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10/7/2018 Story in Hindi - Kahaniya | Pratilipi

 मुंबई से बनारस   
मुंबई से बनारस

भिव िनिध कायालय वाराणसी म कायरत रं जीत का टां सफर जब मुंबई के िलए आ तो उसकी खुशी का पारावार न रहा।
उसने मन ही मन भगवान को ध वाद िदया िक अ ा आ उसका टां सफर चे ई, कोलकाता या िकसी दू सरे शहर म नहीं
आ वना नगरी मुंबई आने की वष की इ ा कुछ सालों के िलए िफर दबी रह जाती।ऑिफस से छु ी लेकर कहीं
जाना तो तीथ करने जैसा ही होता है ,दो चार िदन घूमे िफर लौट आए।घर आकर जब उसने यह सूचना अपनी प ी और
दोनों ब ों को दी तो वे खुशी से चहक उठे ।छोटे ने तुतलाकर कहा- पापा बंबई जाने पर शाह ख और अिमताभ से
िमलवाओगे न..! तो रं जीत को ब े के भोलेपन पर हँ सी आ गई।
अगले िदन वह वाराणसी रे लवे रजवसन क म था। पूछताछ करने पर पता चला िक मुंबई से वाराणसी जाने वाली सभी
गािड़याँ अगले एक महीने तक फुल ह।वेिटं ग िटकट लेकर रजवसन वाले ड े म जा सकते ह,हो सकता है टीसी टे न म
कुछ ले दे कर कोई सीट एलॉट कर दे ... लेिकन ऐसा न होने पर प रवार के साथ उसे पूरे 26 घंटे का सफर नीचे बैठकर
काटना होगा।सोचकर ही ह कां प गई...कैसे हर रोज लाखों लोग रजवसन का पूरा पैसा दे कर भी टे न के ड ों म फश
पर बैठकर 24 से 50 घंटे तक की या ा करते ह।नहीं ...उससे तो ऐसा नहीं होगा... ाहक की तलाश म वहाँ घूम रहे एक
िटकट दलाल ने थित भां प ली और पास आकर पूछा- कहाँ का िटकट चािहए भाई साहब ?
बंबई का...
तो िचंता काहे करते ह ....थोड़ा खरचा पानी क रए...ई तो अपना रोज का काम है ....
िकतना िटकट चािहए ....?
पित प ी और दो ब े ।
चार लोग ह ... तो दो हजार ए ा दे दीिजए बाकी जो िटकट पर िलखा रहे गा सो.....
हर िटकट पर पाँ च सौ...इससे तो अ ा है म त ाल सेवा म दो सौ ए ा दे कर चला जाऊँगा... रं जीत ने अंधेरे म एक तीर
मारा ,हालां िक उसे मालूम था िक त ाल सेवा म भी क म िटकट िमलना मु ल है ।
िकस दु िनया म ह भाई साहब....त ाल सेवा की खड़की खुलती है और पाँ च िमनट म फुल...आप जैसे लोग लाइन म ही
खड़े रह जाते ह,िटकट िमल भी गया तो क म नहीं होता....इस दो हजार म हम अकेले थोड़े ह....तीन िह े लगगे महँ गाई
के इस जमाने म...... ब त ादे नहीं िमलेगा मुझको .......
रं जीत ने अब ादा िजरह करना उिचत नहीं समझा.... पैसे दे ते ही िकसी चम ार की तरह
उसके पास दस िमनट के भीतर िटकट हािजर था।
अपने ऑिफस के चतुवदी जी ने मुंबई के एक मराठी िम से कहकर दस हजार पये म एक महीने के िलए बतौर पेइंग
