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अ बट आइं टाइन (1949)

समाजवाद य ?
(Why Socialism?)
या कसी ऐसे यि त के लए समाजवाद के वषय पर वचार य त करना उ चत है क जो आ थक और सामािजक मु का
वशेष नह ं है? म यह मानता हूँ क अनेक कारण क वजह से यह (उ चत) है। हम इस न पर पहले वै ा नक ान क ि ट
से वचार करना चा हए। ऐसा कट हो सकता है क खगोल व ान और अथशा के बीच कोई णाल संबंधी मौ लक अंतर नह ं
है: वै ा नक दोन े म त य के एक सी मत समूह के लए सामा य वीकायता के कानून को खोजने का यास करते ह ता क
वे इन त य के एक दसू रे के संबंध को संभव प से यादा से यादा प ट बना सक।
ले कन वा तव म ऐसे णाल संबंधी अंतर मौजूद ह। अथशा के े म सामा य कानून क खोज उस हालत से मुि कल बना
द जाती है िजस का मानना है क आ थक त य अ सर उन बहुत से कारक से भा वत होते ह िजन का अलग से मू यांकन
करना बहुत क ठन है। इसके अलावा, मानव इ तहास के तथाक थत स य अव ध क शु आत से जमा कया गया अनुभव, जैसा क
अ छ तरह से ात है, काफ हद तक उन कारण से भा वत और सी मत कया गया है जो कसी भी तरह से कृ त म पूर
तरह से आ थक नह ं रहे ह। उदाहरणतः इ तहास के मुख रा य म से अ सर अपने अि त व के त वजय के आभार ह।
जीतने वाले लोग ने, कानूनी और आ थक प से, वयं को वशेषा धकार ा त वग के प म था पत कया। उ ह ने खुद के
लए भू म वा म व का एका धकार ज त कर लया और अपने वयं के वग के बीच से ह एक पुजार नयु त कया।
पुजा रय ने, श ा के नयं ण म, समाज के वग वभाजन को एक थायी सं था बना दया और मू य का एक ऐसा स टम
बनाया िजस के ारा लोग उस समय, एक बड़ी हद तक अनजाने म, अपने सामािजक यवहार म नद शत कए गए। ले कन
ऐ तहा सक परं परा, ऐसा कहना है, तो कल क बात है; कह ं भी नह ं हम वा तव म उस चीज को हरा सके िजसे थोसटे न वे लेन
(Thorstein Veblen) ने मानव वकास का " हंसक चरण" कहा है। पालनीय आ थक त य का संब ध उसी चरण से है और इस
तरह के कानून जैसा क हम उन से ा त कर सकते ह वे अ य चरण म लागू होने यो य नह ं ह। य क समाजवाद का
वा त वक उ े य नि चत प से मानव वकास के हंसक चरण को परािजत करना और उस से परे अ म करना है, आ थक
व ान अपनी वतमान ि थ त म भ व य के समाजवाद समाज पर थोड़ा काश डाल सकता है।
दसू र बात, समाजवाद एक सामािजक-नै तक उ े य क ओर नद शत कया जाता है। व ान, तथा प, उ े य को बना नह ं
सकता है, और इस से भी कम, मनु य के मन म उ ह बैठा नह ं सकता; व ान, यादा से यादा, कुछ उ े य को ा त करने
का साधन आपू त कर सकता है। ले कन उ े य खुद उन हि तय ारा नयोिजत कए जाते ह जो बुलंद नै तक आदश वाले ह और
- अगर यह उ े य मतृ पैदा हुए ह, ले कन मह वपूण और सश त ह – वे उन बहुत से मनु य ारा अपनाये और आगे बढ़ाए जाते
ह, जो नीम अनजाने म, समाज के धीमी वकास का नधारण करते ह। इ ह ं कारण के नाते, जब मानव सम याओं का सवाल हो
तो हम व ान और वै ा नक तर क का वा त वकता से अ धक समझने म सावधानी बरतनी चा हए; और हम यह नह ं मानना
चा हए क वशेष ह वे लोग ह के वल िजन को समाज के संगठन को भा वत करने वाले सवाल पर खुद को अ भ य त करने
का अ धकार है।
कुछ समय से असं य आवाज जोर देकर कह रह ह क मानव समाज एक संकट से गुजर रहा है, यह क उस क ि थरता
गंभीर प से बखर गई है। इस कार क ि थ त क यह वशेषता है क लोग यि तगत तर पर उस समूह, छोटा या बड़ा, के
त उदासीन या श ुतापूण भाव रखते ह िजस से उन का संबंध होता है। अपने अथ का वणन करने के लए, मुझे यहाँ एक
यि तगत अनुभव रकॉड करने द। म ने हाल ह म एक बु मान और दो ताना यवहार रखने वाले आदमी के साथ एक और यु
के खतरे पर चचा क , जो मेर राय म गंभीर प से मानव जा त का अि त व खतरे म डाल दे गी, और म ने ट पणी क क एक
पूव-रा य संगठन उस खतरे से सुर ा दान करे गा। उस पर मुझ से मलने वाले ने, बहुत शां त और ठं डे दमाग से, मुझ से
कहा: "तुम मानव जा त के लापता होने के इतना यादा व य हो?"
