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मले रया

मले रया या वात एक वाहक-ज नत सं ामक रोग है


जो ोटोज़ोआ परजीवी ारा फैलता है। यह मु य प
से अमे रका, ए शया और अ का महा प के उ ण
तथा उपो ण क टबंधी े म फैला आ है। येक वष
यह ५१.५ करोड़ लोग को भा वत करता है तथा १०
से ३० लाख लोग क मृ यु का कारण बनता है जनम
से अ धकतर उप-सहारा अ का के युवा ब चे होते
ह।[1] मले रया को आमतौर पर गरीबी से जोड़ कर दे खा
जाता है कतु यह खुद अपने आप म गरीबी का कारण है
तथा आ थक वकास का मुख अवरोधक है।
मले रया
वग करण एवं बा साधन

मानव र म ला मो डयम फै सीपैरम वलय- प तथा


यु मक.
आईसीडी-१० B50.

आईसीडी-९ 084

ओएमआईएम २४८३१०

डज़ीज़-डीबी ७७२८

मेडलाइन लस ०००६२१

ईमे ड सन med/१३८५  
emerg/305
ped/1357
एम.ईएसएच C03.752.250.552

मले रया सबसे च लत सं ामक रोग म से एक है तथा


भंयकर जन वा य सम या है। यह रोग ला मो डयम
गण के ोटोज़ोआ परजीवी के मा यम से फैलता है।
केवल चार कार के ला मो डयम (Plasmodium)
परजीवी मनु य को भा वत करते है जनम से
सवा धक खतरनाक ला मो डयम फै सीपैरम
(Plasmodium falciparum) तथा ला मो डयम
ववै स (Plasmodium vivax) माने जाते ह, साथ ही
ला मो डयम ओवेल (Plasmodium ovale) तथा
ला मो डयम मले रये (Plasmodium malariae) भी
मानव को भा वत करते ह। इस सारे समूह को
'मले रया परजीवी' कहते ह।
शोध जारी है, ले कन अभी तक कोई उपल ध नह हो
सका है। मले रया से बचने के लए नरोधक दवाएं ल बे
समय तक लेनी पडती ह और इतनी महंगी होती ह क
मले रया भा वत लोग क प ँच से अ सर बाहर होती
है। मले रया भावी इलाके के यादातर वय क लोग मे
बार-बार मले रया होने क वृ होती है साथ ही उनम
इस के व आं शक तरोधक मता भी आ जाती
है, कतु यह तरोधक मता उस समय कम हो जाती
है जब वे ऐसे े मे चले जाते है जो मले रया से
भा वत नह हो। य द वे भा वत े मे वापस लौटते
ह तो उ हे फर से पूण सावधानी बरतनी चा हए।
मले रया सं मण का इलाज कुनैन या आ टमी स नन
जैसी मले रयारोधी दवा से कया जाता है य प दवा
तरोधकता के मामले तेजी से सामा य होते जा रहे ह।

इ तहास
सर रोन ड रॉस

मले रया मानव को ५०,००० वष से भा वत कर रहा है


शायद यह सदै व से मनु य जा त पर परजीवी रहा है। इस
परजीवी के नकटवत र तेदार हमारे नकटवत
र तेदार मे या न च पांज़ी मे रहते ह। जब से इ तहास
लखा जा रहा है तबसे मले रया के वणन मलते ह।
सबसे पुराना वणन चीन से २७०० ईसा पूव का मलता
है। मले रया श द क उ प म यकालीन इटा लयन
भाषा के श द माला ए रया से ई है जनका अथ है
'बुरी हवा'। इसे 'दलदली बुखार' (अं ेजी: marsh
fever, माश फ़ वर) या 'एग' (अं ेजी: ague) भी कहा
जाता था य क यह दलदली े म ापक प से
फैलता था।

मले रया पर पहले पहल गंभीर वै ा नक अ ययन


१८८० मे आ था जब एक ांसीसी सै य च क सक
चा स लुई अ फ स लैवेरन ने अ जी रया म काम करते
ए पहली बार लाल र को शका के अ दर परजीवी
को दे खा था। तब उसने यह ता वत कया क मले रया
रोग का कारण यह ोटोज़ोआ परजीवी है। इस तथा
अ य खोज हेतु उसे १९०७ का च क सा नोबेल
पुर कार दया गया।

