को मानता हूं। क्या आप भी ई‍वर को मानते हैं?” बुद्ि ने कहा, ‘‘ई‍वर? ई‍वर है ही नहीं।
मानने का कोई िवाल ही नहीं उिता। ई‍वर एक अित्य है ! ”
पहले आदमी ने पहला उत्तर िुना था, दि
ू रे आदमी ने दि
ू रा उत्तर िुना। लेककन बुद्ि के िाथ
एक सभक्षु था, आनंद। उिने दोनों उत्तर िुने। वह बहुत है रान हो गया कक िुबह बुद्ि ने कहा
‘ई‍वर है ’ और दोपहर बुद्ि ने कहा, ‘ई‍वर नहीं है ! ‘आनंद बहुत धचंततत हो गया कक बुद्ि का
ियोजन क्या है ? उिने िोचा, िांझ फुरित होगी, रात िब लोग प्रवदा हो जायेंगे, तब पूछ
लेगा। लेककन िांझ तो मुज‍कल और बढ गयी। एक तीिरे आदमी ने आकर कहा, ‘‘मुझे कुछ
भी पता नहीं है कक ई‍वर है या नहीं। मैं आपिे पछ
ू ता हूं आप क्या मानते हैं-ई‍वर है , या
नहीं?” बद्
ु ि उिकी बात िनु कर चपु रह गये और उन्होंने कोई भी उत्तर नहीं ठदया!

रात जब िारे लोग प्रवदा हो गये, तो आनंद बुद्ि को पूछने लगा कक मैं बहुत मुज‍कल में पड
गया हूं। मुझे बहुत झंझट में डाल ठदया है आपने। िुबह कहा, ऐँ ‘ई‍वर है ; दोपहर कहा, नहीं
है ; िांझ चप
ु रह गये। मैं ‘ िमझूं?

बद्
ु ि ने कहा, ‘‘उन तीनों में कोई उत्तर तेरे सलये नहीं ठदया गया था। तन
ू े वे उत्तर सलये क्यों?
जजनके ि‍न थे, उनको वे उत्तर ठदये गये थे। तझ
ु े तो कोई उत्तर ठदया नहीं गया था। ‘

आनंद ने कहा, ‘‘क्या मैं अपने कान बंद रखता। मैंने तीनों बातें िुन ली हैं। यद्यप्रप उत्तर
मुझे नहीं ठदये गये लेककन दे ने वाले तो आप एक हैं और आपने तीन ठदये ।”

बुद्ि ने कहा, ‘तू नहीं िमझा। मैं उन तीनों की मान्यताएं तोड दे ना चाहता था। िुबह जो
आदमी आया था वह नाजस्तक था। जो नाजस्तकता में बंि जाता है , उि आदमी की आत्मा भी
परतंर हो जाती है । मैं चाहता था, वद अपनी जंजीर िे मुक्त हो जाये। उिकी जंजीरें तोड
दे नी थीं। इिसलये उिे मैंने कहा-ई‍वर है । ई‍वर है , मैंने सिफघ इिसलये कहा कक वह जो यह
मानकर बैिा है कक ई‍वर नहीं है -वह अपनी जगह िे ठहल जाये, उिकी जडें उखड जायें,
उिकी मान्यता धगर जाये, वह कफर िे िोचने को मजबूर हो जाये। वह रुक गया है । उिने
िोचा है कक यारा िमाप्त हो गयी है । और जो भी ऐिा िमझ लेता है कक यारा िमाप्त हो
गयी है , वह कारागह
ृ में पहुंच जाता है ।

जीवन है अनंत यारा। वह यारा कभी भी िमाप्त नहीं होती। लेककन ठहंद ू की यारा िमाप्त
हो जाती है , बौद्ि की यारा िमाप्त हो जाती है , जैन की यारा िमाप्त हो जाती है , गांिीवादी
की यारा िमाप्त हो जाती है , माक्िघवादी की यारा िमाप्त हो जाती है ; जजिको भी वाद समल
जाता है ,उिकी यारा िमाप्त हो जाती है । वह िमझने लगता है कक उिने ित्य को पा सलया
है , कक वह ित्य को उपलब्ि हो गया है ; अब आगे खोज की कोई जरूरत नहीं है ।

िभी िंिदायों की, िभी िमों की, िभी पकडवालों की खोज िमाप्त हो जाती है ।
…. बुद्ि ने कहा, मैं उिे अलग कर दे ना चाहता था उिकी जंजीरों िे, ताकक वह कफर िे पूछे,
वह कफर िे खोजे वह आगे बढ जाये।

”.. दोपहर जो आदमी आया था, वह आदमी आजस्तक था। वह यह मानकर बैि गया था कक
ई‍वर है । उिे मुझे कहना पडा कक ई‍वर नहीं है । ई‍वर है ही नहीं। ताकक उिकी जंजीरें भी
ढीली हो जायें, उिके मत भी टूट जायें; क्योंकक ित्य को वे ही लोग उपलब्ि होते हैं, जजनका
कोई भी मत नहीं होता।

” और िांझ जो आदमी आया था, उिका कोई मत नहीं था। उिने कहा, मझ
ु े कुछ भी पता
नहीं कक ई‍वर है या नहीं। इिसलये मैं भी चप
ु रह गया। मैंने उििे कहा कक तू चप
ु रह कर
खोज, मत की तलाश मत कर, सिद्िात की तलाश मत कर। चप
ु हो। इतना चप
ु हो जा कक
िारे मत खो जायें। तो शायद, जो है , उिका तझ
ु े पता चल जाये। ” बद्
ु ि के िाथ आप भी रहे
होते तो मजु ‍कल में पड गये होते। अगर एक उत्तर िन ु ा होता तो शायद बहुत मि
ु ीबत न
होती। लेककन अगर तीनों उत्तर िन ु े होते, तो बहुत मि
ु ीबत हो जाती।

बुद्ि का ियोजन क्या है ?.. बुद्ि चाहते क्या हैं?

.. बुद्ि आपको कोई सिद्िांत नहीं दे ना चाहते हैं; बुद्ि, आपके जो सिद्िात हैं, उनको भी
छीन लेना चाहते हैं। बुद्ि आपके सलये कोई कारागह
ृ नहीं बनाना चाहते; आपका जो बना
कारागह
ृ है , उिको भी धगरा दे ना चाहतें हैं-ताकक वह खल
ु ा आकाश जीवन का, खल
ु ी आंख उिे
दे खने की-उपलब्ि हो जाये।

इििे भी क्या होता है। बुद्ि लाख धचल्लाते रहें कक तोड दो सिद्िांत, लेककन बुद्ि के पीछे
लोग इक्िे हो जाते हैं और उनके सिद्िांत को. पकड लेते हैं।

दतु नया में जजन थोडे-िे लोगों ने मनुष्य को मुक्त करने की चेष्टा की है -मनुष्य अजीब पागल
है -उन्हीं लोगों को उिने अपना बंिन बना सलया है ! चाहे कफर वह बुद्ि हों, चाहे महावीर हों,
चाहे माक्िघ हों और चाहे गांिी हों-कोई भी हो-जो भी मनुष्य को मुक्त करने की चेष्टा करता
है , आदमी अजीब पागल है , वह उिी को अपना बंिन बना लेता है ! उिी को अपनी जंजीर
बना लेता है ! और जजंदा आदमी तो कोसशश ही कर िकता है कक वह ककिी के सलये उिकी
जंजीर न बने, वह मुदाघ आदमी क्या करता है ?

मरे हुए नेता, मरे हुए िंत बहुत खतरनाक सिद्ि होते हैं-अपने कारण नहीं, आदमी की आदत
के कारण। दतु नया के िभी महापुरुष, जो कक मनुष्य को मुक्त कर िकते थे, लेककन नहीं कर
पाये, क्योंकक मनुष्य उनको ही अपने बंिन में रूपांतररत कर लेता है । इिसलये मनुष्य के
इततहाि में एक अजीब र्टना र्टी है कक जो भी िंदेश लेकर आता है मुजक्त का, हम उिको
ही अपना एक नया काराणहृ बना लेते हैं! इि भांतत जजतने भी मुजक्त के िंदेश दतु नया में
आये, उतने ही ढं ग की जंजीरें दतु नया में तनसमघत होती चली गयीं। आज तक यही हुआ है -क्या
आगे भी यही होगा? और आगे भी यही हुआ, तो कफर मनुष्य के सलये कोई भप्रवष्य ठदखायी
नहीं पडता।

लेककन ऐिा मुझे नहीं लगता कक जो आज तक हुआ है , वह आगे भी होना जरूरी है । वह


आगे होना जरूरी नहीं है । यह िंभव हो िकता है कक जो आज तक हुआ है , वह आगे न हो-
और न हो, तो मनुष्यता मुक्त हो िकती है । लेककन मनुष्यता मुक्त हो या न हो, एक-एक
मनुष्य को भी अगर मुक्त होना है तो उिे अपने धचत्त पर, अपने मन पर, अपनी आत्मा पर
पडी हुई िारी जंजीरों को तोड दे ने की ठहम्मत जुटानी पडती है ।

जंजीरें बहुत मिरु हैं, बहुत िंद


ु र हैं, िोने की हैं, इिसलये और भी कठिनाई हो जाती है ।
महापरु
ु षों िे मक्
ु त होना बहुत कठिन मालम ू पडता है , सिद्िांतों िे मक्
ु त होना बहुत कठिन
मालूम पडता है , शास्रों िे मुक्त होना बहुत कठिन मालूम पडता है । और अगर कोई मुक्त
होने के सलये कहे , तो वह आदमी द‍ु मन मालूम पडता है ; क्योंकक हम चीजों को मानकर
तनसशत हो जाते हैं; खोजने की कोई जरूरत नहीं रह जाती। और अगर कोई आदमी कहता है -
मुक्त हो जाओ, तो कफर खोजने की जरूरत शुरू हो जाती है ; कफर मंजजल खो जाती है ; कफर
रास्ता काम में आ जाता है । और रास्ते पर चलने में तकलीफ मालूम पडती है ; मंजजल पर
पहुंचने के बाद कफर कोई यारा नहीं, कोई श्रम नहीं।

मनुष्य ने अपने आलस्य के कारण झूिी मंजजलें तय कर ली हैं। और हम िबने मंजजलें पकड
रखी हैं। पहली बात, पहला िरू जीवन-क्रांतत का मैं आपिे कहना चाहता हूं : और वह यह कक
एक स्वतंर धचत्त चाठहये। एक मक्
ु त धचत्त चाठहये।

एक बंिा हुआ, केप्िूल के भीतर बंद, दीवालों के भीतर बंद, पक्षपातों के भीतर बंद, वाद और
सिद्िांत और शब्दों के भीतर बंद धचत्त कभी भी जीवन में क्रांतत िे नहीं गुजर िकता।

और अभागे हैं वे लोग, जजनका जीवन एक क्रांतत नहीं बन पाता; क्योंकक वे वंधचत ही रह जाते
हैं, उि ित्य को जानने िे कक जीवन में क्या तछपा है ? क्या था राज, क्या था आनंद, क्या था
ित्य, क्या था िंगीत, क्या था िौंदयघ? उि िबिे ही वे वंधचत रह जाते हैं!

.. मैंने िुना है , एक िम्राट ने अपनी िुरक्षा के सलये एक महल बनवाया था। उिने ऐिा
इंतजाम ककया था कक महल के भीतर कोई र्ुि न िके। उिने महल के िारे द्वार-दरवाजे
बंद करवा ठदये थे। सिफघ एक ही दरवाजा महल में रहने ठदया था और दरवाजे पर हजार
नंगी तलवारों का पहरा बैिा ठदया था। एक छोटा छे द भी नहीं था मकान में । महल के िारे
द्वार-दरवाजे बंद करवाकर वह बहुत तनज‍चंत हो गया था। अब ककिी खखडकी िे, द्वार िे,
दरवाजे िे; ककिी डाकू के, ककिी हत्यारे के, ककिी द‍ु मन के आने की कोई िंभावना नहीं रह
गई थी।

पडोि के राजा ने जब यह िब िुना, तो वह उिके महल को दे खने आया पडोि का राजा भी


उि महल को दे खकर बहुत ििन्न हुआ…।

आदमी ऐिा पागल है , कक बंद दरवाजों को दे खकर बहुत ििन्न होता है । क्योंकक बंद दरवाजों
को वह िमझता है िरु क्षा, सिक्योररटी,- िप्रु विा।

….. उि राजा ने भी महल दे खकर कहा, ‘‘हम भी एक ऐिा महल बनायेंगे। यह महल तो
बहुत िुरक्षक्षत है। इि महल में तो तनसशत रहा जा िकता है । ”

जब पडोि का राजा प्रवदा हो रहा था और महल की िशंिा कर रहा था, तब िडक पर बैिा
हुआ एक बढ ू ा सभखारी िशंिा िन ु कर जोर िे हं िने लगा। सभखारी को हं िता दे ख महल के
िम्राट ने पछ
ू ा, ‘तू हं िता क्यों है ‘ कोई भूल तुझे ठदखायी पडती है ?

सभखारी ने कहा, ”एक भूल रह गयी है , महाराज! जब आप यह मकान तैयार करवाते थे, तभी
मुझे लगता था कक एक भूल रह गयी है । ”

िम्राट ने कहा, ”कौन-िी भूल?’ उि सभखारी ने कहा, ”एक दरवाजा आपने रखा है , यही भूल रह
गयी है । यह दरवाजा और बंद कर लें , और भीतर हो जायें, तो कफर आप बबलकुल िुरक्षक्षत हो
जायेंगे। कफर कोई भी ककिी भी हालत में भीतर नहीं पहुंच िकेगा।’

िम्राट ने कहा, ”पागल, कफर तो यह मकान कब्र हो जायेगा। अगर मैं एक दरवाजा और बंद
कर लंू तो मैं मर जाऊंगा भीतर। कफर तो यह महल मेरी मौत हो जायेगा। ”

सभखारी ने कहा, ”इतना आपको िमझ में आता है कक एक दरवाजा और बंद कर लेने िे आप
मर जायेंगे, तो क्या आपको यह िमझ में नहीं आता कक जजि मारा में दरवाजे आपने बंद
ककये है , उिी मारा में आप मर गये हैं? उिी मारा में जीवन िे आपके िंबंि टूट गये हैं। अब
एक दरवाजा बचा है , तो थोडा िा िंबंि बचा है । अब आप थोडे-िे जीप्रवत हैं। इि दरवाजे को
भी बंद कर दें गे, तो बबलकुल मर जायेंगे? अब यह मकान एक कब की तरह है , जजिमें एक
दरवाजा है । यह दरवाजा और बंद हो जाये, तो कब्र पूरी हो जायेगी। और अगर आपके यह
लगता है कक एक दरवाजा बंद करने िे मौत हो जायेगी, तो जो दरवाजे आपने बंद करवा
ठदये है , उन्हें खल
ु वा दें । और अगर मेरी बात िमझें, िब दीवालें धगरवा दें , ताकक खल
ु े िूरज के
नीचे, खल
ु े आकाश के नीचे जीवन का पूरा आनंद उपलब्ि हो िके।’

शरीर के सलये मकान जरूरी हैं, और शरीर के सलये दीवालें भी जरूरी हैं;’ पर आला के सलये न
तो मकान जरूरी है , न दीवालें जरूरी हैं। लेककन जजनके पाि शरीर को तछपाने के सलये मकान
नहीं हैं, उन्होंने भी अपनी आत्मा को तछपाने के सलये दीवालें और मकान बना रखे हैं! जो
खल
ु े आकाश के नीचे िोते हैं, उनकी आत्माएं भी का आकाश में नहीं उडती! जजनके शरीर पर
वस्र नहीं हैं, उन्होंने भी आत्मा को लोहे के वस्र पहना रखे हैं! और कफर आदमी पूछता है ,
हम दख
ु ी क्यों हैं? कफर आदमी पूछता है , हम पीडडत कफर क्यों हैं? कफर आदमी पूछता है ,
आनंद कहां समलेगा?

कभी परतंर धचत्त को आनंद समला है ? कभी परतंरता में कुछ जाना गया है ? परतंर व्यजक्त
कभी भी ककिी भी जस्थतत में ित्य को, िौंदयघ को उपलब्ि हुआ है ….?

मैं एक र्र में मेहमान था। एक बहुत प्यारी धचडडया उि र्र के लोगों ने प्रपंजडे में कैद कर
रखी थी। धचडडया को बाहर का जगत ठदखायी पडता होगा, लेककन प्रपंजडे की दीवालों के भीतर
बंद धचडडया को पता भी नहीं हो िकता कक बाहर एक खल
ु ा आकाश है , और बाहर खल
ु े
आकाश में उडने का भी एक आनंद है । शायद वह धचडडया उडने का खयाल भी भूल गयी
होगी। शायद, पंख ककि सलये हैं, यह भी उिे पता नहीं रहा होगा। और अगर आज उिे प्रपंजडे
के बाहर भी कर ठदया जाये, तो शायद वह बाहर आने िे र्बडायेगी और अपने िुरक्षक्षत
प्रपंजडे में वापि आ जायेगी। शायद, पंख उिे अब तनरथघक लगते होंगे, बोझ लगते होंगे। और
उिे यह भी पता नहीं होगा कक खल
ु े आकाश में िूरज की तरफ बादलों के पार उड जाने का
भी एक आनंद है , एक जीवन है । अब उिे कुछ भी पता नहीं होगा।

उि धचडडया को तो कुछ भी पता नहीं होगा-क्या हमें पता है ? हमने भी अपने चारों और
दीवालें बना रखी हैं। उन दीवालों के पार, बबयांड भी जहां कोई िीमा नहीं है । जहां आगे, और
आगे अनंत प्रवस्तार है । जहां कोई लोक है , िूरज है , जहां बादलों के पार आगे खल
ु ा आकाश
है ।

नहीं, हमें भी उनका कोई पता नहीं है । शायद हमें भी आत्मा एक बोझ मालम
ू पडती है । और
हममें िे बहुत-िे लोग अपनी आत्मा को खो दे ने की हर चेष्टा करते हैं। शराब पीकर आआ
को भुला दे ने की कोसशश करते हैं। िंगीत िुनकर आत्मा को भुला दे ने की कोसशश करते हैं।
ककिी तरह आत्मा भूल जाये, इिकी चेष्टा करते हैं। हमें अपनी आत्मा भी एक बोझ मालूम
पडती है , जैिे प्रपंजडे में बंद एक धचडडया को उिके पंख बोझ मालूम होते हैं। लेककन हमें पता
नहीं है कक एक आकाश है , जहां आत्मा भी एक पंख बन जाती है । और आकाश की एक
उडान है , जजि उडान की उपलजब्ि का नाम है -िभु-परमात्मा।

िमघ मनुष्य को मुक्त करने की कला है ।

अगर िीक िे कहूं तो िमघ मनुष्य के जीवन में क्रांतत लाने की कला है । इिसलये कायर कभी
िासमघक नहीं हो िकते। डरे हुए लोग, भयभीत लोग कभी िासमघक नहीं हो िकते। बजल्क
भयभीत और डरे लोगों ने जो िमघ पैदा ककया है , वह िमघ जरा भी नहीं है । वह िमघ के
बबलकुल उलटी चीज है । वह अिमघ िे भी बदतर है । अिासमघक आदमी भी िाहिी हो िकता
है । और जो आदमी िाहिी है , वह बहुत ठदन तक अिासमघक नहीं रह िकता। अिासमघक
आदमी भी प्रवचारशील होता है । और जो आदमी प्रवचारशील है , वह बहुत ठदन तक अिासमघक
नहीं रह िकता। केशवचंि प्रववाद करने गये थे रामकृष्ण िे। वे रामकृष्ण की बातों का खंडन
करने गये थे, िारे कलकत्ते में खबर फैल गई थी कक चलें , केशवचंि की बातें िन
ु ें , रामकृष्ण तो
गांव के गंवार हैं, क्या उत्तर दे िकेंगे केशवचंि का? केशवचंि तो बडा पंडडत है !

बडी भीड इक्िी हो गयी थी। रामकृष्ण के सशष्य बहुत डरे हुए थे, कक केशव के िामने
रामकृष्ण क्या बात कर िकेंगे! कहीं ऐिा न हो कक फजीहत हो जाये। िब समर तो डरे हुए
थे, लेककन रामकृष्ण बार-बार द्वार पर आकर पूछते थे कक ‘केशव अभी तक आये नहीं’? एक
भक्त ने कहा भी, ‘आप पागल होकर ितीक्षा कर रहे हैं! क्या आपको पता नहीं कक आप
द‍ु मन की ितीक्षा कर रहे हैं? वे आकर आपकी बातों का खंडन करें गे। वे बहुत बडे ताककघक
हैं।’

रामकृष्ण कहने लगे, ‘वही दे खने के सलये मैं आतुर हो रहा हूं; क्योंकक इतना ताककघक आदमी
अिासमघक कैिे रह िकता है , यही मुझे दे खना है । इतना प्रवचारशील आदमी कैिे िमघ के
प्रवरोि में रह िकता है , यही मुझे दे खना है । यह अिंभव है ।

‘केशव आये, और केशव ने प्रववाद शरू


ु ककया। केशव ने िोचा था, रामकृष्ण उत्तर दें गे। लेककन
केशव एक-एक तकघ दे ते थे और रामकृष्ण उि-उि कर उन्हें गले लगा लेते थे; आकाश की
तरफ हाथ जोडकर ककिी को िन्यवाद दे ने लगते थे।

थोडी दे र में केशव बहुत मुज‍कल में पड गये। उनके िाथ आये लोग भी मुज‍कल में पड गये।
आखखर केशव ने पूछा, ‘ आप करते क्या हैं? क्या मेरी बातों का जवाब नहीं दें गे? और हाथ
जोडकर आकाश में िन्यवाद ककिको दे ते हैं?’
रामकृष्ण ने कहा, ‘‘मैंने बहुत चमत्कार दे खे, यह चमत्कार मैंने नहीं दे खा। इतना बुद्धिमान
आदमी, इतना प्रवचारशील आदमी िमघ के प्रवरोि में कैिे रह िकता है ? जरूर इिमें कोई
उिका चमत्कार है । इिसलए मैं आकाश में हाथ उिाकर ‘उिे’ िन्यवाद दे ता हूं। और तुमिे मैं
कहता हूं तुम्हें मैं जवाब नहीं दं ग
ू ा, लेककन जवाब तुम्हें समल जायेंगे; क्योंकक जजिका धचत्त
इतना मुक्त होकर िोचता है , वह ककिी तरह के बंिन में नहीं रह िकता। वह अिमघ के
बंिन में भी नहीं रह िकता। झूिे िमघ के बंिन तम
ु ने तोड डाले हैं, अब जल्दी, अिमघ के
बंिन भी टूट जायेंगे। क्योंकक, प्रववेक अंततुः िारे बंिन तोड दे ता है । और जहां िारे बंिन टूट
जाते हैं, वहां जजिका अनभ
ु व होता है , वही िमघ है , वही परमात्मा है । मैं कोई दलील नहीं दं ग
ू ा।
तम्
ु हारे पाि दलील दे ने वाला बहुत अद्भत
ु मजस्तष्क है । वह खद
ु ही दलील खोज लेगा। ”

केशव िोचते हुए वापि लौटे । और उि रात उन्होंने अपनी डायरी में सलखा, ‘आज मेरा एक
िासमघक आदमी िे समलना हो गया है । और शायद उि आदमी ने मेरा रूपांतरण भी शुरू कर
ठदया है । मैं पहली बार िोचता हुआ लौटा हूं कक उि आदमी ने मुझे कोई उत्तर भी नहीं ठदया
और मुझे प्रवचार में भी डाल ठदया है ! ”

मनुष्य के पाि प्रववेक है , लेककन बंिन में है ! और जजिका प्रववेक बंिन में है , वह ित्य तक
नहीं पहुंच िकता। हमें िोच लेना है -एक-एक व्यजक्त को िोच लेना है कक हमारा प्रववेक
बंिन में तो नहीं है ? अगर मन में कोई भी िम्िदाय है , तो प्रववेक बंिन में है । अगर मन में
कोई भी शास्र है , तो प्रववेक बंिन में है ।

अगर मन में कोई भी महात्मा है , तो प्रववेक बंिन में है । और जब मैं ऐिा कहता हूं तो लोग
िोचते हैं, शायद मैं महात्माओं और महापुरुषों के प्रवरोि में हूं। मैं ककिी के प्रवरोि में क्यों
होने लगा? मैं ककिी के भी प्रवरोि में नहीं हूं। बजल्क िारे महापरु
ु षों का काम ही यही रहा है
कक आप बंि न जायें। िारे महापरु ु षों की आकांक्षा यही रही है कक आप बंि न जायें। और
जजि ठदन आपके बंिन धगर जायेंगे, तो आपको पता चलेगा कक आप भी वही हो जाते हैं, जो
महापरु
ु ष हो जाते हैं।

महापुरुष मुक्त हो जाता है , और हम अजीब पागल लोग हैं, हम उिी मुक्त महापुरुष िे बंि
जाते हैं!

िमस्त वाद बांि लेते हैं। वाद िे छूटे बबना जीवन में क्रांतत नहीं हो िकती। लेककन यह
खयाल भी नहीं आता कक हम बंिे हुए लोग हैं।

अगर मैं अभी कहूं कक ठहंद ू िमघ व्यथघ है , या मैं कहूं कक इस्लाम व्यथघ है , या मैं कहूं कक
गांिीवाद िे छुटकारा जरूरी है , तो आपके मन को चोट लगेगी। और अगर चोट लगे, तो आप
िमझ लेना कक आप बंिे हुए आदमी हैं। चोट ककिको लगती है ? चोट का कारण क्या है ? चोट
कहां लगती है हमारे भीतर……?

चोट वहीं लगती है , जहां हमारे बंिन हैं। जजि धचत्त पर बंिन नहीं है , उिे कोई भी चोट नहीं
लगती।

‘इस्लाम खतरे में है ’ यह िुनकर वे जो इस्लाम के बंिन में बंिे है -खडे हो जायेंगे युद्ि के
सलए, िंर्षघ के सलए! उनके छुरे बाहर तनकल आयेंगे! ‘ठहन्द-ू िमघ खतरे में है ’ -िुनकर, वे जो
ठहंद-ू िमघ के गल
ु ाम हैं, वे खडे हो जायेंगे लडने के सलए! और अगर कोई माक्िघ को कुछ कह
दे तो जो माक्िघ के गल
ु ाम हैं वे खडे हो जाएंगे, और अगर कोई गांिी को कह दे , तो जो
गांिी के गल
ु ाम हैं, वे खडे हो जायेंगे! लेककन वह और यह गल
ु ामी ककिी के िाथ भी हो
िकती है । मेरे िाथ भी हो िकती है …।

अभी मुझे पता चला कक बंबई में ककिी ने अखबार में मेरे िंबंि में कुछ सलखा होगा। तो
ककन्हीं मेरे दो समरों ने उन समर को रास्ते में कहीं पकड सलया और कहा कक अब अगर आगे
कुछ सलखा तो तुम्हारी गदघ न दबा दें गे। मुझे जजि समर ने यह बताया, तो मैंने उन्हें कहा कक
जजन्होंने उनको पकड कर कहा कक गदघ न दबा दें गे-वे मेरे गुलाम हो गये। वे मुझिे बंि गये।

……मैं अपने िे नहीं बांि लेना चाहता हूं ककिी को। मैं चाहता हूं कक ित्येक व्यजक्त ककिी
िे बंिा हुआ न रह जाये। एक ऐिी धचत्त की दशा हमारी हो कक हम ककिी िे बंिे हुए न हों।
उिी हालत में क्रांतत तत्काल होनी शुरू हो जाती है । एक एक्िप्लोजन, एक प्रवस्फोट हो जाता
है । जो आदमी ककिी िे भी बंिा हुआ नहीं है , उिकी आला पहली दफा अपने पंख खोल लेती
है , और खल
ु े आकाश में उडने के सलए तैयार हो जाती है ।

हमारे पैर गडे हैं जमीन में , और इि पर हम पछ


ू ते हैं कक धचत्त दख
ु ी है , अशांत है , परे शान है !
आनंद कैिे समले? परमात्मा कैिे समले? ित्य कैिे समले? मोक्ष कैिे समले? तनवाघण कैिे समले?

कहीं आकाश में नहीं है तनवाघण। कहीं दरू िात आिमानों के पार नहीं है मोक्ष। यहीं है , और
अभी है । और उि आदमी को उपलब्ि हो जाता है , जो कहीं भी बंिा हुआ नहीं है । जजिकी
कोई जक्लंधगंग नहीं है । जजिके हाथ, ककिी दि
ू रे के हाथ को नहीं पक्के हुए है । वह अकेला है ,
और अकेला खडा है । और जजिने इतना िाहि और इतनी ठहम्मत जुटा ली है कक अब वह
ककिी का अनुयायी नहीं है , ककिी के पीछे चलनेवाला नहीं है , ककिी का अनुकरण करनेवाला
नहीं है । अब: वह ककिी का मानसिक गुलाम नहीं है , ककिी का में टल स्लेव नहीं है ।
….. लेककन हम कहें गे कक हम जैन हैं और कभी नहीं िोचें गे कक हम महावीर के मानसिक
गुलाम हो गये! हम कहें गे कक हम कमुतनस्ट हैं और कभी नहीं िोचें गे कक हम माक्िघ और
लेतनन के मानसिक गल
ु ाम हो गये! हम कहें गे कक हम गांिीवादी हैं और कभी नहीं िोचें गे
कक हम गांिी के गुलाम हो गये!

दतु नया में गुलामों की कतारें लगी हैं। गुलासमयों के नाम अलग-अलग हैं, लेककन गुलासमयां
कायम हैं। मैं आपकी गुलामी नहीं बदलना चाहता कक एक आदमी िे आपकी गुलामी छुडाकर
दि
ू रे की गुलामी आपको पकडा दी जाये। उििे कोई- फकघ नहीं पडता। वह वैिे ही है , जैिे
लोग मरर्ट लाश को ले जाते हैं कंिे पर रखकर तो जब एक आदमी का कंिा दख
ु ने लगता
है , तो दि
ू रा आदमी अपने कंिे पर रख लेता है । थोडी दे र में दि
ू रे का कंिा दख
ु ने लगता है ,
तो तीिरा अपने कंिे पर रख लेता है ।

आदमी गल
ु ासमयों के कंिे बदल रहा है । अगर गांिी िे छूटता है तो माक्िघ को पकड लेता है ;
महावीर िे छूटता है तो मह
ु म्मद को पकड लेता है ; एक वाद िे छूटता तो फौरन दि
ू रे वाद
को पकडने का इंतजाम कर लेता है ।

…. लोग मेरे पाि आते हैं। वे कहते हैं कक मैं कहता हूं यह गलत है , वह गलत है । वे पूछते
है , आप हमें यह बताइये कक िही क्या है ? वे अिल में यह पूछना चाहते हैं कक कफर हम
पकडे क्या, वह हमें बताइये। जब तक हमारे पाि पकडने को कुछ न हो, तब तक हम कुछ
छोडेंगे नहीं!

और मैं आपिे कह रहा हूं पकडना गलत है । मैं यह नहीं कह रहा हूं कक आप क्या पकडे, मैं
आपिे कह रहा हूं कक पकडना ही गलत है । जक्लंधगंग एज िच। चाहे वह पकड गांिी िे हो,
या बुद्ि िे हो, या मुझिे हो। इििे कोई फकघ नहीं पडता। पकडने वाले धचत्त का स्वरूप एक
ही है कक पकडने वाला धचत्त खाली नहीं रहना चाहता। वह चाहता है कहीं न कहीं उिकी
मु्िी बंिी रहे । उिे कोई िहारा होना चाठहए। और जब तक कोई आदमी ककिी का िहारा
खोजता है , तब तक उिकी आला के पंख खल
ु ने की जस्थतत में नहीं आते। जब आदमी
बेिहारा हो जाता है , िारे िहारे छोड दे ता है , है ल्पलेि होकर खडा हो जाता है , और जानता है
कक मैं बबलकुल अकेला हूं कहीं ककिी के कोई चरण-धचन्ह नहीं हैं…।

…… कहा हैं महावीर के चरण-धचन्ह, जजन पर आप चल रहे हैं? कहां हैं कृष्ण के चरण-धचन्ह,
जजन पर आप चल रहे हैं? जीवन खल
ु े आकाश की भांतत है , जजि पर ककिी के चरण-धचन्ह
नहीं बनते। ककिको पकडे हैं आप? कहां हैं कृष्ण के हाथ? कहां हैं गांिी के चरण, जजनको आप
पकडे है ?
सिफघ आंख बंद करके िपना दे खू रहे हैं। िपने दे खने िे कोई आदमी मुक्त नहीं होता। न
गांिी के चरण आपके हाथ में हैं, न कृष्ण के, न राम के। ककिी के चरण आपके हाथ में नहीं
है । आप अकेले खडे हैं। आंख बंद करके कल्पना कर रहे हैं कक मैं ककिी को पकडे हुए हूं।
जजतनी दे र तक आप यह कल्पना ककये हुए हैं, उतनी दे र तक आपकी आत्मा के जागरण का
अविर पैदा नहीं होता। और तब तक आपके जीवन में वह क्रांतत नहीं हो िकती, जो आपको
ित्य के तनकट ले आये। न जीवन में वह क्रांतत हो िकती है कक जीवन के िारे पदे खल

जायें; उिका िारा रहस्य खल
ु जाये, उिकी समस्ट्ी खल
ु जाये और आप जीवन को जान िकें,
और दे ख िकें।

बंिा हुआ आदमी आंखों पर च‍मा लगाये हुए जीता है । वह खखडककयों में िे, छे दों में िे
दे खता है दतु नया को। जैिे कोई एक छे द कर ले दीवाल में और उिमें िे दे खे आकाश को, तो
उिे जो भी ठदखायी पडेगा, वह उि छे द की िीमा िे बंिा होगा, वह आकाश नहीं होगा। जजिे
आकाश दे खना है , उिे दीवालों के बाहर आ जाना चाठहये। और कई बार ककतनी छोटी चीजें
बांि लेती हैं, हमें पता भी नहीं चलता!