मुझे यक न है क के वल एक सद पहले ह कसी ने भी इतने ह के ढंग से इस तरह का कोई बयान नह ं दया होता। यह एक
ऐसे यि त का बयान है िजस ने खुद के भीतर एक संतुलन ा त करने के लए यथ म कड़ी मेहनत क है और सफलता पाने
क आशा कर ब कर ब खो चुका है। यह एक ऐसी दद भरे एकांत और अलगाव का कथन है िजस से बहुत सारे लोग पी ड़त ह।
कारण या है? या इस से बाहर नकलने का कोई रा ता है? इस कार के सवाल उठाना आसान है, पर तु कुछ आ वासन के
साथ उन का उ तर देना मुि कल है। मुझ,े फर भी, िजतनी अ छ तरह म कर सकता हूँ, को शश अव य करनी चा हए, हालां क
म इस त य के बारे म बहुत सचेत हूं क हमार भावनाऐं और हमारे संघष अ सर वरोधाभासी और अ प ट होते ह और यह क
उ ह आसान और सरल व धय म य त नह ं कया जा सकता है।
मनु य, एक ह और उसी समय, एक अके ला और एक सामािजक जीव है। एक अके ला जीव होने के प म, वह, अपनी नजी
इ छाओं को पूरा करने और अपने ज मजात मताओं को वक सत करने के लए, वयं अपना और अपने से कर ब लोग के
अि त व क र ा के लए यास करता है। एक सामािजक जीव के प म, वह अपने साथी मनु य के सुख म साझा करने, उ ह
उन के दुख म दलासा देने, और उनके जीवन क ि थ तय म सुधार लाने के लए, उन क मा यता और नेह हा सल करना
चाहता है। एक मनु य के वशेष च र के इन व वध, अ सर पर पर वरोधी, संघष करने वाले वणन का के वल अि त व, और
उनके व श ट संयोजन ह उस हद को नधा रत करते ह क िजस तक कोई एक यि त एक आंत रक संतुलन को हा सल कर
सकता और समाज क भलाई के लए योगदान कर सकता है।
यह ब कुल संभव है क इन दो कमशि तय क सापे शि त, मु य प से, वरासत ारा तै क जाती है। ले कन अंत म
उभर कर सामने आने वाल यि त व का गठन काफ हद तक उस पयावरण िजस म कोई आदमी अपने वकास के दौरान वयं
को पाता है, समाज के उस ढांचे िजस म वह बढ़ता है, वषेस कार के आचरण के उस समाज के मू यांकन ारा कया जाता है।
"समाज" के का प नक मनोभाव का अथ यि तगत आद मय के लए अपने समकाल न और पहल पी ढ़य के सभी लोग से
उस के य और अ य संबंध का कुल जोड़ है। यि तगत आदमी सोचने, महसूस करने, यास करने और खुद से काम
करने म स म है; ले कन वह समाज पर इतना यादा नभर करता है - अपने शार रक, बौ क और भावना मक अि त व म –
क समाज के ढांचे के बाहर उसके बारे म सोचना, या उसे समझना असंभव है। यह समाज है जो मनु य को भोजन, कपड़े, एक
घर, काम के उपकरण, भाषा, वचार के प, और सोच क अ धकांश साम ी दान करता है; उस का जीवन म और उन कई
लाख लोग क अतीत और वतमान के मा यम से संभव बनाया जाता है जो सारे के सारे "समाज" के छोटे से श द के पीछे छपे
ह।
यह, इस लए, प ट है क यि त क समाज पर नभरता कृ त का एक त य है िजसे समा त नह ं कया जा सकता है-ठ क
उसी कार जैसे क चीं टय और मधुमि खय के मामले म है। फर भी, चीं टय और मधुमि खय क पूर जीवन या छोट सी
छोट बात म कठोर, परं परागत विृ त ारा तै होती है, मनु य के सामािजक पैटन और उस के अंतसबंध बहुत बदलने वाले और
बदलाव के त अ तसंवेदनशील होते ह। याददाशत, नए संयोजन बनाने क मता, मौ खक संचार के उपहार ने इंसान के बीच उन
ग त व धय को संभव बना दया है जो जै वक आव यकताओं से नधारण नह ं क जाती ह। इस कार क ग त व धयां वयं को
परं पराओं, सं थाओं, और संगठन ; सा ह य; वै ा नक और इंजी नय रंग उपलि धय ; कला के काम म जा हर करती ह।
