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दोहा “तिनका कबहूँ ना तनन्दिये , जो पाूँ वन िर होय, कबहूँ उड़ी आूँ न्दिन पड़े , िो पीर घनेरी होय।”

अर्थ – अपने इस दोहे में संि कबीरदासजी कहिे हैं की एक छोटे तिनके को छोटा समझ के उसकी
तनंदा न करो जैसे वो पैरों के नीचे आकर बुझ जािा हैं वैसे ही वो उड़कर आूँ ि में चला जाये िो बहोि
बड़ा घाव दे िा हैं ।

कबीर दोहा “कहैं कबीर दे य िू , जब लग िेरी दे ह। दे ह िेह होय जायगी, कौन कहे गा दे ह।”
हहन्दी अर्थ – जब िक यह दे ह है िब िक िू कुछ न कुछ दे िा रह। जब दे ह धूल में तमल जायगी, िब
कौन कहे गा तक ‘दो’।

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