रवींिनाथ एक रात अपने बजरे में एक छोटी-िी मोमबत्ती जला कर कोई ककताब पढते थे।
आिी रात को जब पढते-पढते वे थक गये, तो मोमबत्ती को फूंक मार कर उन्होंने बुझा ठदया
और ककताब बंद कर दी। उि रात आकाश में पूखणघमा का चांद खखला था। जैिे ही मोमबत्ती
बुझी कक रवींिनाथ है रान हो गये यह दे खकर कक बजरे की रं ि-रं ि िे, तछि-तछि िे, खखडकी
िे, द्वार िे चंिमा के िकाश की ककरणें भीतर आ गई हैं , और चारों ओर अदभुत िकाश फैल
गया है । वे खडे होकर नाचने लगे। उि छोटी-िी मोमबत्ती के कारण उन्हें पता ही नहीं चला
कक बाहर पूखणघमा का चांद खखला है और उिका िकाश भीतर आ रहा है । तब उन्हें खयाल
आया कक छोटी-िी मोमबत्ती का िकाश ककि भांतत चांद के िकाश को रोक िकता है । उि
रात उन्होंने एक गीत सलखा। उि गीत में उन्होंने सलखा कक मैं भी कैिा पागल था : छोटी-
िी मोमबत्ती के मद्धिम, िीमे िकाश में बैिा रहा और बाहर चांद का िकाश बरिता था,
उिका मझ
ु े कुछ पता ही न चला! मैं अपनी मोमबत्ती िे ही बंिा रहा। मोमबत्ती बुझी, तो मुझे
पता चला कक बाहर, द्वार पर आलोक मेरी ितीक्षा कर रहा है ।

जो आदमी भी मत की, सिद्िांत की, शास्र की मोमबप्रत्तयों को जलाये बैिे रहते हैं , वे
परमात्मा के अनंत िकाश िे वंधचत हो जाते हैं। मत बुझ जाये, तो ित्य िवेश कर जाता है ।
और जो आदमी िब पकड छोड दे ता है , उि पर परमात्मा की पकड शुरू हो जाती है । जो
आदमी िब िहारे छोड दे ता है , उिे परमात्मा का िहारा उपलब्ि हो जाता है । बेिहारा हो
जाना परमात्मा का िहारा पा लेने का रास्ता है । िब रास्ते छोड दे ना, उिके रास्ते पर खडे हो
जाने की प्रवधि है । िभी शब्दों, िभी सिद्िांतों िे मुक्त हो जाना, उिकी वनी को िुनने का
अविर तनसमघत करना है ।

मैंने एक छोटी-िी कहानी िुनी है । मैंने िुना है , कृष्ण भोजन करने बैिे हैं और रुक्मखण उन्हें
पंखा झल रही है । अचानक वे थाली छोड्कर उि खडे हुए और द्वार की तरफ भागे। रुक्मखण
ने पूछा ”क्या हुआ है ? कहां भागे जा रहे हैं?” लेककन, शायद उन्हें इतनी जल्दी थी कक वे उत्तर
दे ने को भी नहीं रुके, द्वार तक गये भागते हुए। कफर द्वार पर जाकर रुक गये। थोडी दे र में
लौट आये और भोजन करनें वापि बैि गये। रुक्मखण ने कहा, ‘मुझे बहुत है रानी में डाल
ठदया आपने। एक तो पलल की भांतत उिकर भागे बीच भोजन में और मैंने पूछा तो उत्तर भी
नहीं ठदया। कफर द्वार तक जाकर वापि भी लौट आये! क्या था ियोजन?

कृष्ण ने कहा, ‘बहुत जरूरत आ गयी थी। मेरा एक प्यारा एक राजिानी िे गुजर रहा था।
राजिानी के लोग उिे पत्थर मार रहे थे। उिके माथे िे खन
ू बह रहा था। उिका िारा शरीर
लहू-लह
ु ान हो गया था। उिके कपडे उन्होंने फाड डाले थे। भीड उिे र्ेरकर पत्थरों िे मारे
डाल रही थी और वह खडा हुआ गीत गा रहा था। न वह गासलयों के उत्तर दे रहा था, न वह
पत्थरों के उत्तर दे रहा था। जरूरत पड गयी थी कक मैं जाऊं, क्योंकक वह कुछ भी नहीं कर
रहा था। वह बबलकुल बेिहारा खडा था। मेरी एकदम जरूरत पड गयी।’

रुक्यखण ने पूछा, ”लेककन आप द्वार तक जाकर वापि लौट आये?’

‘कृष्ण ने कहा कक ”जब तक मैं द्वार तक पहुंचा, तब िब गडबड हो गयी। वह आदमी


बेिहारा न रहा। उिने पत्थर अपने हाथ में उिा सलये। अब वह खद
ु ही पत्थर का उत्तर दे
रहा है । अब मेरी कोई जरूरत नहीं है । इिसलये मैं वापि लौट आया हूं। अब उि आदमी ने
खदु ही अपना िहारा खोज सलया है । अब वह बेिहारा नहीं है ।

”यह कहानी िच हो कक झि
ू । इि कहानी के िच और झि
ू होने िे मझ
ु े कोई ियोजन नहीं
है । लेककन एक बात मैं अपने अनभ ु व िे कहता हूं कक जजि ठदन आदमी बेिहारा हो जाता है ,
उिी ठदन परमात्मा के िारे िहारे उिे उपलब्ि हो जाते हैं। लेककन हम इतने कमजोर हैं , हम
इतने डरे हुए लोग हैं कक हम कोई न कोई िहारा पकडे रहते हैं। और जब तक हम िहारा
पकडे रहते हैं, तब तक परमात्मा का िहारा उपलब्ि नहीं हो िकता है ।

स्वतंर हुए बबना ित्य की उपलजब्ि नहीं है । और िारी जंजीरों को तोडे बबना कोई परमात्मा
के द्वार पर अंगीकार नहीं होता है । लेककन हम कहें गे-महापुरुषों को कैिे छोड दें ? गांिी इतने
प्यारे हैं,उनको कैिे छोड दें …..।
‘कौन कहता है , गांिी प्यारे नहीं हैं? कौन कहता है , महावीर प्यारे नहीं हैं? कौन कहता है , कृष्ण
प्यारे नहीं हैं? प्यारे हैं, यही तो मुज‍कल है । इिसलए छोडना मुज‍कल हो जाता है । लेककन
प्यारों को भी छोड दे ना पडता है , तभी वह जो परम प्यारा है , वह उपलब्ि होता है ।

महात्मा, परमात्मा और मनुष्य की आत्मा के बीच में खडे हैं। और ये महात्मा अपनी इच्छा
िे नहीं खडे हूए हैं। हमने जजनको महात्मा िमझ सलया है , उनको खडा कर सलया है , और वे
हमारे सलये दीवाल बन गये हैं। व्यजक्तयों िे मक्
ु त होने की जरूरत है , ताकक वह जो अव्यजक्त
है , वह जो महाव्यजक्त है , उिके और हमारे बीच कोई बािा न रह जाए। शब्दों और सिद्िांतों
िे मुक्त होने की जरूरत है , ताकक ित्य जैिा है , वैिा उिे हम दे ख िकें। अभी हम ित्य को
वैिा ही दे खते हैं, जैिा हम दे खना चाहते हैं, जैिी हमारी इच्छा काम करती है , जैिी हमारी
मान्यता काम करती है , जैिे हमारे च‍मे काम करते हैं। अभी हम जो दे खना चाहते हैं , वही
दे ख लेते तै; जो है वह हमें ठदखायी नहीं पडता और जो है , वही ित्य है ।

कौन दे ख पायेगा उिे, जो है । उिे वही दे ख पाता है , जजिका अपना दे खने का कोई आग्रह
नहीं, कोई मत नहीं, कोई पंथ नहीं। जजिकी आंखों पर कोई च‍मा नहीं। जो िीिा नग्र, शून्य,
तनवघस्र-बबना सिद्िातों के खडा है । उिे वही ठदखायी पडता है , जो है ।

और, वह जो है , मुजक्तदायी है । वह जो है , उिी का नाम जीवन है । वह जो है , उिी का नाम


परमात्मा है ।

यह पहला िूर ध्यान में रखना जरूरी है : अपने को बांिें मत, और जहां-जहां बंिें हों, कृपा
करें , वहां िे छूट जाएं। और यह मत पूछें कक छूटने के सलये क्या करना पडेगा। छूटने के
सलये कुछ भी नहीं करना पडेगा। क्योंकक महापुरुष आपको नहीं बांिे हुए हैं कक आपको कुछ
करना पडे। आप ही उनको पकडे हुए हैं। छोड ठदया और वह गये। और कुछ भी नहीं करना
है । अगर कोई दि
ू रा आपको बांिे हो, तो कुछ करना पडेगा। आप ही अगर पकड हों, तो जान
लेना पयाघप्त है - और छूटना शुरू हो जाता है ।

कोई गांिी गांिी वाठदयों को नहीं बांिे हुए हैं। गांिी तो जजंदगी भर कोसशश करते रहे कक
गांिीवाद जैिी कोई चीज खडी न हो जाये। लेककन गांिी वादी बबना गांिीवाद खडा ककये कैिे
रह िकते हैं! वाद चाठहये, जजििे बना जा िके। अब वे उििे बंि गये हैं। अब उनिे पछ
ू ो,
तो वे कहें गे-कैिे छूटें ? अगर आप पूछते हैं कक कैिे छूटें , तो कफर आप िमझे नहीं। कोई
दि
ू रा आपको बांिे हुए नहीं है ।

कृष्ण ठहंदओ
ु ं को नहीं बांिे हुए हैं-और न मुहम्मद मुिलमानों को- और न महावीर जैनों को।
कोई ककिी को बांिे हुए नहीं है । ये िारे तो ऐिे लोग हैं, जो छुटकारा चाहते हैं कक हर
आदमी छूट जाये। लेककन हम उनकी छायाओं को पकडे हैं और बंिे हैं। हमें कोई बांिे हुए
नहीं है , हम बंिे हुए हैं। और अगर हा। बंिे हुए हैं, तो बात िाफ है : कक हम छूटना चाहें , तो
एक क्षण भी छोडने में नहीं लगता। तो एक क्षण भी गया। की जरूरत नहीं है । आप इि
भवन के भीतर बंिे हुए आये थे। इि भवन के बाहर मुक्त होकर जा िकते है ।

मैं अभी ग्वासलयर में था। एक-डेढ वषघ पहले, ग्वासलयर के एक समर ने मुझे फोन ककया कक
मैं अपनी बूढी मां को भी अपनी िभा में लाना चाहता हूं लेककन मैं डरता हूं। क्योंकक उनकी
उम्र कोई नब्बे वषघ है । चालीि वषों िे वह ठदन-रात माला फेरती रहती हैं। िोती हैं , तो भी
रात उनके हाथ में माला ‘होती है । और आपकी बातें कुछ ऐिी है कक कहीं उनको चोट न
लग जाये। मेरी िमझ में नहीं आता कक इि उम्र में उनको लाना उधचत है या नहीं….?

मैंने उन समर को खबर दी कक आप जरूर ले आयें। क्योंकक इि उम्र में अगर न लाये, तो हो
िकता है , जब दब
ु ारा मैं आऊं तो आपकी मां िे मेरा समलना भी न हो पाये। इिसलये जरूर
ले आयें। आप चाहे आयें या न आयें, मां को जरूर ले आयें…..।

वे मां को लेकर आये। दि


ू रे ठदन मुझे उन्होंने खबर की कक बडी चमत्कार की बात हो गयी।
जब मैं आया, तो आप माला के खखलाफ ही बोलने लगे। तो मुझे लगा कक यह आपको खबर
करना तो िीक नहीं हुआ। मैंने आपिे कहा कक मेरी मां माला फेरती है , तो मुझे लगा कक
आप माला के खखलाफ ही बोलने लगे! तो मझ ु े लगा कक आप मेरी मां को ही ध्यान में
रखकर बोल रहे हैं। उिको नाहक चोट लगेगी, नाहक दख
ु होगा। मैं डरा, पूरे रास्ते गाडी में
मैंने मां िे पूछा भी नहीं कक तेरे मन पर क्या अिर हुआ?

र्र जाकर मैंने पूछा कक कैिा लगा, तो मेरी मां ने कहा, ”कैिा लगा? मैं माला वहीं मीठटंग में
ही छोड आयी। चालीि िाल का मेरा भी अनुभव कहता है कक माला िे मुझे कुछ भी नहीं
समला। लेककन इतनी ठहम्मत नहीं जुटा पा रही थी कक उिे छोड दं ।ू वह बात मुझे खयाल आ
गई, माला तो मुझे पकडे हुए नहीं थी, मैं ही उिे पकडे हुए थी। मैंने उिे छोड ठदया तो वह
छूट गयी! ”

तो आप यह मत पछ ू ना कक कैिे हम छोड दें । कोई आपको पकडे हुए नहीं है , आप ही म्


ु िी
बांिे हुए हैं। छोड दें और वह छूट जाता है । और छूटते ही आप पायेंगे कक धचत्त हल्का हो
गया, तनभाघर हो गया-तैयार हो गया-एक यारा के सलये।

इन चार ठदनों में उि यारा के और िूरों पर हम बात करें गे, लेककन पहला िूर है -नो
जक्लंधगंग, कोई पकड नहीं। िब पकड छोड दे नी है । पकड छोडते ही मन तैयार हो जाता है ।
पकड छोडते ही मन पंख फैला दे ता है । पकड छोडते ही मन ित्य की यारा के सलये आकांक्षा
करने लगता है ।

और जो मत िे बंिे हैं, वे डरते हैं ित्य को जानने िे। मतवादी हमेशा ित्य को जानने िे
डरता है । क्योंकक जरूरी नहीं है कक ित्य उिके मत के पक्ष में हो। ित्य प्रवपरीत भी पड
िकता है । मतवादी अपने मत को नहीं छोडना चाहता, इिसलये ित्य को जानने िे वह वंधचत
रह जाता है ।

मैं तनरं तर कहता हूं दो तरह के लोग हैं दतु नया में । एक वे लोग हैं, जो चाहते हैं, ित्य हमारे
पीछे चले और दि ू रे वे हैं, जो ित्य के पीछे खडे हो जाते हैं। मतवादी ित्य को अपने पीछे
चलाना चाहता है । वह कहता है कक मेरा मत िही है । और ित्यवादी कहता है , मैं ित्य के
पीछे खडा हो जाऊंगा। मेरे मत का कोई मल्
ू य नहीं है । मल्
ू य है ित्य का।

जजिको ित्य के पीछे खडा होना है , उिे मत छोड दे ना पडेगा, क्योंकक ित्य को जानने में मत
बािा दे गा, रोकेगा और अडचन डालेगा।

अगर आप ठहंद ू हैं, तो आप िासमघक नहीं हो िकते हैं। अगर आप ईिाई हैं , तो आप िासमघक
नहीं हो िकते है ।

अगर िासमघक होना है , तो ईिाई, ठहंद ू और मुिलमान होने िे मुजक्त आव‍यक है ।

अगर जीवन के ित्य को जानना है , तो जीवन के िंबंि में जो भी मत पकडा है , उििे मुजक्त
आव‍यक है ।

.. वह बूढी औरत अदभुत थी। छोड गयी माला। माला की कीमत चार आना तो रही ही होगी।
आप जो सिद्िांत पकडे हैं, उिकी कीमत चार आना भी नहीं है । उिको ऐिे ही छोडा जा
िकता है , आंख मंद
ू कर। ‘शो छोड कर आप नक
ु िान में नहीं पड जायेंगे। छोडते ही आप
पायेंगे कक जो छूट गया है , वह ित्य की तरफ जाने में बािा था। और पहली बार आंख
खल
ु ेगी कक मैं जीवन को वैिा दे ख िकंू ,जैिा वह है ।

यह पहला िूर है । इि िंबंि में जो भी ि‍न हों, वह आप सलखकर दे दें गे, तथा अन्य ि‍न
भी सलखकर दे दें गे, ताकक िुबह की चचाघओं में आपके ि‍नों की बात हो िके-और िांझ को
मैं और िूरों की बात करूंगा।
मेरी बातों को इतने िेम और शांतत िे िुना। उिके सलये बहुत अनुगह
ृ ीत हूं और अंत में
िबके भीतर बैिे परमात्मा को िणाम करता हूं।

मेरे िणाम स्वीकार करें ।

‘जीिन क्रांनत के सूत्र’


बडौदा

13 फरिर 1966, प्रात :

संभोग से समाधि की ओर –48


Posted on सितम्बर 21, 2013by sw anand prashad

भीड से, समाज से-दस


ू रों से मत्ु क्त—सोलहिां प्रिचन
मेरे प्रिय आत्मन,

मनुष्य का जीवन जैिा हो िकता है , मनुष्य जीवन में जो पा िकता है । मनुष्य जजिे पाने के
सलये पैदा होता है -वही उििे छूट जाता है । वह उिे नही समल पाता है कभी ककिी एक
मनुष्य के जीवन मे-ककिी कृष्ण, ककिी राम, ककिी बुद्ि, ककिी गांिी के जीवन में िौदयघ के
फूल खखलते है । और ित्य की िुगंि फैलती है । लेककन, शेष िारी मनुष्यता ऐिे ही मुरझा
जाती है और नष्ट हो जाती है ।

कौन-िा दभ
ु ाघग्य है मनुष्य के ऊपर…कौन-िी कठिनाई है ? करोडो बीजों में िे अगर एक बीज
में अंकुर आये और शेष बीज, बीज ही रह कर िड जायें और िमाप्त हो जायें, तो यह कोई
िुखद जस्थतत नहीं हो िकती। और अगर मनुष्य जातत के पूरे इततहाि को उिा कर दे खें, तो
अंगुसलयों पर धगने जा िकें, ऐिे थोडे-िे मनुष्य पैदा होते है , जजनकी कथा इततहाि में शेष है ।
शेष िारी मनुष्यता की कोई कथा इततहाि में शेष नहीं है ! शेष िारे मनुष्य बबना ककिी ित्य
को जाने, बबना ककिी िौदयघ को जाने ही मर जाते हैं! क्या ऐिे जीवन को हम जीवन कहें ?
एक फकीर का मुझे स्मरण आता है । कभी वह िम्राट था, लेककन कफर वह फकीर हो गया
था। वह पैदा तो िम्राट हुआ था, और जजि राजिानी में वह पैदा हुआ था, उिी राजिानी के
बहार एक झोपडे में रहने लगा था। लेककन उिके झोपडे पर अक्िर उपिव होते रहते थे। जो
भी उिके झोपडे पर आता, उिी िे उिका झगडा हो जाता।
रास्ते पर था उिका झोपडा और गांव िे कोई चार मील बाहर था-चौराहे पर था। आने-जाने
वाले राहगीर उि िे बस्ती का रास्ता पूछते, तो वह कहता, ‘बस्ती ही जाना चाहते हो, तो बायी
तरफ भूलकर भी मत जाना, दायीं तरफ के रास्ते िे जाना, तो बस्ती पहुच जाओगे।’

राहगीर उिकी बात मानकर दायीं तरफ के रास्ते िे जाते, और दो-चार मील चलकर मरर्ट
पर पहुंच जाते-वहां, जहां बस्ती नही, सिफघ कब्रें थीं। राहगीर क्रोि में वापि लौटते और आकर
फकीर िे झगडा करते कक तुम पागल तो नहीं हो? हमने पूछा था बस्ती का रास्ता, और तुमने
हमें मरर्ट में भेज ठदया?

तो वह फकीर हं िने लगता और कहता तम्


ु हें मेरी पररभाषा मालम
ू नहीं है । मैं तो मरर्ट को
बस्ती ही कहता हूं। क्योंकक जजिे तम
ु िे बस्ती कहते हो, उिमें तो कोई भी ज्यादा ठदन
बिता नही। कोई आज उजड जाता है और कोई कल। वहां तो मौत रोज आती है और ककिी
न ककिी को उिा ले जाती है । वह, जजिे तम
ु बस्ती कहते हो, वह तो मरर्ट है । वहां तो मत्ृ यु
की ितीक्षा करनेवाले लोग बिते हैं। वे ितीक्षा करते रहते है मत्ृ यु की। मैं तो उिी को बस्ती
कहता हूं जजिे तुम मरर्ट कहते हो क्योंकक वहां जो एक बार बि गया, वह बि गया,कफर
उिकी मौत नहीं होती। बस्ती मैं उिे कहता हूं जहां बि गये लोग कफर उजडते नहीं, वहां िे
हटते नहीं।

लगता है पागल रहा होगा वह फकीर। लेककन क्या दतु नया के िारे िमझदार लोग पागल रहे
हैं? दतु नया के िारे ही िमझदार लोग एक ही बात कहते रहे है कक जजिे हम जीवन िमझते
है , वह जीवन नहीं है । और चकूं क हम गलत जीवन को जीवन िमझ लेते है , इिसलये जजिे
हम मत्ृ यु िमझते है , वह भी मत्ृ यु नहीं है । हमारा िब कुछ ही उलटा है । हमारा िब कुछ ही
अंजान िे भरा हुआ और अंिकार िे पण
ू घ है । कफर जीवन क्या है ? और उि जीवन को जानने
और िमझने का द्वार और मागघ क्या है ?

बुद्ि के िंर् में एक बूढा सभक्षु रहता था। बुद्ि ने एक ठदन उि बूढे सभक्षु को पूछा कक
‘समर तेरी उम्र क्या है ? उि सभक्षु ने कहा, ‘आप भली-भांतत जानते है , कफर भी पूछते हैं? मेरी
उम्र पााँच वषघ है ?

‘बद्
ु ि बहुत है रान हुए और कहने लगे,’कैिी मजाक कुरते हो?…सिफघ पांच वषघ! पचहत्तर वषघ िे
कम तो तुम्हारी उम्र क्या होगी, पांच वषघ कैिे कहते हो?’

बूढे सभक्षु ने कहा, हां, ित्तर वषघ भी जजया हूं लेककन उन्हे जीने के वषघ नहीं कह िकता। उिे
जीवन कैिे कहूं! प्रपछले पांच वषों िे ही जीवन को जाना है , इिसलये पांच ही वषघ की उम्र
धगनता हूं। वे ित्तर वषघ तो बीत गये-नींद में , बेहोशी में , मूछाघ में । उनकी धगनती कैिे करूं?
नहीं जानता था जीवन को, तो कफर उनकी भी धगनती कर लेता था। अब, जब िे जीवन को
जाना है , तब िे उनकी धगनती करनी बहुत मुज‍कल हो गयी है ।’

यही मैं आप िे भी कहना चाहता हूं कक जजिे हम अब तक जीवन जानते रहे है , वह जीवन
नहीं है -वह एक तनिा, एक मूछाघ है ; एक दुःु ख की लबी कथा है ; एक अथघ हीन खाली पन, एक
मीतनंगलेि एंपठटनेि है । जहां कुछ भी नहीं है हमारे हाथों में । जहां न हमने कुछ जाना है
और न कुछ जजया है । कफर वह जीवन कहा है , जजि की हम बात करें । जीवन के उिी
एकिूर पर िुबह मैंने बात की है , दि
ू रे िूर पर अभी बात करें गे।

दि
ू रे िर
ू को िमझने के सलये एक बात िमझ लेनी जरूरी है कक मनष्ु य का जीवन भीतर िे
बाहर की तरफ आता है -बाहर िे भीतर की तरफ नहीं। एक बीज में जब अंकुर आता है , तो
वह भीतर िे आता है । अंकुर बडा होता है तो उिमें पत्ते और फूल लगते हैं, फल लगते हैं।
उि छोटे िे बीज िे एक बडा वक्ष
ृ तनकलता है , जजिके नीचे हजारों लोग प्रवश्राम करते हैं।
एक छोटे िे बीज में इतना बडा वक्ष
ृ तछपा होता है । लेककन, वह न वक्ष
ृ बाहर िे नहीं आता
है -यह अंिा भी कह िकता है । यह वक्ष
ृ भीतर िे आता है , उि छोटे -िे बीज िे आता है ।

जीवन भी छोटे िे बीज िे ही भीतर िे बाहर की तरफ फैलता है । और हम िारे लोग जीवन
को खोजते हैं बाहर! जीवन आता है भीतर िे-फैलता है बाहर की तरफ। बाहर जीवन का
प्रवस्तार है , जीवन का केंि नहीं। जीवन की मूल ऊजाघ, जीवन का मूल स्रोत भीतर है और
जीवन की शाखाएं बाहर हैं। और हम िब जीवन ‘ और खोजते हैं बाहर, इिसलये जीवन िे
वंधचत रह जाते हैं, जीवन को नहीं जान पाते हैं! पत्तों को जान लेते है , पर।। को पहचान लेते
हैं, लेककन पत्ते?., पत्ते जडें नहीं हैं।

माओत्िे-तुंग ने अपने बचपन की एक छोटी िी र्टना सलखी है । सलखा है कक मेरी मां का


एक बगीचा था। उि बगीचे में ऐिे िुंदर फूल खखलते थे कक दरू -दरू िे लोग उन्हें दे खने आते
थे। एक बार मेरी बूढी बबमार पड गयी। वह बहुत धचंततत थी-अपनी बीमारी के सलये नहीं,
बगीचे में खखले फूलों के सलये-कक बगीचे में खखले फूल कुम्हला न जाएं। वह इतनी बीमार थी
कक बबस्तर िे बाहर नहीं तनकल िकती थी।

मैंने मां िे कहा, तम


ु र्बडाओ मत, मैं कफक्र कर लंग
ू ा फूलों की। और मैंने पंिह ठदन तक
फूलों की बहुत कफ्रक की। एक-एक पत्ते की िल
ू झाडी, एक-एक पत्ते को पोंछा और िाफ
ककया। एक–एक पत्ते को िंभाला, एक-एक फूल की कफक्र की, लेककन न मालम ू क्यों फूल
मुरझाते गये, पत्ते िूखते गये और िारा बगीचा िूखता गया!
पंिह ठदन बाद बूढी मां बाहर आयी और बाहर आकर उिने दे खा कक उिकी िारी बधगया
उजड गयी है । बेहोश होकर धगर पडे हैं, फूल कुम्हला गये हैं, कसलयां-कसलयां ही रह गयी हैं,
फूल नहीं बनी हैं।

मां पूछने लगी, ”तू क्या करता था पंिह ठदन तक? िुबह िे रात तक िोता भी नहीं था! यह
क्या हुआ?’

मेरी आंखों में आंिू आ गये। मैंने कहा, ”मैंने बहुत कफक्र की। मैंने एक-एक पत्ते की िल

झाडी। मैंने एक-एक फूल पर पानी तछडका। मैंने एक-एक पौिे को गले लगाकर िेम ककया,
लेककन न-मालम
ू कैिे पागल पौिे हैं, िब कुम्हला गये हैं, िब िख
ू गये हैं।

यूं तो मां की आंखों में बधगया को दे खकर आंिू थे, लेककन मेरी हालत दे खकर वह हं िने लगी
और उिने कहा, ”पागल, फूलों के िाण फूलों में नहीं होते, उनकी जडों में होते हैं, जो ठदखाई
नहीं पडती हैं और जमींन के नीचे होती हैं। पानी फूलों को नहीं दे ना पडता है , जडों को दे ना
पडता है । कफक्र पत्तों की नहीं करनी पडती,? जडो की करनी पडती है । पत्तों की लाख कफक्र करें
तो भी जडे कुम्हला जायेंगी और पत्ते भी िूख जायेंगे। और जडों की थोडी िी कफक्र करें और
पत्तों की, फूलों की कोई भी कफक्र न करें , तो भी पत्ते फलते रहें गे, फूल खखलते रहें गे। िुगंि
उडती रहे गी।

मैंने पूछा, ”लेककन जड कहां है ? वह तो ठदखायी नहीं पडती है !’

…… हम िब भी यही पछ
ू ते हैं-जीवन कहां है ? वह तो ठदखायी नहीं पडता है । वह बाहर नहीं
तछपा है , वह अपने ही भीतर है -अपनी ही जडों में । बाहर जहां ठदखाई पडता है िब कुछ, वहां
पत्ते हैं, शाखाएं हे । भीतर जहां ठदखाई नहीं पडता, जहां र्ोर अंिकार है , वहां जडें हैं।

दि
ू रा िूर िमझ लेना जरूरी है और वह यह कक जीवन बाहर नहीं, भीतर है । प्रवस्तार बाहर
है , िाण भीतर हैं। फूल बाहर खखलते हैं, जडें भीतर हैं। और जडों के िंबंि में हम िब भूल
गये हैं। माओ पर हम हं िेंगे कक नादान था वह लडका बहुत, लेककन हम अपने पर नहीं हं िते
हैं कक हम जीवन के बगीचे में उतने ही नादान हैं।

… और, अगर आदमी के चेहरे िे मस्


ु कुराहट चली गयी है -और आदमी की आंखों िे शांतत खो
गई है … और आदमी के हृदय में फूल नहीं लगते हैं… और आदमी की जजंदगी में िंगीत नहीं
बजता है … और आदमी की जजंदगी एक बे-रौनक उदािी हो गयी है , तो कफर हम पूछते हैं कक
ककतना तो हम िम्हालते हैं, ककतने अच्छे मकान बनाते हैं, ककतने अच्छे रास्ते बनाते हैं,
ककतने अच्छे कपडे तनसमघत करते हैं, ककतनी अच्छी सशक्षा दे ते हैं-िब तो हम करते हैं, लेककन
आदमी कफर भी कुम्हलाता क्यों चला जाता है ? यह हम वही पूछते हैं, जो उि लडके ने पूछा
था कक मैंने एक-एक पत्ते को िम्हाला, लेककन फूल?.. फूल क्यों कुम्हला गये? पौिे क्यों
कुम्हला गये?

आदमी कुम्हला गया है , क्योंकक वह बाहर िम्हालता रहा है । और ध्यान रहे कक जजिको हम
भौततकवादी कहते हैं, वे ही केवल बाहर नहीं दे खते-जजनको हम अध्यात्मवादी कहते हैं, दभ
ु ाघग्य
है कक वे भी बाहर ही दे खते हैं और बाहर ही िम्हालते हैं! भौततकवादी तो बाहर िम्हालेगा,
क्योंकक भौततकवादी मानता है कक ” भीतर-जैिी’‘ कोई चीज ही नहीं है । भीतर है ही नहीं।
भौततकवादी कहता है , ”भीतर” कोरा शब्द है । भीतर कुछ भी नहीं है ।

हालांकक यह बडी अजीब बात मालम


ू पडती है , क्योंकक जजिका भी बाहर होता है , उिका भीतर
अतनवायघ रूप िे होता है । यह अिंभव है कक बाहर ही बाहर हो और भीतर न हो। अगर
भीतर न हो, तो बाहर नहीं हो िकता। अगर एक मकान की बाहर की दीवाल है , तो उिका
भीतर भी होगा। अगर एक पत्थर की बाहर की रूप-रे खा है , तो भीतर भी कुछ होगा। बाहर
की जो रूप-रे खा है , वह भीतर को ही र्ेरने वाली रूप-रे खा होती है । बाहर का अथघ है , भीतर को
र्ेरने वाला। और अगर भीतर न हो तो बाहर कुछ भी नहीं हो िकता।

लेककन भौततकवादी कहता है कक भीतर कुछ भी नहीं, इिसलये भौततकवादी को तो क्षमा भी


ककया जा िकता है । लेककन अध्यात्मवादी भी िारी चेष्टा बाहर की करता है , वह भी कहता है
कक ब्रह्मचयघ िािो, वह भी कहता है , अठहंिा िािो; वह भी कहता है , ित्य िािो; वह भी गुणों
को िािने की कोसशश करता है ! अठहंिा, ब्रह्मचयघ, िेम, करुणा, दया-यें िब फूल हैं, जड इनमें
िे कोई भी नहीं है ।

जड िमझ में आ जाये, तो अठहंिा अपने-आप पैदा हो जाती है । और अगर जड िमझ में न
आये, तो अठहंिा को हम जजंदगी भर िम्हाले, कफर भी अठहंिा पैदा नहीं होती। बजल्क, अठहंिा
के पीछे तनरं तर ठहंिा खडी रहती है । और वे ठहंिक बेहतर हैं , जो बाहर भी ठहंिक है ; लेककन
वे अठहंिक बहुत खतरनाक हैं, जो बाहर तो अठहंिक, लेककन भीतर ठहंिक हैं।

जजन मल्ु कों ने अध्यात्म की बहुत बात की है , उन्होंने बाहर िे एक थोथा अध्यात्म पैदा कर
सलया है । वैिा जो थोथा अध्यात्म है , वह बाहर के गण ु ों पर जोर दे ता है , अंति पर नहीं। वह
कहता है -िेक्ि छोडो, ब्रह्मचयघ िािो! वह कहता है -झूि को छोडो, ित्य को िािो! वह कहता
है -कांटे हटा लो और फूल पैदा करो! लेककन इिकी बबलकुल कफक्र नहीं करता है कक फूल जो
जडों िे पैदा होते हैं, वे जडें कहां हैं। और अगर जडें न िम्हाली जायें, तो फूल पैदा होनेवाले
नहीं हैं। हां, कोई चाहे तो बाजार िे कागज के फूल लाकर ऊपर धचपका ले िकता है ।
और दतु नया में अध्यात्म के नाम िे कागज के फूल धचपकाए हुए लोगों की भीड खडी हो
गयी है । और ऐिे लोगों के कारण ही भौततकवाद को दतु नया में नहीं हराया जा पा रहा है ;
क्योंकक भौततकवाद कहता है , यही है तुम्हारा अध्यात्म? ये कागज के फूल? और इन कागज के
फूलों को दे खकर भौततकवादी को लगता है कक नहीं है कुछ भीतर, िब ऊपर की बातें हैं।

अध्यात्म के नाम िे बाहर का आरोपण चल रहा है । कजल्टवेशन और इंपोजीशन चल रहा है ।


आदमी, भीतर जो िोया हुआ है , उिे जगाने की धचंता में नहीं है , बाहर िे अच्छे वस्र पहन
लेने की धचंता में है ! इििे एक अदभुत िोखा पैदा हो गया है । दतु नया में या तो भौततकवादी
हैं और या कफर झूिे अध्यात्मवादी हैं। दतु नया में कमा आदमी खोजना मुज‍कल होता चला
गया है । हां, कभी कोई एकाि िच्चा आदमी पैदा होता है , लेककन उि आदमी को भी हम नहीं
िमझ पाते हैं, क्योंकक उिको भी हम बाहर िे दे खते हैं कक वह क्या करता है , कैिे चलता,,
का पहनता है , क्या खाता है ? और इिी आिार पर हम तनणघय लेते हैं कक वह भीतर िे क्या
होगा!

