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8/27/2018 dimostration in metallic alchemy: surya vigyan

SURYA VIGYAAN AND KAAL CHAKRA-सय


ू व ानं और काल च

ि नािभमती प ारे ष नेिम य या मके  l


संव सरमये कृ म् कालच म् िति तं ll
        तीन नािभय से यु है सूय के रथ का च ,अथात भूत भिव य और वतमान ये
तीनो काल ही सूय रथ च क तीन नािभ है,नािभ अथात जहाँ पंदन होता हो ाण
का lवेद मे काल को ाण ही तो कहा गया है l और सूय इन ाण का अिधपित है,अथात
जहाँ कालमयी दृि क बात आती हो या अपनी दृि को काल के परे ले जाकर ापकता
दान करनी हो तो सूय क साधना करनी ही पड़ेगी और उनके रह य को आ मसात
करना ही पड़ेगा l ब धा साधक के मन मे सू म शरीर िसि का सरलतम िवधान
जानने क बात आती है ,पर तु शा मे ऐसी कोई या प नह है ,िजसके मा यम से
सरलतापूवक थूल शरीर से सू म शरीर को थक कर उन गु और अनबुझे थान क
या ा क जा सके ,जहाँ आज भी ा य आ याि मक उजा िबखरी पड़ी है और जहाँ जन
सामा य के कदम पड ही नह सकते,इसिलए ये थान अबूझ ही रह गए ह और अबूझ रह
गयी है यहाँ पर द उजा क उ पि का रह य भी lजब िस मंडल से साधना मक
ान ाि क बात आती है तो हमारे चेहरे मा लटक ही सकते ह यूं क हमने कभी
सदगु देव क ापकता को समझा ही नह ,अ यथा उनसे सूय िव ानं के ऐसे ऐसे रह य
ा कये जा सकते थे जो क क पनातीत ही कहे जा सकते हl
 हमने मा पदाथ प रवतन को ही सूर िव ानं क मुख उपलि ध माना है और समझा
है पर तु हम ये नह जानते ह क ाण रह य को समझ लेने के बाद कसी भी लोक मे
गमन, ह पर िनयं ण और कुं डिलनी भेदन इ या द क ाि अ यिधक सरल हो जाती
है l सूय क स करण और उनके रं ग मे कुं डिलनी जागरण, काल-दृि क ाि और
ा ड के अबूझे रह य ह तामलकवत दृि गोचर होने लगते ह l स रं ग मे िबखरी
सूय क करण का सि मिलत प ेत है जो क ापकता का प रचायक है और
प रचायक है पूणता का भीl
भला कै से ???
या आप जानते ह क सूय के स रं ग से लोकानुलोक गमन का गहरा स ब ध है,
सिवता मं का मूल विन मे कया गया उ ारण आपके शरीर को अणु के प मे
िवखंिडत कर देता है और ये िवखंडन मनोवांिछत लोक मे प चकर वािपस अपना मूल
व प पा लेता है, अ सर ऐसे मे इन अणु के िबखर जाने का भय होता है पर तु सूय
िव ानं का अ येता ये भलीभांित जानता है क सूय ाण का प रचायक है ,अथात
ाणशि क सघनता और उससे ा बल,िवखंिडत अव था मे भी हमारे शरीर के
अणु को िबखरने से बचाए रखती है ,और अणु के चारो और एक आवरण बना देती
है िजसके कारण ांडीय या ा के म य शरीर के अणु कसी भी बा आघात से पूरी
तरह सुरि त रहते ह ,और उनक मनोवांिछत लोक मे जाकर साकार होने क कामना
मे कोई बाधा नह आती है ,और एक बार जब कोई मनोवांिछत लोक मे प च जाता है
तो वह देह वहाँ के वातावरण के अनुकूल बन जाती है और तब वहाँ के रह य और
िव ानं को समझना सहज हो जाता है l व तुतः सूय क करण के सात रं ग यथा
बैगनी,जामुनी,नीला,हरा ,पीला,नारं गी और लाल का स लोको से गहरा स ब ध है –
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8/27/2018 dimostration in metallic alchemy: surya vigyan

भू,भुवः , वः ,मह :,जनः,तपः और स यम, और इस स ब ध को ात करने के िलए हम


ेत क अथात आ द य के रह य को समझना पड़ेगा , यूं क ये सभी रं ग सि मिलत
होकर ेत का ही िव तार करते ह lतभी कालच का सहयोग लेकर आप कालभेदी दृि
ा कर सकते ह और ये कोई ज टल काय नह है lय द साधक सूय दय के पहले पूव क
तरफ मुख करके "ॐ" का गुंजरन ७ िमनट तक िन य करे और फर सूय दय के साथ ही
७० िमनट तक गाय ी मं का जप और फर पुनः ७ िमनट तक "ॐ" का गुंजरनl
  य द इस या को ३ रिववार तक िन य दोहराया जाये तो सूय के म य मे होने वाले
िव फोट का मूल अंतगत कारण हम भली भांित समझ सकते ह और उजा क उ पि का
ॐ"
रह य भी ात हो जायेगा, यूं क ये "  क ही विन है जो क इस म से योग करने
पर बा सूय का अ तः सूय से तारत य िबठाकर रह य के आदान- दान क या
सरल कर देती है lऔर इस कार सिवता म का सहयोग आपको कालच क िविवध
शि य का वामी बना देता है तब कालातीत दृि पाना भला कहाँ असंभव रह जाता
हैl    

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