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Kabir Dohavali

तफ रग ताया जगभगे, जफ रग उगे न सूय ।


तफ रग जीव जग कभमवश, ज्मों रग ऻान न ऩूय ॥ 101 ॥
आस ऩयाई याख्त, खामा घय का खेत ।
औयन को प्त फोधता, भुख भें ऩड़ ये त ॥ 102 ॥
सोना, सज्जन, साधु जन, टूट जुड़़ै सौ फाय ।
दज
ु न
म कुम्ब कुम्हाय के, ऐके धका दयाय ॥ 103 ॥
सफ धयती कायज करूँ, रेखनी सफ फनयाम ।
सात सभुद्र की भसस करूँ गुरुगुन सरखा न जाम ॥ 104 ॥
फसरहायी वा दध
ू की, जाभे ननकसे घीव ।
घी साखी कफीय की, चाय वेद का जीव ॥ 105 ॥
आग जो रागी सभुद्र भें , धआ
ु ूँ न प्रकट होम ।
सो जाने जो जयभआ
ु , जाकी राई होम ॥ 106 ॥
साधु गाूँठि न फाूँधई, उदय सभाता रेम ।
आगे-ऩीछे हरय खड़े जफ बोगे तफ दे म ॥ 107 ॥
घट का ऩयदा खोरकय, सन्भख
ु दे दीदाय ।
फार सने ही साांइमा, आवा अन्त का माय ॥ 108 ॥
कबफया खासरक जागगमा, औय ना जागे कोम ।
जाके ववषम ववष बया, दास फन्दगी होम ॥ 109 ॥
ऊूँचे कुर भें जासभमा, कयनी ऊूँच न होम ।
सौयन करश सुया, बयी, साधु ननन्दा सोम ॥ 110 ॥
सुभयण की सुब्मों कयो ज्मों गागय ऩननहाय ।
होरे-होरे सुयत भें , कहैं कफीय ववचाय ॥ 111 ॥
सफ आए इस एक भें , डार-ऩात पर-पूर ।
कबफया ऩीछा क्मा यहा, गह ऩकड़ी जफ भूर ॥ 112 ॥
जो जन बीगे याभयस, ववगत कफहूूँ ना रख ।
अनुबव बाव न दयसते, ना द:ु ख ना सुख ॥ 113 ॥
ससांह अकेरा फन यहे , ऩरक-ऩरक कय दौय ।
ज़ैसा फन ह़ै आऩना, त़ैसा फन ह़ै औय ॥ 114 ॥
मह भामा ह़ै चह
ू ड़ी, औय चह
ू ड़ा कीजो ।
फाऩ-ऩत
ू उयबाम के, सांग ना काहो केहो ॥ 115 ॥
जहय की जभी भें ह़ै योऩा, अबी खीांचे सौ फाय ।
कबफया खरक न तजे, जाभे कौन ववचाय ॥ 116 ॥
जग भे फ़ैयी कोई नहीां, जो भन शीतर होम ।
मह आऩा तो डार दे , दमा कये सफ कोम ॥ 117 ॥
जो जाने जीव न आऩना, कयहीां जीव का साय ।
जीवा ऐसा ऩाहौना, सभरे ना दज
ू ी फाय ॥ 118 ॥
कफीय जात ऩुकायमा, चढ़ चन्दन की डाय ।
फाट रगाए ना रगे फपय क्मा रेत हभाय ॥ 119 ॥
रोग बयोसे कौन के, फ़ैिे यहें उयगाम ।
जीम यही रूटत जभ फपये , भैँढ़ा रुटे कसाम ॥ 120 ॥
एक कहूूँ तो ह़ै नहीां, दज
ू ा कहूूँ तो गाय ।
ह़ै ज़ैसा त़ैसा हो यहे , यहें कफीय ववचाय ॥ 121 ॥
जो तु चाहे भुक्त को, छोड़े दे सफ आस ।
भुक्त ही ज़ैसा हो यहे , फस कुछ तेये ऩास ॥ 122 ॥
साूँई आगे साूँच ह़ै , साूँई साूँच सुहाम ।
चाहे फोरे केस यख, चाहे घौंट बुण्डाम ॥ 123 ॥
अऩने-अऩने साख की, सफही रीनी भान ।
हरय की फातें दयु न्तया, ऩूयी ना कहूूँ जान ॥ 124 ॥
खेत ना छोड़े सूयभा, जूझे दो दर भोह ।
आशा जीवन भयण की, भन भें याखें नोह ॥ 125 ॥
रीक ऩुयानी को तजें, कामय कुठटर कऩूत ।
रीख ऩुयानी ऩय यहें , शानतय ससांह सऩूत ॥ 126 ॥
सन्त ऩुरुष की आयसी, सन्तों की ही दे ह ।
रखा जो चहे अरख को, उन्हीां भें रख रेह ॥ 127 ॥
बख
ू ा-बख
ू ा क्मा कये , क्मा सन
ु ावे रोग ।
बाांडा घड़ ननज भख
ु ठदमा, सोई ऩण
ू म जोग ॥ 128 ॥
गबम मोगेश्वय गरु
ु बफना, रागा हय का सेव ।
कहे कफीय फ़ैकुण्ि से, पेय ठदमा शक्
ु दे व ॥ 129 ॥
प्रेभबाव एक चाठहए, बेष अनेक फनाम ।
चाहे घय भें वास कय, चाहे फन को जाम ॥ 130 ॥
काांचे बाडें से यहे , ज्मों कुम्हाय का दे ह ।
बीतय से यऺा कये , फाहय चोई दे ह ॥ 131 ॥
साूँई ते सफ होते ह़ै , फन्दे से कुछ नाठहां ।
याई से ऩवमत कये , ऩवमत याई भाठहां ॥ 132 ॥
केतन ठदन ऐसे गए, अन रुचे का नेह ।
अवसय फोवे उऩजे नहीां, जो नहीां फयसे भेह ॥ 133 ॥
एक ते अनन्त अन्त एक हो जाम ।
एक से ऩयचे बमा, एक भोह सभाम ॥ 134 ॥
साधु सती औय सूयभा, इनकी फात अगाध ।
आशा छोड़े दे ह की, तन की अनथक साध ॥ 135 ॥
हरय सांगत शीतर बमा, सभटी भोह की ताऩ ।
ननसशवासय सुख ननगध, रहा अन्न प्रगटा आऩ ॥ 136 ॥
आशा का ईंधन कयो, भनशा कयो फबूत ।
जोगी पेयी मों फपयो, तफ वन आवे सूत ॥ 137 ॥
आग जो रगी सभुद्र भें , धआ
ु ूँ ना प्रकट होम ।
सो जाने जो जयभुआ, जाकी राई होम ॥ 138 ॥
अटकी बार शयीय भें , तीय यहा ह़ै टूट ।
चम्
ु फक बफना ननकरे नहीां, कोठट ऩिन को पूट ॥ 139 ॥
अऩने-अऩने साख की, सफ ही रीनी बान ।
हरय की फात दयु न्तया, ऩूयी ना कहूूँ जान ॥ 140 ॥
आस ऩयाई याखता, खामा घय का खेत ।
औनम को ऩथ फोधता, भुख भें डाये ये त ॥ 141 ॥
आवत गायी एक ह़ै , उरटन होम अनेक ।
कह कफीय नठहां उरठटमे, वही एक की एक ॥ 142 ॥
आहाय कये भनबावता, इांद्री की स्वाद ।
नाक तरक ऩयू न बये , तो कठहए कौन प्रसाद ॥ 143 ॥
आए हैं सो जाएूँगे, याजा यां क पकीय ।
एक ससांहासन चठढ़ चरे, एक फाूँगध जांजीय ॥ 144 ॥
आमा था फकस काभ को, तू सोमा चादय तान ।
सयू त सूँबार ए काफपरा, अऩना आऩ ऩह्चान ॥ 145 ॥
उज्जवर ऩहये काऩड़ा, ऩान-सुऩयी खाम ।
एक हरय के नाभ बफन, फाूँधा मभऩयु जाम ॥ 146 ॥
उतते कोई न आवई, ऩासू ऩछ
ू ू ूँ धाम ।
इतने ही सफ जात ह़ै , बाय रदाम रदाम ॥ 147 ॥
अवगन
ु कहूूँ शयाफ का, आऩा अहभक होम ।
भानष
ु से ऩशआ
ु बमा, दाभ गाूँि से खोम ॥ 148 ॥
एक कहूूँ तो ह़ै नहीां, दज
ू ा कहूूँ तो गाय ।
ह़ै ज़ैसा त़ैसा यहे , यहे कफीय ववचाय ॥ 149 ॥
ऐसी वाणी फोसरए, भन का आऩा खोए ।
औयन को शीतर कये , आऩौ शीतर होम ॥ 150 ॥
कफीया सांग्ङनत साधु की, जौ की बूसी खाम ।
खीय खाूँड़ बोजन सभरे, ताकय सांग न जाम ॥ 151 ॥
एक ते जान अनन्त, अन्म एक हो आम ।
एक से ऩयचे बमा, एक फाहे सभाम ॥ 152 ॥
कफीया गयफ न कीजजए, कफहूूँ न हूँससमे कोम ।
अजहूूँ नाव सभुद्र भें , ना जाने का होम ॥ 153 ॥
कफीया करह अरु कल्ऩना, सतसांगनत से जाम ।
दख
ु फासे बागा फपय़ै , सुख भें यह़ै सभाम ॥ 154 ॥
कफीया सांगनत साधु की, जजत प्रीत कीज़ै जाम ।
दग
ु नम त दयू वहावनत, दे वी सुभनत फनाम ॥ 155 ॥
कफीया सांगत साधु की, ननष्पर कबी न होम ।
होभी चन्दन फासना, नीभ न कहसी कोम ॥ 156 ॥
को छूटौ इठहां जार ऩरय, कत पुयां ग अकुराम ।
ज्मों-ज्मों सुयझझ बजौ चह़ै , त्मों-त्मों उयझत जाम ॥ 157 ॥
कफीया सोमा क्मा कये , उठि न बजे बगवान ।
जभ जफ घय रे जाएूँगे, ऩड़ा यहे गा म्मान ॥ 158 ॥
काह बयोसा दे ह का, बफनस जात नछन भायठहां ।
साूँस-साूँस ससु भयन कयो, औय मतन कछु नाठहां ॥ 159 ॥
कार कये से आज कय, सफठह सात तव
ु साथ ।
कार कार तू क्मा कये कार कार के हाथ ॥ 160 ॥
कामा काढ़ा कार घन
ु , जतन-जतन सो खाम ।
कामा फह्रा ईश फस, भभम न काहूूँ ऩाम ॥ 161 ॥
कहा फकमो हभ आम कय, कहा कयें गे ऩाम ।
इनके बमे न उतके, चारे भर
ू गवाम ॥ 162 ॥
कुठटर फचन सफसे फयु ा, जासे होत न हाय ।
साधु वचन जर रऩ ह़ै , फयसे अम्रत धाय ॥ 163 ॥
कहता तो फहूूँना सभरे, गहना सभरा न कोम ।
सो कहता वह जान दे , जो नहीां गहना कोम ॥ 164 ॥
कफीया भन ऩूँछी बमा, बमे ते फाहय जाम ।
जो ज़ैसे सांगनत कय़ै , सो त़ैसा पर ऩाम ॥ 165 ॥
कफीया रोहा एक ह़ै , गढ़ने भें ह़ै पेय ।
ताठह का फखतय फने, ताठह की शभशेय ॥ 166 ॥
कहे कफीय दे म तू, जफ तक तेयी दे ह ।
दे ह खेह हो जाएगी, कौन कहे गा दे ह ॥ 167 ॥
कयता था सो क्मों फकमा, अफ कय क्मों ऩनछताम ।
फोमा ऩेड़ फफूर का, आभ कहाूँ से खाम ॥ 168 ॥
कस्तूयी कुन्डर फसे, म्रग ढ़ूांढ़े फन भाठहां ।
ऐसे घट-घट याभ ह़ै , दनु नमा दे खे नाठहां ॥ 169 ॥
कफीया सोता क्मा कये , जागो जऩो भुयाय ।
एक ठदना ह़ै सोवना, राांफे ऩाूँव ऩसाय ॥ 170 ॥
कागा काको घन हये , कोमर काको दे म ।
भीिे शब्द सुनाम के, जग अऩनो कय रेम ॥ 171 ॥
कबफया सोई ऩीय ह़ै , जो जा नैं ऩय ऩीय ।
जो ऩय ऩीय न जानइ, सो काफपय के ऩीय ॥ 172 ॥

कबफया भनठह गमन्द ह़ै , आकांु श द़ै -द़ै याझख ।


ववष की फेरी ऩरय यह़ै , अम्रत को पर चाझख ॥ 173 ॥
कफीय मह जग कुछ नहीां, झखन खाया भीि ।
काल्ह जो फ़ैिा बण्डऩ़ै, आज बसाने दीि ॥ 174 ॥
कबफया आऩ िगाइए, औय न िगगए कोम ।
आऩ िगे सुख होत ह़ै , औय िगे दख
ु होम ॥ 175 ॥
कथा कीतमन कुर ववशे, बव सागय की नाव ।
कहत कफीया मा जगत, नाहीां औय उऩाम ॥ 176 ॥
कबफया मह तन जात ह़ै , सके तो िौय रगा ।
क़ै सेवा कय साधु की, क़ै गोववांद गन
ु गा ॥ 177 ॥
कसर खोटा सजग आांधया, शब्द न भाने कोम ।
चाहे कहूूँ सत आइना, सो जग फ़ैयी होम ॥ 178 ॥
केतन ठदन ऐसे गए, अन रुचे का नेह ।
अवसय फोवे उऩजे नहीां, जो नठहां फयसे भेह ॥ 179 ॥
कफीय जात ऩक
ु ायमा, चढ़ चन्दन की डाय ।
वाट रगाए ना रगे फपय क्मा रेत हभाय ॥ 180 ॥
कफीया खासरक जागगमा, औय ना जागे कोम ।
जाके ववषम ववष बया, दास फन्दगी होम ॥ 181 ॥
गाूँठि न थाभठहां फाूँध ही, नठहां नायी सो नेह ।
कह कफीय वा साधु की, हभ चयनन की खेह ॥ 182 ॥
खेत न छोड़े सूयभा, जूझे को दर भाूँह ।
आशा जीवन भयण की, भन भें याखे नाूँह ॥ 183 ॥
चन्दन ज़ैसा साधु ह़ै , सऩमठह सभ सांसाय ।
वाके अग्ङ रऩटा यहे , भन भे नाठहां ववकाय ॥ 184 ॥
घी के तो दशमन बरे, खाना बरा न तेर ।
दाना तो दश्ु भन बरा, भूयख का क्मा भेर ॥ 185 ॥
गायी ही सो ऊऩजे, करह कष्ट औय बीांच ।
हारय चरे सो साधु हैं, रागग चरे तो नीच ॥ 186 ॥
चरती चक्की दे ख के, ठदमा कफीया योम ।
दइु ऩट बीतय आइके, साबफत फचा न कोम ॥ 187 ॥
जा ऩर दयसन साधु का, ता ऩर की फसरहायी ।
याभ नाभ यसना फसे, रीज़ै जनभ सुधारय ॥ 188 ॥
जफ रग बजक्त से काभ ह़ै , तफ रग ननष्पर सेव ।
कह कफीय वह क्मों सभरे, नन:काभा ननज दे व ॥ 189 ॥
जो तोकांू काूँटा फुव़ै, ताठह फोम तू पूर ।
तोकू पूर के पूर ह़ै , फाूँकू ह़ै नतयशर
ू ॥ 190 ॥
जा घट प्रेभ न सांचये , सो घट जान सभान ।
ज़ैसे खार रह
ु ाय की, साूँस रेतु बफन प्रान ॥ 191 ॥
ज्मों ऩैनन भें ऩत
ू री, त्मों भासरक घय भाठहां ।
भख
ू म रोग न जाननए, फहय ढ़ूांढ़त जाांठह ॥ 192 ॥
जाके भुख भाथा नहीां, नाहीां रऩ कुरऩ ।
ऩछ
ु ु ऩ फास तें ऩाभया, ऐसा तत्व अनऩ
ू ॥ 193 ॥
जहाूँ आऩ तहाूँ आऩदा, जहाूँ सांशम तहाूँ योग ।
कह कफीय मह क्मों सभटैं, चायों फाधक योग ॥ 194 ॥
जानत न ऩछ
ू ो साधु की, ऩनू छ रीजजए ऻान ।
भोर कयो तरवाय का, ऩड़ा यहन दो म्मान ॥ 195 ॥
जर की जभी भें ह़ै योऩा, अबी सीांचें सौ फाय ।
कबफया खरक न तजे, जाभे कौन वोचाय ॥ 196 ॥
जहाूँ ग्राहक तूँह भैं नहीां, जूँ ह भैं गाहक नाम ।
बफको न मक बयभत फपये , ऩकड़ी शब्द की छाूँम ॥ 197 ॥
झूिे सुख को सुख कह़ै , भानता ह़ै भन भोद ।
जगत चफेना कार का, कुछ भुख भें कुछ गोद ॥ 198 ॥
जो तु चाहे भुजक्त को, छोड़ दे सफकी आस ।
भुक्त ही ज़ैसा हो यहे , सफ कुछ तेये ऩास ॥ 199 ॥
जो जाने जीव आऩना, कयहीां जीव का साय ।
जीवा ऐसा ऩाहौना, सभरे न दीजी फाय ॥ 200 ॥