इस ोटोज़ोआ का नाम ला मो डयम इटा लयन


वै ा नक ए ोरे मा चयाफावा तथा आंजेलो सेली ने
रखा था। इसके एक वष बाद युबाई च क सक
काल स फनले ने पीत वर का इलाज करते ए पहली
बार यह दावा कया क म छर रोग को एक मनु य से
सरे मनु य तक फैलाते ह। कतु इसे अका प
मा णत करने का काय टे न के सर रोना ड रॉस ने
सकंदराबाद म काम करते ए १८९८ म कया था।
इ ह ने म छर क वशेष जा तय से प य को कटवा
कर उन म छर क लार ं थय से परजीवी अलग कर
के दखाया ज हे उ ह ने सं मत प य म पाला था।
इस काय हेतु उ हे १९०२ का च क सा नोबेल मला।
बाद म भारतीय च क सा सेवा से यागप दे कर रॉस ने
नव था पत लवरपूल कूल ऑफ़ ॉ पकल मे ड सन म
काय कया तथा म , पनामा, यूनान तथा मारीशस जैसे
कई दे श मे मले रया नयं ण काय मे योगदान दया।
फनले तथा रॉस क खोज क पु वा टर रीड क
अ य ता म एक च क सक य बोड ने १९०० म क ।
इसक सलाह का पालन व लयम सी. गोगस ने पनामा
नहर के नमाण के समय कया, जसके चलते हजार
मज र क जान बच सक . इन उपाय का योग
भ व य़ मे इस बीमारी के व कया गया।

मले रया के व पहला भावी उपचार सनकोना


वृ क छाल से कया गया था जसम कुनैन पाई जाती
है। यह वृ पे दे श म ए डीज़ पवत क ढलान पर
उगता है। इस छाल का योग थानीय लोग ल बे समय
से मले रया के व करते रहे थे। जीसुइट पाद रय ने
करीब १६४० इ वी म यह इलाज यूरोप प ँचा दया,
जहाँ यह ब त लोक य आ। पर तु छाल से कुनैन को
१८२० तक अलग नह कया जा सका। यह काय अंततः
ांसीसी रसायन वद पयेर जोसेफ पेले तये तथा
जोसेफ बयाँनेमे कैवतु ने कया था, इ ह ने ही कुनैन को
यह नाम दया।
बीसव सद के ारंभ म, ए ट बायो टक दवा के
अभाव म, उपदं श ( स फ लस) के रो गय को जान बूझ
कर मले रया से सं मत कया जाता था। इसके बाद
कुनैन दे ने से मले रया और उपदं श दोन काबू म आ जाते
थे। य प कुछ मरीज क मृ यु मले रया से हो जाती
थी, उपदं श से होने वाली न त मृ यु से यह नतांत
बेहतर माना जाता था। यध प मले रया परजीवी के
जीवन के र चरण और म छर चरण का पता ब त
पहले लग गया था, कतु यह 1980 मे जा कर पता लगा
क यह यकृत मे छपे प से मौजूद रह सकता है। इस
खोज से यह गु थी सुलझी क य मले रया से उबरे
मरीज वष बाद अचानक रोग से त हो जाते ह।

रोग का वतरण तथा भाव


मले रया तवष ४० से ९० करोड़ बुखार के मामलो का
कारण बनता है, वह इससे १० से ३० लाख मौत हर
साल होती ह, जसका अथ है त ३० सैके ड म एक
मौत। इनम से यादातर पाँच वष से कम आयु वाले
ब च होते ह, वह गभवती म हलाएँ भी इस रोग के त
संवेदनशील होती ह। सं मण रोकने के यास तथा
इलाज करने के यास के होते ए भी १९९२ के बाद
इसके मामल म अभी तक कोई गरावट नह आयी है।
य द मले रया क वतमान सार दर बन रही तो अगले
२० वष मे मृ यु दर दोगुणी हो सकती है। मले रया के
बारे म वा त वक आकँडे अनुपल ध ह य क यादातर
रोगी ामीण इलाक मे रहते ह, ना तो वे च क सालय
जाते ह और ना उनके मामल का लेखा जोखा रखा
जाता है।
मले रया और एच.आई.वी. का एक साथ सं मण होने
से मृ यु क संभावना बढ़ जाती है।[2] मले रया चूं क
एच.आई.वी. से अलग आयु-वग म होता है, इस लए यह
मेल एच.आई.वी. - ट .बी. ( य रोग) के मेल से कम
ापक और घातक होता है। तथा प ये दोनो रोग एक
सरे के सार को फैलाने मे योगदान दे ते ह- मले रया से
वायरल भार बढ जाता है, वह एड् स सं मण से
क तरोधक मता कमजोर हो जाने से वह रोग क
चपेट मे आ जाता है।

वतमान म मले रया भूम य रेखा के दोन तरफ व तृत


े म फैला आ है इन े म अमे रका, ए शया तथा
यादातर अ का आता है, ले कन इनम से सबसे
यादा मौते (लगभग ८५ से ९० % तक) उप-सहारा
अ का मे होती ह। मले रया का वतरण समझना थोडा
ज टल है, मले रया भा वत तथा मले रया मु े ाय
साथ साथ होते ह। सूखे े म इसके सार का वषा क
मा ा से गहरा संबंध है। डगू बुखार के वपरीत यह शहर
क अपे ा गाँव म यादा फैलता है। उदाहरणाथ
वयतनाम, लाओस और क बो डया के नगर मले रया
मु ह, जब क इन दे श के गाँव इस से पी डत ह।
अपवाद- व प अ का म नगर- ामीण सभी े इस
से त ह, य प बड़े नगर म खतरा कम रहता है।
१९६० के दशक के बाद से कभी इसके व वतरण को
मापा नह गया है। हाल ही म टे न क वेलकम ट ने
मले रया एटलस प रयोजना को इस काय हेतु व ीय
सहायता द है, जससे मले रया के वतमान तथा भ व य
के वतरण का बेहतर ढँ ग से अ ययन कया जा सकेगा।