नहीं, फूल के आिार पर जडों का पता नहीं चलता है । फूल के रं ग दे ख कर जडो का कुछ
पता नहीं चलता है ; पत्तों िे जडों का कुछ भी पता नहीं चलता है । जडें कुछ बात ही और है ।
वह आयाम ही दि
ू रा है ; वह डायमेन्शन ही दि
ू रा है । लेककन िब बाहर िे िम्हालने की, वस्रों
को िम्हालने की लंबी कथा चल रही है । और हमने एक झूिा आदमी पैदा कर सलया है । इि
झूिे आदमी का कोई भी जीवन नहीं होता, इिसलये इि झूिे-आदमी को हम थोडा िमझ लें ;
क्योंकक यह झूिा आदमी कोई और नहीं है , हम िभी झूिे आदमी हैं।

मैंने िुना है , एक ककिान ने एक खेत में एक झूिा आदमी बनाकर खडा कर ठदया था।
ककिान खेतों में झि
ू ा आदमी बनाकर खडा कर दे ते हैं। कुरता पहना दे ते हैं, हं डडया लटका दे ते
हैं, मंह
ु बना दे ते हैं। जंगली जानवर उि झि
ू े आदमी को दे खकर डर जाते हैं, भाग जाते हैं।
पक्षी-पक्षी खेत में आने िे डरते हैं।

एक दाशघतनक उि झूिे आदमी के पाि िे तनकलता था। तो उि दाशघतनक ने उि झूिे


आदमी को पूछा कक दोस्त! िदा यही खडे रहते हो? िप
ू आती है , वषाघ आती है , िठदघ यां आती
हैं रात आती है , अंिेरा हो जाता है -तुम यही खडे रह जाते हो? ऊबते नहीं, र्बराते नहीं, परे शान
नहीं होते?

वह झूिा आदमी दाशघतनक की बातें िुनकर बहुत हं िने लगा। उिने कहा, परे शान! परे शान मैं
कभी नहीं होता, दि
ू रों को डराने में इतना मजा आता है कक वषाघ भी गुजार दे ता हूं िप
ू गुजार
दे ता हूं। रातें भी गुजार दे ता हूं। दि
ू रों को डराने में बहुत मजा आता है ; दि ू रों को िभाप्रवत
दे खकर, भयभीत दे खकर बहुत मजा आता है । ‘दि ू रों की आंखों में िच्चा ठदखायी पडता हूं, -
बि बात खत्म हो जाती है । पक्षी डरते हैं कक मैं िच्चा आदमी हूं। जंगली जानवर भय खाते
हैं कक मैं िच्चा आदमी हूं। उनकी आंखों में दे खकर कक मैं िच्चा हूं बहुत आनंद आता है !

उि झूिे आदमी की बातें िुनकर दाशघतनक ने कहा, ”बडे आश्रयघ की बात है । तुम जैिा कहते
हो, वैिी हालत मेरी भी है। मैं भी दि
ू रों की आंखों में दे खता हूं कक मैं क्या हूं और उिी िे
आनंद लेता चला जाता हूं!

तो वह झूिा आदमी हं िने लगा और उिने कहा, ”तब कफर मैं िमझ गया कक तुम भी एक
झि
ू े आदमी हो। झि
ू े आदमी की एक पहचान है : वह हमेशा दि
ू रों की आंखों में दे खता है
कक कैिा ठदखायी पडता है । इििे मतलब नहीं कक वह क्या है । उिकी िारी धचंता, उिकी
िारी चेष्टा यही होती है कक वह दि
ू री को कैिा ठदखायी पडता है ; वे जो चारों तरफ दे खने
वाले लोग हैं, वे उिके बारे में क्या कह रहे हैं।

यह जो बाहर का थोथा अध्यात्म है , यह लोगों की धचंता िे पैदा हुआ है । लोग क्या कहते हैं।
और जो आदमी यह िोचता है कक लने क्या कहते है , वह आदमी कभी भी जीवन के अनुभव
को उपलब्ि नहीं हो िकता है । जो आदमी यह कफक्र करता है कक भीड क्या कहती है , और
जो भीड के ठहिाब िे अपने व्यजक्तत्व को तनसमघत करता है , वह आदमी भीतर जो िोये हुए
िाण हैं, उिको कभी नहीं जगा पायेगा। वह बाहर िे ही वस्र ओढ लेगा। वह लोगों की आंखों
में भला ठदखायी पडने लगेगा और बात िमाप्त हो जायेगी।

हम वैिे ठदखायी पड रहे हैं, जैिे हम नहीं हैं!

हम वैिे ठदखायी पड रहे हैं, जैिे हम कभी भी नहीं थे।

हम वैिे ठदखायी पड रहे हैं, जैिा ठदखायी पडना िुखद मालूम पडता है ! लेककन वैिे हम नहीं
है ।

मैंने िन
ु ा है , लंदन के एक फोटोग्राफर ने अपनी दक
ु ान के िामने एक बडी तख्ती लगा रखी
थी। और उि तख्ती पर सलख रखा था कक तीन तरह के फोटो यहां उतारे जाते हैं। पहले
तरह के फोटो का दाम सिफघ पांच रुपया है । और वह फोटो ऐिा होगा, जैिे आप हैं। दि
ू री
तरह के फोटो का दाम दि रुपया है । और वह ऐिा होगा, जैिे आप ठदखायी पडते हैं। तीिरी
तरह के फोटो का दाम पंिह रुपया है । और वह ऐिा होगा, जैिे आप ठदखायी पडना चाहते हैं।

‘गांव का एक आदमी आया था फोटो तनकलवाने, तो वह बडी मुज‍कल में पड गया। वह पूछने
लगा, तीन-तीन तरह के फोटो एक आदमी के कैिे हो िकते हैं! फोटो तो एक ही तरह का
होता है । एक ही आदमी के तीन तरह के फोटो कैिे हो िकते हैं ? और वह ग्रामीण पूछने
लगा कक जब पांच रुपये में फोटो उतर िकता है , तो पंिह रुपये में कौन उतरवाता होगा।

फोटोग्राफर बोला, ‘नािमझ, नादान, तू पहला आदमी आया है , जो पहली तरह का फोटो
उतरवाने का प्रवचार कर रहा है । अब तक पहली तरह का फोटो उतरवानेवाला कोई आदमी
नहीं आया। जजिके पाि पैिे की कमी होती है , तो वह दि
ू री तरह का फोटो उतरवाता है ।
नहीं तो तीिरी तरह के ही लोग फोटो उतरवाते हैं। पहली तरह का तो कोई उतरवाता ही
नहीं। कोई आदमी नहीं चाहता कक वह वैिा ठदखायी पडे, जैिा कक वह है -दि
ू रों को भी वैिा
ठदखायी न पडे, और खद
ु को भी वैिा ठदखायी न पडे, जैिा कक वह है ।

तो कफर भीतर की यारा नहीं हो िकती है । क्योंकक भीतर तो ित्य की िीठढयों पर चढकर ही
यारा शरू
ु होती है , अित्य की िीठढयों पर चढकर नहीं। और ध्यान रहे , अगर बाहर की यारा
करनी हो, तो अित्य की िीठढयों के बबना बाहर कोई यारा नहीं हो िकती। अगर ठदल्ली
पहुंचना हो तो अित्य की िीठढयों पर चढे बबना कोई यारा नहीं हो िकती है । और भीतर
जाना हो, तो ित्य की िीठढयों पर चढे बबना कोई यारा नहीं हो िकती है । अगर बहुत िन
के अंबार लगाने हों, तो अित्य की यारा के सिवाय कोई यारा नहीं है । अगर बहुत यश पाना
हो, िततष्िा पानी हो, समरता पानी हो, तो अित्य के सिवाय कोई रास्ता नहीं है ।

बाहर की िारी यारा की िीठढयां अित्य की ईंटों िे तनसमघत है । और भीतर की यारा ित्य की
िीठढयां चढकर करनी पडती है ।

और इि बात को जानना बहुत कठिन पडता है कक ‘मैं िच में क्या हूं?’ हम िदा उिे दबाते
हैं, जो हम नहीं हैं! हम शरीर को तो बहुत दे खते हैं आइने को िामने रखकर, लेककन वह जो
भीतर है , उिके िामने कभी आइना नहीं रखते। और अगर कोई आइना िामने ले आये, तो
हम बहुत नाराज हो जाते हैं। ककिी के आइना ठदखाने पर हम आइना भी तोड दे ते हैं और
उि आदमी का सिर भी तोड दे ते हैं।

कोई आदमी भीतर के आदमी को दे खने के सलये तैयार नहीं है । इिसलये दतु नया में जजन
लोगों ने भी हमारे , भीतर के अिली आदमी को ठदखाने की कोसशश की है , उनके िाथ हमने
वह व्यवहार ककया है , जो हम द‍ु मन के िाथ करते हैं। जीिि को हम िल
ू ी पर लटका दे ते
हैं, िुकरात को हम जहर प्रपला दे ते हैं। जो भी हमारी अिसलयत को ठदखाने की कोसशश
करता है , उििे हम बहुत नाराज हो जाते हैं; क्योंकक वह हमारी नग्रता को उर्ाडकर हमारे
िामने रख दे ता है । और हम-हम िीरे - िीरे भूल ही गये हैं कक वस्रों के भीतर हम नग्न ही
है ! हम िीरे - िीरे िमझने लगे हैं कक हम वस्र ही हैं। भीतर एक नंगा आदमी भी है , उिे हम
िीरे - िीरे भूल गय हैं-बबलकुल भूल गये हैं! उिकी हमें कोई याद नहीं है , और वही हमारी
अिसलयत है । उि अिसलयत ‘। ‘ पैर रखे बबना- और जो भी गहरी अिसलयतें हैं भीतर, उन
तक पहुंचा नहीं जा िकता है ।

इिसलये दि
ू रा िूर है . ‘मैं जैिा हूं उिका िाक्षात्कार।

लेककन वह हम नहीं करते हैं! हम तो दबा-दबाकर अपनी एक झूिी तिवीर, एक फाल्ि इमेज
खडी करने की कोसशश करते हैं!

भीतर ठहंिा भरी है और आदमी पानी छानकर प्रपयेगा- और कहे गा कक मैं अठहंिक हूं! भीतर
ठहंिा की आग जल रही है , भीतर िारी दतु नया को समटा दे ने का पागलपन है , भीतर प्रवध्वंि
है , भीतर वायलेंि है और एक आदमी रात खाना नहीं खायेगा- और िोचेगा कक मैं अठहंिक
हूं!

हम िस्ती तरकीब में पहुंच गये हैं कुछ हो जाने की। इतना िस्ता मामला नहीं है । आप क्या
खाते हैं, क्या पाते हैं-इििे आप अठहंिक नहीं होते। हां, आप अठहंिक हो जायेंगे तो आपका
खाना-पीना जरूर बदल जायेगा। लेककन खाना-पीना बदल लेने िे आप अठहंिक नहीं हो जाते।
यह बात जरूर िच है कक आपके भीतर िेम आयेगा, तो आपका बाहर का व्यजक्तत्व बदल
जायेगा। लेककन बाहर का व्यजक्तत्व बदल लेने िे भीतर िे िेम नहीं आता है ।

उलटा िच नहीं है । अगर िेम आ जाये, तो मैं ककिी को गले िे लगा िकता हूं; लेककन गले
िे लगा लेने पर यह मत िोचना कक िेम आ जायेगा। वैिे गले लगा लेने िे कवायद तो हो
जाती हैं-िेम-वेम नहीं उगता, लेककन लोग िोचते हैं, गले लगाने िे िेम आ जाता है ! तो गले
लगाने की तरकीब िीख लो, बात खत्म हो जाती है । तो एक आदमी गले िे लगाने की
तरकीब िीख लेता है और िोचता है कक िेम आ गया।

गले लगाने िे िेम के आने का क्या िंबंि हो िकता है …. कोई भी िंबंि नहीं हो िकता।

श्रद्िा भीतर हो, आदर भीतर हो, तो आदमी झक


ु जाता है , लेककन झक
ु ने िे श्रद्िा का जन्म
नहीं हो जाता – कक आप झक
ु गये तो श्रद्िा आ गयी। आपका शरीर तो झक
ु जायेगा, पर
आप पीछे अकडे हुए खडे रहें गे। दे ख लेना खयाल िे-जब मंठदर में मूततघ के िामने झक ु ें -तब
दे ख लेना कक आप पीछे खडे हैं और सिफघ शरीर झक ु रहा है । आप खडे ही हुए हैं। आप खडे
होकर चारों तरफ दे ख रहे हैं मंठदर में कक लोग मुझे दे ख रहे हैं, या नहीं! शरीर के झक
ु ने िे
क्या अथघ है ?
लेककन, हम जो हैं, उिे तछपाने की हमने अच्छी तरकीबें खोज ली हैं। एक आदमी पाप करता
है और कौन आदमी पाप नहीं करता-और कफर गंगा जाकर िान कर आता है ! और तनज‍चत
हो जाता है कक गंगा िान िे पाप समट गये!

रामकृष्ण के पाि जाकर एक आदमी ने कहा, ”मैं गंगा िान को जा रहा हूं आशीवाघद दे दें !

रामकृष्ण ने पूछा, ”ककिसलये कष्ट कर रहा है ? ककिसलये गंगा को तकलीफ दे ने जा रहा है ?


मामला क्या है ? गंगा भी र्बडा गयी होगी। आखखर ककतना जमाना हो गया उिे, पाप्रपयों के
पाप िोते- िोते।

वह आदमी कहने लगा, हां, उिी के सलये जा रहा हूं कक पापों िे छुटकारा हो जाए। आशीवाघद
दे दें । रामकृष्ण ने कहा, ”तुझे पता है , गंगा के ककनारे जो बडे-बडे झाडू हैं, वे जानते हो
ककिसलए हैँ?”

उि आदमी ने कहा, ‘ककिसलये हैं, मझ


ु े पता नहीं।

” रामकृष्ण ने कहा, ”पागल, तू गंगा में स्नान करे गा और पाप बाहर तनकल कर झाडी पर बैि
जाएंगे। कफर तू िान करके तनकलेगा तो वे झाडों पर बैिे तेरा रास्ता दे खते होंगे कक आ गये
बेटे, अब हम तुम पर कफर िवार होते हैं। वे झाडू इिीसलये हैं गंगा के ककनारे ।

”बेकार मेहनत मत कर। तुझे भी तकलीफ होगी-गंगा को भी, पापों को भी, वक्ष
ृ ों को भी। इि
िस्ती तरकीब िे कुछ हल नहीं होगा। ”

लेककन हम िब िस्ती तरकीबें ही खोज रहे हैं कक गंगा िान कर लेंगे। और गंगा-िान जैिे
ही मामले हैं हमारे िारे । बाहर िे व्यजक्तत्व खडा करने की हम कोसशश करते हैं -उिे झुिलाने
के सलये, जो हम भीतर हैं।

टाल्स्टाय एक ठदन िुबह-िुबह चचघ गया। रास्ते पर कोहरा पड रहा था। पांच ही बजे होंगे।
जल्दी गया था कक अकेले में कुछ िाथघना कर लूंगा। चचघ में जाकर दे खा कक उििे पहले भी
कोई आया हुआ है । अंिेरे में , चचघ के द्वार पर हाथ जोडे हुए एक आदमी खडा था। और वह
आदमी कह रहा था कक ‘हे परमात्मा, मुझिे ज्यादा पापी कोई भी नहीं है । मैंने बहुत पाप
ककये हैं; मैंने बहुत बुराइयां की हैं; मैंने बडे अपराि ककये हैं; मैं हत्यारा हूं। मुझे क्षमा करना। ‘

टाल्स्टाय ने दे खा कक कौन आदमी है , जो अपने मंह


ु िे कहता है कक मैंने बहुत पाप ककये हैं,
और मैं हत्यारा हूं। कोई आदमी ऐिा नहीं कहता कक मैं हत्यारा हूं बजल्क ककिी हत्यारे िे
यह कहो कक तुम हत्यारे हो, तो वह तलवार तनकाल लेता है कक कौन कहता है , मैं हत्यारा हूं!
हत्या करने को तैयार हो जाते हैं, लेककन यह मानने को राजी नहीं होता कक मैं हत्यारा हूं।..
यह कौन आदमी आ गया है ?

टाल्स्टाय िीरे िे उिके पाि गया। आवाज पहचानी हुई मालूम पडी। ‘यह तो नगर का िबिे
बडा िनपतत है ! ‘उिकी िारी बातें टाल्स्टाय खडे होकर िुनता रहा।

जब वह आदमी िाथघना कर पीछे मुडा, तो टाल्स्टाय को पाि खडा दे खकर उिने पूछा, ‘‘क्या
तम
ु ने मेरी िारी बातें िन
ु ली हैं?”

टाल्स्टाय ने कहा, ‘‘मैं िन्य हो गया तुम्हारी बातें िुनकर। तुम ककतने पप्रवर आदमी हो कक
अपने िब पापों को तुमने इि तरह खोलकर रख ठदया! ”

तो उि िनपतत ने कहा, ” ध्यान रहे , यह बात ककिी िे कहना मत! यह बात मेरे और
परमात्मा के बीच हुई है । मुझे पता भी नहीं था कक तमु यहां खडे हुए हो। अगर ककिी दि
ू रे
तक यह बात पहुंची, तो तम ु पर मानहातन का मक ु दमा दायर कर दं ग
ू ा। ”

टाल्स्टाय ने कहा, ”अरे , अभी तो तुम कह रहे थे कक…….

”…….वह िब अलग बात है । वह तुमिे मैंने नहीं कहा। वह दतु नया में कहने के सलये नहीं हैं।
वह मेरे और परमात्मा के बीच की बात है …..! ”

चकूं क परमात्मा कहीं भी नहीं है , इिसलये उिके िामने हम नंगे खडे हो िकते हैं। लेककन जो
आदमी जगत के िामने िच्चा होने को राजी नहीं है , वह परमात्मा के िामने भी कभी िच्चा
नहीं हो िकता है । हम अपने ही िामने िच्चे होने को राजी नहीं हैं!’

लेककन यह डर क्यों है इतना? यह चारों तरफ के लोगों का इतना भय क्यों है ? चारों तरफ िे
लोगों की आंखें एक-एक आदमी को भयभीत क्यों ककये हैं? हम िब समलकर एक-एक आदमी
को क्यों भयभीत ककये हुए हैं? आदमी इतना भयभीत क्यों है ? आदमी ककि बात की धचंता में
है ?

आदमी बाहर िे फूल िजा लेने की धचंता में है । बि लोगों की आंखों में ठदखायी पडने लगे
कक मैं अजा आदमी हूं बात िमाप्त हो गयी। लेककन लोगों की आंखों में अच्छा ठदखायी पडने
िे मेरे जीवन का ित्य और मेरे जीवन का िंगीत िगट नहीं होगा। और न लोगों की आंखों
में अच्छा ठदखायी पडने िे मैं जीवन की मूल-िारा िे िंबंधित हो िकंू गा। और न लोगों की
आंखों में अच्छा ठदखायी पडने िे मेरे जीवन की जडों तक मेरी पहूंच हो पायेगी। बजल्क,
जजतना मैं लोगों की कफक्र करूंगा, उतना ही मैं शाखाओं और पत्तों की कफक्र में पड जाऊंगा
क्योंकक लोगों तक सिफघ पत्ते पहुंचते हैं, जडें नहीं।

जडें तो मेरे भीतर हैं। वे जो रू्ि हैं, वे मेरे भीतर हैं। उनिे लोगों का कोई भी िंबंि नहीं
है । वहां मैं अकेला हूं। टोटली अलोन। वहां कोई कभी नहीं पहुंचता। वहां सिफघ मैं हूं। वहां मेरे
अततररक्त कोई भी नहीं है । वहां ककिी दि ू रे की कफक्र नहीं करनी है ।

अगर जीवन को मैं जानना चाहता हूं; और चाहता हूं कक जीवन मेरा बदल जाये, रूपांतररत हो
जाये; और अगर मैं चाहता हूं कक जीवन का पररपूणघ ित्य िगट हो जाये; चाहता हूं कक जीवन
के मंठदर में िवेश हो जाएं; मैं पहुंच िकंू , उि लोक तक, जहां ित्य का आवाि है -तो कफर
मझु े लोगों की कफक्र छोड दे नी पडेगी। वह जो क्राउड है , वह जो भीड मझु े र्ेरे हुए है , उिकी
कफक्र मझ
ु े छोड दे नी पडती। क्योंकक जो आदमी भीड की बहुत धचंता करता है , वह आदमी
कभी जीवन की ठदशा में गततमान नहीं हो पाता। क्योंकक भीड की धचंता, बाहर की धचंता है ।

इिका यह मतलब नहीं है कक भीड िे मैं अपने िारे िंबंि तोड लूं जीवन व्यवस्था िे अपने
िारे िंबंि तोड लूं। इिका यह मतलब नहीं है । इिका कुल मतलब यह है कक मेरी आंखें
भीड पर न रह जायें, मेरी आंखे अपने पर हों। इिका कुल मतलब यह है कक दि
ू रे की आंख
में झांककर मैं यह न दे खूं कक मेरी तिवीर क्या है । बजल्क मैं अपने ही भीतर झांककर दे खूं
कक मेरी तस्वीर क्या है ! अगर मेरी िच्ची तस्वीर का मुझे पता लगाता है तो मेरी ही आंखों
के भीतर झांकना पडेगा।

तो दि
ू रों की आंखों में मेरा जो अपीयरें ि है -मेरी अिली तस्वीर नहीं है वहां। और उिी
तस्वीर को दें खने मैं खश
ु हो लूंगा, उिी तस्वीर को दे खकर ििन्न हो लूंगा। वह तस्वीर धगर
जायेगी, तो दख
ु ी हो जाऊंगा। लगा।- चार आदमी बुरा कहने लगें गे, तो दख
ु ी हो जाऊंगा। चार
आदमी अच्छा कहने लगें गे, तो िुखी हो जाऊंगा। बि इतना ही मेरा होना है ? तो मैं हवा के
झोंकों पर जी रहा हूं। हवा पूरब की ओर उडने लगेगी, तो मुझे पूरब उडना पडेगा; हवा पज‍चम
की ओर उडेगी, तो पज‍चम की ओर उडना पडेगा। लेककन मैं खद ु कुछ भी नहीं हूं। मेरी कोई
आथेंठटक एंजग्जस्टें ि नहीं हैं। मेरी कोई अपनी आत्मा नहीं है । मैं हवा का एक झोंका हूं। मैं
एक िूखा पत्ता हूं कक हवाएं जहां ले जाये बि, मैं वहीं चला जाऊं; कक पानी की लहरें मुझे
जजि ओर बहाने लगें , मैं उि ओर बहने लगू। दतु नया की आंखें मुझ िे जो कहें , वही मेरे सलये
ित्य हो जाये।

तो कफर मेरा होना क्या है ? कफर मेरी आत्मा क्या है ? कफर मेरा अजस्तत्व क्या है ? कफर मेरा
जीवन क्या है ? कफर मैं एक झूि हूं। एक बडे नाटक का ठहस्िा हूं।
और बडे मजे की बात यह है कक जजि भीड िे मैं डर रहा हूं; वह भी मेरे जैिे दि ू रों की भीड
है । बडी अजीब बात है कक वे िब भी मुझ िे डर रहे हैं, जजनिे कक मैं डर रहा हूं।

हम िब एक-दि
ू रे िे डर रहे हैं। और इि डर में हमने एक तस्वीर बना ली है और भीतर
जाने में डरते हैं कक कहीं यह तस्वीर समट न जाये। एक ििेशन, एक दमन चल रहा है ।
आदमी जो भीतर है , उिे दबा रहा है ; और जो नहीं है , उिे थोप रहा है , उिका आरोपण कर
रहा है । एक द्वंद्व, एक कानजललक्ट खडी हो गयी है । एक-एक आदमी अनेक-अनेक
आदसमयों मे बंट गया है , मल्टी िाइककक हो गया है । एक-एक आदमी एक-एक आदमी नहीं
है । एक ही चौबीि र्ंटे में हजार बार बदल जाता है ! नया आदमी िामने आता है , तो नयी
तस्वीर बन जाती है उिकी आंख में और वह बदल जाता है !

आप जरा खयाल करना कक अपनी पत्नी के िामने आप दि


ू रे आदमी होते हैं, अपने बेटे के
िामने तीिरे , अपने बाप के िामने चौथे, अपने नौकर के िामने पांचवें , अपने मासलक के
िामने छिवें। ठदन भर आप अलग-अलग आदमी होते हैं। िामने का आदमी बदला कक
आपको बदलना पडता है । नौकर के िामने आप शानदार आदमी हो जाते हैं। और मासलक के
िामने-वह जो हालत आपके नौकर की आपके िामने होती है , वही-मासलक के िामने आप की
हो जाती है !

आप कुछ हों या नहीं, पर हर दपघण आपको बनाता है ! जो िामने आ जाता है , वही आपको
बना दे ता है ! बहुत अजीब बात है । हम हैं?

हम हैं ही नहीं। हम-एक असभनय हैं, एक ऐक्टं ग हैं। िुबह िे शाम तक असभनय चल रहा है ।
िुबह कुछ है , दोपहर कुछ है , शाम कुछ है । हमारे खीिे में पैिे हों, तो हम वही आदमी नहीं
रह जाते हैं, बबलकुल दि
ू रे आदमी हो जाते हैं। जब पैिे नहीं होते हैं खीिे में , तब बबलकुल
दि
ू रे आदमी हो जाते हैं।

ककिी समतनस्टर को दे खें, जब वह पद पर हो- और कफर जब वह समतनस्टर न रह जाये, तब


उिको दे खें। जैिे कक कपडे की क्रीज तनकल गयी हो, ऐिा वह हो जाता है । िब खअ। आदमी
गया। आदमी था ही नहीं जैिे।

मैंने िुना है , जापान के एक गांव में एक िुंदर युवा फकीर रहता था। िारा गांव उिे श्रद्िा
और आदर दे ता था। लेककन एक ठदन िारी बात बदल गयी। गांव में अफवाह उडी कक उि
फकीर िे ककिी लडकी को एक बच्चा पैदा हो गया है । उि िी ने अपने बाप को कह ठदया है
कक यह उिी फकीर का बच्चा है , जो गांव के बाहर रहता है । वही फकीर इिका बाप है ।
िारा गांव टूट पडा उि फकीर पर। जाकर उिकी झोपडी में आग लगा दी। िुबह िदी के
ठदन थे, वह – बैिा था। उिने पूछा कक ‘‘समरों, यह क्या कर रहे हो? क्या बात है ?”

तो उन्होंने उि नवजात बच्चे को उिकी गोद में पटक ठदया और कहा, हमिे पूछते हो, क्या
बात है न यह बच्चा तुम्हारा है ।”

उि फकीर ने कहा, ‘‘इज इट िो? क्या ऐिी बात है ? अगर तुम कहते हो, िीक ही कहते
होओगे। क्योंकक भीड तो कुछ गलत कहती ही नहीं भीड तो हमेशा ित्य ही कहती है । अब
तम
ु कहते हो, तो िीक ही कहते होओगे। ”

वह बच्चा रोने लगा, तो वह फकीर उिे थपथपाने लगा। गांव भर के लोग गासलयां दे कर
वापि लौट आये और उि बच्चे को उिके पाि छोड आये।

कफर दोपहर को जब फकीर भीख मांगने तनकला, तो उि बच्चे को लेकर भीख मांगने तनकला
गांव मैं। कौन उिे भीख दे गा? आप भीख दे ते? कोई उिे भीख नहीं दे गा। जजि दरवाजे पर
वह गया, दरवाजे बंद हो गये। उि रोते हुए छोटे बच्चे को लेकर उि फकीर का उि गांव िे
गुजरना….। बडी अजीब िी हालत हो गयी उिकी। लोगों की भीड उिके पीछे चलने लगी, उिे
गासलयां दे ती हुई।

कफर वह उि दरवाजे के िामने पहुंचा, जजिकी बेटी को यह बच्चा हुआ था। और उिने उि
दरवाजे के िामने आवाज लगायी कक किूर मेरा होगा इिका बाप होने में , लेककन इिका मेरा
बेटा होने में क्या किूर हो िकता है । बाप होने में मेरी गलती होगी, लेककन बेटा होने में
इिकी तो कोई गलती नहीं हो िकती। कम िे कम इिे तो दि
ू समल जाये।

उि बच्चे को जन्म दे नेवाली लडकी द्वार पर ही खडी थी। उिके िाण कंप गये, फकीर को
भीड में तर्रा हुआ पत्थर खाते हुए दे खकर तछपाना मुज‍कल हो गया। उिने बाप के पैर पकड
सलये, कहा, मुझे क्षमा करें , इि फकीर को तो मैं पहचानती भी नहीं। सिफघ इिके अिली बाप
को बचाने के सलये मैंने इि फकीर का झूिा नाम ले ठदया था! ”बाप आकर फकीर के पैरों
पर धगर पडा और बच्चे को फकीर िे छीन सलया। और फकीर िे क्षमा मांगने लगा।

फकीर ने पछ
ू ा, ‘‘लेककन बात क्या है ? बच्चे को क्यों छीन सलया तम
ु ने? उिके बाप ने कहा,
लडकी के बाप ने, ”आप कैिे नािमझ हैं। आपने ही क्यों न बताया कक यह बच्चा आपका
नहीं है ? ”उि फकीर ने कता, ”इज इट िो, क्या ऐिा है ? मेरा बेटा नहीं है ? तम्
ु हीं तो िुबह
कहते थे कक तुम्हारा है , और भीड तो कभी झूि बोलती नहीं है । अगर तम
ु बोलते हो नहीं है
मेरा, तो नहीं होगा। ”
लोग कहने लगे कक ‘‘तुम कैिे पागल हो! तुमने िब
ु ह कहा क्यों नहीं कक बच्चा तुम्हारा नहीं
है । तुम इत.।। तनंदा और अपमान झेलने को राजी क्यों हुए?”

उि फकीर ने कहा, मैंने तुम्हारी कभी धचंता नहीं की, कक तुम क्या िोचते हो। तुम आदर दे ते
हो कक अनादर तुम श्रद्िा दे ते हो कक तनंदा। मैंने तुम्हारी आंखों की तरफ दे खना बंद कर
ठदया है । मैं अपनी तरफ दे खूं कक तुम्हारी आंखों की तरफ दे ख।ूं जब तक मैं तुम्हारी आंखों
में दे खता रहा, तब तक अपने को मैं नहीं दे ख पाया। और तुम्हारी आंख तो िततपल बदल
रही है । और हर आदमी की आंख अलग है । हजार-हजार दपघण हैं, मैं ककि-ककि में दे ख।ूं अब
मैंने अपने में ही झांकना शुरू कर ठदया है । अब मुझे कफक्र नहीं है कक तुम क्या कहते हो?
अगर तुम कहते हो कक बच्चा मेरा है , तो िीक ही कहते हो। मेरा ही होगा। आखखर ककिी का
तो होगा ही? मेरा ही िही। तुम कहते हो कक मेरा नहीं है , तो तुम्हारी मजी। नहीं होगा।
लेककन मैंने तुम्हारी आंखों में दे खना बंद कर ठदया है ।

….और वह फकीर कहने लगा कक मैं तम ु िे भी कहता हूं कक कब वह ठदन आयेगा कक तम



दि
ू रों की आंखों में दे खना बंद करणैं, और अपनी तरफ दे खना शुरू करोगे….?

यह दि
ू रा िूर आपिे कहना चाहता हूं जीवन क्रांतत का कक मत दे खो दि
ू रों की आंखों में कक
आप क्या हैं।

वहां जो भी तिवीर बन गयी है , वह आपके वस्रों की तिवीर है , वह आपकी ठदखावट है , वह


आपका नाटक है , वह आपकी एजक्टं ग है -वह आप नहीं हैं, क्योंकक आप कभी िगट ही न हो
िके, जो आप हैं, तो उिकी तिवीर कैिे बनेगी! वहां तो आपने जो ठदखाना चाहा है , वह ठदख
रहा है ।

भीड िे बचना िासमघक आदमी का पहला कत्तघव्य है , लेककन भीड िे बचने का मतलब यह नहीं
है कक आप जंगल में भाग जायें। भीड िे बचने का मतलब क्या है ?