ते ठदन गमे अकायथी, सांगत बई न सांत ।


प्रेभ बफना ऩशु जीवना, बजक्त बफना बगवांत ॥ 201 ॥
तीय तऩ
ु क से जो रड़े, सो तो शयू न होम ।
भामा तजज बजक्त कये , सयू कहाव़ै सोम ॥ 202 ॥
तन को जोगी सफ कये , भन को बफयरा कोम ।
सहज़ै सफ ववगध ऩाइमे, जो भन जोगी होम ॥ 203 ॥
तफ रग ताया जगभगे, जफ रग उगे नसूय ।
तफ रग जीव जग कभमवश, जफ रग ऻान ना ऩूय ॥ 204 ॥
दर
ु ब
म भानुष जनभ ह़ै , दे ह न फायम्फाय ।
तरुवय ज्मों ऩत्ती झड़े, फहुरय न रागे डाय ॥ 205 ॥
दस द्वाये का ऩीांजया, ताभें ऩांछी भौन ।
यहे को अचयज बमौ, गमे अचम्बा कौन ॥ 206 ॥
धीये -धीये ये भना, धीये सफ कुछ होम ।
भारी सीचें सौ घड़ा, कतु आए पर होम ॥ 207 ॥
न्हामे धोमे क्मा हुआ, जो भन भ़ैर न जाम ।
भीन सदा जर भें यह़ै , धोमे फास न जाम ॥ 208 ॥
ऩाूँच ऩहय धन्धे गमा, तीन ऩहय गमा सोम ।
एक ऩहय बी नाभ फीन, भजु क्त क़ैसे होम ॥ 209 ॥
ऩोथी ऩढ़-ऩढ़ जग भआ
ु , ऩांडडत बमा न कोम ।
ढ़ाई आखय प्रेभ का, ऩढ़़ै सो ऩांडड़त होम ॥ 210 ॥
ऩानी केया फद
ु फद
ु ा, अस भानस की जात ।
दे खत ही नछऩ जाएगा, ज्मों साया ऩयबात ॥ 211 ॥
ऩाहन ऩूजे हरय सभरें , तो भैं ऩूजौं ऩहाय ।
माते मे चक्की बरी, ऩीस खाम सांसाय ॥ 212 ॥
ऩत्ता फोरा वऺ
ृ से, सुनो वऺ
ृ फनयाम ।
अफ के बफछुड़े ना सभरे, दयू ऩड़ेंगे जाम ॥ 213 ॥
प्रेभबाव एक चाठहए, बेष अनेक फजाम ।
चाहे घय भें फास कय, चाहे फन भे जाम ॥ 214 ॥
फन्धे को फूँनधा सभरे, छूटे कौन उऩाम ।
कय सांगनत ननयफन्ध की, ऩर भें रेम छुड़ाम ॥ 215 ॥
फूँद
ू ऩड़ी जो सभुद्र भें , ताठह जाने सफ कोम ।
सभुद्र सभाना फूँद
ू भें , फूझ़ै बफयरा कोम ॥ 216 ॥
फाहय क्मा ठदखयाइमे, अन्तय जवऩए याभ ।
कहा काज सांसाय से, तुझे धनी से काभ ॥ 217 ॥
फानी से ऩहचाननए, साभ चोय की घात ।
अन्दय की कयनी से सफ, ननकरे भूँह
ु की फात ॥ 218 ॥
फड़ा हुआ सो क्मा हुआ, ज़ैसे ऩेड़ खजूय ।
ऩूँछी को छामा नहीां, पर रागे अनत दयू ॥ 219 ॥
भूँड़
ू भुड़ामे हरय सभरे, सफ कोई रेम भुड़ाम ।
फाय-फाय के भुड़ते, बेड़ न फ़ैकुण्ि जाम ॥ 220 ॥
भामा तो िगनी फनी, िगत फपये सफ दे श ।
जा िग ने िगनी िगो, ता िग को आदे श ॥ 221 ॥
बज दीना कहूूँ औय ही, तन साधन
ु के सांग ।
कहैं कफीय कायी गजी, क़ैसे रागे यां ग ॥ 222 ॥
भामा छामा एक सी, बफयरा जाने कोम ।
बागत के ऩीछे रगे, सन्भख
ु बागे सोम ॥ 223 ॥
भथयु ा बाव़ै द्वारयका, बावे जो जगन्नाथ ।
साधु सांग हरय बजन बफनु, कछु न आवे हाथ ॥ 224 ॥
भारी आवत दे ख के, कसरमान कयी ऩक
ु ाय ।
पूर-पूर चन
ु सरए, कार हभायी फाय ॥ 225 ॥
भैं योऊूँ सफ जगत ् को, भोको योवे न कोम ।
भोको योवे सोचना, जो शब्द फोम की होम ॥ 226 ॥
मे तो घय ह़ै प्रेभ का, खारा का घय नाठहां ।
सीस उताये बूँई
ु धये , तफ फ़ैिें घय भाठहां ॥ 227 ॥
मा दनु नमाूँ भें आ कय, छाूँडड़ दे म तू ऐांि ।
रेना हो सो रेइरे, उिी जात ह़ै ऩैंि ॥ 228 ॥
याभ नाभ चीन्हा नहीां, कीना वऩांजय फास ।
ऩैन न आवे नीदयौं, अरग न आवे बास ॥ 229 ॥
यात गांवाई सोम के, ठदवस गांवामा खाम ।
हीया जन्भ अनभोर था, कौंड़ी फदरे जाए ॥ 230 ॥
याभ फुरावा बेजजमा, ठदमा कफीया योम ।
जो सुख साधु सगां भें , सो फ़ैकांु ि न होम ॥ 231 ॥
सांगनत सों सुख्मा ऊऩजे, कुसांगनत सो दख
ु होम ।
कह कफीय तहूँ जाइमे, साधु सांग जहूँ होम ॥ 232 ॥
साठहफ तेयी साठहफी, सफ घट यही सभाम ।
ज्मों भेहूँदी के ऩात भें , रारी यखी न जाम ॥ 233 ॥
साूँझ ऩड़े ठदन फीतफ़ै, चकवी दीन्ही योम ।
चर चकवा वा दे श को, जहाूँ य़ै न नठहां होम ॥ 234 ॥
सांह ही भे सत फाूँटे, योटी भें ते टूक ।
कहे कफीय ता दास को, कफहुूँ न आवे चक
ू ॥ 235 ॥
साईं आगे साूँच ह़ै , साईं साूँच सुहाम ।
चाहे फोरे केस यख, चाहे घौंट भुण्डाम ॥ 236 ॥
रकड़ी कह़ै रुहाय की, तू भनत जाये भोठहां ।
एक ठदन ऐसा होमगा, भैं जायौंगी तोठह ॥ 237 ॥
हरयमा जाने रुखड़ा, जो ऩानी का गेह ।
सख
ू ा काि न जान ही, केतउ
ु फड़
ू ा भेह ॥ 238 ॥
ऻान यतन का जतनकय भाटी का सांसाय ।
आम कफीय फपय गमा, पीका ह़ै सांसाय ॥ 239 ॥
कवि ससवि भाूँगो नहीां, भाूँगो तुभ ऩ़ै मेह ।
ननसस ठदन दयशन शाधु को, प्रबु कफीय कहुूँ दे ह ॥ 240 ॥
ऺभा फड़े न को उगचत ह़ै , छोटे को उत्ऩात ।
कहा ववष्णु का घठट गमा, जो बग
ु ु भायीरात ॥ 241 ॥
याभ-नाभ क़ै ऩटां तय़ै , दे फे कौं कुछ नाठहां ।
क्मा रे गयु सांतोवषए, हौंस यही भन भाठहां ॥ 242 ॥

फसरहायी गुय आऩणौ, घौंहाड़ी क़ै फाय ।


जजनन बाननष तैं दे वता, कयत न रागी फाय ॥ 243 ॥
ना गुरु सभल्मा न ससष बमा, रारच खेल्मा डाव ।
दन्ु मू फूड़े धाय भें , चठढ़ ऩाथय की नाव ॥ 244 ॥
सतगुय हभ सूां यीझझ करय, एक कह्भा कय सांग ।
फयस्मा फादर प्रेभ का, बीांजज गमा अफ अांग ॥ 245 ॥
कफीय सतगुय ना सभल्मा, यही अधयू ी सीष ।
स्वाूँग जती का ऩहरय करय, धरय-धरय भाूँगे बीष ॥ 246 ॥
मह तन ववष की फेरयी, गुरु अभत
ृ की खान ।
सीस ठदमे जो गरु
ु सभऱै, तो बी सस्ता जान ॥ 247 ॥
तू तू कयता तू बमा, भझ
ु भें यही न हूूँ ।
वायी पेयी फसर गई, जजत दे खौं नतत तू ॥ 248 ॥
याभ वऩमाया छाांडड़ करय, कय़ै आन का जाऩ ।
फेस्मा केया ऩत
ू ां ज्मांू, कह़ै कौन सू फाऩ ॥ 249 ॥
कफीया प्रेभ न चवषमा, चवष न सरमा साव ।
सन
ू े घय का ऩाांहुणाां, ज्मांू आमा त्मांू जाव ॥ 250 ॥
कफीया याभ रयझाइ ऱै, भुझख अभत
ृ गुण गाइ ।
पूटा नग ज्मूां जोडड़ भन, सांधे सांगध सभराइ ॥ 251 ॥
रांफा भायग, दरू यधय, ववकट ऩांथ, फहुभाय ।
कहौ सांतो, क्मूां ऩाइमे, दर
ु ब
म हरय-दीदाय ॥ 252 ॥
बफयह-बुवगभ तन फस़ै भांत्र न राग़ै कोइ ।
याभ-बफमोगी ना जजव़ै जजव़ै तो फौया होइ ॥ 253 ॥

मह तन जारों भसस कयों, सरखों याभ का नाउां ।


रेखझण करां कयां क की, सरखी-सरखी याभ ऩिाउां ॥ 254 ॥
अांदेसड़ा न बाजजसी, सद़ै सो कठहमाां ।
के हरय आमाां बाजजसी, क़ैहरय ही ऩास गमाां ॥ 255 ॥
इस तन का दीवा कयौ, फाती भेल्मांू जीवउां ।
रोही सीांचो तेर ज्म,ांू कफ भख
ु दे ख ऩठिउां ॥ 256 ॥
अांषडड़माां झाईं ऩड़ी, ऩांथ ननहारय-ननहारय ।
जीबडड़माूँ छारा ऩड़मा, याभ ऩक
ु ारय-ऩक
ु ारय ॥ 257 ॥
सफ यग तांत यफाफ तन, बफयह फजाव़ै ननत्त ।
औय न कोई सझु ण सक़ै, क़ै साईं के गचत्त ॥ 258 ॥
जो योऊूँ तो फर घट़ै , हूँसो तो याभ रयसाइ ।
भन ही भाठहां बफसूयणा, ज्मूूँ घुूँण कािठहां खाइ ॥ 259 ॥
कफीय हूँसणाूँ दरू य करय, करय योवण सौ गचत्त ।
बफन योमाां क्मूां ऩाइमे, प्रेभ वऩमाया सभत्व ॥ 260 ॥
सुझखमा सफ सांसाय ह़ै , खाव़ै औय सोवे ।
दझु खमा दास कफीय ह़ै , जाग़ै अरु यौवे ॥ 261 ॥
ऩयफनत ऩयफनत भैं फपयमा, ऩैन गांवाए योइ ।
सो फूटी ऩाऊूँ नहीां, जातैं जीवनन होइ ॥ 262 ॥
ऩूत वऩमायौ वऩता कौं, गौहनन रागो घाइ ।
रोब-सभिाई हाथ दे , आऩण गमो बुराइ ॥ 263 ॥
हाूँसी ख़ैरो हरय सभऱै, कौण सह़ै षयसान ।
काभ क्रोध बत्रष्णां तज़ै, तोठह सभऱै बगवान ॥ 264 ॥

जा कायझण भें ढ़ूँू ढ़ती, सनभख


ु सभसरमा आइ ।
धन भ़ैरी वऩव ऊजरा, रागग न सकौं ऩाइ ॥ 265 ॥
ऩहुूँचेंगे तफ कह़ै गें, उभड़ैंगे उस िाांई ।
आजहूां फेया सभांद भैं, फोसर बफगू ऩैं काई ॥ 266 ॥
दीिा ह़ै तो कस कहूां, कह्भा न को ऩनतमाइ ।
हरय ज़ैसा ह़ै त़ैसा यहो, तू हरयष-हरयष गुण गाइ ॥ 267 ॥
बायी कहौं तो फहुडयौं, हरका कहूां तौ झूि ।
भैं का जाणी याभ कांू ऩैनूां कफहूां न दीि ॥ 268 ॥
कफीय एक न जाण्माां, तो फहु जाण्माां क्मा होइ ।
एक त़ै सफ होत ह़ै , सफ तैं एक न होइ ॥ 269 ॥
कफीय ये ख स्मांदयू की, काजर ठदमा न जाइ ।
ऩैनांू यभ़ैमा यसभ यह्भा, दज
ू ा कहाूँ सभाइ ॥ 270 ॥
कफीय कूता याभ का, भनु तमा भेया नाउां ।
गरे याभ की जेवड़ी, जजत खैंचे नतत जाउां ॥ 271 ॥
कफीय कसरजग
ु आइ करय, कीमे फहुत जो बीत ।
जजन ठदर फाांध्मा एक सां,ू ते सख
ु सोव़ै ननचीांत ॥ 272 ॥
जफ रग बगठहत सकाभता, सफ रग ननपमर सेव ।
कह़ै कफीय व़ै क्मूूँ सभऱै ननह्काभी ननज दे व ॥ 273 ॥
ऩनतफयता भ़ैरी बरी, गरे काांच को ऩोत ।
सफ सझखमन भें मों ठदऩ़ै, ज्मों यवव ससस को जोत ॥ 274 ॥
काभी अबी न बावई, ववष ही कौं रे सोगध ।
कुफुजध्द न जीव की, बाव़ै स्मांब यहौ प्रभोगथ ॥ 275 ॥

बगनत बफगाड़ी कासभमाां, इन्द्री केय़ै स्वाठद ।


हीया खोमा हाथ थैं, जनभ गूँवामा फाठद ॥ 276 ॥
ऩयनायी का याचणौ, जजसकी रहसण की खानन ।
खण
ू ैं फेससय खाइम, ऩयगट होइ ठदवानन ॥ 277 ॥
ऩयनायी याता फपयैं, चोयी बफठढ़ता खाठहां ।
ठदवस चारय सयसा यह़ै , अनत सभर
ू ा जाठहां ॥ 288 ॥
ग्मानी भर
ू गूँवाइमा, आऩण बमे कयना ।
ताथैं सांसायी बरा, भन भैं यह़ै डयना ॥ 289 ॥
काभी रज्जा ना कय़ै , न भाहें अठहराद ।
नीांद न भाूँग़ै साूँथया, बख
ू न भाूँगे स्वाद ॥ 290 ॥
कसर का स्वाभी रोसबमा, ऩीतसर घयी खटाइ ।
याज-दफ
ु ाया मौं फपय़ै , ज्मूँ हरयहाई गाइ ॥ 291 ॥
स्वाभी हूवा सीतका, ऩ़ैराकाय ऩचास ।
याभ-नाभ कािें यह्भा, कय़ै ससषाां की आांस ॥ 292 ॥
इठह उदय के कायणे, जग ऩाच्मो ननस जाभ ।
स्वाभी-ऩणौ जो ससरय चढ़मो, ससय मो न एको काभ ॥ 293 ॥
ब्राह्म्ण गुरु जगत ् का, साधू का गुरु नाठहां ।
उयझझ-ऩुयझझ करय बरय यह्भा, चारयउां फेदा भाांठह ॥ 294 ॥
कफीय कसर खोटी बई, भुननमय सभऱै न कोइ ।
रारच रोबी भसकया, नतनकूँू आदय होइ ॥ 295 ॥
कसर का स्वभी रोसबमा, भनसा घयी फधाई ।
दैंठह ऩईसा ब्माज़ को, रेखाां कयता जाई ॥ 296 ॥

कफीय इस सांसाय कौ, सभझाऊूँ क़ै फाय ।


ऩूँछ
ू जो ऩकड़़ै बेड़ की उतय मा चाहे ऩाय ॥ 297 ॥
तीयथ करय-करय जग भुवा, डूध
ां ़ै ऩाणी न्हाइ ।
याभठह याभ जऩतांडाां, कार घसीटमा जाइ ॥ 298 ॥
चतुयाई सूव़ै ऩढ़ी, सोइ ऩांजय भाांठह ।
फपरय प्रभोध़ै आन कौं, आऩण सभझे नाठहां ॥ 299 ॥
कफीय भन पूल्मा फपय़ै , कयता हूूँ भैं घ्रांभ ।
कोठट क्रभ ससरय रे चल्मा, चेत न दे ख़ै भ्रभ ॥ 300 ॥

सफ़ै यसाइण भैं फक्रमा, हरय सा औय न कोई ।


नतर इक घय भैं सांचये , तौ सफ तन कांचन होई ॥ 301 ॥
हरय-यस ऩीमा जाझणमे, जे कफहुूँ न जाइ खभ
ु ाय ।
भ़ैभता घूभत यह़ै , नाठह तन की साय ॥ 302 ॥
कफीय हरय-यस मौं वऩमा, फाकी यही न थाफक ।
ऩाका करस कांु बाय का, फहुरय न चढ़ई चाफक ॥ 303 ॥
कफीय बािी करार की, फहुतक फ़ैिे आई ।
ससय सौंऩे सोई वऩव़ै, नहीां तौ वऩमा न जाई ॥ 304 ॥
बत्रऺणा सीांची ना फुझ़ै, ठदन ठदन फधती जाइ ।
जवासा के रुष ज्म,ूां घण भेहाां कुसभराइ ॥ 305 ॥
कफीय सो घन सांगचमे, जो आगे कू होइ ।
सीस चढ़ामे गाि की जात न दे ख्मा कोइ ॥ 306 ॥
कफीय भामा भोठहनी, ज़ैसी भीिी खाांड़ ।
सतगुरु की कृऩा बई, नहीां तौ कयती बाांड़ ॥ 307 ॥

कफीय भामा ऩाऩयगी, पांध रे फ़ैिी हाठट ।


सफ जग तौ पांध़ै ऩड्मा, गमा कफीय काठट ॥ 308 ॥
कफीय जग की जो कह़ै , बौ जसर फूड़़ै दास ।
ऩायब्रह्भ ऩनत छाांडड़ करय, कय़ै भानन की आस ॥ 309 ॥
फुगरी नीय बफटासरमा, सामय चढ़मा करांक ।
औय ऩखेर ऩी गमे, हां स न फौवे चांच ॥ 310 ॥
कफीय इस सांसाय का, झि
ू ा भामा भोह ।
जजठह धारय जजता फाधावणा, नतहीां नतता अांदोह ॥ 311 ॥
भामा तजी तौ क्मा बमा, भानन तजज नही जाइ ।
भानन फड़े भनु नमय सभरे, भानन सफनन को खाइ ॥ 312 ॥
कयता दीस़ै कीयतन, ऊूँचा करय करय तांड
ु ।
जाने-फझ
ू ़ै कुछ नहीां, मौं ही अांधा रुां ड ॥ 313 ॥
कफीय ऩठढ़मो दरू य करय, ऩुस्तक दे इ फहाइ ।
फावन आवषय सोगध करय, यय़ै भभे गचत्त राइ ॥ 314 ॥
भैं जाण्मूूँ ऩाठढ़फो बरो, ऩाठढ़फा थे बरो जोग ।
याभ-नाभ सूां प्रीती करय, बर बर नीांमो रोग ॥ 315 ॥
ऩद गाएां भन हयवषमाां, साषी कह्भाां अनांद ।
सो तत नाांव न जाझणमाां, गर भें ऩडड़मा पांद ॥ 316 ॥
ज़ैसी भुख त़ै नीकस़ै, त़ैसी चारे चार ।
ऩाय ब्रह्भ नेड़ा यह़ै , ऩर भें कय़ै ननहार ॥ 317 ॥
काजी-भुल्रा भ्रसभमाां, चल्मा मुनीां क़ै साथ ।
ठदर थे दीन बफसारयमाां, कयद रई जफ हाथ ॥ 318 ॥
प्रेभ-वप्रनत का चारना, ऩठहरय कफीया नाच ।
तन-भन ताऩय वायहुूँ, जो कोइ फौरौ साांच ॥ 319 ॥
साांच फयाफय तऩ नहीां, झूि फयाफय ऩाऩ ।
जाके ठहयद़ै भें साांच ह़ै , ताके ठहयद़ै हरय आऩ ॥ 320 ॥
खफ
ू खाांड ह़ै खीचड़ी, भाठह ष्डमाूँ टुक कून ।
दे ख ऩयाई चऩ
ू ड़ी, जी ररचावे कौन ॥ 321 ॥
साईं सेती चोरयमाूँ, चोया सेती गुझ ।
जाणैंगा ये जीवएगा, भाय ऩड़़ैगी तुझ ॥ 322 ॥
तीयथ तो सफ फेरड़ी, सफ जग भेल्मा छाम ।
कफीय भर
ू ननकांठदमा, कौण हराहर खाम ॥ 323 ॥
जऩ-तऩ दीसैं थोथया, तीयथ व्रत फेसास ।
सव
ू ़ै सैंफर सेववमा, मौ जग चल्मा ननयास ॥ 324 ॥
जेती दे खौ आत्भ, तेता सासरगयाभ ।
याधू प्रतवष दे व ह़ै , नहीां ऩाथ सूँू काभ ॥ 325 ॥
कफीय दनु नमा दे हुय़ै, सीत नवाांवयग जाइ ।
ठहयदा बीतय हरय फस़ै, तू ताठह सौ ल्मो राइ ॥ 326 ॥
भन भथयु ा ठदर द्वारयका, कामा कासी जाझण ।
दसवाां द्वाया दे हुया, ताभ़ै जोनत वऩनछरयग ॥ 327 ॥
भेये सांगी दोइ जयग, एक व़ैष्णौ एक याभ ।
वो ह़ै दाता भजु क्त का, वो ससु भयाव़ै नाभ ॥ 328 ॥
भथयु ा जाउ बावे द्वारयका, बाव़ै जाउ जगनाथ ।
साथ-सांगनत हरय-बागनत बफन-कछु न आव़ै हाथ ॥ 329 ॥