गे रहने की था करा दी थी।दो कमरों का छोटा सा ैट था।एक िकचन के पमइ ेमाल होता,एक बेड म के
प म।रं जीत प ी और ब ों के साथ िकचन म सोता और वे पित प ी अपने बेड म म। बनारस म इतने खुले ढ़ं ग से
रहने के बाद यहां एक संकुिचत दायरे म रहने म ब त अटपटा लगता लेिकन मुंबई के ैमर और अपने नये आिशयाने के
बारे म सोचकर संतोष होता ...चलो एक महीने िनकल जाएं गे िकसी तरह... मुंबा दे वी ,महाल ी मंिदर,िस िवनायक,हरे
कृ मंिदर,हिगंग गाडन,जु चौपाटी जैसी मश र जगहों पर घूमकर प ी और ब े फूले न समाते थे।उ हाजी अली और
अ ा बीच पर शूिटं ग दे खने का भी मौका िमला...एक ही सीन के कई रीटे क और िफर अगले सीन की तैयारी के िलए
लगनेवाले व से वे थोड़े बोर ज र ए लेिकन िफर उसे इस वसाय का िह ा मानकर भूल गए।
ऑिफस के सहकिमयों से उसने मकान िदलाने की बात की तो वे बोले- यार िकसी इ े ट एजट को पकड़ो,उसे ोकरे ज दो
,मकान िदला दे गा। छोटे शहरों की तरह िबना ोकरे ज और ए ीमट के मकान नहीं िमलते यहाँ ।वह इ े ट एजट के पास
प ँ चा तो पता चला िक बां ा और दादर जैसे इलाके म जहाँ से उसका ऑिफस नजदीक है , ैट का िकराया कम से कम
35-40,000 है ।िजपॉिजट मनी तीन चार लाख जो उसके बजट के बाहर है ।एजट ने समझाया –आप मीरा रोड या भायंदर म
कोिशश क रए,वहाँ 7-8 हजार म ैट िमल जाएगा।जब वह मीरा रोड के एजट के पास प ँ चा तो एजट ने बताया िक
-80,000 िडपॉिजट और 8 हजार भाड़े ैट िमल जाएगा।ए ीमट का दो हजार और दो महीने का भाड़ा सोलह हजार
ोकरे ज अलग से दे ना होगा ।
रं जीत आं सा हो गया ।त ाल लगभग एक लाख की व था कर पाना मु ल था।उसने एजट से पूछा –भाई साब
हमारा बजट इतना नहीं है ।4-5 हजार भाड़े और 35-40हजार िडपािजट वाला कोई कमरा नहीं िदला सकते ...?
इस बजट म तो चाल म ही िमल पाएगा.....
वहां कोई किठनाई ..
किठनाई ायलेट की होती है ...लेिकन आप जैसे और भी लाखों लोग िजनका ैट का बजट नहीं होता,चालों म ही रहते ह।
ये काड लीिजए और फोन कीिजए .....मेरा दो है उस इलाके म ापट का काम दे खता है ।कां िदवली या दहीसर के िकसी
चाल म खोली िदला दे गा....
रं जीत चौंका ...खोली मतलब.....?
एजट हं सा- यहां चाल के कमरे को खोली बोलते ह ।
अ ा यह बात है ...अ ा आ आपने बता िदया...म याद कर लेता ं ।
महीना बीतते बीतते रं जीत को चार हजार भाड़े और चालीस हजार िडपॉिजट पर दहीसर के चाल म एक खोली िमल गई।
उसने चैन की सां स ली।चाल का प रवेश उसके सं ारों से िब ु ल मेल नहीं खाता था।यहां ादे तर लोगों का जीवन 