िमाज िे मुक्त होना िासमघक आदमी का पहला लक्षण है , लेककन िमाज िे मुक्त होने का
क्या मतलब है ? िमाज िे मुक्त होने का मतलब यह नहीं है कक आदमी भाग जाये जंगल
में । वह िमाज िे मुक्त होना नहीं है । वह िमाज की ही िारणा है िंन्यािी के सलये कक जो
आदमी िमाज छोड्कर भाग जाता है , वह उिको ही आदर दे ता है । यह िमाज िे भागना
नहीं है । यह तो िमाज की ही िारणा को मानना है । यह तो िमाज के ही दपघण में अपना
चेहरा दे खना है ।
गेरुए वस्र पहन कर खडे हो जाना िंन्यािी हो जाना नहीं है । वह तो िमाज की आंखों में ,
िमाज के दपघण में अपना िततबबंब दे खना है । क्योंकक अगर िमाज गेरुए वस्र को आदर दे ना
बंद कर दे , तो मैं गेरुआ वस्र नहीं पहनूंगा।

अगर िमाज आदर दे ता है एक आदमी को-पत्नी और बच्चों को छोड्कर भाग जाने को-तो
आदमी भाग जाता है । यहां भी वह िमाज की आंखों में दे ख रहा है । …..नहीं, यह िमाज को
छोडना नहीं है ।

िमाज को छोडने का अथघ है -िमाज की आंखों में अपने िततबबंब को दे खना बंद कर दें ।

अगर जीवन में कोई भी क्रांतत चाठहये, तो लोगों की आंखों में दे खना बंद कर दें । भीड के
दपघण में दे खना बंद कर दें ।

िोखे के क्षण में वहां वस्र ठदखायी पडते हैं। लेककन दतु नया में वस्रों की ही कीमत है । और
अगर बाहर की यारा करनी है , तो कफर मेरी बात कभी मत मानना। नहीं तो बाहर की यारा
बहुत मजु ‍कल हो जायेगी। इि दतु नया में वस्रों की ही कीमत है , आत्माओं की कीमत नहीं है ।
मैंने िुना है , कप्रव गासलब को एक दफा बहादरु शाह ने भोजन का तनमंरण ठदया था। गासलब
था गरीब आदमी।

और अब तक ऐिी दतु नया नहीं बन िकी है कक कप्रव के पाि भी खाने-पीने को पैिा हो


िके। अब तक ऐिा ‘ हो िका है । अच्छे आदमी को रोजी जुटानी अभी भी बहुत मुज‍कल है ।

गासलब तो गरीब आदमी था। कप्रवताएं सलखी थीं, ऊाँची कप्रवताएं सलखने िे क्या होता है ? कपडे
उिके फटे -पुराने थे। समरों ने कहा, बादशाह के यहां जा रहे हो तो इन कपडों िे नहीं चलेगा।
क्योंकक बादशाहों के महल में तो कपडे पहचाने जाते हैं। गरीब के र्र में तो बबना कपडों के
भी चल जाये, लेककन बादशाहों के महल मैं तो कपडे ही पहचाने जाते हैं। समरों ने कहा, हम
उिार कपडे ला दे ते हैं, तुम उन्हें पहनकर चले जाओ। जरा आदमी तो मालूम पडोगे।

गासलब ने कहा, ‘‘उिार कपडे! यह तो बडी बरु ी बात होगी कक मैं ककिी और के कपडे पहनकर
जाऊं। मे जैिा हूं, हूं। ककिी और के कपडे पहनने िे क्या फकघ पड जायेगा? मैं तो वही
रहूंगा।”

समरों ने कहा, ‘‘छोडो भी यह कफलािफी की बातें । इन िब बातों िे वहां नहीं चलेगा। हो


िकता है , पहरे दार वापि लौटा दें ! इन कपडो में तो सभखमंगों जैिा मालूम पडते हो। ‘ ?’
गासलब ने कहा, मैं तो जैिा हूं हूं। गासलब को बुलाया है कपडों को तो नहीं बुलाया? तो गासलब
जायेगा।

….. नािमझ था-कहना चाठहए, नादान, नहीं माना गासलब, और चला गया।

दरवाजे पर द्वारपाल ने बंदक


ू आडी कर दी। पूछा कक, कहां भीतर जा रहे हो? ”

गासलब ने कहा, ‘मैं महाकप्रव गासलब हूं। िुना है नाम कभी? िम्राट ने बुलाया है -िम्राट का
समर हूं, भोजन पर बुलाया है ।

द्वारपाल ने कहा- ‘‘हटो रास्ते िे। ठदन भर में जो भी आता है , अपने को िम्राट का समर
बताता है ! हटो।। मै। िे, नहीं तो उिाकर बंद करवा दं ग
ू ा। ”

गासलब ने कहा, ‘क्या कहते हो, मुझे पहचानते नहीं?

‘’द्वारपाल ने कहा, ‘तम्


ु हारे कपडे बता रहे है तम
ु कौन हो! फटे जत
ू े बता रहे हैं कक तम
ु कौन
हो! शक्ल दे खी है कभी आइने में कक तम
ु कौन है ?’

गासलब दख
ु ी होकर वापि लौट आया। समरों िे उिने कहा, ‘‘तुम िीक ही कहते थे, वहां कपडे
पहचान जाते हैं। ले आओ उिार कपडे। ” समरों ने कपडे लाकर ठदये। उिार कपडे पहनकर
गासलब कफर पहुंच गया। वहीं द्वारपाल झुक-झुक कर नमस्कार करने लगा। गासलब बहुत
है रान हुआ कक ‘कैिी दतु नया है ?

‘भीतर गया तो बादशाह ने कहा, बडी दे र िे ितीक्षा कर रहा हूं।

गासलब हं िने लगा, कुछ बोला नहीं। जब भोजन लगा ठदया गया तो िम्राट खद
ु भोजन के
सलए िामने बैिा- भोजन कराने के सलए। गासलब ने भोजन का कौर बनाया और अपने कोट
को खखलाने लगा कक, ‘‘ए कोट खा ! ‘पगडी को खखलाने लगा कक ‘ले पगडी खा! ‘

िम्राट ने कहा, ”आपके भोजन करने की बडी अजीब तरकीबें मालूम पडती हैं। यह कौन-िी
आदत है ‘ यह आप क्या कर रहे हैं?”

गासलब ने कहा, ‘‘जब मैं आया था तो द्वार िे ही लौटा ठदया गया था। अब कपडे आये हैं
उिार। तो जो आए हैं, उन्हीं को भोजन भी करना चाठहए! ”
बाहर की दतु नया में कपडे चलते हैं।…. बाहर की दतु नया में कपडे ही चलते हैं। वहां आत्माओं
का चलना बहुत मुज‍कल है ; क्योंकक बाहर जो भीड इक्िी है , वह कपडे वालों की भीड है ।
वहां आत्मा को चलाने की तप‍चयाघ हो जाती है ।

लेककन बाहर की दतु नया में जीवन नहीं समलता। वहां हाथ में कपडों की लाश रह जाती है ,
अकेली। वह।

जजंदगी नहीं समलती है । वहां आखखर में जजंदगी की कुल िम्पदा राख होती है -जली हुई। मरते
वक्त अखबार की कठटंग रख लेनी है िाथ में , तो बात अलग है । अखबार में क्या-क्या छपा
था, उिको िाथ रख ले कोई, तो बात अलग है ।

जीवन की ओर वही मुड िकते हैं, जो दि


ू रों की आंखों में दे खने की कमजोरी छोड दे ते हैं और
अपनी आंखों के भीतर झांकने का िाहि जुटाते हैं।

इिसलए दि
ू रा िर
ू है , ‘ भीड िे िाविान। ‘ बीवेअर ऑफ द क्राउड।

चारों ओर िे आदमी की भीड र्ेरे हुए है । और जजंदा लोगों की भीड ही नहीं र्ेरे हुए हैं, मुदाघ
लोगों की भीड भी र्ेरे हुए है । करोडों-करोडों वषों िे जो भीड इक्िी होती चली गयी है
दतु नया में , उिका दबाव है चारों तरफ और एक-एक आदमी की छाती पर वह िवार है , और
एक-एक आदमी उिकी आंखों में दे खकर अपने को बना रहा है , िजा रहा है । वह भीड जैिा
कहती है , वैिा होता चला जाता है । इिसलए आदमी को अपनी आंख का कभी खयाल ही पैदा
नहीं हो पाता। उिके जीवन के बीज में कभी अंकुर ही नहीं आ पाता। क्योंकक वह कभी अपने
बीज की तरफ ध्यान ही नहीं दे ता। बीज की तरफ उिकी आंख ही नहीं उि पाती। उिके
िाणों की िारा कभी िवाठहत ही नहीं होती बीज की तरफ।

जजन्हें भी भीतर की तरफ जाना है , उन्हें पहले बाहर की धचंता छोड दे नी पडती है । कौन क्या
कहता है , कौन क्या िोचता है -इिकी धचन्ता छोड दे नी पडती है ।

नहीं, िवाल यह नहीं है कक कौन क्या िोचता है । िवाल यह है कक ‘मैं क्या हूं? और मैं क्या
जानता हूं? अगर जीवन में क्रांतत लानी है तो िवाल यह है कक ‘मैं क्या हूं?’ मैं क्या पहचानता
हूं अपने को?’ और स्मरण रहे , जो आदमी अपने भीतर पहचानना शरू ु करता है , उिके भीतर
बदलाहट उिी क्षण शरू ु हो जाती है । क्योंकक भीतर जो गलत है , उिे पहचानकर बदाघ‍त
करना मुज‍कल है , अिंभव है । अगर पैर में कांटा गडा है , तो वह तभी तक गडा रहा िकता है ,
जब तक उिका मुझे पता नहीं है । जैिे ही मुझे पता चलता है , पैर िे कांटे को तनकालना
मजबूरी हो जाती है ।
एक बच्चा स्कूल में मैदान में खेल रहा है -हाकी खेल रहा है । पैर में चोट लग गयी है , खन

बह रहा है । उिे पता भी नहीं चला, क्योंकक वह हाकी खेलने में िंलग्न है , आक्युपाइड है।
उिकी िारी अटें शन, उिका िारा ध्यान, हाकी खेलने में लगा है वह जो गोल करना है , उि
पर अटका हुआ है । वह जो चारों तरफ खखलाडी हैं , उनिे अटका हुआ है ; वह जो िततयोधगता
चल रही है , उिमें उलझा हुआ है । उिे पता भी नहीं है कक उिके पैर िे खून बह रहा है ।

वह दौड रहा है , दौड रहा है । कफर खेल बंद हो गया है और अचानक उिे खयाल आया है कक
पैर िे खन
ू बह रहा है । यह खन
ू बहुत दे र िे बह रहा है , लेककन अब तक उिे पता नहीं
चला। अब वह मलहम-प्टी की धचंता में पड गया है । लेककन इतनी दे र तक उिे पता नहीं
चला! क्योंकक जब तक वह खेल में व्यस्त था, तब तक पता चलने का िवाल ही नहीं था।

हम बाहर दे ख रहे हैं। गोल करना है , वह दे ख रहे हैं। िततयोधगता चल रही है , वह दे ख रहे हैं।
लोगों की आंखों में दे ख रहे हैं। हमें पता ही नहीं चलता कक भीतर ककतने कांटे हैं और ककतने
र्ाव हैं। भीतर पता ही नहीं चलता, ककतना अंिकार है ! भीतर पता ही नहीं चलता, ककतनी
बीमाररयां हैं! उलझे रहें गे और उलझे रहें गे। जजंदगी बीत जायेगी और पता नहीं चलेगा।

एक बार हटायें आंख बाहर िे और भीतर के र्ावों को दे खें! और मैं आपिे कहता हूं उन्हें
दे खना उनके बदलने का पहला िूर है । एक बार ठदखायी पडा कक कफर आप उन्हें बदाघ‍त नहीं
कर िकते। कफर आपको बदलना ही पडेगा।

और बदलना कठिन नहीं है । जो दख


ु दे रहा है , उिे बदलना कभी भी कठिन नहीं होता, सिफघ
भुलाये रखना आिान होता है । बदलना कठिन नहीं है , लेककन भुलाये रखना बहुत आिान है ।
और जब तक भूला रहे गा, तब तक जीवन में कोई क्रांतत नहीं होगी।

जीवन क्रांतत का दि
ू रा िूर है , ‘मैं दि
ू रों की आंखों में न दे ख।ंू ‘

अपनी आंख में , अपने भीतर, अपनी तरफ, मै जहां हूं-वहां दे ख-ूं यही अिली िवाल है , यही
अिली िमस्या है व्यजक्त के िामने कक ‘मैं क्या हूं? जैिा भी मैं है उिको ही दे खना और
िाक्षात्कार करना है ।

लेककन हम? कोई हमिे पछ ू े गा- आप कौन हैं? तो हम कहें गे- ‘फलां आदमी का बेटा हूं फलां
मोहल्ले में रहता हूं फलां गांव में रहता हूं, -यही पररचय है हमारा। यह लेबल जो हम ऊपर
िे धचपकाये हुए दें , यत। हमारी पहचान है , यही हमारी जजंदगी का िबूत है -हमारी जजंदगी का
िमाण है ! यही हमारी जानकारी है अपने बाबत। हमें पता ही नहीं है कक भीतर हम कौन हैं!
अभी तक हम बाहर िे कागज धचपकाये हुए हैं। और वे भी दि
ू रों के धचपकाये हुए हैं। ककिी
ने एक नाम धचपका ठदया है । उिी नाम को जजंदगी भर सलए हम र्ूम रहे है । उि नाम को
कोई गाली दे दे , तो लडने को तैयार हो जाते हैं।

स्वामी राम अमेररका गये थे। वहां के लोग बडी मुज‍कल में पड गये। एक बार राम को कुछ
लोगों ने गासलयां दे ने लगे, तो राम ने समरों को आकर कहा कक आज बडा मजा हो गया।
बाजार में कुछ लोग समल गये और राम अच्छी गासलयां दे ने लगे। हम भी खडे िुनते रहे ।

लोगों ने कहा, ‘क्या आप पागल हो गये हैं। लोग राम को गासलयां दे ते थे? कौन राम?

स्वामी राम ने कहा, ‘यह राम जजिको लोग राम कहते हैं। कुछ लोगों ने इि राम को र्ेर
सलया और लेगे बहुत गासलयां दे ने लगे। हम खडे होकर दे खते रहे कक आज राम को अच्छी
गासलयां पड रही हैं।

लेककन हम राम होकर झगडे में पडे हैं। पर हम राम नहीं हैं। हम तो जो हैं, उिका नाम तो
राम नहीं है । यह नाम तो ककिी का ठदया हुआ है । यह तो िमाज का ठदया हुआ है । हम तो
कुछ और हैं। जब नाम नहीं था, तब भी हम थे। जब नाम नहीं रह जायेगा, तब भी हम होंगे।

अभी भी रात िो जाते हैं, तो नाम समट जाता है -िमाज भी समट जाता है , कफर भी हम िोते
हैं।

आप समट जाते हैं रात, न पत्नी रह जाती है आपकी, न बेटा रह जाता है आपका-न िन-
दौलत रह जाती है -न पद िततष्िा रह जाती है , कफर भी आप रह जाते हैं, जब कक िब समट
जाता है । वह जो िोिायटी दे ती है , वह बाहर ही छूट जाता है , वह भीतर जाता ही नहीं। वह
मरने के वक्त भी भीतर नहीं आता- और ध्यान वक्त भीतर नहीं जाता। वह जो िमाप्त
होता है , वह बाहर है , और बाहर ही रह जाता है । लेककन उिको हम अपना व्यजक्तत्व िमझे
हुए हैं! इि भूल िे मुक्त हो जाना चाठहए। अन्यथा कोई व्यजक्त जीवन की यारा पर एक
कदम आगे नहीं बढ िकता है ।

िब
ु ह मैंने एक िर
ू कहा है कक ‘सिद्िात्तों िे मक्
ु त हो जायें’, क्योंकक जो सिद्िान्तों िे बंिा
है , वह जीवन क्रांतत के रास्ते पर नहीं जा पायेगा।

दि
ू रा िूर कहता हूं ‘ भीड िे मुक्त हो जाना है ’, क्योंकक जो भीड का गुलाम है , वह कभी भी
जीवन क्रांतत के रास्ते िे नहीं गुजर िकता।
आने वाले ठदनों में कुछ और िूर भी कहूंगा, लेककन उन िूरों को िुनने भर िे कुछ होने
वाला नहीं है । थोडा-िा भी ियोग करें गे, तो द्वार खल
ु ेगा; कुछ ठदखायी पडना शुरू होगा।

िमघ एक वैज्ञातनक िकक्रया है । िमघ एक जीप्रवत प्रवतान है ।

जो ियोग करता है , वह रूपांतररत हो जाता है और उपलब्ि होता है वह िब, जजिे पाये बबना
हम व्यथघ जीते हैं और व्यथघ मर जाते हैं; और जजिे पा लेने पर जीवन एक िन्यता हो जाती
है ; और जजिे पा लेने पर जीवन कृताथघ हो जाता है ; और जजिे पा लेने पर िारा जगत
परमात्मा में रूपांतररत हो जाता है ।

लेककन जजि ठदन भीतर ठदखायी पडता है कक भीतर परमात्मा है , उिी ठदन यह श्रम भी समट
जाता है कक बाहर कोई और है । बि, कफर तो सिफघ ‘वही’ रह जाता है । जो भीतर ठदखायी
पडता है , वही बाहर भी िमाखणत हो जाता है । और जगत के मूल ित्य को जान लेना, जीवन
को अनुभव कर लेना है । और जीवन को अनुभव कर लेना, मत्ृ यु के ऊपर उि जाना है । कफर
कोई मत्ृ यु नहीं है । जीवन की कोई मत्ृ यु नहीं है ।

जो मरता है , वह िमाज के द्वारा ठदया गया झूिा व्यजक्तत्व है । जो मरता है , वह िकृतत के


द्वारा ठदया गया झूिा शरीर है । जो नहीं मरता है , वह जीवन है । लेककन उिका हमें कोई
पता नहीं है ! पहले िमाज िे हटें -िमाज के झूिे व्यजक्तत्व िे हटें ।

कफर िकृतत के ठदये गये व्यजक्तत्व िे हटें । उिकी कल मैं बात करूंगा कक िकृतत के ठदये
गये शरीर िे कैिे हटें ; और कफर हम वहां पहुंच िकते हैं, जहां जीवन है । मेरी बातों को इतने
िेम और शांतत िे िुना, उििे बहुत अनुगह ृ ीत हूं। और अंत में िबके भीतर बैिे परमात्मा को
िणाम करता हूं।

मेरे िणाम स्वीकार करें ।

‘जीिन-क्रांनत के सत्र
ू ’,
बडौदा,

13 फरिर 1969 संध्या

संभोग से समाधि की ओर –49


Posted on सितम्बर 22, 2013by sw anand prashad
दमन से मुत्क्त—सत्तहरिां प्रिचन
मेरे प्रिय आत्मन

‘जीवन क्रांतत के िूर’ -इि पररचचाघ के तीिरे िूर पर आज चचाघ करनी है ।

पहला िूर था : सिद्िांत शाख और वाद िे मुजक्त।

दि
ू रा िूर था भीड िे, िमाज िे-दि
ू रों िे मुजक्त।

और आज तीिरे िूर पर चचाघ करनी है । इि तीिरे िूर को िमझने वो सलए मन का एक


अद्भत
ु राज िमझ लेना आव‍यक है । मन की वह बडी अद्भत
ु िकक्रया है , जो िािारणत:
पहचान में नहीं आती।

और वह िकक्रया यह है कक मन को जजि ओर िे बचाने की कोसशश की जाये, मन उिी ओर


जाना शुरू हो जाता है ; जहां िे मन को हटाया जाये, मन वहीं पहुंच जाता है ; जजि तरफ िे
पीि की जाये, मन उिी ओर उपजस्थत हो जाता है ।

‘तनषेि’ मन के सलए तनमंरण है , ‘प्रवरोि’ मन के सलए बल


ु ावा है । और मनष्ु य जातत इि मन
को बबना िमझे आज तक जीने की कोसशश करती रही है !

फ्रायड ने अपनी जीवन कथा में एक छोटा-िा उल्लेख ककया है । उिने सलखा है कक एक बार
वह बगीचे में अपनी पली और छोटे बच्चे के िाथ र्ूमने गया। दे र तक वह पत्नी िे
बातचीत करता रहा, टहलता रहा। कफर जब िांझ होने लगी और बगीचे के द्वार बंद होने का
िमय करीब हुआ, तो फ्रायड की पत्नी को खयाल आया कक ‘उिका बेटा न-मालूम कहां छूट
गया है ? इतने बडे बगीचे में वह पता नहीं कहां होगा? द्वार बंद होने के करीब हैं, उिे कहां
खोजूं?’ फ्रायड की पत्नी धचंततत हो गयी, र्बडा गयी।

फ्रायड ने कहा, ‘‘र्बडाओ मत! एक िश्र मैं पूछता है तुमने उिे कहीं जाने िे मना तो नहीं
ककया? अगर मना ककया है तो िौ में तनन्यानबे मौके तुम्हारे बेटे के उिी जगह होने के हैं,
जहां जाने िे तुमने उिे मना ककया है ।

”उिकी पत्नी ने कहा, ‘‘मना तो ककया था कक फव्वारे पर मत पहुंच जाना।’

फ्रायड ने कहा, ” अगर तम्


ु हारे बेटे में थोडी भी बुद्धि है , तो वह फव्वारे पर ही समलेगा। वह
वहीं होगा। क्योंकक कई बेटे ऐिे भी होते हैं, जजनमें बुद्धि नहीं होती। उनका ठहिाब रखना
कफजूल है । ” फ्रायड की पत्नी बहुत है रान हो गयी। वे गये दोनों भागे हुए फव्वारे की ओर।
उनका बेटा फव्वारे पर पानी में पैर लटकाए बैिा पानी िे खखलवाड कर रहा था।

फ्रायड की पत्नी ने कहा, ‘‘बडा आ‍चयघ! तुमने कैिा पता लगा सलया कक हमारा बेटा यहां
होगा? फ्रायड ने कहा, ”आश्रयघ इिमें कुछ भी नहीं है । मन को जहां जाने िे रोका जाये, मन
वहीं जाने के सलए आकप्रषघत होता है। जहां के सलए कहा जाये, मत जाना वहां, एक तछपा हुआ
रहस्य शुरू हो जाता है कक मन वहीं जाने को तत्पर हो जाता है ।

” फ्रायड ने कहा, यह तो आ‍चयघ नहीं है कक मैंने तम्


ु हारे बेटे का पता लगा सलया, आ‍चयघ यह
है कक मनष्ु य-जातत इि छोटे -िे िूर का पता अब तक नहीं लगा पायी। और इि छोटे -िे िर

को बबना जाने जीवन का कोई रहस्य कभी उदर्ाठटत नहीं हो पाता। इि छोटे -िे िूर का पता
न होने के कारण मनष्ु य-जातत ने अपना िारा िमघ; िारी नीतत, िारे िमाज की व्यवस्था
ििेशन पर, दमन पर खडी की हुई है ।

मनुष्य का जो व्यजक्तत्व हमने खडा ककया है , वह दमन पर खडा है , दमन उिकी नींव है ।
और दमन पर खडा हुआ आदमी लाख उपाय करे , जीवन की ऊजाघ का िाक्षात्कार उिे कभी
नहीं हो िकता है । क्योंकक जजि-जजि का उिने दमन ककया है , मन में वह उिी िे उलझा-
उलझा नष्ट हो जाता है । थोडा िा ियोग करें और पता चल जायेगा। ककिी बात िे मन को
हटाने की कोसशश करें और पायेंगे मन उिी बात के आिपाि र्ूमने लगा है । ककिी बात को
भूलने की कोसशश करें , तो भूलने की वही कोसशश उि बात को स्मरण करने का आिार बन
जाती है । ककिी बात को, ककिी प्रवचार को, ककिी स्मतृ त को, ककिी इमेज को, ककिी िततमा को
मन िे तनकालने की कोसशश करें , और मन उिी को पकड लेता है ।

भीतर, मन में लडे और आप पायेंगे कक जजििे आप लडेगें, उिी िे हार खायेंगे; जजििे भागें गे,
वही पीछा करे गा। जैिे छाया पीछा कर रही है । जजतनी तेजी िे भागते हैं , छाया उतनी ही
तेजी िे पीछा करती है ।

मन को हमने जहां-जहां िे भगाया है , मन वहीं-वहीं हमें ले गया है ; जहां-जहां जाने िे हमने


उिे इंकार ककया है , जहां-जहां जाने िे हमने द्वार बंद ककये हैं, मन वहीं-वहीं हमें ले गया है ।

क्रोि िे लडे-और मन क्रोि के पाि ही खडा हो जायेगा; ठहंिा िे लडे-और मन ठहंिक हो


जायेगा। मोह िे लडे-और मन मोह मस्त हो जायेगा। लोभ िे लडे- और मन लोभ में धगर
जायेगा। िन िे लडे-और मन िन के ितत ही पागल हो उिे गा। काम िे लडने वाला मन,
िेक्ि िे लडने वाला मन, िेक्ि में चला जायेगा। जजििे लडेंगे मन वही हो जायेगा। यह बडी
अदभुत बात है । जजिको द‍ु मन बनायेंगे, मन पर उि द‍ु मन की ही िततच्छप्रव अंककत हो
जायेगी।

समरों को मन भूल जाता है , शरओ


ु ं को मन कभी नहीं भूल पाता।

लेककन यह त्य है कक जजििे हम लडे, मन उिके िाथ ढल जाये, लेककन उिकी शक्ल बदल
ले, नाम बदल ले।

मैंने िुना है , एक गांव में एक बहुत क्रोिी आदमी रहता था। वह इतना क्रोिी था कक एक बार
उिने अपनी पली को िक्का दे कर कुएं में धगरा ठदया था। जब उिकी पली मर गयी और
उिकी लाश कुएं िे तनकाली गयी तो वह क्रोिी आदमी जैिे नींद िे जग गया। उिे लगा कक
उिने जजंदगी में सिवाय क्रोि के और कुछ भी नहीं ककया। इि दर्
ु टघ ना िे वह एकदम िचेत
हो गया। उिे बहुत प‍चाताप हुआ।

उि गांव में एक मतु न आये हुए थे। वह उनके दशघन को गया और उनके चरणों में सिर
रखकर बहुत रोया और उिने कहा, ‘‘मैं इि क्रोि िे कैिे छुटकारा पाऊं? क्या रास्ता है ? मैं
कैिे इि क्रोि िे बच?ूं ’

मुतन ने कहा, ‘‘तुम िंन्यािी हो जाओ। छोड दो वह क्रोि, जजिे कल तक पकडे थे…..।‘‘

लेककन, मजा यह है कक जजिे छोडो, वह और भी मजबूती िे पकड लेता है । लेककन यह थोडी


गहरी बात है , एकदम िे िमझ में नहीं आती….।

‘‘क्रोि को छोड दो; िंन्यािी हो जाओ; शान्त हो जाओ! अब तो इि क्रोि को छोडो! ‘

वह आदमी िंन्यािी हो गया। उिने अपने बि फेंक ठदये और नंग हो गया! और उिने कहा,
‘मुझे ठदक्षा दें , मैं सशष्य हुआ। ”

मतु न बहुत है रान हुए। बहुत लोग उन्होंने दे खे थे, पर ऐिा िंकल्पवान आदमी नहीं दे खा था,
जो इतनी शीध्रता िे िंन्यािी हो जाये। उन्होंने कहा, ‘‘तू तो अदभत ु है तेरा िंकल्प महान है ।
तू इतना तीव्रता िे िंन्यािी होने को तैयार हो गया है , िब छोड्कर! ”

लेककन, उन्हें भी पता नहीं कक यह भी क्रोि का ही दि


ू रा रूप है । वह आदमी, जो कक अपनी
पली को क्रोि में आकर एक क्षण में कुएं में िक्का दे िकता है , वह क्रोि में आकर एक क्षण
में नंगा भी खडा हो िकता है ? िंन्यािी भी हो िकता है । इन दोनों बातों में प्रवरोि नहीं है ।
यह एक ही क्रोि के दो रूप हैं।

तो वे मतु न बहुत िभाप्रवत हुए उििे। उन्होंने उिे दीक्षा दे दी और उिका नाम रखा ठदया-
मुतन शांततनाथ। अब वह मुतन शांततनाथ हो गया। और भी सशष्य थे मुतन के, लेककन उि
शांततनाथ का मुकाबला करना बहुत मुज‍कल था, क्योंकक उतने क्रोि में उनमें िे कोई भी नहीं
था। दिू रे सशष्य ठदन में अगर एक बार भोजन करते तो शांततनाथ दो ठदन तक भोजन ही
नहीं करते थे….। क्रोिी आदमी कुछ भी कर िकता है !

दि
ू रे अगर िीिे रास्ते िे चलते, तो मतु न शांततनाथ उलटे रास्ते, कांटों िे भरे रास्ते पर चलते!
दि
ू रे सशष्य अगर छाया में बैिते, तो मतु न शांततनाथ िप
ू में ही खडे रहते! थोडे ही ठदनों में
मतु न शांततनाथ का शरीर िख
ु गया, कृश हो गया, काला पड गया, पैर में र्ाव पड गये; लेककन
उनकी कीततघ फैलनी शरू
ु हो गयी चारों ओर, कक मतु न शाजन्तनाथ महान तपस्वी हैं….।

वह िब क्रोि ही था, जो स्वयं पर लौट आया था। वह क्रोि, जो दि


ू रों पर िगट होता रहा था,
अब वह उत ‘। पर ही िगट हो रहा था।

िौ में िे तनन्यानबे तपस्वी स्वयं पर लौटे हुए क्रोि का पररणाम होते हैं। दि ू रों को िताने
की चेष्टा रूपांतररत होकर खद ु को िताने की चेष्टा भी बन िकती है । दि ू रों को भी िताया
जा िकता है और खद
ु को भी िताया जा िकता है । िताने में अगर रि हो, तो स्वयं को भी
िताया जा िकता है ।

.,.. अब उिने दि
ू रों को िताना बन्द कर ठदया था, अब वह अपने को ही िता रहा था। और
पहली बार एक नयी र्टना र्टी थी : कक दि
ू रों को िताने पर लोग उिका अपमान करते थे
और अब खद
ु को िताने िे लोग उिका िम्मान करने लगे थे! अब लोग उिे महातपस्वी
कहने लगे थे!