कफीय सांगनत साधु की, फेगग कयीज़ै जाइ ।


दभ
ु नम त दरू य फांफाइसी, दे सी सुभनत फताइ ॥ 330 ॥
उज्जवर दे झख न धीजजमे, वग ज्मूां भाड़ै ध्मान ।
धीय फौठि चऩेटसी, मूूँ रे फूड़ै ग्मान ॥ 331 ॥
जेता भीिा फोरयगा, तेता साधन जारयग ।
ऩहरी था ठदखाइ करय, उड़ै दे सी आरयग ॥ 332 ॥
जानन फूझझ साांचठहां तजे, कय़ै झूि सूँू नेहु ।
ताफक सांगनत याभ जी, सवु ऩने ही वऩनन दे हु ॥ 333 ॥
कफीय तास सभराइ, जास ठहमारी तू फस़ै ।
नठहांतय फेगग उिाइ, ननत का गांजय को सह़ै ॥ 334 ॥
कफीया फन-फन भे फपया, कायझण आऩण़ै याभ ।
याभ सयीखे जन सभरे, नतन साये सवेये काभ ॥ 335 ॥
कफीय भन ऩांषो बमा, जहाूँ भन वहाूँ उडड़ जाम ।
जो ज़ैसी सांगनत कय़ै , सो त़ैसे पर खाइ ॥ 336 ॥
कफीया खाई कोट फक, ऩानी वऩव़ै न कोई ।
जाइ सभऱै जफ गांग से, तफ गांगोदक होइ ॥ 337 ॥
भाषी गुड़ भैं गडड़ यही, ऩांख यही रऩटाई ।
तारी ऩीट़ै ससरय घुऩै, भीि़ै फोई भाइ ॥ 338 ॥
भूयख सांग न कीजजमे, रोहा जसर न नतयाइ ।
कदरी-सीऩ-बुजगां भुख, एक फूांद नतहूँ बाइ ॥ 339 ॥
हरयजन सेती रुसणा, सांसायी सूँू हे त ।
ते णय कदे न नीऩजौ, ज्मूूँ कारय का खेत ॥ 340 ॥
काजर केयी कोिड़ी, त़ैसी महु सांसाय ।
फसरहायी ता दास की, ऩ़ैससय ननकसण हाय ॥ 341 ॥
ऩाणी हीत़ै ऩातरा, धव
ु ाूँ ही त़ै झीण ।
ऩवनाां फेगग उतावरा, सो दोस्त कफीय कीन्ह ॥ 342 ॥
आसा का ईंधण करूँ, भनसा करूँ बफबनू त ।
जोगी पेयी फपर करूँ, मौं बफनना वो सनू त ॥ 343 ॥
कफीय भार भन कूँू , टूक-टूक ह़ै जाइ ।
ववव की क्मायी फोइ करय, रण
ु त कहा ऩनछताइ ॥ 353 ॥
कागद केयी नाव यी, ऩाणी केयी गांग ।
कह़ै कफीय क़ैसे नतरूँ, ऩांच कुसांगी सांग ॥ 354 ॥
भैं भन्ता भन भारय ये , घट ही भाहैं घेरय ।
जफहीां चाऱै ऩीठि दे , अांकुस द़ै -द़ै पेरय ॥ 355 ॥
भनह भनोयथ छाूँडड़मे, तेया फकमा न होइ ।
ऩाणी भें घीव नीकस़ै, तो रखा खाइ न कोइ ॥ 356 ॥
एक ठदन ऐसा होएगा, सफ सूँू ऩड़े बफछोइ ।
याजा याणा छत्रऩनत, सावधान फकन होइ ॥ 357 ॥
कफीय नौफत आऩणी, ठदन-दस रेहू फजाइ ।
ए ऩुय ऩाटन, ए गरी, फहुरय न दे ख़ै आइ ॥ 358 ॥
जजनके नौफनत फाजती, बैंगर फांधते फारय ।
एक़ै हरय के नाव बफन, गए जनभ सफ हारय ॥ 359 ॥
कहा फकमौ हभ आइ करय, कहा कहैंगे जाइ ।
इत के बमे न उत के, चसरत बूर गूँवाइ ॥ 360 ॥

बफन यखवारे फाठहया, गचडड़मा खामा खेत ।


आधा-ऩयधा ऊफय़ै , चेनत सक़ै तो च़ैनत ॥ 361 ॥
कफीय कहा गयबफमौ, कार कह़ै कय केस ।
ना जाण़ै कहाूँ भारयसी, क़ै धरय के ऩयदे स ॥ 362 ॥
नान्हा कातौ गचत्त दे , भहूँ गे भोर बफराइ ।
गाहक याजा याभ ह़ै , औय न नेडा आइ ॥ 363 ॥
उजरा कऩड़ा ऩठहरय करय, ऩान सुऩायी खाठहां ।
एक़ै हरय के नाव बफन, फाूँधे जभऩुरय जाठहां ॥ 364 ॥
कफीय केवर याभ की, तू जजनन छाूँड़़ै ओट ।
घण-अहयनन बफगच रौह ज्मूँू, घणी सह़ै ससय चोट ॥ 365 ॥
भैं-भैं फड़ी फराइ ह़ै सक़ै तो ननकसौ बाजज ।
कफ रग याखौ हे सखी, रुई रऩेटी आगग ॥ 366 ॥
कफीय भारा भन की, औय सांसायी बेष ।
भारा ऩहयमाां हरय सभऱै, तौ अयहट क़ै गसर दे झख ॥ 367 ॥
भारा ऩठहय़ै भनबष
ु ी, ताथ़ै कछू न होइ ।
भन भारा को प़ैयता, जग उजजमाया सोइ ॥ 368 ॥
क़ैसो कहा बफगाडड़मा, जो भुांड़ै सौ फाय ।
भन को काहे न भूांडडमे, जाभे ववषभ-ववकाय ॥ 369 ॥
भारा ऩहयमाां कुछ नहीां, बगनत न आई हाथ ।
भाथौ भूँछ
ू भुांडाइ करय, चल्मा जगत ् के साथ ॥ 370 ॥
फ़ैसनो बमा तौ क्मा बमा, फूझा नहीां फफेक ।
छाऩा नतरक फनाइ करय, दगहमा अनेक ॥ 371 ॥

स्वाूँग ऩहरय सो यहा बमा, खामा-ऩीमा खठूां द ।


जजठह तेयी साधु नीकरे, सो तो भेल्ही भांठू द ॥ 372 ॥
चतयु ाई हरय ना सभऱै, ए फाताां की फात ।
एक ननस प्रेही ननयधाय का गाहक गोऩीनाथ ॥ 373 ॥
एष रे फढ़
ू ी ऩथ
ृ भी, झि
ू े कुर की राय ।
अरष बफसायमो बेष भें , फड़
ू े कारी धाय ॥ 374 ॥
कफीय हरय का बावता, झीणाां ऩांजय ।
य़ै झण न आव़ै नीांदड़ी, अांगग न चढ़ई भाांस ॥ 375 ॥
ससांहों के रेहूँड नहीां, हां सों की नहीां ऩाूँत ।
रारों की नठह फोरयमाूँ, साध न चऱै जभात ॥ 376 ॥
गाूँिी दाभ न फाांधई, नठहां नायी सों नेह ।
कह कफीय ता साध की, हभ चयनन की खेह ॥ 377 ॥
ननयफ़ैयी ननहकाभता, साईं सेती नेह ।
वववषमा सूां न्माया यह़ै , सांतनन का अांग सह ॥ 378 ॥
जजठहां ठहयद़ै हरय आइमा, सो क्मूां छाना होइ ।
जतन-जतन करय दाबफमे, तऊ उजारा सोइ ॥ 379 ॥
काभ सभरावे याभ कांू , जे कोई जाण़ै याझख ।
कफीय बफचाया क्मा कह़ै , जाफक सख्
ु दे व फोरे साख ॥ 380 ॥
याभ ववमोगी तन बफकर, ताठह न चीन्हे कोई ।
तांफोरी के ऩान ज्मांू, ठदन-ठदन ऩीरा होई ॥ 381 ॥
ऩावक रऩी याभ ह़ै , घठट-घठट यह्मा सभाइ ।
गचत चकभक राग़ै नहीां, ताथ़ै घव
ू ाूँ ह़ै -ह़ै जाइ ॥ 382 ॥
पाट़ै दीद़ै भें फपयौं, नजजय न आव़ै कोई ।
जजठह घठट भेया साूँइमाूँ, सो क्मांू छाना होई ॥ 383 ॥
ह़ै वय ग़ैवय सघन धन, छत्रऩती की नारय ।
तास ऩटे तय ना तुर,़ै हरयजन की ऩननहारय ॥ 384 ॥
जजठहां धरय साध न ऩूजज, हरय की सेवा नाठहां ।
ते घय बड़धट सायषे, बूत फस़ै नतन भाठहां ॥ 385 ॥
कफीय कुर तौ सोबरा, जजठह कुर उऩज़ै दास ।
जजठहां कुर दास न उऩज़ै, सो कुर आक-ऩरास ॥ 386 ॥
क्मूां नऩ
ृ -नायी नीांठदमे, क्मूां ऩननहायी कौ भान ।
वा भाूँग सूँवाये ऩीर कौ, मा ननत उठि सुसभय़ै याभ ॥ 387 ॥
काफा फपय कासी बमा, याभ बमा ये यहीभ ।
भोट चन
ू भ़ैदा बमा, फ़ैठि कफीया जीभ ॥ 388 ॥
दझु खमा बूखा दख
ु कौं, सुझखमा सुख कौं झूरय ।
सदा अजांदी याभ के, जजनन सुख-दख
ु गेल्हे दरू य ॥ 389 ॥
कफीय दबु फधा दरू य करय, एक अांग ह़ै रागग ।
महु सीतर फहु तऩनत ह़ै , दोऊ कठहमे आगग ॥ 390 ॥
कफीय का तू गचांतव़ै, का तेया च्मांत्मा होइ ।
अण्च्मांत्मा हरयजी कय़ै , जो तोठह च्मांत न होइ ॥ 391 ॥
बूखा बूखा क्मा कयैं, कहा सुनाव़ै रोग ।
बाांडा घडड़ जजनन भुख नमका, सोई ऩूयण जोग ॥ 392 ॥
यचनाहाय कांू चीजन्ह ऱै, ख़ैफे कांू कहा योइ ।
ठदर भांठद भैं ऩ़ैसस करय, ताझण ऩछे वड़ा सोइ ॥ 393 ॥
कफीय सफ जग हां डडमा, भाांदर कांगध चढ़ाइ ।
हरय बफन अऩना कोउ नहीां, दे खे िोफक फनाइ ॥ 394 ॥
भाांगण भयण सभान ह़ै , बफयता फांच़ै कोई ।
कह़ै कफीय यघन
ु ाथ सां,ू भनत ये भांगावे भोठह ॥ 395 ॥
भानन भहतभ प्रेभ-यस गयवातण गुण नेह ।
ए सफहीां अहरा गमा, जफही कह्मा कुछ दे ह ॥ 396 ॥
सांत न फाांध़ै गािड़ी, ऩेट सभाता-तेइ ।
साईं सांू सनभख
ु यह़ै , जहाूँ भाूँगे तहाां दे इ ॥ 397 ॥
कफीय सांसा कोउ नहीां, हरय सांू राग्गा हे त ।
काभ-क्रोध सांू झझ
ू णा, चौड़ै भाांड्मा खेत ॥ 398 ॥
कफीय सोई सरू यभा, भन सूँू भाांड़ै झझ
ू ।
ऩांच ऩमादा ऩाडड़ रे, दरू य कय़ै सफ दज
ू ॥ 399 ॥
जजस भयऩै मैं जग डय़ै , सो भेये आनन्द ।
कफ भरयहूूँ कफ दे झखहूूँ ऩूयन ऩयभानांद ॥ 400 ॥

अफ तौ जूझमा ही फयग़ै, भुडड चल्माां घय दयू ।


ससय साठहफा कौ सौंऩता, सोंच न कीज़ै सूय ॥ 401 ॥
कफीय घोड़ा प्रेभ का, चेतनन चाठढ़ असवाय ।
ग्मान खड़ग गठह कार ससरय, बरी भचाई भाय ॥ 402 ॥
कफीय हरय सफ कूँू बज़ै, हरय कूँू बज़ै न कोइ ।
जफ रग आस सयीय की, तफ रग दास न होइ ॥ 403 ॥
ससय साटें हरय सेवेमे, छाांडड़ जीव की फाझण ।
जे ससय दीमा हरय सभऱै, तफ रगग हाझण न जाझण ॥ 404 ॥

जेते ताये य़ै झण के, तेत़ै फ़ैयी भझ


ु ।
धड़ सर
ू ी ससय कांगयु ़ै , तऊ न बफसायौ तझ
ु ॥ 405 ॥
आऩा बेठटमाूँ हरय सभऱै, हरय भेट् मा सफ जाइ ।
अकथ कहाणी प्रेभ की, कह्मा न कोउ ऩत्माइ ॥ 406 ॥
जीवन थैं भरयफो बरौ, जो भरय जानैं कोइ ।
भयनैं ऩहरी जे भय़ै , जो कसर अजयावय होइ ॥ 407 ॥
कफीय भन भत
ृ क बमा, दफ
ु र
म बमा सयीय ।
तफ ऩैंडे रागा हरय फपय़ै , कहत कफीय कफीय ॥ 408 ॥
योड़ा ह़ै यहो फाट का, तजज ऩाषांड असबभान ।
ऐसा जे जन ह़ै यह़ै , ताठह सभऱै बगवान ॥ 409 ॥
कफीय चेया सांत का, दासनन का ऩयदास ।
कफीय ऐसैं होइ यऺा, ज्मूूँ ऩाऊूँ तसर घास ॥ 410 ॥
अफयन कों का फयननमे, बोऩ़ै रख्मा न जाइ ।
अऩना फाना वाठहमा, कठह-कठह थाके बाइ ॥ 411 ॥
जजसठह न कोई ववसठह तू, जजस तू नतस सफ कोई ।
दरयगह तेयी साांइमाूँ, जा भरभ कोइ होइ ॥ 412 ॥
साूँई भेया वाझणमाां, सहनत कय़ै व्मौऩाय ।
बफन डाांडी बफन ऩारड़़ै तौरे सफ सांसाय ॥ 413 ॥
झर फाव़ै झर दाठहऩै, झरठह भाठह त्मोहाय ।
आग़ै-ऩीछ़ै झरभाई, याख़ै ससयजनहाय ॥ 414 ॥
एसी फाणी फोसरमे, भन का आऩा खोइ ।
औयन को सीतर कय़ै , आऩौ सीतर होइ ॥ 415 ॥

कफीय हरय कग नाव सूँू प्रीनत यह़ै इकवाय ।


तौ भुख तैं भोती झड़़ै हीये अन्त न ऩाय ॥ 416 ॥
फ़ैयागी बफयकत बरा, गगयही गचत्त उदाय ।
दहु ु ूँ चक
ू ा यीता ऩड़़ै वाकूँू वाय न ऩाय ॥ 417 ॥
कोई एक याख़ै सावधाां, चेतनन ऩहय़ै जागग ।
फस्तय फासन सूँू झखस़ै, चोय न सकई रागग ॥ 418 ॥
फायी-फायी आऩणीां, चरे वऩमाये म्मांत ।
तेयी फायी ये जजमा, नेड़ी आव़ै ननांत ॥ 419 ॥
ऩदायथ ऩेसर करय, कांकय रीमा हागथ ।
जोड़ी बफछटी हां स की, ऩड़मा फगाां के सागथ ॥ 420 ॥
ननांदक ननमाये याझखमे, आांगन कुठट छफाम ।
बफन ऩाणी बफन सफन
ु ा, ननयभर कय़ै सब
ु ाम ॥ 421 ॥
गोत्मांद के गुण फहुत हैं, सरख़ै जु ठहयद़ै भाांठह ।
डयता ऩाणी जा ऩीऊां, भनत व़ै धोमे जाठह ॥ 422 ॥
जो ऊग्मा सो आांथव़ै, पूल्मा सो कुसभराइ ।
जो गचझणमाां सो ढठह ऩड़़ै, जो आमा सो जाइ ॥ 423 ॥
सीतरता तफ जाझणमें, ससभता यह़ै सभाइ ।
ऩष छाूँड़़ै ननयऩष यह़ै , सफद न दे ष्मा जाइ ॥ 424 ॥
खद
ूां न तौ धयती सह़ै , फाढ़ सह़ै फनयाइ ।
कुसफद तौ हरयजन सह़ै , दज
ू ़ै सह्मा न जाइ ॥ 425 ॥
नीय वऩमावत क्मा फपय़ै , सामय घय-घय फारय ।
जो बत्रषावन्त होइगा, सो ऩीवेगा झखभारय ॥ 426 ॥

कफीय ससयजन हाय बफन, भेया ठहत न कोइ ।


गुण औगुण बफहण़ै नहीां, स्वायथ फूँधी रोइ ॥ 427 ॥
हीया ऩया फजाय भें , यहा छाय रवऩटाइ ।
फ तक भूयख चसर गमे ऩायझख सरमा उिाइ ॥ 428 ॥
सुयनत कयौ भेये साइमाां, हभ हैं बोजन भाठहां ।
आऩे ही फठह जाठहांगे, जौ नठहां ऩकयौ फाठहां ॥ 429 ॥
क्मा भुख ऱै बफनती कयौं, राज आवत ह़ै भोठह ।
तुभ दे खत ओगुन कयौं, क़ैसे बावों तोठह ॥ 430 ॥
सफ काहू का रीजजमे, साचाां सफद ननहाय ।
ऩच्छऩात ना कीजजमे कह़ै कफीय ववचाय ॥ 431 ॥
॥ गुरु के ववषम भें दोहे ॥
गुरु सों ऻान जु रीजजमे सीस दीजजए दान ।
फहुतक बोदूँ ू फठह गमे, याझख जीव असबभान ॥ 432 ॥
गरु
ु को कीज़ै दण्डव कोठट-कोठट ऩयनाभ ।
कीट न जाने बग
ृ ां को, गरु
ु कयरे आऩ सभान ॥ 433 ॥
कुभनत कीच चेरा बया, गरु
ु ऻान जर होम ।
जनभ-जनभ का भोयचा, ऩर भें डाये धोम ॥ 434 ॥
गरु
ु ऩायस को अन्तयो, जानत ह़ै सफ सन्त ।
वह रोहा कांचन कये , मे करय रेम भहन्त ॥ 435 ॥
गरु
ु की आऻा आव़ै, गरु
ु की आऻा जाम ।
कहैं कफीय सो सन्त हैं, आवागभन नशाम ॥ 436 ॥

