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अनुसंधान

जमनी का 'सोन' (Sonne) नामक अनुस धान-जलयान

ापक अथ म अनुस धान (Research) कसी भी


े म ' ान क खोज करना' या ' व धवत गवेषणा'
करना होता है। वै ा नक अनुस धान म वै ा नक व ध
का सहारा लेते ए ज ासा का समाधान करने क
को शश क जाती है। नवीन व तु क खोज और
पुराने व तु एवं स ा त का पुनः परी ण करना,
जससे क नए त य ा त हो सक, उसे शोध कहते ह।

शोध उस या अथवा काय का नाम है जसम


बोधपूवक य न से त य का संकलन कर सू म ाही
एवं ववेचक बु से उसका अवलोकन- वश्लेषण
करके नए त य या स ांत का उद्घाटन कया जाता
है।

प रचय
अनुस धान च  : वै ा नक व ध के कुछ अवयव ज ह एक च के
प म व थत कया गया है, जो दशाता है क अनुस धान एक
च य म है।

अ ययन से द त होकर श ा के े म काय करते


ए श ा म या अपने शै क वषय म कुछ जोड़ने क
या अनुस धान कहलाती है। पी-एच.डी./ डी. फल या
डी. लट् /डी.एस-सी. जैसी शोध उपा धयाँ इसी उपल ध
के लए द जाती है। इनम अ येता से अपने शोध से ान
के कुछ नए त य या आयाम उ ा टत करने क अपे ा
क जाती है।

'शोध' अं ेजी श द ' रसच' का पयाय है क तु इसका


अथ 'पुनः खोज' नह है अ पतु 'गहन खोज' है। इसके
ारा हम कुछ नया आ व कृत कर उस ान पर परा म
कुछ नए अ याय जोड़ते ह।
प रभाषाएँ

ान क कसी भी शाखा म नवीन त य क खोज के


लए सावधानीपूवक कए गए अ वेषण या जांच-
पड़ताल को शोध क सं ा द जाती है। (एडवां ड
लनर ड शनरी ऑफ करट इं लश)
रैडमैन और मोरी ने अपनी पु तक “द रोमांस ऑफ
रसच” म शोध का अथ प करते ए लखा है क
नवीन ान क ा त के व थत य न को हम
शोध कहते ह।
लु डबग ने शोध को प रभा षत करते ए लखा है
क अवलो कत साम ी का संभा वत वग करण,
साधारणीकरण एवं स यापन करते ए पया त कम
वषयक और व थत प त है।

अनुस धान या
शोध के अंग

ान े क कसी सम या को सुलझाने क ेरणा


ासं गक त य का संकलन
ववेकपूण व ेषण और अ ययन
प रणाम व प नणय

अनुस धान- या के चरण

शोध एक या है जो कई चरण से होकर गुजरती है।


शोध या के मुख चरण ये ह-

(१) अनुस धान सम या का नमाण


(२) सम या से स ब धत सा ह य का ापक
सव ण
(३) प रक पना (हाइपोथे सस) का नमाण
(४) शोध क परेखा/शोध ा प (Research
Design) तैयार करना
(५) आँकड़ एवं त य का संकलन
(६) आँकड़ो / त य का व लेषण और उनम न हत
सूचना/पैटन/रह य का उ ाटन करना
(७) ा क पना क जाँच
(८) सामा यीकरण (जनरलाइजेशन) एवं ा या
(९) शोध तवेदन ( रसच रपोट) तैयार करना

सम या या

शोध करने के लए सबसे पहले कसी सम या या


क आव यकता होती है। हमारे सामने कोई सम या या
होता है जसके समाधान के लए हम शोध क दशा
म आगे बढ़ते ह। इसके लए शोधाथ म ज ासा क
वृ का होना आव यक है। कसी वशेष ान े म
शोध सम या का समाधान या ज ासा क पू त म कया
गया काय उस वशेष ान े का व तार करता है।
इसके साथ ही शोध से नये-नये शै क अनुशासन का
उ व होता है जो अपने वषय े क वशेष ता का
त न ध व करते ह।

अनुस धान के कार


शोध काय स प करने हेतु व भ णा लय का योग
कया जाता है अतः शोध के कई कार होते ह जैस-े

मा ा मक अनुसंधान ( वां टटे टव रसच)


गुणा मक अनुसंधान ( वा लटे टव रसच)
ववरणा मक अनुसंधान ( ड टव रसच)
व ेषणा मक अनुसंधान (एना ल टकल रसच)
अनु यु अनुसंधान (अ लायड रसच)
आधारभूत अनुसंधान (फ डामे टल रसच)
अवधारणा मक अनुसंधान (Conceptual
Research)
नैदा नक अनुसंधान (डाय नो टक / ली नकल
रसच)
ऐ तहा सक अनुसंधान ( ह टो रकल रसच)

