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Hindi Book-Kabir Dohavali
Hindi Book-Kabir Dohavali
सत्गरु
ु तो सतबाव ह़ै , जो अस बेद फताम ।
धन्म शीष धन बाग नतठह जो ऐसी सुगध ऩाम ॥ 466 ॥
सतगुरु शयण न आवहीां, फपय फपय होम अकाज ।
जीव खोम सफ जामेंगे कार नतहूूँ ऩुय याज ॥ 467 ॥
सतगुरु सभ कोई नहीां सात दीऩ नौ खण्ड ।
तीन रोक न ऩाइमे, अरु इक्कीस ब्रह्म्ण्ड ॥ 468 ॥
सतगुरु सभरा जु जाननमे, ऻान उजारा होम ।
भ्रभ का बाांड तोडड़ करय, यह़ै ननयारा होम ॥ 469 ॥
सतगुरु सभरे जु सफ सभरे, न तो सभरा न कोम ।
भाता-वऩता सुत फाूँधवा मे तो घय घय होम ॥ 470 ॥
जेठह खोजत ब्रह्भा थके, सुय नय भुनन अरु दे व ।
कह़ै कफीय सन
ु साधवा, करु सतगरु
ु की सेव ॥ 471 ॥
भनठहां ठदमा ननज सफ ठदमा, भन से सांग शयीय ।
अफ दे वे को क्मा यहा, मों कनम कहठहां कफीय ॥ 472 ॥
सतगरु
ु को भाने नही, अऩनी कह़ै फनाम ।
कह़ै कफीय क्मा कीजजमे, औय भता भन जाम ॥ 473 ॥
जग भें मजु क्त अनऩ
ू ह़ै , साधु सांग गरु
ु ऻान ।
ताभें ननऩट अनऩ
ू ह़ै , सतगरु
ु रागा कान ॥ 474 ॥
कफीय सभूझा कहत ह़ै , ऩानी थाह फताम ।
ताकूँू सतगुरु का कये , जो औघट डूफे जाम ॥ 475 ॥
बफन सतगुरु उऩदे श, सुय नय भुनन नठहां ननस्तये ।
ब्रह्भा-ववष्णु, भहे श औय सकर जजव को गगऩै ॥ 476 ॥
केते ऩठढ़ गुनन ऩगच बुए, मोग मऻ तऩ राम ।
बफन सतगुरु ऩाव़ै नहीां, कोठटन कये उऩाम ॥ 477 ॥
डूफा औघट न तय़ै , भोठहां अांदेशा होम ।
रोब नदी की धाय भें , कहा ऩड़ो नय सोइ ॥ 478 ॥
सतगुरु खोजो सन्त, जोव काज को चाहहु ।
भेटो बव को अांक, आवा गवन ननवायहु ॥ 479 ॥
कयहु छोड़ कुर राज, जो सतगुरु उऩदे श ह़ै ।
होमे सफ जजव काज, ननश्चम करय ऩयतीत कर ॥ 480 ॥
मह सतगुरु उऩदे श ह़ै , जो भन भाने ऩयतीत ।
कयभ बयभ सफ त्मागग के, चऱै सो बव जर जीत ॥ 481 ॥
जग सफ सागय भोठहां, कहु क़ैसे फूड़त तेये ।
गहु सतगुरु की फाठहां जो जर थर यऺा कय़ै ॥ 482 ॥
॥ सेवक ऩय दोहे ॥
दख
ु भें सुभरयन सफ कये , सुख भे कये न कोम ।
जो सुख भे सुभरयन कये , दख
ु काहे को होम ॥ 1 ॥
नतनका कफहुूँ ना ननांठदमे, जो ऩाूँव तरे होम ।
कफहुूँ उड़ आूँखो ऩड़े, ऩीय घानेयी होम ॥ 2 ॥
भारा पेयत जुग बमा, फपया न भन का पेय ।
कय का भन का डाय दें , भन का भनका पेय ॥ 3 ॥
गुरु गोववन्द दोनों खड़े, काके रागूां ऩाूँम ।
फसरहायी गुरु आऩनो, गोववांद ठदमो फताम ॥ 4 ॥
फसरहायी गुरु आऩनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ फाय ।
भानष
ु से दे वत फकमा कयत न रागी फाय ॥ 5 ॥
कफीया भारा भनठह की, औय सांसायी बीख ।
भारा पेये हरय सभरे, गरे यहट के दे ख ॥ 6 ॥
सख
ु भे ससु भयन ना फकमा, द:ु ख भें फकमा माद ।
कह कफीय ता दास की, कौन सन
ु े परयमाद ॥ 7 ॥
साईं इतना दीजजमे, जा भे कुटुभ सभाम ।
भैं बी बख
ू ा न यहूूँ, साधु ना बख
ू ा जाम ॥ 8 ॥
रूट सके तो रूट रे, याभ नाभ की रूट ।
ऩाछे फपये ऩछताओगे, प्राण जाठहां जफ छूट ॥ 9 ॥