जो गुरु फस़ै फनायसी, सीष सभुन्दय तीय ।


एक ऩरक बफसये नहीां, जो गुण होम शयीय ॥ 437 ॥
गुरु सभान दाता नहीां, माचक सीष सभान ।
तीन रोक की सम्ऩदा, सो गुरु दीन्ही दान ॥ 438 ॥
गुरु कुम्हाय ससष कांु ब ह़ै , गठढ़-गठढ़ काढ़़ै खोट ।
अन्तय हाथ सहाय द़ै , फाहय फाह़ै चोट ॥ 439 ॥
गुरु को ससय याझखमे, चसरमे आऻा भाठहां ।
कहैं कफीय ता दास को, तीन रोक बम नठहां ॥ 440 ॥
रच्छ कोष जो गरु
ु फस़ै, दीज़ै सयु नत ऩिाम ।
शब्द तयु ी फसवाय ह़ै , नछन आव़ै नछन जाम ॥ 441 ॥
गरु
ु भयू नत गनत चन्द्रभा, सेवक ऩैन चकोय ।
आि ऩहय ननयखता यहे , गरु
ु भयू नत की ओय ॥ 442 ॥
गरु
ु सों प्रीनत ननफाठहमे, जेठह तत ननफट़ै सन्त ।
प्रेभ बफना ठढग दयू ह़ै , प्रेभ ननकट गरु
ु कन्त ॥ 443 ॥
गुरु बफन ऻान न उऩज़ै, गुरु बफन सभऱै न भोष ।
गुरु बफन रख़ै न सत्म को, गुरु बफन सभटे न दोष ॥ 444 ॥
गुरु भूयनत आगे खड़ी, दनु नमा बेद कछु नाठहां ।
उन्हीां कूँू ऩयनाभ करय, सकर नतसभय सभठट जाठहां ॥ 445 ॥
गुरु शयणागनत छाडड़ के, कय़ै बयौसा औय ।
सुख सम्ऩनत की कह चरी, नहीां ऩयक मे िौय ॥ 446 ॥
ससष खाांडा गुरु बसकरा, चढ़़ै शब्द खयसान ।
शब्द सह़ै सम्भुख यह़ै , ननऩज़ै शीष सुजान ॥ 447 ॥
ऻान सभागभ प्रेभ सुख, दमा बजक्त ववश्वास ।
गुरु सेवा ते ऩाइमे, सद्गुरु चयण ननवास ॥ 448 ॥
अहां अजग्न ननसश ठदन जय़ै , गुरु सो चाहे भान ।
ताको जभ न्मोता ठदमा, होउ हभाय भेहभान ॥ 449 ॥
ज़ैसी प्रीनत कुटुम्फ की, त़ैसी गुरु सों होम ।
कहैं कफीय ता दास का, ऩरा न ऩकड़़ै कोम ॥ 450 ॥
भूर ध्मान गुरु रऩ ह़ै , भूर ऩूजा गुरु ऩाूँव ।
भूर नाभ गुरु वचन ह़ै , भूर सत्म सतबाव ॥ 451 ॥
ऩांडडत ऩाठढ़ गुनन ऩगच भुमे, गुरु बफना सभऱै न ऻान ।
ऻान बफना नठहां भुजक्त ह़ै , सत्त शब्द ऩयनाभ ॥ 452 ॥
सोइ-सोइ नाच नचाइमे, जेठह ननफहे गुरु प्रेभ ।
कह़ै कफीय गरु
ु प्रेभ बफन, कतहुूँ कुशर नठह ऺेभ ॥ 453 ॥
कहैं कफीय जजज बयभ को, नन्हा ह़ै कय ऩीव ।
तजज अहां गरु
ु चयण गहु, जभसों फाच़ै जीव ॥ 454 ॥
कोठटन चन्दा उगही, सयू ज कोठट हज़ाय ।
तीसभय तौ नाश़ै नहीां, बफन गरु
ु घोय अांधाय ॥ 455 ॥
तफही गुरु वप्रम फ़ैन कठह, शीष फढ़ी गचत प्रीत ।
ते यठहमें गरु
ु सनभख
ु ाूँ कफहूूँ न दीज़ै ऩीि ॥ 456 ॥
तन भन शीष ननछावय़ै , दीज़ै सयफस प्रान ।
कहैं कफीय गरु
ु प्रेभ बफन, फकतहूूँ कुशर नठहां ऺेभ ॥ 457 ॥
जो गरु
ु ऩयू ा होम तो, शीषठह रेम ननफाठह ।
शीष बाव सत्ु त जाननमे, सत
ु ते श्रेष्ि सशष आठह ॥ 458 ॥
बौ सागय की त्रास तेक, गरु
ु की ऩकड़ो फाूँठह ।
गरु
ु बफन कौन उफायसी, बौ जर धाया भाूँठह ॥ 459 ॥
कय़ै दरू य अऻानता, अांजन ऻान सुदेम ।
फसरहायी वे गुरुन की हां स उफारय जुरेम ॥ 460 ॥
सुननमे सन्तों साधु सभसर, कहठहां कफीय फुझाम ।
जेठह ववगध गुरु सों प्रीनत छ़ै कीज़ै सोई उऩाम ॥ 461 ॥
अफुध सुफुध सुत भातु वऩतु, सफठह कय़ै प्रनतऩार ।
अऩनी औय ननफाठहमे, ससख सुत गठह ननज चार ॥ 462 ॥
रौ रागी ववष बागगमा, कारख डायी धोम ।
कहैं कफीय गुरु साफुन सों, कोई इक ऊजर होम ॥ 463 ॥
याजा की चोयी कये , यह़ै यां ग की ओट ।
कहैं कफीय क्मों उफय़ै , कार कठिन की चोट ॥ 464 ॥
साफुन बफचाया क्मा कये , गाूँिे याखे भोम ।
जर सो अयसाां नठहां, क्मों कय ऊजर होम ॥ 465 ॥
॥ सतगुरु के ववषम भे दोहे ॥

सत्गरु
ु तो सतबाव ह़ै , जो अस बेद फताम ।
धन्म शीष धन बाग नतठह जो ऐसी सुगध ऩाम ॥ 466 ॥
सतगुरु शयण न आवहीां, फपय फपय होम अकाज ।
जीव खोम सफ जामेंगे कार नतहूूँ ऩुय याज ॥ 467 ॥
सतगुरु सभ कोई नहीां सात दीऩ नौ खण्ड ।
तीन रोक न ऩाइमे, अरु इक्कीस ब्रह्म्ण्ड ॥ 468 ॥
सतगुरु सभरा जु जाननमे, ऻान उजारा होम ।
भ्रभ का बाांड तोडड़ करय, यह़ै ननयारा होम ॥ 469 ॥
सतगुरु सभरे जु सफ सभरे, न तो सभरा न कोम ।
भाता-वऩता सुत फाूँधवा मे तो घय घय होम ॥ 470 ॥
जेठह खोजत ब्रह्भा थके, सुय नय भुनन अरु दे व ।
कह़ै कफीय सन
ु साधवा, करु सतगरु
ु की सेव ॥ 471 ॥
भनठहां ठदमा ननज सफ ठदमा, भन से सांग शयीय ।
अफ दे वे को क्मा यहा, मों कनम कहठहां कफीय ॥ 472 ॥
सतगरु
ु को भाने नही, अऩनी कह़ै फनाम ।
कह़ै कफीय क्मा कीजजमे, औय भता भन जाम ॥ 473 ॥
जग भें मजु क्त अनऩ
ू ह़ै , साधु सांग गरु
ु ऻान ।
ताभें ननऩट अनऩ
ू ह़ै , सतगरु
ु रागा कान ॥ 474 ॥
कफीय सभूझा कहत ह़ै , ऩानी थाह फताम ।
ताकूँू सतगुरु का कये , जो औघट डूफे जाम ॥ 475 ॥
बफन सतगुरु उऩदे श, सुय नय भुनन नठहां ननस्तये ।
ब्रह्भा-ववष्णु, भहे श औय सकर जजव को गगऩै ॥ 476 ॥
केते ऩठढ़ गुनन ऩगच बुए, मोग मऻ तऩ राम ।
बफन सतगुरु ऩाव़ै नहीां, कोठटन कये उऩाम ॥ 477 ॥
डूफा औघट न तय़ै , भोठहां अांदेशा होम ।
रोब नदी की धाय भें , कहा ऩड़ो नय सोइ ॥ 478 ॥
सतगुरु खोजो सन्त, जोव काज को चाहहु ।
भेटो बव को अांक, आवा गवन ननवायहु ॥ 479 ॥
कयहु छोड़ कुर राज, जो सतगुरु उऩदे श ह़ै ।
होमे सफ जजव काज, ननश्चम करय ऩयतीत कर ॥ 480 ॥
मह सतगुरु उऩदे श ह़ै , जो भन भाने ऩयतीत ।
कयभ बयभ सफ त्मागग के, चऱै सो बव जर जीत ॥ 481 ॥
जग सफ सागय भोठहां, कहु क़ैसे फूड़त तेये ।
गहु सतगुरु की फाठहां जो जर थर यऺा कय़ै ॥ 482 ॥

॥ गुरु ऩायख ऩय दोहे ॥


जानीता फूझा नहीां फूझझ फकमा नहीां गौन ।
अन्धे को अन्धा सभरा, याह फतावे कौन ॥ 483 ॥
जाका गुरु ह़ै आूँधया, चेरा खया ननयन्ध ।
अन्धे को अन्धा सभरा, ऩड़ा कार के पन्द ॥ 484 ॥
गुरु रोब सशष रारची, दोनों खेरे दाूँव ।
दोनों फूड़े फाऩुये, चठढ़ ऩाथय की नाूँव ॥ 485 ॥
आगे अांधा कूऩ भें , दज
ू े सरमा फुराम ।
दोनों फड
ू छे फाऩयु े , ननकसे कौन उऩाम ॥ 486 ॥
गरु
ु फकमा ह़ै दे ह का, सतगरु
ु चीन्हा नाठहां ।
बवसागय के जार भें , फपय फपय गोता खाठह ॥ 487 ॥
ऩयू ा सतगरु
ु न सभरा, सन
ु ी अधयू ी सीख ।
स्वाूँग मती का ऩठहनन के, घय घय भाूँगी बीख ॥ 488 ॥
कफीय गरु
ु ह़ै घाट का, हाूँटू फ़ैिा चेर ।
भड़
ू भड़
ु ामा साूँझ कूँू गरु
ु सफेये िे र ॥ 489 ॥
गुरु-गुरु भें बेद ह़ै , गुरु-गुरु भें बाव ।
सोइ गुरु ननत फजन्दमे, शब्द फतावे दाव ॥ 490 ॥
जो गुरु ते भ्रभ न सभटे , भ्राजन्त न जजसका जाम ।
सो गुरु झूिा जाननमे, त्मागत दे य न राम ॥ 491 ॥
झूिे गुरु के ऩऺ की, तजत न कीज़ै वाय ।
द्वाय न ऩाव़ै शब्द का, बटके फायम्फाय ॥ 492 ॥
सद्गुरु ऐसा कीजजमे, रोब भोह भ्रभ नाठहां ।
दरयमा सो न्माया यहे , दीसे दरयमा भाठह ॥ 493 ॥
कफीय फेड़ा साय का, ऊऩय रादा साय ।
ऩाऩी का ऩाऩी गुरु, मो फूढ़ा सांसाय ॥ 494 ॥
जो गुरु को तो गभ नहीां, ऩाहन ठदमा फताम ।
सशष शोधे बफन सेइमा, ऩाय न ऩहुूँचा जाए ॥ 495 ॥
सोचे गुरु के ऩऺ भें , भन को दे िहयाम ।
चांचर से ननश्चर बमा, नठहां आव़ै नहीां जाम ॥ 496 ॥
गु अूँगधमायी जाननमे, रु कठहमे ऩयकाश ।
सभठट अऻाने ऻान दे , गुरु नाभ ह़ै तास ॥ 497 ॥
गुरु नाभ ह़ै गम्म का, शीष सीख रे सोम ।
बफनु ऩद बफनु भयजाद नय, गुरु शीष नठहां कोम ॥ 498 ॥
गुरुवा तो घय फपये , दीऺा हभायी रेह ।
क़ै फड़
ू ौ क़ै ऊफयो, टका ऩयदानी दे ह ॥ 499 ॥
गरु
ु वा तो सस्ता बमा, कौड़ी अथम ऩचास ।
अऩने तन की सगु ध नहीां, सशष्म कयन की आस ॥ 500 ॥
जाका गुरु ह़ै गीयही, गगयही चेरा होम ।
कीच-कीच के धोवते, दाग न छूटे कोम ॥ 501 ॥
गुरु सभरा तफ जाननमे, सभट़ै भोह तन ताऩ ।
हयष शोष व्माऩे नहीां, तफ गुरु आऩे आऩ ॥ 502 ॥
मह तन ववषम की फेरयी, गुरु अभत
ृ की खान ।
सीस ठदमे जो गुरु सभऱै, तो बी सस्ता जान ॥ 503 ॥
फूँधे को फूँधा सभरा, छूट़ै कौन उऩाम ।
कय सेवा ननयफन्ध की ऩर भें रेम छुड़ाम ॥ 504 ॥
गुरु बफचाया क्मा कय़ै , शब्द न राग़ै अांग ।
कहैं कफीय भ़ैक्री गजी, क़ैसे रागू यां ग ॥ 505 ॥
गुरु बफचाया क्मा कये , ह्रदम बमा किोय ।
नौ नेजा ऩानी चढ़ा ऩथय न बीजी कोय ॥ 506 ॥
कहता हूूँ कठह जात हूूँ, दे ता हूूँ हे रा ।
गुरु की कयनी गुरु जाने चेरा की चेरा ॥ 507 ॥
॥ गुरु सशष्म के ववषम भे दोहे ॥

सशष्म ऩुज़ै आऩना, गुरु ऩूज़ै सफ साध ।


कहैं कफीय गुरु शीष को, भत ह़ै अगभ अगाध ॥ 508 ॥
ठहयदे ऻान न उऩज़ै, भन ऩयतीत न होम ।
ताके सद्गुरु कहा कयें , घनघसस कुल्हयन होम ॥ 509 ॥
ऐसा कोई न सभरा, जासू कहूूँ ननसांक ।
जासो ठहयदा की कहूूँ, सो फपय भाये डांक ॥ 510 ॥
सशष फकयवऩन गुरु स्वायथी, फकरे मोग मह आम ।
कीच-कीच के दाग को, क़ैसे सके छुड़ाम ॥ 511 ॥
स्वाभी सेवक होम के, भनही भें सभसर जाम ।
चतुयाई यीझ़ै नहीां, यठहमे भन के भाम ॥ 512 ॥
गुरु कीजजए जानन के, ऩानी ऩीज़ै छानन ।
बफना ववचाये गुरु कये , ऩये चौयासी खानन ॥ 513 ॥
सत को खोजत भैं फपरूँ, सनतमा न सभऱै न कोम ।
जफ सत को सनतमा सभरे, ववष तजज अभत
ृ होम ॥ 514 ॥
दे श-दे शान्तय भैं फपरूँ, भानुष फड़ा सुकार ।
जा दे ख़ै सख
ु उऩज़ै, वाका ऩड़ा दक
ु ार ॥ 515 ॥
॥ सबजक्त के ववषम भे दोहे ॥

