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Poem Hindi Ramdhari Singh
Poem Hindi Ramdhari Singh
ू -घभ
ू , फाधा-ववघ्नों को चूभ-चूभ,
सह धूऩ-घाभ, ऩानी-ऩत्थय, ऩाॊडव आमे कुछ औय ननखय।
सौबाग्म न सफ ददन सोता है, दे खें, आगे क्मा होता है ।
‘दो न्माम अगय तो आधा दो, ऩय, इसभें बी मदद फाधा हो,
तो दे दो केवर ऩाॉच ग्राभ, यक्खो अऩनी धयती तभाभ।
हभ वह ॊ खुशी से खामेंग,े ऩरयजन ऩय असस न उठामेंगे!
दम
ु ोधन वह बी दे ना सका, आशीष सभाज की रे न सका,
उरटे , हरय को फाॉधने चरा, जो था असाध्म, साधने चरा।
जफ नाश भनज
ु ऩय छाता है, ऩहरे वववेक भय जाता है ।
मह दे ख, गगन भझ
ु भें रम है, मह दे ख, ऩवन भझ
ु भें रम है,
भझ
ु भें ववर न झॊकाय सकर, भझ
ु भें रम है सॊसाय सकर।
अभयत्व पूरता है भझ
ु भें, सॊहाय झर
ू ता है भझ
ु भें ।
‘फाॉधने भझ
ु े तो आमा है, जॊजीय फड़ी क्मा रामा है?
मदद भझ
ु े फाॉधना चाहे भन, ऩहरे तो फाॉध अनन्त गगन।
सन
ू े को साध न सकता है, वह भझ
ु े फाॉध कफ सकता है?
‘दहत-वचन नह ॊ तन
ू े भाना, भैत्री का भल्
ू म न ऩहचाना,
तो रे, भैं बी अफ जाता हूॉ, अस्न्तभ सॊकल्ऩ सन
ु ाता हूॉ।
माचना नह ,ॊ अफ यण होगा, जीवन-जम मा कक भयण होगा।