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10/7/2018 Story in Hindi - Kahaniya | Pratilipi

शारी रक म से जुड़ा था।कोई र ा चलानेवाला था तो कोई स ी बेचनेवाला,कोई ठे ला लगानेवाला था तो कोई फेरी


 मुंबई से बनारस 
लगानेवाला।िदहाड़ी पर मजदू री करनेवालों की भी अ ी खासी सं ा थी।ऐसे म रं जीत का असली दो उसका
 
टे लीिवजन सेट ही था िजसके ज रए वह अपना मन बहलाया करता था।हालां िक सोमवार से शु वार तक ऑिफस आने
जाने के म म तीन घंटे तो टे न और बस म ही िनकल जाया करते थे।आठ घंटे ऑिफस म दे ने के बाद, बाकी जो समय
बचता उसम अखबार पढ़ना,थोड़ा ब त ूज दे खना और घर के दू सरे काम िनपटाने की िज ेवारी होती।
शिनवार,रिववार या छु ी के िदन म ही थोड़ा चैन िमलता।
चाल म रहते ए सबसे बड़ी परे शानी थी शौचालय जाने की....सुबह चार साढ़े चार बजे तक उठ गए तो ठीक वना बाद म
इतनी लंबी लाइन लगती िक िदमाग खराब हो जाता।दस शौचालयों म हर एक के आगे 10-12 ड े लाइन से लग
जाते,भीतर गए अभी पां च िमनट गुजरा नहीं िक दू सरे दरवाजा खटखटाना शु कर दे ते- ज ी कर भाई दु बारा आ जाना।
कोई कोई शरारत भी करता- भीतर जाके सो तो नहीं गए यार....ज ी कर काम पर जाने का है ।एक और बड़ी परे शानी
थी- सावजिनक नल से पानी लेने की।लाइन लगाकर दे र तक इं तजार करने के बवजूद ज रत के मुतािबक पूरा पानी नहीं
िमल पाता था।लोकल लोगों की दबंगई का िशकार होना पड़ता और अ र भैया होने और मुंबई म भीड़ बढ़ाने के जुमलों
से भी दो चार होना पड़ता। ....पर मरता ा न करता,आिथक अभाव म सब कुछ जहर के घूँट की तरह पीना पड़ता।
चाल म रहनेवाले ब ों से लेकर बूढ़ों तक का बोलचाल कुछ अजीब िक का था, िजसे आमतौर पर बंबइया भाषा कहा
जाता है - मराठी और िहं दी का िमला जुला िवकृत प।पड़ोिसयों से सीखकर कुछ जुमले घर म ब े भी बोलने लगे थे- मेरे
को तेरे को ,आने का जाने का।यह भाषा िहं दी िफ ों म उसे िजतनी अ ी लगती थी, वहा रक जीवन म उतनी ही
चुभनेवाली थी।
उसने ऑिफस म अपने एक सहकम से अपना दद बयान िकया तो उसने सुझाव िदया िक कुछ लोग अपने नाम से एलॉट
ए सरकारी ैट कम भाड़े पर दू सरों को दे ते ह,अगर वह चाहे तो ऐसा कोई ैट ढ़ूँढ़ने म वह उसकी मदद कर सकता
है ।जाँ चदल वालों की पकड़ म आने पर मकान मािलक के र ेदार के प म प रचय दे ना होगा.....भरसक पकड़ म न
आने का यास करना होगा।रं जीत को िम का यह सुझाव पसंद आया। दो महीने की पड़ताल के बाद उसे एक ऐसा ैट
िमल गया।अंटाप िहल इलाके म आयकर िवभाग म काम करनेवाले एक स न ने अपने नाम से एलॉट ैट भाड़े पर उसे
दे िदया।मुंबई म पहली बार टायलेट बाथ म वाले ैट म आकर उसे बेइंतहा खुशी हो रही थी। प ी और ब े भी खुश थे
लेिकन उनकी खुशी थायी प से िटकी नहीं रह सकी।अ र छापेमारी वाला दल च र लगाने आ जाता। सरकारी
ैट म अवैध प से रहने का भय बराबर बना रहता।वह कभी िनि ंत नहीं रह पाता था।इस दल के आने की खबर लगते
ही प ी,ब ों को खड़की और लाइट बंद करने को कहकर ैट म बाहर से ताला लगाकर कहीं बाहर िनकल जाता।हर
बार घर म ताला लगा दे खकर जां चदल वालों का शक पु ा हो गया...ज र कोई बाहरी आदमी रह रहा है ।उ ोंने अगल