कफीय गुरु की बजक्त बफन, याजा ससब होम ।


भाटी रद़ै कुम्हाय की, घास न डाय़ै कोम ॥ 516 ॥
कफीय गुरु की बजक्त बफन, नायी कूकयी होम ।
गरी-गरी बूँक
ू त फपय़ै , टूक न डाय़ै कोम ॥ 517 ॥
जो कासभनन ऩयद़ै यहे , सुऩै न गुरुगुण फात ।
सो तो होगी कूकयी, फपय़ै उघाये गात ॥ 518 ॥
चौंसि दीवा जोम के, चौदह चन्दा भाठहां ।
तेठह घय फकसका चाूँदना, जजठह घय सतगुरु नाठहां ॥ 519 ॥
हरयमा जाने रखाड़ा, उस ऩानी का नेह ।
सूखा काि न जाननह़ै , फकतहूूँ फूड़ा गेह ॥ 520 ॥
झझयसभय झझयसभय फयससमा, ऩाहन ऊऩय भेह ।
भाटी गसर ऩानी बई, ऩाहन वाही नेह ॥ 521 ॥
कफीय ह्रदम किोय के, शब्द न रागे साय ।
सगु ध-सगु ध के ठहयदे ववधे, उऩज़ै ऻान ववचाय ॥ 522 ॥
कफीय चन्दय के सबय़ै , नीभ बी चन्दन होम ।
फड़
ू मो फाूँस फड़ाइमा, मों जनन फड़
ू ो कोम ॥ 523 ॥
ऩशआ
ु सों ऩारो ऩयो, यहू-यहू ठहमा न खीज ।
ऊसय फीज न उगसी, फोव़ै दन
ू ा फीज ॥ 524 ॥
कांचन भेर अयऩही, अयऩैं कनक बण्डाय ।
कहैं कफीय गुरु फेभुखी, कफहूूँ न ऩाव़ै ऩाय ॥ 525 ॥
साकट का भुख बफम्फ ह़ै ननकसत फचन बुवांग ।
ताफक औषण भौन ह़ै , ववष नठहां व्माऩ़ै अांग ॥ 526 ॥
शुकदे व सयीखा पेरयमा, तो को ऩावे ऩाय ।
बफनु गुरु ननगुया जो यहे , ऩड़े चौयासी धाय ॥ 527 ॥
कफीय रहरय सभुन्द्र की, भोती बफखये आम ।
फगुरा ऩयख न जानई, हां स चनु न-चनु न खाम ॥ 528 ॥
साकट कहा न कठह चऱै, सुनहा कहा न खाम ।
जो कौवा भि हगग बय़ै , तो भि को कहा नशाम ॥ 529 ॥
साकट भन का जेवया, बज़ै सो कययाम ।
दो अच्छय गरु
ु फठहया, फाधा जभऩयु जाम ॥ 530 ॥
कफीय साकट की सबा, तू भनत फ़ैिे जाम ।
एक गव
ु ाड़े कठद फड़़ै, योज गदहया गाम ॥ 531 ॥
सांगत सोई बफगच
ु ई
म , जो ह़ै साकट साथ ।
कांचन कटोया छाडड़ के, सनहक रीन्ही हाथ ॥ 532 ॥
साकट सांग न फ़ैठिमे कयन कुफेय सभान ।
ताके सांग न चसरमे, ऩडड़ हैं नयक ननदान ॥ 533 ॥
टे क न कीज़ै फावये , टे क भाठह ह़ै हानन ।
टे क छाडड़ भाननक सभऱै, सत गुरु वचन प्रभानन ॥ 534 ॥
साकट सूकय कीकया, तीनों की गनत एक ह़ै ।
कोठट जतन ऩयभोनघमे, तऊ न छाड़े टे क ॥ 535 ॥
ननगुया ब्राह्म्ण नठहां बरा, गुरुभुख बरा चभाय ।
दे वतन से कुत्ता बरा, ननत उठि बूँक
ू े द्वाय ॥ 536 ॥
हरयजन आवत दे झखके, भोहड़ो सूझख गमो ।
बाव बजक्त सभझमो नहीां, भूयख चफू क गमो ॥ 537 ॥
खसभ कहाव़ै फ़ैयनव, घय भें साकट जोम ।
एक धया भें दो भता, बजक्त कहाूँ ते होम ॥ 538 ॥
घय भें साकट स्त्री, आऩ कहावे दास ।
वो तो होगी शूकयी, वो यखवारा ऩास ॥ 539 ॥
आूँखों दे खा घी बरा, न भुख भेरा तेर ।
साघु सो झगड़ा बरा, ना साकट सों भेर ॥ 540 ॥
कफीय दशमन साधु का, फड़े बाग दयशाम ।
जो होव़ै सूरी सजा, काूँटे ई टरय जाम ॥ 541 ॥
कफीय सोई ठदन बरा, जा ठदन साधु सभराम ।
अांक बये बारय बेठटमे, ऩाऩ शयीय जाम ॥ 542 ॥
कफीय दशमन साधु के, कयत न कीज़ै कानन ।
ज्मों उद््भ से रक्ष्भी, आरस भन से हानन ॥ 543 ॥
कई फाय नाठहां कय सके, दोम फखत करयरेम ।
कफीय साधु दयश ते, कार दगा नठहां दे म ॥ 544 ॥
दज
ू े ठदन नठहां करय सके, तीजे ठदन कर जाम ।
कफीय साधु दयश ते भोऺ भजु क्त पन ऩाम ॥ 545 ॥
तीजे चौथे नठहां कये , फाय-फाय कर जाम ।
माभें ववरांफ न कीजजमे, कहैं कफीय सभझ
ु ाम ॥ 546 ॥
दोम फखत नठहां करय सके, ठदन भें करूँ इक फाय ।
कफीय साधु दयश ते, उतयैं बव जर ऩाय ॥ 547 ॥
फाय-फाय नठहां करय सके, ऩाख-ऩाख करयरेम ।
कहैं कफीयन सो बक्त जन, जन्भ सप
ु र करय रेम ॥ 548 ॥
ऩाख-ऩाख नठहां करय सक़ै, भास भास कर जाम ।
माभें दे य न राइमे, कहैं कफीय सभद
ु ाम ॥ 549 ॥
फयस-फयस नाठहां करय सक़ै ताको रागे दोष ।
कह़ै कफीय वा जीव सो, कफहु न ऩाव़ै मोष ॥ 550 ॥
छिे भास नठहां करय सके, फयस ठदना करय रेम ।
कहैं कफीय सो बक्तजन, जभठहां चन
ु ौती दे म ॥ 551 ॥
भास-भास नठहां करय सक़ै, उिे भास अरफत्त ।
माभें ढीर न कीजजमे, कह़ै कफीय अववगत्त ॥ 552 ॥
भात-वऩता सुत इस्तयी आरस्म फन्धू कानन ।
साधु दयश को जफ चरैं, मे अटकाव़ै आनन ॥ 553 ॥
साधु चरत यो दीजजमे, कीज़ै अनत सनभान ।
कहैं कफीय कछु बेट धरूँ, अऩने बफत्त अनुभान ॥ 554 ॥
इन अटकामा न रुके, साधु दयश को जाम ।
कह़ै कफीय सोई सन्तजन, भोऺ भुजक्त पर ऩाम ॥ 555 ॥
खारी साधु न बफदा करूँ, सुन रीज़ै सफ कोम ।
कह़ै कफीय कछु बें ट धरूँ, जो तेये घय होम ॥ 556 ॥
सुननमे ऩाय जो ऩाइमा, छाजन बोजन आनन ।
कह़ै कफीय सांतन को, दे त न कीज़ै कानन ॥ 557 ॥
कफीय दयशन साधु के, खारी हाथ न जाम ।
मही सीख फुध रीजजए, कह़ै कफीय फुझाम ॥ 558 ॥
टूका भाही टूक दे , चीय भाठह सो चीय ।
साधु दे त न सकुगचमे, मों कसश कहठहां कफीय ॥ 559 ॥
कफीय रौंग-इरामची, दातन
ु , भाटी ऩानन ।
कह़ै कफीय सन्तन को, दे त न कीज़ै कानन ॥ 560 ॥
साधु आवत दे झखकय, हूँसी हभायी दे ह ।
भाथा का ग्रह उतया, ऩैनन फढ़ा सनेह ॥ 561 ॥
साधु शब्द सभुद्र ह़ै , जाभें यत्न बयाम ।
भन्द बाग भट्टी बये , कांकय हाथ रगाम ॥ 562 ॥
साधु आमा ऩाहुना, भाूँगे चाय यतन ।
धन
ू ी ऩानी साथया, सयधा सेती अन्न ॥ 563 ॥
साधु आवत दे झखके, भन भें कय़ै बयोय ।
सो तो होसी चह्र
ू ा, फस़ै गाूँव की ओय ॥ 564 ॥
साधु सभऱै मह सफ हऱै, कार जार जभ चोट ।
शीश नवावत ढ़ठह ऩय़ै , अघ ऩावन को ऩोट ॥ 565 ॥
साधु बफयछ सतऻान पर, शीतर शब्द ववचाय ।
जग भें होते साधु नठहां, जय बयता सांसाय ॥ 566 ॥
साधु फड़े ऩयभायथी, शीतर जजनके अांग ।
तऩन फुझाव़ै ओय की, दे दे अऩनो यां ग ॥ 567 ॥
आवत साधु न हयझखमा, जात न दीमा योम ।
कह़ै कफीय वा दास की, भुजक्त कहाूँ से होम ॥ 568 ॥
छाजन बोजन प्रीनत सो, दीज़ै साधु फुराम ।
जीवन जस ह़ै जगन भें , अन्त ऩयभ ऩद ऩाम ॥ 569 ॥
सयवय तयवय सन्त जन, चौथा फयसे भेह ।
ऩयभायथ के कायने, चायों धायी दे ह ॥ 570 ॥
बफयछा कफहुूँ न पर बख़ै, नदी न अांचम नीय ।
ऩयभायथ के कायने, साधु धया शयीय ॥ 571 ॥
सुख दे व़ै दख
ु को हये , दयू कये अऩयाध ।
कह़ै कफीय वह कफ सभरे, ऩयभ सनेही साध ॥ 572 ॥
साधन
ु की झुऩड़ी बरी, न साकट के गाूँव ।
चांदन की कुटकी बरी, ना फूफर फनयाव ॥ 573 ॥
कह अकाश को पेय ह़ै , कह धयती को तोर ।
कहा साध की जानत ह़ै , कह ऩायस का भोर ॥ 574 ॥
हमफय गमफय सधन धन, छत्रऩनत की नारय ।
तासु ऩटतया न तर
ु े, हरयजन की ऩरयहारयन ॥ 575 ॥
क्मों नऩ
ृ नारय ननजन्दमे, ऩननहायी को भान ।
वह भाूँग सूँवाये ऩीववठहत, ननत वह ससु भये याभ ॥ 576 ॥
जा सख
ु को भनु नवय यटैं, सयु नय कयैं ववराऩ ।
जो सख
ु सहज़ै ऩाईमा, सन्तों सांगनत आऩ ॥ 577 ॥
साधु ससि फहु अन्तया, साधु भता ऩयचण्ड ।
ससि जु वाये आऩको, साधु तारय नौ खण्ड ॥ 578 ॥
कफीय शीतर जर नहीां, ठहभ न शीतर होम ।
कफीय शीतर सन्त जन, याभ सनेही सोम ॥ 579 ॥
आशा वासा सन्त का, ब्रह्भा रख़ै न वेद ।
षट दशमन खटऩट कय़ै , बफयरा ऩाव़ै बेद ॥ 580 ॥
कोठट-कोठट तीयथ कय़ै , कोठट कोठट करु धाम ।
जफ रग साधु न सेवई, तफ रग काचा काभ ॥ 581 ॥
वेद थके, ब्रह्भा थके, माके सेस भहे स ।
गीता हूूँ फक गत नहीां, सन्त फकमा ऩयवेस ॥ 582 ॥
सन्त सभरे जानन फीछुयों, बफछुयों मह भभ प्रान ।
शब्द सनेही ना सभरे, प्राण दे ह भें आन ॥ 583 ॥
साधु ऐसा चाठहए, दख
ु ़ै दख
ु ाव़ै नाठहां ।
ऩान पूर छे ड़े नहीां, फस़ै फगीचा भाठहां ॥ 584 ॥
साधु कहावन कठिन ह़ै , ज्मों खाांड़े की धाय ।
डगभगाम तो गगय ऩड़े ननहचर उतये ऩाय ॥ 585 ॥
साधु कहावत कठिन ह़ै , रम्फा ऩेड़ खजूय ।
चढ़े तो चाख़ै प्रेभ यस, गगय़ै तो चकनाचयू ॥ 586 ॥
साधु चार जु चारई, साधु की चार ।
बफन साधन तो सुगध नाठहां साधु कहाूँ ते होम ॥ 587 ॥
साधु सोई जाननमे, चऱै साधु की चार ।
ऩयभायथ याता यह़ै , फोऱै फचन यसार ॥ 588 ॥
साधु बौया जग करी, ननसश ठदन फपय़ै उदास ।
टुक-टुक तहाूँ ववरजम्फमा, जहूँ शीतर शब्द ननवास ॥ 589 ॥
साधू जन सफ भें यभैं, दख
ु न काहू दे ठह ।
अऩने भत गाड़ा यह़ै , साधन
ु का भत मेठह ॥ 590 ॥
साधु सती औय सूयभा, याखा यह़ै न ओट ।
भाथा फाूँगध ऩताक सों, नेजा घारैं चोट ॥ 591
साध-ु साधु सफ एक ह़ै , जस अपीभ का खेत ।
कोई वववेकी रार ह़ै , औय सेत का सेत ॥ 592 ॥
साधु सती औ ससां को, ज्मों रेघन त्मौं शोब ।
ससांह न भाये भेढ़का, साधु न फाूँघ़ै रोब ॥ 593 ॥
साधु तो हीया बमा, न पूट़ै धन खाम ।
न वह बफनब कुम्ब ज्मों ना वह आव़ै जाम ॥ 594 ॥
साध-ू साधू सफहीां फड़े, अऩनी-अऩनी िौय ।
शब्द वववेकी ऩायखी, ते भाथे के भौय ॥ 595 ॥
सदा यहे सन्तोष भें , धयभ आऩ दृढ़ धाय ।
आश एक गरु
ु दे व की, औय गचत्त ववचाय ॥ 596 ॥
दख
ु -सख
ु एक सभान ह़ै , हयष शोक नठहां व्माऩ ।
उऩकायी ननहकाभता, उऩज़ै छोह न ताऩ ॥ 597 ॥
सदा कृऩारु द:ु ख ऩरयहयन, फ़ैय बाव नठहां दोम ।
नछभा ऻान सत बाखही, ससांह यठहत तु होम ॥ 598 ॥
साधु ऐसा चाठहए, जाके ऻान वववेक ।
फाहय सभरते सों सभरें , अन्तय सफसों एक ॥ 599 ॥
सावधान औय शीरता, सदा प्रपुजल्रत गात ।
ननववमकाय गम्बीय भत, धीयज दमा फसात ॥ 600 ॥

ननफैंयी ननहकाभता, स्वाभी सेती नेह ।


ववषमा सो न्माया यहे , साधन
ु का भत मेह ॥ 601 ॥
भानऩभान न गचत धय़ै , औयन को सनभान ।
जो कोिम आशा कय़ै , उऩदे श़ै तेठह ऻान ॥ 602 ॥
औय दे व नठहां गचत्त फस़ै, भन गरु
ु चयण फसाम ।
स्वल्ऩाहाय बोजन करूँ, तष्ृ णा दयू ऩयाम ॥ 603 ॥
जौन चार सांसाय की जौ साधु को नाठहां ।
डडांब चार कयनी कये , साधु कहो भत ताठहां ॥ 604 ॥
इजन्द्रम भन ननग्रह कयन, ठहयदा कोभर होम ।
सदा शुि आचयण भें , यह ववचाय भें सोम ॥ 605 ॥
शीरवन्त दृढ़ ऻान भत, अनत उदाय गचत होम ।
रज्जावान अनत ननछरता, कोभर ठहयदा सोम ॥ 606 ॥
कोई आव़ै बाव रे, कोई अबाव ऱै आव ।
साधु दोऊ को ऩोषते, बाव न गगऩै अबाव ॥ 607 ॥
सन्त न छाड़़ै सन्तता, कोठटक सभऱै असांत ।
भरम बुवांगम फेगधमा, शीतरता न तजन्त ॥ 608 ॥
कभर ऩत्र हैं साधु जन, फसैं जगत के भाठहां ।
फारक केरय धाम ज्मों, अऩना जानत नाठहां ॥ 609 ॥
फहता ऩानी ननयभरा, फन्दा गन्दा होम ।
साधू जन यभा बरा, दाग न राग़ै कोम ॥ 610 ॥
फूँधा ऩानी ननयभरा, जो टूक गठहया होम ।
साधु जन फ़ैिा बरा, जो कुछ साधन होम ॥ 611 ॥
एक छाडड़ ऩम को गहैं, ज्मों ये गऊ का फच्छ ।
अवगण
ु छाड़़ै गण
ु गह़ै , ऐसा साधु रच्छ ॥ 612 ॥
जौन बाव उऩय यह़ै , सबतय फसाव़ै सोम ।
बीतय औय न फसावई, ऊऩय औय न होम ॥ 613 ॥
उड़गण औय सुधाकया, फसत नीय के सांग ।
मों साधू सांसाय भें , कफीय पड़त न पांद ॥ 614 ॥
तन भें शीतर शब्द ह़ै , फोरे वचन यसार ।
कहैं कफीय ता साधु को, गांजज सक़ै न कार ॥ 615 ॥
तूट़ै फयत आकाश सौं, कौन सकत ह़ै झेर ।
साधु सती औय सूय का, अनी ऊऩय का खेर ॥ 616 ॥
ढोर दभाभा गड़झड़ी, सहनाई औय तूय ।
तीनों ननकसस न फाहुयैं, साधु सती औ सूय ॥ 617 ॥
आज कार के रोग हैं, सभसर क़ै बफछुयी जाठहां ।
राहा कायण आऩने, सौगन्ध याभ फक खाठहां ॥ 618 ॥
जुवा चोयी भुखबफयी, ब्माज बफयानी नारय ।
जो चाह़ै दीदाय को, इतनी वस्तु ननवारय ॥ 619 ॥
कफीय भेया कोइ नहीां, हभ काहू के नाठहां ।
ऩाय़ै ऩहुूँची नाव ज्मों, सभसर क़ै बफछुयी जाठहां ॥ 620 ॥
सन्त सभागभ ऩयभ सुख, जान अल्ऩ सुख औय ।
भान सयोवय हां स ह़ै , फगुरा िौये िौय ॥ 621 ॥
सन्त सभरे सुख ऊऩज़ै दष्ु ट सभरे दख
ु होम ।
सेवा कीज़ै साधु की, जन्भ कृतायथ होम ॥ 622 ॥
सांगत कीज़ै साधु की कबी न ननष्पर होम ।
रोहा ऩायस ऩयस ते, सो बी कांचन होम ॥ 623 ॥
भान नहीां अऩभान नहीां, ऐसे शीतर सन्त ।
बव सागय से ऩाय हैं, तोये जभ के दन्त ॥ 624 ॥
दमा गयीफी फन्दगी, सभता शीर सुबाव ।
मेते रऺण साधु के, कहैं कफीय सतबाव ॥ 625 ॥
सो ठदन गमा इकायथे, सांगत बई न सन्त ।
ऻान बफना ऩशु जीवना, बजक्त बफना बटकन्त ॥ 626 ॥
आशा तजज भामा तज़ै, भोह तज़ै अर भान ।
हयष शोक ननन्दा तज़ै, कहैं कफीय सन्त जान ॥ 627 ॥
आसन तो इकान्त कयैं, कासभनी सांगत दयू ।
शीतर सन्त सशयोभनी, उनका ऐसा नयू ॥ 628 ॥
मह कसरमुग आमो अफ़ै, साधु न जाने कोम ।
काभी क्रोधी भस्खया, नतनकी ऩूजा होम ॥ 629 ॥
कुरवन्ता कोठटक सभरे, ऩजण्डत कोठट ऩचीस ।
सुऩच बक्त की ऩनठह भें , तुऱै न काहू शीश ॥ 630 ॥
साधु दयशन भहापर, कोठट मऻ पर रेह ।
इक भजन्दय को का ऩड़ी, नगय शुि करयरेह ॥ 631 ॥
साधु दयश को जाइमे, जेता धरयमे ऩाूँम ।
डग-डग ऩे असभेध जग, ह़ै कफीय सभुझाम ॥ 632 ॥
सन्त भता गजयाज का, चाऱै फन्धन छोड़ ।
जग कुत्ता ऩीछे फपयैं, सुऩै न वाको सोय ॥ 633 ॥
आज कार ठदन ऩाूँच भें , फयस ऩाूँच जुग ऩांच ।
जफ तफ साधू तायसी, औय सकर ऩय ऩांच ॥ 634 ॥
साधु ऐसा चाठहए, जहाूँ यह़ै तहूँ ग़ैफ ।
फानी के बफस्ताय भें , ताकूँू कोठटक ऐफ ॥ 635 ॥
सन्त होत हैं, हे त के, हे तु तहाूँ चसर जाम ।
कहैं कफीय के हे त बफन, गयज कहाूँ ऩनतमाम ॥ 636 ॥
हे त बफना आव़ै नहीां, हे त तहाूँ चसर जाम ।
कफीय जर औय सन्तजन, नवैं तहाूँ िहयाम ॥ 637 ॥
साध-ु ऐसा चाठहए, जाका ऩूया भांग ।
ववऩजत्त ऩड़े छाड़़ै नहीां, चढ़े चौगन
ु ा यां ग ॥ 638 ॥
सन्त सेव गरु
ु फन्दगी, गरु
ु ससु भयन व़ैयाग ।
मे ता तफही ऩाइमे, ऩयू न भस्तक बाग ॥ 639 ॥
॥ बेष के ववषम भे दोहे ॥
चार फकुर की चरत हैं, फहुरय कहाव़ै हां स ।
ते भक्
ु ता क़ैसे चग
ांु े, ऩड़े कार के पांस ॥ 640 ॥
फाना ऩठहये ससांह का, चऱै बेड़ की चार ।
फोरी फोरे ससमाय की, कुत्ता खव़ै पार ॥ 641 ॥
साधु बमा तो क्मा बमा, भारा ऩठहयी चाय ।
फाहय बेष फनाइमा, बीतय बयी बांगाय ॥ 642 ॥
तन को जोगी सफ कय़ै , भन को कय़ै न कोम ।
सहज़ै सफ ससगध ऩाइमे, जो भन जोगी होम ॥ 643 ॥
जौ भानुष गह
ृ धभम मुत, याख़ै शीर ववचाय ।
गुरुभुख फानी साधु सांग, भन वच, सेवा साय ॥ 644 ॥
शब्द ववचाये ऩथ चऱै, ऻान गरी दे ऩाूँव ।
क्मा यभता क्मा फ़ैिता, क्मा गह
ृ कांदरा छाूँव ॥ 645 ॥
गगयही सुव़ै साधु को, बाव बजक्त आनन्द ।
कहैं कफीय फ़ैयागी को, ननयफानी ननयदन्ु द ॥ 646 ॥
ऩाूँच सात सुभता बयी, गुरु सेवा गचत राम ।
तफ गुरु आऻा रेम के, यहे दे शान्तय जाम ॥ 647 ॥
गुरु के सनभुख जो यह़ै , सह़ै कसौटी दख
ु ।
कहैं कफीय तो दख
ु ऩय वायों, कोठटक सूख ॥ 648 ॥
भन भ़ैरा तन ऊजया, फगुरा कऩटी अांग ।
तासों तो कौवा बरा, तन भन एकठह यां ग ॥ 649 ॥
बेष दे ख भत बूसरमे, फूझझ रीजजमे ऻान ।
बफना कसौटी होत नहीां, कांचन की ऩठहचान ॥ 650 ॥
कवव तो कोठट-कोठट हैं, ससय के भुड़े कोट ।
भन के कूड़े दे झख करय, ता सांग रीज़ै ओट ॥ 651 ॥
फोरी िोरी भस्खयी, हूँसी खेर हयाभ ।
भद भामा औय इस्तयी, नठहां सन्तन के काभ ॥ 652 ॥
पारी पूरी गाडयी, ओठढ़ ससांह की खार ।
साूँच ससांह जफ आ सभरे, गाडय कौन हवार ॥ 653 ॥
फ़ैयागी बफयकत बरा, गगयही गचत्त उदाय ।
दोऊ चफू क खारी ऩड़े, ताको वाय न ऩाय ॥ 654 ॥
धाया तो दोनों बरी, बफयही के फ़ैयाग ।
गगयही दासातन कये फ़ैयागी अनयु ाग ॥ 655 ॥
घय भें यह़ै तो बजक्त करूँ, ना तर कर फ़ैयाग ।
फ़ैयागी फन्ध कय़ै , ताका फड़ा अबाग ॥ 656 ॥
॥ बीख के ववषम भे दोहे ॥

उदय सभाता भाूँगग रे, ताको नाठहां दोष ।


कहैं कफीय अगधका गह़ै , ताफक गनत न भोष ॥ 657 ॥
अजहूूँ तेया सफ सभटैं, जो भाऩै गुरु सीख ।
जफ रग तू घय भें यह़ै , भनत कहुूँ भाूँगे बीख ॥ 658 ॥
भाूँगन ग़ै सो बय यह़ै , बये जु भाूँगन जाठहां ।
नतनते ऩठहरे वे भये , होत कयत ह़ै नाठहां ॥ 659 ॥
भाूँगन-भयण सभान ह़ै , तोठह दई भैं सीख ।
कहैं कफीय सभझाम के, भनत कोई भाूँगे बीख ॥ 660 ॥
उदय सभाता अन्न रे, तनठहां सभाता चीय ।
अगधकठहां सांग्रह ना कय़ै , नतसका नाभ पकीय ॥ 661 ॥
आफ गमा आदय गमा, ऩैनन गमा सनेह ।
मह तीनों तफ ही गमे, जफठहां कहा कुछ दे ह ॥ 662 ॥
सहत सभऱै सो दध
ू ह़ै , भाूँगग सभऱै सा ऩानन ।
कहैं कफीय वह यक्त ह़ै , जाभें एांचातानन ॥ 663 ॥
अनभाूँगा उत्तभ कहा, भध्मभ भाूँगग जो रेम ।
कहैं कफीय ननकृजष्ट सो, ऩय धय धयना दे म ॥ 664 ॥
अनभाूँगा तो अनत बरा, भाूँगग सरमा नठहां दोष ।
उदय सभाता भाूँगग रे, ननश्च्म ऩाव़ै मोष ॥ 665 ॥
॥ सांगनत ऩय दोहे ॥

