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ओणम

ओणम त्योहार को सम्राट महाबलि की याद में मनाया जाता है । ऐलतहालसक मान्यताओं
के अनुसार असुर सम्राट महाबलि ने केरि की धरती पर राज लकया था और उसी की
बदौित यह धरती इतनी सं पन्न एवं समृद्ध है । उसके शासनकाि को दे श के इलतहास
के स्वलणिम काि में लिना जाता है । महाबलि के सम्मान में ओणम पर एक िोकिीत भी
िाया जाता है । कहा जाता है लक महाबलि के राज में हर नािररक को समान अलधकार
प्राप्त था। इस वजह से पूरे राज्य में सुख एवं समृद्धद्ध का वास था। उसके शासनकाि में
न तो भ्रष्टाचार था और न ही बेईमानी थी। राज्य में लकसी भी तरह का िित कृत्य नहीं
होता था। इसीलिए उस काि को आदशि माना िया है ।

िेलकन महाबलि का शासन वामन द्वारा समाप्त कर लदया िया और इसी के साथ उसके शासनकाि की
सारी अच्छाईयां भी घटने ििीं। पुराणों में वामन को भिवान लवष्णु का अवतार कहा िया है । ऐसा माना
जाता है लक उसकी अच्छाई एवं दानशीिता से ईश्वरों में भय उत्पन्न हो िया था। िेलकन महाबलि की
अच्छाईयों और सद् कमों को दे खते हुए भिवान ने उसे वर्ि में एक बार इस धरती का भ्रमण करने की
अनुमलत दे दी। भ्रमण का यह समय मियािम पंचां ि के अनुसार लचंिम महीना कहिाता है , जो अिस्त
एवं लसतंबर माह के दौरान पड़ता है । इसी समय को ओणम पवि के रूप में मनाते हैं ।

इस कथा के पीछे चाहे जो भी सच हो, िेलकन यह सच है लक इस त्योहार को सलदयों से फसिों के काटने


की शुरुआत मानते आ रहे हैं । इसी लदन से मियािी नववर्ि की शुरुआत भी मानी जाती है ।

जैसा लक पहिे इस बात का उल्लेख लकया िया है लक यह पवि लचनिाम में होता है ,
अिस्त-लसतंबर में होने वािे इस पवि को मियािम महीना भी कहा जाता है । ऐसा माना
जाता है लक यह त्योहार चंद्र नक्षत्र अथम से शुरू होता है , जो लथरूवोनम नक्षत्र के
लिरने के दस लदन पहिे से शुरू होता है । इसकी तैयाररयां अथम लदन से शुरू होती
हैं ।लथरूवोनम इस पवि का सबसे महत्वपूणि लदन होता है । घर के द्वार अथपूवा (फूिों
की सजावट) को दस लदनों अथम से िेकर लथरूवोनम तक के लिए सजाया जाता
है ।लमट्टी से लनलमित लत्रकाकारा अप्पान की प्रलतमा को फूिों की सजावट के बीचोंबीच
रखा जाता है , जो मियालियों के किात्मक सृजनात्मकता को उजािर करता है और इसमें भद्धि का भी
पुट है ।

लथरूवोनम के लदन िोि सुबह-सुबह स्नान कर मंलदर में ईश्वर की आराधना करते हैं । इसके बाद वे
सबसे चमकीिे और नए कपड़े धारण करते हैं । उपहारों को पररवार के छोटे सदस्ों के बीच बां टा जाता
है । इसके बाद ओणम के स्वालदष्ट पकवानों को केिे के पत्ते पर परोसा जाता है । जो िोि अपने घर से
बाहर रह रहे होते हैं वे इस त्योहार के मौके पर अपने नाते -ररश्तेदारों से लमिने जरूर आते हैं और
उनके साथ ही यह पवि मनाते हैं । केरिवासी ओणम पवि को िोिों के बीच भोज, सां स्कृलतक कायिक्रमों
का आयोजन कर मनाते हैं ।

भोजन के बाद इनडोर और आउटडोर खेिों का आयोजन होता है , लजसमें हर उम्र की


मलहिाएं एवं और पुरुर् बराबरी से लहस्सा िेते हैं । जहां पुरुर्ों के बीच खासतौर से पानी
में िड़ाई, िेंदों से होने वािे खेि, काडि और शतरं ज जैसे खेि होते हैं वहीं मलहिाएं
ओंझािाटम, थंबीथुिाि, लथरूवत
््रीकािी, कैकोटीकािी जैसे खेिों का आनंद िेती हैं । नौका दौड़ (रे िाटा) ओणम के प्रमुख आकर्िणों
में से एक है लजसे न केवि राज्य के हजारों िोि बद्धि दू सरे राज्यों से आने वािे पयिटकों के लिए भी
मुख्य आकर्िण का केंद्र होती है ।

राज्य सरकार ने भी पयिटकों के उत्साह को दे खते हुए ओणम मौसम के रूप में मनाने की पहि की है ।
इस पवि के दौरान राज्य के कई बड़े शहरों में नए एवं पुराने सां स्कृलतक लवधाओं का आयोजन लकया
जाता है ।

