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कार्य प्रपत्र 4

नाम -----------------------------------------------अनुक्रमाांक ------------------कक्षा


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विषर् -----------------प्रपत्र सांख्या -------------------------------------विनाांक --------


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अपवित गद्ाांश
ईर्ष्या विषैली प्रशं सय है । जब आप विसी से ईर्ष्या िरते है तो पहली बयत यह है वि आप उसिे प्रशं सि हैं । आप
मन ही मन मयनते हैं वि िह िुछ है । िह धन,बल बुद्धि ,प्रवतभय ,प्रवसद्धि विसी न विसी बयत मे आप से आगे
है । आगे ही नहीं है बद्धि इतनय आगे है वि आप उसिी बरयबरी नहीं िर सिते। इसवलए आप हर तरह से
लयचयर होिर उससे जलने लगते हैं । बेचयरे आप, िरें भी क्यय?

अगर िोई मोटर सयइिल चलयते हुए आप से आगे वनिल गयय तो आप भी अपनी मोटर सयइिल तेज़ िर दें गे ।
सोचेंगे वि मैं इससे आगे वनिलूँ गय । यह स्पधया हुई । प्रवतयोवगतय शु रू हो गयी । इस समय आप जले भु ने नहीं।
आपने होड शु रू िर दी । अपनी शद्धियों िो बढ़यनय शु रू िर वदयय । आपने िोवशश िी वि उसे पछयड़ दें ।
आपमे आशय शे ष है । वहम्मत और विरयय शद्धि भी बनी हुई है ।परं तु आपने दे खय वि आपिे ज़ोर लगयने पर भी
प्रवतयोगी िी मोटर सयइिल आपिी मोटर सयइिल से बहुत आगे भयगी जय रही है । तब आप हयर मयन जयते हैं
और जल िर िहते हैं –मरे गय यह दु ष्ट ! ऐसे ही दु ष्ट सड़िों पर िुचल जयते हैं ।

आप अपनय परीक्षण स्वयं िीवजये । क्यय आप उसिी तेज़ गवत िे प्रशं सि नहीं हैं ? अिश्य हैं । परं तु आपने
उसे अपनय विरोधी मयन वलयय है । और िह विरोधी आपिो हरयतय हुआ उड़य जय रहय है । िह आपिो वपछड़य हुआ
वसि िर गयय है । आपिो बतय गयय है वि आप िुछ नहीं हैं । बस तभी ईर्ष्या शु रू हो जयती है ।

अब दसरय दृश्य दे खें । जो मोटर सयइविल सियर तफयनी गवत से आपिो पीछे छोड़ गयय है ,उसिय एि वमत्र
बहुत खु श है । िह आपिो हतयश और परयस्त दे खिर और भी खु श है । िह आपिी द्धखल्ली उड़यतय है । सयथ ही
अपने तीव्र गयमी वमत्र िी प्रशं सय िरतय है । प्रशं सि िह भी और आप भी । बस अंतर इतनय है वि िह उसिी
तेज़ गवत िय प्रशं सि बनिर उसिे सयथ एियियर हो गयय है । उसने अपने वमत्र िों वमत्र मयन िर अपनय वलयय
है । िह उसिी शयन में अपनी शयन मयनने लगय है । आप उसिे विरोध मे खड़े हो गए हैं । आपने विष उगलनय
शु रू िर वदयय है , जबवि प्रशं सि ने प्रशं सय िय अमृ त उड़े लनय शुरू िर वदयय है । तभी में िहतय हूँ – ईर्ष्या में
प्रयय प्रशं सय वछपी रहती है ।

अब प्रश्न यह है वि क्यय ईर्ष्या से बचय जय सितय है ? क्यय उसे प्रशं सय यय स्पधया में बदलय जय सितय है ?
इसिय उत्तर दे नय तो सरल है , विन्तु व्यिहयर में उतयरनय उतनय ही िविन है । ियस्ति में हर मनुर्ष् विसी न
विसी से , विसी न विसी ियरण से स्वयं िों दसरों से अच्छय समझतय है । इसी अच्छयई यय गौरि से उसे आनं द
वमलतय है । िह अपने इस आनं द िी धयरय िों तोड़नय नहीं चयहतय । यहयूँ ति वि एि वशशु अपनी मयूँ िय वप्रय
पुत्र होिर एि सुख िय अनु भि िरतय है । परं तु जै से ही उसिय अन्य भयई यय बवहन मयूँ िय ध्ययन खीच ं तय है तो
उसे वमलने ियले सुख में बयधय पहुूँ चती है । अत िह दु खी हो उितय है । िभी िभी िह ईर्ष्या से जलिर उसे
धक्कय भी दे दे तय है । परं तु थोड़य समझदयर होने पर जब उसिे मन मे अपने भयई यय बवहन िे प्रवत स्नेह िय भयि
जयग उितय है तो िह धक्कय नहीं दे तय बद्धि उसे भी गले लगयिर मयूँ िे सयथ एियियर हो जयनय चयहतय है ।

इस उदयहरण से स्पष्ट होतय है वि विसी िी उन्नवत िों दे खिर उसिे अपने खु श होते हैं और परयय
द्धखन्न होतें हैं । अत ईर्ष्या से बचनय है तो गुणी व्यद्धि िों अपनयनय सीखो । उसे अपनय बनयनय सीखो । उसिे विरोध
में खड़े हुए वि ईर्ष्या िी ययत्रय शु रू हुई । जब आप यह समझ जययेगे वि ईर्ष्या से आपिी हयवन ही हयवन होगी –
िुछ पल्ले नहीं पड़े गय – तो शययद आप ईर्ष्या िों स्पधया यय प्रशं सय में ढ़यलने िी िोवशश िरें । वजस व्यद्धि में
अहं ियर वजतनय नु िीलय होगय ,िह उतनय ही ईर्ष्या लु होगय । जो अपने अहं ियर से बचनय जयनतय होगय , अहं ियर
होते हुए भी उसे अपने से अलग रखनय जयनतय होगय , िह उतनय ही ईर्ष्या से बच सिेगय । जै से ऊन िे उलझे
हुए गोले िों अंधयधुंध खीच
ं ने से गोलय उलझतय ही है , सुलझतय नहीं , िैसे अहं ियर िय द्धखंचयि बनयए रखने से
समस्ययएूँ बढ़ती ही हैं , घटती नहीं ।

प्रश्न

1-इस अनु च्छेद िय उपयुि शीषा ि वलद्धखए ।

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2-ईर्ष्या लु विस ियरण विसी से ईर्ष्या िरतय है ?

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3 –ईर्ष्या में विरोधी िी प्रशं सय िय भयि होतय है – क्यय यह सच है िैसे ?

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4-स्पधया िब शु रू होती है ?

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5- स्पधया िब ईर्ष्या में बदल जयती है ?

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6-विसी गुणी िे प्रशं सि बनने िे वलए क्यय आिश्यि है ?

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7- विस प्रियर िय व्यद्धि अवधि ईर्ष्या लु होतय है ?

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8- प्रशांसा तथय िु खी शब्दां िे विलोम शब्द वलद्धखए ।


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9- तीव्रगामी तथय गौरि शब्दों िो ियक्य में प्रयुि िीवजये ।

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10- शुरू तथय वमत्र िे दो-दो पयया यियची शब्द वलद्धखए ।

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