मुतन की कीततघ िब ओर फैलती गयी। जजतनी उिकी कीततघ फैलती गयी, वह अपने को उतना
ही िताने लगा, अपने िाथ दष्ु टता करने लगा। जजतनी उिने स्वयं िे दष्ु टता की, उतना ही
उिका िम्मान बढता चला गया। दो-चार वषों में गुरु िे ज्यादा उिकी िततष्िा हो गयी।

कफर वह दे श की राजिानी में आया..। मतु नयों को राजिानी में जाना बहुत जरूरी होता है ।
अगर आप मुतनयों को दे खना चाहते हो, तो ठहमालय पर जाने की कोई जरूरत नहीं है , दे श
की राजिानी में चले जाइए और वहां िब मुतन और िब िंन्यािी अड्डा जमाये हुए समल
जायेंगे।
….. वे मुतन भी राजिानी की तरफ चले। राजिानी में पुराना एक समर रहता था। उिे खबर
समली तो वह बहुत है रान हुआ कक जो आदमी इतना क्रोिी था, वह शांततनाथ हो गया! बडा
िमझदार है , जाऊं दशघन कर आऊं।

वह समर दशघन करने आया। मुतन अपने तख्त पर िवार थे। उन्होंने समर को दे ख सलया, समर
को पहचान भी गये-लेककन जो लोग तख्त पर िवार हो जाते हैं, वे कभी ककिी को आिानी
िे नहीं पहचानते; क्योंकक पुराने ठदनों के िाथी को पहचानना िीक भी नहीं होता। क्योंकक वह
भी कभी वैिे ही रहे हैं, इिका पता चल जाता है ।

दे ख सलया, पहचाना नहीं। समर भी िमझ गया कक पहचान तो सलया है , लेककन कफर भी
पहचानने में गडबड है । आदमी ऊपर चढता ही इिसलए है कक जो पीछे छूट जाये, उनको
पहचाने न। और जब बहुत िे लोग उिको पहचानने लगते हैं, तो वह िबको पहचानना बंद
कर दे ता है । पद के सशखर पर चढने का रि ही यही है कक उिे िब पहचानें , लेककन वह
ककिी को नहीं पहचाने।

समर पाि िरक आया और उिने पूछा कक ‘‘मुतन जी क्या मैं पूछ िकता हूं- आपका नाम
क्या है ?” मुतन जी को क्रोि आ गया। ‘‘क्या अखबार नहीं पढते हो, रे डडयो नहीं िुनते हो, मेरा
नाम पूछते हो? मेरा नाम जग-जाठहर है , मेरा नाम मुतन शांततनाथ है । ”

उनके बताने के ढं ग िे समर िमझ गया, कक कोई बदलाहट नहीं हुई है । आदमी तो वही का
वही है , सिफघ नंगा खडा हो गया है ।

दो समनट दि
ू री बात चलती रही। समर ने कफर पूछा- ‘‘महाराज, मैं भूल गया-आपका नाम
क्या है ?” मुतन की आंखों िे तो आग बरिने लगी। उन्होंने कहा- ‘‘छू! नािमझ! इतनी जल्दी
भल
ू गया। अभी मैंने तझ
ु िे कहा था, मेरा नाम मतु न शांततनाथ है ।… मेरा नाम है -मतु न
शांततनाथ। ”

दो समनट तक कफर दि
ू री बातें चलती रहीं। कफर उिने पूछा कक ‘‘महाराज, मैं भूल गया,
आपका नाम क्या है ?” मुतन ने डंडा उिा सलया और कहा, ‘‘चप
ु नािमझ! तझ
ु े मेरा नाम
िमझ में नहीं आता? मेरा नाम है मुतन शांततनाथ। ”

उि समर ने कहा, ” अब िब िमझ गया हूं। सिफघ वही िमझ में नहीं आया, जो मैं पछ
ू ता हूं।
अच्छा नमस्कार! आप वही के वही है , कोई फकघ नहीं पडा।
दमन िे कभी कोई फकघ नहीं आता है , लेककन दमन िे चीजें स्वप्न बन जाती हैं। और स्वप्न
बन जाना बहुत खतरनाक है , क्योंकक बदली हुई शक्ल में उनको पहचानना भी मुज‍कल हो
जाता है । आदमी के भीतर िेक्ि है , काम-वािना है , उिे पहचानना िरल है ; और अगर आदमी
ब्रह्मचयघ िािने की जबदघ स्ती कोसशश में लग जाये, तो उि ब्रह्मचयघ के पीछे भी िेक्यूअसलटी
होगी, कामुकता होगी। लेककन,उिको पहचानना बहुत मुज‍कल हो जायेगा, क्योंकक वह अब वस्र
बदल कर आ जायेगी। ब्रह्मचयघ तो वह है , जो धचत्त के पररवतघन िे उपलब्ि होता है , जो
जीवन के अनभ
ु व िे उपलब्ि होता है ।

एक शांतत वह है , जो जीवन की अनुभूतत िे छाया की तरह आती है और एक शांतत वह है ,


जो क्रोि दबाकर ऊपर िे थोप ली जाती है ।

जो भीतर वािना को दबाकर, उिकी गदघ न को पकड कर खडा हो जाता है , ऐिा ब्रह्मचयघ
कामक
ु ता िे भी बदतर है ; क्योंकक कामक
ु ता तो पहचान में भी आती है , पर ऐिा ब्रह्मचयघ
पहचान में भी नहीं आता।

द‍ु मन पहचान में आता हो तो उिके िाथ बहुत कुछ ककया भी जा िकता है , और यठद
द‍ु मन ही पहचान में न आ पाये, तब बहुत कठिनाई हो जाती है ।

मैं एक िाध्वी के पाि िमुि के ककनारे बैिा हुआ था। वह िाध्वी मुझिे परमात्मा की और
आआ की बातें कर रही थी….।

हम िभी बातें आत्मा-परमात्मा की करते हैं, जजििे हमारा कोई भी िंबंि नहीं है । और जजन
बातों िे हमारा िंबंि है , उनकी हम कोई बात नहीं करते। क्योंकक वे छोटी-छोटी और क्षुि
बातें है । हम आकाश की बातें करते हैं, प्
ृ वी की बातें नहीं करते। जजि प्
ृ वी पर चलना
पडता है -और जजि प्
ृ वी पर जीना पडता है - और जजि प्
ृ वी पर जन्म होता है - और जजि
प्
ृ वी पर लाश धगरती है अंत में , उिे प्
ृ वी की हम बात नहीं करते! हम बात आकाश की
करते है , जहां न हम जी रहे हैं, न रह रहे है ! हम दोनों आत्मा-परमात्मा की बात कर रहे
थे….।

आत्मा-परमात्मा की बात आकाश की बात है ।

….. कक हवा का एक झोंका आया और मेरी चादर उडी और िाध्वी को छू गयी, तो वह


एकदम र्बडा गयी। मैंने पूछा, ‘‘क्या हुआ?”

उिने कहा, ”पुरुष की चादर! पुरुष की चादर छूने का तनषेि है ।”


मैं तो बहुत है रान हुआ। मैंने कहा, ‘‘क्या चादर भी पुरुष और िी हो िकती है ? तब तो यह
चमत्कार है ! कक चादर भी िी और पुरुष हो िकती है ..?.। ”

लेककन ब्रह्मचयघ के िािकों ने चादर को भी स्री-पुरुष में पररवततघत कर ठदया है । यह


िेक्िुअसलटी की अतत हो गयी, कामुकता की अतत हो गयी।

.. मैंने कहा, ” अभी तो तुम आत्मा की बातें करती थीं, और अभी तुम शरीर हो गयीं! अभी
तुम चादर छू जाने िे चादर हो गयीं? अभी, थोडे िमय पहले तो तुम आत्मा थीं, अब तुम
शरीर हो गयी चादर हो गयीं ”! अब यह चादर भी िेक्ि-सिम्बल बन गयी, अब यह भी काम
की ितीक बन गयी। हवाओं को क्या पता कक चादर भी परु
ु ष होती है , अन्यथा हवाएं भी
चादरों के तनयमों का ध्यान रखतीं। यह तो गलती हो गयी चादर के ितत हवाओं िे।

वे कहने लगीं, ‘‘िायज‍चत करना होगा, उपवाि करना होगा। ”

मैंने उिे कहा, ‘‘करो उपवाि जजतना करना हो, लेककन चादर के स्पशघ िे जजिको िी और
परु
ु ष का भाव पैदा हो जाता हो, उिका धचत्त ब्रह्मचयघ को कभी उपलब्ि नहीं हो िकता..। ”

लेककन नहीं, हम इिी तरह के ब्रह्मचयघ को पकडे रहें गे; इिी तरह की झूिी बातों को; इिी
तरह की नैततकता को। इि तरह का िमघ िब झूिा है । दमन जहां है , वहां िब झूिा है ।
भीतर कुछ और हो रहा है , बाहर कुछ और हो रहा है ।

… अब इि िाध्वी को ठदखायी ही नहीं पड िकता कक यह अतत कामुकता है । यह रुग्ण


कामुकता हो गयी; यह बीमार जस्थतत हो गयी कक चादर भी िी और पुरुष होती है ! जजि
ब्रह्मचयघ में पुरुष और िी न समट गये हों, वह ब्रह्मचयघ नहीं है ।

कुछ युवा एक राबर एक वे‍या को िाथ लेकर िागर तट पर आये। उि वे‍या के वि


छीनकर उिे नंगा कर ठदया और शराब पीकर वे नाचने-गाने लगे। उन्हें शराब के नशे में डूबा
दे खकर वह वे‍या भाग तनकली। रात जब उन यव
ु कों को होश आया, तो वे उिे खोजने
तनकले। वे‍या तो उन्हें नहीं समली, लेककन एक झाडी के नीचे बद्
ु ि बैिे हुए उन्हें समले। वे
उनिे पछ
ू ने लगे ‘‘महाशय, यहां िे एक नंगी िी को, एक वे‍या को भागते तो नहीं दे खा?
रास्ता तो यही है । यहीं िे ही गज
ु री होगी। आप यहां कब िे बैिे हुए हैं?”

बुद्ि ने कहा, ‘‘यहां िे कोई गुजरा जरूर है , लेककन वह िी थी या पुरुष, यह मुझे पता नहीं
है । जब मेरे भीतर का परु
ु ष जागा हुआ था, तब मुझे िी ठदखायी पडती थी। न भी दे खूं तो
भी ठदखायी पडती थी। बचना भी चाहूं तो भी ठदखायी पडती थी। आंखें ककिी भी जगह और
कहीं भी कर लूं तो भी ये आंखें िी को ही दे खती थीं। लेककन जब िे मेरे भीतर का पुरुष
प्रवदा हो गया है , तबिे बहुत खयाल करूं तो ही पता चलता है कक कौन िी है , कौन पुरुष है ।
वह कौन था, जो यहां िे गुजरा है , यह कहना मुज‍कल है । तुम पहले क्यों नहीं आये? पहले
कह गये होते कक यहां िे कोई तनकले तो ध्यान रखना, तो मैं ध्यान रख िकता था।

और यह बताना तो और भी मुज‍कल है कक जो तनकला है , वह नंगा था या वस्र पहने हुए


था। क्योंकक, जब तक अपने नंगेपन को तछपाने की इच्छा थी, तब तक दि
ू रे के नंगेपन को
दे खने की भी बडी इच्छा थी। लेककन, अब कुछ दे खने की इच्छा नहीं रह गयी है । इिसलए,
खयाल में नहीं आता कक कौन क्या पहने हुए है ….। ” दि ू रे में हमें वही ठदखायी दे ता है , जो
हममें होता है । दि
ू रे में हमें वही ठदखायी दे ता है , जो हममें है । और दि ू रा आदमी एक दपघण
की तरह काम करता है , उिमें हम ही ठदखायी पडते हैं।

बद्
ु ि कहने लगे, ” अब तो मझ
ु े याद नहीं आता, क्योंकक ककिी को नंगा दे खने की कोई
कामना नहीं है । मझ
ु े पता नहीं कक वह कपडे पहने थी या नहीं पहने थी। ” वे यव
ु क कहने
लगे, ‘‘हम उिे लाये थे अपने आनंद के सलए। लेककन, वह अचानक भाग गयी है । हम उिे
खोज रहे हैं। ”

बुद्ि ने कहा, ‘‘तुम जाओ और उिे खोजो। भगवान करे , ककिी ठदन तुम्हें यह खयाल आ
जाये, कक इतनी खब
ू िूरत और शांत रात में अगर तुम ककिी और को न खोज कर अपने को
खोजते, तो तुम्हें वास्तप्रवक आनंद का पता चलता। लेककन, तुम जाओ और खोजो दि
ू रों को।
मैंने भी बहुत ठदन तक दि
ू रों को खोजा, लेककन दि
ू रों को खोजकर मैंने कुछ भी नहीं पाया।
और जब िे अपने को खोजा, तब िे वह िब पा सलया है , जजिे पाकर कोई भी कामना पाने
की शेष नहीं रहती। ” यह बद्
ु ि ब्रह्मचयघ में रहे होंगे। लेककन, चादर परु
ु ष हो जाये तो
ब्रह्मचयघ नहीं है ।

और यह दभ
ु ाघग्य है कक दमन के कारण िारे दे श का व्यजक्तत्व कुरूप, प्रवकृत, परवटें ड हो गया
है । एक-एक आदमी भीतर उलटा है , बाहर उल्टा है । भीतर आत्मा शीषाघिन कर रही है । भीतर
हम िब सिर के बल खडे हुए है । जो नहीं है भीतर, वह हम बाहर ठदखला रहे हैं। और दि ू रे
िोखे में आ जायें, इििे कोई बहुत हजाघ नहीं है ; स्वयं ही िोखा खा जाते हैं। लम्बे अिे में
हम यह भूल ही जाते हैं कक हम यह क्या कर रहे हैं।

दमन, मनुष्य की आत्मा की अिसलयत को तछपा दे ता है और झूिा आवरण पैदा कर लेता है ।


और, कफर इि दमन में हम, जजंदगी भर जजिे दमन ककया है , उििे ही लडकर गुजारते हैं।
ब्रह्मचयघ की िािना करने वाला आदमी चौबीि र्ंटे िेक्ि िेंटर में ही जजंदगी व्यतीत करता
है । उपवाि करने वाला चौबीि र्ंटे भोजन करता है । आपने कभी उपवाि ककया हो तो
आपको पता होगा।

उपवाि करें और चौबीि र्ंटे भोजन करना पडेगा। हां, भोजन मानसिक होगा, शारीररक नहीं।
लेककन, शारीररक भोजन का कुछ फायदा भी हो िकता है , मानसिक भोजन का सिवाय
नुकिान के और कोई भी फायदा नहीं है । जजिने ठदन भर खाना नहीं खाया है , वह ठदन भर
खाने की इच्छा िे भरा हो, यह स्वाभाप्रवक है ।

नहीं, उपवाि का यह अथघ नहीं है कक आदमी खाना न खाये। उपवाि का अथघ अनाहार नहीं
है । अनाहार करने वाला ठदन भर आहार करता है । उपवाि का अथघ दि
ू रा है । दमन नहीं है
उपवाि का अथघ; लेककन दमन ही उिका अथघ बन गया है । उपवाि का अथघ भोजन ‘न-करना’
नहीं है ।

उपवाि का अथघ है : आत्मा के तनकट आवाि।

और, आत्मा के तनकट कोई इतना पहुंच जाये कक उिे भोजन का खयाल ही न आये, तो वह
बात ही दि
ू री है ; कोई इतने भीतर उतर जाये कक बाहर का पता भी न चले कक शरीर भूखा
है , वह बात दि
ू री है ; कोई इतने गहरे में चला जाये कक शरीर को प्याि लगी है कक भूख लगी
है , भीतर इिकी खबर ही न पहुंचती हो, तो यह बात दि
ू री है । लेककन कोई- भोजन नहीं
छुऊंगा-ऐिा िंकल्प करके बैि जाये, तो ठदन भर उिको भोजन करना पडता है ; वह उपवाि में
नहीं होता।

दमन, िोखा पैदा करता है ।

दमन, वह जो अिसलयत है -उपलजब्ि की, अनुभूतत की; वह जो ित्य है , उिकी तरफ बबना ले
जाये बाहर पररधि पर ही िब नष्ट करके जबदघ स्ती कुछ पैदा करने की कोसशश करता है ।
और यह कोसशश बहुत महं गी पड जाती है ।

ठहन्दस्
ु तान में ब्रह्मचयघ की बात चल रही है तीन-चार हजार वषघ िे। और इि बात को कहने
में मझ ू पडती ककं आज इि प्
ु े जरा भी अततशयोजक्त नहीं मालम ृ वी पर हमिे ज्यादा कामक

कोई िमाज नहीं है । चौबीि र्ंटे हम काम िे लड रहे हैं। छोटे बच्चे िे लेकर मरते हुए बढ
ू े
तक की िेक्ि िे लडाई चल रही है । और जजििे हम लडते हैं , वही हमारे भीतर र्ाव की
तरह हो जाता है।
कोररया में दो फकीर हुए हैं, मैंने उनके जीवन के बारे में पढा था। दो सभक्षु एक ठदन शाम
अपने आश्रम वापि रहे हैं। उनमें एक बढ ू ा सभक्षु है , एक युवा सभक्षु है । आश्रम के पहले ही
एक छोटी-िी पहाडी नदी पडती है । िांझ हो गयी है , िूरज ढल रहा है । एक युवती खडी है
उिी नदी के ककनारे । उिे भी नदी पार होना है । लेककन डरती है , क्योंकक नदी अनजान है ,
पररधचत नहीं है ; पता नहीं, ककतनी गहरी हो? इिसलए भयभीत है ।

वह बूढा सभक्षु आगे-आगे आ रहा है । उिको भी िमझ में पड गया है कक वह िी पार होने के
सलए, शायद ककिी का िहारा चाहती है । बूढे सभक्षु का मन हुआ है कक हाथ िे िहारा दे कर
उिे नदी पार करवा दे । लेककन थ का िहारा दे ने का खयाल भर ही उिे आया है कक भीतर
वषों की दबी हुई वािना एकदम खडी हो गयी है । युवती के हाथ को छूने की कल्पना िे
उिके भीतर, जैिे उिकी नि-नि में , रग-रग में बबजली दौड गयी है । तीि वषघ िे िी को
नहीं छुआ है उिने। और अभी तो सिफघ छूने का खयाल ही आया है उिे, कक युवती को हाथ
का िहारा ‘दे दे , लेककन िारे िाण कंप गये हैं उिके। एक तरह के बुखार ने उिके िारे
व्यजक्तत्व को र्ेर सलया है । वह अपने मन को िमझाया उिने कक, ‘‘यह कैिी गंदी बात
िोची, कैिे पाप की बात िोची! मुझे क्या मतलब है ? कोई नदी पार हो या न हो, मुझे क्या
ियोजन है ? मैं अपना जीवन क्यों बबगाडू अपनी िािना क्यों बबगाडू?ं इतनी कीमती िािना,
तीि वषघ की िािना, इि लडकी पर लगा दं .ू .,। ”

बडी बहुमूल्य िािना चल रही थी; और ऐिी ही बहुमूल्य िािना के िहारे लोग मोक्ष तक
पहुंचना चाहते हैं! ‘ही कीमती और मजबूत िािना के पुण्य पर चढकर लोग परमात्मा की
यारा करना चाहते हैं!

…. आंख बंद कर लीं थी उिने, लेककन वह िी तो आंख बंद करने पर भी ठदखायी पडने लगी;
बहुत जोर िे ठदखाई पडने लगी। क्योंकक मन जाग गया था; िोयी हुई वािना जाग गयी थी।
आंख बंद करके ही वह नदी में उतरा…।

अब यह आपको पता होगा कक जजि चीज िे आंख बंद कर ली जाये, वह उतनी िुंदर कभी
नहीं होती, जजतनी आंख बंद होने पर होती है । आंख बंद करने िे वह ज्यादा िुंदर ितीत
होती है ।

आंख बंद की उिने और वह िी अप्िरा हो गयी.?.!

अप्िराएं इिी तरह पैदा होती हैं। बंद आंख िे वे पैदा हो जाती है ।

दतु नया में सिफघ जस्रयां हैं, आंख बंद करो कक वे ही अप्िराएं हो जाती है ।
अप्िराएं कहीं भी नहीं हैं; लेककन आंख बंद होते ही िी अप्िरा हो जाती है ! मन में एकदम
िे कामुकता पैदा हो जाती है ; फूल खखल जाते हैं; चांदनी फैल जाती है । एक ऐिी िुगंि फैल
जाती है मन में , जो िी में कहीं भी नहीं है ; जो सिफघ आदमी की काम-वािना के िपने में
होती है । आंखें बंद करते ही िपना शुरू हो जाता है ।

…. अब वह सभक्षु उि िी को ही दे ख रहा है । अब एक ड्रीम, एक िपना शुरू हो गया है । अब


वह िी उिे बुला रही है । उिका मन कभी कहता है कक यह तो बडी बुरी बात है कक ककिी
अिहाय िी को िहारा न दो। कफर तत्काल उिका दि
ू रा मन कहता है कक यह िब बेईमानी
है , अपने को िोखा दे ने की तरकीब कर रहे हो। यह िेवा वगैरह नहीं है , तुम िी को छूना
चाहते हो…।

बडी मजु ‍कल है स्री। िािओ


ु ं की बडी मजु ‍कल होती है । काम है भीतर, तनाव है भीतर। िारा
िाण पीछे लौट जाना चाहता है , और वह दमन करने वाला मन आगे चले आना चाहता है ।

नदी के छोटे -िे र्ाट पर वह आदमी भीतर दो ठहस्िों में बंट गया है ; एक ठहस्िा आगे जा
रहा है , एक ठहस्िा पीछे जा रहा है । उिकी अशांतत, उिका टें शन, उिकी तकलीफ, भारी हो
गयी है । आिा ठहस्िा इि तरफ जा रहा है , आिा ठहस्िा उि तरफ जा रहा है । ककिी तरह
खींच-तान कर वह पार हुआ है । आंख खोलकर दे खना चाहता है , लेककन बहुत डरा हुआ है।
भगवान का नाम लेता है , जोर-जोर िे भगवान का नाम लेता है -नमो: बुद्िाय, नमो:
बुद्िाय…! भगवान का नाम आदमी जब भी जोर-जोर िे ले, तब िमझ लेना कक भीतर कुछ
गडबड है । भीतर की गडबड को दबाने के सलए आदमी जोर-जोर िे भगवान का नाम लेता है ।

आदमी को िं ड लग रही है , नदी में नहाते वक्त, तो ‘िीता-राम, िीता-राम ‘ का जाप करने
लगता है । बेचारे िीता-राम को क्यों तकलीफ दे रहे हो! पर वह िं ड जो लग रही है । िीता-
राम उि िं ड को भुलाने की तरकीब है । अंिेरी गली में आदमी जाता है और कहता है , ‘
अल्लाह ई‍वर तेरे नाम’! वह अंिेरे की र्बडाहट िे बचने की कोसशश है ।

जो आदमी परमात्मा के तनकट जाता है , वह धचल्ल-पों नहीं करता है भगवान के नाम की; वह
चप
ु हो जाता है । जजतने भी धचल्ल-पों और शोर गल
ु मचाने वाले लोग हैं, िमझ लेना कक
उनके भीतर कुछ और चल रहा है ; भीतर काम चल रहा है , और ऊपर राम का नाम चल रहा
है ।

… भीतर उिे औरत खींच रही है और वह ककिी तरह भगवान का िहारा लेकर आगे बढा जा
रहा है -कक कहीं ऐिा न हो कक औरत मजबूत हो जाये और नीचे खींच ले।
और उि बेचारी को पता भी नहीं कक िािु ककि मुिीबत में पड गया है । वह अपने रास्ते पर
खडी है । तभी उि िािु को खयाल आया कक पीछे उिका जवान िािु कहां है । लौटकर उिने
दे खा, कक उिको िचेत कर दे , कक वह कहीं उि पर दया करने की भूल में न पड जाये।
लेककन लौटकर उिने दे खा तो भूल हो चक
ु ी थी। वह जवान सभक्षु उि औरत को कंिे पर
सलए नदी पार कर रहा था। वह दे खकर आग लग गयी उि बूढे िािु को। न-मालूम कैिा-
कैिा मन होने लगा उिका। कई बार उिके मन में होने लगा कक ककतना अच्छा होता, अगर
मैं भी उिे कंिा लगाये होता! कफर उिने स्वयं को खझड्का, ‘यह क्या पागलपन की बात, मैं
और उि औरत को कंिे पर ले िकता हूं? तीि िाल की िािना नष्ट करूंगा? गंदगी का ढे र
है औरत का शरीर, तो उिको कंिे पर लंग
ू ा?

नकघ का द्वार है िी, और उिको कंिे पर सलया है ?’

लेककन वह दि ू रा सभक्षु सलए आ रहा है । आग लग गयी उिे! आज जाकर गरु ु को कहूंगा कक


यह यवु क, भ्ष्ट हो गया, पततत हो गया; इिे तनकालो आश्रम के बाहर। ‘ उि सभक्षु ने उि
युवती को ककनारे पर छोड ठदया और अपने रास्ते चल पडा। कफर वे दोनों चलते रहे , लेककन
बूढे ने कोई बात न की। जब वे आश्रम के द्वार की ओर बढ रहे थे तो उि बूढे सभक्षु ने
िीठढयों पर खडे होकर कहा, ‘‘याद रखो, मैं चलकर गुरु को कहूंगा कक तुम पततत हो चक ु े हो।
तुमने उि स्री को कंिे पर क्यों उिाया न: ‘‘ वह सभक्षु एकदम िे चौंका। उिने कहा, ‘‘स्री!
उिे मैने उिाया था और नदी पार छोड भी ठदया। लेककन ऐिा मालूम होता है कक आप उिे
अभी भी कंिे पर सलए हुए हैं!’‘‘ ‘यु आर जस्टल कैररग हर आन योर शोल्डर। आप अभी भी
ढो रहे हैं उिे कंिे पर! मैं तो उिे उतार भी आया। और आपने तो उिे कंिे पर कभी सलया
भी नहीं था; आप अभी तक ढो रहे हैं? मैं तो र्ंटे भर िे िोचता था कक आप ककिी ध्यान में
लीन हैं। मुझे यह खबर भी न थी कक आप ध्यान कर रहे हैं उि युवती का-कक उि स्री को
नदी के पार करा रहे है , अब तक! ”

यह तो मैंने कहानी िन
ु ी थी। िीक ऐिी ही कहानी अभी मेरे िाथ हो गयी है ठदल्ली में , वह
आप लोगों को बताऊं।

एक मठहला आयी और मुझिे उिने पूछा, ‘‘मैं यहां िहर जाऊं आपके पाि?” मैंने कहा,
‘‘बबलकुल िहर जाओ।

मुझे पता नहीं था कक मनु भाई पटे ल को बडी तकलीफ हो जायेगी इि बात िे। अगर मुझे
पता होता तो िंिद-िदस्य को मैं तकलीफ नहीं दे ता। मैं ककिी को तकलीफ नहीं दे ना
चाहता। कहता, ‘‘दे वी, तुम्हारे िहरने िे मुझे तकलीफ नहीं हैं, लेककन मनु भाई पटे ल को, बडौदा
वालों को तकलीफ हो जायेगी। और ककिी को तकलीफ दे ना अच्छा नहीं है । तो तुम्हें िहरना
है तो जाओ, मनु भाई के कमरे में िहर जाओ; यहां मेरे पाि ककि सलए िहरती हो। ”

लेककन मुझे पता ही नहीं था। पता होता तो यह भूल न होती। यह भूल हो गयी अज्ञान में ।
वह आकर िो गई मेरे कमरे में , लेककन दि
ू रे ठदन बडी तकलीफ हो गयी। मुझे पता चला कक
मनु भाई को और उनके समरों को बहुत कष्ट हो गया है इि बात िे कक मेरे कमरे में वह
िो गयी। मैं तो है रान हुआ कक वह मेरे कमरे में िोयी, तकलीफ उनको हो गयी!

लेककन आदमी कंिे पर उन चीजों को ढोने लगता है , जजनको लेकर उिके भीतर कोई लडाई
जारी रहती है । पता नहीं चलता, खयाल में नहीं आता कक यह िब भीतर क्या हो रहा है । तो
मैंने िोचा कक वह मनु भाई मझु े समलें तो उनिे कहूं कक ‘िर, यू आर जस्टल कैररग हर आन
योर शोल्डर?’ अभी भी ढो रहे हैं उि औरत को अपने कंिों पर? मैने उनको वहीं ठदल्ली में
कहा कक मनु भाई, पीछे तकलीफ होगी। पीछे यह बात चलेगी, समटने वाली नहीं है । तो यह
बात अभी कर लें िबके िामने। तो उन्होंने कहा, ‘‘क्या बात करनी है ; कुछ हजाघ नहीं; जो हो
गया, हो गया।”

लेककन मैं जानता था, बात तो उिे गी; बात तो करनी ही पडेगी। कफर वे िंिद-िदस्य हैं।
िंिद-िदस्य को मुझ जैिे फकीरों के आचरण का ध्यान रखना चाठहए, नहीं तो मुल्क का
आचरण बबगाड दें गे।

और कफर ऐिे िंिद-िदस्य हैं, इिसलए तो मुल्क का आचरण इतना अच्छा है , नहीं तो कभी
भी बबगड जाता! िन्य भाग है , हमारे मुल्क का आचरण ककतना अच्छा है , अच्छे िंिद-
िदस्यों के कारण! जो पता लगाते हैं कक ककिके कमरे में कौन िो रहा है ! इिका ठहिाब
रखते हैं! ये लोक-िेवक हैं! लोक-िेवक ऐिा ही होना चाठहए। मुझे तो जैिे खबर समली, मैंने
िोचा कक इि बार इलेक्ट्ान के वक्त अगर मुझे वक्त समला तो जाऊंगा बडौदा में , लोगों िे
कहूंगा कक मनु भाई को ही वोट दे ना, इि तरह के लोगों की वजह िे दे श का चररर ऊंचा है ।
लेककन, यह जो ठदमाग है , यह ठदमाग कहां िे पैदा होता है ? यह ठदमाग कहां िे आता है ? यह
भीतर क्या तछपा हुआ है…?

यह भीतर है , दमन की लम्बी परम्परा। यह एक आदमी का िवाल नहीं है । यह हमारे परू े


जातीय िंस्कार का िवाल है ; यह मनु भाई का िवाल नहीं है । वह तो ितततनधि हैं-हमारे और
आपके; हमारी िब बीमाररयों के-वह जो हमारे भीतर तछपा है , उिके। हमारे भीतर क्या तछपा
है …?
हमने एक अजीब ििेशन की िारा में अपने को जोड रखा है ! दबा रहे हैं , िब! वह दबाया
हुआ र्ाव हो जाता है । वह र्ाव पीडा दे ता है । उि र्ाव की वजह िे हमें बाहर वही-वही
ठदखायी पडने लगता है , जो-जो हमारे भीतर है । िारा जगत एक दपघण बन जाता है ।

यह ििेशन की लम्बी िारा, यह दमन की लम्बी यारा व्यजक्तत्व को नष्ट करती है । इिने
जीवन के स्रोतों को पॉयजन िे भर ठदया है , जहर िे भर ठदया है । जीवन के िारे स्रोत प्रवकृत
और कुरूप हो गये हैं। इिसलए यh तीिरा िूर आपिे कहना चाहता हूं कक दमन िे बचना।

अगर जीवन को और ित्य को जानना हो, और कभी िभु के, परमात्मा के द्वार पर दस्तक
दे नी हो, तो दमन िे बचना।

क्योंकक दमन करने वाला धचत्त परमात्मा तक कभी नहीं पहुंचता। वह वहीं रुक जाता है , जहां
दमन करता है । उिको वहीं िहरना पडता है , क्योंकक जरा-िा भी हटा कक दमन उखड जायेगा
और जजिको दबाया है , वह िकट होना शुरू हो जायेगा।

अगर आप एक आदमी की छाती पर िवार हो गये हैं तो कफर आप उिको छोड्कर नहीं जा
िकते, क्योंकक छोड्कर आप जैिे ही गये कक वह आपके ऊपर हमला कर दे गा। अगर ककिी
आदमी की छाती पर आप िवार हो गये तो आप िमझना कक जजतना आपने उिे दबा रखा
है , उििे भी ज्यादा आप उििे दब गये हैं! क्योंकक आप छोड्कर उििे नहीं हट िकते।

मनुष्य जजन चीजों को दबा लेता है , उन्हीं के िाथ बंि जाता है । वह उनको छोड्कर हट नहीं
िकता और कहीं भी नहीं जा िकता। इिसलए दमन िे अक्िर िािक को िाविान रहना
चाठहए।

दमन, पैदा करे गा-पागलपन प्रवक्षक्षप्तताएं इजन्फररअररटी।

जजतने मनि-धचककत्िक हैं, उनिे पतू छए, वे क्या कहते हैं। वे कहते हैं, िारी दतु नया पागल हुई
जा रही ३ दमन के कारण। पागलखाने में िौ आदमी बंद हैं, उनमें अ्िानबे आदमी दमन के
कारण बंद हैं जजन्होंने बहुत जोर िे दबा सलया है । एक प्रवस्फोट की आग को भीतर रख
सलया है । वह प्रवस्फोट फूटना चाहता है , वह िारक व्यजक्तत्व को ककिी ठदन तोड दे ता है ;
ककिी ठदन खंड-खंड बबखेर दे ता है िारे मकान को। एक ठदन आदमी बबखर कर, टूट कर खडा
हो जाता है ।

इिसलए, जजतना आदमी िभ्य होता चला जा रहा है , उतना ही पागल होता जा रहा है , क्योंकक
िभ्यता का िूर दमन है ।
नहीं, स्वभाव को अगर जानना है , तो दमन िे वह नहीं जाना जा िकता।

लेककन, तब आप पूछेंगे कक जब क्रोि आये तो क्रोि करना चाठहए? वािना आये तो वािना
भोगनी चाठहए क्या आप लोगों को वािना में डूब जाने के सलए कहते हैं..?

बबलकुल नहीं, जरा भी नहीं कहता हूं। दमन िे बचने को कह रहा हूं अभी भोग करने को
नहीं कह रहा हूं।

अभी एक िूर िमझ लें, कल दि


ू रे िूर की बात करें गे।

दमन िे बचने का अथघ : भोग में कूद जाना नहीं है । अतनवायघरूपेण वही एक आल्टरनेठटव
नहीं है । और प्रवकल्प भी है । उि प्रवकल्प पर हम कल बात करें गे। इिसलए जल्दी िे नतीजा
लेकर र्र मत लौट जाना। मेरी बातों िे जल्दी नतीजा नहीं लेना चाठहए, नहीं तो बडी
मजु ‍कल हो जाती है ।

दमन नहीं, खद
ु के व्यजक्तत्व िे िंर्षघ नहीं, खद
ु के व्यजक्तत्व िे द्वंद्व नहीं-क्योंकक खद
ु के
व्यजक्तत्व िे द्वंद्व का अथघ है , जैिे मैं अपने दोनों हाथों को आपि में लडाने लग। कौन
जीते, कौन हारे , दोनों हाथ मेरे हैं! दोनों हाथों के पीछे लडने वाली शजक्त मेरी है ! दोनों हाथों
के पीछे मैं हूं। कौन जीतेगा…?

कोई नहीं जीत िकता। मेरे ही दोनों हाथों की लडाई में कोई नहीं जीत िकता; क्योंकक जीतने
वाले दो है ही नहीं। लेककन, एक अदभुत र्टना र्ट जायेगी। जीतेगा तो कोई नहीं-न बायां, न
दायां, लेककन मैं हार जाऊंगा दोनों की लडाई में ; क्योंकक मेरी शजक्त दोनों के िाथ नष्ट होगी।

और, मैं हार जाऊं या शजक्त को क्षीण होने दं -ू जों भी दमन कर रहा है , वह ककिका दमन कर
रहा है …? अपना ही; अपने ही धचत्त के खंडों को दबा रहा है । ककििे दबा रहा है …? धचत्त के
दि
ू रे खंडों िे दबा रहा है । धचत्त के एक खंड िे धचत्त के दि
ू रे खंड को दबा रहा है । खद
ु को
ही, खद
ु िे दबा रहा है !