नवरात्रि

यह पवि खासतौर से माता को समलपित है और पूरे भारत में इसे उल्लास से मनाया जाता है । कुछ क्षेत्रों में
इसे दशहरा कहा जाता है , कुछ जिहों पर कािीपूजा या सरस्वतीपूजा और साथ ही कुछ क्षेत्रों में
अयुधापूजा भी कहा जाता है । दु िाि पूजा के दौरान माता को एक रूप में या दु िाि , कािी, सरस्वती आलद
लवलभन्न रूपों में पूजा जाता है । नवरालत्र में की जाने वािी पूजा को भुवनेश्वरी पूजा भी कहा जाता है ,
लजसका अथि है 'जितमाता'।

यह पवि लसतंबर-अक्टू बर महीने में अलश्वन माह के अधि चंद्रमा के दौरान नौ लदनों तक
मनाया जाता है । नवरालत्र के आद्धखरी तीन लदन दु िाि अष्टमी, महानवमी और
लवजयादशमी के नाम से जाना जाता है और इसे माता की आराधना के लिए नवरालत्र के
सबसे पलवत्र लदन माने जाते हैं । ऐसा माना जाता है लक इन तीन लदनों के दौरान जो िोि
पूजा-अचिना करते हैं उन्हें माता का पूरा आशीवाद लमिता है और उनकी मनोकामपाएं
पूणि होती हैं ।

केरि के िोि नवरालत्र को पूरे उल्लास से मनाते हैं । यहां सरस्वती पूजा और अयुधा पूजा की जाती है ।
दे वी सरस्वती को लवद्या की दे वी के रूप में पूजा जाता है , दे वी िायत्री किा और लवज्ञान की जन्मदात्री
और वेदां लतक ज्ञान का सवोच्च प्रतीक मानी जाती है । अयुधा पूजा(शास्त्ों की पूजा) इस दौरान इसलिए
अलधक महत्वपूणि है क्ोंलक यह माना जाता है लक अज्ञातवास के दौरान लवजयादशमी के लदन अजुिन ने
अपने हलथयार वानी वृक्ष के पीछे छु पा लदए थे। ऐसा माना जाता है लक जो िोि लवजयादशमी के लदन
अपने लकसी काम की शुरुआत करते हैं उन्हें अजुिन को कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान लमिी लवजय की तरह ही
सफिता हालसि होती है ।

दु िाि अष्टमी की शाम को पूजावाइपु के नाम से कायिक्रम संपन्न लकया जाता है । सामान्यतौर पर िां वों में
यह पूजा कुछ खास घरों, मंलदरों और कभी-कभी िां व के स्कूिों में भी होती है । ब्राह्मण घरों में और उन
घरों में जो शास्त्ों के वाचन का काम करते हैं इस त्योहार में अग्रणी भूलमका लनभाते हैं । िां व के बाकी
घरों के िोि ऐसे घरों में आयोलजत होने वािे पूजा कायि क्रमों में शालमि होते हैं ।

सुसद्धित कमरे में, लकताबें और ग्रंथों (धालमिक पु स्तकें) के ऊपरी लहस्से को दे वी सरस्वती की तस्वीर के
साथ सजाया जाता है । कुछ खास तरह के हलथयार और औजार भी लकताबों और ग्रंथों के लकनारे रखे
जाते हैं । इसके बाद सरस्वती की पूजा फिों, लपसे हुए चावि, पके हुए चावि (मािर), िुड़ आलद का
भोि ििाकर पूजा संपन्न की जाती है । यह प्रसाद पूजा में शालमि हुए िोिों में बां टा जाता है । पूजावाइपू
के दौरान पढाई और अन्य काम, लजसमें योग्यता की जरूरत होती है , रोक लदए जाते हैं ।
उसके अििे लदन महानवमी होती है लजसे पूणि रूप से दे वी सरस्वती की उपासना का लदना माना जाता
है । इस दौरान सुबह और शाम दोनों बेिा में पूजा की जाती है । पूजा में कई सारी सामग्री जैसे चावि,
पायसम आलद चढाई जाती है ।

लवजयादशमी के लदन पूजा के बाद लकताबें तथा औजारों को हटा लिया जाता है और इस आयोजन को
'पूजा इडु प्पु ' कहा जाता है । पूजा की चीजों को हटान के बाद पढने तथा अन्य कायि आरं भ लकए जाते हैं ।
इस दौरान पढना तथा अन्य कायि करना शुभ माना जाता है ।

इसके बाद लवद्वान व्यद्धि रे त के ऊपर लकसी पलवत्र पु स्तक के कुछ वाक् लिखकर उसे पढते हैं । इसी
तरह कुछ किाकार और अपनी-अपनी लवधाओं में मालहर िोि रे त के ऊपर अपनी किा का प्रदशिन
करते हैं । इस शुभ अवसर पर पहिी बार कुछ लिखने जा रहे बच्चे को भी रे त या चरवि के ऊपर कोई
अक्षर लिखने को कहा जाता है । इसके बाद वे ज्ञान की दु लनया में प्रवेश करते हैं ।