कफीया सांगत साधु की, ननत प्रनत कीजम जाम ।


दयु भनत दयू फहावसी, दे शी सुभनत फताम ॥ 666 ॥
एक घड़ी आधी घड़ी, आधी भें ऩुनन आध ।
कफीय सांगत साधु की, कय़ै कोठट अऩयाध ॥ 667 ॥
कबफया सांगनत साधु की, जो करय जाने कोम ।
सकर बफयछ चन्दन बमे, फाांस न चन्दन होम ॥ 668 ॥
भन ठदमा कहुूँ औय ही, तन साधन
ु के सांग ।
कहैं कफीय कोयी गजी, क़ैसे राग़ै यां ग ॥ 669 ॥
साधन
ु के सतसांग से, थय-थय काूँऩे दे ह ।
कफहुूँ बाव कुबाव ते, जनन सभठट जाम सनेह ॥ 670 ॥
साखी शब्द फहुत़ै सन
ु ा, सभटा न भन का दाग ।
सांगनत सो सध
ु या नहीां, ताका फड़ा अबाग ॥ 671 ॥
साध सांग अन्तय ऩड़े, मह भनत कफहु न होम ।
कहैं कफीय नतहु रोक भें , सख
ु ी न दे खा कोम ॥ 672 ॥
गगरयमे ऩयफत ससखय ते, ऩरयमे धरयन भांझाय ।
भयू ख सभत्र न कीजजमे, फड़
ू ो कारी धाय ॥ 673 ॥
सांत कफीय गुरु के दे श भें , फसस जाव़ै जो कोम ।
कागा ते हां सा फऩै, जानत फयन कुछ खोम ॥ 674 ॥
बुवांगभ फास न फेधई, चन्दन दोष न राम ।
सफ अांग तो ववष सों बया, अभत
ृ कहाूँ सभाम ॥ 675 ॥
तोठह ऩीय जो प्रेभ की, ऩाका सेती खेर ।
काची सयसों ऩेरयक़ै, खयी बमा न तेर ॥ 676 ॥
काचा सेती भनत सभऱै, ऩाका सेती फान ।
काचा सेती सभरत ही, ह़ै तन धन की हान ॥ 677 ॥
कोमरा बी हो ऊजरा, जरय फरय ह़ै जो सेव ।
भूयख होम न ऊजरा, ज्मों कारय का खेत ॥ 678 ॥
भूयख को सभुझावते, ऻान गाूँठि का जाम ।
कोमरा होम न ऊजरा, सौ भन साफुन राम ॥ 679 ॥
ऻानी को ऻानी सभऱै, यस की रूटभ रूट ।
ऻानी को आनी सभऱै, हौव़ै भाथा कूट ॥ 680॥
साखी शब्द फहुतक सुना, सभटा न भन क भोह ।
ऩायस तक ऩहुूँचा नहीां, यहा रोह का रोह ॥ 681 ॥
ब्राह्भण केयी फेठटमा, भाांस शयाफ न खाम ।
सांगनत बई करार की, भद बफना यहा न जाए ॥ 682 ॥
जीवन जीवन यात भद, अववचर यह़ै न कोम ।
जु ठदन जाम सत्सांग भें , जीवन का पर सोम ॥ 683 ॥
दाग जु रागा नीर का, सौ भन साफन
ु धोम ।
कोठट जतन ऩयभोगधमे, कागा हां स न होम ॥ 684 ॥
जो छोड़े तो आूँधया, खामे तो भरय जाम ।
ऐसे सांग छछून्दयी, दोऊ बाूँनत ऩनछताम ॥ 685 ॥
प्रीनत कय सुख रेने को, सो सुख गमा ठहयाम ।
ज़ैसे ऩाइ छछून्दयी, ऩकडड़ साूँऩ ऩनछताम ॥ 686 ॥
कफीय ववषधय फहु सभरे, भझणधय सभरा न कोम ।
ववषधय को भझणधय सभरे, ववष तजज अभत
ृ होम ॥ 687 ॥
सज्जन सों सज्जन सभरे, होवे दो दो फात ।
गहदा सो गहदा सभरे, खावे दो दो रात ॥ 688 ॥
तरुवय जड़ से काठटमा, जफ़ै सम्हायो जहाज ।
ताय़ै ऩय फोये नहीां, फाूँह गहे की राज ॥ 689 ॥
भैं सोचों ठहत जाननके, कठिन बमो ह़ै काि ।
ओछी सांगत नीच की सरय ऩय ऩाड़ी फाट ॥ 690 ॥
रकड़ी जर डूफ़ै नहीां, कहो कहाूँ की प्रीनत ।
अऩनी सीची जानन के, मही फड़ने की यीनत ॥ 691 ॥
साधू सांगत ऩरयहय़ै , कय़ै ववषम का सांग ।
कूऩ खनी जर फावये , त्माग ठदमा जर गांग ॥ 692 ॥
सांगनत ऐसी कीजजमे, सयसा नय सो सांग ।
रय-रय रोई हे त ह़ै , तऊ न छौड़ यां ग ॥ 693 ॥
तेर नतरी सौ ऊऩज़ै, सदा तेर को तेर ।
सांगनत को फेयो बमो, ताते नाभ पुरेर ॥ 694 ॥
साधु सांग गुरु बजक्त अर, फढ़त फढ़त फठढ़ जाम ।
ओछी सांगत खय शब्द र, घटत-घटत घठट जाम ॥ 695 ॥
सांगत कीज़ै साधु की, होवे ठदन-ठदन हे त ।
साकुट कारी काभरी, धोते होम न सेत ॥ 696 ॥
चचाम करूँ तफ चौहटे , ऻान कयो तफ दोम ।
ध्मान धयो तफ एफकरा, औय न दज
ू ा कोम ॥ 697 ॥
सन्त सुयसयी गांगा जर, आनन ऩखाया अांग ।
भ़ैरे से ननयभर बमे, साधू जन को सांग ॥ 698 ॥

॥ सेवक ऩय दोहे ॥

सतगुरु शब्द उरांघ के, जो सेवक कहूूँ जाम ।


जहाूँ जाम तहूँ कार ह़ै , कहैं कफीय सभझाम ॥ 699 ॥
तू तू करां तो ननकट ह़ै , दयु -दयु कर हो जाम ।
जों गरु
ु याख़ै त्मों यह़ै , जो दे व़ै सो खाम ॥ 700 ॥

सेवक सेवा भें यह़ै , सेवक कठहमे सोम ।


कहैं कफीय सेवा बफना, सेवक कबी न होम ॥ 701 ॥
अनयाते सुख सोवना, याते नीांद न आम ।
मों जर छूटी भाछयी, तरपत य़ै न बफहाम ॥ 702 ॥
मह भन ताको दीजजमे, साूँचा सेवक होम ।
ससय ऊऩय आया सह़ै , तऊ न दज
ू ा होम ॥ 703 ॥
गुरु आऻा भाऩै नहीां, चऱै अटऩटी चार ।
रोक वेद दोनों गमे, आमे ससय ऩय कार ॥ 704 ॥
आशा कय़ै फ़ैकुण्ि की, दयु भनत तीनों कार ।
शुक्र कही फसर ना कयीां, ताते गमो ऩतार ॥ 705 ॥
द्वाय थनी के ऩडड़ यहे , धका धनी का खाम ।
कफहुक धनी ननवाजज ह़ै , जो दय छाडड़ न जाम ॥ 706 ॥
उरटे सुरटे फचन के शीष न भाऩै दखु ।
कहैं कफीय सांसाय भें , सो कठहमे गरु
ु भख
ु ॥ 707 ॥
कहैं कफीय गरु
ु प्रेभ फस, क्मा ननमय़ै क्मा दयू ।
जाका गचत जासों फस़ै सौ तेठह सदा हजयू ॥ 708 ॥
गरु
ु आऻा ऱै आवही, गरु
ु आऻा ऱै जाम ।
कहैं कफीय सो सन्त वप्रम, फहु ववगध अभत
ृ ऩाम ॥ 709 ॥
गरु
ु भख
ु गरु
ु गचतवत यहे , ज़ैसे भझणठह बज
ु ांग ।
कहैं कफीय बफसये नहीां, मह गरु
ु भख
ु के अांग ॥ 710 ॥
मह सफ तच्छन गचतधये , अऩ रच्छन सफ त्माग ।
सावधान सभ ध्मान ह़ै , गुरु चयनन भें राग ॥ 711 ॥
ऻानी असबभानी नहीां, सफ काहू सो हे त ।
सत्मवाय ऩयभायथी, आदय बाव सहे त ॥ 712 ॥
दमा औय धयभ का ध्वजा, धीयजवान प्रभान ।
सन्तोषी सुख दामका, सेवक ऩयभ सुजान ॥ 713 ॥
शीतवन्त सुन ऻान भत, अनत उदाय गचत होम ।
रज्जावान अनत ननछरता, कोभर ठहयदा सोम ॥ 714 ॥
॥ दासता ऩय दोहे ॥
कफीय गुरु क़ै बावते, दयू ठह ते दीसन्त ।
तन छीना भन अनभना, जग से रठि फपयन्त ॥ 715 ॥
कफीय गुरु सफको चह़ै , गुरु को चह़ै न कोम ।
जफ रग आश शयीय की, तफ रग दास न होम ॥ 716 ॥
सुख दख
ु ससय ऊऩय सह़ै , कफहु न छोड़े सांग ।
यां ग न राग़ै का, व्माऩ़ै सतगुरु यां ग ॥ 717 ॥
गुरु सभयथ ससय ऩय खड़े, कहा कबी तोठह दास ।
रयवि-ससवि सेवा कय़ै , भुजक्त न छोड़े ऩास ॥ 718 ॥
रगा यह़ै सत ऻान सो, सफही फन्धन तोड़ ।
कहैं कफीय वा दास सो, कार यह़ै हथजोड़ ॥ 719 ॥
काहू को न सांतावऩमे, जो ससय हन्ता होम ।
फपय फपय वाकांू फजन्दमे, दास रच्छन ह़ै सोम ॥ 720 ॥
दास कहावन कठिन ह़ै , भैं दासन का दास ।
अफ तो ऐसा होम यहूूँ ऩाूँव तरे की घास ॥ 721 ॥
दासातन ठहयद़ै फस़ै, साधन
ु सो अधीन ।
कहैं कफीय सो दास ह़ै , प्रेभ बजक्त रवरीन ॥ 722 ॥
दासातन ठहयद़ै नहीां, नाभ धयाव़ै दास ।
ऩानी के ऩीमे बफना, क़ैसे सभट़ै वऩमास ॥ 723 ॥
॥ बजक्त ऩय दोहे ॥

बजक्त कठिन अनत दर


ु ब
म , बेष सुगभ ननत सोम ।
बजक्त जु न्मायी बेष से, मह जऩै सफ कोम ॥ 724 ॥
बजक्त फीज ऩरट़ै नहीां जो जुग जाम अनन्त ।
ऊूँच-नीच धय अवतय़ै , होम सन्त का अन्त ॥ 725 ॥
बजक्त बाव बादौं नदी, सफ़ै चरी घहयाम ।
सरयता सोई सयाठहमे, जेि भास िहयाम ॥ 726 ॥
बजक्त जु सीढ़ी भुजक्त की, चढ़े बक्त हयषाम ।
औय न कोई चठढ़ सक़ै, ननज भन सभझो आम ॥ 727 ॥
बजक्त दहु े री गुरुन की, नठहां कामय का काभ ।
सीस उताये हाथ सों, ताठह सभऱै ननज धाभ ॥ 728 ॥
बजक्त ऩदायथ तफ सभऱै, जफ गुरु होम सहाम ।
प्रेभ प्रीनत की बजक्त जो, ऩयू ण बाग सभराम ॥ 729 ॥
बजक्त बेष फहु अन्तया, ज़ैसे धयनन अकाश ।
बक्त रीन गरु
ु चयण भें , बेष जगत की आश ॥ 730 ॥
कफीय गरु
ु की बजक्त करूँ, तज ननषम यस चौंज ।
फाय-फाय नठहां ऩाइमे, भानष
ु जन्भ की भौज ॥ 731 ॥
बजक्त दव
ु ाया साूँकया, याई दशवें बाम ।
भन को भ़ैगर होम यहा, क़ैसे आव़ै जाम ॥ 732 ॥
बजक्त बफना नठहां ननस्तये , राख कये जो कोम ।
शब्द सनेही होम यहे , घय को ऩहुूँचे सोम ॥ 733 ॥
बजक्त नसेनी भुजक्त की, सांत चढ़े सफ धाम ।
जजन-जजन आरस फकमा, जनभ जनभ ऩनछताम ॥ 734 ॥
गुरु बजक्त अनत कठिन ह़ै , ज्मों खाड़े की धाय ।
बफना साूँच ऩहुूँचे नहीां, भहा कठिन व्मवहाय ॥ 735 ॥
बाव बफना नठहां बजक्त जग, बजक्त बफना नहीां बाव ।
बजक्त बाव इक रऩ ह़ै , दोऊ एक सुबाव ॥ 736 ॥
कफीय गुरु की बजक्त का, भन भें फहुत हुरास ।
भन भनसा भाज़ै नहीां, होन चहत ह़ै दास ॥ 737 ॥
कफीय गुरु की बजक्त बफन, गधक जीवन सांसाय ।
धव
ु ाूँ का सा धौयहया, बफनसत रग़ै न फाय ॥ 738 ॥
जानत फयन कुर खोम के, बजक्त कय़ै गचतराम ।
कहैं कफीय सतगुरु सभऱै, आवागभन नशाम ॥ 739 ॥
दे खा दे खी बजक्त का, कफहुूँ न चढ़ सी यां ग ।
बफऩनत ऩड़े मों छाड़सी, केचसु र तजत बुजांग ॥ 740 ॥
आयत ह़ै गुरु बजक्त करूँ, सफ कायज ससध होम ।
कयभ जार बौजार भें , बक्त पूँसे नठहां कोम ॥ 741 ॥
जफ रग बजक्त सकाभ ह़ै , तफ रग ननष्पर सेव ।
कहैं कफीय वह क्मों सभऱै, ननहकाभी ननजदे व ॥ 742 ॥
ऩेटे भें बजक्त कय़ै , ताका नाभ सऩत
ू ।
भामाधायी भसखयैं, रेते गमे अऊत ॥ 743 ॥
ननऩमऺा की बजक्त ह़ै , ननभोही को ऻान ।
ननयद्वांद्वी की बजक्त ह़ै , ननरोबी ननफामन ॥ 744 ॥
नतसभय गमा यवव दे खते, भुभनत गमी गुरु ऻान ।
सभ
ु नत गमी अनत रोब ते, बजक्त गमी असबभान ॥ 745 ॥
खेत बफगाये उ खयतआ
ु , सबा बफगायी कूय ।
बजक्त बफगायी रारची, ज्मों केसय भें घयू ॥ 746 ॥
ऻान सऩयू ण न सबदा, ठहयदा नाठहां जड़
ु ाम ।
दे खा दे खी बजक्त का, यां ग नहीां िहयाम ॥ 747 ॥
बजक्त ऩन्थ फहुत कठिन ह़ै , यती न चाऱै खोट ।
ननयाधाय का खोर ह़ै , अधय धाय की चोट ॥ 748 ॥
बक्तन की मह यीनत ह़ै , फांधे कये जो बाव ।
ऩयभायथ के कायने मह तन यहो फक जाव ॥ 749 ॥
बजक्त भहर फहु ऊूँच ह़ै , दयू ठह ते दयशाम ।
जो कोई जन बजक्त कये , शोबा फयनन न जाम ॥ 750 ॥
औय कभम सफ कभम ह़ै , बजक्त कभम ननहकभम ।
कहैं कफीय ऩुकारय के, बजक्त कयो तजज बभम ॥ 751 ॥
ववषम त्माग फ़ैयाग ह़ै , सभता कठहमे ऻान ।
सुखदाई सफ जीव सों, मही बजक्त ऩयभान ॥ 752 ॥
बजक्त ननसेनी भुजक्त की, सांत चढ़े सफ आम ।
नीचे फागधनन रुफक यही, कुचर ऩड़े कू खाम ॥ 753 ॥
बजक्त बजक्त सफ कोइ कह़ै , बजक्त न जाने भेव ।
ऩूयण बजक्त जफ सभऱै, कृऩा कये गुरुदे व ॥ 754 ॥
॥ चेतावनी ॥

कफीय गफम न कीजजमे, चाभ रऩेटी हाड़ ।


हमफय ऊऩय छत्रवट, तो बी दे वैं गाड़ ॥ 755 ॥
कफीय गफम न कीजजमे, ऊूँचा दे झख अवास ।
कार ऩयौं बुांइ रेटना, ऊऩय जभसी घास ॥ 756 ॥
कफीय गफम न कीजजमे, इस जीवन की आस ।
टे सू पूरा ठदवस दस, खांखय बमा ऩरास ॥ 757 ॥
कफीय गफम न कीजजमे, कार गहे कय केस ।
ना जानो फकत भारय हैं, कसा घय क्मा ऩयदे स ॥ 758 ॥
कफीय भजन्दय राख का, जाडड़मा हीया रार ।
ठदवस चारय का ऩेखना, ववनसश जामगा कार ॥ 759 ॥
कफीय धर
ू सकेसर के, ऩुड़ी जो फाूँधी मेह ।
ठदवस चाय का ऩेखना, अन्त खेह की खेह ॥ 760 ॥
कफीय थोड़ा जीवना, भाढ़़ै फहुत भढ़ान ।
सफही ऊब ऩन्थ ससय, याव यां क सल्ु तान ॥ 761 ॥
कफीय नौफत आऩनी, ठदन दस रेहु फजाम ।
मह ऩयु ऩटृन मह गरी, फहुरय न दे खहु आम ॥ 762 ॥
कफीय गफम न कीजजमे, जाभ रऩेटी हाड़ ।
इस ठदन तेया छत्र ससय, दे गा कार उखाड़ ॥ 763 ॥
कफीय मह तन जात ह़ै , सक़ै तो िोय रगाव ।
क़ै सेवा करूँ साधु की, क़ै गुरु के गुन गाव ॥ 764 ॥
कफीय जो ठदन आज ह़ै , सो ठदन नहीां कार ।
चेनत सक़ै तो चेत रे, भीच ऩयी ह़ै ख्मार ॥ 765 ॥
कफीय खेत फकसान का, सभयगन खामा झारय ।
खेत बफचाया क्मा कये , धनी कये नठहां फारय ॥ 766 ॥
कफीय मह सांसाय ह़ै , ज़ैसा सेभर पूर ।
ठदन दस के व्मवहाय भें , झूिे यां ग न बूर ॥ 767 ॥
कफीय सऩनें य़ै न के, ऊधयी आमे ऩैन ।
जीव ऩया फहू रूट भें , जागूँू रेन न दे न ॥ 768 ॥
कफीय जन्त्र न फाजई, टूठट गमे सफ ताय ।
जन्त्र बफचाया क्माम कये , गमा फजावन हाय ॥ 769 ॥
कफीय यसयी ऩाूँव भें , कहूँ सोव़ै सुख-च़ैन ।
साूँस नगाया कूँु च का, फाजत ह़ै ठदन-य़ै न ॥ 770 ॥
कफीय नाव तो झाूँझयी, बयी बफयाने बाए ।
केवट सो ऩयच़ै नहीां, क्मों कय उतये ऩाए ॥ 771 ॥
कफीय ऩाूँच ऩखेरआ, याखा ऩोष रगाम ।
एक जु आमा ऩायधी, रइ गमा सफ़ै उड़ाम ॥ 772 ॥
कफीय फेड़ा जयजया, कूड़ा खेनहाय ।
हरमे-हरमे तरय गमे, फड़
ू े जजन ससय बाय ॥ 773 ॥
एक ठदन ऐसा होमगा, सफसों ऩय़ै बफछोह ।
याजा याना याव एक, सावधान क्मों नठहां होम ॥ 774 ॥
ढोर दभाभा दयु फयी, सहनाई सांग बेरय ।
औसय चरे फजाम के, ह़ै कोई यख़ै पेरय ॥ 775 ॥
भयें गे भरय जामूँगे, कोई न रेगा नाभ ।
ऊजड़ जाम फसामेंगे, छे डड़ फसन्ता गाभ ॥ 776 ॥
कफीय ऩानी हौज की, दे खत गमा बफराम ।
ऐसे ही जीव जामगा, कार जु ऩहुूँचा आम ॥ 777 ॥
कफीय गाफपर क्मा कये , आमा कार नजदीक ।
कान ऩकरय के रे चरा, ज्मों अजजमाठह खटीक ॥ 778 ॥
क़ै खाना क़ै सोवना, औय न कोई चीत ।
सतगरु
ु शब्द बफसारयमा, आठद अन्त का भीत ॥ 779 ॥
हाड़ जय़ै जस राकड़ी, केस जय़ै ज्मों घास ।
सफ जग जयता दे झख करय, बमे कफीय उदास ॥ 780 ॥
आज कार के फीच भें , जांगर होगा वास ।
ऊऩय ऊऩय हर फपय़ै , ढोय चयें गे घास ॥ 781 ॥
ऊजड़ खेड़े टे कयी, धडड़ धडड़ गमे कुम्हाय ।
यावन ज़ैसा चसर गमा, रांका का सयदाय ॥ 782 ॥
ऩाव ऩरक की सुगध नहीां, कय़ै कार का साज ।
कार अचानक भायसी, ज्मों तीतय को फाज ॥ 783 ॥
आछे ठदन ऩाछे गमे, गुरु सों फकमा न ह़ै त ।
अफ ऩनछतावा क्मा कये , गचडड़मा चग
ु गई खेत ॥ 784 ॥
आज कह़ै भैं कर बजूँ,ू कार फपय कार ।
आज कार के कयत ही, औसय जासी चार ॥ 785 ॥
कहा चन
ु ाव़ै भेडड़मा, चन
ू ा भाटी राम ।
भीच सुनेगी ऩावऩनी, दौरय के रेगी आम ॥ 786 ॥
सातों शब्द जु फाजते, घय-घय होते याग ।
ते भजन्दय खारे ऩड़े, फ़ैिने रागे काग ॥ 787 ॥
ऊूँचा भहर चन
ु ाइमा, सुफयदन करी ढुराम ।
वे भजन्दय खारे ऩड़े, यह़ै भसाना जाम ॥ 788 ॥
ऊूँचा भजन्दय भेडड़मा, चरा करी ढुराम ।
एकठहां गरु
ु के नाभ बफन, जठद तठद ऩयरम जाम ॥ 789 ॥
ऊूँचा दीसे धौहया, बागे चीती ऩोर ।
एक गरु
ु के नाभ बफन, जभ भयें गे योज ॥ 790 ॥
ऩाव ऩरक तो दयू ह़ै , भो ऩ़ै कहा न जाम ।
ना जानो क्मा होमगा, ऩाव के चौथे बाम ॥ 791 ॥
भौत बफसायी फाठहया, अचयज कीमा कौन ।
भन भाटी भें सभर गमा, ज्मों आटा भें रौन ॥ 792 ॥
घय यखवारा फाठहया, गचडड़मा खाई खेत ।
आधा ऩयवा ऊफये , चेनत सके तो चेत ॥ 793 ॥
हाड़ जरे रकड़ी जरे, जरे जरवान हाय ।
अजहुूँ झोरा फहुत ह़ै , घय आव़ै तफ जान ॥ 794 ॥
ऩकी हुई खेती दे झख के, गयफ फकमा फकसान ।
अजहुूँ झोरा फहुत ह़ै , घय आव़ै तफ जान ॥ 795 ॥
ऩाूँच तत्व का ऩूतया, भानुष धरयमा नाभ ।
ठदना चाय के कायने, फपय-फपय योके िाभ ॥ 796 ॥
कहा चन
ु ाव़ै भेडड़मा, रम्फी बीत उसारय ।
घय तो साढ़े तीन हाथ, घना तो ऩौने चारय ॥ 797 ॥
मह तन काूँचा कांु ब ह़ै , सरमा फपय़ै थे साथ ।
टऩका रागा पुठट गमा, कछु न आमा हाथ ॥ 798 ॥
कहा फकमा हभ आऩके, कहा कयें गे जाम ।
इत के बमे न ऊत के, चारे भूर गूँवाम ॥ 799 ॥
जनभ़ै भयन ववचाय के, कूये काभ ननवारय ।
जजन ऩांथा तोठह चारना, सोई ऩांथ सूँवारय ॥ 800 ॥