ऐिा आदमी अगर पागल हो जाये अंततुः, तो आ‍चयघ ही क्या है । वह तो आदमी पागल नहीं
हो पाता, क्योंकक दमन सिखाने वालों की बात पूरी तरह िे कोई भी नहीं मानता है । नहीं तो
िारी मनुष्यता पागल हो जाती। वह दमन सिखाने वालों की बात पूरी तरह िे कोई नहीं
मानता है । और न मानने की वजह िे थोडा-िा रास्ता बचा रहता है कक आदमी बच जाता
है ।
और न मानने की वजह िे, ऊपर िे ठदखलाता है कक मानता हूं; भीतर िे पूरा मानता नहीं,
ऊपर िे ठदखलाता है कक मानता हूं; इिसलए पाखंड और ठहपॉकक्रिी पैदा होती है । ठहपॉकक्रिी
दमन की िगी बहन है । वह जो पाखंड है , वह दमन का चचेरा भाई है । दमन चलेगा, तो
पाखंड पैदा होगा। अगर पाखंड पैदा न होगा, तो पागलपन पैदा होगा। पागलपन िे बचना हो
तो पाखण्डी हो जाना पडेगा। दतु नया को ठदखाना पडेगा। दतु नया को ठदखाना पडेगा ब्रह्मचयघ
और पीछे िे वािना के रास्ते खोजने पडेंगे। दतु नया को ठदखाना पडेगा कक मेरे सलए तो िन
सम्टी है और भीतर गप्ु त मागों िे ततजोररयां बंद करनी पडेगी। वह भीतर िे चलेगा।

लेककन, यह पाखंड बचा रहा है आदमी को, नहीं तो आदमी पागल हो जाये। अगर िीिा-िादा
आदमी दमन के चक्कर में पड जाये तो पागल हो जाए।

ये िाि-ु िंन्यािी बहुत बडे अंश में पागल होते दे खे जाते हैं, इिका कारण आपको मालम
ू है ?

लोग िमझते हैं, भगवान का उन्माद छा गया है । भगवान का कोई उन्माद नहीं होता; िब
उन्माद भीतर के दमन िे पैदा होते है । भीतर दमन बहुत हो तो रोग पैदा हो जाता है ,
उन्माद पैदा हो जाता है , पागलपन पैदा हो जाता लेककन उिको हम कहते है -हषोन्माद,
एक्िटे िी! वह एक्िटे िी वगैरह नहीं है , मैडनेि है ।

या तो आदमी पूरा दमन करे तो पागल होता है , या कफर पाखंड का रास्ता तनकाल ले तो बच
जाता है ।

और पाखंडी होना, पागल होने िे अच्छा नहीं है । पागल में कफर भी एक सिन्िेररठट है , पागल
की कफर भी एक तनष्िा है ; पाखंडी की तो कोई तनष्िा नहीं होती; कोई नैततकता, कोई
ईमानदारी नहीं होती। अपने िे नहीं लडना है । आप अपने िे लडे कक आप गलत रास्ते पर
गये। अपने िे लडना अिासमघक है ।

दमन, ‘मार अिासमघक’ है । दमन मार ने मनुष्य को जजतना नुकिान पहुंचाया है , उतना दतु नया
में और ककिी शरु ने कभी नहीं पहुंचाया। उि ठदन ही मनुष्य पूरी तरह स्वस्थ होता है , जजि
ठदन िारे दमन िे मुक्त हो जाता है ; जजि ठदन उिके भीतर कोई काजन्पलक्ट, कोई द्वंद्व
नहीं होता। जजि ठदन भीतर द्वंद्व नहीं होता है , उि ठदन एक दशघन होता है , जो भीतर है ।

अगर िीक िे िमझें, तो दमन मनष्ु य को प्रवभक्त करता है ; डडव्हाइड करता है । दमन जजि
व्यजक्त के भीतर होगा, वह इनडडवीजुअल नहीं रह जायेगा, वह व्यजक्त नहीं रह जायेगा; वह
प्रवभक्त हो जायेगा, उिके कई टुकडे हो जायेंगे; वह स्कीजोफ्रेतनक हो जायेगा। दमन न हो
व्यजक्त में तो योग की जस्थतत उपलब्ि होती है ।
योग का अथघ है -जोड; योग का अथघ है -इजन्टग्रेट योग का अथघ है - अखण्डता, एक।

लेककन एक कौन हो िकता है ? एक व्यजक्तत्व ककिका हो िकता है ..?

उिका, जो लड नहीं रहा है ; उिका जो अपने को खंड-खंड नहीं तोड रहा है ; जो अपने भीतर
नहीं कह रहा है -यह बुरा है , यह अच्छा है ; इिको बचाऊंगा, उिको छोडूग
ं ा। जजिने भी अपने
भीतर बुरे -अच्छे का भेद ककया, वह दमन में पड जायेगा।

दमन िे बचने का िूर है ; अपने भीतर जो भी है , उिकी पूणघ स्वीकृतत, टोटल एक्िऐबबसलटी।

जो भी है ; िेक्ि है , लोभ है , क्रोि है , मान है -जो भी है भीतर, उिकी िवािंगीण स्वीकृतत


िाथसमक बात है । तो व्यजक्त आत्मज्ञान की तरफ प्रवकसित होगा।

अगर उिने अस्वीकार ककया-कक मैं अस्वीकार करता हूं -उिने कहा कक मैं लोभ को फेंक दं गू ा
-उिने कहा कक मैं क्रोि को फेंक दं ग
ू ा -तो कफर वह कभी भी शान्त नहीं हो पायेगा; इि
फेंकने में ही अशान्त हो जायेगा।

और, इिसलए तो िंन्यािी जजतने क्रोिी और अहं कारी दे खे जाते हैं, उतने िािारण लोग क्रोिी
नहीं होते! िंन्यािी का क्रोि और अहं कार बहुत अदभुत है । दव
ु ाघिा की कथाएं तो हम जानते
हैं।

िंन्यािी में इतना अहं कार कक दो िंन्यािी एक दि


ू रे को समल नहीं िकते; क्योंकक कौन
ककिको पहले नमस्कार करे गा! दो िंन्यािी एक िाथ बैि नहीं िकते; क्योंकक ककिका तख्त
ऊंचा होगा और ककिका नीचा होगा! ये िंन्यािी नहीं, पागल हैं। जो तख्त की ऊंचाई नापने
में लगे हुए हैं, उन्हें परमात्मा की ऊंचाई का पता भी क्या होगा।

मैं कलकत्ते में एक िवघ-िमघ िम्मेलन में बोलने गया था। वहां कई तरह के िंन्यािी, कई
िमो के उन्होंने आमंबरत ककये थे। उन िंयोजकों को क्या पता बेचारों को कक िब िंन्यािी
एक मंच पर नहीं बैिेंगे। कोई उिमे शंकराचायघ हो िकते हैं, वे अपने सिंहािन पर बैिेंगे।
और शंकराचायघ सिंहािन पर बैिे तो दि
ू रा आदमी कैिे नीचे बैि िकता है ! िंयोजकों ने मुझे
आकर कहा कक िबकी खबरें आ रही हैं कक हमारे बैिने का इंतजाम क्या हे ? बच्चों-जैिी बात
मालूम पडती है । जैि,े छोटे -छोटे बच्चे कुिी पर खडे हो जाते है और अपने बाप िे कहते हैं,
‘तुम मुझिे नीचे हो। ‘बच्चों िे ज्यादा बुद्धि इनकी नहीं मालूम पडती है । तख्त ऊंचा-नीचा
रखने िे ज्यादा उनकी बुद्धि नहीं है , कक तख्त नीचा हो जायेगा तो हम नीचे हो जायेंगे। हद
हो गयी, इि भांतत िे ऊंचा होना बहुत आिान हो गया!
लेककन दबा रहे हैं अहं कार को। तो अहं कार दि
ू रे रास्ते खोज रहा है तनकलने के सलए।
अहं कार को दबा रहे हैं, इिर कह रहे हैं, ‘मैं कुछ भी नहीं हूं! हे परमात्मा, मैं तो तेरी शरण में
हूं। ‘उिर अहं कार कह रहा है -अच्छा िीक है बेटे, उिर तुम शरण में जाओ, इिर हम दि ू रा
रास्ता खोजते है । हम कहते हैं कक िोने का सिंहािन चाठहए क्योंकक हमिे ज्यादा भगवान
की शरण में और कोई भी नहीं गया है !

तो इनको िोने का सिंहािन चाठहए। इिर- ‘मैं कुछ भी नहीं हूं; आदमी तो कुछ भी नहीं है ,
िब िंिार माया है ! और उिर? -उिर, अगर जगतगुरु न सलखें उनके नाम के आगे तो वे
नाराज हो जाते हैं कक मुझे जगतगुरु नहीं सलखा! ‘

….. और मजा यह है कक जगत िे पछ


ू े बबना ही गरु
ु हो गये हैं? जगत िे भी तो पछ
ू सलया
होता, यह जगत बहुत बडा है …!

एक गांव में मैं गया था। वहां भी एक जगतगुरु थे!

.. जगतगरु
ु ओं की कोई कमी है ! जजिको भी खयाल पैदा हो जाय, वह जगतगरु
ु हो िकता है !
इि वक्त िबिे िस्ता काम यही है …!

गांव में जगतगुरु थे। मैंने पूछा, ‘‘इतना छोटा-िा गांव, जगतगुरु कहां िे आये?” उन्होंने कहा,
‘‘वे यहां ही रहते हैं िदा िे। ” मैंने कहा, ‘‘जगत िे पूछ सलया है उन्होंने?” उन्होंने कहा,
‘‘जगत िे नहीं पूछा। लेककन वे बहुत होसशयार आदमी हैं। उनका एक सशष्य है । ” मैंने कहा, ”
और ककतने हैं?” उन्होंने कहा ‘‘बि, एक ही है । लेककन उिका नाम उन्होंने जगत रख सलया
है । तो वे जगतगुरु हो गये है । ”

बबलकुल िीक बात है । अब और कोई कमी नहीं रह गई है । अदालत में मक


ु ादम नहीं चला
िकते हैं इि आदमी पर। यह जगतगुरु है । िारे जगतगुरु इिी तरह के है । ककिी का एक
सशष्य होगा, ककिी के दि होंगे लेककन इििे क्या फकघ पडता है । इिर वे कहते हैं , ‘मैं तो
कुछ भी नहीं, आदमी तो माया है ; अिली तो ब्रह्म है -एक ही ब्रह्म है -और उिर जगतगुरु होने
का लोभ िवार हो जाता है ! वह अहं कार, इिर िे बचाओ, उिर िे रास्ता खोजता है ।

आदमी जजि-जजि को दबायेगा, वही-वही नये-नये मागों िे िकट होगा।

दमन करके कभी कोई ककिी चीज को नही िमझ िका। इिसलए दमन िे बचना है , दमन िे
िाविान रहना है । दमन ही मनुष्य को तोडता है । और,अगर जुडना है , और एक हो जाना है ,
तो दमन िे बच जाना चाठहए।
चौथे िूर पर मैं आपिे कल बात करूंगा कक जब हम दमन िे बचें गे तो कफर भोग एकदम
िे तनमंरण दे गा कक आओ; अब तो क्रोि िे बचना नहीं है , इिसलए आओ, क्रोि करो; अब तो
िेक्ि िे बचना नहीं है , इिसलए आओ और िेक्ि में डूबो; अब तो लोभ िे बचना नहीं है ,
इिसलए दौडो और रुपये इक्िे करो। जैिे ही हम इि दमन िे बचें गे, वैिे ही भतो तनमंरण
दे गा कक आ जाओ।

उि भोग िे बचने के सलए भी क्या करना है , उिकी कल के िूर में आपिे बात करूंगा।

मेरी बातों को इतनी शांतत और िेम िे िन


ु ा, उििे बहुत-बहुत अनग्र
ु हीत हूं और अंत में
िबके भीतर बैिे परमात्मा को िणाम करता हूं।

मेरे िणाम स्वीकार करें ।

‘जीिन-क्रांनत के सत्र
ू ’,
बडौदा

14 फरिर 1969

संभोग से समाधि की ओर –50


Posted on सितम्बर 22, 2013by sw anand prashad

न भोग, न दमन—िरण जागरण—अठहरिां प्रिचन


मेरे प्रिय आत्मन,

तीन िूरों पर हमने बात की है ।

जीवन क्रांतत की ठदशा में पहला िर


ू था- ‘सिद्िांतों िे, शास्रों िे मजु क्त।’

जो व्यजक्त ककिी भी तरह के मानसिक कारागह


ृ में बंद है , वह जीवन ‘ की ित्य की, खोज
नहीं कर िकता है । और वे लोग, जजनके हाथों में जंजीरें है उतने बडे गुलाम नहीं हैं, जजतने वे
लोग, जजनकी आस्था पर प्रवचारों की जंजीरें हैं; वादों, सिद्िांतों, िंिदायों की जंजीरें हैं। आदमी
की गुलामी मानसिक है ।

दि
ू रा िर
ू था: ‘ भीड िे मजु क्त। ‘
भीड की आंखों में अपने िततबबंब िे बधचये, पजब्लक ओपीतनयन िे बधचये। वह दि
ू री जंजीर
है ।

आदमी जीवन भर यही दे खता रहता है कक दि


ू रे मेरे िंबंि में क्या िोच रहे हैं! और, दि
ू रे
मेरे िंबंि में िीक िोचें , इि भांतत का असभनय करता राहता है ! ऐिा व्यजक्त असभनेता ही रह
जाता है । ऐिे व्यजक्त के जीवन में चररर जैिी कोई बात नहीं होती। ऐिा व्यजक्त बाहर िे
असभमानी हो जाता है , भीतर की आत्मा िे उिका कभी िंबंि नहीं होता।
और, तीिरा िूर था, ‘दमन िे मुजक्त। ‘

वे, जो अपने धचत्त को दबाते हैं, वे अपने ही जीवन को नष्ट कर ले तै हैं। जजि बात को
दबाते हैं, उिी बात िे बंिे रह जाते हैं।

अगर िन िे छूटने की कोसशश करते हैं, लोभ को दबाते हैं, तो वे फौरन लोभी हो जाते हैं।
अगर काम को, िेक्ि को दबाते हैं, तो कामुक हो जाते हैं। आदमी जजिको दबाता है , वही हो
जाता है ; यह कल के िूर पर बात हुई थी। आज चौथे िूर पर बात करनी है । इिके पहले कक
हम चौथे िर ू को िमझें, दमन के िंबंि में कुछ और बातें िमझ लेनी आव‍यक हैं। मनुष्य
को पता ही नहीं चलता, कक जन्म के िाथ ही दमन शुरू हो जाता है !

हमारी िारी सशक्षा, िारी िंस्कृतत, िारी िभ्यता दमन लाती है । जगह-जगह मनुष्य पर रोक
है ! िमझाया जाता है , क्रोि मत करो! ‘ लेककन, अगर क्रोि नहीं ककया तो क्रोि भीतर िरक
जायेगा। तब उिका क्या होगा? अगर क्रोि को पी गये, तो वह खन
ू में समल जायेगा, हड्डी
तक में धचपक जायेगा; तब उि क्रोि का क्या होगा.,.? क्रोि को दबा लेने िे क्रोि का अंत
नहीं होता। दबा हुआ क्रोि भीतर िाणों में सलप्त हो जाता है । तनकला हुआ क्रोि तो थोडी दे र
का िाथी होता है , लेककन दबा हुआ क्रोि जीवन भर के सलए िाथी हो जाता है । क्रोि को
दबाया कक पूरा व्यजक्तत्व क्रोि िे भर जाता है । लेककन, बच्चों को सिखाया जा रहा है - ‘क्रोि
मत करना! ‘ऐिी ही िारी बातें सिखायी जाती हैं, लेककन कोई भी क्रोि िे मुक्त नहीं हो
पाता।

एक पखू णघमा की रात में एक छोटे -िे गांव में , एक बडी अदभत
ु र्टना र्ट गई। कुछ जवान
लडकों ने शराबखाने में जाकर शराब पी ली और जब वे शराब के नशे में मदमस्त हो गये
और शराब-र्र िे बाहर तनकले तो चांद की बरिती चांदनी में उन्हें यह खयाल आया कक नदी
पर जायें और नौका-प्रवहार करें ।

रात बडी िुन्दर और नशे िे भरी हुई थी। वे गीत गाते हुए नदी के ककनारे पहुंच गये। नाव
वहां बंिी थी। मछुए नाव बांिकर र्र जा चक
ु े थे। रात आिी हो गयी थी।
वे एक नाव में िवार हो गये। उन्होंने पतवार उिा ली और नाव खेना शुरू ककया। कफर वे
रात दे र तक नाव खेते रहे । िुबह की िण्डी हवाओं ने उन्हें िचेत ककया। जब उनका नशा
कुछ कम हुआ तो उनमें िे ककिी ने पूछा, ‘‘कहां आ गये होंगे अब तक हम। आिी रात तक
हमने यारा की, न-मालूम ककतनी दरू तक तनकल आये होंगे। नीचे उतर कर कोई दे ख ले कक
ककि ठदशा में हम चल रहे हैं, कहां पहुंच रहे हैं?”

जो नीचे उतरा था, वह नीचे उतर कर हं िने लगा। उिने कहा, ‘‘दोस्तो! तुम भी उतर आओ।
हम कहीं भी नहीं पहुंचे हैं। हम वहीं खडे हैं, जहां रात नाव खडी थी। ”

वे बहुत है रान हुए। रात भर उन्होंने पतवार चलायी थी और पहुंचे कहीं भी नहीं थे! नीचे उतर
कर उन्होंने दे खा तो पता चला, नाव की जंजीरें ककनारे िे बंिी रह गयी थीं, उन्हें वे खोलना
भल
ू गये थे!

जीवन भी, पूरे जीवन नाव खेने पर, पूरे जीवन पतवार खेने पर कहीं पहुंचता हुआ मालूम नहीं
पडता। मरते िमय आदमी वहीं पाता है स्वयं को, जहां वह जन्मा था! िीक उिी ककनारे पर,
जहां आंख खोली थी- आंख बंद करते िमय आदमी पाता है कक वहीं खडा है । और तब बडी
है रानी होती है कक इतनी जो दौड- िप
ू की, उिका ०क़ हुआ? वह जो िण ककया था कहीं
पहुंचने का, वह जो यारा की थी कहीं पहुंचने के सलए, वह िब तनष्फल गयी! मत्ृ यु के क्षण में
आदमी वहीं पाता है अपने को, जहां वह जन्म के क्षण में था! तब िारा जीवन एक िपना
मालुम पडने लगता है । नाव कहीं बंिी रह गयी ककिी ककनारे िे।

हां, कुछ लोग-कुछ िौभाग्यशाली लोग, मरते क्षण वहां पहुंच जाते हैं, जहां जीवन का आकाश
है , जहां जीवन का िवाि है , जहां ित्य है , जहां परमात्मा का मंठदर है । लेककन, वहां वे ही लोग
पहुंचते हैं, जो ककनारे िे, खट
ूं े िे जंजीर खोलने की याद रखते हैं।

इन चार ठदनों में कुछ जंजीरों की मैंने बात की है । पहले ठदन मैंने कहा, शास्रों और
सिद्िांतों की जंजीरें बडी गहरी हैं। और जो शास्रों और सिद्िान्तों िे बंिा रह जाता है , वह
कभी जीवन के िागर में यारा नहीं कर पाता है ।

जीवन का िागर है -अज्ञात; और, सिद्िांत और शाख िब हैं-शांत।

ज्ञात िे अज्ञात की तरफ जाने का कोई भी मागघ नहीं है , सिवाय ज्ञात को छोडने के। जो भी
हम जानते हैं, वह शात है और जो जीवन है , वह अनजान है , अननोन है ; वह पररधचत नहीं है ।
तो जो हम जानते हैं, उिके द्वारा उिको नहीं पहचाना जा िकता है , जो हम नहीं जानते हैं।
जो शात है , जो नोन है , उििे अज्ञात को, अननोन को जानने का कोई द्वार नहीं है ; सिवाय
इिके कक शात को छोड ठदया जाये। और ज्ञात को छोडते ही अज्ञात के द्वार खल
ु जाते है ?

पहले ठदन, पहले िूर में मैंने यही कहा : छोडे शास्र को, छोडे शब्द को, क्योंकक िब शब्द
उिार हैं; बारोड हैं; बािे हैं ; मरे हुए हैं। और िब शाख पराये हैं। कोई कृष्ण का है , कोई राम
का, कोई बुद्ि का, कोई जीिि का, और कोई मुहम्मद का! जो उन्होंने कहा है , वह उनके सलए
ित्य रहा होगा। तनज‍चत ही, जो उन्होंने कहा है , उिे उन्होंने जाना होगा। लेककन, उनका जान
ककिी और दि
ू रे का शान नहीं बनता है , और नहीं बन िकता है । कृष्ण जो जानते हैं, जानते
हो। हमारे पाि कृष्ण का शब्द ही आता है , कृष्ण का ित्य नहीं।

मैंने िन
ु ा है , एक कप्रव िमि ु की यारा पर गया है । जब वह िब ु ह िमि ु तट पर पहुंचा, तो
बहुत िंद ु र िब ु ह थी; बहुत िंद
ु र िभात था। पक्षी गीत गाते थे वक्ष
ृ ों पर। िरू ज की ककरणें
नाचती थीं लहरों पर। लहरें उछलती थीं िागर की छाती पर। हवाएं िं डी थीं और फूलों िे
िव
ु ाि आती थी। वह नाचने लगा उि िन्
ु दर िभात में और कफर उिे याद आया कक उिकी
िेयिी तो एक अस्पताल में बीमार पडी है । काश, वह भी आज यहां होती। वह तो बबस्तर िे
बंिी है । उिके तो उिने की कोई िंभावना नहीं है ।

तो उि कप्रव को खयाल आया कक ‘क्यों न मैं ऐिा करूं कक िमुि की इन ताजी हवाओं को,
िूरज की इन नाचती हुई ककरणों को, लहरों के इि िंगीत को, फूलों की इि िुवाि को अपनी
िेयिी के सलए एक पेटी में बंद करके ले जाऊं। और जाकर उिे कहूं कक दे ख, ककतनी िुंदर
िुबह का एक टुकडा मैं तेरे सलए लाया हूं। ‘

वह गांव गया और एक पेटी खरीद लाया। बहुत िुन्दर पेटी थी। उि पेटी को खोलकर उिने
उिमें िमुि की िं डी हवाएं भर लीं, िूरज की नाचती ककरणें भर लीं, फूलों की िुगंि भर ली।
उि पेटी में िुबह का एक टुकडा बंद करके, उिे ताला लगा ठदया कक कहीं िे वह िुबह बाहर
न तनकल जाये। और उि पेटी को अपने एक पर के िाथ उिने अपनी िेयिी के पाि भेज
ठदया कक िुबह का एक िुंदर टुकडा, िागर के ककनारे का एक जजंदा टुकडा तेरे पाि भेजता
हूं। नाच उिे गी त,ू आनंद िे भर जायेगी। ऐिी िुबह मैंने कभी नहीं दे खी।

उि िेयिी के पाि पर भी पहुंच गया और पेटी भी पहुंच गयी। पेटी उिने खोली, लेककन पेटी
के भीतर तो कुछ भी नहीं था। न िूरज की ककरणें थी, न िागर की िं डी हवाएं थीं; न कोई
फूलों की िुवाि थी। वह पेटी ते। बबलकुल खाली थी। उिके भीतर तो कुछ भी नहीं था। पेटी
पहुंचायी जा िकती है , लेककन जजि िौंदयघ को िागर ककनारे जाना है , उिे नहीं पहुंचाया जा
िकता।
जो लोग ित्य के जीवन में िागर के तट पर पहुंच जाते हैं, वे वहां क्या जानते हैं-कहना
मुज‍कल है ; क्योंकक िूरज का िकाश, जजि िकाश को वे जानते हैं, उिके िामने अंिकार है ।
जजि िुवाि को वे जानते हैं, ककिी फूल में वह िुवाि नहीं है । वे जजि आनंद को जानते हैं,
हमारे िुखों में उि आनंद की एक ककरण नहीं है । वे जजि जीवन को जानते हैं, उि जीवन
का हमें कुछ भी पता नहीं हैं। बि पेठटयों में भर कर वे जो हैं-गीता में , कुरान में , बाइबबल में -
वह हमारे पाि आ जाता है । शब्द आ जाते हैं; लेककन जो उन्होंने था, वह पीछे छूट जाता है ।
वह हमारे पाि नहीं आता। कफर हम उन पेठटयों को सिर पर ढोये हुए र्मू ते रहते। कोई गीता
को लेकर र्म
ू ता है , कोई कुरान को, कोई बाइबबल को। और धचल्लाता रहता है कक ित्य मेरे
पाि ित्य मेरी ककताब में है ।

ित्य ककिी भी ककताब में न है , न हो िकता है । ित्य ककिी शब्द में न है , न हो िकता है ।
ित्य तो वहां है , ‘िब शब्द क्षीण हो जाते हैं, और धगर जाते हैं। जहां धचत्त मौन हो जाता है ,
तनप्रवघचार हो जाता है , वहां है ित्य।

न जहां कोई शाख जाता है , न कोई सिद्िांत। इिसलए जो सिद्िांत और शाखों की खठूं टयों िे
बंिे हैं, वे कभी के िागर के तट पर नहीं जा िकेंगे। यह मैंने पहले िूर में कहा।

दि
ू रे िूर में मैंने कहा कक जो लोग भीड िे बंिे हैं और भीड की आंखों में दे खते रहते हैं-
‘कक लोग क्या हैं?’ वे लोग अित्य हो जाते हैं, क्योंकक भीड अित्य है । भीड िे ज्यादा अित्य
इि प्
ृ वी पर और कुछ नहीं है ।

ित्य जब भी अवतररत होता है , तब व्यजक्त के िाण पर अवतररत होता है। ित्य भीड के
ऊपर अवतररत नहीं होता।

ित्य को पकडने के सलए व्यजक्त का िाण ही वीणा बनता है । ित्य वहीं िे झंकृत होता है ।
भीड के पाि कोई ‘नहीं है । भीड के पाि उिार बातें हैं जो कक अित्य हो गयी हैं। भीड के
पाि ककताबें हैं जो कक मर चक
ु ी हैं। के पाि महात्माओं, तीथिंकरों और अवतारों के नाम हैं-जो
सिफघ नाम हैं। उनके पीछे कुछ भी नहीं बचा, राख हो गया है ।

भीड के पाि परं पराएं हैं; भीड के पाि याददा‍तें हैं; भीड के पाि हजार-हजार िाल की आदतें
हैं; लेककन भीड पाि वह धचत्त नहीं, जो मुक्त होकर ित्य को जान लेता है । जब भी कोई उि
धचत्त को उपलब्ि करता है तो , व्यजक्त की तरह, उि धचत्त को उपलब्ि करना पडता है ।
इिसलए, जहां-जहां भीड है , जहां-जहां भीड का आग्रह है -ठहन्दओ
ु ं की भीड, मुिलमानों की भीड,
ईिाइयों भीड, जैतनयों की भीड, बौद्िों की भीड-वहां िब अित्य है । ठहन्द ू भी, मुिलमान भी;
ईिाई भी, जैन- और कोई भी नाम हो- भीड का कोई भी िंबंि ित्य िे नहीं है ।

लेककन, हम भीड को दे खकर ही जीते हैं। हम दे खते हैं - ‘भीड क्या कह रही है , भीड क्या मान
रही है ?’

जो आदमी भीड को दे खकर जीता है , वह अपने बाहर ही भटकता रह जाता है ; क्योंकक भीड
बाहर है । जजि ‘को भीतर जाना होता है , उिे भीड िे आंखें हटा लेनी पडती हैं। और अपनी
तरफ, जहां वह अकेला है तरफ, आंखें ले जानी पडती हैं। लेककन हम िब? हम िब भीड िे
बंिे हैं; भीड की खंट
ू ी िे बंिे हैं।

मैंने िुना है , एक िम्राट था। उि िम्राट के दरबार में एक आदमी आया और उि आदमी ने
आकर कहा कक ‘‘महाराज, आपने िारी प्
ृ वी जीत ली, लेककन एक चीज की कमी है आपके
पाि।”

उि िम्राट ने कहा, ‘‘कमी? कौन िी है कमी? जल्दी बताओ; क्योंकक मैं तो बेचन
ै हुआ जाता
हूं। मैं तो िोचता था, िब मैंने जीत सलया। ”

उि आदमी ने कहा, ”आपके पाि दे वताओं के वस्र नहीं हैं। मैं दे वताओं के वस्र आपके सलए
ला िकता हूं।

िम्राट ने कहा, ‘‘दे वताओं के वस्र तो न कभी दे खे, न िुने! कैिे लाओगे?”

उि आदमी ने कहा, ‘‘लाना ऐिे तो बहुत मुज‍कल है , क्योंकक दे वता आजकल पहले की तरह
िरल नहीं रहे । जब िे ठहंदस्
ु तान के िब राजनीततज्ञ मरकर स्वगीय होने लगे हैं, तब िे वहां
बडी बेईमानी और करप्शन िब तरह की शरू
ु हो गयी है । ठहंदस्
ु तान के राजनीततज्ञ िब मर
कर स्वगीय हो जाते हैं! नकघ तो उनमें कोई जाता ही नहीं। हालांकक कोई भी राजनीततज्ञ
स्वगघ में नहीं जा िकता; क्योंकक राजनीततज्ञ जजि ठदन स्वगघ में जाने लगें गे, उि ठदन स्वगघ
भले आदसमयों के रहने योग्य जगह न रह जायेगी। लेककन वैिे तो िभी स्वगघ में हैं।

.. तो उिने कहा, ‘‘जब िे वे िब पहुंचने लगे हैं वहां, बडी मुज‍कल हो गयी है । बहुत रर‍वत
चल पडी है वहां। लाने भी हों अगर दो-चार वस्र तो करोडों रुपये खचघ हो जायेंगे। ”

िम्राट ने कहा, ‘‘करोडों रुपये!”


उि आदमी ने कहा, ‘‘ठदल्ली में सिफघ जाना हो, तो लाखों खचघ हो जाते हैं। वह तो स्वगघ है ,
वहां करोडों रुपये खचघ होना स्वाभाप्रवक है । चपरािी भी वहां करोडों िे नीचे की बात नहीं
करते। ”

राजा ने कहा, ” िोखा दे ने की कोसशश तो नहीं कर रहे हो?”

उि आदमी ने कहा, ‘‘िम्राट को िोखा दे ना मुज‍कल है , क्योंकक उनिे बडे िोखेबाज जमीन पर
दि
ू रे नहीं हो िकते; उनको क्या िोखा ठदया जा िकता है ? डाकुओं को क्या लूटा जा िकता
है ? हत्यारों की क्या हत्या का जा िकती है ? मैं मामल
ू ी आदमी, आपको क्या िोखा दं ग
ू ा? चाहें
तो आप पहरा बैिा लें , मझ
ु े भीतर बंद कर लें। मैं महल के भीतर ही रहूंगा, क्योंकक दे वताओं
के यहां जाने का रास्ता आंतररक है । इिसलए बाहर की कोई यारा नहीं करनी है । लेककन
करोडों रुपये खचघ होंगे और छह महीने लग जायेंगे। ”

राजा ने कहा ‘‘छ: महीने! मैं तो िोचता था, तू ठदन भर में ले आयेगा। ” उिने कहा कक
‘‘ठदन दो-ठदन ‘। तो ठदल्ली में फाइल नहीं िरकती, तो स्वगघ में क्या इतना आिान है
मामला? कोसशश मैं अपनी करूंगा कक जन्य;। ले आऊं।

राजा ने कहा, ‘‘िीक है । ”

दरबाररयों ने कहा, ‘‘यह आदमी िोखेबाज मालूम पडता है । दे वताओं के वस्र कभी िुने हैं
आपने?”

”राजा ने कहा,‘‘लेककन िोखा दे कर यह जायेगा कहां?”

नंगी तलवारों का पहरा लगा ठदया है और उि आदमी को महल में बंद कर ठदया है । वह
रोज कभी करोड कभी दो करोड रुपये मांगने लगा। छह महीने में उिने अरबों रुपये मता
सलए। राजा ने भी िोचा, ‘‘कोई कफक्र नहीं है । जायेगा कहां?”

िीक छह महीने पूरे हुए। वह आदमी एक पेटी लेकर महल के बाहर आ गया। उिने िैतनकों
िे कहा, ‘‘मैं कपडे ले आया हूं चलें िम्राट के पाि।”

तब तो शक की कोई बात न रही। िारी राजिानी महल के द्वार पर इक्िी हो गयी। दरू -
दरू िे लोग दे खने गये थे। दरू -दरू िे राजे-महाराजे बल
ु ाये गये थे, िेनापतत बल
ु ाये गये थे, बडे
लोग बल
ु ाये गये थे, िनपतत ‘गये थे। दरबार ऐिा िजा था, जैिा कभी न िजा होगा। वह
आदमी पेटी लेकर जब उपजस्थत हुआ, तब की ठहम्मत में ठहम्मत आयी। अभी तक तो वह
डरा ही हुआ था कक अगर बेईमान न हुआ और पागल हुआ, भी हम क्या कर िकेंगे! उिने
आकर कह ठदया कक नहीं समले, तो भी हम क्या कर लेंगे? लेककन वह पेटी लेकर गया तो
िम्राट को प्रव‍वाि हुआ।

उि आदमी ने आकर पेटी रखी और कहा कक, ‘‘महाराज, वस्र ले आया हूं। यहां आ जायें
आप, पहने हुए वस्र छोड दें , और मैं आपको दे वताओं के वस्र दे ता हूं उन्हें पहन लें ।”

पगडी लेकर राजा की उिने अपनी पेटी के भीतर डाल दी और पेटी के भीतर अपना हाथ
डालकर बाहर तनकाला। हाथ बबलकुल ही खाली था। उिने कहा, ‘‘यह िंभासलए दे वताओं की
पगडी। ठदखायी तो पडती है आपको? क्योंकक दे वताओं ने चलते वक्त कहा था कक ये कपडे
उन्हीं को ठदखायी पडेंगे, जो अपने बाप िे पैदा हों।

”पगडी तो थी नहीं, ठदखायी कहां िे पडती? लेककन एकदम िे ठदखायी पडने लगी!