सामा जक एवं आ थक भाव


मले रया गरीबी से जुड़ा तो है ही, यह अपने आप म खुद
गरीबी का कारण है तथा आ थक वकास म बाधक है।
जन े म यह ापक प से फैलता है वहाँ यह
अनेक कार के नकारा मक आ थक भाव डालता है।
त जी.डी.पी क तुलना य द १९९५ के आधार
पर कर (खरीद मता को समायो जत करके), तो
मले रया मु े और मले रया भा वत े म इसम
पाँच गुणा का अंतर नजर आता है (१,५२६ डालर बनाम
८,२६८ डालर)। जन दे श मे मले रया फैलता है उनके
जी.डी.पी मे १९६५ से १९९० के म य केवल तवष
०.४% क वृ ई वह मले रया से मु दे श म यह
२.४% ई। य प साथ म होने भर से ही गरीबी और
मले रया के बीच कारण का संबंध नह जोड़ा सकता है,
ब त से गरीब दे श म मले रया क रोकथाम करने के
लए पया त धन उपल ध नह हो पाता है। केवल
अ का म ही तवष १२ अरब अमे रकन डालर का
नुकसान मले रया के चलते होता है, इसम वा य य,
काय दवस क हा न, श ा क हा न, दमागी मले रया
के चलते मान सक मता क हा न तथा नवेश एवं
पयटन क हा न शा मल ह। कुछ दे श मे यह कुल जन
वा थय बजट का ४०% तक खा जाता है। इन दे श म
अ पताल म भत होने वाले मरीज म से ३० से ५०%
और बा -रोगी वभाग म दे खे जाने वाले रो गय म से
५०% तक रोगी मले रया के होते ह।[3] एड् स और
तपे दक के मुकाबले २००७ के नवंबर माह म मले रया
के लए गने से भी यादा ४६.९ करोड़ डालर क
सहायता रा श खच क गई।[4]

रोग के ल ण
मले रया के ल ण म शा मल ह- वर, कंपकंपी, जोड़
म दद, उ ट , र ा पता (र वनाश से), मू म
हीमो लो बन और दौरे। मले रया का सबसे आम ल ण
है अचानक तेज कंपकंपी के साथ शीत लगना, जसके
फौरन बाद वर आता है। ४ से ६ घंटे के बाद वर
उतरता है और पसीना आता है। पी. फै सीपैरम के
सं मण म यह पूरी या हर ३६ से ४८ घंटे म होती है
या लगातार वर रह सकता है; पी. ववै स और पी.
ओवेल से होने वाले मले रया म हर दो दन म वर आता
है, तथा पी. मले रये से हर तीन दन म।[5]

मले रया के गंभीर मामले लगभग हमेशा पी. फै सीपैरम


से होते ह। यह सं मण के 6 से 14 दन बाद होता है।
त ली और यकृत का आकार बढ़ना, ती सरदद और
अधोमधुर ता (र म लूकोज़ क कमी) भी अ य
गंभीर ल ण ह। मू म हीमो लो बन का उ सजन और
इससे गुद क वफलता तक हो सकती है, जसे
कालापानी बुखार (अं ेजी: blackwater fever, लैक
वाटर फ़ वर) कहते ह। गंभीर मले रया से मू छा या मृ यु
भी हो सकती है, युवा ब चे तथा गभवती म हला मे
ऐसा होने का खतरा ब त यादा होता है। अ यंत गंभीर
मामल म मृ यु कुछ घंट तक म हो सकती है। गंभीर
मामल म उ चत इलाज होने पर भी मृ यु दर 20% तक
हो सकती है। महामारी वाले े मे ाय उपचार
संतोषजनक नह हो पाता, अतः मृ यु दर काफ ऊँची
होती है और मले रया के येक 10 मरीज म से 1 मृ यु
को ा त होता है।

