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उच्छिष्ट गणपती ध्यान श्लोकानन

१. शरान् धनु: पाशस्तानन स्वहस्तै :


दधानमारक्त सरोरुहस्थम् |
नििस््र प्न्ाां सु रतप्रिृ त्तां
उच्छिष्टां अम्बासु तमाश्रये ऽहां ||

२. हस्तै : निभ्रतां इक्षु खण्ड िरदौ पशान्कुसौ पुष्कर |


स्पृष्ट स्वप्रमदा िराङ्गमनया स्पृषृम् स्वकां शोफसम् ||
श्यामाङ्ग्््या निधृ ताब्जया निनयनां चन्द्राधध चूडां जपा |
रक्तां हररथमुखां स्मरानम सततां भोगानतलोलां प्रभु म् ||

३. िामाङ्क्स्तकान्ाां कुचतटनिलसत् मौच्छक्तकोद्दामहाराां


िामेनानलङ्ग््य दोष्णा नचिु ककृतमुखां योननदे शे च शु ण्डाम् |
कृत्वामत्तेभलीलां करतल निलसत्पानपािाङ्ग््कुशादीां
िन्दे स्वनाध नभधानां गणपनतममलां िल्लभोच्छिष्टदे िम् ||

४. सान्द्रनसन्दू रनलप्ताङ्गां नग्ननारी मुखातु रां |


नारीयोनन मुखास्वाद लोलुपां काममोनहतां ||
स्विामाङ्कह्यथदाराणाां गाढानलङ्गन तत्परां |
स्वपादपद्म भक्तानाां अभीष्टफल दायकां ||
पललां चषकां पाशां अङ्ग््कुशां च दधानकां |
उच्छिष्टगणपतां ध्याये त् भक्थाभीष्ट प्रदायकम् ||

५. दे िम् िाल सहस्र भानु सदृशां मत्येभिक्त्राम्बु जां |


हस्ताभ्ाां चषकां पनििपललां धृ त्वा प्रभोदाच्छितां ||
मत्ताया स्मरगोहलग्न िदनां िामाङ्कगायामुदा |
उच्छिष्टाख्य गणे शमूनतध मरुणम् ननत्यांभजेऽहां प्रभु म् ||

६. जायानङ्गगृ हान्स्थ कराभ्ाां कुजपीनडतां


तत्करात्त महादण्डां गणानधपमहां भजे ||

७. चतु भुधजां रक्त्त्ततनुां निनेिां


पाशाङ्ग््कुशौ मोदक पाि दनथौ |
करै दध धानां सरसीरुहस्थां
उन्मत्तमुच्छिष्ट गणे समीडे ||

मूलमन्त्रानण

१. निाक्षरी - ॐ हच्छस्तनपशानचनलखे स्वाहा |

२. दशाक्षरी - ह्ी ां गां ह्ी ां िशमानय स्वाहा |

३. द्वादशाक्षरी - ॐ ह्ी ां गां हच्छस्थ नपशानचनलखे स्वाहा |


४. द्वानिम्शटक्षरी - ॐ क्ीां महारजत िल्लभोच्छिष्ट गणपतये
(रुद्रयामले) सिध रायाां धनमानय क्ोां धनां दे नह स्वाहा |

५. द्वानिम्शटक्षरी- ॐ हच्छस्थमुखाय लांिोदराय उच्छिष्ट महात्मने


आां क्ोां ह्ी ां क्ीां ह्ी ां हां घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा |

६. सप्तनिम्शदक्षरी - ॐ नमो भगिते एक दां ष्टराय हच्छस्तमुखाय लांिोदराय


उच्छिश्तमहात्मने आां क्ोां ह्ीां गां घे घे स्वाहा |

७. मालामन्त्र: - ॐ क्ीां महारजतिल्लभ स्वणाध कर लम्बोदर लम्बकणध दे िीयोननरे त: पङ्कािनलप्त शुण्डालगजानन


मनदरािासनासक्तहृदय निकटट्टहास उच्छिष्ट दे ि मम िाम मागाध नुसाररण: धनां दे नह धनां दे नह क्ोां
क्ौां पञ्चभे दनाजुज सिध रायाां मम िशांकुरु िशांकुरु मम शिू णाां नजह्ाां कीलय कीलय सकल जनान्
िशमानय िशमानय क्ाां क्ीां क्ूां क्ैं क्ौां क्: स्वाहा |
किचां

हङ्कारां मे नशर: पातु प्रोङ्कारां ह्ुदये ऽितु |


िाक्त्भिां च नशखाां पातु पातु फालां गणे श्वर: ||
नेियोश्व्र निणे िस्तु नानसकाां मे महे श्वर: |
ओष्ठौ पातु महाशूर: नचिु काां मूषिाहन: ||
कपोलौ पातु िीरे श: कण्ठां पातु निज्रुम्भण: |
िाह पातु पराभीनत धारनस्साङ्ग््गु ली तथा ||
उन्मत्त: पातु कुक्षी ां च कनटां पातु िशीकर: |
ननतम्बां पातु दै त्यारर: ऊरु पातु निनायक: ||
जानुनी पातु नग्नश्व्र गु ल्फदे शे हलायु ध: |
दां ष्टरान कारालिदन: रोमान् पातु ऊद्द्धिगोचरान् ||
रोमकूपाां स्तु कौिे र: द्वचां गौरीसु द प्रभु : |
रक्तमज्जािसामाां सान् अच्छस्थमेधाां श्व्रपािक: ||
अन्त: कालरािीस्तु मकुटां मकुटे श्वर : |
ज्वालामुखस्तथा ज्वालाां अभे द्व

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