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दोहा॥
॥
जय गणप त सदगण
ु सदन, क ववर बदन कृपाल। व न हरण मंगल करण, जय जय ग रजालाल॥
॥चौपाई
चौपाई॥॥
जय जय जय गणप त गणराज।ू मंगल भरण करण शभ ु काजू ॥जै गजबदन सदन सख ु दाता। व व वनायक बु घ
वधाता॥व तु ड शु च शु ड सह ु ावन। तलक पु ड भाल मन भावन॥राजत म ण मु तन उर माला। वण मक ु ुट
शर नयन वशाला॥पु तक पा ण कुठार शल ू ं । मोदक भोग सग ु ि धत फूलं ॥1॥
सु दर पीता बर तन सािजत । चरण पादक ु ा मु न मन रािजत ॥ध न शवसव ु न षडानन ाता । गौर ललन
व व व याता ॥ऋ घ स घ तव चंवर सध ु ारे । मषू क वाहन सोहत घारे ॥कहौ ज म शभ ु कथा तु हार । अ त
शु च पावन मंगलकार ॥2॥
एक समय ग रराज कुमार । पु हे तु तप क हो भार ॥भयो य जब पण ू अनप ू ा । तब पहुं यो तम ु ध र घज पा
॥अ त थ जा न कै गौ र सख ु ार । बहु व ध सेवा कर तु हार ॥अ त स न है तम ु वर द हा । मातु पु हत जो तप
क हा ॥3॥
मल ह पु तु ह, बु घ वशाला । बना गभ धारण, य ह काला ॥गणनायक, गण ु ान नधाना । पिू जत थम, प
भगवाना ॥अस क ह अ तधान प है । पलना पर बालक व प है ॥ब न शश,ु दन जब हं तम ु ठाना। ल ख मखु
सख ु न हं गौ र समाना ॥4॥
सकल मगन, सख ु मंगल गाव हं । नभ ते सरु न, सम ु न वषाव हं ॥श भ,ु उमा, बहु दान लट ु ाव हं । सरु मु नजन, सत ु
दे खन आव हं ॥ल ख अ त आन द मंगल साजा । दे खन भी आये श न राजा ॥ नज अवगण ु ग ु न श न मन माह ं ।
बालक, दे खन चाहत नाह ं ॥5॥
ग रजा कछु मन भेद बढ़ायो । उ सव मोर, न श न तु ह भायो ॥कहन लगे श न, मन सकुचाई । का क रहौ, शशु
मो ह दखाई ॥न हं व वास, उमा उर भयऊ । श न स बालक दे खन कहाऊ ॥पडत हं, श न ग कोण काशा ।
बोलक सर उ ड़ गयो अकाशा ॥6॥
ग रजा गर ं वकल है धरणी । सो दख ु दशा गयो नह ं वरणी ॥हाहाकार म यो कैलाशा । श न क हो ल ख सत ु को
नाशा ॥तरु त ग ड़ च ढ़ व णु सधायो । का ट च सो गज शर लाये ॥बालक के धड़ ऊपर धारयो । ाण, म प ढ़
शंकर डारयो ॥7॥
नाम गणेश श भु तब क हे । थम पू य बु घ न ध, वन द हे ॥बु घ पर ा जब शव क हा । प ृ वी कर
द णा ल हा ॥चले षडानन, भर म भल ु ाई। रचे बैठ तम ु बु घ उपाई ॥चरण मातु पतु के धर ल ह । तनके सात
द ण क ह ॥8॥
तु हर म हमा बु घ बड़ाई । शेष सहसमख ु सके न गाई ॥म म तह न मल न दख ु ार । करहुं कौन व ध वनय
तु हार ॥भजत रामसु दर भद ु ासा । जग याग, ककरा, दवासा ॥अब भु दया द न पर क जै । अपनी भि त
शि त कछु द जै ॥9॥
॥दोहा
दोहा॥
॥
ी गणेश यह चाल सा, पाठ करै कर यान। नत नव मंगल गह ृ बसै, लहे जगत स मान॥
स ब ध अपने सह दश, ऋ ष पंचमी दनेश।परू ण चाल सा भयो, मंगल मू त गणेश ॥