यह इस बात क या या करता है क यह होता कै सै है क, कुछ खास मामल म, मनु य अपने जीवन को अपने खुद के
आचरण से भा वत करता है, और यह क इस या म जा ुक सोच और चाहत एक भू मका नभा सकते ह।
मनु य ज म के समय, आनुवं शकता के मा यम से, उन ाकृ तक आ ह स हत जो मानव जा त क वशेषताऐं ह, एक जै वक
सं वधान ा त करता है िजसे हम को अव य प से नि चत और अटल मानना चा हए। इसके अलावा, अपने जीवनकाल के
दौरान, वह एक सां कृ तक सं वधान ा त करता है िजस को वह समाज से संचार और कई अ य कार के भाव के मा यम से
अपनाता है।
यह यह सां कृ तक सं वधान है जो, समय के बीतने के साथ, प रवतन का अधीन है और जो बहुत बड़ी हद तक यि त और
समाज के बीच संबंध को नधा रत करता है। आधु नक नृ व ान ने हम को सखाया है, तथाक थत ार भक सं कृ तय क
तुलना मक जांच के मा यम से, क मनु य का सामािजक यवहार, समाज म च लत सां कृ तक पैटन और संगठन के कार पर
नभर करते हुए, बहुत अलग हो सकता है। यह इसी बु नयाद पर है क जो लोग आदमी क ि थ त सुधारने का यास कर रहे ह
वे उन क उ मीद को चकनाचरू कर सकते हैः मनु य क , उन के जै वक सं वधान के कारण, एक दसू रे का सफाया करने के लए
या एक ू र, आ म वृ त भा य क दया पर नभर होने के लए, नंदा नह ं क जाती है।
य द हम वयं से पूछ क मानव जीवन को संभव प से यादा से यादा संतोषजनक बनाने के लए समाज और आदमी क
सां कृ तक ि टकोण क संरचना को कै से प रव तत कया जाना चा हए, तो हम लगातार इस स य के त जाग क होना चा हए
क कुछ ऐसी ि थ तयां ह िजन को हम संशो धत करने म असमथ ह। जैसा क पहले उ लेख कया गया, आदमी क जै वक
कृ त, सभी यावहा रक उ े य के लए, बदलाव का पराधीन नह ं है। इसके अलावा, पछले कुछ स दय क तकनीक और
जनसांि यक य ग त व धय ने ऐसी ि थ तयां पैदा कर द ह जो बाक रहने वाल ह। कसी अपे ाकृत घनी बसी आबाद म जो उन
सामान के साथ हो जो लोग के जार अि त व के लए अ नवाय ह, म और अ य धक क कृत उ पादक तं के बीच वभाजन
ब कुल ज र ह।
समय - जो, पीछे मुड़कर देख, तो इतना सुखद लगता है - हमेशा के लए चला गया है जब यि त या अपे ाकृत छोटे समूह
पूर तरह से आ म नभर हो सकता ह। यह कहना के वल एक मामूल अ तशयोि त है क मानव जा त अब भी उ पादन और खपत
का एक ह का समुदाय ह है।
म अब उस बंदु पर पहुंच गया हूं क जहां म सं त संकेत कर सकता हूं क मेरे न द क हमारे समय के संकट क बु नयाद
या है। यह यि त के समाज से संबंध का सवाल है। यि त हमेशा क तुलना म समाज पर अपनी नभरता के बारे म पहले से
कह ं अ धक जाग क हो गया। पर तु वह इस आजाद को सकारा मक संपि त, एक काब नक संबंध, एक सुर ा बल के प म
नह ं, बि क अपने ाकृ तक अ धकार , या अपने आ थक अि त व के लए एक खतरे के प म, भुगतता करता है। इसके अलावा,
समाज म उसक ि थ त ऐसे है जैसे क उस क बनावट क अहंकार कमशि तयां लगातार बढ़ाई जा रह ह, जि क उसक
सामािजक कमशि तयां, जो ाकृ तकतः अ धक कमजोर ह, वह उ तरो तर बगड़ रह ह। सारे मनु य, समाज म उनक ि थ त जो
भी हो, गरावट क इस या से पी ड़त ह। अनजाने म अपने वयं के अहंकार के कै द , वे असुर त, अके ला, और जीवन क
भोल , सरल, और अप र कृत आनंद से वं चत महसूस करते ह। मनु य जीवन म अथ, लघु और खतरनाक जैसा क यह है, के वल
वयं को समाज के लए व फ कर के ह पा सकता है।