कुर खोमे कुर ऊफय़ै , कुर याखे कुर जाम ।


याभ ननकुर कुर बेठटमा, सफ कुर गमा बफराम ॥ 801 ॥
दनु नमा के धोखे भआ
ु , चरा कुटुभ की कानन ।
तफ कुर की क्मा राज ह़ै , जफ रे धया भसानन ॥ 802 ॥
दनु नमा सेती दोसती, भुआ, होत बजन भें बांग ।
एका एकी याभ सों, क़ै साधन
ु के सांग ॥ 803 ॥
मह तन काूँचा कांु ब ह़ै , महीां सरमा यठहवास ।
कफीया ऩैन ननहारयमा, नाठहां जीवन की आस ॥ 804 ॥
मह तन काूँचा कांु ब ह़ै , चोट चहूूँ ठदस खाम ।
एकठहां गुरु के नाभ बफन, जठद तठद ऩयरम जाम ॥ 805 ॥
जांगर ढे यी याख की, उऩरय उऩरय हरयमाम ।
ते बी होते भानवी, कयते यां ग यसरमाम ॥ 806 ॥
भरभर खासा ऩठहनते, खाते नागय ऩान ।
टे ढ़ा होकय चरते, कयते फहुत गभ
ु ान ॥ 807 ॥
भहरन भाही ऩौढ़ते, ऩरयभर अांग रगाम ।
ते सऩने दीसे नहीां, दे खत गमे बफराम ॥ 808 ॥
ऊजर ऩीहने काऩड़ा, ऩान-सऩ
ु ायी खाम ।
कफीय गर
ु की बजक्त बफन, फाूँधा जभऩयु जाम ॥ 809 ॥
कुर कयनी के कायने, ठढग ही यठहगो याभ ।
कुर काकी राजज ह़ै , जफ जभकी धभ
ू धाभ ॥ 810 ॥
कुर कयनी के कायने, हां सा गमा बफगोम ।
तफ कुर काको राजज ह़ै , चाफकय ऩाूँव का होम ॥ 811 ॥
भैं भेयी तू जानन कय़ै , भेयी भूर बफनास ।
भेयी ऩग का ऩ़ैखड़ा, भेयी गर की पाूँस ॥ 812 ॥
ज्मों कोयी ये जा फुऩै, नीया आव़ै छौय ।
ऐसा रेखा भीच का, दौरय सक़ै तो दौय ॥ 813 ॥
इत ऩय धय उत ह़ै धया, फननजन आमे हाथ ।
कयभ कयीना फेगच के, उठि करय चारो काट ॥ 814 ॥
जजसको यहना उतघया, सो क्मों जोड़े सभत्र ।
ज़ैसे ऩय घय ऩाहुना, यह़ै उिामे गचत्त ॥ 815 ॥
भेया सांगी कोई नहीां, सफ़ै स्वायथी रोम ।
भन ऩयतीत न ऊऩज़ै, जजम ववस्वाम न होम ॥ 816 ॥
भैं बौंयो तोठह फयजजमा, फन फन फास न रेम ।
अटकेगा कहुूँ फेसर भें , तड़फप- तड़फप जजम दे म ॥ 817 ॥
दीन गूँवामो दनू न सांग, दन
ु ी न चरी साथ ।
ऩाूँच कुल्हाड़ी भारयमा, भूयख अऩने हाथ ॥ 818 ॥
तू भनत जाऩै फावये , भेया ह़ै मह कोम ।
प्रान वऩण्ड सो फूँगध यहा, सो नठहां अऩना होम ॥ 819 ॥
मा भन गठह जो गथय यह़ै , गहयी धन
ू ी गाडड़ ।
चरती बफयमाूँ उठि चरा, हस्ती घोड़ा छाडड़ ॥ 820 ॥
तन सयाम भन ऩाहर, भनसा उतयी आम ।
कोई काहू का ह़ै नहीां, दे खा िोंफक फजाम ॥ 821 ॥
डय कयनी डय ऩयभ गरु
ु , डय ऩायस डय साय ।
डयत यह़ै सो ऊफये , गाफपर खाई भाय ॥ 822 ॥
बम से बजक्त कय़ै सफ़ै, बम से ऩूजा होम ।
बम ऩायस ह़ै जीव को, ननयबम होम न कोम ॥ 823 ॥
बम बफन बाव न ऊऩज़ै, बम बफन होम न प्रीनत ।
जफ ठहयद़ै से बम गमा, सभटी सकर यस यीनत ॥ 824 ॥
कार चक्र चक्की चऱै, फहुत ठदवस औ यात ।
सग
ु न अगन
ु दोउ ऩाटरा, ताभें जीव वऩसात ॥ 825 ॥
फायी-फायी आऩने, चरे वऩमाये भीत ।
तेयी फायी जीमया, ननमये आव़ै नीत ॥ 826 ॥
एक ठदन ऐसा होमगा, कोम काहु का नाठहां ।
घय की नायी को कह़ै , तन की नायी जाठहां ॥ 827 ॥
फ़ैर गढ़न्ता नय, चक
ू ा सीांग र ऩूँछ
ू ।
एकठहां गुरुूँ के ऻान बफन,ु गधक दाढ़ी गधक भूँछ
ू ॥ 828 ॥
मह बफरयमाूँ तो फपय नहीां, भनभें दे ख ववचाय ।
आमा राबठहां कायऩै, जनभ जुवा भनत हाय ॥ 829 ॥
खरक सभरा खारी हुआ, फहुत फकमा फकवाद ।
फाूँझ ठहराव़ै ऩारना, ताभें कौन सवाद ॥ 830 ॥
चरे गमे सो ना सभरे, फकसको ऩूछूूँ जात ।
भात-वऩता-सुत फान्धवा, झूिा सफ सांघात ॥ 831 ॥
ववषम वासना उयझझकय जनभ गूँवाम जाद ।
अफ ऩनछतावा क्मा कये , ननज कयनी कय माद ॥ 832 ॥

हे भनतहीनी भाछीयी! याझख न सकी शयीय ।


सो सयवय सेवा नहीां , जार कार नठहां कीय ॥ 833 ॥
भछयी मह छोड़ी नहीां, धीभय तेयो कार ।
जजठह जजठह डाफय धय कयो, तहूँ तहूँ भेरे जार ॥ 834 ॥
ऩयदा यहती ऩदसु भनी, कयती कुर की कान ।
घड़ी जु ऩहुूँची कार की, छोड़ बई भ़ैदान ॥ 835 ॥
जागो रोगों भत सुवो, ना करूँ नीांद से प्माय ।
ज़ैसा सऩना य़ै न का, ऐसा मह सांसाय ॥ 836 ॥
क्मा करयमे क्मा जोडड़मे, तोड़े जीवन काज ।
छाडड़ छाडड़ सफ जात ह़ै , दे ह गेह धन याज ॥ 837 ॥
जजन घय नौफत फाजती, होत छतीसों याग ।
सो घय बी खारी ऩड़े, फ़ैिने रागे काग ॥ 838 ॥
कफीय कामा ऩाहुनी, हां स फटाऊ भाठहां ।
ना जानांू कफ जामगा, भोठह बयोसा नाठहां ॥ 839 ॥
जो तू ऩया ह़ै पांद भें ननकसेगा कफ अांध ।
भामा भद तोकूँू चढ़ा, भत बर
ू े भनतभांद ॥ 840 ॥
अठहयन की चोयी कय़ै , कय़ै सई
ु का दान ।
ऊूँचा चठढ़ कय दे खता, केनतक दरु य ववभान ॥ 841 ॥
नय नायामन रऩ ह़ै , तू भनत सभझे दे ह ।
जो सभझ़ै तो सभझ रे, खरक ऩरक भें खोह ॥ 842 ॥
भन भुवा भामा भुई, सांशम भुवा शयीय ।
अववनाशी जो न भये , तो क्मों भये कफीय ॥ 843 ॥
भरूँ- भरूँ सफ कोइ कह़ै , भेयी भय़ै फराम ।
भयना था तो भरय चक
ु ा, अफ को भयने जाम ॥ 844 ॥
एक फून्द के कायने, योता सफ सांसाय ।
अनेक फून्द खारी गमे, नतनका नहीां ववचाय ॥ 845 ॥
सभुझामे सभुझे नहीां, धये फहुत असबभान ।
गुरु का शब्द उछे द ह़ै , कहत सकर हभ जान ॥ 846 ॥
याज ऩाट धन ऩामके, क्मों कयता असबभान ।
ऩड़ोसी की जो दशा, बई सो अऩनी जान ॥ 847 ॥
भूयख शब्द न भानई, धभम न सुऩै ववचाय ।
सत्म शब्द नठहां खोजई, जाव़ै जभ के द्वाय ॥ 848 ॥
चेत सवेये फाचये , फपय ऩाछे ऩनछताम ।
तोको जाना दयू ह़ै , कहैं कफीय फुझाम ॥ 849 ॥
क्मों खोवे नयतन वथ
ृ ा, ऩरय ववषमन के साथ ।
ऩाूँच कुल्हाड़ी भायही, भूयख अऩने हाथ ॥ 850 ॥
आूँझख न दे खे फावया, शब्द सुऩै नठहां कान ।
ससय के केस उज्ज्वर बमे, अफहु ननऩट अजान ॥ 851 ॥
ऻानी होम सो भानही, फझ
ू ़ै शब्द हभाय ।
कहैं कफीय सो फाूँगच ह़ै , औय सकर जभधाय ॥ 852 ॥
॥ कार के ववषम भे दोहे ॥
जोफन सभकदायी तजी, चरी ननशान फजाम ।
ससय ऩय सेत ससयामचा ठदमा फुढ़ाऩ़ै आम ॥ 853 ॥
कफीय टुक-टुक चोंगता, ऩर-ऩर गमी बफहाम ।
जजव जांजारे ऩडड़ यहा, ठदमया दभभा आम ॥ 854 ॥
झूिे सुख को सुख कह़ै , भानत ह़ै भन भोद ।
जगत ् चफ़ैना कार का, कछु भूिी कछु गोद ॥ 855 ॥
कार जीव को ग्रासई, फहुत कह्मो सभुझाम ।
कहैं कफीय भें क्मा करूँ, कोई नहीां ऩनतमाम ॥ 856 ॥
ननश्चम कार गयासही, फहुत कहा सभुझाम ।
कहैं कफीय भैं का कहूूँ, दे खत न ऩनतमाम ॥ 857 ॥
जो उग़ै तो आथव़ै, पूऱै सो कुजम्हराम ।
जो चन
ु े सो ढ़ठह ऩड़़ै, जनभें सो भरय जाम ॥ 858 ॥
कुशर-कुशर जो ऩूछता, जग भें यहा न कोम ।
जया भुई न बम भुवा, कुशर कहाूँ ते होम ॥ 859 ॥
जया श्वान जोफन ससा, कार अहे यी ननत्त ।
दो फ़ैयी बफच झोंऩड़ा कुशर कहाूँ सो सभत्र ॥ 860 ॥
बफरयमा फीती फर घटा, केश ऩरठट बमे औय ।
बफगया काज सूँबारय रे, करय छूटने की िौय ॥ 861 ॥
मह जीव आमा दयू ते, जाना ह़ै फहु दयू ।
बफच के फासे फसस गमा, कार यहा ससय ऩयू ॥ 862 ॥
कफीय गाफपर क्मों फपय़ै क्मा सोता घनघोय ।
तेये ससयाने जभ खड़ा, ज्मूँू अूँगधमाये चोय ॥ 863 ॥
कफीय ऩगया दयू ह़ै , फीच ऩड़ी ह़ै यात ।
न जानों क्मा होमेगा, ऊगन्ता ऩयबात ॥ 864 ॥
कफीय भजन्दय आऩने, ननत उठि कयता आर ।
भयहट दे खी डयऩता, चौडढ़े दीमा डार ॥ 865 ॥
धयती कयते एक ऩग, सभुांद्र कयते पार ।
हाथों ऩयफत रौरते, ते बी खामे कार ॥ 866 ॥
आस ऩास जोधा खड़े, सफ़ै फजाव़ै गार ।
भांझ भहर से रे चरा, ऐसा ऩयफर कार ॥ 867 ॥
चहुूँ ठदसस ऩाका कोट था, भजन्दय नगय भझाय ।
झखयकी झखयकी ऩाहर, गज फन्दा दयफाय ॥

चहुूँ ठदसस िाढ़े सूयभा, हाथ सरमे हागथमाय ।


सफही मह तन दे खता, कार रे गमा भात ॥ 868 ॥
हभ जाने थे खामेंगे, फहुत जजसभ फहु भार ।
ज्मों का त्मों ही यठह गमा, ऩकरय रे गमा कार ॥ 869 ॥
काची कामा भन अगथय, गथय गथय कभम कयन्त ।
ज्मों-ज्मों नय ननधड़क फपय़ै , त्मों-त्मों कार हसन्त ॥ 870 ॥
हाथी ऩयफत पाड़ते, सभुन्दय छूट बयाम ।
ते भुननवय धयती गरे, का कोई गयफ कयाम ॥ 871 ॥
सांस़ै कार शयीय भें , ववषभ कार ह़ै दयू ।
जाको कोई जाने नहीां, जारय कय़ै सफ धयू ॥ 872 ॥
फारऩना बोरे गमा, औय जुवा भहभांत ।
वि
ृ ऩने आरस गमो, चरा जयन्ते अन्त ॥ 873 ॥
फेटा जामे क्मा हुआ, कहा फजाव़ै थार ।
आवन-जावन होम यहा, ज्मों कीड़ी का नार ॥ 874 ॥

ताजी छूटा शहय ते, कसफे ऩड़ी ऩुकाय ।


दयवाजा जड़ा ही यहा, ननकस गमा असवाय ॥ 875 ॥
खसु र खेरो सांसाय भें , फाूँगध न सक्क़ै कोम ।
घाट जगाती क्मा कय़ै , ससय ऩय ऩोट न होम ॥ 876 ॥
घाट जगाती धभमयाम, गुरुभुख रे ऩठहचान ।
छाऩ बफना गुरु नाभ के, साकट यहा ननदान ॥ 877 ॥
सांस़ै कार शयीय भें , जारय कय़ै सफ धरू य ।
कार से फाांचे दास जन जजन ऩ़ै द्दार हुजूय ॥ 878 ॥
ऐसे साूँच न भानई, नतरकी दे खो जाम ।
जारय फारय कोमरा कये , जभते दे खा सोम ॥ 879 ॥
जारय फारय सभस्सी कये , सभस्सी करय ह़ै छाय ।
कहैं कफीय कोइरा कय़ै , फपय द़ै द़ै औताय ॥ 880 ॥
कार ऩाम जफ ऊऩजो, कार ऩाम सफ जाम ।
कार ऩाम सबफ बफननश ह़ै , कार कार कहूँ खाम ॥ 881 ॥
ऩात झयन्ता दे झख के, हूँसती कूऩसरमाूँ ।
हभ चारे तु भचासरहौं, धीयी फाऩसरमाूँ ॥ 882 ॥
पागन
ु आवत दे झख के, भन झयू े फनयाम ।
जजन डारी हभ केसर, सो ही ब्मोये जाम ॥ 883 ॥
भस्
ू मा डयऩैं कार सों, कठिन कार को जोय ।
स्वगम बसू भ ऩातार भें जहाूँ जावूँ तहूँ गोय ॥ 884 ॥
सफ जग डयऩ़ै कार सों, ब्रह्भा, ववष्णु भहे श ।
सयु नय भनु न औ रोक सफ, सात यसातर सेस ॥ 885॥
कफीया ऩगया दरू य ह़ै , आम ऩहुूँची साूँझ ।
जन-जन को भन याखता, वेश्मा यठह गमी फाूँझ ॥ 886 ॥
जाम झयोखे सोवता, पूरन सेज बफछाम ।
सो अफ कहूँ दीस़ै नहीां, नछन भें गमो फोराम ॥ 887 ॥
कार फपये ससय ऊऩय़ै , हाथों धयी कभान ।
कहैं कफीय गहु ऻान को, छोड़ सकर असबभान ॥ 888 ॥
कार कार सफ कोई कह़ै , कार न चीन्ह़ै कोम ।
जेती भन की कल्ऩना, कार कहव़ै सोम ॥ 889 ॥
॥ उऩदे श ॥

