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संतवधान भाग-4 #Part- 7

भाग 4
नीतत तनदशे क
अनच्ु छेद 36 से 51 तत्व
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तवद्या एक ऐसा धन है जो बांटने से बढाता है .
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• भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छे द 36 से 51 तक राज्य के नीवत
वनदेशक तत्ि शावमल वकए गये हैं । भारतीय संविधान के भाग 3 तथा 4
वमलकर संविधान की आत्मा तथा र्ेतना कहलाते है ।

• राज्य के नीवत वनदेशक तत्त्िों का उद्दे श्य सामवू हक रूप से भारत में
आवथि क एिं सामावजक लोकतन्त्र की रचना करना तथा कल्याणकारी
राज्य की स्थापना करना हैं ।
• भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छे द 36 से 51 तक राज्य के नीवत
वनदेशक तत्ि शावमल वकए गये हैं । भारतीय संविधान के भाग 3 तथा 4
वमलकर संविधान की आत्मा तथा चेतना कहलाते है ।

• राज्य के नीवत वनदेशक तत्त्िों का उद्दे श्य सामवू हक रूप से भारत में
आवथि क एिं सामावजक लोकतन्त्र की रचना करना तथा कल्याणकारी
राज्य की स्थापना करना हैं ।
 नीवत वनदेशक तत्ि -

• नीवत वनदे शक तत्िों को आयरिैंड के संतवधान से अतभप्रेररत


होकर के वलया गया है ।
• डॉक्टर भीमराि अंबेडकर ने नीवत वनदेशक तत्िों को भारतीय
संविधान की विशेषता कहा ।
• नीवत वनदे शक तत्ि अपररवतचनीय है अथाथि भाग 4 में वदए गए
उपबंधों पर वकसी न्त्यायालय द्वारा बाध्यता नहीं की जा सकेगी।
• उद्देश्य - नीवत-वनदेशक वसद्ांतों का उद्दे श्य
कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है ।
सामवू हक रूप से ये वसद्ांत भारत में आवथि क एिं
सामावजक लोकतंर की रचना करते हैं । वनदे शक
वसद्ांतों का िास्तविक महत्ि इस बात का है वक ये
नागररकों के प्रवत राज्य के दावयत्ि के द्योतक हैं ।
• नीवत-वनदेशक तत्वों की प्रकृतत
• अनु 37 के अनसु ार ये तत्व तकसी न्यायािय द्वारा िागू नही
करवाये जा सकते यह तत्व वैधातनक न होकर राजनैततक
स्वरूप रखते है तथा नैततक अतधकार मात्र रखते है । ये कोई
वैधातनक बाध्यता राज्य पे िागू नहीं करते ,यह राज्य के तिये
ऐसे सामान्य तनदेश है तक राज्य कुछ ऐसे कायच करे जो राज्य
की जनता के तिये िाभदायक हो । इन तनदेशों का पािन
कायचपातिका की नीतत तथा तवधातयका की तवतधयाँ से हो
सकता है ।
नीवत वनदेशक तत्ि
अनच्ु छेद तववरण

36 पररभाषा : राज्य शब्द को पररभातषत तकया गया है।

इस भाग में अंततवचष्ट तत्वों का िागू होना : अनुच्छे द 37 घोषणा करता है


तक- तनदेशक तत्व देश के शासन के मूिातधकार हैं और तनश्चय ही तवतध
बनाने में इन तसद्ांतों को िागू करना राज्य का कतचव्य होगा। ये तसद्ांत
37
तकसी न्यायािय में प्रवतचनीय नहीं होंगे। अतभप्राय यह तक न्यायपातिका
राज्य की तनदेशक तत्वों के अंतगचत तकसी कतचव्य को तनभाने के तिए
तववश नहीं कर सकती।
अनुच्छेद तववरण