िम्राट ने कहा, ‘क्यों नहीं ठदखायी पडती, ठदखायी पडती है ! ”मन में िोचा िम्राट ने, ‘‘लेककन
मेरा बाप िोखा दे गया है । पगडी ठदखायी तो नहीं पडती है ! लेककन, यह भीतर की बात अब
भीतर ही रखनी है ।”

दरबाररयों ने भी दे खा, गदघ नें बहुत ऊपर उिायीं, आंखें तो उनकी भी िाथ थीं, लेककन पगडी
ठदखायी नहीं दे ती थी। लेककन िबको ठदखायी पडने लगी! कोई यह न िमझ ले कक उिे
पगडी ठदखायी नहीं पडती है , इिसलए िब दरबारी एक-दि
ू रे के आगे आ-आकर कहने लगे,
जोर-जोर िे कहने लगे। कहीं िीरे िे कहा और ककिी को शक हो गया कक यह आदमी िीरे
बोल रहा है , कहीं ऐिा तो नहीं है कक इिको पगडी ठदखायी नहीं पडती है । इिसलए िब
दरबारी आगे बढकर कहने लगे, ‘‘महाराज, ऐिी पगडी तो कभी दे खी नहीं थी! ”

िम्राट ने िोचा कक िब दरबाररयों को ठदखायी पडती है , लेककन मुझे क्यों नहीं ठदखायी
पडती? ‘‘क्या मैं अपने….? कफर हरे क ने यही िोचा कक िबको ठदखायी पडती है , लेककन मुझे
क्यों.. क्या मैं अपने बाप..?”

िम्राट ने पगडी पहन ली, कोट पहन सलया, जो नहीं था। कमीज पहन ली, जो नहीं थी। कफर
िोती भी तनकल गयी। कफर आखखरी वस्र तनकलने की नौबत आ गयी। तब राजा र्बडाया
कक कहीं कुछ िोखा तो नहीं है ? िम्राट डरने लगा।

तब उि आदमी ने कहा, ‘‘डररये मत महाराज, नहीं तो लोगों को शक हो जायेगा। जल्दी िे


आखखरी वस्र तनकाल दीजजये…! ”
भीड की यारा बडी खतरनाक है । पहले कदम पर कोई रुक जाये तो रुक जाये, बाद में रुकना
बहुत मुज‍कल हो जाता है ।

…… अब िम्राट ने भी िोचा ‘‘इतनी दरू चले ही आये, आिे नंगे हो ही गये, अब जो होगा,
होगा। ” िम्राट ने ठहम्मत करके आखखरी कपडा भी तनकाल ठदया। लेककन िारा दरबार कह
रहा था, ‘‘महाराज िन्य हैं, अद्भुत वस्र हैं, ठदव्य वस्र हैं। इिसलए िम्राट को ठहम्मत भी थी
कक कोई कफक्र नहीं, नंगापन तो सिफघ मुझे ही पता चल रहा है । तो अपना नंगापन अपने को
पता रहता ही है । उिमें तो कोई हजाघ भी नहीं है ज्यादा। लेककन उि बेईमान आदमी ने, जो
यह वस्र लाया था दे वताओं के..।

और दे वताओं िे वस्र लाने वाले… और दे वताओं की खबर लाने वाले. दे वताओं तक पहुंचाने
वाले लोग-िब बेईमान होते हैं।.. िब। इिर आदमी तक पहुंचना मजु ‍कल है , दे वताओं तक
पहुंचना आिान है । आदमी को िमझना मजु ‍कल है , और स्वगघ के नक्शे बनाये हुए बैिे हैं!
बडौदा की ज्योगरफी का जजनको पता नहीं, वे स्वगघ और नकघ के सलए बनाये बैिें हैं!

.. उि आदमी ने कहा, ‘‘महाराज, दे वताओं ने चलते वक्त कहा था, पहली दफे प्
ृ वी पर जा रहे
हैं ये वस्र, इनकी शोभा-यारा नगर में तनकलनी बहुत जरूरी है । रथ तैयार है । अब आप
आकर रथ पर िवार हो जाइए। लाखों-लाखों जन भीड लगाये हुए हैं। उनकी आंखें तरि रही
हैं इन वस्रों को दे खने के सलए।”

राजा ने कहा, ‘‘क्या कहा?’ अब तक तो महल के भीतर थे, जहां अपने ही लोग थे। अब, महल
के बाहर, िड्कों पर भी जाना होगा?”

लेककन, उि आदमी ने िीरे िे कहा, ‘‘र्बडाइए मत, जजि तरकीब िे यहां िबको वस्र ठदखायी
पड रहे है , उिी तरकीब िे वहां भी िबको ठदखायी पडेंगे। आपके रथ के आगे यह डुगडुगी
पीटी जायेगी िारे नगर में कक यह वस्र उिी को ठदखायी पडेंगे, जो अपने बाप िे पैदा हुआ
है । आप र्बडाइए मत। अब जो हो गया, हो गया। अब चसलये।”

राजा िमझ तो गया कक वह नंगा है और ककिी को वस्र ठदखायी नहीं पड रहे हैं , लेककन अब
कोई भी अथघ न था। जाकर बैि गया वह सिंहािन पर, रथ पर। स्वणघ-सिंहािन रथ पर लगा
था। नंगा राजा, बैिा न। स्वणघ-सिंहािन पर….।

स्वणघ-सिंहािनों पर नंगे लोग ही बैिते हैं।


…. शोभा-यारा तनकली। लाखों लोगों की भीड थी। और नगर के लाखों लोगों को एकदम िे
वस्र ठदखायी पडने लगे थे…..!

वही लोग जो महल के भीतर थे, वही महल के बाहर भी हैं। वही आदमी, वही भीड वाला
आदमी।

.. िब वस्रों की िशंिा करने लगे। कौन झंझट में पडे। जब िारी भीड को ठदखायी पडता हो
तो एक व्यजक्त अपने को कैिे इंकार करे ; कैिे कहे कक मुझे ठदखायी नहीं पडता। इतना बल
जट
ु ाने के सलए बडी आत्मा चाठहए। इतना बल जट
ु ाने के सलए बडा िासमघक व्यजक्त चाठहए।
इतना बल जट
ु ाने के सलए परमात्मा की आवाज चाठहए। कौन इतना बल जट
ु ाये? इतनी बडी
भीड! कफर मन में यह िश्र आता है कक जब इतने लोग कहते हैं, तो िीक ही कहते होंगे।
इतने लोग गलत क्यों कहें गे? लेककन, कोई भी यह नहीं िोचता कक ये इतने लोग भी इक्िे
नहीं हैं, ये भी एक-एक आदमी हैं, अपने सलए- ‘मेरे-ही-जैिा ‘। जैिा मैं कमजोर हूं वैिा ही यह
भी कमजोर है । यह भी भीड िे डर रहा है , मैं भी भीड िे डरता हूं..।

जजििे हम डर रहे हैं, वह कहीं है ही नहीं। एक-एक आदमी का िमूह खडा हुआ है , और िब
भीड िे डर रहे है ?

…..लोग अपने बच्चों को र्र ही छोड आये थे; लाये नहीं थे भीड में । क्योंकक बच्चे का क्या
भरोिा, कोई बच्चा दे कक राजा नंगा है …..तो?

बच्चों का क्या प्रव‍वाि? बच्चों को बबगाडने में वक्त लग जाता है । स्कूल, कॉलेज, युतनवसिघटी
िब जुटे हुए कफर भी मुज‍कल िे बबगाड पाते हैं। एकदम आिान नहीं बबगाड दे ना।

….. छोटे -छोटे बच्चों को अपने िाथ कोई नहीं लाया था। लेककन कुछ बच्चे जजद्दी होते हैं।
और कुछ बच्चे ऐिे हैं, जजनकी माताओं की वजह िे प्रपताओं को उनिे डरना पडता है । उनको
लाना पडा। वे कंिे पर िवार होकर गये। एक बच्चे ने जोर िे कहा, ” अरे ! राजा नंगा है ! ”

उिके बाप ने कहा, ‘‘चप


ु नादान! अभी तझ
ु े अनभ
ु व नहीं है , इिसलए तझ
ु े नंगा ठदखायी पडता
है । ये बातें गहरे अनभ
ु व की हैं। अनभ
ु प्रवयों को ठदखायी पडती हैं। जब उम्र तेरी बढे गी, तो
तझ
ु को भी ठदखायी पडने लगें गा। यह उम्र िे आता है जान। उम्र के बबना दतु नया में कोई
ज्ञान कभी नहीं आता…। ”

उम्र के भरोिे मत बैिे रहना। उम्र िे बेईमानी आती है , चालाकी आती है , कतनगनेि आती है ;
उम्र िे ज्ञान नहीं होता। लेककन, िभी चालाक लोग यही कहते हैं कक उम्र िे ज्ञान होता है ।
.. उि बच्चे ने पूछा, ‘आपको ठदखायी पड रहे हैं वस्र?”

‘‘हां, मुझे ठदखायी पड रहे है ’‘, उिके प्रपता ने कहा। ‘‘बबलकुल ठदखायी पड रहे हैं। हम अपने
ही बाप िे हुए हैं। ऐिा कैिे हो िकता है कक हमको ठदखायी न पडे। और, तुम अभी बच्चे हो
-नािमझ हो, भोले अभी तुम्हें िमझ कहां है ! ”

जजि बच्चे को ित्य ठदखायी पडा था, उिे भीड के भय का कोई पता नहीं था; इिीसलए
ठदखायी पडा था। भी बडा होगा, तो भीड िे भयभीत हो जायेगा। तब उिे भी वस्र ठदखायी
पडने लग जायेंगे। यह भीड डराये है चारों तरफ िे एक-एक आदमी को।

इिसलए जीिि ने कहा है :

.. एक बाजार में वे खडे थे। कुछ लोग उनिे पछ


ू ने लगे कक तम्
ु हारे स्वगघ के राज्य में , तम्
ु हारे
परमात्मा के दशघन ( कौन उपलब्ि हो िकता है ? तो जीिि ने चारों तरफ नजर दौडायी, और
एक छोटे -िे बच्चे को उिाकर ऊपर सलया, और कहा कक ‘जो इि बच्चे की तरह है । ‘

क्या मतलब रहा होगा…? क्या कद छोटा होने िे ई‍वर के राज्य में चले जाइयेगा..,? कक उम्र
कम होगी तो के राज्य में चले जाइएगा…! या बच्चे बन जायेंगे, तब ई‍वर के राज्य में चले
जायेंगे…?

जो बच्चों की तरह है , इिका मतलब है , जो भीड िे भयभीत नहीं हैं। जो शद्


ु ि हैं और िाफ
हैं। जो ठदखता वही कहते हैं कक ठदखता है । जो नहीं ठदखता, कहते हैं कक नहीं ठदखता। जो
झूि को मान लेने को राजी नहीं। जो बच्चों कक तरह हो गये हैं।

बच्चे नहीं हो गये हैं, बच्चों की तरह हो गये हैं।

बच्चों की तरह होने का क्या मतलब है …?

बच्चे अकेले हैं, बच्चे इंडडप्रवजअ


ु ल हैं। बच्चों को भीड िे कोई मतलब नहीं है । अभी भीड की
उन्हें कफक्र नहीं है । अभी भीड का उन्हें पता भी नहीं है कक भीड भी है ।

भीड बडी अदभुत चीज है । एक अनजानी ताकत जकडे हुए है आदमी को चारों तरफ िे।

इिसलए दि
ू रा िर
ू मैंने कहा, अगर तम्
ु हें जीवन के ित्य की तरफ जाना हो, तो भीड की खट
ंू ी
िे मक्
ु त हो जाना। इिका यह मतलब नहीं कक आप भीड िे भाग जायें। भागें गे कहां, भीड
िब जगह है । कहां भागें गे? जहां जायेंगे, वहीं भीड है । और अभी तो थोडी बहुत पहाडडयां बच
भी गयी हैं। जहां भागकर जा भी िकते हैं, लेककन कुछ ही ठदनों में पहाडडयां भी नहीं बचें गी।

वैज्ञातनक कहते हैं कक िौ वषों में अगर भारत जैिे दे श बच्चों को पैदा करने के अपने महान
कायघ में िंलग्र रहे , तो दतु नया में कुहनी ठहलाने की जगह भी नहीं रह जाने वाली है । तब हमें
िभा करने की जरूरत नहीं रहे गी। कहीं भी खडे हो जाइये और िभा हो जायेगी।

कहां भाधगयेगा भीड िे….? जंगलों में , पहाडों में कोई खटपट नहीं है .?? भीड वहां भी बहुत
िक्ष्
ू म रूप में पीछा करती है ।

एक आदमी िािु हो जाता है , भाग जाता है जंगल में । जंगल में बैिा है , उििे पूतछये, ‘ आप
कौन हैं?’ वर कहता है , ‘मैं ठहंद ू हूं! ‘

भीड पीछा कर रही है । अभी भी तम


ु अपने को ठहंद ू कहते हो! अभी तम
ु आदमी नहीं हुए?

आदमी होना बहुत मुज‍कल है , ठहंद ू होना बहुत आिान है ।

एक आदमी िािु हो जाता है , वह कहता है , ‘मैं जैन हूं! ‘अब तम


ु ने िमाज को छोड ठदया है ,
तो अब तुम जैन कैिे हो? यह जैन-वैन होना तो िमाज ने सिखाया था।

िािु भी-ठहंद,ू जैन और मुिलमान हैं, तो कफर अिािओ


ु ं का क्या ठहिाब रखना। गांिी जैिे
अच्छे आदमी भी इि भ्म िे मुक्त नहीं हो िके कक मैं ठहंद ू हूं। धचल्लाये चले जाते हैं कक मैं
ठहंद ू हूं। तो िािारण लोगों की क्या है सियत है । गांिी जैिा अच्छा आदमी भी ठहम्मत नहीं
जुटा पाता कक कहे कक मैं आदमी हूं बि; और कोई प्रवशेषण नहीं लगाऊंगा। अगर अकेले
गांिी ने भी ठहम्मत जुटा ली होती, और यह कहा होता कक मैं सिफघ आदमी हूं तो जजन्ना की
जान तनकल गयी होती। लेककन गांिी के ठहंद ू होने ने जजन्ना की जान न तनकलने दी।

ठहंदस्
ु तान का बंटवारा हुआ गांिी के ठहंद ू होने की वजह िे; अन्यथा ठहंदस्
ु तान कभी नहीं
बंटता। लेककन खयाल में नहीं आता हमें यह, कक इतनी छोटी-िी बात ककतने बडे पररणाम ला
िकती है । गांिी का: ठहंद ू होना िंठदग्ि करता रहा मुिलमान के मन को। गांिी का आश्रम,
गांिी के ठहंद ू ढं ग, गांिी की िाथघना, पूजा, पर-िब यह वहम पैदा करते रहे कक वे ठहंद ू महात्मा
हैं।
और ठहंद ू महात्मा िे, ठहंद ू भीड िे िाविान होना जरूरी है मुिलमान को। दि
ू री भीड िदा
िाविान होती है ; क्योंकक एक भीड िे दि
ू री भीड को डर है ; एक दक
ु ान को दि
ू री दक
ु ान िे
डर है ।

जजन्ना का मुिलमान होना खत्म हो जाता, पर गांिी का ठहंद ू होना ही खत्म नहीं हो िका।
और जजन्ना िे हम आशा नहीं करते हैं कक उिका खत्म हो, वह आदमी िािारण है ; गांिी िे
हम आशा कर िकते हैं। लेककन गाढा। का ही खत्म नहीं हुआ, तो जजन्ना का कैिे खत्म
होगा!

भीड पीछा करती है ; भीड बहुत िचेत, बहुत िक्ष्


ू म रास्ते िे पीछा करती है .?.?

बट्े ड रिेल ने कहीं कहा है कक मैंने बहुत पढ-सलखकर, बहुत िोच िमझकर पाया कक बुद्ि िे
ज्यादा अदभुत आदमी दि ू रा नहीं हुआ प्ृ वी पर। लेककन जब भी मैं यह िोचता हूं कक बुद्ि
िबिे महान हैं, तभी मेरे भीतर एक होने लगती है और कोई कहता है कक नहीं, बुद्ि क्राइस्ट
िे ज्यादा महान नहीं हो िकते!

….. भीड पीछा करती है । वह भीतर बैिी है। वह बचपन िे जो सिखा दे ती है , जो कंडीशतनंग
कर दे ती है , जैिा को िंस्काररत करती है , कफर वह जीवन भर पीछा करता है ; मरते दम तक
पीछा करता है ।

एक िज्जन हैं। बहुत प्रवचारशील हैं। उनका नाम नहीं लूंगा; क्योंकक ककिी का नाम लेना इि
युग में ऐिा खतरनाक हैं, जजिका कोई ठहिाब नहीं। ककिी का नाम नहीं सलया जा िकता।
अंिेरे में बात करनी पडती है ।

वे बडे प्रवचारक हैं। वे मुझिे कहते थे, ‘‘मेरा िब छूट गया; जप, तप, पूजा-पाि-मैंने िब छोड
ठदया है । मैं िबिे मुक्त हो गया हूं। ”

मैंने कहा, ‘‘इतना आिान नहीं है मामला। यह मक्


ु त हो पाना इतना आिान नहीं है । क्योंकक
जब आप कहते है मैं मक्
ु त हो गया हूं तभी मैं आपकी आंख में झांकता हूं और मझ
ु े लगता
है कक आप मक्
ु त नहीं हुए। अगर हो गये होते तो- ‘मक्
ु त हो गया हूं यह खयाल भी छूट
गया होता। ”

उन्होंने कहा, ‘‘नहीं, नहीं, मैं मुक्त हो गया हूं। ” मैंने कहा, ‘‘जजतने जोर िे आप कहें गे मुझ,े
मेरा शक उतना बढता जायेगा। वक्त आने दीजजये, पता चल जायेगा। ”
कफर जब उनको हाटघ अटै क हुआ तो मैं उन्हें दे खने गया। आंख बंद ककये वे कुछ बेहोशिे पडे
थे और -राम, राम-राम का जाप चल रहा था। मैंने उनको ठहलाया और कहा, ‘‘ये क्या कर रहे
है ?”

उन्होंने कहा, ‘‘मैं बडी है रानी में पड गया हूं। जजि क्षण हाटघ अटै क हुआ, ऐिा लगा कक मर
जाऊंगा और जजि -पाि को िदा के सलए छोड ठदया था, वह एक दम िे चलना शुरू हो गया!
अब मैं रोकना भी चाहता हूं तो ‘ रुकता है ; भीतर चले ही जा रहा है जोर िे-राम-राम, राम-
राम। मैं िोचता था िब छूट गया है । लेककन, ‘आप िीक कहते थे, ‘छोडना बहुत मुज‍कल है । ‘

बहुत गहरे में जडें रहती हैं भीड की। वह जो सिखा दे ती है , वह भीतर बैिा रहता है । वह राम-
राम का जाप गहरे िे गहरे चला गया था।

अब गांिी जी ककतना कहते थे- ‘अल्लाह ई‍वर तेरे नाम। ‘ लेककन जब गोली लगी, तब
अल्लाह का नाम नहीं आया। तब ‘हे राम’! ही याद आया, अल्लाह का नाम याद नहीं आया!
गोली लगी तो याद ‘- ‘हे राम! ‘

वह ठहंद ू भीतर बैिा है । वह राम आत्मा में भीतर गहरे िे गहरा र्ुि गया है । वह जब गोली
लगी, िब भूल है ‘ अल्लाह ई‍वर तेरे नाम। ‘ तनकला, ‘हे राम!’‘हे अल्लाह!’ तनकलता, तो शायद
गांिी.. लेककन बडा मुज‍कल था नहीं हो िका। वह अिंभव था, वह हो नहीं िका।

गहरे में भीड र्ुि जाती है आदमी के। भीड िे बचने का मतलब यह नहीं है कक जंगल चले
जाना। भीड िे का मतलब है - अपने भीतर खोजना। और जहां-जहां भीड के धचन्ह समलें , उन्हें
अलग करते जाना और कोसशश जारी रखना कक व्यजक्त का अप्रवभाघव हो जाये। भीड िे मुक्त
होकर व्यजक्त ऊपर उि जाये; भीड छूट जाये, भीतर, अंति में , धचत्त में ।

जो आदमी अपने धचत्त की वप्रृ त्तयों को दबाता है , वह जजन वप्रृ त्तयों को दबाता है , उन्हीं िे बंि
जाता है । जजििे बंिना हो, उिी िे लडना शुरू कर दे ना। दोस्त िे उतना गहरा बंिन नहीं
होता है , जजतना द‍ु मन िे होता है , दोस्त की तो कभी-कभी याद आती है ; िच तो यह है , याद
कभी आती ही नहीं। जब समलता है , तभी कहते हैं कक बडी याद आती है । लेककन, द‍ु मन की
चौबीि र्ंटे याद बनी रहती है । रात िो जाओ, तब भी वह िाथ िोता है । िुबह उिो, तो उिने
के िाथ उिता है । जजतनी गहरी द‍ु मनी हो, उतना गहरा िाथ हो जाता है ।

इिसलए दोस्त कोई भी चन


ु लेना, द‍ु मन थोडा िोच-प्रवचार िे चन
ु ना चाठहए। क्योंकक उिके
चौबीि र्ंटे िाथ रहना पडेगा। दोस्त कोई भी चल जाता है ; ऐरा-गैरा-क, ख, ग-कोई भी चल
जाता है ; लेककन, द‍ु मन? द‍ु मन के िाथ हमेशा रहना पडता है ।
और तीिरे िूर में मैंने कहा कक दमन भूल कर भी मत करना। क्योंकक दमन अच्छी चीजों
का तो कोई करता नहीं है , दमन करता है बुरी चीजों का। और जजनका दमन करता है , जजनिे
लडता है , उन्हीं के िाथ उिका गिबंिन हो जाता है , उन्हीं के िाथ फेरा पड जाता है । जजि
चीज को हम दबाते हैं, उिी िे जकड जाते हैं।

मैंने िुना है , एक होटल में एक रात के सलए एक आदमी िहरने के सलए आया। लेककन होटल
के मैनेजर नें उिे कहा, ‘‘यहां जगह नहीं है , आप कहीं और चले जायें। एक ही कमरा खाली है
और वह हम दे ना नहीं चाहते। ऊपर का कमरा खाली है और नीचे के कमरे में एक िज्जन
िहरे हुए हैं। अगर जरा भी खडबड हो जाये, आवाज हो जाये, या कोई जोर िे चल दे तो
झगडा हो जाता है । पहले भी ऐिा हो चक
ु ा है । तो जब िे प्रपछले मेहमान ने कमरा खाली
ककया है , हमने तय ककया है , कक अब ऊपर का कमरा खाली ही रखेंगे, जब तक कक नीचे के
िजा प्रवदा नहीं हो जाते…। ”

कुछ िज्जन ऐिे होते हैं, जजनके आने की राह दे खनी पडती है और कुछ ऐिे होते हैं, जजनके
जाने की भी रा;! दे खनी होती है । और दि
ू री तरह के ही िज्जन ज्यादा होते हैं; पहली तरह
के िज्जन तो बहुत कम ही होते हैं, जजनके आने की राह दे खनी पडती है ।

.. उि मैनेजर ने कहा, ” क्षमा कररये, हम उनके जाने की ितीक्षा कर रहे हैं। जब वे चले जायें,
तब ‘राग आइए। ”

उि आदमी ने कहा, ” आप है रान न हों, र्बडाएं न, मैं सिफघ दो-चार र्ंटे रात िोऊंगा। ठदन भर
बाजार में काम करूंगा, रात दो बजे लौटूंगा, और िो जाऊंगा। िुबह छ: बजे उिकर मुझे गाडी
पकडनी है । नींद में उन िज्जन िे कोई झगडा होगा, इिकी आशा नहीं है । नींद में चलने की
मेरी आदत भी नहीं है । कोई गडबड नहीं होगी, मैं आराम िे िो जाऊंगा, आप कफक्र न करें ।”

मैनेजर मान गया। वह आदमी दो बजे रात लौटा, थका-मादा-ठदन भर के काम के बाद।
बबस्तर पर बैिकर उिने जत
ू ा खोलकर नीचे पटका। तब उिे खयाल आया, ‘कहीं नीचे के
मेहमान की जत
ू े की आवाज िे नींद न खल
ु जाये?’ दि
ू रा जत
ू ा िीरे िे तनकालकर रखकर वह
िो गया। र्ंटे भर बाद नीचे के िज्जन ने दस्तक दी; ‘‘महाशय, दरवाजा खोसलये! ”वह बहुत
है रान हुआ कक र्ंटे भर तो मेरी नींद भी हो चक
ु ी, अब क्या गलती हो गयी होगी?’ दरवाजा
उिने खोला डरते हुये।

उि िज्जन ने पूछा कक ‘‘दिू रा जूता कहां है ? मुझे बहुत मुज‍कल में डाल ठदया है । जब पहला
जूता धगरा, मैं िमझा कक ऊपर के महाशय आ गये हैं। कफर दि ू रा जूता धगरा ही नहीं! तब िे
मैं ितीक्षा कर रहा हूं कक जूता अब धगरा, अब धगरा। कफर मैने अपने मन को िमझाया कक
मुझे ककिी के जूते िे क्या लेना-दे ना? ओ, कुछ भी हो, मुझे क्या मतलब? लेककन, जजतना मैंने
हटाने की कोसशश की, उतना ही दिू रा जूता मेरी छ’ में र्ूमने लगा। आंख बंद करता हूं तो
जूता ठदखाई पडता है , आंख खोलता हूं तो जूता ठदखाई पडता है !

…… बेचन
ै ी हो गयी है । नींद बडी मुज‍कल हो गयी है । जूता भीतर िक्के दे ने लगा है । बहुत
िमझाया मन को कक भी कैिा पागल है ! ककिी के जूते िे अपने को क्या मतलब है ; चाहे
एक जूता पहनकर िोया हो, चाहे एक न पहनकर िोया हो। लेककन, जजतना मैंने मन को
िमझाया, दबाया, लडा-उतना ही वह जूता बडा होता , और तेजी िे मन में र्ूमने लगा…!”

अपनी-अपनी खोपडी की तलाश अगर आदमी करे , तो पायेगा कक दि


ू रे के जत
ू े वहां र्म
ू रहे
हैं, जजनिे कुछ -दे ना नहीं है ।

….उन िज्जन ने कहा, ” क्षमा कीजजये! इिसलए मैं पूछने आया हूं ताकक पता चल जाये तो मैं
िो जाऊं शांतत और झगडा बंद हो जाये। ”

जो उि आदमी के िाथ हुआ, वही िबके िाथ होता है ।

ििेसिव माइंड, दमन करने वाला धचत्त हमेशा व्यथघ की बातों में उलझ जाता है ।

िेक्ि को दबाओ-और चौबीि र्ंटे िेक्ि का जूता सिर पर र्ूमने लगेगा। क्रोि को दबाओं-
और चौबीि क्रोि िाणों में र्ुिकर चक्कर काटने लगेगा। और एक तरफ िे दबाओ, तो दि
ू री
तरफ िे तनकलने की चेष्टा हो जायेगी, क्योंकक ित्येक व्यजक्त में ऊजाघ है , एनजी है । आप
दबाओगे एनजी को तो वह कहीं िे तनकलेगी? झरने को आप इिर िे रोक दो, तो वह दि
ू री
तरफ िे फूट कर बहने लगेगा। उिर िे दबाओ, तो तीिरी तरफ बहने लगेगा।

एक आदमी एक दलतर में नौकरी करता था। एक ठदन उिके मासलक ने उिे कुछ बेहूदी बातें
कह दीं…।

और मासलक तो बेहूदी बातें कहते हैं; नहीं तो मासलक होने का मजा ही खतम हो जाये। मजा
क्या है मासलक में …? ककिी िे बेहूदी बातें कह िकते हो, यही मजा है । और नौकर यह भी
नहीं कह िकता कक आप बेहूदी बात कर रहे हैं। और कफर मासलक बेहूदी बातें कहे या न
कहे , नौकर को मासलक की िब बातें बेहूदी मालूम पडती। नौकर होना भी बेहूदगी है ; क्योंकक
मासलक जो भी कहे ,नौकर को बेहूदगी ही मालूम पडती है । मासलक जब िे बोलता है , क्रोि की
बातें कहता है , तो भी नौकर को खडे होकर मुस्कुराना पडता है । भीतर आग लगी होती कक
गदघ न दबा दें …।
ऐिा कौन नौकर होगा, जजिको मासलक की गदघ न दबाने का खयाल न आता हो? आता है ,
जरूर आता है । भी चाठहए, नहीं तो दतु नया बदलेगी भी नहीं!

.. मगर ऊपर िे ओिों पर मुस्कुराहट फैला लेगा, िन्यवाद दे ने लगेगा, कहे गा- ‘‘बडी अच्छी
बातें कर रहे । बडे वेद वचन बोल रहे हैं। बडी वाणी आपकी मिरु है । उपतनषद के ऋप्रष भी
क्या बोलते होंगे, ऐिी बातें ! ‘भाग मेरे कक आपके अमत
ृ -वचन मेरे ऊपर धगरे ! ”

भीतर क्रोि की आग जल रही है । दबा लेना अपने क्रोि को। लेककन क्रोि को दबाकर ककतनी
दे र चल िकते हैं। िाइककल चलायेगा तो पैडल जोर िे मारने लगेगा। कार ड्राइव करे गा तो’
एकदम िे स्पीड छोड दे गा। वह जो क्रोि दबाया है , वह िब तरफ िे तनकलने की कोसशश
करे गा।

अमेररका के मनोवैज्ञातनक कहते हैं कक अगर आदमी को क्रोि की कोई िमझ पैदा हो िके,
तो अमेररका एजक्िडेंट पचाि िततशत कम हो जायेंगे। वह जो एजक्िडेंट हो रहे हैं , वे िडक
की वजह िे कम हो रहे हैं, ठदमाग की वजह िे ज्यादा हो रहे हैं।

आपको पता है , जब आप क्रोि में िाइककल चलाते हैं, तो ककि तरह िे चलाते हैं? एकदम िे
जैिे आपको पर लग जाते हैं! कफर कोई नहीं ठदखता िामने। ऐिा मालूम होता है -रास्ता
खाली है , एकदम। और िामने कोई आ जाये तो ऐिा मन होता है कक टकरा दं ू जोर िे;
क्योंकक भीतर टकराहट चल रही होती है ।

क्रोि िे भरा हुआ आदमी तेजी िे िाइककल चलाता हुआ र्र पहुंचग
े ा। रास्ते में दो-चार बार
बचेगा टकराने िे। क्रोि और भारी हो जायेगा। और जाकर र्र वह ितीक्षा करे गा कक कोई
मौका समल जाये और पत्नी की गदघ न दबा दे …।

पत्नी बडी िरल चीज है । वह है ही इिसलए कक आप र्र आइए और उिकी गदघ न दबाइए।
उिका मतलब क्या है और? उिका उपभोग क्या है और? उिका अिली उपयोग यही है कक
जजंदगी भर जो व्यथा आपके ऊपर गुजरे , वह जाकर पत्नी पर ररलीज कीजजये।

.. र्र पहुंचते ही िब गडबड ठदखायी पडने लगेगी। पली, जजिको कल रात ही आपने कहा था
कक तू बढी िंद ु र है , एकदम िे मालम
ू पडेगी कक यह िप
ू ण
घ खा कहां िे आ रही है ? िब िेम
खतम हो जायेगा। कफल्म की असभनेबरयां याद आयेंगी कक िौंदयघ इिको कहते हैं , और यह
औरत…?
.. रोटी जली हुई मालूम पडेगी। िब्जी में नमक नहीं मालूम पडेगा। िब अस्त-व्यस्त मालूम
पडेगा। र्र अस्त-व्यस्त र्ूमता हुआ मालूम पडेगा। प्रपल पडेंगे उि पर। कल भी रोटी ऐिी ही
थी; क्योंकक कल भी पली वही थी। कल भी पत्नी वही थी, जो आज है ; लेककन आज िब
बदला हुआ मालूम पडेगा। वह जो भीतर दबाया दे , वह तनकलने के सलए मागघ खोज रहा है ।

और, ध्यान रहे ! जैिे पानी ऊपर की तरफ नहीं चढता, ऐिे क्रोि भी ऊपर की तरफ नहीं
चढता। पानी भी नीचे की तरफ उतरता है , क्रोि भी नीचे की तरफ उतरता है । कमजोर की
तरफ उतरता है , ताकतवर की तरफ नहीं उतरता। मासलक की तरफ नहीं चढ िकता है क्रोि।
चढाना हो तो बडा पंप लगाना जरूरी है । कम्युतनज्म वगैरह के पम्प लगाओ, तब चढ िकता
है मासलक की तरफ; नहीं तो नहीं।

पजत्नयों की तरफ एकदम उतर जाता है और पत्नी कुछ भी नहीं कर िकती, क्योंकक पतत
परमात्मा है । ये पतत यह भी िमझा रहे हैं पजत्नयों को कक हम परमात्मा है ।

बडे मजे की बातें दतु नया में चल रही हैं! कोई स्री यह नहीं कह रही है कक महाशय, आप और
परमात्मा! आप ही परमात्मा हैं तो परमात्मा पर भी शक पैदा हो रहा है । और आप भी
परमात्मा हैं! आपकी इज्जत नहीं बढती है परमात्मा होने िे, परमात्मा की इज्जत र्टती है
आपके होने िे। कृपा करके, परमात्मा को बाइज्जत जीने दो, ला।’र परमात्मा मत बनो; लेककन
कोई स्री नहीं कहे गी!