ी शव चाल सा
।। दोहा।।
।।दोहा ।।
ी गणेश ग रजा सव ु न, मंगल मल
ू सजु ान।कहत अयो यादास तम
ु , दे हु अभय वरदान॥
जय ग रजा प त द न दयाला। सदा करत स तन तपाला॥भाल च मा सोहत नीके। कानन कु डल
नागफनी के॥अंग गौर शर गंग बहाये। मु डमाल तन छार लगाये॥व खाल बाघ बर सोहे । छ व को
दे ख नाग मु न मोहे ॥1॥
मैना मातु क वै दल ु ार । बाम अंग सोहत छ व यार ॥कर शल ू सोहत छ व भार । करत सदा श न
ु
यकार ॥नि द गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर म य कमल ह जैसे॥का तक याम और गणराऊ। या छ व
को क ह जात न काऊ॥2॥
दे वन जबह ं जाय पक ु ारा। तब ह दखु भु आप नवारा॥ कया उप व तारक भार । दे वन सब म ल तम ु हं
जह ु ार ॥तरु त षडानन आप पठायउ। लव नमेष महँ मा र गरायउ॥आप जलंधर असरु संहारा। सय ु श
तु हार व दत संसारा॥3॥
परु ासरु सन यु ध मचाई। सब हं कृपा कर ल न बचाई॥ कया तप हं भागीरथ भार । परु ब त ा तसु
परु ार ॥दा नन महं तम ु सम कोउ नाह ं। सेवक तु त करत सदाह ं॥वेद नाम म हमा तव गाई। अकथ
अना द भेद न हं पाई॥4॥
गट उद ध मंथन म वाला। जरे सरु ासरु भये वहाला॥क ह दया तहँ कर सहाई। नीलक ठ तब नाम
कहाई॥पज ू न रामचं जब क हा। जीत के लंक वभीषण द हा॥सहस कमल म हो रहे धार । क ह
पर ा तब हं परु ार ॥5॥
एक कमल भु राखेउ जोई। कमल नयन पज ू न चहं सोई॥क ठन भि त दे खी भु शंकर। भये स न दए
इि छत वर॥जय जय जय अनंत अ वनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥द ु ट सकल नत मो ह सतावै ।
मत रहे मो ह चैन न आवै॥6॥
ा ह ा ह म नाथ पक ु ारो। य ह अवसर मो ह आन उबारो॥लै शल ू श नु को मारो। संकट से मो ह आन
उबारो॥मातु पता ाता सब कोई। संकट म पछ ू त न हं कोई॥ वामी एक है आस तु हार । आय हरहु अब
संकट भार ॥7॥
धन नधन को दे त सदाह ।ं जो कोई जांचे वो फल पाह ं॥अ तु त के ह व ध कर तु हार । महु नाथ अब
चक ू हमार ॥शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण व न वनाशन॥योगी य त मु न यान लगाव। नारद
शारद शीश नवाव॥8॥
नमो नमो जय नमो शवाय। सरु मा दक पार न पाय॥जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है श भु
सहाई॥ॠ नया जो कोई हो अ धकार । पाठ करे सो पावन हार ॥पु ह न कर इ छा कोई। न चय शव
साद ते ह होई॥9॥
पि डत योदशी को लावे। यान पव ू क होम करावे ॥ योदशी त करे हमेशा। तन नह ं ताके रहे कलेशा॥
धप ू द प नैवे य चढ़ावे। शंकर स मख ु पाठ सन ु ावे॥ज म ज म के पाप नसावे। अ तवास शवपरु म
पावे॥10॥
कहे अयो या आस तु हार । जा न सकल दःु ख हरहु हमार ॥
॥दोहा
दोहा॥ ॥