इसे 'इजहूलथनू इरूथू ' या 'लवद्यारं भ' कहा जाता है और परं परा के अनुसार इस आयोजन के बाद ही
लकसी बच्चे की पढाई का सफर शुरू होता है , इसके वे कुछ पढने या लिखने के योग्य माने जाते हैं ।

कुछ िोि ऐसे भी होते हैं जो नवरालत्र के दौरान हर रोज पूजा करते हैं और इस त्योहार को पूरे उत्साह के
साथ मनाते हैं । ईश्वर की तस्वीर, जानवरों और अिि-अिि तरह के द्धखिौनों को प्रदशिनी के लिए रखे
जाते हैं , इस प्रलक्रया को 'कोिूवाइपू ' कहा जाता है ।

लतरूअनंतपुरम के श्री पद्मनाभा स्वामी मंलदर में नवरालत्र को कुछ अिि ही तरीके से मनाया जाता है ।
परं पराित पूजा और लवलधयों के अिावा यहां नवरालत्र मंडप पर हर रात शास्त्ीय सं िीत की प्रस्तुलत होती
है , लजसमें कनाि टक के लदग्गज किाकार लहस्सा िेते हैं । महाराज स्वालथरूनि द्वारा शुरू लकए िए इस
सां स्कृलतक आयोजन में संिीतज्ञों और वाद्ययंत्रों के साथ िोिों एक उत्साह और आनं द का अनुभव करते
हैं ।

होली एक रं गत्रिरं गा मस्ती भरा पवव है । इस त्रिन सारे लोग अपने पु राने त्रगले-त्रिकवे भूल कर गले लगते हैं
और एक िू जे को गु लाल लगाते हैं । िच्चे और युवा रं गों से खेलते हैं ।

फाल्गु न मास की पुलणिमा को यह त्योहार मनाया जाता है । होिी के साथ अने क कथाएं जुड़ीं हैं । होिी मनाने के
एक रात पहिे होिी को जिाया जाता है । इसके पीछे एक िोकलप्रय पौरालणक कथा है ।

भि प्रह्लाद के लपता हररण्यकश्यप स्वयं को भिवान मानते थे । वह लवष्णु के लवरोधी थे जबलक प्रह्लाद लवष्णु भि
थे । उन्होंने प्रह्लाद को लवष्णु भद्धि करने से रोका जब वह नहीं माने तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास लकया।

FILE
प्रह्लाद के लपता ने आखर अपनी बहन होलिका से मदद मां िी। होलिका को आि में न जिने का वरदान प्राप्त था।
होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो िई। होलिका प्रह्लाद को िे कर लचता में जा बैठी परन्तु
लवष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरलक्षत रहे और होलिका जि कर भस्म हो िई।

यह कथा इस बात का संकेत करती है की बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है। आज भी पूलणिमा को होिी
जिाते हैं , और अििे लदन सब िोि एक दू सरे पर िुिाि, अबीर और तरह-तरह के रं ि डािते हैं । यह त्योहार
रं िों का त्योहार है । इस लदन िोि प्रात:काि उठकर रं िों को िे कर अपने नाते-ररश्ते दारों व लमत्रों के घर जाते हैं
और उनके साथ जमकर होिी खे िते हैं । बच्चों के लिए तो यह त्योहार लवशे र् महत्व रखता है । वह एक लदन पहिे
से ही बाजार से अपने लिए तरह-तरह की लपचकाररयां व िुब्बारे िाते हैं । बच्चे िुब्बारों व लपचकारी से अपने लमत्रों
के साथ होिी का आनं द उठते हैं ।

WD

सभी िोि बैर-भाव भू िकर एक-दू सरे से परस्पर ििे लमिते हैं । घरों में औरतें एक लदन पहिे से ही लमठाई,
िुलझया आलद बनाती हैं व अपने पास-पड़ोस में आपस में बां टती हैं । कई िोि होिी की टोिी बनाकर लनकिते हैं
उन्हें हुररयारे कहते हैं ।

ब्रज की होिी, मथु रा की होिी, वृंदावन की होिी, बरसाने की होिी, काशी की होिी पूरे भारत में मशहूर है ।

आजकि अच्छी क्वॉलिटी के रं िों का प्रयोि नहीं होता और त्वचा को नु कसान पहुं चाने वािे रं ि खेिे जाते हैं। यह
सरासर िित है । इस मनभावन त्योहार पर रासायलनक िे प व नशे आलद से दू र रहना चालहए। बच्चों को भी
सावधानी रखनी चालहए। बच्चों को बड़ों की लनिरानी में ही होिी खे िना चालहए। दू र से िुब्बारे फेंकने से आं खों में
घाव भी हो सकता है । रं िों को भी आं खों और अन्य अंदरूनी अंिों में जाने से रोकना चालहए। यह मस्ती भरा पवि
लमिजुि कर मनाना चालहए।

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