बगल वालों से पूछताछ की तो उ ोंने बता िदया िक इस ैट म कोई भाड़े से रह रहा है ।िफर ा था जां च दल वाले एक
िदन दे र रात को आ धमके।रं जीत ने अपना प रचय उ संबंिधत के र ेदार के प म िदया और बताया िक
िफलहाल वे गाँ व गए ह।िवभाग ने कमचारी को तलब िकया।कमचारी ने सफाई दे ते ए कहा िक रं जीत उसके मौसेरे भाई
का लड़का है ...हाल ही म उसके मकान का ए ीमट ख आ था और मुझे थोड़े िदन के िलए गाँ व जाना था,इसिलए ैट
म रख िलया।सोचा था तब तक वह अपने िलए नया घर भी ढ़ूँढ़ लेगा और मेरे ैट की िनगरानी भी हो जाएगी।आपलोग तो
जानते ह िक मुंबई के बंद मकानों म चो रयां िकतनी बढ़ गई ह।अब इसके िलए मुझे जो सजा दी जाय,... मंजूर है ।
55वष य की इस फ रयाद पर दया बरतते ए जां च दल ने मामूली जुमाना लगाकर आगे से ऐसा न करने की
िहदायत के साथ छोड़ िदया।अब रं जीत के सामने एक बार पुनः घर की सम ा खड़ी हो गई।वह चाल के नारकीय जीवन
म िफर से नहीं लौटना चाहता था और ाइवेट ैट का िकराया दे पाना उसकी औकात से बाहर था।ऐसे म उसने पुनः
उसी सहकम के पास जाकर अपनी सम ा रखी।सहकम ने सुझाया िक वह िवरार चला जाए,वहाँ उसे कम िकराये म
ैट िमल जाएगा।आने जाने म थोड़ी तकलीफ तो होगी लेिकन सम ा का िनदान हो जाएगा।रं जीत ने तिनक िव य से
पूछा- वही गोिवंदा वाला िवरार....
हां भाई हाँ ,वहीं रहकर गोिवंदा ने अपना िफ ी गल शु िकया था,कामयाब हो जाने के बाद जु रहने लगा लेिकन जब
लोकसभा का चुनाव लड़ना आ तो िफर उसने उसी े का चुनाव िकया।दू री और लोकल टे न की भीड़ को यादकर
उसके तन बदन म कँपकँपी सी होने लगी मगर कोई दू सरा चारा न दे खकर उसने िवरार रहने का मन बना िलया।एक
एजट ने पचास हजार पए िडपॉिजट और पाँ च हजार भाड़े पर िवरार म ैट िदला िदया।ए ीमट 11 महीने के िलए था।
11 महीना ख होने के बाद उसी एजट ने दु बारा अपनी फीस लेकर दू सरा ैट िदला िदया,िफर तीसरा िफर चौथा....मगर
िकसी मकान म व लगातार दो टम नहीं रह पाया।इसके पीछे एजेटों की मोनोपोली थी...िकरायेदार और मकान मािलक
दोनों से दलाली लेना और हर बार िकराया कुछ बढ़ा दे ना उनकी पॉिलसी थी तािक उ िमलने वाले पैसे पहले से कुछ
ादे हों...रं जीत ने खुद ब त कोिशश की िक िबना दलाली िदए कोई ैट िमल जाए,मगर इस कोिशश म उसे कामयाबी
नहीं िमली।िकराये पर ैट दे नेवाले अिधकां श मकान मािलक शहर के दू सरे िह ों म रहते थे। ैट लेकर उ ोने एक
तरह का इ े मट िकया था।अगर कोई अगल बगल का आ तो भी इस बात से डरता िक िकरायेदार ने मकान म आने
के बाद समय पर खाली करने म आनाकानी की तो कोट कचहरी के लफड़े म कौन पड़े गा।इ े ट एजट तो पुिलसवालों
और गुंडों.... दोनों से िमले होते ह,अतःिचंता की कोई बात नहीं होती।इसिलए कौन खुद से िकरायेदार को डील करे ,एजटों
को ही सौंप दो,अपने को पैसे से काम है - सो िमलेगा ही...एक दो महीने का कमीशन लेते ह तो लेने दो,लफड़े से तो बचे
रहगे।
िकराये के मकानों म मकान मािलक जब तब आकर पचीस तरह की िहदायत दे जाते थे,मसलन दरवाजा खड़िकयां
स ालकर खोल बंद कर, ा र न उखड़ने पाए।मकान म कहीं कोई कील नहीं गड़नी चािहए।ब े दीवालों पर कहीं कुछ

