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॥ कालिकास्तोत्रम् ॥

श्रीगणे शाय नमः ॥

दधन्नै रन्तयाा दलि मलिनचयाां सिलद यत्


सियाां िश्यन्सन् लिशतु सुरिु याां नरिशु ः ।
भटान्वयाा न् िीयाा समहरदसूयाा न् सलमलत या
जगद् धु याा कािी मम मनलस कुयाा लन्निसलतम् ॥ १॥

िसन्नासामुक्ता लनजचरणभक्तािनलिधौ
समुद्युक्ता रक्ताम्बुरुहदृगिक्ताधरिु टा ।
अलि व्यक्ताऽव्यक्तायमलनयमसक्ताशयशया
जगद् धु याा कािी मम मनलस कुयाा लन्निसलतम् ॥ २॥

रणत्सन्मञ्जीरा खिदमनधीराऽलतरुलचर-
स्फुरलिद् युच्चीरा सुजनझषनीरालयततनु ः ।
लिराजत्कोटीरा लिमितरहीरा भरणभृ त्
जगद् धु याा कािी मम०॥ ३॥

िसाना कौशे यं कमिनयना चन्द्रिदना


दधाना कारुण्यं लििु िजघना कुन्दरदना ।
िु नाना िािाद्या सिलद लिधु नाना भिभयं
जगद् धु याा कािी मम०॥ ४॥

रधू त्तंसप्रे क्षारणरलणकया मेरुलशखरात्


समागाद्या रागाज्झलटलत यमुनागालधिमसौ ।
नगादीशप्रे ष्ठा नगिलतसुता लनजा रनु ता
जगद् धु याा कािी मम मनलस-॥ ५॥

लििसन्निरत्नमालिका कुलटिश्यामिकुन्तिालिका ।
निकुङ् कुमभव्यभालिकाऽितु सा मां सुखकृद्धि कालिका ॥ ६॥

यमुनाचिद्दमुना दु ःखदिस्य दे लहनाम् ।


अमुना यलद िीलक्षता सकृच्छमु नानालिधमातनोत्यहो ॥ ७॥
अनु भूलत सतीप्राणिररत्राणिरायणा ।
दे िैः कृतसियाा सा कािी कुयाा च्छुभालन नः ॥ ८॥

य इदं कालिकास्तोत्रं िठे त्तु प्रयतः शु लचः ।


दे िीसायुज्यभु क् चे ह सिाा न्कामानिाप्नु यात् ॥ ९॥

इलत कालिकास्तोत्रं सम्पूणाम् ॥

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