मले रया युवा ब च के वकासशील म त क को गंभीर


त प ंचा सकता है। ब च म दमागी मले रया होने क
संभावना अ धक रहती है और ऐसा होने पर दमाग म
र क आपू त कम हो सकती है और अ सर म त क
को सीधे भी हा न प ँचाती है। अ य धक त होने पर
हाथ-पांव अजीब तरह से मुड़-तुड़ जाते ह। द घ काल म
गंभीर मले रया से उबरे ब च म अकसर अ प मान सक
वकास दे खा जाता है। गभवती याँ म छर के लए
ब त आकषक होती ह और मले रया से गभ क मृ यु,
न न ज म भार और शशु क मृ यु तक हो सकते ह।
मु यतया यह पी. फ़ै सीपैरम के सं मण से होता है,
ले कन पी. ववै स भी ऐसा कर सकता है। पी. ववै स
तथा पी. ओवेल परजीवी वष तक यकृत मे छु पे रह
सकते ह। अतः र से रोग मट जाने पर भी रोग से
पूणतया मु मल गई है ऐसा मान लेना गलत है। पी.
ववै स मे सं मण के 30 साल बाद तक फर से
मले रया हो सकता है। समशीतो ण े म पी. ववै स
के हर पाँच मे से एक मामला ठं ड के मौसम म छु पा रह
कर अगले साल अचानक उभरता है।

कारक
मले रया परजीवी

मले रया ला मो डयम गण के ोटोज़ोआ परजी वय से


फैलता है। इस गण के चार सद य मनु य को सं मत
करते ह- ला मो डयम फै सीपैरम, ला मो डयम
ववै स, ला मो डयम ओवेल तथा ला मो डयम
मले रये। इनम से सवा धक खतरनाक पी. फै सीपैरम
माना जाता है, यह मले रया के 80 तशत मामल और
90 तशत मृ यु के लए ज मेदार होता है।[6] यह
परजीवी प य , रगने वाले जीव , ब दर , च पां ज़य
तथा चूह को भी सं मत करता है।[7] कई अ य कार
के ला मो डयम से भी मनु य म सं मण ात ह कतु
पी. नाउलेसी (P. knowlesi) के अलावा यह नग य
ह।[8] प य म पाए जाने वाले मले रया से मु गयाँ मर
सकती ह ले कन इससे मुग -पालक को अ धक
नुकसान होता नह पाया गया है।[9] हवाई प समूह म
जब मनु य के साथ यह रोग प ँचा तो वहाँ क कई प ी
जा तयाँ इससे वन हो गय य क इसके व
कोई ाकृ तक तरोध मता उनम नह थी।[10]

ला मो डयम परजीवी, मले रया फैलाने वाले म छर क म य-अंतड़ी


क अ द नी परत क को शका के को शका का सं मण करते
ए, इलै ॉन सू मदश से च त।

म छर
मले रया परजीवी क ाथ मक पोषक मादा
एनो फ़लीज़ म छर होती है, जो क मले रया का सं मण
फैलाने म भी मदद करती है। एनो फ़लीज़ गण के म छर
सारे संसार म फैले ए ह। केवल मादा म छर खून से
पोषण लेती है, अतः यह ही वाहक होती है ना क नर।
मादा म छर एनो फ़लीज़ रात को ही काटती है। शाम
होते ही यह शकार क तलाश मे नकल पडती है तथा
तब तक घूमती है जब तक शकार मल नह जाता। यह
खड़े पानी के अ दर अंडे दे ती है। अंड और उनसे
नकलने वाले लारवा दोन को पानी क अ यंत स त
ज रत होती है। इसके अ त र लारवा को सांस लेने के
लए पानी क सतह पर बार-बार आना पड़ता है। अंडे-
लारवा- यूपा और फर वय क होने म म छर लगभग
10-14 दन का समय लेते ह। वय क म छर पराग और
शकरा वाले अ य भो य-पदाथ पर पलते ह, ले कन
मादा म छर को अंडे दे ने के लए र क आव यकता
होती है।

ला मो डयम का जीवन च

मले रया परजीवी का पहला शकार तथा वाहक मादा


एनो फ़लीज़ म छर बनती है। युवा म छर सं मत
मानव को काटने पर उसके र से मले रया परजीवी को
हण कर लेते ह। र म मौजूद परजीवी के जननाणु
(अं ेजी:gametocytes, गैमीटोसाइट् स) म छर के पेट
म नर और मादा के प म वक सत हो जाते ह और
फर मलकर अंडाणु (अं ेजी:oocytes, ऊसाइट् स)
बना लेते ह जो म छर क अंत ड़य क द वार म पलने
लगते ह। प रप व होने पर ये फूटते ह और इसम से
नकलने वाले बीजाणु (अं ेजी:sporozoites,
पोरोज़ॉट् स) उस म छर क लार- ं थय म प ँच जाते
ह। म छर फर जब व थ मनु य को काटता है तो वचा
म लार के साथ-साथ बीजाणु भी भेज दे ता है।[11] मानव
शरीर म ये बीजाणु फर पलकर जननाणु बनाते ह (नीचे
दे ख), जो फर आगे सं मण फैलाते ह।

इसके अलावा मले रया सं मत र को चढ़ाने से भी


फैल सकता है, ले कन ऐसा होना ब त असाधारण
है।[12]

