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अर्थ : जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं और न इनका नाश होता है ,
उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो।
अर्ाथ त व्यक्तक्त को कभी जकसी भी प्रकार का भय नहीं पालना चाजहए। भय से िहां
शारीररक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानजसक रोग भी िन्मते हैं । डरे हुए व्यक्तक्त का कभी
जकसी भी प्रकार का जवकास नहीं होता। संयम के सार् जनजभथकता होना िरूरी है । डर
जसर्थ ईश्वर का रखें।
अलसस्य कुतः थवद्या अथवद्यस्य कुतः धनम्। अधनस्य कुतः थमत्रम् अथमत्रस्य कुतः
सुखम्।।
अर्थ : आलसी को जवद्या कहां , अनपढ़ या मूखथ को धन कहां , जनधथन को जमत्र कहां और
अजमत्र को सुख कहां ।
येषाां न थवद्या न तपो न दानां, ज्ञानां न शीलां न गुणो न धमवः । ते मृत्युलोके भुथव
भािभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चिन्ति।।
अथव : थजसके पास थवद्या, तप, ज्ञान, शील, गुण औि धमव में से कुछ नही ां वह मनुष्य
ऐसा जीवन व्तीत किते हैं जैसे एक मृग।
अर्ाथ त : जिस मनुष्य ने जकसी भी प्रकार से जवद्या अध्ययन नहीं जकया, न ही उसने व्रत
और तप जकया, र्ोड़ा बहुत अन्न-वस्त्र-धन या जवद्या दान नहीं जदया, न उसमें जकसी भी
प्राकार का ज्ञान है , न शील है , न गुण है और न धमथ है । ऐसे मनुष्य इस धरती पर भार
होते हैं । मनुष्य रूप में होते हुए भी पशु के समान िीवन व्यतीत करते हैं ।
उक्त तरह की भावना रखने वाले का मन जनमथल रहता है । जनमथल मन से जनमथल भजवष्य
का उदय होता है ।
मा भ्राता भ्रातिां थिक्षन्, मा स्वसािमुत स्वसा। सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचां वदत
भद्रया।।2।। (अथवववेद 3.30.3)
अर्ाथ त : भाई, भाई से द्वे ष न करें , बहन, बहन से द्वे ष न करें , समान गजत से एक-दू सरे का
आदर- सम्मान करते हुए परस्पर जमल-िुलकर कमों को करने वाले होकर अर्वा एकमत
से प्रत्येक कायथ करने वाले होकर भद्रभाव से पररपूणथ होकर संभाषण करें ।