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कर्म और ज्ञान

एक बार एक जं गले र्ें आग लग गई । उसर्ें दो व्यक्ति फँस गए थे । उनर्ें से एक अँधा तथा


दू सरा लं गड़ा था । दोनों बहुत डर गए ।

अंधे ने आव दे खा न ताव बस दौड़ना शुरू कर ददया । अंधे को यह भी ख्याल नहीं रहा की वो


आग की तरफ दौड़ रहा था । लं गड़ा उसे आवाज़ दे ता रहा पर अंधे ने पलटकर जवाब नहीं ददया

लं गड़ा आग को अपनी तरफ आती तो दे ख रहा था पर वह भाग नहीं सकता था । अंत र्ें दोनों
आग र्ें जलकर र्र गए ।

अंधे ने भागने का कर्म दकया था पर उसे ज्ञान नहीं था दक दकस तरफ भागना है ।

लं गड़े को ज्ञान था की दकस तरफ भागना है पर वो भागने का कर्म नहीं कर सकता था ।

अगर दोनों एक साथ रहते और अँधा लं गड़े को अपने कंधे पर दबठा कर भागता तो दोनों की
जान बच सकती थी ।

तात्पयम:

।। कर्म के दबना ज्ञान व्यथम है ।।


।। ज्ञान के दबना कर्म व्यथम है ।।

हतं णाणर्् दिया हीनर्् , हतं अन्नाणं ओ दिया।


पासन्तो पुंगलो ददट्ठो, ध्यायर्ाणोय अंधलो ।।

ज्ञानवान है दकन्तु दिया नहीं है और दियावान है दकन्तु ज्ञान नहीं है । तो पहला आँ खों के होते पंगु
(लं गड़े ) के सर्ान है। और दू सरा पैरों के रहते अंधे के सर्ान है ।

सफलता के दलए ज्ञान और दिया दोनो आवश्यक है ।

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