स्री के पाि व्यथघ की बकवाि करने के सलए बहुत ताकत है , लेककन बुद्धिमत्ता की एक बात
स्री को नहीं करनी स्री, पतत-परमात्मा पर क्रोि नहीं करे गी। उिको भी राह दे खनी पडेगी।
आग जो लगी है उिके भीतर, वह दे खेगी। उिे बच्चे का रास्ता दे खना पडेगा। कक आओ बेटा,
आज तुम्हारा िुिार ककया जाये। बेटे बेचारे को कुछ पता भी नहीं है । वह अपना नाचता
हुआ, अपना बस्ता सलए हुए स्कूल िे चला आ रहा हैं। उिको पता ही नहीं है कक क्या होने
जा रहा है । उिर मां तैयार बैिी है । ितीक्षा कर रही है , िुिार करने की…।

जजतने लोग िि
ु ार करने की ितीक्षा करते हैं- ध्यान रखना, उनके भीतर कोई क्रोि है , जजिकी
वजह िे उनके भीतर िि
ु ार की आयोजना चलती है । जजनके अपने बेटे नहीं होते हैं, वे
अनाथालय खोल लेते हैं; जजनका र्र नहीं होता है , वे आश्रम बना लेते हैं; लेककन िि
ु ार करते
हैं! जजनको कोई नहीं समलता, वे कोई भी तरकीब तनकाल कर िमाज-िुिार करने में लग
जाते हैं।

भीतर क्रोि है , भीतर आग है ; ककिी को तोडने, मरोडने, बदलने की इच्छा है ।


……यह बच्चा आते ही थक जायेगा। कल भी वह ऐिे ही आया था नाचता हुआ, लेककन आज
उिका नाच, उपिव मालूम पडेगा…।

हमें वही ठदखाई पडता है , जो हमारे भीतर है । हमारा िब दे खना िोजेक्शन है ।

… आज उिके कपडे गंदे मालूम पडेंगे। वह रोज ऐिे ही आता है । बच्चे कपडे गंदे नहीं करें गे
तो क्या बूढे…..गंदे करें गे? बच्चे तो कपडे गंदे करें गे ही। क्योंकक, बच्चों को कपडों का पता भी
नहीं हैं। कपडों का पता रखने के सलए भी आदमी को बहुत चालाक होने की जरूरत है । बच्चों
को कहां होश?

…..कपडे फट गये हैं?.. ककताब फट गयी है ?. स्लेट फूट गयी है ?. इिसलए, आज बच्चे का
िुिार ककया है । लेककन मां को पता भी नहीं चलेगा कक वह बच्चे की शक्ल में पतत को चांटे
मार रही है ; कक ये चांटे पतत पड रहे हैं।

और बच्चे भली-भांतत जानते हैं कक उनकी प्रपटायी कब होती है ! जब मां-बाप का आपि में
झगडा चलता तब। जब मां-बाप लडते हैं, तब बच्चे प्रपटते हैं। इिसलए, जजनके बच्चे नहीं होते
हैं, उनके र्र में बडी मुज‍कल जाती है ; क्योंकक प्रपटने के सलए कोई कामन मेन नहीं होता; कक
ककिको पीटो! अगर ऐिा न हो तो प्लेटे टूट हैं, रे डडयो धगर जाता है ; दि
ू रे उपाय खोजने पडते
हैं। आपको मालूम होगा, प्लेट कब टूटती है ? और पजत्नयों भी मालूम रहता है कक अब एकदम
हाथ िे प्लेटे छूटने लगती हैं।

.. लेककन, बच्चा प्रपटे गा। बच्चा क्या कर िकता है ? वह मां के ितत क्रोि कैिे करे ? अगर मां
के ितत क्रोि है तो जरा ितीक्षा करनी पडेगी। पन्िह-बीि िाल बहुत लंबी ितीक्षा है । जब
एक औरत और आ जाये। ताकत दे ने को; क्योंकक ककिी भी औरत िे लडना हो तो एक
औरत का िाथ जरूरी है । नहीं तो हार तनज‍चत है ।

औरत िे औरत ही लड िकती है , आदमी नहीं लड िकता।

राह दे खनी पडेगी। बहुत लंबा वक्त है । वक्त दे खना पडेगा कक कब मां बढ
ू ी हो जाये; क्योंकक
तब पांिा बदल जायेगा। अभी मां ताकतवर है , बच्चा कमजोर है । जब बच्चा ताकतवर होगा,
मां कमजोर हो जायेगी, तब…। वह जो बढ
ू े मां-बाप को बच्चे िताते है ; और जब तक मां-बाप
बच्चों को िताते रहें गे, तब तक बढ
ू े मां-बापों

को िाविान रहना चाठहए, कक उनके बच्चे उनको ितायेंगे।


……यह तो बहुत लंबी बात है । इतनी दे र तक ितीक्षा नहीं की जा िकती। क्रोि इतनी दे र
रुकने के सलए राजी नहीं हो िकता। तो बच्चा क्या करे गा?.. जायेगा, अपनी गडु डया की टांग
तोड दे गा! ककताब फाड दे गा!.. कुछ करे गा। जो भी वह कर िकता है , वह करे गा!

दबाया हुआ क्रोि ककिी भी रास्ते ले जायेगा; तकलीफों में डालेगा; मुज‍कलों में डालेगा। दबाया
हुआ अहं कार नये-नये रास्ते पर ले जायेगा। दबाया हुआ लोभ नये-नये रास्ते खोजेगा।

मैं एक िंन्यािी के पाि था। उनिे मेरी बात होती थी। वे िंन्यािी मुझिे बार-बार कहते..।

और िंन्यािी बेचारे के पाि और कुछ कहने को तो होता नहीं..। िनपतत के पाि जाइए, वह
अपने िन का ठहिाब बताता है : कक इतने करोड थे, इतने करोड हो गये; मकान छ: मंजजला
था िात मंजजल हो गया। पंडडतों के पाि जाइए तो वे अपना बताते हैं : कक अभी एम. ए.
भी हो गये, पी. एच. डी. भी हो गये, अब डी. सलट भी हो गये; अब यह हो गये, वह हो गये!
पांच ककताबें छपी थीं, अब पंिह छप गयीं! वह अपना बतायेंगे। िािु िंन्यािी क्या बतायें? वह
भी अपना ठहिाब रखता है , त्याग का!

……वे मुझिे बार-बार कहते, ‘‘मैंने लाखों रुपयों पर लात मार दी। ” ित्य ही कहते होंगे।

चलते वक्त मैंने पूछा- ‘‘महाराज, यह लात मारी कब?” कहने लगे, ‘‘कोई बीि-पच्चीि िाल हो
गये। ” मैंने कहा ‘‘लात िीक िे लग नहीं पायी, नहीं तो पच्चीि िाल तक याद रखने की
क्या जरूरत है ? पच्चीि िाल बहुत लंबा वक्त है । अब लात मार ही दी तो खत्म करो बात।
पच्चीि िाल याद रखने की क्या जरूरत है ।

”लेककन वे अखबार की कठटंग रखे हुए थे अपनी फाइल में , जजिमें छपी थी पच्चीि िाल
पहले यह खबर। कागज पुराने पड गये थे, पीले पड गये थे, लेककन मन को बडी राहत दे ते
होंगे। ठदखाते-ठदखाते गंदे हो गये ने। अक्षर भी िमझ में नहीं आते थे। लेककन उनको बडी
तजृ प्त समलती होगी।

दि-बीि िाल पहले उन्होंने लाखों रुपये पर लात मारी। मैंने उनिे कहा, ‘‘लात िीक िे लग
जाती तो रुपये भल
ू जाते। लात िीक िे लगी नहीं। लात लौटकर वापि आ गयी….। ”

पहले अकड रही होगी कक मेरे पाि लाखों रुपये हैं। अहं कार रहा होगा। िडक पर चलते होंगे
तो भोजन को कोई जरूरत न रही होगी। बबना भोजन के भी चले जाते होंगे। ताकत गयी
नहीं, रही होगी। भीतर ख्याल रहा होगा कक लाखों रुपये मेरे पाि हैं। कफर रुपयों को छोड
ठदया, त्याग कर ठदया। जबिे त्याग ककया, तबिे अकड दि
ू री आ गयी : कक मैंने रुपयों को
लात मार दी! मैं कोई िािारण आदमी हूं?

और पहली अकड िे दि
ू री अकड ज्यादा खतरनाक है । पहले अहं कार िे दि
ू रा अहं कार ज्यादा
िूक्ष्म है ।

….. दबाया हुआ अहं कार वापि लौट आया। अब वह और बारीक होकर आया है , कक जजिकी
पहचान भी न हो िके।

जो भी आदमी धचत्त के िाथ दमन करता है , वह िूक्ष्म िे िूक्ष्म उलझनों में उलझता चला
जाता है ; यह मैंने तीिरे िूर में कहा।

दमन िे िाविान होना। दमन करने वाला आदमी रुग्ण हो जाता है , अस्वस्थ हो जाता है ,
बीमार हो जाता ओ’। और दमन का अजन्तम पररणाम प्रवक्षक्षप्तता है , मैडनेि है ।

तीन िूरों पर मैंने आपिे कुछ बातें कहीं। अब चौथे और अंततम िूर के िंबंि में आपिे
थोडी-िी बात कहना हूं।

चौथा िूर, छोटा-िा िूर है ।

िूर छोटा है , लेककन बडी प्रवस्फोटक शजक्त है उिमें । जैिे एक छोटे िे अणु में इतनी ताकत
रहती है कक िारी प्
ृ वी को वह नष्ट कर िकता है , वैिा ही, इि छोटे -िे िूर में शजक्त है ।

इन तीनों जंजीरों िे मुक्त होने के सलए एक ही िूर है , और वह िूर है -जागरण, जागना,


अवेयरनेि, ध्यान, अमूछाघ, होश, माइंड- फुलनेि या कोई भी नाम दें । एक ही िूर है , छोटा-िा-
‘जागो।’

जागो उन सिद्िातों के ितत, जजनको पकडे हुए हो। और जागते ही उन सिद्िांतों िे छुटकारा
शरू
ु हो जायेगा; क्योंकक सिद्िांत आपको नहीं पकडे हैं, आप ही उन्हें पक्के हुए हैं। और जैिे
ही आप जागें गे, आपको लगेगा अजीब बात है कक मैं अपने ही हाथों िे गल
ु ाम बना हुआ हूं
और मेरी गल
ु ामी की जंजीर मेरे अपने ही हाथ है ! और एक बार यह ठदखाई पड जाये, तो
कफर छूटने में दे र नहीं लगती।

पहला जागरण सिद्िांतों, वादों, िंिदायों, िमों गुरुओं, महात्माओं के ितत, जजनको हम जोर िे
पकडे हुए हैं। कुछ भी नहीं है हाथ में , कोरी राख है शब्दों की, लेककन जोर िे पकडे हुए हैं।
कभी हाथ खोलकर भी नहीं दे खते। डर लगता है कक कहीं दे खा तो बहुत मुज‍कल हो जायेगी।
लेककन गौर िे दे खना जरूरी है कक मैं ककन-ककन चीजों िे जकडा हुआ हूं; मेरी जंजीरें कहां-
कहां हैं? मेरी स्लेवरी, मेरी गुलामी कहां है ; मेरी आध्याजत्मक दािता कहां ठटकी है ?

एक-एक चीज के ितत जागना जरूरी है । जागने के अततररक्त, गुलामी को तोडने के सलए और
कुछ भी नहीं पडता है । और जागते ही गुलामी छूटनी शुरू हो जाती है । क्योंकक, यह गुलामी
कोई लोहे की जंजीरों की नहीं है , जजिे तोडने के सलये हथोडे की चोट करनी पडे। ये गुलामी
हमारे िोये हुए होने के कारण है । हमने कभी होश िे दे खा ही नहीं है कक हमारे भीतर की
मनोदशा क्या है । बि, हम चलते रहे अंिेरे में । जाग जायेंगे तो पता कक यह तो हमने अपने
ही हाथों में पागलपन का इंतजाम कर रखा है ।

और, इिके सलए कोई दि


ू रा जजम्मेवार नहीं है , हम खद
ु ही जजम्मेवार हैं। इिे हम तोड दे िकते
हैं, जागरण िे। जागरण-सिद्िांतों, शाखों, िंिदायों के ितत।

जागरण-ठहंद ू होने के ितत, मुिलमान होने के ितत, ठहंदस्


ु तानी होने के ितत, चीनी होने के
ितत।

जागरण-िारी िीमाओं के ितत, िारे बंिनों के ितत, िमस्त मोह के ितत।

यह जो कंडीशतनंग है भीतर माइंड की, उिके ितत जले, दे खें कक यह क्या है ? यह मैं क्यों बंिा
हूं? ककिने उिे ठहंद ू बना ठदया है ? ककिने मुझे सिद्िांत िे अटका ठदया है ?

मन में भीड र्ुि जाती है । चीजें बाहर िे आती हैं और हम उन्हें पकड लेते हैं। उन्हें छोड
दे ना है । उन्हें छोडते धचत्त को एक फ्रीडम, एक व्यजक्त की अवस्था उपलब्ि हो जाती है ।

भीड के ितत जागना है कक मैं जो भी कर रहा हूं वह भीड को दे खकर तो नहीं कर रहा हूं?

आप मंठदर चले जा रहे हैं-िुबह ही उिकर, भागते हुए, राम-राम जपते हुए-िुबह की िदी में !
िान सलया है और भागते चले जा रहे हैं। िोचते हैं कक मंठदर जा रहा हूं। जरा जागकर
दे खना-कहीं इिसलए तो िब मंठदर नहीं जा रहे हैं कक लोग आप को दे ख लें : कक मैं आदमी
िासमघक हूं!

कौन मंठदर जाता है …? भीड दे ख ले कक यह आदमी मंठदर जाता है , इिसलए आप मंठदर जाते
हैं। ककिको ियोजन है दान दे ने िे…? लोग दे ख लें , कक ये आदमी दानी है , इिसलए आप दे ते
हैं।
अगर एक आदमी भीख मांगता है िडक पर, तो आपको पता होगा कक सभखारी अकेले में
ककिी िे भीख मांगने में खझझकता है । चार-छह आदमी हों, तो जल्दी िे हाथ फैलाकर खडा
हो जाता है , क्योंकक उिे पता है कक पांच आदसमयों के िामने यह छिवां आदमी भीख दे ने िे
इंकार नहीं कर िकेगा। यह ख्याल रखेगा कक पांच आदमी क्या िोचें गे? कक इतना बडा
आदमी है , दि पैिे नहीं छोड िकता!

तो सभखमंगा भीड में जल्दी िे पीछा करता है । और दि आदमी को दे खकर आपको दि पैिे
दे ने पडते हैं। वह दि पैिे आप सभखारी को नहीं दे रहे हैं , वह दि पैिे िे आप इं‍योरं ि कर
रहे हैं अपनी इज्जत का, दि आदसमयों में । उन दि पैिों का आप क्रैडडट बना रहे है , इज्जत
बना रहे है , बाजार में ।

और आपको खयाल भी नहीं होगा, आप र्र लौटकर कहें गे-बडा दान ककया, आज एक आदमी
को दि पैिे ठदये! लेककन, भीतर परू े जागकर दे खना कक ककिको ठदये? क्या सभखमंगे को
ठदये? उिके सलए तो भीतर िे गाली तनकल रही थी कक यह दष्ु ट कहां िे आ गया! ठदये
उनको, जो िाथ थे। भीड िब तरफ िे पकडे हुए है ।

एक गांव में मैंने दे खा, एक नया मंठदर बन रहा था; भगवान का मंठदर बन रहा था…। ककतने
भगवान के मंठदर बनते चले जाते हैं।

.. नया मंठदर बन रहा था। उि गांव में वैिे ही बहुत मंठदर थे…!

आदसमयों के रहने के सलये जगह नहीं है और भगवान के सलये मंठदर बनते चले जाते हैं!
और भगवान का कोई पता नहीं है कक वे मंठदर में रहने को कब आयेंगे, आयेंगे कक नहीं
आयेंगे, इिका कुछ पता नहीं है ।

.. नया मंठदर बन रहा था तो मैंने उि मंठदर को बनाने वाले एक कारीगर िे पूछा, ‘‘बात क्या
है ? बहुत मंठदर है गांव में, भगवान का कहीं पता नहीं चलता! ये एक और मंठदर ककिसलए
बना रहे हो?”

बढ
ू ा था कारीगर। अस्िी िाल की उम्र रही होगी। बामजु ‍कल सम्टी खोद रहा था। उिने
कहा, ”आपको शायद पता नहीं, मंठदर भगवान के सलए नहीं बनाए जाते हैं। ”

मैंने कहा, ‘‘बडे नाजस्तक मालूम होते हो। मंठदर भगवान के सलए नहीं बनाये जाते तो ककिके
सलए बनाये जाते है । ”
उि बढ
ू े ने कहा, ‘‘पहले मैं भी यही िोचता था, लेककन जजंदगी भर मंठदर बनाने के बाद इि
नतीजे पर पहुंचा हूं कक भगवान के सलए इि जमीन पर मंठदर कभी नहीं बनाया गया। ”

मैंने पूछा, ‘‘मतलब क्या है तुम्हारा? उि बूढे ने मेरा हाथ पकडा और कहा कक भीतर आओ…।

… और बहुत कारीगर वहां काम कर रहे थे। लाखों रुपये का काम था। वह कोई िािारण
आदमी मंठदर नहीं बनवा रहा था। िबिे पीछे , जहां कारीगर पत्थरों को खोदते थे, उि बूढे ने
ले जाकर मुझे वहां खडा कर ठदया, एक पत्थर के िामने, कहा, ‘‘इिसलए मंठदर बन रहा है । ”

उि पत्थर पर मंठदर के बनाने वाले का नाम स्वणघ-अक्षरों में खोदा जा रहा था…!

उि बढ
ू े ने कहा, िब मंठदर इि पत्थर के सलए बनते हैं। अिली चीज यह पत्थर है , जजि पर
नाम सलखा रहता है ककिने बनवाया।

मंठदर तो बहाने हैं, पत्थर को लगाने के। वह पत्थर अिली चीज है । उिकी वजह िे मंठदर
भी बनाना पडता। मंठदर बहुत महं गा पडता है , लेककन उि पत्थर को लगाना हो तो कोई क्या
करे गा, इिसलये बनाना पडता है । पत्थर लगाने के सलए बनते हैं , जजि पर खद
ु ा रहता है कक
ककिने यह मंठदर बनाया।

लेककन, मंठदर बनाने वाले को शायद यह होश नहीं होता कक यह मंठदर भीड के चरणों में
बनाया जा रहा है , भगवान के चरणों में नहीं। इिसलए तो मंठदर ठहद ू का होता है , मुिलमान
का होता है , जैन का होता है ; मंठदर भगवान का कहां होता है ?

भीड िे िाविान होने का मतलब यह है कक भीतर जागकर दे खना अपने धचत्त की वप्रृ त्तयों को
: कक कहीं भीड मेरा तनमाघण नहीं करती है ; चौबीि र्ण्टे भीड तो मुझे मोल्ड नहीं करती है ,
कहीं भीड के िांचे में तो मुझे नहीं जा रहा है ?

और ध्यान रहे , भीड के िांचे में कभी ककिी आत्मा का तनमाघण नहीं होता, भीड के िांचे में
मुदे आदमी ढाले हैं; और पत्थर हो जाते हैं।

जजन्हें आत्मा को पाना होता है , वे भीड के िांचे को छोड्कर ऊपर उिने की कोसशश करते हैं।
लेककन, कुछ करने की जरूरत नहीं है , सिफघ जागने की जरूरत है । धचत्त की वतृ तयों को
जागकर दे खते रहें कक मुझे पकड नहीं रही हैं?
और बडे मजे की बात है , अगर कोई जागकर दे खता है तो भीड की पकड उि पर बंद हो
जाती है । बहुत हल्कापन, बहुत वेटलेिनेि मालूम होती है , क्योंकक वजन भीड का है हमारे
सिरों पर।

हम ठदखायी पड रहे हैं कक अकेले खडे हैं, हमारे सिर पर कुछ भी नहीं है । लेककन जरा गौर िे
दे खना ककिी सिर पर गांिी बैिे हैं, ककिी के सिर पर मुहम्मद बैिे हैं, ककिी के सिर पर
महावीर बैिे हैं और अकेले नहीं बैिे अपने चेले चांठटयों के िाथ बैिे हुए हैं ! और एक-दों ठदन
िे नहीं बैिे हुए हैं, हजारों, लाखों िाल िे बैिे हुए है ।

सिर भारी हो गया है , कतार लग गयी है , कतार आकाश को छू रही है ; इतने लोग ऊपर बैिे
हुए हैं। इन िबको उतार दे ने की जरूरत है ।

अगर अपने को पाना है , तो अपने सिर िे िबको उतार दे ने की जरूरत है , कोई हक नहीं है
ककिी को कक ककिी आत्मा पर पत्थर होकर बैि जाये।

लेककन वे बेचारे नहीं बैिे है , आप ही उन्हें बबिाये हुए हैं। उनका कोई किरू नहीं है । वह तो
र्बराये हुए हैं यह आदमी कब तक ढोता रहे गा! हमारे िाण तनकले जा रहे है , ककतने ठदन िे
बबिाए हुए है यह आदमी, हमें छोडता ही नहीं!

आप ही उन्हें बबिाये हुए है । जागते ही टूट जायेगा यह मोह। कफर सिर हल्का हो जायेगा; मन
हलका हो जाएगा। उडने की तैयारी शुरू हो जायेगी। पंख खल ु जायेंगे।

और, तीिरी बात : जागना है , दमन के ितत।

लोग िोचते हैं-दमन छोड दें गे तो भोग शुरू हो जायेगा। लोग िोचते हैं- अगर क्रोि नहीं
दबाया तो क्रोि हो जायेगा, और झंझट हो जायेगी।

अगर मसलक की गदघ न पकड लेंगे, तो और ठदक्कत की बात हो जायेगी। पत्नी की गदघ न
पकडना ज्यादा कन्वीतनयएंट, ज्यादा िुप्रविापूणघ है । यह झंझट की बात हो जायेगी। इिके
आधथघक दष
ु पररणाम हो जायेंगे- अगर मासलक की गदघ न पकडेंगे। और मासलक की गदघ न
पकडने के सलये पत्नी भी कहे गी, ‘उिकी गदघ न मत पकडना; मेरी ही पकडना, क्योंकक मासलक
की गदघ न पकडी तो बच्चों का क्या होगा? पत्नी का क्या होगा? बहुत ठदक्कत में पड जायेंगे।
तुम तो मेरी ही गदघ न पकड लेना। ‘पत्नी भी यही कहे गी। ‘यही ज्यादा िुप्रविापूण,घ ज्यादा
िमझदारी का काम है कक मासलक को छोड्कर, आकर मुझ पर टूट पडना। ‘
नहीं, मैं आपिे कहना चाहता हूं-क्रोि को दबाने की जरूरत नहीं है , क्रोि को भी दे खने, और
जानने की जरूरत है । जब ककिी के ितत मन में क्रोि पकडे, तो जागकर दे खना कक क्रोि
पकड रहा है ; होश िे भर जाना कक क्रोि आ रहा है ; दे खना अपने भीतर कक क्रोि का िआ

उि रहा है । क्रोि क्या-क्या कर रहा है भीतर-दे खना। और एक अदभुत अनुभव होगा जीवन
में पहली बार : कक दे खते ही क्रोि प्रवलीन हो जाता है ; न दबाना पडता है , न करना पडता है ।

आज तक दतु नया में कोई आदमी जागकर क्रोि नहीं कर पाया है ।

बद्
ु ि एक गांव िे गज
ु रते थे। कुछ लोगों ने भीड लगा ली और बहुत गासलयां दीं बद्
ु ि को..।

अच्छे लोगों को हमने सिवाय गासलयां दे ने के और कुछ भी नहीं ठदया। जब वे मर जाते हैं
तो पूजा वगैरह भी करते हैं, लेककन वह मरने के बाद की बात है । जजंदा बुद्ि को तो गाली
दे नी ही पडेगी। लेककन, ऐिे लोग थोडे डडिटबबिंग होते हैं; थोडी गडबड कर दे ते हैं; नींद तोड
दे ते है । इिसलये गुस्िा आ जाता है । तो आदमी गाली दे ने लगता है । किरू भी क्या है ।

.. गांव के लोगों ने र्ेरकर बद्


ु ि को बहुत गासलयां दीं। बद्
ु ि ने उनिे कहा, ‘‘समरों, तम्
ु हारी
बात अगर पूरी हो गयी हो तो अब मैं जाऊं, मुझे दि ू रे गांव जल्दी पहुंचना है । ”

वे लोग कहने लगे, ‘‘बात? हम गासलयां दे रहे हैं, िीिी-िीिी। िमझ में नहीं आती आपको?
क्या बुद्धि बबलकुल खो दी है ? हम िीिी-िीिी गासलयां दे रहे हैं, बात नहीं कर रहे हैं। ”

बुद्ि ने कहा, ‘‘तुम गासलयां दे रहे हो, वह मैं िमझ गया। लेककन मैंने तो गासलयां लेना बंद
कर ठदया है ; तुम्हारे दे ने िे क्या होगा, जब तक मैं ले न िकंू ? और मैं ले नहीं िकता।
क्योंकक जब िे जाग गया हूं तब रो गाली लेना अिंभव हो गया है । जागकर कोई गलत चीज
कैिे ले िकता है ?

आप बेहोशी में चलते हैं, इिसलए पैर में कांटा गड जाता है ; अगर दे खकर चलते हों, तो कैिे
काटा गप िकता है ! गलती िे आदमी दीवाल िे टकरा िकता है ; जब आंखें खल
ु ी हों तो
दरवाजे िे तनकलता है ।

”बुद्ि ने कहा, ‘‘मैं आंखें खोलकर, जागकर, जब िे जीने लगा हूं तब िे गासलयां लेने का मन
ही नहीं करता। अब मैं बडी मुज‍कल में पड गया हूं। कोई दि िाल पहले तुम्हें आना चाठहए
था। तुम जरा दे र करके आये दो। दि िाल पहले आते, तो मजा आ जाता। तुमको मजा आ
जाता, लेककन हमको तो बहुत तकलीफ होती। हमन।। तो मजा आ रहा है । लेककन तब तुम्हें
बहुत मजा आ जाता; क्योंकक मै भी दग
ु ने वजन की गाली तुम्हें दे ता। क्योंकक अब बडी
मुज‍कल है । होश िे भरा हुआ आदमी गाली नहीं दे िकता है ।.. तो मैं जाऊं?”

वे लोग बडे है रान हो गये। बुद्ि ने कहा, ‘‘जाते वक्त एक बात और तुमिे कह दं ू प्रपछले
गांव में कुछ लोग समिाईया लेकर आ रहे थे। मैंने कहा कक मेरा पेट भरा है । वह भी जोगा
हुआ था, इिसलए कह िका; क्योंकक हुआ आदमी समिाइयां दे खकर भूल जाता है कक पेट भरा
है । बेहोश आदमी भूख दे खकर नहीं खाता; बेहोश आदमी चीजें दे खकर खाता है । होश िे भरा
आदमी पेट की भूख दे खकर खाता है ।

‘‘मेरा पेट भरा हुआ था। वह भी होश की वजह िे। दि िाल पहले अगर वे भी आये होते, तो
उनकी थासलयां उन्हें वापि न ले जानी पडती। मैं उन्हें जरूर खा लेता। लेककन, जब िे होश
आ गया है , जागकर दे खता हूं। इिसलए गलती करनी बहुत मजु ‍कल हो गई है । वे बेचारे
थासलयां वापि ले गये। तो मैं तमु िे पछ
ू ता उन्होंने उन समिाइयों का क्या ककया होगा ”?

उि गाली दे ने वाली भीड में िे एक आदमी ने कहा, ‘‘क्या ककया होगा? र्र में जाकर
समिाइयां बांट दी बुद्ि ने कहा, ‘‘यही मुझे धचंता हो रही है कक तुम क्या करोगे? तुम गासलयों
की थासलयां लेकर आये हो-और लेता नहीं; अब तम
ु उन गासलयों का क्या करोगे; ककिको
बाटोगे?

बुद्ि कहने लगे, ‘‘मुझे बडी दया: आती है तुम पर। अब तुम करोगे क्या? इन गासलयों का
क्या करोगे? मैं लेता नहीं; मैं ले िकता नहीं। चाहूं भी तो नहीं ले िकता। मजु ‍कल में पड
गया है जाग जो गया हूं।”

कोई आदमी जाग कर क्रोि नहीं कर िकता।

दमन तनिा में चलता है और जागत


ृ आदमी को दमन की जरूरत नहीं रहती।

एक आदमी मेरे पाि आता था, कुछ िमय हुआ। उिने कहा, मझ ु े बहुत क्रोि आता है । आप
कहते हैं, जागो,। मझ
ु िे नहीं होता है यह जागना। जब वह आता है , तब आ ही जाता है ।

तो मैंने एक कागज पर उिको सलखकर बडे-बडे अक्षरों में दे ठदया, ”अब मुझे क्रोि आ रहा
है ’‘ और कहा, कक इिे खीिे में रख लो। और जब भी क्रोि आये तो तनकाल कर एक दफा पढ
कर इिी खीिे में वाप्रपि रख लेना जो तुम्हें िमझ में आये करना।
वह आदमी पंिह ठदन बाद आया और कहने लगा, बडी है रानी की बात है । इि कागज में न-
जाने कैिा मंर ! जब भी क्रोि आता है , हाथ ले जाता हूं खीिे की तरफ कक क्रोि की जान
तनकल जाती है ! क्रोि आ रहा जैिे ही यह खयाल आया कक हाथ भीतर खीिे की तरफ बढने
लगते हैं और क्रोि वाप्रपि लौट जाता है ! बि, थोडी-िी िमझ की जरूरत है जीवन के ितत।
जीवन छोटे -छोटे राजों पर तनभघर है ।

और, बडे िे बडा राज यह है कक िोया हुआ आदमी भटकता चला जाता है चक्कर में , और
जागा हुआ आदमी चक्कर के बाहर हो जाता है ।

जागने की कोसशश ही िमघ की िकक्रया है । जागने का मागघ ही योग है ।

जागने की प्रवधि का नाम ध्यान है ।

जागना ही एकमार िाथघना है ।

जागना ही एकमार उपािना है ।

जो जागते हैं, वे िभु के मजन्दर को उपलब्ि हो जाते हैं।

जागते ही वप्रृ त्तयां, व्यथघताएं कचरा, कूडा-करकट धचत्त िे धगरना शुरू हो जाता है । िीरे - िीरे
धचत्त तनमघल होता चला जाता है जागे हुए आदमी का। और जब धचत्त तनमघल हो जाता है , तो
धचत्त दपघण बन जाता है ।

जैि,े झील तनमघल हो, तो उिमें चांद-तारों की िततछप्रव बनती है , और आकाश में भी चांद-तारे
उतने िुंदर नहीं मालूम पडते, जजतने की तनमघल झील की छाती पर चमक कर मालूम पडते
हैं-वैिे ही, जब धचत्त तनमघल हो जाता है जागे हुए आदमी का, तो धचत्त की तनमघलता में
परमात्मा की छप्रव ठदखाई पडनी शुरू हो जाती है । कफर वह तनमघल-धचत्त आदमी कहीं भी
जाये-फूल में भी उिे परमात्मा समलता है , पत्थर में भी, मनुष्यों में भी; पक्षक्षयों में भी; पदाथों
में भी। कफर उिके सलए पूरा जीवन ही परमात्मा हो जाता है ।

जीवन की क्रांतत का अथघ है , ‘जागरण की क्रांतत’।

इन तीन ठदनों में इि जागरण के बबन्द ु को िमझाने के सलए मैंने ये िारी बातें कहीं।
लेककन, इििे जागरण िमझ में नहीं आ िकता है । वह तो आप जागें गे तो ही िमझ में आ
िकता है ।
और, कोई दि
ू रा आपको नहीं जगा िकता, आप ही-बि, सिफघ आप ही अपने को जगा िकते
हैं।

तो दे खें अपने भीतर और एक-एक चीज के ितत जागना शुरू करें । जैिे-जैिे जागरण बढे गा,
वैि-े वैिे जीवन बढे गा-मत्ृ यु कम होगी। जजि ठदन जागरण पूणघ होगा, उि ठदन मत्ृ यु प्रवलीन
हो जायेगी; जैिे थी ही नहीं। जैिे कोई अंिेरे कमरे में एक आदमी ठदया लेकर पहुंचता है कक
अंिेरा खो जाता है । जैिे था ही नहीं। ऐिे ही जो आदमी जागरण का ठदया लेकर भीतर
जाता है , उिकी मत्ृ यु खो जाती है , दख
ु खो जाता है , अशांतत खो जाती है और उिे अमत

उपलब्ि होता है । और, वह-जजिका कोई अन्त नहीं; वह-जजिका कोई िारम्भ नहीं; वह-जों
अिीम है ; वह-जों िभु है , उिके मजन्दर में िवेश हो जाता है ।

अंत में यही िाथघना करता हूं कक उि मंठदर में िबका िवेश हो जाये। लेककन, ककिी की कृपा
िे नहीं होगा यह; ककिी के ििाद िे, आशीवाद िे नहीं होगा। अपने ही श्रम, अपने ही िंयम,
अपनी ही िािना िे होगा।

जो जागते हैं, वे पा लेते हैं। जो िोये रह जाते हैं, वे खो दे ते हैं।

मेरी बातों को इन चार ठदनों में िेम और शांतत िे िुना, उििे बहुत अनुग्रहीत हूं और अंत में
िबके भीतर बैिे परमात्मा को िणाम करता हूं।

मेरे िणाम स्वीकार करें ।

‘जीिन क्रांनत के सूत्र’


बडौदा

15 फरिर 1969

संभोग से समाधि की ओर

समाप्त

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