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ै न का सफर

े न म सफर करने का एक अलग ह मज़ा है | बचपन म े न से सफ़र करने क अलग ह उतावल होती थी
| दो दन पहले ह ब च क े न मे घम ू ने क रट लग जाती | आ खर ब चा कब तक ये बात अपने पेट मे
रखेगा? सहसा बाजू दक ु ान वाले ब नये को भी पता लग जाता, क स पण
ू प रवार बाहर जा रहा है |
ब नया भी मन ह मन उस उ सक ु ता का आनंद लेता |
े न मै चढ़ने पर ब च का यान केवल खड़क वाल सीट पर लग जाता | उनक उस सीट पर बैठने क
रट तो वयं ाणदाता भी नह ं ठुकरा सकते | य द कोई यि त पहले से ह उस सीट पर बैठा है , तो
आ खर मे वह खद ु ह उस ब चे क मनोकामना पण ू कर दे ता |

परं तु समय अब बदल चक ु ा है । अब मझ ु मे वह पहले जैसी उतावल ना रह | अब लोग भी मझ ू े मासम



ब चे क तरह नह ं दे खगे, ना ह वो क णा दखाएंगे, जो कभी उस यारे ब चे पर दखाते थे।
समय बलवान है , प रवतन उसक वशेषता । बचपन क उ सक ु ता बचपन तक ह रहती है । वह इस लए
क बचपन म वह नयी पीड़ी अभी द ु नया क कठनाइय से अन भ है । उसके लए वह अभी मनोरं जन
है । हाँ, ै न मे सफर क इ छा अब मज़बरू मे बदल गयी है । कसी को काम पर पहुचने क मजबरू ,
कसी को शाद मे जाने क ख़श ु ी, या कसी को बन बल ु ाई मस
ु ीबत क मजबरू । मेरा भी सफर करने क
वजह कुछ बन बल ु ाई मजबरू ह है ।

आज दोपहर मे एक नई मस ु ीबत से प रचय हुआ। यह मस


ु ीबत ऐसी थी क जो टल न सकती थी।
मसु ीबत का हल घर जाकर ह होना था। अब या , शाम को लास छूटने के बाद म टे शन दौड़ा । ज द
नकलना पड़ा य क मेरे पास टकट न था। य द इस आप जनक परे शानी से मेरा प रचय एक दन
पहले हो जाता , तो मने त काल टकट करा ल होती।
टे शन आ गया, भा य से टकट लेने म समय न लगा। टकट बना रजवशन वाला था पर अब जाना तो
था ह ।

ै न आने पर म एक ड बे म चढ़ गया। खाल सीट मलने क तोह उ मीद न थी। थोड़ी दे र दरवाजे पे
खड़ा रहा। आधा घंटा बीतने के बाद अपना एहम जवाब दे ने लगा , और मने सोचा क अब कह टकने का
इंतज़ाम कर लेना चा हये। मेर नज़र उस गाड वाल सीट पर लगी थी , िजसपे दो मेर ह उ के लड़के
बैठे थे। एक टे शन आया, भा य से उनमे से एक उ र गया। थोड़ी दे र ै न चलने के बाद मने उस लड़के
को , इशारो से , थोड़ी सी जगह दे ने का आ ह कया। मेर सोच अनु प वह ख़श ु ी ख़शु ी थोड़ा सरक गया।
म उस थोड़ी सी जगह पे जम गया।

वह पे एक और स जन यि त था, जो कर ब हमारे पताजी क उ का होगा। दभ ु ागय से उसके दोन


हाथ के पंजे न थे। उसने मझ ु े पकु ारा "ओह भै
य ा!", मने अपने कान मई इयरफोन लगा रखे थे परं तु मझ
ु े
लगा कसी ने पक ु ारा । मेने दे खा वह यि त मझ ु े बल
ु ा रहा है । मेने बड़े सादर भाव से उसको दे खा। उसने
अपनी जेब से मोबाइल नकले हुए मेर तरफ उसे बड़ा के बोला क इसम इरफ़ान नाम के यि त का
नंबर लगा दो। मने वन ता से नंबर लगा दया। यि त ख़श ु ी से बात करने लगा , जब बात ख म हो
गयी तोह उसने मझ ु से पछ
ू ा क कहाँ रहते हो, मने कहा लखनऊ , उसने कहा यहाँ पढ़ने आय ह गे? मने
कहा हाँ।

मेरे सीट पर बाजु वाले लड़के को पास ह के सटे शन जाना था। उसने मझ
ु से मेरे बैठते ह पछ
ू ा क उसके
सटे शन पर केगा न? म जब तक उ र दे ता तब तक उन ् बड़े यि त ने उ र दे दया। वह बड़ा यि त
उस ै न के समय से काफ वा कफ था । उसे अपने टे शन से भी आगे अगले टे शन के पहुचने का व त
भी मालमू था। इस े न म कई बार सफर तोह मने भी कया है , पर तु मझ ु े अपने टे शन के अलावा कसी
और टे शन का कुछ याद ह नह ं रहता।

धीरे धीरे रात होने लगी। सय ू क अं तम करणे भी उस रात के जंतु ने नगल ल ं। ै न म लोगो का खान
पान शु हो गया। भोजन व त लोग अलग ह धा रखते ह। ड बा खलु ते ह वह घर के खाने क खु बू
परू ै न मई फेल जाती । भोजन वाला यि त कतनी आ मीयता से अपने ड बे को सजाकर, कतने
सक ु ू न से भोजन करता है । यह ये दे खकर मझ
ु े एक अलग ह ख़श ु ी होती है ।

समय और बीतने लगा लोग सोने क तैयार करने लगे, रजवशन वाले तोह सीट बछा के सोने लगे ,
परे शानी बना सीट वाल क शु हुई। परं तु वे भी तैयार थे। नीचे जमीन पर चादर बछा के सोने लगे।
उस व त मझ ु े दे श म 'बल
ु ेट े न' चलाये जाने क याद आगयी।

दस
ू र ओर से ट ट आते दखाई दे ख, मझ ु े परे शानी होने लगी। पता नह कतने का चन
ू ा लगेगा। काश
एक दन पहले पता लग गया होता तोह म गलत तर का न अपनाता।
ट ट आया, मझ ु े सीट भी दे द कुछ पैसे लेकर। आ खर मने गलत काम कर ह दया, पैसे दे कर । बस
सीट का लालच दे ख गया। जब म अपनी सीट पर गया तब मैने दे खा क एक लड़का वहां बैठा है , मन तोह
कया उसे भगा दँ ,ू फर मझु े अपनी कुछ शंड पहले क ि थ त याद गयी। म चप ु चाप बैठ गया।
लेटते ह मझ
ु े नीं द आ गयी। आँ
ख ख ल
ु ने पे मे र ा टे श न आ ह गया था।

- आयषु पी गु ता
(मई 2018)

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