मानव शरीर म रोग का वकास


मु य लेख : मले रया का मानव जीनोम पर भाव

मले रया परजीवी का मानव म वकास दो चरण म होता


है: यकृत म थम चरण और लाल र को शका म
सरा चरण। जब एक सं मत म छर मानव को काटता
है तो बीजाणु (अं ेजी: sporozoites, पोरोज़ॉइट् स)
मानव र म वेश कर यकृत म प ँचते ह और शरीर म
वेश पाने के 30 मनट के भीतर यकृत क को शका
को सं मत कर दे ते ह। फर ये यकृत म अल गक जनन
करने लगते ह। यह चरण 6 से 15 दन चलता है। इस
जनन से हजार अंशाणु (अं ेजी: merozoites,
मीरोज़ॉइट् स) बनते ह जो अपनी मेहमान को शका
को तोड़ कर र म वेश कर जात ह तथा लाल र
को शका को सं मत करना शु कर दे ते ह।[13]

मले रया परजीवी का मानव शरीर म जीवन च


इससे रोग का सरा चरण शु होता है। पी. ववै स
और पी. ओवेल के कुछ बीजाणु यकृत को ही सं मत
करके क जाते ह और सु ताणु (अं ेजी:
hypnozoites, ह ोज़ॉइट् स) के पम न य हो
जाते ह। ये 6 से 12 मास तक न य रह कर फर
अचानक अंशाणु के प म कट हो जाते ह और
रोग पैदा कर दे ते ह।[14]

लाल र को शका म वेश करके ये परजीवी खुद को


फर से गु णत करते रहते ह। ये वलय प म वक सत
होकर फर भोजाणु (अं ेजी: trophozoites,
ोफ़ोज़ॉइट् स) और फर ब ना भक य शाइज़ॉ ट
(अं ेजी: schizont) और फर अनेक अंशाणु बना दे ते
ह। समय समय पर ये अंशाणु पोषक को शका को
तोड़कर नय लाल र को शका को सं मत कर
दे ते ह। ऐसे कई चरण चलते ह। मले रया म बुखार के
दौरे आने का कारण होता है हजार अंशाणु का
एकसाथ नई लाल र को शका को भा वत करना।

मले रया परजीवी अपने जीवन का लगभग सभी समय


यकृत क को शका या लाल र को शका म छु पा
रहकर बताता है, इस लए मानव शरीर के तर ा तं
से बचा रह जाता है। त ली म न होने से बचने के लए
पी. फै सीपैरम एक अ य चाल चलता है- यह लाल र
को शका क सतह पर एक चपकाऊ ोट न द शत
करा दे ता है जससे सं मत र को शकाएँ को छोट
र वा हका म चपक जाती ह और त ली तक
प ँच नह पाती ह।[15] इस कारण र धारा म केवल
वलय प ही दखते ह, अ य सभी वकास के चरण म
यह छोट र वा हका क सतह म चपका रहता है।
इस चप चपाहट के चलते ही मले रया र ाव क
सम या करता है।
य प सं मत लाल र को शका क सतह पर
द शत ोट न पीएफईएमपी1 (Plasmodium
falciparum erythrocyte membrane protein
1, ला मो डयम फै सीपैरम इ र ोसाइट मै ेन ोट न
1) शरीर के तर ा तं का शकार बन सकता है, ऐसा
होता नह है य क इस ोट न म व वधता ब त यादा
होती है। हर परजीवी के पास इसके 60 कार होते है
वह सभी के पास मला कर असं य प म ये इस
ोट न को द शत कर सकते ह। वे बार बार इस ोट न
को बदल कर शरीर के तर ा तं से एक कदम आगे
रहते ह। कुछ अंशाणु नर-मादा जननाणु म बदल जाते
ह और जब म छर काटता है तो र के साथ उ ह भी ले
जाता है। यहाँ वे फर से अपना जीवन च पूरा करते
ह।

नदान
ल ण के आधार पर

अनेक मले रया- त े म बुखार के हर मरीज को


मले रया का आनुमा नक नदान दे दया जाता है और
कुनैन से इलाज शु कर दया जाता है।[16] इसके साथ
ही र क प काएँ भी बना ली जाती ह, ले कन इलाज
शु करने के लए इसके प रणाम क ती ा नह क
जाती। ऐसा कई ऐसे े म भी कया जाता है जहाँ
सामा य योगशाला परी ण क सु वधाए उपल ध
नह ह । ले कन मलावी म आ एक अ ययन बताता है
क बुखार के साथ-साथ य द गुदा का तापमान, नाखून
म र हीनता और त ली के आकार को भी यान म
लया जाए तो मले रया के अनाव यक उपचार से ब त
बचा जा सकता है ( नदान म 21 से 41 तक
बढ़ोतरी)।).[17]
र क सू मदश से जांच

