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ॐ नमः काली कंकाली महाकाली , मुख सुं दर जजये व्याली , चार बीर, भैं रो चौरासी
जकसी भी रात्री में ३ से 5 के मध्य उठें ,छत या खु ले स्थान पर जाएँ (अपने जनवास के ही ),जहाँ से आसमान
जदखाई दे ता हो | पजिम की और मूंह करके दोनों हथेली + पंजों को ऐसे जमलाएं जैसे आप कुछ मां ग रहें हों
|आकाश को
दे खते हुए कहें “ हे ! दे वी धनलक्ष्मी ,आपको नमस्कार है ,मैं आपकी शरण में हँ मुझे आजथवक रूप से
सम्पन्नता की जभक्षा दीजजये , आपको बारम्बार नमस्कार है |” जिर दोनों हथेजलयों को मुंह पर िेर लें, पृ थ्वी पर
माथा जिका कर प्रणाम करें | कुछ ही जदनों में लाभ
1.जशव मंजदर में जाकर ,दो चार बूँ द शहद हाथ में लगाकर जपंडी पर लगाओ ,धीरे धीरे जल की धारा बना
कर ताम्बे की लुजिया से डालो,नमः जशवाय का जप करते रहें ,बहरआकर आसन पर बै ठ जाएँ एक माला नमः
जशवाय की करना,जिर साष्ां ग प्रणाम करें | प्राथवना :तु म्हारे हाथ में मेरी नैया है ,यजद जकसी भक्त का और
जकसी पजतत का उद्धार न करा हो तो मेरा भी मत करो ,इसजलए तु म्हे तु म्हारे भक्तों की कसम है मेरा भी
उद्धार करो|
2.जब भी जकसी महत्वपूणव काम से जा रहें हैं तब –जायिल के ऊपर चाकू रखो,ऊपर से हथोड़ी मार कर
एक झिके में उसके दो िु कड़े कर दो |जिर दोनों िु कड़ों को हाथ में लेकर बाहर िेंक दो,अपने काम पर
चले जाएँ |
4.