पंूजीवाद समाज क आ थक अराजकता जैसा क यह आज है, मेर राय म, बुराई का असल ोत है। हम अपने सामने
उ पादक का एक बड़ा समुदाय देखते ह िजस के सद य लगातार एक दसू रे को अपने सामू हक म के फल से वं चत रखने का
यास कर रहे ह- बल के ारा नह ं, बि क कुल मला कर कानूनी तौर पर था पत नयम के साथ वफादार अनुपालन म। इस
संबंध म, यह महसूस करना मह वपूण है क उ पादन के साधन - यानी, उपभो ता व तुओं और इसी कार से अ त र त पंूजी के
सामान म ज रत पड़ने वाल पूर उ पादक मता - कानूनी तौर पर हो सकती है, और अ धकांश, यि तय क नजी संपि त ह।
सादगी के लए, आने वाले चचा म म " मका" उन तमाम लोग को कहूं गा िजन का उ पादन के साधन क वा म व म
ह सा नह ं है- हालां क यह श द च लत उपयोग के अनु प नह ं है। उ पादन के साधन का मा लक मजदरू क म शि त को
खर दने क ि थ त म है। उ पादन के साधन का उपयोग करके , कायकता नये माल पैदा करता है जो पंूजीवा दयो क संपि त बन
जाते ह। इस या के बारे म आव यक बंदु है क कायकता या पैदा करता है और उस को या भुगतान कया जाता है इन के
बीच संबंध, दोन वा त वक मू य के संदभ म मापे जाते ह। जहाँ तक यह बात है क म अनुबंध " मु त," है जो चीज कायकता
पाता है उस को उन व तुओं क वा त वक मू य से नधा रत नह ं कया जाता है िजन का वह उ पादन करता है, बि क उस क
यूनतम आव यकताओं और नौक रय के लए मुकाबला कर रहे मक क सं या के संबंध म म शि त के लए पंूजीवाद क
आव यकताओं के ारा (उस का वा त वक मू य नधा रत कया जाता है)। यह बात समझनी मह वपूण है क स ांत म भी
कायकता का भुगतान उसके उ पाद क क मत से नधा रत नह ं क जाती है।
नजी पंूजी कुछ हाथ म क त रहने का अधीन है, कुछ तो पंूजीप तय के बीच मुकाबला के कारण, और कुछ इस लए क
तकनीक वकास और म क बढ़ती भाग छोटे लोग क क मत पर उ पादन क बड़ी इकाइय के गठन को ो सा हत करता है।
इन वकास का प रणाम नजी पंूजी का एक नजी पंूजी का अ पजना धप य है िजस क भार शि त को एक लोकतां क ढंग से
संग ठत राजनी तक समाज ारा भी भावी ढंग से रोका नह ं जा सकता है। यह स य है य क वधायी नकाय के सद य का
चयन राजनी तक दल ारा कया जाता है, जो उन नजी पंूजीप तय ारा काफ हद तक व तपो षत या अ यथा भा वत क
जाती ह, जो सभी यावहा रक उ े य के लए, वधा यका से मतदाताओं को अलग करते ह। प रणाम यह है क जनता के
त न ध वा तव म पया त प से आबाद के वं चत वग के हत क र ा नह ं करते ह। इसके अलावा, मौजूदा प रि थ तय म,
नजी पंूजीपती अ नवाय प से, सीधे या परो तौर पर, सूचना के मु य ोत ( ेस, रे डयो, श ा) नयं ण करते ह। इस कार
यह बेहद मुि कल, और वा तव म यादातर मामल म काफ असंभव है, यि तगत नाग रक के लए, कसी सामा य नणय पर
पहुंचना और अपने राजनी तक अ धकार का समझदार के साथ उपयोग करना यादातर मुआमल म ब कुल असंभव है।
पँूजी के नजी वा म व पर आधा रत एक अथ यव था म मौजूद ि थ त इस कार से दो मु य स ांत वाल होती हैः पहला,
उ पादन (पंूजी) के साधन का नजी प से वामी बना जाता है और मा लक उनको वैसे नपटाते ह जैसा क वह उ चत समझते
ह; दसू रा, म अनुबंध वतं होता है। बेशक, इस अथ म एक शु पंूजीवाद समाज जैसी कोई चीज नह ं है। वशेष प से, इस
बात पर यान दया जाना चा हए क कायकताओं ने, लंबे और कड़वे राजनी तक संघष के मा यम से, कायकताओं क कुछ े णय
