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गाँधी जी अपनी जीवनी में लिखते हैं कि आम हिन्दुओं
गाँधी जी अपनी जीवनी में लिखते हैं कि आम हिन्दुओं
लबििुि ऐस ही हदत है जब “जौहर” ि लजक्र िरते समय भंस िी िहते हैं हमने “र जपूतदं” िी भ वन ि पूर ख़य ि रख है । क्य
“जौहर” लसर्फ र जपूतदं ि मु द्द र्थ ? क्य ये लसर्फ र जस्र्थ न िे िुछ इि िदं भर िी ब त र्थी ? लबििुि नहीं। जौहर भ रत िे िई क्षेत्दं
में इस्ल लमि हमिदं िे ि रण हुए र्थे। गौरतिब है लि लहन्दू र ज भी एि दु सरे से िड़े र्थे, मगर ऐसे म मिदं में जौहर िी घटन एाँ सुन ई
नहीं दे ती। नमू ने िे तौर पर इलतह स में लिखखत ि र्ी ब द ि य लन औरं गजेब िे समय ि मर्थुर से आगर िे बीच िे इि िदं ि
जौहर दे खखये।
अप्रैि 1669 में औरं गज़ेब ने दर-उि-हरब य लन लहन्दु स्त न िद दर-उि-इस्ल म बन ने िे लिए फ़रम न ज री लिय । लजन मं लदरदं िी वजह
से बुतपरस्ती हदती र्थी, उन्हें तदड़ ज न र्थ । इस आदे श पर इि िे िी लहन्दू जनत भड़ि उठी और लवद्रदह हद गय । ज ट बहुि इि िदं
िे इस लवद्रदह में स्र्थ नीय मीन , मे व, अहीर, गुज्जर, नरुि , पंव र सभी श लमि हद गए। मं लदरदं िद तदड़ने आई सेन ओं ि सशस्त्र लवरदध हदने
िग । िट्टर मु खस्लम अब्ु न नबी ख न मर्थुर िे इि िे ि र्ौजद र र्थ । वद लवद्रदह िद िुचि िर मं लदरदं िद तदड़ने आगे आय ।
गदिुि ज ट िे ने तृत्व में हुई िड़ ई में श हजह ाँ िे ि ि में बने श द ब द िे र्ौज़ी लठि ने िद जनत ने ध्वस्त िर लदय और 12 मई
1669 िद हुई िड़ ई में गदिुि ज ट और उसिे स लर्थयदं ने लिस नदं िे औज रदं से ही मु ग़ि सैलनिदं िद हर िर, अब्ु न नबी ख न िद म र
लगर य । जनत भड़िी रही और िड़ ई ज री रही तद आगर िे लठि नदं से रदं द ज़ ख न िी िम न में भी “लजन्द पीर” औरं गज़ेब िी
र्ौज़ें मै द न में उतरी। िरीब प ं च महीने चिती रही इस िड़ ई में सैन्य प्रलशक्षण और हलर्थय रदं से लवहीन लिस नदं ने मं लदरदं िद टू टने से
बच ने िी िड़ ई ज री रखी।
िमजदर पड़ते गदिुि ज ट िी सेन एं जौहर िे ब द पीछे हटती रही। आगर िे र्ौजद र अम नु ल्ल िद भी जंग में श लमि हदने ि
हुक्म हुआ। िरीब हज़ र बंदूिची, हज़ र र िेट द गने व िदं और पच्चीस तदपदं िे स र्थ अम नु ल्ल हसन अिी िी मदद िरत आगे आय ।
तीर-गुिेिदं से तीन लदन ति गुिुि ज ट और उसिे स लर्थयदं ने मु ि बि ज री रख । ि लर्रदं-बुतपरस्तदं िे इस लवद्रदह िद िुचिने 28
नवम्बर 1669 िद “लजन्द पीर” ने खुद लदल्ली से िूच लिय । चौर्थे लदन िी िड़ ई में लतिपत िे लििे िी दीव रें टू टी। सम्मु ख युद्ध में
िरीब च र हज़ र मु ग़ि और 5000 लिस न म रे गए।
िरीब स त हज़ र लवद्रदही िैद िर लिए गए। शैख़ र ज़ी-उद्दीन पेशि र बने और उन्हदंने ब दश ह िे स मने गदिुि ज ट और उदय लसंह
िद पेश लिय । सज़ तद पहिे से ही तय र्थी। इस्ल म िबूिद य मौत। गदिुि ज ट िद टु िड़े टु िड़े िर दे ने ि हुक्म हुआ। जल्ल द
व र उनिी ब ंह पर हुआ, िटी ब ंह िद र्ड़र्ड़ ते दे खते गदिुि ज ट लनलवफि र खड़े रहे । बुरी तरह तड़प िर म रने ि हुक्म र्थ तद
जल्ल द िद िदई जल्दी नहीं र्थी। घटन लजन्हदंने दे खी उनमें से िई भयभीत भ ग खड़े हुए। गदिुि ज ट िे ब द उदय लसंह िे भी टु िड़े
िर लदए गए। पिड़े गए िरीब 7000 लिस न ि ट लदए गए।
मर्थुर िे लजस िृष्ण जन्मस्र्थ न मं लदर िद श यद आपने दे ख हदग उसे ही टू टने से बच ते हुए ये जौहर हुआ और हज रदं लिस न म रे
गए। गदिुि ज ट ि न म श यद ओि र्थ , वृन्द वन-मर्थुर िे मं लदरदं िद बच ते उनि न म गदिुि हद गय । ऐस हुआ भी र्थ क्य जैसे
सव ि अगर मन में उमड़ते हदं तद आप 2002 में आई ब्लू ब्लि सेक्युिर इलतह सि र इफ्र न हबीब िी लित ब Essays in Indian History:
Towards a Marxist Perception में गदिुि ज ट (य व मपंर्थी तदड़ मरदड़ िे स र्थ गदिुि लसंह) ढूंढ सिते हैं ।
लसर्फ “र जपूत” बदििर जौहर िे न म पर बरगि ते धू तफ लर्ल्मि रदं िद य द रखन च लहए लि ये लसर्फ एि िे सम्म न िी नहीं, पूरे
भ रत िे लवरदध िी िह नी है । िभी गदिुि ज ट िी हत्य िी जगह पर, आगर िदतव िी िे आस प स, एि मू ती ति िगव ने िी ब त
िे लिए भी खुद िद र ष्ट्रव दी बत ने व िे लिसी र जनै लति य उसिे गैर-र जनै लति संगठनदं ने गदिुि ज ट ि न म लिय हद ऐस य द
नहीं आत । ह ाँ मगर इतन तद जरूर है लि ऐसे लर्ल्मि रदं ि ही नहीं उसिे समर्थफन में उतरे सभी ि बलहष्क र हदन च लहए।
आनं द िुम र जी िी पदस्ट सम प्त ।
यह ाँ भंस िी 'रजपूतदं' िी ब त िर रह है , और दू सरी ओर दे वदत्त पटन यि हमि िर रहे हैं - पद्म वती (पलद्मनी नहीं बदि रह है इनमें
से िदई भी यह नदट लिय ज ये) ने अपने मदफ व दी िबीिे िी सम्म न िे ि रण आत्मद ह लिय । संिग्न र्दटद दे खें । क्य आप िद
अभी भी िगत है यह एि सुसंगलठत युद्ध नहीं है ? बस सरि र िी सेक्युिर ई िी अर्ीम उतरती तद बेहतर हदत ।