पी. फै सीपैरम क चर (K1 strain) का एक र ध बा। कई र


को षका म वलय चरण दे खे जा सकते ह। के के नकट है एक
शाइज़ॉ ट एवं बाएं पर है भोजाणु

र प का का सू मदश से परी ण करना मले रया


के नदान का सबसे स ता, अ छा तथा भरोसेमंद तरीका
माना जाता है। इस परी ण से चार मले रया परजी वय
के व श ल ण के ारा अलग-अलग नदान कया
जा सकता है। र प काएँ दो तरह से बनाई जाती ह -
पतली और मोट । पतली प का म परजीवी क
बनावट को बेहतर ढं ग से सुर त रखा जा सकता है,
वह सरी ओर मोट प का से कम समय म र क
अ धक मा ा क जाँच क जा सकती है और इससे कम
मा ा के सं मण का भी नदान कया जा सकता है।
अनुभवी परी क र म 0.0000001 तशत तक के
सं मण को पहचान सकते ह। इन कारण से मोट और
पतली दोन प याँ बनाई जाती ह। साथ ही एक से
अ धक वलय चरण क जाँच करना ज री होता है,
य क चार परजी वय के वलय चरण ब धा एक जैसे
दखते ह।.[18]

े परी ण

मले रया के नदान के लए अनेक एंट जन-आधा रत


डप टक (अं ेजी: dipstick) परी ण या मले रया
रै पड एंट जन टे ट (अं ेजी: Malaria Rapid
Antigen Tests, मले रया व रत एंट जन परी ण) भी
उपल ध ह। इ ह र क केवल एक बूंद क
आव यकता होती है, और सफ 15-20 मनट म ही
प रणाम सामने आ जाता है, योगशाला क
आव यकता नह होती है। ये सू मदश जांच से थोडे
कमतर माने जाते है। ले कन जन े म सू मदश
जांच क सु वधा उपल ध नह होती या परी क को
मले रया के नदान का अनुभव नह होता वहाँ भा वत
े म जा कर र क एक बू द से ए ट जन परी ण
कर लया जाता है। सबसे पहले इन परी ण का
वकास पी. फै सीपैरम के क वक लूटामेट
डीहाइ ोजनेज़ को एंट जन के प म योग करके
कया गया।[19] ले कन ज द ही एक अ य क वक
लै टे ट डीहा ोजनेज़ का योग करके ऑ टमल-आईट
(अं ेजी: Optimal-IT) नामक परी ण का वकास
कया गया।[20] ये क वक र म अ धक समय तक
मौजूद नह रहते और परजीवी का खा मा हो जाने पर ये
भी र से नकल जाते ह, अतः इन परी ण का
उपयोग इलाज क सफलता या वफलता जानने के लये
भी कया जाता है। ऑ टमल-आईट फै सीपैरम और
गैर-फै सीपैरम मले रया म अ तर भी कर सकता है। यह
पी. फै सीपैरम का 0.01 तशत और गैर-फै सीपैरम
मले रया परजी वय का 0.1 तशत तक र म नदान
कर सकता है। इसके अ त र पी. फै सीपैरम व श
ह टडीन-भरपूर ोट न (अं ेजी: P. falciparum
specific histidine-rich proteins) पर आधा रत
पैराचैक-पीएफ (अं ेजी: Paracheck-Pf) र म
0.002 तशत तक मले रया परजीवी का नदान कर
सकता है, ले कन यह फै सीपैरम और गैर-फै सीपैरम
मले रया म अ तर नह कर पाता है।

अ य परी ण
इनके अ त र पॉलीमरेज़ ृंखला अ भ या (अं ेजी:
polymerase chain reaction, PCR) का योग
करके और आण वक व धय के योग से भी कुछ
परी ण वक सत कये गए ह, ले कन ये अभी काफ
महंगे ह, तथा केवल व श योगशाला म ही
उपल ध ह। स ते, संवेद तथा सरल परी ण के वकास
क अब भी आव यकता है, जनका योग े म,
मले रया के नदान के लए कया जा सके।[21]

गंभीर मले रया का नदान

गंभीर मले रया को अ का मे ायः पहचान लेने म


गलती होती है, जसके चलते अ य ाणघातक
बीमा रय का इलाज भी नह हो पाता है। र म
परजीवी क मौजूदगी केवल गंभीर मले रया से ही नह ,
अ य कई जानलेवा बीमा रय के चलते भी हो सकती है।
हाल के अ ययन बताते ह क मले रया-ज नत मू छा
और गैर-मले रया-ज नत मू छा म अ तर करने के लए
मले रयल रे टनोपैथी (आँख के रे टना के आधार पर
पहचान) कसी भी अ य परी ण से बेहतर है।[22]

स दभ
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उपचार
मु य लेख : मले रया का उपचार
 