जानत न ऩूछो साधु की, ऩूनछ रीजजए ऻान ।
भोर कयो तरवाय का, ऩड़ा यहन दो म्मान ॥ 10 ॥
जहाूँ दमा तहाूँ धभम ह़ै , जहाूँ रोब तहाूँ ऩाऩ ।
जहाूँ क्रोध तहाूँ ऩाऩ ह़ै , जहाूँ ऺभा तहाूँ आऩ ॥ 11 ॥
धीये -धीये ये भना, धीये सफ कुछ होम ।
भारी सीांचे सौ घड़ा, कतु आए पर होम ॥ 12 ॥
कफीया ते नय अन्ध ह़ै , गुरु को कहते औय ।
हरय रिे गुरु िौय ह़ै , गुरु रुि़ै नहीां िौय ॥ 13 ॥
ऩाूँच ऩहय धन्धे गमा, तीन ऩहय गमा सोम ।
एक ऩहय हरय नाभ बफन, भुजक्त क़ैसे होम ॥ 14 ॥
कफीया सोमा क्मा कये , उठि न बजे बगवान ।
जभ जफ घय रे जामेंगे, ऩड़ी यहे गी म्मान ॥ 15 ॥
शीरवन्त सफसे फड़ा, सफ यतनन की खान ।
तीन रोक की सम्ऩदा, यही शीर भें आन ॥ 16 ॥
भामा भयी न भन भया, भय-भय गए शयीय ।
आशा तष्ृ णा न भयी, कह गए दास कफीय ॥ 17 ॥
भाटी कहे कुम्हाय से, तु क्मा यौंदे भोम ।
एक ठदन ऐसा आएगा, भैं यौंदां ग
ू ी तोम ॥ 18 ॥
यात गांवाई सोम के, ठदवस गांवामा खाम ।
हीना जन्भ अनभोर था, कोड़ी फदरे जाम ॥ 19 ॥
नीांद ननशानी भौत की, उि कफीया जाग ।
औय यसामन छाांडड़ के, नाभ यसामन राग ॥ 20 ॥
जो तोकु काांटा फुवे, ताठह फोम तू पूर ।
तोकू पूर के पूर ह़ै , फाकू ह़ै बत्रशर
ू ॥ 21 ॥
दर
ु ब
म भानष
ु जन्भ ह़ै , दे ह न फायम्फाय ।
तरुवय ज्मों ऩत्ती झड़े, फहुरय न रागे डाय ॥ 22 ॥
फ़ैध भआ
ु योगी भआ
ु , भआ
ु सकर सांसाय ।
एक कफीया ना भआ
ु , जेठह के याभ अधाय ॥ 45 ॥
हय चारे तो भानव, फेहद चरे सो साध ।
हद फेहद दोनों तजे, ताको बता अगाध ॥ 46 ॥
याभ यहे फन बीतये गुरु की ऩूजा ना आस ।
यहे कफीय ऩाखण्ड सफ, झूिे सदा ननयाश ॥ 47 ॥
जाके जजव्मा फन्धन नहीां, ह्र्दम भें नहीां साूँच ।
वाके सांग न रागगमे, खारे वठटमा काूँच ॥ 48 ॥
तीयथ गमे ते एक पर, सन्त सभरे पर चाय ।
सत्गुरु सभरे अनेक पर, कहें कफीय ववचाय ॥ 49 ॥
सुभयण से भन राइए, ज़ैसे ऩानी बफन भीन ।
प्राण तजे बफन बफछड़े, सन्त कफीय कह दीन ॥ 50 ॥
सभझामे सभझे नहीां, ऩय के साथ बफकाम ।
भैं खीांचत हूूँ आऩके, तू चरा जभऩयु जाए ॥ 51 ॥
हां सा भोती ववण्न्मा, कुञ्चच्न थाय बयाम ।
जो जन भागम न जाने, सो नतस कहा कयाम ॥ 52 ॥
कहना सो कह ठदमा, अफ कुछ कहा न जाम ।
एक यहा दज
ू ा गमा, दरयमा रहय सभाम ॥ 53 ॥
वस्तु ह़ै ग्राहक नहीां, वस्तु सागय अनभोर ।
बफना कयभ का भानव, फपयैं डाांवाडोर ॥ 54 ॥
करी खोटा जग आांधया, शब्द न भाने कोम ।
चाहे कहूँ सत आइना, जो जग फ़ैयी होम ॥ 55 ॥
काभी, क्रोधी, रारची, इनसे बजक्त न होम ।
बजक्त कये कोइ सूयभा, जानत वयन कुर खोम ॥ 56 ॥
जागन भें सोवन कये , साधन भें रौ राम ।
सूयत डोय रागी यहे , ताय टूट नाठहां जाम ॥ 57 ॥
साधु ऐसा चठहए ,ज़ैसा सूऩ सुबाम ।
साय-साय को गठह यहे , थोथ दे इ उड़ाम ॥ 58 ॥
रगी रग्न छूटे नाठहां, जीब चोंच जरय जाम ।
भीिा कहा अांगाय भें , जाठह चकोय चफाम ॥ 59 ॥
बजक्त गें द चौगान की, बावे कोई रे जाम ।
कह कफीय कुछ बेद नाठहां, कहाां यां क कहाां याम ॥ 60 ॥