न नेम कर ातः ह , पाठ कर चाल सा।तम ु मेर मनोकामना, पण ू करो जगद श॥
मगसर छ ठ हे म त ॠत,ु संवत चौसठ जान।अ तु त चाल सा शव ह, पण ू क न क याण॥
ी दग
ु ा चाल सा
नमो नमो दग ु सखु करनी। नमो नमो दग ु दःु ख हरनी॥ नरं कार है यो त तु हार । तहूँ लोक फैल
उिजयार ॥
श श ललाट मख ु महा वशाला। ने लाल भक ृ ु ट वकराला॥ प मातु को अ धक सह ु ावे। दरश करत जन
अ त सख ु पावे॥1॥
तमु संसार शि त लै क ना। पालन हे तु अ न धन द ना॥अ नपण ू ा हुई जग पाला। तमु ह आ द सु दर
बाला॥
लयकाल सब नाशन हार । तम ु गौर शवशंकर यार ॥ शव योगी तु हरे गण ु गाव। मा व णु तु ह
नत याव॥2॥
प सर वती को तम ु धारा। दे सबु ु ध ऋ ष मु नन उबारा॥धरयो प नर संह को अ बा। परगट भई
फाड़कर ख बा॥
र ा क र लाद बचायो। हर या को वग पठायो॥ल मी प धरो जग माह ।ं ी नारायण अंग
समाह ॥ ं 3॥
ीर स धु म करत वलासा। दया स धु द जै मन आसा॥ हंगलाज म तु ह ं भवानी। म हमा अ मत न
जात बखानी॥
मातंगी अ धम ू ाव त माता। भव ु ने वर बगला सख ु दाता॥ ी भैरव तारा जग ता रणी। छ न भाल भव
दःु ख नवा रणी॥4॥
केह र वाहन सोह भवानी। लांगरु वीर चलत अगवानी॥कर म ख पर ख ग वराजै ।जाको दे ख काल डर
भाजै॥
सोहै अ और शल ू ा। जाते उठत श ु हय शल ू ा॥नगरकोट म तु ह ं वराजत। तहुँलोक म डंका
बाजत॥5॥
शु भ नशु भ दानव तम ु मारे । र तबीज शंखन संहारे ॥म हषासरु नप ृ अ त अ भमानी। जे ह अघ भार
मह अकुलानी॥
प कराल का लका धारा। सेन स हत तम ु त ह संहारा॥पर गाढ़ स तन र जब जब। भई सहाय मातु तम ु
तब तब॥6॥
अमरपरु अ बासव लोका। तब म हमा सब रह अशोका॥ वाला म है यो त तु हार । तु ह सदा पज ू
नरनार ॥
ेम भि त से जो यश गाव। दःु ख दा र नकट न हं आव॥ यावे तु ह जो नर मन लाई। ज ममरण ताकौ
छु ट जाई॥7॥
जोगी सरु मु न कहत पक ु ार ।योग न हो बन शि त तु हार ॥शंकर आचारज तप क नो। काम अ ोध
जी त सब ल नो॥
न श दन यान धरो शंकर को। काहु काल न हं सु मरो तम ु को॥शि त प का मरम न पायो। शि त गई
तब मन प छतायो॥8॥
शरणागत हुई क त बखानी। जय जय जय जगद ब भवानी॥भई स न आ द जगद बा। दई शि त न हं
क न वल बा॥
मोको मातु क ट अ त घेरो। तम ु बन कौन हरै दःु ख मेरो॥आशा त ृ णा नपट सताव। मोह मदा दक सब
बनशाव॥9॥
श ु नाश क जै महारानी। सु मर इक चत तु ह भवानी॥करो कृपा हे मातु दयाला। ऋ ध स ध दै करहु
नहाला॥
जब ल ग िजऊँ दया फल पाऊँ । तु हरो यश म सदा सन ु ाऊँ ॥ ी दग
ु ा चाल सा जो कोई गावै। सब सख ु
भोग परमपद पावै॥10॥
दे वीदास शरण नज जानी। कहु कृपा जगद ब भवानी॥शरणागत र ा करे भ त रहे नःशंक , म आया
तेर शरण मातु ल िजये अंक।