राज्य िोक कल्याण की अतभवतृ द् के तिए सामातजक


38
व्यवस्था बनाएगा ।
अनुच्छेद तववरण
राज्य द्वारा अनस
ु रणीय कुछ नीतत तत्व : राज्य अपनी नीतत का इस प्रकार संर्ािन
करे गा तक सतु नतश्चत रूप से –

ु षों तथा तियों को जीतवका के पयाचप्त साधन प्राप्त करने का


1. सभी परु
अतधकार हो ।
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2. भौततक संपदा का स्वातमत्व तथा तनयंत्रण में सामूतहक तहतो को
प्रधानता दी जाये ।

3. आतथचक व्यवस्था इस प्रकार र्िे तक धन और उत्पादन के साधनों का


सवचसाधारण के तिए अतहतकारी संकेंद्रण न हो ।
अनुच्छेद तववरण

राज्य द्वारा अनस


ु रणीय कुछ नीतत तत्व : राज्य अपनी नीतत का इस
प्रकार संर्ािन करे गा तक सतु नतश्चत रूप से –

ु षों और तियों दोनों का समान कायच के तिए समान वेतन


4. परु
39
हो।

5. परु ु षों तथा तियों के स्वास््य और शति का और बच्र्ों की


सक ु ु मार अवस्था का दरुु पयोग न हो ।
अनच्ु छेद तववरण

राज्य यह सतु नतश्चत करे गा तक तवतधक व्यवस्था इस तरह से


39क
काम करे तक न्याय समान अवसर के आधार पर सि ु भ हो ।
अनच्ु छेद तववरण

40 ग्राम पंचायतों का गठन करने के वलए कदम उठाएगा .


अनच्ु छेद तववरण

कुछ दशाओं में काम, वशक्षा और लोक सहायता पाने का


41
अवधकार
अनच्ु छेद तववरण

काम की न्त्यायसंगत और मानिांवछत दशाओं का तथा


42
प्रसवू त सहायता का उपबंध
अनच्ु छेद तववरण

43 कमि कारों के वलए वनिाि ह मजदूरी आवद


अनच्ु छेद तववरण

44 नागररकों के वलए एक समान नागररक संतहता


अनुच्छेद तववरण

बालकों के वलए वन:शुल्क और अवनिायि वशक्षा का उपबंध :


45 86िें संविधान संशोधन अवधवनयम, 2002 द्वारा संविधान के
अनुच्छे द 45 को संशोवधत वकया गया है ।
अनच्ु छेद तववरण

अनुसवू चत जावत, अनुसवू चत जनजावत तथा अन्त्य दुबिल िगों


46
के वशक्षा और अथि संबंधी वहतों की अवभिवृ द्
अनच्ु छेद तववरण

पोषाहार स्तर और जीिन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक


स्िास््य को सुधार करने का राज्य का कति व्य : राज्य
47
सािि जवनक स्िास््य में सुधार तथा मादक द्रव्यों और
हावनकर औषवधयों का वनषेध करे गा।
अनच्ु छेद तववरण

राज्य कृवष और पशुपालन को आधुवनक और िैज्ञावनक


प्रणावलयों से संगवठत करने का प्रयास करे गा। गायों, बछडों,
48 दूध देने िाले तथा िाहक शरुओ ं की रक्षा तथा नस्लों के
परररक्षण औरसुधार के वलए और उनके िध का प्रवतषेध
करने के वलए उवचत कदम उठाएगा।
अनच्ु छेद तववरण

राज्य देश के पयाि िरण की संरक्षा तथा उसमें सुधार करने का


48क
और िन एिं िन्त्य जीिों की रक्षा करने का प्रयास करे गा।
अनुच्छेद तववरण
राज्य ऐवतहावसक तथा राष्ट्रीय महत्ि के स्मारकों की रक्षा
49
करे गा।

