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हरड
हरड
- सीमा गौतम
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आयुर्वेद के अनु सार हरड़ में लर्वण रस को छोड़कर शे ष सभी रस होते हैं । आजकल बाजार में ससर्फ
3 प्रकार की हरड़ ही उपलब्ध हैं - 1. बाल हरड़-इसे जर्वाहरड़ भी कहते हैं । 2. पीली हरड़, 3. बड़ी
हरड़। (इसे काबुली हरड़ भी कहते हैं ।) तीनोों प्रकार की हरड़ोों के गुण लगभग समान ही हैं । हरड़
का कच्चा और छोटा र्ल जब पेड़ से सगर जाता है , तब उसे छोटी हरड़ कहा जाता है । दर्वाई के
सलए प्राय: हरड़ के र्ल का सछलका ही उपयोग में लाया जाता है। हरड़ में मीठा, खट्टा, कडर्वा
(चरपरा), तीखा और (कसैला) ये 5 रस ही होते हैं ।
हरड़ के सेर्वन से र्वात, सपत्त और कर् असोंतुलन से पैदा हुए रोग-सर्वकार ठीक होते है । हरड़ आँ खोों
के सलए भी बहुत गुणकारी होती है । सूजन, पेट के रोग, अशफ , साों स के रोग र्व खाों सी में बहुत लाभप्रद
होती है । हरड़ के सेर्वन से उच्च रक्तचाप में बहुत लाभ होता है । हरड़, बहे ड़े और आों र्वलोों को कूट-
पीसकर बनाए गए “सिर्ला चूणफ’ के बहुत सारे औषधीय उपयोग है जो हम इसी पोस्ट में आगे
बतायेंगे।
साभार: www.healthbeautytips.co.in