अ तरानुशासना मक अनुस धान

वै ीकरण और सूचना ौ ो गक के व तार के दौर म


शोध के मा यम से येक शै क अनुशासन पर पर
संवाद क या म है। फलतः अ तरानुशासना मक
शोध का मह व बढ़ा है। इससे व भ शै क वषय
का पर पर आदान- दान संभव आ है।

अ तर-अनुशासना मक अनुस धान


अनुसंधान के अंतगत जब येक वषय को एक पूण
इकाई के प म भ - भ न लेकर व भ वषय को
एक समूह म रखा जाए, जनका ल य एक ही हो अ तर-
अनुशासना मक अनुस धान कहलाता है। इससे
व ा थय तथा शोधा थय को अ धकतम लाभ मलता
है। यह अनुसंधान सम वत ान के वकास म भी
सहायक होता है।

भारतीय और पा ा य शोध पर परा क


तुलना
पा ा य शोध पर परा वशेष ता (Specialization)
आधा रत है। ान माग म आगे बढ़ता आ शोधाथ
अपने वषय े म वशेष ता और पुनः अ त
वशेष ता ा त करता है। शोध सम या के समाधान क
से यह अ य त उपादे य है। भारतीय ान सा ह य
क अ व छ परंपरा के माण से हम यह कह सकते ह
क शोध क भारतीय परंपरा, जगत के अं तम स य क
ओर ले जाती है। अं तम स य क ओर जाते ही त य
गौण होने लगते ह और न कष मुख। त य उसे
समकालीन से जोड़त है और न कष, दे श काल क
सीमा को तोड़ते ए समाज के अनुभव ववेक म जुड़ते
जाते ह। भारतीय वा य का स य एक ओर जहाँ व श
स य का तपादन करता है वह सरी ओर सामा य
स य को भी अ भ करता है। सामा य स य का
तपादन सवदा भा य क अपे ा रखता है। यही कारण
है क भारतीय वाड् मय म ववे चत अ धकांश त य क
व तुगत स ा पर सदै व च ह लगते ह। वे अनुभव
क एक थाती ह। त य क व तुगत स ा से री उसे
थोड़ी रह या मक बनाती है, म क संभावना बनी
रहती है। उसके न हताथ तक प ँचने क लए ाक
आव यकता है। स पूणता का बोध कराने वाली यह
ापक एक कार क वै क (Holistic
Approach) है। मान वक एवं समाज व ान के
वषय ही नह अ पतु समाज व ान एवं ाकृ तक
व ान के अ तरावल बन से वतमान ान त म एक
कार के वै क का ा भाव होने लगा है, जसक
स त आव यकता तीत होती रही है।

मह व
शोध मानव ान को दशा दान करता है तथा ान
भ डार को वक सत एवं प रमा जत करता है।
शोध ज ासा मूल वृ (Curiosity Instinct)
क संतु करता है।
शोध से ावहा रक सम या का समाधान होता है।
शोध पूवा ह के नदान और नवारण म सहायक है।
शोध अनेक नवीन काय व धय व उ पाद को
वक सत करता है।
शोध ान के व वध प म गहनता और सू मता
लाता है।
शोध से का बौ क वकास होता है
अनुस धान हमारी आ थक णाली म लगभग सभी
सरकारी नी तय के लए आधार दान करता है।
अनुस धान के मा यम से हम वैक पक नी तय पर
वचार और इन वक प म से येक के प रणाम
क जांच कर सकते ह।
अनुस धान, सामा जक र त का अ ययन करने म
सामा जक वै ा नक के लए भी उतना ही मह वपूण
है। शोध सामा जक वकास का सहायक है।
यह एक तरह का औपचा रक श ण है।
अनुस धान नए स ांत का सामा यीकरण करने के
लए हो सकता है।
अनुस धान नई शैली और रचना मकता के वकास
के लए हो सकता है।

अनुसंधान म नै तकता
अनुसंधान ईमानदारी से क गई एक या है।इसम
गहनता से अ ययन कया जाता है और ववेक एवं
समझदारी से काम लया जाता है।चूँ क यह एक लंबी
या है अतः इसम धैय क परम आवय कता होती है

इ ह भी दे ख
अनुसंधान एवं वकास
अनुस धान सं थान
शोध- ब ध
शोधप ( रसच पेपर)
योग
नवाचार (इ ोवेशन)
वै ा नक व ध

बाहरी क ड़याँ
शोध के मह वपूण आयाम
अनुस धान : व प और आयाम (उमाका त गु त,
बृजरतन जोशी)
शोध व ध ( रसच मेथडोलॉजी)

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title=अनुसंधान&oldid=4047012" से लया गया

Last edited 25 days ago by शोएब सैफ़


साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख
ना कया गया हो।

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