50 राज्य न्त्यायपावलका को कायि पावलका से पथ


ृ क् करे गा।
अनुच्छेद तववरण
अंतरराष्रीय शांतत और सरु क्षा की अतभवतृ द् : राज्य

1. अंतरराष्रीय शांतत और सुरक्षा की अतभवतृ द् , राष्रों के बीर् न्यायसंगत


और सम्मानपूणच संबंधों को बनाए रखने का,
51 3. संगतठत िोगों के एक-दूसरे से व्यवहारों में अंतरराष्रीय तवतध और संतध
बाध्यताओ ं के प्रतत आदर बढ़ाने का, तथा;

4. अंतरराष्रीय तववादों की मध्यस्थता द्वारा तनपटाने के तिए प्रोत्साहन देने


का प्रयास करे गा।
अनुच्छेद तववरण
अंतरराष्रीय शांतत और सरु क्षा की अतभवतृ द् : राज्य

1. अंतरराष्रीय शांतत और सरु क्षा की अतभवतृ द् , राष्रों के बीर् न्यायसंगत


और सम्मानपूणच संबंधों को बनाए रखने का,
51
3. संगतठत िोगों के एक-दूसरे से व्यवहारों में अंतरराष्रीय तवतध और संतध
बाध्यताओ ं के प्रतत आदर बढ़ाने का, तथा;

4. अंतरराष्रीय तववादों की मध्यस्थता द्वारा तनपटाने के तिए प्रोत्साहन देने


का प्रयास करे गा।
• मौवलक अवधकारों और वनदेशक वसद्ांतों में अंतर

• 1. मौवलक अवधकार न्त्यायालयों द्वारा लागू वकए जा सकते हैं,


िहीं राज्य नीवत के वनदेशक तत्ि न्त्यायालय द्वारा लागू नहीं वकए
जा सकते अथाि त मौवलक अवधकार िाद योग्य हैं तथा नीवत-
वनदेशक तत्ि िाद योग्य नहीं हैं।
• मौवलक अवधकारों और वनदेशक वसद्ांतों में अंतर

• 2. मौवलक अवधकार राज्य की नकारात्मक भवू मका का िणि न


करते है तथा राज्य को कुछ विशेष कृत्य करने से रोकते है िही ये
तत्ि राज्य की सकारात्मक भवू मका दावयत्ि का िणि न करते है
तथा राज्य से अपेक्षा करते है वक िह जनकल्याण हे तु विवशष्ट
प्रयास करे
• 3. जहां मौवलक अवधकारों के द्वारा राजनीवतक लोकतंर की स्थापना की
गई है। िहां नीवत-वनदेशक वसद्ांतों द्वारा आवथि क लोकतंर की स्थापना होती
है। मौवलक अवधकारों के अंतगि त कानन ू के समक्ष समता भाषण और
अवभव्यवि की स्ितंरता, जीिन और व्यविगत स्ितंरता का अवधकार तथा
वकसी भी धमि को मानने की स्ितंरता आवद राजनीवतक लोकतंर की
स्थापना का आधार बनाते हैं। परं तु वनदे शक वसद्ांतों ने आवथि क एिं
सामावजक क्षेर में लोकतंर की स्थापना पर बल वदया है इन वसद्ांतों के
अनुसार राज्य भौवतक साधनों को वसवमत लोगों के हाथों में केंवद्रत न होने
दे ने तथा उत्पादन के साधनों को सािि जवनक वहतों के उपयोग के वलए, अपनी
िचनबद्ता प्रदवशि त करता है ।
• 4 . मौवलक अवधकारों को (अनुच्छे द 20 तथा 21 में िवणि त अवधकारों को
छोडकर) अनुच्छे द 352 के अंतगि त घोवषत आपातकालीन वस्थवत में प्रिति न
काल में स्थवगत वकया जा सकता है, जबवक वनदे शक तत्िों का जब तक
वियान्त्ियन नहीं होता तब तक िे स्थायी रूप से स्थगन की अिस्था में ही
बने रहते हैं।
• 6. मौवलक अवधकार सािि भौम नहीं हैं, उन पर कुछ प्रवतबंध हैं, जबवक
वनदे शक वसद्ांतों पर कोई प्रवतबंध नहीं है।
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