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1. कृ णा ह रस का सागर है ।
2. अपने तट थ वाभाव क वजह से ह जीव सभी ब धन से
मु त होते है ।
3. जीव इस द ु नया और एक जैसे भगवान से पूर तरह से अलग
होते है ।
4. पण
ू और शु ध धा ह जीवो का सबसे बड़ा अ यास है ।
5. कृ णा का शु ध यार ह सव े ट ल य है ।
6. सभी जीव भगवान के ह छोटे -छोटे भाग है ।
7. कृ णा ह सव े ट परम स य है ।
8. कृ णा ह सभी उजाओ को दान करता है ।
9. जीव अपने तट थ वाभाव क वजह से ह मुि कल म आते है ।
चैत य के अनस
ु ार भि त ह मिु त का साधन है । उनके अनस
ु ार
जीवो के दो कार होते है , न य मु त और न य संसार । न य मु त
जीवो पर माया का भाव नह पड़ता जब क न य संसार जीव मोह-
माया से भरे होते है । चैत य महा भु कृ णा भि त के ध न थे।
यायशा म उ ह स ध पं डत भी कहा जाता था। युवाव था म ह
चैत य महा भु ने घर को छोड़कर स यास ले लया था।उनके अनुसार
–“हरे कृ ण, हरे कृ ण, कृ ण कृ ण हरे हरे । हरे राम, हरे राम, राम
राम हरे हरे ।” यह महामं सबसे यादा मधरु और भगवान को य
है ।