कार काभ तत्कार ह़ै , फयु ा न कीज़ै कोम ।


बरे बरई ऩे रह़ै , फयु े फयु ाई होम ॥ 890 ॥
कार काभ तत्कार ह़ै , फयु ा न कीज़ै कोम ।
अनफोवे रन
ु ता नहीां, फोवे रन
ु ता होम ॥ 891 ॥
रेना ह़ै सो जल्द रे, कही सन
ु ी भान ।
कहीां सुनी जुग जुग चरी, आवागभन फूँधान ॥ 892 ॥
खाम-ऩकाम रुटाम के, करय रे अऩना काभ ।
चरती बफरयमा ये नया, सांग न चरे छदाभ ॥ 893 ॥
खाम-ऩकाम रुटाम के, मह भनुवा सभजभान ।
रेना होम सो रेई रे, मही गोम भ़ैदान ॥ 894 ॥
गाूँठि होम सो हाथ कय, हाथ होम सी दे ह ।
आगे हाट न फाननमा, रेना होम सो रेह ॥ 895 ॥
दे ह खेह खोम जामगी, कौन कहे गा दे ह ।
ननश्चम कय उऩकाय ही, जीवन का पर मेह ॥ 896 ॥
कह़ै कफीय दे म तू, सफ रग तेयी दे ह ।
दे ह खेह होम जामगी, कौन कहे गा दे ह ॥ 897 ॥
दे ह धये का गन
ु मही, दे ह दे ह कछु दे ह ।
फहुरय न दे ही ऩाइमे, अकी दे ह सद
ु े ह ॥ 898 ॥
सह ही भें सत फाटई, योटी भें ते टूक ।

कहैं कफीय ता दास को, कफहुूँ न आवे चक


ू ॥ 899 ॥
कहते तो कठह जान दे , गुरु की सीख तु रेम ।
साकट जन औ श्वान को, पेरय जवाफ न दे म ॥ 900 ॥

हस्ती चठढ़मे ऻान की, सहज दर


ु ीचा डाय ।
श्वान रऩ सांसाय ह़ै , बक
ू न दे झक भाय ॥ 901 ॥
मा दनु नमा दो योज की, भत कय मा सो हे त ।
गुरु चयनन गचत राइमे, जो ऩूयन सुख हे त ॥ 902 ॥
कफीय मह तन जात ह़ै , सको तो याखु फहोय ।
खारी हाथों वह गमे, जजनके राख कयोय ॥ 903 ॥
सयगुन की सेवा कयो, ननयगुन का कयो ऻान ।
ननयगुन सयगुन के ऩये , तहीां हभाया ध्मान ॥ 904 ॥
घन गयज़ै, दासभनन दभक़ै, फूँद
ू ैं फयसैं, झय राग गए।
हय तराफ भें कभर झखरे, तहाूँ बानु ऩयगट बमे॥ 905 ॥
क्मा काशी क्मा ऊसय भगहय, याभ हृदम फस भोया।
जो कासी तन तज़ै कफीया, याभे कौन ननहोया ॥ 906 ॥

दख
ु भें सुभरयन सफ कये , सुख भे कये न कोम ।
जो सुख भे सुभरयन कये , दख
ु काहे को होम ॥ 1 ॥
नतनका कफहुूँ ना ननांठदमे, जो ऩाूँव तरे होम ।
कफहुूँ उड़ आूँखो ऩड़े, ऩीय घानेयी होम ॥ 2 ॥
भारा पेयत जुग बमा, फपया न भन का पेय ।
कय का भन का डाय दें , भन का भनका पेय ॥ 3 ॥
गुरु गोववन्द दोनों खड़े, काके रागूां ऩाूँम ।
फसरहायी गुरु आऩनो, गोववांद ठदमो फताम ॥ 4 ॥
फसरहायी गुरु आऩनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ फाय ।
भानष
ु से दे वत फकमा कयत न रागी फाय ॥ 5 ॥
कफीया भारा भनठह की, औय सांसायी बीख ।
भारा पेये हरय सभरे, गरे यहट के दे ख ॥ 6 ॥
सख
ु भे ससु भयन ना फकमा, द:ु ख भें फकमा माद ।
कह कफीय ता दास की, कौन सन
ु े परयमाद ॥ 7 ॥
साईं इतना दीजजमे, जा भे कुटुभ सभाम ।
भैं बी बख
ू ा न यहूूँ, साधु ना बख
ू ा जाम ॥ 8 ॥
रूट सके तो रूट रे, याभ नाभ की रूट ।
ऩाछे फपये ऩछताओगे, प्राण जाठहां जफ छूट ॥ 9 ॥
जानत न ऩूछो साधु की, ऩूनछ रीजजए ऻान ।
भोर कयो तरवाय का, ऩड़ा यहन दो म्मान ॥ 10 ॥
जहाूँ दमा तहाूँ धभम ह़ै , जहाूँ रोब तहाूँ ऩाऩ ।
जहाूँ क्रोध तहाूँ ऩाऩ ह़ै , जहाूँ ऺभा तहाूँ आऩ ॥ 11 ॥
धीये -धीये ये भना, धीये सफ कुछ होम ।
भारी सीांचे सौ घड़ा, कतु आए पर होम ॥ 12 ॥
कफीया ते नय अन्ध ह़ै , गुरु को कहते औय ।
हरय रिे गुरु िौय ह़ै , गुरु रुि़ै नहीां िौय ॥ 13 ॥
ऩाूँच ऩहय धन्धे गमा, तीन ऩहय गमा सोम ।
एक ऩहय हरय नाभ बफन, भुजक्त क़ैसे होम ॥ 14 ॥
कफीया सोमा क्मा कये , उठि न बजे बगवान ।
जभ जफ घय रे जामेंगे, ऩड़ी यहे गी म्मान ॥ 15 ॥
शीरवन्त सफसे फड़ा, सफ यतनन की खान ।
तीन रोक की सम्ऩदा, यही शीर भें आन ॥ 16 ॥
भामा भयी न भन भया, भय-भय गए शयीय ।
आशा तष्ृ णा न भयी, कह गए दास कफीय ॥ 17 ॥
भाटी कहे कुम्हाय से, तु क्मा यौंदे भोम ।
एक ठदन ऐसा आएगा, भैं यौंदां ग
ू ी तोम ॥ 18 ॥
यात गांवाई सोम के, ठदवस गांवामा खाम ।
हीना जन्भ अनभोर था, कोड़ी फदरे जाम ॥ 19 ॥
नीांद ननशानी भौत की, उि कफीया जाग ।
औय यसामन छाांडड़ के, नाभ यसामन राग ॥ 20 ॥
जो तोकु काांटा फुवे, ताठह फोम तू पूर ।
तोकू पूर के पूर ह़ै , फाकू ह़ै बत्रशर
ू ॥ 21 ॥
दर
ु ब
म भानष
ु जन्भ ह़ै , दे ह न फायम्फाय ।
तरुवय ज्मों ऩत्ती झड़े, फहुरय न रागे डाय ॥ 22 ॥

आम हैं सो जाएूँगे, याजा यां क पकीय ।


एक ससांहासन चठढ़ चरे, एक फूँधे जात जांजीय ॥ 23 ॥
कार कये सो आज कय, आज कये सो अफ ।
ऩर भें प्ररम होएगी, फहुरय कये गा कफ ॥ 24 ॥
भाूँगन भयण सभान ह़ै , भनत भाूँगो कोई बीख ।
भाूँगन से तो भयना बरा, मह सतगुरु की सीख ॥ 25 ॥
जहाूँ आऩा तहाूँ आऩदाां, जहाूँ सांशम तहाूँ योग ।
कह कफीय मह क्मों सभटे , चायों धीयज योग ॥ 26 ॥
भामा छामा एक सी, बफयरा जाने कोम ।
बगता के ऩीछे रगे, सम्भुख बागे सोम ॥ 27 ॥
आमा था फकस काभ को, तु सोमा चादय तान ।
सयु त सम्बार ए गाफपर, अऩना आऩ ऩहचान ॥ 28 ॥
क्मा बयोसा दे ह का, बफनस जात नछन भाांह ।
साूँस-साांस ससु भयन कयो औय मतन कुछ नाांह ॥ 29 ॥
गायी ही सों ऊऩजे, करह कष्ट औय भीांच ।
हारय चरे सो साधु ह़ै , रागग चरे सो नीांच ॥ 30 ॥
दफ
ु र
म को न सताइए, जाफक भोटी हाम ।
बफना जीव की हाम से, रोहा बस्भ हो जाम ॥ 31 ॥
दान ठदए धन ना घते, नदी ने घटे नीय ।
अऩनी आूँखों दे ख रो, मों क्मा कहे कफीय ॥ 32 ॥
दस द्वाये का वऩांजया, ताभे ऩांछी का कौन ।
यहे को अचयज ह़ै , गए अचम्बा कौन ॥ 33 ॥
ऐसी वाणी फोरेए, भन का आऩा खोम ।
औयन को शीतर कये , आऩहु शीतर होम ॥ 34 ॥
हीया वहाूँ न खोसरमे, जहाूँ कांु जड़ों की हाट ।
फाांधो चऩ
ु की ऩोटयी, रागहु अऩनी फाट ॥ 35 ॥
कुठटर वचन सफसे फुया, जारय कय तन हाय ।
साधु वचन जर रऩ, फयसे अभत
ृ धाय ॥ 36 ॥
जग भें फ़ैयी कोई नहीां, जो भन शीतर होम ।
मह आऩा तो ड़ार दे , दमा कये सफ कोम ॥ 37 ॥
भैं योऊूँ जफ जगत को, भोको योवे न होम ।
भोको योफे सोचना, जो शब्द फोम की होम ॥ 38 ॥
सोवा साधु जगाइए, कये नाभ का जाऩ ।
मह तीनों सोते बरे, साफकत ससांह औय साूँऩ ॥ 39 ॥
अवगुन कहूूँ शयाफ का, आऩा अहभक साथ ।
भानुष से ऩशुआ कये दाम, गाूँि से खात ॥ 40 ॥
फाजीगय का फाांदया, ऐसा जीव भन के साथ ।
नाना नाच ठदखाम कय, याखे अऩने साथ ॥ 41 ॥
अटकी बार शयीय भें तीय यहा ह़ै टूट ।
चम्
ु फक बफना ननकरे नहीां कोठट ऩटन को फूट ॥ 42 ॥
कफीया जऩना काि की, क्मा ठदख्रावे भोम ।
ह्रदम नाभ न जऩेगा, मह जऩनी क्मा होम ॥ 43 ॥
ऩनतवत
ृ ा भ़ैरी, कारी कुचर कुरऩ ।
ऩनतवत
ृ ा के रऩ ऩय, वायो कोठट सरऩ ॥ 44 ॥

फ़ैध भआ
ु योगी भआ
ु , भआ
ु सकर सांसाय ।
एक कफीया ना भआ
ु , जेठह के याभ अधाय ॥ 45 ॥
हय चारे तो भानव, फेहद चरे सो साध ।
हद फेहद दोनों तजे, ताको बता अगाध ॥ 46 ॥
याभ यहे फन बीतये गुरु की ऩूजा ना आस ।
यहे कफीय ऩाखण्ड सफ, झूिे सदा ननयाश ॥ 47 ॥
जाके जजव्मा फन्धन नहीां, ह्र्दम भें नहीां साूँच ।
वाके सांग न रागगमे, खारे वठटमा काूँच ॥ 48 ॥
तीयथ गमे ते एक पर, सन्त सभरे पर चाय ।
सत्गुरु सभरे अनेक पर, कहें कफीय ववचाय ॥ 49 ॥
सुभयण से भन राइए, ज़ैसे ऩानी बफन भीन ।
प्राण तजे बफन बफछड़े, सन्त कफीय कह दीन ॥ 50 ॥
सभझामे सभझे नहीां, ऩय के साथ बफकाम ।
भैं खीांचत हूूँ आऩके, तू चरा जभऩयु जाए ॥ 51 ॥
हां सा भोती ववण्न्मा, कुञ्चच्न थाय बयाम ।
जो जन भागम न जाने, सो नतस कहा कयाम ॥ 52 ॥
कहना सो कह ठदमा, अफ कुछ कहा न जाम ।
एक यहा दज
ू ा गमा, दरयमा रहय सभाम ॥ 53 ॥
वस्तु ह़ै ग्राहक नहीां, वस्तु सागय अनभोर ।
बफना कयभ का भानव, फपयैं डाांवाडोर ॥ 54 ॥
करी खोटा जग आांधया, शब्द न भाने कोम ।
चाहे कहूँ सत आइना, जो जग फ़ैयी होम ॥ 55 ॥
काभी, क्रोधी, रारची, इनसे बजक्त न होम ।
बजक्त कये कोइ सूयभा, जानत वयन कुर खोम ॥ 56 ॥
जागन भें सोवन कये , साधन भें रौ राम ।
सूयत डोय रागी यहे , ताय टूट नाठहां जाम ॥ 57 ॥
साधु ऐसा चठहए ,ज़ैसा सूऩ सुबाम ।
साय-साय को गठह यहे , थोथ दे इ उड़ाम ॥ 58 ॥
रगी रग्न छूटे नाठहां, जीब चोंच जरय जाम ।
भीिा कहा अांगाय भें , जाठह चकोय चफाम ॥ 59 ॥
बजक्त गें द चौगान की, बावे कोई रे जाम ।
कह कफीय कुछ बेद नाठहां, कहाां यां क कहाां याम ॥ 60 ॥
घट का ऩयदा खोरकय, सन्भुख दे दीदाय ।
फार सनेही साांइमाूँ, आवा अन्त का माय ॥ 61 ॥
अन्तमामभी एक तुभ, आत्भा के आधाय ।
जो तुभ छोड़ो हाथ तो, कौन उताये ऩाय ॥ 62 ॥
भैं अऩयाधी जन्भ का, नख-ससख बया ववकाय ।
तुभ दाता द:ु ख बांजना, भेयी कयो सम्हाय ॥ 63 ॥
प्रेभ न फड़ी ऊऩज़ै, प्रेभ न हाट बफकाम ।
याजा-प्रजा जोठह रुचें , शीश दे ई रे जाम ॥ 64 ॥
प्रेभ प्मारा जो वऩमे, शीश दक्षऺणा दे म ।
रोबी शीश न दे सके, नाभ प्रेभ का रेम ॥ 65 ॥
ससु भयन भें भन राइए, ज़ैसे नाद कुयां ग ।
कहैं कफीय बफसये नहीां, प्रान तजे तेठह सांग ॥ 66 ॥
सुभरयत सुयत जगाम कय, भुख के कछु न फोर ।
फाहय का ऩट फन्द कय, अन्दय का ऩट खोर ॥ 67 ॥
छीय रऩ सतनाभ ह़ै , नीय रऩ व्मवहाय ।
हां स रऩ कोई साधु ह़ै , सत का छाननहाय ॥ 68 ॥
ज्मों नतर भाांही तेर ह़ै , ज्मों चकभक भें आग ।
तेया साांई तझ
ु भें , फस जाग सके तो जाग ॥ 69 ॥
जा कयण जग ढ़ूँू ठढ़मा, सो तो घट ही भाांठह ।
ऩयदा ठदमा बयभ का, ताते सझ
ू े नाठहां ॥ 70 ॥
जफही नाभ ठहयदे घया, बमा ऩाऩ का नाश ।
भानो गचांगयी आग की, ऩयी ऩुयानी घास ॥ 71 ॥
नहीां शीतर ह़ै चन्द्रभा, ठहांभ नहीां शीतर होम ।
कफीया शीतर सन्त जन, नाभ सनेही सोम ॥ 72 ॥
आहाय कये भन बावता, इांदी फकए स्वाद ।
नाक तरक ऩूयन बये , तो का कठहए प्रसाद ॥ 73 ॥
जफ रग नाता जगत का, तफ रग बजक्त न होम ।
नाता तोड़े हरय बजे, बगत कहावें सोम ॥ 74 ॥
जर ज्मों प्माया भाहयी, रोबी प्माया दाभ ।
भाता प्माया फायका, बगनत प्माया नाभ ॥ 75 ॥
ठदर का भयहभ ना सभरा, जो सभरा सो गजी ।
कह कफीय आसभान पटा, क्मोंकय सीवे दजी ॥ 76 ॥
फानी से ऩह्चाननमे, साभ चोय की घात ।
अन्दय की कयनी से सफ, ननकरे भूँह
ु कई फात ॥ 77 ॥
जफ रगग बगनत सकाभ ह़ै , तफ रग ननष्पर सेव ।
कह कफीय वह क्मों सभरे, ननष्काभी तज दे व ॥ 78 ॥
पूटी आूँख वववेक की, रखे ना सन्त असन्त ।
जाके सांग दस-फीस हैं, ताको नाभ भहन्त ॥ 79 ॥
दामा बाव ह्र्दम नहीां, ऻान थके फेहद ।
ते नय नयक ही जामेंगे, सनु न-सनु न साखी शब्द ॥ 80 ॥
दामा कौन ऩय कीजजमे, का ऩय ननदम म होम ।
साांई के सफ जीव ह़ै , कीयी कांु जय दोम ॥ 81 ॥
जफ भैं था तफ गरु
ु नहीां, अफ गरु
ु हैं भैं नाम ।
प्रेभ गरी अनत साूँकयी, ता भे दो न सभाम ॥ 82 ॥
नछन ही चढ़े नछन ही उतये , सो तो प्रेभ न होम ।
अघट प्रेभ वऩांजये फसे, प्रेभ कहावे सोम ॥ 83 ॥
जहाूँ काभ तहाूँ नाभ नठहां, जहाूँ नाभ नठहां वहाूँ काभ ।
दोनों कफहूूँ नठहां सभरे, यवव यजनी इक धाभ ॥ 84 ॥
कफीया धीयज के धये , हाथी भन बय खाम ।
टूट एक के कायने, स्वान घय़ै घय जाम ॥ 85 ॥
ऊूँचे ऩानी न ठटके, नीचे ही िहयाम ।
नीचा हो सो बरयए वऩए, ऊूँचा प्मासा जाम ॥ 86 ॥
सफते रघुताई बरी, रघुता ते सफ होम ।
जौसे दज
ू का चन्द्रभा, शीश नवे सफ कोम ॥ 87 ॥
सांत ही भें सत फाांटई, योटी भें ते टूक ।
कहे कफीय ता दास को, कफहूूँ न आवे चक
ू ॥ 88 ॥

भागम चरते जो गगया, ताकों नाठह दोष ।


मह कबफया फ़ैिा यहे , तो ससय कयड़े दोष ॥ 89 ॥
जफ ही नाभ ह्रदम धयमो, बमो ऩाऩ का नाश ।
भानो गचनगी अजग्न की, ऩरय ऩयु ानी घास ॥ 90 ॥
कामा कािी कार घन
ु , जतन-जतन सो खाम ।
कामा व़ैध ईश फस, भभम न काहू ऩाम ॥ 91 ॥
सख
ु सागय का शीर ह़ै , कोई न ऩावे थाह ।
शब्द बफना साधु नही, द्रव्म बफना नहीां शाह ॥ 92 ॥
फाहय क्मा ठदखराए, अनन्तय जवऩए याभ ।
कहा काज सांसाय से, तझ
ु े धनी से काभ ॥ 93 ॥
पर कायण सेवा कये , कये न भन से काभ ।
कहे कफीय सेवक नहीां, चह़ै चौगुना दाभ ॥ 94 ॥
तेया साूँई तुझभें , ज्मों ऩहुऩन भें फास ।
कस्तूयी का ठहयन ज्मों, फपय-फपय ढ़ूँू ढ़त घास ॥ 95 ॥
कथा-कीतमन कुर ववशे, बवसागय की नाव ।
कहत कफीया मा जगत भें नाठह औय उऩाव ॥ 96 ॥
कबफया मह तन जात ह़ै , सके तो िौय रगा ।
क़ै सेवा कय साधु की, क़ै गोववांद गुन गा ॥ 97 ॥
तन फोहत भन काग ह़ै , रऺ मोजन उड़ जाम ।
कफहु के धभम अगभ दमी, कफहुां गगन सभाम ॥ 98 ॥
जहूँ गाहक ता हूूँ नहीां, जहाूँ भैं गाहक नाूँम ।
भयू ख मह बयभत फपये , ऩकड़ शब्द की छाूँम ॥ 99 ॥

कहता तो फहुत सभरा, गहता सभरा न कोम ।


सो कहता वह जान दे , जो नठहां गहता होम ॥ 100 ॥

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