घट का ऩयदा खोरकय, सन्भुख दे दीदाय ।
फार सनेही साांइमाूँ, आवा अन्त का माय ॥ 61 ॥
अन्तमामभी एक तुभ, आत्भा के आधाय ।
जो तुभ छोड़ो हाथ तो, कौन उताये ऩाय ॥ 62 ॥
भैं अऩयाधी जन्भ का, नख-ससख बया ववकाय ।
तुभ दाता द:ु ख बांजना, भेयी कयो सम्हाय ॥ 63 ॥
प्रेभ न फड़ी ऊऩज़ै, प्रेभ न हाट बफकाम ।
याजा-प्रजा जोठह रुचें , शीश दे ई रे जाम ॥ 64 ॥
प्रेभ प्मारा जो वऩमे, शीश दक्षऺणा दे म ।
रोबी शीश न दे सके, नाभ प्रेभ का रेम ॥ 65 ॥
ससु भयन भें भन राइए, ज़ैसे नाद कुयां ग ।
कहैं कफीय बफसये नहीां, प्रान तजे तेठह सांग ॥ 66 ॥
सुभरयत सुयत जगाम कय, भुख के कछु न फोर ।
फाहय का ऩट फन्द कय, अन्दय का ऩट खोर ॥ 67 ॥
छीय रऩ सतनाभ ह़ै , नीय रऩ व्मवहाय ।
हां स रऩ कोई साधु ह़ै , सत का छाननहाय ॥ 68 ॥
ज्मों नतर भाांही तेर ह़ै , ज्मों चकभक भें आग ।
तेया साांई तझ
ु भें , फस जाग सके तो जाग ॥ 69 ॥
जा कयण जग ढ़ूँू ठढ़मा, सो तो घट ही भाांठह ।
ऩयदा ठदमा बयभ का, ताते सझ
ू े नाठहां ॥ 70 ॥
जफही नाभ ठहयदे घया, बमा ऩाऩ का नाश ।
भानो गचांगयी आग की, ऩयी ऩुयानी घास ॥ 71 ॥
नहीां शीतर ह़ै चन्द्रभा, ठहांभ नहीां शीतर होम ।
कफीया शीतर सन्त जन, नाभ सनेही सोम ॥ 72 ॥
आहाय कये भन बावता, इांदी फकए स्वाद ।
नाक तरक ऩूयन बये , तो का कठहए प्रसाद ॥ 73 ॥
जफ रग नाता जगत का, तफ रग बजक्त न होम ।
नाता तोड़े हरय बजे, बगत कहावें सोम ॥ 74 ॥
जर ज्मों प्माया भाहयी, रोबी प्माया दाभ ।
भाता प्माया फायका, बगनत प्माया नाभ ॥ 75 ॥
ठदर का भयहभ ना सभरा, जो सभरा सो गजी ।
कह कफीय आसभान पटा, क्मोंकय सीवे दजी ॥ 76 ॥
फानी से ऩह्चाननमे, साभ चोय की घात ।
अन्दय की कयनी से सफ, ननकरे भूँह
ु कई फात ॥ 77 ॥
जफ रगग बगनत सकाभ ह़ै , तफ रग ननष्पर सेव ।
कह कफीय वह क्मों सभरे, ननष्काभी तज दे व ॥ 78 ॥
पूटी आूँख वववेक की, रखे ना सन्त असन्त ।
जाके सांग दस-फीस हैं, ताको नाभ भहन्त ॥ 79 ॥
दामा बाव ह्र्दम नहीां, ऻान थके फेहद ।
ते नय नयक ही जामेंगे, सनु न-सनु न साखी शब्द ॥ 80 ॥
दामा कौन ऩय कीजजमे, का ऩय ननदम म होम ।
साांई के सफ जीव ह़ै , कीयी कांु जय दोम ॥ 81 ॥
जफ भैं था तफ गरु
ु नहीां, अफ गरु
ु हैं भैं नाम ।
प्रेभ गरी अनत साूँकयी, ता भे दो न सभाम ॥ 82 ॥
नछन ही चढ़े नछन ही उतये , सो तो प्रेभ न होम ।
अघट प्रेभ वऩांजये फसे, प्रेभ कहावे सोम ॥ 83 ॥
जहाूँ काभ तहाूँ नाभ नठहां, जहाूँ नाभ नठहां वहाूँ काभ ।
दोनों कफहूूँ नठहां सभरे, यवव यजनी इक धाभ ॥ 84 ॥
कफीया धीयज के धये , हाथी भन बय खाम ।
टूट एक के कायने, स्वान घय़ै घय जाम ॥ 85 ॥
ऊूँचे ऩानी न ठटके, नीचे ही िहयाम ।
नीचा हो सो बरयए वऩए, ऊूँचा प्मासा जाम ॥ 86 ॥
सफते रघुताई बरी, रघुता ते सफ होम ।
जौसे दज
ू का चन्द्रभा, शीश नवे सफ कोम ॥ 87 ॥
सांत ही भें सत फाांटई, योटी भें ते टूक ।
कहे कफीय ता दास को, कफहूूँ न आवे चक
ू ॥ 88 ॥