मले रया फैलाने वाली मादा एनो फ़लीज़ म छर

मले रया के कुछ मामले आपातकालीन होते है तथा


मरीज को पूणतया व थ होने तक नगरानी मे रखना
अ नवाय होता है, कतु अ य कार के मले रया म ऐसा
आव यक नह ह, इलाज ब हरंग वभाग म कया जा
सकता है। उ चत इलाज होने पर मरीज बलकुल ठ क
हो जाता है। कुछ ल ण का उपचार सामा य दवा से
कया जाता है, साथ म मले रया-रोधी दवाएँ भी द जाती
है। ये दवाएं दो कार क होती ह- पहली जो तरोधक
होती ह और रोग होने से पहले लए जाने पर रोग से
सुर ा करती ह तथा सरी वे जनका रोग से सं मत
हो जाने के बाद योग कया जाता है। अनेक दवाएँ
केवल तरोध या केवल उपचार के लए इ तेमाल होती
ह, जब क अ य कई दोन तरह से योग म लाई जा
सकती ह। कुछ दवाएँ एक- सरे के भाव को बढ़ाती ह
और इनका योग साथ म कया जाता है। तरोधक
दवा का योग अ सर सामू हक प से ही कया
जाता है।

कुनैन पर आधा रत अनेक औष धय को मले रया का


अ छा उपचार समझा जाता है। इसके अ त र
आ टमी स नन जैसी औष धयाँ, जो आ टमी सया ए ुआ
(अं ेजी:Artemisia annua) नामक पौधे से तैयार क
जाती है, मले रया के इलाज म भावी पाई गई ह। कुछ
अ य औष धय का योग भी मले रया के व सफल
आ है। कुछ औष धय पर योग जारी है। दवा के
चुनाव म सबसे मुख कारक होता है उस े म
मले रया परजीवी कन दवा के त तरोध
वक सत कर चुका है। अनेक दवाएँ जनका योग
पहले मले रया के व सफल समझा जाता था
आजकल सफल नह समझा जाता य क मले रया के
परजीवी धीरे धीरे उनके त तरोधक मता ा त
कर चुके ह।

हो योपैथी म मले रया का उपचार उपल ध है, हालां क


अनेक च क सक का मानना है क मले रया जैसी
गंभीर बीमारी का इलाज एलोपै थक दवा से ही कया
जाना चा हये, य क ये वै ा नक शोध पर आधा रत ह।
यहाँ तक क टश हो मयोपै थक एसो सएशन क
सलाह यही है क मले रया के उपचार के लए हो योपैथी
पर नभर नह करना चा हए।[1] आयुवद म मले रया को
वषम वर कहा जाता है और इसके उपचार के लये
अनेक औष धयाँ उपल ध ह।
य प मले रया के आज भावी उपचार उपल ध है,
ले कन व के अनेक अ व क सत े म मले रया
पी ड़त े म या तो यह मलता नह ह या इतना महंगा
होता है क आम मरीज उसका उपयोग नह कर पाता
है। मले रया क दवा क बढ़ती माँग को दे खकर
अनेक भा वत दे श मे बडे पैमाने पर नकली दवा
का कारोबार होता है, जो अनेक मृ यु का कारण
बनता है। आजकल क प नयाँ नई तकनीक का योग
करके इस सम या से नपटने का यास कर रही ह।

रोकथाम तथा नयं ण


मु य लेख : मले रया क रोकथाम तथा नयं ण

मले रया का सार इन कारक पर नभर करता है-


मानव जनसं या का घन व, म छर क जनसं या का
घन व, म छर से मनु य तक सार और मनु य से
म छर तक सार। इन कारक म से कसी एक को भी
ब त कम कर दया जाए तो उस े से मले रया को
मटाया जा सकता है। इसी लये मले रया भा वत े
मे रोग का सार रोकने हेतु दवा के साथ-साथ म छर
का उ मूलन या उनसे काटने से बचने के उपाय कये
जाते ह। अनेक अनुसंधान कता दावा करते ह क
मले रया के उपचार क तुलना मे उस से बचाव का य
द घ काल मे कम रहेगा। 1956-1960 के दशक मे व
तर पर मले रया उ मूलन के ापक यास कये गये
(वैसे ही जैसे चेचक उ मूलन हेतु कये गये थे)। कतु
उनमे सफलता नह मल सक और मले रया आज भी
अ का मे उसी तर पर मौजूद है।