के लए "मु त म अनुबंध" क कुछ हद तक सुधर हुई श ल हा सल करने म सफलता ा त क है। ले कन कुल मला कर
वतमान दन क अथ यव था "शु " पंूजीवाद से यादा अलग नह ं है।
उ पादन लाभ के लए कया जाता है, उपयोग के लए नह ं। कोई ऐसा ावधान नह ं है क काम करने म स म और काम करने
क चाहत रखने वाले सभी लोग हमेशा रोजगार पाने क ि थ त म ह गे; एक "बेरोजगार क सेना" लगभग हमेशा मौजूद होती है।
कायकता लगातार अपनी नौकर खोने के डर म होते ह। य क बेरोजगार और कम भुगतान कए जाने वाले मक एक
लाभदायक बाजार दान नह ं करते ह, उपभो ताओं क व तुओं के उ पादन सी मत हो जाते ह, प रणाम एक बड़ी क ठनाई होता
है।
तकनीक ग त सभी लोग के काम के बोझ को ह का करने के बजाय अ सर और यादा बेरोजगार म प रणा मत होती है।
लाभ क मंशा, पंूजीप तय के बीच मुकाबला के संयोजन के साथ, उस पंूजी को जमा करने और उस के उपयोग म एक अि थरता
के लए िज मेदार है जो बढ़ते रहने वाले गंभीर उदासी क ओर ले जाती है। असी मत तयो गता म क एक बड़ा बेकार और
यि तय के सामािजक चेतना के नबल होने का कारण बनता है िजस का म ने पहले उ लेख कया है।
यि तय क यह अपंगता मेरे वचार म पंूजीवाद क सबसे बड़ी बुराई है। हमार पूर श ा योजना इस बुराई से त है। छा
म एक अ तशयोि त तयो गता मक रवैया बैठाया जाता है, िजसे अजनशील सफलता क अपने भ व य के कै रयर के लए एक
तैयार के प म पूजा करने के लए श त कया जाता।
म आ व त हूँ क इन गंभीर बुराइय को ख म करने के लए सफ एक ह रा ता है, अथात् एक समाजवाद अथ यव था क
थापना के मा यम से, िजस के साथ म एक सामािजक ल य क ओर दशा द गई एक श ा योजना हो। एक ऐसी अथ यव था
म, उ पादन के साधन क वा म व वयं समाज के हाथ म होती है और उनका एक योजनाब तर के से उपयोग कया जाता है।
एक योजनाब अथ यव था, जो उ पादन को समुदाय क आव यकताओं के समायोिजत कर देती है, काम को काम करने म स म
सभी लोग के बीच बांट देगी और येक प ष, ी और ब चे को एक आजी वका क गारं ट देगी। एक यि त क श ा, उसक
खुद क ज मजात मता को बढ़ावा देने के अलावा, उस के भीतर हमारे वतमान समाज म तु त, शि त और सफलता के थान
पर अपने साथी लोग के त िज मेदार क भावना वक सत करने का यास करे गी।
फर भी, यह याद करना आव यक है क एक योजनाब अथ यव था फर भी समाजवाद नह ं है। एक योजनाब अथ यव था,
यथाथ, के साथ एक यि त क पूर दासता हो सकती है। समाजवाद क उपलि ध को कुछ बेहद मुि कल सामािजक-राजनी तक
सम याओं के समाधान क अव य ता हैः राजनी तक और आ थक शि त के दरू गामी क करण को देखते हुए, नौकरशाह को
सवशि तमान और नरं कुश बनने से रोकना कै से संभव है? कै से यि त के अ धकार क र ा क जा सकती है और उस के साथ
नौकरशाह क शि त के एक लोकतां क तोड़ का आ वासन दया जा सकता है?
समाजवाद के ल य और सम याओं के बारे म प टता सं मण क हमारे युग म सबसे बड़े मह व वाला है। य क, वतमान
प रि थ तय म, इन सम याओं क मु त और नबाध चचा एक शि तशाल नषेध के दायरे म आ गया है, मेरे वचार म इस
प का क नींव थापना एक मह वपूण सावज नक सेवा है।

अ बट आइं ट न व व स भौ तक व ानी ह। यह लेख मूल प से Monthly Review (मई 1949) के थम अंक म


का शत हुआ था। यह बाद म MR के पचासव वष को मनाने के लए मई 1998 म का शत कया गया था। - संपादक गण

िह दी अनुभाग

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