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िलख नहीं,नलों को ठीक से इ ेमाल कर..वगैरह वगैरह।कभी ऐसा भी आ िक कोई मकान 6-7 महीने म ही खाली करना
 मुंबई से बनारस 
पड़ जाता ोंिक मकान मािलक की अपनी ज रत होती।िकसी के घर म शादी पड़ गई तो िकसी ने मकान ही बेच
 
िदया,ऐसे म परे शानी उसे ही उठानी पड़ती।िवरोध इसिलए नहीं िकया जा सकता था िक ए ीमट पेपर म यह शत लगी होती
िक मकान मािलक को ज रत ई तो एक महीने पहले नोिटस दे कर मकान खाली कराया जा सकता है ।
इन सारी सम ाओं से मु होने के िलए उसने बक से लोन कराकर अपना ैट खरीदने का िनणय िकया।उसने िवरार म
आसपास चल रहे कई िब रों के ोजे दे खे।ए रया और ोजे के अनुसार 4 से 6 हजार ायर फुट का भाव चल रहा
था।उसने िहसाब लगाया िक 500 ए रया का ैट बीस लाख म आ जाएगा।िब र ने कहा िक दो लाख टोकन मनी दे
द,बाकी पैसे ोजे पूरा होने तक कुछ लोन ......कुछ कैश दे दगे तो पजेसन िमल जाएगा।
ोजे पूरा होने तक रं जीत िब र को तीन लाख पये कैश दे चुका था,बाकी बक से लोन हो गया था लेिकन अचानक
िब र ने पतरा बदल िलया और कहा िक िफलहाल हम सारे ैट्स 6 हजार के रे ट म बेच रहा है ोंिक नया बजट आने
के बाद रे त,सीमट,ईंट,छड़ सबका दाम बढ़ गया है ,अभी हम उसम दो िल भी लगा रहे ह...चार लाख पये और दे ने
होंगे।अगर वह दस िदनों के भीतर पयों की व था कर सके तो ठीक वना यह ैट िकसी दू सरे को बेच िदया जाएगा।
रं जीत सकते म आ गया... ोंिक िब र ने कोई कानूनी ए ीमट तो िकया नहीं था...पैसे की रसीद ज र थी मगर कानूनी
लड़ाई लड़ने के िलए वह नाकाफी थी।मरता ा न करता,उसने िपछले 10 सालों से चली आ रही एल आइ सी का
ीमै ोर पेमट िलया,ब ों के नाम बचत योजनाओं म डाले ए पैसे िनकाले ,कुछ दो ों र ेदारों से कज िलया... तब
कहीं जाके बाकी के चार लाख और अदा कर पाया।लेिकन सम ा यहीं ख नहीं ई, ैट म आने के बाद िब र ने
पचास हजार का िबल और थमा िदया।पूछने पर बताया गया िक सोसायटी और िबजली कने न के नाम पर हर ैट
ओनर से इतने पैसे िलए जाते ह....उसे काटो तो खून नहीं।पचास हजार और कहाँ से लाए ? जहाँ से िजतना हो सकता
था,पहले ही खँगाल चुका था। दू सरा कोई उपाय न दे खकर िब र के ऑिफस म जाकर वह हाथ जोड़कर िगड़िगड़ाया-
मुझे दो तीन महीने का टाइम दीिजए,इस पैसे पर चाह तो ाज भी जोड़ लीिजए, ैट के कागजात भी अपने पास र खए,म
ये पैसे भी चुका दू ँ गा...लेिकन त ाल मेरे पास फूटी कौड़ी नहीं है ....पुराने पैसे चुकाने म ही ब त सारा कज हो गया है ।
िब र ैट के कागजात जमानत के प म रखने पर चुप हो गया।बोला-ठीक है िजतना ज ी हो सके दे दीिजएगा,वना
ाज के पैसे बढ़ते जाएं गे।
थोड़े समय बाद उसे यह पता चला िक िजस ैट म वह रह रहा है ित महीने उसका तीन हजार पये मटनस भी दे ना है ।
िबजली का िबल बारह तेरह सौ आता ही है । ैट खरीदने के बाद भी चैन नहीं ...तीन ब ों के ू ल, ूसन,िकताब-
कॉपी,डे स से लेकर िकचन और दो िम ,नाते र ेदारी तक..... सब इसी तीस हजार के मािसक वेतन म करना है ।िदन ब
िदन महं गाई बढ़ती जा रही है ।ब ों के हायर एजुकेसन,शादी ाह के िलए भी कुछ बचत करना ज री है । इस मकान म
तो उसकी बाकी उ लोन की िक अदा करने म ही गुजर जाएगी।गां व की िज ेवा रयों से मुँह िब ु ल मोड़ लेना पड़े गा।
सपनों के िजस शहर म आने के िलए वह बेताब था,वहाँ की वहा रक किठनाइयों से जूझते जूझते उसका मन कसैला हो
गया था।अब उसे अपना शहर बनारस बेसा ा याद आने लगा था। ा ही अ ा हो अगर िफर से बनारस टां सफर हो
जाय....न मकान का टसन न टे न की खच खच,साइिकल से पं ह िमनट म द र म हािजर।अगले ही िदन वह अपने एक
िम के साथ एक भावशाली नेता के दरबार म था।उसका िम नेता जी से गुजा रश कर रहा था- सर! इन िदनों आपके
पाट की सरकार है ।आपके एक फोन पर इनका टां सफर हो जाएगा। ीज सर! दे खये गरीब का भला हो जाएगा।

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आपकी रे िटं ग

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