म छर के जनन थल को न करके मले रया पर


ब त नयं ण पाया जा सकता है। खड़े पानी म म छर
अपना जनन करते ह, ऐसे खड़े पानी क जगह को
ढक कर रखना, सुखा दे ना या बहा दे ना चा हये या पानी
क सतह पर तेल डाल दे ना चा हये, जससे म छर के
लारवा सांस न ले पाएं। इसके अ त र मले रया-
भा वत े म अकसर घर क द वार पर क टनाशक
दवा का छड़काव कया जाता है। अनेक जा तय
के म छर मनु य का खून चूसने के बाद द वार पर बैठ
कर इसे हजम करते ह। ऐसे म अगर द वार पर
क टनाशक का छड़काव कर दया जाए तो द वार पर
बैठते ही म छर मर जाएगा, कसी और मनु य को काटने
के पहले ही। व वा य संगठन ने मले रया भा वत
े म छडकाव के लए लगभग 12 दवा को
मा यता द है। इनम डीडीट के अलावा परमै न और
डे टामै न जैसी दवाएँ शा मल ह, खासकर उन े मे
जहाँ म छर डीडीट के त रोधक मता वक सत कर
चुके है।
म छरदा नयाँ म छर को लोग से र रखने मे सफल
रहती ह तथा मले रया सं मण को काफ हद तक
रोकती ह। एनो फलीज़ म छर चूं क रात को काटता है
इस लए बड़ी म छरदानी को चारपाई/ ब तर पे लटका
दे ने तथा इसके ारा ब तर को चार तरफ से पूणतः घेर
दे ने से सुर ा पूरी हो जाती है। म छरदा नयाँ अपने आप
म ब त भावी उपाय नह ह कतु य द उ ह रासाय नक
प से उपचा रत कर द तो वे ब त उपयोगी हो जाती
ह। मले रया- भा वत े म मले रया के त
जाग कता फैलाने से मले रया म 20 तशत तक क
कमी दे खी गई है। साथ ही मले रया का नदान और
इलाज ज द से ज द करने से भी इसके सार म कमी
होती है। अ य यास म शा मल है- मले रया संबंधी
जानकारी इक करके उसका बड़े पैमाने पर व ेषण
करना और मले रया नयं ण के तरीके कतने भावी ह
इसक जांच करना। ऐसे एक व ेषण म पता लगा क
ल ण- वहीन सं मण वाले लोग का इलाज करना
ब त आव यक होता है, य क इनम ब त मा ा म
मले रया सं चत रहता है।

मले रया के व ट के वक सत कये जा रहे है य प


अभी तक सफलता नह मली है। पहली बार यास
1967 म चूहे पे कया गया था जसे जी वत कतु
व करण से उपचा रत बीजाणु का ट का दया गया।
इसक सफलता दर 60% थी। एसपीएफ66 (अं ेजी:
SPf66) पहला ट का था जसका े परी ण आ,
यह शु म सफल रहा कतु बाद मे सफलता दर 30%
से नीचे जाने से असफल मान लया गया। आज
आरट एस, एसएएस02ए (अं ेजी: RTS,S/AS02A)
ट का परी ण म सबसे आगे के तर पर है। आशा क
जाती है क पी. फै सीपरम के जीनोम क पूरी को डग
मल जाने से नयी दवा का तथा ट क का वकास एवं
परी ण करने म आसानी होगी।

स दभ
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prevention" . British Homeopathic
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बाहरी क ड़याँ
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मले रया पर नेशनल यॉ ा फक जुलाई 2007
सं करण,
मले रया पर WHO जाल थल
2006 मले रया उपचार पर WHO संद शका
जॉ स हॉ क स मले रयोलॉजी मु पा म
व मले रया रपोट - 2005
संयु रा य रोक रोकथाम के - मले रया सूचना
पृ
डॉ टस वदाउट बॉडस्/Medecins Sans
Frontieres - मले रया सूचना पृ
HRC/Eldis वा य ोत संद शका - मले रया
मैडीलाइन लस - मले रया
डॉ० ए ीयु पी मैन, हावड मले रया वशेष , के
साथ एक भट
GlobalHealthFacts.org मले रया के कारण एवं
उससे दे शानुसार मृ यु
सव लेख: उ री सागर के पास मले रया का इ तहास
DriveAgainstMalaria.org , "ब च के सबसे
बडे़ जानलेवा के व व क सबसे ल बी या ा"
मले रया एटलस प रयोजना
UNITAID, ग ◌़रय क अ तररा ीय सु वधा
( व कपी डया लेख)
ट काकरण एवं अ य शोध
BBC - Hopes of Malaria Vaccine by 2010
15 October 2004
BBC - Science shows how malaria hides
8 April 2005
History of discoveries in malaria
Malaria. The UNICEF-UNDP-World Bank-
WHO Special Programme for Research
and Training in Tropical Diseases
Malaria Vaccine Initiative
Story of the discovery of the vector of
the malarial parasite
Wellcome Trust against Malaria
"Vaccines for Development" - Blog on
vaccine research and production for
developing countries
Malaria and Mosquitoes - questions and
answers
JoVE (Journal of Visualized
Experiments): Malaria-related
Experiments
Charities
Against Malaria Foundation
Mosquito Netting as Prevention
Call for Increased Production of Long-
Lasting Insecticidal Nets as Part of the
U.N. Millennium Campaign
Providing everyone with a LLIN in Sahn
Malen, a small village in Sierra Leone
DDT
DDT and malaria vector control
WHO Position on DDT Use
The DDT Ban Myth
Animations, images and photos
Burden of Malaria , BBC pictures relating
to malaria in northern Uganda
Malaria: Cooperation among Parasite,
Vector, and Host (Animation)
Malaria Blog from the Johns Hopkins
Bloomberg School of Public Health
Center for Communications Programs
[1] Buzz and Bite Malaria Prevention
Campaign

"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title=मले रया&oldid=3581139" से लया गया

Last edited 7 months ago by Anamd…


साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख
ना कया गया हो।

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